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6 लाख का गुजारा भत्ता वाले फैसले से पुरुष समुदाय क्यों हुआ खुश, क्या है भरणपोषण कानून

जूते और ड्रैस खरीदने के लिए चाहिए – 15000 रुपए महीना
घर पर खाना खाने के लिए चाहिए – 60000 रुपए महीना
घुटने के दर्द और इलाज के लिए चाहिए – 4 से 5 लाख रुपए महीना
इस तरह महीने भर के लिए कुल गुजारा भत्ता चाहिए – 616300 रुपए महीना

यह लिस्ट एक पत्नी की है जो कर्नाटक हाईकोर्ट में तलाक के एक मामले के दौरान 22 अगस्त को पेश की गई. लिस्ट देख कर मामले की सुनवाई कर रहीं जस्टिस ललिता कन्नेगंती को गुस्सा आ गया. उन्होंने फटकार लगाते हुए कहा, ‘इतने पैसे कौन खर्च करता है, खुद कमाओ.’

यह मामला चिंतनीय भी है और दिलचस्प भी जो यह बताता है कि गुजारा भत्ता कानून का कैसेकैसे मखौल बनाया जाने लगा है. इस मामले में याचिकाकर्ता को उस के वकील के जरिये झाड़ लगाते हुए जस्टिस ललिता कन्नेगंती ने यह भी कहा कि पत्नी से विवाद होना पति के लिए सजा नहीं है. अगर आप इतने पैसे खर्च करना चाहती हैं तो खुद कमाएं. अकेली महिला को गुजारे के लिए इतने पैसों की जरूरत नहीं हो सकती.

क्या है गुजारा भत्ता के नियम, प्रावधान और यह कैसे तय किया जाता है? इस से पहले कर्नाटक के उक्त मामले पर सोशल मीडिया पर जो कहा सुना गया उसे देखें तो समझ आता है कि इस मामले और फैसले को लोगों ने गंभीरता से लिया है और गुजारा भत्ते के कानूनी के अलावा सामाजिक और पारिवारिक सरोकार भी हैं. तलाक के मुकदमे के दौरान पत्नियां इसे शंकर या विष्णु का वरदान समझते अनापशनाप पैसे मांगने लगती हैं जो पतियों के लिए बड़ा सरदर्द साबित होता है. और वे बेकसूर होते हुए भी गुनहगारों जैसी गिल्ट महसूस करने लगते हैं.

कर्नाटक हाईकोर्ट की कार्रवाई का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है जिसे अब तक लाखों लोग देख चुके हैं और लगभग सभी जस्टिस ललिता कन्नेगंती के न्याय की तारीफ ही कर रहे हैं. मुकेश शा नाम के एक यूजर ने अंगरेजी में लिखा, “सब की अपनीअपनी आमदनी है उसी हिसाब से खर्चे हैं.” विशाल एस . नाम के यूजर ने वकील को दोषी ठहराते कहा, “कानून के दलाल अति मचा रहे हैं. क्लाइंट को भरमा कर मुगेरीलाल के ख्वाव दिखा कर कुछ भी केस तैयार करवा देते हैं.”

सौरव विश्वास की भड़ास इन शब्दों में व्यक्त हुई, “जीरो रूपए दिए जाने चाहिए और मेंटल टार्चर करने के लिए पनिशमैंट दिया जाना चाहिए.” ज्ञान प्रकाश नाम के यूजर ने ताना कसा कि 600 करोड़ मांग लो.

पुरुष समुदाय खुश हुआ

पुरुष समुदाय ने तो जज साहिबा को हाथोंहाथ लिया. इंस्टाग्राम पर सुरेश सिंह ने कहा, ‘पति नाम के जीव का शोषण हो रहा है. जज साहिबा को धन्यवाद. उन्होंने अन्याय नहीं होने दिया. बिट्टू शर्मा ने अपनी ख़ुशी इन शब्दों में जाहिर की कि सलाम इन की सोच को जिन्होंने पुरुष समाज के बारे में सोचा नहीं तो आजकल औरतों को उन की बात से पलटवाना बहुत मुश्किल होता है.

एक यूजर केके नेहरा ने तो महिला आयोग की तरह देश में पुरुष आयोग तक गठित करने की मांग कर डाली. पुरुष ही नहीं कुछ महिलाओं ने भी इस फैसले से इत्तफाक जताया. डाक्टर शीतल यादव ने लिखा, जज साहिबा का बेहतरीन निर्णय. हमें ऐसे जजों की जरूरत है जो नैतिकता को ध्यान में रख कर अपना निर्णय सुनाएं.

बहुत कम अदालती फैसलों में ऐसा होता है कि सोशल मीडिया पर इतने व्यापक पैमाने पर प्रतिक्रियाएं मिले. अगर यह भड़ास है तो इसे बेवजह नहीं कहा जा सकता. गुजारा भत्ते के फैसले आमतौर पर पत्नी के हक में जाते हैं जो हर्ज की बात नहीं बशर्ते पति की हैसियत उस की मांग पूरी करने की हो. वैसे तो आम राय लोगों की यह भी है कि गुजारा भत्ता पत्नी की मांग पर नहीं बल्कि पति की हैसियत के मुताबिक तय होना चाहिए और इतना ही होना चाहिए जिस से पत्नी सम्मानजनक तरीके से गुजर बसर कर सके.

इस मामले में पत्नी के वकील ने दलील दी थी कि उस की क्लाइंट ब्रांडेड आइटम्स और रेस्टोरेंट की आदी है. इस पर ताना मारते हुए एक यूजर डाक्टर देवेन्द्र यादव ने अपनी राय कुछ इस तरह दी, ‘यह घटना वास्तव में बहुत दिलचस्प है और समाज में कई मुद्दों को उजागर करती है. जज साहिबा का जवाब इस बात पर बल देता है कि अगर किसी व्यक्ति की जीवनशैली बहुत महंगी है तो उन्हें अपनी आर्थिक जिम्मेदारियों को भी खुद ही संभालना चाहिए.’ यह भी दिखता है कि कोर्ट में जजों का काम केवल नियमों के पालन की निगरानी करना नहीं बल्कि न्याय के प्रति ईमानदार रहना भी है ऐसे मुद्दों पर स्पष्ट और संतुलित राय रखना बहुत महत्वपूर्ण है.

एक और यूजर मिस्टर गुप्ता ने लिखा, ‘जज साहिबा का बेहद सटीक जवाब. आजकल कुछ लड़कियां अपना घर बर्बाद कर ऐसे ही कोर्ट में बकवास करती हैं. पता है कानून हमारे लिए बनाया गया है. महिला कानून का बेजा इस्तेमाल हो रहा है.’ एक पत्रकार जैकी यादव ने भी पुरुषों की हिमायत की.

क्या कहता है कानून

कर्नाटक हाईकोर्ट के इस फैसले पर आम लोग लगभग वही बातें कह रहे हैं जो कानून कहता है. गुजारा भत्ते से सम्बंधित अहम धारा सीआरपीसी की 125 है जो भरणपोषण के अधिकार से जुड़े मामलों की व्यवस्था करती है. इस धारा के तहत वह महिला गुजारा भत्ते की हकदार है जिसे पति द्वारा तलाक दे दिया गया हो या जिस ने पति को तलाक दे दिया हो. पत्नी को यह साबित करना होता है कि वह आर्थिक रूप से इतनी सक्षम नहीं है कि अपना भरणपोषण कर सके. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत पति या पत्नी को अदालत द्वारा तय की गई राशि का भुगतान करना पड़ता है.

लेकिन इस के लिए कुछ शर्तें हिंदू दत्तक भरणपोषण अधिनियम की धारा 18 ( 1 ) में वर्णित भी हैं जिन के आधार पर हिंदू पत्नी अपने पति से अलग रहते भी भरणपोषण की हकदार होती है –

– जब पति परित्याग के लिए जिम्मेदार हो
– जब पति क्रूरता के लिए उत्तरदायी हो
– जब पति कुष्ठ रोग से पीड़ित हो
– जब पति दूसरी शादी कर ले
– जब पतिपत्नी की बिना सहमति के धर्म परिवर्तन कर ले.

ऐसे तय होती है राशि

हिंदू दत्तक और भरणपोषण अधिनयम 1956 की धारा 23 में भरणपोषण की राशि के बारे में बताया गया है कि यह कितनी होनी चाहिए. आमतौर पर अदालतें इन बातों का ध्यान रखती हैं.

1 – दावेदार की मूल आवश्यकता.
2 – दोनों पक्षों का स्टेटस और पोजीशन.
3 – उचित बुनियादी आराम जो एक व्यक्ति को चाहिए.
4 – प्रतिवादी की चल व अचल संपत्ति की कीमत.
5 – प्रतिवादी की आय.
6 – प्रतिवादी पर आर्थिक रूप से निर्भर व्यक्तियों की संख्या.
7 – दोनों के बीच संबंधों की डिक्री.

जाहिर है ये आधार लगभग वही हैं जो सोशल मीडिया पर यूजर्स ने अपने शब्दों में व्यक्त किए. बाबजूद इस के गुजारा भत्ते की राशि तय करना आसान काम नहीं होता. अदालतों के कई फैसले विरोधाभासी हैं. गुजारा भत्ता या भरणपोषण एक लेटिन शब्द एलिमोनिया से बना है बोलचाल की भाषा में यह एल्मनी हो गया है.

वैवाहिक मामलों में गुजारा भत्ता 2 तरह का होता है पहले को अंतरिम भरणपोषण राशि कहते हैं जो अदालती कार्रवाई के दौरान दी जाती है और दूसरी जिसे स्थाई कहा जाता है कानूनी अलगाव यानी तलाक के बाद दी जाती है. यह एक मुश्त भी हो सकती है और मासिक त्रैमासिक भी जैसी वादी को जरूरत हो. लेकिन इस के लिए अदालत की सहमति आवश्यक है.

पत्नी, पति की आमदनी में से कितने फीसदी की हकदार है इस का कोई तयशुदा पैमाना नहीं है लेकिन आमतौर पर भरणपोषण की राशि पति की सैलरी या आमदनी का 20 से 30 फीसदी होती है. यानी पति की आय अगर 50 हजार रुपए महीना है तो वह बतौर भरणपोषण 10 से 15 हजार रुपए महीने देगा. पर ये तब की बाते हैं जब महिलाएं कमाऊ और शिक्षित नहीं होती थीं. अब लड़कियां खुद भी पति के बराबर या उस से भी ज्यादा कमा रही हैं तो उन्हें कोई गुजारा भत्ता नहीं मिलता. अप्रैल 2023 में दिल्ली हाईकोर्ट का एक अहम फैसला आया था जिस में एमबीए पास पत्नी ने 50 हजार रुपए महीने के अंतरिम गुजारे भत्ते के लिए अदालत से गुहार लगाई थी.

इस मामले में पति डाक्टर था लेकिन बेरोजगार था. एमबीए पत्नी की अर्जी कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ ख़ारिज कर दी थी कि आप पढ़ीलिखीं हैं अपनी आमदनी के जरिये खुद ढूंढे या पैदा कर सकती हैं. कोर्ट ने उस के घरेलू हिंसा के आरोप को भी ख़ारिज कर दिया था.

तब इस पर देशव्यापी प्रतिक्रियाएं हुई थीं. ठीक वैसे ही जैसे आज कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले पर हो रही हैं. तब भी आम लोग जज की भूमिका से सहमत थे कि यदि पत्नी पर्याप्त शिक्षित है तो उसे खुद कमाना चाहिए खासतौर से उस वक्त जब पति बेरोजगार हो.

इसे यानी बदलते सामाजिक हालातों को बारीकी से समझने के लिए थोड़े पीछे चलना पड़ेगा. आजादी के पहले तलाक का कोई क़ानूनी प्रावधान ही नहीं था. पुरुष प्रधान समाज में कोई भी पतिपत्नी को बिना किसी कारण के छोड़ सकता था. पत्नी दूसरों के रहमोकरम पर रहती थी जिस का हर तरह से शोषण होता था. न किसी अदालत में वह जा सकती थी न आज की तरह थाने में जा कर हल्ला मचा सकती थी कि मेरे साथ ज्यादती हो रही है मुझे बचाओ या इंसाफ दो. हालांकि अंगरेजों ने तलाक कानून बनाया था लेकिन कई वजहों के चलते उस का असर बहुत ज्यादा नहीं था.

आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरु सरकार ने हिंदू कोड बिल के जरिए औरतों को भी तलाक का हक दिया तो इस के विरोध में कट्टर हिंदुवादियों ने सड़क से ले कर संसद तक जम कर बवाल काटा था लेकिन नेहरु उन के सामने झुके नहीं थे. इस विषय पर आप सरिता के आगामी अंकों में विस्तार से तथ्यात्मक रिपोर्ट पढ़ सकते हैं.

सरिता के सितम्बर प्रथम अंक से श्रृखलावद्ध तरीके से यह सिलसिला ( शीर्षक – 1947 के बाद कानून से रेंगती सामाजिक बदलाव की हवाएं) शुरू हो जाएगा जो कई अनछुई बातों को बताएगा, आप की आंखें खोलेगा कि आज हम सुकून और आजादी से हैं खासतौर से महिलाएं तो वह किसी दैवीय वरदान या धर्म की वजह से नहीं हैं बल्कि पहली कांग्रेसी सरकार की वजह से हैं जिस ने महिलाओं को उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है कि वे तलाक और मेंटेनेंस दोनों के लिए अदालत जा कर न्याय मांग सकती हैं और वह उन्हें मिलता भी है.

अब आज की बात यह कि कुछ मामलों में ही सही कुछ महिलाएं अपने क़ानूनी अधिकारों का बेजा इस्तेमाल करने लगी हैं जिस पर रोक लगना या फिर से विचार होना जरुरी है. तलाक और मेंटेनेस के मामलों में पतियों को भी कम सामाजिक प्रताड़नाओं और तिरस्कार का सामना नहीं करना पड़ता.

दूसरे वे तलाक की प्रक्रिया के दौरान तमाम सुखों से भी वंचित रहते हैं जिन में से यौन सुख प्रमुख है. अब अगर वे बिना तलाक के दूसरी शादी कर लें तो भी मुसीबत में पड़ जाते हैं क्योंकि एक पत्नी के रहते वे दूसरी शादी करने पर अपराधी हो जाते हैं. सैक्स की अपनी जरूरत पूरी करने वे कौलगर्ल्स के पास जाएं तो भी मुसीबतों का सामना उन्हें करना पड़ता है कि पकड़े गए तो भी बेइज्ज्ती, थाना और जेल और नहीं भी पकड़े गए तो बीमारियों का डर और तथाकथित व्यभिचार का एक अपराध बोध उन्हें सालता रहता है.

हालांकि दुश्वारियां पत्नी की भी उतनी ही रहती हैं लेकिन सोचा यह भी जाना चाहिए कि तलाक के मुकदमे के दौरान पति योन सुख से वंचित क्यों रहे और रहने मजबूर है तो फिर गुजारा भत्ता किस बात का दे. क्या इस बात पर विचार नहीं होना चाहिए कि तलाक के मुकदमे के दौरान पत्नी पति की मांग पर उसे शारीरिक सुख देने बाध्य हो. किसी भी पति की एक बड़ी परेशानी यह भी है कि तलाक के बाद दूसरी शादी करने पर उसे दोदो पत्नियों का खर्च उठाना पड़ता है. पहली वो जो दूसरी बन कर आई है और दूसरी वो जो कभी पहली थी लेकिन अब उस के लिए भार बन गई है.

हालांकि कानून यह भी कहता है कि अगर पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम है तो मेंटेनेंस की हकदार नहीं होगी. आजकल के युवा अगर नौकरीपेशा पत्नी प्राथमिकता में रखते हैं तो उस की एक बड़ी वजह यह भी है कि जिंदगी शानदार तरीके से जी जाए क्योंकि डबल इनकम से बहुत से सुख सुविधाएं हासिल की जा सकती हैं और खुदा न खास्ता अलगाव की नौबत आई तो तलाक के दौरान या बाद में कोई गुजारा भत्ता तो नहीं देना पड़ेगा. यही सोच लड़कियों की भी है जो अच्छी भी हैं कि वे किसी भी लिहाज से पति की मोहताज नहीं रहतीं. उन की अपनी खासी इनकम होती है सोशल स्टेटस भी होती है और कान्फिडेंस भी उन में भरपूर रहता है.

दिक्कत उन पत्नियों को है जो हर स्तर पर पति की मोहताज रहती हैं. लेकिन चूंकि उन्हें तलाक के मुकदमे के दौरान अंतरिम गुजारा भत्ता भी मिलता है और तलाक के बाद परमानेंट भी इसलिए उन के वकील की कोशिश यह रहती है कि मुकदमा जितना हो सके लम्बा चले जिस से हर पेशी पर दक्षिणा मिलती रहे. यही सोच पूजापाठी जजों की भी रहती है कि तलाक कम से कम हों इसलिए दोनों पक्षों को इतना नचा दो कि उन की हालत देख दूसरे पतिपत्नी तलाक के लिए अदालत का रुख ही न करें फिर भले ही वे पारिवारिक और सामाजिक तौर पर घुटघुट कर जीते रहें.

बूआजी का भूत: कैलाश के साथ उस रात क्या हुआ

कैलाश की मां मर गई थीं. वे 75 साल की थीं. कैलाश ने अपने मामा के लड़कों के साथ रिश्तेदारों को भी खबर पहुंचा दी. तकरीबन सभी रिश्तेदार और समाज के लोग कैलाश के इस दुखद समय पर हाजिर हो गए. फिर कैलाश ने अपनी मां की अर्थी का इंतजाम कर दाह संस्कार भी कर दिया. उसी दिन शाम को ही नातेरिश्तेदारों के साथ बैठ कर कैलाश मृत्युभोज का दिन व समय तय करने के लिए चर्चा करने लगा, तभी कैलाश के मामा के लड़के मोहन ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘भाई, अभी मृत्युभोज की तारीख तय मत करो… मैं बूआजी की गौरनी करना चाहता हूं. उस के बाद तुम मृत्युभोज कर लेना.’’

कैलाश ने पूछा, ‘‘यह गौरनी क्या होती है?’’ मोहन ने कैलाश को हैरानी से देखा, ‘‘गौरनी नहीं जानते तुम… यह गौने का छोटा रूप है,’’ फिर वह समझाने लगा, ‘‘मैं बूआजी को इज्जत से उन के मायके यानी अपने घर ले जाऊंगा. बाकायदा उन का ट्रेन, बस वगैरह का टिकट भी लूंगा. जो वे खाएंगी खिलाऊंगा, फिर समाज के लोगों को न्योता दे कर अच्छेअच्छे पकवान बना कर भोजन कराऊंगा. ‘‘उस के बाद बूआजी को नए कपड़ों और सिंगार के सामान के साथ इज्जत से तुम्हारे घर विदा कर दूंगा. भाई, फिर तुम मृत्युभोज की तारीख तय कर लेना.

‘‘पर, मां तो मर गई हैं. उन की देह को हम ने जला भी दिया है. कैसे ले जाओगे उन्हें?’’ कैलाश ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं बूआजी के पुराने कपड़ों को बूआजी समझ कर ले जाऊंगा… अब मेरी ट्रेन का समय हो रहा है. चल, जल्दी से बूआजी को मेरे साथ विदा कर दे.’’ कैलाश हैरान हो कर मोहन का मुंह ताकने लगा, तो मोहन ने उसे झिड़का, ‘‘मूर्ख, मेरा मुंह क्या ताक रहा है? जा, बूआजी के पुराने कपड़े ले आ.’’

कैलाश घर के भीतर जा कर थोड़ी देर में अपनी मां के पुराने कपड़े एक पौलीथिन बैग में रख कर ले आया. मोहन उसे देख कर चीख पड़ा, ‘‘अबे, बूआजी का दम घुट जाएगा. जल्दी पौलीथिन से बाहर निकाल.’’

कैलाश ने घबरा कर फौरन कपड़े बाहर निकाले और एक गहरी लंबी सांस ली, मानो अपनी मां को दम घुटने से बचा लिया हो, फिर मायूस हो कर उस ने कपड़े मोहन को थमा दिए. मोहन बोला, ‘‘अब बूआजी से माफी मांग और प्रणाम कर के बोल कि मां घर जल्दी आ जाना.’’

लाचार कैलाश कपड़ों से माफी मांग कर बोला, ‘‘मां, घर जल्दी आ जाना.’’ मोहन ने कपड़ों से कहा, ‘‘चलो बूआजी अपने मायके. वहां भाईभतीजे आप का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं.’’

मोहन अपनी पत्नी शारदा को साथ ले रिकशा स्टैंड पर आ गया. थोड़ी देर में एक रिकशा उस के पास आ कर रुका. ‘‘कहां जाओगे?’’

‘‘रेलवे स्टेशन. तुम 3 सवारियों का कितना पैसा लोगे?’’ रिकशे वाले ने इधरउधर देख कर पूछा, ‘‘तीसरा कौन है?’’

‘‘देख नहीं रहे हो. मेरे हाथ में बूआजी हैं,’’ मोहन ने जवाब दिया. रिकशे वाले ने गौर से देख कर कहा, ‘‘ये तो किसी औरत के पुराने कपड़े हैं.’’

‘‘इन्हें कपड़े मत कहो.’’ मोहन ने नाराजगी जाहिर की, ‘‘ये मेरी बूआजी हैं. इन का अभीअभी कुछ देर पहले देहांत हो गया है.

‘‘पर, तुम चिंता मत करो, मैं बूआजी का पूरा किराया दूंगा.’’ यह सुन कर रिकशे वाला डर कर कांपने लगा, क्योंकि मोहन के चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी और माथे पर लगा तिलक तांत्रिक होने का संकेत दे रहे थे.

‘‘भैया, आप की बूआजी को बिठा कर ले जाना मेरे बस की बात नहीं है,’’ रिकशे वाला हाथ जोड़ते हुए बोला. इतना कह कर वह रिकशा ऐसे ले कर भागा, जैसे बूआजी का भूत उस के पीछे पड़ गया हो. मोहन और उस की पत्नी उस को रोकते रह गए, पर वह

नहीं रुका. थोड़ी देर बाद एक सवारी टैंपो वहां आ कर रुका. निराश मोहन और शारदा की आंखों में चमक लौट आई.

सवारी टैंपो में पहले से ही 3-4 सवारियां बैठी थीं और 4-5 सवारियों के बैठने की जगह थी. मोहन शारदा के साथ बैठ गया और पास ही खाली सीट पर बूआजी के कपड़े रख कर बोला, ‘‘बूआजी, अब आप आराम से यहां बैठिए. आप को कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

आसपास बैठी सवारियां उस की बात सुन कर हैरत से उसे और कपड़ों को देखने लगीं. ‘‘अजीब आदमी है, कपड़ों से बात कर रहा है,’’ टैंपो का कंडक्टर बोला.

‘‘भैया, खाली सीट से कपड़े उठा लो और उधर सरक कर बैठो. मुझे और भी सवारियां लेनी हैं,’’ कंडक्टर बोला. मोहन ने तैश में आ कर जवाब दिया, ‘‘तमीज से बोलो… वे कपड़े नहीं, बूआजी हैं और उन का किराया मैं देने को तैयार हूं.’’

‘‘कहां हैं बूआजी?’’ कंडक्टर ने हैरानी से पूछा. ‘‘वे मर गई हैं, लेकिन उन के कपड़े ही बूआजी हैं.’’

‘‘तो क्या बूआजी के भूत को साथ ले कर चल रहा है?’’ परेशान मोहन तैश में बोला, ‘‘यही समझ ले.’’

आसपास बैठी सवारियां उन की बातें सुन कर खौफ से भर गईं और सभी एकएक कर के टैंपो से उतर गईं. कंडक्टर ने देखा कि सवारियां डर कर उतरी हैं, तो वह भी डर गया. हालात से समझौता करते हुए कंडक्टर हाथ जोड़ कर मोहन से बोला, ‘‘भाई, तू मुझ से किराया ले ले और किसी दूसरी गाड़ी से स्टेशन चला जा, पर अपनी बूआजी को नीचे उतार ले. मेरी सारी सवारियां डर कर भाग रही हैं.’’

मोहन ने उसे समझाने की कोशिश की, पर सवारी और कंडक्टर उस की बात सुनने को तैयार नहीं हुए. मोहन थकहार कर कपड़े उठा कर टैंपो से उतर गया. ‘‘ऐसे तो हम किसी गाड़ी में नहीं बैठ पाएंगे,’’ शारदा ने कहा, ‘‘अब किसी रिकशे वाले को यह मत बताओ कि बूआजी हमारे साथ हैं.’’

‘‘बात तो तुम ठीक कह रही हो, पर इस उम्र में बूआजी को बिना भाड़ा दिए ले जाना सरासर बेईमानी है. उन की आत्मा हमें कोसेगी.’’ ‘‘चलो, फिर पैदल ही चलते हैं.’’

‘‘ठीक है,’’ कह कर मोहन और शारदा पैदल चल दिए. थोड़ी दूर चलने के बाद शारदा बोली, ‘‘सुनोजी, बूआजी थक गई होंगी, क्यों न कहीं बैठ कर हम थोड़ा आराम कर लें?’’

‘‘ऐसे कैसे थकेंगी बूआजी. उन को तो हम उठाए हैं.’’ ‘‘मेरा मतलब है कि बूआजी को थोड़ा चायनाश्ता करवा दो, बेचारी कब से भूखीप्यासी हमारे साथ चल रही हैं.’’

‘‘तुम ठीक कह रही हो. सवारी गाड़ी के चक्कर में बूआजी की भूखप्यास का मुझे जरा भी खयाल नहीं आया.’’ एक होटल में जा कर मोहन ने

एक खाली कुरसी पर बूआजी के कपड़े रखे और और्डर दिया, ‘‘भैया, 3 गिलास पानी और 3 जगह 2-2 समोसे और चाय देना.’’

नौकर ने पानी, चाय, समोसे टेबल पर रख कर पूछा, ‘‘तीसरा कौन है साहब?’’ मोहन तैश में आ कर बोला, ‘‘इन कपड़ों के सामने सामान रख दे. तुझे बूआजी नजर नहीं आएंगी.’’

नौकर ने मोहन और कपड़ों को अजीब नजरों से देखा और चुपचाप नहाने चला गया. नाश्ता और पानी का गिलास कपड़ों के सामने सरका कर मोहन बोला, ‘‘बूआजी, समोसे खा कर पानी पी लो.’’ नौकर ने दूर से मोहन की बुदबुदाहट सुनी, पर उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह डर कर सीधा अपने मालिक के पास पहुंचा.

थोड़ी देर बाद होटल मालिक मोहन के सामने जा खड़ा हुआ और बोला, ‘‘यहां क्या यह तांत्रिक पूजा चल रही है? यह होटल है, तुम्हारी तंत्र साधना की जगह नहीं. चलो, उठो यहां से.’’ मोहन हड़बड़ा कर सफाई देने लगा, ‘‘आप गलत समझ रहे हो, दरअसल…’’

मालिक झल्लाया, ‘‘मुझे मूर्ख बना रहे हो… कपड़े को समोसा खिला रहे हो, पानी पिला रहे हो और ऊपर से मंत्र बुदबुदा रहे हो. मेरे नौकर ने तुम्हें दूर से देखा है.’’ तभी नौकर ने मालिक की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘मालिक, जब मैं ने तीसरी प्लेट के बारे में पूछा, तो यह आदमी बोला कि कपड़ों के सामने रख दे. यह प्लेट बुआजी की है, जो तुझे नजर नहीं आएंगी.’’

मोहन के कुछ बोलने से पहले ही मालिक बोला, ‘‘चलो, उठो यहां से. नाश्ते के पैसे भी मत दो. चलो, होटल के बाहर जाओ.’’ मोहन और शारदा बेइज्जत हो कर होटल के बाहर आ कर रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए.

रेलवे स्टेशन पहुंच कर मोहन 3 टिकट ले कर ट्रेन में जा बैठा और खाली सीट पर कपड़े रख दिए.

धीरेधीरे डब्बा मुसाफिरों से भरने लगा. एक मुसाफिर ने मोहन से कहा, ‘‘भैया, कपड़े उठाओ, उधर सरको और हमें भी बैठने की जगह दो.’’ मोहन बोला, ‘‘बूआजी बैठी हैं.’’

उस मुसाफिर ने सोचा कि शायद इस की बूआजी बाथरूम वगैरह कहीं गई होंगी. वह आगे बढ़ गया, तभी दूसरे मुसाफिर ने कपड़े के लिए मोहन को टोका, तो मोहन ने वही जवाब दिया, ‘‘बूआजी बैठी हैं.’’ वह आदमी खीज कर बड़बड़ाने लगा, ‘‘हमारा देश भी अजीब है. बस सीट पर कपड़ा या रूमाल रख दो, तो आरक्षण हो जाता है.’’

डब्बा जब खचाखच भर गया और ट्रेन चलने को हुई, तो पास ही खड़े एक मुसाफिर ने पूछा, ‘‘भैया, तेरी बूआजी कब आएंगी? ‘‘आएंगी क्या…? बूआजी तो यहीं बैठी हैं,’’ मोहन बोला.

‘‘कहां बैठी हैं? हमें तो नजर नहीं आ रही हैं.’’ ‘‘कपड़े ही बूआजी हैं.’’

‘‘तो भाई ऐसा कर, अपनी बूआजी को गोद में बिठा ले,’’ उस आदमी ने तैश में आ कर कहा, ‘‘और हमें बैठने दे.’’ मोहन जिद पर अड़ गया, ‘‘नहीं उठाऊंगा. मैं ने बूआजी का टिकट लिया है,’’ मोहन की उस मुसाफिर से जम कर बहस होने लगी.

तभी वहां टिकट कलक्टर यानी टीसी आ गया. उस ने मोहन से कपड़े उठाने को कहा, तो मोहन ने जवाब दिया, ‘‘नहीं उठाऊंगा. मैं ने बूआजी का टिकट लिया है.’’ टीसी ने टिकट देख कर गरदन हिलाते हुए कहा, ‘‘टिकट बराबर है.’’

मोहन के चेहरे पर जीत भरी मुसकान आ गई. टीसी ने गुजारिश करते हुए मोहन से कहा, ‘‘देखो भाई, आप सही हैं, टिकट सही है, पर दूसरे मुसाफिरों को सुविधा मिले, इसलिए अपनी बूआजी के कपड़े गोद में रख लो.’’

मोहन टीसी की बात ठुकराते हुए अपनी जिद पर अड़ा रहा, तभी टीसी के दिमाग में कुछ आया. वह मोहन से बोला, ‘‘जरा फिर से टिकट दिखाना.’’ मोहन ने उसे टिकट दे दिया. टीसी ने टिकट देख कर पूछा, ‘‘आप की बूआजी सीनियर सिटीजन हैं.’’

‘‘जी हां, मैं ने टिकट भी सीनियर सिटीजन का ही लिया है,’’ मोहन ने गर्व से जवाब दिया. ‘‘आप की बूआजी नजर नहीं आ रही हैं. मैं कैसे अंदाजा लगा लूं कि वे सीनियर सिटीजन हैं. कोई पहचानपत्र या आधारकार्ड वगैरह है?’’

अब तो मोहन की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. वह हिचकिचाते हुए बोला, ‘‘जी, वह तो नहीं है.’’ टीसी ने मन ही मन सोचा कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे. ‘‘पहचानपत्र नहीं है. चलो, फाइन के साथ दोगुना किराया दे दो या इन कपड़ों को बूआजी मत कहो. अच्छी तरह समझ लो कि ये कपड़े हैं और चुपचाप उठा लो. अंधविश्वास छोड़ो, वरना जुर्माने के साथ दोगुना किराया भरो.’’ थकहार कर मोहन ने कपड़े उठा लिए, तो एक मुसाफिर उस सीट पर जा कर बैठ गया.

टीसी के जाते ही दूसरे मुसाफिर अंधविश्वास के खिलाफ चर्चा में मशगूल हो गए और इधर मोहन चुपचाप नजरें झुकाए शर्मिंदा होते हुए न चाहते हुए भी उन की बातें सुनता रहा.

ओरल सैक्स से लाएं रिश्तों में गरमाहट

सैक्स पतिपत्नी के रिश्ते में बहुत बड़ा रोल अदा करता है. जैसे अच्छे लाइफस्टाइल के लिए पैसा होना बेहद आवश्यक है, उसी तरह हैल्दी रिलेशनशिप के लिए अच्छा सैक्स बहुत जरूरी है.

सैक्स दोनों पार्टनर्स को करीब लाने का अवसर देता है और ऐसा देखा गया है कि अगर दोनों पार्टनर्स एकदूसरे को पूरी तरह संतुष्ट कर पा रहे हैं तो उन के बीच संबंध काफी अच्छे बने रहते हैं और लड़ाईझगड़े काफी कम होते हैं क्योंकि हैल्दी सैक्स टैंशन को दूर भगा देता है.

क्यों जरूरी है ओरल सैक्स

हमें हमेशा इस बात का खयाल रखना चाहिए कि सैक्स से पहले अपने पार्टनर को इस कदर प्यार देना चाहिए कि दोनों को सैक्स से पहले ही इतना आनंद मिल जाए कि बस दोनों पार्टनर्स सैक्स करने पर मजबूर हो जाएं और सैक्स किए बिना रह न पाएं.

ओरल सैक्स में आप को अपने हाथों के साथसाथ अपने लिप्स और अपनी जीभ का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करना है जिस से कि आप का पार्टनर सैक्स के लिए पूरी तरह तैयार हो जाए.

उस के बाद आप को अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर जम कर किस करनी चाहिए जिस से कि वे इस कदर बेचैन हो उठे कि आप को अपनी बांहों में जकड़ ले कि.

जम कर करें कडलिंग और किसिंग

याद रहे कि आप का फोकस सिर्फ सैक्स करना नहीं होना चाहिए बल्कि अपने पार्टनर को और खुद को वह आनंद देना होना चाहिए जिसे पा कर दोनों एकदूसरे के और भी ज्यादा करीब आ जाएं. अगर आप अपने पार्टनर के साथ सिर्फ सैक्स करते हैं तो आप दोनों एकदूसरे से बहुत ही जल्दी बोर होने लग जाएंगे। इसलिए अपनी सैक्स लाइफ में रोमांच भरने के लिए ओरल सैक्स जरूर ट्राई करें.

सैक्स से पहले अपने पार्टनर के साथ खूब रोमांस करना चाहिए और अपने पार्टनर के साथ जम कर कडलिंग और किसिंग करनी चाहिए.

पार्टनर को न होने दें कोई भी तकलीफ

इस बात का जरूर ध्यान रखना है कि हर चीज अपने पार्टनर के हिसाब से करनी चाहिए. ऐसा देखा गया है कि ओरल सैक्स के दौरान पुरूष साथी कुछ ऐसी चीजें ट्राई करने लगता है जिस से महिला साथी को आनंद से ज्यादा तकलीफ होने लगती है. तो आप जो कुछ भी करें बहुत ही आराम से और धीरेधीरे ताकि आप दोनों सैक्स का भरपूर आनंद उठा पाएं और दोनों में से किसी को भी कोई तकलीफ न हो.

हिंदी फिल्मों को विदेशों में पसंद न करने की वजह है क्या, जाने यहां

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का कभी वह दौर था जब एक नई फिल्म के आने पर जोरशोर से दर्शक चाहे देश के हों या विदेशों के, उसे देखने के लिए आतुर हो उठते थे और उस में अभिनय करने वाले पात्रों के फौलोअर्स बन जाते थे व कहानीकार की चर्चा किया करते थे. यह सही है कि समय के साथसाथ कहानियों में परिवर्तन आया. पहले गांव की कहानी, फिर समय के साथ शहरों की कहानी पर फ़िल्में बनीं. उन से निकल कर बौलीवुड आधुनिकता की ओर बढ़ गया और आधुनिक तकनीक के साथ, सैक्स, मारधाड़, खूनखराबा आदि को जम कर परोसा जाने लगा. इस तरह की फिल्मों से भी दर्शक ऊब गया और उस ने अब ऐसी फिल्मों को नकार दिया. फलस्वरूप, फिल्में फ्लौप रहीं.

दर्शकों का प्यार इन फिल्मों को नहीं मिला और कई थिएटर हौल बंद हो चुके हैं, तो कुछ बंद होने की कगार पर हैं. लेकिन क्या ऐसी कहानियों, जो दर्शकों के मन को छू सकें, पर फ़िल्में बननी बंद हो गईं? क्या निर्माता, निर्देशक दर्शकों की चाहत को टटोलने में असमर्थ हो चुके हैं? यही वजह है कि पूरे विश्व में इन फिल्मों को देखने वाले दर्शक बजाय देखने के उन का बहिष्कार कर रहे हैं. आखिर क्या है इस की वजह, जिस के परिणामस्वरूप दर्शक थिएटर हौल तक जाने और फिल्मों को देखना नहीं चाहते और आज भी वे 80 और 90 के दशक की फिल्मों को बारबार देखते हैं?

अमेरिका के लास एंजिलस में रहने वाले विजित होर कहते हैं कि आज की हिंदी फिल्में अजीब कहानियों वाली होती हैं, जिन्हें एक घंटा भी बैठ कर देखना मुमकिन नहीं, कहानियों में कसाव नहीं होता, कहानियां ओरिजिनल नहीं होतीं, किसी न किसी विदेशी फिल्म की कौपी होती हैं.

वे कहते हैं, “हालफिलहाल मैं ने ‘एनिमल’ और ‘क्रू’ फिल्म देखी. एक में खूनखराबा, तो दूसरे में कहानी ही बेसिर पैर की है. मनोरंजन से भी आज की फिल्में दूर हो चुकी हैं. क्या अच्छी कहानियों को लिखने वाले नहीं हैं? हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को समस्या का पता नहीं, आज मैँ 80 या 90 के दशक की फिल्में देखता हूं और बारबार देखता हूं और मुझे अच्छी लगती हैं.”

क्वालिटी कंटैंट की नहीं कमी

यह सही है कि आज की तारीख में क्वालिटी कंटैंट की कमी दर्शकों के पास नहीं है, इसलिए उन की आशाएं फिल्मों से भी बढ़ चुकी हैं, क्योंकि वे किसी भी कंटैंट पर अपना समय बरबाद नहीं करना चाहते. आज की कहानियां रियलिटी से दूर हो चुकी हैं, जबकि पहले की कहानियां आम जिंदगी से जुड़ी हुई होती थीं, जिन के गाने, संवाद उन की पिक्चराइजेशन भी रियल और लार्जर दैन लाइफ थी, जो आज की फिल्मों में नहीं है. आधिकतर फिल्में बाहर की लोकेशन पर शूट की जाती हैं, जिन्हें देखने पर इंडियन या फौरेन फिल्म या दोनों का मिश्रण कुछ भी साफ समझ में नहीं आता.

कन्फ्यूज़्ड निर्माता-निर्देशक

पहले की फिल्मों के हीरो और उन के संवाद आम दर्शकों के बीच आ जाते थे, मसलन फिल्म ‘दीवार’ का प्रसिद्ध संवाद ‘मेरे पास मां है’, फिल्म ‘शोले’ का ‘कितने आदमी थे’ आदि बच्चेबच्चे से ले कर बड़ों के बीच में था. तब संगीत भी यों ही नहीं डाल दिए जाते थे, बल्कि कहानी के अनुसार उन्हें समय लगा कर तैयार किया जाता था, जो रियल होते थे और सुनने में अच्छा लगता था. आम इंसान की जिंदगी को आज की फिल्में बयां नहीं करतीं. फिल्म निर्माता भी खुद नहीं जानना चाहते हैं कि उन्हें आज क्या दिखाना है और मनोरंजन के रूप में मैसेज कैसे देना है. यही वजह है कि फिल्म इंडस्ट्री धीरेधीरे पतन की ओर बढ़ती जा रही है.

जनून की कमी

पिछले दिनों कामयाब राइटर जोड़ी सलीम-जावेद पर बनी डाक्युमैंट्री फिल्म ‘ऐंग्री यंग मैन’ का प्रमोशन हुआ. उस दौरान जावेद अख्तर ने एक फिल्म लेखक के रूप में अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए कहा कि “जब मैँ युवा था, इस मुंबई शहर में आया था, उस समय मेरे पास न तो कोई नौकरी थी और न ही कोई संपर्क या पैसा था. कई बार मुझे भूखे पेट सो जाना पड़ता था, लेकिन इस के बावजूद मैं ने हार नहीं मानी, क्योंकि मैँ अपनी लिखी कहानी को दुनिया के साथ शेयर करना चाहता था और मैं ने किया. मैं ने कहानियां सलीम साहब के साथ मिल कर भी लिखीं. उस समय हम दोनों की जोड़ी सब से अधिक पैसे लेने वाले फिल्म लेखकों की बनी. जिस में हम दोनों ने 22 फिल्में साथ लिखीं, जिस में 20 फिल्में सुपर हिट रहीं. आज फिर से एक और फिल्म दर्शकों के लिए हम दोनों साथ में लिखना चाहते हैं.

उक्त अवसर पर फिल्म लेखक सलीम खान गहरी सांस लेते हुए कहते हैं, “ऐसा कब तक चलेगा, आज के अच्छे लेखक कहां गए. मैं ने अपने कैरियर की शुरुआत एक ऐक्टर के रूप में की थी, बाद में एहसास हुआ कि मुझे कहानी लिखने में अधिक दिलचस्पी है, फिर मैं ने ऐक्टिंग छोड़ लेखन की ओर ध्यान केंद्रित किया और जावेद अख्तर से मिला व हम दोनों ने मिल कर कई सफल फिल्मों के साथसाथ इंडस्ट्री को चुनौती दी.”

जिम्मेदार इंग्लिश माध्यम स्कूल

यह सही है कि वो दिन अब नहीं रहे जब एक साधारण लड़का मुंबई जैसे अनजान शहर में एक झोले में कुछ कहानियों और एक कलम के साथ फिल्म इंडस्ट्री के दरवाजा खटखटाता हो और प्रतीक्षा करता हो कि कब कौन सा दरवाजा खुले और उस की कहानी को फिल्म बनने की स्वीकृति मिले. आज वैसा धीरज और जनून किसी में नहीं रहा, क्योंकि इंग्लिश मीडियम स्कूल्स ने इस की जगह ले ली है, जहां अच्छी हिंदी जानने वाले युवाओं की कमी फिल्म इंडस्ट्री को भुगतना पड़ रहा है. आज कहानियां इंग्लिश या रोमन में लिखी जाती हैं, ऐसे में कहानी के भाव का अलग होना स्वाभाविक हो जाता है. पहले जैसी कहानियां न तो लिखी जा रही हैं और न ही फिल्में बन पा रही हैं.

काम नहीं कर रहा स्टार पावर

आज की फिल्में दर्शकों के मन को छूने में असमर्थ हो रही हैं, लेकिन इस क्राइसिस के बावजूद गिनीचुनी कुछ फिल्में ऐसी हैं जिन्हें दर्शकों का प्यार मिला है. मसलन, ‘जुगजुग जियो’, ‘भूलभुलैया’ और ‘गंगूबाई कठियावाड’ आदि फिल्मों को देश में ही नहीं विदेश में भी सराहना मिली है. रुचिकर, रिलेटेबल, थ्रिलिंग स्टोरीज. जिन में कुछ नयापन हो और जो दर्शकों का ध्यान अपनी ओर खींच सकें, पर आज फिल्म नहीं बन रही हैं. वास्तविकता से दूर और ढीली कहानियों की आज फिल्में बन रही हैं, जिन्हें दर्शक हजम नहीं कर पा रहे.

इतना ही नहीं, स्टार पावर भी आज कमजोर कहानी की वजह से कुछ कमाल नहीं दिखा पा रहा है. शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, अक्षय कुमार आदि जैसे बड़े स्टार की फिल्में भी आज फ्लौप हो रही हैं, क्योंकि कहानी में दम नहीं.

तकनीकों का प्रयोग

हिंदी फिल्मों में आजकल नई तकनीकों का अधिक प्रयोग होने लगा है, जिस की क्वालिटी आज के दर्शकों को अच्छी नहीं लगती. यही वजह है कि विदेश में रहने वाले भारतीय ऐसी फिल्मों का बहिष्कार कर रहे हैं.

अमेरिका के पोर्टलैंड में रहने वाला और एक मल्टीनैशनल कंपनी का इंजीनियर सुजोय कहता है कि हिंदी फिल्मों में तकनीकों का प्रयोग सही तरीके से नहीं होता, जिस से दृश्य बिचकने लगते हैं. तकनीक का सही जगह प्रयोग फिल्ममेकर को करना नहीं आता. इंग्लिश फिल्मों की कौपी की कोई वजह भी समझ में नहीं आती, क्योंकि इंडिया में अच्छे लेखक रहे हैं, सालों से सभी ने अच्छी ओरिजिनल कहानियां लिखी हैं, लेकिन आज की फिल्मों के क्लाइमैक्स से ले कर गाने और कहानी सभी को वे विदेशी फिल्मों से कौपी करते हैं. नई और मनोरंजक फिल्मों की कहानी फिल्मों में आज देखने को नहीं मिलती.

कंफ्यूज्ड कहानी

असल में पहले की तरह लेखक अब नहीं हैं. इसे रणबीर कपूर ने भी एक इंटरव्यू में माना है. उन का कहना है कि इंडस्ट्री में नए लोगों की प्रतिभा को सराहा नहीं जा रहा है. नई प्रतिभा और आउटसाइडर्स को आगे आने नहीं दिया जाता. अधिकतर कहानियां कंफ्यूज्ड नजर आती हैं. आजकल लेखक व निर्देशक एक ही व्यक्ति है, जो गलत हो रहा है. हर कोई एक सही कहानी नहीं लिख सकता. इस के अलावा पिछले 2 दशकों से हिंदी फिल्में पश्चिमी देशों से प्रभावित रही हैं, जिन्हें आम भारतीय दर्शक देखना नहीं चाहते. दर्शकों को सही तरह से समझ न पाना भी इंडस्ट्री के नीचे गिरने की अहम वजह है.

नेपोटिज्म है हावी

फिल्म इंडस्ट्री के अच्छा न करने की वजह नेपोटिज्म भी कुछ हद तक जिम्मेदार है. हालांकि पहले भी इंडस्ट्री में नेपोटिज्म था, एकाधिकार थे, लेकिन किसी का ध्यान उधर नहीं गया, क्योंकि अच्छी फिल्में बन रही थीं. लगातार फिल्मों के गिरते स्तर को देखते हुए दर्शकों का ध्यान अब उधर गया है. कुछ दिनों पहले फिल्म ‘द आर्चीस’ रिलीज हुई जिस में शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान के साथ कई सैलिब्रिटी स्टार्स के बेटेबेटियों ने अभिनय किया, लेकिन बेकार की कहानी और उन सब की कमजोर परफौर्मेंस ने दर्शकों को एक बार फिर से निराश किया. फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई.

‘द आर्चीस’ के अलावा इंडस्ट्री की कई फिल्में इस साल दर्शकों की नब्ज नहीं पकड़ पाईं और वे फ्लौप हो गईं, मसलन अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म ‘बड़े मिया छोटे मिया’, ‘मैदान’, ‘एलएसडी 2’, ‘इश्क विश्क रिबाउंड’, ‘खेल खेल में’, ‘वेदा’ इत्यादि.

अंत में इतना कहा जा सकता है कि अगर बौलीवुड फिल्म इंडस्ट्री दर्शकों से खुद को एक बार फिर से जोड़ने की कोशिश करती है या उन के टैस्ट को पहचान पाती है, तो फिल्ममेकर को अच्छा कंटैंट दर्शकों को परोसना होगा, जिस की वे चाहत रखते हैं. और तब जा कर एक बार फिर से पुराने दौर में इंडस्ट्री जा सकती है और फिल्में सफल हो सकती हैं.

शौर्टकट पैसा कमाने की चाह में बरबाद होते नौजवान

साइबर क्रिमिनल्स नएनए तरीकों से लोगों को ठग रहे हैं. ऐसे मामले देशभर से आ रहे हैं. जहां बदमाशों ने कारोबारियों को निशाना बनाने के लिए उन्हें अलगअलग व्हाट्सऐप ग्रुप में जोड़ा. फिर ग्रुप में शेयर बाजार से जुड़ी जानकारियां शेयर कीं और ज्यादा मुनाफा कमाने का लालच दिया.

आईए आज आप को एक ऐसा सच बताते हैं जिसे देख समझ कर आप स्वयं और आसपास के लोगों को धन की लालच में पड़ कर ठगने से बचा सकते हैं. आज पढ़ेलिखे नौजवान रूपयों के पीछे दौड़ रहे हैं और उस के लिए कुछ भी गलत करने को तत्पर हो जाते हैं. परिणामस्वरुप जिस तरह मछली को फंसाया जाता है वह भी ‘एक मछली’ बन कर फंस जाते हैं और अपने कीमती धन से हाथ धो बैठते हैं.

हमारे समाज में कुछ ऐसे भी आर्थिक खेल हो गए हैं जिस में फंस कर युवा अपनी जिंदगी तबाह कर रहे हैं. अकसर घटित होने वाली इन घटनाओं से लोग सीख कम ही लेते हैं. दरअसल बीचबीच में घटित होने वाली यह घटनाएं बताती हैं कि इन्हें पूरी तरह से खत्म कर दिया जाना चाहिए. एक अच्छे समाज की परिकल्पना अगर हम करें तो वहां ऐसी बुराइयां होनी नहीं चाहिए कि जहां कोई ठगी का शिकार हो जाए या फिर बरबाद हो जाए.

फिलहाल तो ऐसी परिस्थितियां शायद दुनिया में बननी संभव दिखाई नहीं देती, मगर आने वाले समय में जहां एक आदर्श समाज होगा वहां इन्हें कोई स्थान नहीं दिया जाएगा, यह तय है. हाल ही में छत्तीसगढ़ में शेयर ट्रेडिंग टिप्स सीखने के फेर में साकेत कालोनी दुर्ग का युवक करीब 15 लाख रुपए की ठगी का शिकार हो गया. फिलहाल युवक की रिपोर्ट पर मोहन नगर पुलिस ने अज्ञात आरोपियों के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया है.

जांचकर्ता पुलिस अधिकारी ने हमारे संवाददाता को बताया प्रार्थी सौरभ स्वर्णकार पिता स्व. जी पी स्वर्णकार (35 वर्ष) साकेत कालोनी दुर्ग औनलाइन विज्ञापन देखने के बाद शेयर ट्रेडिंग की जानकारी लेने का प्रयास करने लगा. तब उसे टेलीग्राम एप के जरिए संपर्क किया गया. एक लिंक के द्वारा 19 दिसंबर 2023 को एक ऐप डाउनलोड करवा कर केवाईसी के लिए आधार एवं पेन कार्ड की फोटो भी अपलोड करवाया गया. उन के द्वारा पीड़ित को व्हाट्सऐप ग्रुप में भी जोड़ा गया. इसी के माध्यम से शेयर खरीदीबिक्री की जानकारी दी जाने लगी.

शेयर खरीदने के लिए जो पैसे लगने थे, उसे जो ऐप डाउनलोड कराया गया था. उस में रीचार्ज के माध्यम से रुपए का भुगतान करना होता था. रीचार्ज करने के लिए टेलीग्राम चैनल में कस्टमर सर्विस के नाम से एक चैनल बनाया गया, जहां रीचार्ज की राशि पूछी जाती थी. फिर वो एक खाता क्रमांक में रुपए ट्रांसफर करना होता था. रीचार्ज होने पर वह राशि उन के ऐप में दिखाई पड़ती थी. हर रीचार्ज के समय अलगअलग खाते बताए गए.

19 जनवरी 2024 को एक आईपीओ लांच हुआ. सौरभ को इस में अप्लाई करने को कहा गया. प्रौफिट अच्छा होने का चांस बता कर लालच दिया गया. सौरभ पर दबाव बना कर एकमुश्त 13 लाख रूपए उन के बताए खाते में आरटीजीएस कराया गया. सौरभ को जमा राशि उन के ऐप में दिखाई दे रही थी. मगर कुछ दिनों बाद वह अपने आप बदल गया. कुछ पूछने पर कुछ सही जवाब नहीं आया.

सौरभ स्वर्णकार को ठगी का एहसास होने पर मोहन नगर थाने में शिकायत की. उस के साथ कुल 14 लाख 65 हजार रुपए की ठगी हुई है. शिकायत पर पुलिस द्वारा धारा 420 के तहत अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया है. ऐसी ही कुछ और घटनाएं देश के अन्य शहरों में भी घटित हुई हैं और पुलिस अपनी जांच कर रही है, मगर इस तरह की घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही है. इस का कारण है युवाओं की अंधी लालच जिस में फंस कर युवा ठगी का शिकार हो रहे हैं.

कुछ ऐसा है, ठगी का खेल

दरअसल, कारोबारी जब पूरी तरीके से उन के झांसे में आ गया तो उस के दो अलगअलग अकाउंट खुलवाए गए फिर धीरेधीरे एक करोड़ से ज्यादा की रकम खातों में जमा करवाई जाती रही. इधर व्यापारी को लग रहा था कि उन की रकम बढ़ रही है. और वह देखते ही देखते करोड़पति हो जाएगा, मालामाल हो जाएगा. इस तरह वह लालच में फंसता चला गया. लेकिन जब जरूरत पड़ी व व्यापारी ने पैसे निकालने की कोशिश की तो उन्हें रुपए नहीं मिले. उल्टा उन से नए आईपीओ के नाम और रकम मांगी गई.

और जब व्यापारी के पैसे नहीं निकले तब उसे ठगी का एहसास हुआ और वह पुलिस की साइबर अपराध को लिखित शिकायत की.

ऐसे मामलों में पुलिस केस दर्ज कर मामले की जांच शुरू करती है. पुलिस के मुताबिक आमतौर पर लोगों के साथ फ्रौड के मामले उन के लालच के कारण होते हैं. जैसे एक व्यक्ति के साथ 22 करोड़ रुपए का साइबर फ्रौड हुआ. उस ने इन्वेस्टमैंट के नाम पर पैसा डबल होने के लालच में नुकसान झेला.

आमतौर पर ऐसे ही घटना क्रम देशभर में सामने आ रहे हैं. दरअसल, जैसे धार्मिक श्रद्धा में फंस कर लोग अपना सबकुछ गंवा बैठते हैं और बाद में खुद को लुटा हुआ पाते हैं वैसे ही कुछ आजकल आधुनिक स्वरूप में व्यवसाय का जामा पहन कर लुटे जाने की घटनाएं आम हो गई हैं.

मैं मौडलिंग में कैरियर बनाना चाहती हूं पर मेरे घरवालों को यह बिल्कुल नहीं पसंद

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं दिखने में बहुत अट्रैक्टिव हूं. स्कूल टाइम से ही मेरा मौडल बनने का सपना रहा है. मेरे फ्रैंड्स कहते हैं कि मैं तो बनीबनाई मौडल हूं. लेकिन मेरे मम्मीपापा को मेरा मौडलिंग प्रोफैशन में जाना बिलकुल भी पसंद नहीं. उन का कहना है कि यह दिखावे की दुनिया है. जिंदगी बरबाद हो जाएगी वहां. वे चाहते हैं मैं पढ़लिख कर किसी रैप्यूटेड प्रोफैशन में जाऊं. आप ही बताएं मैं उन्हें कैसे समझाऊं?

जवाब –

हर प्रोफैशन में अच्छेबुरे लोग होते हैं, प्रोफैशन बुरा नहीं होता. मौडलिंग ऐसा प्रोफैशन है जहां आप को बोल्ड होना पड़ता है. मौडलिंग पूरी तरह से लुक के बारे में नहीं है, यह एक कला भी है जिसे लगातार प्रैक्टिस कर डैवलप करना पड़ता है.

मौडलिंग में कैरियर बनाना थोड़ा चुनौतीपूर्ण है, इसलिए आप के मातापिता आप के लिए चिंतित हैं. आप उन्हें तसल्ली से समझा सकती हैं कि वे आप पर भरोसा रखें, थोड़ा समय दें ताकि आप उन्हें वह कर के दिखा सकें जो आप ने सपना देखा है.

आप भी सिर्फ फ्रैंडस की बातों में आ कर नहीं बल्कि अपनी योग्यता को पहले देखें. अगर आप एक प्रोफैशनल मौडल बनना चाहती हैं तो कम से कम किसी भी स्ट्रीम में 12वीं पास होना चाहिए. सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या बैचलर डिग्री कोर्स भी कर सकते हैं. मौडलिंग स्कूल में एडमिशन ले सकते हैं, जहां 3 महीने से 4 साल तक के मौडलिंग कोर्स कराए जाते हैं.

मौडलिंग के लिए उस का पैशन होना और कैमरे का सामना करने में प्रोफैशनल इंट्रेस्ट होना बेहद जरूरी है. अपने काम पर फोकस रखना जरूरी है. इस प्रोफैशन में शौर्टकट अपना कर कामयाबी चाहेंगी तो ठीक नहीं रहेगा. बी फेयर विद योर वर्क.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

हम अभी बेबी न कर के कुछ गलती तो नहीं कर रहे?

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

अभी बेबी प्लान करना नहीं चाहती हूं. हमारी शादी हुए 3 साल हो गए हैं. मैं 28 की हो गई हूं और हसबैंड 30 साल के हो गए हैं. हालात कुछ ऐसे हैं कि हम अभी बच्चा प्लान नहीं करना चाहते. मुझे पता है कि 30 की उम्र के बाद बेबी कंसीव करने में दिक्कत आ सकती है. लेकिन क्या करूं, पारिवारिक हालात ही कुछ ऐसे हैं. मेरे पति भी भविष्य के बारे में सोच कर चिंतित हैं. ऐसे में हमें क्या करना चाहिए ? हम अभी बेबी न कर के कुछ गलती तो नहीं कर रहे ? क्या हमें आगे चल कर किसी प्रोब्लम का सामना तो नहीं करना पड़ेगा ?

जवाब –

आप का और आप के हसबैंड का चिंतित होना जायज है क्योंकि औरत ज्यादा उम्र में मां बनना चाहे तो जटिलताएं आ सकती हैं. उम्र बढ़ने के साथ महिलाओं की फर्टिलिटी कम हो जाती है जिस से वे मुश्किल से बेबी कंसीव कर पाती हैं और उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पुरुषों की भी स्पर्म क्वालिटी गिर जाती है.

पारिवारिक समस्याएं तो आती ही रहती हैं. आज यदि एक समस्या सुलझ जाती है तो क्या गारंटी है कि आगे कोई और समस्या नहीं आएगी. पारिवारिक हालात के पीछे अपनी फैमिली प्लानिंग को ज्यादा लंबा न खींचें. अभी भी सही वक्त है. बेबी प्लान कर लीजिए. आगे आने वाली परेशानियों से बच जाएंगे.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 9650966493 भेजें.

चेहरा देख कर कैसे पता करें कि पति या बौयफ्रैंड किसी और के साथ इन्वोल्व है

पर्थ में पश्चिमी आस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय में एआरसी सेंटर औफ एक्सीलैंस इन काग्निशन एंड इट्स डिसऔर्डर के शोधकर्ताओं की टीम ने पाया गया है कि महिलाएं पुरुष के चेहरे के कुछ खास लक्षणों को देख कर उस के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का अंदाजा लगा सकती हैं.

बायोलौजी लेटर्स जर्नल में प्रकाशित इस रिसर्च को डा. गिलियन रोड्स ने अपनी टीम के साथ मिल कर किया है. रिसर्च में शामिल महिलाओं को पुरुषों की तस्वीरें दिखाई गईं और उन से इन पुरुषों के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होने की संभावना के बारे में पूछा गया. इन तस्वीरों में शामिल पुरुषों के बारे में पहले से कोई जानकारी नहीं दी गई थी.

 

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रिसर्च के नतीजे काफी दिलचस्प रहे. महिलाओं के अनुमानों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि उन्होंने जिन पुरुषों को चीटर बताया वह सच में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कर रहे थे. हालांकि, रिसर्च कर्ताओं का कहना है कि ये नतीजे शुरुआती हैं और अभी और जांच की जरूरत है.

आइए जाने ऐसे कौन से चीजे हैं. जिन से पति या बौयफ्रैंड के अफेयर का पता चलता है. क्यों न ऐसे स्किल को हम भी डेवलप करें.

वह अपने लुक्स को ले कर पहले से ज्यादा सेंसिटिव हो गया हो तो दाल में कुछ काला है

अगर वह पहले आप के बारबार कहने पर भी खुद का ध्यान नहीं रखते थे और बेपरवाह से घूमते रहते थे लेकिन कुछ दिनों से उन के व्यवहार में अचानक से कुछ चेंज आ गया हो तो समझ लीजिए खतरे की घंटी बज चुकी है.

जब कोई व्यक्ति किसी के प्यार में होता है, तो वह अपनी पसंद भूल कर दूसरे के मुताबिक खुद को ढालने लगता है. इस में कपड़े पहनने से ले कर एक्सरसाइज करने और हेल्दी खाने, घर पर कम रुकना जैसे बदलाव शामिल हो सकते हैं.

अगर पहले उसे 2 -2 दिन तक शेव करने का होश नहीं रहता था औफिस में भी 1-2 दिन छोड़ कर शेव करता था पर अचानक से वह छुट्टी वाले दिन भी शेव करें तो इस का मतलब वह खुद पर धयान रख रहा है. लेकिन आप के लिए इसे हजम करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है.

अपने हेयर स्टाइल को उन्होंने चेंज किया हो, अपना शैम्पू चेंज किया हो और बालो में सीरम आदि भी लगाना शुरू किया हो, तो इस की वजह कुछ और भी हो सकती है.

अकसर अब आप उन्हें शीशे के सामने खुद को निहारते हुए देखें तो समझ जाएं कहानी कुछ और ही बन रही है.

आजकल उन्होंने परफ्यूम लगाना शुरू कर दिया हो, कई कंपनी के परफ्यूम वे लगाने लगे जो जोकि पहले कभी नहीं लगते थे. या फिर किसी और परफ्यूम की खुशबू उन में से आने लगे तो वजह बड़ी भी हो सकती है. हो सकता है कि उन का वक्त आजकल किसी और के साथ बीत रहा हो.

अगर उन की बौडी पर कोई बाल आदि मिले तो पूछताछ करनी तो बनती है भले ही आप श्योर न हो लेकिन पूछताझ कर के उन के झूठ को पकड़ने की कोशिश तो की ही जा सकती है अगर कुछ गलत कर रहे हैं.

अपनी बौडी पर टाइम लगाने लगे तो अलर्ट हो जाइए

अब ये आप को पता करना है कि वो किसी काम्पिटीशन की तैयारी करने के लिए सब कर रहे हैं या फिर किसी लड़की को इम्प्रेस करने की तैयारी हैं.

पहले से बहुत ज्यादा डाइट कान्शियस हो गए हो और अपना खाना डाइट के अनुसार खाना शुरू कर दिया हो. यहां तक की डायटीशियन से मिल कर अपना डाइट चार्ट बनवाया हो वो भी आप से चोरी छिपे. जबकि पहले आप के लाख कहने पर भी वे कुछ भी अनहैल्थी खा ले लेते थे.

जिम में जाना शुरू कर दिया हो, तो हो सकता है ये किसी से मिलने के लिए ही वहां जाते हों. इसलिए अपने आंख कान खुले ही रखें.

बौडी लेंग्वेज से दिल का हाल चेहरे पर आ जाता है

बौडी लेंग्वेज एक ऐसा तरीका है जिस से दिल का हाल चेहरे पर आ जाता है और आप उन्हें पकड़ सकते हैं.

आप के लाख कोशिश करने पर भी वे आप से नजरे चुराने लगें. आप की आंखों में आंखें डाल कर बात करने से हिचकिचाने लगें. इधरउधर देखने लगें, उन की आंखों में एक अपराधबोध नजर आए तो समझ जाएं कि वह किसी गलत रास्ते पर आगे बढ़ चुके हैं.

यदि आप दोनों के बात करते वक़्त वो आप के चेहरे की तरफ देख भी नहीं पा रहा है, तो इस का मतलब यही निकलता है कि शायद वो आप को धोखा दे रहा है.

उन की भावनाएं आप के लिए बदलीबदली से लगती हो चेहरे पर वो पहले वाला प्यार नजर आना बंद हो जाए और एक बेरुखी और ख़ामोशी सी छा जाए तो मामला गड़बड़ है.

मूड स्विंग होने लगे तो नोट करें

अगर आप का साथी अचानक से हे बहुत मूडी हो गया हो, कभी एकदम से खुश नजर आए तो कभी अचानक बेवजह नाराज हो जाए, तो समझ लीजिए आप के आलावा भी कुछ और चल रहा है.

अकेले में बैठ कर मुसकराना भी बेवजह नहीं है, इसे समझें और जल्द ही इस मुसकराहट की तह तक जाएं.

आप उन के कदमों में स्प्रिंग और उन के होठों पर सीटी बजती हुई देखते हैं. फिर अचानक, वे खाने की मेज पर उदास हो जाते हैं. वे हंस रहे होते हैं और चुटकुले सुना रहे होते हैं, और फिर अचानक, उन के फोन पर कोई संदेश आता है, और पूरा माहौल बदल जाता है. वे अचानक चिड़चिड़े हो जाते हैं और अकेले रहना चाहते हैं. उन के रवैये और अनिश्चित मूड में यह अचानक बदलाव इस बात का संकेत हो सकता है कि आप का साथी आप को धोखा दे रहा है.

यदि वह किसी झूठ को छिपाने की कोशिश कर रहा है तो वह अपनी बात को जस्टिफाई करने के लिए बेतुके उदहारण देगा जिस का कोई सेन्स नहीं है.

अगर पार्टनर आप को धोखा दे रहा है तो किसी और के धोखे के बारे बात करने पर वह उस टौपिक से बचेगा और ज्यादा कुरेदने पर नाराज़ हो कर चला जाएगा.Community-verified icon

अगस्त माह का तीसरा सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबारः बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा

2024 में पूरे साढ़े 8 माह तक बौलीवुड में एक भी फिल्म ऐसी नहीं रही, जो कि बौक्स औफिस पर अपनी लागत वसूल कर पाई हो. लेकिन अगस्त माह के तीसरे सप्ताह यानी कि 15 अगस्त को प्रदर्शित निर्देशक अमर कौशिक की फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ के निर्माताओं से मिले आंकड़ों के अनुसार बौक्स औफिस पर जो कमाई की, उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि ‘बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा’. यूं तो इस बार निर्माताओं ने एक दिन पहले गुरूवार को ही फिल्म रिलीज की थी, जिस से उन की फिल्म को 15 अगस्त, 17 अगस्त, 18 अगस्त और 19 अगस्त की छुट्टी का फायदा मिल जाए.

बहरहाल, 15 अगस्त से 22 अगस्त के बीच ‘स्त्री 2’ ने 290 करोड़ रूपए कमा लिए हैं. ‘स्त्री 2’ को मिली यह सफलता सही मयानों में आश्चर्य चकित करने वाली ही है क्योंकि फिल्म की कहानी गड़बड़ है. फिल्म हौरर कौमेडी है, पर यह डराती बिलकुल नहीं है. इस के गाने अच्छे नहीं हैं, एक गाना अच्छा है पर वह फिल्म में काट कर सिर्फ एक मिनट का ही रखा गया है.

फिल्म के कलाकारों का अभिनय भी औसत दर्जे का है लेकिन खबरें गरम हैं कि इस फिल्म की सफलता का श्रेय राजकुमार राव खुद लेते हुए अब अपनी कीमत दोगुनी करते हुए 30 करोड़ रूपए मांगने लगे हैं. जिस पर लोग हैरान हैं. बौलीवुड के ही अंदर चर्चाएं गरम हैं कि राज कुमार राव को अपनी हद में रहना चाहिए. 2018 में ‘स्त्री’ की सफलता के बाद वह लगातार 15 असफल फिल्में दे चुके हैं. अब पूरे 6 वर्ष बाद उन की फिल्म ‘स्त्री 2’ को सफलता मिली है.

बौलीवुड के लोग तो खुल कर कह रहे हैं कि एक माह बाद ही राज कुमार राव की एक अन्य फिल्म ‘‘विक्की विद्या का वह वाला वीडियो’ रिलीज होने वाली है. वह इसे भी सफलता दिलवा कर दिखा दें. ज्ञातब्य है कि यह फिल्म पिछले डेढ़ वर्षों से रिलीज का इंतजार कर रही है. ‘स्त्री 2’ की सफलता से सब से ज्यादा गदगद इस की पीआर टीम है. उस का दावा है कि सोशल मीडिया के प्रचार के चलते ही इस फिल्म को सफलता मिली है. हमें भी याद रखना चाहिए कि ‘स्त्री 2’ का निर्माण मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ ने दिनेश वीजन के साथ मिल कर किया है. निर्माता तो दावा कर रहे हैं कि उन की फिल्म 2500 करोड़ कमाने वाली है.

15 अगस्त को ‘स्त्री 2’ अकेले रिलीज हुई हो, ऐसा भी नहीं था. 15 अगस्त के दिन 4 दिन की छुट्टियों का फायदा उठाने के लिए अक्षय कुमार की फिल्म ‘‘खेल खेल में’’ व जौन अब्राहम की फिल्म ‘‘वेदा’’ के साथ ही दक्षिण की हिंदी में डब हो कर फिल्म ‘‘डबल स्मार्ट’ भी रिलीज हुई थी.

पुरी जगन्नाथ के निर्देशन में बनी फिल्म ‘‘डबल स्मार्ट’’ में राम पेाथीनेनी, संजय दत्त और काव्या थापर की अहम भूमिकाएं हैं. यह फिल्म 4 दिन बाद ही थिएटर से बाहर हो गई और इस फिल्म ने महज 6 हजार रूपए ही कमाए.

निखिल अडवाणी, जौन अब्राहम और जी स्टूडियो निर्मित तथा निखिल अडवाणी निर्देशित फिल्म ‘‘वेदा’’ में जौन अब्राहम, शरवरी वाघ और अभिषेक बनर्जी की अहम भूमिकांए हैं. इस एक्शन प्रधान फिल्म ने बौक्स औफिस पर 8 दिन मे सिर्फ साढ़े 17 करोड़़ रूपए ही कमाए. इस में से निर्माता की जेब में केवल 7 करोड़ रूपए ही आएंगे. फिल्म का बजट बताने के लिए कोई भी निर्माता तैयार नहीं है. हम याद दिला दें कि फिल्म ‘वेदा’ के ट्रेलर लांच के मौके पर जब एक पत्रकार ने जौन अब्राहम से सवाल किया था कि वह हमेशा एक्शन फिल्में ही क्यों करते हैं. तब जौन अब्राहम ने उस पत्रकार को इडिएट कहा था और दावा किया था कि ‘वेदा’ एक्शन नहीं है, इमोशनल फिल्म है.

इतना ही नहीं जौन अब्राहम ने उस पत्रकार को धमकाते हुए कहा था कि उन्हें उस का चेहरा याद रहेगा और उन की फिल्म तीन दिन में सौ करोड़ कमा लेगी. उस के बाद वह उन से निपटेंगे. अफसोस ‘नौ मन तेल ही नहीं हुआ, तो राधा कैसे नाचती..’ अब तो जौन अब्राहम मुंह छिपाए घर में कैद हो गए हैं.

अगस्त माह के तीसरे सप्ताह, यानी कि 15 अगस्त के ही दिन अति घमंडी और सरकार परस्त अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म ‘‘खेल खेल में’’ भी रिलीज हुई. इस फिल्म के ट्रेलर रिलीज समारोह में अक्षय कुमार ने पत्रकारों व अपने ‘तथा कथित’ फैन्स की मौजूदगी में फिल्म पर बात करने की बजाय कहा था कि वह जो कुछ हैं अपने दम पर हैं. वह अपनी कमाई का ही खाते हैं. वह किसी के पास मांगने नहीं जाते. फिल्म पर बात नहीं की थी. क्योंकि ‘खेल खेल में’ एक स्पेनिश फिल्म ‘‘परफैक्ट स्ट्रेंजर’’ की 28वीं रीमेक हैं. इस का 25 देशों में रीमेक पहले ही हो चुका था. ‘परफैक्ट स्ट्रेंजर’ की रीमेक मलयालम फिल्म में मोहन लाल ने अभिनय किया था. जबकि कन्नड़ में भी इस का रीमेक हुआ था. यह सभी सफल फिल्में थी. मगर अक्षय कुमार के अभिनय से सजी और मुदस्सर अजीज निर्देशित फिल्म ‘‘खेल खेल में’’ ने 8 दिन के अंदर महज 19 करोड़ रूपए ही कमाए. इस में से लगभग 9 करोड़ रूपए ही निर्माता की जेब में जाएंगे.

इस तरह यह फिल्म बुरी तरह से असफल हो गई. अब बौलीवुड का एक तबका कह रहा है कि अक्षय कुमार ने कहा था कि वह किसी के पास मांगने नहीं जाते तो अब दर्शकों ने भी कह दिया कि वह उन से नहीं कहते कि वह अभिनय करें या उन के लिए फिल्म बनाएं.

इस सप्ताह की सब से बड़ी खासियत यह है कि एक भी निर्माता अपनी फिल्म की लागत बताने को तैयार नहीं है.

योगी के सुशासन पर बड़ा सवाल उठाती हैं महिलाओं के प्रति बढ़ती आपराधिक घटनाएं

राजधानी लखनऊ सहित तमाम बड़े शहरों में इंटरनेट के जरिये एस्कोर्ट सर्विस का धंधा जम कर चल रहा है. एक तरफ योगी सरकार धार्मिक पर्यटन को खूब बढ़ावा दे रही है और इस के लिए अनेक शहरों के सौंदर्यीकरण पर पानी की तरह अरबों रुपए बहाए जा रहे हैं, मगर इसी के समानांतर पूरे प्रदेश में सैक्स के लिए औरतों को बेचनेखरीदने का धंधा भी चरम पर है. पर्यटकों से ले कर तमाम बेरोजगार युवा इस अपराध के दलदल में उतर चुके हैं. वे इंटरनेट के जरिये जिस्म के सौदागरों के संपर्क में हैं. ये दलाल वाट्सएप कौल आते ही इन्हें लड़कियों के फोटो और रेट उपलब्ध करा देते हैं.

 

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हैरानी की बात है योगी सरकार की पुलिस को भनक तक नहीं लगती जबकि तमाम नामचीन होटलों, रेस्टोरेंट, बार, स्पा पार्लर, ब्यूटी पार्लर और ओयो होटलों में जिस्म का धंधा जोरों से चल रहा है. सोशल साइट्स पर एक दर्जन से भी ज्यादा वेबसाइट सक्रिय हैं. हैरत की बात है कि साइबर अपराध और अपराधियों पर नियंत्रण करने का दावा करने वाली साइबर क्राइम सेल पुलिस मामले के संज्ञान से कोसों दूर है.

लड़कियों की खरीदफरोख्त सिर्फ उत्तर प्रदेश में नहीं हो रही, बल्कि भाजपा के राज में यह धंधा पूरे देश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है. हजारों लड़कियां नेपाल से ला कर बेची जा रही हैं. बिहार, झारखंड की लड़कियों का अपहरण कर उन्हें इस धंधे में जबरन उतरने के लिए मजबूर किया जा रहा है. देह की दलाली और बलात्कार की घटनाओं में भाजपा के नेता भी शामिल हैं. 23 अगस्त 2024, हिंदुस्तान अखबार की खबर – ‘भाजपा नेता के बारात घर में किशोरी से रेप’.

मामला आगरा शहर का है. ताल फिरोज खां (सदर) में 21 अगस्त की रात भाजपा के पूर्व महामंत्री प्रेमचंद कुशवाह के बारात घर में एक दलित किशोरी के साथ गैंगरेप हुआ. नाबालिग बच्ची को जिंदा दफनाने की तैयारी थी. लेकिन समय रहते कुछ लोगों के पहुंच जाने पर उस की जान बच गई. खबर एक अखबार के भीतरी पन्नों में सिमट कर रह गई. भाजपा नेता का ड्राइवर और उस का भतीजा इस कांड में शामिल हैं. घटना के बाद सदर थाने में 3 घंटे हंगामा चला. मगर पुलिस की हिम्मत नहीं पड़ी कि प्रेमचंद कुशवाह की गर्दन पकड़ सके या उस के भतीजे की. सिर्फ ड्राइवर के खिलाफ केस दर्ज कर पोक्सो के तहत जेल भेजा गया.

बच्ची के घरवालों का कहना है कि उन की बेटी पास की दुकान से सामान लेने गई थी. जब वह काफी देर तक नहीं लौटी तो परिजन उस को ढूंढने निकले. एक व्यक्ति ने बताया कि उस ने बच्ची को प्रेमचंद कुशवाह के माधव मैरिज होम के पास देखा था. जब बच्ची के परिजन मैरिज होम के अंदर देखने के लिए जाने लगे तो प्रेमचंद और उस के भतीजे ने उन्हें अंदर नहीं आने दिया. तब वे पीछे की दीवार फांद कर अंदर घुसे तो देखा बच्ची वहां बदहवास हालत में पड़ी है. पास ही एक गहरा गड्ढा खुदा हुआ था, जिस में उस को दफनाने की तैयारी थी.

थाने पर रिपोर्ट दर्ज करने में हीलाहवाली हुई. बच्ची का मैडिकल कराने के लिए पुलिस तैयार नहीं थी. काफी होहल्ले के बाद दूसरे दिन पुलिस ने मेडिकल कराया और केस दर्ज किया मगर सिर्फ ड्राइवर के खिलाफ. ये है योगी की पुलिस और योगी सरकार के अपराध मुक्त प्रदेश का खोखला दावा.

बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस घटना पर कहा, “यूपी में महिला सुरक्षा का हाल बेहाल है. आगरा में दुष्कर्म की घटना अति निन्दनीय है. सरकार दोषी के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करे.” मगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो सिर्फ खबरों में चमकने के लिए, खुद को सब से बेस्ट मुख्यमंत्री साबित करने के लिए महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ी बड़ीबड़ी बातें करते हैं. मंचों से अपराधियों को ललकारते हैं. कानून व्यवस्था की समीक्षा करते हैं, पुलिस अधिकारियों को टाइट करते हुए कहते हैं – महिला संबंधी अपराधों पर शतप्रतिशत लगाएं अंकुश, मगर उन की पुलिस संगीन से संगीन मामले की एफआईआर दर्ज करने में भी हीलाहवाली करती है.

भाजपा सरकार धर्म का कितना भी पाठ पढ़ाए, मंदिरों में घंटेघडियाल बजवाए, मगर वह यह नहीं समझ रही कि इस से इंसान का नैतिक विकास नहीं हो सकता. जब तक कानून का डंडा मजबूत न हो और पुलिस अपराधियों पर सख्त न हो, अपराध नहीं रुकेंगे. दूसरा इस देश में बेरोजगार नकारा लोगों का जमावड़ा नितप्रति बढ़ता जा रहा है. खाली दिमाग शैतान का घर, यूं ही नहीं कही गई है. ऊर्जा से भरे युवा की शक्ति को यदि काम में नहीं लगाया जाएगा, उस को रोजगार से नहीं जोड़ा जाएगा तो वह अपनी ऊर्जा गलत जगहों पर ही निकालेगा. इसका उदाहरण हाल ही में लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में ताज होटल के पास देख चुके हैं जब भारी बारिश से जलमग्न सड़कों पर युवा भीड़ लगा कर पानी में एक युवती को चलती बाइक से नीचे खींच कर उस के साथ गलत हरकतें करते कैमरे में कैद हुए थे.

इंसान के नैतिक पतन की पराकाष्ठा यह है कि नोएडा में एक पुरुष पोस्टमार्टम हाउस में लाशों के बीच महिला से जबरन सैक्स संबंध बनाने की कोशिश करता पकड़ा गया. लोगों का कहना है कि मोर्चरी में तो महिला लाशों के साथ भी हैवानियत का गंदा खेल खेला जाता है और उन को रोकने वाले आंखों पर पट्टी चढ़ाए बैठे रहते हैं.

23 अगस्त 2024 को पायनियर की खबर है – ‘लाशों के बीच महिला से अश्लीलता’. इस का एक वीडियो सामने आने के बाद यह खुलासा हुआ कि नोएडा सैक्टर – 94 में पोस्टमार्टम हाउस में रखे शवों के बीच एक युवक एक महिला के साथ अश्लील हरकत कर रहा है. युवक वहां का सफाई कर्मी है. इस मामले में नोएडा थाना सैक्टर – 126 में जब सीएमओ सुनील कुमार शर्मा द्वारा शिकायत दर्ज करवाई गई तो पुलिस ने शिकायत को अज्ञात व्यक्ति के नाम पर दर्ज किया.

महिलाओं की सुरक्षा को ले कर अति चिंतित नजर आने वाले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं, ‘महिलाओं से तय समय से ज्यादा औफिस में काम नहीं लिया जाएगा और उत्तर प्रदेश की पुलिस रात ज्यादा होने पर महिलाओं को उन के घर तक छोड़ के आएगी.’ परंतु जहां महिलाओं के साथ होने वाले बर्बर अपराधों पर भी पुलिस केस दर्ज नहीं करना चाहती, आरोपी की पूरी पहचान होने के बाद भी केस किसी अज्ञात व्यक्ति के नाम पर दर्ज करती है, ऐसी पुलिस से महिलाओं की सेफ्टी की उम्मीद कैसे की जा सकती है?

योगी आदित्यनाथ द्वारा बारबार अपराधों के संबंध में और खासतौर पर महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों के संबंध में समीक्षा बैठकें करना और अधिकारियों की क्लास लगाना यह इंगित करता है भले गोदी मीडिया के जरिये प्रदेश को अपराध मुक्त घोषित करने की कोशिशें हो रही हों, मगर सत्यता यह है कि प्रदेश में अपराध का ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ रहा है. खासतौर पर महिलाएं न तो घर में सुरक्षित हैं, न सड़क पर न दफ्तरों में या अन्य जगहों पर.

भाजपा सरकार में पितृसत्तात्मक सोच का विकास हुआ है. महिलाओं को फिर पैर की जूती समझा जाने लगा है. उन की जान की कोई कीमत नहीं है. उन्हें कहीं भी मार डाला जाए, उन का बलात्कार हो जाए, सामूहिक बलात्कार हो जाए, दहेज के नाम पर जला दी जाए, लड़की पैदा करने का दोष मढ़ कर कत्ल कर दी जाए, मगर इन बर्बर कृत्यों पर योगी की पुलिस कोई सख्त एक्शन नहीं लेती, उलटे हर मामले को हलके में ले कर रफादफा करने में लग जाती है, ताकि प्रदेश को अपराधमुक्त घोषित करने के सरकार के दावे को पुख्ता किया जा सके.

सिर्फ एक दिन के अखबार को पढ़ लीजिए, महिलाओं के साथ बर्बरता की आठ से दस खबरें मिल जाएंगी. 23 अगस्त 2024 की एक खबर पर और नजर डालिए. यह पुरुष की बर्बरता का खौफनाक उदाहरण है. गाजियाबाद में मसूरी क्षेत्र के मदरसा रोड पर एक आदमी अपनी पत्नी के मुंह पर तकिया रख कर तब तक बैठा रहा जब तक उस की मौत नहीं हो गई. शाहनवाज नाम के इस दरिंदे की शादी 2016 में रुखसार से हुई थी और उस के दो बच्चे हुए. इस में पहली बेटी अलीशा उम्र 7 साल और बेटा उजैर उम्र 5 साल का है. बच्चों के सामने इस दरिंदे ने अपनी पत्नी को शक के कारण मौत के घाट उतार दिया और उस की लाश दफनाने के दो दिन बाद उस के मायके वालों को खबर की.

5 साल के बच्चे उजैर ने अपनी मां की हत्या पिता द्वारा किए जाने का सच अपने मामा को बताया, तब सारा खुलासा हुआ. रुखसार अपने भाइयों की इकलौती बहन थी, जिसे शाहनवाज आएदिन पीटा करता था और अंततः उस ने उसे खत्म ही कर दिया. इस मामले में पुलिस ने शाहनवाज के खिलाफ हत्या का मामला तो दर्ज कर लिया मगर लाश को कब्र से निकाल कर पोस्टमार्टम कराने के लिए कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रही है.

लखनऊ में ठाकुरगंज स्थित एक निजी मैडिकल कालेज में नर्सिंग की छात्रा से पार्किंग में एक शोहदे ने छेड़छाड़ की. छात्रा ने विरोध किया तो शोहदे ने उस को बालों से पकड़ कर उठा कर जमीन पर पटक दिया और जबरन उस के साथ गलत हरकत करने लगा. यह छात्रा पार्किंग से अपनी स्कूटी निकाल रही थी जब उस के ऊपर यह बर्बर अटैक हुआ. लड़की ने शोर मचाया तब कुछ लोगों के पहुंचने पर शोहदा उसे छोड़ कर भागा. पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया जबकि कई जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं. आरोपी की पहचान आसानी से हो सकती थी. पर इतनी कवायद योगी की पुलिस क्यों करेगी जबकि ऊपर से आदेश है कि प्रदेश में क्राइम का ग्राफ नीचे रखना है.

इसी दिन चिनहट में एक महिला सिपाही से एक रिटायर सैन्य कर्मी ने अश्लील हरकत की और उस पर शादी करने का दबाव बनाया. इस रिटायर सैन्य कर्मी ने करीब 12 नम्बरों का इस्तेमाल कर के महिला सिपाही को मैसेज भेजे. पुलिस बताए कि उस के पास 12 सिम कहां से आए?

इसी दिन आशियाना क्षेत्र की मार्किट में एक नैशनल ला यूनिवर्सिटी की छात्रा से एक शोहदे ने छेड़छाड़ की जब वह मार्केट से कुछ खरीदारी कर रही थे. शोहदा काले रंग की बाइक पर उस का पीछा कर रहा था. विरोध करने पर उस ने लड़की को भद्दी गालियां दीं और निकल भागा. अगर यह लड़की मार्किट में न हो कर किसी सुनसान सड़क पर होती तो न जाने उस के साथ क्या घटना घट जाती.

लखनऊ सिविल कोर्ट की तीसरी मंजिल से एक महिला अधिवक्ता ने फेसबुक लाइव कर के छलांग लगा दी और मर गई. फेसबुक लाइव कर के उस ने कहा था, “मेरे जिंदा रहते किसी ने बात नहीं सुनी. अब मरने के बाद मेरा अंतिम संस्कार ससुराल में करा देना.”

32 साल की अधिवक्ता माया रावत की शादी इटौंजा में रहने वाले सतीश से हुई थी. 10 साल से दोनों के बीच मुकदमा चल रहा है. मगर कोई निर्णय नहीं हो पा रहा था. माया रावत बीमार भी थी. मानसिक और शारीरिक समस्याओं ने उसे घेर लिया था. उस के इलाज में छोटे भाई ने डेढ़ लाख रुपया खर्च कर दिया था. मगर माया इस बात से ज्यादा व्यथित थी कि 10 साल से वह अदालत के चक्कर काट रही है मगर इंसाफ नहीं मिल रहा है. पुलिस, अदालत, सरकार सब को माया कटघरे में खड़ा कर गई.

लखनऊ पीजीआई थाना क्षेत्र में वृन्दावन योजना सैक्टर 7 में रहने वाले विशाल गौतम को घर लौटने पर उस की पत्नी प्रियंका फंदे पर झूलती मिली. दरअसल विशाल के मातापिता और बहन चाहते थे कि विशाल और उस की पत्नी प्रियंका वह घर खाली कर दें. सास शीला देवी आएदिन बहु प्रियंका से झगड़ा करती थी. विशाल का कहना है कि उस दिन उन्होंने अपने जमाई प्रताप सिंह वर्मा को फ़ोन करके घर बुलाया जिस ने उस की पत्नी के साथ मारपीट की और फिर पूरे परिवार ने उस की ह्त्या कर उस का शव फंदे पर लटका कर उसे फांसी का रूप देने की कोशिश की. विशाल को शक तब हुआ जब उसने पत्नी के गले में कसा हुआ दुपट्टा देखा जो कि उस की बहन सविता का था. आखिर प्रियंका सविता के दुपट्टे से क्यों फांसी लगाती? खैर मामला दर्ज हो चुका है मगर गिरफ्तारी किसी की नहीं हुई है.

कोलकाता में एक ट्रेनी डाक्टर की दुर्दांत ह्त्या के बाद पूरे देश में डाक्टरों की हड़ताल और इस मामले को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने और सुनवाई शुरू करने की बड़ीबड़ी खबरों के बीच देश भर में औरतों के साथ होने वाली भयावह घटनाओं की कहीं कोई चर्चा नहीं होती. जिन ख़बरों की चर्चा ऊपर हुई वह मात्र एक दिन की और एक शहर की खबरें हैं. देश भर में प्रतिदिन हजारों महिलाओं के साथ दुष्कर्म हो रहे हैं और खबरें अखबारों के किसी कोने में दब कर रह जाती हैं. कुछ दिन बाद पुलिस आरोपी से पैसे खा कर मामला रफा दफा कर देती है.

प्रतिदिन लगभग 90 बलात्कार यानी हर घंटे 4 और हर 15 मिनट पर देश में एक बलात्कार की घटना घट रही हैं. कितनों में कार्रवाई होती हैं? कितने आरोपियों को सजा हो पाती है? शायद पांच परसेंट को भी नहीं. जबतक देश में महिलाओं के साथ होने वाली आपराधिक घटनाओं से निपटने के लिए मजबूत क़ानून नहीं होगा, कानून का पालन कराने वाले मजबूत इच्छाशक्ति वाले पुलिसकर्मी नहीं होंगे, सरकार की नीयत महिलाओं को इन्साफ दिलाने की नहीं होगी, तब तक भाजपा महिलाओं की हितैषी होने का कितना ही ढोल पीटे, सच इस का बिलकुल उलट ही होगा.

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