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सीओए और बीसीसीआई के विवाद में खिलाड़ियों का बढ़ा वेतन भी फंसा

सुप्रीम कोर्ट की बनाई प्रशासकों की समिति (सीओए) और बीसीसीआई के बीच तनातनी में अब भारतीय क्रिकेटरों के वेतन के भुगतान का मामला भी उलझ गया है. भारत के शीर्ष क्रिकेटरों को अपना संशोधित वेतन अब तक नहीं मिला है, जबकि उनके केंद्रीय अनुबंधों पर पांच मार्च को ही हस्ताक्षर करा लिए गए थे और शुक्रवार को सीओए के विरोध में होने वाली बीसीसीआई की विशेष आम बैठक में यह मुद्दा चर्चा का अहम विषय होगा. खिलाड़ी 23 जून को ब्रिटेन (आयरलैंड और इंग्लैंड) के लंबे दौरे के लिए रवाना होंगे जो करीब तीन महीने लंबा होगा. अधिकारी कल यहां बैठक के लिए इकट्ठा होंगे जिसमें 10 मुद्दों के एजेंडे पर चर्चा होगी.

बीसीसीआई के कार्यकारी सचिव अमिताभ चौधरी ने गुरुवार को कहा, ‘‘हां , अनुबंध मेरे पास हैं. अगर बैठक में कल संशोधित वेतन संरचना को मंजूरी मिल जाती है तो मैं इस पर हस्ताक्षर कर दूंगा. अगर वे इसे मंजूरी नहीं देते हैं तो मेरे हाथ बंधे हैं. किसी भी नीतिगत फैसले को आम सभा की मंजूरी की जरूरत होती है और मैं नियम नहीं तोड़ सकता.’’

उच्चतम न्यायालय की ओर से नियुक्त सीओए ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह इस बैठक को मंजूरी नहीं देते. उसने वेतन पाने वाले अधिकारियों को इसमें हिस्सा लेने पर भी रोक लगा दी थी. लेकिन पैनल प्रमुख विनोद राय खिलाड़ियों के भुगतान में हो रही देरी से चिंतित हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे व्यक्तिगत रूप से अच्छा नहीं लग रहा कि खिलाड़ियों को समय पर भुगतान नहीं हो रहा. मुझे जरा भी नहीं पता कि आम सभा का क्या फैसला होगा. लेकिन लंबे समय से वित्तीय समिति के समक्ष प्रस्ताव रखा हुआ था. खिलाड़ियों के हस्ताक्षर के बाद इस अनुबंध की प्रति सचिव को भेज दी गयी थी.’’

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मुख्य कार्यकारी अधिकारी राहुल जौहरी इस बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे क्योंकि सीओए ने इसको मंजूरी नहीं दी है. इसी तरह क्रिकेट परिचालन महाप्रबंधक सबा करीम भी इसमें शिरकत नहीं करेंगे. बैठक में कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा होगी. बैठक को रोकना हालांकि सीओए के अधिकार क्षेत्र में शामिल नहीं है तो उसने अपने कर्मचारियों को कहा है कि वे सदस्यों के हवाई यात्रा और टीए – डीए का भुगतान नहीं करें. संशोधित अनुबंध प्रणाली के अंतर्गत ए प्लस वर्ग के खिलाड़ियों को सात करोड़ रूपए, ए ग्रुप के खिलाड़ियों को पांच करोड़ रूपये तथा बी और सी वर्ग के खिलाड़ियों को क्रमश: तीन करोड़ और एक करोड़ रूपये दिए जाएं.

केवल अधिकारी के हस्ताक्षर होना है बाकी

पता चला है कि खिलाड़ियों ने नए अनुबंध पर हस्ताक्षर सीओए से गहन चर्चा के बाद ही किए. इसी के हिसाब से सीओए ने सात मार्च को नयी वेतन संरचना के हिसाब से 27 खिलाड़ियों के नाम जारी किए. हालांकि बीसीसीआई के मौजूदा संविधान के अनुसार सचिव अब भी सभी खिलाड़ियों के अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत है. जिससे अनुबंध के हिसाब से भुगतान करने के लिए चौधरी के हस्ताक्षर की जरूरत है.

इसके अलावा बीसीसीआई बैठक में आईसीसी से जुड़े मुद्दों पर भी चर्चा करेगी जिसमें विवादास्पद सदस्य भागीदारी समझौता (एमपीए) शामिल है जिसके अंतर्गत भारत में होने वाली 2021 चैम्पियंस ट्राफी को बदलकर आईसीसी विश्व टी 20 कर दिया गया है.

पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के द्विपक्षीय सीरीज के समझौते का सम्मान नहीं करने के लिए सात करोड़ डालर का मुआवजा मांगने के मुद्दे पर भी चर्चा होगी. बीसीसीआई किसी भी हालत में पीसीबी को मुआवजा नहीं देगा. बीसीसीआई के कानूनी प्रतिनिधित्व , विभिन्न नियुक्तियों, राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी के नीतिगत फैसलों पर भी चर्चा करने की उम्मीद है.

ये सीक्रेट कोड्स आपके स्मार्टफोन के अनुभव को बनाएंगे और खास

वर्तमान समय में स्मार्टफोन लोगों की दिनचर्या तथा उनके जीवन का एक अहम हिस्सा बन चुका है. क्योंकि स्मार्टफोन्स ने रोजमर्रा के कई कार्यों को काफी आसान बना दिया है. फोन पर कौल से लेकर पेमेंट करने तक कोई भी काम बड़ी ही आसानी से किया जा सकता है. इसी को मद्देनजर रखते हुए हम आपको फोन्स के कुछ सीक्रेट कोड्स बताने जा रहे हैं जो आपके लिए मददगार साबित हो सकते हैं. पर आपको एक बात जरूर बताना चाहेंगे की जरूरी नहीं की ये सभी एंड्रायड डिवाइसों में काम करें पर ज्यादातर में यह काम करता है.

कोड: *#06#

इस कोड के बारे में तो आप सभी जानते होंगे. इस कोड को डायल करने से डिस्प्ले पर फोन का IMEI नंबर दिखाई देता है यह सबसे आसान और सरल कोड है जो लगभग हर किसी को मालूम होता है.

कोड: *#*#4636#*#*

इस कोड को फोन में डायल करने से बैटरी से संबंधित सभी जानकारी मिल जाएगी. इसमें बैटरी की वर्तमान वोल्टेज, बैटरी चार्ज लेवल आदि का पता लगाया जा सकता है. इसके अलावा फोन से संबंधित जानकारी भी इस कोड से मालूम की जा सकती है.

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कोड: *#21#

यूजर्स के लिए उनकी प्राइवेसी बहुत महत्वपूर्ण होती है. वो किसी से भी अपने फोन में मौजूद डाटा को शेयर नहीं करना चाहते हैं. ऐसे में यह कोड आपकी मदद करेगा. इस कोड की मदद से आप पता लगा पाएंगे कि कहीं आपकी वौयस कौल, एसएमएस या अन्य कोई भी डाटा किसी दूसरे जगह फौरवर्ड तो नहीं किया जा रहा है.

कोड: *#*#7780#*#*

इसके जरिए फैक्ट्री रिस्टोर, ऐप्स और डाटा को क्लियर करना, गूगल अकाउंट सेटिंग को रिमूव किए जाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है.

कोड: *409*<10 डिजिट का जियो नंबर>

यह कोड केवल जियो यूजर्स के लिए है. यह कोड आपकी कौल्स को किसी दूसरे नंबर फौरवर्ड करने में मदद करेगा. इसके लिए जियो यूजर को अपने नंबर से *409*<10 डिजिट का जियो नंबर> डायल करना है. इसके बाद आपको IVR पर जो दिशानिर्देश दिए जाएंगे उन्हें फौलो करना होगा. ऐसा करने से आपकी वौयस कौल्स दूसरे नंबर पर ट्रांसफर कर दी जाएंगी. अगर आप इसे डिएक्टिवेट करना चाहते हैं तो अपने जियो नंबर से *402 डायल करना होगा.

मोबाइल डेटा कम खर्च करने के ये हैं आसान तरीके

बहुत बार ऐसा होता है कि आपका मोबाइल डाटा बहुत ज्यादा ही खर्च होता है. इससे समय से पहले ही आपका डेटा प्लान खत्म हो जाता है. लेकिन कुछ ऐसे उपाय भी हैं, जिससे आपका मोबइल डेटा ज्यादा खर्च नहीं होगा और समय से पहले खत्म भी नहीं होगा.

1. डेटा कंप्रेशन का उपयोग

मोबाइल में वेब ब्राउजिंग में सबसे ज्यादा डेटा इस्तेमाल होता है. कई वेबसाइट पर आने वाले विज्ञापनों की वजह से डेटा सबसे ज्यादा खर्च होता है. इस स्थिति में आप डेटा कंप्रेशन का इस्तेमाल करके इंटरनेट खर्च होने से बचा सकते हैं. इस ऐप के लिए सबसे पहले क्रोम में जाएं. उसके बाद साइड में दिखने वाले 3 डॉट्स पर टैप करें. इसके बाद सेटिंग पर जाएं. यहां दिखने वाले डाटा सेवर ऑप्शन को सिलक्ट कर दें.

2. बैकग्राउंट डेटा को करें बंद

स्मार्टफोन में बहुत से ऐप आपकी मर्जी के खिलाफ आपका डेटा का इस्तेमाल करते हैं. इसके लिए आप अपने इंटरनेट का इस्तेमाल केवल उन ऐप्स के लिए कर सकते हैं जिनका आप इस्तेमाल करते हैं जिन ऐप का आप इस्तेमाल नहीं करते उनका आप बैकग्राउंड डेटा बंद कर सकते हैं. इसके लिए सेटिंग में जाकर डेटा यूस सिलेक्ट करें और जिस ऐप का डेटा रोकना या बंद करना है उसके restrict app background data लेबल को ऑफ कर दें.

3. मोबाइल ऐप्स अपडेटिंग वाई-फाई से  

हमेशा अपने मोबाइल के ऐप्स को अपडेट करने के लिए वाई-फाई का इस्तेमाल करें. इससे आपका मोबइल डेटा खर्च नहीं होगा. इसके लिए आप गूगल प्ले स्टोर में जाकर ऑटो अपडेट के फीचर को ऑफ करना होगा. और फिर update apps wi-fi only के ऑप्शन को सिलेक्ट करें.

4. ऑनलाइन वीडियो और म्यूजिक

मोबाइल के डेटा से ऑनलाइन वीडियो और म्यूजिक स्ट्रीम करने से बचें. आप अपने फोन में भी वीडियो स्टोर कर सकते हैं. इससे डेटा की काफी  की बचत होती है.

5. डेटा मैनेजमेंट ऐप के जरिे बचाएं इंटरनेट

डेटा मैनेजमेंट ऐप्स के जरिए भी आप डेटा बचा सकते हैं. ये मोबाइल ऐप्स डेटा को कंप्रेस करते हैं. ये ऐसे ऐप्स हैं जो इंटरनेट डेटा को यूज करने से रोक देते हैं.

गुड टच और बैड टच ही नहीं, बच्चों को ये बातें बताना भी जरूरी है

नेल्सन मंडेला ने एक बार कहा था कि हिंसा और डर की चपेट में बच्चे सब से ज्यादा आते हैं. ऐसे में हमारा कर्तव्य है कि हम उन्हें हिंसा और डर से मुक्त जीवन प्रदान करें. मगर आज बच्चों को सुरक्षित माहौल देना बहुत मुश्किल काम हो गया है. रोजरोज होने वाली बालशोषण, रेप, किडनैप की घटनाओं ने मातापिता को बहुत चिंतित कर दिया है. टीवी पर ऐसी घटनाओं को देखते रहने के बाद 35 वर्षीय स्नेहा ने महसूस किया कि अपनी 10 वर्षीय बेटी सिया को गुड टच, बैड टच बता देना ही पर्याप्त नहीं है. उन्होंने अपनी बेटी को एक पासवर्ड दिया और कहा कि यदि कोईर् हमारा नाम ले कर उसे कुछ खाने के लिए दे और कहीं चलने के लिए कहे तो वह उस से पासवर्ड पूछे. उस ने अपने पति और बेटी के साथ कई कोडवर्ड बनाए ताकि उन की बेटी सुरक्षित रहे.

स्नेहा की तरह कई मातापिता ऐसा कर रहे हैं. वे अपने बच्चों को अलर्ट रह कर किसी भी मुश्किल से निबटने के लिए ट्रेनिंग दे रहे हैं. इधरउधर घूमते असामाजिक तत्त्वों से निबटने के लिए अब यह आवश्यक भी हो गया है.

ये तरीके अपनाएं

बच्चे मासूम होते हैं. वे किसी पर भी आसानी से विश्वास कर लेते हैं. बेटियों की मां नमिता बताती हैं, ‘‘यदि कोई अजनबी बच्चों को चौकलेट औफर करता है, तो अकसर वे ले लेते हैं. मैं ने बेटियों को समझा दिया है कि उन्हें जो कुछ भी चाहिए मैं उन्हें ले कर दूंगी. उन्हें किसी भी अजनबी से कुछ नहीं लेना है. मैं उन्हें ज्यादा नैगेटिव चीजें नहीं बताती हूं ताकि कहीं उन के मन में डर न बैठ जाए.’’ टीचर पारुल देशमुख ने आवश्यकता पड़ने पर अपने बेटे को ताकत लगाना सिखाया है. उन का कहना है, ‘‘मैं ने अपने बेटे से कहा है कि यदि कोई उसे जबरदस्ती पकड़ने की कोशिश करे तो वह जोर से चिल्लाए. मैं ने घर पर इस की प्रैक्टिस भी करवाई है. उसे बताया है कि वह उस व्यक्ति का हाथ जोर से काट ले और जैसे ही उस व्यक्ति का ध्यान बंटे, वहां से भाग ले.’’

7 वर्षीय बेटे के पिता बिजनैसमैन दीपक शर्मा कहते हैं, ‘‘मैं ने एक वीडियो देखा था जिस में बच्चों को उन में डैंजर पौइंट्स दिखा कर समझाया जाता है कि यदि कोई इन जगहों को छूने की कोशिश करे तो बच्चे जोर से चिल्लाएं और भाग कर भीड़ वाली जगह चले जाएं. इस घटना के बारे में किसी विश्वसनीय बड़े को बताएं. मैं ने यह वीडियो अपने बेटे को भी दिखाया है और हम उस के सामने यह निर्देश समयसमय पर दोहराते रहते हैं.’’ चाहे शिक्षाप्रणाली में यह शामिल हो या नहीं, मातापिता सैल्फडिफैंस का महत्त्व समझने लगे हैं.

2 बच्चों की मां राधा श्रीवास्तव का कहना है, ‘‘आर्ट, म्यूजिक और डांस क्लास की तरह स्कूल में सैल्फडिफैंस की क्लास भी जरूर होनी चाहिए और 5 साल की उम्र से यह ट्रेनिंग मिलनी चाहिए.’’

कराटे या भरतनाट्यम 9 वर्षीय इशिता के मातापिता ने इन में से इशिता को कराटे सिखाना ही ज्यादा जरूरी समझा. उस की मम्मी ने बताया, ‘‘हम इंतजार कर रहे थे कि इशिता 8 साल की हो जाए तो उसे भरतनाट्यम सिखाएंगे पर जब हम उसे क्लास ले कर गए तो पता चला कि वे कराटे भी सिखाते हैं. हम चाहते थे कि बेटी दोनों चीजें सीख ले पर समय कम था तो हम ने आज के वक्त की जरूरत को ध्यान में रखते हुए उसे सैल्फडिफैंस सिखाया. मैं ने देखा है कि कराटे सीखने वाले बच्चे ज्यादा अलर्ट रहते हैं. फिटनैस के प्रति उन का दृष्टिकोण काफी सकारात्मक रहता है. बाद में कभी समय मिलने पर इशिता डांस भी सीख लेगी पर अभी कराटे सीखना ज्यादा जरूरी है.’’

समयसमय पर बात करें जब भी मातापिता को समय मिले, वे बच्चे से जरूर बात करें, उन के स्कूल के बारे में पूछें. 6 साल की गरिमा की मम्मी कहती हैं, ‘‘वे दिन गए जब हम बच्चों से सिर्फ उन की पढ़ाई और होमवर्क के बारे में ही बात करते थे. उन से टीचर्स, चपरासी, बस ड्राइवर के बारे में बात करते रहना चाहिए. वे किसी से असहज तो नहीं हैं, यह पता करते रहना चाहिए, उन्हें किसी से न डरने की सीख देते रहना चाहिए, उन्हें बोल्ड बनाते रहना चाहिए.’’

बच्चों के साथ बातें करते हुए मातापिता को घर में एक स्वस्थ माहौल बनाए रखना चाहिए. उन्हें यह विश्वास होना चाहिए कि मातापिता हर स्थिति में उन की बात सुनेंगे. इस से उन के मन में कोई डर नहीं रहता है. अपने बच्चों की अच्छी हैल्थ और सुरक्षा हर मातापिता की प्राथमिकता होनी चाहिए. मातापिता हर समय बच्चों के साथ नहीं रह सकते पर उन्हें अतिआवश्यक सुरक्षासंबंधी निर्देश दे कर सजग जरूर बना सकते हैं.

मातापिता बच्चों के साथ जितना संभव हो सके बात करते रहें. उन्हें गुड टच और बैड टच के बारे में जरूर बताएं. बच्चों को सैल्फडिफैंस सिखाएं, दिन कैसा रहा, इस से संबंधित प्रश्न पूछते रहें. मातापिता पर विश्वास रख कर वे उन से सब कुछ शेयर कर सकते हैं, यह एहसास बच्चों को करवाते रहें.

ब्रेकफास्ट रैसिपीज : सेमोलीना स्वीट इडली

सेमोलीना स्वीट इडली

सामग्री

– 1/2 कप बारीक सूजी

– 2 बड़े चम्मच मैदा

– 5 बड़े चम्मच चीनी पाउडर

– 4 बड़े चम्मच दही

– 1/6 छोटा चम्मच बेकिंग सोडा

– 1 छोटा चम्मच वैनिला ऐसेंस

– 1/2 छोटा चम्मच इलायची चूर्ण

– 1 बड़ा चम्मच बादाम, पिस्ता बारीक कटा

– 2 बड़े चम्मच रिफाइंड औयल

– 1 सैशे ईनो – थोड़ सा फ्रूट साल्ट.

विधि

सूजी में मैदा और बेकिंग सोडा डाल कर छान लें. दही फेंटें. इस में चीनी और रिफाइंड औयल डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. धीरेधीरे सूजी डालें और मिक्स करें. 10 मिनट ढक कर रखें. पुन: मिक्स करें. यदि मिश्रण गाढ़ा लगे तो 1-2 बड़े चम्मच दूध मिक्स करें. वैनिला ऐसैंस, इलायची पाउडर और ईनो, फ्रूट साल्ट मिश्रण में डाल कर हलके हाथ से मिलाएं. मिनी इडली स्टैंड के खांचों को तेल से चिकना करें. प्रत्येक खांचे में थोड़ाथोड़ा बादाम, पिस्ता फ्लैक्स बुरकें और मिश्रण डाल दें. बचे फ्लैक्स ऊपर से बुरकें. 6-7 मिनट पकाएं. थोड़ा ठंडा कर के खांचों से बाहर निकाल लें.

नोटबंदी पर आखिर नीतीश कुमार ने क्यों मारी पलटी

नरेंद्र मोदी सरकार के 4 साल पूरे होने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बधाई नहीं दी, उलटे, यह कहते पलटी मार दी कि पहले वे नोटबंदी के समर्थक थे पर इस से कितनों को फायदा हुआ. बात या मंशा की गुगली फेंकने के बाद वे बैंकिंग सिस्टम की खामियों का रोना रोते रहे.
सोचना वाजिब है कि क्या अब नीतीश कुमार पश्चात्ताप की तरफ बढ़ रहे हैं और उन्हें एनडीए का हिस्सा बनने के नुकसान नजर आने लगे हैं. 2014 में नींद में भी नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले सुशासन बाबू आखिर डर किस बात से रहे हैं, यह किसी को समझ नहीं आ रहा.

कुछकुछ लोग मानते हैं कि बिहार में गठबंधन के नाम पर भाजपा ने उन्हें नहीं, बल्कि उन्होंने भाजपा को फंसाया है और 2019 का लोकसभा चुनाव आतेआते वे फिर अपने पुराने रूप में आ जाएंगे जिस से नुकसान भाजपा का होगा. फंसनेफंसाने के इस खेल के मानें अब सामने आने लगे हैं तो इस में कर्नाटक के ड्रामे का भी अहम रोल है. यों नीतीश कुमार को भी पूरा हक है कि वे नोटबंदी की तारीफों में गढ़े अपने पूर्व कसीदे वापस ले लें.

पिया बिन नहीं जीना मुझे : सीमा की कहानी

राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल सीमा अपनी 4 वर्षीय बेटी वंशिका के साथ बीछवाल थाना प्रांगण में बने स्टाफ क्वार्टर में रहती थी. उस के साथ उस का भाई सुमित भी रहता था. सुमित भी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल था. सीमा की ड्यूटी बीकानेर पुलिस लाइन में थी. करीब डेढ़ महीना पहले ही वह पाली जिले से ट्रांसफर करा कर बीकानेर आई थी. पहले उस की पोस्टिंग पाली के औद्यौगिक थाने में थी.

25 मार्च, 2018 की शाम को सीमा बेटी के साथ थी. उस का भाई सुमित किसी काम से बाजार गया हुआ था. जब वह बाजार से घर लौटा तो घर में कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मिला. सुमित ने दरवाजा खटखटा कर बहन को आवाज दी पर दरवाजा नहीं खुला.

कई बार आवाज देने के बावजूद भी जब अंदर से कोई हलचल नहीं हुई तो सुमित ने खिड़की से अंदर झांक कर देखा तो उसे बहन सीमा व वंशिका फंदे पर झूलती दिखाई दीं. यह देख कर सुमित की चीख निकल गई.

उस के चीखने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. सुमित ने लोगों की सहायता से खिड़की तोड़ी. उस ने सब से पहले अपनी बहन और भांजी को फंदे से उतारा. तब तक बीछवाल के थानाप्रभारी धीरेंद्र सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच चुके थे. दोनों को तुरंत पीबीएम अस्पताल ले जाया गया. जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

मृतका सीमा के कमरे से पुलिस को एक सुसाइड नोट भी बरामद हुआ. उस में कांस्टेबल सीमा ने सासससुर से माफी मांगते हुए लिखा कि सभी ने उस का और बेटी वंशिका का खयाल रखा, लेकिन पति हरकेश की मौत के बाद से मैं बहुत तनाव में हूं. इसलिए बेटी के साथ फांसी लगा कर आत्महत्या कर रही हूं. सीमा ने पत्र में इच्छा जताई कि मेरा अंतिम संस्कार भी वहीं हो, जहां पति का किया गया था और उस की और बेटी की आंखें दान कर दी जाएं. ताकि किसी को रोशनी मिल सके.

चूंकि मामला एक पुलिसकर्मी से संबंधित था, इसलिए थानाप्रभारी की सूचना पर एसपी दीपक भार्गव भी वहां पहुंच गए. उन्होंने भी मौका मुआयना किया. थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर दोनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए पीबीएम अस्पताल भेज दिया.

सीमा सरकारी मुलाजिम थी, उसे कोई आर्थिक परेशानी नहीं थी. ससुराल में सभी लोग उस का बहुत खयाल रखते थे. इन सब बातों के बावजूद आखिर ऐसी क्या वजह रही जो उस ने अपने साथ बेटी को भी फंदे पर लटका दिया. जांच करने के बाद पुलिस को इस के पीछे की जो बात पता चली, वह हृदयविदारक थी.

सीमा सन 2006 में राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हुई थी. उसी के बैच में हरकेश मान नाम का युवक भी भरती हुआ था. हरकेश झुंझनू जिले के भीरी गांव का मूल निवासी था. पर बाद में उस का परिवार चिढ़ावा कस्बे में रहने लगा था.

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साथसाथ पुलिस ट्रेनिंग करने के दौरान सीमा और हरकेश की अच्छी जानपहचान हो गई थी. बाद में घर वालों की मरजी से दोनों की शादी हो गई. सीमा का भाई सुमित भी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर भरती हो गया था.

सीमा पति के साथ बहुत खुश थी. हरकेश भी उस का बहुत ध्यान रखता था. दोनों की गृहस्थी की गाड़ी हंसीखुशी से चल रही थी. इस दौरान सीमा एक बेटी की मां भी बन गई थी जिस का नाम वंशिका रखा गया.

सीमा का पति हरकेश एक जांबाज व होशियार सिपाही था. अपनी मेहनत के बूते पर उस ने अनेक बडे़ केसों को खोलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उस की तैनाती पाली की कोतवाली में थी. अपने प्रयासों के बल पर उस ने दीपक हत्याकांड को खोलने में विशेष भूमिका निभाई थी.

इस के अलावा उस ने कंजर गैंग, नायडू शेट्टी गैंग तथा गत दिनों पाली में मोबाइल शोरूम से लाखों रुपए के मोबाइल चुराने वाले गैंग का पता लगा कर उन्हें गिरफ्तार कराने में विशेष भूमिका निभाई थी. इन केसों में मिली सफलता के बाद हरकेश को एसपी के अलावा डीआईजी और आईजी ने भी सम्मानित किया था.

पति की इस उपलब्धि पर सीमा का सीना भी गर्व से चौड़ा हो गया था. चूंकि वह भी पति के साथ उसी थाने में तैनात थी, इसलिए पति से उसे काफी प्रेरणा मिली थी. अपने छोटे से परिवार में सीमा बहुत खुश थी. लेकिन 31 अक्तूबर, 2017 को इन के परिवार में अचानक एक ऐसी घटना घटी जिस से उन की हंसतीखेलती गृहस्थी उजड़ गई.

दरअसल हरकेश मान के साले की शादी थी. 31 अक्तूबर, 2017 को हरकेश ड्यूटी से चिड़ावा में स्थित अपने क्वार्टर पर पहुंच कर शादी में जाने की तैयारी करने लगा. सीमा भी भाई की शादी में जाने की तैयारी में जुटी थी. हरकेश ने अपने बालों में मेंहदी लगाई हुई थी. वह बालों की मेंहदी को धो रहा था तभी अचानक आगे की तरफ गिर गया. सामने कोई एक पाइप था जो सीधे हरकेश के सिर में घुस गया.

हरकेश के चीखने पर सीमा बाथरूम में गई तो वहां खून देख कर वह भी घबरा गई. उस ने पड़ोसियों को बुलाया, जिन की मदद से हरकेश को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. लेकिन डाक्टर उसे बचा नहीं सके. उस की मौत हो गई.

पति की मौत पर सीमा का तो घरसंसार ही उजड़ गया था. शादी में जाने की खुशी रंज में बदल गई थी. एक तेजतर्रार सिपाही की मौत की खबर पा कर जिले के पुलिस अधिकारी भी वहां पहुंच गए. सभी इस आकस्मित मौत पर आश्चर्यचकित थे.

घर वालों का तो रोरो कर बुरा हाल था. घर वालों के अलावा विभाग के लोगों ने भी सीमा को बहुत समझाया. पर वह अपने प्रियतम को भला कैसे भुला सकती थी. लोगों के समझाने पर सीमा ने खुद को संभालने की कोशिश की. वह अपने काम में व्यस्त रह कर दुख को भुलाने की कोशिश करती रही लेकिन रहरह कर उसे पति की यादें बेचैन किए रहती थीं.

पहले सीमा की पोस्टिंग पाली थाने में थी जबकि उस का भाई सुमित बीकानेर के महिला थाने में था. अरजी दे कर उस ने करीब डेढ़ महीने पहले ही अपना ट्रांसफर बीकानेर करा लिया था. ताकि भाई के साथ रहने पर वह खुद अकेला महसूस न समझे.

वह भाई के साथ ही बीछवाल थानापरिसर में बने आईएसी क्वार्टरों में रहती थी. हालांकि ससुराल पक्ष के लोगों की तरफ से भी सीमा का हर तरह से खयाल रखा जा रहा था. इस के बावजूद भी सीमा को रहरह कर पति की यादें आ रही थी. पति के बिना वह खुद को अकेला महसूस कर रही थी. उसे लगने लगा था कि अब पति के बिना उस का जीना ही बेकार है. वह खोईखोई सी रहने लगी.

फिर एक दिन सीमा ने फैसला कर लिया कि जब उस का पति ही न रहा हो तो अब उस का जीना ही बेकार है. उस ने तय कर लिया था कि वह भी अपनी जीवनलीला खत्म कर पति के पास जाएगी. तभी उसे अपनी बेटी वंशिका का ध्यान आया कि उस के जीवित न रहने पर बिन मांबाप के पता नहीं उस की जिंदगी कैसे कटेगी. लिहाजा उस ने अपने साथ बेटी वंशिका की भी जीवनलीला खत्म करने का निर्णय ले लिया.

25 मार्च की शाम को उसे यह मौका मिल ही गया. उस दिन सीमा का भाई सुमित भी अपनी ड्यूटी से आ गया था. वह शाम के समय बाजार गया. तभी सीमा ने सब से पहले अपनी बेटी को फंदे पर लटकाया इस के बाद वह खुद भी लटक गई. इस से पहले उस ने एक सुसाइड नोट लिख दिया था, जिस में किसी को भी दोषी न ठहराते हुए अपनी और बेटी की आंखें दान करने की बात लिख दी थी.

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सीमा ने भले ही अपनी समझ से अपनी और बेटी की सांसें रोक दीं पर ऐसा कर के उस ने कोई समझदारी का काम नहीं किया. बेटी के सहारे वह जिंदगी काट सकती थी. उसे उस समय काउंसलिंग की जरूरत थी. यदि उस की उस समय काउंसलिंग हो जाती तो शायद वह यह कदम नहीं उठाती.

जादुई चश्मा : लालच बुरी भला

लालच बुरी बला होती है. यह समझते हुए भी गुजरात के कुछ कारोबारी बदमाशों के चंगुल  में फंस कर ‘जादुई चश्मा’ और नेपाल की महारानी के ‘हीरों का हार’ लेने के लिए बदमाशों के चंगुल में फंस जाते थे. बदमाशों ने अपना जाल गुजरात, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे 3 प्रदेशों में फैला रखा था.

गुजरात से शिकार को फंसा कर लखनऊ बुलाया जाता था, फिर उन्हें लखनऊ में रखा जाता था. लाखों की फिरौती देने के बाद भी कारोबारी बदमाशों की पकड़ से आजाद नहीं हो पाता था. बदमाश फिरौती लेने के लिए अमानवीय व्यवहार करते थे. लखनऊ पुलिस ने इन लोगों को पकड़ कर 3 राज्यों में फैले इस ठगी के कारोबार का परदाफाश कर दिया.

‘‘मोटा भाई, यह बात केवल खास लोगों को ही बताता हूं. आप मेरे लिए बहुत खास हो और यह जादुई चश्मा आप के लिए बहुत खास है. आप जैसे लोगों के लिए ही इसे बनाया गया है.’’ भानु ने गुजरात के जूनागढ़ में रहने वाले कारोबारी सुरेशभाई से कहा.

‘‘तुम्हारी बात सही है भाया, पर यह तो बताओ कि तुम्हारे इस खास जादुई चश्मे का राज क्या है? क्याक्या दिखता है इस से?’’ सुरेश ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘मोटा भाई, यह पूछो क्या नहीं दिखता. समुद्र के अंदर कहां तेल और यूरेनियम हो सकता है, किसी पुरानी हवेली में कहां खजाना हो सकता है, हीरे की खदानें कहां हैं, यह सब इस जादुई चश्मे से दिख जाता है.’’ भानु ने जादुई चश्मे की खासियत बताते हुए कहा.

‘‘बहुत करामाती चश्मा है यह तो.’’ जादुई चश्मे के गुण सुन कर सुरेश चकित रह गया.

‘‘और नहीं तो क्या मोटा भाई. सालों की मेहनत का नतीजा है. सरकार इसे बाजार में बेचना थोड़े ही चाहती है. इसलिए नजर बचा कर बेचना पड़ रहा है.’’ जादुई चश्मा के बारे में भानु ने ज्यादा जानकारी देते हुए कहा.

‘‘कितनी गहराई तक देख लेता है?’’ सुरेशभाई की उत्सुकता लगातार बढ़ती जा रही थी.

‘‘मोटा भाई, 7 फीट गहराई में तो यह साफ देख लेता है. अगर उस से गहरा कुछ है तो यह सिगनल भेज देता है.’’ भानु ने उस की दूसरी खासियत भी बताई.

‘‘तब तो यह कपड़ों के आरपार भी देख लेता होगा?’’ सुरेशभाई का लालच बढ़ गया था.

‘‘मोटा भाई, एक रुपए में 6 चवन्नी करना चाहते हो तो जादुई चश्मा ले लो फिर देखना क्याक्या दिखता है.’’ सुरेश की उत्सुकता को देख कर भानु ने कहा.

‘‘इस की कीमत तो बताई नहीं?’’

‘‘इस की कीमत तो माटी के भाव जैसी है. केवल एक करोड़ रुपए.’’

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‘‘यह तो बहुत ज्यादा है.’’

‘‘ज्यादा नहीं है. एक बार भी इसे लगा कर वह दिख गया जो सब को नहीं दिखता तो कीमत से कई गुना मिल जाएगा.’’

‘‘कुछ भी हो पर एक करोड़ होता तो ज्यादा ही है. कैसे देखने को मिलेगा?’’

‘‘मोटा भाई, ज्यादा लग रहा है तो 2 लोग मिल कर ले लो. आप दोनों को लखनऊ आने का हवाई टिकट करा देता हूं. यहां होटल में रुको, चश्मा देखो और फिर पैसे दे कर ले जाओ.’’ भानु ने मछली फंसती देखी और उसे यकीन हो गया कि अब सौदा हो जाएगा.

‘‘ठीक है भाया, हम और साथी केतनभाई लखनऊ आएंगे, तुम जादुई चश्मा तैयार रखना.’’

भानुप्रताप सिंह बहराइच के केवलपुर का रहने वाला था. सूरत से कपड़े ले जा कर वह नेपाल में बेचने का धंधा करता था. गुजरात में 3 साल पहले काम शुरू करने वाले भानुप्रताप ने सोचा था कि कपड़े बेच कर वह बड़ा कारोबारी बन जाएगा. पर उस की यह धारणा जल्द ही गलत साबित हुई थी.

गुजरात में कारोबार करने गए भानुप्रताप सिंह को खुद ठगी का शिकार होना पड़ा था. ठगी करने वाले बदमाशों ने उसे बंधक बना कर 21 लाख रुपए ऐंठ लिए. इतना पैसा देने से उस का पूरा कारोबार डूब गया. यह पैसा उसे कई लोगों से कर्ज ले कर देना पड़ा था.

इस घटना से भानुप्रताप को पता चल गया कि ईमानदारी से कारोबार करना बहुत मुश्किल है. ऐसे में उस ने अब पैसा कमाने के लिए ठगी का धंधा शुरू कर दिया. जिस तरह से वह फंसा था, वैसे ही उस ने भी दूसरों को फंसाना शुरू किया.

भानुप्रताप ने बहराइच के रहने वाले जितेंद्र सोनी को अपने साथ लिया और वापस गुजरात पहुंच गया. यहां उस ने कई बेरोजगारों को अपने साथ मिलाया. ये युवक बिना किसी मेहनत के लाखों रुपया कमाना चाहते थे. इन का काम गुजरात में रहने वालों से संपर्क कर उन्हें जादुई चश्मा बेचने का था.

गांधीनगर के रहने वाले कैमिकल कारोबारी भूपेंद्र पटेल को भी इन लोगों ने संपर्क कर जादुई चश्मा खरीदने के लिए कहा. इस के लिए 6 जनवरी को उन्हें लखनऊ बुलाया और बंधक बना कर रख लिया. इस के बाद फिरौती के 15 लाख रुपए वसूल किए. बंधक बना कर भूपेंद्र को कई तरह से यातनाएं दी गईं. बेल्ट से पिटाई और नाखून उखाड़ने तक की यातना दी गई. वह जान बख्श देने की दुहाई देते रहे.

भूपेंद्र घर वालों के संपर्क में थे. किसी तरह से 14 जनवरी को बंधकों के चंगुल से आजाद हो कर अपने घर पहुंचे. लगातार मिली प्रताड़ना से उन का जिस्म बुखार से तप रहा था. अगले ही दिन उन की मौत हो गई. घर वालों को पहले लगा कि बुखार की वजह से मौत हुई है. जब उन का अंतिम संस्कार की तैयारी हो रही था तो घर वालों ने देखा कि उन के नाखून गायब थे. शरीर पर डंडे की पिटाई के निशान दिख रहे थे.

भूपेंद्र का मोबाइल खंगालने के बाद पता चला कि वह एक सप्ताह लखनऊ में थे. उन के बैंक खातों से लाखों रुपए निकाले गए थे. पुलिस की छानबीन से पता चला कि जादुई चश्मा लेने के लिए भूपेंद्र ने कई लोगों से ले कर पैसे दिए थे. भानु का गैंग जादुई चश्मा बेचने में लगा हुआ था.

भानु ने खुद को कारोबारी बता कर जानकीपुरम कालोनी में रहने वाले आफाक अहमद से उन के साढ़ू नियाज अहमद का मकान किराए पर लिया, जो सऊदी में रहते हैं. इस के बाद बदमाशों ने जूनागढ़ के दवा कारोबारी सुरेश भाई और सूरत के मयंक भाई और केतन जरीवाला को जादुई चश्मे का झांसा दे कर बुलाया.

ये लोग 21 फरवरी को हवाईजहाज से लखनऊ आ गए. पहले उन्हें रेलवे स्टेशन के पास चारबाग इलाके में होटल में ठहराया गया. यहां पर होटल सस्ते मिल जाते हैं.

यहां से इन्हें बंधक बना कर अड्डे पर ले गए. वहां इन लोगों को प्रताडि़त कर के पैसे वसूल करने शुरू किए. बदमाशों ने तीनों से 20 लाख रुपए वसूले. 28 फरवरी को जब इन्हें दूसरे ठिकाने पर ले जाया जा रहा था तो तीनों व्यापारी औटो से कूद कर भाग निकले. सुरेश ने पुलिस में मुकदमा दर्ज कराया. केतनभाई की लखनऊ के मैडिकल कालेज में 9 मार्च को मौत हो गई.

जादुई चश्मा लेने के झांसे में फंसने के बाद व्यापारी को बंधक बना लिया जाता था. इस के बाद रिहाई के लिए उस के रिश्तेदारों से फिरौती मांगी जाती थी. पैसे देने के बाद भी उन्हें रिहा नहीं किया जाता था. जब मुंहमांगी रकम नहीं मिलती थी तो बदमाश कहते थे कि अगर पैसा नहीं मिला तो 20 से 50 लाख रुपए में उन के गुर्दे का सौदा हो रहा है.

इस से घबरा कर कारोबारी खुद पैसे का इंतजाम करने लगता था. फिरौती की रकम हवाला के जरिए वसूल होती थी. ये लोग खुद को व्यापारी बता कर किराए पर पूरा मकान लेते थे. लोगों को वहीं पर बंधक बना कर रखा जाता था. एक माह में 4 से 6 कारोबारियों से वसूली करने के बाद ये लोग मकान छोड़ देते थे.

लखनऊ के जानकीपुरम में गुजरात के 6-7 कारोबारियों को लूटने के बाद इन लोगों ने राजस्थान के राजसमंद जिले में अपना ठिकाना बनाया था. वहां भी 3 लोगों से 15 लाख रुपए वसूल चुके थे. धमकी और यातना से परेशान कारोबारी पैसा दे देते थे.

लखनऊ पुलिस ने इन बदमाशों की तलाश शुरू कर दी थी. एसपी (ट्रांसगोमती) हरेंद्र कुमार की अगुवाई में यह टीम काम कर रही थी.

इस टीम को बदमाशों तक पहुंचना आसान काम नहीं था. सब से अहम भूमिका सर्विलांस सेल की थी. कई नंबरों को सामने रख कर छानबीन शुरू हुई. सर्विलांस और स्वाट टीम के एसआई अजय प्रकाश त्रिपाठी, कांस्टेबल विद्यासागर, रामनरेश कनौजिया, मोहम्मद आजम खां और सुधीर सिंह ने लोकेशन ट्रेस करने का काम शुरू किया.

जानकीपुरम थाने के एसआई दयाशंकर सिंह, कांस्टेबल जितेंद्र प्रताप सिंह को राजसमंद के काकरौली थाने की पुलिस को साथ ले कर उदयपुर जाना पड़ा. वहां इन के ठिकाने पर दबिश दी गई. राजस्थान पुलिस को अपनी नाक के नीचे हो रहे अपराध का पता तक नहीं था. जैसे ही लखनऊ पुलिस ने इन्हें पकड़ा, वहां पुलिस ने खुद के गुडवर्क की खबर फैला दी.

वहां दबिश देने पर पुलिस को गुजरात के भावनगर के रहने वाले रामजीभाई, आरिफ, राजकोट के भावेश, दिलीपभाई और बहराइच के भानुप्रताप सिंह को पकड़ा गया. इन लोगों ने गुजरात के कच्छ निवासी इरफान, विनोद, सरफराज को पकड़ रखा था.

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ये लोग कमरे में रस्सी से जकड़े पड़े थे. इन तीनों को बेरहमी से पीटा गया था. ये लोग बंधकों से 16 लाख रुपए वसूल कर चुके थे. पिटाई से तीनों की चमड़ी उधेड़ी गई थी. इन तीनों ने राजस्थान के राजसमंद जिले के काकरौली थाने में मुकदमा लिखाया.

बदमाशों ने सरफराज को गैराज का मालिक समझ कर उठा लिया था. लेकिन वह मैकेनिक निकला. सरफराज को बताया कि उन के पास नेपाल की महारानी का चुराया हुआ हीरों का हार है, जबकि इरफान और विनोद को जादुई चश्मे के झांसे में बुलाया गया था.

इस गिरोह की सफलता पर बात करते हुए पुलिस ने बताया कि पकड़े गए 5 बदमाशों को काकरौली थाने की पुलिस ने मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया और न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

जानकीपुरम थाने में दर्ज एफआईआर की विवेचना कर रहे एसएसआई दयाशंकर सिंह ने पांचों बदमाशों को अपनी कस्टडी में लेने के लिए रिमांड की अरजी दी, लेकिन उन्हें लखनऊ लाने की अनुमति नहीं दी गई. अब बदमाशों को वारंट बी बना कर लखनऊ लाया जाएगा, जिस से आगे की पूछताछ की जा सके.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कामुक स्त्री का बेबस पति

सन 2011 में निर्मला जब 30 वर्षीय संजय रजक की पत्नी बन कर घर आई थी तो वह खुशी से फूला नहीं समाया था. क्योंकि उस की पत्नी बला की खूबसूरत थी. पेशे से मजदूर संजय के सपने बड़े नहीं थे. वह तो बस एक सुकूनभरी जिंदगी जीना चाहता था, जिस में पत्नी हो, बच्चे हों और छोटे से घर में हमेशा खुशियां बनी रहें.

संजय भले ही कम पढ़ालिखा था लेकिन था मेहनती. ज्यादा पैसे कमाने के लिए उस ने एक औफिस और एक स्कूल में माली का काम भी ले लिया था.

आम नौजवानों की तरह सुहागरात को ले कर संजय के मन में भी रोमांच और बहुत उत्सुकताओं के साथ थोड़ी सी घबराहट भी थी. पहली रात को यादगार बनाने की अपनी हसरत को पूरा करने के लिए उस ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी. पहले कमरा सजाया फिर इत्र से महकाया और पत्नी निर्मला के लिए अपनी हैसियत के मुताबिक तोहफा भी लिया.

दोस्तों के मुंह से उस ने सुन रखा था कि सुहागरात के दिन जिस पति ने पत्नी को जीत लिया, वह जिंदगी भर उस की मुरीद रहती है. इस जीत लिया का मतलब संजय खूब समझता था कि सिर्फ शारीरिक तौर पर ही पत्नी को हासिल या संतुष्ट कर देना नहीं होता, बल्कि आने वाली जिंदगी को ले कर बहुत से सपने भी साथ बुनने पड़ते हैं और पत्नी की इच्छाएं भी समझनी पड़ती हैं. उस ने अब तक फिल्मों में सुहागरात देखी थी और कुछ शादीशुदा दोस्तों से उन के तजुरबे जाने थे.

इस रात को हसीन बनाने के मकसद से जब वह कमरे में पलंग पर बैठी निर्मला के पास पहुंचा तो उस की खूबसूरती देख कर दंग रह गया. लाल सुर्ख जोड़े में निर्मला वाकई गजब ढा रही थी. अपनी किस्मत पर उसे गर्व हो रहा था.

निर्मला के नजदीक बैठ कर उस ने बातचीत शुरू की और जैसे ही उसे छुआ तो निर्मला को मानो करंट सा लग गया. उस ने पहल करते हुए पति को अपनी बांहों में ले कर उसे ताबड़तोड़ तरीके से प्यार करना शुरू कर दिया.

निर्मला पति से बहुत जल्दी खुल गई थी. लड़कियां पहली रात खूब शरमाती हैं, तरहतरह के नखरे करती हैं, जैसी तमाम धारणाएं संजय के दिलोदिमाग से हट गईं और वह भी पत्नी की तपस भरी पहल में पिघल कर उस के शरीर में डूब गया.

थोड़ी देर बाद जब तूफान थमा तो संजय के चेहरे पर संतुष्टि थी लेकिन निर्मला का दिल नहीं भरा था. चूंकि निर्मला की झिझक दूर हो चुकी थी, लिहाजा उस ने दोबारा संजय को उकसाया तो वह भी अपने आप को रोक नहीं पाया. पहली ही रात एकदो बार नहीं बल्कि कई बार दोनों के बीच शारीरिक संबंध बनेऔर तब तक बनते रहे जब तक संजय निढाल हो कर बिस्तर पर लुढ़क नहीं गया.

फिर तो हर रात यही होने लगा. संजय जैसे ही काम से लौट कर खापी कर बिस्तर पर पहुंचता तो निर्मला उसे अपनी तरफ घसीट कर तरहतरह से प्यार करती थी. ऐसा प्यार कि संजय निहाल हो उठता था. पत्नी खूबसूरत होने के साथसाथ सैक्सी भी हो तो जिंदगी वाकई खुशगवार हो उठती है. इस मामले में संजय खुद को लकी समझने लगा था.

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कुछ दिनों बाद ही जब निर्मला दिन में भी और सुबहसुबह भी सैक्स चाहने लगी तो संजय को अजीब लगा. अजीब इसलिए कि वह चाहे कितना भी सैक्स कर लेता, लेकिन निर्मला का जी नहीं भरता था. शादी के बाद आमतौर पर पति नईनवेली पत्नी के आगेपीछे मंडराते हैं और मनचाहे सैक्स के बाबत पत्नियों के नाजनखरे उठाते हैं. लेकिन यहां तसवीर उलट थी. संजय को पत्नी से कुछ कहना ही नहीं पड़ता था बल्कि जो लगातार करना पड़ रहा था, उस से उसे खीझ होने लगी थी.

खीझती तो निर्मला भी थी पर उस वक्त जब संजय उस की इच्छा या मांग पूरी करने में आनाकानी करता था या फिर बहाना बनाने की कोशिश करता था. ऐसी स्थिति में वह कभीकभार पति को ताने भी मारने लगी थी.

संजय को सैक्स से कोई परहेज नहीं था लेकिन वक्तबेवक्त पत्नी की सैक्स इच्छा उस की समझ के बाहर थी. फिर भी जितना उस से बन पड़ता था, वह पत्नी को खुश रखने की कोशिश करता था. उस का सोचना था कि वक्त रहते सब ठीक हो जाएगा.

पर उस का यह खयाल गलत साबित हुआ. शादी के बाद जब निर्मला गर्भवती हुई तो संजय को दोहरी खुशी हुई. पहली खुशी उस ने दोस्तों और रिश्तेदारों से साझा भी की कि वह भी बाप बनने वाला है लेकिन दूसरी उस ने अपने मन में ही रखी कि अब एकाध साल निर्मला मनमानी नहीं कर पाएगी. क्योंकि लेडी डाक्टर ने चैकअप के वक्त सैक्स को ले कर कुछ हिदायतें दी थीं, जिन में यह बात भी शामिल थी कि कोई बंदिश तो नहीं पर इस दौरान सैक्स से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए.

डाक्टर के समझाने का निर्मला पर कोई असर नहीं पड़ा था. मन मार कर और ऐहतियात बरतते हुए संजय को निर्मला की इच्छा पूरी करनी पड़ती थी. अब वह यह उम्मीद लगाने लगा था कि शायद बच्चा हो जाने के बाद निर्मला में कुछ सुधार आ जाए.

वक्त रहते निर्मला ने सुंदर बेटे को जन्म दिया तो अपनी इस नई जिम्मेदारी के प्रति संजय गंभीर हो चला था कि अब खर्चे बढ़ेंगे, कल को बेटा स्कूल भी जाएगा इसलिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने और बचाने की कोशिश की जाए. उस ने बेटे का नाम समीर रखा.

मां बनने के बाद भी निर्मला में कोई सुधार नहीं हुआ बल्कि उस की फरमाइश पहले से और ज्यादा बढ़ गई थी. इधर संजय में पहले सी ताकत और जोश नहीं रहा था, इसलिए वह कभीकभार साफ मना कर देता था. इस पर निर्मला उसे मारनेनोचने लगती थी और पागलों जैसी हरकतें करने लगती थी.

संजय को इतना तो समझ आ रहा था कि निर्मला को इतनी तीव्र इच्छा कोई स्वाभाविक बात नहीं बल्कि एक असामान्यता या कोई बीमारी है पर महमंद जैसे छोटे से गांव में जहां कोई फिजिशियन भी नहीं था, वहां किसी मनोचिकित्सक के होने की कोई संभावना तक नहीं थी, जिस से संजय पत्नी की इस अजीब सी बीमारी का इलाज करा पाता.

पति काफी कुछ बरदाश्त कर लेता है पर पत्नी शादी के 4 साल बाद उस की मर्दानगी को ले कर ताने मारे तो उस का सब्र जवाब दे जाता है. यही संजय के साथ हो रहा था जो बेटे समीर का मुंह देख कर बेइज्जती के कड़वे घूंट पी जाता था. अब उस की हर मुमकिन कोशिश निर्मला से दूर रहने की होती थी, पर यह नामुमकिन काम था.

एक दिन निर्मला ने फिर से जिद की तो उस ने मन मार कर साफ कह दिया कि उस में अब इतनी ताकत नहीं है कि दिनरात यही सब करता रहे. इस बार निर्मला ने उस से नोचने या कोई पागलपन जाहिर करने के बजाय उसे सैक्स पावर बढ़ाने की दवाएं लेने की सलाह दी तो वह चौंक उठा.

निर्मला की सलाह पर वह कोई प्रतिक्रिया दे पाता, इस के पहले ही उस ने पागलों जैसी जिद पकड़ ली कि मर्दानगी और ताकत बढ़ाने वाली दवा खाओ, इस में हर्ज क्या है. हर बार की तरह इस बार भी संजय को पत्नी की जिद के आगे हथियार डालने पड़े और वह झेंपता, सकुचाता शहर से सैक्स पावर बढ़ाने वाली दवा ला कर खाने लगा.

इस उपाय से कुछ दिन ही ठीकठाक गुजरे यानी निर्मला संतुष्ट रही, लेकिन कुछ दिन बाद फिर ढीले पड़ते संजय के साथ वह पहले की तरह व्यवहार करने लगी. जिस से संजय को घर नर्क और जिंदगी बेकार लगने लगी थी. अपनी अजीबोगरीब परेशानी वह किसी से साझा भी नहीं कर सकता था. क्योंकि बात शर्म वाली होने के साथसाथ इज्जत का कचरा कराने वाली भी थी.

सैक्स के साथसाथ अब जिंदगी की गाड़ी भी हिचकोले खाते चलने लगी थी. निर्मला अपनी बीमारी के हाथों मजबूर थी, इसलिए उस ने मोहल्ले के कम उम्र के लड़कों से दोस्ती गांठनी शुरू कर दी थी. वह उन से शारीरिक संबंध बनाने लगी थी. यह भनक जब संजय को लगी तो वह तिलमिला उठा, लेकिन खामोश रहा. क्योंकि बिना सबूत पत्नी पर इलजाम लगाना कोई तुक वाली बात नहीं थी.

एक दिन निर्मला ने बड़े प्यार से संजय से कहा कि वह उस की भी नौकरी कहीं लगवा दे, जिस से घर की आमदनी बढ़े. इस पेशकश को संजय ने यह सोचते हुए मान लिया कि निर्मला काम करेगी तो व्यस्त रहेगी. इस से संभव है उस की आदतों में सुधर आए. यह सोचते हुए उस ने निर्मला की नौकरी उसी स्कूल में लगवा दी, जहां वह माली का काम करता था.

स्कूल में काम करने की निर्मला की असली मंशा भी जल्द उजागर हो गई. उस ने वहां के नौजवान चपरासियों से ले कर बस कंडक्टर और ड्राइवरों तक से शारीरिक संबंध बना लिए. ऐसी बातें छिपी नहीं रहतीं. इस से संजय की ही बदनामी हो रही थी, पर वह बेबस था.

एक दिन तो उस वक्त हद हो गई जब उस ने अपने ही घर में निर्मला को एक लड़के के साथ रंगरेलियां मनाते हुए देख लिया. इस पर दोनों में खूब झगड़ा हुआ और निर्मला ने उलटे थाने में जा कर पति के खिलाफ मारपीट करने की शिकायत लिख कर दे दी. इस पर पुलिस वालों ने दोनों को समझाबुझा कर वापस भेज दिया. गुस्साई निर्मला मायके चली गई.

डेढ़ साल मायके में रह कर वह वापस आई तो बिलकुल नहीं बदली थी. संजय शायद उसे वापस नहीं लाता, पर बेटे के मोह ने उसे जकड़ रखा था. वापस आ कर निर्मला फिर से किसी न किसी को घर बुला कर सैक्स की भूख शांत करने लगी.

टोकने पर अब वह पूरी बेशरमी से संजय से कहने लगी थी कि जब तुम मेरी भूख नहीं मिटा सकते तो मेरे लिए लड़कों का इंतजाम करो और नहीं कर सकते तो आंखकान बंद किए रहो.

16 फरवरी, 2018 की शाम जब संजय सब्जी ले कर घर वापस आया तो यह देख शर्म से पानीपानी हो उठा कि निर्मला एक कम उम्र बच्चे के साथ सैक्स कर रही थी. गुस्साए संजय ने उसे डांटा तो वह पूरी बेशरमी से बोली कि जब तुम से कुछ नहीं होता तो चुप रहो, मेरा जब जहां जिस से मन करेगा, करूंगी.

इस जवाब पर संजय की हालत सहज समझी जा सकती थी, जो रोजरोज पत्नी की बेजा हरकतों के चलते तिलतिल कर मर रहा था और अब तो बदनामी भी होने लगी थी. किसी भी पति के लिए यह डूब मरने वाली बात थी.

इसी रात संजय जब सोने के लिए बिस्तर पर गया तो निर्मला उस के पास आ कर उसे सैक्स के लिए उकसाने लगी. मना करने का नतीजा और निर्मला के जहर बुझे जवाब संजय को मालूम थे, इसलिए उस ने यह सोचते हुए पूरी तरह आपा खो दिया कि इस मर्दखोर औरत की वासना तो कभी शांत होने वाली नहीं है. लिहाजा क्यों न इसे ही हमेशा के लिए शांत कर दिया जाए.

संजय ने कमरे में पड़ा लोहे का डंबल उठा कर निर्मला के सिर पर दे मारा. 2-3 प्रहार में ही उस की मौत हो गई. पत्नी की लाश के पास बैठ कर उस ने न जाने क्याक्या सोचा और फिर घबरा गया. फांसी का फंदा संजय को अपनी गरदन पर लटकता हुआ दिख रहा था.

कुछ देर और सोचने के बाद उस ने भाग जाने का फैसला ले लिया और रसोई में जा कर निर्मला की कब्र खोदनी शुरू कर दी. एक घंटे में 2 फीट गहरा गड्ढा खुद गया तो उस ने लाश उस में डाल कर ऊपर से ईंटें बिछा दीं.

घर के बाहर सूरज की रोशनी देख संजय को तब एक झटका और लगा जब उस ने गहरी नींद में सोए बेटे को देखा. अब उस का क्या होगा, इस खयाल से ही उस का दिल दहल गया कि इस मासूम का क्या कुसूर जो वह मांबाप के किए की सजा भुगते.

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यह सोचते ही उस ने थाने जा कर आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और वह बेटे को गोद में उठा कर नजदीकी तोरबा थाने की तरफ चल पड़ा. अब तक निर्मला की हत्या की खबर गांव वालों को भी लग चुकी थी, इसलिए कई लोग उस के पीछेपीछे थाने की तरफ चल दिए.

हालांकि उस के किए की खबर पहले से ही थाने पहुंच चुकी थी. हुआ यूं था कि स्कूल के एक शिक्षक आकाश उपाध्याय ने संजय को फोन कर के निर्मला को काम पर जल्द भेजने के लिए कहा था.

संजय ने बेहद सर्द आवाज में आकाश उपाध्याय को बता दिया था कि उस ने निर्मला की हत्या कर दी है और वह आत्मसमर्पण करने थाने जा रहा है. इस पर आकश ने थानाप्रभारी परिवेश तिवारी को यह खबर दे दी थी. पुलिस टीम अभी संजय को गिरफ्तार करने जा ही रही थी कि संजय थाने जा पहुंचा. बेटा समीर उस की गोद में था.

पुलिस पूछताछ में संजय की कहानी सामने आई तो उसे बहुत ज्यादा गलत न मानने वालों की भी कमी नहीं थी, पर गुनाह तो उस ने किया था, जिस की सजा मिलना भी तय था.

पुलिस टीम के साथ घर आ कर उस ने निर्मला की लाश और हत्या में प्रयुक्त डंबल बरामद करवा दिया और फिर खामोशी से हवालात में समीर को अपने सीने से चिपका कर बैठ गया. जिस ने भी सुना, वह अवाक  रह गया कि ऐसा भी होता है.

जब निर्मला के मांबाप समीर को ले जाने के लिए आए तो उस ने साफ इनकार कर दिया. उस का कहना था कि निर्मला के मांबाप को सब कुछ मालूम था, इस के बाद भी वे बेटी की तरफदारी करते थे. लिहाजा अदालत के आदेश पर पुलिस ने समीर को बालगृह भेज दिया.

संजय और क्या करता इस सवाल का सटीक जवाब किसी के पास नहीं था. वह पत्नी को छोड़ता तो भी बदनामी होती और निर्मला अपनी बीमारी छिपाए रखने के लिए झूठी रिपोर्ट पुलिस में लिखाती रहती.

तलाक के लिए अदालत जाता तो भी परेशान रहता, क्योंकि इस बीमारी को अदालत में साबित कर पाना आसान काम नहीं था. वजह जिन के साथ निर्मला ने संबंध बनाए थे, वे तो गवाही देने अदालत आते नहीं. दूसरे हर हालत में उसे पत्नी को गुजारा भत्ता तो देना ही पड़ता. वह जहां भी रहती, वहीं किसी न किसी मर्द से संबंध बनाने से नहीं चूकती.

ऐसे परेशान पतियों की मदद कोई नहीं करता. हालांकि खुद संजय ने भी इस मुसीबत से छुटकारा पाने की कोई खास कोशिश नहीं की और इसी बेबसी ने उसे मजबूर कर दिया कि वह अपनी कामुक पत्नी की हत्या कर दे.

थाने में पुलिस वालों की बातचीत से उसे पता चला कि निर्मला वाकई एक ऐसी सैक्सी बीमारी निंफोमेनिया की मरीज थी, जिस में औरत को सैक्स संतुष्टि नहीं मिलती. यह बीमारी एक लाख महिलाओं में से किसी एक को होती है, जिस का इलाज मुमकिन है बशर्ते कोई विशेषज्ञ डाक्टर की देखरेख में हो.

जाहिर है, यह संजय के वश की बात नहीं थी और जो थी उसे उस ने अंजाम दे डाला. इस बाबत कोई शर्मिंदगी या पछतावा भी उसे नहीं था. उस की एकलौती चिंता समीर और उस का भविष्य है.

केंद्रीय कर्मचारियों को पैंशन के लिए आधार जरूरी नहीं

केंद्र सरकार के कई पूर्व कर्मचारियों की अकसर यह शिकायत रहती है कि आधारकार्ड नहीं होने के कारण उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पैंशन नहीं मिल रही है.

केंद्र सरकार के कई पूर्व कर्मचारियों की अकसर यह शिकायत रहती है कि आधारकार्ड नहीं होने के कारण उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद पैंशन नहीं मिल रही है. कई कर्मचारियों ने भारतीय विशिष्ट पहचान संख्या प्राधिकरण से आधारकार्ड नहीं बनवाया. इस की वजह है कि वे सरकारी कर्मचारी सेवाकाल में अपने पहचानपत्र के सब जगह चलने के कारण आधारकार्ड को महत्त्व नहीं देते.

आधारकार्ड एक विशिष्ट पहचानपत्र है इसलिए यह हर व्यक्ति के पास होना चाहिए. यह पासपोर्ट या चुनाव मतदाता पहचानपत्र से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह बायोमैट्रिक आधार पर तैयार किया जाता है. ऐसा है तो फिर कोई भी व्यवस्था से ऊपर नहीं होना चाहिए, लेकिन देश की सब से बड़ी भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी केंद्रीय कर्मचारी होते हैं और शासनप्रशासन में उन्हीं की चलती है. अपनी सुविधा के लिए वे जो चाहते हैं, करते हैं. सरकार उन की बात मानने के लिए एक तरह से बाध्य होती है. उन्हें लगता है कि यदि वे आम आदमी की तरह आधारकार्ड बनावाएंगे तो उन की विशिष्टता को ठेस पहुंचेगी. इसी अहंकार के चलते आईएएस लौबी ने सरकार पर दबाव बनाया और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र प्रसाद से कहलाया कि केंद्रीय कर्मचारियों के लिए पैंशन पाने के लिए आधारकार्ड जरूरी नहीं है.

केंद्र सरकार के पूर्व सामान्य कर्मचारियों को भी इस घोषणा का लाभ मिलेगा, यह संतोष की बात है. केंद्र सरकार के 48.41 लाख कर्मचारी हैं और 61.4 लाख कर्मचारी पैंशनभोगी हैं. इन कर्मचारियों के लिए अब आधार पहचान के वास्ते आवश्यक नहीं है, लेकिन उस का इस्तेमाल जीवन प्रमाणपत्र के लिए ये कर्मचारी कर सकेंगे. इस व्यवस्था का विरोध नहीं है, लेकिन देश के हर नागरिक की पहचान का माध्यम एक होने पर किसी के विशेष होने का अहंकार सेवानिवृत्ति के बाद खत्म तो होना ही चाहिए.

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