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ब्रेकफास्ट रैसिपीज : अचारी सत्तू परांठा

अचारी सत्तू परांठा

सामग्री

– 1 कप आटा

– 1/2 छोटा चम्मच अजवायन दरदरी कुटी

– 1 बड़ा चम्मच मोयन के लिए तेल

– आटा गूंधने के लिए पर्याप्त कुनकुना पानी

– परांठे सेंकने के लिए थोड़ा सा रिफाइंड औयल

– नमक स्वादानुसार.

सामग्री भरावन की

– 1/2 कप सत्तू

– 1 बड़ा चम्मच आम का अचार गुठलीरहित

– 2 छोटे चम्मच अचार का तेल

– 1/2 छोटे चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट

– 1 बड़ा चम्मच प्याज बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच धनियापत्ती कटी

– नमक स्वादानुसार.

विधि

आटे में मोयन, अजवायन और नमक डाल कर गूंध कर 20 मिनट के लिए ढक कर रख दें. अचार को बारीक पीस लें. सत्तू में सारी सामग्री मिला दें. आटे की मीडियम आकार की लोइयां बना कर हाथ से थपथपाएं. बीच में 1 बड़ा चम्मच सत्तू वाला मिश्रण भर कर बंद कर दें. परांठा बेल कर गरम तवे पर तेल लगा कर करारा सेंक लें. दही या चटनी के साथ सर्व करें.

जीजा से जब लड़े नैन : अवैद्य संबंधों के फेर में गई जान

दिल्ली जल बोर्ड में नौकरी करने वाला संजीव कौशिक अपनी पत्नी अंजू कौशिक को हर तरह से खुश रखता था. वह जो भी मांग करती, संजीव उसे जल्द से जल्द पूरी करने की कोशिश करता था. इस के बावजूद भी अंजू उसे पहले की तरह प्यार नहीं करती. आए दिन पति के प्रति उस का व्यवहार बदलता जा रहा था. बेटे के भविष्य को देखते हुए संजीव अपने घर में कलह नहीं करना चाहता था पर अंजू उस की बात को गंभीरता से समझने की कोशिश नहीं कर रही थी.

संजीव फरीदाबाद की ग्रीनफील्ड कालोनी का रहने वाला था. दिल्ली ड्यूटी करने के बाद जब वह घर पर पहुंचता तो घर वाले अंजू के बारे में बताते कि वह बेलगाम हो कर अकेली पता नहीं कहांकहां घूमती है. संजीव इस बारे में जब पत्नी से पूछता तो वह उलटे उस से झगड़ने पर आमादा हो जाती थी. इस के बाद संजीव को भी गुस्सा आ जाता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस तरह उन दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

संजीव अपने स्तर से यही पता लगाने की कोशिश करने लगा कि आखिर उस की पत्नी का किस के साथ चक्कर चल रहा है. पर उसे इस काम में सफलता नहीं मिल सकी. आखिर इसी साल जनवरी महीने में जब अंजू घर से भाग गई तो हकीकत सामने आई. पता चला कि अंजू के अपने ही ननदोई यानी संजीव के बहनोई राजू के साथ ही नाजायज संबंध थे.

जबकि संजीव का शक किसी मोहल्ले वाले पर था, लेकिन उसे क्या पता था कि उस का बहनोई ही आस्तीन का सांप बना हुआ है. अंजू जब राजू के साथ भागी थी तो अपने बेटे को भी साथ ले गई थी. तब संजीव ने फरीदाबाद के सेक्टर-7 थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. इस के करीब एक महीने बाद अंजू को करनाल से बरामद किया गया था.

घर लौटने के बाद अंजू ने अपने किए की पति से माफी मांगी और भविष्य में राजू से न मिलने का वादा भी किया था. संजीव ने उसे माफ कर फिर से स्वीकार कर लिया. लेकिन कहते हैं कि चोर चोरी भले छोड़ दे लेकिन हेराफेरी नहीं छोड़ता. यही हाल अंजू का भी था.

कुछ दिनों तक तो अंजू ठीक रही लेकिन जब उसे अपने ननदोई यानी प्रेमी राजू की याद आती तो वह बेचैन रहने लगी. उधर राजू भी अंजू से मिलने के लिए बेताब था.

दोनों ही जब एकदूसरे से मिलने के लिए मचलने लगे तब वे चोरीछिपे मिलने लगे. संजीव को जब पता चला तो उस ने पत्नी को समझाया पर वह नहीं मानी.

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वैसे भी जब किसी महिला के एक बार पैर फिसल जाते हैं तो वह रोके से भी नहीं रुकते. क्योंकि अवैध संबंधों की राह बड़ी ही ढलवां होती है. उस राह पर यदि कोई एक बार कदम रख देता है तो उस का संभलना मुश्किल होता है. यही हाल अंजू का हुआ.

संजीव अंजू के चालचलन से बहुत परेशान हो चुका था. उस की वजह से उस की रिश्तेदारियों में ही नहीं, बल्कि मोहल्ले में भी बदनामी हो रही थी. पत्नी को समझासमझा कर वह हार चुका था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसी बदचलन पत्नी का क्या करे. पत्नी की वजह से वह तनाव में रहने लगा.

17 मार्च, 2018 को भी किसी बात को ले कर संजीव का पत्नी से झगड़ा हो गया. उस समय उस का 15 वर्षीय बेटा मनन अपने ताऊ के यहां था. झगड़े के दौरान अंजू ने ड्रेसिंग टेबल से कैंची निकाल कर पति पर हमला कर दिया. बचाव की कोशिश में संजीव की छोटी अंगुली (कनिष्ठा) कट गई. अंगुली कटने पर संजीव के हाथों से खून टपकने लगा.

इस के बाद संजीव को गुस्सा आ गया. उस ने पत्नी से कैंची छीन कर उसी कैंची से उस की गरदन पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. उस ने उस की गरदन पर तब तक वार किए, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. इस के बाद उस ने उस की गरदन काट कर अलग कर दी.

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पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव ने खून से सने अपने हाथपैर साफ किए और कपड़े बदल कर उस ने कहीं भाग जाने के मकसद से एक बैग में अपने कुछ कपड़े भर लिए. फिर वह अपने बड़े भाई के पास गया. वहां मौजूद बेटे ने बैग के बारे में पूछा तो उस ने बता दिया कि इस में कपड़े हैं जो धोबी को देने हैं. फिर वह वहां से चला गया.

दोपहर करीब एक बजे मनन जब घर पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. उस ने पड़ोसियों से अपनी मां के बारे में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. पिता को फोन मिलाया तो वह भी बंद मिला. तब उस ने फोन कर के अपने ताऊ को वहां बुला लिया.

ताऊ ने शक होने के बाद पुलिस को सूचना दी. पुलिस जब वहां पहुंची तो आसपास के लोग जमा थे. कमरे का ताला तोड़ कर पुलिस जब कमरे में गई तो बैडरूम में अंजू की लाश पड़ी थी, जिस का सिर धड़ से अलग था. फिर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पत्नी की हत्या करने के बाद संजीव 3 दिनों तक इधरउधर घूमता रहा. बाद में उसे लगा कि चाहे वह कितना भी छिपा रहे, पुलिस एक न एक दिन उसे गिरफ्तार कर ही लेगी. यही सोच कर उस ने खुद ही न्यायालय में आत्मसमर्पण करने का फैसला ले लिया और 21 मार्च, 2018 को फरीदाबाद न्यायालय में पहुंच कर आत्मसमर्पण कर दिया.

कोर्ट ने इस की सूचना डीएलएफ क्राइम ब्रांच को दे दी. तब क्राइम ब्रांच के इंचार्ज अशोक कुमार कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने संजीव कौशिक को गिरफ्तार कर पूछताछ की, जिस में संजीव ने अपना अपराध स्वीकार कर पत्नी की हत्या में प्रयुक्त कैंची आदि पुलिस को बरामद करा दी. पुलिस ने संजीव कौशिक से पूछताछ के बाद उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

डेढ़ सौ करोड़ की ठगी : लालच दे कर ठगना है आसान

जमाकर्ताओं के करीब 150 करोड़ रुपए से ज्यादा हड़पने के आरोपी खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसाइटी के चेयरमैन विक्रम सिंह राजपुरोजित को लंबे समय बाद आखिर सिरोही पुलिस ने पकड़ ही लिया. पुलिस ने उसे 9 जनवरी, 2018 को जोधपुर से गिरफ्तार कर लिया.

करीब डेढ़ साल पहले सोसायटी में परिपक्व हो चुकी अपनी जमापूंजी लेने निवेशक सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के हैड औफिस पहुंचे तो उस समय उन्हें किसी तरह झांसा दे कर टाल दिया गया था. पर सोसायटी कर्मचारियों की बहानेबाजी ज्यादा दिनों तक नहीं चली.

निवेशकों को जब बारबार टरकाया जाने लगा तो वे परेशान होने लगे. फिर जुलाई 2016 में सोसायटी की सभी शाखाओं में ताले लटक गए तो निवेशकों को अपने ठगे जाने का अहसास हुआ. इस के बाद निवेशकों ने अलगअलग थानों में सोसायटी संचालकों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी थीं.

लोगों ने जोधपुर, पाली, सिरोही, पिंडवाड़ा, गुजरात के दमन व दीव समेत कई जगहों पर उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए. शुरुआत में संबंधित थानों की पुलिस भी केवल मामले दर्ज कर उन्हें रफादफा कराने की कोशिश में रही, लेकिन जब इस डेढ़ सौ करोड़ की ठगी की बात उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आई तो थाना पुलिस हरकत में आ गई.

विक्रम सिंह ने सन 1992 में सिरोही जिले के पालड़ीएम कस्बे से स्टोन क्रैशर लगा कर व्यवसाय शुरू किया था. जल्द ही उस के दिमाग में मोटा पैसा कमाने का आइडिया आया तो उस ने सन 2003 में खेतेश्वर अरबन क्रैडिट सोसायटी बनाई.

विक्रम सिंह ने अपने एक भाई राजवीर सिंह को सोसायटी का एमडी और दूसरे भाई शैतान सिंह को सोसायटी का पीआरओ बना दिया था. सोसायटी की ओर से वलसाड़, वापी, सेलवास, दमन, सरीगांव, उमरगांव, धरमपुर और चिखली में कुल मिला कर 9 ब्रांच खोली गई थीं.

गुजरात के अलावा उस ने गोवा, दमन, दादर व नगर हवेली में भी सोसायटी की शाखाएं खोली थीं. इन सभी में मैनेजर और अन्य स्टाफ की नियुक्तियां की गईं. इस के बाद आकर्षक जमा योजनाओं के जरिए लोगों से पैसे जमा कराए गए.

लोगों में विश्वास बढ़ाने के लिए इन्होंने स्थानीय लोगों को अपनी शाखाओं में नौकरी पर रखा. हालांकि बीच में जब किसी जमाकर्ता की मियाद पूरी हुई तो उन्हें रकम लौटाई भी गई, लेकिन उसी दौरान दूसरी आकर्षक योजनाएं भी लाई गईं, जिस से ग्राहक अपनी परिपक्व हुई राशि को फिर से सोसायटी में जमा करा दे.

जमा कराए लोगों के पैसों से सोसायटी के अध्यक्ष विक्रम सिंह राजपुरोहित ने सिरोही, पाड़ीव, आबू रोड, तलेटी, नयासानवाड़ा, पिंडवाड़ा, रामपुरा, अहमदाबाद, अंबाजी, मुंबई आदि जगहों पर अपने और रिश्तेदारों के नाम से करोड़ों रुपए की बेनामी संपत्ति खरीदी.

इतना ही नहीं, उस ने अपनी ही सोसायटी से अपने नाम 12 करोड़ का लोन भी लिया था. इस तरह लोगों को करीब डेढ़ सौ करोड़ का चूना लगा कर शातिरदिमाग विक्रम सिंह फरार हो गया.

फरारी के बाद वह नेपाल, गोवा, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा आदि जगहों पर घूमता रहा. कोई उसे पहचान न सके, इस के लिए वह साधु के भेष में रहता था. कभीकभी वह सपेरा भी बन जाता था. जोधपुर में वह महामंदिर इलाके में किराए पर मकान ले कर भी रहा था. वहां वह अपने भतीजे के संपर्क में था.

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पिछले डेढ़ साल से पुलिस पर विक्रम को पकड़ने का दबाव था, लेकिन वह पुलिस को लगातार चकमा दे कर बच निकलता था. उस की गिरफ्तारी पुलिस के लिए एक चुनौती बनी हुई थी, लेकिन सिरोही के एसपी ओमप्रकाश के निर्देश पर उस की गिरफ्तारी के लिए एक गोपनीय योजना बनाई गई, जिस की जानकारी केवल 2 लोगों को ही थी. एक थाना सिरोही के सीआई आनंद कुमार और दूसरे कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को.

उन्हें यह निर्देश दिया गया था कि किसी भी तरह विक्रम सिंह का पता लगा कर उसे गिरफ्तार किया जाए. ये दोनों क्या प्लान कर रहे हैं, कहां आजा रहे हैं, यह बात थाने में किसी को भी पता नहीं रहती थी.

कांस्टेबल योगेंद्र सिंह जब भी विक्रम सिंह की तलाश में बाहर गए, तब उन्होंने जरूरी काम बता कर थाने से छुट्टी ली थी. 3-4 दिन तक तलाश कर के वे वापस लौट आते, दोबारा जाते तो भी छुट्टी ले कर ही जाते थे.

उधर विक्रम सिंह भी इतना शातिर था कि वह कभी मोबाइल से बात तक नहीं करता था. बहुत जरूरी होने पर विक्रम सिंह किसी नए फोन नंबर से बात करता था. इस के बाद वह तुरंत अपनी लोकेशन बदल लेता था. ऐसे में पुलिस के लिए यह चुनौती बन जाती थी कि लोकेशन को कैसे ट्रेस किया जाए.

पुलिस अपने मुखबिरों का भी सहारा ले रही थी. मुखबिरों की सूचनाओं पर काम किया गया. आखिरकार इन दोनों पुलिसकर्मियों की मेहनत रंग लाई. ये दोनों ही उस का करीब एक महीने से पीछा कर रहे थे.

कांस्टेबल योगेंद्र सिंह को पक्की खबर मिली कि आरोपी विक्रम सिंह जोधपुर में ही है. इस पर उन के साथ एक एसआई को भेजा गया. एसआई को यह नहीं पता था कि किस की गिरफ्तारी के लिए निकले हैं.

आखिर 9 जनवरी, 2018 को विक्रम सिंह जोधपुर में पुलिस के हत्थे चढ़ गया. उसे जोधपुर से सिरोही ला कर पूछताछ की गई. फिर पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर के उस का रिमांड लिया और विस्तार से पूछताछ की. सीआई आनंद कुमार 13 जनवरी को विक्रम सिंह राजपुरोहित को सिरोही स्थित खेतेश्वर सोसायटी के कार्यालय पर ले गए.

पुलिस ने कार्यालय की चाबी के बारे में विक्रम सिंह से पूछा तो उस ने चाबी की जानकारी होने से मना कर दिया. इस पर पुलिस ने ताला खोलने वाले एक युवक को बुला लिया. लेकिन वहां उन्हें मुख्य दरवाजे पर लगा ताला कुंदे समेत पहले से ही टूटा मिला.

मुख्य दरवाजे से लगते दूसरे दरवाजे पर इंटरलौक जरूर था, लेकिन वह भी अंदर से तोड़ा हुआ था. अंदर की अलमारी को तोड़ने पर उस में पुराने रेकौर्ड मिले.

इस के साथ ही उसी अलमारी के अंदर एक लौकर और था, उस में एक हजार व 500 का एकएक पुराना नोट मिला. कुछ नोट और पूजा सामग्री भी मिली. पुलिस जब खेतेश्वर सोसायटी के सिरोही कार्यालय पहुंची तो वहां लाइट कनेक्शन कटा मिला. पुलिस को टौर्च व मोबाइल की रोशनी में जांच करनी पड़ी.

काररवाई के दौरान विक्रम सिंह भी साथ था. उस ने खुद पुलिस को फाइलों के बारे में जानकारी दी कि किस से संबंधित कौन सी फाइल है.

पुलिस ने कार्यालय में रखी फाइलों और अन्य दस्तावेजों के बारे में जानकारी ली. इन फाइलों में लोगों की एफडी, बैंकों में पूर्व में जमा करवाए गए पैसों का लेखाजोखा था. पुलिस का कहना है कि विक्रम सिंह ने रेकौर्ड के अलावा अन्य दस्तावेज अपने बड़े भाई शैतान सिंह व छोटे भाई राजवीर सिंह के पास बताए होने की बात कही.

पुलिस का कहना है कि ये सभी पुराने लेनदेन का रेकार्ड है, जो सन 2010 से पहले के हैं. उस के बाद के कागजातों के बारे में भी पूछताछ की गई. कार्यालय में मैनेजर के कमरे की टेबल के पास कुछ कागजातों को जलाए जाने के भी सबूत मिले.

जांच से संबंधित तमाम दस्तावेज पुलिस थाने ले आई. पूछताछ में पता चला कि उस ने सोसायटी के माध्यम से हजारों लोगों की खूनपसीने की कमाई से करीब डेढ़ सौ करोड़ रुपए ठगे थे. यहां एक बात यह भी बता दें कि खेतेश्वर सोसायटी में रुपए जमा करने वाले सब से ज्यादा जमाकर्ता सिरोही जिले के ही थे.

विक्रम सिंह की गिरफ्तारी के बाद जमाकर्ताओं को उम्मीद बंधी है कि शायद उन के खूनपसीने की कमाई उन्हें वापस मिल जाए. विक्रम सिंह और उस की खेतेश्वर सोसायटी के खिलाफ जमाकर्ताओं ने जहांजहां रिपोर्ट दर्ज कराई थी, वहां की पुलिस भी विक्रम सिंह से पूछताछ की तैयारी में थी.

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विक्रम सिंह के एक भाई श्याम सिंह पुरोहित भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं. ठगी का मामला सामने आने पर विक्रम के भाई श्याम सिंह ने मीडिया के सामने आ कर सफाई दी कि पिछले लंबे समय से उन का विक्रम सिंह से कोई वास्ता नहीं रहा. वह घर आताजाता भी नहीं और यहां तक कि उस से बोलचाल तक नहीं है. साथ ही यह भी कि 4 महीने पहले जब उन की पत्नी की मृत्यु हो गई, तब भी वह घर पर नहीं आया था.

पुलिस विक्रम सिंह के उन भाइयों को भी गिरफ्तार करेगी जो सोसायटी में शामिल थे और उन तमाम शाखाओं के मैनेजरों से भी पूछताछ करेगी, जिन्होंने सोसायटी के माध्यम से लोगों को अच्छा रिटर्न देने का वादा कर के उन की खूनपसीने की कमाई हड़प ली थी.

कथा लिखने तक विक्रम सिंह की जमानत नहीं हो सकी थी. कोर्ट के आदेश पर उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ओमप्रकाश राजभर ने पीलिया का ही श्राप क्यों दिया

उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने लोगों को बड़ा विचित्र सा श्राप दिया है कि जो भी किसी और की रैली में जाएगा उसे पीलिया होगा. और वह राजभर यानी उन की दवाई से ही ठीक होगा. श्राप देना हर कोई जानता है कि पौराणिकवादियों का काम है जो लोगों को भगवान का डर दिखा कर अपनी दुकानदारी चमकाते रहते हैं.

ओमप्रकाश हालांकि घोषिततौर पर पीलिया की दवा नहीं बनाते हैं लेकिन उन के इस दुर्वासाई श्राप से यह बात जरूर सोचने में आती है कि उन्होंने उलटी, दस्त, वायरल, फीवर या डायबिटीज का श्राप क्यों नहीं दिया, पीलिया को ही क्यों चुना. पीलिया पीडि़तों से कई झाड़फूंक वालों की दुकानें चल रही हैं, ऐसे में उन के श्राप से बचने के लिए कई लोग प्रीपीलिया झाड़फूंक के लिए ओझाओं के पास पहुंचने लगे हैं. उत्तर प्रदेश वाकई विचित्र है जहां मंत्री कामकाज करने के बजाय श्राप दे कर सत्ता चला रहे हैं. इन्हें पीलियाश्री का पुरस्कार दिया जाना हर्ज की बात नहीं.

 

खूनी बन गई झूठी मोहब्ब्त : उतरा कमलप्रीत की शराफत का चोला

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत कौर अपने पति हरजिंदर सिंह से यह कहते हुए घर से निकली थी कि उस के मायके में किसी की तबीयत खराब है, इसलिए वह राहुल को ले कर वहां जा रही है. पत्नी की यह बात सुन र हरजिंदर ने कहा, ‘‘ठीक है, हो आओ. ज्यादा परेशानी वाली बात हो तो तुम मुझे फोन कर देना. मैं भी पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘हां, तुम्हारी जरूरत हुई तो फोन कर दूंगी और कोई ज्यादा चिंता वाली बात नहीं हुई तो 2 दिन में वापस लौट आऊंगी.’’ कमलप्रीत बोली.

मूलरूप से पंजाब के जिला पटियाला के गांव बल्लोपुर की रहने वाली थी कमलप्रीत. करीब 12 साल पहले जब वह 19 बरस की थी, तब उस की शादी हरियाणा के गांव गणौली के रहने वाले हरजिंदर सिंह से हुई थी. यह गांव जिला अंबाला की तहसील नारायणगढ़ के तहत आता है.

शादी के ठीक एक साल बाद कमलप्रीत ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम राहुल रखा गया. इन दिनों वह गांव के सरकारी स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

हरजिंदर का अपना खेतीबाड़ी का काम था, जिस में वह काफी व्यस्त रहता था. कमलप्रीत घर पर रहते हुए चौकेचूल्हे से ले कर सब कम संभाले हुए थी. जो भी था, सब बड़े अच्छे से चल रहा था. पतिपत्नी में खूब प्यार था. दोनों में अच्छी अंडरस्टैंडिंग भी थी. दोनों अपने बच्च् ों का भी सलीके से ध्यान रखे हुए थे. काफी दिनों से राहुल पिता से कहीं घुमा लाने की जिद कर रहा था तो पिता ने उस से पक्का वादा किया था कि वह उस के इम्तिहान खत्म होने के बाद उसे 2 दिन के लिए घुमाने शिमला ले चलेगा.

मगर पेपर खत्म होने के अगले रोज ही उसे अपनी मां के साथ नानी के यहां जाना पड़ गया. पत्नी के मायके जाने वाली बात पर हरजिंदर को कोई परेशानी वाली बात नहीं थी. पति की निगाह में कमलप्रीत एक सुलझी हुई मेहनती औरत थी, जो ससुराल के साथसाथ अपने मायके वालों का भी पूरा ध्यान रखती थी.

सुखदुख में वह अपने अन्य रिश्तेदारों के यहां भी अकेली आयाजाया करती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि हरजिंदर को पत्नी की तरफ से कोई चिंता नहीं थी. इसलिए जब वह 19 मार्च को बेटे के साथ मायके के लिए घर से अकेली निकली तो हरजिंदर ने कोई चिंता नहीं की.

उसी रोज शाम के समय हरजिंदर ने पत्नी को यूं ही रूटीन में फोन कर के पूछा, ‘‘हां कमल, पहुंचने में कोई परेशानी तो नहीं हुई? बल्लोपुर पहुंच कर तुम ने फोन भी नहीं किया?’’

‘‘हांहां…वो ऐसा है कि अभी मैं बल्लोपुर नहीं पहुंच पाई.’’ कमलप्रीत बोली तो उस की आवाज में हकलाहट थी.

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पत्नी की ऐसी आवाज सुन कर हरजिंदर को थोड़ी घबराहट होने लगी. उस ने पूछा, ‘‘बल्लोपुर नहीं पहुंची तो फिर कहां हो?’’

‘‘अभी मैं शहजादपुर में हूं. किसी जरूरी काम से मुझे यहां रुकना पड़ गया.’’ कमलप्रीत ने पहले वाले लहजे में ही जवाब दिया.

‘‘शहजादपुर में ऐसा क्या काम पड़ गया तुम्हें? वहां तुम किस के यहां रुकी हो? सब ठीक तो है न? बताओ, कोई परेशानी हो तो मैं भी आ जाऊं क्या?’’

‘‘सब ठीक है, घबराने वाली कोई बात नहीं है. अच्छा, मैं फ्री हो कर अभी कुछ देर बाद फोन करती हूं. तब सब कुछ विस्तार से भी बता दूंगी.’’ कहने के साथ ही कमलप्रीत की ओर काल डिसकनेक्ट कर दी गई.

लेकिन हरजिंदर की घबराहट बढ़ गई थी. उस ने कमलप्रीत का नंबर फिर से मिला दिया. पर अब उस का फोन स्विच्ड औफ हो चुका था.

अचानक यह सब होने पर हरजिंदर का फिक्रमंद हो जाना लाजिमी था. कुछ नहीं सूझा तो उस ने उसी समय अपनी ससुराल के लैंडलाइन नंबर पर फोन किया. यहां से उसे जो जानकारी मिली, उस से उस के पैरों तले की जमीन सरक गई. ससुराल से उसे बताया गया कि यहां तो घर में कोई बीमार नहीं है और न ही कमलप्रीत के वहां आने की किसी को कोई जानकारी थी.

अब हरजिंदर के लिए एक मिनट भी रुके रहना संभव नहीं था. उस ने अपनी मोटरसाइकिल उठाई और शहजादपुर की ओर रवाना हो गया. रास्ते भर वह कमलप्रीत को फोन भी मिलाता रहा था, पर हर बार उसे फोन के स्विच्ड औफ होने की ही जानकारी मिलती रही.

आखिर वह शहजादपुर जा पहुंचा. पत्नी और बच्चे की तलाश में उस ने उस गांव का चप्पाचप्पा छान मारा मगर पत्नी और बेटे राहुल के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वहां से वह मोटरसाइकिल से ही अपनी ससुराल बल्लोपुर चला गया. कमलप्रीत को ले कर वहां भी सब परेशान हो रहे थे.

इस के बाद तो हरजिंदर सिंह और उस की ससुराल वालों ने कमलप्रीत व राहुल की जैसे युद्धस्तर पर तलाश शुरू कर दी. मगर कहीं भी दोनों मांबेटे के बारे में जानकारी हाथ नहीं लगी.

19 मार्च, 2018 का दिन तो गुजर ही गया था, पूरी रात भी निकल गई. 20 मार्च को भी दोपहर तक तलाश करते रहने के बाद सभी निराश हो गए तो हरजिंदर शहजादपुर थाने पहुंच गया. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह को उस ने पत्नी और बेटे के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी दे दी. थानाप्रभारी ने कमलप्रीत और उस के बेटे राहुल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. पुलिस ने अपने स्तर से दोनों मांबेटे को ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी.

देखतेदेखते इस बात को एक सप्ताह गुजर गया, मगर पुलिस भी इस मामले में कुछ कर पाने में असफल रही.

बात 26 मार्च, 2018 की थी. थानाप्रभारी शैलेंद्र सिंह उस वक्त अपने औफिस में थे. तभी एक अधेड़ उम्र के शख्स ने उन के सामने आ कर दोनों हाथ जोड़ते हुए दयनीय भाव से कहा, ‘‘सर, मेरा नाम ओमप्रकाश है और मैं यमुनानगर में रहता हूं.’’

‘‘जी हां, कहिए.’’ शैलेंद्र सिंह बोले.

‘‘अब क्या कहूं सर, एक भारी मुसीबत आन पड़ी है हमारे परिवार पर.’’

‘‘हांहां बताइए, क्या परेशानी है?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

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‘‘सर, मेरा एक भांजा है नीटू. उम्र उस की करीब 21 साल है. किसी बात पर उस का एक औरत से झगड़ा हुआ और हाथापाई में वह औरत मर गई. उस ने उस की लाश को कहीं ले जा कर दफन कर दिया. जब इस की जानकारी मुझे हुई तो हम ने उसे समझाया कि गलती हो जाने पर कानून से आंखमिचौली खेलने के बजाय पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना ही बेहतर होगा.’’ ओमप्रकाश ने बताया.

इस पर एकबारगी तो शैलेंद्र सिंह चौंके. फिर खुद को संभालने का प्रयास करते हुए बोले, ‘‘मतलब यह कि आप के भांजे ने किसी की जान ली, फिर उस की लाश भी ठिकाने लगा दी. अब सरेंडर का प्रस्ताव लेकर आए हो. तो यह भी बता दो कि किन शर्तों पर सरेंडर करवाओगे?’’

‘‘कोई शर्त नहीं सर. लड़का आप के सामने तो अपना अपराध कबूलेगा ही, अदालत में भी ठीक ऐसा ही बयान देगा. भले उसे कितनी भी सजा क्यों न हो जाए. बस आप से हमें सिर्फ इतना सहयोग चाहिए कि थाने में उस पर ज्यादा सख्ती न हो.’’ ओमप्रकाश ने कहा.

‘‘देखो, अगर वह हमें सहयोग करते हुए सच्चाई बयान करता रहेगा तो हमें क्या जरूरत पड़ी है उस से सख्ती से पेश आने की. जाओ, लड़के को ला कर पेश कर दो. यदि वह सच्चा है तो यहां उस के साथ किसी तरह की ज्यादती नहीं होगी.’’

‘‘ठीक है सर, मैं समझ गया. लड़का थाने के बाहर ही खड़ा है. मैं अभी उसे ला कर आप के सामने पेश करता हूं.’’ कहने के साथ ही ओमप्रकाश बाहर गया और थोड़ी ही देर में एक लड़के को ले कर थाने में आ गया.

‘‘यही है मेरा भांजा नीटू, सर.’’ उस ने बताया.

जिस वक्त ओमप्रकाश नीटू को ले कर थानाप्रभारी के औफिस में पहुंचा था, पुलिस वाले बगल वाले कमरे में एक अभियुक्त से गहन पूछताछ कर रहे थे. जरा सी देर में वहां से चीखचिल्लाहट की भयावह आवाजें आने लगी थीं.

ये आवाजें सुन कर नीटू थरथर कांपने लगा. फिर वह दबी सी आवाज में ओमप्रकाश से बोला, ‘‘मामा, ये लोग मेरा भी क्या ऐसा ही हाल करेंगे?’’

‘‘नहीं करेंगे बेटा, मैं ने एसएचओ साहब से सारी बात कर ली है. फिर जब तुम एकदम सच्चाई बयान कर ही रहे हो तो फिर डर कैसा?’’ ओमप्रकाश ने समझाया.

‘‘यही तो डर है मामा, मैं ने आप को भी पूरी सच्चाई नहीं बताई. दरअसल, मैं ने औरत के साथसाथ उस के बेटे का भी मर्डर कर दिया है और दोनों की लाशें एक साथ दफनाई हैं.’’

नीटू की यह बात थानाप्रभारी के कानों तक भी पहुंच गई थी. उन्होंने नीटू को खा जाने वाली नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘मुझे पहले ही से शक था कि तुम्हारे अपराध का संबंध गणौली की कमलप्रीत और उस के बच्चे की गुमशुदगी से है.

अब तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि तुम अपने घिनौने अपराध की सच्ची दास्तान अपने मामा को बता दो, वरना दूसरे तरीके से सच्चाई उगलवानी भी आती है.’’

थानाप्रभारी के इतना कहते ही ओमप्रकाश नीटू को ले कर एक दूसरे कमरे में ले गया. इस के बाद नीटू ने अपने अपराध की पूरी कहानी मामा को बता दी. नीटू के बताने के बाद ओमप्रकाश ने सारी कहानी थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने ओमप्रकाश के बयान दर्ज करने के बाद उसे घर भेज दिया फिर नीटू को गिरफ्तार कर उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से व्यापक पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने जो कुछ पुलिस को बताया, उस से अपराध की एक सनसनीखेज कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

करीब एक साल पहले की बात है. अपनी रिश्तेदारी के एक शादी समारोह में शामिल होने के लिए कमलप्रीत अकेली नारायणगढ़ के बड़ागांव गई थी. वहां जब वह नाचने लगी तो एक लड़के ने भी उस का खूब साथ दिया. उस ने बहुत अच्छा डांस किया था.

इस डांस के बाद भी दोनों एक साथ बैठ कर बतियाते रहे. लड़के ने अपना नाम सुमित उर्फ नीटू कहते हुए बताया कि यों तो वह शहजादपुर का रहने वाला है, मगर बड़ागांव में किराए का कमरा ले कर एक कंप्टीशन की तैयारी कर रहा है.

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कमलप्रीत उस की बातों से तो प्रभावित हो ही रही थी, उस का सेवाभाव भी उसे खूब पसंद आया. कमलप्रीत तो थकहार कर एक जगह बैठ गई थी, पार्टी में खाने की जिस चीज का भी उस ने जिक्र किया, वह ला कर उसे वहीं बैठी को खिलाता रहा.

इसी तरह काफी रात गुजर जाने पर कमलप्रीत को नींद सताने लगी. नीटू ने सुझाव दिया कि वह उसे अपने कमरे पर छोड़ आता है, जहां वह बिना किसी शोरशराबे के आराम से सो सकती है. थोड़ी झिझक के बाद वह मान गई.

अब तक नीटू को भी नींद आने लगी थी. अत: कमरे में चारपाई पर कमलप्रीत को सुलाने के बाद वह खुद भी जमीन पर दरी बिछा कर सो गया.

आगे का सिलसिला शायद इन के वश में नहीं था. रात के जाने किस पहर में दोनों की एक साथ आंखें खुलीं और बिना आगेपीछे की सोचे, दोनों एकदूसरे में समा गए. कमलप्रीत से नीटू 10 साल छोटा था, अत: उस मिलन के बाद कमलप्रीत उस की दीवानी हो गई.

इस के बाद यही सिलसिला चल निकला. दोनों किसी न किसी तरीके से, कहीं न कहीं मौजमस्ती करने का तरीका निकाल लेते.

देखतेदेखते एक बरस गुजर गया. अब कमलप्रीत ने नीटू से यह कहना शुरू कर दिया था कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर लेगी. मौजमस्ती तक तो ठीक था, कमलप्रीत की इस बात ने नीटू को परेशान कर डाला.

नीटू ने इस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए आखिर मन ही मन यह निर्णय लिया कि वह कमलप्रीत को अच्छी तरह से समझाएगा. फिर भी न मानी तो वह उस का खून कर देगा. इस के लिए उस ने एक चाकू भी खरीद कर रख लिया था.

19 मार्च, 2018 की सुबह कमलप्रीत उस के यहां आ धमकी. उस के साथ एक लड़का था, जिसे उस ने अपना बेटा बताया. आते ही उस ने कहा कि वह अपने पति को हमेशा के लिए छोड़ आई है. आगे वह उस से शादी कर के अपने लड़के सहित उसी के साथ रहेगी.

नीटू ने उसे समझाने की कोशिश की. लगातार समझातेसमझाते पूरा दिन और सारी रात भी निकल गई. मगर वह अपनी जिद पर अड़ी रही तो 20 मार्च को नीटू ने चाकू से कमलप्रीत की हत्या कर दी.

यह देख कर उस का लड़का राहुल सहम गया. मगर वह इस मर्डर का चश्मदीद गवाह बन सकता था. इसलिए नीटू ने चाकू से उस का भी गला रेत दिया. दोनों लाशों को कमरे में छिपा कर नीटू अमृतसर चला गया.

वहां गोल्डन टेंपल में उस ने वाहेगुरु से अपने इस गुनाह की माफी मांगी. रात में वापस आ कर बड़ागांव के पास से गुजर रही बेगना नदी की तलहटी में दोनों लाशों को दफन कर आया. इस के बाद वह अपने मामा के पास यमुनानगर चला गया, जिन्होंने उसे पुलिस के सामने सरेंडर करने का सुझाव दिया था.

पुलिस ने उस की निशानदेही पर न केवल चाकू बरामद किया बल्कि दोनों लाशें भी खोज लीं, जो जरूरी काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर नीटू को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में अंबाला की केंद्रीय जेल भेज दिया गया था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

आइडिया के संग वोडाफोन का विलय, पिछड़ जाएगा एयरटेल

देश की सब से बड़ी दूरसंचार कंपनी भारतीय एयरटेल अब शायद बाजार की हिस्सेदारी में निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनी आइडिया सैल्युलर से पिछड़ जाएगी. संचार बाजार में रिलायंस का जियो आने के बाद से हलचल मची है. सब के समक्ष बाजार में बने रहने की चुनौती है. एयरटेल ने अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए टैलीनौर से समझौता किया, लेकिन अब आइडिया और वोडाफोन का विलय हो रहा है. सरकार ने अपना पैसा वसूल करने की शर्त पर दोनों कंपनियों के विलय को मंजूरी दे दी है.

इस विलय के बाद आइडिया अब एयरटेल से ग्राहक संख्या में आगे निकल जाएगी. वोडाफोन को स्पैक्ट्रम, लाइसैंस शुल्क आदि का सरकार को 9 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान करना है. कंपनी विलय से पहले यह भुगतान करने को तैयार है. आइडिया सैल्युलर ने सरकार को बता दिया है कि वोडाफोन पर जो भी बकाया है वह खुद उस का भुगतान करने पर सहमत है. आइडिया के इस करारनामे के मद्देनजर सरकार से विलय की मंजूरी मिल गई है और दोनों कंपनियों के बीच जरूरी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर होने हैं. इस की भी लगभग सभी तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं.

दूरसंचार बाजार में रिलायंस जियो के निशुल्क सेवा देने और बाजार आधार बढ़ाने की रणनीति के बाद हड़कंप मचा हुआ है. एयरटेल के समक्ष बाजार का पहला खिलाड़ी होने का तमगा बचाने की चुनौती थी, इसलिए उस ने टैलीनौर जैसी कंपनियों का खुद में विलय भी किया, लेकिन पिछली कुछ तिमाहियों से कंपनी लगातार घाटे में चल रही है. आइडिया का यह समझौता निश्चितरूप से पहले नंबर की जंग में उसे जिता देगा. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि कारोबारी घरानों की इस जंग में उपभोक्ता संरक्षण बरकरार रहना चाहिए.

विपक्ष हुआ एकजुट

कर्नाटक में एक मंच पर मायावती, अखिलेश यादव, सोनिया गांधी, सीताराम येचुरी, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल को देख कर भाजपा को जो धक्का पहुंचा होगा वह 19 मई को रोतेकलपते बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक विधानसभा में देखने से ज्यादा संगीन है. कर्नाटक का हाथ से निकल जाना एक बात है, विरोधी जमा हो जाएं यह बात दूसरी. बड़ी बात है कि ये सब दल जातियों पर आधारित हैं. इन के पास अपनेअपने निचली व पिछड़ी जातियों के वोट बैंक हैं जिन्हें हिंदू हिसाब से अछूत व शूद्र कहा जाता है. इन्हें एकसाथ देख कर एक नए समाज की पहली नींव डलना कहा जा सकता है. यह आज महसूस नहीं हो रहा क्योंकि इस सारे समारोह को सिर्फ कर्नाटक की एक नई सरकार के बनने की तरह पेश किया गया है.

मुट्ठीभर ऊंची जातियों ने सदियों से निचलों और पिछड़ों पर सामाजिक कहर ढा कर अपना ही नुकसान किया है. उन्हें लगता रहा है कि धर्म की चाशनी के सहारे उन्हें बिन पैसे के गुलाम मिलते रहे हैं पर असल में उन्हें सदा खुद से नाराज, बीमार, कमजोर, भूखों के साथ रहना पड़ा जिस का फर्क उन की खुद की अमीरी पर पड़ा. उन से काम तो कराया गया पर वह काम बहुत अच्छा न था क्योंकि वे पढ़ेलिखे समझदार न थे. आज निचलेपिछड़े समझदार हो चले हैं. हां, उन में भी धार्मिक कट्टरता भरी है पर उन्हें समझ आ रहा है कि ऊंचों के देवताओं के दासों या अवैध बच्चों को पूज कर वे कभी ऊंचों के बराबर नहीं बैठ पाएंगे. उन्होंने सोचा था कि नरेंद्र मोदी भाजपा को नया रंग देंगे, बराबरी का घोल पिलाएंगे, पैसा दिलाएंगे, साफ सरकार देंगे पर नरेंद्र मोदी तो खुद ही कट्टरपंथी सोच वालों से घिरे हैं. वे जितना दम भर लें कि फैसले वे लेते हैं पर उन के फैसलों पर कहीं और मुहर लगती है.

निचलों और पिछड़ों की नई पौध अब खरपतवार की तरह नहीं रहना चाहती कि जो चाहे कुचल दे. वह खुद बड़े पेड़ बनना चाहती है जिस में फल लगें, फूल लगें. उसे समझ आ गया है कि भाजपा यह नहीं कर सकती क्योंकि वह पौराणिक सोच से नहीं उबर सकती. यही वजह है कि 3 दिन सरकार में रहने पर भी भाजपा के अमित शाह कांग्रेस और जनता दल (सैक्यूलर) के एक भी विधायक को तोड़ न पाए. अब तक भाजपा दिल्ली राज्य में अरविंद केजरीवाल की पार्टी से एक भी सीट न छीन पाई है न एक भी विधायक तोड़ पाई है. विपक्षी दलों का एक मंच पर आने का मतलब है विपक्ष में सदियों से रह रही जातियों का जातिगत मतभेद भुलाने की कोशिश करना. सोनिया और राहुल गांधी ने इस में अहम रोल अदा किया है और वे हर राज्य में सदियों से एकदूसरे से नफरत करती निचलीपिछड़ी जातियों के नेताओं को एक मेज पर बैठा सकते हैं. अब भाजपा को वे मुद्दे उछालने होंगे जिन से पिछड़ों में आपसी फूट पड़े और निचलों में आपसी. सदियों से फार्मूले चलते आ रहे हैं पर बुरा हो कि कर्नाटक में एक बार तो हर वर्ग के लोग एक पब्लिक मंच पर बराबर की हैसियत से आए.

यह सामाजिक बदलाव की शुरुआत है तो देश को चीन बनते देर न लगेगी. इस देश में चीन से ज्यादा काम करने की ताकत व सूझबूझ है.

क्रेडिट कार्ड पर फायदे की ये हैं 5 बातें

भारत में क्रेडिट कार्ड का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. ऑनलाइन शॉपिंग हो या रिटेल स्‍टोर से खरीदारी, रेस्‍टोरेंट से लेकर मूवी के टिकट के लिए सभी दिल खोल कर क्रेडिट कार्ड का इस्‍तेमाल करते हैं. यदि आपके पास क्रेडिट कार्ड नहीं है, तो आपके पास कार्ड के लिए दिन भर में दो से तीन फोन आ जाते हैं. वहीं यदि आपके पास कार्ड है तो दूसरी कंपनी के कार्ड, अपनी ही कंपनी का एडिशनल कार्ड जैसे शानदार ऑफर भी मिलते हैं. लेकिन बैंक कई बार क्रेडिट कार्ड से जुड़ी कुछ महत्‍वपूर्ण शर्तें आपसे छिपा लेते हैं.

फ्री ईएमआई स्‍कीम लेने के पहले जाने शर्तें

अक्‍सर बैंक अपने प्रिविलेज कस्‍टमर्स को फ्री ईएमआई या फिर क्रेडिट कार्ड पर जीरो परसेंट पर ईएमआई का वादा करते हैं. लेकिन बैंक शायद ही आपको जीरो ईएमआई से जुड़ी शर्तों को पढ़ने या समझने का समय देते हैं. आपको मालूम होना चाहिए कि जीरो प्रतिशत ब्याज पर ईएमआई पर नियम एवं शर्तें लागू होती हैं. अगर एक भी शर्त का उल्लंघन करते हैं तो 5 या 10 नहीं बल्कि 20 प्रतिशत से भी ज्यादा ब्याज चुकाना पड़ सकता है.

समय पर प्‍वाइंट रिडीम्‍ड जरूरी

बैंक आपको कभी भी खुद से नहीं बताता है कि आप अपने प्वाइंट्स को कैसे रिडीम कर सकते हैं. ऐसे में जानकारी न होने से लाखों प्वाइंट्स पड़े रह जाते हैं और क्रेडिट कार्ड एक्सपायर हो जाता है. इसके अलावा जब आपके प्वाइंट्स 1000 से 10,000 जैसे लैंडमार्क को क्रॉस करते हैं तब बैंक ये नहीं बताता कि आपके इतने प्वाइंट हो गए हैं और आप उन्हें रिडीम कर कैशबैक लाभ ले सकते हैं.

ड्यू डेट का ध्‍यान

आपने अक्सर देखा होगा कि आपको मोबाइल बिल भरना हो तो टेलीकॉम कंपनियां लगातार एसएमएस भेजती हैं. वहीं बैंक भी आपको मिनिमम बैलेंस के लिए रिमाइंडर भेजती हैं. लेकिन क्रेडिट कार्ड के बिल को जमा करने के लिए आपके पास कोई मैसेज नहीं आता. वास्‍तव में देखा जाए तो बैंक खुद नहीं चाहते कि आप समय पर बिल जमा कर दें. ऐसे में आप खुद ही अपनी ड्यू डेट का ख्‍याल रखें. बैंक तो यही चाहते हैं कि आप लेट करें और बाद में लेट फीस भरें.

कार्ड अपग्रेड का लगता है वार्षिक चार्ज

बैंक आपको अक्‍सर कार्ड अपग्रेड करने का ऑफर देते हैं. अक्‍सर बैं‍क की एक्‍जीक्‍यूटिव आपको फ्री ऑफ कॉस्ट अपने सिल्वर कार्ड को गोल्ड में और गोल्ड को प्लेटिनम में अपग्रेड करवाने का लालच देते हैं. लेकिन ये नहीं बताते कि नए क्रेडिट कार्ड के लिए आपको 500 रुपए से लेकर 700 रुपए तक का शुल्क भी देना पड़ेगा.

लिमिट बढ़ने से बढ़ता है एनुअल चार्ज

क्रेडिट कार्ड धारकों को अक्सर एक कॉल आती है कि आपके क्रेडिट कार्ड की क्रेडिट लिमिट मुफ्त में बढ़ाई जा रही है. बैंक आपको प्रिविलेज कस्‍टमर मानते हुए आपकी लिमिट को दो गुना या इससे अधिक कर देता है. यहां आपसे आपकी सहमति भी नहीं मांगी जाती. लेकिन बैंक आपको कभी ये नहीं बताता कि इसके बाद आपका वार्षिक शुल्‍क बढ़ जाएगा.

मेरे पति का बैस्ट फ्रैंड मुझे न सिर्फ गंदी नजरों से देखता है बल्कि मुझे स्पर्श करने की कोशिश करता है. आप बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए.

सवाल
मेरे पति मल्टीनैशनल कंपनी में काम करते हैं. जिस कंपनी में वे पहले थे उस में उन का बैस्ट फ्रैंड अभी भी काम करता है जिस कारण उस का आएदिन हमारे घर में आनाजाना है. लेकिन मैं ने नोटिस किया कि वह मुझे न सिर्फ गंदी नजरों से देखता है बल्कि कभी पानी का गिलास पकड़ने के बहाने या फिर मौका देख कर मुझे स्पर्श करने की कोशिश करता है. और अब तो पति के घर पर नहीं होने पर भी वह आ धमकता है. आप बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
भले ही वह आप के पति का बैस्ट फ्रैंड है लेकिन फिर भी आप को इस बारे में अपने पति से खुल कर बात करनी होगी ताकि वे भी अवेयर हो जाएं और अपने दोस्त का घर में आनाजाना कम कर दें.

इस बात को भी आप ध्यान रखें कि जब भी वह आप के पति के पीछे घर में आए तो आप उसे बाहर से ही रवाना कर दें. इस से उसे समझ आ जाएगा कि आप उस की हरकतों को पहचान गई हैं. आप पति से भी उस से दूरी बनाने को कहें. आप को काफी सतर्क हो कर रहना होगा.

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सेक्स की चाहत में पत्नी बनी पति की दुश्मन

भागदौड़ भरी जिंदगी में सड़कों पर बढ़ती वाहनों की भीड़, उन से होने वाली दुर्घटनाएं और आए दिन होने वाले अपराधों को देखते हुए अगर घर से निकला कोई आदमी वापस न आए तो घर वाले परेशान हो उठते हैं. नेकीराम का परिवार भी बेटे को ले कर कुछ इसी तरह परेशान था. अध्यापक नेकीराम का परिवार उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के मोहल्ला आनंद विहार में रहता था. उन का एकलौता बेटा अमन परिवार से अलग रहता था. उस के परिवार में पत्नी अनुराधा के अलावा 5 साल का एक बेटा कृष और 4 साल की बेटी अनन्या थी.

नेकीराम को बेटे के लापता होने का उस समय पता चला, जब 28 दिसंबर, 2016 की रात करीब साढ़े 9 बजे उन की बहू अनुराधा का फोन आया. उस ने जो कुछ बताया था, उस के अनुसार रात में उस की तबीयत खराब हो गई तो उस ने अमन से दवा लाने को कहा. वह मोटरसाइकिल से दवा लेने गया तो लौट कर नहीं आया.

अनुराधा ने अमन को फोन किया तो उस का मोबाइल स्विच औफ बता रहा था. इस से वह परेशान हो उठी थी और उस ने सभी को इस बारे में बता दिया था. जब अमन का कुछ पता नहीं चला तो नेकीराम और उन के भतीजे रात में ही स्थानीय थाना सदर बाजार पहुंचे और पुलिस को सूचना दे दी थी.

पुलिस ने उन्हें सुबह तक इंतजार करने को कहा था. पुलिस का अनुमान था कि अमन कहीं अपने यारदोस्तों के पास न चला गया हो. पुलिस ने भले ही सुबह तक इंतजार करने को कहा था, लेकिन घर वाले अपने स्तर से उस की तलाश करते रहे.

इसी का नतीजा था कि आधी रात को शहर के रेलवे स्टेशन परिसर में रेलिंग के पास उस की मोटरसाइकिल खड़ी मिल गई थी. लेकिन अमन का कुछ अतापता नहीं था. घर वालों की रात चिंता में बीती. सुबह शहर से लगे गांव फतेहपुर वालों ने नजर की पुलिया के नीचे किसी युवक का शव पड़ा देखा तो इस की सूचना थाना पुलिस को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी मुनेंद्र सिंह मौके पर पहुंच गए. सूचना पा कर सीओ अब्दुल कादिर भी घटनास्थल पर आ गए. मृतक की गरदन पर चोट के निशान थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. मौके पर मौजूद लोग उस की शिनाख्त नहीं कर सके. शव लापता युवक अमन का हो सकता है, यह सोच कर पुलिस ने उस के घर वालों को वहां बुलवा लिया.

घर वालों ने शव की पहचान अमन की लाश के रूप में कर दी. मामला हत्या का था, इसलिए पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. साफ था, अमन की हत्या सुनियोजित तरीके से की गई थी, क्योंकि उस की मोटरसाइकिल रेलवे स्टेशन पर खड़ी मिली थी. घटनास्थल और रेलवे स्टेशन के बीच 4 किलोमीटर का फासला था. अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे हत्या करने के बाद रेलवे स्टेशन पर पहुंचे होंगे और मोटरसाइकिल खड़ी कर के फरार हो गए होंगे. पुलिस ने अमन के ताऊ के बेटे मुकेश कुमार की तहरीर पर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ अपराध संख्या 549/2016 पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया था.

पुलिस ने अमन के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने किसी से भी अपनी रंजिश होने से इनकार कर दिया. उस के घर कोहराम मचा था. उस की पत्नी अनुराधा का रोरो कर बुरा हाल था. वह बदहवाश सी हो चुकी थी. वह इतनी दुखी थी कि बारबार बेहोश हो पा रही थी. पुलिस के सामने बड़ा सवाल यह था कि अमन की हत्या क्यों और किस ने की? इस से भी बड़ा सवाल यह था कि हत्यारों को उस के घर से निकलने की जानकारी किस तरह हुई?

एसएसपी उमेश कुमार श्रीवास्तव ने हत्याकांड का जल्द खुलासा करने का आदेश दिया. एसपी सिटी संजय सिंह ने इस मामले की जांच में अभिसूचना विंग के इंचार्ज पवन शर्मा को भी लगा दिया. उन्हें लगा कि हत्यारों ने अमन से तब संपर्क किया होगा, जब वह घर से निकला होगा. पुलिस ने अमन, उस की पत्नी अनुराधा और अन्य घर वालों के मोबाइल नंबर ले कर सभी नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. एसपी सिटी के निर्देशन में हत्याकांड के खुलासे के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया गया, जिस में क्राइम ब्रांच के अलावा थानाप्रभारी मुनेंद्र सिंह, एसआई मनीष बिष्ट, जर्रार हुसैन, हैडकांस्टेबल विकास शर्मा, कांस्टेबल नेत्रपाल, अरुण राणा और मोहित को शामिल किया गया था.

सभी नंबरों की काल डिटेल्स की जांच की गई तो पता चला कि अनुराधा की एक नंबर पर बहुत ज्यादा बातें होती थीं. घटना वाली रात भी उस की उस नंबर पर बातें हुई थीं. उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर अंकित का निकला. उस के मोबाइल की लोकेशन पता की गई तो अमन के घर और घटनास्थल की पाई गई.

पुलिस को मामला प्रेम संबंधों का लगा और साथ ही अमन की पत्नी अनुराधा संदेह के दायरे में आ गई. 31 दिसंबर को अनुराधा को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई तो जो सच्चाई समने आई, जान कर पुलिस हैरान रह गई, क्योंकि अमन की असली दुश्मन कोई और नहीं, उस की अपनी पत्नी ही थी. प्रेमी से अवैधसंबंधों को बनाए रखने के लिए प्रेमी के साथ मिल कर उसी ने पति की हत्या की योजना बनाई थी. पुलिस ने अनुराधा के प्रेमी अंकित और उस के दोस्त टीनू को गिरफ्तार कर लिया. तीनों से विस्तार से पूछताछ की गई तो उन के चरित्र और गुनाह की सारी परतें खुल गईं, जो इस प्रकार थीं—

दरअसल, अनुराधा ने जैसे ही जवानी की दहलीज पर कदम रखा, तभी उस के प्रेमसंबंध कस्बा नागल के रहने वाले विजयपाल के बेटे अंकित से बन गए थे. जवानी के जोश में दोनों ने मर्यादा की दीवार भी गिराई और हमेशा साथ रहने का फैसला भी किया. लेकिन ऐसा हो नहीं सका. अनुराधा के घर वालों ने उस का विवाह अमन के साथ कर दिया. इस का न तो अनुराधा विरोध कर सकी थी और न ही अंकित. यह बात अलग थी कि अनुराधा अंकित को भूल नहीं सकी. विवाह के कुछ दिनों बाद ही अनुराधा ने अंकित से संपर्क कर लिया था. अंकित इस बात से खुश था कि प्रेमिका अभी भी उसे प्यार करती थी.

दोनों के संबंध गुपचुप चलते रहे. यही नहीं, अंकित अनुराधा से मिलने उस के घर भी आने लगा था. अमन चूंकि ट्रक चलाता था, इसलिए अनुराधा को अपने संबंधों को जारी रखने में परेशानी नहीं हो रही थी. अमन कभी शहर में होता था तो कभी शहर से बाहर. अनुराधा 2 बच्चों की मां बन चुकी थी, इस के बाद भी उस के अंकित से संबंध बने रहे. शायद अंकित उस की धड़कनों का हिस्सा था. शादी के 4 साल बाद तक अमन अंधेरे में रहा. पति की आड़ में अनुराधा अपने प्यार को गुलजार रखना चाहती थी. इस तरह के संबंध कभी छिपे नहीं रहते. अनुराधा अकसर फोन पर बिजी रहती थी, जिस से अमन को शक तो होता था, लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर उसे बेवकूफ बना देती थी.

किसी के मन में अगर शक घर कर जाए तो उस का निकलना आसान नहीं होता. अमन भी इस का शिकार हो गया था. आसपास के लोगों ने भी उसे बता दिया था कि उस की गैरमौजूदगी में कोई युवक अनुराधा से मिलने आता है. पत्नी की करतूतों के बारे में पता चला तो उस ने उसे न सिर्फ जम कर फटकारा, बल्कि उस की पिटाई भी कर दी. करीब 4 महीने पहले एक दिन अमन ट्रक ले कर दूर जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन दोपहर में ही वापस आ गया. उस समय अनुराधा अंकित की बांहों में समाई थी. अमन को अचानक सामने पा कर दोनों के होश उड़ गए. अंकित चला गया और अनुराधा ने गलती मान ली. इस के बावजूद उस ने अपनी आदतें नहीं बदलीं.

कुछ दिनों बाद वह फिर अंकित से मिलने लगी. अमन को इस की जानकारी हो गई. इस के बाद अंकित को ले कर घर में आए दिन विवाद होने लगा. एक दिन हद तब हो गई, जब अनुराधा बगावत पर उतर आई. उस ने साफ कर दिया कि वह अंकित से संबंध नहीं तोड़ सकती. पत्नी की बेहयाई से अमन गुस्से में आ गया और उस ने उस की जम कर पिटाई कर दी. अपने साथ होने वाली मारपीट से तंग अनुराधा ने प्रेमी अंकित से कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार की खातिर कब तक जुल्म सहती रहूंगी. अगर तुम मेरे लिए कुछ नहीं कर सकते तो मुझे हमेशा के लिए छोड़ क्यों नहीं देते?’’

‘‘ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘आज फिर उस ने मेरे साथ मारपीट की. क्या मेरी किस्मत में इसी तरह पिटना ही लिखा है? तुम कुछ करो वरना मैं जान दे दूंगी.’’

‘‘क्या चाहती हो तुम?’’

‘‘हमेशा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूं.’’

‘‘चाहता तो मैं भी यही हूं.’’

‘‘सिर्फ चाहने से नहीं होगा, इस के लिए कुछ करना होगा. क्योंकि अमन के रहते यह कभी नहीं हो सकेगा. तुम उसे हमेशा के लिए रास्ते से हटा दो, वरना मुझे भूल जाओ.’’ अनुराधा ने यह बात निर्णायक अंदाज में कही तो गलत संबंधों के जाल में उलझा अंकित सोचने को मजबूर हो गया. उस ने उस से थोड़ा इंतजार करने को कहा.

अंकित का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था टीनू, जो नजदीक के गांव पंडौली निवासी छोटेलाल का बेटा था. अंकित ने उसे सारी बात बताई और दोस्ती का वास्ता दे कर उस से साथ देने को कहा तो वह तैयार हो गया. इस के बाद दोनों अनुराधा से मिलने उस के घर आए तो तीनों ने मिल कर अमन को रास्ते से हटाने की योजना बना डाली. यह दिसंबर, 2016 के दूसरे सप्ताह की बात थी.

28 दिसंबर की शाम अनुराधा ने अंकित को फोन किया, ‘‘आज तुम आ कर अपना काम कर सकते हो.’’

‘‘ठीक है, मैं समय पर पहुंच जाऊंगा.’’ कह कर अंकित ने फोन काट दिया. इस के बाद वह अपने दोस्त टीनू को ले कर तकरीबन 9 बजे अनुराधा के घर पहुंचा. अनुराधा ने वादे की मुताबिक घर का दरवाजा खुला रखा था. अमन उस वक्त अपने कमरे में था और सोने की तैयारी कर रहा था. तीनों कमरे में दाखिल हुए तो अंकित को वहां देख कर अमन का खून खौल उठा. वह चिल्लाया, ‘‘तुम यहां क्यों आए हो?’’

‘‘अनुराधा से मिलने और तुम्हें जिंदगी से छुटकारा दिलाने.’’ अंकित ने घूरते हुए कहा.

‘‘तेरी इतनी हिम्मत?’’ अमन गुस्से में खड़ा हो गया. वह कुछ कर पाता, उस के पहले ही तीनों उस पर बाज की तरह झपट पड़े. अमन जमीन पर गिर पड़ा. अंकित उस के सीने पर सवार हो गया तो अनुराधा ने उस के हाथों को पकड़ लिया. टीनू ने पैर पकड़ लिए. अमन ने बचाव के लिए संघर्ष करते हुए चिल्लाने की कोशिश की तो अनुराधा ने उस के मुंह को तकिए से दबा दिया, जिस से उस की आवाज दब कर रह गई, साथ ही दम भी घुटने लगा.

तभी अंकित ने वहां पड़ा डंडा उठा कर उस के गले पर रख कर पूरी ताकत से दबा दिया. अमन छटपटाया, लेकिन उस पर किसी को दया नहीं आई. कुछ देर में अमन की सांसों की डोर टूट गई. अपने ही सिंदूर को मिटाने में अनुराधा को जरा भी हिचक नहीं हुई. हत्या के बाद उन्होंने शव ठिकाने लगाने की सोची. अंकित और टीनू ने अमन की ही मोटरसाइकिल ली और कंबल ओढ़ा कर लाश को मोटरसाइकिल से ले जा कर पुलिया के नीचे डाल दिया. इस के बाद मोटरसाइकिल स्टेशन पर लावारिस खड़ी कर के दोनों ट्रेन से नागल तक और फिर वहां से अपने अपने घर चले गए. इस के बाद अनुराधा ने अमन के लापता होने की बात उस के घर वालों को बताई और लाश मिलने पर खूब नौटंकी भी की, लेकिन आखिर उस की पोल खुल ही गई. आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त डंडा भी बरामद कर लिया था.

एसपी संजय सिंह ने प्रेसवार्ता कर के हत्याकांड का खुलासा किया. इस के बाद सभी को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

अनुराधा ने अपने बहकते कदमों को संभाल कर घरगृहस्थी पर ध्यान दिया होता तो ऐसी नौबत कभी न आती. उस की करतूत से मासूम बच्चे भी मां बाप के प्यार से महरूम हो गए. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी.

रेल यात्रियों के लिये एक और काम की खबर, जरा ध्यान से पढ़ें

2 करोड़ से ज्यादा रेल यात्रियों को रोजाना उनके गंतव्य तक पहुंचाने वाली भारतीय रेलवे लगातार बदल रही है. यात्रियों की आराम के लिए हर रोज कुछ न कुछ बदलाव सामने आ रहे हैं. अब औनलाइन टिकट बुकिंग से जुड़े कुछ नियमों में भी बदलाव किया गया है. ऐसे में अगर आप हाल फिलहाल में ट्रेन टिकट बुक करवाने की सोच रहे हैं तो आपको बदले हुए नियमों की जानकारी होनी चाहिए.

दरअसल भारतीय रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कौर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) ने ट्रेन टिकट को औनलाइन बुक कराने से जुड़े नियमों में कई बड़े बदलाव कर दिए है. गौरतलब है कि हाल ही में आईआरसीटीसी की वेबसाइट में कुछ नए फीचर जोड़े गए थे. हालांकि नई साइट का बीटा वर्जन ही पेश किया गया, इसमें यात्रियों के लिए वेट लिस्ट पीरियड का विकल्प भी उपलब्ध करवाया गया है.

इंडियन रेलवे से जुड़े आपके काम के नियम

  • अब रेल यात्री अपना टिकट यात्रा से 120 दिन पहले तक बुक करा सकते हैं. सुबह आठ से दस के दौरान एक आईडी से दो टिकट बुक की जा सकती है.
  • एक आईडी से 6 टिकट बुक किए जा सकते हैं. आधार वेरिफाइड यूजर्स हर महीने 12 टिकट की बुकिंग करा सकते हैं.

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  • शेड्यूल टाइम से तीन घंटा देर होने की सूरत में अब यात्री रिफंड के लिए क्लेम कर सकते हैं.
  • अगर आप औनलाइन माध्यम से टिकट बुक करा रहे हैं, तो आपको फौर्म भरने के लिए सिर्फ 25 सेकेंड का वक्त मिलेगा. इसके अलावा कैप्चा और पेमेंट पेज के लिए 5 सेकेंड का अतिरिक्त वक्त मिलेगा.
  • तत्काल टिकट यात्रा से एक दिन पहले टिकट बुक कराया जा सकता है इसका समय सुबह 10 (एसी कोच) बजे है. वहीं स्लीपर क्लास के लिए यह समय सुबह 11 बजे है. एक आईडी से सुबह 10 से 12 के बीच सिर्फ दो टिकट ही बुक किए जा सकते हैं.
  • तत्काल टिकट बुकिंग के दौरान एक बार में अधिकतम 6 बर्थ ही बुक की जा सकती है, जो कि दो स्टेशनों के बीच किसी विशेष यात्रा के लिए ही मान्य होगा.
  • रेलवे की क्विक बुक सर्विस सुबह 8 बजे से 12 बजे तक के लिए उपलब्ध नहीं होगी. एक समय में एक व्यक्ति सिर्फ एक ही लौग-इन कर पाएगा.
  • ट्रेन टिकट बुक कराने वाले एजेंट्स को सुबह 8 बजे, 8:30 बजे, 10 बजे 10:30 बजे, 11 बजे और 11:30 बजे ही टिकट बुक कराने की अनुमति है.
  • अधिकृत ट्रैवल एजेंट विंडो ओपन होते ही शुरुआती 30 मिनट में औनलाइन रिजर्वेशन नहीं करा सकते हैं.
  • नेट बैंकिंग के जरिए टिकट का भुगतान करते समय सभी बैंकों के खाताधारकों को खुद को वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) के जरिए खुग को वेरिफाई करवाना होगा.
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