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भारत से हार के बाद पाकिस्तान का सोशल मीडिया पर उड़ रहा खूब मजाक

एशिया कप-2018 में टीम इंडिया ने शानदार प्रदर्शन करते हुए ग्रुप-ए के अपने दूसरे मैच में बुधवार को पाकिस्तान को 8 विकेट से हरा दिया.  भारत-पाकिस्तान का यह मैच टि्वटर ट्रेंड्स में छाया रहा. कई यूजर्स ने पाकिस्तान की खस्ता हालत का मजाक उड़ाया. आइए देखते हैं कैसे टि्वटर यूजर्स ने लिए पाकिस्तान के मजे…

गौरतलब है कि भारतीय टीम ने दुबई अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम में टौस हारकर पहले गेंदबाजी करते हुए पाकिस्तान को 43.1 ओवर में 162 रन पर ढेर कर दिया. इसके बाद कप्तान रोहित शर्मा (52) और शिखर धवन (46) की बेहतरीन पारियों की बदौलत 29 ओवर में दो विकेट खोकर लक्ष्य को आसानी से हासिल कर लिया. इसी के साथ भारत ग्रुप-ए में टौप पर पहुंच गया है. इससे पहले टीम इंडिया ने अपने पहले मैच में हौन्गकौन्ग को 26 रन से हराया था.

लक्ष्य का पीछा करने उतरी भारतीय टीम को कप्तान रोहित शर्मा और शिखर धवन ने धीमी शुरुआत दिलाई. 6 ओवर तक भारत का स्कोर सिर्फ 17 रन था, लेकिन मोहम्मद आमिर के 7वें ओवर में रोहित ने लगातार दो चौके लगाते हुए हाथ खोल दिए. इसके अगले ओवर में कप्तान ने उस्मान के ओवर में दो छक्के और एक चौका लगाया. रोहित (52) और धवन (46) ने पहले विकेट के लिए 86 रनों की साझेदारी करते हुए जीत की आधारशिला रखी. बाकी का काम दिनेश कार्तिक (नाबाद 31 रन) और अंबाती रायडू (नाबाद 31 रन) ने पूरा कर दिया.

चैंपियंस लीग में मेसी का कारनामा, रोनाल्डो को पछाड़ा

यूएफा चैंपियंस लीग में भले ही सबसे ज्यादा 120 गोल करने का रेकॉर्ड पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो के नाम है लेकिन एक मामले में अर्जेंटीना के लियोनेल मेसी उनसे अब आगे निकल गए हैं. मेसी ने यूएफा चैंपियंस लीग की 2018/19 सीजन में स्पेनिश क्लब बार्सिलोना के लिए खेलते हुए नीदरलैंड्स के पीएसवी क्लब के खिलाफ हैटट्रिक बना दी जिससे 10 खिलाड़ियों के साथ खेलने के बावजूद बार्सिलोना ने ग्रुप बी का यह मैच 4-0 से जीत लिया.

बार्सिलोना के सैमुअल उमटिटी को मैच के 79वें मिनट में मैच का दूसरा येलो कार्ड और फिर रेड कार्ड दिखाकर मैदान से बाहर भेजा गया. 31 बरस के मेसी ने 32वें, 77वें और 87वें मिनट में जबकि औस्माने डेंबेले ने 75वें मिनट में गोल दागा. मेसी ने चैंपियंस लीग में रेकॉर्ड आठवीं हैटट्रिक बनाई. इस लीग में हैटट्रिक दागने के मामले में अब मेसी पहले जबकि 33 बरस के रोनाल्डो (सात हैटट्रिक) दूसरे नंबर पर हैं.

ग्रुप बी के ही मैच में इटली के इंटर मिलान क्लब ने इंग्लैंड के टॉटेनहम क्लब को 2-1 से हराया. क्रिस्टियन एरिकसन ने 53वें मिनट में गोल दाग इंग्लिश क्लब को 1-0 से आगे किया था लेकिन मौरो इकार्डी ने 86वें और माटियास वेसिनो ने दूसरे हाफ के इंजरी टाइम में गोल कर मिलान को रोमांचक जीत दिला दी.

फर्मिनो ने जिताया

यूएफा चैंपियंस लीग के ग्रुप सी के मैच में इंग्लैंड के लिवरपूल क्लब ने फ्रांस के पैरिस सेंट जर्मेन (पीएसजी) क्लब को बेहद रोमांचक मैच में 3-2 से हराया. लिवरपूल एक समय 2-0 से आगे था. उसके लिए डेनियल स्टरीज ने 30वें और जेम्स मिलनर ने 36वें मिनट में गोल दागे थे. पीएसजी के लिए थॉमस म्यूनियर ने 40वें और स्टार फॉरवर्ड किलियान एमबापे ने 83वें मिनट में गोल दाग स्कोर 2-2 से बराबर कर दिया. जब मैच ड्रॉ की और बढ़ते दिख रहा था तब सब्सिटिट्यूट रॉबर्टो फर्मिनो ने दूसरे हाफ के इंजरी टाइम में लिवरपूल का तीसरा गोल दाग दिया. फर्मिनो 72वें मिनट में स्टरीज की जगह मैदान पर उतरे थे.

हाईटेक हुआ चुनाव आयोग, एक क्लिक पर लें जानकारी

देश में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारियों में जुटी पार्टियां जहां वोटरों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके अपना रही हैं, वहीं चुनाव आयोग ने इस बार हाईटेक चुनाव कराने के लिए कमर कस ली है. देश में पहली बार चुनाव के समय किसी भी पार्टी के किसी भी उम्मीदवार को सभाएं करने, रैली निकालने या फिर अन्य कार्यक्रमों की अनुमति के लिए कागज लेकर दफ्तर-दफ्तर नहीं दौड़ना पड़ेगा. पार्टी या उम्मीदवार को जिस दिन कार्यक्रम करना होगा, वह उससे ठीक 48 घंटे पहले ऑनलाइन आवेदन कर अनुमति भी ऑनलाइन ही ले सकेगा.

आयोग के मुताबिक इस बार के चुनाव आइटी एप्लीकेशन ‘समाधान, सुविधा और सुगम’ एप की मदद से कराए जाएंगे. ‘सुविधा’ एप के जरिये उम्मीदवारों को चुनाव अभियान के दौरान ‘सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम’ के माध्यम से विभिन्न प्रकार की मंजूरी हासिल करने की 24 घंटे ऑनलाइन सुविधा मिलेगी. वहीं ‘सुगम’ एप के माध्यम से चुनाव प्रक्रिया में शामिल सरकारी और किराए पर लिए गए वाहनों के प्रयोग की मंजूरी लेने के अलावा इनके इस्तेमाल पर निगरानी की जा सकेगी और‘समाधान’ एप आम वोटर को परेशानी होने पर मदद करेगा.

आयोग ने चुनाव पर नजर रखने के लिए सात तरह की एप डिजाइन कराए हैं. आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के मामलों की शिकायत अब कोई भी व्यक्ति ‘सी-विजिल’एप के माध्यम से फोटो या वीडियो भेजकर कर सकेगा. इन शिकायतों पर 100 मिनट के भीतर कार्रवाई सुनिश्चित कर शिकायतकर्ता को कारवाई की रिपोर्ट भी दी जाएगी. शिकायतकर्ता को एक तस्वीर क्लिक कर या अधिक से अधिक दो मिनट का वीडियो रिकॉर्ड कर अपलोड करना होगा. एप में लोकेशन खुद ब खुद ट्रेस हो जाएगी.

शिकायत दर्ज होते ही शिकायतकर्ता को एक यूनीक आइडी प्राप्त होगा, जिससे वह अपने मोबाइल पर आगे की कार्रवाई को जान सकेंगे. इसमें यह भी प्रावधान है कि यदि आप शक्तिशाली आदमी के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं, तो एप में अपना मोबाइल नंबर छिपा सकते हैं.

वहीं आयोग ने ‘सीजीएस’ सिटीजन ग्रीवेंस सर्विस एप लांच किया है. इससे ऑनलाइन शिकायतें जैसे किसी व्यक्ति की मतदाता पर्ची न निकलना या दूसरे व्यक्ति द्वारा मतदान करके चले जाना आदि शिकायतें की जा सकती हैं.

जेनासेस एप का उपयोग उम्मीदवारों के फार्म भरने के लिए किया जाएगा. जैसी ही फार्म भरेगा उनके मोबाइल पर एक एसएसएस अलर्ट आएगा. गलती होने पर दोबारा फार्म भी भरा जा सकेगा. एप से फार्म भरने से लेकर परिणाम आने तक के एसएमएस उम्मीदवार को मिलेंगे. चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव से पहले पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम एवं राजस्थान के विधानसभा चुनावों में इन सभी एप इस्तेमाल की योजना बनाई है.

सेविंग अकाउंट खोलने से पहले बरतें ये सावधानी, मिलेगा फायदा

बैंक का सेविंग अकाउंट आम लोगों को सीधे तौर पर बैंकिंग सिस्टम से जोड़ने का काम करता है. सेविंग अकाउंट लोगों में सेविंग की आदत विकसित करने का काम करता है. यह सबसे लोकप्रिय वित्तीय उत्पादों में से एक माना जाता है. इसमें आप जब चाहें पैसों की निकासी कर सकते हैं और अकाउंट में जमा राशि पर औसतन 3.5 से 6 फीसद तक का ब्याज भी मिल जाता है.

हालांकि सेविंग अकाउंट खुलवाने से पहले आप थोड़ी सावधानी बरतेंगे तो आपको थोड़ा ज्यादा फायदा होगा. अगर आप देश के किसी भी बैंक में सेविंग अकाउंट खुलवाने की योजना बना रहे हैं तो यह खबर आपके काम की है. हम अपनी इस खबर के माध्यम से आपको जानकारी दे रहे हैं कि आपको सेविंग अकाउंट खुलवाने से पहले किन बातों का ख्याल रखना चाहिए.

क्या शुल्क वसूलते हैं बैंक ?

ये सबसे अहम पहलू होता है. बैंक अपनी ओर से दी जाने वाली सेवाओं जैसे कि औनलाइन पेमेंट ट्रासफर, चेक बुक की सुविधा, कैश डिपाजिट, डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड, फिजिकल अकाउंट स्टेटमेंट, पासबुक जारी करवाना और लाकर जैसी सुविधाओं के लिए अगल-अलग शुल्क वसूलते हैं. ऐसे में अगर आपको मामूली जरूरतों को पूरा करने के लिए ही सेविंग अकाउंट खुलवाना है जैसे कि सिर्फ पैसे जमा रखने के लिए और कभी कभी चेक के जरिए भुगतान के लिए तो रेगुलर सेविंग अकाउंट सबसे बेहतर विकल्प होगा. वहीं अगर आप बैंक के अन्य उत्पादों की सेवाओं का भी लाभ लेना चाहते हैं तो आप प्रीमियम एवं हाई एंड सेविंग अकाउंट का भी चयन कर सकते हैं. अगर आप इन चीजों की परख कर अकाउंट खुलवाते हैं तो आपका फायदा होगा.

कौन सा बैंक दे रहा है ज्यादा ब्याज ?

देश के अधिकांश बैंक सेविंग अकाउंट पर 3.5 फीसद से 6 फीसद तक का ब्याज देते हैं. सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक स्टेट बैंक औफ इंडिया 1 करोड़ रुपये तक की जमा पर 3.5 फीसद की दर से ब्याज देता है. वहीं देश के कुछ बैंक सेविंग अकाउंट पर 6 फीसद का ब्याज भी देते हैं. ऐसे में आपको कई बैंकों की तुलना कर यह फैसला लेना चाहिए कि आपको ज्यादा ब्याज कहां मिलेगा.

कहां मिलेगा ज्यादा फायदा यह भी परखें ?

जैसा कि देश में सार्वजनिक क्षेत्र एवं निजी क्षेत्र के काफी सारे बैंक उपलब्ध है लिहाजा आपको तुलनात्मक रुप से यह अध्ययन जरूर करना चाहिए कि आपको ज्यादा फायदा कौन सा बैंक दे रहा है. मसलन कौन से बैंक के सेविंग अकाउंट पर आपको 20 से 50 फीसद के डिस्काउंट के साथ लॉकर की भी सुविधा मिल रही है, कहां फ्री डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड और फ्री चेक बुक की सुविधा मिल रही है. ये सारी बुनियादी जरूरतें होती हैं. कुछ बैंकों के सेविंग अकाउंट के साथ ऐसे डेबिट और क्रेडिट कार्ड की सुविधा मिलती है जो कि डोमेस्टिक एवं इंटरनेशनल एयरपोर्ट लौन्ज में फ्री एसेस की सुविधा देते हैं. इस बातों का ध्यान रखकर सेविंग अकाउंट खुलवाने से फायदा होता है.

स्वीप इन फैसिलिटी की सुविधा

देश के अधिकांश बैंक स्वीप इन फैसिलिटी की सुविधा देते हैं. साधारण बचत खाते की रकम को बढ़ाने के लिए कई बैंक आटो स्वीप (स्वीप इन फैसिलिटी) या टू इन वन एफडी की सुविधा देते हैं. इसके तहत अगर आपके खाते में एक सीमा से अधिक धन जमा हो जाता है, तो बैंक खुद ही इस रकम को एफडी में बदल देता है. इस तरह आप अपनी रकम पर बचत खाते की तुलना में काफी ज्यादा ब्याज हासिल कर सकते हैं. इस सुविधा की जानकारी हासिल कर आप सेविंग अकाउंट खुलवाने के बारे में उचित फैसला ले सकते हैं.

सावधान : आप भी करें सुरक्षित एटीएम का इस्तेमाल

एटीएम फ्रौड की घटनाएं लगातार पढ़ने को मिल रही हैं. इन में कुछ घटनाएं एटीएमधारकों की लापरवाही के कारण होती हैं. कुछ घटनाएं धोखाधड़ी करने वालों के तकनीकी कौशल के कारण होती हैं. इस तरह की घटनाएं न हों, इस के लिए देश के सब से बड़े बैंक स्टेट बैंक औफ इंडिया ने ग्राहकों को धोखाधड़ी से बचाने के लिए ऐसी चिप विकसित की है जिस से एटीएम फ्रौड से पूरी तरह से बचा जा सकता है. चिप लगा यह अत्यधिक सुरक्षित एटीएम कार्ड है.

बैंक ने अपने सभी पुराने एटीएम कार्ड्स बदलने के लिए अपने ग्राहकों से अपील की है. ग्राहकों को यह बदलाव अनिवार्य रूप से करना है और इस साल 31 दिसंबर तक अपना पुराना कार्ड बदलना है. इस के लिए सख्ती बरती गई है, बैंक ने कहा है कि पुराना कार्ड पहलीजनवरी से काम करना बंद कर देगा. इस का मतलब है कि 31 दिसंबर तक ग्राहकों के पास नया एटीएम कार्ड होना आवश्यक है.

बैंक ने कहा है कि नया और सुरक्षित कार्ड निशुल्क बदला जा सकता है. एटीएम कार्ड बदलने के लिए बैंक की अपनी शाखा पर जाना होगा या इस के लिए औनलाइन आवेदन करना होगा. इस के लिए बैंक की वैबसाइट पर एटीएम कार्ड सर्विस पर क्लिक कर कार्ड बदलने की प्रक्रिया का अनुपालन करना होगा.

एसबीआई ने यह कदम रिजर्व बैंक के दिशानिर्देश पर अपने 40 करोड़ ग्राहकों की सुरक्षा के मद्देनजर उठाया है. बैंक की यह तकनीक कितनी सुरक्षित साबित होगी, यह तो समय ही तय करेगा लेकिन बैंक के परिवर्तन के लिए उठाए गए इस कदम से साबित हो गया है कि वह हर स्थिति में ग्राहक को सुरक्षित रखना चाहता है.

ग्राहकों को भी खुद की सुरक्षा के लिए सतर्क रहने की जरूरत है. सभी बैंकों का स्पष्ट कहना है कि वे निजी जानकारी कभी भी अपने ग्राहक से फोन पर नहीं मांगते हैं लेकिन फिर भी ग्राहक धोखाधड़ी करने वालों के चंगुल में फंसते हैं, जिस से उन्हें सावधान रहने की जरूरत है.

गडकरी का गणित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य कभीकभी सच बोल कर अपने अपराधबोध व ग्लानि नाम के मनोविकारों से मुक्ति पा लेते हैं. ऐसा ही कुछ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यह कहते किया कि जब सरकारी नौकरियां ही नहीं हैं तो आरक्षण कहां से दें.

अब यह और बात है कि इस बेबाक बयानी का दूसरा पहलू यह भी है कि नौकरियां तो इफरात से हैं पर सरकार इस डर से उन्हें नहीं दे रही कि अगर ऐसा किया तो आरक्षितों की भी भरती करनी पड़ेगी.

वाणिज्य और कानून के स्नातक गडकरी नौकरियों का गणित पढ़ाते वक्त भूल गए कि नौकरी कोई मंदिर या कुआं नहीं जहां आप लठ के दम पर दलित को जाने देने से रोक सकते हैं.

दलित युवाओं को बहलाने के लिए यह नया मंत्र एक तरह का षड्यंत्र ही है जिस से सवर्णों को भी छला जा रहा है.

भोजपुरी गाने : नौजवानों को देते सपनों की नई उड़ान

भोजपुरी गाने केवल मनोरंजन ही नहीं करते हैं, बल्कि समाज और राजनीति की घटनाओं पर वार भी करते हैं. ‘नोटबंदी’, ‘नीतीश कुमार के महागठबंधन के टूटने’, ‘पतंजलि के सामान बेचने’ जैसी घटनाओं पर भोजपुरी में तुरंत गाने रैकौर्ड हो कर म्यूजिक बाजार में आ जाते हैं. ‘शादीब्याह’, ‘प्रेमविवाह’, ‘सुहागरात’ जैसे मुद्दों पर लिखे गए भोजपुरी गाने सब से ज्यादा पसंद किए जा रहे हैं.

अब फिल्मों के बराबर ही भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री बन गई है. पहले जहां गायकों को कैसेट कंपनियों के आगेपीछे चक्कर लगाने पड़ते थे, वहीं अब वे अपने गाने का आडियोवीडियो खुद ही बना कर यूट्यूब पर पोस्ट कर देते हैं.

भोजपुरी गानों में अपना कैरियर बनाने वाले ज्यादातर लड़केलड़कियां गायकी की कोई बड़ी ट्रेनिंग ले कर नहीं आते हैं. गांवों और छोटे शहरों में रहने वाले नौजवानों के लिए भोजपुरी म्यूजिक  ने कैरियर बनाने के नए दरवाजे खोल दिए हैं.

भोजपुरी में गाने वाली लड़कियों की तादाद सब से ज्यादा है. कल्पना और इंदू सोनाली जैसी लड़कियों ने भोजपुरी फिल्मों में गाने गा कर धूम मचाई है.

भोजपुरी गानों से चमकने वाली लड़कियों में खुशबू उत्तम, निशा पांडेय,  अमृता दीक्षित, मोहिनी पांडेय, खुशबू तिवारी, पिंकी सिंह, निशा दुबे, ब्यूटी पांडेय, आर्या नंदिनी, अलका सिंह पहाडि़या, ज्योति गुप्ता और सोना सिंह जैसे तमाम नाम हैं.

इन लड़कियों में सब से अलग बात यह है कि  ये लोकगीत से ले कर हर तरह के गाने गाती हैं. ये लड़कियां बड़े आराम से ‘राजा छोट बा सामान धर के बड़ा करा’ जैसे गाने गाती हैं. ब्यूटी पांडेय का गाया यह गाना खूब सुना जा रहा है.

बात केवल ब्यूटी पांडेय की नहीं है, बल्कि और भी लड़कियां खूब नाम कमा रही हैं. खुशबू उत्तम का छोटू छलिया के साथ गाया गाना ‘धीरेधीरे डालो न अबहि जगइयां छोट बा’ लोगों में खूब पसंद किया जा रहा है.

इसी तरह खुशबू तिवारी का गाना ‘भतरू से पहले दे ले बानी’, पिंकी सिंह का गाना ‘राजा भंड़ुया सुताला

बजत खटिया’ और मोहिनी पांडेय के विवाह गीतों में गाली गीत ‘रहरी की तीन पत्ता तीनों कचनार जी, अगुवा की तीन बहिनियां तीनों पक्की छिनार जी’ खूब बज रहा है.

भोजपुरी फिल्मों में हीरो का रोल निभाने वाले पवन सिंह, खेसारी लाल यादव, अरविंद अकेला, चिंतामणि सिंह, रितेश पांडेय, नीलकमल सिंह, प्रमोद प्रेमी, गुंजन सिंह, गोलू गोल्ड, समर सिंह, आलम राज, दीपक दिलदार और आनंद राज जैसे गायक आज नौजवान दिलों की धड़कन बन गए हैं.

बदलते गांव की झलक

गायक चिंतामणि सिंह कहते हैं, ‘‘भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री में रोज नया हुनर आ रहा है. ऐसे में यहां पर गायकों के बीच कंपीटिशन बढ़ता जा रहा है. जिन गायकों को फिल्मों में गाने को नहीं मिल रहा है, वे अपने सुर की बदौलत अपना काम कर रहे हैं.

‘‘भोजपुरी गानों में आज की जिंदगी की झलक होती है, जिस के चलते लोग इन को खूब पसंद करते हैं. जो गायक समय के हिसाब से गाने देता है वही हिट होता है.’’

चिंतामणि सिंह का गाना ‘टोपेटोपे चुअता’ पहली बार में ही लोगों की पसंद बन गया है.

आज गांवदेहात और छोटे शहरों में भी कपड़ों की पसंद के लिए औनलाइन शौपिंग का क्रेज बढ़ रहा है.

खेसारी लाल यादव ने अपने गाने ‘यूट्यूब पर देखले बानी वीडियो ब्लाउज रेडीमेड चाही’ में इस बात को समझाने की कोशिश की गई है.

इन गानों में गांव में प्रधान की दबंगई के साथ महिला प्रधान के बनने पर आए बदलाव को दिखाया जाता है. यह भी कि किस तरह से भौजी बन कर घर में रहने वाली औरत अब थानाकचहरी जाती है.

एक समय सारे गानों के केंद्र में सिपाही और दारोगा होते थे पर अब स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर और प्रधान भी गानों के केंद्र में आने लगे हैं.

पहले ये गाने केवल देवरभाभी, जीजासाली के रंगीन किस्सों पर ही बनते थे, पर अब शादी से पहले और शादी के बाद के संबंधों पर भी तैयार होते हैं.

सैक्स को ले कर गांवों में भले ही औरतों को कुछ कहने की आजादी न हो, पर भोजपुरी गानों में सैक्स सुख के लिए परेशान औरत की दास्तान सुनाने की हिम्मत दिखाई जाती है.

स्टूडियो की भरमार

भोजपुरी से ज्यादा खुलापन पंजाबी, गुजराती और हिंदी के गानों में है, पर जितनी बुराई भोजपुरी गानों के खुलेपन की होती है इतनी किसी और की नहीं होती. इस के बावजूद भोजपुरी गानों के आलोचकों से ज्यादा इन को पसंद करने वाले हैं. यही वजह है कि यूट्यूब पर सब से ज्यादा डाउनलोड होने वाले गानों में भोजपुरी गाने हैं.

भोजपुरी फिल्मों के बराबर ही भोजपुरी म्यूजिक का उद्योग खड़ा हो गया है. कुछ समय पहले तक तो गाने रैकौर्ड कराने और उन का वीडियो बनवाने के लिए लोगों को दिल्ली, मुंबई और वाराणसी के चक्कर लगाने पड़ते थे, पर अब ऐसे वीडियो पटना, हाजीपुर, छपरा, गोपालगंज और रांची में ही तैयार हो जाते हैं.

झारखंड और बिहार के शहरों में ही नहीं, बल्कि गांवकसबों तक में गाने के डाउनलोड करने वाली दुकानें खुल गई हैं. गाने डाउनलोड करने की जितनी दुकानें बिहार और झारखंड में खुली हैं उतनी दुकानें किसी और प्रदेश में नहीं मिलेंगी.

35 से 40 रुपए में एक जीबी वाला मैमोरी कार्ड गानों से डाउनलोड किया जा रहा है. केवल पटना शहर में आडियो और वीडियो अलबम बनाने वाले तकरीबन 50 से ज्यादा स्टूडियो हैं.

हर स्टूडियो में एक महीने में 5 से 6 अलबम तैयार होते हैं. एक अलबम में तकरीबन 8 गाने होते हैं. एक आडियोवीडियो 50,000 से ले कर 80,000 हजार रुपए तक में तैयार हो जाता है.

पटना के अलावा हाजीपुर, छपरा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज और रांची में भी ऐसे वीडियो अलबम बनते हैं. बिहार में ऐसे बढ़ते रोजगार को देखते हुए मुंबई व दिल्ली जाने वाले यहां के रहने वाले लोग वापस अपने शहरों को लौट आए हैं.

बेहूदगी का दाग

जिस तेजी से भोजपुरी म्यूजिक इंडस्ट्री आगे बढ़ रही है, उसी तेजी से इस के गानों पर बेहूदा होने का दाग भी लग रहा है. मजेदार बात यह भी है कि हर कोई दूसरे पर बेहूदगी फैलाने का जिम्मेदार मान रहा है. पर सचाई यह है कि भोजपुरी गानों पर इस तरह के आरोप पुराने समय से ही लगते आ रहे हैं. इन गानों को सुनने वालों का एक बड़ा तबका है.

भोजपुरी फिल्मों की कामयाबी का फार्मूला भी ऐसे गाने ही होते हैं. हर फिल्म में 7 से 8 गाने होते हैं, इन में 1 से 2 आइटम गीत होते हैं. ठीक इसी तरह से वीडियो अलबम में भी बनते हैं. वैसे तो एक अलबम में हर तरह के गाने होते हैं, पर हिट वही होते हैं जो बेहूदा कहे जाते हैं.

यूट्यूब पर ऐसे भोजपुरी गाने ‘हौट सौंग’ के नाम से जाने जाते हैं. इन के नाम भी इसी तरह से रखे जाते हैं. यही नहीं, केला और बैगन तक का इस्तेमाल कर के शब्दों से बेहूदगी फैलाने का पूरा इंतजाम किया जाता है.

वीडियो अलबम के ‘गुदगुदी होता ए राजाजी’, ‘सील टूट जाई’, ‘खुलल इंटरनैट’, ‘डिस्कवरी देखा ए देवरू’, ‘दरदिया उठे ये ननदी’, ‘बाइलेंस ब्लाउज के’, ‘लहंगा में धइले बांटी सर्दी’, ‘जोवन चूसे देवरा’, ‘हमार लहंगा के अंदर वाईफाई बाटे’ जैसे नाम रखे जाते हैं.

गायिका खुशबू उत्तम कहती हैं, ‘‘गाना लिखने वाले ऐसे गानों के बीचबीच में कुछ शब्द डाल देते हैं. जब गाने वाला एतराज करता है तो वह लिखने वाला कहता है कि इसी शब्द में तो गाने का पूरा रस है.’’

दरअसल, ऐसा म्यूजिक बनाने वाले लोग गानों को जल्दी बाजार तक पहुंचा देते हैं जिन को लोग चटकारे ले कर सुनते हैं. लेखक और गायक को फायदा उसी गाने से होता है जिसे लोग मजे ले कर सुनते हैं. केवल अकेले में ही नहीं बल्कि शादीब्याह, बरात और ऐसे तमाम दूसरे मौकों पर भी ऐसे गाने खूब बजते हैं, जिन पर लोग डांस भी करते हैं.

अब ज्यादातर लोग अपने मोबाइल फोन में लोड कर के ऐसे गानों को सुनते हैं. कई ऐसे शब्द होते हैं जो भोजपुरी में खराब लगते हैं पर असल में उन का मतलब ऐसा नहीं होता है. आम भाषा में पति शब्द का प्रयोग किया जाता है, पर जब गाने में पति को भतार कहा जाता है तो यह बुरा लगता है.

जातिगत रिश्तों का जोर

जाति और धर्म के आधार पर भी गायक खूब गाने लिखते हैं. बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यादव और भूमिहार बिरादरी के लोग ज्यादा हैं. ऐसे में इन जातियों को ले कर गाने ज्यादा बनने लगे हैं.

आलम राज का गाना ‘अहिरन की जौन हाउ’ और ‘यादवजी के बेटा पीछे पड़ गईल’ जैसे अनेक गाने हैं. पहले इन गानों में ऊंची जातियों में ठाकुर और पंडितों का जोर ज्यादा होता था. गानों के किरदार उसी तरह के बनते थे. फिल्मों की ही तरह गानों में भी दबंगई खूब पसंद की जाती है.

दबंगई के लिहाज से मशहूर जिलों के नाम पर गाने भी बनते हैं. आरा, आजमगढ़ और बलिया के नाम पर गाने खूब बनते हैं.

जानकार लोग बताते हैं कि पहले गायकों में ऊंची जाति के ही लोग आते थे, पर अब पिछड़ी और दलित जातियों के लोग भी गायकी में किसी से पीछे नहीं रहते हैं, जिस से वे अपने समाज पर ज्यादा लिखते हैं.

डांसर का बढ़ा रोल

गानों में आडियो से ज्यादा वीडियो का जोर रहता है. ऐसे में डांसर का रोल अहम हो जाता है. कई गाने आडियो में उतने पसंद नहीं किए जाते जितना वीडियो में पसंद किए जाते हैं. हर गायक को लगता है कि वह एक बार हिट हो जाए तो भोजपुरी गानों के सहारे उस को काम मिलने लगेगा.

वीडियो बनने के बाद ऐसे गाने स्टेज शो पर भी पसंद किए जाते हैं. ऐसे शो 50,000 से 5 लाख रुपए तक में होते हैं.

गानों से केवल गायक ही नहीं वीडियो डांस में भी कैरियर बन गया है. चांदनी सिंह, डिंपल सिंह, प्रिया शर्मा और प्रियंका ऐसे नाम हैं जो डांस के चलते ही रातोंरात चर्चा में आ गए.

निशा पांडेय का नाम तेजी से स्टेज डांसर के रूप में उभरा है. वे भोजपुरी की सपना चौधरी कही जाती हैं. पहले के मुकाबले गायकगायिका बदल गए हैं. पहले के गायक गांव तक सिमटे रहते थे, पर अब वे अपने गानों के ट्रैक रैकौर्ड कर के खुद ही रिलीज कर रहे हैं, जिस से उन को ज्यादा से ज्यादा लोग जानने लगे हैं.

वीडियो : बिग बौस के घर में फोन का इस्तेमाल करते दिखे श्रीसंत ?

बिग बौस-12 को औनएयर हुए सिर्फ 3 दिन ही हुए हैं और शो लगातार सुर्खियों में बना हुआ है. श्रीसंत के घर से बाहर जाने के हाईवोल्टेज ड्रामे के बाद अब उन्हें लेकर एक नया विवाद सामने आया है. सोशल मीडिया पर श्रीसंत का बिग बौस हाउस में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने का दावा किया जा रहा है.

दूसरे एपिसोड के शुरुआती सीन का एक वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है. इसमें श्रीसंत लाउंज एरिया में अपने बेड पर बैठे हुए हैं. घर की लाइट्स औफ हैं. वे कंबल के नीचे हाथों से कुछ प्रेस करते हुए दिख रहे हैं. कुछ लोगों का दावा है कि उनके हाथों में फोन है, जिसका वे अंधेरे में इस्तेमाल कर रहे हैं.

 

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वैसे इन दावों में सच्चाई नजर नहीं आती है. बिग बौस के घर में मोबाइल फोन मना है. ऐसे में क्रिकेटर के पास फोन कहां से आ सकता है? वे कैसे घरवालों से छुपाकर इसे रख रहे हैं? ये बड़ा सवाल है. औनएयर का एक-एक सीन एडिट के बाद टीवी पर दिखाया जाता है. अगर बिग बौस ने चुपके से श्रीसंत को फोन का इस्तेमाल करने की सुविधा दी होती, तो इस सीन को टीवी पर यकीनन ही औनएयर नहीं किया जाता. कुछ लोगों का कहना है कि श्रीसंत कंबल के नीचे मोबाइल नहीं बल्कि अपने पैरों के तलवे को प्रेस कर रहे हैं.

भिक्षा अब अपराध नहीं, यह तो हमारी संस्कृति है न..!

दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि भीख मांगने वालों को दंडित करने का प्रावधान असंवैधानिक है और यह रद्द करने लायक है. अदालत ने इस कानून की कुल 25 धाराओं को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर दिया. कानून का दायरा दिल्ली तक बढ़ाया गया है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि भीख मांगने को अपराध बनाने वाले ‘बौंबे भीख रोकथाम अधिनियम’ के प्रावधान संवैधानिक जांच में टिक नहीं सकते. लोग सड़कों पर इसलिए भीख नहीं मांगते कि ऐसा करना उन की इच्छा है, बल्कि इसलिए मांगते हैं क्योंकि यह उन की जरूरत है. भीख मांगना जीने के लिए उन का अंतिम उपाय है. उन के पास जीविका चलाने के लिए कोई अन्य साधन नहीं है.

यह ठीक भी है. सरकार के पास जनादेश सभी को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए होता है जिस से सभी नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं मिलना सुनिश्चित हो सके. लेकिन भीख मांगने वालों की मौजूदगी इस बात का सुबूत है कि सरकार सभी नागरिकों को जरूरी चीजें उपलब्ध कराने में कामयाब नहीं रही.

भीख मांगने को अपराध बनाना पुलिस  को भिखारी माफिया बनाने का निमंत्रण देता रहा है. भिखारियों को भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें मिलती ही नहीं और ऊपर से उन्हें अपराधी बताना दुर्दशा से निबटने के मौलिक अधिकार से रोकता है.

इस फैसले का असर यह होगा कि भीख मांगने को अपराध कह कर मुकदमे नहीं हो सकेंगे. अदालत ने भीख मांगने को मजबूर करने वाले गिरोहों को काबू करने के लिए सरकार को वैकल्पिक कानून बनाने की स्वतंत्रता दी है, पर यह टेढ़ी खीर है. हाईर्कोर्ट ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया.

अदालत ने सरकार से पूछा था कि  ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भरपेट भोजन और नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है.

‘बौंबे भीख रोकथाम अधिनियम’ के तहत भिखारियों को जेल में डाला जाता है. यह कानून पुलिस और प्रशासन को तुरंत और बिना वारंट के गिरफ्तारी का अधिकार देता है. इस कानून के तहत अगर कोईर् पहली बार भीख मांगते हुए पकड़ा जाता है तो उसे 3 साल तक सजा हो सकती है. इस के अलावा इस कानून के अंतर्गत 10 साल तक हिरासत में रखने का भी प्रावधान है.

भिक्षावृत्ति धर्म की देन

वैसे हमारे यहां भिक्षावृत्ति धर्म और जातिप्रथा की देन है. धर्म की किताबों में भीख मांगना सर्वोत्तम कार्य माना गया है, लेकिन यह काम केवल ब्राह्मणों व साधुओं के हिस्से ही था. दूसरे लोगों के जिम्मे इन को भीख देना होता था. भीख लेने वाले चूंकि ऊंची जातियों के थे तो उस में पुण्य मिलने की गारंटी है. सदियों से भीख मांगना अपराध नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का एक सम्मानजनक पहलू समझा गया. ‘भिक्षाम् देहि’ हिंदू समाज में एक ईश्वरीय आदेशात्मक मंत्र बन गया.

हिंदू समाज में भिक्षावृत्ति को मिली धार्मिक मान्यता के चलते सालों से भिखारियों की संख्या बढ़ती गई. भिक्षा ग्रहण करने का पात्र केवल ऊंची जाति का होता था लेकिन हमारी चातुर्वर्ण्य धार्मिक व्यवस्था में काम के बंटवारे के चलते जो निचला शूद्रवर्ग था वह छुआछूत का शिकार रहा. वह ऊपर के 3 वर्णों की सेवा के धार्मिक आदेश के अलावा और कोई काम नहीं कर सकता था. सेवा के बदले उसे ऊंचे वर्णों की जूठन खा कर, उतरे हुए कपड़े पहन कर ही अपना जीवनयापन करना होता था. उसे अन्य कोई काम करने का अधिकार नहीं था.

अब हुआ यह कि धर्म की इस व्यवस्था के कारण जो निचला अछूत वर्ग था, वह अपना पेट भरने के लिए अन्य कोई काम नहीं कर सकता था तो जिंदा रहने के लिए उस के पास भीख मांगने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. आज मंदिरों के बाहर, चौराहों पर भिखारियों की जो भीड़ लगी रहती है, ये वे लोग हैं जिन्हें अछूत मान कर दूसरे कामों से वंचित रखा गया. इन्हें अपनी इस दशा के लिए पूर्वजन्म के कर्मों का फल बता कर दूर रखा गया. यह वर्ग मेहनतकश था, पर छुआछूत के कारण इस को छूने से परहेज किया गया.

सरकारें और समाज इन के लिए भोजन और नौकरियों के पर्याप्त इंतजाम करने में नाकाम रही हैं, इसलिए जीवनयापन के लिए विवशतावश इन लोगों को भिक्षावृत्ति का सहारा लेना पड़ रहा है. मंदिरों की अपार आय में से इन्हें कुछ नहीं मिलता. बचा हुआ प्रसाद भी नहीं.

अदालत ने हालांकि अपने फैसले में धर्म का कहीं कोई जिक्र नहीं किया है पर फैसले से साफ है कि सामाजिक और आर्थिक विसंगतियों के चलते कोई भिखारी बनता है. यह ठीक है कि अदालत ने

भीख मांगने की परिस्थितियों पर मानवीय दृष्टिकोण से विचार किया है और इसे देखते हुए संवैधानिक आधार पर फैसला सुनाया है.

भीख मांगने वाले धर्म के सताए हुए हैं, लेकिन धर्म को चलाने वाले संगमरमर के भव्य मंदिरों, मठों, एसी गाडि़यों में घूमने वाले पंडे, पुरोहित, साधु, संन्यासी भी भीख मांगने का ही काम कर रहे हैं. उत्पादकता से उन का कौन सा रिश्ता है? एक जिंदा रहने के लिए भीख मांगता है, दूसरा ऐशोआराम के लिए दानदक्षिणा मांगता है. उत्पादकता की सीख अदालत नहीं देगी, और न सरकारें सब को भोजन व नौकरियां देंगी. सो, भीख का धंधा बदस्तूर चलता ही रहेगा.

कास्टिंग काउच का सियाह सच, आखिर कैसे लगेगी रोक

कास्टिंग काउच आज की दुनिया का एक सियाह सच है. फिर चाहे वह फिल्मी दुनिया, टीवी इंडस्ट्री या मौडलिंग क्षेत्र हो या फिर नौकरी या शिक्षा का क्षेत्र, कास्टिंग काउच होता है, यह सभी जानते हैं. लेकिन कोई इस के बारे में बात नहीं करना चाहता. बहुत कम लोग ऐसे हैं जो इस मामले को सब के सामने उजागर करने की हिम्मत जुटाते हैं. यही नहीं, आजकल हर तरफ एक जाल बिछा है जिस का युवक हों या युवती, दोनों को ही कभी न कभी किसी रूप में सामना करना पड़ता है. हो सकता है युवकों को इस का कम सामना करना पड़े. युवती से तो पहली शर्त होती है कि अकेले में आ कर मिलो. मेरी एक सहेली, सीमा (परिवर्तित नाम) लेखिका है. उस के अनुसार लेखन की दुनिया भी इस से अछूती नहीं. सीमा ने जो भी बताया, बहुत चौंकाने वाला था.

सीमा और उसी के शहर के एक दैनिक अखबार के संपादक के बीच की वार्त्ता से आप रूबरू हों : संपादक : सुप्रभात.

सीमा : नमस्ते सर.

संपादक : आप की मेल मिली.

सीमा : धन्यवाद.

संपादक : क्या करती हो?

सीमा : लेखिका हूं.

संपादक : लेखन से गुजारा हो जाता है और क्या करती हो?

सीमा : नहीं, हाउसवाइफ हूं.

संपादक : अपनी रचना और 2 फोटो भेजो, यहीं इनबौक्स में.

सीमा : मेल से नहीं?

संपादक : तुम्हारी खुली नहीं. मैं ने तो बहुत कोशिश की. इसीलिए इनबौक्स में ही आओ. वैसे तुम बहुत अच्छी हो. संपर्क बनाए रखो. बताओ, अच्छी हो या नहीं?

सीमा : पता नहीं. सीमा को यह वार्त्तालाप अजीब लगा. उस ने कुछ दिनों तक कोई कविता नहीं भेजी. फिर एक दिन उन्हीं संपादक महोदय का मैसेज आया.

संपादक : मन सागर तन गागर, मिले कैसे प्रेम बागर.

हम ने कहा था फोन करना, क्यों नहीं किया? समय निकाल कर फोन करो. अकेलापन रहने नहीं देता. पर सीमा ने फोन नहीं किया. फिर एक मैसेज आया.

संपादक : जीवन बेनूर हो गया है, हर सपना चूर हो गया है,

उज्ज्वल भविष्य की उम्मीद खाक, ईमानदार पत्रकारिता का जो गरूर हो गया है.

सीमा ने गुस्से में कौल किया तो उस की आवाज सुनते ही महाशय बोले,’’ अरे जान, तुम कहां थीं? तुम्हारी आवाज सुनते ही तनमन झूम गया. सीमा ने कहा,’’ आप की हिम्मत कैसे हुई इस तरह बात करने की?

‘‘क्या हुआ तुम्हें प्रिये? कविता नहीं छपवानी क्या?’’ ‘‘नहीं,’’ सीमा ने साफ मना कर दिया. लालच दिया संपादक ने.

संपादक ने फिर भी पीछा नहीं छोड़ा, ‘‘पैसा नहीं कमाना चाहती क्या?’’ ‘‘इस तरह से बिलकुल नहीं, आप ने शायद मुझे गलत समझा,’’ सीमा ने हिम्मत दिखाई.

अब संपादक गिड़गिड़ाया, ‘‘अरे नहीं, मैं ने गलत नहीं समझा. मैं तो बस इतना कह रहा हूं. एक दिन अकेले में आ कर मिलो. एक कप साथ में बैठ कर कौफी पी लें. थोड़ी सी बातें कर लें. एकदूसरे को जान लें.’’ सीमा ने उस संपादक के नंबर को ब्लौक कर दिया. पर मन में डर बना रहा कि कहींकोई अनहोनी न हो, क्योंकि मेल में उस ने घर का पता भी भेजा था.

यही नहीं, इस के अलावा भी कुछ लोगों ने सीमा को लालच दिया कि मंथली बेसिस पर लेख लेंगे लेकिन शर्त वही, ‘एक मुलाकात अकेले में.’ अकेले का मतलब क्या है, आप समझ ही गए होंगे. शुरूशुरू में उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि वह पत्रकारिता की दुनिया को साफसुथरा समझती थी. सीमा के अनुसार, धीरेधीरे औफर्स इतने कौमन होते जाते हैं कि फिर इन से फर्क पड़ना बंद हो जाता है.

महिला का शोषण हर जगह और हर रूप में हो रहा है. कहीं दहेज तो कहीं शादी और कहीं नौकरी के नाम पर उस का यौनशोषण किया जाता है. कहीं गरीबी तो कहीं स्टेटस के नाम पर वह बिकने को मजबूर है. ***

झारखंड में तो औरत की इज्जत बिकना जैसे उस की नियति बनती जा रही है. कुछ ही दिनों पहले एक ऐसा मामला सामने आया है जिस में छात्रा दिल्ली के दौलतराम कालेज में पढ़ती है. कालेज के राजनीति शास्त्र के प्रोफैसर कक्षा के दौरान छात्रा के संपर्क में आए और फिर नजदीक आने का बहाना ढूंढ़ने लगे. 17 वर्षीया छात्रा का आरोप है कि प्रोफैसर शुरू से ही उस पर गलत निगाह रखते थे और नजदीक जाने पर किसी न किसी बहाने से उसे गलत तरीके से छूते थे. लिहाजा, वह प्रोफैसर से दूरियां बनाने लगी.

एक दिन प्रोफैसर ने छात्रा को कैंटीन के पास रोक लिया और गंदे शब्दों से संबोधित कर उस से छेड़छाड़ की. छात्रा के मुताबिक, प्रोफैसर उसे अकेले मिलने को बुलाते थे और अश्लील व्हाट्सऐप मैसेज भेजते थे. छात्रा का कहना है कि जब उस ने छेड़छाड़ की शिकायत करने को कहा तो प्रोफैसर ने उस को फेल करने की धमकी दी. इन बातों से छात्रा मानसिकतौर से काफी परेशान रहने लगी. बाद में दोस्तों की सलाह पर छात्रा ने प्रोफैसर के खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज करा दी. ***

महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक के खेल निदेशक देवेंद्र ढुल के खिलाफ यूजीसी-नैट क्लीयर करवाने का झांसा दे कर यौन शोषण करने के आरोप में केस दर्ज कराया गया था. ढुल पर आरोप लगाने वाली छात्रा ने अपनी शिकायत में लिखा था कि अधिकारी ने उसे नैट परीक्षा में पास कराने व पीएचडी की डिगरी दे कर लैक्चरर की नौकरी दिलवाने के एवज में औफिस के बजाय कहीं बाहर अकेले मिलने को कहा था. ***

उत्तर प्रदेश, ग्रेटर नोएडा की गलगोटिया यूनिवर्सिटी की एक छात्रा ने अपने प्रोफैसर पर यौनउत्पीड़न का आरोप लगाया था. छात्रा के अनुसार, उपस्थिति कम होने की वजह से उसे एग्जाम में बैठने से रोक दिया गया. इस के बाद उस ने ब्रांच के प्रोफैसर से मुलाकात कर एग्जाम में बैठाने की अपील की. प्रोफैसर ने उसे ज्यादा नंबर दिलाने और प्रतिदिन अधिक क्लासेस पढ़ने के लिए कहा. प्रोफैसर ने 3 दिनों तक तो उसे यूनिवर्सिटी में ही पढ़ाया. इस के बाद उस से घर पर आ कर पढ़ने के लिए कहा. घर पर बुलाने के बाद प्रोफैसर उस छात्रा का रोज यौनउत्पीड़न करता रहा. ***

साहित्य विभाग के एक युवा असिस्टैंट प्रोफैसर ने एक छात्रा को पढ़ाने के बहाने अपने घर बुला कर उस के साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए और चुप रहने की धमकी भी दी. यही नहीं, इस प्रोफैसर ने अपने रसूख का इस्तेमाल कर उस लड़की को एमए कोर्स में फेल भी करा दिया. ***

दरअसल, आप किसी भी पद पर हों, उस से फर्क नहीं पड़ता, पर आप एक महिला हैं तो सिर्फ इस कारण आप को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे कई पुरुष मिल जाएंगे जो मिलने पर हायहैलो करना नहीं भूलते. पर पीठपीछे उन की निगाहें लड़की होने का अर्थ समझा देती हैं. यह सच है कि हमारे देश में महिलाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं, फिर भी वे शोषण का शिकार हैं. यह एक कड़वी सचाई है. बजाय इस के कि हम उन की मानसिक पीड़ा को कम करें, हम महिला शोषण पर लिख कर उन के प्रति सिर्फ सहानुभूति दर्शाति हैं और इतने ही कर के अपने कर्तव्यों का पूरा होना मान लेते हैं.

समाज में महिलाओं की स्थिति अत्याचार सिर्फ वही नहीं होता जो कानून की दफाओं में दर्ज हो. हमारे देश में महिलाओं की हालत सिर्फ नारों के आसपास ही घूमती रहती है. सशक्तीकरण, आजादी, इज्जत और बराबरी का हक सिर्फ किताबों में धूल फांक रहा है. इन का जमीनी हकीकत से कोई लेनादेना नहीं है.

आज की महिला को जो विशेष सम्मान या दर्जा मिला है, वह सिर्फ कैलेंडर और तसवीरों की शोभा बढ़ाता है. जमीनी हकीकत में तो वह अब भी सिर्फ मांस का लोथड़ा भर है, जो पुरुषों के नोचनेखसोटने भर के लिए है. उस की अपनी कोई इच्छा नहीं है, अपना कोई वजूद नहीं है. वह तब तक आजाद है जब तक पुरुष चाहे. वह तब तक खुश रह सकती है जब तक कि पुरुष उस में बाधा न डाले. समाज और समुदायों में इसी ‘मर्दानगी’ को मजबूत किया जाता है. इसी से महिलाओं को पुरुषत्व का बोध कराया जाता है और इस चल रही रीति को आगे बढ़ाया जाता है. लिहाजा, मर्द महिला का बलात्कार कर अपनी कुंठा को निकालता है. दोनों तरफ से सहमति

लखनऊ स्थित एजुकेशनल टीवी सैंटर एसआईई के हेमंत का इस बारे में कहना है, ‘‘यौन उत्पीड़न की घटनाएं हर क्षेत्र में होती हैं.’’ आज से 8-10 साल पहले का वाकेआ बताते हुए वे कहते हैं, ‘‘उस समय दूरदर्शन पर औडिशन हुआ तो एनाउंसर की पोस्ट के लिए एक युवती का सिलैक्शन हुआ. डायरैक्टर साहब आशिकमिजाज थे, वे उस युवती के पीछे पड़ गए. उसे जबतब गंदे मैसेज कर देते थे. एक दिन तो हद ही हो गई जब वे शराब पी कर सीधे उस के घर पहुंच गए. युवती के परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी. तब वे अपनी इस आदत से बाज आए. उस युवती की गलती यह थी कि आगाह करने के बाद भी उस ने उसे अपने घर का नंबर दे दिया.’’ हेमंत का यह भी कहना है, ‘‘कास्टिंग काउच में सिर्फ एक पक्ष की गलती होती है, ऐसा नहीं है. यह दोनों पक्षों से जुड़ा मामला है. यह दोनों तरफ से सहमति के बाद ही संभव होता है. कास्टिंग काउच तभी संभव है, जब दूसरा इंसान भी तैयार होता है.’’

सवाल उठता है कि क्या कास्टिंग काउच आज के समय में बिलकुल नौर्मल बात है? क्या टैलेंट की कोई कद्र नहीं? क्या आगे बढ़ने के लिए घिनौनी शर्तों को मानना पड़ता है? बहरहाल, ऐसी भी बहुत युवतियां हैं जो कास्टिंग काउच के सामने घुटने टेकने के बजाय उस की असलियत सब के सामने लाने में यकीन रखती हैं जबकि कुछ कामयाबी के लिए इसे एक आसान राह मान कर समझौता कर लेती हैं.

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