‘अक्स’, ‘रंग दे बसंती’, ‘दिल्ली 6’, ‘भाग मिल्खा भाग’ और ‘मिर्जिया’ जैसी फिल्मों के सर्जक राकेश ओमप्रकाश मेहरा बतौर निर्माता एक डैनिश फिल्म ‘‘एवरी बडी इज फैमस’’ का भारतीयकरण कर ‘फन्ने खां’ नामक फिल्म लेकर आए हैं. अब तक अपनी मौलिक कहानियों पर काम करते रहे राकेश ओमप्रकाश मेहरा ‘फन्ने खां’ बनाते समय भूल गए कि ‘नकल के लिए भी अकल’ चाहिए. फिल्म के लेखक व निर्देशक अतुल मांजरेकर ने भी साबित कर दिखाया कि वह कितनी वाहियात और बेसिर पैर की फिल्म निर्देशित कर सकते हैं.
फिल्म ‘‘फन्ने खां’’ की कहानी के केंद्र में गायकी में सुपर स्टार न बन पाने वाले प्रशांत शर्मा (अनिल कपूर) हैं, जो कि अपने दोस्तों के बीच फन्ने खां के नाम से मशहूर हैं. प्रशांत के दो भगवान हैं मोहम्मद रफी और शम्मी कपूर और उसके खास दोस्त अधीर (राज कुमार राव) हैं. एक औक्रेस्टा में गाते हुए प्रशांत शर्मा अपने सपनों को पूरा करने के लिए काफी मेहनत करते हैं. यहां तक कि सुपरस्टार बनने के लिए वह शम्मी कपूर की पूजा तक करते नजर आते हैं. उनकी एकमात्र तमन्ना स्टारडम पाना है.
प्रशांत की पत्नी कविता (दिव्या दत्ता) भी उनके सपने को सच करने की दिशा में उनके साथ रहती है. मगर प्रशांत के सपने पूरे नहीं हो पाते हैं. प्रशांत एक फैक्टरी में नौकरी करते हैं. जब उनकी बेटी का जन्म होता है, तो वह उसका नाम लता रखते हैं और अब वह अपने सपने को अपनी बेटी लता के माध्यम से पूरा होते देखना चाहते हैं. जैसे जैसे लता बड़ी होती है, वह संगीत व नृत्य में अपना कौशल दिखाने लगती है. वह अच्छा गाती है और अच्छा नृत्य भी करती है. मगर शारीरिक रूप से मोटी होने के कारण जब लता (पिहू सैंड) स्टेज पर पहुंचती है, तो लोग उसका मजाक उड़ाते हैं.
प्रशांत अपनी बेटी को सफल गायिका बनाने के लिए हर तरह के प्रयास करते हैं. इसी दौरान उनकी नौकरी चली जाती है तो वह टैक्सी चलाने लगते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान प्रशांत को अपनी बेटी लता से फटकार भी सुननी पड़ती है. जबकि अब मशहूर पौप गायिका बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय बच्चन) के लोग दीवाने बन चुके हैं. पर बेबी सिंह का मैनेजर चाहता है कि रियालिटी शो में बेबी सिंह के साथ कुछ गलत हो जाए. उधर प्रशांत चाहते हैं कि किसी तरह उनकी बेटी लता के गाए गीतों का एक संगीत अलबम बाजार में आ जाए.
जब एक दिन मशहूर पौप गायिका बेबी सिंह, प्रशांत की टैक्सी में यात्रा करती है, तो प्रशांत के दिमाग में आता है कि यदि बेबी सिंह का अपहरण कर लिया जाए तो उसका काम आसान हो सकता है. वह अपने मित्र अधीर की मदद से बेबी सिंह का अपहरण कर लेते हैं. उसके बाद बेबी सिंह के मैनेजर कक्कड़ (गिरीष कुलकर्णी) को फोनकर फिरौती मांगते हैं, मगर फिरौती में रकम नहीं मांगते. उसके बाद कहानी कई उतार चढ़ाव से गुजरती है.
एक सफल विदेशी फिल्म का भारतीयकरण करते समय लेखक व निर्देशक ने काफी गलतियां की हैं. मूल फिल्म ‘एवरी बडी इज फैमस’’ एक डार्क कौमेडी वाली छोटी फिल्म थी, जबकि ‘फन्ने खां’ मेलोड्रामैटिक और काफी लंबी फिल्म है. फिल्म का क्लायमेक्स सहित बहुत कुछ अविश्वसनीय लगता है. कहानी का ढांचा सही ढंग से बुना ही नहीं गया. एक संवेदनशील व बेहतरीन मुद्दे वाली फिल्म का हश्र ‘थोथा चना बाजे घना’ वाला हो गया.
कथानक के स्तर पर कहीं कोई गहराई नहीं है. लता का अपने पिता के खिलाफ शिकायत करते रहने की बात समझ में नहीं आती. ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत बेबी सिंह का किरदार भी ठीक से गढ़ा नहीं गया. मजेदार बात यह है कि इंटरवल से पहले भी फिल्म वाहियात है, मगर इंटरवल के बाद तो यह फिल्म और अधिक वाहियात हो गयी है.
निर्देशक के तौर पर अतुल मांजरेकर अफसल रहे हैं. फिल्म के मूल कथानक से ही वह भटक गए हैं. काश राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने यह फिल्म अतुल मांजरेकर की बनिस्बत किसी समझदार निर्देशक को सौंपी होती.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो एक भी कलाकार अपने अभिनय से प्रभावित नहीं करता. कमजोर पटकथा व कमजोर चरित्र चित्रण के चलते अनिल कपूर व राज कुमार राव जैसे बेहतरीन कलाकार भी फिल्म को डूबने से नहीं बचा सकते. राज कुमार राव व अनिल कपूर दोस्त हैं, मगर परदे पर इनकी केमिस्ट्री नजर ही नहीं आती. कैमरामैन तिरू की प्रशंसा की जा सकती है.
‘‘फन्ने खां’’ एक संगीत प्रधान फिल्म है. मगर संगीतकार अमित त्रिवेदी बुरी तरह से निराश करते हैं.
दो घंटे नौ मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फन्ने खां’’ का निर्माण राकेश ओमप्रकाश मेहरा, अनिल कपूर, टीसीरीज, निशांत पिट्टी, वीरेंद्र अरोड़ा ने किया है. फिल्म के निर्देशक अतुल मांजरेकर, पटकथा लेखक अतुल मांजरेकर, हुसेन दलाल, अब्बास दलाल, संवाद लेखक हुसेन दलाल, संगीतकार अमित त्रिवेदी, कैमरामैन तिरू तथा फिल्म के कलाकार हैं – अनिल कपूर, ऐश्वर्या राय बच्चन, राज कुमार राव, पिहू सैंड, दिव्या दत्ता, करण सिंह छाबरा, अनैयथा नायर, गिरीष कुलकर्णी, स्वाती सेमवाल व अन्य.
स्क्रीनशौट का नाम सुना होगा. नाम से ही साफ है कि जो भी स्क्रीन पर दिख रहा है उसे कैप्चर कर लेना और सेव करके रखना या किसी को भेजना है. कई बार हमे फोन में स्क्रीनशौट लेने की जरूरत पड़ती है. कई लोगों को इसकी जानकारी नहीं है कि अपने मोबाइल में स्क्रीनशौट कैसे लें. आइए हम आपको स्मार्टफोन में स्क्रीनशौट लेने के 7 बेहतरीन तरीके बताते हैं.
एंड्रायड फोन में स्क्रीनशौट लेने के तरीके
पहला तरीका होम बटन और पावर को एक साथ दबाकर स्क्रीनशौट लेने का है.
दूसरा तरीका यह है कि वाल्यूम डाउन बटन और पावर बटन को एक साथ दबाकर रखें.
इसके अलावा शाओमी जैसी कंपनियों के मोबाइल में स्क्रीनशौट के लिए एक अलग से बटन दिया गया है. इसके लिए जिस स्क्रीन का शौट लेना चाहते हैं उसी पर रहते हुए ऊपर से नोटिफिकेशन बार को नीचे की ओर स्क्रौल करें और स्क्रीनशौट वाले बटन को दबाएं. ये सारे फोटोज फोन की गैलरी के फोल्डर में स्क्रीनशौट के नाम से एक फोल्डर में सेव होंगे.
वहीं अधिकतर फ्रिंगरप्रिंट वाले फोन में तीन उंगलियों को एक साथ ऊपर से नीचे की ओर करके स्क्रीनशौट लिया जा सकता है, हालांकि इसके लिए जरूरी है कि फिंगरप्रिंट फीचर औन हो.
इसके अलावा आप फोन में मौजूद Google Assistant से भी स्क्रीनशौट लेने के लिए बोल सकते हैं. इसके लिए पहले ओके गूगल बोलें, फिर टेक ए स्क्रीनशौट बोले. अब गूगल असिस्टेंट स्क्रीनशौट लेकर उसे शेयर करने के लिए पूछेगा. आप चाहें तो शेयर करें या फिर सेव कर लें.
वहीं विंडोज फोन में स्क्रीनशौट लेने के लिए भी होम बटन और पावर बटन को एक साथ दबाएं, हालांकि विंडोज 8 ओएस वाले फोन में ही स्क्रीनशौट लिए जा सकते हैं. इससे नीचे के ओएस पर यह फीचर काम नहीं करेगा.
आईफोन में भी एंड्रायड फोन की तरह की स्क्रीनशौट लिए जा सकते हैं. इसके लिए होम बटन और पावर बटन को एक साथ दबाएं. उसके बाद अब अपने फोन के फोटोरोल फोल्डर में स्क्रीन शौट चेक करें.
रिलायंस जियो और स्टेट बैंक औफ इंडिया ने आपस में साझेदारी कर ली है. यह साझेदारी एसबीआई (SBI) के ग्राहकों को नेक्स्ट जेनरेशन बैंकिंग सर्विसेज औफर करने के लिए हुई है. एसबीआई के ग्राहकों को डिजिटल बैंकिंग, कौमर्स और फाइनेंशियल सुपरस्टोर की सर्विसेज देने वाला SBI YONO रिलायंस MyJio प्लेटफौर्म के साथ इंटीग्रेट होगा. इस डिजिटल पार्टनरशिप का मकसद एसबीआई के डिजिटल ग्राहक बेस को कई गुना बढ़ाना है. बता दें कि YONO के डिजिटल बैंकिंग फीचर्स और सौल्यूशंस को बेहतर कस्टमर एक्सपीरियंस के लिए MyJio प्लेटफौर्म के जरिए इनेबल कराया जाएगा.
इस मौके पर स्टेट बैंक औफ इंडिया के चेयरमैन रजनीश कुमार ने कहा, ‘हम दुनिया के सबसे बड़े नेटवर्क Jio के साथ साझेदारी करके काफी उत्साहित हैं.’ रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने कहा, ‘दुनिया में एसबीआई की ग्राहक संख्या का कोई मुकाबला नहीं है. जियो अपने रिटेल इकोसिस्टम के साथ सुपीरियर नेटवर्क और प्लेटफौर्म का इस्तेमाल करने के लिए प्रतिबद्ध है.’
SBI ग्राहकों के लिए स्पेशल औफर्स पर उपलब्ध होंगे जियो फोन्स
SBI, Jio के साथ इसके एक प्रमुख साझेदार के रूप में जुड़ेगा. यह नेटवर्क और कनेक्टिविटी सौल्यूशंस डिजाइन करेगा और उसे उपलब्ध कराएगा. शहरी और ग्रामीण इलाकों में जियो का हाइएस्ट क्वालिटी नेटवर्क एसबीआई को वीडियो बैंकिंग और दूसरी औन-डिमांड सर्विसेज लॉन्च करने की सहूलियत देगा. इसके अलावा, एसबीआई ग्राहकों के लिए जियो फोन्स स्पेशल औफर्स पर उपलब्ध होंगे.
जियो और SBI के ग्राहकों को होगा Jio Prime से फायदा
MyJio देश के सबसे बड़े ओवर-द-टौप (OTT) मोबाइल एप्लीकेशंस में से एक है. अब इसमें एसबीआई और जियो पेमेंट्स बैंक की फाइनेंशियल सर्विसेज कैपेबिलिटीज को शामिल किया जाएगा. रिलायंस जियो और एसबाआई के ग्राहकों को जियो प्राइम से फायदा होगा. जियो प्राइम
(Jio Prime), रिलायंस का कंज्यूमर इंगेजमेंट और कौमर्स प्लेटफौर्म है. जियो प्राइम रिलायंस रिटेल, जियो, पार्टनर ब्रांडस और मर्चेंट्स की एक्सक्लूसिव डील्स औफर करेगा. इसके अलावा, SBI Rewardz (SBI का मौजूदा लौयल्टी प्रोग्राम) और जियो प्राइम के बीच इंटीग्रेशन से एसबीआई के ग्राहकों को एडिशनल लौयल्टी रिवार्ड अर्निंग और्प्च्यूनिटीज औफर की जाएंगी. साथ ही, रिलायंस, जियो, दूसरे औनलाइन और औफलाइन पार्टनर्स के साथ रिडेम्प्शन की सहूलियत दी जाएगी.
बौलीवुड फिल्म इंडस्ट्री में खिलाड़ियों के ऊपर बायोपिक बनाई जा रही है और इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है. बौलीवुड में पहले महेंद्र सिंह धोनी के ऊपर बायोपिक बनाई गई उसके बाद हाल ही में भारतीय हौकी टीम के पूर्व कप्तान संदीप सिंह के ऊपर बायोपिक ‘सूरमा’ बनाई गई. इसके अलावा श्रद्धा कपूर बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल के रोल में जबकि हर्षवर्धन कपूर पूर्व प्रफेशनल शूटर अभिनव बिंद्रा का किरदार निभाते नजर आएंगे.
अब सूत्रों के हवाले से पता चला है कि फिल्म प्रड्यूसर रौनी स्क्रूवाला ने भारत की टेनिस खिलाड़ी सानिया मिर्जा पर बायोपिक बनाने के लिए राइट्स खरीदे हैं. सूत्रों के मुताबिक, ‘कई लोग सानिया मिर्जा की जिंदगी पर फिल्म बनाना चाहते हैं. लेकिन आखिरकार इस फिल्म के राइट्स रौनी को मिल गए हैं. इस फिल्म में सानिया की प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ को दिखाया जाएगा. जल्द ही इस फिल्म के लिए डायरेक्टर का चयन कर लिया जाएगा और उसके बाद इसके लिए कास्टिंग शुरू की जाएगी.’
बता दें कि सानिया को पद्मश्री, पद्म भूषण, राजीव गांधी खेल रत्न और अर्जुन अवार्ड से नवाजा जा चुका है. सानिया ने 6 साल की उम्र में टेनिस खेलना शुरू कर दिया था और साल 2003 से उन्होंने प्रोफेशनल टेनिस खेलना शुरू कर दिया. 2003 में उन्होंने महिलाओं का विम्बलडन डबल्स का टाइटल जीता था. इसके बाद उन्होंने 6 ग्रैंड स्लैम डबल्स के टाइटल जीते हैं. सानिया ने 12 अप्रैल 2010 को पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक से शादी कर ली. हाल में उन्होंने सोशल मीडिया पर बताया था कि वह गर्भवती हैं.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कमल हासन ने न केवल अभिनय से बल्कि सिंगर, निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक, ट्रेंड डांसर, नृत्य निर्देशक आदि सभी से सिने प्रेमियों को अपना दीवाना बनाया दिया. सुपरस्टार बनने तक का उनका सफर आसान नहीं था. उन्होंने भिन्न-भिन्न प्रकार के अभिनय कर अपनी एक अलग पहचान बनायी. क्षेत्रीय फिल्मों के साथ-साथ उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी अनोखे विषय चुने, यही वजह है कि आज उनकी गणना महानायकों में की जाती है.
बाल कलाकार के रूप में अपने अभिनय की शुरुआत करने वाले अभिनेता कमल हासन सबसे अधिक सम्मानित अभिनेता हैं. उनके नाम सबसे अधिक राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार पाने वाले अभिनेता होने का रिकौर्ड दर्ज है. वे पद्मश्री और पद्मभूषण की उपाधि भी पा चुके हैं.
कमल हासन कैरियर में जितनी बुलंदियों पर थे, उतना वे पारिवारिक जीवन में सफल नहीं रहे. कैरियर की शुरुआत में उन्होंने दक्षिण की लोकप्रिय अभिनेत्री विद्या के साथ कई तमिल और मलयालम फिल्मों में काम किया. इनका प्रेम सम्बन्ध काफी दिनों तक चला, पर कमल हासन ने उसे छोड़ अपने से बड़ी उम्र की नर्तकी वाणी गणपति से शादी की. दस साल तक साथ रहने के बाद जब वाणी को पता चला कि कमल हासन सारिका को डेट कर रहे हैं, तो वाणी और कमल हासन का रिश्ता टूट गया. इसके बाद उसने सारिका से शादी की और दो बेटियों श्रुति हासन और अक्षरा हासन के पिता बने, लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते सारिका से भी उनका तलाक हो गया. इसके बाद उनका नाम तमिल फिल्म एक्ट्रेस गौतमी तडीमल्ला के साथ जुड़ा. कुछ सालों बाद वे उनसे भी अलग हो गए.
इन दिनों कमल हासन अपनी फिल्म ‘विश्वरूपम 2’ के प्रमोशन पर है, जो उनके फिल्मी करियर की अंतिम फिल्म है. उनसे बात हुई पेश है अंश.
‘विश्वरूपम 2’ को करने की वजह क्या रही?
पहली विश्वरूपम करने के बाद लगा कि एक और स्टोरी कही जा सकती है और ये कांसेप्ट 7 साल पहले का है, जिसकी मैंने अभी फिल्म बनायीं है.
आप हमेशा फिल्मों के जरिये कुछ संदेश देना पसंद करते हैं इसमें आपने क्या संदेश देने की कोशिश की है?
मैं मनोरंजन के साथ-साथ हमेशा फिल्मों के जरिये संदेश देता आया हूं. ये हर निर्माता निर्देशक का फिल्म बनाने का तरीका होता है. मैंने हमेशा सबसे अलग फिल्म बनाने की कोशिश की है और मैं फिल्मों के जरिये राजनीति या किसी का मजाक उड़ाना नहीं चाहता, बल्कि अपने दर्शकों को जागरूक करना चाहता हूं. हिंदी फिल्म हे राम, दशावतार आदि सभी ऐसी ही फिल्में हैं. जहां मैंने किसी खास विषय पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की है. मैंने अपना पूरा जीवन सिनेमा को दिया है. अब जो भी बचा है, उसे करने की इच्छा रखता हूं.
उम्र के इस पड़ाव में आप थ्रिलर और एक्शन वाली फिल्म कर रहे हैं, कितना मुश्किल था?
उम्र का प्रभाव आपके दिमाग और ट्रेनिंग पर निर्भर करता है. इससे कोई मुश्किल नहीं होती.
आप लेखक, निर्माता, निर्देशक सब हैं इसके फायदे या नुकसान क्या है?
नुकसान नहीं फायदे ही अधिक है. पहले फिल्मों को बनाने में सभी ऐसा ही करते थे. सत्यजीत राय हो या सोहराब मोदी सभी ने ऐसा ही किया. अब नया ट्रेंड आया है, जहां सब अलग होता है.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में आये इस बदलाव को आप कैसे लेते हैं?
अभी अच्छा समय है, नए यूथ आराम से आ रहे हैं और ये अच्छी बात है, पहले ऐसा नहीं था. पहले आर्ट और कमर्शियल सिनेमा में काफी अंतर था. जब आप एक फिल्म बनाते हैं और उसका टिकट बिक जाता है, तो उसे कमर्शियली सफल फिल्म कही जाती थी और अगर ऐसा नहीं होता, तो उसे आर्ट फिल्म का दर्जा दे दिया जाता था. ऐसा मैं पिछले 40 साल के कैरियर में देख रहा हूं. ऐसा नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये तो कास्ट सिस्टम जैसा हो गया कि एक दूसरे को छू न सके. फिल्मेकर सत्यजीत राय ने तो ‘शोले’ फिल्म की भी तारीफ की थी और वैसा ही होने की जरुरत है.
आपने सफलता और असफलता दोनों को देखा है, दोनों आपके लिए क्या माइने रखते हैं?
ये दोनों ही शब्दों का हेर-फेर है. एक जब आप किसी गलत बस में चढ़ जाते हैं और अपने पते तक नहीं पहुंच पाते, दूसरा जिसमें आप सही पते पर पहुंच जाते हैं. बस यही अंतर है, क्योंकि दोनों में सवारी एक ही होती है और सफर का मजा भी एक ही होता है. फिल्म ‘हे राम’ के लिए मैंने जितना मेहनत किया उतना ही मैंने ‘विश्वरूपम’ के लिए भी किया था.
आज कल कई फिल्मों के बैन होने से फिल्म मेकर परेशान होते हैं आप के साथ भी हुआ इसे आप कैसे देखते हैं?
ये बहुत गलत है, इसमें गंदी राजनीति काम करती है, जहां एक कम्युनिटी को उसका आधार बनाया जाता है. दर्शकों को इसकी जानकारी नहीं होती. इससे बहुत सारे लोग परेशान होते हैं. उनकी रोजी-रोटी जाती है. फिल्म ‘विश्वरूपम’ के समय मुझे 60 करोड़ का नुकसान हुआ. उन्हें लगा था कि मैं टूट जाऊंगा, पर ऐसा नहीं हुआ, मैंने धीरज से काम लिया.
फिल्म से हटकर राजनीति में जाने की इच्छा कैसे पैदा हुई?
मैंने अपना पूरा जीवन फिल्म को दिया है, अब कुछ और करने की इच्छा है, इसलिए राजनीति में जाना चाहता हूं.
अभी आप राजनीति में आ रहे है, क्या कोई मापदंड बनाया है? किस तरीके का सुधार तमिलनाडु में करना चाहते हैं?
अभी कुछ कहना मुश्किल है, पर मेरी लाइफ अब कम हो चुकी है और इसमें मैं लोगों के लिए कुछ करना चाहता हूं. इसलिए मैं अर्थपूर्ण काम करने की इच्छा रखता हूं.
क्या आप अपनी बेटियों को कोई सलाह देते या उनसे लेते हैं?
मैं न तो सलाह देता हूं और न ही लेता हूं. शुरू से ही मैं केवल अपनी राय रखता हूं और उनके गलत राय को बदलने की कोशिश करता हूं.
राजमिस्त्री का काम करने वाले विजयपाल ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की दुनिया में ऐसा भयानक तूफान आएगा कि उस में सब कुछ नष्ट हो जाएगा.
विजयपाल बचपन से ही अपनी ननिहाल गांव हसनपुर नंगला, पलवल, हरियाणा में रहता था. लगभग 22 साल पहले उस की शादी उत्तर प्रदेश के जिला गौतमबुद्ध नगर के कस्बा जेवर की राधा के साथ हुई थी.
राधा दुलहन बन कर हसनपुर आ गई तो विजयपाल के जीवन में बहार आई. शादी के बाद चूंकि खर्चे बढ़ गए थे, इसलिए वह अब और ज्यादा मेहनत करने लगा था. फिर राधा ने पूनम को जन्म दिया. पिता बन चुके विजयपाल के पैर जमीन पर ही नहीं पड़ते थे. सभी कुछ अच्छा हो रहा था.
एक आम आदमी की तरह विजयपाल दिन भर मेहनत करता और रात में उसी बिल्डिंग में अपने मजदूरों के साथ सो जाता. वह दूरदराज के ठेके लेने के कारण कईकई दिनों तक घर नहीं आ पाता था. पर उसे विश्वास था कि उस की पत्नी बच्चों की परवरिश भलीभांति कर लेगी.
समय बीतता गया और पूनम के अलावा राधा 4 और बच्चों की मां बन गई. अब विजयपाल को घर के बढ़ते खर्चे और बच्चों की पढ़ाई की चिंता होने लगी. पिछले कुछ दिनों से राधा पति से जिद करने लगी थी कि हरियाणा में रहने से तो अच्छा है कि उन्हें अब अपनों के बीच रहना चाहिए, क्योंकि विजयपाल जो अपने नानानानी के यहां रहता था, वे भी चल बसे थे. पत्नी की बात विजयपाल की भी समझ में आ गई.
उस ने अपने एक दोस्त से बात की, जो अलीगढ़ जिले के गांव सालपुर में रहता था. दोस्त ने उस से कहा कि वह उस के रहने और काम की व्यवस्था कर देगा. दोस्त से बात करने के बाद विजय ने राहत की सांस ली.
वह कुछ साल पहले अपनी पत्नी और बच्चों के साथ गांव सालपुर में आ कर बस गया. यह गांव अलीगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 65 किलोमीटर दूर है. वहीं आसपास वह मकान बनाने के ठेके लेने लगा.
सालपुर से विजय की ससुराल करीब 25 किलोमीटर दूर थी. अत: विजयपाल इस बात से भी आश्वस्त था कि उस का परिवार अब अपनों के काफी करीब है. यह मानवीय सोच है कि हर कोई अपनों से सहायता और सहयोग की उम्मीद रखता है पर अपनों के बीच आने का फैसला विजयपाल को इतना महंगा पड़ेगा, उस ने कभी भी नहीं सोचा था.
विजयपाल अपने बच्चों को पढ़ालिखा कर उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना चाहता था. उस की बड़ी बेटी पूनम पढ़ाई में काफी अच्छी थी. काम की वजह से विजयपाल कईकई दिनों बाद ही घर आ पाता था.
उस के पीछे उस के घर में क्या हो रहा था, उसे कुछ पता नहीं था. वह एकदो दिन के लिए घर आता तो उसे घर पर सब कुछ सामान्य ही दिखता था. इस से उसे लगता कि सब कुछ ठीक चल रहा है. पर घर पर उस की बड़ी बेटी पूनम का अपनी मां राधा से जो टकराव पैदा हो गया था, वह आने वाले वक्त में क्या गुल खिलाएगा, यह कोई नहीं जान सका था.
4-5 साल पहले विजय का परिवार सालपुर में आ कर बस गया था. तब से पूनम यह महसूस कर रही थी कि उस की मां जब चाहे तब अपने मायके चली जाती है.
कभीकभी पूनम को अपनी मां की हरकतों पर शक होता, लेकिन अभी वह बहुत छोटी थी इसलिए मां से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाती थी इतना ही नहीं, वह मां के बारे में पिता को कुछ नहीं बता पाती थी. पर उस के मन में मां के प्रति नफरत के बीज अंकुरित हो चुके थे.
पूनम ने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करने के लिए अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगा दिया था, पर समय कब करवट ले ले, पता ही नहीं चलता. पूनम पिछले कुछ समय से गांव में पड़ोस में रहने वाले प्रवेश कुमार को पसंद करने लगी थी. वह बीए तृतीय वर्ष में पढ़ रहा था. पढ़ाई के साथसाथ वह एक कोचिंग सेंटर में नौकरी भी करता था.
पूनम की मेहनत रंग लाई. उस ने इंटरमीडिएट की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर ली और उसे भी उसी कोचिंग सेंटर में काम मिल गया, जहां प्रवेश पढ़ाता था. पूनम भी एक तरह से अब एक टीचर बन गई थी.
पूनम और प्रवेश धीरेधीरे काफी करीब आने लगे थे. घर के माहौल से तंग आ कर पूनम जब प्रवेश कुमार के साथ थोड़ा समय बिता लेती तो खुद को सामान्य महसूस करती. पर प्रवेश को लगता कि पूनम किसी बात को ले कर परेशान रहती है. अभी तक पूनम और उस के बीच इतनी नजदीकियां नहीं थीं कि वह उस के मन की बात समझ पाता.
दरअसल पिछले कुछ समय से पूनम ने अपनी मां के व्यवहार में काफी बदलाव देखा. एक दिन जब वह कोचिंग सेंटर से घर लौटी तो देखा प्रताप उर्फ डिंपल और उस का भाई प्रभात उस के घर में बैठे हुए थे और उस की मां उन के साथ हंसहंस कर बातें कर रही थी.
उन दोनों को देख कर पूनम सीधे अपने कमरे में चली गई तो राधा ने उस के कमरे में आ कर कहा, ‘‘क्या पढ़ाईलिखाई ने इतनी भी तमीज नहीं सिखाई कि मामा लोगों को नमस्ते भी कर लो.’’
‘‘कौन मामा?’’ पूनम ने गुस्से में कहा, ‘‘वो मेरे मामा कैसे हो सकते हैं, मैं सब कुछ जानती हूं मम्मी, तुम इन्हीं से मिलने के लिए जेवर जाती हो.’’
‘‘हां तो क्या मैं अपने मुंहबोले भाइयों से मिल भी नहीं सकती.’’
‘‘मुंहबोले भाई! मम्मी क्यों हमें धोखा दे रही हो. मैं इन्हें अच्छी तरह जानती हूं और फिर तुम्हारे क्या भाई नहीं हैं जो तुम ने इन को भाई बना लिया. देखो मम्मी, तुम जेवर जाती हो, खूब जाओ, पर इन का यहां आनाजाना मुझे पसंद नहीं है.’’ पूनम ने मन में दबी बात कह डाली.
बेटी की बात सुन कर राधा हैरान रह गई और बाहर आ कर उस ने प्रताप से कहा, ‘‘पूनम काफी थकी हुई है, इसलिए मैं तुम लोगों के लिए चाय बना कर लाती हूं.’’
प्रताप उर्फ डिंपल और प्रभात सालियान निवासी खुशीराम के बेटे थे. खुशीराम बीडीओ था. प्रताप और प्रभात दोनों ही वैद्य थे, साथ ही दोनों भाई तंत्रमंत्र क्रियाओं से बीमार लोगों का इलाज करने का भी दावा करते थे. प्रभात ने तो मथुरा के गांव बाजना में किराए का मकान ले कर अपना धंधा जमा लिया था जबकि प्रताप ने सालपुर में अपनी दुकान खोल ली थी.
उस दिन के बाद दोनों भाइयों का राधा के पास आनाजाना होने लगा. वे उस की आर्थिक मदद भी करते रहते थे. राधा के उन दोनों भाइयों के साथ अवैध बन गए थे.
पूनम को ये दोनों भाई फूटी आंख नहीं भाते थे. उस ने मां से कह भी दिया था कि इन का घर में आनाजाना ठीक नहीं है. पर मां ने उसे डांटते हुए कह दिया कि वह उस के जीवन में दखल न दे और केवल अपने काम से काम रखे.
मां की हरकतें पूनम के दिलोदिमाग में हलचल मचाए हुए थीं. ऐसे में वह क्या करे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. पर हद तो तब हो गई जब एक दिन प्रताप ने पूनम के पास आ कर अचानक उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘हम में क्या बुराई है, जो तुम हम से दूर भागती हो?’’
प्रताप की इस हरकत पर पूनम को गुस्सा आ गया. वह अपनी मां से चिल्ला कर बोली, ‘‘मम्मी, अपने इस भाई को समझा लो वरना बहुत बुरा होगा.’’
प्रताप ने हैरानी से पूनम को देखा और बोला, ‘‘बड़ी चरित्रवान बनती है. तू क्या समझती है कि हमें तेरे बारे में कुछ पता नहीं है.’’
‘‘क्या पता है तुम्हें? और पता भी होगा तो फिर क्या कर लोगे तुम? देखो, जो तुम मेरी मां के भाई बनने का ढोंग कर रहे हो, वो सब मैं अच्छी तरह जानती हूं. तुम दोनों भाई मेरे परिवार से दूर ही रहो तो अच्छा है नहीं तो मैं अपने पापा को सब बता दूंगी.’’ पूनम गुस्से में बोली.
पूनम के तेवर देख प्रताप स्तब्ध रह गया लेकिन पूनम की बात पर उस की मां को गुस्सा आ गया. राधा ने पूनम को 2-4 तमाचे जड़ दिए. वह बोली, ‘‘तूने 2-4 किताबें क्या पढ़ लीं, अपनी औकात ही भूल गई.’’
पूनम भी कहां चुप रहने वाली थी. उस ने मां को फिर चेताया, ‘‘मम्मी, इन दोनों भाइयों से तुम दूर ही रहो तो अच्छा होगा वरना एक दिन तुम्हारे चालचलन ही हमें ले डूबेंगे.’’
उस दिन प्रताप और प्रभात तो वहां से चले गए पर जल्द ही उन्हें पता चल गया कि पूनम गांव के ही प्रवेश कुमार नाम के एक युवक से प्यार करती है. वे समझ गए कि प्रवेश ही पूनम की ताकत है.
दोनों भाइयों को लगा कि राधा के साथ उन का जो खेल चल रहा है, उस में पूनम और प्रवेश कुमार सब से बड़ी बाधा हैं और वे दोनों उन के लिए खतरा हो सकते हैं. इसलिए जरूरी है कि उन दोनों को बदनामी का डर दिखा कर दूर कर दिया जाए.
एक दिन प्रवेश कुमार ने पूनम से कहा, ‘‘कल मुझे प्रताप ने रास्ते में रोक कर कहा था कि तू हमारी भांजी पूनम से मिलनाजुलना छोड़ दे वरना जिंदा नहीं छोड़ेंगे.’’
उस की बात पर मुझे गुस्सा आ गया था. तब मैं ने उस का गिरेबान पकड़ कर कह दिया था कि तुम दोनों भाई किस नीयत से राधा आंटी के पास जाते हो, इस की जानकारी मुझे है, पर पूनम को तुम दोनों ने कोई नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो मैं तुम दोनों को छोड़ूंगा नहीं.
‘‘मेरे तेवर देख कर प्रताप को शायद महसूस हो गया कि अगर राधा के साथ बने अवैध संबंधों की पोल खुल गई तो उन की सभी जगह बदनामी होगी. फिर उन की तंत्रमंत्र और वैद्य की दुकान भी बंद हो जाएगी. इस के बाद प्रताप मुझे देख लेने की धमकी दे कर चला गया.’’
प्रवेश ने अपनी प्रेमिका पूनम से कहा कि वह इन दोनों भाइयों से सतर्क रहे और अगर ये दोनों तुम्हें तंग करें तो तुम अपनी मां से शिकायत जरूर करना. इन से डरने की जरूरत नहीं है.
पूनम जानती थी कि मां से शिकायत कर के कोई फायदा नहीं, क्योंकि वह जब मां के सामने ही उस के साथ छेड़छाड़ कर रहे थे तो उस समय भी मां ने उन से कुछ नहीं कहा था. इसलिए पूनम मां से चिढ़ती थी. पूनम ने तय कर लिया कि ऐसे माहौल में उसे खुद ही सतर्क रहना होगा.
मांबेटी दोनों के बीच काफी रस्साकशी चल रही थी. एक दिन राधा ने पूनम से कहा, ‘‘प्रवेश के साथ तेरी दोस्ती हमें पसंद नहीं है. वह अच्छा लड़का नहीं है.’’
गुस्से में भरी पूनम ने तय कर लिया कि इस बार वह अपने पापा को सब कुछ बता देगी पर काफी सोचविचार के बाद उसे लगा कि यदि मां ने उन्हें प्रवेश के साथ उस के संबंधों की बात बता दी तो पापा क्या करेंगे, इस की कल्पना करना भी मुश्किल था.
विजयपाल अपने घर से काफी दूर रह कर काम कर रहा था. उसे नहीं मालूम था कि उस के घर में क्या चल रहा है. मां और बहन की लड़ाई में छोटे बच्चे भी काफी सहमे रहते थे.
इसी बीच एक रात प्रताप और प्रभात राधा के घर में ही रुक गए. तब पूनम ने राधा से कहा, ‘‘मां, ये तुम्हारे भाई लोग यहां रात में क्या कर रहे हैं?’’
राधा ने कहा, ‘‘तुझे शायद यह पता नहीं है कि जिन मामा लोगों से तू नफरत करती है न, वही हमारी जरूरतें पूरी कर रहे हैं. तेरे बाप जितने पैसे भेजते हैं, उस से घर का खर्च नहीं चल पाता.’’
‘‘मम्मी, तुम बहुत बुरी हो.’’ कह कर पूनम अपने कमरे में चली गई पर उस दिन प्रताप का इरादा कुछ दूसरा ही था. खाना खाने के बाद वह पूनम का हाथ पकड़ कर उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा. गुस्से में भरी पूनम ने मां से कहा, ‘‘यही हैं तुम्हारे भाई. जैसा ये तुम्हारे साथ करते हैं, वही मेरे साथ करने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगी.’’
कह कर पूनम ने एक जोरदार थप्पड़ प्रताप के गाल पर जड़ दिया. इस के बाद उस ने अपने कमरे में जा कर अंदर से कुंडी लगा ली. वह खूब रोई. फिर उस ने अपने प्रेमी प्रवेश को फोन कर के सारी बात बता दी.
पूनम की इज्जत खतरे में है, यह सोच कर प्रवेश गुस्से में भर उठा. वह सोचने लगा कि ऐसे में उसे क्या करना चाहिए. अगले दिन प्रताप प्रवेश को रास्ते में मिल गया. उस ने प्रवेश से कहा, ‘‘तू हमारी भांजी से दूर नहीं रहा तो तेरे लिए बहुत बुरा होगा. तेरे 10 अप्रैल को होने वाले इम्तिहान से पहले ही हम तुझे ऐसी सजा देंगे कि तू याद रखेगा. याद रखना कि हम तुझे इम्तिहान में नहीं बैठने देंगे.’’
प्रवेश की समझ में यह आने लगा था कि यदि वह खामोशी से बैठा रहा तो जरूर दोनों मौका पाते ही उसे कोई बड़ा नुकसान पहुंचा सकते हैं. प्रवेश ने उसी समय तय कर लिया कि उस की प्रेमिका पर बुरी नजर रखने वालों को वह जिंदा नहीं छोड़ेगा.
इस के बाद उस ने एक देशी कट्टा और कारतूसों का इंतजाम किया. उस के सिर पर खून सवार था. वह पूनम से बहुत प्यार करता था. दोनों एक ही जाति के थे. अत: दोनों अपनी दुनिया बसाना चाहते थे. ऐसे में कोई उस की प्रेमिका के साथ छेड़छाड़ करे, यह बरदाश्त करना उस के लिए बहुत मुश्किल था.
पूनम मां और उस के मुंहबोले भाइयों से परेशान थी. चूंकि दोनों भाई उस की मां के प्रेमी थे, इसलिए वह उन के खिलाफ कुछ भी सुनना नहीं चाहती थी. प्रवेश ने जो योजना बना रखी थी, उस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. उस के सिर पर तो खून सवार था.
27-28 मार्च, 2018 की रात को वह बिना किसी को कुछ बताए अपनी मोटरसाइकिल से मथुरा जिले के बाजना में पहुंच गया, जहां प्रभात उर्फ मोनू अपना क्लिनिक चलाता था और गांधी चबूतरा स्थित मुरारीलाल के मकान में किराए पर रहता था.
सुबह 4 बजे के करीब प्रवेश ने प्रभात के दरवाजे पर दस्तक दी तो प्रभात ने दरवाजा खोला. सामने प्रवेश को देखते ही उसे पसीना आ गया. वह डर के मारे अंदर की ओर भागा. प्रवेश भी उस के पीछे भागा. भागते हुए ही उस ने प्रभात पर फायर कर दिया.
गोली की आवाज सुन कर सुबहसुबह टहलने के लिए जाने वाले लोग इकट्ठा हो गए. उन्हें देख कर प्रवेश वहां से भाग निकला. उसी समय किसी ने पुलिस को सूचना दे दी तो पुलिस भी वहां पहुंच गई. गोली लगने से घायल हो चुके प्रभात को वह एस.एन. मैडिकल कालेज ले गई. पुलिस ने अस्पताल में उसे भरती कर आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.
लेकिन प्रवेश को अभी 2 खून और करने थे. वह मोटरसाइकिल से कुछ ही देर में राधा के घर पहुंच गया, जहां प्रताप उर्फ डिंपल और राधा आंगन में ही सो रहे थे. उस ने पहले गहरी नींद में सोए प्रताप को गोली मारी. गोली की आवाज से राधा की नींद खुल गई. प्रवेश को देख कर वह जान बचाने के लिए बाहर की ओर भागी पर प्रवेश ने उस के बाल पकड़ कर उस के सिर से तमंचा सटा कर उसे भी गोली मार दी.
फायरिंग की आवाज से पूरा मोहल्ला जाग गया और प्रवेश अपनी मोटरसाइकिल तेजी से चला कर कोतवाली टप्पल पहुंच गया,जहां मौजूद मुंशी से उस ने कहा कि कोतवाल साहब को बुलाओ, मुझे उन से बात करनी है. प्रवेश के हाथ में तमंचा देख कर मुंशी समझ गया कि यह कोई अपराध कर के आया है.
मुंशी ने उस का तमंचा एक तरफ रखवा कर उसे सामने की बेंच पर बैठा दिया. फिर मुंशी ने थानाप्रभारी प्रदीप कुमार सिंह को फोन कर के सारी बात बता दी.
कुछ ही देर में थानाप्रभारी वहां आ गए. प्रवेश कुमार ने उन से कहा, ‘‘साहब, मैं 2 खून कर के आ रहा हूं. तीसरा मरा है या बच गया, मुझे पता नहीं.’’
उस समय प्रवेश के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी. थानाप्रभारी ने उस से पूछताछ की तो उस ने उन्हें सारी कहानी बता दी. इस के बाद थानाप्रभारी ने उसे हिरासत में ले लिया और वाकए से अपने उच्चाधिकारियों को भी सूचित कर दिया.
इस के बाद थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए, जहां हायतौबा मची हुई थी. प्रताप उर्फ डिंपल की खून से लथपथ लाश चारपाई पर पड़ी हुई थी और राधा का शव आंगन में पड़ा हुआ था.
घटना की जानकारी मिलते ही आईजी डा. संजीव गुप्ता, एसएसपी राजेश पांडे, एसपी (देहात) यशवीर सिंह और खैर के विधायक अनूप सिंह भी मौके पर पहुंच गए.
पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं. पुलिस ने इस बारे में गांव वालों से भी पूछताछ की लेकिन गांव वाले मुंह खोलने को तैयार नहीं थे. पर मुखबिरों के जरिए पुलिस के सामने सारी कहानी आ गई.
सूचना मिलने पर घर पहुंचे विजयपाल से जब पुलिस ने पूछताछ की तो उस ने बताया कि उसे कुछ पता नहीं कि उस के घर में क्या खिचड़ी पक रही थी.
घटना के 3 दिन बाद मृतक प्रताप उर्फ डिंपल के भाई राहुल ने इस हत्याकांड में राधा की बेटी पूनम की साजिश होने की बात बताई. उस ने यह भी कहा कि उस के भाइयों के राधा के साथ नाजायज संबंध होने वाली बात सरासर गलत है. उस के भाइयों ने तो प्रवेश को पूनम से दूर रहने की चेतावनी दी थी.
एसएसपी ने बताया कि यह बात जांच के बाद ही पता चल सकेगी कि इस दोहरे हत्याकांड में पूनम की कोई भूमिका है भी या नहीं.
पुलिस जांच में यह बात सामने आ चुकी थी कि प्रवेश ने मथुरा जा कर जिस प्रभात उर्फ मोनू को गोली मार कर घायल किया था, वह आपराधिक छवि वाला है. अलीगढ़ की क्राइम ब्रांच की टीम नौहझील (बाजना) की पुलिस के साथ मिल कर जांच कर रही थी.
मन एक अबूझी पहेली सा तो होता है, उस पर दिल कहीं अटक जाए, तो स्थिति बड़ी विकट हो जाती है और तब शुरू होता है ऊहापोह का दौर. मन की भटकन विवेक को खत्म कर देती है और बौराया सा मन किसी का भी दीवाना हो जाता है. बात यदि कम उम्र की हो तब तो सब स्वाभाविक ही होगा, क्योंकि युवावस्था की देहरी पर विपरीत सैक्स का आकर्षण स्वाभाविक ही होता है. पर यहां मुद्दे का विषय है बड़ी आयु में प्रेम हो जाने का और वह भी तब, जब घर में बेटाबहू और पति हैं, बेशक वे अलग घर में रहते हों, पर ऐसी मानसिकता का क्या किया जाए.
रागिनी की बात करें तो उस के जीवन में सबकुछ था, स्मार्ट पति और प्यार करने वाले बेटाबहू भी, पर फिर भी न जाने क्यों रागिनी बुझीबुझी सी रहती थी. बेटाबहू अलग घर में रहते थे और पति की बेहद व्यस्त दिनचर्या थी. ऐसे में रागिनी को लगता कि वह बेहद अकेली सी हो गई है. उस का पति संजय अपने में ही उलझा रहता. जीवन में तब कुछ उथलपुथल हुई जब संजय के मित्र अंशुल का घर आनाजाना हुआ. रागिनी की जो मानसिक भूख कभी मिटी नहीं थी, उसे अंशुल ने नजरों से सहला दिया था. उस का रागिनी के प्रति एक अलग ही नजरिया था. बेशक वह ग्रेसफुली प्रशंसा करता, पर वह रागिनी के दिल में समा गया था और रागिनी उस का इंतजार करती. रागिनी के मन के किसी कोने में प्रेम का अलाव जल उठा था पर संजय गहराई समझ न पाया लेकिन कुछ दिनों बाद ही उसे लगा कि कहीं कुछ तो है. वह एक समझदार पुरुष था, उस ने स्वयं ही गहराई से सोचा, तो उसे लगा कि वह रागिनी की उपेक्षा कर रहा है. उस ने सारी स्थिति अपने विवेक से संभाल ली और फिर सबकुछ ठीक हो गया. संजय ने अपने चातुर्य से सब ठीक कर दिया और बात आगे बढ़ी नहीं.
परपुरुष के प्रति प्रेम
प्रौढ़ावस्था में प्रेम के किस्से सुनाई दे ही जाते हैं. इस के मूल में जाएं तो घर में कुछ तो ऐसा होता है जहां रिश्ते दरक जाते हैं. पारिवारिक मूल्यों की ओर एक निगाह डालें तो कमोबेश हर घर में ही पत्नी तमाम घर को व्यवस्थित रखती है. ऐसे में वह चाहती है कि उसे सराहा जाए. आमतौर पर रोजमर्रा के जीवन में पति आपाधापी में व्यस्त रहते हैं और गृहस्थी नून, तेल तक सिमट कर रह जाती है. ऐसे में पत्नी को किसी अन्य पुरुष में कुछ बदलाव नजर आता है तो उस का मन डोल भी सकता है. जब ऐसा कुछ होता है तब विवेक कहां काम करता है कि घर में पति नामक प्राणी है और बच्चे भी हैं.
प्रौढ़ावस्था यानी 30 से 50 वर्ष की उम्र में भी षोडशी भीतर समां जाती है और प्रेम का बीज फूट पड़ता है.
सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि जब पति काफी समय के लिए घर से बाहर रहते हों तब अकेले जीवन से ऊब कर पत्नी के मन में अन्यत्र प्रेम उपज सकता है.
बड़ी उम्र में प्रेम होने के बहुत कारण हो सकते हैं, कहीं पुरुष पत्नी के साथ तनावभरा जीवन जीने से भटक कर कोई साथी बना लेता है, तो कहीं स्त्रियां अपने ऊब भरे जीवन से परेशान हो अन्यत्र प्रेम तलाशती हैं. बहरहाल, ये कदम घर में अजीब वातावरण बना देते हैं.
क्या करें बैटरहाफ
ऐसे में क्या करें बैटरहाफ? विकल्प 2 हैं – या तो गृहक्लेश में जियो या फिर अपने चातुर्य से स्थिति संभाल लो, हालांकि दोनों ही परिस्थितियों में घर का वातावरण बिगड़ तो जाता ही है.
इस आयु में प्रेम के विषय में और अधिक जानकारी देती हुई मनोवैज्ञानिक प्रभा बताती हैं, ‘‘प्रौढ़ावस्था तक पहुंचतेपहुंचते जीवन का स्टाइल बदल जाता है. घर में पति है पर तमाम रूटीन पर ही जीवन चलता रहता है. कई बार पत्नी स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगती है, पति समझ नहीं पाता और पत्नी का मन मानसिकरूप से कुंठित सा हो जाता है. तब जैसे तेज धूप में चलतेचलते थोड़ी सी छाया भी उस के क्लांत मन को आराम दे देती है, इसी तरह परपुरुष का जरा सा भी झुकाव उसे अच्छा लगने लगता है और फिर शुरू हो जाता है प्रेम का सिलसिला.
‘‘इस आयु में प्रेम हो भी जाए तो संतुलन बना कर रखना जरूरी है. प्रेम में इतनी गहरी गोताखोरी भी न करें कि परिवार की नैया डांवांडोल हो जाए. मेरे खयाल से तो घर में पतिपत्नी ही प्रेमीप्रेमिका बन कर रहें. पत्नी केवल शारीरिक ही नहीं, मानसिकरूप से भी जुड़ना चाहती है, वह चाहती है कि कोई उस से प्यार का इजहार करे. ऐसे में पति को चाहिए कि वह रिश्तों को प्रेममय बना कर मजबूत करे.’’
प्रेममय वातावरण बनाएं
कहने का अर्थ यह है कि घर का वातावरण ऐसा हो कि पत्नी खुद को उपेक्षित महसूस न करे. एक औरत जो तमाम घर को चलाती है उसे जरा सा प्यार मिल जाए, तो उस के लिए यह बड़ी बात होगी. यहां हम यह नहीं कह रहे कि उसे बिलकुल प्यार ही नहीं मिलता पर शारीरिक प्रेम ही तो सबकुछ नहीं होता. मानसिकरूप से चाहत की तलाश रहती है.
सोचिए भला, जो स्त्री घर की धुरी है, पूरा घर चलाती है तो क्या वह पति से प्यार के दो मीठे बोल की अपेक्षा नहीं कर सकती.
यहां यह कहना भी तर्कसंगत होगा कि उन स्त्रियों को भी परपुरुष से प्रेम करने से पहले जरूर सोचना चाहिए कि घर में आप का पति है, बहूबेटा है, घर की कुछ मर्यादाएं हैं. ऐसे में आप के पति और बच्चों पर क्या गुजरेगी, साथ ही, आप के तथाकथित प्रेमी की भी पत्नी व बच्चे होंगे, उन पर क्या बीतेगी.
ये सारे रिश्ते क्यों खराब कर रहा है आप का यह प्रेम. आप को कोई अच्छा लगता है तो उसे आप पारिवारिक मित्र बनाएं.
आप अगर पसंद करती हैं तो पति को बताइए कि आप को उन का प्रशंसा करना अच्छा लगता है और आप भी उन्हें कौंपलीमैंट यदाकदा दें ताकि रिश्ते जीवंत रहें.
याद रखने की बात यह है कि जो भी इस आयु में प्रेम में पड़ रहे हैं, वे उस का एक ही पहलू देख रहे हैं. जाहिर है वह थोड़े समय आप के साथ है, आप की प्रशंसा ही तो करेगा और आप खुश. कुछ दिन साथ रह कर देखिए, पता चलेगा कि वे महाशय भी किस प्रकार के हैं और जरा उन की पत्नी से पूछ कर तो देखिए, पता चलेगा कि वे भी वैसे ही एक पुरुष हैं जैसे आप के पति. हो सकता है उस की पत्नी आप के पति पर रीझ जाए. तो फिर यह चक्र यों ही चलता रहेगा. बस, अपने विवेक को कायम रखिए और पति की प्रेमिका बन कर देखिए फिर महसूस कीजिए जिंदगी का मजा.
क्या आप जानती हैं कि भोजन को प्लास्टिक के डब्बे में रख कर माइक्रोवेव ओवन में पकाने पर आप को बांझपन, मधुमेह, मोटापा, कैंसर (कर्क रोग) आदि होने का खतरा हो सकता है?
दरअसल, विभिन्न अध्ययनों में वैज्ञानिकों ने पाया है कि प्लास्टिक के डब्बे में भोजन को रख कर माइक्रोवेव ओवन में पकाने या गरम करने पर उच्च रक्तचाप की समस्या पैदा हो सकती है. इस से प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है, मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचता है, दूसरी तरह के और कई भयावह दुष्प्रभाव सामने आते हैं. दरअसल, माइक्रोवेव ओवन में प्लास्टिक के बरतन के गरम होने पर उस में मौजूद रसायनों का 95% तक रिसाव होता है.
सेहत की दुश्मन प्लास्टिक
प्लास्टिक के बरतनों को बनाने के लिए औद्योगिक रसायन बिस्फेनोल ए का इस्तेमाल किया जाता है. इस रसायन को सामान्य तौर पर बीपीए के नाम से जाना जाता है. इस रसायन का सीधा संबंध बांझपन, हारमोनों में बदलाव और कैंसर की बढ़ोतरी से है. यह लैगिंक लक्षणों में बदलाव लाता है यानी यह पुरुषोचित गुणों को भी कम करता है. यह मस्तिष्क की संरचना को नुकसान पहुंचाने, और मोटापा बढ़ाने का भी काम करता है.
प्लास्टिक में पीवीसी, डाइऔक्सिन और स्टाइरीन जैसे कैंसरकारी तत्त्व पाए जाते हैं, जिन का सीधा संबंध कैंसर से होता है.
चौंकाने वाला सच यह है कि जब प्लास्टिक के बरतन में भोज्यपदार्थों को रख कर माइक्रोवेव ओवन में पकाया जाता है तो प्लास्टिक के पात्र में मौजूद रसायन, ओवन की गरमी से पिघल कर खा- पदार्थ पर अपना असर छोड़ता हैं. भोजन गरम होने पर प्लास्टिक के गरम बरतन से निकलने वाले रसायनों के संपर्क में आता है और दूषित हो जाता है.
माइक्रोवेव में किसी भी तरह का प्लास्टिक सुरक्षित नहीं है. हालांकि, इतना जरूर है कि सामान्य तौर पर इस्तेमाल में लिए जाने वाले प्लास्टिक की तुलना में प्लास्टिक के दूसरे विकल्प कम खतरनाक है, जिन में अपेक्षाकृत रूप से कम हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है.
जब भी माइक्रोवेव का इस्तेमाल करें उस से दूरी बनाए रखें, क्योंकि विभिन्न शोधों में पाया गया है कि माइक्रोवेव के इस्तेमाल के समय हानिकारक विकिरण निकलते हैं. हालांकि अधिकांश मामलों में यह जरूर पाया गया है कि माइक्रोवेव में भोजन पकाना या गरम करना नुकसानदेह नहीं है. माइक्रोवेव में गलत बरतन का प्रयोग आप की सेहत को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए प्लास्टिक का इस्तेमाल करना छोड़ दें.
कांच के बरतन अधिक सुरक्षित
भोजन को पैक करने के लिए कांच के बरतन अधिक सुरक्षित हैं. वे प्लास्टिक की तरह रसायन नहीं छोड़ते और भोजन को गरम करने के लिहाज से भी सुरक्षित होते हैं. आप अपने भोजन को बिना गरम किए भी खा सकते हैं, हालांकि यह इस पर निर्भर करता है कि खा- पदार्थ क्या है.
चूंकि प्लास्टिक का उपयोग सभी जगह हो रहा है, इसलिए प्लास्टिक के इस्तेमाल से खुद को दूर रखना काफी मुश्किल है. लेकिन प्लास्टिक का कम से कम उपयोग कर आप अपने भोजन और पेयपदार्थों को इस के विषैले असर से अधिक से अधिक दूर रख सकती हैं और शरीर में बीपीए का स्तर कम रख सकती हैं.
– डा. निताशा गुप्ता, गाइनोकोलौजिस्ट ऐंड आईवीएफ ऐक्सपर्ट, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली
सत्यापन ऐसी सरकारी कार्यवाही है जिस से गुंडों, मवालियों और बदमाशों से ज्यादा शरीफ लोग कांपते हैं, क्योंकि यह नेककाम पुलिस वालों के करकमलों द्वारा संपन्न होता है. सत्यापन की एक और खूबी इस का बिना दक्षिणा के न होना है और अगर दक्षिणा मुंहमांगी दी जाए तो घोर बेईमान आदमी भी हरिश्चंद्र और सत्यवान होने का प्रमाणपत्र हासिल कर सकता है.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नया फरमान यह है कि अब अयोध्या में रह रहे अंदरूनी और बाहरी साधुसंतों का सत्यापन किया जाएगा. रामचरित मानस में बाबा तुलसीदास बहुत पहले ही बता गए थे कि कलियुग का एक लक्षण साधुसंतों पर संदेह करना भी होगा पर हैरत की बात यह है कि यह शक साधुओं की बिरादरी के ही एक मुखिया द्वारा किया जा रहा है. यह वाकई ईश्वर के दूतों का अपमान है जिस के पीछे योगी की मंशा आपराधिक छवि वाले साधुसंतों की पहचान करना है.
डौलर के मुकाबले रुपए की लगातार गिरती कीमत भारत की कमजोर होती अर्थव्यवस्था की पोल खोलती है. सरकार चाहे जितना कह ले कि यह दुर्दशा दुनियाभर की घटनाओं के कारण है, असलियत यह है कि भारत के व्यापार का उठाव बैठ गया है. 2014 के आम चुनावों में मध्यवर्ग और व्यापारियों के धुरंधर प्रचार के बल पर सत्ता में आई नरेंद्र मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था और व्यापार को किसी यज्ञहवन की तरह समझ लिया कि सुख, समृद्घि के लिए कुछ मंत्र पढ़े, कुछ व्रत किए और ईश्वर प्रसन्न हो कर लक्ष्मी घर भेज देगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उन के सहयोगी अपनी पाखंडभरी सोच के इतने ज्यादा गुलाम बने रहे कि उन्हें अर्थव्यवस्था की वास्तविकता का एहसास तक न हुआ और नोटबंदी व जीएसटी को महामंत्र बना कर देश पर अपनी बेवकूफी लाद दी जिस ने पूरे बाजार की चूलें ढीली कर दीं.
तेल के बढ़ते दामों और अमेरिका व चीन का व्यापार युद्ध इस के लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है पर ज्यादा बड़ी वजह है 46,197 करोड़ रुपए के लायक विदेशी मुद्रा का 2018 में देश से बाहर चला जाना. यह विदेशी मुद्रा भारत में निवेश की गई थी ताकि निवेशकों को अच्छा लाभ और ब्याज मिल सके पर जैसे ही भारत का व्यापार कमजोर होता दिखा, विदेशी अपना पैसा ले कर चलते बने. वे यहां अच्छे दिनों के लिए आए थे, भारत को संकट से उबारने के लिए नहीं. डौलर का 69 रुपए का हो जाने का अर्थ है कि देश में कुछ ठीक नहीं चल रहा. यह देशवासी खुद महसूस भी कर रहे हैं. देश के इतिहास में डौलर के मुकाबले रुपया पहली बार इतना गिरा है. सरकार व्यापारियों की सुन ही नहीं रही है. नरेंद्र मोदी को बातें बनाने से फुरसत नहीं. स्वघोषित वित्तमंत्री अरुण जेटली कांग्रेस के पीछे लट्ठ ले कर ज्यादा पड़े रहे, वित्त मंत्रालय का काम, बीमारी से पहले भी उन्होंने कम संभाला.
कई बार आफत आती भी है तो भरोसा होता है कि देश के नेता और देश की अर्थव्यवस्था संभाल लेगी. पर यहां न नेताओं पर ऐसा भरोसा है, न करैंसी पर, न व्यापारियों पर, न रिजर्व बैंक पर, न धोखाधड़ी में लिप्त बैंकों पर, न भगवा उत्पादकों पर और न गौरक्षा में लगी राज्य सरकारों पर. कुल मिला कर देश असमंजस में है. देश में निर्माण कम, विध्वंस ज्यादा हो रहा है. ऐसे में व्यापारियों में उत्साह कहां रह जाएगा. वे तो अपना समय कंप्यूटर के सामने बैठ कर जीएसटी रिटर्न भरने में लगे रहते हैं.
कच्चे तेल को दोष देना ठीक नहीं है क्योंकि उस के दाम बढ़ते हैं तो हम अपने उत्पादों के दाम बढ़ा कर उन्हें निर्यात कर सकते हैं. पर हमारे यहां उत्पादन तो हो. जब सरकार को कबीर और दीनदयाल उपाध्याय की लगी हो, तो व्यापार ठप होगा ही.