प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य कभीकभी सच बोल कर अपने अपराधबोध व ग्लानि नाम के मनोविकारों से मुक्ति पा लेते हैं. ऐसा ही कुछ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यह कहते किया कि जब सरकारी नौकरियां ही नहीं हैं तो आरक्षण कहां से दें.
अब यह और बात है कि इस बेबाक बयानी का दूसरा पहलू यह भी है कि नौकरियां तो इफरात से हैं पर सरकार इस डर से उन्हें नहीं दे रही कि अगर ऐसा किया तो आरक्षितों की भी भरती करनी पड़ेगी.
वाणिज्य और कानून के स्नातक गडकरी नौकरियों का गणित पढ़ाते वक्त भूल गए कि नौकरी कोई मंदिर या कुआं नहीं जहां आप लठ के दम पर दलित को जाने देने से रोक सकते हैं.
दलित युवाओं को बहलाने के लिए यह नया मंत्र एक तरह का षड्यंत्र ही है जिस से सवर्णों को भी छला जा रहा है.
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