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अंधविश्वास : यह है हमारा शिल्पशास्त्र (भाग-5)

तिथियों के तुक्के शिल्पशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र?

शिल्पशास्त्र में किसी इमारत की उम्र जानने की ऐसी मनगढ़ंत और गलत व्याख्या की गई है कि पढ़ कर कोई भी अपना सिर पीट ले.

यह है हमारा शिल्पशास्त्र. क्या इस में अभी तक शिल्प की कोई बात आई है? शिल्पशास्त्र आगे कहता है कि जब चंद्रमा धनु और मीन राशि के मध्य स्थित हो, तब न घास की कटाई करें, न लकड़ी काटें और न ही लकडि़यां इकट्ठी करें तथा न ही दक्षिण दिशा की ओर जाएं-
धनुर्मीनद्वयोर्मध्ये यावत्तिष्ठति चंद्रमा:,

न छिन्द्यात्तृणकाष्ठादीन्न गच्छेद दक्षिणां दिशम्.
(शिल्पशास्त्रम् 1/34)

चंद्रमा के इन राशियों के मध्य रहने का घास या लकड़ी की कटाई से क्या संबंध है? क्या ये दोनों चीजें चंद्रमा की हैं या उस के बाप की? कहा है, दक्षिण दिशा में न जाएं- तो क्या उस समय गाडि़यां बंद हो जाती हैं? हवाई जहाज उड़ना भूल जाते हैं? क्या दक्षिण भारत को जाने के सब मार्ग रुक जाते हैं? क्या दक्षिण भारत को जाने के सब मार्ग एक हो जाते हैं? जो जाते हैं, चंद्रमा उन का क्या करता है? वह क्या उन का एक रोम भी उखाड़ सकता है?

यहां शिल्पशास्त्र के माध्यम से जंतरी वाले ज्योतिषी को फिर से वैधता प्रदान करने का प्रयास किया गया है, क्योंकि चंद्रमा कब किस राशि में है, यह जानने के लिए उसी से पूछना पड़ेगा और वह अपने यजमान (शिकार) का यथाशक्ति शोषण- आर्थिक व बौद्धिक – करेगा ही.

युद्ध और ज्योतिषी

शिल्प की एक भी बात न करने वाला शिल्पशास्त्र ज्योतिष के नाम पर अंधविश्वासों को हवा देता हुआ आगे कहता है कि जब जन्मराशि में चंद्रमा हो तब न यात्रा पर जाएं, न युद्ध करें, न घर बनाना शुरू करें, न दवाई खाएं और न पशु संग्रह करें :

जन्मचंद्र : श्रियं कुर्याद् वर्जयेत् पंचकर्मसु,
यात्रा युद्धे गृहारंभे भैषज्ये पशुसंग्रहे.
(शिल्पशास्त्रम् 1/36)

इन 5 कामों में से 3 को आदमी रोक ले तो शायद उतना नुकसान न हो जितना युद्ध और दवाई खाने की उपेक्षा करने से हो सकता है. पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान मरहट्टों का राजज्योतिषी उन की सेनाओं को इसी तरह के ज्योतिष के सहारे रोके हुए था, जब शत्रु ने हमला कर के मरहट्टों की सदा के लिए कमर तोड़ दी थी और 90,000 वीर मरहट्टे खेत रहे थे.

इसी तरह कई लोगों को दवाई न खाने पर मरते देखा गया है. क्या यह शिल्पशास्त्र है या इल्लतशास्त्र?

घर की उम्र

पहले अध्याय में शिल्प का ज्ञान बांटने के बाद शिल्पशास्त्र दूसरे अध्याय में ऐसे नुसखे बताता है जिन से बने हुए घर की उम्र जानी जा सके, अर्थात यह जाना जा सके कि यह घर कितने समय बरकरार रहेगा. इस के लिए एक मनगढ़ंत फार्मूला दिया गया है, घर के क्षेत्र को
8 से गुना करें. जो संख्या आए उसे 60 से भाग दें तो पता चल जाएगा कि घर कितने समय खड़ा रहेगा-
वसुभिर्गुणितं पिण्डं षष्टिभागेन हारयेत्,
शेषमंशं विजानीयादायुर्गेहस्य कोविद:
(शिल्पशास्त्र 2/7)

आगे कहा है कि 60 से भाग देने पर जो संख्या आए उसे 10 से गुणा करें. इस तरह जो राशि आए, उतने वर्ष वह घर खड़ा रहेगा. 60 से भाग देने पर जो शेष बचे, उस से पता चलेगा कि घर किस चीज से नष्ट होगा : यदि 1 बचे तो पृथ्वीतत्त्व के कारण नष्ट होगा, 2 बचे तो जल से, 3 बचे तो आग से, 4 बचे तो वायु से और 5 शेष बचे तो आकाश तत्त्व से नष्ट होगा.

पृथिनीजलतेजांसि वायुराकाश एवच,
पंचभूतायते तत्र भग्नं दाहादि जायते.
(शिल्पशास्त्रम, 2/8)

यह फार्मूला हमें बताता है कि यदि किसी घर का क्षेत्रफल 300 वर्गफुट हो तो वह घर 400 साल बना रहेगा :

20×15=300×8=240060=40×10=400. पर क्या किसी इमारत की उम्र जानने का यह कोई वैज्ञानिक तरीका है? क्या उस की उम्र निर्धारित करने के लिए उस की नींव की मजबूती, उसे बनाने में लगाई गईर् सामग्री की गुणवत्ता, उसे दरपेश आने वाले खतरों की संभावना आदि को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए?

ऊपर जिस मकान की उम्र 400 वर्ष बताई गईर् है, क्या वह 400 वर्ष खड़ा रह सकता है, यदि वह केवल मिट्टीगारे का बना हो? उस की नींव भी कम गहरी हो और उस इलाके में बाढ़ भी अकसर आती हो? इस फार्मूले के अनुसार आज कितनी पुरानी इमारतें जीवित खड़ी हैं?

कहा है कि मकान के मरने (=गिरने) के 5 कारण हैं- 60 से भाग दिए जाने पर यदि 1 बचे तो पृथ्वी तत्त्व के कारण मकान गिरता है, 2 बचे तो जल से, 3 बचे तो आग से, 4 बचे तो वायु से और 5 बचे तो आकाश तत्त्व से वह नष्ट होता है. यदि यह सही है तो ऊपर जिस मकान का उदाहरण हम ने दिया है, वह कभी गिर ही नहीं सकता – देखिए :

20×15=300×8=240060=40. यहां 60 से भाग देने पर ऐसा कुछ भी नहीं बचता जो घर को नष्ट कर सके. इस का अर्थ है जो 5 तत्त्व घर को गिराने वाले बताए गए हैं, उन में से एक भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता. सो, यह सदा बना रहेगा. पहले फार्मूले के अनुसार उस घर की उम्र 400 वर्ष बताना भी गलत सिद्ध होता है. जो कभी नष्ट ही नहीं हो सकता, उस की उम्र 400 वर्ष कैसे मानी जा सकती है.

एक अन्य उदाहरण लें. घर 100 फुट लंबा, 95 फुट चौड़ा. क्षेत्रफल 9500×8=76000 60=1266, शेष 40. इन 40 को 5 से विभाजित करें तो शेष शून्य बनता है. इस का मतलब यह है कि यह मकान भी सदा के लिए सुरक्षित है, क्योंकि कोई भी तत्त्व इसे हानि पहुंचाने को बचा ही नहीं. ऐसे अन्य बहुत से मकान हो सकते हैं परंतु असल में ऐसा सदा के लिए बना रहने वाला, एक भी मकान हिंदुस्तान में नहीं है.

यह फार्मूला भी पूरी तरह गलत तथा मनगढ़ंत है, क्योंकि एक तो इस मनमाने ढंग से किसी इमारत की उम्र नहीं जानी जा सकती. दूसरे, दुनिया में कोई भी इमारत सदा के लिए खड़ी नहीं रह सकती. तीसरे, शिल्पशास्त्रों के इस देश भारत में कोई भी इमारत सदा के लिए खड़ी तो क्या, हजारों वर्ष पुरानी भी कहीं नहीं खड़ी है.

सो, यह शिल्पशास्त्रीय फार्मूला एक और वास्तुशास्त्रीय गप से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता. अगले अंक में जारी…

फैक्ट्री निर्माण में वास्तुशास्त्रियों के ऊलजलूल कुतर्क

क्या फैक्ट्री में वास्तुदिशा स्थानों के आधार पर लाभ सुनिश्चित किया जा सकता है? क्या वास्तु न मानने से भारीभरकम नुकसान होने का खतरा है? फैक्ट्री की सफलताअसफलता क्या वास्तु से तय होती है?

बात फैक्ट्री या औफिस की हो रही हो तो सब से पहले हमें यह सम?ाना चाहिए कि किसी भी कमर्शियल जगह का मुख्य उद्देश्य क्या होता है? फैक्ट्री का काम है प्रोडक्शन करना, क्वालिटी बनाए रखना और बाजार में अपनी जगह बनाना. लौजिकली इस के लिए जरूरी है सही लीडरशिप व मशीनरी, स्किल्ड वर्कर्स और एक और्गनाइज्ड प्रोडक्शन प्रौसेस.

मानो ओनर अगर वैस्ट की जगह साउथ एरिया में अपना केबिन बना ले तो क्या मार्केट का सारा गणित भूलभाल जाएगा या मशीनें अगर ईस्ट में न हो कर किसी और दिशा में हों तो क्या चलना ही बंद कर देंगी? सवाल यह कि अगर मुख्यद्वार पश्चिम या दक्षिण दिशा में हुआ तो क्या वास्तव में फैक्ट्री में समस्याएं आने लगेंगी? या फिर समस्याओं का असली कारण प्रबंधन की खामियां और बाजार की अनिश्चितताएं होंगी?

वास्तुशास्त्र में दिशा, स्थान और पंचतत्त्वों की बात की जाती है, लेकिन इस में सरकार की नीतियों, बाजार के उतारचढ़ाव और वैश्विक आर्थिक स्थिति का कोई उल्लेख नहीं मिलता. वास्तु यह भी नहीं बताता कि प्रधानमंत्री कब देश में कैसी जीएसटी लागू कर दें या कब नोटबंदी कर दें कि अचानक बाजार ही क्रैश करने लगे.

अगर वास्तुशास्त्र इतना ही कारगर होता तो फिर हर उद्योगपति अपने उद्योग को वास्तु के अनुसार बना कर ही क्यों न चलाता? उसे मेहनत करने, कुशल कर्मचारियों की भरती करने और सही रणनीति बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती? उसे तो बस, वास्तु अनुसार एक जगह देखनी थी और उसी अनुसार भवन निर्माण करा लेना था. न बाजार के उतारचढ़ाव की ?ां?ाट न सरकार की, न मजदूरों के हड़तालों की झंझट और न निवेश की.

बात सीधी है, फैक्ट्री का प्रबंधन कमजोर होगा तो चाहे आप उसे कितनी भी सही दिशा में बनाएं, लाभ की संभावना कम ही रहेगी. उदाहरण के लिए, अगर मशीनरी पुरानी है और उत्पादन धीमा है तो केवल दिशा बदलने से इस का समाधान नहीं होगा या मशीन आधुनिक हैं और वर्कर्स पुराने ढर्रे वाले हैं तो भी उत्पादन धीमा होगा. इसे ठीक करने के लिए आप को नई तकनीक और कुशल श्रमिकों की ही जरूरत होगी.

सोचिए, अगर वास्तुशास्त्र के अनुसार ही फैक्ट्री के प्रौफिट का निर्धारण होता तो फिर कुशल मैनेजर और तकनीकी विशेषज्ञों की जरूरत क्यों पड़ती? इन की जगह किसी पंडे, ज्योतिष या वास्तुशास्त्री को ही बैठा लेते.

अंत में सोचने वाली बात यह है कि दुनिया की सब से बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत आज आद्योगिक अर्थव्यवस्था के मामले में उन कई देशों से पीछे है जिन की जनसंख्या हम से 4-5 गुना कम है, ये देश न तो वास्तु अनुसार अपनी फैक्ट्रियां बना रहे हैं, न ही चला रहे हैं.

मेरी संगिनी

दिनभर माया की महिमा का गुणगान करती, पैसे के पीछे भागती हुजूम में कहीं वो भी शामिल न हो जाए, डर लगता था अमर को. किस ने कितने मकान बनवाए हैं, किस के पास कितनी गाडियां हैं, कितना बैंक बैलेंस है, अपने आसपास की भीड़ का सदा इसी हिसाबकिताब को तोड़तेजोड़ते देखता है अमर. मगर इस सब से अमर को बहुत ग्लानि होती है. उस का मन कुछ और ही सोचता है. सोचता है कि, क्यों कुछ लोग इतने अमीर है और कुछ इतने गरीब. ऐसा क्यों होता है कि एक गरीब जितना धन अगर पूरी उम्र में भी अर्जित नहीं कर पाता, वहीं उस से अधिक, एक अमीर मिनटों में खर्च कर देता है. क्यों किसी घर के बच्चे भूखे सोते हैं.

अमर एक अच्छे खातेपीते संस्कारी परिवार का लाड़ला बेटा है. विचारों में वह अपने उम्र के बच्चों से काफी अलग रहा है, सदा दूसरों की, खासतौर से गरीबों की भलाई के बारे में सोचता. उन के लिए कुछ कर पाए, इन्हीं विचारों में उस का बचपन बीता. लगन से स्कूली पढ़ाई कर के एमबी़बी़एस में दाखिला मिल गया. फिर एमडी़ की पढ़ाई पूरी कर के सरकारी अस्पताल में नौकरी शुरू कर दी. गरीब मरीजों को वह बहुत प्यार से देखता, उन्हें पूरा वक्त देता, अपने काम से उसे काफी तसल्ली मिलती कि वह गरीब और लाचार लोगों की, किसी तरह से ही सही, मदद तो कर रहा है. फिर भी समाज के भिन्न वर्गों की असमानता उसे कहीं न कहीं व्यथित करती रहती ही. पता नहीं क्या- सोचता रहता था वह हमेशा. काश ऐसा कर पाता, काश वैसा कर पाता. सभी के सुख की कामना. समाज में समानता हो , इस की कामना उसे रहती.

इधर घर के लोग उस की शादी के पीछे लगे हैं. मगर उस का मन शादी को न था बल्कि वह तो समाजसेवा करना चाहता था. ये सब उथलपुथल अमर के अंदर ही होती रहती है मगर बाहर किसी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं रखता था. बस, मम्मीपापा जैसा कहें, चुपचाप उन की हां में हां मिला दिया करता. वे दोनों और बेटी नम्रता, सभी बहुत सज्जन स्वभाव के थे और अमर का स्वभाव जानते हुए उन्होंने कभी ऐसा कुछ उस के लिए न किया था, जो उस के आदर्शों के विपरीत हो. हां, छिटपुट रोजमर्रा की बातों में जरूर कुछ विचारों की अनबन हो जाती , पर कोई बड़ा मुद्दा ऐसा न आता, जहां कहीं विचारों का गंभीर टकराव हो.

फिर घर वालों ने उस के लिए एक लड़की पसंद की, वह थी रितिका. वह एक पढ़ीलिखी, समझदार, हंसमुख और सुंदर लड़की थी. अमर ने उसे देखा और उस का भोला सा चेहरा एक नजर में ही उसे भा गया. फिर घर के सब लोग पहले ही उसे पसंद कर चुके थे. इसलिए भी घर के लोगों का मान रखते हुए न कहने का कोई प्रश्न ही न था. पूरे रीतिरिवाज के साथ उन दोनों का विवाह हो गया. रितिका जैसी जीवनसाथी पा कर अमर खुश था. इसी बीच अस्पताल के कौम्पलैक्स में ही उसे सरकारी घर मिल गया था. उन दोनों की सुविधा देखते हुए अमर के परिवार वालों ने उन दोनों को सरकारी घर में रहने की अनुमति दे दी. जिंदगी मजे से बीतने लगी. रितिका उसे खुशमिजाज स्वभाव की लगी. सदा हंसतीखेलती, जिंदगी में विश्वास करती. उसे लगता था कि  ऐशोआराम में जिंदगी चलती रहे, खुशीखुशी. इस से ज्यादा जिंदगी का कोई अर्थ नहीं था उस के लिए. अपनीअपनी जिंदगी के लिए सब खुद जिम्मेदार हैं, हमें क्या लेनादेना सब से, ऐसा सोचती थी वह.

अमर जब कभी भी रितिका से समाज की, गरीबों की, देश की दुर्दशा की बात करता तो वह उसे चुप करा देती, ‘अपने को क्या करना यह सोच कर अमर, हमें तो प्रकृति ने सब दिया है न. हम दोनों खुश हैं न. ऐसे ही बने रहें, बस. और हमें क्या चाहिए. दूसरों के बारे में सोचसोच क्यों दुखी होते हो, मस्त रहा करो, बस.’

धीरेधीरे अमर को लगने लगा कि रितिका के विचार उस के विचारों से बहुत अलग हैं, वह एक आत्मकेंद्रित और दूसरों के लिए संवेदनारहित लड़की है, जिस के लिए अपने और अपनी जरूरतों के आगे जिंदगी का और कोई मतलब नहीं. हां, रुपएपैसे के मामले में वह एकदम पक्की थी. भौतिक सुखसुविधा उसे बहुत आनंद देती. वह सदा नएनए कपड़े, गहने, सामान खरीदने में लगी रहती. पूरा घर फर्नीचर और सजावट के सामान से भरा पड़ा था. अलमारियां रितिका के कपड़े इत्यादि से भरी पड़ी थीं, मगर फिर भी उस को नयानया सामान खरीदने का जनून सवार रहता. वहीं अगर किसी की सहायता के लिए 10 रुपए भी देने पड़ जाएं तो वह उसे भारी लगता. खाने के सामान, पुराने कपड़े चाहे तो उठा कर फेंक देती मगर किसी गरीब को देने में उसे तकलीफ़ होती. गरीबों से तो उसे न जाने क्या चिढ़ थी.

उन के घर के बिलकुल सामने वाले मकान में मरम्मत का काम चल रहा था . वहां के एक मजदूर की 4 छोटीछोटी बेटियां थीं, जो सारे दिन बाहर सड़क पर घूमतींफिरतीं, लोग उन्हें खाने के लिए कुछनकुछ देते रहते. अमर के घर के सामने भी वे बड़ी उम्मीद से खड़ी रहतीं. अमर उन्हें कभीकभी कुछ खाने को दे देता. अब उन्हें अमर से कुछकुछ मांगने की आदत पड़ गई थी. वहीं वे रितिका से डरती थीं.

जैसे ही अमर बाहर से आ घर के आगे कार लगाता, उन में से सब से छोटी, जो लगभग 5 वर्ष की थी, अमर के पास आ खड़ी हो जाती और धीरे से बोलती, ‘अंकल, चिज्जी.’ फिर अपनी गोलगोल आंखें ऊपर उठाती, उसे देखती और फिर आंखें नीचे झुका लेती. फिर दोबारा कहती, ‘अंकल चिज्जी.’ बाकी 3 उस के पीछे खड़ी रहतीं. अमर को हंसी आ जाती और वो उन्हें घर में बुला कर खाने को कुछ दे देता. वहीं रितिका उन्हें देखते ही खीझ जाती. अमर पर चिल्लाने लगती कि इन गंदेगंदे बच्चों को घर के अंदर क्यों बुला लिया.

अमर रितिका को बहुत समझाता कि गरीब भी इंसान हैं. हमें आज भगवान ने सबकुछ दिया है. मगर हमें गरीबों से हमदर्दी रखनी चाहिए, उन का दुखदर्द समझना चाहिए. मगर रितिका को ये सब बातें बेकार, फुजूल सी लगतीं.

कहां तो अमर ने सोचा था कि गरीब, दुखी, भूखे, अनपढ़ लोगों के लिए अपनी जिंदगी में कुछ न कुछ ऐसा बड़ा काम करेगा जिस से अमीरी और गरीबी की दूरी कम होगी मगर रितिका तो उसे गरीबों से बहुत दूर रहने को कहती है. उसे तो अमर का सरकारी अस्पताल में काम करना भी पसंद न था. अस्पताल से आते ही अमर को सीधा बाथरूम का रास्ता दिखाती. वह बेचारा नहा कर आता, तब उसे खाना मिलता, वरना कहती, ‘पता नहीं किसकिस को देख कर , हाथ लगा कर आ रहे हो. घर में आते ही अपने साथ इतनी सारी बदबू ले कर आते हो. क्यों नहीं यह नौकरी छोड़ किसी बढ़िया से प्राइवेट अस्पताल में नौकरी कर लेते?’

उसे भारत से बाहर चल कर रहने की भी सलाह देती अच्छी कमाई के लिए. अमर मन ही मन बहुत दुखी रहता. लगता उस ने अपने जीवन के जो कुछ भी लक्ष्य बनाए थे, रितिका की इस सोच के कारण इस जन्म में तो वह उन्हें पूरे नहीं कर पाएगा. बचपन से ही सीधे और शांत स्वभाव का अमर बेचारा कुछ कह भी न पाता. बस, मन मसोस कर रह जाता.

इसी बीच रितिका का मन ऊब गया था, बारबार अमर से कहीं बाहर घूमने जाने के लिए ज़िद करती रहती. उस का मन रखने के लिए अमर ने हफतेभर की छुट्टी ले कर घूमने का कार्यक्रम बनाया. खुशी के मारे रितिका ने सारे घर में चहलकदमी मचा दी थी. घूमने जाने की तैयारियां चल रही थीं. उस की यह खुशी और उत्साह देख कर अमर को भी बहुत अच्छा लग रहा था. कहां जाना था, इस पर विचार हुआ, किसी पर्वतीय स्थल पर जाएं या समुद्ध किनारे.

रितिका पर्वतीय स्थल जाना चाहती और अमर समुद्ध किनारे. मगर हमेशा की तरह रितिका की बात पर ही सहमति हुई. अपनी बात मनवाने का रितिका का अंदाज भी अजब होता था. कोई बात शुरू करती तो ऐसे कि जैसे वह अमर की पसंद की बात का खयाल रखती है. अमर बेचारा खुश हो अपनी पसंद बता बैठता, तो उस की पसंद की बात के इतने नकारात्मक पहलू सामने रख देती कि थकहार अमर को अपनी बात छोड़ उसी की बात माननी पड़ती.

अगले दिन सुबहसुबह पूरी तैयार कर के मनाली के लिए कार से निकल पड़े. पूरा रास्ता मस्ती में गुजरा. रुकतेरुकाते, खातेपीते और ढेर सारी अगलीपिछली बातें करते. रितिका बहुत खुश थी. रोजमर्रा की जिंदगी से निकल उसे बहुत मज़ा आ रहा था. देररात तक वे मनाली पहुंच गए. रितिका ने पहले ही सब से बढ़िया होटल में बुकिंग करा दी थी. होटल महंगा जरूर था पर सभी सुविधाएं मौजूद थीं. रात आराम कर वे लोग अगले दिन घूमने निकल गए. आसपास की सभी जगहें देखते मौजमस्ती में 3 दिन कब निकल गए, पता ही नहीं चला.

रितिका को इस तरह खुश देख कर अमर को भी बहुत अच्छा लग रहा था. वह सोच रहा था कि रितिका कितनी खुशमिजाज लड़की है. एक अच्छी पत्नी है. बस, एकदो बातों को ले कर ही तो उन के विचार नहीं मिलते और इस में रितिका का क्या कुसूर. आज के 95 प्रतिशत लोग तो ऐसा ही सोचते हैं. दरअसल अमर की खुद की सोच ही तो आज की पीढ़ी से अलग है. इसलिए वह इस में रितिका को क्यों दोष दे. और हो सकता है समय के साथ उस की इस सोच में बदलाव हो जाए.

बहुत बढिया छुट्टी बिता कर  वापसी  का समय आ गया. दोनों की सहमति से कुछ एडवैंचर करने का फैसला हुआ और सीधा घर न जा किसी एडवैंचरस टेढ़े रास्ते से वापस चले, सोचा, जो एक छुट्टी बची है वह भी अच्छी बीतेगी. वे एक ऐसी वैली में निकल आए जहां बहुत कम लोग जाते हैं. रास्ता भी कुछ खराब सा था,  मगर वह वैली बहुत खूबसूरत निकली. वहां की खूबसूरती देख अमर को लगा कि उन का उस टेढ़ेमेढ़े, खराब रास्ते को तय कर के वहां आना जैसे सफल हो गया है.

खूब मस्ती करके वे लोग वहां से दोपहर तक निकल गए. सोचा, रास्ते में कोई अच्छा सा ढाबा मिलेगा तो गरमगरम खाना खाएंगे. वहां से निकले ही थे कि मौसम अचानक बदल गया और थोड़ी ही देर में  बारिश शुरू हो गई. खराब पहाड़ी रास्ता और अमर के लिए कार चलाना मुश्किल हो रहा था, फिर भी धीरेधीरे कर के वह कार चलाता रहा. मगर बारिश-तूफान बढ़ते ही जा रहे थे.

वह थोड़ी सी महफूज जगह देख कर कार रोक कुछ देर बारिश तूफान रुक जाने की प्रतिक्षा करते रहे. मगर बारिश तूफान कहां रुकने वाला था, पास में एक छोटा सा ढाबा था वहां जा बैठ गए. तभी जहां पर कार खड़ी थी, वह पहाड़ी खिसक गई. और कार देखते ही देखते कहां गई, पता ही नहीं चला. तेज बारिश की वजह से ढाबे से उठ कर वहां जाने की हिम्मत किसी की न थी. इधर ढाबे के आगे की टिन की छत भी ढह गई.

ढाबे का मालिक उन्हें अंदर अपने घर के छोटे से कमरे में ले गया. कमरा क्या था मुश्किल से 6-7 फुट की झुग्गी, वहीं पर घर का सब समान बिखरा पड़ा था.वहां एक अजीब सी बदबू आ रही थी. नाक बंद कर रितिका वहां घुसी और बेमन से उसे अंदर पड़ी टूटी सी खाट पर बैठना पड़ा. कमरे के अंदर ढाबे वाली की बीवी और 3 छोटे बच्चे भी थे. बारिश तूफान ठहरने का इंतजार करतेकरते शाम के 5 बज चुके थे.

भूख के मारे अमर व रितिका दोनों की जान निकली जा रही थी. खाने का कुछ समान कार में रखा था मगर कार का कुछ पता नहीं. ढाबे वाले का ढाबा छत ढहने से तहसनहस हो गया है. कमरे के साथ में मुश्किल से 4 फुट की रसोई थी. ढाबे वाली की बीवी उस के लिए चाय  बनाने चली गई. रितिका ने झांक कर देखा, रसोई का सामान जमीन पर पड़ा था. कालेकाले बरतनों और सामान के ऊपर दौड़ते दोतीन मोटेमोटे चूहे देख उसे कय होने लगी. इतने में ढाबे वाले की बीवी चाय बना लाई, साथ में कुछ बिस्कुट भी थे.

रितिका का मन बहुत कच्चाकच्चा हो रहा था, मगर भूख तो लगी ही थी. चाय की भी तीव्र इच्छा थी मगर रसोई की हालत देख और टूटे से चाय का प्याला देख उबकाई सी आने लगी. अमर के कहने पर उस ने चाय का प्याला तो पकड़ लिया मगर होंठों से लगाने का मन ही नहीं हो रहा था. बिस्कुट क्योंकि पैकेट में थे तो खाए जा सकते हैं, इसलिए एकदो बिस्कुट पैकट से निकाल खा लिए और पेट को थोड़ी शांति मिली.

‘‘बाबूजी आज तो आप बाहर नहीं निकल पाएंगे, रात भी हो रही है, यहीं रुक जाओ,‘‘ ढाबे वाला बोला.

‘‘भैया, यहां तो रुकने की जगह नहीं, तुम्हें मुश्किल होगी. कोई होटल पास में हो तो बताओ,‘‘ अमर कहने लगा.

‘‘बाबूजी बूंदाबांदी तो अभी भी हो रही है. होटल है एक छोटा सा पर 10 कोस दूर होगा. अंधेरे में इतनी दूर जाना बिना किसी गाड़ी के तो मुमकिन नहीं होगा. अच्छा होगा अगर आप यही रुक जाओ, बाबूजी. मेरा छोटा सा घर आप के रहने लायक तो नहीं है मगर इस के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है.‘‘

भूख के मारे बहाल रितिका को न चाह कर भी ढाबे वाले की बीवी का बना खाना खाना पड़ा. उस छोटे से कमरे में किस तरह रात गुजारी, अमर व रितिका की  जिंदगी का शायद यह सब से बुरा अनुभव रहा होगा. ढाबे वाला, उस की बीवी, 3 बच्चे, अमर और रितिका. खाट पर ढाबे वाले ने मेहमानों को सुलाया और खुद परिवार सहित जमीन पर.

रातभर चूहों की खटरपटर, खरोर्टों का खरगराहट, बाहर बारिश की टपटप, कभी तेज हवा की चलने की आवाज और कितनी ही तरह की मिलीजुली बदबू. ओफ,  नरक से भी बदतर, रितिका सोच रही थी. किसी तरह सुबह हुई. बारिश रुक गई थी. अमर ने बाहर निकल कर देखा जहां कार खड़ी थी वह जगह ढह चुकी थी. नीचे गहरी खाई थी. कार का कुछ अतापता नहीं चल रहा था. आगे की सड़क भी खराब हो गई थी.

ढाबे वाले की बीवी ने चाय बना ली थी. चाय पी और अमर रितिका, कैसे वापस जाएं, इस बारे में सोचविचार करने लगे. कार के साथसाथ सारा सामान भी चला गया था. बस, उन के पास पर्स और मोबाइल थे. घर फोन लगाएं तो नैटवर्क नहीं मिल रहा था. यह जगह बिलकुल सुनसान थी. दूरदूर तक दिखाई नहीं दे रहा था. ढाबे वाले ने बताया कि एक छोटा सा गांव है 3-4 कोस दूर, मगर वहां ज्यादाकुछ नहीं मिल पाएगा.  छोटा सा टैक्सीस्टैंड करीब 10 कोस दूर है और पुलिस चौकी 4-5 कोस दूर है. हां, एक बसस्टैंड है करीब 2 कोस दूर, वहां से लोकल बस पकड़ बड़े बसअड्डे जा सकते हैं. पर उस बारिश में 2 कोस पैदल कैसे जाते.

‘कहां फंस गए‘ मन ही मन रितिका यह सोच रही थी. वे सोच रहे थे कि कोई कार या कोई और गाड़ी आ रही हो तो उसे रोकें ताकि यहां से निकल आगे का इंतजाम करें. दो घंटे हो गए मगर कुछ न गुजरा. ढाबे वाला बोला, “बाबू साहब, आप आराम करो, मैं साइकिल से जा किसी गाड़ी के बारे में पता करता हूं.” अमर ने कहा कि वह भी उस के साथ चलता है. रितिका वहीं इंतजार करे.

पुलिस चौकी जा उन्हें पता चला कि 2 जगह लैंडस्लालाइड की वजह से दोनों ओर का यातायात बंद कर दिया गया है. चूंकि बीचबीच में कई जगह यात्री फंसे हैं सो उन्हें निकालने का काम चल रहा है. अभी कुछ इंतजाम के निर्देश नहीं मिले हैं. अमर ने कार गिरने की जगह और सारी जानकारी पुलिस को दे दी. हवलदार ने उन्हें ढाबे वाले के पास रुकने को ही कहा जब तक कि कोई इंतजाम न हो.

वापस आ जब अमर ने रितिका को सारी बात बताई तो रितिका का रोना ही छूट गया. ‘‘क्या करेंगे अमर , अब हम कैसे जाएंगे घर?”

अमर ने उसे सांत्वना दी. रितिका को रोता देख कर ढाबे वाले की बीवी भी उसे चुप कराने लगी. रोतेरोते रितिका को घबराहट सी हो गई और चक्कर आ गए. ढाबे वाली की बीवी देर तक होश आने पर उस के हाथ मलती रही, पांव दबाती रही. उस औरत ने उन के लिए खाना बनाया, बड़े प्यार से खिलाया और कहा, “जब तक आप लोगों के जाने का कोई इंतजाम नहीं हो जाता, आप यहीं रहें.”

पूरा दिन बीत गया. रितिका बारबार अपने पापा को फोन करने की कोशिश कर रही थी पर नैटवर्क नहीं मिल पा रहा था. शाम को फोन लग गया तो उस ने घर पर बताया कि वे लोग किस तरह फंस गए हैं.  घर के सभी लोगों ने ढांढस बंधाई.

रात जैसेतैसी कटी सुबह के इंतजार में कि रास्ता साफ हो और कार का कुछ पता चले. अगले दिन दोपहर तक रास्ता साफ होने की खबर मिली मगर कार का कुछ अतापता नहीं. पुलिस में रिपोर्ट तो दर्ज की ही थी. अमर ने वहां से निकल चलने का तय किया. कपड़े भी 2 दिनों से वही पहने थे. नहानेधोने का भी कुछ इंतजाम न होने से अमर और रितिका की हालत और ज्यादा खराब थी.

रितिका की एक सहेली सोलन में रहती है. उस ने सोचा सोलन की कोई बस मिल जाए तो क्यों न पहले उस के घर जा कर थोड़ा फ्रैश हो कर उस से आगे जाने की मदद ले ली जाए. उसे फोन किया तो पता चला कि वह मुबंई गई है. रितिका इसलिए भी परेशान थी कि घर की चाबी भी कार में रह गई थी और अफरातफरी में अमर का पर्स भी कहीं गिर गया और बहुत ढूंढने पर भी न मिला. उस की रिर्पोट भी अमर ने लिखवा दी क्योंकि उस में उस के क्रैडिट कार्ड, आईकार्ड, लाइसैंस सब थे.

अब रितिका के पर्स में जो थोड़ाबहुत समान और कैश था वही उन की सब संपत्ति थी जिस के सहारे वे घर जा सकते थे. रितिका का क्रैडिट कार्ड, कुछ दिनों पहले ब्लौक हो गया था, उसे भी इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था.

अब बस यही रास्ता था कि जो भी बस मिले, यहां से निकल कर जैसेतैसे दिल्ली पहुंचें. ढाबे वाले को धन्यवाद कर वे वहां से पैदल बसस्टैंड की ओर निकलने लगे. तब निकलते हुए ढाबे वाली की बीवी ने उन के लिए कागज में लपेट कर 4 परांठे और अचार रख दिया, बिस्कुट के 2 पैकेट भी दिए. विदा लेते हुए ढाबे वाला हाथ जोड़ कर कहने लगा, “बाबू जी, हम से जो बना, हम वही कर पाए. अगर कोई गलती हो तो माफ़ करना.” उसे अंदाजा हो गया था कि शायद उन के पास ज्यादा पैसे नहीं हैं, तो उस ने 500 रुपए का एक नोट देते हुए कहा कि बाबूजी, ये रख लीजिए, काम आएगा.

उन का प्रेम और आदर देख इस बार अमर के साथसाथ रितिका की भी आंखें भर आईं. उस ने ढाबे वाली की बीवी और बच्चों को गले लगा लिया. इस तरह वे वहां से निकले और किसी तरह बसस्टैंड पहुंचे तो एक भरी हुई बस मिली जो कि शिमला तक जा रही थी. अमर और रितिका उस में बैठे तो अमर ने रितिका में बहुत बदलाव देखा. अब वह गांव के लोगों से भरी भीड़ वाली बस में नाकभौं नहीं सिकोड़ रही थी बल्कि बड़े आराम से सफर कर रही थी. यही नहीं, एक छोटा बच्चा जिस की नाक बह रही थी, जो बस में खड़ा था, उसे रितिका ने अपनी गोद में बिठा लिया था.

अमर ने कहा, “यह क्या कर रही हो, तुम्हारे कपड़ों में इस की बहती नाक लग जाएगी तो?”

रितिका ने कहा, “क्यों, क्या वह इंसान नहीं है, बच्चा है, बेचारा कितनी देर से खड़ा है.”

अमर को हंसी आ गई. रितिका इस हंसी का मतलब समझ रही थी. उस ने शरमा कर अमर के कंधे पर अपना सिर रख दिया. अमर को यह देख मन ही मन बहुत शांति मिली. इस सफर में अपनी कार, पैसे, कीमती सामान जरूर खो कर आ रहा था पर जो ले कर जा रहा था उस की कोई कीमत नहीं थी. उस की जीवनसंगिनी उस के विचारों की भी संगिनी बन चुकी थी.

लेखिका – सुनीता भारल

किन सैक्सुअल प्रौब्लम्स की वजह से शादियों के टूटने का खतरा रहता है

सैक्स एक ऐसा शब्द है जिसे सुन कर हम सबके मन में एक अलग सी खुशी की लहर दौड़ने लगती है और दिल खुशनुमा सा होने लगता है. हम सब सैक्स को एंजौय करते हैं और हम सबको लगता है कि सैक्स ऐसा होना चाहिए कि कुछ देर के लिए तो बस ऐसी फीलिंग आए कि हम जन्नत में पहुंच गए हैं. हर इंसान अपनी लाइफ में बहुत बार सोचता है कि वे अपने सैक्स लाइफ को किस तरह से और भी ज्यादा इम्प्रूव कर सकता है.

ऐसा कई बार देखा गया है कि हम सब सैक्स तो करते हैं लेकिन सैक्स को लेकर हमारे मन में कई तरह के विचार आते रहते हैं जैसे कि –
– मैं सैक्स सही से तो कर रहा या कर रही हूं न ?
– मेरा पार्टनर मेरे साथ खुश तो है या नहीं ?
– मैं अपने पार्टनर को अच्छे से सैटिस्फाई कर पा रहा या कर पा रही हूं नहीं ?
– कहीं मेरे अंदर कोई कमी तो नहीं है न ?

ऐसे कई सारे विचार हमारे दिमाग में आए दिन आते हैं जिससे कि हमे डर लगा रहता है कि हमारे सैक्सुअल प्रौब्लम की वजह से हमारा पार्टनर हमें छोड़ तो नहीं देगा. तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कुछ ऐसी सैक्सुअल प्रौब्लम्स और उनके सौल्यूशन्स के बारे में जिससे कि आप अपनी शादी या रिलेशनशिप को टूटने से बचा सकते हैं.

सैक्स टाइमिंग्स

सैक्स टाइमिंग्स को लेकर हमारे मन में कई सारे विचार आते हैं. हर पुरूष को ऐसा लगता है कि उसकी पत्नी या गर्लफ्रेंड चाहती है कि वह लम्बे समय तक सैक्स करते रहें जिससे कि वह सैटिस्फाई हो पाए पर यह गलत है. सैक्स चाहे लम्बे समय तक हो या ना हो पर सैक्स ऐसा होना चाहिए जो आपको और आपके पार्टनर को जन्नत की सैर करा दे. आपको अपने पार्टनर को सिर्फ सैक्स में ही नहीं बल्कि सैक्स से पहले भी सैटिस्फाई करना चाहिए जैसे कि ओरल सैक्स कर के, अपने पार्टनर के नाजुक अंगों को छेड़ कर और अपने पार्टनर की पूरी बौडी पर जमकर किस कर के. ऐसा करने से आपका पार्टनर सैक्स से पहले ही खुद को काफी हद तक सैटिस्फाई फील करेगा.

अगर फिर भी आप को या आप  के पार्टनर लगता है कि आप की सैक्स ड्यूरेशन बहुत ही कम है तो आप को कभी भी खुद से कोई दवाई या स्प्रे जैसा कुछ नहीं लेना चाहिए बल्कि एक अच्छे सैक्स स्पैशलिस्ट से मिलना चाहिए और उससे यह सब डिस्कस करना चाहिए.

लिंग का साइज

विदेशी पोर्न वीडियोज ने हमारे मन एक बात डाल दी है कि लिंग काफी लंबा होगा तभी लड़कियां सैटिस्फाई हो पाएंगी और इसी कारण कई लड़के इंटरनेट से पढ़ कर लिंग लम्बा करने की दवाइयां लेने लग जाते हैं जिस के कई साइड इफैक्ट्स होते हैं. ऐसा करना और ऐसा सोचना काफी हद तक बिल्कुल गलत है. आपका पार्टनर आपके लिंग के साइज से नहीं बल्कि आपकी परफौर्मेंस से सैटिस्फाई होता है.

अगर आपके लिंग का साइज ज्यादा लम्बा नहीं है पर आपकी परफौर्मेंस काफी अच्छी है तो आपके पार्टनर को आप से कभी कोई शिकायत नहीं होगी. अगर फिर भी आप को और आप के पार्टनर को लगता है कि आप के लिंग का साइज काफी छोटा है और ठीक से परफौर्म नहीं कर पा रहा तब आपको जरूर सैक्स स्पैशलिस्ट डौक्टर से सलाह लेनी चाहिए.

प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन

समय से पहले ही अपना स्पर्म लूज़ कर देना या हल्का सा कुछ होते ही पहले ही क्लाइमैक्स तक पहुंच जाने को प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन कहा जाता है. प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन आजकल काफी कौमन प्रौब्लम है. कई पुरूषों की यही समस्या है कि वह सैक्स करते समय पूरी परफौर्मेंस नहीं दे पाते और समय से पहले से स्पर्म लूज़ कर देते हैं जिससे कि उनकी गर्लफ्रेंड या पत्नी सैटिस्फाई नहीं हो पाती. प्री मैच्योर इजैक्यूलेशन कई चीजों पर डिपैन्ड करता है.

अगर आपको भी ऐसा लगता है कि आप सैक्स के समय अपनी पूरी परफौर्मेंस नहीं दे पा रहे हैं तो आपको जल्द से जल्द किसी अच्छे डौक्टर की सलाह लेनी चाहिए.

याद रहे, डौक्टर्स पर जाने से हमें कभी शर्माना नहीं चाहिए और ना ही उनसे कुछ छिपाना चाहिए. सैक्स प्रौब्लम्स डिस्कस करने से किसी की मर्दानगी नहीं घटती बल्कि अगर आपने डौक्टर्स से डिस्कस किए बिना कोई गलत दवाई ले ली तो अपको लेने के देने भी पड़ सकते हैं. बेहतर यही है कि अच्छे स्पैशलिस्ट से संपर्क करें, अकसर ऐसे स्पैशलिस्ट आप की प्रौब्लम को खुद तक ही सीमित रखते हैं. सोसाइटी अब बदल चुकी है ऐसे मामलों में बोलने से वह हिचकती नहीं है और न ही दूसरे का मजाक उड़ाती है.

मेरी शादी होने वाली है लेकिन एक्स-गर्लफ्रेंड के पास हमारी इंटीमेट फोटोज है वो मुझे धमकी दे रही है.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी उम्र 26 साल है और मेरे घरवालों ने मेरी शादी तय कर दी है. मेरी शादी अगले महीने है. मेरी एक गर्लफ्रेंड थी जिससे अब मेरा ब्रेकअप हो चुका है. हमारी सोच एकदूसरे से कभी नहीं मिलती थी और रोज किसी ने किसी बात पर हमारी लड़ाई होती रहती थी जिससे तंग आ कर हम दोनों ने एकदूसरे से अलग होना ही सही समझा. जब से मेरी एक्स गर्लफ्रेंड को मेरी शादी के बारे में पता चला है तब से वह मुझ पर दबाव डाल रही है कि मैं उसी से शादी करूं जबकि हमारा ब्रेकअप हुए भी 4 महीने हो चुके हैं. दरअसल मेरी एक्स गर्लफ्रेंड के पास हमारी कुछ इंटीमेट फोटोज और वीडियोज हैं और वह मुझे धमकी दे रही है कि अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी तो वह सारी फोटोज और वीडियोज मेरी होने वाली पत्नी को दिखा देगी. मुझे काफी टेंशन हो रही है कि अगर मेरी होने वाली पत्नी ने ये फोटोज और वीडियोज देख ली तो मेरा घर बसने से पहले ही उजड़ जाएगा. मुझे क्या करना चाहिए ?

जवाब –

आजकल के कपल्स में यह चीज़ काफी कौमन हो चुकी हैं कि अपने इंटीमेट मोमेंट्स को वे अपने फोन में कैप्चर करने लग जाते हैं जो कि उन्हें किसी भी समय मुसीबत में डाल सकती है. कपल्स को यह बात समझनी चाहिए कि अपने इंटीमेट मोमेंट्स को अपने फोन में कैप्चर नहीं करना चाहिए क्योंकि आजकल  डाटा लीक होने के कई मामले सामने आ रहे हैं.  इस कारण हैकर्स किसी के भी फोन का डाटा हैक कर सकते हैं. इसका गलत इस्तेमाल करने लग जाते हैं.

अगर बात करें आपके केस की तो, हो ना हो आप बुरी तरह फंस चुके हैं. एक तरफ आपके घरवालों ने आपकी शादी फिक्स कर दी है जिसे आप मना नहीं कर सकते और दूसरी तरफ आपकी एक्स गर्लफ्रेंड आपको धमकी दे रही है कि आप उनसे शादी कर लें. ऐसे में आपको अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को समझाना चाहिए कि शादी कोई मजाक नहीं है. अगर आपकी पहले एकदूसरे के साथ नहीं बन पाई तो शादी के बाद कैसे बन पाएगी. हो सकता है आपके एकदो बार समझाने पर वह कंवींस हो जाए, लेकिन आप को इसमें समय लग सकता है.

आप उन्हें समझाइए कि आप दोनों की अलग सोच की वजह से कोर्टशिप के दिनों में  आपके बीच इतने झगड़े होते थे तो शादी के बाद तो और भी ज्यादा झगड़े होने लगेंगे.   इससे कि दोनों की जिंदगी खराब हो सकती है.

आपको अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को किसी भी तरह इस काम के लिए मनाना होगा और इसके लिए आपको हर मुमकिन कोशिश करनी होगी क्योंकि अगर आपकी एक्स गर्लफ्रेंड ने आपकी होने वाली पत्नी को आप दोनों के इंटीमेट फोटोज और वीडियोज दिखा दिए तो आपकी जिंदगी बरबाद हो सकती है.

अगर आपकी एक्स गर्लफ्रेंड बिल्कुल समझने को तैयार नहीं होती तो आप एक अच्छा सा मौका देख कर और उनका विश्वास जीत कर उनका फोन कुछ समय के लिए अपने पास रख लें और उस फोन में से अपनी सारी फोटोज और वीडियोज को डिलीट कर दें अगर यह आपके लिए मुमकिन है तो, अगर मुमकिन नहीं  है तो आपके पास उन्हें समझाने के अलावा और कोई औप्शन नहीं बचता है.

व्हाट्सऐप मैसेज या व्हाट्सऐप औडियो से अपनी समस्या इस नम्बर पर 8588843415 भेजें.

तंगहाली में क्यों मरते हैं एक्टर्स, क्यों बेचनी पड़ती हैं सब्जियां,अचानक हो जाते हैं लापता

क्योंकि सास भी कभी बहू थी, फेम एक्टर विकास सेठी की 48 साल की उम्र में मौत हो गई. कम उम्र में मौत की खबर के साथ एक बात  कचोट रही है कि उनके बारे में मीडिया में छापी गई ज्यादातर खबरों में इस का भी जिक्र किया गया कि एक्टर तंगी से जूझ रहा था. पिछले दिनों कई ऐसे एक्टर्स की मौत हुई जिन के बारे में यह लिखा गया कि वह बदहाली के दिन गुजार रहे थे. मुंबई के बारे में सदियों से यह कहा जाता रहा है कि मेहनत करने वालों को यह शहर भूखा सोने नहीं देता. बेशक कुछ लोगों को उन का मनचाहा काम नहीं मिलता लेकिन जिन्हें मुंबई की फिल्मी दुनिया या टेलीविजन इंडस्ट्री में जगह मिल जाती है उन से कहां चूक हो जाती है कि वे आखिरी सांस लेते वक्त पैसे की तंगी से जूझ रहे होते हैं.

शाहखर्ची तो नहीं है इन स्टार्स की मौत की वजह

कुछ साल पहले एक मनमीत ग्रेवाल नाम के एक एक्टर ने सुसाइड कर लिया . इस की वजह आर्थिक परेशानी बताई गई. कहा गया कि एक्टर को पेमैंट नहीं मिली थी इसलिए आत्महत्या कर ली. इनकी माैत के बाद यह भी जानकारी सामने आई कि उन के एक दोस्त ने भी पंखे से लटक कर जान दे दी. दोनों दोस्तों की मौत की परतें जब खुलनी शुरू हुई तो पता चला कि इन दोनों ने विदेश घूमने के लिए कर्ज लिया था. बाद में इस का भुगतान करने में उन्हें परेशानी होने लगी और नतीजे ने दोनों की जान ले ली. लेकिन अगर दोनों ने थोड़ी सूझबूझ दिखाई होती तो शायद हमारे बीच होते.

इन की दर्द भरी कहानी कहीं न कहीं उस लोकोक्ति को सही ठहराती है जिस में यह कहा गया है कि ‘जितनी लंबी चादर हो, पैर उतना ही पसारना चाहिए’. ग्लैमर वर्ल्ड में रह कर स्टार्स अपने लाइफस्टाइल को अचानक से बदलना चाहते हैं. बड़े स्टार्स की तरह शाहखर्ची में लग जाते हैं.

उदित नारायण के बेटे ने भी किया था सामना

उदित नारायण का नाम कौन नहीं जानता. यह बहुत ही पौपुलर प्लेबैक सिंगर रहे हैं. 90 के दशक के ज्यादातर हिट गाने इनके ही गाए होते थे. जाहिर है इन को मेहनताना भी अच्छा मिलता रहा होगा. उदित नारायण के बेटे हैं आदित्य नारायण. इनको रियलिटी शोज में देखा जाता है. बौलीवुड बबल नामक एक शो को दिए गए अपने इंटरव्यू में आदित्य ने बताया कि लौकडाउन के दिनों में उन्होंने ने भी तंगी का सामना किया.

उन्होंने कहा कि एक समय ऐसा था जब उनके अकांउट में केवल 18 हजार रुपए ही बचे थे. इसमें दो राय नहीं कि आदित्य अपने पिता की तरह मशहूर नहीं हैं लेकिन वह टैलेंटेंड रहे हैं. वह एक सिंगर हैं और एंकरिंग भी करते हैं. उनके साथ पिता की पहचान का भी बेनिफिट है जो बौलीवुड के आउटसाइडर्स के साथ नहीं होता है. वह बौलीवुड के ऐसे परिवार से आते हैं जिन के पास काम की कभी कमी ही नहीं रही.

आदित्य अपने पिता की एकमात्र संतान है, ऐसे में तंगी की बात उनके मुंह से शोभा भी नहीं देती है. अगर वह इस थ्योरी में बिलीव करते हैं कि वह अपना खर्च खुद उठाएंगे तो उन्हें अपनी कमाई के हिसाब से ही नौर्मल लाइफ की आदत डालनी होगी लेकिन बड़े फिल्मी फैमिलीज से आने वाले स्टार किड्स को यह आदत नहीं होती, उन्हें बचपन में ही बड़ी गाड़ियों में सैर करने की, महंगे होटलों में खाने की, डिजानर क्लोद्स पहनने की आदत हो जाती है. शायद ऐसे मामलों में तंगहाली की यही वजह होती है.

क्यों नहीं लेते मेडिक्लेम पौलिसीज

‘ससुराल सिमर का’ एक पौपुलर सीरियल था. यह काफी सालों तक लगातार चलता रहा. यह धारावाहिक एक जौइंट फैमिली की कहानी थी. इसी सीरियल में एक्टर आशीष राय ने भी एक भूमिका थी. यह एक्टर किडनी की बीमारी के कारण चल बसे.  इनकी मौत की खबर जब आई, तो पता चला कि इलाज में काफी पैसे खर्च हो गए थे. इन्होंने अपने फैसबुक के जरिए लोगों से फाइनैंशिएल हैल्प भी मांगी थी.

आशीष राय की तरह ही हाल हुआ था एक्टर रामवृक्ष गौर का. इन का नाम उन दिनों सुर्खियों में आया जब उन्होंने आजमगढ़ में सब्जी बेचना शुरू कर दिया था. इस का कारण उन्होंने भी ने बीमारी में पैसे का जरूरत से ज्यादा खर्च होना बताया था. रामवृक्ष गौर ने यह जरूर स्वीकारा था कि उन्होंने कई टीवी शोज और मूवीज में काम किया. इसमें काफी पैसे भी कमाए लेकिन उनकी बचत बीमारी में पानी की तरह बह गई.

इसमें दो राय नहीं है कि कुछ बीमारियां इंसान को आर्थिक रूप से कमजोर कर देती है. पर सवाल यह उठता है कि ऐसे दिनों के लिए ही लोग तरहतरह की सैविंग्स करते हैं और हैल्थ से जुड़ी पौलिसीज लेते हैं. आज की यंंग जैनरेशन इस बात को ले कर बेहद चौकन्नी है. वह करियर के शुरुआत में ही मेडीक्लेम पौलिसीज लेते हैं. कुछ वर्किंग कपल तो अलगअलग से मेडिकल कवर कराने पर ध्यान देते हैं. हर स्टार्स की जिंदगी में उतारचढ़ाव का समय आता है. कभी इन के पास काम होता है कभी नहीं होता. ऐसे में यह बेहद जरूरी है कि दूसरों के सामने हाथ फैलाने की बजाय सही समय पर इस बारे में निर्णय लें. आज कई ऐसी मैडिक्लेम पौलिसीज है जो बड़ी और महंगी बीमारियों को कवर करती है.

कुछ दिन पहले ही सब टीवी के पौपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ का एक पौपुलर एक्टर गुरुचरण सिंह अचानक गायब हो गया. यह एक्टर इस सीरियल में एक सरदार रोशन सोढ़ी का रोल निभा रहा था. 26 दिनों तक गायब रहने के बाद एक्टर ने अपने बारे में लोगों को बताया कि वह फाइनैंशिएल क्राइसिस से गुजर रहे थे, उन पर लोन था, जिसे वह क्रैडिट कार्ड से चुका रहे थे. हालांकि एक्टर ने यह भी कहा कि वह कर्ज की वजह से नहीं किसी और तकलीफ के कारण गायब हो गए थे. खैर गायब होने की वजह जो कुछ थी, जब जिंदगी की परतें उधड़ी तो कर्ज की बात सामने आई. आखिर खर्चों की लिस्ट इतनी लंबी क्यों हो कि क्रैडिट कार्ड की बैशाखी लेनी पड़े. जब क्रैडिट कार्ड नहीं थे, तो क्या जिंदगी के खर्चे पूरी नहीं होते थे या बीमारियां नहीं थी. दरअसल समाज के हर वर्ग को अपनी हैसियत के हिसाब से ही खर्च करना चाहिए,  टीवी का साधारण कमाने वाला एक्टर अगर शाहरुख खान और प्रियंका चोपड़ा की तरह शानोशौकत दिखाएगा, तो जान से ही जाएगा.

बिजली का मारा प्रेमी बेचारा : प्रेमिका की क्या थी शर्तें

नए जमाने के एक प्रेमी ने जब अपनी प्यारी और चुलबुली प्रेमिका के सामने शादी का प्रस्ताव रखा, तो उस की प्रेमिका ने अपनी शर्तों की लिस्ट उस के सामने पेश कर दी. ‘‘ठीक है. मैं तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार करती हूं. लेकिन, क्या तुम मेरी शर्तों के मुताबिक शादी के बाद मुझे खुश और सुखी रखोगे?’’

प्रेमी ने उस के नजदीक सरकते हुए कहा, ‘‘तुम जल्दीजल्दी अपनी शर्तें बताओ. मैं हर हाल में तुम्हें खुश और सुखी रखूंगा.’’

प्रेमिका ने एक मीठी मुसकान अपने गुलाबी होंठों पर लाते हुए कहा, ‘‘मैं नए जमाने की लड़की हूं. मुझे नएनए डिजाइन के बदलते फैशन के कपड़े पहनने का शौक है. क्या तुम मेरा यह शौक पूरा करोगे?’’

‘‘हां, बिलकुल. तुम अपनी दूसरी शर्त बताओ?’’ प्रेमी उतावला हुआ जा रहा था. ‘‘मुझे घूमनेफिरने का भी शौक है. क्या तुम मुझे अपनी मोटरसाइकिल

पर बैठा कर घुमाने ले जाओगे? पैट्रोल पर पैसा खर्च करते वक्त अगर चीखोगेचिल्लाओगे, तो मैं तुम्हारे दिमाग की चकरी यानी पहिया घुमा दिया करूंगी,’’ प्रेमिका के गुलाबी होंठों पर फैली मीठी मुसकान में अब मजाक भी शामिल हो चुका था. ‘‘हांहां, मैं तुम्हें हफ्ते में 2-3 दिन दूर या नजदीक कहीं घुमानेफिराने ले जाया करूंगा. तुम अपनी तीसरी शर्त भी पेश करो?’’ वह बेकरार हुआ जा रहा था.

‘‘सुनो, आगे सुनो. शादी के बाद तुम मुझ से लड़ाईझगड़ा मत करना. गाली तो कभी मत देना. मैं तुम्हारे घर में जा कर कपड़े नहीं धोऊंगी. झाड़ूपोंछा नहीं लगाऊंगी. बरतन साफ नहीं करूंगी. बोलो, मेरी यह शर्त भी मंजूर है?’’ ‘‘डार्लिंग, तुम्हें कपड़े धोने, झाड़ूपोंछा लगाने, बरतन साफ करने का काम नहीं करना पड़ेगा. हमारे घर में ये सब काम एक बाई करती है…

‘‘हां, यह बताओ कि चाय या कौफी बना कर पिला दिया करोगी? खाना बना कर खिला दिया करोगी? कहीं बेलन का इस्तेमाल एक मिसाइल की तरह तो नहीं किया करोगी?’’ ‘‘मेरे महबूब, मैं उन मौडर्न लड़कियों में से नहीं हूं, जिन्हें चायकौफी बनाना नहीं आता. खाना पकाना नहीं आता. जिन का पकाया भोजन खा कर कोई भी बीमार हो जाए.

‘‘मैं ने अपनी मरजी से खाना वगैरह बनाने का काम अच्छी तरह सीखा हुआ है. बड़ेबड़े शैफ भी मेरी मम्मी का मुकाबला नहीं कर सकते.’’ ‘‘यों तो प्यारमुहब्बत में कोई शर्त नहीं होनी चाहिए. खैर… तुम्हारी कोई और शर्त हो, तो वह भी बताओ?’’ अपनी होने वाली सास की तारीफ सुन कर प्रेमी जैसे जलभुन गया था. उस की आवाज ही बदल गई थी. आवाज में खनक जैसे कहीं खो गई थी.

प्रेमिका सतर्क हुई, ‘‘क्या हुआ? अभी से रंग बदलने लगे? मेरी शर्तें सुनसुन कर बेचैन क्यों हो रहे हो? ऐ मेरे जानू, आजकल घर बसाना खालाजी का घर नहीं है कि कोई भी मुंह उठाए इस में घुसा चला आए.’’ प्रेमिका ने चुटकी लेते हुए आगे कहा, ‘‘मेरी अगली शर्त यह है कि मुझे मेकअप करने का बढि़या व महंगा सामान ले कर दिया करोगे या मुझे खुद खरीदने दिया करोगे. मुझे सजनेसंवरने का भी बहुत ज्यादा शौक है. मंजूर है?’’

‘‘तुम अपना यह शौक भी बेफिक्र हो कर हमारे घर में पूरा कर सकती हो. तुम कहोगी, तो मैं आसमान के तारे तोड़ कर तुम्हारी मांग में सजा दिया करूंगा, मेरी जानेमन. मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’ ‘‘देखो, फिल्मी डायलौग बोल कर मुझे लुभाने की कोशिश मत करो. यों भी मुझे मक्खनबाजी पसंद नहीं है. इस से दिमाग मोटा हो जाता है. यह तो शादी के बाद ही पता चलेगा कि तुम्हारा मेरे प्रति प्यार और लगाव कितने साल तक पूरे रंग में कायम रहता है.

‘‘कई मर्दों का प्यार घटिया और सस्ते मेकअप के सामान की तरह जल्दी फीका पड़ जाता है, बल्कि ऐक्सपायरी दवा की ऐलर्जी की तरह तड़पाने लगता है, सताने लगता है.’’ ‘‘ऐ मेरी महबूबा, कैसी बातें करती हो? मैं दूसरे मर्दों जैसा नहीं हूं. मुझ पर भरोसा रख कर अपनी अगली शर्त भी लगे हाथ पेश करो?’’

‘‘मुझे लैपटौप और स्मार्ट फोन पर अपनी फ्रैंड्स के साथ चैटिंग करने से न तो तुम रोकोगे और न ही तुम्हारे परिवार का कोई और सदस्य ऐसा करेगा. बोलो, मंजूर है?’’ ‘‘हां, मंजूर है. आगे बोलो?’’ प्रेमी ने पूरा मुंह खोल कर उबासी लेते हुए कहा. अपनी प्रेमिका की शर्तें सुनसुन कर उस के कानों में ‘सांयसांय’ की आवाज गूंजने लगी थी.

‘‘मैं ने अपने घर में रूखासूखा भोजन कभी नहीं खाया. दालें व सब्जियां महंगी होने के बावजूद तुम रोज बदलबदल कर चीजें लाया करोगे. और हां, साथ में अदरक, धनिया, टमाटर व सलाद का सामान भी. बिना सलाद के भोजन का क्या स्वाद?’’ ‘‘हमारा पूरा परिवार बेशक भूखे पेट रहे, लेकिन तुम्हें खानेपीने को मिलेगा.’’

‘‘शाबाश, मेरे प्रेमी. तुम सचमुच मुझे बहुत ज्यादा प्यार करते हो,’’ खुशी में प्रेमिका ने उसे चूम लिया. प्रेमी के मन में तरंगें पैदा हो गईं. पूरे तन में जैसे बिजली का हलका सा करंट दौड़ गया. प्रेमी के प्यार के लोहे को गरम देख कर प्रेमिका ने घर में एयरकंडीशनर फिट कराने की शर्त भी रख दी.

यह शर्त सुन कर प्रेमी के लहू में आया उबाल ठंडा पड़ गया. वह उस के पास से झट उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘तुम्हारी बाकी सभी शर्तें मुझे स्वीकार हैं, लेकिन एयरकंडीशनर फिट कराने वाली शर्त मंजूर नहीं, क्योंकि बिजली इतनी ज्यादा महंगी हो चुकी है कि लोग पंखेकूलर चलाने में भी डरने लगे हैं. ‘‘बिजली के भारीभरकम बिल अदा करने में नाकाम रहने पर मेरे पापा घर छोड़ कर कहीं चले गए हैं. लाख ढूंढ़ने पर भी वे आज तक हमें नहीं मिले. मेरी मम्मी का रोरो कर बुरा हाल हो गया. क्या तुम चाहती हो कि शादी के बाद मैं भी घर छोड़ कर चला जाऊं और फिर कभी वापस न आऊं?’’ अब प्रेमिका का उतरा चेहरा देखने लायक था.

जिद : रेवा की मां के व्यवहार ने कैसे बना दिया उसे विद्रोही

रेवा अपनी मां की मृत्यु का समाचार पा कर ही हिंदुस्तान लौटी. वह तो भारत को लगभग भूल ही चुकी थी और पिछले कई वर्षों से लास एंजिल्स में रह रही थी. उस ने वहीं की नागरिकता ले ली थी. पिता के न रहने पर करीब 15 वर्ष पूर्व रेवा भारत आई थी. यह तो अच्छा हुआ कि छोटी बहन रेवती ने उसे तत्काल मोबाइल पर मां के न रहने का समाचार दे दिया था. इस से उसे अगली ही फ्लाइट का टिकट मिल गया और वह अपने सुपरबौस की मेज पर 15 दिन की छुट्टी की अप्लीकेशन रख कर, तत्काल फ्लाइट पकड़ने निकल गई. मां का अंतिम संस्कार उसी की वजह से रुका हुआ था. सख्त जाड़े के दिन थे. घाट पर रेवा, रेवती और उस के पति तथा परिवार के अन्य दूरपास के सभी नातेरिश्तेदार भी पहुंचे हुए थे. यद्यपि घाट पर छोटे चाचा और मौसी का बड़ा लड़का भी मौजूद थे लेकिन इस का समाधान घाट के पंडितों द्वारा ढूंढ़ा जा रहा था कि दोनों बहनों में से किस के पास मां को मुखाग्नि देने का अधिकार अधिक सुरक्षित है, तभी रेवती ने प्रस्तावित किया, ‘‘पंडितजी, मां को मुखाग्नि देने का काम बड़ी बेटी होने के कारण रेवा दीदी करेंगी. उन्होंने ही हमेशा मां के बड़े बेटे होने का फर्ज निभाया है.’’

काफी देर बहस होती रही. आखिर में बड़ी जद्दोजेहद के बाद यह निर्णय हुआ कि यह कार्य रेवा के हाथों ही संपन्न करवाया जाए. हमेशा जींसटौप पहनने वाली रेवा, आज घाट पर पता नहीं कहां से मां की साड़ी पहन कर आई थी और एकदम मां जैसी ही लग रही थी. ऐसा लग रहा था कि मां से हमेशा खफाखफा रहने वाली रेवा के मन पर मां के चले जाने का कुछ तो असर जरूर हुआ है. अगले 3-4 दिन बड़ी व्यस्तता में बीते. मां की मृत्यु के बाद के सभी संस्कार विधिविधान से संपन्न किए गए. पंडितों के अनुसार, बरसी का हवनयज्ञ आदि 10 दिन से पहले करना संभव नहीं होगा. रेवा के वापस जाने से 2 दिन पूर्व की तिथि नियत की गई. अगले दिन रेवती ने घर की साफसफाई की जिम्मेदारी संभाल ली. रेवा ने पहले ही कह दिया, ‘‘तू मां की लाड़ली बिटिया थी, इसलिए मां का ये घर, सामान, जमीनजायजाद व धनसंपत्ति, अब तू ही संभाल. न तो मेरे पास इतनी फुरसत है, न ही मुझे इस की जरूरत. और सुन, अब मैं इंडिया नहीं आ सकूंगी, इसलिए अपने पति शरद से पूछ कर, अगर कहीं मेरे हस्ताक्षर की जरूरत हो तो अभी करा ले.

आखिर तू ही तो मां की असली वारिस है. मैं तो वर्षों पहले यहां से विदेश चली गई और वहीं की ही हो कर रह गई. तू ने ही मां और पापा की देखभाल की है, उन्हें संभाला है. समझी कि नहीं, रेवती की बच्ची.’’ रेवा दीदी के मुंह से काफी दिनों बाद ‘रेवती की बच्ची’ सुन कर रेवती को बड़ा अच्छा लगा जैसे बचपन के कुछ क्षण फिर से वापस आने को आतुर हों. घर की साफसफाई के बाद मां का सामान ठीक करने का नंबर आया. उन के कपड़े करीने से, बड़े सलीके से और तरतीबवार उन के वार्डरोब में हैंगर पर लटके हुए थे. शेष साडि़यां, ब्लाउज व पेटीकोट का सैट बना कर पौलिथीन में पैक कर के रखे हुए थे. मां ऐसी ही थीं, हर चीज उन्हें कायदे से रखने की आदत या यह कहो मीनिया था और वे यह चाहती थीं कि उन की बेटियां भी अपना घर उसी तरह सजासंवरा व सुव्यवस्थित रखें. बचपन में अगर नहाने के बाद तौलिया एक मिनट के लिए सही जगह फैलाने से रह जाता, तो समझो हम लोगों की शामत आ जाती थी. पापा थोड़े लापरवाह किस्म के इंसान थे और रेवा भी उन पर ही गई थी. सो, वे दोनों अकसर मां की डांट खाते रहते थे.

आखिर में, मां की बुकशैल्फ ठीक करने का नंबर आया. मां की रुचि साहित्यिक थी और जहां कहीं भी कोई अच्छी किताब उन्हें नजर आ जाती, वे उसे खरीदने में तनिक भी देर न लगातीं. इस प्रकार धीरेधीरे मां के पास दुर्लभ साहित्य का खजाना एकत्र हो गया था. बुकशैल्फ झाड़पोंछ कर किताबों को लगातेलगाते रेवती को किताबों के पीछे एक काले रंग की डायरी दिखाई दी जिस पर लिखा था, ‘सिर्फ प्रिय रेवा के लिए.’ रेवती कुछ देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही. डायरी इस तरह सील थी कि उसे खोलना आसान नहीं था. रेवती ने डायरी झाड़पोंछ कर रेवा दीदी को पकड़ा दी.

रेवा सोफे पर पसरी हुई थी, उस ने उचक कर पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ ‘‘मां तेरे लिए एक डायरी छोड़ गई हैं, रख ले,’’ रेवती ने कहा. रेवा थोड़ी देर उस डायरी को उलटपलट कर देखती रही, फिर उस ने उसे वैसा ही रख दिया. उसे चाय की तलब लगी थी, उस ने रेवती से चाय पीने के लिए पूछा तो चाय बनाने किचन में चली गई. सोचने लगी कि मां ने पता नहीं, डायरी में क्या लिखा होगा. मां को तो जो कुछ लिखना था, रेवती को लिखना चाहिए था, आखिर वह उस की ‘ब्लूआइड’ बेटी जो थी.

रेवा सोचने लगी, ‘मां तो वैसे भी रेवती को ही चाहती थीं, मुझे तो उन्होंने हमेशा अपने से दूर ही रखा. पता नहीं मैं उन की सगी बेटी हूं भी या नहीं.’ फिर सोचने लगी कि चलो, अब तो मां चली ही गई, अब उन से क्या शिकवाशिकायत करना. उसे आज तक, बल्कि अभी तक, समझ में नहीं आया कि मां सब से तो अच्छी तरह बोलतीबतियाती थीं, पर उस के साथ हमेशा कठोर क्यों बन जाती थीं. रेवा शुरू से पढ़ने में बड़ी तेज थी और अपनी क्लास में हमेशा टौप करती, जबकि रेवती औसत दर्जे की स्टूडैंट थी. मां रेवती को रोज जबरदस्ती पढ़ाने बैठतीं और उस पर मेहनत करतीं, तब जा कर वह किसी तरह क्लास में पास होती थी. उधर, रेवा ने अपने स्कूलकालेज में मार्क्स लाने के कितने ही कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए और ऐसे नए मानक गढ़ दिए जिन का टूटना असंभव सा था. स्कूलकालेज में रेवा पिं्रसिपल व टीचर के प्यार से ज्यादा, इज्जत की हकदार बन बैठी थी. उस के क्लासमेट उस की ज्ञान की वजह से उस से एक तरह से डरते थे और एक दूरी बना कर ही रखते थे और इन्हीं कारणों से उस की कोई अच्छी सहेली भी नहीं बन सकी.

मां ने तो वैसे भी उसे तीसरी क्लास से ही होस्टल में डाल दिया था. कई बार रोने के बाद भी उन का दिल नहीं पसीजा. खैर, पापा हर शनिवार की शाम को उसे घर ले जाने के लिए आ जाते और सोमवार की सुबह उसे स्कूल छोड़ जाते. रेवा के लिए वह एक दिन बड़ा सुकूनभरा होता, दिनभर वह अपने पापा के साथ मस्ती करती. मां कई बार पूछतीं कि कोर्स की कोई कौपीकिताब लाई कि नहीं, और वह इन प्रश्नों से बचने के लिए पापा के पीछे दुबक जाती. उस के 8वीं पास करने के साथ ही पापा का ट्रांसफर दूसरी जगह हो गया. सो, सप्ताह में एक दिन घर आनेलाने का चक्कर भी खत्म हो गया.

इस शहर से जाने के बाद भी पापा, हर महीने एक बार छुट्टी वाले दिन जरूर मिलने आते और कभीकभार मम्मी भी साथ में आतीं. मां आते ही उस के हालचाल जानने से पहले ही पढ़ाई के बारे में पूछने बैठ जातीं. सो, पापा का अकेले आना, उसे हमेशा बड़ा भाता था. वह जो भी फरमाइश करती, पापा तुरंत पूरी करते, तरहतरह की ड्रैसेस दिलाते, लंच व डिनर बाहर ही होता व उस की मनपसंद आइसक्रीम दिन में कई बार खाने को मिलती. इस तरह धीरेधीरे रेवा अपनी मां से दूर होने लगी और अकसर एक रटारटाया मुहावरा उस के मुंह पर आने लगता, ‘‘मां तो बस, रेवती की ही मां हैं. सारा प्यार मां ने उस के लिए ही रख छोड़ा है, मुझ से तो वे प्यार करती ही नहीं.’’ इंटर तक रेवा उसी कालेज में पढ़ती रही और उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट में पूरे प्रदेश में मैरिट में प्रथम स्थान प्राप्त कर कीर्तिमान स्थापित कर दिया. उस कालेज की पिं्रसिपल ने तो फेयरवैल पार्टी वाली स्पीच में यहां तक कह दिया कि इस लड़की रेवा का चयन भारतीय प्रशासनिक सेवा में होेने से कोई नहीं रोक सकता और इस कालेज को उस पर बहुत गर्व है.

छोटे से शहर लखनऊ के उस छोटे कालेज से निकल कर रेवा को लेडी श्रीराम कालेज, दिल्ली में दाखिला हाथोंहाथ मिल गया. साथ ही, मां ने उसे आईएएस के ऐंट्रैंस की कोचिंग भी जौइन करा दी. फिर तो रेवा अपनी पढ़ाई की भागदौड़ में इस तरह मसरूफ हो गई कि उसे मां के पास रहने और उन का प्यारदुलार पाने का मौका ही नहीं मिला जिस के लिए वह हमेशा तरसती रही थी.

पता नहीं कैसे, एक दिन अचानक रेवा को लगने लगा कि वह तो एकदम मशीन बनती जा रही है और इस के लिए अब उस का मन कतई तैयार नहीं था. रहरह कर उसे अब बचपन के वे दिन याद आ रहे थे, जब वह मांबाप के प्यार से वंचित रही. धीरेधीरे उस में विद्रोह के मूकस्वर उठने लगे. सब से पहले उस ने कालेज में टौप करने के लक्ष्य को ढीला छोड़ना शुरू कर दिया. उस के मन में एकाएक खयाल आया कि अगर वह दूसरे स्थान पर आ जाती है, तो किसी को क्या फर्क पड़ने वाला है. इस के बाद उस ने आईएएस कोचिंग में भी ढील देनी शुरू कर दी. इन बातों से रेवा की एक अजीब सी जिद हो गई. इस कारण वह क्लास में पहले द्वितीय, फिर तृतीय स्थान पर आ गई जिस से उस के सभी साथी आश्चर्यचकित रह गए. इसी तरह आईएएस कोचिंग के साप्ताहिक टैस्टों में उस के नंबर कमतर आने शुरू हो गए. जैसे ही मां को इस का पता चला, वे दिल्ली पहुंच गईं और उसे लगातार डांटती रहीं. रेवा को यह देख कर बड़ा सदमा लगा कि रेवती को हर साल नंबर कम आने पर प्यार से समझाने वाली मां, आज कहां खो गई हैं. मां तो डांट कर चली गईं, पर रेवा के मन में एक विद्रोह की चिनगारी को अनजाने में और भड़का गईं. रेवा सोचती रही कि मां अगर प्यार के दो बोल बोल कर समझा देतीं तो कौन सा आसमान छूना उस के लिए संभव न था.

इसी बीच एक और बात हो गई. मां की खास सहेली मंदिरा का लड़का और उस का बालपन का सखा सरस भी दिल्ली आ गया. एक दिन सरस से उस की मुलाकात एक मौल में हो गई. दोनों ने वहां कौफी पी और एकदूसरे का मोबाइल नंबर एक्सचेंज किया. फिर तो आपस में बातों का सिलसिला ऐसा चला कि बचपन की दोस्ती प्यार में कब बदल गई, पता ही न चला. सरस ने अपनी मां से जब इस बारे में बात की तो उन की खुशी का ठिकाना न रहा. अगला अवसर मिलते ही, सरस की मां मंदिरा आंटी, मां के पास पहुंच गई. जैसे ही उन्होंने मां को बताया कि सरस व रेवा आपस में प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं, मां का चेहरा उतर गया. जब उन्हें पता चला कि सरस ने इंजीनियरिंग की है और वह जौब पाने के लिए प्लेसमैंट फौर्म भर रहा है, तो मां ने इस शादी के लिए यह कह कर इनकार कर दिया कि रेवा को तो अभी आईएएस बनना है. एक इंजीनियर व आईएएस में शादी कैसे हो सकती है.

जैसे ही रेवा को इस बात का पता चला, विद्रोह की वह छोटी सी चिनगारी एकदम ज्वाला बन गई. परिणामस्वरूप, उस ने प्रतियोगिता परीक्षा का एक पेपर ही छोड़ दिया. मां को जब इस का पता चला तो वे बहुत चीखीचिल्लाईं. कितनी ही बार पूछने पर भी कि उस ने ऐसा क्यों किया, रेवा खामोश बनी रही. कुछ असर न होता देख, मां रेवा को समझाने बैठ गई. काफी देर बाद, रेवा ने जो पहला वाक्य कहा, वह यह था कि वे उसे सरस से विवाह करने देंगी या नहीं, अन्यथा दोनों कोर्टमैरिज कर लेंगे. अब तो मां रोने बैठ गईं, परंतु इन बातों का रेवा पर कोई असर नहीं हुआ. कुछ दिन रुक कर वह दिल्ली लौट गई और उस ने पत्रकारिता के कोर्स में प्रवेश ले लिया. धीरेधीरे रेवा ने घर आना भी कम कर दिया. इधर, सरस को एक मल्टीनैशनल कंपनी में अच्छे पैकेज पर जौब मिल गई और उधर रेवा को दूरदर्शन के न्यूज चैनल में काम मिल गया. मां ने लाख समझाया, पर रेवा ने भी जिद पकड़ ली और इस के बाद फिर आईएएस की प्रतियोगिता में बैठी ही नहीं. बाद में सरस और रेवा ने विवाह कर लिया जिस में मां शामिल तो हुईं पर बड़े ही बेमन से. इस के कुछ सालों बाद, रेवा सरस के साथ लास एंजिल्स चली गई और वहीं की नागरिकता ले ली.

‘‘दीदी, चाय बना रही हूं, पियोगी.’’ रेवती की आवाज सुन कर रेवा वापस वर्तमान में लौट आई. उसे लगा कि बचपन की कड़वाहट फिर से मुंह को कसैला कर गई. कई बार रेवा मन को समझा चुकी है कि मां के जाने के बाद उसे अब सबकुछ भूल जाना चाहिए. परंतु वह क्या करे, मन के बेलगाम घोड़े अब भी उसी जानीपहचानी व अनचाही राह पर निकल पड़ते हैं. मां की बरसी के बाद रेवा ने जाने की तैयारी शुरू कर दी. रेवती के बहुत कहने के बाद, उस ने मां के कपड़ों में से 1-2 साडि़यां रख लीं और मां की 1-2 छोटीबड़ी तसवीरें. आखिर नियत तिथि पर रेवा चली गई. यद्यपि उस ने लाख मना किया, पर रेवती व उस का पति राकेश उसे एअरपोर्ट तक छोड़ने आए. उस का छोटा बच्चा रेवा मौसी की गोद में ही बैठा रहा और लगातार उस से पूछता रहा, ‘‘मौसी, आप फिर कब आओगी?’’ रेवा उस नन्हे से, फिर से आने का वादा कर के सिक्योरिटी चैक से अंदर चली गई. उसे लगा कि जितना वह इन बंधनों को भूलना चाहती है, एक नया मोहपाश उसे बांधने को तैयार खड़ा मिलता है.

वैब चौइस से उसे प्लेन में अच्छी सीट मिल गई थी और वह सामान रख कर सोने के लिए पसर गई. 1-2 घंटे की गहरी नींद के बाद रेवा की आंख खुल गई. पहले सीट के सामने वाली टीवी स्क्रीन पर मन बहलाने की कोशिश करती रही, फिर बैग से च्युंगम निकालने के लिए हाथ डाला तो साथ में मां की वह डायरी भी निकल आई. मन में आया कि देखूं, आखिर मां मुझ से क्या कहना चाहती थीं जो उन्हें इस डायरी को लिखना पड़ गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने उस पर लगी सील को खोल डाला और समय काटने के लिए पन्ने पलटने शुरू किए. एक बार पढ़ने का सिलसिला जब शुरू हुआ तो अंत तक रुका ही नहीं. पहले पेज पर लिखा, ‘‘सिर्फ अपनी प्रिय रेवा के लिए,’’ दूसरे पन्ने पर मोती के जैसे दाने बिखरे पड़े थे. लिखा था, ‘‘मेरी प्रिय छोटी सी लाडो बिटिया, मेरी जान, मेरी रेवू, जब तुम यह डायरी पढ़ रही होगी, मैं तुम्हारे पास नहीं हूंगी. इसीलिए मैं तुम्हें वह सबकुछ बताना चाहती हूं जिस की तुम जानने की हकदार हो.

‘‘मैं अपने मन पर कोई बोझ ले कर जाना नहीं चाहती और तुम मेरी बात समझने तो क्या, सुनने के लिए भी तैयार नहीं थी. सो, जातेजाते अपनी वसीयत के तौर पर यह डायरी दे कर जा रही हूं क्योंकि तुम हमारी पहली संतान हो तुम, जैसी नन्ही सी परी पा कर मैं और तुम्हारे पापा निहाल हो उठे थे.

‘‘धीरेधीरे मैं तुम में अपना बचपन तलाशने लगी. छोटी होने के नाते मैं जिस प्यार व चीजों से महरूम रही, वे खिलौने, वे गेम मैं ढूंढ़ढूंढ़ कर तेरे लिए लाती थी. जब तुम्हारे पापा कहते, ‘तुम भी बच्चे के साथ बच्चा बन जाती हो,’ सुन कर ऐसा लगता कि मेरा अपना बचपन फिर से जी उठा है. धीरेधीरे मैं तुम में अपना रूप देखने लगी और तुम्हारे साथ अपना बचपन जीने लगी. जो कुछ भी मैं बचपन में नहीं हासिल कर पाई थी, अब तलाश करने की कोशिश करने लगी. ‘‘समय के साथ तुम बड़ी होने लगी और मेरी फिर से अपना बचपन सुधारने की ख्वाहिश बढ़ने लगी. तुम पढ़ने में बहुत तेज थी. प्रकृति ने तुम्हें विलक्षण बुद्धि से नवाजा था. तुम हमेशा क्लास में प्रथम आती और मुझे लगता कि मैं प्रथम आई हूं. यहां तुम्हें यह बताना चाहती हूं कि मैं बचपन से ही पढ़ाई में काफी कमजोर थी, पर तुम्हें यह बताती रही कि मैं भी हमेशा तुम्हारी तरह कक्षा में प्रथम आती थी. इसीलिए मेरे मन में एक ग्रंथि बैठ गई थी कि मैं तुम्हारे द्वारा अपनी उस कमी को पूरा करूंगी.

‘‘समय के साथसाथ मेरी यह चाहत सनक बनती चली गई और मैं तुम पर पढ़ाई के लिए अधिक से अधिक जोर डालने लगी. जब मुझे लगा कि घर पर तुम्हारी पढ़ाई ठीक से नहीं हो पाएगी, तो मैं ने तुम्हारे पापा के लाख समझाने को दरकिनार कर छोटी उम्र में ही तुम्हें होस्टल में डाल दिया. इस तरह मैं ने तुम्हारा बचपन छीन लिया और तुम भी धीरेधीरे मशीन बनती चली गई. दूसरी तरफ रेवती पढ़ने में कमजोर थी और मैं उसे खुद ले कर पढ़ाने बैठने लगी. जरा सी डांट पर रो देने वाली रेवती, हमारे प्यारदुलार का ज्यादा से ज्यादा हकदार बनती चली गई और मुझे पता ही नहीं चला. और तो और, मुझे पता नहीं चला कि कब तुम्हारे हिस्से का प्यार भी रेवती के हिस्से में जाने लगा. ‘‘तुम्हारे लिए अपना प्यार जताने का हमारा तरीका थोड़ा अलग था. मैं सब के सामने तुम्हारी तारीफों के कसीदे पढ़ कर, उस पर गर्व करने को ही प्यार देना समझती रही. पर सच जानो रेवू, मैं तुम्हें उस से भी ज्यादा प्यार करती थी जितना कि रेवती को करती थी. पर क्या करूं, यह कभी बताने या दिखाने का मौका ही नहीं मिल सका या हो सकता है कि मेरा प्यार दिखाने या जताने का तरीका ही गलत था.

‘‘जैसेजैसे तुम बड़ी होती गई, तुम्हारे मन में धीरेधीरे विद्रोह के स्वर उभरने लगे. मैं तुम्हें आईएएस बनाना चाहती थी जिस से अपनी हनक अपने जानपहचान, नातेरिश्तेदारों व दोस्तों पर डाल सकूं. पर तुम ने इस के लिए साफ इनकार कर दिया और प्रतियोगिता के कुछ प्रश्न जानबूझ कर छोड़ दिए. तुम्हारी या कहो मेरी सफलता में कोई बाधा न आए, इसलिए मैं ने तुम्हें किसी लड़के से प्यारमुहब्बत की इजाजत भी नहीं दी थी. पर तुम ने उस में भी सेंध लगा दी और विद्रोह के स्वर तेज कर दिए और सरस से चुपचाप विवाह कर लिया.

‘‘तुम तो विलक्षण प्रतिभा की धनी थी, इसलिए एक मल्टीनैशनल कंपनी ने तुम्हें हाथोंहाथ ले लिया. पर तुम ने अपनी मां के एक बड़े सपने को चकनाचूर कर दिया. इस के बाद तो तेरी मां ने सपना ही देखना बंद कर दिया. समय के साथ, मैं ने तुम्हारे पति को भी स्वीकार कर लिया और सबकुछ भूल कर तुम्हारे कम मिले प्यार की भरपाई करने में जुट गई. पर अब तुम इस के लिए तैयार नहीं थी, तुम्हारे मन में पड़ी गांठ, जिसे मैं खोलने या कम से कम ढीला करने की कोशिश कर रही थी, उसे तूने पत्थर सा कठोर बना लिया था. हां, अपने पापा के साथ तुम्हारा व्यवहार सदैव मीठा, स्नेहपूर्ण व बचपन जैसा ही बना रहा. ‘‘तुम्हारी यह बेरुखी या अनजानेपन वाला व्यवहार मेरे लिए सजा बनता गया, जिसे लगता है मैं अपने मरने के बाद भी साथ ले कर जाऊंगी. पर रेवू, कभी तूने सोचा कि मैं भी तो एक मां हूं और हर मां की तरह मेरा दिल भी अपने बच्चों के प्यार के लिए तरसता होगा. तुम और रेवती दोनों मेरी भुजाओं की तरह हो और मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं ने अपने दाएं हाथ, अपनी रेवी पर ज्यादा भरोसा कर लिया. हर मां की तरह मेरे मन में भी कुछ अरमान थे, कुछ सपने थे जिन्हें मैं ने तुम्हारी आंखों से देखने की कोशिश की. अगर इस के लिए मैं गुनाहगार हूं, तो मैं अपना गुनाह स्वीकार करती हूं. पर अफसोस तूने तो बिना कुछ मेरी सफाई सुने, मेरे लिए मेरी सजा भी मुकर्रर कर दी और उस की मियाद भी मेरे मरने तक सीमित कर दी.

‘‘मैं ने यह डायरी इस आशय से तुम्हें लिखी है कि शायद आज तुम मेरी बात को समझ सको और अपनी मां को अब माफ कर सको. अंत में ढेर सारे आशीर्वाद व उस स्नेह के साथ जो मैं तुम्हें जीतेजी न दे सकी…तेरी मां.’’

डायरी का आखिरी पन्ना पलट कर, रेवा ने उसे बंद कर दिया. कभी न रोने वाली रेवा का चेहरा आंसुओं से तरबतर होता चला गया और इतने दिनों की वो जिद, वो गांठ भी साथ ही घुलने लगी. पर आज उस ने भी उन आंसुओं को न तो पोंछा, न ही रोका. उसे लगा सर्दी बढ़ गई है और उस ने कंबल को सिर तक ढक लिया. वह ऐसे सो गई जैसे कोई बच्चा अपनी मां की खोई हुई गोद में इतमीनान से सो जाता है. आज रेवा को भी लगा कि मां कहीं गई नहीं है और पूरी शिद्दत से आज भी उस के पास है. मां की गोद में सोई रेवा की आंखों से आंसू मोती बन कर बह रहे थे. तभी उसे लगा, मां ने उस के आंसू पोंछ कर कहा, ‘अब क्यों रोती है मेरी लाड़ो, अब तो तेरी मां हमेशा तेरे पास है.’ …और रेवा करवट बदल कर फिर गहरी नींद में चली गई.

टीनएजर से बात करने के 20 सवाल

कई बार होता है ना कि हम किसी के घर गए और वहां टीनएजर से बात करनी शुरू की ही थी के वे उठकर अपने कमरे में चले गए या लाख बुलाने पर भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते. अगर ऐसा होता है तो हमे बहुत बुरा लगता है और हम कहते है की शर्मा जी ने तो अपने बच्चों को मैनर्स ही नहीं सिखाये। या फिर लगता है शर्मा जी की तो पसंद ही नहीं है की कोई उनके बच्चों से बात करें.

लेकिन सच यह नहीं है कि उनके माँ बाप ने ये उन्हें यह पट्टी पढ़ाई है कि कोई गेस्ट आया है तो तुम बाहर मत आना बल्कि सच तो ये है कि माँ बाप खुद शर्मिंदा होते है कि हमारा बच्चा बाहर नहीं आ रहा क्यूंकि रिश्तेदारों के तानों का सामना तो उन्हें ही करना पढ़ रहा है कि बच्चे को इतनी भी मैनर्स नहीं सिखाई। ऐसे में उनकी परवरिश पर सवाल उठने लगने है जबकी सच तो यह है की इसमें गलती रिश्तेदारों की है, माँ बाप की नहीं क्यूंकि उनसे जो सवाल आप पूछ रहे हो। जो बातें आप उनसे कर रहे हो वह उन्हें पसंद नहीं आता है इसलिए वे आपके पास आने में हिचकिचाते है.

दरअसल ना ही मां बाप को मालूम है और न ही रिश्तेदारों को पता है की इन बच्चों के स्तर पर उतरा कैसे जाएं। इनसे किस तरह के बात की जाये. टीनएजर से ये न पूछे की तुम कौन से क्लास में हो. ये भी ना पूछों की पढ़ाई कैसी चल रही है. करियर कैसा है, क्या बनना चाहते हो, इस साल मार्क्स कितने आये. अपने बच्चें से तुलना करके उसे तंग ना करें. पूछो वो सवाल जिसमे उसको रूचि हो सकती है.

इसलिए जब अगली बार किसी के घर जाएं तो जरा एक बार टीनएजर से ये सवाल पूछ कर देखें। आप खुद महसूस करेंगे कि बच्चा इन टॉपिक्स में इंट्रेस्ट ले रहा है और आपके साथ टाइम स्पेंड करना उसे भी अच्छा लग रहा है.

सेविंग्स और फाइनेंस के बारें में बात करें?

उनसे पूछें की अपनी पॉकेट मनी को बचाकर वह क्या करना पसंद करते है, अगर उन्हें 1 महीनें घर खर्च चलने को दिया जाएं तो वो किस तरह से प्लानिंग करेंगे और इसमें आप उनकी हेल्प करें.

सोशल मीडिया और ऑनलाइन सेफ्टी?

टीनएजर के साथ साइबरबुलिंग, प्राइवेसी से रिलेटेड मेटर और जिम्मेदार डिजिटल नागरिक होने के महत्व सहित ऑनलाइन गतिविधियों से होने वाले खतरों पर खुलकर बात करें और बातों बातों में उन्हें न सिर्फ इनके फायदे बताएं बल्कि सोशल मीडिया से होने वाली समस्याओं पर भी बात करें.

शॉपिंग के बारें में बात करें?

उन्हें बताएं आपको कहाँ से शॉपिंग करना पसंद है, ऑनलाइन शॉपिंग के बारें में बच्चो सलाह ले, बच्चों से पूछे कि अगर आपको कुछ मनपसंद खरीदने के बारें में कहा जाएं तो क्या खरीदोगे।

मेंटल हेल्थ पर बात करना उन्हें कूल लगेगा?

टीनएज बच्चों के साथ मेंटल हेल्थ रिलेटेड बातचीत को सामान्य तौर करना चाहिए। स्ट्रेस, टेंशन और डिप्रेशन को समझने और रोकने के तरीकों पर बात-चीत करें और बातों बातों में उन्हें बताएं की यदि उन्हें ऐसी समस्याएं होती हैं तो वे आपसे हेल्प मांग सकते हैं।

जंक फ़ूड कौन सा, कहाँ अच्छा मिलता है?

यह तो हम सभी जानते है की टीनएजर को जनक फ़ूड अच्छा लगता है लेकिन परेशानी यह है कि हम हमेशा उन्हें यह खाने से रोकते है. अब रोकना नहीं है बल्कि इसके बारें में जानना है. वो बात अलग है बातों ही बातों में उन्हें ज्यादा खाने के नुक्सान बता दे पर खाने से मना करके उन्हें अपना दुश्मन ना बनाये. खाना पकाना अच्छा लगता है? कौन सा रैस्टौरेंट है, जहां आपको सबसे बेकार अनुभव मिला हो?

तुम्हारा फेवरिट बोर्ड गेम या कार्ड गेम कौन सा है?

गेम खेलना लगभग हर टीनएजर को पसंद होता है. इसलिए बच्चे के साथ बैठकर उसके मनपसंद गेम पूछें और खेले. इससे साथ में टाइम स्पेंड करना अच्छा लगेगा.

म्युचुअल फंड के बारें में बात करो?

म्युचुअल फंड में बहुत फायदा हो जाएं तो पैसों को कहाँ खरचोगे, क्या सारा खर्च दोगे या कुछ सेव भी करोगे, शेयर मार्किट कहा जा रहा है उसमे तुम कितना और क्यों इन्वेस्ट करना चाहते हो, बच्चे के दोस्तों का एक्सपीरियन्स इस बारें में कैसा है बात करें.

उसे कोम्प्लीमेंट दें?

टीनएजर को बताए कि तुम्हारी स्माइल बहुत अच्छी है, हमेशा ऐसे ही हँसते रहा करों, तुम्हारें बात करने का स्टाइल सबसे अलग है आदि जो भी अछाईया टीनएजर में नज़र आए उन्हें कहने में ना झिझकें.

बौलीवुड में क्या चल रहा है?

कौन सी मूवी हाल फ़िलहाल में उन्हें सबसे ज्यादा पसंद आई. किस मूवी का वेट वे अभी कर रहे है. कौन से अभिनेता और अभिनेत्री आजकल उन्हें अच्छे लग रहे है और क्यों। जनरली किस तरह की मूवी और म्यूजिक पसंद करते है. इस पर बात करें.

साइबरबुलिंग के बारें में टीनएजर क्या सोच रखते है?

साइबरबुलिंग से निपटने के टिप्स, रिपोर्ट और ब्लॉक कैसे करें। इन सब बातों के बारें में एक हैल्थी डिसकशन करें.

ट्रेवल एडवेंचर के बारे में बात करें?

उससे पूछे कि उसे कहाँ घूमना पसंद है, लास्ट ट्रवेल कहाँ किया, वहां क्या अच्छा लगा, कौन से देश में रहना पसंद करोगे अगर कभी मौका मिले तो. कौन सी जगह है जहाँ जाकर बिलकुल अच्छा नहीं लगा. कहा कहाँ जाने का मन है.

कोई फेमस पर्सनालिटी बनने का मौका मिले तो क्या बनना चाहोगे?

अगर कुछ दिन के लिए तुम्हे कोई सेलेब्रटी बनने का मौका मिले तो किसे चुनोगे और क्यों। इससे पता चलेगाटीनएजर का आइडियल कौन है, वह लाइफ में क्या बनना चाहता है. आप अपनी सोच भी इस बारें में उसे बताएं.

सेक्स को लेकर बात करें?

माना शुरू में इस सवाल पर वह अनकम्फर्टेबल हो सकता है लेकिन आपके बातचीत आगे बढ़ाने पर वो भी इंट्रेस्ट लेने लगेगा. फर्स्ट अट्रैक्शन को वह किस तरह देखते है. इस तरह बातचीत को आगे बढ़ाएं।

आपके साथ अब तक की सबसे मजेदार बात क्या हुई है?

बच्चे को अपने साथ हुए किसी किस्से के बारें में बताएं और उससे भी उसके बारें में पूछें। वह बात उसके स्कूल, कॉलेज की या घर की भी हो सकती है.

अगर आपको कोई जानवर अपना दोस्त बनाना हो, तो वह कौन सा जानवर होगा?

टीनएजर को एनिमल पसंद होते है इस सवाल पर वे जरूर खुश होंगे और खुलकर अपने मन की बात करेंगे. क्या वह घर पर भी डॉग आदि पालना चाहते है, फिर उन्हें इस बारें में बताएं की उनका कितना काम होता है आदि।

नया दोस्त बनाने का सबसे अच्छा तरीका क्या है?

बड़ों की अपेक्षा टीनएजर आसानी से दोस्त बना लेते है, उनसे आप इस बारें में सलाह ले कैसे हम नए दोस्त बनाये.. यक़ीनन वे आपको कोई अच्छा आईडिया ही देंगे.

पिछली बार आपने कब कोई समस्या हल की थी?

बच्चे को बताएं की वह काफी सुलझा हुआ लगता है इसलिए आप जानना चाहते है के समस्या आने पर उसको हैंडल करने का आपका तरीका क्या है.

आपका पसंदीदा मौसम कौन सा है?

यह बातचीत करने का एक अच्छा टॉपिक हो सकता है, आप गर्मी, सर्दी आदि मौसम के बारें में बात करें और मौसम की परेशानियों से कैसे बचते है उस पर भी बात करें और एक दूसरे को सलाह दे.

दिन का आपका पसंदीदा हिस्सा कौन सा है?

किसी को सुबह जल्दी उठकर अपने सभी काम करना पसंद है तो किसी को रात में लेट नाइट टीवी देखकर सोने में मज़ा आता है. टीनएजर से इस बारें में बात करें.

क्या तुम किसी स्पोर्ट्स को खेलते या फॉलो करते हो?

टीनएजर से पूछें क्रिकेट में रूचि है ,तो बताओं आजकल कौन से मैच हो रहें हैं. आजकल क्रिकेट में चल क्या रहा है, वर्ल्ड कप चल रहा है या फिर पूछे ये होता क्या है मुझे नहीं पता जरा समझाना. फिर देखियेटीनएजरको आपके पास बैठने में कैसा इंट्रेस्ट आता है.

मायके की सम्पति में बेटियों का हक होना चाहिए या नहीं

कई बार महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में भी नहीं पता होता. इसका नतीजा यह होता है की जरुरत पड़ने पर वह अपने लिए आवाज भी नहीं उठा पाती. समाज के ठेकेदारों के द्वारा भी कहा जाता है की बेटियों की शादी कर ससुराल भेज दिया और उन्हें क्या चाहिए.

साथ ही जो लड़कियाँ अपना हक़ मांगती है उन्हें भी समाज अच्छी नज़र से नहीं देखता. इसलिए भी लड़कियां चुप लगा जाती है. दूसरे लड़कियों को लगता है की भाई से सम्बन्ध कौन ख़राब करें. कहीं इस चक्कर में मेरा मायका ही न छूट जाएँ. लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलु यह भी है की रिश्ते निभाने की पूरी जिम्मेवारी सिर्फ बहनों की ही क्यूँ हो. यह तो भाई भी सोच सकते हैं कि कहीं बहन से मेरा रिश्ता न टूट जाये.

लेकिन कई बार पति की म्रत्यु होने पर ससुराल में भी कोई आसरा नहीं मिलता. ऐसे में हर लड़की को अपने अधिकार पता होने चाहिए फिर उसे सम्पति से हिस्सा लेना है या नहीं ये उसकी परिस्थितयों और इच्छा पर निर्भर करता है. लेकिन वजह कुछ भी हो लड़कियों को अपने क़ानूनी अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए और जरुरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल भी करना चाहियें.

क्या कहता है कानून

हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया है. यानि बाप की प्रॉपर्टी में जितना हक़ बेटों का है उतना ही हक़ बेटियों का भी है. संपत्ति पर दावे और अधिकारों के प्रावधानों के लिए इस कानून को 1956 में बनाया गया था.. बेटियों के अधिकारों को पुख्ता करते हुए इस उत्तराधिकार कानून में 2005 में हुए संशोधन ने पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर किसी भी तरह के संशय को समाप्त कर दिया. यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है. इसके मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटी का उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का.

2018 में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बेटी अपने मृत पिता की संपत्ति को विरासत में हासिल कर सकती है, भले ही पिता इस तारीख पर जीवित था या नहीं. यहां, महिलाओं को सहदायिक के रूप में भी स्वीकार किया गया था. वे पिता की संपत्ति में हिस्सा मांग सकती हैं.

2022 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि बेटियों को अपने माता-पिता की स्वयं अर्जित की गई संपत्ति और किसी भी अन्य संपत्ति का उत्तराधिकार प्राप्त करने का अधिकार है, जिसके वे पूर्ण रूप से मालिक हैं। यह कानून उन मामलों में भी लागू होगा जहां बेटी के माता-पिता की मृत्यु बिना वसीयत किए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के संहिताकरण से पहले ही हो गई हो।

पिता की संपत्ति में विवाहित बेटियों का हिस्सा

विवाहित बेटियां अपने पिता की संपत्ति में कितना हिस्सा ले सकती हैं? सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, पिता की पैतृक संपत्ति में बेटी को उसके भाइयों के बराबर अधिकार मिलता है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि पिता की मौत के बाद संपत्ति को भाई और बहन के बीच समान रूप से बाँटा जाएगा। चूंकि उत्तराधिकार कानून मृतक के अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों को भी संपत्ति के अधिकार प्रदान करते हैं, संपत्ति का बँटवारा लागू विरासत कानूनों के अनुसार प्रत्येक वारिस के हिस्से पर आधारित होगा। विवाहित बेटी का अपने पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा होने का सीधा सा मतलब यह है कि उसका भाई जितना भी दावा करेगा, उसे भी उतना ही हिस्सा मिलेगा।

पिता की सम्पति पर बेटी कब दावा नहीं कर सकती

यह समझने के लिए हमे जानना होगा कि हिन्दू लॉ में संपत्ति को दो तरह से विभाजित किया गया है. जैसे कि पैतृक संपत्ति और स्वअर्जित संपत्ति। अब यहाँ यह जानना भी जरुरी है की इन दोनों सम्पतियों में क्या अंतर है.

क्या है पैतृक सम्पति –

पैतृक सम्पति मतलब वो सम्पति जो आपके दादा की बनाई हुए प्रॉपर्टी हो. इस समापति पर बेटे या बेटी का पूरा अधिकार होता है. हालाँकि २००५ से पहले इन सम्पति पर सिर्फ बेटों का हक़ होता था लेकिन 2005 के संशोधन के बाद इन पर बेटियों का भी सामान हक़ हो गया है. पिता अपनी मर्जी से बेटियों को हिस्सा देने से मन नहीं कर सकते.

क्या है स्वअर्जित संपत्ति-

स्वअर्जित संपत्ति उसे कहते है जिसमे पिता ने मकान, दुकान, जमीन सभी कुछ अपने पैसे से खरीदा है. ऐसे में पिता को पूरा अधिकार होता है कि वह जिसे चाहे अपनी प्रॉपर्टी में हिस्सा दे और जिसे न चाहे न दें. अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है. यहाँ पर बेटी का पक्ष कमजोर हो जाता है.

बेटियां क्यूँ छोड़ देती है मायके की सम्पति में अपना हिस्सा

दहेज़ ही हमारा हिस्सा है

आशा का इस बारे में कहना है कि शादी के समय माता पिता के द्वारा हमे जो दहेज़ दिया जाता है वही हमारा हिस्सा है. हमे ज्वेलरी भी हमारे हिस्से की तभी मिल जाती है तो फिर पर डाका क्यू डालना. शादी में वैसे भी माँ बाप अपनी कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा हम पर खर्च कर देते है. और फिर इसके बाद भी हमारे हर फंक्शन में, त्यौहार पर, भात देने के समय मायके से हर फर्ज निभाया जाता है तो सम्पति में हिस्सा लेकर क्यूँ सबंध ख़राब करना.

अगर भाभी मायके से हिस्सा लेगी तो ननद भी यही मांग करेगी

कामना जो कि एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करती है उनका कहना है कि अगर आज हमने अपने पिता कि सम्पति में हिस्से कि मांग की तो कल हमारी ननद भी यही मांग करेगी और यह बात मेरे ससुरालवालों को बिलकुल पसंद नहीं है इसलिए मेरे पति नहीं चाहते की हम ऐसे किसी भी चक्कर में पड़े.

हिस्से के साथ जिम्मेवारी भी लेने होगी

मयंक का इस बारे में कहना है कि मुझे मेरी बहन को सम्पति में हिस्सा देने में कोई परेशानी नहीं है लेकिन फिर माता पिता की जिम्मेवारी भी उसे बराबर की लेने होगी. वह यह कहकर अपना पिंड नहीं छुड़ा सकती की मुझे मेरे सास ससुर को भी देखना होता है. मेरा सीधा सा फंडा है हक़ चाहिए तो जिम्मेवारी भी लेनी होगी.

लड़किया पड़ी लेखी समझदार नहीं है अपने कानूनन हक़ पता ही नहीं

कई लड़कियों को इस बारे में पता ही नहीं होता की उनके कानूनन अधिकार क्या है और मायका हो या ससुराल इस बात का जिक्र अक्सर परिवारों में होता भी नहीं है. इसलिए लड़कियां अनजाने में ही अपने हक़ से वंचित रह जाती हैं.

अगर बाप की इच्छा नहीं है बेटी को सम्पति देनी की

कई बार बेटियां तो लेना चाहती हाँ लेकिन बाप नहीं देना चाहते और अगर वह स्वअर्जित संपत्ति है तो बेटी उसे चाहते हुए भी नहीं ले पाएगी. ऐसा तब भी होता है जब कारोबार चलाते हुए बेटे को 10 -15 साल का समय हो गया हो तो बाप बेटे का ही साथ देता है. ऐसे में बेटी को सहन करना ही पड़ता है.

लड़कियों के ससुराल वाले उन्हें कमजोर रखना चाहते हैं

ससुराल वाले चाहते हैं कि लड़की के मायके से कुछ आता तो रहे लेकिन वे लड़कियों से सम्पति में हिस्से की मांग भी काम ही करते हैं. वह नहीं चाहते की बीवियां इस बारे में ज्यादा कुछ बोले क्यूंकि कही न कहीं उन्हें पता है की बीवी जो आग अपने मायके में लगाएगी उससे अपना घर भी जलना तय है. भाभी को देख हमारे बेटी और बहनें भी अपना हिस्सा मांगने न लग जाएँ।

अगर संपत्ति नहीं मिले तो क्या करें?

आपको बता दें कि अगर पिता की सम्पति बेटी को नहीं मिलती है तो कोर्ट में इसके खिलाफ मामला दायर कर सकती है। इसके बाद केस की सुनवाई होने पर अगर दावा सही निकलेगा तो बेटी को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है। इसके अलावा अगर कोई लड़की अपनी मर्जी से हिस्सा छोड़ती है तो भी उसे अदालत में रजिस्ट्राड के पास जाकर साइन करना पड़ता है वरना लड़की अपना हिस्सा छोड़ भी नहीं सकती.Community-verified icon

नक्सलवादियों जैसे हमले कर रहे हैं उत्तर प्रदेश में भेड़िये

उत्तर प्रदेश के बहराइच और लखीमपुर में भेड़ियों का आतंक इस कदर है कि अब सरकार उन को गोली मारने के आदेश दे चुकी है. कभी इंसान और भेड़िया एकदूसरे के दुश्मन नहीं होते थे. इस की एक कहानी सभी ने सुनी होगी जिस को ‘मोगली’ के नाम से जाना जाता है. पहले मोगली की कहानी को समझते हैं. ‘जंगल बुक’ का मोगली भारत के दीना सनीचर से प्रेरित था. इस का एक गीत ‘जंगलजंगल बात चली है पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है…’ बेहद लोकप्रिय था. मोगली की कहानी और कार्टून के बाद फिल्म भी बनी थी.

 

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यह कहानी इंसान के बच्चे की थी. कैसे जंगल के खूंखार जानवरों के बीच रहता है. यह कहानी सीधे तौर पर भारत से जुड़ी थी. असली मोगली यानी दीना सनीचर भारत में रहता था. वह एक ऐसा बच्चा था, जो अपने मातापिता से बिछड़ने के बाद भेड़िये के बच्चों के बीच बड़ा होता है. उस की आदतें भी जानवरों की तरह हो गई थीं. यह कार्टून रुडयार्ड किपलिंग की किताब ‘द जंगल बुक’ पर आधारित है.

भेड़ियों के बीच रहा यह बच्चा उत्तर प्रदेश के ही बुलंदशहर के जंगलों में 1889 में मिला था. वह 6 साल का था, नाम रखा गया दीना सनीचर. शिकारियों के समूह को वह एक गुफा में मिला था. सनीचर भेड़ियों के बीच बड़ा हुआ था. वह भेड़िए की तरह बैठता और बर्ताव भी जानवरों की तरह करता था. वह इंसानों के जैसा व्यवहार नहीं करता था.

उस ने बचपन में जंगली जानवरों जैसे देखा था, वैसा ही करने लगा. उस की शारीरिक और मानसिक क्षमता भी जानवरों की तरह थी. उस से ही कार्टूनिस्ट रुडयार्ड किपलिंग को मोगली का कैरेक्टर बनाने में मदद मिली थी. इस के बाद डिज्नी ने किताब को कार्टून फिल्म में तब्दील किया, जिसे पूरी दुनिया में पसंद किया गया. सनीचर को आगरा के अनाथालय में भेजा गया था लेकिन वह जीवनभर शारीरिक रूप से मजबूत नहीं हो पाया. वह कभी बोल नहीं पाया.

मोगली की कहानी बताती है कि कभी भेड़िया इंसान का दुश्मन नहीं होता था. आखिर भेड़िया और इंसान इतने दुष्मन कैसे हो गए ? इस की सब से बड़ी वजह यह है कि इंसान घने जंगलों को खत्म करता जा रहा है. ऐसे में केवल भेड़िया जैसा जानवर ही नहीं घने जंगलों में रहने वाले इंसान भी विरोध करते हैं. भेड़िये भी उसी तरह से हमला कर रहे हैं जैसे छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के इलाकों में रहने वाले लोग अपने जंगलों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इन को नक्सलवादी कह कर बंदूक के बल पर उन की आवाज को दबाने का काम किया जा रहा है.

भेड़िये भी नक्सलवादियों की तरह अपने जंगलों को बचाने के लिए लड़ रहे हैं. इंसान भेड़ियों के रहने वाले घने जंगलों को खत्म करते जा रहे हैं. जिस के घर को खत्म करोगे या उजाड़ोगे वह बचाव में हमले तो करेगा ही. जैसे बुलडोजर जस्टिस में घर गिराए गए तो चुनाव में जनता का समर्थन नहीं मिला. इस लेख के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि भेड़िया किस तरह से नक्सलवादियों की तरह अपने बचाव में उतर आया है.

नक्सलियों जैसे हमले करते हैं भेड़िये

उत्तर प्रदेश के बहराइच की महसी तहसील के 35 गांवों में बरसात के मौसम भेड़ियों के हमले बढ़े हैं और जुलाई से अगस्त के अंत तक इन हमलों से 7 बच्चों सहित कुल 8 लोगों की मौत हो चुकी है. महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों समेत करीब 36 लोग घायल भी हुए हैं. गांवों में भेड़ियों के आंतक से लोग सो नहीं पा रहे हैं. केवल बहराइच ही नहीं इस से लगे लखीमपुर में भी इन के हमले होते हैं. बहराइच में कर्तर्निया घाट वाइल्ड लाइफ और लखीमपुर के दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों में भेड़ियों का रहना होता है.

जनवरी व फरवरी माह में बहराइच में भेड़ियों के दो बच्चे एक ट्रैक्टर से कुचल कर मर गए थे. तब से उग्र हुए भेड़ियों ने हमले शुरू किए. उस हमलावर भेड़ियों को पकड़ कर 40 से 50 किलोमीटर दूर बहराइच के ही चकिया जंगल में छोड़ दिया गया. यह भेड़िये चकिया से वापस घाघरा नदी के किनारे अपनी मांद के पास लौट आए. बदला लेने के लिए हमलों को अंजाम दे रहे हैं. वन विभाग ने जो 4 भेड़िये पकड़े सभी आदमखोर हमलावर थे यह साफतौर पर कहा नहीं जा सकता है. अब तक 8 से अधिक लोग भेड़िये का शिकार हो चुके हैं और 36 से अधिक लोगों पर वह हमला कर चुका है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बहराइच समेत कई जिलों के डीएम, पुलिस कप्तानों और वन अधिकारियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए भेड़ियों और तेंदुए के हमलों से पैदा हुए हालात की समीक्षा की. जिलों के डीएम और एसपी सहित वन विभाग को इस मसले में सर्तक रहने के लिए कहा है. भेड़िये बच्चों को अपने मुंह दबा कर जंगल में ले जाता है.

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती कहती है ‘यूपी के कुछ जिलों में जंगली जानवर बच्चों, बुजुर्गो और महिलाओं पर हमले कर रहे हैं. उसे रोकने के लिए सरकार जरूरी कदम उठाए. मजदूर और गरीब लोग डर की वजह से अपने पशुओं के चारे का प्रबंध और मजदूरी करने नहीं जा पा रहे हैं. उस की उचित व्यवस्था की जाए. सरकार जंगली जानवरों ने निबटने की रणनीति बनाएं.’

बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में भेड़ियों को पकड़ने के लिए थर्मल ड्रोन और थर्मो-सेंसर कैमरे लगाए गए हैं. देवीपाटन के मंडलायुक्त शशिभूषण लाल सुशील ने कहा कि अगर आदमखोर भेड़िये पकड़ में नहीं आते हैं और उन के हमले जारी रहते हैं, तो अंतिम विकल्प के तौर पर उन्हें गोली मारने के आदेश दिए गए हैं. भेड़ियों और इंसानों के बीच यह लड़ाई नई नहीं है. उत्तर प्रदेश में पहले भी भेड़ियों का आतंक रहा है.

जानकार इन से बचाव के तरीके बताते कहते हैं भेड़िये का सामना करते हुए धीरेधीरे पीछे हटें. इस के बाद सावधान रहते हुए आक्रामक तरह से उस का विरोध करे. लाठी, पत्थर, डंडे, मछली पकड़ने की छड़ें या जो कुछ भी आप पा सकते हैं उस का प्रयोग करें. एयर हौर्न या अन्य ध्वनि उत्पन्न करने वाले यंत्रों का प्रयोग करें. सब से बेहतर यही है कि इंसान भेड़ियों के रहने वाले स्थान पर अतिक्रमण न करे नहीं तो वह अपना बुलडोजर चला देंगे, यानी इंसानों पर हमला कर के उन को मार देंगे.

27 साल पहले भी था भेड़िये का प्रकोप

उत्तर प्रदेश में भेड़ियों के हमले की कहानी नई नहीं है. 1996 में पूर्वी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों प्रतापगढ़, सुल्तानपुर और जौनपुर में भेड़ियों ने 30 बच्चों को मारा था. भेड़िया प्रभावित यह पूरा इलाका 1392 वर्ग किलोमीटर का था. यह पूरा सई नदी का कछार था. पूरा इलाका डरा हुआ था. हर तीसरे दिन भेड़िया हमला करता था. हर पांचवें दिन एक बच्चे की मौत हो रही थी. हत्यारा भेड़िया इतना बेफिक्र हो गया था कि वो गांव के बीच से बच्चों को उठा ले जा रहा था.

जांच में यह पता चला था कि यह हमला एक भेड़िया कर रहा था. पूरा समूह इस में शामिल नहीं था. उस समय तीनों जिले देश के सब से गरीब जिलों में आते थे. इन बच्चों को उन की मां पालती थीं. पिता या तो मारे जा चुके थे या तलाक हो चुका था या फिर काम के लिए घर से बाहर होते थे. मां के अकेले होने के कारण उस की बच्चों पर नजर कम रहती थी. गांव के कुछ लोगों ने भेड़िये की मांद में सो रहे उन के 3 बच्चों को मार दिया था. इस के बाद भेड़ियों ने बदला लेने के लिए इंसानों पर हमला कर 50 से अधिक लोगों को अपना शिकार बना लिया था.

इसलिए भेड़िये के लिए उन को शिकार करना आसान होता था. घर कच्चे थे. तमाम घरों में दरवाजे भी नहीं थे. अंधेरा होने के कारण भेड़िए का शिकार करना सरल हो जाता था. लोगों में अंधविश्वास ज्यादा था. उन को लगता था कि कोई इंसान भेड़िये का रूप रख कर यह काम कर रहा है. इस डर से भेड़िया प्रभावित इन गावों में कोई इंसान जाने की हिम्मत नहीं करता था.

शिकारी भेड़िया एक जगह को छोड़ कर दूसरी जगह चला जाता था. फिर अगले कुछ दिनों या महीनों तक वह दूसरी जगह पर 100 से 400 वर्ग किलोमीटर के इलाके में शिकार करता था. हर शिकार के बीच कम से कम 13 से 28 किलोमीटर की दूरी होती थी. यह काम भेड़िये का झुंड नहीं करता था. इस को केवल एक शिकारी भेड़िया ही कर रहा था. वन विभाग के लोगों ने आदमखोर हो चुके भेड़िये को गोली मार दी तब गांव के लोग भेड़ियों के आंतक से बच सके.

दुनिया भर में रही यह दुश्मनी

उत्तर अमेरिका में 150 साल पहले तक भारी तादाद में भेड़िये पाए जाते थे. जब इंसान यहां बसने पहुंचे तो उन्हें महसूस हुआ कि भेड़िये इंसानों के लिए खतरा हैं. इंसानों ने भेड़ियों के खिलाफ अभियान शुरू किया. इस दौरान ये भी सामने आया कि भेड़ियों के अंधाधुंध शिकार से उस इलाके का प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हुआ. इस से जानवरों की दूसरी प्रजातियों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. भेड़ियों की संख्या खत्म होने के साथ बारहसिंहा जैसे जानवरों की संख्या में इजाफा हुआ जबकि भेड़ियों के रहते यह उन का शिकार हो जाते थे.

साल 1878 में पूरी दुनिया में भेड़ियों के हमलों से सब से ज्यादा नुकसान हुआ था, जब एक साल में 624 लोग भेड़िये का शिकार हुए थे. आज अमेरिका में भेड़िये बचाने का अभियान शुरू किया जा रहा है. भेड़िया एक कुत्ते जैसा दिखने वाला जंगली जानवर है. किसी जमाने में भेड़िये पूरे यूरेशिया, उत्तर अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में पाए जाते थे. जैसेजैसे इंसानों की आबादी बढ़ने लगी भेड़ियों के रहने का क्षेत्र कम होता गया.

कुत्तों की नस्ल भी भेड़ियों से ही निकली मानी जाती है. हजारों साल पहले इंसान भेड़ियों को पालतू बना कर अपने साथ रखता था. यहीं से कुत्तों को साथ रखने की शुरूआत हुई. उस दौर में इंसान शिकार मार कर अपना भोजन करता था. ऐसे में पालतू भेड़िए और कुत्ते शिकार करने में इंसान की मदद करते थे.

पूरी दुनिया में अब भी 38 नस्ल के भेड़िये पाए जाते हैं. भेड़िया सब से बेहतरीन शिकारी माना जाता है. इंसान और शेर के अलावा यह किसी के काबू में नहीं आते हैं. भेड़िया मांसाहारी भोजन करता है. स्वभाव से शिकारी होने के कारण अब इस को पाला नहीं जा सकता है. इन की खासियत यह होती है कि यह कभी अकेले शिकार नहीं करता है. यह झुंड बना कर हिरण, गाय जैसे जानवरों का शिकार करते हैं. इन की चाल 55 से 70 किमी प्रति घंटा होती है. यह करीब 5 मीटर लंबी छलांग लगा सकते हैं. यह अपने शिकार को कम से कम 20 मिनट तक तेजी से पीछा कर सकता है. भेड़िये का पैर बड़ा और लचीला होता है.

भेड़िये एक नर और एक मादा के परिवारों में रहते हैं जिस में उन के बच्चे भी पलते हैं. यह भी देखा गया है के कभीकभी भेड़ियों के किसी परिवार किसी अन्य भेड़ियों के अनाथ बच्चों को भी शरण दे कर उन्हें पालने लगते हैं. भेड़िये घास में, पेड़ों के नीचे या झाड़ियों में आराम करते हैं और सोते हैं. जैसे ही मादा बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार होती है झुंड एक मांद में चला जाता है. जिसे अकसर पानी के पास खोदा जाता है. कभीकभी कई पीढ़ियों तक रहता है.

यह अपने छोटे बच्चों को बहुत प्यार करते हैं. इन के बच्चों को उठा ले जाए या उस का शिकार कर दे तो यह पूरे इलाके को ही तबाह कर देते हैं. शिकार पर जाते समय यह अपने कम उम्र वाले भेड़िये को नहीं ले जाते हैं. भेड़ियों के थूथन बड़े होते हैं. इन के कान छोटे और अधिक गोल होते हैं, और पूंछ छोटी और झाड़ीदार होती है. भेड़ियों का रंग अलगअलग होता है. जिस में काले, सफेद और भूरे रंग शामिल हैं. इन की उम्र 13 साल तक होती है. 10 साल से अधिक उम्र तक प्रजनन कर सकते हैं. भेड़िए जंगल में पाए जाते हैं. यह इंसानों पर तभी हमला करते हैं जब वे इन के इलाके में प्रवेश करते हैं. ऐसे में दोष केवल भेड़ियो का नहीं है. इंसानों को भी अपना व्यवहार बदलना होगा.

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