कई बार महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में भी नहीं पता होता. इसका नतीजा यह होता है की जरुरत पड़ने पर वह अपने लिए आवाज भी नहीं उठा पाती. समाज के ठेकेदारों के द्वारा भी कहा जाता है की बेटियों की शादी कर ससुराल भेज दिया और उन्हें क्या चाहिए.

साथ ही जो लड़कियाँ अपना हक़ मांगती है उन्हें भी समाज अच्छी नज़र से नहीं देखता. इसलिए भी लड़कियां चुप लगा जाती है. दूसरे लड़कियों को लगता है की भाई से सम्बन्ध कौन ख़राब करें. कहीं इस चक्कर में मेरा मायका ही न छूट जाएँ. लेकिन इस तस्वीर का दूसरा पहलु यह भी है की रिश्ते निभाने की पूरी जिम्मेवारी सिर्फ बहनों की ही क्यूँ हो. यह तो भाई भी सोच सकते हैं कि कहीं बहन से मेरा रिश्ता न टूट जाये.

लेकिन कई बार पति की म्रत्यु होने पर ससुराल में भी कोई आसरा नहीं मिलता. ऐसे में हर लड़की को अपने अधिकार पता होने चाहिए फिर उसे सम्पति से हिस्सा लेना है या नहीं ये उसकी परिस्थितयों और इच्छा पर निर्भर करता है. लेकिन वजह कुछ भी हो लड़कियों को अपने क़ानूनी अधिकारों के बारे में पता होना चाहिए और जरुरत पड़ने पर उनका इस्तेमाल भी करना चाहियें.

क्या कहता है कानून

हिंदू सक्सेशन ऐक्ट, 1956 में साल 2005 में संशोधन कर बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया है. यानि बाप की प्रॉपर्टी में जितना हक़ बेटों का है उतना ही हक़ बेटियों का भी है. संपत्ति पर दावे और अधिकारों के प्रावधानों के लिए इस कानून को 1956 में बनाया गया था.. बेटियों के अधिकारों को पुख्ता करते हुए इस उत्तराधिकार कानून में 2005 में हुए संशोधन ने पिता की संपत्ति पर बेटी के अधिकारों को लेकर किसी भी तरह के संशय को समाप्त कर दिया. यानी, विवाह के बाद भी बेटी का पिता की संपत्ति पर अधिकार रहता है. इसके मुताबिक पिता की संपत्ति पर बेटी का उतना ही अधिकार है जितना कि बेटे का.

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