तिथियों के तुक्के शिल्पशास्त्र या ज्योतिषशास्त्र?
शिल्पशास्त्र में किसी इमारत की उम्र जानने की ऐसी मनगढ़ंत और गलत व्याख्या की गई है कि पढ़ कर कोई भी अपना सिर पीट ले.
यह है हमारा शिल्पशास्त्र. क्या इस में अभी तक शिल्प की कोई बात आई है? शिल्पशास्त्र आगे कहता है कि जब चंद्रमा धनु और मीन राशि के मध्य स्थित हो, तब न घास की कटाई करें, न लकड़ी काटें और न ही लकडि़यां इकट्ठी करें तथा न ही दक्षिण दिशा की ओर जाएं-
धनुर्मीनद्वयोर्मध्ये यावत्तिष्ठति चंद्रमा:,
न छिन्द्यात्तृणकाष्ठादीन्न गच्छेद दक्षिणां दिशम्.
(शिल्पशास्त्रम् 1/34)
चंद्रमा के इन राशियों के मध्य रहने का घास या लकड़ी की कटाई से क्या संबंध है? क्या ये दोनों चीजें चंद्रमा की हैं या उस के बाप की? कहा है, दक्षिण दिशा में न जाएं- तो क्या उस समय गाडि़यां बंद हो जाती हैं? हवाई जहाज उड़ना भूल जाते हैं? क्या दक्षिण भारत को जाने के सब मार्ग रुक जाते हैं? क्या दक्षिण भारत को जाने के सब मार्ग एक हो जाते हैं? जो जाते हैं, चंद्रमा उन का क्या करता है? वह क्या उन का एक रोम भी उखाड़ सकता है?
यहां शिल्पशास्त्र के माध्यम से जंतरी वाले ज्योतिषी को फिर से वैधता प्रदान करने का प्रयास किया गया है, क्योंकि चंद्रमा कब किस राशि में है, यह जानने के लिए उसी से पूछना पड़ेगा और वह अपने यजमान (शिकार) का यथाशक्ति शोषण- आर्थिक व बौद्धिक – करेगा ही.
युद्ध और ज्योतिषी
शिल्प की एक भी बात न करने वाला शिल्पशास्त्र ज्योतिष के नाम पर अंधविश्वासों को हवा देता हुआ आगे कहता है कि जब जन्मराशि में चंद्रमा हो तब न यात्रा पर जाएं, न युद्ध करें, न घर बनाना शुरू करें, न दवाई खाएं और न पशु संग्रह करें :
जन्मचंद्र : श्रियं कुर्याद् वर्जयेत् पंचकर्मसु,
यात्रा युद्धे गृहारंभे भैषज्ये पशुसंग्रहे.
(शिल्पशास्त्रम् 1/36)
इन 5 कामों में से 3 को आदमी रोक ले तो शायद उतना नुकसान न हो जितना युद्ध और दवाई खाने की उपेक्षा करने से हो सकता है. पानीपत की तीसरी लड़ाई के दौरान मरहट्टों का राजज्योतिषी उन की सेनाओं को इसी तरह के ज्योतिष के सहारे रोके हुए था, जब शत्रु ने हमला कर के मरहट्टों की सदा के लिए कमर तोड़ दी थी और 90,000 वीर मरहट्टे खेत रहे थे.
इसी तरह कई लोगों को दवाई न खाने पर मरते देखा गया है. क्या यह शिल्पशास्त्र है या इल्लतशास्त्र?
घर की उम्र
पहले अध्याय में शिल्प का ज्ञान बांटने के बाद शिल्पशास्त्र दूसरे अध्याय में ऐसे नुसखे बताता है जिन से बने हुए घर की उम्र जानी जा सके, अर्थात यह जाना जा सके कि यह घर कितने समय बरकरार रहेगा. इस के लिए एक मनगढ़ंत फार्मूला दिया गया है, घर के क्षेत्र को
8 से गुना करें. जो संख्या आए उसे 60 से भाग दें तो पता चल जाएगा कि घर कितने समय खड़ा रहेगा-
वसुभिर्गुणितं पिण्डं षष्टिभागेन हारयेत्,
शेषमंशं विजानीयादायुर्गेहस्य कोविद:
(शिल्पशास्त्र 2/7)
आगे कहा है कि 60 से भाग देने पर जो संख्या आए उसे 10 से गुणा करें. इस तरह जो राशि आए, उतने वर्ष वह घर खड़ा रहेगा. 60 से भाग देने पर जो शेष बचे, उस से पता चलेगा कि घर किस चीज से नष्ट होगा : यदि 1 बचे तो पृथ्वीतत्त्व के कारण नष्ट होगा, 2 बचे तो जल से, 3 बचे तो आग से, 4 बचे तो वायु से और 5 शेष बचे तो आकाश तत्त्व से नष्ट होगा.
पृथिनीजलतेजांसि वायुराकाश एवच,
पंचभूतायते तत्र भग्नं दाहादि जायते.
(शिल्पशास्त्रम, 2/8)
यह फार्मूला हमें बताता है कि यदि किसी घर का क्षेत्रफल 300 वर्गफुट हो तो वह घर 400 साल बना रहेगा :
20×15=300×8=240060=40×10=400. पर क्या किसी इमारत की उम्र जानने का यह कोई वैज्ञानिक तरीका है? क्या उस की उम्र निर्धारित करने के लिए उस की नींव की मजबूती, उसे बनाने में लगाई गईर् सामग्री की गुणवत्ता, उसे दरपेश आने वाले खतरों की संभावना आदि को ध्यान में नहीं रखा जाना चाहिए?
ऊपर जिस मकान की उम्र 400 वर्ष बताई गईर् है, क्या वह 400 वर्ष खड़ा रह सकता है, यदि वह केवल मिट्टीगारे का बना हो? उस की नींव भी कम गहरी हो और उस इलाके में बाढ़ भी अकसर आती हो? इस फार्मूले के अनुसार आज कितनी पुरानी इमारतें जीवित खड़ी हैं?
कहा है कि मकान के मरने (=गिरने) के 5 कारण हैं- 60 से भाग दिए जाने पर यदि 1 बचे तो पृथ्वी तत्त्व के कारण मकान गिरता है, 2 बचे तो जल से, 3 बचे तो आग से, 4 बचे तो वायु से और 5 बचे तो आकाश तत्त्व से वह नष्ट होता है. यदि यह सही है तो ऊपर जिस मकान का उदाहरण हम ने दिया है, वह कभी गिर ही नहीं सकता – देखिए :
20×15=300×8=240060=40. यहां 60 से भाग देने पर ऐसा कुछ भी नहीं बचता जो घर को नष्ट कर सके. इस का अर्थ है जो 5 तत्त्व घर को गिराने वाले बताए गए हैं, उन में से एक भी इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकता. सो, यह सदा बना रहेगा. पहले फार्मूले के अनुसार उस घर की उम्र 400 वर्ष बताना भी गलत सिद्ध होता है. जो कभी नष्ट ही नहीं हो सकता, उस की उम्र 400 वर्ष कैसे मानी जा सकती है.
एक अन्य उदाहरण लें. घर 100 फुट लंबा, 95 फुट चौड़ा. क्षेत्रफल 9500×8=76000 60=1266, शेष 40. इन 40 को 5 से विभाजित करें तो शेष शून्य बनता है. इस का मतलब यह है कि यह मकान भी सदा के लिए सुरक्षित है, क्योंकि कोई भी तत्त्व इसे हानि पहुंचाने को बचा ही नहीं. ऐसे अन्य बहुत से मकान हो सकते हैं परंतु असल में ऐसा सदा के लिए बना रहने वाला, एक भी मकान हिंदुस्तान में नहीं है.
यह फार्मूला भी पूरी तरह गलत तथा मनगढ़ंत है, क्योंकि एक तो इस मनमाने ढंग से किसी इमारत की उम्र नहीं जानी जा सकती. दूसरे, दुनिया में कोई भी इमारत सदा के लिए खड़ी नहीं रह सकती. तीसरे, शिल्पशास्त्रों के इस देश भारत में कोई भी इमारत सदा के लिए खड़ी तो क्या, हजारों वर्ष पुरानी भी कहीं नहीं खड़ी है.
सो, यह शिल्पशास्त्रीय फार्मूला एक और वास्तुशास्त्रीय गप से ज्यादा महत्त्व नहीं रखता. अगले अंक में जारी…
फैक्ट्री निर्माण में वास्तुशास्त्रियों के ऊलजलूल कुतर्क
क्या फैक्ट्री में वास्तुदिशा स्थानों के आधार पर लाभ सुनिश्चित किया जा सकता है? क्या वास्तु न मानने से भारीभरकम नुकसान होने का खतरा है? फैक्ट्री की सफलताअसफलता क्या वास्तु से तय होती है?
बात फैक्ट्री या औफिस की हो रही हो तो सब से पहले हमें यह सम?ाना चाहिए कि किसी भी कमर्शियल जगह का मुख्य उद्देश्य क्या होता है? फैक्ट्री का काम है प्रोडक्शन करना, क्वालिटी बनाए रखना और बाजार में अपनी जगह बनाना. लौजिकली इस के लिए जरूरी है सही लीडरशिप व मशीनरी, स्किल्ड वर्कर्स और एक और्गनाइज्ड प्रोडक्शन प्रौसेस.
मानो ओनर अगर वैस्ट की जगह साउथ एरिया में अपना केबिन बना ले तो क्या मार्केट का सारा गणित भूलभाल जाएगा या मशीनें अगर ईस्ट में न हो कर किसी और दिशा में हों तो क्या चलना ही बंद कर देंगी? सवाल यह कि अगर मुख्यद्वार पश्चिम या दक्षिण दिशा में हुआ तो क्या वास्तव में फैक्ट्री में समस्याएं आने लगेंगी? या फिर समस्याओं का असली कारण प्रबंधन की खामियां और बाजार की अनिश्चितताएं होंगी?
वास्तुशास्त्र में दिशा, स्थान और पंचतत्त्वों की बात की जाती है, लेकिन इस में सरकार की नीतियों, बाजार के उतारचढ़ाव और वैश्विक आर्थिक स्थिति का कोई उल्लेख नहीं मिलता. वास्तु यह भी नहीं बताता कि प्रधानमंत्री कब देश में कैसी जीएसटी लागू कर दें या कब नोटबंदी कर दें कि अचानक बाजार ही क्रैश करने लगे.
अगर वास्तुशास्त्र इतना ही कारगर होता तो फिर हर उद्योगपति अपने उद्योग को वास्तु के अनुसार बना कर ही क्यों न चलाता? उसे मेहनत करने, कुशल कर्मचारियों की भरती करने और सही रणनीति बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती? उसे तो बस, वास्तु अनुसार एक जगह देखनी थी और उसी अनुसार भवन निर्माण करा लेना था. न बाजार के उतारचढ़ाव की ?ां?ाट न सरकार की, न मजदूरों के हड़तालों की झंझट और न निवेश की.
बात सीधी है, फैक्ट्री का प्रबंधन कमजोर होगा तो चाहे आप उसे कितनी भी सही दिशा में बनाएं, लाभ की संभावना कम ही रहेगी. उदाहरण के लिए, अगर मशीनरी पुरानी है और उत्पादन धीमा है तो केवल दिशा बदलने से इस का समाधान नहीं होगा या मशीन आधुनिक हैं और वर्कर्स पुराने ढर्रे वाले हैं तो भी उत्पादन धीमा होगा. इसे ठीक करने के लिए आप को नई तकनीक और कुशल श्रमिकों की ही जरूरत होगी.
सोचिए, अगर वास्तुशास्त्र के अनुसार ही फैक्ट्री के प्रौफिट का निर्धारण होता तो फिर कुशल मैनेजर और तकनीकी विशेषज्ञों की जरूरत क्यों पड़ती? इन की जगह किसी पंडे, ज्योतिष या वास्तुशास्त्री को ही बैठा लेते.
अंत में सोचने वाली बात यह है कि दुनिया की सब से बड़ी जनसंख्या वाला देश भारत आज आद्योगिक अर्थव्यवस्था के मामले में उन कई देशों से पीछे है जिन की जनसंख्या हम से 4-5 गुना कम है, ये देश न तो वास्तु अनुसार अपनी फैक्ट्रियां बना रहे हैं, न ही चला रहे हैं.