दिनभर माया की महिमा का गुणगान करती, पैसे के पीछे भागती हुजूम में कहीं वो भी शामिल न हो जाए, डर लगता था अमर को. किस ने कितने मकान बनवाए हैं, किस के पास कितनी गाडियां हैं, कितना बैंक बैलेंस है, अपने आसपास की भीड़ का सदा इसी हिसाबकिताब को तोड़तेजोड़ते देखता है अमर. मगर इस सब से अमर को बहुत ग्लानि होती है. उस का मन कुछ और ही सोचता है. सोचता है कि, क्यों कुछ लोग इतने अमीर है और कुछ इतने गरीब. ऐसा क्यों होता है कि एक गरीब जितना धन अगर पूरी उम्र में भी अर्जित नहीं कर पाता, वहीं उस से अधिक, एक अमीर मिनटों में खर्च कर देता है. क्यों किसी घर के बच्चे भूखे सोते हैं.
अमर एक अच्छे खातेपीते संस्कारी परिवार का लाड़ला बेटा है. विचारों में वह अपने उम्र के बच्चों से काफी अलग रहा है, सदा दूसरों की, खासतौर से गरीबों की भलाई के बारे में सोचता. उन के लिए कुछ कर पाए, इन्हीं विचारों में उस का बचपन बीता. लगन से स्कूली पढ़ाई कर के एमबी़बी़एस में दाखिला मिल गया. फिर एमडी़ की पढ़ाई पूरी कर के सरकारी अस्पताल में नौकरी शुरू कर दी. गरीब मरीजों को वह बहुत प्यार से देखता, उन्हें पूरा वक्त देता, अपने काम से उसे काफी तसल्ली मिलती कि वह गरीब और लाचार लोगों की, किसी तरह से ही सही, मदद तो कर रहा है. फिर भी समाज के भिन्न वर्गों की असमानता उसे कहीं न कहीं व्यथित करती रहती ही. पता नहीं क्या- सोचता रहता था वह हमेशा. काश ऐसा कर पाता, काश वैसा कर पाता. सभी के सुख की कामना. समाज में समानता हो , इस की कामना उसे रहती.