कई बार होता है ना कि हम किसी के घर गए और वहां टीनएजर से बात करनी शुरू की ही थी के वे उठकर अपने कमरे में चले गए या लाख बुलाने पर भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकलते. अगर ऐसा होता है तो हमे बहुत बुरा लगता है और हम कहते है की शर्मा जी ने तो अपने बच्चों को मैनर्स ही नहीं सिखाये। या फिर लगता है शर्मा जी की तो पसंद ही नहीं है की कोई उनके बच्चों से बात करें.

लेकिन सच यह नहीं है कि उनके माँ बाप ने ये उन्हें यह पट्टी पढ़ाई है कि कोई गेस्ट आया है तो तुम बाहर मत आना बल्कि सच तो ये है कि माँ बाप खुद शर्मिंदा होते है कि हमारा बच्चा बाहर नहीं आ रहा क्यूंकि रिश्तेदारों के तानों का सामना तो उन्हें ही करना पढ़ रहा है कि बच्चे को इतनी भी मैनर्स नहीं सिखाई। ऐसे में उनकी परवरिश पर सवाल उठने लगने है जबकी सच तो यह है की इसमें गलती रिश्तेदारों की है, माँ बाप की नहीं क्यूंकि उनसे जो सवाल आप पूछ रहे हो। जो बातें आप उनसे कर रहे हो वह उन्हें पसंद नहीं आता है इसलिए वे आपके पास आने में हिचकिचाते है.

दरअसल ना ही मां बाप को मालूम है और न ही रिश्तेदारों को पता है की इन बच्चों के स्तर पर उतरा कैसे जाएं। इनसे किस तरह के बात की जाये. टीनएजर से ये न पूछे की तुम कौन से क्लास में हो. ये भी ना पूछों की पढ़ाई कैसी चल रही है. करियर कैसा है, क्या बनना चाहते हो, इस साल मार्क्स कितने आये. अपने बच्चें से तुलना करके उसे तंग ना करें. पूछो वो सवाल जिसमे उसको रूचि हो सकती है.

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