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दूसरी भूल

अनीता बाजार से कुछ घरेलू चीजें खरीद कर टैंपू में बैठी हुई घर की ओर आ रही थी. एक जगह पर टैंपू रुका. उस टैंपू में से 4 सवारियां उतरीं और एक सवारी सामने वाली सीट पर आ कर बैठ गई. जैसे ही अनीता की नजर उस सवारी पर पड़ी, तो वह एकदम चौंक गई और उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

इस से पहले कि अनीता कुछ कहती, सामने बैठा हुआ नौजवान, जिस का नाम मनोज था, ने उस की ओर देखते हुए कहा, ‘‘अरे अनीता, तुम?’’

‘‘हां मैं,’’ अनीता ने बड़े ही बेमन से जवाब दिया.

‘‘तुम कैसी हो? आज हम काफी दिन बाद मिल रहे?हैं,’’ मनोज के चेहरे पर खुशी तैर रही थी.

‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘मुझे पता चला था कि यहां इस शहर में तुम्हारी शादी हुई है. जान सकता हूं कि परिवार में कौनकौन हैं?’’

‘‘मेरे पति, 2 बेटियां और एक बेटा,’’ अनीता बोली.

‘‘तुम्हारे पति क्या करते हैं?’’

‘‘कार मेकैनिक हैं.’’

‘‘क्या नाम है?’’

‘‘नरेंद्र कुमार’’

‘‘मैं यहां अपनी कंपनी के काम से आया था. अब काम हो चुका है. रात की ट्रेन से वापस चला जाऊंगा,’’ मनोज ने अनीता की ओर देखते हुए कहा, ‘‘घर का पता नहीं बताओगी?’’

‘‘क्या करोगे पता ले कर?’’ अनीता कुछ सोचते हुए बोली.

‘‘कभी तुम से मिलने आ जाऊंगा.’’

‘‘क्या करोगे मिल कर? देखो मनोज, अब मेरी शादी हो चुकी?है और मुझे उम्मीद है कि तुम ने?भी शादी कर ली होगी. तुम्हारे घर में भी पत्नी व बच्चे होंगे.’’

‘‘हां, पत्नी और 2 बेटे?हैं. तुम मुझे पता बता दो. वैसे, तुम्हारे घर आने का मेरा कोई हक तो नहीं है, पर एक पुराने प्रेमी नहीं, बल्कि एक दोस्त के रूप में आ जाऊंगा किसी दिन.’’

‘‘शिव मंदिर के सामने, जवाहर नगर,’’ अनीता ने कहा.

कुछ देर बाद टैंपू रुका. अनीता टैंपू से उतरने लगी.

‘‘अनीता, अब तो रात को मैं वापस आगरा जा रहा हूं, फिर किसी दिन आऊंगा.’’

अनीता ने कोई जवाब नहीं दिया. घर पहुंच कर उस ने देखा कि उस की बड़ी बेटी कल्पना, छोटी बेटी अल्पना और बेटा कमल कमरे में बैठे हुए स्कूल का काम कर रहे थे.

अनीता ने कल्पना से कहा, ‘‘बेटी, मैं जरा आराम कर रही हूं. सिर में तेज दर्द?है.’’

‘‘मम्मी, आप को डिस्प्रिन की दवा या चाय दूं?’’ कल्पना ने पूछा.

‘‘नहीं बेटी, कुछ नहीं,’’ अनीता ने कहा और दूसरे कमरे में जा कर लेट गई.

अनीता को तकरीबन 11 साल पहले की बातें याद आने लगीं. जब वह 12वीं जमात में पढ़ रही थी. कालेज से छुट्टी होने पर वह एक नौजवान को अपने इंतजार में पाती थी. वह मनोज ही था. उन दोनों का प्यार बढ़ने लगा. अनीता जान चुकी थी कि मनोज किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी कर रहा है.

मनोज के पिताजी का अपना कारोबार था और अनीता के पिताजी का भी. वे दोनों शादी करना चाहते?थे, पर अनीता के पापा को यह रिश्ता बिलकुल मंजूर नहीं था.

लिहाजा, अनीता और मनोज ने घर से भागने की ठान ली. घर से 50 हजार रुपए नकद व कुछ जेवर ले कर अनीता मनोज के साथ जयपुर जाने वाली ट्रेन में बैठ गई थी.

जयपुर पहुंच कर वे 8-10 दिन होटल में रहे. पता नहीं, पुलिस को कैसे पता चल गया और उन दोनों को पकड़ लिया गया. अनीता के पापा को आगरा से बुलाया गया. मनोज को पुलिस ने नहीं छोड़ा. नाबालिग लड़की को भगाने के अपराध में जेल भेज दिया गया.

पापा को अनीता से बहुत नफरत हो गई थी, क्योंकि उस ने कहना नहीं माना था.

अनीता ने आगे पढ़ाई करने को कहा था, पर पापा ने मना कर दिया था और उस की शादी करने की ठान ली थी. उस के लिए रिश्ते ढूंढ़े जाने लगे.

सालभर इधरउधर धक्के खाने के बाद पापा को एक रिश्ता मिल ही गया था. विधुर नरेंद्र की उम्र 35 साल थी. उस की पत्नी की एक हादसे में मौत हो चुकी थी. उस की 2 बेटियां थीं. एक 5 साल की और दूसरी 3 साल की.

नरेंद्र एक कार मेकैनिक था. उस की अपनी वर्कशौप थी. पापा ने नरेंद्र से जब शादी की बात की, तो उसे सब सच बता दिया था. नरेंद्र ने सब जान कर भी मना नहीं किया था.

अनीता शादी कर के नरेंद्र के घर आ गई थी. अब वह 2 बेटियों की मां बन गई थी.

एक दिन नरेंद्र ने कहा था, ‘देखो अनीता, मुझे तुम्हारी पिछली जिंदगी से कोई मतलब नहीं. तुम भी वह सब भुला दो. इस घर में आने का मतलब है कि अब तुम्हें एक नई जिंदगी शुरू करनी है. अब तुम अल्पना और कल्पना की मम्मी हो… तुम्हें इन दोनों को पालना है.’

‘जी हां, मैं ऐसा ही करूंगी. अब कल्पना और अल्पना आप की ही नहीं, मेरी भी बेटियां?हैं,’ अनीता ने कहा था.

एक साल बाद अनीता ने एक बेटे को जन्म दिया था. बेटा पा कर नरेंद्र बहुत खुश हुआ था. बेटे का नाम कमल रखा गया था.

अनीता नरेंद्र को पति के रूप में पा कर खुश थी और उस ने भी कभी शिकायत का मौका नहीं दिया था. पापामम्मी भी अपना गुस्सा भूल कर अब उस से मिलने आने लगे थे.

आज दोपहर अनीता की अचानक मनोज से मुलाकात हो गई. उसे मनोज को घर का पता नहीं देना चाहिए था. उस के दिल में एक अनजाना सा डर बैठने लगा. वह आंखें बंद किए चुपचाप लेटी रही.

अगले दिन सुबह के तकरीबन 11 बजे अनीता रसोई में खाना तैयार कर रही थी. कालबेल बज उठी. उस ने दरवाजा खोला, तो सामने मनोज खड़ा था.

‘‘तुम…’’ अनीता के मुंह से अचानक ही निकला,’’ तुम तो कह रहे थे कि मैं रात की गाड़ी से आगरा जा रहा हूं.’’

‘‘अनीता, मुझे रात की गाड़ी से ही आगरा जाना था, पर टैंपू में तुम से मिलने के बाद मेरा दिल दोबारा मिलने को बेचैन हो उठा. होटल में रातभर नींद नहीं आई. तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा. तुम नहीं जानती अनीता कि मैं आज भी तुम को कितना चाहता हूं,’’ मनोज ने कहा.

अनीता चुपचाप खड़ी रही. उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘अनीता, अंदर आने के लिए नहीं कहोगी क्या? मैं तुम से केवल 10 मिनट बातें करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ,’’ न चाहते हुए भी अनीता के मुंह से निकल गया.

कमरे में सोफे पर बैठते हुए मनोज ने इधरउधर देखते हुए पूछा, ‘‘कोई दिखाई नहीं दे रहा है… सभी कहीं गए हैं?क्या?’’

‘‘बच्चे स्कूल गए हैं और नरेंद्र वर्कशौप गए हैं,’’ अनीता बोली.

तभी रसोई से गैस पर रखे कुकर से सीटी की आवाज सुनाई दी.

‘‘जो कहना है, जल्दी कहो. मुझे खाना बनाना है.’’

‘‘अनीता, तुम अब पहले से भी ज्यादा खूबसूरत हो गई हो. दिल करता?है कि तुम्हें देखता ही रहूं. क्या तुम्हें जयपुर के होटल के उस कमरे की याद आती है, जहां हम ने रातें गुजारी थीं?’’

‘‘क्या यही कहने के लिए तुम यहां आए हो?’’

‘‘अनीता, मैं तुम्हारे पति को सब बताना चाहता हूं.’’

‘‘तुम उन्हें क्या बताओगे?’’ अनीता ने घबरा कर पूछा.

‘‘मैं नरेंद्र से कहूंगा कि जयपुर में मैं अकेला ही नहीं था. मेरे 2 दोस्त और भी थे, जिन के साथ अनीता ने खूब मस्ती की थी.’’

‘‘झूठ, बिलकुल झूठ,’’ अनीता गुस्से से चीखी.

‘‘यह झूठ?है, पर इसे मैं और तुम ही तो जानते हैं. तुम्हारा पति तो सुनते ही एकदम यकीन कर लेगा,’’ मनोज ने अनीता की ओर देखते हुए कहा.

अनीता ने हाथ जोड़ कर पूछा, ‘‘तुम आखिर चाहते क्या हो?’’

‘‘मैं चाहता हूं कि आज दोपहर बाद तुम मेरे होटल के कमरे में आ जाओ.’’

‘‘नहीं मनोज, मैं नहीं आऊंगी. अब मैं अपनी जिंदगी में जहर नहीं घोलूंगी. नरेंद्र मुझ पर बहुत विश्वास करते?हैं.

मैं उन से विश्वासघात नहीं करूंगी,’’ अनीता ने मनोज से घूरते हुए कहा.

‘‘तो ठीक?है अनीता, मैं नरेंद्र से मिलने जा रहा हूं वर्कशौप पर,’’ मनोज ने कहा.

‘‘वर्कशौप जाने की जरूरत नहीं है. मैं यहीं आ गया हूं,’’ नरेंद्र की आवाज सुनाई पड़ी.

यह देख अनीता और मनोज बुरी तरह चौंक उठे. अनीता के चेहरे का रंग एकदम पीला पड़ गया.

‘‘यहां क्यों आया है?’’ नरेंद्र ने मनोज को घूरते हुए पूछा, ‘‘तुझे इस घर का पता किस ने दिया?’’

‘‘अनीता ने. कल यह मुझे बाजार में मिली थी,’’ मनोज बोला.

अनीता ने घबराते हुए नरेंद्र को पूरी बात बता दी.

‘‘अबे, तुझे अनीता ने पता क्या इसलिए दिया था कि तू घर आए और उसे ब्लैकमेल करे. मैं ने तुम दोनों की बातें सुन ली हैं. अब तू यहां से दफा हो जा. फिर कभी इस घर में आने की कोशिश की, तो पुलिस के हवाले कर दूंगा,’’ नरेंद्र ने मनोज की ओर नफरत से देखते हुए गुस्साई आवाज में कहा.

मनोज चुपचाप घर से निकल गया.

अनीता को रुलाई आ गई. वह सुबकते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी भूल हो गई, जो मैं ने मनोज को घर का पता दे दिया?था.’’

‘‘हां अनीता, यह तुम्हारी जिंदगी की दूसरी भूल है, जो तुम ने अपने दुश्मन को घर में आने दिया. मनोज तुम्हारा प्रेमी नहीं, बल्कि दुश्मन था. सच्चे प्रेमी कभी भी अपनी प्रेमिका को घर से रुपएगहने वगैरह ले कर भागने को नहीं कहते.’’

अनीता की आंखों से आंसू बहते रहे. नरेंद्र ने उस के चेहरे से आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘अनीता, मुझे तुम पर बहुत विश्वास था, पर आज की बातें सुन कर यह विश्वास और बढ़ गया है. वैसे तो मनोज अब यहां नहीं आएगा और अगर आ भी गया, तो मुझे फोन कर देना. मैं उसे पुलिस के हवाले कर दूंगा.’’

नरेंद्र की यह बात सुन कर अनीता के मुंह से केवल इतना ही निकला, ‘‘आप कितने अच्छे हैं…’’

धारा 370 हटाना पड़ रहा महंगा: मोदी काल में आतंक का जिन्न पुंछ से डोडा पहुंचा

करीब 20 सालों तक शांत रहे जम्मू में आखिर ऐसा क्या हो गया कि अचानक वहां आतंकी गतिविधियां तेज हो गई हैं? बीते तीन सालों में आतंकियों ने जम्मू के सुरक्षित माने जाने वाले इलाकों में पैर पसारना शुरू कर दिया है. वे कश्मीर से खिसक कर जम्मू के शांत इलाकों को अपनी गोलियों से थर्रा रहे हैं. वे घात लगा कर सिक्योरिटी फौर्सेस को ही नहीं बल्कि आम नागरिकों को भी निशाना बना रहे हैं. केंद्र की मोदी सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 का खात्मा कर के बारबार इस बात को दोहराया कि हम ने आतंकवाद पर पूरी तरह काबू पा लिया है. मगर ये बात भी जुमला ही साबित हो रही है.

 

जम्मू में आतंकी जिस तरह वारदात कर भागने में सफल हो रहे हैं, उस से ह्यूमन इंटेलिजेंस पर सवाल खड़े हो रहे हैं. आतंकी इलाके में हैं और लगातार वारदात कर रहे हैं लेकिन उन की जानकारी सेना को नहीं मिल पा रही है. तो क्या स्थानीय लोगों का साथ आतंकियों को हासिल है या स्थानीय लोगों के बीच से ही कुछ लोग आतंकियों की भूमिका में आ चुके हैं? वे जम्मू के शांत इलाकों को टारगेट कर रहे हैं. वे जम्मू में हमला कर के यह संदेश भी देना चाहते हैं कि उन की जद में पूरा केंद्र शासित प्रदेश है. अगर वे बाहरी लोग हैं तो सीमा की सुरक्षा को धता बता कर देश में दाखिल कैसे हो रहे हैं? पुंछ के भाटादूड़ियां के जंगलों से निकला आतंक का जिन्न मोदी काल में जम्मू के डोडा तक पहुंच गया है और आतंकियों पर कार्रवाई रणनीतिक बैठकों और सर्च औपरेशन से आगे नहीं बढ़ पा रही है.

अब तक दक्षिण कश्मीर को आतंकवाद का गढ़ माना जाता था. पुंछ, पुलवामा, अनंतनाग जैसे इलाकों में ही आतंकवादी घटनाएं ज्यादा होती थीं. यहां के ऊंचाई वाले जंगलों में आतंकियों के खुफिया ठिकाने थे. इन इलाकों में विजिबिलिटी भी कम है, आतंकी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में छिप कर सेना पर हमला कर भागने में सफल थे. लेकिन वे कब और कैसे जम्मू के शांत क्षेत्रों में आ गए, इसकी जानकारी सेना को नहीं मिली. ऐसे में इंटेलिजेंस पर सवाल खड़े होना लाजिमी है.

क्षेत्र में गड़बड़ी फैलाने के उद्देश्य से घुसे आतंकी सेना पर भारी पड़ रहे हैं. उन्होंने नए इलाकों को भी टारगेट करना शुरू कर दिया है. जहां सुरक्षा बलों की कमी है. सेना के लिए लोकल सोर्स ही उनके आंखकान होते हैं मगर जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद सेना को अपने इस सौर्स से कोई मदद नहीं मिल रही है. ह्यूमन इंटेलिजेंस यहां पूरी तरह फेल हो रहा है. इतने सद्भावना कार्यक्रम चलने के बावजूद यह बेस क्यों खत्म हो गया इस पर सेना को गौर करने की और इस की जानकारी केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचाने की जरूरत है. पिछले 3 वर्षों में जम्मू संभाग में 7 बड़े हमले हुए हैं और इन 7 हमलों में अब तक देश के 32 जवान शहीद हो चुके हैं. इस वर्ष की शुरुआत से अब तक जम्मू प्रांत के 6 जिलों में लगभग 12 आतंकवादी हमलों में 11 सुरक्षाकर्मियों, 1 ग्राम रक्षा गार्ड और 5 आतंकवादियों सहित कुल 27 लोग मारे गए हैं।

आतंकवादियों ने राजौरी जिले के कुंडा टोपे निवासी सरकारी कर्मचारी मोहमद रजाक की गोली मार कर ह्त्या कर दी, वह टेरिटोरियल आर्मी के एक जवान के भाई थे.

उधमपुर के चोचरु गाला की पहाड़ियों पर स्थित बसंतगढ़ इलाके में आतंकियों से मुठभेड़ में गांव के डिफेन्स गार्ड मोहम्मद शरीफ मारे गए थे. यह घटना 28 अप्रैल की है.

आतंकवादियों ने 4 मई को इंडियन एयरफोर्स के जवान विक्की पहाड़े का कत्ल कर दिया था. और इस मुठभेड़ में 4 जांबाज जख्मी हुए थे. यह घटना सुरनकोट की है जब आतंकवादियों ने घात लगाकर सेना के काफिले पर हमला किया था.

 

9 जून को रियासी में तीर्थयात्रियों से भरी बस पर आतंकवादियों ने हमला बोला था. इस हमले में 9 लोगों की मौत हुई और 42 लोग जख्मी हुए थे. इस हमले के बाद बस पहाड़ी से नीचे खाई में गिर गई थी. इस में कटरा से शिवखोड़ी जा रहे तीर्थयात्री सवार थे.

भद्रवाह के छतरगाला में आतंकियों ने सुरक्षा चौकी पर हमला बोला था. इस हमले में 5 सैनिक और एक पुलिसकर्मी घायल हुआ था.

एक दिन ही गुजरा होगा कि 11 और 12 जून की रात 2 आतंकवादियों ने सीआपीएफ के जवान कबीर दास का क़त्ल कर दिया. कठुआ जिले के हीरानगर गांव में हुई इस घटना में एक नागरिक भी घायल हुआ. यह गांव भारत और पाकिस्तान सीमा के नजदीक है. अगले ही दिन 12 जून को आतंकियों ने डोडा जिले के कोटा टोप इलाके में पुलिस पार्टी पर हमला किया. इस अटैक में हेड कौंस्टेबल फरीद अहमद जख्मी हुए थे.

सुरक्षा बलों की 26 जून को डोडा के गंदोह इलाके में आतंकियों से मुठभेड़ हुई थी. इसमें सुरक्षाबलों ने 3 आतंकियों को मार गिराया था.

राजौरी जिले के मंजाकोट इलाके में आतंकियों ने सुरक्षा चौकी पर हमला बोल दिया था. इसमें सेना का एक जवान घायल हुआ था.

8 जुलाई को एक जेसीओ समेत 5 सैनिक शहीद हुए. आतंकवादियों ने झाड़ी में छिप कर उन पर हमला बोला था. इस भीषण हमले को कठुआ जिले के बडनोटा में अंजाम दिया गया था. भीषण हमले को हुए करीब एक सप्ताह का वक्त ही बीता था कि डोडा जिले के डेसा में आतंकवादियों ने 16 जुलाई को हमला बोला, जिसमें सेना के अफसर सहित 3 सैनिक मारे गए. जुलाई का महीना अभी पूरा बीता भी नहीं है कि अब तक हमारे 9 सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके हैं.

आखिर जम्मू में क्यों सफल हो रहे हैं आतंकवादी?

जम्मू कश्मीर में फोर्स की कमी आतंकी घटनाओं के बढ़ने का एक कारण है. चार साल पहले यहां जितनी सेना तैनात थी उसके मुकाबले आज काफी कम सैनिक यहां हैं. वजह यह कि चार साल पहले जब चीन के साथ तनाव शुरू हुआ तो इसी इलाके के सैनिकों को वहां भेजा गया. भारतीय सेना की आरआर फोर्स – रोमियो, डेल्टा, यूनिफौर्म फोर्स के पास यहां अलगअलग इलाके का जिम्मा था. लेकिन पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ एलएसी पर तनाव बढ़ने पर यूनिफौर्म फोर्स को एलएसी पर भेज दिया गया. इससे बाकी दोनों फोर्सेस पर उन इलाकों की जिम्मेदारी भी आ गयी जहां यूनिफौर्म फोर्स तैनात थी.

आतंकी उन जगहों पर अटैक कर रहे हैं जहां सिक्योरिटी फोर्सेज कम हैं. आतंकियों ने अपनी रणनीति बदली है और वे काफी ट्रेंड भी हैं और अच्छे उपकरणों से भी लैस हैं. वे अनेक तरीके से ट्रैप करके घात लगा कर हमले कर रहे हैं.

मारे गए आतंकियों के पास से जो चीजें बरामद हुई हैं उसमें रेडियो कम्युनिकेशन के लिए ऐसे अल्ट्रा सेट मिले हैं, जो चाइना मेड हैं और उनका इस्तेमाल पाकिस्तानी सेना भी करती है. पहले आतंकी जिस प्रकार के रेडियो सेट इस्तेमाल करते थे उसमें उनके कम्युनिकेशन भारतीय सेना पकड़ लेती थी और उन के मंसूबों का पता चलते ही उन की घेराबंदी हो जाती थी मगर अब इस मामले में हम फेल हो रहे हैं.

हैरानी की बात है कि मोदी सरकार इन आतंकी हमलों पर चुप्पी साधे बैठी है. जम्मू कश्मीर के डोडा में हुई मुठभेड़ में चार जवानों की शहादत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार पर निशाना साधते हुए एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार आतंकवाद को नियंत्रित करने में पूरी तरह विफल रही है.

उन्होंने कहा – ये पूरी तरह से मोदी सरकार की विफलता है…वे आतंकवाद को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं.

ओवैसी ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान आतंकवाद पर मोदी की ‘‘हम घर में घुसकर मारेंगे’’ टिप्पणी पर भी कटाक्ष किया और पूछा कि ‘‘अब ये क्या हो रहा है?’’

उन्होंने कहा, ‘‘हम डोडा आतंकी घटना की निंदा करते हैं, लेकिन यह मोदी सरकार की विफलता है. यह इलाका नियंत्रण रेखा (एलओसी) से बहुत दूर है, ऐसे में कैसे आतंकवादियों ने इतनी दूर तक घुसपैठ की और हमारे सुरक्षाकर्मियों के साथ मुठभेड़ हुई, जिसके कारण एक अधिकारी सहित चार सैन्यकर्मी शहीद हो गए?”

ओवैसी ने कहा, ‘‘यह एक गंभीर मामला है। यह मोदी सरकार की अक्षमता और विफलता को दर्शाता है. 2021 से अकेले इस क्षेत्र में 31 से अधिक आतंकवादी हमले हुए हैं जबकि कांग्रेस के काल में आतंकवाद के चरम पर रहने के दौरान भी यहां ऐसा नहीं था.”

डिजिटल अटेंडैंस मामले पर यूपी सरकार बैकफुट पर, आखिर पेरैंट्स एसोसिएशन क्यों न लगाए टीचर्स की डिजिटल अटेंडैंस

उत्तर प्रदेश में टीचर्स और सरकार के बीच विवाद छिड़ गया. विवाद का कारण शिक्षा विभाग के द्वारा जारी किया एक आदेश था जिस के चलते प्राइमरी टीचर को अपनी हाजिरी या उपस्थिति डिजिटल माध्यम से लगाई जानी थी. टीचर्स इस के लिए तैयार नहीं हुए. वे विरोध कर रहे थे और शिक्षा विभाग भी इस कदम से पीछे हटने को तैयार नहीं था लेकिन लोकसभा चुनाव में हार के बाद योगी सरकार इस तरह की नई मुसीबत से फिलहाल बचना चाह रही है इसलिए टीचरों का विरोध देखते हुए फिलहाल अगले आदेश तक लिए इसे टाल दिया गया है.

क्या था मामला

उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में टीचरों की डिजिटल अटेंडैंस 8 जुलाई, 2024 से हर स्कूल में शुरू हुई. इस के शुरू होते ही टीचरों ने अपना गुस्सा दिखाते हुए विरोध जताना शुरू कर दिया. टीचर्स ने हाथ पर काली पट्टी बांध कर अपना काम किया. विरोध कितना तगड़ा था कि राज्य में 6 लाख से ज्यादा प्राइमरी टीचर में से 2 फीसदी से भी कम ने डिजिटल अटेंडैंस लगाई. राज्य के अलगअलग क्षेत्रों में शिक्षक अपनाअपना विरोध दर्ज करवाए.

टीचर्स ने मांग की कि सरकार पुरानी पेंशन समेत टीचरों की सभी लंबित मांगें मानें तो हम इस नई व्यवस्था को खुशीखुशी स्वीकार कर लेंगे. नियम के मुताबिक, विद्यालयों में शिक्षकों और दूसरे कर्मियों को सुबह 7.45 बजे से 8 बजे तक अपनी अटेंडैंस लगानी होती है. अब इस समय को बढ़ा कर 8.30 बजे तक कर दिया गया था. टीचर्स के विरोध को देखते हुए बेसिक शिक्षा विभाग अपना रूख नरम किया और टीचर्स को 30 मिनट की मोहलत दी थी लेकिन टीचर्स को स्कूल देर से पहुंचने की जरूरी वजहें भी बतानी होगी.

शिक्षकों की परेशानी यह है कि नियमों के अनुसार, उन्हें सुबह 7 बज कर 30 मिनट तक अपने स्कूल पहुंचना होता है. क्लास शुरू होने से पहले सुबह 7 बज कर 45 मिनट से 8 बजे के बीच अपनी अटेंडैंस लगानी पड़ती. उन की परेशानी है कि दूरदराज के गांवों में इंटरनैट कनेक्टिविटी ठीक नहीं है. औनलाइन अटेंडैंस दर्ज करने में टाइम लगता है. कई स्कूल दूरदराज इलाकों में बने हैं और बारिश के मौसम में पानी से घिरे रहते हैं, इसलिए अगर कोई टीचर देरी से आता है तो उसे अबसेंट मान लिया जाता और उस की छुट्टी या फिर पैसे काट लिए जाते. सरकार के इस आदेश को शिक्षक पूरी तरह से गलत मानते हैं.

डिजिटल अटेंडैंस जरूरी नहीं

डिजिटल अटेंडैंस सरकार इसलिए जरूरी मानती है जिस से टीचर्स के समय पर स्कूल आने या जाने पर नजर रखी जा सके. वैसे स्कूल टीचर्स की निगरानी के लिए सरकार के पास कई और रास्ते भी हैं. जैसे शिक्षा विभाग के अफसर समयसमय पर स्कूल का निरीक्षण करते रहे. शिक्षा विभाग के पास लंबाचौड़ा अमला है. जो इस काम को करता है. इस के बाद भी टीचर्स जुगाड़ लगा कर बच जाते हैं. जिस तरह से टीचर्स जुगाड़ लगा कर बच जाते हैं उसी तरह से डिजिटल अटेंडैंस में भी बच जाएंगे क्योंकि इस डिजिटल अटेंडैंस को देखने वाले सरकारी लोग ही हैं. उन को अपने फेवर में लेना आसान है. एक ही विभाग में होने के कारण दोनों एकदूसरे के हितों का ध्यान रखते हैं.

कई मसलों में देखा जा चुका है कि सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत से तमाम गलत काम होते हैं. ऐसे में इस डिजिटल अटेंडैंस का तोड़ भी निकल ही आएगा. डिजिटल अटेंडैंस से बड़ा मुद्दा है पढ़ाई में सुधार का, जिस से गांव के गरीब वर्ग के बच्चों का भविष्य निर्माण हो सके. बहुत सारी सुविधाओं और सहूलियतों के बाद भी गांव के बच्चों की पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर रहा है. सवाल उठता है कि स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स की निगरानी कैसे हो सके?

पेरैंट्स एसोसिएशन से मिल सकती है मदद

डिजिटल अटेंडैंस से बेहतर होगा कि सरकार हर स्कूल में पेरैंट्स एसोसिएशन बनाने की व्यवस्था करे. एसोसिएशन का हर साल चुनाव हो. यह 10 सदस्यीय एक टीम बने. इस में अध्यक्ष और सचिव जैसे पद हो. इन का चुनाव हो. पेरैंट्स में बच्चे के मातापिता दोनों को वोट देना जरूरी हो. चुनाव लड़ने के लिए भी दोनों को अवसर मिले. स्कूल खुलने के 15 दिन में प्रक्रिया पूरी हो जाए. पेरैंट्स एसोसिएशन चुनाव के द्वारा ही बने. जिस से किसी तरह से विवाद न हो सके. एसोसिएशन लिखतपढ़त की व्यवस्था में मदद के लिए एक स्कूल टीचर को रखा जा सकता है.

यह पेरैंट्स एसोसिएशन ही स्कूल की निगरानी का काम करे. इसी को यह देखने का अधिकार हो कि टीचर समय से आ रहा है या नहीं. स्कूल की पढ़ाई की गुणवत्ता में भी इस से सुधार होगा. स्कूल में बच्चों को खाना कैसा मिल रहा है? किताब और ड्रैस की परेशानी भी हल हो जाएगी. स्कूल की गुणवत्ता सुधारने का काम उन के हाथों को मिल जाएगा जिन के बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं. ऐसे में वह अपने बच्चे के भविष्य को बिगड़ने नहीं देंगे और टीचर्स पर पूरी तरह से लगाम लगा सकते हैं.

शिक्षा व्यवस्था में तभी सुधार होगा जब टीचर्स और पेरैंट्स मिल कर काम करेंगे. केवल शिक्षा विभाग के बाबू से डिजिटल अटेंडैंस चेक करवा कर किसी तरह के सुधार की उम्मीद नहीं की जा सकती. इस से केवल सरकार, शिक्षा विभाग और टीचर्स के बीच झगड़ा बढ़ेगा. जिस का प्रभाव स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे पर पड़ेगा. जब पूरे देश में अलगअलग तरह के तमाम चुनाव हो ही रहे हैं तो स्कूलों में पेरैंट्स एसोसिएशन का चुनाव होने से क्या दिक्कत होगी? बच्चों के साथ गलत व्यवहार की जो शिकायतें रोजरोज मिलती रहती हैं वह भी कम हो जाएंगी.

डिजिटल अटेंडैंस से बेहतर है कि हर स्कूल में पेरैंट्स एसोसिएशन बनाई जाए. इस का काम स्कूल टीचर्स की निगरानी और देखभाल करना हो. स्कूल की लगाम इस के साथ होगी तो पढ़ाई की व्यवस्था को पटरी से उतरने का खतरा नहीं रहेगा. आपस में टकराव भी नहीं होगा. पेरैंट्स को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने का मौका मिल सकेगा. इस से स्कूल की पढ़ाई का स्तर को सुधारा जा सकता है. जबरदस्ती टीचर्स पर दबाव बना कर काम नहीं होगा. दबाव की जगह सहयोग की बात हो. निगरानी का काम पेरैंट्स एसोसिएशन का होगा तो गड़बड़ी खत्म हो जाएगी.

मेरी टीनएज बेटी छत पर जाकर घंटों मोबाइल से छिप छिप कर करती है बातें

सवाल – 

मेरी बेटी स्वाति की उम्र 14 साल है, आजकल वह शाम को खाना खाकर छत पर चली जाती है और घंटों किसी से बतियाती है, मैं मना करती हूं, तो दो दिन रुक जाती है और फिर वही रुटीन चालू हो जाता है.

जबाव – 

नजरअंदाज करें

यह पैरेंट्स की कौमन प्रौब्ल्म है, घबराए नहीं. आपकी डांट उसकी जिद को हवा देगी, बेहतर हो कुछ दिन तक आप उसकी इस एक्टिविटी को नजरअंदाज करें. घर में कोई भी इस बारे में बात नहीं करें, कानाफुसी भी नहीं करें. हो सकता है इस बदलाव की वजह से वह छिप कर या अकेले में बात करने की बजाय आपके सामने बातें करना शुरू कर दे. जब यह महसूस होगा कि किसी को उसके फोन पर बात करने से एतराज नहीं है, तो वह खुद ही यह बता दें कि वह किससे बातें करती है, क्या बातें करती है.

बच्चा न समझें

पैरेंट्स को अकसर यह लगता है कि उनके घर के किशोर या युवा समाज में घट रही घटनाओं से अनभिज्ञ है इसलिए वह अपने लिए पार्टनर चुनने में गलती कर बैठेंगे, लेकिन ऐसा नहीं है. आज की जैनरेशन बहुत ही स्मार्ट हैं. वह समाज में घट रही घटनाओं से अनजान नहीं हैं. उसके पीअर ग्रुप के अफेयर्स और उसके अच्छे-बुरे अंजाम से वह आपसे ज्यादा रूबरू है. लव और ब्रेकअप की शुरुआत की उम्र यही होती है. उसे बड़ा होने का मौका दें, उसे आसपास की सिचुएशन के हिसाब से खुद को निर्णय लेने दें.

गलती करने दें

गुड पैरेंटिंग बहुत ही अच्छी बात है लेकिन हैलीकोप्टर पैरेंटिंग नहीं. वह अगर किसी के प्यार में पड़ रही है, तो पड़ने दें. इस उम्र में अफेयर एक कौमन बात है. अफेयर को हमेशा गलत तरीके से नहीं लिया जाना चाहिए. उसे यह महसूस करने दे कि उसकी फ्रेंड्स की तरह उसमें भी कुछ खास बात है इसलिए कोई लड़का उसे अटैंशन दे रहा है. एक पैरेंट होने के कारण आपकी चिंता जायज है इसलिए आप उसकी एक्टिविटी पर जरूर नजर रखें जैसे उसकी अलमारी में क्या-क्या है, कोई उसे महंगे गिफ्ट तो नहीं दे रहा, लैपटौप पर उसकी हिस्ट्री को बीच-बीच में चेक करें, कभी-कभी उसको स्कूल या ट्यूशन से पिक करे, कभी उसके फ्रेंड्स को शाम को स्नैक्स पार्टी पर बुलाएं. हो सकता है इसके बाद आपके मन का संदेह दूर हो जाए या फिर कुछ भी गड़बड़ होता देख आप बिटिया की काउंसलिंग करें.

एक बार यह भी करके देख लें

कुछ दिन उसके साथ साथ खाएं और सोएं, कोई इनडोर गेम देखें, यूए सर्टिफिकेट की कोई मूवी देखें. इस बीच मौका मिलते ही उससे पूछे कि फोन पर वह किससे लंबीलंबी बातें करती है, उससे कहें कि वह जिससे फोन पर बातें करती है, आप उससे मिलना चाहती हैं. लेकिन ध्यान रहे, मिलवाने के जबरदस्ती नहीं करें. वह यह बात अपने पार्टनर को खुशी से बताएगी कि उसकी फैमिली उससे मिलना चाहती है, ऐसे में उसका दोस्त या बौयफ्रेंड कोई भला लड़का हुआ, तो जरूर मिलने आएगा. अगर लड़का आपसे मिलने से बारबार एतराज करेगा, तो आपकी बिटिया धीरेधीरे खुद ही समझ जाएगी कि उसका बौयफ्रेंड उसको सीरियसली नहीं लेता है. वह खुद ही उस लड़के से पीछा छुड़ा लेगी.

एक बार दिल टूटने दें

मां-पापा होने के नाते आप चाहेंगे कि आपके बच्चे के आंखों से आंसू नहीं बहे लेकिन कई बार गलती करने के बाद ही समझ आती है. गलतियां हर किसी से होती है और अच्छी बात है कि कम उम्र में ही एक दो बार ऐसी गलती हो जाए, इससे उनमें मैच्योरिटी आएगी. इससे उन्हें अपने फ्रेंड्स सर्किल में सही और गलत लोगों की पहचान आ जाएगी. आगे चलकर वह लाइफ में सही निर्णय करेंगे और आपकी बातों पर उनको भरोसा होगा. यह भी देखा गया है कि दिल टूटने या प्यार में धोखा खाने के बाद बच्चे अपने पैरेंट्स के करीब आ जाते हैं. कहीं न कहीं यह आपके बौंड को पहले से ज्यादा मजबूत बनाएगा.

हो सकता है आप गलत हो

अकसर पैरेंट्स को लगता है कि बौयफ्रेंड, पार्टनर या लाइफ पार्टनर को लेकर वे ही सही सोच रखते हैं. ऐसी बात नहीं है, कई बार आपके टीनएजर और एडल्ट बच्चे आपसे अधिक गहरी सोच और समझ रखते हैं. यह अलग बात है कि जब किसी विषय पर वे आपसे लौजिक मांगते हैं, तो आप उसको बहस का नाम दे देते हैं . यह बात आपको भी पता है कि कई बार इस उम्र की दोस्ती और प्यार आगे चलकर बहुत ही टिकाऊ और वफादार साबित होती है. सोसाइटी में कई ऐसे उदाहरण है जब कम उम्र में इश्क हुआ और बड़े होने पर दोनों ने शादी की और आज सफल शादीशुदा जिंदगी जी रहे हैं. कम उम्र की दोस्ती और प्यार कई बार काफी गहरा होता है क्योंकि वह स्वार्थी नहीं मासूम होता है.

मेरे पति सेक्स एडिक्ट बनते जा रहे हैं और मुझे डर है कि वे एडिक्शन के चलते किसी और से संबंध ना बना लें.

सवाल –

मेरी शादी को 4 साल हो चुके हैं और हमारा एक बेटा भी है. पहले मेरे पति जब भी जौब से घर आते तब वे सबके साथ बैठना पसंद करते थे और मुझे भी बाहर घूमाने ले जाते थे. पर कुछ समय से वे घर आते ही मुझे कमरे में बुला कर सैक्स करने को बोलते हैं. पहले तो मुझे नौर्मल लगा पर धीरेधीरे मुझे महसूस हुआ कि वे सैक्स एडिक्ट बनते जा रहे हैं जिस वजह से उन का अपने काम में भी ध्यान नहीं लगता. मुझे डर है कि वे अपनी इस एडिक्शन के चलते किसी और के साथ संबंध न बनाने लग जाएं.

जवाब –

आप बेवजह परेशान हो रही हैं. पुरुषों में स्ट्रैस रिलीज करने में सैक्स नंबर वन पर आता है. सैक्स एडिक्शन के शिकार ज्यादातर वे लोग होते हैं जिन्हें सैक्स करने के लिए पार्टनर नहीं मिलता या अपने पार्टनर से नाखुश होते हैं.

पत्नी होने के नाते आप को अपने पति के साथ सैक्स में इन्वौल्व होना चाहिए. उन के साथ बैठ कर, आराम से उन से उन की कोई प्रौब्लम है तो सौल्व करने कि कोशिश करनी चाहिए. सैक्स में जब आप पूरा सहयोग देंगे तो उन के सैक्स डिजायर अपनेआप कम होंगे. जैसा कि आप कह रहे हैं घर आते ही कमरे में सैक्स करने को बोलते हैं, ऐसा भी नहीं करेंगे, क्योंकि यदि आप पति के साथ नाईट सैक्स या अर्ली मोर्निंग सैक्स करती हैं तो सैक्स के लिए उन की आतुरता कम हो जाएगी.

इस के अलावा आप उन को कहीं बाहर घूमने जाने को कहिए जहां आप दोनों एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिता पाएं. ऐसा करने से उन के काम का स्ट्रैस कम होगा और उन को आप के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने को मिलेगा.

उन के साथ सिर्फ सैक्स न करें बल्कि सैक्स से पहले उन से प्यार भरी बातें करें और उन के दिल की बात को समझें कि आखिर उन के दिल और दिमाग में किस तरह के विचार आ रहे हैं. इस से आप दोनों एक-दूसरे के और नजदीक आने लगेंगे और वे किसी और के बारे में नहीं सोच पाएंगे.

इसके बाद भी अगर आपको लगे कि उनकी सेक्स एडिक्शन कम नहीं हो रही और वे अब भी हर समय बस सेक्स के बारे में सोचते रहते हैं तो आपको अपने फैमिली डाक्टर या फिर किसी सेक्स स्पेशलिस्ट से ज़रूर मिलें.

गौरक्षक

40 साल की उम्र के दिखने वाले राजेंद्र खड़ेखड़े शीशे में अपनी दाढ़ी के बालों में से सफेद बाल उखाड़ कर फेंक रहे थे. पीछे खड़ी उन की बीवी शकुंतला गोद में नन्हे लड़के को लिए काफी देर से राजेंद्र को ऐसा करते देख मुसकरा रही थी. जब शकुंतला से न रहा गया, तो वह बोल पड़ी, ‘‘अरे, रहने भी दो सरदारजी, दाढ़ी में आए सफेद बाल निकालने से जवान नहीं हो जाओगे और न ही कोई अब तुम्हें पसंद करने वाली.’’ शकुंतला की बात सुन कर राजेंद्र झेंप कर मुसकराने लगे. उन्हें पता न था कि शंकुलता इतनी देर से खड़ी उन्हें ही देख रही है. राजेंद्र ने दाढ़ी के सफेद बालों को उखाड़ना बंद कर दिया और घूम कर शकुंतला की तरफ देख कर बोले, ‘‘तुम्हारे कहने से मैं बूढ़ा नहीं हो जाऊंगा. चलो, लाओ जल्दी से मुझे खाना दे दो, वरना निकलने के लिए देर हो जाएगी.’’ शकुंतला मुसकराते हुए रसोई की तरफ बढ़ गई. राजेंद्र हाथ धो कर कमरे के दरवाजे के सामने बैठ खाने का इंतजार करने लगे.

राजेंद्र इस कसबे में कुछ साल पहले आए थे, जबकि उन का अपना गांव तो यहां से काफी दूर पड़ता था. राजेंद्र हिंदू धर्म की एक दलित कही जाने वाली जाति के थे, लेकिन इस कसबे में आने से पहले उन्होंने जातिधर्म की छुआछूत से तंग आ कर सिख धर्म अपना लिया था और सरदार बन गए, जहां उन्हें सामान्य आदमी की तरह इज्जत मिलनी शुरू हो गई. अब राजेंद्र की दाढ़ी, पगड़ी को देख लोग उन्हें सरदारजी के नाम से पुकारते थे. इस वक्त राजेंद्र एक ट्रक के ड्राइवर का काम करते थे, जो उन्हें एक सरदारजी ने ही सिखाया था, लेकिन इस से पहले वे अपने गांव में एक जमींदार का ट्रैक्टर चलाया करते थे. उन्हीं दिनों उन की मुलाकात एक सरदारजी से हुई थी, जिन्होंने इन को सिख धर्म में लाने के साथ साथ ट्रक चलाना भी सिखा दिया था राजेंद्र के गांव के लोगों ने जब इन के धर्म परिवर्तन का विरोध किया, तो ये अपने गांव से निकल इस कसबे में आ कर बस गए.आज राजेंद्र के 2 बच्चे थे. एक 5 साल का और दूसरा 3 साल का. राजेंद्र ट्रक पर जाते, तो कईकई दिन तक घर वापस न आ पाते थे. इसी वजह से उन्हें अपने बीवीबच्चों से मिलने की जल्दी रहती थी. साथ ही, इन लोगों को प्यार भी बहुत करते थे. शकुंतला से राजेंद्र की शादी गांव में ही हो गई थी, तब तक राजेंद्र ने अपना धर्म नहीं बदला था. पर धर्म बदलने के बाद भी शकुंतला ने राजेंद्र से एक भी शब्द न बोला. शकुंतला को यह सब अच्छा लगा, क्योंकि इस धर्म में उसे कोई गिरी नजर से नहीं देखता था.

राजेंद्र रात के वक्त ही ट्रक से आए थे और अब सुबह होते ही उन्हें फिर से ट्रक ले कर निकलना था. शकुंतला ने राजेंद्र को खाना दिया और पास में ही आ कर बैठ गई. राजेंद्र ने चुपचाप खाना खाया और उठ कर खड़े हो गए. जिस दिन राजेंद्र को बाहर जाना होता था, उस दिन वे अपनी पत्नी शकुंतला से ज्यादा बात नहीं करते थे. उन्हें लगता था कि अगर उन्होंने शकुंतला से ज्यादा बात की, तो वे भावुक हो जाएंगे और शायद रोने भी लगें. शकुंतला का भी कुछ ऐसा ही हाल था. लेकिन वह हरदम अपने भावों को मजाकों से दबाए रखती थी. वह राजेंद्र को भी हंसाने की कोशिश करती रहती, लेकिन कामयाबी नहीं मिलती थी. बड़ा लड़का बरामदे में बैठा खेल रहा था और छोटा बेटा शकुंतला की गोद में था. राजेंद्र को चलने के लिए तैयार होते देख बड़ा लड़का भाग कर आया और अपने पिता की टांगों से लिपट गया. राजेंद्र ने उसे अपने हाथों से उठा कर गोद में ले लिया और लाड़ करने लगे. बहुत सी चीजों का उसे लालच भी दिया. लड़का अपने लिए बच्चों के चलाने का छोटा ट्रक मांगता था. राजेंद्र ने तुरंत हां कर दी. लड़का अपनी इच्छा पूरी होते ही फिर से उसी जगह जा कर खेलने लगा. यह सब देख कर शकुंतला हंस पड़ी.

राजेंद्र ने अपना थैला उठाया, गमछा लिया, फिर वे शकुंतला की तरफ भीगी नजरों से देखने लगे. शकुंतला कब उन से पीछे रहती, उस की आंखों से भी आंसू निकल कर गालों पर बह रहे थे. ऐसा हर बार होता था. दोनों पति-पत्नी के बीच का गहरा प्यार उन्हें हर बार बिछड़ते समय रोने पर मजबूर कर देता था. राजेंद्र कमजोर दिल के थे. उन से शकुंतला का रोना देखा नहीं जाता था, लेकिन करते भी क्या. पेट के लिए काम तो करना ही पड़ता है और इस ट्रक ड्राइवरी के अलावा उन से और कोई भी काम नहीं होता था. राजेंद्र ने बाहर खेल रहे लड़के की तरफ देखा, वह मस्त हो कर खेल रहा था. मौका पा कर राजेंद्र ने शकुंतला को अपने गले से लगा लिया. शकुंतला गोद में लग रहे नन्हे बच्चे समेत राजेंद्र से लिपट गई. उस के मौन रुदन ने सिसकियों का रूप ले लिया, लेकिन राजेंद्र रो न सके.उन्होंने शकुंतला के माथे को चूमा और उस के आंसू पोंछते हुए धीरे से बोले, ‘‘बावली हो गई हो शकुंतला. अरे, मैं बौर्डर की जंग में थोड़े ही न जा रहा हूं. 2-4 दिन में फिर से घर आ पहुंचूंगा. बिना बात इतना रोती हो.

‘‘अच्छा, यह बताओ कि क्या ले कर आऊं तुम्हारे लिए? जो मन में हो, वही बता दो. इस बार लंबी दूरी का सामान मिला है, पैसे भी उसी हिसाब के मिलेंगे.’’ शकुंतला भीगी आंखों से ही मुसकरा कर झूठमूठ का गुस्सा दिखाते हुए बोली, ‘‘रहने भी दो सरदारजी, मुझे चुप करने का यही बहाना मिला था. मुझे नहीं मंगाना कुछ भी. बस, जल्दी घर आ जाना.’’ राजेंद्र ने नजरभर सांवलीसलोनी शकुंतला को देखा, भरे सांवले बदन की शकुंतला पुरानी साड़ी में भी खूबसूरत लग रही थी. राजेंद्र को उस के रूप में कोई कमी न दिखी. हां, शकुंतला के बदन पर एक नई साड़ी की दरकार जरूर थी. राजेंद्र धीमी आवाज में शकुंतला से बोले, ‘‘शकुंतला, अगर तुम कहो, तो तुम्हारे लिए एकाध बढि़या सी साड़ी ले आऊं. अब तुम्हारी साडि़यां पुरानी सी लगती हैं.’’ शकुंतला अंदर से तो खिल उठी, लेकिन ऊपरी भाव से चिंता दिखाते हुए बोली, ‘‘नहीं, कोई जरूरत नहीं. पहले बड़े लड़के की पढ़ाई की सोचो, फिर घर के लिए पैसे जोड़ो, उस के बाद मेरे लिए कुछ लाना.’’

राजेंद्र मुसकराते हुए बोले, ‘‘हां, तुम्हारी एकाध साड़ी में तो जैसे हजारों का खर्चा आएगा. अरे, सब काम हो जाएंगे. लड़का भी पढ़ेगा और अपना खुद का मकान भी होगा, लेकिन तुम साड़ी के बारे में बताओ.’’

शकुंतला झेंपती सी बोली, ‘‘हां, देख लेना. पैसा फालतू हो तो ही लाना, नहीं तो मत लाना.’’ इतना सुनते ही राजेंद्र मुसकराते हुए घर से बाहर की तरफ निकलने लगे. शकुंतला गोद में बच्चा लिए पीछे चल पड़ी. राजेंद्र मुड़मुड़ कर देखते हुए घर के बाहर निकल गए. शकुंतला दरवाजे पर खड़ीखड़ी उन्हें जाते हुए देखती रही. राजेंद्र थोड़ी ही देर में शकुंतला की आंखों से ओझल हो गए. अपनी मौत को न देख शकुंतला की आंखें फिर से छलछला पड़ीं. उस का यह सब हर बार का रोना था.

शकुंतला को अपने पति का ट्रक ले कर सड़कों पर निकलना बहुत डराता था. पता नहीं, कौन सा दिन ऐसा हो, जिस दिन राजेंद्र के न लौटने की कोई घटना हो जाए.

राजेंद्र घर से निकल कर सीधे उस जगह आ पहुंचे, जहां उन का ट्रक सामान से भरा खड़ा था.

यह ट्रक राजेंद्र का खुद का नहीं था. इसी कसबे की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी के ट्रक को राजेंद्र चलाते थे.

राजेंद्र के पहुंचते ही उन के साथ रहने वाला हैल्पर आ कर बोला, ‘‘सरदारजी, घर से बड़ी देर में आए. ट्रक तो घंटे भर पहले ही लोड हो चुका है.’’

राजेंद्र अभी कुछ कहते, उस से पहले ही एक आदमी उन के पास आ पहुंचा. ट्रक में लोड हुआ सामान इसी आदमी का था. उस ने भी वही देर से आने वाली बात पूछी.

राजेंद्र ने कुछ काम लग जाने की कह उस आदमी से सवाल किया, ‘‘भाई साहब, ट्रक में क्या-क्या सामान लोड हुआ है?’’

उस आदमी ने बड़े आराम से बोल दिया, ‘‘इस में फूड आइटम है. गाड़ी दनादन ले कर चलना. हमें तय वक्त में पहुंचना है, नहीं तो सामान खराब होने का डर है. मैं अपनी कार से तुम्हारे आगे-आगे चलूंगा.’’

राजेंद्र ने हां में सिर हिला दिया. फिर ट्रक स्टार्ट कर आगे बढ़ा दिया. भाड़े के सामान का मालिक भी कार ले कर राजेंद्र के ट्रक के आगे चलने लगा.

अभी थोड़ी दूर ही चले थे कि तभी ट्रक के बराबर एक खुली जीप चलने लगी, जो ट्रक से आगे निकलने की कोशिश कर चुकी थी. उस में बैठे लोगों ने राजेंद्र को ट्रक रोकने का इशारा किया.

राजेंद्र ने गौर से उन लोगों को देखा, सब के सब लड़के पहलवान से दिखते थे. उन सब के गले में हलके लाल रंग के गमछे पड़े हुए थे. तकरीबन हर लड़के के हाथ में हौकी और डंडे दिखाई दे रहे थे.

एकबारगी तो राजेंद्र का दिल कांप गया, लेकिन चलती सड़क पर हिम्मत साथ थी, उन्होंने इशारे में लड़कों से पूछा, ‘‘क्या है? क्यों रोकूं?’’

उन लड़कों ने आपस में कुछ बोला और जीप के ड्राइवर को कुछ कह दिया. थोड़ी ही देर में जीप ट्रक के ठीक आगेआगे चलने लगी. जीप के आगे आते ही राजेंद्र ने मजबूरन ट्रक की रफ्तार धीमी कर दी.

थोड़ी देर में जीप के रेंगने के साथ ट्रक भी रेंगने लगा. थोड़ी आगे कार ले कर चल रहे भाड़े के मालिक ने ट्रक की रफ्तार धीमी होते देखी, तो कार को भी धीमा कर लिया.

रफ्तार धीमी होते ही 2-3 लड़के जीप से उतर ट्रक की तरफ बढ़ गए, राजेंद्र ने ट्रक को ब्रेक लगा दिए और खुद को उन लड़कों के आने के लिए तैयार कर लिया.

ट्रक के रुकते ही जीप पर सवार सारे लड़के उतर कर ट्रक की तरफ लपक पड़े. 10-12 लड़कों से खुद को घिरा देख. राजेंद्र को अनहोनी का डर होने लगा, लेकिन जब तक राजेंद्र को कुछ समझ आता, तब तक 2 लड़कों ने राजेंद्र को ड्राइवर सीट से नीचे खींच लिया. दूसरी तरफ बैठा हैल्पर भी नीचे उतार लिया गया. उन लड़कों में से एक ने राजेंद्र का गला पकड़ते हुए सवाल किया, ‘‘क्यों रे, इस ट्रक में क्या भरा हुआ है?’’

राजेंद्र ने भाड़े मालिक का बताया हुआ जवाब दिया, ‘‘भाई, इस में फूड आइटम हैं, लेकिन आप लोग कौन हैं? मैं ने आप का क्या बिगाड़ा है?’’

राजेंद्र का गला पकड़े खड़े लड़के ने राजेंद्र की बात का जवाब न दे कर साथ खड़े लड़के से चिल्ला कर कहा, ‘‘यहां खड़ाखड़ा क्या देख रहा है, जा कर ट्रक में देख क्या भरा है.’’

राजेंद्र को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था. आज तक पुलिस ने उस के ट्रक को एकाध बार चैक किया था, लेकिन इस तरह इतने लड़के आ कर ट्रक को क्यों चैक कर रहे हैं, यह बात समझ से परे थी.

भाड़े मालिक ने यह सब देख अपनी कार रोकी और उतर कर सारा माजरा देखा.

राजेंद्र भाड़े मालिक की तरफ देख कुछ कहने को था कि वह फिर से अपनी कार में बैठा और कार को तेजी से आगे भगा कर ले गया.

राजेंद्र को उस के भागते ही शक हो गया कि ट्रक में जरूर चोरी का माल होगा, इसलिए वह इन लोगों को देख कर भाग गया, लेकिन इतने लड़के एकजैसा गमछा गले में डाले कौन हो सकते हैं?

राजेंद्र की बगल में खड़ा हैल्पर भी कम बेबस नहीं था. उस की आंखें तो दूर से ठंडी सी पड़ गई थीं.

इतनी देर में ट्रक चैक करने गए लड़के की चीख आई, ‘‘भैया, इस ट्रक में मरी हुई गाय भरी पड़ी हैं.’’

इतना सुनना था कि सारे लड़के हौकीडंडे ले कर राजेंद्र और हैल्पर को पीटने लगे. राजेंद्र के होश उड़ चुके थे. देह पर पड़ रही जोरदार हौकी और डंडों की मार सहना राजेंद्र के वश से बाहर था.

हैल्पर उन लोगों के पैर पकड़पकड़ कर खुद को छोड़ने की गुहार लगा रहा था, कभी राजेंद्र की तरफ देख रोता हुआ चिल्लाता, ‘‘सरदारजी, मुझे बचाओ. मैं मर जाऊंगा.’’

लेकिन राजेंद्र को तो खुद बुरी तरह से पीटा जा रहा था. तभी एक जोरदार हौकी राजेंद्र के सिर के बीचोंबीच लगी. सिर में लगी जोरदार हौकी की चोट लगते ही राजेंद्र की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. खोपड़ी से खून की फुहार निकल उठी. राजेंद्र निढाल हो कर जमीन पर गिर पड़े, लेकिन 2 लड़के अभी भी उन्हें पीटने में लगे हुए थे.

राजेंद्र का हैल्पर भी अधमरा हो चुका था. इतनी देर में एक गाड़ी आ कर इन लोगों के पास रुक गई. मारपीट एकदम बंद हो गई.

उस गाड़ी में से एक रोबदार नेताजी सा लगने वाला आदमी उतरा, जिस के गले में इन्हीं लड़कों की तरह गमछा पड़ा हुआ था. ये लोग गौरक्षक थे और अभी गाड़ी से आया आदमी इन का प्रमुख.

उस ने आते ही अधमरे पड़े राजेंद्र और उन के हैल्पर को देखा. उस ने एक लड़के से कह कर राजेंद्र को सीधा करवाया. शायद वह राजेंद्र को पहचानने की कोशिश कर रहा था.

राजेंद्र का मुंह देखते ही गौरक्षक प्रमुख आश्चर्यचकित हो उठा. उस ने हड़बड़ा कर पास खड़े लड़के से कहा, ‘‘अरे बेवकूफो, यह तुम ने क्या किया, यह तो मेरे कसबे का सरदार है, भला ये गौहत्या क्यों करेगा? पिछले हफ्ते गायों के चारेपानी के लिए इस ने 5 सौ रुपए का चंदा दिया था. जरा नाक के पास हाथ लगा कर देखो कि यह मर गया या जिंदा है.’’

एक लड़के ने जल्दी से राजेंद्र की नाक के पास अपनी उंगलियां लगा कर उस की सांसों को महसूस करना चाहा, लेकिन राजेंद्र की सांसें तो देर की थम चुकी थीं.

लड़का उजड़े हुए चेहरे से बोला, ‘‘नहीं भैया, इस की सांसें तो चल ही नहीं रहीं.’’

गौरक्षा प्रमुख ने खुद चैक किया, राजेंद्र सच में मर चुके थे. सब लोगों में सन्नाटा छा गया, लेकिन राजेंद्र के हैल्पर की सांसें अभी तक चल रही थीं.

गौरक्षा प्रमुख ने थोड़ी देर सोचा, फिर लड़कों से बोला, ‘‘अब खड़ेखड़े क्या देख रहे हो, इस लड़के को भी मार दो और फटाफट से यहां से निकल चलो.’’

इतना कह कर गौरक्षक प्रमुख गाड़ी की तरफ बढ़ गया. पीछे से एक लड़के ने झिझकते हुए कहा, ‘‘भैया, मरी हुई गायों के फोटो खींच लें.’’

गौरक्षक प्रमुख ने थोड़ा सोचा, फिर बोला, ‘‘चलो खींच लो, लेकिन बहुत फुरती से, और जितनी जल्दी हो सके, यहां से निकल चलो. पुलिस अभी आती ही होगी.’’

इतना कह कर गौरक्षक प्रमुख गाड़ी में बैठ कर चला गया. गौरक्षकों में से 1-2 ने राजेंद्र के हैल्पर की सांसें थाम दीं. एक ने ट्रक के पीछे जा कर फटी हुई तिरपाल में से मरी हुई गायों के फोटो खींच लिए.

इतना करने के बाद सब लोग जीप में बैठ उसी तरफ भाग गए, जिधर से आए थे.

आज पहली बार ऐसा हुआ था, जब गौरक्षकों ने खुद पुलिस को नहीं बुलाया था, वरना हर बार ये लोग गायों से भरी गाड़ी पकड़ते, उस के बाद उस गाड़ी में मौजूद लोगों की जम कर धुनाई करते, फिर खुद पुलिस और पत्रकारों को फोन कर के बुला लेते थे. दूसरे दिन के अखबारों में इन के फोटो भी छपते थे.

राजेंद्र की लाश खून से लथपथ हुई पड़ी थी. इस वक्त न तो उसे शकुंतला की याद आती थी और न अपने बच्चों की चिंता ही थी. यह शकुंतला तो राजेंद्रजी की याद करती ही होगी. शायद 2-3 दिन के बाद राजेंद्र के घर पहुंचने का बेसब्री से इंतजार भी करती होगी. उसे पता होगा कि राजेंद्र उस के लिए बढि़या सी साड़ी भी ले कर आएंगे. कितना अच्छा लगेगा, जब राजेंद्र हाथ में साड़ी लिए घर पहुंचेंगे और बडे़ लड़के के लिए प्लास्टिक के खिलौने का ट्रक. सारा घर खुशियों से भर जाएगा, सब लोग साथ बैठ कर खाना खाएंगे. लेकिन दूसरे दिन के अखबार में कुचले पड़े राजेंद्र और हैल्पर की फोटो छपेगी, जिस में लिखा होगा, ‘गौ तस्करों ने की पीटपीट कर हत्या’. साथ में मरी हुई गायों के फोटो भी थे. गौरक्षक दल बेशक न कहे, लेकिन सब लोगों को पता होगा कि ये उन का ही काम है. पुलिस बिना सुबूत उन का कुछ भी नहीं कर पाएगी, कोई नहीं जान पाएगा कि राजेंद्र और हैल्पर को तो यह तक पता नहीं था कि गाड़ी में मरी हुई गाय हैं, पर गौरक्षकों को इस बात से क्या मतलब. उन्हें तो सिर्फ गौरक्षा करनी है, चाहे उस के लिए कितने ही आदमियों का खून क्यों न बहाना पड़े.

Technology ने आसान कर दी महिलाओं की जिंदगी

”क्या यार, दोस्तों को डिनर पर बुलाने से पहले मुझ से पूछ तो लेते. आज शाम को मीटिंग है. कितनी देर चलेगी पता नहीं. मैं कब घर पहुंचूंगी और कब खाना बनाऊंगी?” फोन पर पति पर झुंझलाते हुए लता ने उस से कहा कि वह अपने दोस्तों को इतवार को बुलाए. मगर संदीप का जवाब सुन कर तो लता आश्चर्य से उछल पड़ी.

संदीप ने कहा, “तुम आराम से मीटिंग अटेंड कर के आओ. खाना तुम को रेडी मिलेगा.”

लता, “तो तुम खाना बाहर से और्डर करने वाले हो? फिर लंबा चौड़ा बिल आएगा?”

संदीप, “नहीं, सिर्फ 299\- खर्च होंगे और पूरा खाना घर पर ही बनेगा, वह भी बिलकुल होटल वाले स्वाद का.”

लता चकराई, बोली, “कोई जादू की छड़ी मिल गई है क्या? तुम को तो चाय तक बनानी नहीं आती?”

संदीप हंसते हुए बोला, “हां, जादू की छड़ी ही समझ लो. एक कंपनी का ऐप देखा था. वो सिर्फ 299\- रुपये में हमारे घर पर अपना शेफ भेजेगी जो दो से तीन घंटे में चार पांच तरह की डिशेज तैयार कर देगा और वो भी बिलकुल होटल वाले खाने के स्वाद का. रोटियां और पूरियां भी बना देगा. और सारा काम कर के तुम्हारा पूरा किचन अच्छी तरह साफ़ चमका कर जाएगा.”

लता, “क्या बात कर रहे हो? सिर्फ 299\- में? मुझे तो यकीन नहीं होता?”

संदीप, “यकीन तो मुझे भी नहीं हो रहा था. फिर मैं ने उन की वेबसाइट देखी. वहां सारी डिटेल्स हैं. बस एक फोन कौल पर शेफ आप की सेवा में हाजिर है. अब तुम को किसी तरह की चिंता करने की जरूरत नहीं है. खाना बनाने की चिंता से मुक्त हो कर मीटिंग अटेंड करो.”

लता को संदीप की बातों पर यकीन तो नहीं हुआ, मगर शाम को औफिस की मीटिंग खत्म कर के साढ़े 7 बजे जब वह घर पहुंची तो डाइनिंग टेबल पर कढ़ाई पनीर, कोफ्ते, आलू-गोभी की सब्जी, रायता, पुलाव, सलाद और पूरियां सजी देख कर वह आश्चर्य में पड़ गई. मेहमान भी आ चुके थे. किचन में दो शेफ थे जो खाना बनाने और डाइनिंग टेबल पर सजाने के बाद किचन की सफाई कर रहे थे. 15 मिनट में दोनों ने पूरा किचन चमका दिया और अपना बैग पैक कर के चल दिए. जातेजाते कह गए, “सर, खाना अच्छा लगे तो हमारी वेबसाइट पर जा कर फीडबैक जरूर दीजिएगा.”

 

खाना लाजवाब बना था. मेहमान भी तारीफ़ कर रहे थे. 10 लोगों के लिए इतना खाना अगर बाहर से मंगवाते तो निश्चित ही पांच-छह हजार रुपए खर्च हो जाते. पर यहां तो पूरी पार्टी मात्र 299\- में ही निपट गई. शेफ ने हाइजीन का पूरा ख्याल रखा. तेल भी कम इस्तेमाल किया था. आटा-चावल, सब्जी और सारे इन्ग्रेडियंट घर के थे. और डिनर तैयार करने वाले वो ट्रेंड शेफ जिन के हाथ का बना खाना होटलों में खा कर आप उंगलियां चाटते रह जाते हैं, कितने शालीन और सभ्य थे.

देश में जिस तेजी से टैक्नोलौजी का विकास हो रहा है, इंसान की जिंदगी उसी तेजी से बदल रही है. नौकरियों का स्वरूप भी बदल रहा है. टैक्नोलौजी और कंप्यूटर के विकास ने अगर कुछ हाथों से काम छीना है तो अनेक हाथों को काम दिया भी है. जिन कामों का बोझ घर की महिलाओं पर इस कदर होता था कि वह उस से मुक्त हो कर अपने बारे में कुछ सोच ही नहीं पाती थीं, टैक्नोलौजी ने उन की जिंदगी काफी आसान कर दी है. टैक्नोलौजी ने उन का समय बचाया तो अब वे अपने बारे में सोच भी रही हैं और एक्स्प्लोर भी कर रही हैं.

आप पूछेंगे कैसे?

याद करिए आप की मां का कितना समय और ऊर्जा सिलबट्टे पर मसाला पीसने में खत्म होती थी. दिन में अगर दो बार खाना बनाना है तो दो बार उस को सिलबट्टे पर मसाला पीसने के लिए बैठना पड़ता था. घर भर के कपड़े धोने और सुखाने में तो आधा दिन बीत जाता था. लेकिन टैक्नोलौजी के विकास ने जहां मसाला-चटनी पीसने के लिए मिक्सी दी, वहीं कपड़े धोने के लिए औटोमैटिक वाशिंग मशीन. सब्जी चोप करना हो, मलाई से घी निकालना हो, खाना गर्म करना हो, घर की सफाई करनी हो, आज हर चीज के लिए ऐसे ऐसे उपकरण बाजार में उपलब्ध हैं जिन से घंटों के काम मिनटों में होने लगे हैं.

आप रात में गंदे कपड़े वाशिंग मशीन में डाल कर स्विच ऑन कर दीजिए और सुबह धुले और ड्राई कपड़े निकाल लीजिए. राइस कुकर में चावल डाल कर औफिस चली जाइए और दोपहर में आप के परिवार को गरमा गरम चावल खाने के लिए मिल जाएंगे. ये उपकरण काम खत्म कर के अपने आप ही स्विच औफ हो जाते हैं. इन को किसी निगरानी की आवश्यकता भी नहीं है.

मानव जीवन की व्यस्तताओं को देखते हुए टैक्नोलौजी उसी के अनुरूप चीजों को आसान करती जा रही है. आज अधिकांश महिलाएं नौकरीपेशा हैं. वे अपने पतियों की तरह 8 से 10 घंटे औफिस में काम करती हैं और घर से निकलने से पहले और घर लौटने के बाद भी काम करती रहती हैं. क्योंकि आज भी पुरुषों को घर के काम में पत्नी का हाथ बंटाने में उन का पुरुषत्व आड़े आता है. पत्नी घर के काम के साथ बाहर भी काम करे और पैसा कमा कर लाए, इस में भारतीय समाज को कोई दिक्कत नहीं है, मगर पुरुष किचन में दाल सब्जी बनाए और बच्चों की देखभाल करे तो कानाफूसी शुरू हो जाती है. मगर टैक्नोलौजी ने महिलाओं की दोहरी मेहनत को समझा और उस के कामों को आसान बनाया है.

माउस के एक क्लिक पर कंप्यूटर पर ऐसे तमाम वेबसाइट्स खुल जाती हैं जो महिलाओं के लिए बहुत काम की हैं. अर्बन क्लैप में कौल कर के आप बहुत कम पैसे में अपने घर का कोना कोना चमका सकते हैं. उन का आदमी अपने एक सहायक के साथ आएगा और आप के घर का किचन, बाथरूम और अन्य कमरे चमका जाएगा. उन के पास कुछ कैमिकल्स होते हैं, सफाई के लिए अलगअलग प्रकार के ब्रश और डिटर्जेंट होते हैं, जिन से चुटकियों में दीवारों, पंखों, चिमनियों आदि पर जमी चिकनाहट और गन्दगी साफ हो जाती है.

हाल ही में नोएडा गुड़गांव और दिल्ली में कुछ ऐसे स्टार्टअप्स शुरू हुए हैं, जिन्होंने कामकाजी महिलाओं की जिंदगी और आसान कर दी है. आमतौर पर नौकरी पेशा महिलाएं औफिस से जब घर के लिए निकलती हैं तो उन के दिमाग में बस यही सोच चल रही होती है कि घर पहुंच कर खाने में क्या बनाना है. कई बार बहुएं अपने मायके जाने को तरस जाती हैं, सालों मायके नहीं जातीं, क्योंकि उन को इस बात की चिंता होती है कि पीछे से उन के बूढ़े सास ससुर और पति व बच्चों को खाना कैसे मिलेगा? कई बार घर में कोई छोटामोटा फंक्शन होने पर गृहणी का पूरा समय रसोई में ही निकल जाता है और मेहमानों से मिलने, बात करने का उसे मौका ही नहीं मिलता.

मगर अब कुछ ऐसे स्टार्टअप शुरू हुए हैं कि खाने बनाने के झंझट से उसको निजात मिल रही है. उस के पास भी अब सजने संवारने, घूमने, लोगों से मिलने और बात करने का वक्त है. ऐसा ही एक स्टार्टअप है ‘द शेफ कार्ट’. ये कंपनी बहुत कम दाम में आप के घर शेफ भेज कर आप का मनपसंद खाना बनवा देती है. आप को पूरे महीने खाना बनवाना है तो उस के लिए भी शेफ उपलब्ध हैं. और इस काम के लिए जितना पैसा आप किसी मेड को देंगे उस से आधे दाम पर आप का काम हो जाएगा और खाना भी होटल के खाने सा स्वादिष्ट मिलेगा.

इसी तरह अब कुछ कंपनियां बुजुर्गों की देखभाल के लिए मेलफीमेल नर्स उपलब्ध कराती हैं जिन के लिए आप उन की वेबसाइट पर जाकर संपर्क कर सकते हैं. दिल्ली में ‘होम नर्सिंग सर्विस’ सेवा उपलब्ध कराने के लिए ‘वेस्टा एल्डर केयर’ नामक कंपनी कई सुविधाएं प्रदान करती है. कई प्राइवेट अस्पताल भी बुजुर्गों की देखभाल के लिए फुल टाइम नर्स उपलब्ध कराते हैं.

बच्चों की पढ़ाई की दिशा में भी टैक्नोलौजी के विकास का ही कमाल देखने को मिलता है. आज हर तरह की जानकारी गूगल पर उपलब्ध है. बच्चों को औनलाइन फ्री ट्यूशन की सुविधा मिलने लगी है. चैट जीपीटी ने जानकारी का पूरा खजाना खोल कर उन के सामने रख दिया है.

टैक्नोलौजी ने नौकरियों के स्वरूप में बहुत बदलाव किया है. जिस तेजी से देश की जनसंख्या बढ़ रही है, सरकार के पास तो उतनी नौकरियां नहीं हैं कि हर युवा को रोजगार मिल जाए. कुर्सी मेज पर बैठ कर कलम घिसने और फाइलें बनाने वाले काम भी बहुत कम रह गए हैं. उन की जगह कम्प्यूटरों ने ले ली है. प्राइवेट सैक्टर के पास भी अब इतनी नौकरियां नहीं हैं. ऐसे में जो नए स्टार्टअप आ रहे हैं उन्होंने छोटे माने जाने वाले कार्यों को टैक्नोलौजी से जोड़ कर उन का मान बढ़ाया है और पढ़ेलिखे बेरोजगार युवाओं को बड़ी संख्या में इन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया है.

घर की सफाई, खाना बनाना, बूढ़ों और बच्चों की देखभाल, घरों को दीमक और कीड़ा मुक्त करने का काम, बगीचे और किचन गार्डन की देखभाल, पानी की टंकी की सफाई जैसे अनेक काम जो पहले नौकरों, मालियों, काम वाली बाई आदि से करवाया जाता था, उन के लिए अब बाकायदा कंपनियां बन गई हैं जो अपनी वेबसाइट के जरिये अपनी सेवाओं को उपभोक्ताओं तक पहुंचाती हैं. पढ़े-लिखे युवा इन कंपनियों से बड़ी तादात में जुड़ रहे हैं. उन के लिए अब कोई काम ओछा या छोटा भी नहीं रहा है और कंपनियां उन को अच्छा मानदेय भी दे रही हैं.

नाजुक गुंडे

मुंबई से कुशीनगर ऐक्सप्रैस ट्रेन चली, तो गयादीन खुश हुआ. उस ने पत्नी को नए मोबाइल फोन से सूचना दी कि गाड़ी चल दी है और वह अच्छी तरह बैठ गया है. गयादीन को इस घड़ी का तब से बेसब्री से इंतजार था, जब उस ने 2 महीने पहले टिकट रिजर्व कराया था. वह रेल टिकट को कई बार उलटपलट कर देखता था और हिसाब लगाता था कि सफर के कितने दिन बचे हैं. सफर में सामान ज्यादा, खुद बुलाई मुसीबत होती है. गयादीन इस मुसीबत से बच नहीं पाता है. कितना भी कम करे, पर जब भी गांव जाता है, तो सामान बढ़ ही जाता है. इस स्लीपर बोगी में उस के जैसे सालछह महीने में कभीकभार घर जाने वाले कई मुसाफिर हैं. उन के साथ भी बहुत सामान है.

इस गाड़ी के बारे में कहा जाता है, आदमी कम सामान ज्यादा. पर आदमी कौन से कम होते हैं. हर डब्बे में ठसाठस भरे होते हैं, क्या जनरल बोगी, क्या स्लीपर बोगी. गयादीन इस बार अपने गांव में तो मुश्किल से एकाध दिन ही ठहरेगा. पत्नी को ले कर ससुराल जाना होगा. एकलौते साले की शादी है. इस वजह से भी सामान ज्यादा हो गया है. एक बड़ी अटैची, 2 बड़े बैग, एक प्लास्टिक की बड़ी बोरी और खानेपीने के सामान का एक थैला, जिसे उस ने खिड़की के पास लगी खूंटी पर टांग दिया था. वैसे तो इस ट्रेन में पैंट्री कार होती है और चलती ट्रेन में ही खानेपीने का सामान बिकता है, लेकिन रेलवे की खानपान सेवा पर खर्च कर के खाली पैसे गंवाना है. पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलता. खानेपीने का सामान साथ हो, तो परेशानी नहीं उठानी पड़ती.

इस बार गयादीन मां के लिए 20 लिटर वाली स्टील की टंकी ले जा रहा था, जिस के चलते एक अदद बोरी का बोझ बढ़ गया था. हालांकि बोरी में बहुत सा छोटामोटा सामान भी रख लिया है. एक बैग तो वहां के मौसम को ध्यान में रखते हुए बढ़ा है.

मुंबई जैसा मौसम तो हर कहीं नहीं होता. सफर लंबा है. पहली रात तो सादा कपड़ों में कट जाएगी, पर अगले दिन और रात के लिए तो गरम कपड़ों की जरूरत होगी. कंबल भी बाहर निकालना होगा. सुबह-सुबह जब गाड़ी गोरखपुर पहुंचेगी, तो कुहरे भरी ठंड से हाड़ ही कांप जाएंगे. फिर गांव तक का खुले में बस का सफर. वहां कान भी बांधने पड़ते हैं, फिर भी सर्दी पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन उसी पल पत्नी से मिलन और ससुराल में एकलौते साले की शादी में मिलने वाले मानसम्मान का खयाल आते ही गयादीन जोश से भर गया. सामान ज्यादा होने की वजह से गयादीन को 2 दोस्त ट्रेन में बिठाने आए थे और वे ही बर्थ के नीचे सामान रखवा कर चले गए थे. उस की नीचे की ही बर्थ थी. कोच में सिर्फ रिजर्व टिकट वाले मुसाफिर थे. रेलवे स्टाफ ने कंफर्म टिकट वाले मुसाफिरों को ही कोच में सफर करने की इजाजत दी थी.

गयादीन ने चादर बिछाई. तकिए में हवा भरी और खिड़की की तरफ बैठ कर एक पतली सी पत्रिका निकाली. समय काटने के लिए उस ने रेलवे बुक स्टौल से कम कीमत की पत्रिका खरीद ली थी, जिस के कवर पर छपी लड़की की तसवीर ने उस का ध्यान खींचा था. गयादीन अधलेटा हो कर पत्रिका के पन्ने पलटने लगा. सामने की बर्थ पर लेटे एक मुसाफिर ने उसे टोकते हुए सलाह दे दी, ‘‘भाई, रात बहुत हो गई है. लाइट बुझा कर सोने दो. आप भी सोओ. लंबा सफर है, दिन में पढ़ लेना.’’

साथी मुसाफिर की बात उसे ठीक लगी. पत्रिका बंद कर के पानी पी कर लाइट बुझाते हुए वह लेट गया.

दिनभर की आपाधापी के बावजूद उस की आंखों में नींद नहीं थी. एक तो घर जाने की खुशी, दूसरे सामान की चिंता. नासिक रेलवे स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो भीड़ का एक रेला डब्बे में घुस आया. लोग कहते रहे कि रिजर्वेशन वाला डब्बा है, पर किसी ने नहीं सुनी. वे तीर्थ यात्री मालूम पड़ते थे और समूह में थे. उन में औरतें भी थीं.

गयादीन चादर ओढ़ कर बर्थ पर पूरा फैल कर लेट गया, ताकि उस की बर्थ पर कोई बैठ न सके, फिर भी ढीठ किस्म के 1-2 लोग यह कहते हुए थोड़ी देर का सफर है, उस के पैरों की तरफ बैठ ही गए.

गयादीन सफर में झगड़ेझंझट से बचना चाहता था, इसलिए ज्यादा विरोध नहीं किया, पर मन ही मन वह कुढ़ता रहा कि रिजर्वेशन का कोई मतलब नहीं. किसी की परेशानी को लोग समझते नहीं हैं. वह कच्ची नींद में अपने सामान पर नजर रखे रहा. हालांकि सामान को उस ने लोहे की चेन से अच्छी तरह बांध रखा था, लेकिन चोरों का क्या, चेन भी काट लेते हैं.

खैर, मनमाड़ और भुसावल स्टेशन आतेआते वे सब उतर गए. उस ने राहत की सांस ली और पूरी तरह सोने की कोशिश करने लगा. उसे नींद भी आ गई. बुरहानपुर स्टेशन पर चाय और केले बेचने वालों की आवाज से उस की नींद टूटी.

सुबह हो चुकी थी. बुरहानपुर स्टेशन का उसे इंतजार भी था. वहां मिलने वाले सस्ते और बड़े केले वह घर के लिए खरीदना चाहता था.

पर यह क्या, फिर भीड़ बढ़ने लगी. अब कंधे पर बैग टांगे या खाली हाथ दैनिक मुसाफिर ट्रेन में चढ़ आए थे. उस का अच्छाखासा तजरबा है, दैनिक मुसाफिर किसी तरह का लिहाज नहीं करते, सोते हुए को जगा देते हैं कि सवेरा हो गया और बैठ जाते हैं. एतराज करने पर भी नहीं मानते.

ट्रेन चली तो सामने वाले मुसाफिर को जगा कर गयादीन शौचालय गया. लौटा तो बीच की बर्थ खोल दी गई थी और नीचे उस की बर्थ पर कई लोग डटे थे. यही हाल सामने वाली बर्थ का था. वह कुछ देर खड़ा रहा तो एक दैनिक मुसाफिर ने उस पर तरस दिखाते हुए थोड़ा खिसक कर खिड़की की तरफ बैठने की जरा सी जगह बना दी, जहां उस का तकिया व चादर सिमटे रखे थे.

गयादीन झिझकते हुए सिकुड़ कर बैठ गया और अपने सामान पर नजर डाली. सामान महफूज था. चादर और तकिया जांघों पर रख कर खिड़की के बाहर देखने लगा. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी.

गयादीन गाल पर हाथ धरे उगते हुए सूरज को देख रहा था कि एकाएक किसी के धीमे से छूने का आभास हुआ. पलट कर देखा तो चमकती नीली सलवार और पीली कुरती वाली बहुत करीब थी. उस की कलाइयों में रंगबिरंगी चूडि़यां थीं व एक हाथ में 10-20 रुपए के कुछ नोट थे.

यह देख गयादीन अचकचा गया. उस ने मुंह ऊपर उठा कर देखा. लिपस्टिक से पुते हुए होंठों की फूहड़ मुसकराहट का वह सामना न कर सका और निगाहें नीचे कर लीं. उस ने खाली हाथ बढ़ाते हुए मर्दानी आवाज में रुपए की मांग की, ‘‘निकालो.’’

‘‘खुले पैसे नहीं हैं,’’ गयादीन ने झुंझलाहट से कहा और लापरवाही से खिड़की के बाहर देखने लगा.

‘‘कितना बड़ा नोट है राजा? सौ का, 5 सौ का, हजार का? निकालो तो सब तोड़ दूंगी,’’ भारी सी आवाज में उस ने तंज कसा.

‘‘जाओ, पैसे नहीं हैं.’’

‘‘अभी तो बड़े नोट वाले बन रहे थे और अब कहते हो कि पैसे नहीं हैं. रेल में सफर ऐसे ही कर रहे हो…’’ उस ने बेहयाई से हाथ भी मटकाया. इस बीच उस का एक साथी पास आ कर खड़ा हो गया, जो मर्दाने बदन पर साड़ी लपेटे था.

गयादीन को लगा कि अब इन से पार पाना मुश्किल है. बेमन से कमीज की जेब से 10 रुपए का एक नोट निकाला और बढ़ाया.

‘‘हायहाय, 10 का नोट… क्या आता है 10 रुपए में.’’

गयादीन ने 10 का एक और नोट निकाल कर चुपचाप बढ़ा दिया. वह उन से छुटकारा पाना चाहता था.

सलवार-कुरती वाले ने दोनों नोट झट से लपक लिए और आगे बढ़ गए. वह अपने को ठगा सा महसूस करते हुए शर्मिंदा सा उन्हें देखता रह गया.

वे दूसरे मुसाफिरों से तगादा करने में लग गए थे. कोई उन का विरोध नहीं कर रहा था. सब अपने को बचा सा रहे थे.

कुछ दैनिक मुसाफिर उतरे, तो दूसरे आ गए. कुछ बिना रिजर्वेशन वाले और गुटका, तंबाकू, पेपर सोप बेचने वाले चढ़ आए. भीड़ इतनी बढ़ गई थी कि रिजर्व डब्बा जनरल डब्बे की तरह हो गया. इस बीच टिकट चैकर भी आया, पर उसे इन सब से कोई मतलब नहीं.

जब दिन चढ़ आया, तो दैनिक मुसाफिरों की आवाजाही तो जरूर कम हुई, पर बिना रिजर्व मुसाफिर बढ़ते रहे. हां, चैकिंग स्टाफ का दस्ता डब्बे में चढ़ा, तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. वे उन से जुर्माना वसूल कर रसीद पकड़ा गए.

रात में ठीक से नींद न आ पाने से गयादीन की सोने की इच्छा हो आई, पर वह लेट नहीं सकता था. वह बैठे-बैठे ही ऊंघने लगा. सामने वाले मुसाफिर ने उसे जगा दिया, ‘‘अपने डब्बे में फिर गुंडे चढ़ आए हैं.’’

‘‘गुंडे, फिर से,’’ वह चौंका.

‘‘हां, हां, यह अपने-अपने इलाके के गुंडे ही तो हैं… नाजुक गुंडे.’’

अब की बार वे 4 थे. पहले वालों के मुकाबले ज्यादा हट्टेकट्टे और ढीठ. ताली बजाबजा कर बड़ी बेशर्मी से मुसाफिरों से रुपयों की मांग कर रहे थे. किसीकिसी से तो 50 के नोट तक झटक लिए थे. गयादीन के पास भी आए और ताली बजाते हुए मांग की.

गयादीन बोला, ‘‘पीछे वालों को दे चुके हैं.’’

‘‘दे चुके होंगे. लेकिन यह हमारा इलाका है.’’

‘‘इलाका तो गुंडों का होता है,’’ सामने वाले मुसाफिर ने कहा.

गयादीन को लगा कि गुंडा कहने से बुरा मान जाएंगे, पर बुरा नहीं माना. एक भौंहें मटकाते हुए बोला, ‘‘वे एमपी वाले थे. हम यूपी वाले हैं. हमारा रेट भी उन से ज्यादा है.’’

और वह दोनों से 50 का नोट ले कर ही माना. जब वे दूसरे डब्बे में चले गए, तो सामने वाला मुसाफिर बोला, ‘‘इन से पार पाना मुश्किल है. ये नंगई पर उतर आते हैं और छीनाझपटी भी कर सकते हैं. मुसाफिर बेचारा क्या करे.झगड़ाझंझट तो कर नहीं सकता.’’

‘‘इन का कोई इलाज नहीं? रेलवे पुलिस इन्हें नहीं रोकती?’’

‘‘पुलिस चाहे तो क्या नहीं कर सकती, पर आप तो जानते ही हैं. खैर,  रात के सफर में कोई परेशान नहीं करेगा. इन की शराफत है कि ये रात के सफर में मुसाफिरों को परेशान नहीं करते.’’

दोनों ने राहत की सांस ली.

प्यार का चस्का

शहर के कालेज में पढ़ने वाला अमित छुट्टियों में अपने गांव आया, तो उस की मां बोली, ‘‘मेरी सहेली चंदा आई थी. वह और उस की बेटी रंभा तुझे बहुत याद कर रही थीं. वह कह गई है कि तू जब गांव आए तो उन से मिलने उन के गांव आ जाए, क्योंकि रंभा अब तेरे साथ रह कर अपनी पढ़ाई करेगी.’’

यह सुन कर दूसरे दिन ही अमित अपनी मां की सहेली चंदा से मिलने उन के गांव चला गया था.

जब अमित वहां पहुंचा, तो चंदा और उन के घर के सभी लोग खेतों पर गए हुए थे. घर पर रंभा अकेली थी. अमित को देख कर वह बहुत खुश हुई थी.

रंभा बेहद खूबसूरत थी. उस ने जब शहर में रह कर अपनी पढ़ाई करने की बात कही, तो अमित उस से बोला, ‘‘तुम मेरे साथ रह कर शहर में पढ़ाई करोगी, तो वहां पर तुम्हें शहरी लड़कियों जैसे कपड़े पहनने होंगे. वहां पर यह चुन्नीवुन्नी का फैशन नहीं है,’’ कह कर अमित ने उस की चुन्नी हटाई, तो उस के हाथ रंभा के सुडौल उभारों से टकरा गए. उस की छुअन से अमित के बदन में बिजली के करंट जैसा झटका लगा था.

ऐसा ही झटका रंभा ने भी महसूस किया था. वह हैरान हो कर उस की ओर देखने लगी, तो अमित उस से बोला, ‘‘यह लंबीचौड़ी सलवार भी नहीं चलेगी. वहां पर तुम्हें शहर की लड़की की तरह रहना होगा. उन की तरह लड़कों से दोस्ती करनी होगी. उन के साथ वह सबकुछ करना होगा, जो तुम गांव की लड़कियां शादी के बाद अपने पतियों के साथ करती हो,’’ कह कर वह उस की ओर देखने लगा, तो वह शरमाते हुए बोली, ‘‘यह सब पाप होता है.’’

‘‘अगर तुम इस पापपुण्य के चक्कर में फंस कर यह सब नहीं कर सकोगी, तो अपने इस गांव में ही चौकाचूल्हे के कामों को करते हुए अपनी जिंदगी बिता दोगी,’’ कह कर वह उस की ओर देखते हुए बोला, ‘‘तुम खूबसूरत हो. शहर में पढ़ाई कर के जिंदगी के मजे लेना.’’

इस के बाद अमित उस के नाजुक अंगों को बारबार छूने लगा. उस के हाथों की छुअन से रंभा के तनबदन में बिजली का करंट सा लग रहा था. वह जोश में आने लगी थी.

रंभा के मां-बाप खेतों से शाम को ही घर आते थे, इसलिए उन्हें किसी के आने का डर भी नहीं था. यह सोच कर रंभा धीरे से उस से बोली, ‘‘चलो, अंदर पीछे वाले कमरे में चलते हैं.’’

यह सुन कर अमित उसे अपनी बांहों में उठा कर पीछे वाले कमरे में ले गया. कुछ ही देर में उन दोनों ने वह सब कर लिया, जो नहीं करना चाहिए था.

जब उन दोनों का मन भर गया, तो रंभा ने उसे देशी घी का गरमागरम हलवा बना कर खिलाया.

हलवा खाने के बाद अमित आराम करने के लिए सोने लगा. उसे सोते हुए देख कर फिर रंभा का दिल उस के साथ सोने के लिए मचल उठा.

वह उस के ऊपर लेट कर उसे चूमने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘तुम्हारा दिल दोबारा मचल उठा है क्या?’’

‘‘तुम ने मुझे प्यार का चसका जो लगा दिया है,’’ रंभा ने अमित के कपड़ों को उतारते हुए कहा.

इस बार वे कुछ ही देर में प्यार का खेल खेल कर पस्त हो चुके थे, क्योंकि कई बार के प्यार से वे दोनों इतना थक चुके थे कि उन्हें गहरी नींद आने लगी थी.

शाम को जब रंभा के मांबाप अपने खेतों से घर लौटे, तो अमित को देख कर खुश हुए.

रंभा भी उस की तारीफ करते नहीं थक रही थी. वह अपने मांबाप से बोली, ‘‘अब मैं अमित के साथ रह कर ही शहर में अपनी पढ़ाई पूरी करूंगी.’’

यह सुन कर उस के पिताजी बोले, ‘‘तुम कल ही इस के साथ शहर चली जाओ. वहां पर खूब दिल लगा कर पढ़ाई करो. जब तुम कुछ पढ़लिख जाओगी, तो तुम्हें कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाएगी. तुम्हारी जिंदगी बन जाएगी.’’

‘‘फिर किसी अच्छे घर में इस की शादी कर देंगे. आजकल अच्छे घरों के लड़के पढ़ीलिखी बहू चाहते हैं,’’ रंभा की मां ने कहा, तो अमित बोला, ‘‘मैं दिनरात इसे पढ़ा कर इतना ज्यादा होशियार बना दूंगा कि फिर यह अच्छेअच्छे पढ़ेलिखों पर भारी पड़ जाएगी.’’

रंभा की मां ने अमित के लिए खाने को अच्छे-अच्छे पकवान बनाए. खाना खाने के बाद बातें करते हुए उन्हें जब रात के 10 बज गए, तब उस के सोने का इंतजाम उन्होंने ऊपर के कमरे में कर दिया.

जब अमित सोने के लिए कमरे में जाने लगा, तो चंदा रंभा से बोली, ‘‘कमरे में 2 पलंग हैं. तुम भी वहीं सो जाना. वहां पर अमित से बातें कर के शहर के रहनसहन और अपनी पढ़ाईलिखाई के बारे में अच्छी तरह पूछ लेना.’’

यह सुन कर रंभा मुसकराते हुए बोली, ‘‘जब से अमित घर पर आया है, तब से मैं उस से खूब जानकारी ले चुकी हूं. पहले मैं एकदम अनाड़ी थी, लेकिन अब मुझे इतना होशियार कर दिया है कि मैं अब सबकुछ जान चुकी हूं कि असली जिंदगी क्या होती है?’’

यह सुन कर चंदा खुशी से मुसकरा उठी.

वे दोनों ऊपर वाले कमरे में सोने चले गए थे. कमरे में जाते ही वे दोनों एकदूसरे पर टूट पड़े.

शहर में आ कर अमित ने रंभा के लिए नएनए फैशन के कपड़े खरीद दिए, जिन्हें पहन कर वह एकदम फिल्म हीरोइन जैसी फैशनेबल हो गई थी. अमित ने एक कालेज में उस का एडमिशन भी करा दिया था.

जब उन के कालेज खुले, तो अमित ने अपने कई अमीर दोस्तों से उस की दोस्ती करा दी, तो रंभा ने भी अपनी कई सहेलियों से अमित की दोस्ती करा दी.

गांव की सीधीसादी रंभा शहर की जिंदगी में ऐसी रम गई थी कि दिन में अपनी पढ़ाई और रात में अमित और उस के दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती करती थी.

जब रंभा शहर से दूसरी लड़कियों की तरह बनसंवर कर अपने गांव जाती, तब सभी लोग उसे देख कर हैरान रह जाते थे. उसे देख कर उस की दूसरी सहेलियां भी अपने मांबाप से उस की तरह शहर में पढ़ने की जिद कर के शहर में ही पढ़ने लगी थीं.

अब अमित उस की गांव की सहेलियों के साथ भी मौजमस्ती करने लगा था. उस ने रंभा की तरह उन को भी प्यार का चसका जो लगा दिया था.

साहब की चतुराई

तबादले पर जाने वाला नौजवान अफसर विजय आने वाले नौजवान अफसर नितिन को अपने बंगले पर ला कर उसे चपरासी रामलाल के बारे में बता रहा था. नितिन ने जब चपरासी रामलाल की फिल्म हीरोइन जैसी खूबसूरत बीवी को देखा, तो वह उसे देखता ही रह गया. नितिन बोला, “यार, तुम्हारी यह चपरासी की बीवी तो कमाल की है. तुम ने तो इस के साथ खूब मजे किए होंगे?’’ ‘‘नहीं यार, ये छोटे लोग बहुत ही धर्मकर्म पर चलते हैं और इस के लिए अपना सबकुछ कुरबान कर देते हैं. ये लोग पद और पैसे के लिए अपनी इज्जत को नहीं बेचते हैं. मैं ने भी इसे लालच दे कर पटाने की खूब कोशिश की थी, मगर इस ने साफ मना कर दिया था.’’

यह सुन कर नितिन विजय की ओर हैरानी से देखने लगा.

नितिन को इस तरह देख विजय अपनी सफाई में बोला, ‘‘ये छोटे लोग हम लोगों की तरह नहीं होते हैं, जो अपने किसी काम को बड़े अफसर से कराने के लिए अपनी बहनबेटियों और बीवियों को भी उन के साथ सुला देते हैं. हमारी बहनबेटियों और बीवियों को भी सोने में कोई दिक्कत नहीं होती है, क्योंकि वे तो अपने स्कूल और कालेज की पढ़ाई करते समय अपने कितने ही बौयफ्रैंड्स के साथ सो चुकी होती हैं.’’ इतना सुन कर नितिन मन ही मन  उस चपरासी की बीवी को पटाने की तरकीब सोचने लगा.

विजय से चार्ज लेने के बाद नितिन अपने सरकारी बंगले में रहने लग गया था. शाम को जब वह अपने बंगले पर आया, तो चपरासी रामलाल उस से बोला, ‘‘साहब, आप को शराब पीने का शौक हो तो लाऊं? पुराने साहब तो रोजाना पीने के लिए बोतल मंगवाते थे.’’

‘‘और क्याक्या मंगवाते थे तुम्हारे पुराने साहब?’’

चपरासी रामलाल बोला, ‘‘कालेज में पढ़ने वाली लड़की भी मंगवाते थे. वे पूरी रात के उसे 2 हजार रुपए देते थे.’’ ‘‘ले आना,’’ सुन कर नितिन ने उस से कहा, तो वह उन के लिए शराब की बोतल और उस लड़की को ले आया था.

उस लड़की और उस अफसर ने शराब पी कर रातभर खूब मजे किए. जाते समय नितिन ने उसे 3 हजार रुपए दिए और उस से कहा कि वह चपरासी रामलाल से कहे कि तुम्हारे ये कैसे साहब हैं, जिन्होंने रातभर मेरे साथ कुछ किया ही नहीं था, बल्कि मुझे छुआ भी नहीं था, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए मुफ्त में दे दिए हैं.’’ उस लड़की ने चपरासी रामलाल से यह सब कहने की हामी भर ली. जब वह लड़की वहां से जाने लगी, तो चपरासी रामलाल से बोली, ‘‘तुम्हारे ये साहब तो बेकार ही रातभर लड़की को अपने बंगले पर रखते हैं, उस के साथ कुछ करते भी नहीं हैं, मगर फिर भी उस को पैसे देते हैं. तुम्हारे साहब का तो दिमाग ही खराब है.’’

यह सुन कर चपरासी रामलाल हैरान हो कर उस की ओर देखने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो रातभर मुझे छुआ भी नहीं, फिर भी मुझे 3 हजार रुपए दे दिए हैं,’’ कह कर वह वहां से चली गई. उस लड़की की बातें सुन कर चपरासी रामलाल सोचने लगा था कि उस के अफसर का दिमाग खराब है या वे औरत के काबिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें औरतों को अपने साथ सुला कर उन पर अपने पैसे लुटाने का शौक है. चपरासी रामलाल अपने कमरे पर आ कर बीवी सरला से बोला, ‘‘हमारे ये नए साहब तो बेकार ही अपने पैसे लड़की पर लुटाते हैं.’’ ‘‘वह कैसे?’’ सुन कर सरला ने रामलाल से पूछा, तो वह बोला, ‘‘कल रात को मैं साहब के लिए एक लड़की लाया था, लेकिन उन्होंने उस के साथ कुछ भी नहीं किया. यहां तक कि उन्होंने उसे छुआ भी नहीं, मगर फिर भी उन्होंने उसे 3 हजार रुपए दे दिए.’’

यह सुन कर उस की बीवी सरला हैरानी से उस की ओर देखने लगी, तो वह उस से बोला, ‘‘क्यों न अपने इस साहब से हम पैसे कमाएं?’’ ‘‘वह कैसे?’’ सरला ने उस से पूछा, तो वह बोला, ‘‘तुम इस साहब के साथ सो जाया करो. यह साहब तुम्हारे साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मुफ्त में ही हम को पैसे मिल जाएंगे. उन पैसों से हम अपने लिए नएनए गहने भी बनवा लेंगे और जरूरत का सामान भी खरीद लेंगे.

‘‘मेरा कितने दिनों से नई मोटरसाइकिल खरीदने का मन कर रहा है, मगर पैसे न होने से खरीद ही नहीं पाता हूं. जब तुम्हें नएनए गहनों में नए कपड़े पहना कर मोटरसाइकिल पर बिठा कर अपने गांव और ससुराल ले जाऊंगा, तो वे लोग हम से कितने खुश होंगे. हमारी तो वहां पर धाक ही जम जाएगी.’’ ‘‘कहीं यह तुम्हारा साहब मुझ से मजे लेने लग गया तो…’’ खूबसूरत बीवी सरला ने अपना शक जाहिर किया, तो वह उसे तसल्ली देते हुए बोला, ‘‘तुम इस बात की चिंता मत करो. वह तुम से मजे नहीं लेगा.’’

पति रामलाल की इस बात को सुन कर बीवी सरला अपने साहब के साथ सोने के लिए तैयार हो गई. शाम को अपने साहब के लिए शराब लाने के बाद रात को चपरासी रामलाल ने अपनी बीवी सरला को उन के कमरे में भेज दिया. साहब जब उस पर हावी होने लगे, तो उसे बड़ी हैरानी हो रही थी, क्योंकि उस के पति ने तो उस से कहा था कि साहब उसे छुएगा भी नहीं, मगर उस का साहब तो उस पर ऐसा हावी हुआ था कि… रातभर में साहब ने उसे इतना ज्यादा थका दिया था कि वह सो न सकी. सरला को अपने पति पर बहुत गुस्सा आ रहा था, लेकिन गुस्से को दबा कर मुसकराते हुए दूसरे दिन अपने पति से वह बोली, ‘‘तुम्हारे साहब ने तो मुझे छुआ भी नहीं. हम ने मुफ्त में ही उन से पैसे कमा लिए.’’ यह सुन कर उस का पति रामलाल अपनी अक्लमंदी पर खुशी से मुसकराने लगा, तो वह उस से बोली, ‘‘मुझे रातभर तुम्हारी याद सताती रही थी. क्यों न हम तुम्हारी बहन नीता को गांव से बुला कर तुम्हारे साहब के साथ सुला दिया करें. ‘‘तुम्हारा साहब उस के साथ कुछ करेगा भी नहीं और उस से मिले पैसों से हम उस की शादी भी धूमधाम से कर देंगे.’’

यह सुन कर रामलाल बीवी सरला की इस बात पर सहमत हो गया. वह उस से बोला, ‘‘तुम इस बारे में नीता को समझा देना. मैं आज ही उसे फोन कर के बुलवा लूंगा.’’ शाम को जब चपरासी रामलाल की बहन नीता वहां पर आई, तो सरला उस से बोली, ‘‘ननदजी, तुम गांव के लड़कों को मुफ्त में ही मजे देती फिरती हो. किसी दिन किसी ने देख लिया, तो गांव में बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम यहीं रह कर हमारे साहब के साथ रातभर सो कर मजे भी लो और पैसे भी कमाओ.’’ यह सुन कर उस की ननद नीता खुशी से झूम उठी थी. रातभर वह साहब के साथ मौजमस्ती कर के सुबह जब उन के कमरे से निकली, तो बहुत खुश थी. साहब ने उसे 5 हजार रुपए दिए थे. कुछ ही दिनों में चपरासी रामलाल अपने लिए नई मोटरसाइकिल ले आया था और अपनी बीवी सरला और बहन नीता के लिए नएनए जेवर और कपड़े भी खरीद चुका था, क्योंकि उस के साहब अपने से बड़े अफसरों को खुश रखने के लिए उन दोनों को उन के पास भेजने लगे थे. एक दिन सरला और नीता आपस में बातें करते हुए कह रही थीं कि उन के साहब तो रातभर उन्हें इतने मजे देते हैं कि उन्हें मजा आ जाता है.

उन की इन बातों को जब चपरासी रामलाल ने सुना, तो वह अपने साहब की इस चतुराई पर हैरान हो उठा था. लेकिन अब हो भी क्या सकता था. रामलाल ने सोचा कि जो हो रहा है, होने दो. उन से पैसे तो मिल ही रहे हैं. उन पैसों के चलते ही उस की अपने गांव और ससुराल में धाक जम चुकी थी, क्योंकि आजकल लोग पैसा देखते हैं, चरित्र नहीं.

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