औस्कर के लिए आधिकारिक भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के रूप में किरण राव निर्देशित और आमीर खान निर्मित फिल्म ‘लापता लेडीज’ के चयन की सोमवार, 23 सितंबर को ‘फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ द्वारा घोशणा की गई, जिस ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं से प्रस्तुत 29 से अधिक फीचर फिल्मों को पछाड़ दिया. लेकिन उसी के साथ ही देश, खासकर सरकारी गलियारों में तहलका मच गया.
सूत्र बताते हैं कि सरकारी तंत्र के बीच चर्चा शुरू हो गई कि जिस किरण राव ने कभी कहा था कि उन्हें भारत में डर लगता है, उसी की फिल्म क्यों चुनी गई? कुछ लोगों को ‘लापता लेडीज’ का चयन राष्ट्रवाद पर हमला लगा. तभी तो महज 20 घंटे के अंदर ही मंगलवार को ‘एन आई न्यूज एजंसी’ ने बताया कि औस्कर के लिए भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के तौर पर रणदीप हुडा की फिल्म ‘‘स्वातंत्रय वीर सावरकर’ का चयन किया गया है. तो वहीं फिल्म वीर सावरकर’ के निर्माता आनंद पंडित ने इंस्टाग्राम पर फिल्म ‘वीर सावरकर’ का पोस्टर साझा करते हुए लिखा, ‘‘सम्मानित और विनम्र. हमारी फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर को आधिकारिक तौर पर औस्कर के लिए प्रस्तुत किया गया है. इस उल्लेखनीय सराहना के लिए भारतीय फिल्म महासंघ को धन्यवाद. यह यात्रा अविश्वसनीय रही है और हम उन सभी के बहुत आभारी हैं जिन्होंने इस रास्ते में हमारा समर्थन किया है.’’
इस के मायने यह हुआ कि भारत की तरफ से एक नहीं दो फिल्में औस्कर के लिए भेजी जाएंगी. जो कि संभव नहीं है. क्योंकि नियम के अनुसार एक देश से एक ही फिल्म आधिकारिक तौर पर ‘औस्कर’ के लिए भेजी जा सकती है. इसलिए ‘वीर सावरकर’ के भी चयन की घेषणा के साथ ही ‘भारतीय फिल्म फेडरेशन’ और औस्कर के लिए फिल्मकार जानू बारूआ की अध्यक्षता में गठित फिल्म चयन करने वाली ज्यूरी के दीमागी दिवालयापन की चर्चांएं होने लगीं.
मंगलवार को फिल्म इंडस्ट्री कई भागों में विभाजित नजर आने लगी. हर किसी के अंदर बैठे डर के चलते कोई बयान देने को तैयार न था, मगर सब इसे सरकार का भारतीय सिनेमा के लिए पतन का गड्ढा खेादने व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा की फजीहत कराना करार दे रहे थे. फिर मंगलवार, 24 सितंबर को ही लगभग 4 घंटे बाद ही फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ के अध्यक्ष रवि कोट्टाकारा ने स्पष्ट किया कि एफएफआई, रणदीप हुडा की स्वातंत्र्य वीर सावरकर द्वारा की गई घोषणा में शामिल नहीं है. ऐसा लगता है कि रणदीप हुडा द्वारा निर्देशित बायोपिक स्वातंत्र्य वीर सावरकर और इस के औस्कर के लिए प्रस्तुतीकरण को ले कर भ्रम की स्थिति है. मतलब यह हुआ कि ‘फिल्म फेडरेशन’ के अध्यक्ष के अनुसार औस्कर में भारत की तरफ से आधिकारिक फिल्म के रूप में केवल ‘लापता लेडीज’ ही जा रही है.
फिर मंगलवार रात 11 बजे न्यूज एजंसी ‘एएनआई’ ने अपनी वेबसाइट से ‘वीर सावरकर’ से जुड़ी खबर को हटा दिया. मगर आनंद पंडित के इंस्टाग्राम पर सब कुछ ज्यों का त्यों बुधवार, दोपहर 2 बजे तक मौजूद है. लेकिन फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया’ के अध्यक्ष रवि कोट्टाकारा के स्पष्टीकरण के बाद से रणदीप हुड्डा और आनंद पंडित के फोन बंद चल रहे हैं. कुछ लोग मान रहे हैं कि राष्ट्रवाद के नाम पर थूथू करवाने के बाद ‘एएनआई’ पर से वीर सावरकर की खबर हटवाई गई. पर सवाल उठ रहे हैं कि 24 घंटे के अंदर जो घटनाक्रम घटित हुए, उस की सचाई क्या है? क्या यह किसी साजिश के तहत किया गया? क्या इस में सूचना प्रसारण मंत्रालय की कोई भूमिका रही है या नहीं रही? इन सारे सवालों की जांच कराई जानी चाहिए क्योंकि इस घटनाक्रम से भारतीय सिनेमा के साथसाथ भारत देश की प्रतिष्ठा पर भी आंच आई है.
‘लापता लेडीज’ का चयन कितना सही, कितना गलत
अकादमी पुरस्कार, वैश्विक सिनेमा में सब से प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक, सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म सहित कई श्रेणियों में फिल्म निर्माण में उत्कृष्टता का सम्मान करता है. हर साल, दुनिया भर के देश प्रतिष्ठित नामांकन हासिल करने की उम्मीद में अपनी सर्वश्रेष्ठ फिल्में जमा करते हैं. औस्कर 2025 के लिए, भारत की आधिकारिक प्रविष्टि किरण राव के निर्देशन में बनी लापता लेडीज है, जो एक ऐसी फिल्म है जो अत्यधिक प्रतिस्पर्धी सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म श्रेणी में देश का प्रतिनिधित्व करेगी. सोमवार को, फिल्म फेडरेशन औफ इंडिया ने आधिकारिक तौर पर लापता लेडीज के चयन की घोषणा की, जिस ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों और भाषाओं से प्रस्तुत 29 से अधिक फीचर फिल्मों को पछाड़ दिया.
‘लापता लेडीज’ के साथ ही 29 फिल्में जूरी के सामने आई थी, जिन में रणबीर कपूर की एनिमल, प्रभास की ‘कल्कि 2898 एडी’, मराठी की ‘घात’, पायल कपाड़िया की कान्स में पुरस्कृत फिल्म ‘औल वी इमेजिन ऐज लाइट’, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘आटम’, मलयालम फिल्म ‘महाराजा’, अजय देवगन की स्पोर्ट्स ड्रामा ‘मैदान’, कार्तिक आर्यन की फिल्म ‘चंदू चैंपियन’, आर्टिकल 370, वीर सावरकार, श्रीकांत, सैम बहादुर माणेकाशा, मनोज बाजपेई अभिनीत जोरम, किल, तेलुगु फिल्म ‘हनु मान’ और गुड लक जैसी फिल्में रहीं. आखिरकार इन नामों में चयन कर ‘लापता लेडीज’ पर मुहर लगाई.
ज्यूरी का मानना है कि किरण राव की लापता लेडीज, ग्रामीण भारत की पृष्ठभूमि पर स्थापित पितृसत्ता की व्यंग्यपूर्ण परीक्षा, वैश्विक दर्शकों के साथ जुड़ने की क्षमता रखती है. लेकिन जोनू बरूआ की जूरी द्वारा ‘लापता लेडीज’ को ‘औस्कर के लिए भारतीय प्रतिनिधि फिल्म के तौर पर भेजने के निर्णय को सही नहीं कहा जा सकता. क्योंकि यह पूरी तरह से नियमों का उल्लंघन है. औस्कर के नियम के अनुसार मौलिक फिल्म ही भेजी जानी चाहिए. लेकिन ‘लापता लेडीज’ पर तो चोरी का इल्जाम है.
‘लापता लेडीज’ के सिनमाघरों में प्रदर्शित हेाते ही फिल्म लेखक, निर्देशक, निर्माता व अभिनेता अनंत महादेवन ने आरोप लगाया था कि ‘लापात लेडीज’ की कहानी उन की 1999 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘घूंघट के पट खोल’ से चोरी की गई है. यह फिल्म दूरदर्शन पर भी प्रसारित हो चुकी है और जब अनंत महादेवन ने आरोप लगाया था, उस वक्त यह फिल्म ‘यूट्यूब’ पर भी मौजूद थी. अंनंत महादेन ने तो यह भी आरोप लगाया था कि ‘लापता लेडीज’ की निर्देशक ने तो उन की फिल्म के कुछ दृष्य व कुछ संवाद तक ज्यों का त्यों चुराए हैं. मगर आमीर खान के दबाव में किसी ने भी अनंत महादेवन का साथ नहीं दिया और दो दिन बाद यूट्यूब ने भी ‘घूंघट के पट खोल’ को अपने चैनल से हटा दिया था.
मगर इस ज्यूरी के सदस्यों से यही उम्मीद की जा सकती है. इस ज्यूरी के सदस्यों में एक नाम निर्माता बौबी बेदी का है, जिन्होंने कभी आमीर खान की फिल्म ‘मंगल पांडे’ का निर्माण किया था. ऐसे में वह आमीर खान का साथ नहीं देंगें तो कौन देगा. ज्यूरी अध्यक्ष व असमिया फिल्मकार जोनू बरूआ की गिनती अलग तरह के फिल्मकारों में होती है. वे हिंदी में ‘मैं ने गांधी को नहीं मारा’ जैसी फिल्म का निर्देशन कर चुके हैं. ज्यूरी के सदस्य व फिल्मकार रवि जाधव विवादास्वद माने जाते हैं. उन की फिल्म ‘‘न्यूड’’ को इफी के पैनोरमा सैक्शन से अंतिम वक्त हटाया गया था.
भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि फिल्म पूरी नहीं थी और इसलिए उस के पास सेंसरशिप प्रमाणपत्र नहीं था. जबकि निर्देशक उस वक्त रवि जाधव ने दावा किया था कि उन्होंने एक ईमानदार फिल्म बनाई है. केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने फिल्म देखने के लिए अभिनेत्री विद्या बालन की अध्यक्षता में एक विशेष जूरी का गठन किया. फिर इसे बिना किसी कटौती के पारित कर दिया गया और ए प्रमाणन दिया गया था. पर बाद में वह पाला बदल चुके थे.
रवि जाधव की फिल्म न्यूड को आगामी भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के भारतीय पैनोरमा खंड से हटा दिया गया था. भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बताया कि फिल्म पूरी नहीं थी और इसलिए उस के पास सेंसरशिप प्रमाणपत्र नहीं था. उस के बाद रवि जाधव अचानक बदल गए और कुछ समय पहले उन्होंने अटल बिहारी बाजपेयी की बायोपिक फिल्म ‘‘मैं अटल हूं’’ का निर्देशन किया था, जिसे दर्शक नहीं मिले. रवि जाधव के पास इतना अनुभव नहीं है कि वह औस्कर के लिए फिल्म का चयन कर सकें. ज्यूरी के अन्य सदस्य ऐसे हैं जिन से मैं स्वं परिचित नहीं हूं. ऐसे में हमें लगता है कि इस बार ज्यूरी सही नहीं बनाई गई है.
क्या ‘लापता लेडीज’ औस्कर लेकर आएगी?
जी नहीं..‘‘लापता लेडीज’’ भारत के लिए औस्कर ले कर आएगी, इस की संभावनाएं कम ही नजर आती हैं. पर आमीर खान व किरण राव को निजी तौर पर फायदा जरुर हो सकता है. ‘लापता लेडीज’ अंमिम 5 में पहुंचेगी, ऐसा हमें नहीं लगता. जबकि आमीर खान की फिल्म ‘लगान’ 2001 में अंतिम 5 तक पहुंच गई थी. पर तब इस फिल्म को ले कर एक माहौल बना हुआ था. जबकि ‘लापता लेडीज’ के साथ ऐसा नहीं है. ‘लापता लेडीज’ ने भारत में भी बौक्स औफिस पर कुछ खास कमाई नहीं की. दूसरी बात फिल्म पर चोरी के जो इल्जाम लगे हैं, उन से ‘औस्कर’ की ज्यूरी के लोग अनभिज्ञ हों, ऐसा नहीं हो सकता.
तीसरी बात ‘औस्कर’ में विजेता बनने के लिए निर्माता को ज्यूरी के हर सदस्य तक अपनी फिल्म पहुंचाने के साथ ही यह आश्वस्त करना होता है कि ज्यूरी के हर सदस्य उन की फिल्म को कोर मेरिट के आधार पर अपना वोट दे. जबकि ज्यूरी का सदस्य फिल्म को वेाट करने के लिए बाध्य नहीं होता है. ऐसे में अमरीका जा कर एकएक ज्यूरी के सदस्य से मिलना और उन्हें फिल्म दिखाना, उन से फेवर पाना आसान नहीं है.
वर्तामन समय में किसी फिल्म को ‘औस्कर’ अवार्ड देने के लिए साढ़े 9 हजार सदस्य वोट डालते हैं. क्या आमीर खान की टीम इतने लोगों तक पहुंच कर उन्हें अपने पक्ष में कर सकती है? हमें इस की उम्मीद कम ही नजर आती है.
लेकिन आमीर खान की फिल्म ‘लापता लेडीज’ औस्कर में गई है, इस का प्रचार होने पर जो ‘हाइप’ बनेगी, उस का फायदा आमीर खान अपनी आगामी प्रदर्शित होने वाली फिल्मों के लिए उठा सकते हैं.
हमें तो यही लगता है कि ‘औस्कर’ के लिए ‘लापता लेडीज’ का चयन कर ज्यूरी ने देश के बारे में नहीं सोचा. अन्यथा वह कांस में पुरस्कृत व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित पायल कपाड़िया की फिल्म ‘औल वी इमेजिन ऐज़ लाइट’ अथवा तीन राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म ‘आटम’ या मलयालम फिल्म ‘महाराजा’ का चयन किया जा सकता था.
फिल्म ‘महाराजा’ ने तो बौक्स औफिस पर सफलता के जबरदसत रिकार्ड बनाए हैं. इतना ही नहीं अब तो यह फिल्म नेटफ्लिक्स पर भी है. इतना ही नहीं ज्यूरी के पास मराठी फिल्म ‘‘घात’’ को भी चुनने का विकल्प मौजूद था. घात मराठी की फिल्म होते हुए भी ‘बर्लिन’ सहित 15 इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा चुकी है. ‘घात; वह फिल्म है, जिसे दर्शकों की मांग पर बर्लिन के तीन बड़े सिनेमाघरों में भी प्रदर्शित किया गया था. इस के अलावा इस फिल्म की विषयवस्तु रोचक है. फिल्म की कहानी महाराष्ट् के आदिवासी इलाके के जंगलों में नक्सलाइट और पुलिस बल के बीच पिस रहे आदिवासी इंसानों की कहानी बयां करती है.