जैसे ही अंगद के बौस चौहान सर ने उस के प्रमोशन की खबर अनाउंस की, सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि प्रमोशन के साथसाथ उसे औफ़िस की तरफ़ से एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में 2 साल के लिए शिकागो भेजा जा रहा था. अंगद की टीमवर्क के नेचर व जौब के प्रति उस की डैडिकेशन की आदत ने सिर्फ़ 2 साल में ही उसे इस प्रमोशन का हक़दार बनाया था. उस के प्रमोशन से सभी बहुत खुश थे.
“वाऊ, यू आर सो लकी अंगद, तेरी तो लौटरी खुल गई, यार,” उस के ख़ास दोस्त नितिन ने उस के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा. उस के कहने पर अंगद थोड़ा सा मुसकराया. “चल, पार्टी दे बढ़िया सी,” नितिन आगे बोला.
तभी चौहान सर अंगद की तरफ आए, “क्या हुआ यंग बौय, इतनी बड़ी ख़ुशख़बरी सुन कर तुम ख़ुश नहीं नज़र आ रहे, एनी प्रौब्लम?”
“नो, नो सर, नथिंग,” कहते हुए न चाहते हुए भी उस की ज़बान लड़खड़ा गई.
“नो, एवरीथिंग इज़ नौट ओके, तुम्हारा चेहरा कुछ कह रहा है और आंखें कुछ और ही बयां कर रही हैं. तुम अपनी प्रौब्लम शेयर कर सकते हो. शायद, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं.”
“ओके सर. थैंक्स, सो नाइस औफ यू.”
“घर जाओ, पार्टी करो और अपनी इस ख़ुशी को एंजौय करो,” चौहान सर ने कहा.
चौहान सर के यह कहने पर अंगद मिठाई का डब्बा ले कर घर पहुंचा और मां को गुड न्यूज़ सुनाई, “मां, तेरी बरसों की मेहनत ने रंग दिखा दिया है. मुझे आज प्रमोशन मिला है और साथ ही, 2 साल के लिए विदेश जाने का मौक़ा भी.”