“धर्म का अविष्कार तब हुआ जब पहला चोर पहले मूर्ख से मिला.” यह बात अमेरिका के उस प्रसिद्ध लेखक ने कही जो अपनी किताबों से ज्यादा अपनी सूक्तियों के लिए मशहूर हुए. नाम मार्क ट्वेन. जन्म तिथि 30 नवंबर 1835. पेशा लेखक, व्यंग्यकार, उद्यमी और प्रकाशक.

मार्क ट्वेन अपनी तीखी चुटकियों के लिए मशहूर थे. धर्म पर अपने बेधड़क विचारों के लिए भी. व्यंग्य के मामले में भारत में ऐसी सिमिलेरिटी थोड़ीबहुत 20वीं सदी में पैदा हुए लेखक हरिशंकर परसाई की भी रही लेकिन मार्क ट्वेन अपने जमाने में हरिशंकर से 21 ही थे. वो संगठित धर्मों के खिलाफ थे और अकसर उन के बारे में लिखते भी थे. उन्होंने कहा था कि, “ईसा अगर आज मौजूद होते तो एक चीज़ कभी नहीं बनना चाहते - ईसाई.”

उन की कही यह बात तो उन सभी धर्मों पर लागू होती है जो खुद को महान बताने पर तुले रहते हैं कि, “मुझे बाइबिल के वे हिस्से परेशान नहीं करते जिन्हें मैं समझ नहीं पाता, बल्कि वे करते हैं जो मुझे समझ आती है.”

मार्क अपने 7 भाईबहनों में छटे नंबर पर थे लेकिन उन में से बचे सिर्फ 3. जिस समय मार्क ने लिखना शुरू किया उस समय उन के शहर मिसौरी में स्लेवरी लीगल थी और उन की राइटिंग्स की थीम स्लेवरी पर होती थीं. उन का मानना था कि समय के साथ स्लेवरी ख़त्म होनी चाहिए. बताया भी जाता है कि ट्वेन सीक्रेटली येल लौ स्कूल में एक ब्लैक की पढ़ाई का खर्चा भी उठाया करते थे और ब्लैक एंटी स्लेवरी रेवोलुशनिष्ट फ्रेडरिक डगलस और औथर बुकर टी का समर्थन किया करते थे.

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