कायदे से तो इस पर लिखा तो करारा व्यंग चाहिए लेकिन दिलचस्पी और हैरानी की तमाम हदें लांघती यह खबर थी कि चीफ जस्टिस औफ इंडिया रंजन गोगोई अपने कार्यकाल के दौरान ही तिरुपति मंदिर पहुंचे थे. वहां उन्होंने सपत्नीक वेंकेटेश्वर के दर्शन किए. हालांकि फोटोग्राफरों का माहौल देखकर लग ऐसा रहा था कि वे दर्शन करने नहीं बल्कि देने पहुंचे थे एक व्यक्ति विशेष से परे देखें तो लोग किसी भी मंदिर में करने नहीं बल्कि दर्शन देने ही जाते हैं क्योंकि पत्थर की मूर्ति तो बेचारी कहीं जाना तो दूर अपनी जगह से हिल भी नहीं सकती इसलिए भगवान जिसे चाहे उसे दर्शनों के लिए बुला लेता है और कहा भी यही जाता है.

जो लोग शिर्डी जाते हैं वे कहते हैं कि बाबा ने बुलाया है जो भक्तगन वैष्णोदेवी जाते हैं वे तो झूमते नाचते गाते कहते हैं कि ‘चलो बुलावा आया है माता ने बुलाया’ है तो इस तरह कोई खुद अपनी मर्जी से देव स्थान नहीं जाता बल्कि इसलिए जाता है कि भगवान ने उसे बुलाया या याद किया होता है.

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शायद श्री रंजन भी उन्हीं विष्णु के अवतार है, जिनके अवतार राम हैं. जिनकी जन्म भूमि के विवाद का  क्योंकि राम भी उन्हीं के अवतार हैं जिनके जन्म स्थान के विवाद के चर्चित मुकदमे का फैसला सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दिया था. तिरुपति का माहौल उनके पहुंचते ही वैदिक कालीन सा हो गया. जस्टिस गोगोई का स्वागत मंदिर ट्रस्ट ने पूरे वैदिक रीतिरिवाजों से किया, वैदिक मंत्रोच्चार भी किया गया और स्वागत भजन भी गाये गए.

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