उत्तर प्रदेश बिजली विभाग में पीएफ यानि प्राविटेंड फंड घोटाले से चर्चा में आई डीएचएफएल को जिस समय अखिलेश सरकार ने पीएफ निवेश के लिये चुना उसकी क्रेडिट रेटिंग 5 स्टार थी. पीएफ के पैसे को निजी सेक्टर में निवेश को सरकार के द्वारा अनुमति प्राप्त है. सरकारी कानून के अनुसार ही पीएफ का पैसा निजी सेक्टर में निवेश किया गया. पीएफ का पैसा निजी क्षेत्र में इस लिये निवेश किया गया क्योंकि निजी बैंक की ब्याजदर अधिक थी.

2017 से जो पैसा डीएचएफएल में निवेश किया गया ब्याज सहित करीब 41.22 सौ करोड़ हो गया था. इनमें से डीएचएफएल ने 18.55 सौ करोड़ रूपये बिजली विभाग को वापस कर दिया. बचा हुआ 22.67 सौ करोड़ रूपए डीएचएफएल इस लिये नहीं दे पाया क्योंकि कोर्ट ने डीएचएफएल के खातों से भुगतान पर रोक लगा दी. सवाल उठाता है कि 2017 में जो डीएचएफएल फाइव स्टार रेटिंग वाली कंपनी थी वह 2019 में दिवालिया कैसे हो गई ?

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डीएचएफएल  के दिवालिया होने की कहानी नोटबंदी और हाउसिंग सेक्टर में आये नये कानूनों से जुड़ी हुई है. 2016 में केन्द्र सरकार ने नोटबंदी की और हाउसिंग सेक्टर के लिए नए नियम कानून बना दिये. डीएचएफएल ने ज्यादातर कर्ज डेवलपर्स सेक्टर में लगाये थे. नोटबंदी और रियल स्टेट में नये कानून बनने से डेवलपर्स कर्ज का पैसा डीएचएफएल को वापस नहीं कर पाए. इससे कंपनी की हालत खराब हो गई. इससे डीएचएफएल में निवेश करने वालों का भरोसा टूटा और उन सभी ने एक साथ अपना जमा पैसा वापस मांगना शुरू कर दिया.

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