फ्री की रेवडि़यां आजकल भारतीय जनता पार्टी और उस के नेता नरेंद्र मोदी की खासा पसंद बनी हुई हैं जिन्हें वे बारबार दोहराते रहते हैं. फ्री चिकित्सा, फ्री बिजली, फ्री बस यात्रा के लालच भारतीय जनता पार्टी की घमासान धार्मिक दानपुण्य की सामाजिक मुहिम का बहुत सही जवाब हैं. भाजपा पौराणिकता वाले सामाजिक गठन पर टिकी है जिस में राज्य अगर कुछ देता है तो सिर्फ ऋषिमुनियों को देता है. पौराणिक गाथाएं उन्हीं राजाओं के गुणगान से भरी हैं जिन्होंने यज्ञ कराए और फिर अंत में ऋषियों को ढेर सारा धन, अनाज, सैकड़ों गाएं, दासियां दीं.
केंद्र सरकार लगातार ऋषियोंमुनियों के लिए नएनए तीर्थ बना रही है. उन तीर्थों तक पहुंचाने के लिए हाईवे बना रही है, हवाई अड्डे बना रही है. नदियों के किनारे धार्मिक व्यापार के लिए घाट बना रही है जहां भक्तों से दान कराया जा सके.
मुफ्त में बिजली देना, मुफ्त में चिकित्सा देना, मुफ्त में शिक्षा देना इस सरकार का उद्देश्य है ही नहीं क्योंकि यह कहीं से हिंदू पौराणिक सोच का हिस्सा नहीं है. मुफ्त पाने वाले लोग हमारे यहां राक्षस प्रवृत्ति के माने गए हैं. यह सोच कि सरकार का काम जनता के लिए कुछ सुविधाएं जुटाना होता है, भारतीय जनता के लिए एक मजबूरी है. भाजपा की केंद्र सरकार व इसी पार्टी की राज्य सरकारें भी जनता को खुश करने के लिए अब कुछ देने को मजबूर हैं.
कर्नाटक में औरतों को मुफ्त बस सेवा, दिल्ली में मुफ्त बिजली व चिकित्सा आदि गैरभाजपा सरकारों ने शुरू की तो भारतीय जनता पार्टी को भी मन मार कर करना पड़ा पर यह नरेंद्र मोदी को हमेशा खलता रहता है और बीचबीच में वे मुफ्त की रेवडि़यां कह कर इन का मजाक उड़ाते रहते हैं. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की लाड़ली बहना कार्यक्रम ऐसे ही हैं.
दुनिया के बहुत से अमीर देशों ने यह फार्मूला अपनाया है कि अमीरों को काम करने की पूरी छूट हो, उन के लिए सुविधाएं हों, उन के लिए सड़कों, हवाई अड्डों का जाल बिछाओ, उन्हें भरपूर कमाने दो ताकि देशों की सरकारें उन के मुनाफे से टैक्स ले सकें और उस टैक्स से गरीबों, आम किसानों, मजदूरों, कर्मचारियों को मुफ्त में सेवाएं दे सकें. अर्थव्यवस्था का यह फार्मूला अरसे से सफल है क्योंकि अमीर अपनी आदत के अनुसार कमाना जानते हैं पर टैक्स देने के अलावा जनता के लिए वे खर्च नहीं कर सकते.
18वीं सदी के बाद धर्म पर बहुत कम देश खर्च कर रहे हैं. जनता पर खर्च कर रहे हैं. भारत सरकार इस का एक बड़ा अपवाद है. इसे सैकड़ों मंदिरों, आश्रमों, आयुर्वेद शास्त्र की नकली शिक्षा देने व कुंभों में पैसा बरबाद करने से कोई दिक्कत नहीं है. जनता को सीधे कुछ दिया जाए, वह रेवड़ी है, खाली बैठे पुजारियों के लिए मंदिर बनाए जाएं, वह जनकल्याण है.