आस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया इस्तेमाल करने पर रोक लगी है. यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब दुनियाभर में युवा और टीनएजर्स इस की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं.

आज सोशल मीडिया सब की जिंदगी का अहम हिस्सा बनता जा रहा है और सोशल मीडिया से हो रहे नुकसान को ले कर दुनियाभर में चर्चा हो रही है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के करीब 519 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. टीनएजर्स समेत करीब 60 फीसदी से ज्यादा युवा सोशल मीडिया के ऐक्टिव यूजर्स हैं.

इसी नुकसान को देखते हुए आस्‍ट्रेलिया की सरकार ने बड़ा और सराहनीय कदम उठाते हुए 16 साल से कम उम्र के बच्‍चों के लिए सोशल मीडिया को बैन करने का फैसला लिया है. आस्ट्रेलियाई सरकार ने फरमान जारी किया है कि देश में 16 साल से कम उम्र के बच्चे का सोशल मीडिया पर कोई अकाउंट नहीं होगा. इस का सीधा सा मतलब है कि स्कूल के बच्चे अब सोशल मीडिया पर अपना कीमती समय नहीं बरबाद करेंगे.
आस्ट्रेलिया के पीएम अंथोनी अलबनीस ने कहा, “यदि ये ऐप्‍स बच्‍चों पर बैन नहीं लगाती हैं तो इन्‍हें भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है. मेरे सिस्टम पर ऐसी चीजें दिखाई देती हैं जिन्हें मैं नहीं देखना चाहता तो एक नासमझ 14 वर्षीय टीनएजर की तो बात ही छोड़िए.”
सोशल मीडिया की वजह से हर देश के नौजवान के फ्यूचर पर बात आ रही है. ऐसे में आस्ट्रेलिया ने यह सराहनीय कदम उठा कर बाकी देशों को इस पर विचार करने लिए मजबूर कर दिया है.

आस्ट्रेलिया में सोशल मीडिया पर लगे बैन की खबर पर भारतीय जनता की राय कुछ इस तरह सामने आ रही है-
‘यह भारत में भी होना चाहिए’.

‘ग्रेट डिसीजन, इस से बच्चों का मानसिक संतुलन बिगड़ता जा रहा है.’
‘ऐसा कानून तो भारत में भी लागू होना चाहिए, अगर आने वाली पीढ़ी को सुधारना है तो यह सब रोकना पड़ेगा’.
‘इस से बढ़िया खबर आज तक नहीं मिली.’
‘फेसबुक, इंस्टाग्राम पर रील देख कर बच्चे और नौजवान अपना फ्यूचर खतरे में डाल रहे हैं, यह नियम भारत में भी जल्दी लागू करो.’

भारत की स्थिति कहीं ज्यादा खराब

देशभर में बाल संरक्षण पर काम करने वाली गैरसरकारी संस्था ‘क्राई’ के एक सर्वे के अनुसार, दिल्ली-एनसीआर में करीब 48 फीसदी टीनएजर्स इंटरनैट की लत से ग्रसित हैं और इस से उन के जीवन पर नैगेटिव असर पड़ रहा है. दिल्ली-एनसीआर में 13 से 18 साल तक के करीब 76 फीसदी बच्चे हर दिन औसतन 2 घंटे इंटरनैट पर बिता रहे हैं. इन में करीब 8 फीसदी किशोर दिन में 4 घंटे इंटरनैट का प्रयोग करते हैं. कुछ किशोर तो ऐसे भी हैं जिन को दिन में 18 घंटे फोन पर बिताने की लत है.
यही वजह है कि भारत में भी टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया के बैन की मांग की जा रही है. टीनएजर्स को सोशल मीडिया के नैगेटिव प्रभाव से बचाना बहुत जरूरी है. उस उम्र में जहां टीनएजर्स को अपने हमउम्रों के बीच घुलनामिलना चाहिए और कुछ क्रिएटिव सीखना चाहिए वे घंटों सोशल मीडिया से चिपके रहते हैं.

पेरैंट्स-टीचर्स की राय

पेरैंट्स का मानना है कि इंस्टाग्राम, यूट्यूब और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म की वजह से टीनएजर्स के फैसले लेने की क्षमता, सोचनेसमझने की शक्ति और टाइम मैनेजमैंट प्रभावित हो रहा है. पेशे से टीचर और 12 और 16 वर्षीया 2 बेटियों की मां साक्षी के अनुसार, “सोशल मीडिया की वजह मेरी बेटियों ने खुद से कुछ सोचना और फैसले लेना बंद कर दिया है. उन की बोलचाल की भाषा तो बहुत ही ज्यादा खराब हो गई है. वे अपने आसपास के लोगों से बातचीत भी न के बराबर करती हैं. बस, अपनी ही दुनिया में मस्त रहती हैं वे.
“उन की बातचीत सिर्फ इस बात पर होती है कि किस ने उन की स्टोरी लाइक की, किस ने कमैंट किया, किस ने फौरवर्ड किया और उन्हें कितने लाइक मिले, क्या मुझे फलां व्यक्ति की फौलो रिक्वैस्ट स्वीकार करनी चाहिए, क्या मुझे फौलो रिक्वैस्ट भेजनी चाहिए, प्राइवेट अकाउंट कब और क्यों अनफौलो करना चाहिए. इन सब में सब से खराब बात यह है कि अगर 5वीं क्लास तक किसी बच्चे का सोशल मीडिया अकाउंट नहीं है, तो उन के फ्रैंड्स के अनुसार वह ओल्डफैशन्ड है.”

क्यों टीनएजर्स के लिए सोशल मीडिया बैन होना चाहिए?

व्‍यवहार में आता है बदलाव : सोशल मीडिया पर ज्‍यादा समय बिताने वाले टीनएजर्स के बिहेवियर में बदलाव दिखाई देता है. ऐसे टीनएजर्स में चिड़चिड़ापन, एंग्‍जायटी, डिप्रैशन, नींद से जुड़ी समस्‍याएं, आत्‍मसम्‍मान में कमी और किसी काम में फोकस न कर पाने जैसी समस्‍याएं देखने में आती हैं. स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के उपयोग से किशोर बच्चे नकारात्मकता के शिकार हो रहे हैं. कुछ टीनएजर्स में तो सोशल मीडिया की वजह से आत्महत्या करने जैसे विचार जन्म ले लेते हैं. एक केस में, 8वीं कक्षा के छात्र ने फेसबुक पर किसी के अपमानजनक मैसेज के कारण आत्महत्या करने का प्रयास किया.

साइबर बुलिंग का खतरा : जब टीनएजर्स जरूरत से ज्‍यादा समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं तब उन के साथ साइबर बुलिंग होने का भी खतरा बढ़ जाता है. साइबर बुलिंग का किशोरों पर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से बुरा प्रभाव पड़ रहा है. टीनएजर्स सोशल मीडिया प्‍लेटफौर्म पर अपनी पर्सनल डिटेल्‍स शेयर करते हैं जिस से फ्रौड करने वाले लोगों तक उन की जानकारी पहुंच जाती है.

मोटापा बढ़ने का खतरा : स्‍क्रीन का बहुत ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने की वजह से टीनएजर्स में मोटापा बढ़ने का खतरा बढ़ता है. जो रोज 5 घंटे से ज्‍यादा समय सोशल मीडिया पर या किसी भी तरह की स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रहते हैं उन के ओवरवेट होने का खतरा कम समय के लिए स्क्रीन यूज करने वालों की अपेक्षा पांचगुना ज्‍यादा होता है.

सोशल मीडिया का एडिक्शन : सोशल मीडिया सब की लाइफ से कुछ इस तरह से जुड़ चुका है कि आजकल के टीनएजर्स तो एक मिनट भी इस के बिना रह नहीं पाते हैं. परिवार और दोस्तों के साथ जुड़े रहने, शौपिंग, फूड, आसपास की हर जानकारी व इवैंट्स के बारे में जानने के लिए भी वे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. देखा जाए तो एक तरह से उन्हें सोशल मीडिया का एडिक्शन हो गया है. वे अपना कीमती समय घंटों तक 15-30 सैकंड की रील्स देख कर बरबाद कर रहे हैं जिस से उन्हें कोई जानकारी नहीं मिलती, सिर्फ समय की बरबादी होती है.
कुछ टीनएजर्स को तो सोशल मीडिया की इतनी बुरी लत लग गई है कि वे टौयलेट में भी बिना मोबाइल लिए नहीं जाते हैं और शायद यही वजह है कि अब उन के पास किसी दूसरे के लिए तो क्या खुद के कामों के लिए भी पर्याप्त समय नहीं है.

कमजोर होता सोशल कनैक्शन : सोशल मीडिया के एडिक्शन के चलते टीनएजर्स का सोशल कनैक्शन काफी हद तक कमजोर होता जा रहा है. जब वे फैमिली मैंबर्स के साथ किसी रैस्टोरैंट में भी जाते हैं तो फूड और्डर करने के बाद से उस के आने तक के समय में भी वे अपने मोबाइल फोन में चैटिंग करते रहते हैं या फिर सोशल मीडिया में फोटोज या रील्स अपलोड करने में लग होते हैं. और तो और, वे लाइफ के डिजिटल होने के चलते वे अपने इमोशन्स रोने, हंसने से ले कर प्यार जाहिर करने तक को भी इमोजी के जरिए व्यक्त कर रहे हैं.
उन की लाइफ जितनी डिजिटल होती जा रही है उन का शरीर उतना ही बीमारियों का घर बनता जा रहा है. आज सोशल मीडिया एडिक्शन को एक बीमारी की तरह ही ट्रीट किया जाने लगा है और सोशल मीडिया का नशा इस कदर टीनएजर्स के सिर पर चढ़ रहा है कि उन का इलाज और काउंसलिंग तक करानी पड़ रही है.

फेवरेट क्रिएटर्स से इन्फ़लुएंस होते टीनएजर्स : सोशल मीडिया के एडिक्टेड टीनएजर्स अपने फेवरेट क्रिएटर्स से इस कदर इन्फ्लुएंस होते हैं कि उन के द्वारा प्रमोट किए गए प्रोडक्टस पर वे आंख बंद कर विश्वास करते हैं और उन्हीं चीजों को खरीदने के लिए पेरैंट्स पर प्रैशर बनाते हैं और अगर डिमांड पूरी नहीं होती तो वे गलत तरीके अपनाते हैं.

सोशल मीडिया से दूरी के फायदे

रुहर यूनिवर्सिटी बोचुम और जरमन सैंटर फौर मैंटल हैल्थ, जरमनी की रिसर्च के अनुसार, सोशल मीडिया से दूरी बनाने से टीनएजर्स को अपना काम करने के लिए ज्यादा समय मिलता है. स्टडी में बताया गया है कि सोशल मीडिया का दिनभर में 30 मिनट कम इस्तेमाल करने से उन की मैंटल हैल्थ और संतुष्टि में सुधार हुआ है जबकि लगातार सोशल मीडिया के इस्तेमाल करने वाले टीनएजर्स को अपने काम पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल होता है.
रिसर्चर्स ने यह भी पाया कि सोशल मीडिया के कम इस्तेमाल से लोगों को काम का बोझ कम महसूस हुआ. साथ ही, ‘खो जाने का डर’ जिसे फोमो यानी फियर आफ मिसिंग आउट के नाम से जाना जाता है, कम हो ग

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