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लौट आओ अपने वतन: विदेशी चकाचौंध में फंसी उर्वशी

लेखक- केशव राम वाड़दे

लंदन एयरपोर्ट पर ज्यों ही वे तीनों आधी रात उतरे, उर्वशी को छोड़ उस के मम्मीपापा का चेहरा एकाएक उतर गया. आंखें नम हो आईं.

एयरपोर्ट पर हर तरफ जगमगाहट थी. चकाचौंध इतनी थी कि रात होने का आभास ही नहीं हो रहा था.

इस चकाचौंध में भी उर्वशी के मम्मीपापा के चेहरों की उदासी साफ झलक रही थी. उर्वशी का रिश्ता तय करने के लिए वे लंदन उसे लड़के वालों को दिखाने लाए थे, लेकिन उन का मन इतना उदास था कि मानो उसे विदा करने आए हों.

सड़क  के दोनों ओर बड़ीबड़ी स्ट्रीट लाइटें, हर चौराहे पर रैड सिगनल, मुस्तैदी से ड्यूटी निभा रही टैफिक पुलिस, साफसुथरी, चौड़ी सड़कों पर दौड़तीभागती लंबीलंबी चमचमाती कारें, बाइक, साइकिलें और विक्टोरिया (तांगे), पैदल यात्रियों के लिए ईंटों से बने फुटपाथ, अनगिनत दुकानें, मौल वहां की शोभा बढ़ा रहे थे.

उस समय लंदन की ठिठुरन वाली ठंड में भी हाफ जींस, टीशर्ट डाले, हर उम्र के कई जोड़े स्टालों पर कोल्डड्रिंक, आइसक्रीम का मजा उठाते दिखे. कहीं कोई तनाव नहीं. सुकूनभरी जीवनशैली चलती दिख रही थी.

विशाल बहुमंजिला इमारतें और उन पर टंगे बड़ेबड़े ग्लोसाइन. रास्ते में कई छोटेछोटे पार्क और उन की शोभा बढ़ाते फुहारे. हर तरफ एक सिस्टम. उर्वशी तो जैसे दूसरी दुनिया में भ्रमण कर रही थी. उस के चेहरे का उत्साह देखते ही बनता था. मन ही मन अनेक सपने संजोए उस ने. अपने वतन से कोसों दूर लंदन में अपने लिए वर देखने आना उर्वशी का उद्देश्य था. वह भारत में अपनी शादी के लिए किसी से भी बात करने में अपनी तौहीन समझती थी. और तो और अपनी मातृभाषा में बात करना भी उसे पसंद नहीं था. गिनती के लड़केलड़कियों से ही उस की मित्रता थी.

उसे लगता कि हर भारतीय गंदगी, आलस्य और बेचारगी में जीता है. भारतीय कामचोर होते हैं. यहां के बड़ेबड़े घोटाले, किसानों की लाचारी और नेताओं के बड़ेबड़े लच्छेदार भाषण? सारा दोष पब्लिक का ही तो है. यहां की सड़कें तो गायभैंसों के लिए बनी हैं ताकि वे सड़क के बीचोंबीच जुगाली कर सकें, धूलधुएं से भरा वातावरण, चूहोंमच्छरों से अस्तव्यस्त जनजीवन. ऊपर से दौड़तेभागते कुत्तों का झुंड. पान की पीकों से रंगी दीवारें, सड़कें,  बेतरतीबी से बने मकान, सोच कर ही उबकाई आने लगती थी उसे.

जमाने से चला आ रहा ‘ओल्ड फैशंड’ धोतीकुरता, सलवारजंपर, ऊपर से दुपट्टा. एडि़यों से ऊपर उठी सिमटीसिकुड़ी साडि़यां और किलो के भाव से लदे सोनेचांदी के जेवर, भला यह भी कोई पहनावा है? न चेहरे पर कोई क्रीम, न बौडीलोशन लेकिन खुद को फैशनेबल मानने वाली ये औरतें? कहीं कोई मैचिंग नहीं. अगर कपड़े ठीकठाक हों तो भी पैरों में फटी खुली जूतियां, जैसे मुंह चिढ़ा रही हों.

जेन ड्राइव कर रहा था. उर्वशी का ध्यान उस की तरफ नहीं था. उस का नाम जेन नहीं था. लेकिन जयदीप से बदल कर उस ने अपना अंगरेजों वाला नाम रख लिया था. पूरे परिवार में मात्र उर्वशी ही थी, जिस ने अपनी सभ्यता, संस्कृति बिलकुल पीछे छोड़ रखी थी. पूरी तरह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर खुद को अंगरेजों जैसा ही बना डाला था उस ने.

शौर्ट स्कर्ट, पैंसिल हील वाले सैंडल, जींस, ब्रेसलेट यही सब उर्वशी को पसंद था. कंधों तक का स्टाइलिश हेयरकट, इंगलिश फिल्मों और पौप म्यूजिक की शौकीन, कांटेछुरी से खाना, एकदम बोल्ड.

भारत में तो उर्वशी को एक भी लड़का पसंद नहीं आया था. यों कहें कि वह किसी भी लड़के को देखनेमिलने में इच्छुक ही नहीं थी. उस की तो इच्छा ही थी कि उस की शादी इंडिया से बाहर ही हो चाहे वह अमेरिका हो, आस्ट्रेलिया या फिर ब्रिटेन ही क्यों न हो, पर वह भारत में शादी नहीं करेगी. चाहे उसे जिंदगी यों ही क्यों न गुजारनी पड़े.

हरियाणा में रहने वाली उर्वशी की बूआ, जो अब मुंबई में थीं और अपनी पंजाबी बोलना नहीं भूल पाई थीं, को उर्वशी की मम्मी सरला ने फोन किया. एक समय था जब बूआजी को उर्वशी की मम्मी से बात करना पसंद नहीं था, लेकिन आज उर्वशी के लिए रिश्ता बताने के लिए उन्होंने फोन किया, ‘‘भाभीजी, तुसी उर्वशी दे ब्याह दी चिंता न करो. चाहो ते इक फोटो भिजवा देवो, मुंडे दी माताजी नू. इक मुंडा हैगा लंडन विच… काफी साल होए, मां हरियाणा दी रहण वाली सी. मां चाहंदी है कि लड़के दा ब्याह हिंदुस्तानी कुड़ी नाल होवे. इस वास्ते मैं फून कीत्ता…’’ बस, इधर बूआ से फोन पर बात हुई और उधर उर्वशी का परिवार लंदन पहुंचा.

जेन को देखते ही उर्वशी को लगा कि जैसे उस के सपनों का राजकुमार मिल गया हो. उस ने उर्वशी का बैग  पिछली सीट पर डाला और तुरंत डिग्गी खोल दी. तब उर्वशी ने देखा कि उस के मम्मीपापा ने अपनेअपने बैग उठा कर डिग्गी में खुद ही रखे थे. थोड़ा बुरा तो लगा था तब उसे. जेन के कहने पर वह आगे की सीट पर बैठी थी.

जयदीप से जेन तक की कहानी लंबी तो नहीं थी. जेन का परिवार हरियाणा का था. 18 वर्ष से वे लंदन में रचबस गए. होश संभालते ही जयदीप ने सब से पहला और बड़ा काम यही किया कि अपना नाम बदल कर जेन रख लिया. साथ ही अपना तौरतरीका व रहनसहन भी बदल डाला. उसे देख कोई कह ही नहीं सकता था कि वह हिंदुस्तानी है.

उर्वशी को एक नजर में वह भा तो गया, पर अभी ढेर सारी जांचपड़ताल जो करनी थी उसे.

घर कालोनी में था और काफी अच्छा भी था. बड़ा सा मेन गेट और गेट के दोनों तरफ एक कतार में नारियल के कई ऊंचेलंबे वृक्ष मकान की शोभा बढ़ा रहे थे. हर कमरा बड़ी तरतीब से सजा हुआ मिला. पर वहां रहने वाले मात्र 2 प्राणी थे. एक उस की मम्मी और दूसरा खुद वह.

चंद मिनटों में उन के सामने जेन की मम्मी ने हिंदुस्तानी भोजन परोसा, उन की मम्मी आनेजाने वाले हर हिंदुस्तानी को खुद खाना बना कर ऐसे ही खिलाती थीं, फिर देर तक हिंदुस्तान में रह रहे खासमखास लोगों के विषय में पूछती रहीं, बतियाती रहीं. वे बड़ी सलीकेदार थीं, व्यावहारिक थीं. उन के मन में कई बातों की पीड़ा थी, दर्द था जो जबान से फूट पड़ा था.

‘‘अब तो जीनामरना, सबकुछ यहीं होगा. अपने वतन की खूब याद सताती है. फिर इस के डैडी ने तो हम से नाता ही तोड़ रखा है. एक अंगरेजन के साथ रह रहे हैं. वह तो अच्छा है जो यह नौकरी कर रहा है. वरना बड़ी खराब जगह है यह और लोग बड़े गंदे हैं. बस, चमकदमक के अलावा और कुछ भी नहीं है यहां. मन तो नहीं लगता, देखो, लड़का क्या चाहता है?’’

फिर थोड़ा ठहर कर, एक लंबी सांस खींची. जब वे बोलीं तो भीतर की कड़वाहट चेहरे पर साफ झलक रही थी, ‘‘अगर अंगरेजन के चंगुल से इस के डैडी मुक्त हो जाएं तो यकीन मानें, यह देश छोड़ अपने वतन लौट आऊंगी. काश, ऐसा हो जाए.’’

जेन और उर्वशी के बीच बातचीत अधिकतर अंगरेजी में ही होती थी. जेन की फर्राटेदार अंगरेजी कभीकभी उर्वशी समझ नहीं पाती. फिर भी वह संभाल लेती. ऐसा नहीं कि जेन हिंदी नहीं जानता था, पर टूटीफूटी. हिंदी बोलतेबोलते न जाने कब अंगरेजी में घुस जाता…

‘‘चलो, तुम्हें घुमा लाऊं,’’ बात दूसरे दिन की शाम की थी. खुशीखुशी उर्वशी ने मम्मीपापा को भी साथ चलने के लिए कहा. सुनते ही जेन आगबबूला हो गया और बोला, ‘‘हमारे बीच इन बुड्ढों का क्या काम? सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. यह तुम्हारा इंडिया नहीं, जहां कहीं भी पूरा परिवार एकसाथ निकल पड़े. यहां का कल्चर, सोसाइटी, कुछ अलग है, तभी तो यह लंदन है.’’

वह अभी और कुछ कहता, तभी सरलाजी उर्वशी को देख कर अपनी आंख हौले से भींचते हुए इशारा कर बोलीं, ‘‘तुम दोनों हो आओ, जयदीप ठीक ही कह रहा है?’’

‘‘मेरा नाम जेन है. जयदीप नहीं. इस घटिया नाम से मुझे फिर न बुलाएं. सो प्लीज, जेन कहा करें,’’ उस ने एतराज जताते हुए कहा.

‘‘ओह, सौरी जेन, आगे से याद रखूंगी,’’ सरलाजी ने सुधार कर उस हिप्पी जेन से क्षमा मांगी. उधर पापाजी  का चेहरा तमतमा उठा. उर्वशी अपनी मम्मी का इशारा समझ जेन के साथ हो ली. तब जेन का व्यवहार उसे जरा भी नहीं भाया था. ऐसा रूखापन?

काफी देर इधरउधर भटकने के बाद वे दोनों डिस्कोथिक गए. आधी रात गए डिस्कोथिक में कईकई जोड़े थिरकते दिखे. कुछ पल वह भी उर्वशी के साथ डांस फ्लोर पर रहा. फिर वह एक अंगरेज युवती के साथ देर तक डांस करता रहा.

उर्वशी जेन को देर तक निहारती रही. उसे समझने का प्रयास करती रही पर विफल रही. अभी वह उस के विषय में सोच ही रही थी कि किसी ने उस के कंधे पर हाथ रखा. वह चौंक पड़ी. सामने एक युवक खड़ा था. वह मुसकराते हुए बोला, ‘‘डांस प्लीज?’’

‘‘वाय नौट,’’ वह उठ खड़ी हुई.

अभी उस ने डांस शुरू किया ही था कि उसे महसूस हुआ कि वह बदतमीजी पर उतर आया है. यही नहीं उस की बदतमीजी लगातार बढ़ती ही जा रही थी. उस ने खुद को  छुड़ाने की कोशिश की, पर अपने को छुड़ा नहीं पाई और जेन से चिल्लाचिल्ला कर मदद मांगने लगी पर जेन ने यह सब देख कर भी अनदेखा कर दिया. जैसेतैसे वह खुद मुक्त हुई और साथ ही उस ने एक जोरदार थप्पड़ उस व्यक्ति के चेहरे पर रसीद कर दिया. अंगरेज थप्पड़ खा कर तिलमिला उठा था.

जोरदार थप्पड़ की झनझनाहट से उस का सिर घूम गया था. वह कुछ भी कर जाता, अगर जेन ने मिन्नतें न की होतीं. काफी देर बाद वह शांत हुआ और जेन को धक्का देते हुए वहां से हट गया. जेन ने इस बात की नाराजगी उर्वशी पर निकाली, ‘‘जानती हो, वह एक गुंडा है. फिर, वह कौन सा निगल रहा था तुम्हें?’’

‘‘तो क्या तुम किसी के साथ हो रहे अन्याय को बस देखते ही रहोगे. विरोध नहीं करोगे उस का? कैसी परवरिश है तुम्हारी?’’ उर्वशी गुस्से में बोली.

‘‘छोड़ो भी, तुम लोगों को जीना आता ही कहां है? हर पल किसी न किसी से उलझते ही रहो बस,’’ जेन बोला.

उर्वशी ने जेन से उलझना उचित नहीं समझा और चुपचाप घर लौट आई. फिर तो रास्तेभर दोनों ने एकदूसरे से बिल्कुल भी बात नहीं की. मम्मीपापा को सोता देख वह भी सोने चली गई.

‘‘कैसा रहा जेन के साथ कल का दिन तुम्हारा?’’ सरलाजी ने उर्वशी से पूछा. उस ने मुंह बिचका दिया. सरलाजी के होंठों पर एक मुसकान तैर गई. एक  शाम को उर्वशी और उस के मम्मीपापा को जेन समुद्र किनारे ले गया.

समुद्रतट पर अंगरेजों का साम्राज्य था. नंगेधड़ंगे, कुछ तो हदें पार कर रहे थे. सरलाजी उर्वशी के साथ थीं इसलिए, बात घुमा कर बोलीं, ‘‘चलो, यहां से… बहुत घूम लिए. फिर मेरी तो सांस भी फूलने लगी है.’’ फिर वे लौटते हुए देर तक न जाने क्याक्या बड़बड़ाती रही थीं. वैसे उर्वशी को समुद्रतट का नजारा जरा भी न भाया था. यहां के लोग सभ्य, सलीके वाले होते हैं, भ्रम टूटने लगा था अब तो.

जेन ने डायनिंग टेबल पर पूछा, ‘‘कैसा लगा हमारा लंदन?’’ उस ने शराब के 2 पैग बना, मम्मीपापाजी को पेश किए. पापाजी के इनकार करने पर उस ने कहा, ‘‘आप इंडिया के लोग शराब नहीं पीते? फिर जीते कैसे हैं?’’ यही वजह है कि भारत हमेशा पीछे रहा है. अब यहां के लोगों को ही देख लें. हर कोई एंजौय करता है. जेन का इतना कहना ही उस के लिए मुसीबत ले आया. अपने को बहुत देर से दबा कर बैठी उर्वशी अपना आपा खो बैठी जैसे सहस्र बिच्छुओं ने उसे एकसाथ काट खाया हो. ऊंची आवाज में वह कहती रही और जेन स्तब्ध खड़ा बस, सुनता ही रहा.

‘‘मैं ने यहां की तहजीब और तमीज अच्छी तरह महसूस कर ली है. बड़ीबड़ी इमारतों और झूठी चकाचौंध के अलावा और कुछ नहीं पाया. यहां बुजुर्गों का तो जरा भी लिहाज नहीं. नग्नता के अलावा और कुछ भी नहीं. जबरन एंजौय का ढोंग. फिर तुम्हारी मम्मी के होते, तुम्हारे पापा ने कितना घृणित काम किया? यही है यहां का कल्चर. औैर बात इतने में खत्म नहीं होती. तुम बुजदिल हो. तुम में इंसानियत नाम की चीज नहीं है. मेरा भारत महान है, महान ही रहेगा. वहां दिखावा नहीं है. सच्चे, सीधेसादे लोग बसते हैं, हमारे वतन में.’’

वह तैश में थी, थोड़ा ठहर कर, पल भर रुक कर बोली, ‘‘जयदीप, तुम भी अंगरेज नहीं हो. नाम बदल लेने से किसी के संस्कार, संस्कृति नहीं बदलती, समझे मिस्टर जेन. तुम भी हिंदुस्तानी हो. इस देश ने तुम में अहम भर दिया है. इस देश में तुम पूरी जिंदगी क्यों न बिता लो, तब भी तुम्हारी यहां कोई अहमियत नहीं है. मेरी यह बात याद रखना.’’

हक्काबक्का जेन स्तब्ध खड़ा सुन रहा था. जेन की माताजी भी सिर झुकाए, शर्म से गढ़ी खड़ी थीं. मम्मीपापा के साथ उर्वशी ने डायनिंग टेबल छोड़ दी. उर्वशी ने महसूस किया कि उस के मम्मीपापा की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बह रही थी. वे खुश थे यह जान कर कि उन की बेटी अब इस लायक हो गई है कि वह अच्छेबुरे की पहचान कर सके और वे लोग उसे नासमझ समझते रहे थे.

बेहद दृढ़ स्वर में उर्वशी बोली, ‘‘हम कल लौट रहे हैं अपने वतन, तुम्हारा लंदन तुम्हें ही मुबारक. एक बात और कि तुम हमें छोड़ने नहीं आओगे.’’

उर्वशी का तमतमाया चेहरा देखने की ताकत जेन में थी ही नहीं, उस ने चुपचाप वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी.

एक बेटी ऐसी भी: जब मंजरी ने उठाया माता-पिता का फायदा

‘‘नानी आप को पता है कि ममा ने शादी कर ली?’’ मेरी 15 वर्षीय नातिन टीना ने जब सुबहसुबह यह अप्रत्याशित खबर दी तो मैं बुरी तरह चौंक उठी.

मैं ने पूछा, ‘‘तुझे कैसे पता? फोन आया है क्या?’’

‘‘नहीं, फेसबुक पर पोस्ट किया है,’’ नातिन ने उत्तर दिया.

मैं ने झट से उस के हाथ से मोबाइल लिया और उस पुरुष के प्रोफाइल को देख कर सन्न रह गई. वह पाकिस्तान में रहता था. मैं अपना सिर पकड़ कर बैठ गई. ‘यह लड़की कब कौन सा दिन दिखा दे, कुछ नहीं कह सकते… इस का कुछ नहीं हो सकता.’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

टीना ने देखते ही अपनी मां को अनफ्रैंड कर दिया. 10वीं क्लास में है. छोटी थोड़ी है, सब समझती है.

पूरे घर में सन्नाटा पसर गया था. मेरे पति घर पर नहीं थे. वे थोड़ी देर बाद आए तो यह खबर सुन कर चौंके. फिर थोड़ा संयत होते हुए बोले, ‘‘अच्छा तो है. शादी कर के अपना घर संभाले और हमें जिम्मेदारी से मुक्ति दे. उस के नौकरी पर जाने के बाद उस के बच्चे अब हम से नहीं संभाले जाते… तुम इतनी परेशान क्यों हो?’’

मैं ने थोड़े उत्तेजित स्वर में कहा, ‘‘अरे, मुक्ति कहां मिलेगी? और जिम्मेदारी बढ़ गई है. जिस आदमी से शादी की है वह पाकिस्तानी है, अब वह वहीं रहेगी. इसीलिए तो उस ने नहीं बताया और चुपचाप शादी कर ली. अब बच्चे तो हमें ही संभालने पड़ेंगे… कम से कम मुझे शादी करने से पहले बताती तो… लेकिन जानती थी कि इस शादी के लिए हम कभी नहीं मानेंगे. मानते भी कैसे. अपने देश के लड़के मर गए हैं क्या? मुझ से तो बोल कर गई थी कि औफिस के काम से मुंबई जा रही है.’’

वे विस्फारित आंखों से अवाक से मेरी ओर देखते रह गए.

‘कोई मां इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती है? उसे अपने बूढ़े मांबाप और बच्चों का जरा भी खयाल नहीं आया?’ मैं मन ही मन बुदबुदाई.

‘‘उफ, यह तो बहुत बुरी बात है. हमारे बारे में न सोचे, लेकिन अपने बच्चों की जिम्मेदारी तो उसे उठानी ही चाहिए… वैसे बच्चे तो हम ही संभाल रहे थे उस के बावजूद उस के यहां हमारे साथ रहने से घर में तनाव ही रहता था. अब कम से कम हम शांति से तो रह सकते हैं,’’ उन्होंने मुझे सांत्वना दी.

‘‘वह तो ठीक है, लेकिन हम भी कब तक संभालेंगे? हमारा शरीर भी थक रहा है. फिर इन का खर्चा कहां से आएगा?’’ मैं ने थके मन से कहा.

यह सुन उन्हें अपनी अदूरदर्शिता पर क्षोभ हुआ तो फिर सकारात्मक में सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘हूं.’’

हमारे कोई बेटा नहीं था. इकलौती बेटी मंजरी, जिसे हम ने कंप्यूटर इंजीनिरिंग की उच्च शिक्षा दिलाई थी, को जाने किस के संस्कार मिले थे. उस का जब दूसरा बच्चा हुआ था, तभी से हम अपना घर छोड़ कर उस के बच्चों को संभालने के लिए उस के साथ रह रहे थे. उस के पिता रिटायरमैंट के बाद भी उसे आर्थिक सहायता देने हेतु नौकरी कर रहे थे.

मंजरी के दोनों बच्चे हमारी ही देखरेख में पैदा हुए थे, पले थे. कई बार हम मंजरी के व्यवहार से आहत हो कर यह कह कर कि अब हम कभी नहीं आएंगे, अपने घर लौट जाते, फिर बच्चों की कोई न कोई समस्या देख कर लौट आते. मंजरी हमारी इस कमजोरी का पूरा लाभ उठाने में नहीं चूकती थी.

हम उसे समझाते तो वह कहती, ‘‘आप लोगों ने जिस तरह मेरी परवरिश की है वैसी मैं अपने बच्चों की नहीं होने दूंगी.’’

वास्तविकता तो यह थी कि वह बिना मेहनत के सब कुछ प्राप्त करना चाहती थी, यह हमें बहुत बाद में ज्ञात हुआ. औफिस से आ कर प्रतिदिन बताना कि आज उस की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई थी. झूठी बीमारियों की रिपोर्ट बनवा कर हमें डरा कर हम से इलाज के लिए पैसे भी ऐंठती थी.

हम सब को इमोशनली ब्लैकमेल करती थी. शुरू में तो मैं भी उस की रिपोर्ट्स देख कर घबरा जाती थी कि उस का और उस के बच्चों का क्या होगा, लेकिन उस के चेहरे पर शिकन भी नहीं होती थी. बाद में समझ आया कि अकसर वह गूगल पर बीमारियों के बारे में क्यों जानकारी लेती रहती थी. नौकरी छोड़ के बिजनैस करना, उस को बंद कर के फिर नौकरी करना यह उस की आदत बन गई थी. घर के कार्यों में तो उस की रत्ती भर भी रुचि नहीं थी. खाना बनाने वाली पर या बाजार के खाने पर ही उस के बच्चे पल रहे थे.

मंजरी ने पहली शादी नैट के द्वारा अमेरिका रहने के लोभ के कारण किसी अमेरिका निवासी से की, जिस में हम भी शामिल हुए थे. बिना किसी जानकारी के यह रिश्ता हमें समझ नहीं आ रहा था. हम ने उसे बहुत समझाया, लेकिन उस पर तो अमेरिका का भूत सवार था. फिर वही हुआ जिस का डर था. कुछ ही महीनों बाद वह गर्भवती हो कर इंडिया आ गई.

शादी के बाद अमेरिका जाने के बाद उसे पता लगा कि वह पहले से विवाहित था, तो उस के पैरों तले की जमीन खिसक गई थी. हम बेबस थे. उस ने एक बेटी को जन्म दिया. हम ने मंजरी की बेटी को अपने पास रख लिया और वह दिल्ली जा कर किसी कंपनी में नौकरी करने लगी.

एक दिन अचानक जब हम उस से मिलने पहुंचे तो यह देख कर सन्न रह गए कि वह एक पुरुष के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही थी. हम ने अपना सिर पीट लिया. हमें देखते ही वह व्यक्ति वहां से ऐसा गायब हुआ कि फिर दिखाई नहीं दिया. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. 4 महीने का गर्भ उस के पेट में पल रहा था, असहाय से हम कर भी क्या सकते थे. अपना घर छोड़ कर उस के साथ रहने को मजबूर हो गए.

महरी ने जब डोर बैल बजाई तो मेरे विचारों का तारतम्य टूटा. किचन में जा कर बरतन खाली कर उसे दिए और डिनर की तैयारी में लग गई. लेकिन दिमाग पर अभी भी मंजरी ने ही कब्जा कर रखा था. सोच रही थी इनसान एक बार धोखा खा सकता है, 2 बार खा सकता है, लेकिन यह  तीसरी बार… मुसलमानों में तो 4 शादियों की स्वीकृति उन का धर्म ही देता है, तो क्या गारंटी है कि… और एक और बच्चा हो गया तो?

आगे की स्थिति सोच कर मैं कांप गई, लेकिन जो उस की पृष्ठभूमि थी, उस में कोई संस्कारी पुरुष तो उसे अपनाता नहीं. जो कदम उस ने उठाए हैं, उस के बाद क्या वह अपने परिवार को तथा अपनी किशोरावस्था की ओर अग्रसर होती बेटी को मुंह दिखा पाएगी? जरूर कोई बहुत बड़ा आसामी होगा, जिसे उस ने अपने चंगुल में फांस लिया होगा. पैसे के लिए वह कुछ भी कर सकती है, यह सर्वविदित था. बहुत जल्दी सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी, कब तक परदे के पीछे रहेगी.

टीना के द्वारा उस को फेसबुक पर अनफ्रैंड करते ही वह समझ गई कि सब को उस के विवाह की खबर मिल गई है और टीना उस से बहुत नाराज है. आए दिन उस का फोन आने लगा. लेकिन इधर की प्रतिक्रिया में कोई अंतर नहीं आया. मैं ने मन ही मन सोचा आखिर कब तक बात नहीं करूंगी? बच्चों के भविष्य के बारे में तो उस से बात करनी ही पड़ेगी.

एक बार उस का फोन आने पर जैसे ही मोबाइल को अपने कान से लगा कर मैं ने हैलो कहा, वह तुरंत बोली, ‘‘टीना को समझाओ… मुझे भी तो खुशी से जीने का हक है. मेरे विवाह से किसी को क्या परेशानी है. अभी भी मैं अपने बच्चों की जिम्मेदारी संभालूंगी. उन्हें किसी चीज की कमी नहीं होने दूंगी, क्योंकि जिस से मैं ने विवाह किया है उस का बहुत समृद्घ व्यवसाय है…’’

मुझे उस का कथन बड़ा ही हास्यास्पद लगा और मैं ने जो उस के वर्तमान पति की हैसियत के बारे में अनुमान लगाया था वह सत्य निकला. फिर एक दिन अचानक बहुत बड़ा सा कूरियर आया, जिस में बहुत महंगे मोबाइल और बच्चों के लिए कपड़े थे और औन लाइन बहुत सारा खाने का सामान, जिस में चौकलेट, केक, पेस्ट्री आदि भेजा था. सामान को देख कर चिंटू के अलावा कोई खुश नहीं हुआ.

एक दिन मंजरी ने हमें अपने बच्चों का वीजा बनवाने के लिए कहा कि एअर टिकट वह भेज देगी और हमारे लिए भी फ्लाइट के टिकट भेजेगी ताकि हम अपने घर लौट जाएं.

यह सुनते ही टीना आक्रोश में बोली, ‘‘नहीं जाना मुझे. आप के पास रहना है, आई हेट हर…’’ चिंटू बोला, ‘‘मुझे जाना है, ममा के पास, लेकिन वे यहां क्यों नहीं आतीं?’’

मैं तो शब्दहीन हो कर सन्न रह गई. थोड़ा मौन रहने के बाद कटाक्ष करते हुए बोली, ‘‘बहुत अच्छा संदेश दिया है तूने… तूने बच्चों को जन्म दिया है, तेरा पूरा अधिकार है उन पर, कानून भी तेरा ही साथ देगी. हम तो केयरटेकर मात्र हैं. हमारा कोई रिश्ता थोड़ी है बच्चों से… पूछे कोई तुम से रातरात भर जाग कर किस ने बच्चों को पाला है. वहां जाने के बाद तो हम इन से मिलने को तरस जाएंगे.

‘‘यदि तुम्हें बच्चों की इतनी चिंता होती तो ऐसा कदम उठाने से पहले सौ बार सोचती. बच्चे प्यार के भूखे होते हैं, पैसे के नहीं. हमारी भावनाओं की तो कद्र ही नहीं है, जाने किस मिट्टी की बनी है तू. मुझे अफसोस है कि  तू मेरी बेटी है, मुझे तुझ पर ही विश्वास नहीं है कि तू बच्चों को अच्छी तरह पालेगी, फिर मैं उस सौतेले बाप पर कैसे कर सकती हूं…’’

‘‘चिंटू जाना चाहे तो चला जाए, लेकिन टीना को तो मैं हरगिज नहीं भेजूंगी. जमाना वैसे ही बहुत खराब है… यदि मैं नहीं संभाल पाई तो होस्टल में डाल दूंगी,’’ मैं ने एक सांस में अपनी सारी व्यथा उगल दी. मेरे वर्चस्व का सब ने सम्मान कर के मेरे निर्णय का समर्थन किया. टीना के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. वह मेरे गले से लिपट गई.

डबल सैलिब्रेशन

जैसे ही अंगद के बौस चौहान सर ने उस के प्रमोशन की खबर अनाउंस की, सारा हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा क्योंकि प्रमोशन के साथसाथ उसे औफ़िस की तरफ़ से एक प्रोजैक्ट के सिलसिले में 2 साल के लिए शिकागो भेजा जा रहा था. अंगद की टीमवर्क के नेचर व जौब के प्रति उस की डैडिकेशन की आदत ने सिर्फ़ 2 साल में ही उसे इस प्रमोशन का हक़दार बनाया था. उस के प्रमोशन से सभी बहुत खुश थे.

“वाऊ, यू आर सो लकी अंगद, तेरी तो लौटरी खुल गई, यार,” उस के ख़ास दोस्त नितिन ने उस के कंधे पर धौल जमाते हुए कहा. उस के कहने पर अंगद थोड़ा सा मुसकराया. “चल, पार्टी दे बढ़िया सी,” नितिन आगे बोला.

तभी चौहान सर अंगद की तरफ आए, “क्या हुआ यंग बौय, इतनी बड़ी ख़ुशख़बरी सुन कर तुम ख़ुश नहीं नज़र आ रहे, एनी प्रौब्लम?”

“नो, नो सर, नथिंग,” कहते हुए न चाहते हुए भी उस की ज़बान लड़खड़ा गई.

“नो, एवरीथिंग इज़ नौट ओके, तुम्हारा चेहरा कुछ कह रहा है और आंखें कुछ और ही बयां कर रही हैं. तुम अपनी प्रौब्लम शेयर कर सकते हो. शायद, मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं.”

“ओके सर. थैंक्स, सो नाइस औफ यू.”

“घर जाओ, पार्टी करो और अपनी इस ख़ुशी को एंजौय करो,” चौहान सर ने कहा.

चौहान सर के यह कहने पर अंगद मिठाई का डब्बा ले कर घर पहुंचा और मां को गुड न्यूज़ सुनाई, “मां, तेरी बरसों की मेहनत ने रंग दिखा दिया है. मुझे आज प्रमोशन मिला है और साथ ही, 2 साल के लिए विदेश जाने का मौक़ा भी.”

मां मानसी के चेहरे पर प्रमोशन की बात सुन कर ख़ुशी की लहर दौड़ गई लेकिन दूसरे ही क्षण 2 साल के लिए शिकागो जाने की बात सुन कर चेहरे पर कई रंग आए और गए.

मानसी अपनी आंखों की नमी छिपाते हुए बोली, “इतने लंबे समय के लिए जा रहा है तो शादी कर के मीरा को भी साथ ले कर जा. वह बेचारी तो तेरे लौटने के इंतज़ार में 2 साल मै सूख कर आधी हो जाएगी.”

“और तुम्हारा क्या मां, तुम भी तो इतने बड़े घर में एकदम अकेली पड़ जाओगी.”

मां चुप रह गई यह सुन कर. अंगद मां की आंखों की नमी देख कर परेशान हो गया, उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में वह क्या निर्णय ले. उस ने मीरा को फ़ोन मिलाया. उसे मालूम था कि मीरा बहुत प्रैक्टिकल है, वह इस परिस्थिति का कोई न कोई हल ज़रूर निकाल ही देगी.

मीरा अंगद की मंगेतर थी. अंगद और मीरा का रिश्ता अंगद के पिता रमाकांत ने अपने दोस्त विश्वनाथ से बात कर के बचपन में ही पक्का कर दिया था. मीरा व अंगद भी युवावस्था तक आतेआते अपने इस रिश्ते को स्वीकार कर चुके थे. मीरा भी एमबीए कर के एक मल्टीनैशनल कंपनी मे मार्केटिंग हैड के पद पर कार्यरत थी.

अंगद के पिता की मृत्यु जब वह 15 साल का था, तभी हो गई थी एक सड़क दुर्घटना में. मानसी के सुखी दांपत्य को दुख की काली छाया ने ढक लिया था. मानसी ने अंगद के सुनहरे भविष्य की ख़ातिर इस दुर्घटना को विधि का विधान मान कर अपने मन को समझा लिया था.

मानसी अधिक शिक्षित नहीं थी. लेकिन व्यावहारिकता व कर्मठता कूटकूट कर भरी थी उस में. बचपन में सीखे बुनाई के हुनर को तराशा. मानसी के हाथ के बने स्वेटर मार्केट के रैडीमेड स्वेटरों को मात देते. मानसी ने मीरा की मदद से अपने इस काम में बुनाई में रुचि रखने बाली कई महिलाओं को जोड़ लिया जिस से मार्केट से मिलने वाले और्डर को सही समय पर पूरा किया जा सके. थोड़ा समय ज़रूर लगा लेकिन कुछ ही दिनों में काम काफ़ी बढ़ गया और सफलता मिलने लगी.

अपने व्यस्त कार्यकारी जीवन में भी उस ने अंगद की हर छोटीबड़ी ज़रूरत का ध्यान रखा और देखतेदेखते अंगद ने इंजीनियरिंग पास कर के एमबीए भी कर लिया व नामी कंपनी हिंदुस्तान लीवर में नौकरी भी मिल गई.

मीरा का अंगद के घर जबतब आनाजाना लगा रहता था. दोनों ही अपनीअपनी हर छोटीबड़ी बात शेयर करते, फ़ोन पर घंटों बात करते और फ्यूचर के रंगीन सपने बुनते. वीकैंड दोनों साथ ही गुज़ारते कभी लौंग ड्राइव पर जा कर तो कभी रोमांटिक फ़िल्म देख कर.

अंगद ने फ़ोन कर के नीरा को अपने प्रमोशन व शिकागो जाने की बात शेयर की तो मीरा ख़ुशी से उछल पड़ी, “ओह, व्हाट अ प्लेजंट सरप्राइज़. मुझ से तो रुका ही नहीं जा रहा. मैं औफ़िस से सीधे तुम्हारे घर आ रही हूं इस ख़ुशी को सैलिब्रेट करने के लिए.”

मीरा के आने पर अंगद ने बताया कि मां चाहती है, शिकागो जाने से पहले शादी कर के तुम्हें भी साथ ले कर जाऊं.

“वह सब तो ठीक है, यदि मैं और तुम दोनों चले गए तो मां बेचारी तो एकदम अकेली पड़ जाएंगी न.”

“हां, मैं भी तो तब से यही सोच रहा था और प्रमोशन व शिकागो की ट्रिप पर जाने की न्यूज़ को एंजौय ही नहीं कर पा रहा था. क्या शिकागो जाने का औफ़र ठुकरा दूं? अंगद ने पूछा.

“अरे नहींनहीं, समय का दरवाज़ा हर समय सब के लिए नहीं खुलता. तुम तो इस मौक़े को लपक लो दोनों हाथों से, बाक़ी सब मुझ पर छोड़ दो. रही मेरी और तुम्हारी शादी की बात, सो मेरी एक शर्त है, मैं तुम से शादी तभी करूंगी जब तुम मां को भी सैटल कर दो.”

“मतलब?” अंगद ने चौंकाते हुए कहा.

“मतलब सीधा सा है, अपनी शादी करने से पहले मां की भी शादी करा दो.”

“यह क्या अंटशंट बोल रही हो. नातेरिश्तेदार सब क्या कहेंगे ये सब सुन कर. कुछ भी बोल देती हो बिना सोचेसमझे. यह कोई उन की शादी करने की उम्र है क्या? तुम भी कभीकभी सिरफिरों जैसी बातें करती हो. मां भला मानेगी शादी के लिए इस उम्र में?”

“आजकल यह सब कोई नई बात नहीं है,” मीरा ने जवाब दिया, “हम तुम तो शादी कर के उड़नछू हो जाएंगे लेकिन मां की तो सोचो. मां आसानी से तो राज़ी नहीं होगी परंतु मैं उन्हें मना लूंगी. और फिर, मां की अभी उम्र ही क्या है, मुश्किल से 50-55 वर्ष के बीच की होगी. सोचो, कितना संघर्ष कर के मां ने तो तुम को इस मुक़ाम तक पहुंचाया है.

“जिंदगी में खुशियों की हक़दार तो वे भी हैं खुशियां और इच्छाएं उम्र की मुहताज नहीं होतीं. हर उम्र के अपने अलगअलग एहसास होते हैं. उन्हें वही समझ सकता है जो उम्र के उस दौर से गुज़रा हो. ज़िंदगी में सुखद लमहों को बारबार जीने की तमन्ना तो कोई हमउम्र ही समझ सकता है. लोग क्या कहेंगे जैसे पूर्वाग्रह से डर कर क्या हम मां की ज़िंदगी में आती खुशियों को नहीं रोक रहे. क्या फ़र्क पड़ेगा किसी को यदि मां बाक़ी की अपनी ज़िंदगी हंस कर गुजारे तो. जिंदगी इतनी कठोर भी नहीं होती की उम्मीद की संभावनाओं को अनदेखा कर दिया जाए.”

मीरा की कही बातों का अंगद पर काफ़ी प्रभाव पड़ रहा था.

“तुम को मेरे पापा के दोस्त शर्मा अंकल याद हैं न. अचानक मीरा ने चहकते हुए कहा, “आंटी के गुज़र जाने के बाद एकदम अकेले पड़ गए थे. फिर बहूबेटे उन्हें अपने साथ ज़िद कर के अमेरिका ले गए. जाने से पहले अंकल यहां की सारी प्रौपर्टी बेच कर गए थे. मन में था कि अब शेष लाइफ बच्चों के साथ उन के पास रह कर ही गुज़ारेंगे लेकिन 6 महीने में ही उन का मोहभंग हो गया. अकेलेपन से तो वहां भी पीछा नहीं छूटा. हालांकि बेटाबहू अपनी तरफ़ से भरसक प्रयास करते लेकिन जौव की मजबूरियां उन्हें बांधे रखतीं. चाहते हुए भी वे दोनों शर्मा अंकल को उतना समय नहीं दे पाते.

“शर्मा अंकल के लिए इस उम्र में वहां की लाइफ़स्टाइल अपनाना मुसीबत सा लगता. काफ़ी सोचविचार के बाद अपने देश इंडिया आने का निर्णय कर लिया, ‘पराधीन सपनेहु सुख नाहीं’ वाली कहावत उन्हें याद आई.

“हां, इंडिया वापस आ कर अपने लिए एक लाइफ़पार्टनर के साथ शेष लाइफ़ गुज़ारने का सपना ज़रूर साथ लाए.

“एक दिन पापा के पास आ कर जब अपने लिए लाइफ़पार्टनर तलाशने की बात की तो पहले तो पापा को उन की बातों पर यक़ीन नहीं हुआ, पापा ने पूछा, क्या तू सच में सीरियस है इस शादी की बात को ले कर?

“उन्होंने कहा, ‘पहले मुझे कुछ दिन कहीं पेइंगगेस्ट बन कर रहने का इंतज़ाम करना होगा, फिर आगे का प्लान पूरा करना है.’

“मैं और पापा उन अंकल की बातें सुन रहे थे, तभी मेरे मन में आइडिया आया, सोचो, तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारा रूम तो ख़ाली हो ही जाएगा और मां अकेली हो जाएंगी. सो, क्यों न शर्मा अंकल को तुम्हारे घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ़्ट करवा दें. घर में रौनक भी रहेगी और मां का अकेलापन भी नहीं रहेगा. दोनों साथ रहेंगे तो मेलजोल भी बढ़ेगा और एकदूसरे की पसंद व नापसंद भी जान जाएंगे. फिर साथ रहतेरहते कौन जाने इन दोनों का मन भी मिल जाए.”

अंगद को मीरा का आइडिया क्लिक कर गया.

अंगद के जाने के बाद मीरा ने उस की मां मानसी से बात कर के शर्मा अंकल को उस के घर में बतौर पेइंगगेस्ट शिफ़्ट करवा दिया. कुछ दिनों तक तो शर्माजी मानसी से सिर्फ जरूरतभर की ही बातचीत करते, जिस का जवाब मानसी हां या हूं में ही देती.

मानसी सरल स्वभाव की महिला थी. उसे बेवजह किसी से बात करना पसंद नहीं था. शायद, इस का कारण उस की परिस्थितियां थीं. उस का अधिकांश समय अपनी बुनाई के और्डर पूरा करने में ही व्यतीत होता.

शर्माजी को मानसी का ऐसा व्यवहार नागवार लगता. वे चाहते कि मानसी उन से खुल कर बातचीत करे, उन के साथ हंसेबोले, घूमने जाए. इस के लिए शर्माजी मानसी को विदेश का उदाहरण दे कर बताते कि वहां लोग लाइफ को कैसे एंजौय करते हैं.
एक दिन वे बोले, “मानसी, तुम को अपनेआप को सिर्फ काम में ही नहीं मगन रहने देना चाहिए. यू नो, मानसी, लाइफ में एंजौयमैंट भी बहुत जरूरी है. तुम अपनी इस बोरिंग लाइफ से बाहर निकलो. घर के पास की टौकीज में एक पुरानी मूवी लगी है ‘हम दिल दे चुके सनम.‘ मैं ने कल के 2 टिकटें बुक
करवा लिया है. कल हमतुम दोनों पहले मूवी देखने जाएंगे, फिर किसी अच्छे रैस्तरां में डिनर करेंगे. तुम अच्छी तरह तैयार हो कर चलना.”

मानसी को शर्माजी का उस की लाइफ में इस तरह घुसते जाना व जिंदगी जीने के बारे में समयसमय पर अपने सुझाव देना नागवार लगने लगा. हद तो तब हो गई जव शर्माजी एक दिन बाहर से पी कर लौटे और घर में घुसते ही उन्होंने मानसी का हाथ पकड़ लिया. उस समय मानसी ने उन को धक्का दे कर अपनेआप को
बचाया और अपने रूम में जा कर दरवाजा बंद कर लिया.

मानसी उस पूरी रात सो न सकी. उस ने मन ही मन शर्माजी को अपने घर से निकालने के बारे में सोचा. दूसरे दिन जव वह अपने बुनाई का औडर देने दुकान पर गई तो उस दुकान के मालिक ने उसे टोका, “क्या बात है, आप कुछ परेशान लग रही हैं. यदि आप चाहें तो अपनी समस्या मुझ से शेयर कर सकती हैं.”

मानसी चूंकि उस दुकानदार को अच्छी तरह जानती थी, क्योंकि बुनाई का व्यवसाय शुरू करने में इन मिस्टर यादव ने काफी मदद की थी, सो यादवजी से घरेलू ताल्लुकात हो गए थे. मानसी ने शर्माजी के अव तक के व्यवहार के बारे में सारी बातें यादवजी को बता दीं, साथ ही, यह इच्छा भी जाहिर कर दी कि वह अब
शर्माजी को अपने घर से निकालना चाहती है.

मिस्टर यादव के उस शहर में कई बड़े शोरूम थे, उस का उठनाबैठना कई रसूखदारों से था. उस ने मानसी को विश्वास दिलाया कि इस शर्मा नाम की मुसीबत से छुटकारा दिलाने में वह उस की पूरी मदद करेगा.

वादे के मुताबिक यादव ने शर्माजी को मानसी के घर से निकलवा दिया. यादव 45-50 वर्ष की उम्र का आदमी था, सो अब मानसी के घर उस का आनाजाना बराबर लगा रहता. यादव की पत्नी एक फैशनेबल महिला थी, किटी, जिम, मौल में शौपिंग व सैरसपाटा उस की आदतों में शामिल था. यादव का मानसी के घर आनाजाना लगा रहता, कभी पत्नी के साथ तो कभी अकेले भी आ जाता. मानसी उस के एहसान तले दब सी गई थी, सो कुछ कह भी न पाती.

अड़ोसपड़ोस के लोगों ने जब यादव को इस तरह खुलेआम उन के घर आतेजाते देखा तो उन को यह सब अच्छा नहीं लगा. यादव की फैशनपरस्त बीवी ने मानसी को अपने साथ ले जा कर किटी पार्टी था मैंबर बनवा दिया था. इतना ही नहीं, वह अपने साथ मानसी को शौपिंग करवाने के लिए मौल भी ले जाने लगी. देखा जाए तो मानसी एक तरह से उन के हाथों की कठपुतली सी बन गई थी. यादव ने व्यावसायिक रूप से उस की इतनी मदद की थी कि वह कुछ कह ही न पाती.

जब मीरा को इन सब बातों का पता चला तो उस ने इस बाबत अंगद से फोन पर बात कर के सारा हाल उसे बताया. अंगद ने सारी बातें सुनने के बाद कहा, “मीरा, क्या टैलीपैथी है मेरेतुम्हारे बीच, इनफैक्ट मैं भी अब चाहता हूं कि मां का घर भी बसा ही दूं ताकि आसपड़ोस वालों की उंगलियां उठनी बंद हो जाएं.

“यहां मेरी मुलाकात मेरे बचपन के दोस्त समीर से अचानक हुई. वह भी अपने डैड के अकेलेपन को दूर करने के लिए किसी जानपहचान में शादी करवा के उन का घर फिर से बसाना चाहता है.

“मैं ने मां की बाबत जब सबकुछ बताया तो वह बहुत खुश हुआ, कहने लगा, ‘अरे, हम दोनों तो एक ही कश्ती में सवार हैं, फिर देर किस बात की, जल्द से जल्द हम दोनो इंडिया आने का प्रोग्राम बनाते हैं. अब तो मेरे डैड व तेरे सिर पर सेहरा एकसाथ ही बंधेगा.’ यानी, डबल सैलिब्रेशन.” और मीरा सैलिब्रेशन की तैयारी में जुट गई.
***

पन्ने पैनड्राइव के

एक बार देखने पर रीवा को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ. सो उस ने दोबारा दर्पण में देखा और पूरा ध्यान अपनी आंख के उस कोने पर केंद्रित किया जहां पर उसे संदेह था, क्या त्वचा की यह सिकुड़न उस की बढ़ती आयु को दिखा रही है, कहीं यह झुर्री तो नहीं है? हां, यह झुर्री ही तो है.

‘खुश रहा करो, तनाव लेने से ऐसी झुर्रियां आती हैं चेहरे पर,’ यह सुना था रीवा ने लेकिन तनाव तो वह लेती नहीं.

‘बहुत से तनाव लिए नहीं जाते पर वे हमारे अंतर्मन में इस तरह बैठे होते हैं कि चेहरे पर अनजाने में ही अपनी छाप छोड़ जाते हैं,’ कहा था एक बार रीवा की सहेली सिमरन ने.

‘कोई बात नहीं, अब हम और भी अनुभवी कहलाएंगे इस हलकी सी झुर्री के साथ,’ 48-वर्षीया रीवा ने मुसकराते हुए अपनेआप से कहा.

रीवा की आयु भले ही बढ़ गई हो पर उस के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का भंडार था. गिलास आधा खाली या भरा में से उस ने सदैव ही भरे गिलास को चुना था. जीवन की हार को भी अच्छे शब्दों में परिभाषित कर के उसे एक अच्छा आयाम दे देना रीवा के व्यक्तित्व का मुख्य हिस्सा था.

अभी रीवा आईने के सामने से हट नहीं पाई थी कि उस का मोबाइल बज उठा. मोबाइल पर एक निश्चित रिंगटोन के बजने से ही रीवा को पता चल गया था कि यह फोन सुबाहु का था. रीवा जब तक मोबाइल उठाती तब तक मोबाइल कट गया पर रीवा के डायल करने से पहले ही दोबारा कौल आ गई, उधर से सुबाहु का व्यग्र स्वर था-

“क्या आंटी, आप ने आने में इतनी देर कर दी, हम सब कब से आप का वेट कर रहे हैं. और कितनी देर लगाओगी आप?”

सुबाहु और भी लंबी शिकायत करता पर रीवा ने बीच में ही टोक कर कहा कि अभी उसे 15 मिनट और लगेंगे. सुबाहु का हताशाभरा स्वर “ओह नो” रीवा के कानों में सुनाई दिया, जिसे सुन कर  बिना मुसकराए नहीं रह सकी वह, मोबाइल रख कर वह झटपट तैयार होने लगी.

रीवा को लखनऊ शहर के बाहरी इलाके में बने रिजौर्ट गोमती राइड में पहुंचना था जहां पर सुबाहु का 25वां जन्मदिन सैलिब्रेट होना था. सुबाहु अपनी मम्मी रेवती और पापा अभिराज के साथ पहुंच चुका था.

रीवा के वहां पहुंचते ही सुबाहु का चेहरा खिल गया और उस ने लपक कर रीवा का स्वागत किया. रेवती और अभिराज से मिलने के बाद सुबाहु ने अपने दोस्तों से भी रीवा को मिलवाया और केक काटने के बाद जब गिफ्ट देने की बारी आई तो रीवा सुबाहु को गोमती राइड के लौन में ले गई जहां पर एक शानदार कवर से ढकी थी एक चमचमाती स्पोर्ट्स बाइक. सुबाहु बाइक देख कर खुशी से चीख पड़ा. अभी वह ठीक से खुश भी नहीं हो पाया था कि अभिराज ने रीवा से इतना महंगा गिफ्ट देने के लिए नाराज़गी जताई.

“कुछ भी महंगी नहीं, सुबाहु के शौक के आगे इस बाइक की कीमत कोई माने नहीं रखती,” रीवा ने कहा तो अभिराज प्यारभरी कसमसाहट में पड़े दिखाई दिए पर कुछ कह नहीं सके. पत्नी रेवती और रीवा एकसाथ खड़े मुसकरा रहे थे. सुबाहु बाइक स्टार्ट कर चुका था. सारे दोस्त सुबाहु से मन ही मन रश्क कर रहे थे.

सुबाहु ने जब से होश संभाला है तब से रीवा आंटी को मेहता परिवार की फैमिलीफ्रैंड के रूप में ही जाना, जो उस परिवार के हर सुख और दुख में शामिल होती थी.

सीबीडी बैंक में मैनेजर के पद पर काम करने वाली रीवा, मेहता परिवार की नई गाड़ी की प्लानिंग में शामिल होती तो पिकनिक में भी साथ होती. खूबसूरत और अपने जीवन में  एक सफल महिला होने के बावजूद रीवा ने शादी क्यों नही की, यह बात बहुत से लोगों को समझ नहीं आती थी. सुबाहु भी उन में से एक था और उस ने कई बार अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश भी की पर हर बार रीवा ने उस के प्रश्न को टाल दिया.

सुबाहु भी अपने जीवन के हर छोटेबड़े काम में रीवा की सहायता लेता था फिर चाहे वह कालेज के ऐनुअल डे की स्पीच हो या फिर किसी प्रोजैक्ट का. रीवा भी व्यस्त होने के बावजूद बड़े मनोयोग से सहायता करती थी सुबाहु की.

उस दिन सुबाहु देरशाम रात 8 बजे  रीवा के फ्लैट पर पहुंचा. वह काफी परेशान लग रहा था. जब उस की परेशानी रीवा ने जाननी चाही तो उस ने बताया कि उसे उस के क्लास में साथ पढ़ने वाली एक बहुत सुंदर लड़की से प्यार हो गया है.

“बधाई हो भाई, तुम्हें प्यार हुआ. इस में हैरान और परेशान होने वाली बात क्या है?” रीवा ने चुटकी लेते हुए कहा तो सुबाहु ने अपनी प्रौब्लम बताते हुए कहा, “वह लड़की बहुत सुंदर है और उसे इस बात का गुमान भी है. कालेज का हर लड़का उस पर डोरे डाल रहा है. वह मेरी अच्छी फ्रैंड है. मैं उस से अपनी प्रौब्लम्स शेयर करता हूं पर उस की बातों से लगता है कि वह मेरी  25 और उस की 23 वर्ष की आयु को विवाह के लिये ठीक नहीं मानती और पहले अपना कैरियर बनाना चाहती है.”

रीवा बड़े ध्यान से सुबाहु की सारी बातें सुनीं. उस ने सुबाहु से कुछेक सवाल किए, मसलन वह उस लड़की को कब से जानता है, वह उसे क्यों पसंद है इत्यादि. जो उत्तर सुबाहु ने उसे दिए उस के आधार पर रीवा ने जो फैसला सुनाया वह सुबाहु को बड़ा नागवार गुज़रा था.

रीवा ने कहा कि कुछ दिनों की जानपहचान और शारीरिक सुंदरता को देख कर होने वाला प्यार अकसर ही आभासी प्यार होता है. उस में व्यग्रता तो होती है पर स्थायित्व नहीं होता. जोश और जनून तो होता है पर गहराई नहीं होती.

रीवा की बातें सुबाहु को समझ नहीं आ रही थीं. उस ने मुंह बना कर कहा कि प्रेम तो प्रेम होता है, असली और नकली क्या?

“अकसर ही नकली चीजें असली चीजों से भी ज्यादा असली लगती हैं,” रीवा ने मुसकराते हुए कहा तो सुबाहु खीझ उठा, बोला, “आप ने अब तक शादी नहीं की पर प्यार तो किया होगा न, तो क्या वह नकली प्यार था या कोई ऐसा था जो आप को धोखा दे कर चला गया, तो क्या आप पहचान पाईं असली और नकली प्यार को?”

सुबाहु के इन तीखे सवालों पर रीवा का जी चाहा कि वह इन सब बातों का उत्तर दे दे पर नाजुक विषय और सुबाहु के इमोशन देख कर फिलहाल चुप रह जाना पड़ा था उस को. सुबाहु अभी भी प्यार के जनून में तो था पर उसे भी लगा कि वह थोड़ा अधिक बोल गया है.

कुछ देर की खामोशी के बाद रीवा सहज होते हुए बोली कि अभी वह घर चला जाए, सुबह इस मैटर पर बात होगी.

सुबाहु वापस लौट आया था पर उस ने रीवा के दबे जख्मों को कुरेद दिया था जिस से अब दर्द की टीस उठनी शुरू हो गई थी और वह टीस चीखचीख़ कर अपना दर्द किसी दूसरे को बताना चाहती थी.

रीवा ने किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही सुबाहु से मिलने के लिए उस के घर जा पहुंची. रेवती और अभिराज उसे देख कर थोड़ा चौंके.

रीवा सीधा सुबाहु के कमरे में गई और उसे एक पैनड्राइव देते हुए कहा, “असल में इस पैनड्राइव के अंदर मेरी डायरी के कुछ ऐसे राज़ हैं जिन्हें मैं अपनी डायरी पर लिखती थी, सोचती थी समय मिलने पर इन्हें किताब का रूप दूंगी पर दे नहीं सकी. इस पैनड्राइव में स्टोर डायरी के पन्ने तुम्हें प्रेम की सही परिभाषा समझाने में मदद करेंगे.”

रीवा का यह रूप देख कर अभिराज और रेवती दोनों की आंखों में कई सवाल उभर आए थे और सारे सवाल मिल कर यही कह रहे थे कि नहीं, रीवा, ये सब उसे बताना ठीक नहीं. पर रीवा भला कहां सुनने वाली थी, वह हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई. अभिराज शांत खड़े थे, उन्होंने इशारे से रेवती को भी शांत रह कर अपना काम करने को कहा.

सुबाहु उस पैनड्राइव में स्टोर बातों को पढ़ने के लिए बहुत व्यग्र हो रहा था. उस ने अपने लैपटौप में पैनड्राइव लगा दी और बिस्तर पर लेट कर लैपटौप बगल में रख लिया और जो कुछ लैपटौप की स्क्रीन पर आया उसे बड़े धयान से वह पढ़ने लगा. जैसेजैसे वह पंक्तिदरपंक्ति पढ़ता गया वैसेवैसे ही उसके चेहरे पर कई रंग बदलते गए और उत्सुकता की चरमसीमा पर पहुंचने लगा. सुबाहु से लेटा न जा सका. उस की रीढ़ की हड्डी में चेतना और व्यग्रता का संचार तेज़ी से हो रहा था, वह उठ कर बैठ गया.

‘पर इतना सब कैसे हो सकता है? और मुझे इस बात का बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं लग सका?’ अगली सुबह नाश्ते की टेबल पर मां से यही सवाल था सुबाहु का.

“मां, रीवा आंटी की पैनड्राइव से मुझे पता चल चुका है कि आप तीनों ने मुझ से बहुतकुछ छिपाया. आप तीनों में एक अद्भुत रिश्ता है. रीवा आंटी और पापा एक दूसरे से कालेज के समय से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे पर रीवा आंटी की दूसरी जाति यानी बढ़ई जाति के होने से पापा के घरवालों को एतराज़ था जिस के कारण वे दोनों शादी नहीं कर पाए पर पापा और रीवा आंटी की दोस्ती अब तक कायम है,” सुबाहु किसी कथाकार की तरह सबकुछ वर्णित कर रहा था और रेवती शांति से उसे सुने जा रही थी.

“रीवा आंटी का हमारे घर में इतना इन्वौल्वमैंट? आई मीन, आप ने पापा की पत्नी होते हुए भी किसी दूसरी औरत को घर में और हमारे जीवन में दखल सहन कैसे कर लिया?” सुबाहु चुप हो गया था पर एक प्रश्नचिन्ह उस के चेहरे पर तैर रहा था.

रेवती ने अब बोलना ठीक समझा और सुबाहु को बताया कि जब उस की शादी अभिराज से हुई तो किसी भी अन्य लड़की की तरह उस के अरमान भी आसमान छू रहे थे पर ये अरमान तब धड़ाम हो गए जब एक रात को अभिराज ने खुद ही अपने और रीवा के रिश्ते के बारे में उसे बता दिया. वह सदमे में आ गई थी कि उस का पति पहले से किसी लड़की के प्रेम में रंगा हुआ है, ऐसे में उस का प्रेम फीका ही रह जाएगा और वह अपने हिस्से के प्रेम और अधिकार की मांग करते हुए अभिराज से विवाद कर वैठी. अभिराज से उस ने कई हफ्तों तक बात ही नहीं की. विवाह के तुरंत बाद पत्नी से मनमुटाव हो जाए, तो उस का असर पूरे घर पर होता ही है, अभिराज भी तनाव में रहने लगे थे. उन्होंने उसे मनाना चाहा पर वह न मानी.

रेवती पुरानी यादें बता रही थी पर इस समय उस के चेहरे पर बीती बातों का कसैलापन नहीं दिख रहा था बल्कि एक असीम शांति छाई हुई थी. रेवती ने आगे बोलना शुरू किया, “मैं अभिराज के साथ रिश्ता तोड़ देती अगर उस दिन रीवा ने घर आ कर मुझे न समझाया होता कि प्रेम के सही माने क्या होते हैं.

“रीवा के शब्दों में- ‘जब 2 लोग आपस में प्रेम करते हैं तो उन का प्रेम एकदूसरे के ह्रदय को स्पर्श तो करता है पर इस का मतलब यह नहीं होता कि उन्होंने एकदूसरे के शरीरों को भी स्पर्श किया है.’

“रीवा की इस बात से मैं थोड़ा नरम हुई थी. इस के बाद रीवा अकसर मुझ से मिलने के लिए घर आने लगी. वह अकसर ही हरवंशराय बच्चानजी की कविता की पंक्तियां दोहराती कि ‘जो बीत गई सो बात गई’ और बड़े जोशीले अंदाज़ में कहती, ‘लेट्स मूव औन, यार.’

“उस की बातों में कभीकभी बनावटीपन भी लगता था पर एक बार जब मुझे मेरे ममेरे भाई की शादी में मायके जाना था पर उस समय अभिराज अपना नाम और कैरियर बनाने में व्यस्त थे और चाहते थे कि मैं उन के साथ रहूं और काम की व्यस्तता में उन का ध्यान रखूं तो रीवा ने मुझे सपोर्ट करते हुए अभिराज से कहा कि शादी के शुरुआती कुछ दिनों में लड़की को अपने मायके आनेजाने से नहीं रोकना चाहिए क्योंकि इन दिनों में लड़कियों के मन में मायके का प्रेम हिलोरें मारता रहता है.

“रीवा की इस बात से मेरे मन में उस के लिए थोड़ी जगह बनी तो बाकी जगह उस ने गुजरते वक्त के साथ बना ली, जैसे मेरी तबीयत खराब होने पर मेरे सिरहाने बैठी रहती और एक नर्स की तरह मेरा ध्यान रखती. जब तुम गर्भ में आए तब भी वह परछाई की तरह मेरे साथ और पास रही. कभीकभी अभिराज से मेरी वकालत करते करते वह लड़ जाती और वुमेनहुड को सपोर्ट करती.

“उस का मेरी तरफ यह झुकाव भी मुझे असहज बना रहा था. मुझे लगा कि उस का मेरे घर यों आनाजाना और मुझे एक दोस्त की तरह ट्रीट करना कहीं उस का कोई निजी स्वार्थ या प्रयोजन तो नहीं,’ रेवती की बातों को बड़े धयान से सुन और समझ रहा था सुबाहु.

“‘क्यों करती हो ऐसा? क्या महान बनना चाहती हो अभिराज की नज़रों में?’ मैं लगभग चीख कर बोली थी रीवा से लेकिन इस बात का उस ने बड़ी शांति से उत्तर दिया, ‘मुझे गलत मत समझो, रेवती. तुम अगर कहो तो अभिराज की तरफ देखूंगी भी नहीं और मैं यहां आना बंद कर दूंगी पर फिर भी बताना चाहूंगी कि मैं यहां क्यों आती हूं?’ और फिर उस ने मुझे अपनी लिखी पंक्तियां सुनाईं जो उस ने कभी अभिराज के लिए लिखी थीं-

‘हां यह सच है कि मैं तुम से प्रेम करती हूं

पर प्रेम की परिणीति विवाह हो, 

यह आवश्यक तो नहीं

ज़रूरी तो प्रेम है

जो बेशर्त है, निस्वार्थ और निश्च्छल,

तुम्हें बताऊं

तुम्हारे सिवा अब मुझ को कोई और नहीं भाएगा 

मेरे जीवन में अब कोई और न आएगा

और हां,

मैं तुम्हारी हर चीज़ से प्रेम करती रहूंगी

यहां तक कि

तुम्हारी बाकी सब प्रेमिकाओं से भी.’

“रीवा की इन पंक्तियों ने मेरा मन साफ कर दिया था. मेरी रीवा के प्रति सारी ईर्ष्या तिरोहित होती जा रही थी भले ही अभिराज से मेरा विवाह हुआ है पर उस से सच्चा प्रेम तो रीवा ने ही किया है. मैं रीवा के सामने अपनेआप को काफी छोटा महसूस कर रही थी और इसी कारण मैं उसे एक सौतन नहीं बल्कि एक अच्छी दोस्त के रूप में स्वीकार कर पाई और आज रीवा हम सब की अच्छी फैमिलीफ्रैंड है.”

रेवती खामोश हो गई, अभिराज चाय के घूंट लेने लगे थे. सुबाहु के मन के अंदर रीवा की एक नई इमेज बन गई थी जो पहले से बहुत अलग थी. वह काफीकुछ समझ गया था और उस के कई सवालों के उत्तर भी मिल गए थे.

कुछ दिनों तक उस ने रीवा आंटी से कोई संपर्क नहीं किया. एक दिन उस ने रीवा आंटी को फोन किया और अपनी बाइक ले कर रीवा को पिक करने उस के बैंक पहुंच गया और उसे ले कर सीधा अपने घर पर आ गया जहां पर रेवती और अभिराज पहले से ही रीवा और सुबाहु का वेट कर रहे थे.

रीवा की आंखों में कई प्रश्न तैर रहे थे, जल्द ही उसे इन सब के उत्तर मिल गए. सुबाहु ने रीवा को सुनहरी जिल्द में लिपटी हुई एक पुस्तक भेंट की. रीवा ने किताब को देखा, किताब का शीर्षक था- ‘परिभाषा प्रेम की’.

रीवा समझ गई थी कि पैनड्राइव के डिजिटल और व्यक्तिगत पन्नों को किताब के रूप में लाने का साहस रीवा तो नहीं कर पाई थी पर वह काम सुबाहु ने कर दिखाया.

“आंटी, आप से ही मैं ने जाना है कि प्रेम किसी को जबरदस्ती पाने का नाम नहीं है बल्कि दूसरे के प्यार में अपने प्रेम को ढूंढ लेना ही सच्चा प्यार है. आप से पापा का मिलन नहीं हो सका पर आप ने उन के परिवार से दोस्ताना निभा कर इस रिश्ते को नई पहचान दी है. और तो और, मेरी दोस्त बन कर भी आप ने मुझे कई गलत रास्तों में पड़ने से बचाया.”

सुबाहु इमोशनल होता, इस से पहले ही रीवा बोल पड़ी, “मैं यह अनोखा रिश्ता निभा सकी, इस का असली श्रेय जाता है रेवती को, क्योंकि कोई भी पत्नी अपने पति के शादी से पहले के रिश्ते से द्वेष ही रखती है पर रेवती ने न केवल मुझे अपने दिल में जगह दी बल्कि अपने परिवार के मैंबर की तरह रखा. हमारे इस आपसी प्रेम का शीशमहल इसीलिए खड़ा हो सका क्योंकि इस के सभी स्तंभों ने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई है.”

अभिराज बड़ी देर से खामोश खड़े थे, बोल पड़े, “अरे भाई, इस पूरी पिक्चर में इस असली हीरो को भी तो याद कर लो तुम लोग.”

अभिराज के इस नाटकीयताभरे कथन पर सब लोग हंस पड़े थे. रीवा ने सब को एकपास इकट्ठा कर लिया. वह सब की सैल्फी लेना चाहती थी. सभी ने मोबाइल की तरफ मुसकराता चेहरा कर दिया. रीवा ने देखा कि उस की आंख के कोने पर आई हुई झुर्री अब धुंधला चुकी थी.

आसमान छूता सोने का भाव और घिसतापिटता मध्यम वर्ग

क्योंकि अब पहले वाला जमाना रहा नहीं कि जब कम उम्र में शादियां होती थीं तो मातापिता बेटियों को सोना इसलिए दे देते थे कि मुसीबत में काम आएगा लेकिन अब जमाना बदल गया है, बेटियांबहुएं सब आत्मनिर्भर हैं फिर इतने महंगे रेट का एक तोला सोने में कुछ भी नहीं होता. समाज के कुछ लोगों ने सोने को स्टेटस सिम्बल बना दिया गया है, जिस की वजह से जैसेतैसे शादियों में सोना अरेंज करते हैं और जरूरत पड़ने पर जब इन जेवरों को बेचने जाओ तो आधे दाम ही मिलते हैं.

गोल्ड या सोना फाइनेंशियल सिक्योरिटी के लिए ठीक हैं, डेली में पहनने के लिए लाइटवेट गोल्ड ज्वैलरी या इमिटेशन ज्वैलरी पहनी जा सकती है. आजकल आर्टिफिशल गहने इतने सुंदर मिलते हैं कि सोना उस के आगे फीका ही हो गया है. जब चाहो अलगअलग डिजाइन के ड्रैस से मैच कर के खरीदो और लूटने का भी चक्कर नहीं.

सोने के गहने खरीदना महिलाओं के लिए अच्छा औप्शन नहीं

जब बात निवेश की हो तो हर कोई इससे होने वाले रिटर्न के बारे में पहले सोचता है. पारंपरिक कारणों से भले ही सोना खरीदना शुभ माना जाता हो लेकिन शौक के अतिरिक्त सोने के गहने खरीदना एक अच्छा निवेश विकल्प नहीं है. सोने की अंगूठी, नौलखा हार, ईयरिंग्स खरीदना निवेश के नजरिए से घाटे का सौदा हो सकता है क्योंकि गहने बेचने जाने पर उस की रीसेल वैल्यू कम होती है यानी गहने खरीदते समय केवल सोने के पैसे नहीं लगते बल्कि कई अन्य चार्ज जैसे कि मेकिंग चार्जेज भी देने पड़ते हैं जो बहुत ज्यादा होते हैं. और जरूरत पर गहने बेचते समय मेकिंग चार्जेस नहीं मिलता. इस के अलावा सोने के गहनों की सेफ़्टी भी एक समस्या है. गहनों को सेफ रखने के लिए उन्हें लौकर में रखने पर चार्ज देना पड़ता है और घर में रखना सेफ नहीं होता.

कितना अच्छा होगा यदि फाइनेंशियल मजबूती के लिए गोल्ड को अपने पास रखने के अन्य विकल्प तलाशें जाएं.

समय के साथ निवेश करने के तरीके बदल रहे हैं. आज 10 में से 7 भारतीय गोल्ड में निवेश को सुरक्षित निवेश मानते हैं. 35 वर्ष से कम के 75 प्रतिशत लोग सोने में निवेश के लिए फिजिकल की तुलना में डिजिटल निवेश को अधिक महत्व दे रहे हैं. इस की वजह लिक्विडिटी और निवेश की आसान सुविधा का होना है.

गोल्ड में निवेश के तरीके

गोल्ड में निवेश के 2 तरीके हैं, एक डिजिटल, दूसरा फिजिकल. बहुत सारे लोग इमोशनल वैल्यू के चलते फिजिकल गोल्ड पसंद करते हैं लेकिन निवेश के लिहाज से डिजिटल गोल्ड खरीदना सही माना जाता है. गोल्ड ज्वैलरी या फिजिकल गोल्ड के साथ चोरी होने का खतरा रहता है. इस से बचने के लिए बैंक लौकर का सहारा लेते हैं तो उस के लिए भुगतान करना पड़ता है.

दूसरा गोल्ड ज्वेलरी खरीदते वक्त धोखाधड़ी हो जाती है और बेचते समय मेकिंग चार्ज और मिलावट आदि के नाम पर कटौती भी होती है.

डिजिटल गोल्ड

डिजिटल गोल्ड एक आधुनिक निवेश विकल्प है, जहां ग्राहक डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग कर के सोने की इकाइयां खरीद सकते हैं. यह विकल्प युवाओं के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है क्योंकि यह सुविधाजनक और सरल है.

गोल्ड ईटीएफ

गोल्ड ईटीएफ में निवेश करना कई लिहाज से फायदेमंद साबित होता है. गोल्ड ईटीएफ की यूनिट को शेयर की तरह इलैक्ट्रानिक फार्म में डीमैट खाते में रखा जा सकता है. बीएसई और एनएसई पर इन की ट्रेडिंग होती है. मतलब कारोबारी घंटों के दौरान इन्हें कभी भी बेचाखरीदा जा सकता है. गोल्ड ईटीएफ में स्टोरेज का खर्च कम है. इस में मेकिंग चार्ज या मिलावट का कोई झंझट नहीं है. आप छोटी रकम से भी गोल्ड ईटीएफ में निवेश कर सकते हैं. गोल्ड ईटीएफ को मार्केट वेल्यू पर खरीदा और बेचा जा सकता है.

ये इस तरह है कि सोना खरीदा और बेचा मगर फिजिकल फार्म में नहीं बस कीमत सोने की होती है. यह म्यूचुअल फंड की ही स्कीम है जिन्हें यूनिट के तौर पर खरीदा जाता है. न चोरी होने का डर, न मेकिंग चार्ज का लौस और न ही मिलावट का खतरा. जितना मर्जी चाहें खरीद सकते हैं. गोल्ड ईटीएफ में खरीददारी के लिए कई विकल्प बाजार में मौजूद हैं.

गोल्ड कोइन्स

ज्वैलर्स, बैंकों और ई-कौमर्स वेबसाइटों पर गोल्ड कोइन्स आसानी से मिलते हैं. हर कोइन बीआईएस मानक के अनुसार हौलमार्क किया गया होता है जो उस की गुणवत्ता की गारंटी देता है. इन कोइन्स को खरीदने का एक बड़ा फायदा यह है कि ये सुरक्षित और लेनदेन में आसान होते हैं.

घर में सोना रखने की लिमिट और सोना बेचने पर लगने वाला टैक्स

भारत सरकार के आयकर कानून के मुताबिक विवाहित महिलाएं अपने पास 500 ग्राम सोना रख सकती हैं जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए ये सीमा 250 ग्राम रखी गई है. वहीं पुरुषों को केवल 100 ग्राम सोना रखने की इजाजत है. इस के अलावा अगर आप टैक्स-फ्री इनकम से सोना खरीदते हैं या कानूनी तौर पर सोना आप को विरासत में मिलता है तो उस पर आप को कोई टैक्स नहीं देना होगा. लेकिन तय सीमा से ज्यादा सोना होने पर आप को रसीद दिखानी होगी और अगर आप 3 साल तक सोना रखने के बाद उसे बेचते हैं तो उस से होने वाले प्रौफिट पर 20 फीसदी की दर से लोन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स भी देना होगा.

गोल्ड के बदले लोन का औप्शन

गोल्ड एक ऐसा मेटल है जिस की हमेशा दुनियाभर में अपनी एक अलग अहमियत रही है. आभूषण की तरह पहनने से ले कर कई बार बच्चों की पढ़ाई, शादी, घर बनवाने या इमरजेंसी में मैडिकल खर्च के लिए भी गोल्ड, लोन लेने के काम आता है. गोल्ड लोन दूसरे अन्य लोन की तुलना में ज्यादा सुरक्षित माना जाता है साथ ही गोल्ड लोन की अच्छी बात है कि यह अनसिक्योर्ड लोन जैसे पर्सनल लोन, प्रौपर्टी लोन, कौर्पोरेट लोन की तुलना में सस्ताो पड़ता है लेकिन, गोल्ड लोन लेना तभी सही होता है, जब कुछ वक्त के लिए ही पैसों की जरूरत हो.

सामान्यतया बैंक 3 महीने से 3 साल तक के लिए गोल्ड लोन देते हैं. यह आप पर निर्भर करता है कि आप के कितने समय के लिए कर्ज चाहिए या फिर आप उसे कितने समय में लौटा सकते हैं.

सोने के बदले लोन लेने की पहली शर्त है कि जिस गोल्ड को आप गिरवी रख रहे हैं वह कम से कम 18 कैरेट शुद्ध होना चाहिए. बैंक या एनबीएफसी गहनों और सोने के सिक्कों के बदले ही लोन देते हैं. आप 50 ग्राम से ज्यादा वजन के सोने के सिक्के गिरवी नहीं रख सकते.

वित्तीय संस्थान गोल्ड बार को भी गिरवी नहीं रखते. अगर लोन पर आप डिफौल्ट कर गए तो वित्तीय संस्थान को आप का सोना बेचने का हक है इस के साथ ही, अगर सोने का भाव गिरता है तो आप से अतिरिक्त सोना गिरवी रखने के लिए भी कहा जा सकता है.

गोल्ड लोन में भी दूसरे आम लोन की तरह प्रोसेसिंग फीस लगती है जो बैंकों और एनबीएफसी के हिसाब से अलगअलग होती है और प्रोसेसिंग फीस पर जीएसटी लगने के अलावा कुछ बैंक और वित्तीय संस्थान वैल्यूएशन फीस भी लेते हैं. साथ ही सर्विस चार्ज, एसएमएस चार्ज और सिक्योर्ड कस्टडी फीस जैसे कुछ अन्य खर्चे भी होते हैं.

गोल्ड लोन का री-पेमेंट

अगर आप नौकरीपेशा हैं तो आप हर महीने ईएमआई में पेमेंट कर सकते हैं या आप के पास एकमुश्त मूल भुगतान के साथ ब्याज भरने का विकल्प भी चुन सकते हैं.

अब आप समझ गए होंगे कि सोना कितना सोना है.

मां बनना एक युवती का निजी फैसला होना चाहिए

पिछले कुछ सालों में हमारे देश में बर्थ रेट तेजी से घट रही है. आबादी कम हो रही है. महिलाएं मां बनने से इनकार कर रही हैं.
बौम्बे बेगम्स मूवी में एक डायलौग था कि “अगर आप की शादी और बच्चे आप की सक्सेस हैंडल नहीं कर सकते तो वह बेकार हैं.”

कुछ महिलाएं हैल्थ रिलेटेड रीजन्स से तो कुछ अपनी मर्जी से मां नहीं बनना चाहतीं पर न तो ये महिलाएं कमतर हैं और न हीन स्वार्थी और अधूरी.

बच्चों के आसरे रहने की उम्मीद रखने या उन पर बोझ बनने की बजाय महिलाएं अपने बारे में सोचें तो गलत क्या है? इस बात की कोई गारंटी नहीं कि बच्चे सहारा बनेंगे. पूरी पोसिबिलिटी है कि जीवन के आखिरी पड़ाव में बच्चों के बिना बाद में अकेले ही रहना पड़े इसलिए अपनी लाइफ सक्रिफाइस का क्या फायदा.

माना कि यह खयाल सोसायटी के नियमों के हिसाब से गलत या समाज के विरुद्ध होगा लेकिन अगर कोई महिला का मदरहूड के बिना रहना चाहती है तो उस में कोई बुराई या गलत बात नहीं है.

आज हमारे आसपास ऐसी अनेक महिलाएं मिल जाएंगी जिन्होंने मां न बनने का फैसला किया है और वे अपनी लाइफ अपनी मर्जी, अपने तरीके से जीना चाहती हैं क्योंकि वे समझने लगी हैं कि शादी और बच्चों के चक्कर में फंस कर उन्हें अपने कैरियर अपनी इच्छाओं को पीछे छोड़ना पड़ेगा, इस लिए वे वह नौबत ही नहीं आने देना चाहतीं.

महिलाएं मां बनने से हट रही हैं पीछे

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2019-21 में किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में टोटल फर्टिलिटी रेट (TFR) प्रति महिला 2.2 बच्चों से घट कर 2.0 बच्चे प्रति महिला हो गई है और यह आंकड़ा रिप्लेसमेंट रेट 2.1 से कम है. आप की जानकारी के लिए बता दें कि रिप्लेसमेंट रेट उस बर्थ रेट को कहते हैं, जिस में जन्म और मृत्यु का संतुलन बना रहता है और जनसंख्या स्थिर रहती है लेकिन किसी देश का बर्थ रेट रिप्लेसमेंट रेट से कम हो जाए तो वहां की आबादी घटने लगती है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में फर्टिलिटी रेट घटने का ये दौर लगातार जारी रहेगा. अगर ऐसा होना जारी रहा तो 2050 तक भारत में फर्टिलिटी रेट 1.3 रह जाएगी.

वंश बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सिर्फ महिलाओं की ही क्यों

हमारे समाज में अधिकांश लोगों का कहना है कि एक महिला सम्पूर्ण तब होती है जब वह मां बनती है, इस का मतलब तो यह हुआ कि जो महिला मां नहीं बन पाती वह औरत ही नहीं है.

अमेरिका की मैने (यूमैने) यूनिवर्सिटी में सोशियोलौजी की प्रोफैसर डा. ऐमी ब्लैकस्टोन उन महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने बच्चा न पैदा करने का फैसला किया और उन्हें इस निर्णय के लिए बहुत ताने भी सुनने पड़े. डा. ऐमी ने इस विषय पर एक किताब भी लिखी है- ‘चाइल्डफ्री बाय चौइस’.

डा. एमी के अनुसार जब के आसपास के लोगों को पता चलता है कि उन के बच्चे नहीं हैं और न ही वह बच्चे चाहती हैं तो कुछ लोग उन्हें जज करते हैं, कुछ उन के साथ सिमपेथी दिखाते हैं कुछ उन्हें क्रिटिसाइज करते हैं तो कुछ सेल्फिश मानते हैं .

संडे टाइम्स, यूके की 48 वर्षीय पूर्व फीचर एडीटर, जानीमानी पत्रकार और लेखक रूबी वारिंगटन के अनुसार समाज मानता है कि बच्चे न चाहने के कारण मैं स्वार्थी हूं लेकिन मेरी किताब ‘वुमेन विदाउट किड्स: द रेवोल्यूशनरी राइज औफ एन अनसंग सिस्टरहुड’ मेरे जैसी महिलाओं के लिए बोल रही है.

रूबी कहती हैं कि कितना अच्छा हो, अगर बिना बच्चों वाली महिला होना वास्तव में अपनी तरह की विरासत बन जाए और बिना बच्चों वाली महिलाओं को दुखी, सैल्फ सेंटर्ड मानने की बजाय उन्हें साहसी होने के रूप में देखें और उन्हें वैसे ही स्वीकार करें.

मां बनना इतना ज्यादा ओवररेटेड क्यों

समाज हमेशा अपने पुराने और बनेबनाए ढर्रे पर ही चलना चाहता है. वह किसी भी तरह का बदलाव स्वीकार नहीं करना चाहता लेकिन समाज में बदलाव आ रहा है और आएगा क्योंकि बदलाव सृष्टि का नियम है. आज महिलाएं अगर मदरहुड को न कह रही हैं. अब वह अपने पैसे खुद कमा रही हैं, अपना बिल खुद भर रही हैं, अपने सिर पर छत खुद बना रही हैं और अपनी जिंदगी से जुड़े हर छोटेमोटे फैसले भी खुद ही ले रही हैं. महिलाएं मदरहुड के विरोध में नहीं हैं लेकिन वे मदरहुड की वजह से अपने कैरियर, आजादी और बराबरी की राह कोई कांम्प्रोमाइज नहीं करना चाहतीं.

वे चाहती हैं कि मदरहुड सिर्फ अकेले औरत की जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए. परिवार और समाज की भी इस में बराबर की साझेदारी और हिस्सेदारी होनी चाहिए. दरअसल, हमारे समाज में किसी भी महिला के मां बनने को इतना ज्यादा ओवररेटेड कर दिया गया है कि एक स्त्री का व्यक्तित्व उसी पैमाने पर तौला जाता है. लेकिन अब महिलाएं ये समझ रही हैं कि मां बनना या न बनना किसी भी महिला का निजी फैसला है, वूमनहुड का सर्टिफिकेट नहीं.

क्या सचमुच औरत की जिंदगी का सब से बड़ा सुख मां बनना ही है

क्यों हमारे समाज में एक औरत के मां ना बन पाने को उस की जिंदगी के अधूरेपन से जोड़ कर देखा जाता है ? शिक्षा, कैरियर, आर्थिक आत्मनिर्भरता जैसी दूसरी चीज़ें एक महिला के लिए भी उतनी ही जरूरी हैं जितना कि एक पुरुष के लिए. वे मांएं जो समाज द्वारा तय मानकों के कारण एक मां और फिर एक अच्छी मां बनने के लिए औरतें अपने सपनों को छोड़कर अपनी पूरी जिंदगी लगा देती है वे ऐसा कर के वे कोई कमाल का काम नहीं कर रहीं क्योंकि बच्चे को दुनिया में लाना, उस की परवरिश मां का ही दायित्व होता है जिस के लिए उसे अनेक त्याग करने पड़ते हैं.

यदि कोई महिला भावनात्मक औऱ आर्थिक तौर पर बच्चे को दुनिया में नहीं लाना चाहती, उस की परवरिश के लिए वह तैयार नहीं हैं या फिर उसे बच्चे की जरूरत महसूस नहीं हो रही है तो यह निर्णय पूरी तरह एक महिला का होना चाहिए कि उसे मां बनना है या नहीं, बायोलौजिकली मां बनना है, अडौप्ट करना है, सेरोगेसी करनी है. उसे इस बात पर जज नहीं किया जाना चाहिए. क्या किसी बच्चे को प्यार करने के लिए यह जरूरी है कि बच्चा अपनी कोख से ही पैदा किया जाए ?

मातृत्व को आसपास के बहुत सारे जरूरतमंद बच्चों पर भी लुटाया जा सकता है. बच्चों के लिए अपने सपने दांव लगाने से कुछ नहीं मिलेगा. पहले जो लोग यह मानते थे कि बच्चा आने से प्यार बढ़ता है, अब वे उसे जिम्मेदारी मान कर उस से बचना चाहते हैं. अब उन्हें बच्चे इसलिए भी नहीं चाहिए कि वे बुढ़ापे की लाठी बनेंगे क्योंकि वे देख समझ रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं हो रहा है और कोई क्यों किसी के लिए अपनी लाइफ की इच्छाएं सपने दांव पर लगाए और फिर बाद में सुनने को मिले आपने हमारे लिए कुछ अनोखा नहीं किया.

दुनिया के हर व्यक्ति का अपना एक अस्तित्व अपनी ज़िंदगी है और कोई किसी दूसरे को पूरा नहीं कर सकता, बच्चे भी नहीं. बच्चा पैदा करना या न करना एक महिला का निजी निर्णय होना चाहिए यह कोई सामाजिक जिम्मेदारी नहीं है कि हर चलताफिरता व्यक्ति उस से पूछपूछ कर परेशान करे कि आप के बच्चे क्यों नहीं हैं?

सोशल मीडिया पर प्राइवेट मोमेंट्स अपलोड करना पड़ सकता है भारी

सोशल मीडिया पर लोग अपनी लव लाइफ से जुड़ी बातें शेयर करना पसंद कर रहे हैं और तस्वीरों और वीडियोज के जरिए दूसरों से तारीफ पाना चाहते हैं और खुद को बेहतर दिखाना चाहते हैं.

सोशल मीडिया पर अपने पार्टनर से जुड़ी जानकारी शेयर करना आजकल आम बात हो गई है लेकिन यह व्यवहार कई बार कई समस्याओं को जन्म देने का कारण बन सकता है. इस से परिवार और दोस्त भी प्रभावित हो सकते हैं. हो सकता है कि ऐसा करना कुछ समय के लिए अच्छी फीलिंग देता हो लेकिन फिर भी ऐसी कई चीजें होती हैं, जिन्हें उन्हें सोशल मीडिया पर बिल्कुल शेयर नहीं करनी चाहिए क्योंकि सोशल मीडिया पर अपने प्यार अपनी पर्सनल बातों को शेयर करने के कई नुकसान उठाने पड़ सकते हैं.

42 वर्षीय रिचा और रितेश जो पिछले 10 सालों से शादी के रिश्ते में बंधे हैं, दोनों सोशल मीडिया पर पर्सनल बातों को शेयर करने के खिलाफ हैं और उन दोनों का मानना है कि रिलेशनशिप में प्राइवेसी, इंटिमेसी को बढ़ावा देती है. जब आप अपने पार्टनर की बातों को प्राइवेट रखते हैं तो इस से रिश्ते में गहराई बढ़ती है और आपस में गलतफहमियां पैदा होने का खतरा कम होता है.

वैसे भी कुछ निजी बातें ऐसी होती हैं जो सिर्फ एक कपल के बीच ही रहे तो ही अच्छा रहता है और रिश्ता मजबूत और लंबे समय तक चल पाता है. इस के अलावा अपने रिश्ते की बातों को प्राइवेट रखने से सोशल मीडिया पर शेयर नहीं करने से हैप्पी दिखने का प्रेशर भी नहीं होता. साथ ही एक बार सोशल मीडिया पर अपने रिश्ते को फ्लांट करनी की आदत हो जाने के बाद एक समय के बाद यह आदत मजबूरी बन जाती है जो कपल के बीच कनफ्लिक्ट का कारण भी बन सकती है. इसलिए कोई भी अगर अपने प्यार भरे रिश्ते को लंबे समय तक बनाए रखना चाहता है तो उन्हें जितना हो सके अपनी पर्सनल बातों को प्राइवेट रखना चाहिए.

जानिए किन बातों को सोशल मीडिया पर शेयर करना आपके रिश्ते में दूरियां ला सकता है –

पर्सनल तस्वीरें या बातें न करें शेयर

आजकल कपल्स लाइक व व्यूज बढ़ाने के चक्कर में कोजी मोमेंट्स की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं. ऐसा करने से बचना चाहिए. कभीकभी उन पर्सनल तस्वीरों का लोग गलत तरीके से इस्तेमाल कर लेते हैं जिस से उन्हें बाद में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. इस के अलावा कई बार पर्सनल रिलेशन की बातों को पब्लिक करने से कपल्स पर परफैक्ट दिखने का प्रेशर भी बढ़ जाता है. कई बार रियलिटी में आइडियल कपल्स न होने के बाद भी उन्हें खुद को परफैक्ट दिखाना पड़ता है और इस चक्कर में कपल्स के बीच क्लेश हो जाता है.

लोकेशन शेयर करना कर सकता है स्पेशल मोमेंट्स को बरबाद

कुछ लोग तो जब अपने पार्टनर के साथ कहीं घूम रहे होते हैं तो अपनी लोकेशन भी शेयर कर देते हैं. ऐसा नहीं करना चाहिए. ऐसा करने से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. घरपरिवार या रिश्तेदारों में से कोई भी उन तक पहुंच सकता है और उन के स्पैशल पलों को खराब कर सकता है.

पर्सनल चैट को न करें शेयर

आजकल कपल्स द्वारा इंटरनेट पर चैट waवौयस कौल को शौर्ट वीडियो की तरह शेयर करने का चलन काफी बढ़ गया है. कुछ लोग अकसर अपने पार्टनर से की हुई पर्सनल चैट को रिकौर्ड कर के या फिर उस की तस्वीरें क्लिक कर के सोशल मीडिया पर या फिर दोस्तों के साथ शेयर कर देते हैं. ऐसा कर के वे बहुत बड़ा रिस्क लेते हैं. क्योंकि क्योंकि नहीं पता उन की यह पर्सनल चैट किस किस के पास किस तरह पहुंच जाए इस से उन की इज्जत और रिश्ते दोनों पर नेगेटिव असर पड़ सकता है.

पार्टनर की इमेज हो सकती है खराब

कई बार अपने पार्टनर की परमिशन के बिना उस की पर्सनल जानकारी पब्लिकली शेयर करने से उस की प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है. हो सकता है उसे यह सब पसंद न हो, हो सकता है अपनी पर्सनल बातों को सोशल मीडिया पर शेयर करना उस के स्वभाव में न हो और इस से आप के रिश्ते में अनबन हो सकती है. साथ ही कई बार सोशल मीडिया पर अपने पर्सनल रिश्ते को ले कर शेयर की गई पर्सनल बातें यूजर्स द्वारा गलत तरीके से समझी जा सकती हैं.

यूजर्स और फौलोअर्स आप के पार्टनर के बारे में उन की लुक्स या आप दोनों के मैच को कुछ गलत राय बना सकते हैं, कमेंट सेक्शन में उसे ट्रोल कर सकते हैं. इस से आप दोनों के रिश्ते में स्ट्रेस पैदा हो सकता है और आप के पार्टनर की इमेज भी खराब हो सकती है.

ब्रेकअप के बारे में न करें शेयर

जब दो लोग साथ में होते हैं, तो उन के बीच बहुत सी बातों को ले कर असहमति बनती है. यहां तक कि झगड़े भी होते हैं. कई बार झगड़े इस हद तक बढ़ जाते हैं कि दोनों पार्टनर अलग होने का मन बना लेते हैं. लेकिन कई बार लोग जल्दबाजी या गुस्से में अपने ब्रेकअप की बात भी सोशल मीडिया पर शेयर कर देते हैं. ऐसा करना किसी भी लिहाज से सही नहीं होता है. हो सकता है कि ब्रेकअप के बाद आप का पैचअप भी हो जाए. ऐसे में ब्रेकअप की बात सोशल मीडिया पर बिल्कुल भी शेयर नहीं करनी चाहिए. इस से आप की परेशानी व दुख कम होने की बजाय बढ़ेगा.

सेफ्टी का खतरा

आप की कुछ पोस्ट या तस्वीरें आप की और आप के पार्टनर की पर्सनल जानकारी को पब्लिक कर सकती हैं, जिस से पार्टनर की सेफ्टी को खतरा हो सकता है. आज के डिजिटल युग में जब डेटा चोरी और प्रोफाइल हैक जैसी घटनाओं के चलते औनलाइन सुरक्षा खतरे में पड़ रही है तब तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि अपनी और अपने पार्टनर की पर्सनल जानकारी को सोशल मीडिया पर शेयर न किया जाए.

ओवर शेयरिंग का परिणाम

आप शायद नहीं जानते होंगे कि कई बार किसी के द्वारा सोशल मीडिया पर अपलोड की गई एक सिंपल सी फोटो भी उस के लिए खतरा बन सकती है खासकर वह फोटो, जिस में किसी की हाथों की उंगलियों के निशान स्पष्ट दिख रहे हों. कई मामलों में ऐसा देखने में आया है कि साइबर अपराधियों ने अपलोड की गई व्यक्ति की उंगलियों के निशान का उपयोग कर के आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (AEPS) से रुपए निकाल लिए हैं और अन्य गैर-कानूनी कार्यों को भी अंजाम दिया है.

नोएडा में ऐसे 10 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं, जिन में ठगों ने लोगों की फोटो से उन के फिंगरप्रिंट का क्लोन तैयार किया और उस का गलत उपयोग किया.

स्वस्थ शरीर के लिए पोटैशियम और मैग्नीशियम कितना जरूरी

मानव शरीर के स्वास्थ्य के लिए कुछ मिनरल्स बहुत जरूरी होते हैं. विटामिन्स और कैल्शियम के बारे में औसतन लोग कुछ न कुछ जानते हैं. पोटैशियम और मैग्नीशियम भी हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत जरूरी हैं और इन के बारे में अकसर लोगों को ज्यादा पता नहीं होता है.

पोटैशियम: पोटैशियम ऐसा मिनरल है जो शरीर की सामान्य क्रिया के लिए जरूरी है. यह मांसपेशियों के सुचारु रूप से कार्य करने में सहायक होता है. यह सेल्स को पौषिक तत्त्व प्राप्त करने में मदद करता है. यह हाई ब्लडप्रैशर यानी हाइपरटैंशन कंट्रोल करता है. शरीर में पोटैशियम लैवल मेंटेन करना ह्रदय के सेल्स के लिए बहुत जरूरी है.

शरीर में पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया रोग कहते हैं.

हाइपोक्लेमिया के सिंप्टम्स: पोटैशियम की कमी को हाइपोक्लेमिया कहते हैं. साधरतया संतुलित भोजन लेते रहने से पोटैशियम की कमी की संभावना नहीं रहती है. अस्थाई रूप से पोटैशियम की कमी के चलते हो सकता है आप को कोई सिम्प्टम न दिखे पर लंबे समय तक इस की कमी के लक्षण आप महसूस कर सकते हैं. इस के मुख्य लक्षण हैं- थकावट या फैटिग, कमजोरी, क्रैम्प- मांसपेशियों में ऐंठन, कब्ज और एरिथ्मिया (असामान्य हार्ट बीट).

हाइपोक्लेमिया का कारण: शरीर के पाचनतंत्र से हो कर जब पोटैशियम शरीर से ज्यादा बाहर निकल जाता है तब इस की कमी से हाइपोक्लेमिया हो जाता है, जैसे दस्त, उलटी, किडनी या एड्रेनल ग्लैंड्स के ठीक से नहीं काम करने से कुछ दवा लेने पर पेशाब ज्यादा आता हो (डाइयुरेटिक), पसीना ज्यादा आना, फोलिक एसिड की कमी, अस्थमा की दवा, कब्ज की दवा और एंटीबायोटिक के सेवन से खून में कीटोन (एसिड) ज्यादा होने से, मैग्नीशियम की कमी और तंबाकू के सेवन से.

डायग्नोसिस या टैस्ट: शरीर में पोटैशियम के स्तर की जांच के लिए आमतौर पर डाक्टर ब्लड टैस्ट कराते हैं. ब्लड में सिरम पोटैशियम कौन्सेंट्रेशन 3. 5 mmol/L (प्रति लीटर) – 5.1 mmol/L सामान्य माना जाता है. 3. 5 mmol/L से कम होने पर इसे हाइपोक्लेमिया कहा जाता है और 2.5 mmol/L से कम होना घातक माना जाता है.

डाक्टर यूरिन टैस्ट भी करा सकते हैं ताकि पता लगा सके कि पेशाब के रास्ते कितना पोटैशियम शरीर से बाहर निकल रहा है. डाक्टर आप की मैडिकल हिस्ट्री पूछेंगे कि कहीं दस्त या उलटी की शिकायत तो नहीं है. पोटैशियम का असर ब्लडप्रैशर पर भी पड़ता है जिस का गंभीर असर हृदय की रिदम पर भी पड़ता है. इसलिए डाक्टर ईसीजी भी करा सकते हैं.

उपचार: हाइपोक्लेमिया के उपचार के लिए डाक्टर पोटैशियम सप्लिमैंट्स, जो आमतौर पर टेबलेट के रूप में आता है, लेने की सलाह देते हैं. पोटैशियम की अत्यधिक कमी की स्थिति में टेबलट से हाइपोक्लेमिया में सुधार न होने से या हाइपोक्लेमिया के कारण असामान्य हृदय रिदम होने की स्थिति में इस का इंजैक्शन लेना पड़ सकता है. डाक्टर ब्लड में पोटैशियम के स्तर पर नजर रखते हैं क्योंकि इस की अधिकता से हाइपोक्लेमिया होता है जो और भी खतरनाक होता है. शरीर में पोटैशियम का एक डेलिकेट (नाजुक) लैवल मेंटेन करना पड़ता है.

कितना पोटैशियम जरूरी

14 साल या उस से बड़ी उम्र वालों को 4,700 एमजी (मिलीग्राम) प्रतिदिन पोटैशियम की आवश्यकता होती है-

6 महीने तक के बच्चे के लिए 400 एमजी

7 – 12 महीने तक के बच्चे के लिए 700 एमजी
1 – 3 साल तक के बच्चे के लिए 3,000 एमजी
4 – 8 साल तक के बच्चे के लिए 3,800 एमजी
9 – 13 साल तक के बच्चे के लिए 4,500 एमजी

ब्रेस्ट फीडिंग महिला के लिए 5,100 एमजी पोटैशियम प्रतिदिन चाहिए. पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में हाइपोक्लेमिया की संभावना ज्यादा होती है.

पोटैशियम के श्रोत: पोटैशियम प्राकृतिक रूप से हमारे खाद्य पदार्थ में मिलता है, जैसे केला, आलू, एवाकाडो, तरबूज, सनफ्लौवर बीज, पालक, किशमिश, टमाटर, औरेंज जूस आदि में.

हाइपोक्लेमिया में रिस्क: अमेरिका के नैशनल सैंटर फौर बायोटैक्नोलौजी इन्फौर्मेशन के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. केल्ड केल्डसन के अनुसार, दुनिया में प्रतिवर्ष करीब 30 लाख लोग दिल की बीमारी से मरते हैं. इन में बहुत लोग तत्काल ट्रिगर के फलस्वरूप मौत के शिकार होते हैं. ह्रदय के सेल्स में अशांत और असामान्य पोटैशियम लैवल भी इस ट्रिगर का कारण होता है. 7-17 फीसदी दिल के रोगियों में हाइपोक्लेमिया पाया गया है. ह्रदय और हाइपरटैंशन रोग से अस्पताल में भरती 20 फीसदी रोगियों में और वाटर पिल्स या डाइयुरेटिक (ब्लडप्रैशर की दवा) 3 लेने वाले 40 फीसदी रोगियों में पोटैशियम की कमी पाई गई है. इस से हृदय का रिदम अशांत होता है. हाइपोक्लेमिया में अचानक हार्ट फेल होने की संभावना दसगुना ज्यादा होती है. इस के अतिरिक्त पोटैशियम की कमी से हाइपरटैंशन, बीएमआई में कमी, दस्त, मांसपेशियों में क्रैम्प, अल्कोहल की आदत और किडनी की बीमारी हो सकती है.

जब शरीर में पोटैशियम अधिक हो

हाइपरक्लेमिया: शरीर में पोटैशियम की अधिकता को हाइपरक्लेमिया कहते हैं. इस के चलते हार्ट के रिदम पर प्रतिकूल असर पड़ता है और यह जानलेवा भी हो सकता है. इस के अलावा मिचली या उलटी, मांसपेशियों में कमजोरी, नसों की बीमारी- झनझनाहट, दम फूलने की शिकायत हो सकती है.

कारण: साधारणतया हमारा किडनी यदि सुचारु रूप से काम करती है तब अतिरिक्त पोटैशियम को यह मूत्र के रास्ते शरीर से बाहर निकाल फेंकती है. पर जब किडनी ठीक से काम नहीं करती तब ब्लड में पोटैशियम लैवल बढ़ जाता है और हाइपरक्लेमिया हो जाता है. एड्रेनल गलनाड में एल्डेस्टेरौन नामक एक हार्मोन होता है जो किडनी को पोटैशियम हटाने का संकेत देता है.

इस के अतिरिक्त भोजन में पोटैशियम की मात्रा अधिक होने से हाइपरक्लेमिया हो सकता है. हाइपरक्लेमिया के अन्य कारण हैं-

हेमोलिसिस- रेड ब्लड सेल्स का ब्रेकडाउन (विघटन)

रैब्डोमायोलिसिस- मसल टिश्यू का ब्रेक डाउन और जलने के कारण टिश्यू की समस्या

अनियंत्रित डायबिटीज- डायबिटीज का नियंत्रण में न होना

एचआईवी- एचआईवी बीमारी का होना

किडनी और ब्लडप्रैशर आदि रोगों की कुछ दवाएं, एनएसएआईडी इन्फ्लेमेशन की दवा, कुछ एंटीबायोटिक्स और हर्बल सप्लीमैंट्स जेनसिंग आदि के चलते भी पोटैशियम की मात्रा अधिक हो सकती है जिस से हाइपरक्लेमिया हो सकता है.

सिंप्टम्स: ब्रेन सेल्स को भी पोटैशियम की जरूरत होती है. इस के द्वारा ब्रेन सेल्स आपस में संवाद करते हैं और दूरस्थ सेल्स से भी संवाद करते हैं. पोटैशियम का स्तर अनियंत्रित होने से हार्मोन असंतुलन, लुपस, किडनी की बीमारी होती है.

डायग्नोसिस या टैस्ट: शरीर में पोटैशियम के स्तर की जांच के लिए आमतौर पर डाक्टर ब्लड टैस्ट कराते हैं. ब्लड में सिरम पोटैशियम कौन्सेंट्रेशन 3. 5 mmol/L (प्रति लीटर) – 5.1 mmol/L सामान्य माना जाता है. 5.1 mmol/L से ज्यादा होने पर इसे हाइपरक्लेमिया कहा जाता है और 6.5 से ज्यादा खतरनाक व जानलेवा हो सकता है.

डाक्टर यूरिन टैस्ट भी करा सकते हैं ताकि पता लगा सके कि पेशाब के रास्ते पोटैशियम शरीर से बाहर जा रहा है या नहीं. डाक्टर आप की मैडिकल हिस्ट्री पूछेंगे और आप के ह्रदय की रिदम चैक कर सकते हैं. पोटैशियम का असर ब्लडप्रैशर पर भी पड़ता है जिस का गंभीर असर हृदय पर पड़ता है. इसलिए डाक्टर ईसीजी भी करा सकते हैं हालांकि हाइपरक्लेमिया के सभी मरीजों में रिदम पर असर होना जरूरी नहीं है.

उपचार: हाइपरक्लेमिया के उपचार में डाक्टर लो पोटैशियम भोजन की सलाह दे सकते हैं, आप की कोई दवा बंद कर सकते हैं या दवाओं में कुछ बदलाव कर सकते हैं, वाटर पिल्स (डाइयुरेटिक) दे सकते हैं ताकि एक्स्ट्रा पोटैशियम पेशाब से बाहर निकल जाए, किडनी के इलाज की दवा या डायलिसिस की सलाह, पोटैशियम बाइंडर दवाएं दे सकते हैं. पोटैशियम लैवल अत्यधिक होने पर इमरजैंसी की स्थिति में इंजैक्शन द्वारा दवा दी जा सकती है.

हाइपरक्लेमिया में रिस्क: हाइपरक्लेमिया के चलते हृदय रिदम में गंभीर बदलाव आने से जान का खतरा होता है. इस के चलते अत्यधिक कमजोरी हो सकती है और लकवा मार सकता है.

मैग्नीशियम

हमारे शरीर को समुचित मात्रा में मैग्नीशियम भी आवश्यक है. यह हमारी हड्डी को मजबूत बनाता है. इस के अतिरिक्त यह ह्रदय, मांसपेशियों और नसों के लिए भी जरूरी है. यह शरीर की ऊर्जा को कंट्रोल करता है और साथ में ब्लडशुगर, ब्लडप्रैशर आदि को मेंटेन करने में मदद करता है. मैग्नीशियम शरीर के लिए एक इलैक्ट्रोलाइट है जो खून में रह कर शरीर में बिजली संचालन करता है.

साधरणतया संतुलित भोजन लेते रहने से मैग्नीशियम की कमी की संभावना नहीं रहती है. अस्थाई रूप से मैग्नीशियम की कमी के चलते हो सकता है आप को कोई सिम्प्टम न दिखे पर लंबे समय तक इस की कमी के लक्षण आप महसूस कर सकते हैं. इस का बहुत कम या बहुत ज्यादा होना दोनों हानिकारक है.

मैग्नीशियम की कमी का कारण: स्वस्थ मनुष्य के ब्लड में मैग्नीशियम की उचित मात्रा मेंटेन रहती है. हमारे किडनी और पाचनतंत्र दोनों मिल कर खुद निश्चित करते हैं कि भोजन से कितना मैग्नीशियम रखना है और कितना मूत्र से बाहर निकाल फेंकना है. थाईरायड की समस्या, टाइप 2 डायबिटीज़, ज्यादा शराब पीने से, किडनी की बीमारी होने से, कब्ज आदि की कुछ दवाओं के असर से और क्रोनिक पाचनतंत्र की बीमारी से शरीर मैग्नीशियम एब्जौर्ब नहीं कर पाता है और इस की कमी हो सकती है.

मैग्नीशियम टैस्ट: डाक्टर आप के स्वास्थ्य की हिस्ट्री जानना चाहेंगे, जैसे डायबिटीज़, थाईरायड या प्रैग्नैंसी की प्रौब्लम आदि लो मैग्नीशियम के संकेत हो सकते हैं. इन के अतिरिक्त हाल में हुई किसी सर्जरी से भी मैग्नीशियम की कमी हो सकती है. मैग्नीशियम का स्तर बढ़ने की संभावना कम होती है. किडनी खराब रहने से और कुछ दवाओं के इस्तेमाल से ऐसा हो सकता है. यह बहुत खतरनाक है और इस से हार्ट फेल्योर हो सकता है.

मैग्नीशियम लैवल की जांच के लिए आमतौर पर ब्लड और यूरिन टैस्ट किए जाते हैं. ब्लड में सिरम मैग्नीशियम कौन्सैन्ट्रेशन लैवल 1.7 – 2.3 एमजी सामान्य होता है. 1.2 एमजी लैवल बहुत खतरनाक होता है.

ब्लड टैस्ट से मैग्नीशियम की सही जानकारी नहीं भी मिल सकती क्योंकि ज्यादातर मैग्नीशियम हड्डी में स्टोर्ड रहता है. इस के अलावा रेड ब्लड सेल्स में मैग्नीशियम टैस्ट, सेल्स में मैग्नीशियम लैवल का टैस्ट, ब्लड में मैग्नीशियम दे कर फिर यूरिन टैस्ट करना ताकि मूत्र से निकलने वाले मैग्नीशियम का पता चले.

लो मैग्नीशियम के सिंप्टम्स: पाचनशक्ति में कमी, अनिद्रा, मिचली या उलटी और कमजोरी. इस की ज्यादा कमी से मसल क्रैम्प, सीजर या ट्रेमर (शरीर का अनियंत्रित शेक करना), सिरदर्द, कमजोर हड्डी, ओस्टोपोरोसिस और ह्रदय गति रुकने से सडेन डैथ भी हो सकती है. इस के चलते पोटैशियम और कैल्शियम की कमी भी हो सकती है.

कितने मैग्नीशियम की प्रतिदिन जरूरत

1-3 साल 80 एमजी
4-8 साल 130 एमजी
9-13 साल 240 एमजी

महिला

14-18 साल 360 एमजी
19 साल से ज्यादा 310-320 एमजी

प्रैग्नैंट और ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलाओं को ज्यादा मैग्नीशियम की जरूरत होती है, यह उन की उम्र पर भी निर्भर करता है. प्रैग्नैंसी में 350-400 एमजी और ब्रेस्टफीडिंग में 310-360 एमजी की जरूरत होती है.

पुरुष

14-18 साल 410 एमजी
19-30 साल से ज्यादा 400 एमजी
31 साल से ज्यादा – 420 एमजी

टैस्ट कराने के बाद डाक्टर सही उपचार की सलाह देंगे.

हाइपोमैगनेसेमिया या लो मैग्नीशियम का उपचार: लो मैग्नीशियम में नैचुरल खाद्य सामग्रियों से इस की भरपाई की जा सकती है- केला, आलू, पीनट बटर, बादाम, काजू आदि नट्स, बीन्स, पालक, होल ग्रेन फ़ूड, दूध, बौटल्ड वाटर, मछली, ब्रेकफास्ट सीरियल आदि.

मैग्नीशियम के ओवरडोज से दस्त, मिचली, सिरदर्द, लो ब्लडप्रैशर, मसल्स की कमजोरी, थकावट, पेट फूलना जानलेवा हो सकता है. इस से हार्ट फेल, लकवा या कोमा में जाने की आशंका भी रहती है.

हाइपरमैगनेसेमिया या मैग्नीशियम ज्यादा होने से उपचार: 2.6 एमजी या अधिक मैग्नीशियम सिरम कौन्सैन्ट्रेशन होना हाइपरमैगनेसेमिया माना जाता है. इस की संभावना बहुत कम होती है पर कभी मैग्नीशियम का ओवरडोज लेने से ऐसी स्थिति हो सकती है. 7-12 एमजी या अधिक होना बहुत खतरनाक होता है. इस में हार्ट, लंग्स डैमेज और लकवा हो सकता है. ऐसे में सांस लेने के उपकरण की सहायता लेनी पड़ सकती है, कैल्शियम ग्लुकोनेट या कैल्शियम क्लोराइड का इंजैक्शन, डायलेसिस या स्टोमक पंपिंग (गैस्ट्रिक लावेज) किया जा सकता है. मामूली ओवरडोज में कब्ज और एसिडिटी की दवा व मैग्नीशियम सप्लीमैंट, यदि आप ले रहे हैं तो, बंद करना पड़ता है.

दीवाली नोस्टेलजिया से बचें चेंज को स्वीकारें

रितिका की मौम अपनी स्कूल फ्रैंड से फोन कौल पर अपने समय के दीवाली के त्योहार से जुड़े नोस्टेलजिक पलों को याद कर रही थीं, “यार अब दीवाली में वो मजा ही नहीं रहा. दीवाली की वो रौनक ही नहीं रही अब जो हमारे टाइम पर होता था. दीवाली तो है, पर वो खुशियां नहीं. घर में कई दिनों पहले बनने वाले खाने के तरहतरह के पकवान, मिठाइयां, मां की मदद से चकली, शक्करपारे, चिवड़ा वगैरह बनाना. उस समय सब एक साथ बैठे पूजा करते थे, खाना खाते थे, खूब पटाखे जलाते थे आज न तो वो दीवाली है और न ही वो खुशियां.

“याद है तुम्हें उस पटाखे जलाने का भी अपना मजा था. कैसे हम पटाखे धूप में रखते थे कि अगर धूप में नहीं रखे तो वे फुस्स हो जाएंगे. हमें जो फुलझड़ियां मिलती थी और उन्हें जला कर हम कितने खुश होते थे. अब तो बच्चे दीये कम और बिजली वाली एलईडी लाइट्स ही लगाते हैं.”

“हां यार , दीवाली के कई दिन पहले ही हम बाजार से दीये ले कर आते थे और अपने परिवार वालों से ज्यादा दीये लेने की जिद करते थे ताकि दीवाली पर घर सजाने में कोई कसर न रह जाए. बारीबारी दीयों में तेल डालना, बधाई देने और मिलने अपने रिश्तेदारों के यहां जाना. सही बात है यार, चल फिर बाद में बात करते हैं” कह कर रीतिका की मौम ने फोन रख दिया.

16 साल की रीतिका अपनी मौम के पास पहुंची और बोली, “मौम माना कि बदलते दौर में बहुत कुछ बदला है, दीवाली मनाने के तरीके भी बदल गए हैं. हर पीढ़ी दीवाली को अपने ढंग से मनाती है लेकिन मुझे लगता है हमें बदलते समय के साथ बदलना चाहिए और हल पल को एन्जोय करना चाहिए.” यह कह कर वह अपनी मौम के गले लग गई.

पुराने समय से कंपैरिजन करने में कोई समझदारी नहीं

पुराने समय को अच्छा और आज के समय गलत बता कर नुक्स निकालना या अपने समय से कंपेरिजन करने में कोई समझदारी नहीं है. बदलते समय के साथ अब बहुत सहूलियतें आ गई हैं. इस में आप ही सोचिए आज एक क्लिक पर घर बैठे आप के सामने बिना कहीं गए खानेपीने, कपड़े, ग्रोसरी या डेकोरेशन का सामान घर पर आ जाता है तब यह कहां पोसिबल था. बातबात पर “हमारे टाइम में तो ऐसे होता था” यह कह कर त्योहार का मज़ा किरकिरा ही होगा. बदलाव प्रकृति का नियम है और चेंज को एकसेप्ट कर के त्योहारों का मजा लेना चाहिए.

दीवाली गिफ्ट्स की औनलाइन शौपिंग से बढ़ाएं रिश्तों में मिठास

भागदौड़ भरी जिंदगी में समय निकालना और बाजार जा कर गिफ्ट्स खरीदना अब प्रेक्टिकल नहीं रह गया है इसलिए औनलाइन शौपिंग वेबसाइटों से ई-वाउचर, दीवाली गिफ्ट्स की शौपिंग कर के करीबियों को दीवाली गिफ्ट्स देना एक बेस्ट औप्शन है. अमेजन, फ्लिपकार्ट, मिंत्रा, मीशो, जिओ मार्ट जैसे ढेरों औनलाइन शौपिंग पोर्टल्स पर फेस्टिवल सेल्स लगी रहती हैं जहां लाखों शानदार दीवाली गिफ्ट के औप्शन हैं और आज का यूथ घर बैठे इन्हें और्डर कर सकता है और दीवाली पर अपने फ्रैंड्स, रेलटिव्स, क्लीग्स के साथ गिफ्ट्स एक्सचेंज कर के अपने रिश्तों को मजबूत बना सकता है.

ये सभी दीवाली गिफ्ट इन दिनों काफी ज्यादा ट्रेंड में भी चल रहे हैं. इस लिस्ट में मिल रहे दीवाली गिफ्ट में ढेरों चौइसेज हैं जिन्हें वे और्डर कर सकते हैं. दीवाली के त्योहार का जश्न मना सकते हैं. दीवाली गिफ्ट की ये औनलाइन लिस्ट इन दिनों काफी ज्यादा पसंद की जा रही है. हैवी डिस्काउंट और औफर्स के साथ घर बैठे बढ़िया डील पाने के लिए सेल को भी चेक किया जा सकता है.

अपनों के लिए दीवाली गिफ्ट्स खरीदने के लिए भीड़भाड़ में धक्के खाने के झंझट और मोलभाव करने की मुसीबत से बचते हुए औनलाइन शौपिंग के जरिए दीवाली गिफ्ट को काफी सस्ते दाम में लिया जा सकता है. हां अगर को कहे कि उसे भीड़भाड़ में जा कर, शोरशराबे और दुकानदार से नोंकझोंक करने में ही मजा आता है तो क्या ही कह सकते हैं.

इको-फ्रैंडली दीवाली है सही औप्शन

कई लोग बड़े गर्व से बताते हैं कि उन के समय में वे अंधाधुंध पटाखे जलाया करते थे. इसे वे अपने सुनहरे किस्सों के रूप में सुनाते हैं. वे ये नहीं समझते कि शोर करने वाले बम और फैंसी रौकेट अंधाधुंध तरीके से जलाए जाने से पर्यावरण को तो नुकसान होता ही है साथ ही पटाखों की आवाज जानवरों को भी परेशान करती है. कई बार हमारे घर के आसपास रहने वाले अधिक उम्र के लोगों को इन पटाखों की आवाज और उस से निकले धुएं से परेशानी हो सकती है इसलिए बदलते समय में दीवाली पर प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों के बजाय, इको-फ्रैंडली पटाखे इस्तेमाल करना बेस्ट औप्शन है.

मन से खुशी जताएं और दीवाली मनाएं

खुशी का संबंध मन से ही होता है. दीवाली के दिन रिश्तेदारों और दोस्तों के साथ घर में छोटी सी पार्टी करना एक सुखद अनुभव हो सकता है. घर के टीनएजर्स अगर अपने दोस्तों के साथ कहीं घूमने का प्लान बना रहे हैं तो अच्छी बात है.

दीवाली के उत्सव में गेम्स नाइट्स आयोजित करने की एक अच्छी परंपरा है, चाहे वह आप के घर पर हो या दोस्तों के घर. दीवाली की रात में एक साथ कोई गेम एक्टिविटी प्लान करें. साथ में मिल कर म्यूजिक पर डांस करें. गेम्स जैसे डम्ब शराड एक साथ खेल सकते हैं.

दीवाली के डिजिटल बधाई संदेश

परंपरागत रूप से पत्र, पोस्टकार्ड, स्मृति चिन्ह भेजना अब उबाऊ होने के साथसाथ प्रैक्टिकल भी नहीं है. ऐसे में मैसेज ईमेल, ई-कार्ड भेजे जा सकते हैं. दीवाली पर क्रिएटिविटी का एक रूप पर्सनल वीडियो मैसेज हो सकता है. यह आप के अपनों को खुशी और अपनेपन का एहसास देगा.

दीवाली पर दूर बैठे अपनों के साथ स्काइप सेशन, इंस्टाग्राम और फेसबुक स्टोरीज आदि के जरिए करीब आना दीवाली के जश्न को एक नया रूप दे सकता है . आप सोशल मीडिया लाइव सेशन के ज़रिए जुड़ना और सभी को अपनी दीवाली की झलक दिखाना भी कम इनोवेटिव नहीं होगा.

किचन में पसीना क्यों बहाना

खाने के शौकीनों के लिए भी यह डिजिटल दीवाली है. नहीं, आप को पहले की तरह दावत तैयार करने के लिए रसोई में दिन भर पसीना बहाने की जरूरत नहीं है. मिठाई से ऊब गए हैं और थाई करी खाना चाहते हैं? बस अपना खाना औनलाइन और्डर करें और डिनर से पहले सब कुछ तैयार कर लें. फूड डिलीवरी ऐप्स के जरिए मनचाही मिठाइयां फूड्स और्डर कर सकते हैं. अच्छी बात यह है कि पर पीस के हिसाब से भी इसे मंगवा सकते हैं. परिवार और दोस्तों के साथ स्वादिष्ट खाना और साथ में एक अच्छा टाइम बिताना दीवाली जैसे त्यौहार को और भी खास बना देता है.

घर की साफ सफाई और डेकोरेशन

आजकल घर की साफसफाई के लिए भी औनलाइन सर्विसेज एवलेबल हैं जिन से आप घर की साफसफाई करवा सकते हैं और मार्केट में मिलने वाले इलैक्ट्रानिक दीय, फ्लोटिंग कैंडल्स, बैटरी वाली एलईडी कैंडल, इलैक्ट्रिक लालटेन, बैटरी से घूमने वाले दीये, तरहतरह की फ़ैंसी लाइटों से घर को जगमगा सकते हैं.

कहानी एक अय्याश की : पहले किए मांबाप की कत्ल, फिर पत्नी को उतारा मौत के घाट

उदयन दास की कई माशूकाएं थीं. उन में से एक थी कोलकाता की रहने वाली 26 साला आकांक्षा शर्मा. उस के पिता शिवेंद्र शर्मा पश्चिम बंगाल के बांकुरा जिले के एक बैंक में चीफ मैनेजर थे. भोपाल, मध्य प्रदेश के तकरीबन 32 साला उदयन दास को ऐयाशी करने के लिए दौलत नहीं कमानी पड़ी थी, क्योंकि उस के मांबाप इतना कमा कर रख गए थे कि अगर वह कुछ काम नहीं करता, तो भी जिंदगी में कभी भूखा नहीं सोता.

अब से तकरीबन 8 साल पहले आकांक्षा शर्मा की दोस्ती फेसबुक के जरीए उदयन दास से हुई थी. फेसबुक चैटिंग में उदयन दास ने खुद को आईएफएस अफसर बताया था, जो अमेरिका में रहता है और अकसर भारत आया करता है.

अपने पिता बीके दास को उस ने भेल, भोपाल का अफसर बताया था, जो रिटायरमैंट के बाद रायपुर में खुद की फैक्टरी चला रहे हैं और मां इंद्राणी दास को पुलिस महकमे से रिटायर्ड डीएसपी बताया था. उस ने मां का भी अमेरिका में रहना बताया था.

उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को यह भी बताया था कि वह आईआईटी, दिल्ली से ग्रेजुएट है.

आजकल जैसा कि आमतौर पर फेसबुक चैटिंग में होता है, वह आकांक्षा शर्मा और उदयन दास के मामले में भी हुआ. पहले जानपहचान, फिर दोस्ती और उस के बाद प्यार. जल्द ही दोनों ने मिलनाजुलना शुरू कर दिया.

उदयन दास भले ही भोपाल में रह रहा था, पर आकांक्षा शर्मा के लिए तो वह अमेरिका में था, इसलिए जल्द ही उदयन दास ने उसे बताया कि वह दिल्ली आ रहा है.

दोनों दिल्ली में मिले और कुछ दिन साथ गुजारे. उदयन दास की रईसी का आकांक्षा शर्मा पर खासा असर पड़ा. वे दोनों एकसाथ हरिद्वार, मसूरी और देहरादून भी घूमने गए और एक ही होटल में एकसाथ एक कमरे में रुके. फिर उदयन दास अमेरिका यानी भोपाल लौट गया, इस वादे के साथ कि जल्द ही वह फिर भारत आएगा और अब वे दोनों भोपाल में मिलेंगे, जहां उस के 2 मकान हैं.

उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को बताया था कि उस का भोपाल वाला मकान काफी बड़ा है और उस का नीचे वाला हिस्सा किराए पर ब्रह्मकुमारी आश्रम को दे रखा है.

इन 2-3 मुलाकातों में आकांक्षा शर्मा सोचने लगी कि उदयन दास वैसा ही लड़का है, जैसा वह चाहती थी. वह तो शादी के बाद अमेरिका में नौकरी करने के सपने देखने लगी थी. लिहाजा, उन दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी, कत्ल और कब्र

एक दिन उदयन दास ने आकांक्षा शर्मा को बताया कि उस का मन अब अमेरिका में नहीं लग रहा है और वह उस से शादी कर भोपाल में ही बस जाना चाहता है. इस से अमेरिका जा कर नौकरी करने की आकांक्षा शर्मा की ख्वाहिश मिट्टी में मिल गई, क्योंकि अब तक वह अपने घर वालों को बता चुकी थी कि वह नौकरी करने अमेरिका जा रही है.

आकांक्षा शर्मा उदयन दास को चाहने लगी थी, इसलिए राजी हो गई. आज नहीं तो कल उसे अमेरिका जाने का मौका मिल सकता है, इसलिए वह उदयन की बताई तारीख पर बीते साल जून महीने में भोपाल आ गई. मांबाप से हकीकत छिपाने के लिए उस ने यह झूठ बोला कि वह नौकरी करने न्यूयौर्क जा रही है.

आकांक्षा शर्मा ने भोपाल के ही पिपलानी के काली बाड़ी मंदिर में उदयन दास के साथ शादी भी कर ली. इस दौरान वह फोन पर घर वालों से भी बात करती रही, लेकिन खुद को अमेरिका में होने का झूठ बोलती रही.

कुछ दिन उदयन दास के साथ बीवी की तरह गुजारने के बाद आकांक्षा शर्मा को मालूम हुआ कि उस के शौहर ने उस से कई झूठ बोले हैं, क्योंकि न तो वह कभी अपने मांबाप से फोन पर बात करता था और न ही उन के बारे में पूछने पर कुछ बताता था.

हद तो उस वक्त हो गई, जब आकांक्षा शर्मा को यह पता चला कि उदयन दास अव्वल दर्जे का नशेड़ी है और दूसरी कई लड़कियों से उस के नाजायज ताल्लुकात हैं. जुलाई, तक तो आकांक्षा शर्मा ने अपने घर वालों से फोन पर बात की, लेकिन अब वह उन से कम ही बात करती थी. लेकिन फिर धीरेधीरे वह एसएमएस के जरीए उन से बात करने लगी थी.

14 जुलाई, का दिन आकांक्षा शर्मा पर कहर बन कर टूटा. अगर उदयन दास ने उस से कई झूठ बोले थे, तो एक झूठ उस ने भी उदयन से बोला था. दरअसल, आकांक्षा शर्मा का एक बौयफ्रैंड और था, जिस ने उस के कुछ फोटो, जो कम कपड़ों में थे, ह्वाट्सऐप पर डाल दिए थे. ये फोटो उदयन दास की निगाह में आए, तो वह भड़क उठा.

पूछने पर आकांक्षा ने कुछ सच्ची और कुछ झूठी बातें उसे बताईं, तो उदयन को लगा कि आकांक्षा ने उस से झूठ तो बोला ही है, साथ ही उस के नाजायज ताल्लुकात पुराने बौयफ्रैंड से हैं और वह उसे पैसे भी देती रहती है.

रात को लड़झगड़ कर आकांक्षा तो सो गई, पर उदयन की आंखों में नींद नहीं थी. साथ में सो रही बीवी उसे धोखेबाज लगने लगी थी. रातभर जाग कर उदयन दास आकांक्षा शर्मा के कत्ल की योजना बनाता रहा और सुबह के 5 बजतेबजते उस ने उस की हत्या भी कर डाली.

उदयन ने पहले गहरी नींद में सोती हुई आकांक्षा का चेहरा तकिए से दबाया. जब उस के मर जाने की पूरी तरह से तसल्ली हो गई, तब तकिया हटाया और उस का गला घोंट डाला, जिस से आकांक्षा के गले की हड्डी चटक गई.

अब समस्या आकांक्षा की लाश को ठिकाने लगाने की थी. सुबह नजदीक की दुकान से उदयन दास ने 14 बोरी सीमेंट खरीदा और आकांक्षा की लाश एक पुराने बक्से में डाल दी और तकरीबन 10 बोरी सीमेंट घोल कर उस में भर दिया, जिस से लाश जम जाए. बक्से से बदबू न आए, इसलिए उस के चारों तरफ उस ने सैलो टेप लगा दी.

दोपहर को उस ने अपने एक पहचान वाले मिस्त्री रवि को बुलाया और कमरे में चबूतरा बनाने की बात कही. इस बाबत उदयन ने बहाना यह बनाया कि वह मंदिर बनवाना चाहता है. रवि ने चबूतरा बनाने के लिए कमरा खोदा, पर चूंकि उस के सामने लाश वाला बक्सा नहीं रखा जा सकता था, इसलिए उदयन ने चतुराई से उसे बातों में उलझाया और तगड़ा मेहनताना दे कर चलता कर दिया.

इस के बाद उस ने बक्सा गड्ढे में डाला और उस पर चबूतरा बना दिया. खूबसूरती बढ़ाने के लिए उस पर मार्बल भी जड़ दिया.

यों पकड़ा गया

आकांक्षा शर्मा के मांबाप बांकुरा में परेशान थे, क्योंकि धीरेधीरे उन की बेटी ने एसएमएस के जरीए भी बात करना कम कर दिया था. कुछ दिनों तक तो उन्होंने सब्र रखा, लेकिन किसी अनहोनी का शक उन्हें हुआ, तो उन्होंने आकांक्षा की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी.

बांकुरा क्राइम ब्रांच ने जब आकांक्षा के मोबाइल फोन की लोकेशन ट्रेस की, तो वह साकेत नगर, भोपाल की निकली. आकांक्षा के पिता शिवेंद्र शर्मा भोपाल आए और उदयन से मिले, क्योंकि आकांक्षा उन्हें उस के बारे में पहले बता चुकी थी.

उदयन ने उन्हें गोलमोल बातें बनाते हुए चलता कर दिया कि आकांक्षा तो न्यूयौर्क में नौकरी कर रही है. शिवेंद्र शर्मा के हावभाव देख कर समझ तो गए कि दाल में कुछ काला जरूर है, पर कुछ कहने की हालत में नहीं थे.

बांकुरा जा कर उन्होंने फिर पुलिस पर दबाव बनाया, तो क्राइम ब्रांच के टीआई अमिताभ कुमार 30 जनवरी, को अपनी टीम समेत भोपाल आए और गोविंदपुरा इलाके के सीएसपी वीरेंद्र कुमार मिश्रा से मिल कर उन्हें सारी बात बताई. इस पुलिस टीम के साथ आकांक्षा का छोटा भाई आयुष सत्यम भी था, जो बहन की चिंता में घुला जा रहा था.

पुलिस वालों ने योजना बना कर उदयन की निगरानी की, तो उस की तमाम हरकतें रहस्यमय निकलीं. 31 जनवरी, और 1 फरवरी, को पुलिस उदयन की निगरानी करती रही. इस से ज्यादा कुछ और हासिल नहीं हुआ, तो उन्होंने 2 फरवरी को उदयन के घर एमआईजी 62, सैक्टर 3-ए, साकेत नगर पर दबिश डाल दी.

उस वक्त उदयन दरवाजे पर ताला लगा कर अंदर बैठा था. गोविंदपुरा थाने के एएसआई सत्येंद्र सिंह कुशवाह छत के रास्ते अंदर गए और उदयन से मेन गेट का ताला खुलवाया, फिर तमाम पुलिस वाले अंदर दाखिल हुए.

अंदर का नजारा अजीबोगरीब था. उदयन का सारा घर धूल और गंदगी से भरा पड़ा था. तीनों कमरों में तकरीबन 10 हजार सिगरेट के ठूंठ बिखरे पड़े थे और शराब की खाली बोतलें भी लुढ़की पड़ी थीं. खाने की बासी प्लेटें भी पाई गईं, जिन से बदबू आ रही थी.

पर सब से ज्यादा हैरान कर देने वाली बात दूसरे कमरे में बना एक चबूतरा था, जिस के ऊपर फांसी का फंदा लटक रहा था और कमरों की दीवारों पर जगहजगह प्यारभरी बातें लिखी हुई थीं.

चबूतरे के बाबत पुलिस वालों ने सवालजवाब शुरू किए, तो पहले तो उदयन खामोश रहा, पर थोड़ी देर बाद ही उस ने फिल्मी स्टाइल में कहा कि उस ने आकांक्षा का कत्ल कर दिया है और उस की लाश इस चबूतरे के नीचे दफन है.

इतना सुनते ही पुलिस वालों के होश फाख्ता हो गए. उन्होंने तुरंत चबूतरे की खुदाई के लिए मजदूर बुला लिए. चबूतरा इतना पक्का था कि मजदूरों से नहीं खुदा, तो पुलिस वालों ने उसे जेसीबी मशीनों से खुदवाया. थोड़ी खुदाई के बाद निकला वह बक्सा, जिस में आकांक्षा की लाश 2 महीनों से पड़ी थी.

बक्सा खोला गया, तो उस में से आकांक्षा की मुड़ीतुड़ी हड्डियां निकलीं, जिन्हें पहले पोस्टमार्टम और फिर डीएनए टैस्ट के लिए भेज दिया गया.

खुली एक और कहानी

उदयन दास के मांबाप कहां हैं, यह सवाल भी अहम हो चला था. पुलिस वालों ने जब उन के बारे में पूछा, तो पहले तो उस ने उन्हें टरकाने की कोशिश की, पर जैसे ही पुलिस ने उस पर थर्ड डिगरी का इस्तेमाल किया, तो उस ने पूरा सच उगल दिया कि उस ने अपने मांबाप की हत्या अब से तकरीबन 5 साल पहले रायपुर वाले मकान में की थी और उन्हें लान में दफना दिया था.

मामला कुछ यों था. भोपाल में जब उदयन दास 7वीं जमात में था, तब उस ने एक दोस्त का स्कूल की दीवार पर सिर मारमार कर फोड़ दिया था. रायपुर आ कर भी उस की बेजा हरकतें कम नहीं हुई थीं. पढ़ाईलिखाई में तो वह शुरू से ही फिसड्डी था, पर रायपुर आ कर नशा भी करने लगा था.

मांबाप चूंकि उसे पढ़ाईलिखाई के बाबत डांटते रहते थे, इसलिए वह उन से नफरत करने लगा था. जब कालेज की डिगरी पूरी होने का वक्त आया, तो उस ने मांबाप से झूठ बोल दिया कि वह पास हो गया है. इस पर मांबाप ने उसे नौकरी करने को कहा, तो उसे लगा कि झूठ पकड़ा जाने वाला है. लिहाजा, उस ने मांबाप को ही ठिकाने लगाने का फैसला ले डाला.

एक रात जब पिता चिकन लेने बाजार गए हुए थे और मां ऊपर की मंजिल पर कमरे में कपड़े रख रही थीं, तो उस ने गला घोंट कर उन का कत्ल कर डाला. पिता जब बाजार से आए, तो उन की चाय में उस ने नींद की गोलियां मिला दीं और उन के गहरी नींद में चले जाने पर उन का भी गला घोंट दिया.

मांबाप की लाशें ठिकाने लगाने से उस ने मजदूर बुला कर लान में 2 बड़े गड्ढे खुदवाए और देर रात लाशें घसीट कर उन में डाल दीं और सीमेंट से उन्हें चुन दिया. मांबाप की हत्या करने के बाद उदयन ने रायपुर वाला मकान 30 लाख रुपए में बेच दिया और भोपाल आ कर साकेत नगर वाले घर में ऐशोआराम की जिंदगी जीने लगा.

निकम्मा और ऐयाश उदयन चालाक भी कम नहीं था. उस ने इंदौर से पिता का और इटारसी नगरपालिका से मां की मौत का झूठा सर्टिफिकेट बनवाया और उन की बिना पर सारी जायदाद अपने नाम करा ली.

मां की पैंशन के लिए जरूरी था कि उन के जिंदा होने का सर्टिफिकेट बनवाया जाए, जो उस ने दिल्ली की डिफैंस कालोनी के एक डाक्टर से बनवाया और बैंक मुलाजिमों को घूस दे कर हर महीने पैंशन निकालने लगा.

वैसे, उदयन दास के मामले से एक सबक लड़कियों को जरूर मिलता है कि फेसबुक की दोस्ती उस वक्त जानलेवा हो जाती है, जब वे उदयन दास जैसे जालसाज और फरेबियों के चंगुल में फंस कर घर वालों से झूठ बोलने लगती हैं और एक अनजान आदमी से चोरीछिपे शादी कर लेती हैं, इसलिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल उन्हें सोचसमझ कर करना चाहिए.

सैक्स और सिर्फ सैक्स

गिरफ्तारी के बाद भोपाल से रायपुर और रायपुर से बांकुरा ले जाए गए उदयन दास को जब 20 फरवरी, को भोपाल लाया गया, तब पता चला कि शादी के बाद अपनी बीवी आकांक्षा शर्मा के साथ वह खानेपीने के अलावा सिर्फ सैक्स ही करता रहा था. लगता ऐसा है कि सैक्स उस के लिए जरूरत नहीं, बल्कि एक खास किस्म की बीमारी बन गई थी. लगातार सैक्स करने में वह थकता इसलिए नहीं था कि हमेशा नशे में रहता था.

मुमकिन है कि आकांक्षा शर्मा को उस की इस आदत पर भी शक हुआ हो और उस ने एतराज जताया हो, लेकिन चूंकि वह एक तरह से उस की कैदी सी हो कर रह गई थी, इसलिए जीतेजी किसी से इस बरताव का जिक्र नहीं कर पाई और पूछने पर उदयन ने पुलिस वालों को बताया कि वह जब 8वीं जमात में था, तब जेब में कंडोम रख कर चलता था कि क्या पता कब कोई लड़की सैक्स करने के लिए राजी हो जाए.

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