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पतिया सास: आखिर क्यों पति कपिल से परेशान थी उसकी पत्नी?

कविता ने टाइम देखा. घड़ी को 6 बजाते देख चौंक गई. कपिल औफिस से आते ही होंगे. किट्टी पार्टी तो खत्म हो गई थी, पर सब अभी भी गप्पें मार रही थीं. किसी को घर जाने की जल्दी नहीं थी.

कविता ने अपना पर्स संभालते हुए कहा, ‘‘मैं चलती हूं, 6 बज गए हैं.’’

नीरा ने आंखें तरेरीं, ‘‘तुझे क्या जल्दी है? मियाबीवी अकेले हो. मुझे देखो, अभी जाऊंगी तो सास का मुंह बना होगा, यह सोच कर अपना यह आनंद तो नहीं छोड़ सकती न?’’

अंजलि ने भी कहा, ‘‘और क्या… कविता, तुझे क्या जल्दी है?  हम कौन सा रोजरोज मिलते हैं?’’

‘‘हां, पर कपिल आने वाले होंगे.’’

‘‘तो क्या हुआ? पति है, सास नहीं. आराम से बैठ, चलते हैं अभी.’’

कविता बैठ तो गई पर ध्यान कपिल और घर की तरफ ही था. दोपहर वह टीवी पर पुरानी मूवी देखने बैठ गई थी. सारा काम पड़ा रह गया था. घर बिखरा सा था. उस के कपड़े भी बैडरूम में फैले थे. ड्राइंगरूम भी अव्यवस्थित था.

वह तो 4 बजे तैयार हो कर पार्टी के लिए निकल आई थी. उसे अपनी सहेलियों के साथ मजा तो आ रहा था, पर घर की अव्यवस्था उसे चैन नहीं लेने दे रही थी.

वह बैठ नहीं पाई. उठ गई. बोली, ‘‘चलती हूं यार, घर पर थोड़ा काम है.’’

‘‘हां, तो जा कर देख लेना, कौन सी तेरी सास है घर पर, आराम से कर लेना,’’

सीमा झुंझलाई, ‘‘ऐसे डर रही है जैसे सास हो घर पर.’’

कविता मुसकराती हुई सब को बाय कह कर निकल आई. घर कुछ ही दूरी पर था. सोचा कि आज शाम की सैर भी नहीं हो पाई, हैवी खाया है, थोड़ा पैदल चलती हूं, चलना भी हो जाएगा. फिर वह थोड़े तेज कदमों से घर की तरफ बढ़ गई. सहेलियों की बात याद कर मन ही मन मुसकरा दी कि कह रही थीं कि सास थोड़े ही है घर पर… उन्हें क्या बताऊं चचिया सास, ददिया सास तो सब ने सुनी होंगी, पता नहीं पतिया सास किसी ने सुनी भी है या नहीं.

‘पति या सास’ पर वह सड़क पर अकेली हंस दी. जब उस का विवाह हुआ, सब सहेलियों ने ईर्ष्या करते हुए कहा था, ‘‘वाह कविता क्या पति पाया है. न सास न ससुर, अकेला पति मिला है. कोई देवरननद का चक्कर नहीं. तू तो बहुत ठाट से जीएगी.’’

कविता को भी यही लगा था. खुद पर इतराती कपिल से विवाह के बाद वह दिल्ली से मुंबई आ गई थी. कपिल ने अकेले जीवन जीया है, वह उसे इतना प्यार देगी कि वे अपना सारा अकेलापन भूल जाएंगे. बस, वह होगी, कपिल होंगे, क्या लाइफ होगी.

कपिल जब 3 साल के थे तभी उन के मातापिता का देहांत हो गया था. कपिल को उन के मामामामी ने ही दिल्ली में पालापोसा था, नौकरी मिलते ही कपिल मुंबई आ गए थे.

खूब रंगीन सपने संजोए कविता ने घरगृहस्थी संभाली तो 1 महीने में ही उसे महसूस हो गया कि कपिल को हर बात, हर चीज अपने हिसाब से करने की आदत है. हमेशा अकेले ही सब मैनेज करने वाले कपिल को 1-1 चीज अपनी जगह साफसुथरी और व्यवस्थित चाहिए होती थी. घर में जरा भी अव्यवस्था देख कर कर चिढ़ जाते थे.

कविता को प्यार बहुत करते थे पर बातबात में उन की टोकाटाकी से कविता को समझ आ गया था कि सासससुर भले ही नहीं हैं पर उस के जीवन में कपिल ही एक सास की भूमिका अदा करेंगे और उस ने अपने मन में कपिल को नाम दे दिया था पतिया सास.

कपिल जब कभी टूअर पर जाते तो कविता को अकेलापन तो महसूस होता पर सच में ऐसा ही लगता है जैसे अब घर में उसे बातबात पर कोई टोकेगा नहीं. वह अंदाजा लगाती है, सहेलियों को सास के कहीं जाने पर ऐसा ही लगता होगा. वह फिर जहां चाहे सामान रखती है, जब चाहे काम करती है. ऐसा नहीं कि वह स्वयं अव्यवस्थित इनसान है पर घर घर है कोई होटल तो नहीं. इनसान को सुविधा हो, आराम हो, चैन हो, यह क्या जरा सी चीज भी घर में इधरउधर न हो. शाम को डोरबैल बजते ही उसे फौरन नजर डालनी पड़ती है कि कुछ बिखरा तो नहीं है. पर कपिल को पता नहीं कैसे कहीं धूल या अव्यवस्था दिख ही जाती. फिर कभी चुप भी तो नहीं रहते. कुछ न कुछ बोल ही देते हैं.

यहां तक कि जब किचन में भी आते हैं तो कविता को यही लगता है कि साक्षात सासूमां आ गई हैं, ‘‘अरे यह डब्बा यहां क्यों रखती हो? फ्रिज इतना क्यों भरा है? बोतलें खाली क्यों हैं? मेड ने गैस स्टोव ठीक से साफ नहीं किया क्या? उसे बोलो कभी टाइल्स पर भी हाथ लगा ले.’’

कई बार कविता कपिल को छेड़ते हुए कह भी देती, ‘‘तुम्हें पता है तुम टू इन वन हो.’’

वे पूछते हैं, ‘‘क्यों?’’

‘‘तुम में मेरी सास भी छिपी है. जो सिर्फ मुझे दिखती है.’’

इस बात पर कपिल झेंपते हुए खुले दिल से हंसते तो वह भी कुछ नहीं कह पाती. सालों पहले उस ने सोच लिया था कि इस पतिया सास को जवाब नहीं देगी. लड़ाईझगड़ा उस की फितरत में नहीं था. जानती थी टोकाटाकी होगी. ठीक है, होने दो, क्या जाता है, एक कान से सुन कर दूसरे से निकाल देती हूं. अब तो विवाह को 20 साल हो गए हैं. एक बेटी है, सुरभि. सुरभि के साथ मिल कर वह अकसर इस पतिया सास को छेड़ती रहती है. 2 ही तो रास्ते हैं या तो वह भी बहू बन कर इस पतिया सास से लड़ती रहे या फिर रातदिन होने वाली टोकाटाकी की तरफ ध्यान ही न दे जैसाकि वह सचमुच सास होने पर करती.

सुरभि भी क्लास से आती होगी. यह सोचतेसोचते वह अपनी बिल्डिंग तक पहुंची ही थी कि देखा कपिल भी कार से उतर रहे थे. कविता को देख कर मुसकराए. कविता भी मुसकराई और घर जा कर होने वाले वार्त्तालाप का अंदाजा लगाया, ‘‘अरे ये कपड़े क्यों फैले हैं? क्या करती हो तुम? 10 मिनट का काम था… यह सुरभि का चार्जर अभी तक यहीं रखा है, वगैरहवगैरह.’’

कपिल के साथ ही वह लिफ्ट से ऊपर आई. घर का दरवाजा खोल ही रही थी कि कपिल ने कहा, ‘‘कविता, कल मेड से दरवाजा साफ करवा लेना, काफी धूल जमी है दरवाजे पर.’’

‘‘अच्छा,’’ कह कर कविता ने मन ही मन कहा कि आ गई पतिया सास, कविता, सावधान.

किटी पार्टी औरतों का सब से बड़ा अपमान

किटी पार्टी का पूरा चलन औरतों ने अपने आप को बहकाने के लिए किया है कि हम फ्री नहीं हैं. आएदिन हमारी किटी है हम तो बहुत बिजी हैं. ठीक उस तरह जैसे कि धर्म के ठेकेदार महिलाओं को धकेलते हैं कि तुम पूजापाठ करो और बिजी रहो उसी तरह पति, पड़ोसी, दूसरे घरवाले टाइम पास करने के नाम पर किटी की तरफ धकेलते हैं.

पहले जब 5-8 बच्चे होते थे तब भी औरतों को हर समय बिजी रखने के लिए त्यौहारों की एक लंबी फेहरिस्त बनाई हुई थी ताकि औरतों को सोचनेसमझने और पढ़नेलिखने का समय तक न मिले. अब पढ़ीलिखी पर नौकरी नहीं कर रही औरतों को किट्टियां पकड़ा दी गई हैं कि वे कुछ सोचेसमझे नहीं.

यह धर्म और समाज की साजिश है और औरतें खुद इस के जाल में फंस कर इतराती फिरतीं हैं कि देखो मेरा जाल कितना सुंदर है, रेशम का है, इस में खानापीना है, दोस्त सहेलियां हैं.

‘शर्माजी की नमकीन’ फिल्म तो देखी ही होगी. वहीं ऋषि कपूर की आखिरी फिल्म जो किटी पार्टी पर ही केंद्रित है. इन किट्टियों में हाई प्रोफाइल महिलाएं इकठा होती हैं और खूब जम कर अपने पति, पड़ोसन और रिश्तेदारों के बारे में खुल कर गौसिप करती नजर आती हैं. इन किटी पार्टीज में लेडीज सिर्फ यही बातें यानि चुगलियां ही नहीं करतीं बल्कि अपने बैडरूम के सैक्स तक की बातें डिस्कस कर लेती हैं. कुछ को अफसोस है कि उन का पति अच्छा नहीं है, कुछ को अफ़सोस है उन्होंने शादी के बाद अपना कैरिअर छोड़ दिया और भी न जाने क्याक्या इन पार्टीज में होता है.

ये सभी महिलाएं अपना टाइम पास करने के लिए आती हैं और अपना समय और पैसा दोनों ही बरबाद कर के चली जाती हैं. वही समय जिसे वह किसी प्रोडक्टिव काम में लगा सकती थीं.

किटी पार्टी क्या है?

किटी पार्टी आमतौर पर कालोनी की महिलाएं मिल कर करती हैं और अधिकतर शादीशुदा महिलाएं ग्रुप बना कर इस पार्टी का आयोजन करती हैं. कई महिलाएं हफ्ते में एक बार यह पार्टी किया करती हैं, जबकि कुछ महिलाएं महीने में एक दिन इस पार्टी का आयोजन करती हैं.

कैसे काम करती है किटी?

कुछ महिलाएं मिल कर किटी बनती हैं. उस में उन की लिस्ट होती हैं जो एक ही कालोनी की हो सकती हैं और बाहर की भी होती हैं. आमतौर पर किटी में 12 महिलाएं होती हैं, ताकि एक साल का चक्र पूरा किया जा सके. अब मान लीजिए कि सभी को 2000 रुपये का योगदान करना होता है. इस तरह 24000 रुपये का फंड तैयार होगा. ये फंड आपसी सहमति या ड्रा द्वारा किसी एक महिला को दे दिया जाता है यानि की महिलाओं की किटी पार्टी में एक बजट कमेटी (BC) बनाई जाती है. इस में कुछ महिलाएं निश्चित राशि दे कर एक फंड तैयार करती हैं, और इस फंड को कमेटी की किसी एक महिला को दे दिया जाता है. हर महीने अलगअलग महिला को ये फंड दिया जाता है और इस तरह ये चक्र पूरा हो जाता है.

किटी की ही एक महिला पूरी किटी का कार्येभार संभालती है, पैसों का हिसाबकिताब भी उसी के पास होता है. वह पेमेंट का पूरा हिसाब रखती है. उस के पास डायरी होती है जिस में वह नोट करती रहती है कि किस की किटी हो चुकी है और किन की होनी बाकी है. किस का कितना हिसाब रह गया है ये भी वही देखती है. दूसरे शब्दों में कहें तो ये किटी की अकाउंटेंट होती है. यह गुलाम महिला दूसरी गुलामों की नेतागिरी कर के खूब खुश रहती है

यहां महिलाएं खुल कर मस्ती करती हैं. किटी पार्टी में हौट टौपिक, अफेयर के बारे में इन्हें बातचीत करने से परहेज नहीं है. इस के लिए शहर के कई नामी होटलों में टेबल भी बुक होते हैं. इस के अलावा वीकेंड में आउटिंग करने के लिए भी जाती हैं.

पहले घर में ही होती थी पार्टी

कुछ समय पहले तक किटी पार्टी महिलाएं अपने घरों में ही कर लिया करती थीं. हर महीने किटी से जुड़ी किसी भी एक महिला के घर को वैन्यू बना लिया जाता था. इस महिला की जिम्मेदारी होती थी कि वो अपनी सभी सहेलियों के लिए खाने और गेम का इंतजाम करेगी.

अब होटलों और रेस्टोरेंट हैं वैन्यू

किटी पार्टी ने अपना दायरा बड़ा किया और अब होटलों और रेस्टोरेंट में किटी पार्टी प्लान की जाती हैं. इस के लिए बाकायदा बुकिंग की जाती है. थीम तैयार की जाती है. इस थीम के आधार पर ही सजावट होती है. महिलाओं को भी इसी थीम के आधार पर तैयार हो कर आना होता है. इस के लिए इवेंट मैनेजर्स की मदद ली जाती है. अब अरेबियन थीम, फियर फैक्टर थीम, इलेक्शन थीम जैसे नए आइडियाज किटी पार्टी का हिस्सा होते हैं. महिलाओं के बीच फेस्टिवल्स से जुड़ी थीम होती हैं. इन किटी पार्टियों में गेस्ट स्पीकर्स और टैरो कार्ड रीडर्स भी बुलाए जाते हैं. दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे शहरों में होने वाली किटी पार्टीज में स्टैंड अप कौमेडियंस तक को न्योता दिया जाता है.

किटी से ताश खेलने की लत लग

किटी ताश का एक खेल होता है जिसे पैसे के साथ या बिना पैसे के खेला जाता है. आमतौर पर शहरी पाश्चात्य संस्कृति की महिलाओं के बीच इस तरह की पार्टी का आयोजन किया जाता है जिस में वे सब महिलाएं एकत्रित हो कर समय बिताने के लिए ताश के साथ चाय नाश्ता और कुछ गपशप करती हैं. ये ताश के हर तरह के गेम खेलती हैं जो धीरेधीरे पैसे लगाने में तब्दील हो जाता है और कुछ महिलाएं इस में पैसा हारती हैं तो कुछ जीतती भी हैं. वो बात अलग है की बहुत बड़ी रकम तो इन में नहीं लगाई जाती लेकिन इस से आदत लग जाती है जो कसीनों में जा कर ही पूरी होती है.

हर थीम के लिए कपड़ों पर हज़ारों रुपए खर्च

किटी में जाने वाली महिलाएं आएदिन पतियों की नाक में दम किए रखती हैं कि अब अगले महीने की किटी के लिए मुझे शौपिंग करनी है. और उस लाइफस्टाइल को मैनेज करने के लिए वो पतियों की जेब ढेली करती हैं. दरअसल, अब किटी पार्टी की थीम के आधार पर महिलाएं अपने डिजायनर्स से अपने कपड़े तैयार करवाती हैं. गुजराती, स्कूल, रेट्रो, बौलीवुड, कलर, मुगल-ए-आजम आदि थीम्स रखी जाती हैं. कुछ डिजायनर्स अब किटी पार्टियों के लिए किराए पर भी कपड़े उपलब्ध कराने लगे हैं. पति चूंचूं तो करते हैं पर रोकते नहीं क्योंकि वे खुद साजिश से खुश रहते हैं.

पार्टी के लिए पैसा अलग से

पहले जब घरों में किटी होती थी तब जिस की किटी निकलती थी उसे ही खानपान का इंतजाम करना पड़ता था लेकिन अब किटी होटल्स में होने लगी हैं. जहां मोटेमोटे बिल आते हैं इसलिए इन पार्टीज का बिल अलग से देना पड़ता है जोकि कई हजार तक आता है. 2 हजार की किटी के लिए होने वाली पार्टी में हिस्सा लेने के लिए 2 से 5 हजार के बीच में हर महीने अलग खर्च हो जाता है. यह पैसा असल में औरतों की अपनी बचत होती अगर किटी में बरबाद नहीं करा जाता. यह पैसा उन को आत्मबल देता जबकि किटी से वे सिर्फ कुंठा गुस्सा और थकान लातीं हैं. पति उन्हें कमजोर देखना चाहते हैं और समाज और पंडे मिल कर किटी जैसे फालतू कामों को एनकरेज करते हैं.

किटी के जरिये पैसों की सेविंग वाली बात ठीक नहीं

अकसर कहा जाता है कि महिलाएं घर खर्च से पैसे बचा कर किटी डालती हैं. ताकि उन की कुछ सेविंग हो सके. लेकिन न ही तो इन किटी में कोई ब्याज मिलता है और न ही कोई बचत होती है उल्टा इन पार्टियों और आनेजाने में अलग से पैसा खर्च होता है. ऐसे में किटी के जरीए फंड जुटाने वाली बात बेमकसद हो जाती है. अगर पैसा जुटाना मकसद होता तो पैसे का भुगतान औनलाइन किया जा सकता था, जिस से बाकी के खर्च बच जाते.

टाइम भी कम वेस्ट नहीं होता

ये किटी पार्टी दिन के समय होती हैं जोकि लगभग 4-5 घंटे चलती हैं. ये घर से कहीं दूर किसी होटल या रेस्टोरेंट में की जाती हैं जहां आनेजाने में भी बहुत समय लग जाता है. एक किटी का मतलब पूरा दिन ही लग जाना.

आउटडोर लोकेशन पर भी होती हैं महंगीमहंगी किटी पार्टी

अपने घर और शहर से निकल कर विदेशों में जा कर किटी पार्टी करने का ट्रेंड भी तेजी से बढ़ा है. महिलाएं सिंगापुर, होंगकोंग, दुबई, लाओस, वियतनाम, बाली जैसी जगहों पर किटी पार्टी कर रही हैं. किटी पार्टीज अब कुछ घंटों की ही नहीं रह गई हैं, बल्कि ये दोतीन दिन तक भी चलती हैं. अब कई कंपनी किटी पार्टी के पैकेज देती हैं. 10 महिलाओं के ग्रुप के लिए तीन दिनों की किटी पार्टी ट्रिप पर 10 -15 लाख रुपए तक लगते हैं.

साल में एक बार बड़ी पार्टी भी आयोजित करते हैं

अब किटी पार्टी सिर्फ घर पर बैठ कर खाना खाना नहीं है. अब किसी भी बड़ी पार्टी की तरह किटी पार्टी की भी प्लानिंग की जाती है. आस्था बताती है कि मेरी किटी में लगभग 100 से ज्यादा सदस्य हैं. हर महीने हम कुछ न कुछ अलग जरूर करते हैं. इस में व्यर्थ का समय लगता है और इस दौरान कुछ सीखने को नहीं मिलता. रिलैक्स करने का नाम दे कर उन्हें लूटा जाता है.

एक ही माह में कितने त्यौहारों में औरतों को वैसे ही धक्के दिला दिए जाते हैं, देखें:

अगस्त माह के बड़े तीज-त्योहार

अगस्त 2024 के तीज त्योहार

प्रदोष व्रत- 1 अगस्त,

सावन शिवरात्रि- 2 अगस्त,

श्रावण अमावस्या- 4 अगस्त,

हरियाली तीज-7 अगस्त,

नाग पंचमी-9 अगस्त,

श्रावण पुत्रदा एकादशी-16 अगस्त,

प्रदोष व्रत- 17 अगस्त,

रक्षा बंधन-19 अगस्त,

कजरी तीज-22 अगस्त, गुरुवार

जन्माष्टमी- 26 अगस्त,

अजा एकादशी-29 अगस्त.

इन में ही किटी पार्टियां भी जोड़ दी गई हैं. किटियों में इन त्योहारों को साथ मनाने के प्रोग्राम भी बन जाते हैं और जो नहीं मनातीं उन्हें तिरस्कार की नजर से देखा जाता है.

यहां सैक्स जैसे विषयों पर गौसिप करती हैं लेडीज

अजीब बात यह है कि किटी पार्टी में वह सैक्स से संबंधित टौपिक में अपने पार्टनर के परफार्मेंस, साइज, गर्थ, पोजिशन आदि की बातें करती हैं. वह इन बातों को और भी ज्यादा शेयर करती हैं, क्योंकि यहां महिलाओं का पूरा समूह होता है. अगर वह कुछ बातों का खुलासा नहीं करेंगी तो उन्हें समूह से बेदखल भी किया जा सकता है.

अपनी निजी बातों का खुलासा करना कई बार मजबूरी

कुछ महिलाएं ग्रुप में बने रहने की मजबूरी के तहत कुछ ज्यादा ही बातों को उजागर कर देती हैं. वहीं कुछ महिलाएं समूह में लाइमलाइट में आना चाहती हैं और ध्यान खींचने के लिए अपने पार्टनर से जुड़ी कुछ रोमांचक अंतरंग पलों को भी शेयर कर लेती हैं. यह बात सही नहीं होती हैं. ये महिलाएं यह सब बातें अपने घर और पति से शेयर करती हैं और फिर ये बातें फ़ैल जाती हैं.

तनाव का कारण भी बनती है किटी पार्टी

किटी के इन ग्रुप्स में कुछ महिलाएं जो खुद गंदे स्वभाव वाली, ज्यादातर अश्लील मजाक करने वाली, अलग ग्रुप बनाने वाली यानि किटी की एकता को तोड़ कर, अपना अलग ग्रुप बनाने वाली, पलपल झूठ बोलने वाली, झगड़ालू, पुरुषों के साथ में भद्दी मजाक करने वाली, दूसरों के मान सम्मान का भी ध्यान नहीं रखने वाली या यूं कहें खुद ही गढ्ढा खोद कर और खुद ही अपनी फ्रैंड को धक्का देने वाली होती हैं, एकदूसरे की टांग खींचने वाली होती हैं. जिस से आपस में लड़ाइयां भी बहुत होती हैं और ये लोग एक अनचाहे तनाव के साथ घर आती हैं.

टाइम वेस्ट करना क्या सही है?

आप खुद ही सोचिए कि आप अपने इस समय को जौब करने, कुछ अपने हौबी पूरी करने, घर का कोई काम करने, कोई सोशल वर्क करने में या कुछ नया सीखने में क्यों नहीं लगाती हैं. ये बातें आप के लिए अपमानजनक नहीं है कि इतना टाइम आप के पास फ़ालतू है ही क्यों? जिसे पास करने के लिए आप को इन किटीयों में जाना पड़े?

क्या पढ़ाईलिखाई आपने इन किटीयों के लिए की थी? 25 साल से ले कर 45 साल तक 20 साल ऐसे होते हैं, जिन में महिलाएं मेहनत कर सकती हैं. ऐसे समय में मेहनत कर के खुद को आत्मनिर्भर बना सकती हैं. पढ़ाई से जो हासिल किया है उस को अगर देश, समाज और घर के विकास में नहीं लगाएंगी तो किसी का कोई भला नहीं होगा. इसलिए खुद के लिए और समाज के लिए कुछ बेहतर करें.

सोना लुढ़का, डोनाल्ड ट्रंप हाजिर हों

दुनिया में सोने के दाम लगातार कम हो रहे हैं, और इस के पीछे एक बड़ा कारण अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत माना जा रहा है. इस साल ज्यादातर समय सोने की कीमतों में तेजी रही, लेकिन ट्रंप की जीत के बाद सोने की कीमत में 4 फीसद से अधिक की गिरावट आई है.

अमेरिकी डौलर: मजबूती का दौर

अमेरिका द्वारा शुरू किए गए शुल्क और व्यापार युद्ध के कारण अन्य देशों की मुद्राओं का मूल्य नीचे गिर गया है, जिस से अमेरिकी डौलर मजबूत हुआ है. इस से सोना खरीदना अन्य मुद्राओं का उपयोग करने वाले खरीदारों के लिए अधिक महंगा हो गया है.

ट्रंप की प्राथमिकता कम करों और उच्च शुल्क की है, जिस से फेडरल रिजर्व अगले साल ब्याज दरों में कटौती करने की उम्मीद कम हो गई है. इस से सरकारी बांड अधिक ब्याज देगा, जो सोने की कीमत को नुकसान पहुंचा सकता है. निवेशक उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रंप की जीत से अमेरिकी सरकार के कर्ज और मुद्रास्फीति में वृद्धि होगी, जो सोने की कीमत में मदद कर सकती है.

हालांकि, दुनिया भर में अस्थिरता के दौरान सोना अब भी निवेशकों के लिए एक सुरक्षित निवेश विकल्प है. पश्चिम एशिया, यूक्रेन और अन्य जगहों पर युद्ध और राजनीतिक तनाव के कारण सोना निवेशकों के पोर्टफोलियो में बना रहेगा.

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद सोने की कीमतों में गिरावट आई है, जो कई विश्लेषकों के लिए आश्चर्यजनक है. सोना, जो अकसर आर्थिक अनिश्चितता के समय में एक सुरक्षित निवेश विकल्प माना जाता है, ने अपनी चमक खो दी है और इस की कीमतें गिर गई हैं. लेकिन क्या है इस के पीछे का कारण?

अमेरिकी डौलर का मजबूत होना

अमेरिकी डौलर का मजबूत होना एक मुख्य कारण है, जो अन्य मुद्राओं के मुकाबले अपनी मजबूती के कारण सोने की कीमत को कम कर देता है. जब अमेरिकी डौलर मजबूत होता है, तो अन्य देशों के निवेशकों के लिए सोना खरीदना अधिक महंगा हो जाता है, जिस से इस की मांग कम हो जाती है और कीमतें गिर जाती हैं.

ट्रंप की आर्थिक नीतियां भी सोने की कीमतों पर असर डाल रही हैं. उन की कर दरों को कम करने और शुल्क बढ़ाने की योजना से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है, लेकिन इस से मुद्रास्फीति भी बढ़ सकती है. इस से निवेशकों की उम्मीदें कम हो सकती हैं कि फेडरल रिजर्व अगले साल ब्याज दरों में कटौती करेगा, जिस से सोने की कीमत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

भारत में सोने के दाम और….

भारत में, सोने की कीमतें भी गिर गई हैं. 24 कैरेट सोने की कीमत 73,740 रुपये प्रति 10 ग्राम और 22 कैरेट सोने की कीमत 67,540 रुपये प्रति 10 ग्राम है. यह गिरावट भारतीय निवेशकों के लिए एक अच्छा अवसर हो सकता है सोने में निवेश करने के लिए.

डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद सोने की कीमतों में गिरावट एक नए युग की शुरुआत हो सकती है. अमेरिकी डौलर का मजबूत होना और ट्रंप की आर्थिक नीतियां सोने की कीमतों पर असर डाल रही हैं. भारतीय निवेशकों के लिए यह एक अच्छा अवसर हो सकता है सोने में निवेश करने के लिए. लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि निवेशक अपने निर्णय लेने से पहले बाजार की स्थिति और आर्थिक विश्लेषण को ध्यान में रखें.

सोने के दाम कम होने के कई कारण हो सकते हैं, और विशेषज्ञों के विचार भी अलग-अलग हो सकते हैं, यहां कुछ विशेषज्ञों के विचार हैं:

विशेषज्ञ कहते हैं…..

अर्थशास्त्री मानते हैं कि सोने की कीमतें अमेरिकी डौलर की मजबूती और वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार के कारण कम हो रही हैं.

वित्तीय विश्लेषक मानते हैं कि सोने की कीमतें ट्रंप की आर्थिक नीतियों और फेडरल रिजर्व की ब्याज दर नीति के कारण कम हो रही है. सोने के व्यापारी मानते हैं कि सोने की कीमतें वैश्विक मांग में कमी और सोने के उत्पादन में वृद्धि के कारण कम हो रही हैं.
निवेश विशेषज्ञ मानते हैं कि सोने की कीमतें निवेशकों की रणनीति में बदलाव और अन्य निवेश विकल्पों की ओर बढ़ते रुझान के कारण कम हो रही हैं.

अमेरिकी डालर की मजबूती सोने की कीमतों को कम कर देती है.

वैश्विक आर्थिक स्थिति में सुधार सोने की मांग को कम कर देता है.

सोने की कीमतों पर प्रभाव डालने वाले कारक:

अमेरिकी डौलर की मजबूती

वैश्विक आर्थिक स्थिति,

मांग-आपूर्ति की स्थिति, आर्थिक नीतियां, मुद्रास्फीति.

इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए, यह कहना मुश्किल है कि क्या डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से सोने की कीमतें कम होंगी या नहीं. लेकिन यह तय है कि सोने की कीमतें समय के साथ बदलती रहती हैं, दुनिया में सोने के दाम कम होना या ज्यादा होना इस का असर अलगअलग लोगों पर अलगअलग तरीके से पड़ता है.

सोने की कीमतें कम होने से निवेशकों को सोने में निवेश करने का अच्छा मौका मिलता है, क्योंकि वे कम कीमत पर सोना खरीद सकते हैं और भविष्य में इस की कीमत बढ़ने पर मुनाफा कमा सकते हैं.

सोने की कीमतें कम होने से ज्वेलरी खरीदने वालों को फायदा होता है, क्योंकि उन्हें अपने पैसे का ज्यादा मूल्य मिलता है.

सोने की कीमतें कम होने से सोने के उत्पादकों को नुकसान होता है, क्योंकि उन्हें अपने उत्पाद के लिए कम पैसे मिलते हैं.

सोने की कीमतें कम होने से आर्थिक दृष्टिकोण से भी असर पड़ता है, क्योंकि इस से देश का विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावित हो सकता है. इसलिए, सोने के दाम कम होना या ज्यादा होना इस का असर अलगअलग लोगों पर अलगअलग तरीके से पड़ता है.

‘द साबरमती रिपोर्ट’ : पुरानी कहानी बयां करती प्रोपगंडा फिल्म में हिंदी बनाम अंगरेजी का नया तड़का

(एक स्टार)

27 फरवरी, 2002 को गोधरा स्टेशन के आउटर सिग्नल पर  अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के दो कोच में आग लगी थी,जिस मेें 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी. यह ट्रेन अयोध्या से अहमदाबाद जा रही थी, जिस में अयोध्या में ‘विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के तत्वावधान में आयोजित ‘संपूर्णाहुति यज्ञ’ का हिस्सा बनने के बाद ‘कार सेवक’ लौट रहे थे. इसी सत्य घटना पर आधारित क्राइम थ्रिलर  फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ ले कर एकता कपूर, अमूल मोहन व अंषुल मोहन आए हैं, जिस का लेखन विपिन अग्निहोत्री और अविनाश ने किया है. पहले इस का निर्देशन रंजन चंदेल ने किया था लेकिन ‘विक्कीपीडिया’ की माने तो सेंसर बोर्ड ने जब 8 अप्रैल 2024 में फिल्म में बदलाव के लिए कहा, तब निर्माताओं ने 9 जुलाई 2024 को, रंजन चंदेल को फिल्म से बाहर कर दिया और अगस्त 2024 में रंजन चंदेल की जगह टैलीविजन लेखक और अभिनेता धीरज सरना ने निर्देशन की जिम्मेदारी लेेते हुए कथानक में कुछ बदलाव कर कुछ दृश्य पुनः फिल्माए. उस के बाद 15 नवंबर, 2024 को यह फिल्म सिनेमाघरों में पहुंची.

फिल्म देखते वक्त हमें इस बात का अहसास हो रहा था कि सेंसर बोर्ड ने क्या बदलाव कराए होंगे. फिल्म के क्लाइमैक्स में पत्रकार समर कुमार ‘भारत न्यूज’ चैनल में बडे़ पद पर पहुंच कर देश की जनता के सामने 2002 में ट्रेन में आग लगने से मृत 59 लोगों की नामावली के साथ ही बताते हैं कि उस के बाद गुजरात व देया का किस तरह विकास हुआ और कैसे अयेाध्या का राम मंदिर 22 जनवरी 2024 को लोगों के दर्शन के लिए खुला. समझ में नहीं आता कि फिल्मकार फिल्म में गोधरा कांड के सच को बताते हुए अयोध्या के राम मंदिर कैसे पहुंच गए.

सच यह है कि ‘गोधरा कांड’ पर आज तक कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है. मगर फिल्मकार लगातार ‘नानावटी कमीशन’ के आधार पर गोधरा कांड पर अधपकी प्रोपगंडा फिल्में बनाते जा रहे हैं.

‘साबरमती ट्रेन’ के दो कोचों में आग लगने की भयावह घटना के बाद गुजरात में 3 दिनों तक दंगे हुए. इन 3 दिन के दंगो में मृतकों की संख्या 2000 से अधिक थी. सैकड़ों लड़कियों की इज्जत लूटी गई थी. इन 3 दिवसीय दंगो में एक धर्म विशेष के लोग ही हताहत व पीड़ित हुए थे, जबकि दूसरे धर्म के कुछ छुटभैया नेता आज की तारीख में बड़े राष्ट्रीय नेता बने हुए हैं. मगर इन तीन दिनों के दंगों को ले कर यह फिल्म खामोश रहती है. राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नानावती-मेहता आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रेन में लगी आग पूर्व नियोजित थी, जिसे एक बड़ी मुसलिम भीड़ द्वारा योजनाबद्ध आगजनी कर अंजाम दिया गया था.

2004 में केंद्र सरकार द्वारा गठित एक सदस्यीय बनर्जी आयोग ने इसे एक दुर्घटना की संज्ञा दी थी. इन दो निष्कर्षों के बीच एक बड़ी खाई है. अब यह तो हर आम इंसान पर निर्भर करता है कि कौन किसे कितना सच मानता है. कोई कुछ भी माने लेकिन कटु सत्य यह है कि ‘गोधरा कांड’ के बाद हुआ यह तीन दिवसीय दंगा, देश में हुए सब से बुरे दंगों में से एक ऐसा दंगा रहा, जिस ने भारत के सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने में विनाशकारी बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई.

कहानी में 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन के नजदीक साबरमती एक्सप्रेस के दो कोच में आग लग गई थी, जिस में 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी. उस के बाद जांच शुरू होती है कि  क्या यह एक दुखद दुर्घटना थी अथवा कोई एक भयावह साजिश. रेलवे की रिर्पोट और सरकार की रिर्पोट में अंतर रहा. फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ शुरू होती है अदालत से,जहां ईबीटी चैनल ने पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसी)  के खिलाफ मुकदमा दायर किया है कि उस ने उन के चैनल की मानहानि की है. समर कुमार से सार्वजकिन माफी के साथ ही दो करोड़ रुपए की मांग की गई है. अदालत में समर कुमार सच उगलना शुरू करते हैं फिर फिल्म उन की यात्रा के साथ आगे बढ़ती है. तो यह फिल्म उन की बतौर पत्रकार एक यात्रा है. समर कुमार कैमरामैन कम पत्रकार के रूप में फिल्म बीट संभालते हैं, अचानक गोधरा कांड हो जाता है तो ईबीटी की मशहूर पत्रकार मणिका राजपुरोहित (रिद्धि डोगरा ) के साथ समर कुमार को कैमरामैन के रूप में गोधरा जाने का अवसर मिलता है.

रिपोर्टिंग के दौरान एक राजनेता द्वारा राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने की बात की जाती है और मणिका के पास एक फोन आता है. मणिका, समर को फटेज ले कर औफिस में पहुंचाने का आदेश दे कर चली जाती है. कुछ देर बाद समर कुछ और फुटेज व सच ले कर दफ्तर पहुंच कर टेप संपादक को दे देता है. समर के अनुसार आग लगवाई गई है. संपादक के आश्वासन के बावजूद चैनल पर मणिका की स्टोरी चलाई जाती है कि साबरमती ट्रेन में लगी आग एक दुर्घटना है. समर इस का विरोध करता है तो उसे नौकरी से निकाल कर उस पर चोरी का इल्जाम लगाया जाता है.

समर की प्रेमिका (  बरखा सिंह ) उस की जमानत कराने के बाद उस का साथ छोड़ देती है. अब समर शराबी हो गया है. 5 साल बाद चैनल में नई पत्रकार अमृता गिल (राशी खन्ना) आती है,उसे गोधराकांड की पांचवीं बरसी पर काम करने के लिए कहा जाता है तो उस के हाथ समर की फुटेज लग जाती है. फिर वह समर के साथ मिल कर सच जानने का प्रयास करते हुए 59 मृत लोगों के नाम भी उजागर होते हैं. समर को एक नए चैनल ‘भारत न्यूज’ में नौकरी मिलती है,जहां समर इस सच को सभी के सामने लाते है.

‘गोधरा कांड’ पर अब तक काफी कुछ कहा जा चुका है. कई फिल्में आ चुकी हैं. सभी नानावटी कमीशन की रिपोर्ट ही घुमाफिरा कर पेश कर रहे हैं. इस फिल्म में भी कोई नया तथ्य नहीं है. केवल कहानी के प्रस्तुतिकरण में अंतर है. इस बार निर्माताओ ने पत्रकारों, खासकर अंगरेजी भाषी पत्रकारों को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हुए यह कहने का प्रयास किया है कि अंगरेजी पत्रकारों के सामने हिंदी के पत्रकारों को इज्जत नहीं दी जाती. लेकिन यह बात केवल जुमलेबाजी बन कर रह जाती है.

अदालत के अंदर समर कुमार के कुछ संवाद मात्र से हिंदी के महत्व को सिद्ध करने का प्रयास सफल नहीं रहा. माना कि समर की यात्रा के माध्यम से फिल्मकार ने मीडिया का एक अलग चेहरा दिखाया है, पर इस से हर आम इंसान परिचित है. मीडिया व सत्ता के बीच के सांठगांठ की तरफ इशारा जरुर किया गया. बताया गया है कि एक कमरे में जिस चैनल का औफिस था, जैसे ही वह  सत्तापक्ष का साथ देने लगता है, वैसे ही वह चैनल बहुमंजली इमारत का स्वामित्व पा जाता है. पर मीडिया व राजनीति की सांठगांठ की परतों को उजागर नहीं किया गया. हां फिल्म यह जरूर कहती है कि सरकार के इशारे पर झूठी खबरें बेच कर सत्ताधारी सरकार को खुश रखते हुए महल खड़े किए जा सकते हैं.

फिल्म में गाना, मनोरंजक पलों का भी घोर अभाव है, यही वजह है कि यह फिल्म कलाकारों के सशक्त अभिनय के बावजूद फिल्म दर्शकों को बांध कर नहीं रख पाती. समर कुमार व श्वेता की प्रेम कहानी तो ‘मलमल में जूट का पैबंद’ सी लगती है. घटनाओं की तीव्रता को पकड़ने वाला निर्देशन सराहनीय है. इंटरवल के बाद फिल्म भटकी हुई है. इंटरवल के बाद गति धीमी हो जाती है, इंटरवल के बाद फिल्म फीचर फिल्म की बजाय डाक्यूमेंट्री का रूप ले लेती है. फिल्म का क्लाइमैक्स काफी कमजोर है.

विक्रांत मैसी के चरित्र में भी कमियां हैं. विक्रात मैसी के किरदार समर कुमार के चरित्र की कई परतों पर रोशनी नहीं डाली गई. नौकरी चले जाने के बाद एक हिंदी भाषी पत्रकार का शराब में डूब जाना भी अजीब सा लगता है, वह भी उस राज्य में जहां शराब बंदी है.

फिल्म का प्रचार काफी कमजोर रहा, इसलिए भी यह फिल्म दर्षकों तक नही पहुंच पाई. वैसे निर्माताओं का दावा है कि यह फिल्म ‘माउथ टू माउथ पब्लिसिटी’ से सफलता के रिकौर्ड बनाएगी.

फिल्मकार ने इस बात को रेखांकित ही नहीं किया कि ‘साबरमती ट्रेन’ के कोचों में आग लगने के जब अंग्रेजीदां मणिका राजपुरोहित, हिंदी भाषी कैमरामैन कम पत्रकार समर कुमार के साथ गोधरा ‘ग्राउंड जीरो’ पर जाती है, तो दोनों बिना किसी पारदर्शी जांच के दोनों यह निष्कर्ष कैसे निकालते हैं कि यह कोई दुर्घटना नहीं थी, आग लगी नहीं, लगवाई गई थी.जबकि निर्देशक ने इस निर्णय से मणिका के पलट जाने की वजह की तरफ इशारा जरुर किया है.

नानावटी आयोग की रिपोर्ट, गुजरात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उद्धरण देती यह फिल्म दर्शकों को यही याद दिलाने की कोशिश है कि अयोध्या से लौट रहे 59 रामभक्तों को गोधरा में जिंदा जला दिया गया था.

‘भारत न्यूज’ पर उन के नाम भी फिल्म बताने की समर कुमार कोशिश करते हैं, लेकिन 10-12 नाम परदे पर आने के बाद यह सिलसिला भी टूट जाता है. गोधरा कांड की बात करतेकरते अंत में राम मंदिर के बनने व उद्घाटन के दृष्यों को दिखाने के मायने भी समझ से परे हैं.

कथानक में संतुलन बनाने या ‘नए राष्ट्रवाद’ के नाम पर अहमदाबाद के एक मुसलिम इलाके में भारतपाक क्रिकेट मैच में भारत की जीत पर मुसलिम बच्चों को खुशी मनाते हुए यह कहा गया यह है नए भारत का भविष्य.

गत वर्ष प्रदर्शित छोटे बजट की फिल्म ‘12वीं फेल’ में अपने शानदार अभिनय से लोगों को अपना दीवाना बना चुके विक्रांत मैसी ने ईमानदार हिंदी भाषी खोजी पत्रकार समर कुमार की भूमिका में जानदार अभिनय किया है.नमगर इस तरह का ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म में शोहरत पाने वाला अभिनय व इस तरह की फिल्में करते हुए विक्रांत मैसी ज्यादा दिन तक सफलता की डगर पर अपने पैर जमाए नहीं रख पाएंगे. मीडिया के अंदरूनी सूत्रों के लिए भरोसेमंद अनुभवी पत्रकार मणिका राजपुरोहित के किरदार में रिद्धि डोगरा एक बार फिर सशक्त अदाकारा के रूप में उभरती है. वही प्रशिक्षु पत्रकार अमृता गिल के किरदार में राशि खन्ना का अभिनय ठीकठाक है. अन्य कलाकार अपनीअपनी जगह ठीक हैं.

बड़ा मकान : क्यों अपना मकान छोड़ दिया गुप्ता जी?

गरमी की छुट्टियों में मैं मम्मी के साथ अपनी मौसी के घर जब भी दिल्ली जाती तो रास्ते में बड़ेबड़े मकान दिखाई देते. शीशे की खिड़कियों पर डले परदे और बालकनी में लगे झूले, कुरसियां, पौधे, हैंगिंग लाइट और बड़ेबड़े सुंदर से मेन गेट और बाहर खड़े गार्ड्स व चमकती गाडि़यां दिखती थीं. मैं हमेशा सोचती कि इन मकानों में लोग अंदर कैसे रहते होंगे. इन मकानों को बस फिल्मों में ही देखा था और वैसी ही कल्पना की थी. पता नहीं, एक उत्सुकता सी थी हमेशा इन बड़े मकानों को अंदर से देखने की.

हमारे घर के सामने रहने वाले गुप्ता अंकल ने अपना घर बेच दिया और रातोंरात ही घर को ढहा दिया गया. अब मलबा ही मलबा था चारों ओर. दोचार दिनों बाद ही मलबा उठाने के लिए मजदूर भी आ गए. 10 दिनों में ही 5 सौ गज का प्लौट दिखाई देने लगा. मैं रोजाना अपने स्कूल से आ कर कमरे की खिड़की से मजदूरों को काम करते देखती. जब मम्मी खाने के लिए आवाज लगातीं, तभी मैं खिड़की से हटती. एक दिन स्कूल से आ कर मैं ने देखा कि प्लौट पर बहुत गहमागहमी है. कई लोग सिर पर कैप लगाए दिखाई दिए जो इंचीटेप से जमीन माप रहे थे. मम्मी ने बताया कि ये कैप लगाए लोग इंजीनियर हैं जो घर का डिजाइन बनाएंगे. किन्हीं अरोड़ा साहब ने यह घर खरीदा है और अब यहां बड़ा सा महलनुमा घर बनेगा. मैं सुन कर बड़ी खुश हो गई और सोचने लगी कि अब तो शायद मैं यह बड़ा सा मकान अंदर से देख पाऊं.

कभी तो कोई मौका मिलेगा अंदर जाने का. अब तो बड़े ही जोरशोर से काम चलने लगा. बहुत शोर रहने लगा. अब हमारे घर के अंदर तक आवाजें आती थीं. ईंटें, सीमेंट, लोहे के सरिये, मशीनें चलती रहतीं, मजदूर जोरजोर से बातें करते यानी खूब चहलपहल रहती थी रात तक. करीब 2 साल तक काम चला और मम्मी ने जैसा कहा था वैसा ही महलनुमा सुंदर सा मकान तैयार हुआ. आज मेरी स्कूल की छुट्टी थी और मैं ने देखा कि इस मकान के बाहर बड़ा सा शामियाना लगा था और पूरा घर शामियाने से चारों ओर से ढका हुआ था. मैं दौड़ कर मम्मी के पास गई तो पापा को मम्मी से बात करते सुना कि आज अरोड़ा साहब के मकान का मुहूर्त है. तभी यह शामियाना लगा है.

तब मैं ने उछलते हुआ पापा को टोका और पूछा, ‘‘फिर तो हम भी जाएंगे न, आखिर पड़ोसी हैं हम इन के?’’ पापा मुसकराए, बोले, ‘‘अरे नहीं बेटा, हमें नहीं बुलाया है उन्होंने. हमें तो जानते भी नहीं हैं ये लोग.’’ सुन कर मैं उदास हो गई और मन ही मन कल्पना करने लगी कि कैसे इस घर के लोग पार्टी करेंगे, घर अंदर से कैसा होगा? सब मजे कर रहे होंगे? बच्चे भागमभाग कर रहे होंगे? इतना बड़ा मकान है यह. काश, ये अरोड़ा अंकल हमें भी बुला लेते. मैं खिड़की के पास आ कर खड़ी हो गई और हसरतभरी निगाहों से मकान की तरफ देखने लगी. रात हो चली थी.

बस, लाइटें ही लाइटें थीं मकान की मंजिलों और शामियाने में और खूब तेज म्यूजिक बज रहा था. कुछ ज्यादा दिख नहीं पा रहा था कि अंदर क्या चल रहा है. दूर तक गाडि़यां दिख रही थीं. मेहमान खूबसूरत कपड़ों में अंदर जाते दिख रहे थे. मम्मी ने मु झे खाना खाने को बुलाया पर मेरा मन तो अरोड़ा अंकल के मकान के अंदर जाने को मचल रहा था. आज अपनी पसंद का खाना भी अच्छा नहीं लगा मु झे. रातभर सामने पार्टी चलती रही. मम्मी, पापा और मैं सो गए. सुबह मैं तैयार हो कर स्कूल चली गई. वापस आ कर खिड़की से मकान देखने लगी. मकान बाहर से सुंदर था पर घर में कोई दिखाई नहीं देता था. बस, गाडि़यां आतीजाती दिखती थीं कभीकभी. ज्यादातर बड़ा सा गेट बंद ही रहता था. इस मकान को देखतेदेखते अब मेरा मन भी उकता गया था. मैं अब अपना समय अपनी पढ़ाई में देने लगी.

इस मकान में अरोड़ा अंकल को आए पांचछह साल हो गए थे. मैं आज जब कालेज से वापस आ रही थी तो अरोड़ा अंकलजी के घर पर लाइटें लगी देखीं. रात को पापा ने बताया कि अगले महीने अरोड़ा अंकल के बेटे की शादी है. सुना है, बड़े ही अमीर घर से बहू आ रही है. ‘‘तो अभी से इतनी लाइटें क्यों लगा दीं?’’ मैं ने पूछा. ‘‘पूरे महीने फंक्शंस होंगे इन के यहां,’’ मम्मी बोलीं. ‘‘पर हमें क्या? हमें कौन सा बुलाएंगे?’’ मैं ने चिढ़ते हुए कहा. एक महीना यों ही निकल गया. बैंड बजने लगे. शहर के सभी अमीर लोग घर के बाहर इकट्ठे थे. घुड़चढ़ी हो रही थी. घर की सजावट से ले कर मेहमानों और अरोड़ा अंकलआंटीजी के कपड़े सब देखने लायक थे. बरात चली गई और चमकते हुए घर में शांति पसर गई. सुबह 4 बजे बैंडबाजा सुनाई दिया. मम्मी और मैं आंखें मलते हुए खिड़की पर पहुंचे. डोली आ गई थी. लंबी सी चमकती हुई गाड़ी रुकी और परी जैसी बहू उतरी. अरोड़ा आंटी अपने सभी रिश्तेदारों और मेहमानों के साथ अपने बहूबेटे को बड़े से गेट के अंदर ले गईं और गेट बंद हो गया. चारों ओर चुप्पी फैल गई और मम्मी वापस जा कर सो गईं. मैं अपने बैड पर लेटे हुए सोचने लगी कि अंदर कैसे सब बहू पर वारिवारि जा रहे होंगे. ढेरों गिफ्ट मिले होंगे बहू को. महल की रानी बन कर रहेगी यह तो. क्या समय है इस लड़की का.

नौकरचाकर आगेपीछे घूमेंगे इस के. गाड़ीबंगला, पैसा, शानोशौकत और क्या चाहिए एक लड़की को. इतना सुंदर और बड़ा घर यानी जो भी फिल्मों में देखा था उसी की कल्पना करते और ये सब सोचतेसोचते मैं सो गई. कई दिनों तक सामने गाडि़यां आतीजाती रहीं. कई दिनों बाद बाजार में अचानक से हमें सामने वाली गुप्ता आंटी मिलीं. हालचाल पूछने के बाद बोलीं, ‘‘हमारे जाने के बाद अब तो अरोड़ाजी बन गए हैं आप के पड़ोसी? पिछले साल शादी थी उन के बेटे की, आप लोग भी गए होंगे?’’ ‘‘नहींनहीं, आंटी. हम कहां गए थे. हमें थोड़ी बुलाया था और हम से तो वे लोग आज तक बोले भी नहीं. बस, गाड़ी आतीजाती दिखती हैं, फिर गेट बंद,’’ मैं ने तपाक से जवाब दिया. ‘‘ओह, वैसे मैं भी शादी में तो जा नहीं पाई थी, बस, थोड़ी देर के लिए ही इन के घर गई थी बहू की मुंहदिखाई के लिए. बड़े ही अमीर घर से बहू लाए हैं अरोड़ा साहब और ऊपर से इतनी सुंदर, सुशील और खूब पढ़ीलिखी. इन के पूरे परिवार में कोई भी इतना पढ़ालिखा नहीं है. बस, क्या ही बताऊं, समय ही बलवान है इन लोगों का तो. वैसे,

हम ने भी अपनी बेटी शिखा का रिश्ता तय कर दिया है. अगले महीने ही शादी है. आप सब को भी आना है. शादी का कार्ड देने आऊंगी मैं,’’ गुप्ता आंटी खुश होती हुई बोलीं. ‘‘हांहां जरूर आइएगा. यह तो बड़ी खुशी की बात है. अब चलते हैं, काफी देर हो गई है. आप भाईसाहब के साथ आइएगा हमारे घर. उन से मिले भी काफी समय हो गया है,’’ मम्मी ने गुप्ता आंटी से कह कर विदा ली और हम बाजार में आगे निकल गए. थोड़े दिनों बाद ही गुप्ता आंटी हमारे घर अपनी बेटी शिखा की शादी का कार्ड देने आईं. मम्मी को मु झे और पापा को साथ लाने का कह जल्दी ही चली गईं. मैं पापामम्मी के साथ शिखा की शादी में पहुंची. दूर से ही हौल में गुप्ता आंटी ने स्टेज से हमें देखा और अपनी ओर आने का इशारा किया. हम तीनों गुप्ता आंटी के पास पहुंचे. तभी आंटी ने कीमती से लहंगे में पास ही खड़ी खूबसूरत सी लड़की को नजदीक बुलाया और मेरी तरफ देखते हुए बोलीं, ‘‘निया बेटे, इस से मिलो यह शीनू है. तुम्हें एक बार देखना चाहती थी और तुम्हारे घर के सामने वाले घर में ही रहती है और शीनू, यह निया है, अरोड़ा अंकल की बहू.’’ ‘‘अच्छा, सच में,’’ निया ने कहा. मेरे कुछ कहने से पहले ही निया ने मु झे गले लगा लिया. ‘‘आप तो बहुत ही प्यारी हो, शीनू. आओ न कभी हमारे घर. खूब बातें करेंगे,’’ निया ने कहा. ‘‘हांहां, भाभी. जरूर. जल्दी ही आती हूं आप के यहां. आप अपना मोबाइल नंबर दे दें,’’ मैं ने कहा. घर वापस आ कर मैं तो उछल रही थी. मेरी तो खुशी का कोई ठिकाना न था.

मेरा तो मानो कोई सपना सच हो गया. अब तो मैं बड़े आराम से उस मकान में अंदर जा सकती हूं और अगर निया भाभी मेरी दोस्त बन गईं तो फिर तो मजा ही आ जाएगा. मैं रोज इस बड़े से मकान में जा पाऊंगी. ‘‘अरे, शादी से आ कर बड़ी ही खुश नजर आ रही हो तुम. क्या बात है? कपड़े बदल लो और सो जाओ. सुबह कालेज भी जाना है. एग्जाम्स भी हैं तुम्हारे,’’ मां ने कमरे में मु झे कौफी पकड़ाते हुए कहा. झटपट दिन बीत गए और एग्जाम्स भी नजदीक आ गए. मेरा सारा टाइम कालेज और पढ़ाई में ही बीतने लगा. खिड़की से अरोड़ा अंकल का मकान देखे तो बहुत समय हो गया था. आज मेरा आखिरी पेपर था. कालेज से वापस आते समय मैं सोच रही थी कि कल फ्री हो कर कुछ अच्छा सा गिफ्ट ले कर निया भाभी से मिलने जाऊंगी. आते ही मैं ने मम्मी से पूछा, ‘‘मम्मा, कल मैं निया भाभी से मिलने सामने चली जाऊं?’’ ‘‘चली जाना. एक बार पापा से भी फोन कर के पूछ लो. सुबह ही भोपाल के लिए निकल गए हैं और अब एक हफ्ते बाद आएंगे. तुम्हारे पेपर का भी पूछ रहे थे. वैसे, पेपर कैसा हुआ तुम्हारा? जाने से पहले एक बार फोन भी कर लेना निया को. अच्छी लड़की है निया. कोई एटीट्यूड नहीं था लड़की में,’’ मम्मा ने कहा. ‘‘पेपर तो बहुत अच्छा हुआ है, मम्मा. फिकर नौट. अभी पापा को बताती हूं और हां, फोन कर के ही जाऊंगी निया भाभी के घर,’’ मैं ने हंसते हुए कहा.

कल मैं इस बड़े से मकान को अंदर से देख पाऊंगी. यह सोचसोच कर मैं बहुत ही खुश थी. सुबहसवेरे गाड़ी के हौर्न से मेरी नींद खुली. मम्मी घर में दिखाई नहीं दीं. मैं भाग कर अंदर खिड़की पर गई. देखा तो अरोड़ा अंकलजी के मकान के बाहर चारपांच पुलिस की गाडि़यां खड़ी थीं. भीड़ ही भीड़ थी सामने. मीडिया की गाडि़यां और शोर ही शोर था. तभी मम्मी ने मु झे आवाज लगाई. ‘‘आप कहां थीं, मम्मा? क्या हुआ है नीचे? यह पुलिस क्यों आई है? क्या हुआ है अरोड़ा अंकलजी के घर में?’’ मैं ने पूछा. ‘‘बेटे, निया भाभी नहीं रहीं. पता नहीं कैसेकैसे लोग हैं दुनिया में? नीचे सब बता रहे हैं कि बहुत तंग करते थे ससुराल वाले उस लड़की को. इतना दहेज लाई थी, पढ़ीलिखी थी, सुंदर थी. फिर भी उसे दहेज के लिए मारतेपीटते थे. अरोड़ा अंकल के बेटे को निया पसंद नहीं थी और पता चला है कि वह पहले से ही शादीशुदा था.

संतान न होने का ताना देते थे. मतलब हर तरह से परेशान थी वह और आज उस ने अपनी जान ही ले ली,’’ मम्मी ने सुबकते हुए बताया. मेरी आंखों से आंसू बह रहे थे. मु झे निया भाभी याद आ रही थीं. मैं ने अपने मोबाइल पर उन की डीपी देखी. विश्वास ही नहीं हो रहा था कि प्यारी सी, खूबसूरत सी लड़की अब दुनिया में नहीं थी. बड़े से मकान को अंदर से देखने का मेरा चाव एक झटके में ही खत्म हो गया. मकान बड़ा नहीं, हमारी सोच बड़ी होनी चाहिए. हमारा दिल बड़ा होना चाहिए. इतनी चमकदमक के पीछे कितना अंधकार है. निया भाभी के लिए लाए गिफ्ट को टेबल पर रख मैं ने खिड़की को बंद कर दिया.

जिंदा मुर्दों संग चैटिंग कथा

जम्बूद्वीपे उत्तराखंडे आनंदनगर नामक एक सुंदर शहर हुआ करता. उस शहर में रोज 3 बढ़िया मर्डर, 4 सुंदर रेप, 5 प्रभावी भ्रष्टाचार व 6 चैन स्नैचिंग जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ करते. सभी में सोशल मीडिया की भूमिका पाई जाती. वहां सभी लोग सोशल मीडिया का पूजापाठ किया करते थे.

उसी शहर में एक अनिद्य सुंदरी निवास करती थी. की-पैड फोन के उपयोग के कारण उस में ईमानदारी, नैतिकता और सत्यवादिता के दुर्गुण पैदा हो गए. स्मार्टफोन नहीं होने के कारण घर में हमेशा तनाव रहता. उस का बीपी व शुगर बढ़ गया. आयरन की भारी कमी हो गई. वह एक सूखी लकड़ी की भांति लाश में तबदील हो गई. उस की ऐसी हालत देख कर उस की पड़ोसिन ने उसे एक स्मार्टफोन थमा दिया. उसे बताया कि सोशल मीडिया के त्रिदेव व्हाट्सऐप, फेसबुक और इंस्टाग्राम की साधना करने से संसार के सारे दुखों का नाश होता है.

उस ने शीघ्र ही व्हाट्सऐप पर अपने दोस्तों के साथ मैसेजों की बरसात कर दी. फेसबुक पर दूरदराज के देशों के दोस्त बनाने शुरू कर दिए. इंस्टाग्राम पर वीडियो कौलिंग कर के मौज करने लगी. वह रातदिन इसी तरह के धार्मिक कार्यों में अपना समय बिताने लगी. कुछ ही समय में उस की बीपी नौर्मल हो गया. उस की शुगर सामान्य हो गई. देखते ही देखते वह और ज्यादा खूबसूरत हो गई.

वह घर में पति और बच्चों पर ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और फेसबुक, व्हाट्सऐप के समुंदर में ही गोते लगाया करती. उस के जीवन में आनंद आने लग गया. उस की एक सहेली ने उस की सुंदरता एवं खुशमिजाजी का राज पूछा. तब उस ने सोशल मीडिया के त्रिदेव की सारी उत्तम कहानियां सभी सहेलियों को सुना दीं.

सहेली ने प्रश्न किया- ‘मुझे बताओ, यह उत्तम उद्यापन कैसे किया जाता है? इस के करने से क्या फल मिलता है? मैं भी सोशल मीडिया वाला ये उद्यापन मन लगा कर संपन्न करूंगी.’

तब उस सुंदरी ने कहा- ‘सुबह उठते ही सोशल मीडिया के दर्शन करना चाहिए. कई तरह के पास और दूर के दोस्त बनाने चाहिए. उन सब को गुडमौर्निंग कहना चाहिए. गुलाब का फूल, उगता हुआ सूरज, प्रेम के प्रति आकर्षण का कोई चित्र आदि नियमित रूप से भेजने पर सात जन्मों का पुण्य मिलता है. शाम को गुड इवनिंग व निशा काले गुड नाइट कह कर सब को स्वीट ड्रीम करने पर उत्तम फल मिलता है. इस मंत्र का रातदिन जाप करना चाहिए. दूसरों द्वारा भेजे गए मैसेजों को पूरी भक्तिभावना के साथ पढ़ना चाहिए. उन की प्रशंसा करनी चाहिए. उन को बातबात पर बधाई देनी चाहिए. सभी मैसेजों को ढोलबाजे बजाते हुए दूसरे ग्रुप में भेजना चाहिए.’

इमोजी बना कर प्रेमभरे संदेश भेजना निश्चित रूप से उत्तम फलदाई सिद्ध हुआ है. तब बेताल ने विक्रम से कहा- बता विक्रम, यह कहां की कथा है और यह किस तरह का नया रोग लगा है? तब विक्रमादित्य ने बेताल के हाथों से नया स्मार्टफोन छीन लिया. राजा विक्रमादित्य ने बेताल को उछाल कर श्मशान घाट के पेड़ पर टांग दिया. खुद विक्रम श्मशान के मुर्दों के बीच स्मार्टफोन ले कर सोशल मीडिया के जिंदा मुर्दों से चैटिंग करने लग गया.

माफी या सजा: कौन था विशाखा पर हुए एसिड अटैक के पीछे

विशाखा और सौरभ एकसाथ कालेज में पढ़ते थे. कालेज के अंतिम वर्ष तक आतेआते उन दोनों की मित्रता बहुत गहरी हो गई थी. विशाखा एक संपन्न परिवार की इकलौती बेटी थी. वह नाजों से पलीबढ़ी. उस के उच्चशिक्षण के लिए उस का दाखिला दूसरे शहर के एक अच्छे कालेज में करा दिया गया. विशाखा का विवाह पहले से ही उस के बाबूजी के मित्र के बेटे के साथ तय हो चुका था. सौरभ विशाखा की विवाह तय होने की बात से भलीभांति परिचित था. एक दिन सौरभ ने विशाखा से कहा कि वह उसे पसंद करता है और विवाह करना चाहता है. विशाखा सौरभ की बातों से बिलकुल सहमत नहीं थीं.

वह असहमति जता कर वहां से चली गई. परीक्षा का अंतिम दिन था. सौरभ ने अंतिम परचे के बाद विशाखा से साथ चलने को कहा. विशाखा अपने मित्र के साथ चलने को सहर्ष ही तैयार हो गई. सौरभ ने विशाखा के सामने एक बार फिर विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा कि तुम किसी और से विवाह करो, ठीक नहीं होगा. विशाखा असहमति जताते हुए सौरभ से कुछ कह पाती, इतने में 2 बाइक सवार विशाखा के मुंह पर एसिड फेंक कर भाग गए. उस के बाद सौरभ भी चला गया. विशाखा वहां दर्द और जलन से तड़प रही थी. वहां कोई नहीं था उस की मदद के लिए.

थोड़ी ही देर में सौरभ आया और उसे अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. विशाखा हमेशा के लिए अपनी आंखें खो चुकी थी, चेहरा बुरी तरह से ?ालस गया था. विशाखा के पिता के दोस्त, जिन के बेटे से विशाखा की शादी तय हुई थी, सपरिवार आए विशाखा से मिलने. विशाखा को देख कर शादी से इनकार करते हुए बोले, ‘‘हमें कुरूप और अंधी बहू नहीं लेनी, क्षमा करें. उम्रभर हम एक अंधी लड़की की सेवा का भार नहीं उठा सकते.’’ रिश्ता तोड़ कर वे लोग चले गए.

विशाखा के दिल पर गहरी ठेस लगी. लेकिन इधर सौरभ जीजान से विशाखा का हर पल खयाल रखता, उस की मदद करता. विशाखा ठीक हो कर घर वापस आ गई. एक सवाल उसे अभी भी कचोट रहा था कि उस पर एसिड किन लड़कों ने और क्यों फेंका और पुलिस कंपलेन के बावजूद वे अभी तक पकड़े क्यों नहीं गए? विशाखा के पिता ने उस के इलाज में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन न तो उस का चेहरा पूरी तरह ठीक करवा सके, न ही उस की आंखें ला सके. डाक्टर के अनुसार, अब विशाखा जीवनभर नेत्रहीन रहेगी. ऐसे में सौरभ शादी का प्रस्ताव रखता है तो विशाखा के पिता हां कर देते हैं. लेकिन विशाखा सौरभ से कहती है, ‘‘सौरभ, अब तुम मुझे से क्यों शादी करना चाहते हो, न तो वह सूरत रही अब मेरी और उस पर आंखें भी नहीं रहीं. तुम पर बोझ बन जाऊंगी, इसलिए तुम कोई और लड़की ढूंढ़ लो अपने लिए.

’’ लेकिन सौरभ कहता है कि वह उसी से प्यार करता है और सदा करता रहेगा. दोनों की शादी तय हो गई. विशाखा ने बिना आंखों के जीवन जीना तो सीख लिया लेकिन इस के साथ ही उस ने एक संगठन तैयार किया जो इस तरह की एसिड पीडि़त लड़कियों को इंसाफ दिलवाए. विशाखा ने एक बहुत बड़ा एसिड अटैक विक्टिम नामक कैफे खोला, जहां केवल एसिड पीडि़त लड़कियां ही काम करतीं. वे एकदूसरे का संबल बनतीं और साथ में हंसतींखेलतीं, खुश रहतीं. सब अपनेअपने गमों को भूल जातीं. विशाखा की शादी को अभी थोड़ा ही समय बीता था कि एक दिन सौरभ, ‘‘विशाखा, मुझे तुम से माफी मांगनी है.’’ ‘‘माफी किस बात की, सौरभ, माफी के काबिल तो मैं हूं, जो तुम्हारे प्यार को पहचान नहीं पाई.

तुम मुझे से इतना प्यार करते हो कि मुझे कुरूप और अंधी को भी अपना जीवनसाथी बनाया.’’ ‘‘हां विशाखा, मैं तुम से प्यार बहुत करता था और जीवनसाथी प्रायश्चित्त करने के लिए बनाया.’’ ‘‘प्रायश्चित्त? कैसा प्रायश्चित्त, सौरभ?’’ विशाखा हैरानी से पूछती है. ‘‘विशाखा, जब तुम ने मुझे से शादी करने से इनकार किया तो मुझे अपना अपमान महसूस हुआ और बदला लेने के लिए मैं ने ही तुम पर एसिड फिंकवाया था. जब मैं ने तुम्हें तड़पता हुआ देखा तो मुझे सुकून महसूस हुआ लेकिन न जाने थोड़ी ही देर में मेरे दिल ने फिर तुम्हारे प्रति वह प्यार जगा दिया और मैं तुम्हें अस्पताल ले गया.

उस प्यार ने मुझे प्रायश्चित्त करने पर विवश कर दिया. इसलिए मैं ने शादी का प्रस्ताव रखा और तुम मान गईं. लेकिन उस अपराध की ग्लानि अभी तक मेरे मन में है, इसलिए मैं अपना अपराध कुबूल करता हूं.’’ सौरभ की बातें सुन कर विशाखा पर घड़ों पानी पड़ गया. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह सौरभ को माफ करे या उसे सजा दे.

Supreme Court की फटकार योगी का बुलडोजर अब नहीं

उतर प्रदेश की योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसी सख्ती दिखाई है कि पूरे भाजपा खेमे में हलचल मची हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा है कि कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती है. बिना प्रक्रिया आरोपी का घर तोड़ना असंवैधानिक है. यहां तक कि किसी व्यक्ति के दोषी पाए जाने पर भी सजा के तौर पर उनकी संपत्ति नष्ट नहीं की जा सकती है.

 

बुलडोजर एक्शन के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने जो फैसला सुनाया है और बुलडोजर एक्शन के लिए जो नियम तय किये हैं, उससे ना सिर्फ भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के पैरों तले जमीन काँप रही है बल्कि अधिकारी वर्ग में खलबली मची हुई है जो सत्ता के इशारे पर तबाही का नंगा नाच नाचते रहे सिर्फ इसलिए कि मुख्यमंत्री के चहेते अफसर की लिस्ट में शामिल हो जाएँ या मनचाहा प्रमोशन पा लें.

सुप्रीम कोर्ट के आर्डर के बाद 2017 में शुरू हुई बुलडोजर-नीति जिसके सूत्रधार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं, अब अपने आखिरी पड़ाव में जाती दिख रही है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अब निजी संपत्तियों पर बुलडोजर नहीं चलाया जा सकता है. यदि बुलडोजर ही आखिरी विकल्प हो तो उसके लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किये गए नियमों का पालन आवश्यक होगा. अन्यथा ध्वस्त संपत्ति का मुआवजा अधिकारी अपनी जेब से भरेगा.

गौरतलब है कि भाजपा की दूसरी पीढ़ी के नेताओं में योगी आदित्यनाथ का नाम तेजी से उभर रहा था. कहा जा रहा था कि मोदी के बाद वे ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजेंगे. फिर क्या था बुलडोजर से ब्रांड योगी की छवि गाढ़ी जाने लगी. 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी सख्त प्रशासक की छवि गढ़ने और विपक्षियों को नेस्तनाबूत करने के लिए खुद को ही अदालत-जज-संविधान समझते हुए प्रदेश भर में लोगों की सम्पत्तियों पर बुलडोजर चलवाने शुरू कर दिए थे. बुलडोजर के फौलादी पहियों ने सपा नेताओं-समर्थकों और मुसलमानों के घरों, दुकानों को सबसे ज्यादा रौंदा. मोहल्ले के मोहल्ले जमीदोज कर दिए गए. बड़ी बड़ी इमारतें ढहा दी गयीं.

योगी ने अपने बुलडोजर एक्शन के जरिए खुद की ऐसी सख्त इमेज दिखाने की कोशिश की जो अपराध और अपराधियों को उत्तर प्रदेश की जमीन पर टिकने नहीं देगा. हालाँकि अपराध का आंकड़ा लगातार बढ़ता रहा और कोई दिन ऐसा नहीं गया जब महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों से अखबार रंगे ना हों.

बुलडोजर एक्शन की वजह से योगी को यूपी में उनके समर्थक बुलडोजर बाबा कहने लगे. योगी ने भी इसे अपना ट्रेड मार्क बनाया. छाती चौड़ी करके मंचों से दहाड़े -बुलडोजर चलवाने के लिए दिल और जिगरा की जरूरत होती है. इस पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुटकी भी ली. कहा – बुलडोजर चलाने के लिए स्टेयरिंग और ड्राइवर की जरूरत होती है और ड्राइवर दिल्ली में बैठा है, कब स्टेयरिंग घुमा दे पता भी नहीं चलेगा.

खैर, योगी अपनी हर रैली में बुलडोजर एक्शन का बढ़चढ़ कर बखान करते रहे. उनके बखान पर दर्शक भी खूब तालियां पीटते रहे, लेकिन अब जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने इस पर फटकार लगाते हुए रोक लगाई है, उससे योगी को आगे अपने ब्रांड को मजबूत करने के लिए कोई दूसरा रास्ता तलाशना पड़ेगा. मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, याचिका पर याचिका दाखिल हो रही हैं. ऐसे में कोर्ट के सामने जांच में यह बात सामने आने पर कि ध्वस्तीकरण की कार्रवाई मानक के अनुरूप नहीं हुई है, जब एक एक व्यक्ति को मुआवजा देने के आर्डर होंगे तो योगी के सख्त प्रशासक वाली छवि ऐसे दरकेगी कि संभालना मुश्किल होगा. इस आशंका से भाजपा भयभीत है. उल्लेखनीय है कि अभी कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर ध्वस्तीकरण के एक अन्य मामले में पीड़ित व्यक्ति को 25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश सुनाया है. यह फैसला उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में 2019 के एक घर ध्वस्तीकरण मामले से संबंधित है।है. राज्य सरकार की कार्रवाई को “अत्याचारी” पाते हुए, पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दिया है, जिसका घर सड़क निर्माण के लिए ध्वस्त कर दिया गया था.

बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में लॉ एंड आर्डर की विफलता को ढंकने के लिए, राजनीतिक विरोध को रोकने के लिए, समाज का ध्रुवीकरण करने और विरोधियों को डराने के लिए यूपी के बुलडोजर बाबा का यह एक्शन प्लान कुछ अन्य राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, उत्तराँचल, गुजरात, असम के भाजपा मुख्यमंत्रियों को भी खूब भाया था और उन्होंने भी विरोधियों की कमर तोड़ने के लिए बहाने ढूंढ ढूंढ कर उनकी सम्पतियों पर बुलडोजर चलवाया था. यानी भाजपा शासित राज्यों में बुलडोजर के जरिए सियासी नफा-नुकसान तय किया जा रहा था.

असम हो या उत्तर प्रदेश, राजस्थान हो या मध्य प्रदेश…बुलडोजर का सबसे ज्यादा उपयोग मुसलमान आरोपियों के घर, दुकान या मकान गिराने के लिए ही किया गया. फ्रंटलाइन की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में पिछले 2 साल में करीब 1.5 लाख घर बुलडोजर से गिराए गए. इनमें से अधिकांश घर मुस्लिम और हाशिए पर पड़े लोगों के थे. इससे भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति खूब चमकी.

फरवरी 2024 में बुलडोजर एक्शन के खिलाफ मानवाधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक बयान जारी कर कहा था कि भारत में जानबूझकर मुसलमानों के घर बुलडोजर से गिराए जा रहे हैं. संस्था के मुताबिक पिछले वर्षों में जिन घरों को सरकार ने बुलडोजर से गिराया, उन्हें गिराने में किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया. एमनेस्टी के मुताबिक उन राज्यों में बुलडोजर की कार्रवाई जोर-शोर से हुई, जहां पर मुस्लिम एक्स फैक्टर है.

ध्रुवीकरण के लिए तो बुलडोजर का इस्तेमाल हुआ ही, लॉ एंड आर्डर को ठीक तरीके से लागू ना कर पाने के कारण जब जब सरकार की आलोचना हुई, सरकार ने बुलडोजर का सहारा लिया. जुलाई 2023 में मध्य प्रदेश के रीवा में एक व्यक्ति द्वारा एक आदिवासी के ऊपर पेशाब करने की घटना सामने आई थी. इसका वीडियो वायरल होते ही वहां की भाजपा सरकार बैकफुट पर आ गई. विपक्षी कांग्रेस समेत कई आदिवासी संगठनों ने इसे मुद्दा बनाना शुरू कर दिया. लोगों के गुस्से को देखते हुए भाजपा सरकार ने तुरंत आरोपियों के घर बुलडोजर चलवा दिए. इसी तरह के कई मामले यूपी, उत्तराखंड, राजस्थान और असम में देखे गए. दिल्ली के जहांगीरपुरी में भी दंगे न रोक पाने से झल्लाई पुलिस इलाके में अवैध अतिक्रमण को आधार बनाकर बुलडोजर चलाने जा रही थी, लेकिन उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे लगा दिया था. यानी कुल मिलाकर भाजपा शासित राज्य की सरकारें लॉ एंड ऑर्डर से उपजे गुस्से को शांत करने के लिए भी बुलडोजर का उपयोग करती रहीं.

24 अगस्त को मध्यप्रदेश के छतरपुर में पुलिस पर पथराव मामले में आरोपी हाजी शहजाद अली के बंगले को बुलडोजर से तोड़ दिया गया. पथराव के 24 घंटे के भीतर सरकार ने 20 हजार स्क्वायर फीट में बनी 20 करोड़ रुपए की तीन मंजिला हवेली को जमींदोज कर दिया.

अगस्त माह में राजस्थान के उदयपुर के एक सरकारी स्कूल में 10वीं में पढ़ने वाले एक बच्चे ने दूसरे बच्चे को चाकू मारकर घायल कर दिया. जवान होती इस उम्र में बच्चों के बीच ऐसी घटनाएं कई बार होती हैं. पर चूंकि हमला करने वाला बच्चा मुस्लिम समुदाय से था लिहाजा पूरे शहर में आगजनी और हिंसक प्रदर्शन हुए. 17 अगस्त को आरोपी छात्र के घर पर सरकार का बुलडोजर एक्शन हुआ. हाँ, इससे पहले सरकार के निर्देश पर वन विभाग ने आरोपी के पिता सलीम शेख को अवैध बस्ती में बने मकान को खाली करने का नोटिस दिया मगर उन्हें दूसरी जगह स्थापित होने का मौक़ा दिए बगैर पूरे परिवार को बेघर कर दिया गया.

इसी तरह उत्तर प्रदेश में तो अनेकों मकान बुलडोजर से ढहा दिए गए और अनेकों परिवार अपनी औरतों और बच्चों को लेकर खुले आसमान के नीचे कई कई दिन पड़े रहे. अंततः इस तानाशाही की शिकायत अदालत के कानों तक पहुंचीं और सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में लगातार बुलडोजर एक्शन के बाद जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई और आरोप लगाया कि भाजपा शासित राज्यों में मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और असंवैधानिक रूप से बुलडोजर एक्शन लिया जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर संस्कृति की जड़ें खोदते हुए अपने 12 सितम्बर के आदेश में जो कहा वह उद्धृत करने लायक है. मामला जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच में था. गुजरात में नगरपालिका की तरफ से एक परिवार को बुलडोजर एक्शन की धमकी दी गई थी. याचिका लगाने वाला खेड़ा जिले के कठलाल में एक जमीन का सह-मालिक था. कोर्ट ने इस कार्रवाई को रोकने का आदेश देते हुए कहा – बुलडोजर एक्शन देश के कानूनों पर बुलडोजर चलाने जैसा है. सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक कहा कि इस मामले में मनमाना रवैया बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. अधिकारी मनमाने तरीके से काम नहीं कर सकते.

अब एक बार फिर 13 नवंबर 2024 को बुलडोजर मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और पूरे प्रशासन को लताड़ लगाईं है. सुप्रीम कोर्ट के चार फाइनल कमेंट्स ऐसे हैं जो अधिकारियों को अब अपने आका के गलत इशारे पर नाचने से रोकेंगे. कोर्ट ने कहा है –

1. एक आदमी हमेशा सपना देखता है कि उसका आशियाना कभी ना छीना जाए. हर एक का सपना होता है कि उसके सिर पर छत हो. क्या अधिकारी ऐसे आदमी की छत ले सकते हैं, जो किसी अपराध में आरोपी हो? आरोपी हो या फिर दोषी हो, क्या उसका घर बिना तय प्रक्रिया का पालन किए गिराया जा सकता है?

2. अगर कोई व्यक्ति सिर्फ आरोपी है, तो उसकी प्रॉपर्टी को गिरा देना पूरी तरह असंवैधानिक है. अधिकारी यह तय नहीं कर सकते हैं कि कौन दोषी है, वे खुद जज नहीं बन सकते हैं कि कोई दोषी है या नहीं. यह सीमाओं को पार करना हुआ.

3. अगर कोई अधिकारी किसी व्यक्ति का घर गलत तरीके से इसलिए गिराता है कि वो आरोपी है, यह गलत है. अधिकारी कानून अपने हाथ में लेता है तो एक्शन लिया जाएगा. आप मनमाना और एकतरफा एक्शन नहीं ले सकते. कोई अफसर ऐसा करता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए एक सिस्टम हो. ऐसे अधिकारी को बख्शा नहीं जा सकता है.

4. एक घर समाजिक-आर्थिक तानेबाने का मसला है. ये सिर्फ एक घर नहीं होता है, यह बरसों का संघर्ष है, यह सम्माना की भावना देता है. अगर घर गिराया जाता है तो अधिकारी को साबित करना होगा कि यही आखिरी रास्ता था. जब तक कोई दोषी करार नहीं दिया जाता है, तब तक वो निर्दोष है. ऐसे में उसका घर गिराना उसके पूरे परिवार को दंडित करना हुआ. इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई 28 बिंदुओं में पूरी रूलिंग दी है कि क्या ठीक है और क्या नहीं. कोर्ट ने अपने निर्देशों में कहा है –

– सिर्फ इसलिए किसी का घर नहीं गिराया जा सकता क्योंकि वह किसी मामले में व्यक्ति आरोपी है. राज्य आरोपी या दोषी के खिलाफ मनमानी कार्रवाई नहीं कर सकता.

– बुलडोजर एक्शन सामूहिक दंड देने के जैसा है, जिसकी संविधान में अनुमति नहीं है.

– निष्पक्ष सुनवाई के बिना किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता.

– सरकार को कानून के शासन, कानूनी व्यवस्था में निष्पक्षता पर विचार करना होगा.

– कानून का शासन मनमाने विवेक की अनुमति नहीं देता है. चुनिंदा डिमोलेशन से सत्ता के दुरुपयोग का सवाल उठता है.

– आरोपी और यहां तक कि दोषियों को भी आपराधिक कानून में सुरक्षा दी गई है. कानून के शासन को खत्म नहीं होने दिया जा सकता है.

– संवैधानिक लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों और आजादी की सुरक्षा जरूरी है.

– अगर कार्यपालिका मनमाने तरीके से किसी नागरिक के घर को इस आधार पर ध्वस्त करती है कि उस पर किसी अपराध का आरोप है तो यह संविधान और कानून का उल्लंघन है. अधिकारियों को इस तरह के मनमाने तरीके से काम करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.

– अधिकारियों को सत्ता का दुरुपयोग करने पर बख्शा नहीं जा सकता.

– स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने वाले के घर को गिराने पर विचार करते वक्त यह देखना चाहिए कि नगरपालिका कानून में क्या अनुमति है. अनधिकृत निर्माण समझौता योग्य हो सकता है या घर का केवल कुछ हिस्सा ही गिराया जा सकता है.

– अधिकारियों को यह दिखाना होगा कि संरचना अवैध है और अपराध को कम करने या केवल एक हिस्से को ध्वस्त करने की कोई संभावना नहीं है

– अगर घर गिराने का फैसला ले लिया गया है तो 15 दिन का समय दिया जाए. नोटिस जारी की जाए और उक्त संपत्ति पर वह नोटिस चस्पा की जाए. घर के मालिक को रजिस्टर्ड डाक द्वारा नोटिस भेजा जाएगा. नोटिस में बुलडोजर चलाने का कारण, सुनवाई की तारीख बताना जरूरी होगी. नोटिस से 15 दिनों का वक्त नोटिस तामील होने के बाद है.

– नोटिस तामील होने के बाद कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सूचना भेजी जाएगी.

– कलेक्टर और डीएम नगरपालिका भवनों के ध्वस्तीकरण आदि के प्रभारी नोडल अधिकारी नियुक्त करेंगे.

– प्राधिकरण व्यक्तिगत सुनवाई सुनेगा, रिकॉर्ड किया जाएगा और उसके बाद अंतिम आदेश पारित किया जाएगा.

– आदेश के 15 दिनों के अंदर मालिक को अनधिकृत संरचना को ध्वस्त करने या हटाने का मौका दिया जाएगा.

– व्यक्तिगत सुनवाई की तारीख जरूर दी जानी चाहिए.

– सरकार एक डिजिटल पोर्टल 3 महीने में बनाये, जिसमें नोटिस की जानकारी और संरचना के पास सार्वजनिक स्थान पर नोटिस प्रदर्शित करने की तारीख दिखाई जाए.

– आदेश में यह जरूर नोट किया जाना चाहिए कि बुलडोजर एक्शन की जरूरत क्यों है.

– केवल तभी इमारत गिराई जा सकती है, जब अनधिकृत संरचना सार्वजनिक सड़क/रेलवे ट्रैक/जल निकाय पर हो. इसके साथ ही प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही इमारत गिराई जा सकती है

– केवल वे संरचनाएं ध्वस्त की जाएंगी, जो अनाधिकृत पाई जाएंगी और जिनका निपटान नहीं किया जा सकता.

– अगर अवैध तरीके से इमारत गिराई गई है, तो अधिकारियों पर अवमानना की कार्रवाई की जाएगी और उन्हें संपत्ति का हर्जाना भरना होगा.

– अनाधिकृत संरचनाओं को गिराते वक्त विस्तृत स्पॉट रिपोर्ट तैयार की जाएगी. पुलिस और अधिकारियों की मौजूदगी में तोड़फोड़ की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी. यह रिपोर्ट पोर्टल पर पब्लिश की जाएगी.

– अगर घर गिराने का आदेश पारित किया जाता है, तो इस आदेश के खिलाफ अपील करने के लिए वक्त दिया जाना चाहिए. बिना अपील के रात भर ध्वस्तीकरण के बाद महिलाओं और बच्चों को सड़कों पर देखना सुखद दृश्य नहीं है

– सभी निर्देशों का पालन किया जाना चाहिए और इन निर्देशों का पालन न करने पर अवमानना और अभियोजन की कार्रवाई की जाएगी और अधिकारियों को मुआवजे के साथ ध्वस्त संपत्ति को अपनी लागत पर वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया जाएगा.

– इस सम्बन्ध में मुख्य सचिवों को भी निर्देश दिए जाने चाहिए.

Story अनमोल उपहार : जिंदगी का सहारा

शादी के एक साल बाद पति की मौत से सरस्वती समाज की नजरों में मनहूस बन गई. बेटे को भी मां का प्यार न दे सकी. पुत्रवधू को भी तो असामयिक मौत ही मिली पर उस ने ऐसा क्या किया जो सरस्वती को लोग सम्मानित नजरों से देखने लगे.

 

दीवार का सहारा ले कर खड़ी दादीमां थरथर कांप रही थीं. उन का चेहरा आंसुओं से भीगता जा रहा था. तभी वह बिलखबिलख कर रोने लगीं, ‘‘बस, यही दिन देखना बाकी रह गया था उफ, अब मैं क्या करूं? कैसे विश्वनाथ की नजरों का सामना करूं?’’

 

सहसा नेहा उठ कर उन के पास चली आई और बोली, ‘‘दादीमां, जो होना था हो गया. आप हिम्मत हार दोगी तो मेरा और विपुल का क्या होगा?’’

 

दादीमां ने अपने बेटे विश्वनाथ की ओर देखा. वह कुरसी पर चुपचाप बैठा एकटक सामने जमीन पर पड़ी अपनी पत्नी गायत्री के मृत शरीर को देख रहा था.

 

आज सुबह ही तो इस घर में जैसे भूचाल आ गया था. रात को अच्छीभली सोई गायत्री सुबह बिस्तर पर मृत पाई गई थी. डाक्टर ने बताया कि दिल का दौरा पड़ा था जिस में उस की मौत हो गई. यह सुनने के बाद तो पूरे परिवार पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी.

 

दादीमां तो जैसे संज्ञाशून्य सी हो गईं. इस उम्र में भी वह स्वस्थ हैं और उन की बहू महज 40 साल की उम्र में इस दुनिया से नाता तोड़ गई? पीड़ा से उन का दिल टुकड़ेटुकड़े हो रहा था.

 

 

नेहा और विपुल को सीने से सटाए दादीमां सोच रही थीं कि काश, विश्वनाथ भी उन की गोद में सिर रख कर अपनी पीड़ा का भार कुछ कम कर लेता. आखिर, वह उस की मां हैं.

 

सुबह के 11 बज रहे थे. पूरा घर लोगों से खचाखच भरा था. वह साफ देख रही थीं कि गायत्री को देख कर हर आने वाले की नजर उन्हीं के चेहरे पर अटक कर रह जाती है. और उन्हें लगता है जैसे सैकड़ों तीर एकसाथ उन की छाती में उतर गए हों.

 

‘‘बेचारी अम्मां, जीवन भर तो दुख ही भोगती आई हैं. अब बेटी जैसी बहू भी सामने से उठ गई,’’ पड़ोस की विमला चाची ने कहा.

 

विपुल की मामी दबे स्वर में बोलीं, ‘‘न जाने अम्मां कितनी उम्र ले कर आई हैं? इस उम्र में ऐसा स्वास्थ्य? एक हमारी दीदी थीं, ऐसे अचानक चली जाएंगी कभी सपने में भी हम ने नहीं सोचा था.’’

 

‘‘इतने दुख झेल कर भी अब तक अम्मां जीवित कैसे हैं, यही आश्चर्य है,’’ नेहा की छोटी मौसी निर्मला ने कहा. वह पास के ही महल्ले में रहती थीं. बहन की मौत की खबर सुन कर भागी चली आई थीं.

 

दादीमां आंखें बंद किए सब खामोशी से सुनती रहीं पर पास बैठी नेहा यह सबकुछ सुन कर खिन्न हो उठी और अपनी मौसी को टोकते हुए बोली, ‘‘आप लोग यह क्या कह रही हैं? क्या हक है आप लोगों को दादीमां को बेचारी और अभागी कहने का? उन्हें इस समय जितनी पीड़ा है, आप में से किसी को नहीं होगी.’’

 

‘‘नेहा, अभी ऐसी बातें करने का समय नहीं है. चुप रहो…’’ तभी विश्वनाथ का भारी स्वर कमरे में गूंज उठा.

 

गायत्री के क्रियाकर्म के बाद रिश्तेदार चले गए तो सारा घर खाली हो गया. गायत्री थी तो पता ही नहीं चलता था कि कैसे घर के सारे काम सही समय पर हो जाते हैं. उस के असमय चले जाने के बाद एक खालीपन का एहसास हर कोई मन में महसूस कर रहा था.

 

एक दिन सुबह नेहा चाय ले कर दादीमां के कमरे में आई तो देखा वे सो रही हैं.

 

‘‘दादीमां, उठिए, आज आप इतनी देर तक सोती रहीं?’’ नेहा ने उन के सिर पर हाथ रखते हुए पूछा.

 

‘‘बस, उठ ही रही थी बिटिया,’’ और वह उठने का उपक्रम करने लगीं.

 

‘‘पर आप को तो तेज बुखार है. आप लेटे रहिए. मैं विपुल से दवा मंगवाती हूं,’’ कहती हुई नेहा कमरे से बाहर चली गई.

 

दादीमां यानी सरस्वती देवी की आंखें रहरह कर भर उठती थीं. बहू की मौत का सदमा उन्हें भीतर तक तोड़ गया था. गायत्री की वजह से ही तो उन्हें अपना बेटा, अपना परिवार वापस मिला था. जीवन भर अपनों से उपेक्षा की पीड़ा झेलने वाली सरस्वती देवी को आदर और प्रेम का स्नेहिल स्पर्श देने वाली उन की बहू गायत्री ही तो थी.

 

बिस्तर पर लेटी दादीमां अतीत की धुंध भरी गलियों में अनायास भागती चली गईं.

 

‘अम्मां, मनहूस किसे कहते हैं?’ 4 साल के विश्वनाथ ने पूछा तो सरस्वती चौंक पड़ी थी.

 

‘बूआ कहती हैं, तुम मनहूस हो, मैं तुम्हारे पास रहूंगा तो मैं भी मर जाऊंगा,’ बेटे के मुंह से यह सब सुन कर सरस्वती जैसे संज्ञाशून्य सी हो गई और बेटे को सीने से लगा कर बोली, ‘बूआ झूठ बोलती हैं, विशू. तुम ही तो मेरा सबकुछ हो.’

 

तभी सरस्वती की ननद कमला तेजी से कमरे में आई और उस की गोद से विश्वनाथ को छीन कर बोली, ‘मैं ने कोई झूठ नहीं बोला. तुम वास्तव में मनहूस हो. शादी के साल भर बाद ही मेरा जवान भाई चल बसा. अब यह इस खानदान का अकेला वारिस है. मैं इस पर तुम्हारी मनहूस छाया नहीं पड़ने दूंगी.’

 

‘पर दीदी, मैं जो नीरस और बेरंग जीवन जी रही हूं, उस की पीड़ा खुद मैं ही समझ सकती हूं,’ सरस्वती फूटफूट कर रो पड़ी थी.

 

‘क्यों उस मनहूस से बहस कर रही है, बेटी?’ आंगन से विशू की दादी बोलीं, ‘विशू को ले कर बाहर आ जा. उस का दूध ठंडा हो रहा है.’

 

बूआ गोद में विशू को उठाए कमरे से बाहर चली गईं.

 

सरस्वती का मन पीड़ा से फटा जा रहा था कि जिस वेदना से मैं दोचार हुई हूं उसे ये लोग क्या समझेंगे? पिता की मौत के 5 महीने बाद विश्वनाथ पैदा हुआ था. बेटे को सीने से लगाते ही वह अपने पिछले सारे दुख क्षण भर के लिए भूल गई थी.

 

सरस्वती की सास उस वक्त भी ताना देने से नहीं चूकी थीं कि चलो अच्छा हुआ, जो बेटा हुआ, मैं तो डर रही थी कि कहीं यह मनहूस बेटी को जन्म दे कर खानदान का नामोनिशान न मिटा डाले.

 

सरस्वती के लिए वह क्षण जानलेवा था जब उस की छाती से दूध नहीं उतरा. बच्चा गाय के दूध पर पलने लगा. उसे यह सोच कर अपना वजूद बेकार लगता कि मैं अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिला सकती.

 

कभीकभी सरस्वती सोच के अथाह सागर में डूब जाती. हां, मैं सच में मनहूस हूं. तभी तो जन्म देते ही मां मर गई. थोड़ी बड़ी हुई तो बड़ा भाई एक दुर्घटना में मारा गया. शादी हुई तो साल भर बाद पति की मृत्यु हो गई. बेटा हुआ तो वह भी अपना नहीं रहा. ऐसे में वह विह्वल हो कर रो पड़ती.

 

समय गुजरता रहा. बूआ और दादी लाड़लड़ाती हुई विश्वनाथ को खिलातीं- पिलातीं, जी भर कर बातें करतीं और वह मां हो कर दरवाजे की ओट से चुपचाप, अपलक बेटे का मुखड़ा निहारती रहती. छोटेछोटे सपनों के टूटने की चुभन मन को पीड़ा से तारतार कर देती. एक विवशता का एहसास सरस्वती के वजूद को हिला कर रख देता.

 

विश्वनाथ की बूआ कमला अपने परिवार के साथ शादी के बाद से ही मायके में रहती थीं. उन के पति ठेकेदारी करते थे. बूआ की 3 बेटियां थीं. इसलिए भी अब विश्वनाथ ही सब की आशाओं का केंद्र था. तेज दिमाग विश्वनाथ ने जिस दिन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास की सारे घर में जैसे दीवाली का माहौल हो गया.

 

‘मैं जानती थी, मेरा विशू एक दिन सारे गांव का नाम रोशन करेगा. मां, तेरे पोते ने तो खानदान की इज्जत रख ली.’  विश्वनाथ की बूआ खुशी से बावली सी हो गई थीं. प्रसन्नता की उत्ताल तरंगों ने सरस्वती के मन को भी भावविभोर कर दिया था.

 

विश्वनाथ पहली पोस्टिंग पर जाने से पहले मां के पांव छूने आया था.

 

‘सुखी रहो, खुश रहो बेटा,’ सरस्वती ने कांपते स्वर में कहा था. बेटे के सिर पर हाथ फेरने की नाकाम कोशिश करते हुए उस ने मुट्ठी भींच ली थी. तभी बूआ की पुकार ‘जल्दी करो विशू, बस निकल जाएगी,’ सुन कर विश्वनाथ कमरे से बाहर निकल गया था.

 

समय अपनी गति से बीतता रहा. विशू की नौकरी लगे 2 वर्ष बीत चुके थे. उस की दादी का देहांत हो चुका था. अपनी तीनों फुफेरी बहनों की शादी उस ने खूब धूमधाम से अच्छे घरों में करवा दी थी. अब उस के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आ रहे थे.

 

एक शाम सरस्वती की ननद कमला एक लड़की की फोटो लिए उस के पास आई. उस ने हुलस कर बताया कि लड़की बहुत बड़े अफसर की इकलौती बेटी है. सुंदर, सुशील और बी.ए. पास है.

 

‘क्या यह विशू को पसंद है?’ सरस्वती ने पूछा.

 

‘विशू कहता है, बूआ तुम जिस लड़की को पसंद करोगी मैं उसी से शादी करूंगा,’ कमला ने गर्व के साथ सुनाया, तो सरस्वती के भीतर जैसे कुछ दरक सा गया.

 

धूमधाम से शादी की तैयारियां शुरू हो गईं. सरस्वती का भी जी चाहता था कि वह बहू के लिए गहनेकपड़े का चुनाव करने ननद के साथ बाजार जाए. पड़ोस की औरतों के साथ बैठ कर विवाह के मंगल गीत गाए. पर मन की साध अधूरी ही रह गई.

 

धूमधाम से शादी हुई और गायत्री ने दुलहन के रूप में इस घर में प्रवेश किया.

 

गायत्री एक सुलझे विचारों वाली लड़की थी. 2-3 दिन में ही उसे महसूस हो गया कि उस की विधवा सास अपने ही घर में उपेक्षित जीवन जी रही हैं. घर में बूआ का राज चलता है. और उस की सास एक मूकदर्शक की तरह सबकुछ देखती रहती हैं.

 

उसे लगा कि उस का पति भी अपनी मां के साथ सहज व्यवहार नहीं करता. मांबेटे के बीच एक दूरी है, जो नहीं होनी चाहिए. एक शाम वह चाय ले कर सास के कमरे में गई तो देखा, वह बिस्तर पर बैठी न जाने किन खयालों में गुम थीं.

 

‘अम्मांजी, चाय पी लीजिए,’ गायत्री ने कहा तो सरस्वती चौंक पड़ी.

 

‘आओ, बहू, यहां बैठो मेरे पास,’ बहू को स्नेह से अपने पास बिठा कर सरस्वती ने पलंग के नीचे रखा संदूक खोला. लाल मखमल के डब्बे से एक जड़ाऊ हार निकाल कर बहू के हाथ में देते हुए बोली, ‘यह हार मेरे पिता ने मुझे दिया था. मुंह दिखाई के दिन नहीं दे पाई. आज रख लो बेटी.’

 

गायत्री ने सास के हाथ से हार ले कर गले में पहनना चाहा. तभी बूआ कमरे में चली आईं. बहू के हाथ से हार ले कर उसे वापस डब्बे में रखते हुए बोलीं, ‘तुम्हारी मत मारी गई है क्या भाभी? जिस हार को साल भर भी तुम पहन नहीं पाईं, उसे बहू को दे रही हो? इसे क्या गहनों की कमी है?’

 

सरस्वती जड़वत बैठी रह गई, पर गायत्री से रहा नहीं गया. उस ने टोकते हुए कहा, ‘बूआजी, अम्मां ने कितने प्यार से मुझे यह हार दिया है. मैं इसे जरूर पहनूंगी.’

 

सामने रखे डब्बे से हार निकाल कर गायत्री ने पहन लिया और सास के पांव छूते हुए बोली, ‘मैं कैसी लगती हूं, अम्मां?’

 

‘बहुत सुंदर बहू, जुगजुग जीयो, सदा खुश रहो,’ सरस्वती का कंठ भावातिरेक से भर आया था. पहली बार वह ननद के सामने सिर उठा पाई थी.

 

गायत्री ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपनी सास को पूरा आदर और प्रेम देगी. इसीलिए वह साए की तरह उन के साथ लगी रहती थी. धीरेधीरे 1 महीना गुजर गया, विश्वनाथ की छुट्टियां खत्म हो रही थीं. जिस दिन दोनों को रामनगर लौटना था उस सुबह गायत्री ने पति से कहा, ‘अम्मां भी हमारे साथ चलेंगी.’

 

‘क्या तुम ने अम्मां से पूछा है?’ विश्वनाथ ने पूछा तो गायत्री दृढ़ता भरे स्वर में बोली, ‘पूछना क्या है. क्या हमारा फर्ज नहीं कि हम अम्मां की सेवा करें?’

 

‘अभी तुम्हारे खेलनेखाने के दिन हैं, बहू. हमारी चिंता छोड़ो. हम यहीं ठीक हैं. बाद में कभी अम्मां को ले जाना,’ बूआ ने टोका था.

 

‘बूआजी, मैं ने अपनी मां को नहीं देखा है,’ गायत्री बोली, ‘अम्मां की सेवा करूंगी, तो मन को अच्छा लगेगा.’

 

आखिर गायत्री के आगे बूआ की एक न चली और सरस्वती बेटेबहू के साथ रामनगर आ गई थी.

 

कुछ दिन बेहद ऊहापोह में बीते. जिस बेटे को बचपन से अपनी आंखों से दूर पाया था, उसे हर पल नजरों के सामने पा कर सरस्वती की ममता उद्वेलित हो उठती, पर मांबेटे के बीच बात नाममात्र को होती.

 

गायत्री मांबेटे के बीच फैली लंबी दूरी को कम करने का भरपूर प्रयास कर रही थी. एक सुबह नाश्ते की मेज पर अपनी मनपसंद भरवां कचौडि़यां देख कर विश्वनाथ खुश हो गया. एक टुकड़ा खा कर बोला, ‘सच, तुम्हारे हाथों में तो जादू है, गायत्री.’

 

‘यह जादू मां के हाथों का है. उन्होंने बड़े प्यार से आप के लिए बनाई है. जानते हैं, मैं तो मां के गुणों की कायल हो गई हूं. जितना शांत स्वभाव, उतने ही अच्छे विचार. मुझे तो ऐसा लगता है जैसे मेरी सगी मां लौट आई हों.’

 

धीरेधीरे विश्वनाथ का मौन टूटने लगा  अब वह यदाकदा मां और पत्नी के साथ बातचीत में भी शामिल होने लगा था. सरस्वती को लगने लगा कि जैसे उस की दुनिया वापस उस की मुट्ठी में लौटने लगी है.

 

 

समय पंख लगा कर उड़ने लगा. वैसे भी जब खुशियों के मधुर एहसास से मन भरा हुआ होता है तो समय हथेली पर रखी कपूर की टिकिया की तरह तेजी से उड़ जाता है. जिस दिन गायत्री ने लजाते हुए एक नए मेहमान के आने की सूचना दी, उस दिन सरस्वती की खुशी की इंतहा नहीं थी.

 

‘बेटी, तू ने तो मेरे मन की मुराद पूरी कर दी.’

 

‘अभी कहां, अम्मां, जिस दिन आप का बेटा आप को वापस लौटा दूंगी, उस दिन वास्तव में आप की मुराद पूरी होगी.’

 

गायत्री ने स्नेह से सास का हाथ दबाते हुए कहा तो सरस्वती की आंखें छलक आईं.

 

गायत्री ने कहा, ‘मन के बुरे नहीं हैं. न ही आप के प्रति गलत धारणा रखते हैं. पर बचपन से जो बातें कूटकूट कर उन के दिमाग में भर दी गई हैं उन का असर धीरेधीरे ही खत्म होगा न? बूआ का प्रभाव उन के मन पर बचपन से हावी रहा है. आज उन्हें इस बात का एहसास है कि उन्होंने आप का दिल दुखाया है.’

 

गायत्री के मुंह से यह सुन कर सरस्वती का चेहरा एक अनोखी आभा से चमक उठा था.

 

गायत्री की गोदभराई के दिन घर सारे नातेरिश्तेदारों से भरा हुआ था. गहनों और बनारसी साड़ी में सजी गायत्री बहुत सुंदर लग रही थी.

 

‘चलो, बहू, अपना आंचल फैलाओ. मैं तुम्हारी गोद भर दूं,’ बूआ ने मिठाई और फलों से भरा थाल संभालते हुए कहा.

 

‘रुकिए, बूआजी, बुरा मत मानिएगा. पर मेरी गोद सब से पहले अम्मां ही भरेंगी.’

 

‘यह तुम क्या कह रही हो, बहू? ये काम सुहागन औरतों को ही शोभा देता है और तुम्हारी सास तो…’ पड़ोस की विमला चाची ने टोका, तो कमला बूआ जोर से बोलीं, ‘रहने दो बहन, 4 अक्षर पढ़ कर आज की बहुएं ज्यादा बुद्धिमान हो गई हैं. अब शास्त्र व पुराण की बातें कौन मानता है?’

 

‘जो शास्त्र व पुराण यह सिखाते हों कि एक स्त्री की अस्मिता कुछ भी नहीं और एक विधवा स्त्री मिट्टी के ढेले से ज्यादा अहमियत नहीं रखती, मैं ऐसे शास्त्रों और पुराणों को नहीं मानती. आइए, अम्मांजी, मेरी गोद भरिए.’

 

गायत्री का आत्मविश्वास से भरा स्वर कमरे में गूंज उठा. सरस्वती जैसे नींद से जागी. मन में एक अनजाना भय फिर दस्तक देने लगा.

 

‘नहीं बहू, बूआ ठीक कहती हैं,’ उस का कमजोर स्वर उभरा.

 

‘आइए, अम्मां, मेरी गोद पहले आप भरेंगी फिर कोई और.’

 

बहू की गोद भरते हुए सरस्वती की आंखें मानो पहाड़ से फूटते झरने का पर्याय बन गई थीं. रोमरोम से बहू के लिए आसीस का एहसास फूट रहा था.

 

निर्धारित समय पर विपुल का जन्म हुआ तो सरस्वती उसे गोद में समेट अतीत के सारे दुखों को भूल गई. विपुल में नन्हे विश्वनाथ की छवि देख कर वह प्रसन्नता से फूली नहीं समाती थी.

 

अपने बेटे के लिए जोजो अरमान संजोए थे, वह सारे अरमान पोते के लालनपालन में फलनेफूलने लगे. फिर 2 साल के बाद नेहा गायत्री की गोद में आ गई. सरस्वती की झोली खुशियों की असीम सौगात से भर उठी थी. गायत्री जैसी बहू पा कर वह निहाल हो उठी थी. विश्वनाथ और उस के बीच में तनी अदृश्य दीवार गायत्री के प्रयास से टूटने लगी थी. बेटे और मां के बीच का संकोच मिटने लगा था.

 

अब विश्वनाथ खुल कर मां के बनाए खाने की प्रशंसा करता. कभीकभी मनुहारपूर्वक कोई पकवान बनाने की जिद भी कर बैठता, तो सरस्वती की आंखें गायत्री को स्नेह से निहार, बरस पड़तीं. कौन से पुण्य किए थे जो ऐसी सुघड़ बहू मिली. अगर इस ने मेरा साथ नहीं दिया होता तो गांव के उसी अकेले कमरे में बेहद कष्टमय बुढ़ापा गुजारने पर मैं विवश हो जाती.

 

समय अपनी गति से बीतता रहा. 3 वर्ष पहले कमला बूआ की मृत्यु हो गई. विपुल ने इसी साल मैट्रिक की परीक्षा दी थी. और नेहा 8वीं कक्षा की होनहार छात्रा थी. दोनों बच्चों के प्राण तो बस, अपनी दादी में ही बसते थे.

 

गायत्री ने उन का दामन जमाने भर की खुशियों से भर दिया था और वही गायत्री इस तरह, अचानक उन्हें छोड़ गई? उन की सोच को एक झटका सा लगा.

 

‘‘दादीमां, दवा ले लीजिए,’’ पोती नेहा की आवाज से वह वर्तमान में लौटीं. उठने की कोशिश की पर बेहोशी की गर्त में समाती चली गईं.

 

 

नेहा की चीख सुन कर सब कमरे में भागे चले आए. विपुल दौड़ कर डाक्टर को बुला लाया. मां के सिरहाने बैठे विश्वनाथ की आंखें रहरह कर भीग उठती थीं.

 

‘‘इन्हें बहुत गहरा सदमा पहुंचा है, विश्वनाथ बाबू. इस उम्र में ऐसे सदमे से उबरना बहुत मुश्किल होता है. मैं कुछ दवाएं दे रहा हूं. देखिए, क्या होता है?’’

 

डाक्टर ने कहा तो विपुल और नेहा जोरजोर से रोने लगे.

 

‘‘दादीमां, तुम हमें छोड़ कर नहीं जा सकतीं. मां तुम्हारे ही भरोसे हमें छोड़ कर गई हैं,’’ नेहा के रुदन से सब की आंखें नम हो गई थीं.

 

4 दिन तक दादीमां नीम बेहोशी की हालत में पड़ी रहीं. 5वें दिन सुबह अचानक उन्हें होश आया. आंखें खोलीं और करवट बदलने का प्रयास किया तो हाथ किसी के सिर को छू गया. दादीमां ने चौंक कर देखा. उन के पलंग की पाटी से सिर टिकाए उन का बेटा गहरी नींद में सो रहा था. कुरसी पर अधलेटे विश्वनाथ का सिर मां के पैरों के पास था.

 

तभी नेहा कमरे में आ गई. दादी की आंखें खुली देख वह खुशी से चीख पड़ी, ‘‘पापा, दादीमां को होश आ गया.’’ विश्वनाथ चौंक कर उठ बैठे.

 

बेटे से नजर मिलते ही दादीमां का दिल फिर से धकधक करने लगा. मन की पीड़ा अधरों से फूट पड़ी.

 

‘‘मैं सच में आभागी हूं, बेटा. मनहूस हूं, तभी तो सोने जैसी बहू सामने से चली गई और मुझे देख, मैं फिर भी जिंदा बच गई. मेरे जैसे मनहूस लोगों को तो मौत भी नहीं आती.’’

 

‘‘नहीं मां, ऐसा मत कहो. तुम ऐसा कहोगी तो गायत्री की आत्मा को तकलीफ होगी. कोई इनसान मनहूस नहीं होता. मनहूस तो होती हैं वे रूढि़यां, सड़ीगली परंपराएं और शास्त्रपुराणों की थोथी अवधारणाएं जो स्त्री और पुरुष में भेद पैदा कर समाज में विष का पौधा बोती हैं. अब मुझे ही देख लो, गायत्री की मृत्यु के बाद किसी ने मुझे अभागा या बेचारा नहीं कहा.

 

‘‘अगर गायत्री की जगह मेरी मृत्यु हुई होती तो समाज उसे अभागी और बेचारी कह कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेता.’’

 

दादीमां आंखें फाड़े अपने बेटे का यह नया रूप देख रही थीं. गायत्री जैसे पारस के स्पर्श से उन के बेटे की सोच भी कुंदन हो उठी थी.

 

विश्वनाथ अपनी रौ में कहे जा रहा था, ‘‘मुझे माफ कर दो, मां. बचपन से ही मैं तुम्हारा प्यार पाने में असमर्थ रहा. अब तुम्हें हमारे लिए जीना होगा. मेरे लिए, विपुल के लिए और नेहा के लिए.’’

 

‘‘बेटा, आज मैं बहुत खुश हूं. अब अगर मौत भी आ जाए तो कोई गम नहीं.’’

 

‘‘नहीं मां, अभी तुम्हें बहुत से काम करने हैं. विपुल और नेहा को बड़ा करना है, उन की शादियां करनी हैं और मुझे वह सारा प्यार देना है जिस से मैं वंचित रहा हूं,’’ विश्वनाथ बच्चे की तरह मां की गोद में सिर रख कर बोला.

 

सरस्वती देवी के कानों में बहू के कहे शब्द गूंज उठे थे.

 

‘मां, जिस दिन आप का बेटा आप को वापस लौटा दूंगी, उस दिन आप के मन की मुराद पूरी होगी. आप के प्रति उन का पछतावे से भरा एहसास जल्दी ही असीम स्नेह और आदर में बदल जाएगा, देखिएगा.’

 

सरस्वती देवी ने स्नेह से बेटे को अपने अंक में समेट लिया. बहू द्वारा दिए गए इस अनमोल उपहार ने उन की शेष जिंदगी को प्राणवान कर दिया था.

 

  Online love story उपहार : वीराने में बहार

कांती द्वारा इनकार किए जाने पर रविकांत ने जीवनभर शादी न करने का फैसला किया था. शायद वह अपने इस प्रण पर अडिग भी रहते, यदि क्षमा उन की जिंदगी में न आती. आखिर कौन थी क्षमा, जिस ने रविकांत के वीरान जीवन में बहार ला दी थी?

अपने पहले एकतरफा प्रेम का प्रतिकार रविकांत केवल ‘न’ मेें ही पा सका. उस की कांती तो मांबाप के ढूंढ़े हुए लड़के आशुतोष के साथ विवाह कर जरमनी चली गई. वह बिखर गया. विवाह न करने की ठान ली. मांबाप अपने बेटे को कहतेसमझाते 4 साल के अंदर दिवंगत हो गए.

कांती के साथ कालिज में बिताए हुए दिनों की यादें भुलाए नहीं भूलती थीं. यह जानते हुए भी कि वह निर्मोही किसी और की हो कर दूर चली गई है वह अपने मन को उस से दूर नहीं कर पा रहा था. कालिज की 4 सालों की दोस्ती मेें वह उसे अपना दिल दे बैठा था. कई बार कोशिश करने के बाद रविकांत ने बड़ी कठिनाई से सकुचातेझिझकते एक दिन कांती से कहा था, ‘मैं तुम से प्रेम करने लगा हूं और तुम्हें अपनी जीवनसंगिनी के रूप में पा कर अपने को धन्य समझूंगा.’

जवाब में कांती ने कहा था, ‘रवि, मैं तुम्हें एक अच्छा दोस्त मानती हूं और इसी नाते से मैं तुम से मिलतीजुलती रही. मैं तुम से उस तरह का प्रेम नहीं करती हूं कि मैं तुम्हारी जीवनसंगिनी बनूं. रही विवाह की बात, तो मैं तुम्हें यह भी बता देती हूं कि मैं शादी तो अपने मांबाप की मर्जी और उन के ढूंढ़े हुए लड़के से ही करूंगी. अब चूंकि तुम्हारे विचार मेरे प्रति दोस्ती से बढ़ कर दूसरा रुख ले रहे हैं, इसलिए मेरा अनुरोध है कि तुम भविष्य में मुझ से मिलनाजुलना छोड़ दो और हम दोनों की दोस्ती को यहीं खत्म समझो.’

उस के बाद कांती फिर कभी रविकांत से नहीं मिली. रविकांत भी यह साहस नहीं कर सका कि उस के मातापिता से मिल कर कांती का हाथ उन से मांगता क्योेंकि उस आखिरी मुलाकात  के दिन उसे कांती की आंखों में प्यार तो दूर सहानुभूति तक नजर नहीं आई थी.

रविकांत ने खुद को प्रेम में असफल समझ कर जिंदगी को बेमानी, बेकार और बेरौनक मान लिया. ऐसे में अधिकतर लोग कठिनाइयों और असफलताओं से घबरा कर खुद को कमजोर समझ अपना आत्मविश्वास और उत्साह खो बैठते हैं.

रविकांत अब 50 पार कर चुके हैं. उन के कनपटी के बाल सफेद हो चुके हैं. आंखों पर चश्मा लग गया  है. इतने सालों तक एक ही कंपनी की सेवा में पूरी निष्ठा से लगे रहे तो अब वह जनरल मैनेजर बन गए हैं.

कंपनी से मिले हुए उन के फ्लैट के सामने वाले फ्लैट में कुछ दिन पहले ही शोभना नाम की एक महिला अपनी 24 साल की बेटी क्षमा के साथ किराए पर रहने के लिए आई.

क्षमा अपनी मां की ही तरह अत्यंत सुंदर और हंसमुख लड़की थी. वह जब भी रविकांत के सामने पड़ती ‘अंकल नमस्ते’ कहना और उन्हें एक मुसकराहट देना कभी नहीं भूलती. रविकांत भी ‘हैलो, कैसी हो बेटी’ कहते और उस के उत्तर में वह ‘थैंक यू’ कहती. क्षमा एम.एससी. कर के 2 वर्ष का कंप्यूटर कोर्स कर रही थी. इधर कई दिनों से रविकांत को न देख कर उस ने उन के नौकर से पूछा तो पता चला कि वह तो कई दिनों से बीमार हैं और नर्सिंग होम में भरती हैं. नौकर से नर्सिंग होम का पता पूछ कर क्षमा उसी शाम उन से मिलने नर्सिंग होम पहुंची.

क्षमा को देख कर रविकांत बेहद खुश हुए पर क्षमा ने पहले तो इस बात का गुस्सा दिखाया कि इतने दिनों से बीमार होने पर भी उन्होंने उसे खबर क्यों नहीं दी. वह तो हमेशा की तरह यही सोचती रही कि आप कहीं ‘टूर’ पर गए होंगे. क्षमा की झिड़की वह चुपचाप सुनते रहे. मन में उन्हें अच्छा लगा. क्षमा काफी देर तक उन के पास बैठी उन का हालचाल पूछती रही.

रविकांत ने जब बताया कि अब वह ठीक हैं और कुछ ही दिनों में उन्हें नर्सिंग होम से छुट्टी मिल जाएगी तभी उस की प्रश्नावली रुकी. घर वापस लौटते समय वह उन्हें जल्दी से अच्छे होने की शुभकामना देना नहीं भूली.

क्षमा अब रोज शाम को रविकांत को देखने नर्सिंग होम जाती. रविकांत का भी मन बहल जाता था. वह बड़ी बेसब्री से उस के आने की प्रतीक्षा करते. उस के आने पर वे दोनों विभिन्न विषयों पर बहस करते और हंसते हुए बातचीत करते रहते. 2 घंटे कितनी जल्दी गुजर जाते पता ही नहीं लगता.

जिस दिन रविकांत को नर्सिंग होम से छुट्टी मिली, क्षमा उन्हें अपने साथ ले कर उन के फ्लैट पर आई. अगले दिन रविकांत अपनी ड्यूटी पर जाने लगे तो क्षमा ने यह कह कर जाने नहीं दिया कि आप आज आराम करें और फिर कल तरोताजा हो कर काम पर जाएं.

अगले दिन शाम को जब रविकांत देर से वापस लौटे तो उन के आने की आहट सुन उस ने दरवाजा खोला. नमस्ते की. साथ ही देर करने का उलाहना भी दिया.

 

सप्ताह में 1-2 बार क्षमा उन के बुलाने पर या खुद ही उन के फ्लैट में जा कर घंटे डेढ़ घंटे गप लड़ाती, नौकर थोड़ी देर में चाय दे जाता. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह अपनी बातें चालू रखते जो अकसर अन्य विषयों से सिमट कर अब कालिज, आफिस, घरेलू और निजी बातों पर आ जाती थीं.

क्षमा ने एक दिन पूछ ही लिया, ‘‘अंकल, आप अकेले क्यों हैं? आप ने शादी क्यों नहीं की? आप को साथी की कमी महसूस नहीं होती क्या? आप को अकेले घर काटने को नहीं दौड़ता? नौकर के हाथ का खाना खातेखाते आप का जी नहीं ऊबता?’’

रविकांत ने अपने पिछले प्रेम का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘क्षमा, हम सब नियति के हाथों की कठपुतली हैं जिसे वह जैसा चाहती है नचाती है. अकेलापन तो मुझे भी बहुत काटता है पर मैं अपने आप को आफिस के काम में व्यस्त रख उसे भगाए रहता हूं. मुझे खुशी है कि अब मेरा कुछ समय तुम्हारे साथ हंसतेबोलते कट जाता है. तुम्हारे साथ बिताए ये क्षण मुझे अब भाने लगे हैं.’’

रविकांत की बीमारी को धीरेधीरे 1 वर्ष हो गया. इस बीच क्षमा ने अपनी मां से पूछ रविकांत को करीबकरीब हर माह 1-2 बार खाने पर बुलाया. रविकांत शोभनाजी से मिलने पर क्षमा की बड़ी प्रशंसा करते. उन की थोड़ीबहुत औपचारिक बातें भी होतीं. जिस दिन रविकांत खाने पर आने को होते उस दिन क्षमा बड़े उत्साह से घर ठीक करने और खाना बनाने में मां के साथ लग जाती. वह अकसर मां से रविकांत के गुणों और विशेषताओं पर चर्चा करती रहती. वे हांहूं कर उस की बातें सुनती रहतीं.

बेटी और पड़ोसी रविकांत की बढ़ती दोस्ती और मिलनाजुलना कुछ महीनों से शोभना के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा था. क्षमा से इस बारे में कुछ न कह उन्होंने उस के विवाह के लिए प्रयत्न जोरों से शुरू कर दिए. उन की सहेली रमा का बेटा रौनक इन दिनों आस्ट्रेलिया से कुछ दिनों के लिए भारत आया हुआ था. क्षमा भी उस से बपचन से परिचित थी. शोभना ने रमा को क्षमा और रौनक के विवाह का सुझाव दिया तो वह अगले दिन शाम को अपने पति देवनाथ और बेटे रौनक के साथ मिलने आ गईं. शोभना और रमा के बीच कोई औपचारिकता तो थी नहीं सो उस ने उन्हें खाने के लिए रोक लिया.

भोजन के समय रमा ने सब के सामने क्षमा से सीधा प्रश्न कर दिया, ‘‘क्षमा बेटी, मेरा बेटा रौनक तुम्हें बचपन से पसंद करता है. यदि तुम्हें भी रौनक पसंद है तो तुम दोनों के विवाह से तुम्हारी मां और हमें बहुत खुशी होगी.’’

 

क्षमा पहले तो चुप रही पर रमा के बारबार आग्रह पर उस ने कहा, ‘‘आंटी, आप लोग हमारे बड़े हैं. मां जैसा कहेंगी मुझे मान्य होगा.’’

शोभना ने कहा, ‘‘क्षमा, रौनक सब प्रकार से तुम्हारे लिए उपयुक्त वर है. हमारे परिवारों के बीच संबंध भी मधुर हैं, इसलिए मैं चाहूंगी कि तुम और रौनक दोनों खाना खत्म करने के बाद बाहर लान में एकसाथ बैठ कर आपस में सलाह कर लो.’’

आपस में बातें कर के जब वे लौटे तो दोनों को खुश देख कर शोभना ने क्षमा को अंदर कमरे में ले जा कर उस से कहा, ‘‘तो फिर मैं बात पक्की कर दूं?’’

क्षमा के सकुचाते हुए स्वीकृति में सिर हिलाते ही उन्होंने उस के माथे को चूम कर उसे आशीर्वाद दिया. वे दोनों मांबेटी तब डाइंगरूम में आ गईं. शगुन के रूप में शोभना ने 1 हजार रुपए रौनक के हाथ में रख दोनों को आशीर्वाद दिया और रमा से लिपट उसे और उस के पति को बधाई दी. रौनक के आस्ट्रेलिया लौटने से पहले ही विवाह संपन्न करने की बात भी अभिभावकों के बीच हो गई.

क्षमा, शोभना और उस के पति का पासपोर्ट जापान, हांगकांग और आस्ट्रेलिया घूमने जाने के लिए पहले से ही बना हुआ था पर 3 वर्ष पहले क्षमा के पिता की अचानक मृत्यु हो जाने से वह प्रोग्राम कैंसिल हो गया था. यदि इस बीच क्षमा का वीसा बन गया तो वह भी रौनक के साथ आस्ट्रेलिया चली जाएगी नहीं तो रौनक 6 महीने बाद आ कर उसे ले जाएगा.

अगली शाम रविकांत से मिलने पर क्षमा ने उन्हें अपनी शादी के बारे में जब बताया तो उन्हें चुप और गंभीर देख वह बोली, ‘‘ऐसा लगता है अंकल कि आप को मेरे विवाह की बात सुन कर खुशी नहीं हुई.’’

रविकांत बोले, ‘‘तुम चली जाओगी तो मैं फिर अकेला हो जाऊंगा. मैं तो इन कुछ महीनों में ही तुम्हें अपने बहुत नजदीक समझने लगा था. पर यह तो मेरा स्वार्थ ही होगा, यदि मैं तुम्हारे विवाह से खुश न होऊं. मैं तो वर्षों से अकेले रहने का आदी हो गया हूं. मेरी बधाई स्वीकार करो.’’

क्षमा इठलाते हुए बोली, ‘‘ऐसे नहीं, मैं तो आप से बहुत बड़ा उपहार भी लूंगी, तभी आप की बधाई स्वीकार करूंगी.’’

रविकांत ने कहा, ‘‘तुम जो भी चाहोगी, मैं तुम्हें दूंगा. तुम कहो तो, तुम क्या लेना चाहोगी. अपनी इतनी अच्छी प्रिय दोस्त के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकूंगा.’’

‘‘पहले वादा कीजिए कि आप मना नहीं करेंगे.’’

‘‘अरे, मना क्योें करूंगा. लो, वादा भी करता हूं.’’

क्षमा बोली, ‘‘अंकल, मेरे सामने एक बड़ी समस्या है मेरी मां, जिन्होंने मेरे लिए इतना कुछ किया है, मैं उन्हें अकेली छोड़ विदेश चली जाऊं, ऐसा मेरा मन नहीं मानता. मैं चाहती हूं कि आप  और मेरी मां, जो खुद भी एकाकी जीवन जी रही हैं, विवाह कर लें. आप दोनों को साथी मिल जाएगा. मैं मां को मना लूंगी. बस, आप हां कर दें.’’

रविकांत चुप रहे. कुछ देर के बाद क्षमा ने फिर कहा, ‘‘ठीक है, यदि आप तैयार नहीं हैं तो मैं अपने विवाह के लिए मना कर देती हूं. देखिए, मेरा विवाह अभी तय हुआ है, हुआ तो नहीं. मैं ने गलत सोचा था कि आप मेरे बहुत निकट हैं और मेरी भलाई के लिए मेरी भावनाओं को समझते हुए आप अपना दिया हुआ वादा निभाएंगे,’’ कहतेकहते क्षमा का गला रुंध गया.

रविकांत अपनी जगह से उठे. उन्होंने क्षमा के सिर पर हाथ रखा और उस के आंसू पोंछते हुए बोले, ‘‘मैं अपनी बेटी की खुशी के लिए सबकुछ करूंगा. मैं तुम्हारे सुझाव से सहमत हूं.’’

क्षमा खुशी से उछल पड़ी और उन के गले से लिपट गई. क्षमा ने अपनी शादी से पहले उन दोनों के विवाह कर लेने की जिद पकड़ ली ताकि वे दोनों संयुक्त रूप से उस का कन्यादान कर सकें.

अगले सप्ताह ही रविकांत और शोभना का विवाह बड़े सादे ढंग से संपन्न हुआ और उस के 5 दिन बाद रौनक और क्षमा की शादी बड़ी धूमधाम से हुई.

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