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Short Hindi Story : मेरे पापा

Hindi Short Story : दिल्ली आये मुझे अभी तीन महीने ही हुए थे. नया शहर, नया औफिस, नयी नौकरी. अभी ठीक से सेटल भी नहीं हो पायी थी कि अचानक एक दिन सुबह-सुबह लखनऊ से भाई का फोन आया कि पापा का एक्सीडेंट हो गया है, तुरंत आ जाओ. तुम्हें बार-बार याद कर रहे हैं. घर से पांच सौ किलोमीटर दूर मैं यह खबर सुन कर बदहवास सी हो गई. अब अचानक न तो ट्रेन का रिजर्वेशन मिल सकता था और न मैंने कभी हवाई सफर किया था. ट्रेन का टिकट लेकर बैठ भी जाती तब भी दूसरे दिन ही पहुंचती. सिर घूमने लगा कि क्या करूं. अचानक तय किया कि बस पकड़ो और निकल जाओ. मैंने फटाफट एक बैग में दो जोड़ी कपड़े डाले और औटो रिक्शा लेकर दिल्ली आईएसबीटी की ओर भागी. दिल यह सोच-सोच कर धड़क रहा था कि पता नहीं पापा किस कंडीशन में हैं. भाई तो कह रहा था कि खतरे से बाहर हैं, मगर क्या पता कितनी चोट लगी है. भाई ने बताया था कि सुबह मौर्निंग वाक पर निकले थे कि पीछे से एक बाइक वाले ने जोर की टक्कर मारी थी. बुढ़ापे का शरीर, पता नहीं चोट कितनी गहरी पहुंची होगी.

बस अड्डे पर पहुंच कर मैं राज्य परिवहन की बस में जा बैठी. मगर जब बस काफी देर तक नहीं चली तो मैंने कंडक्टर से पूछा. वह बोला कि जब पूरी भर जाएगी तब चलेगी. मैंने सिर घुमा कर देखा, पीछे सारी सीटें खाली पड़ी थीं. इसे भरने में तो घंटा भर लग जाएगा. मै परेशान हो गयी. बाहर प्राइवेट बसों के चालक जोर-जोर से आवाज लगा रहे थे – सात घंटे में सफर पूरा करें… आइये सात घंटे में सफर पूरा करें… लखनऊ-कानपुर-गोरखपुर… आइये… आइये… . मैं सरकारी बस से उतरी और एक बस चालक से पूछा, ‘लखनऊ कब तक पहुंचा दोगे?’ वह बोला, ‘शाम सात बजे तक.’ मैं तुंरत प्राइवेट बस में चढ़ गयी. सरकारी बस का कंडक्टर मुझे रोकता रह गया, ‘बोला, गलती कर रही हो मैडम, उससे पहले सरकारी बस पहुंच जाएगी. वह ज्यादा किराया लेंगे.’ मगर मुझे तो जल्दी से जल्दी पहुंचने की धुन लगी थी. प्राइवेट बस पूरी तरह भरी हुई थी. जल्दी ही चल पड़ेगी. मैं बैग लिये खट-खट उस पर चढ़ गयी.

अन्दर ज्यादातर ग्रामीण इलाके के लोग नजर आ रहे थे. टिकट दर भी सरकारी बस से तीन गुना ज्यादा थी, मगर मुझे संतोष था कि यह बस मुझे अपने पापा के पास जल्दी पहुंचा देगी. मैंने बस में बैठते ही फोन करके भाई को खबर कर दी कि बस ले ली है, शाम तक पहुंच जाऊंगी.

तीन घंटे के सफर के बाद यह बस हाईवे के एक ढाबे पर रुकी. सवारियां उतर कर खाने-पीने के लिए ढाबे में जाने लगीं. मगर मेरी तो भूख-प्यास सब मिटी हुई थी. मैं चुपचाप अपनी सीट पर बैठी रही. थोड़ी देर में बाहर कुछ शोर सा उभरा. बस कंडक्टर चिल्ला रहा था कि किसी ने उसके कमर में बंधे फेंटे में से पांच हजार रुपए निकाल लिए हैं. मैंने खिड़की से झांक कर बाहर देखा तो सभी यात्रियों को लाइन में खड़ा करके तलाशी लेने का काम शुरू होने वाला था. मुझे कोफ्त हो रही थी कि यह क्या नया तमाशा खड़ा हो गया. यहां जल्दी पहुंचने की धुन लगी है और इन लोगों ने यह नया खेल शुरू कर दिया है. मैंने देखा बस ड्राइवर और कंडक्टर के साथ ढाबा मालिक भी जोर-जोर से बोल रहा था कि सब लोग अपनी-अपनी तलाशी दो. सारे ग्रामीण हैरान-परेशान खड़े थे. हर आदमी कुछ बोले बिना तलाशी देने के लिए लाइन में लगा जा रहा था. महिलाएं बच्चे सब. एक लड़का मेरी खिड़की के पास आकर चिल्लाया, ‘मैडम आप भी नीचे आ जाओ और तलाशी दो.’

मेरे सिर पर गुस्सा सवार हो गया. मैं चिल्ला कर बोली, ‘तुम लोग कौन होते हो किसी की तलाशी लेने वाले? पैसा चोरी हुआ है तो बस को पास के किसी थाने में ले लो, वहां होगी कार्रवाई. यहां किसी महिला को हाथ न लगाना वरना तुम्हारी ऐसी की तैसी कर देंगे.’

बस ड्राइवर, कंडक्टर और ढाबे वाला हकबका कर मेरा चेहरा ताकने लगे. मेरी हिम्मत देखकर कुछ लोगों में हिम्मत आयी. एक-एक कर सबने बोलना शुरू किया, ‘हां, हां, बस को थाने पर ले लो… वहीं देंगे तलाशी….’

ड्राइवर, कंडक्टर ढाबे वाले के साथ एक तरफ को होकर कुछ मशवरा करने लगे. थोड़ी देर में ढाबे वाले ने आकर कहा, ‘देखों भाइयों, इसका बड़ा नुकसान हो गया है. थाने जाएंगे तो और देर लगेगी, ऐसा करो तुम सब दो-दो सौ रुपए देकर इसका नुकसान पूरा कर दो.’

मैं फिर आगे आयी, बोली, ‘क्या सबूत कि इसका नुकसान हुआ है? सवारियों से पैसा एंठने का अच्छा धंधा बना रखा है तुम लोगों ने… और तू क्या इनका वकील है? इनके साथ मिला हुआ है? सीधे तरीके से बस को थाने ले चल वरना बैठ यहीं, न कोई तलाशी देगा और न कोई एक पैसा देगा.’

लोगों ने मेरी हां में हां मिलायी. कई महिलाएं आकर मेरे साथ खड़ी हो गयीं. सब कहने लगे कि अब तो बस को थाने ही ले चलो. कोई घंटा भर खराब करने के बाद बस ड्राइवर ने आकर कहा, ‘चलो, चलो, बस में बैठो सब… ’ और वह उचक कर ड्राइवर सीट पर बैठ गया. परेशान यात्री झटपट बस में चढ़ गये. कंडक्टर ने खा जाने वाली नजर से मेरी ओर देखा और जाकर आगे वाली सीट पर बैठ गया. बस रात के एक बजे लखनऊ पहुंची. घर पहुंची तो पापा मुझे देखकर मुस्कुरा दिये. खतरे से बाहर थे मगर सिर और घुटनों पर पट्टियां बंधी हुई थीं. मुझे अपने पास पाकर उनको बड़ी राहत महसूस हो रही थी. मैंने बदमाश बस ड्राइवर-कंडक्टर की कारस्तानी घरवालों को बतायी और दूसरे दिन थाने जाकर एक शिकायत भी दर्ज करवायी. मेरी शिकायत पर कोई कार्रवाई तो क्या ही हुई होगी, मगर सोचती हूं कि अगर मैंने हिम्मत न दिखायी होती तो वह बदमाश अनपढ़ और गरीब ग्रामीण यात्रियों से कितना पैसा वसूलते. ये तो उनका रोज का धंधा ही होगा. रोजाना ये लोग यात्रियों को ऐसे ही परेशान करते होंगे. अगर सचमुच कंडक्टर की जेब कटी होती तो थाने जाने में उसे क्यों संकोच होता? मैंने तय किया कि आगे से कभी इन प्राइवेट बसों में नहीं बैठूंगी, अपनी सरकारी खटारा बसें ही ठीक हैं.

 

Online Hindi Story : धोखे का खुलासा

Online Hindi Story : खुशी से दिशा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. फ्रैंड्स से बात करते हुए वह चिडि़यों की तरह चहक रही थी. उस की आवाज की खनक बता रही थी कि बहुत खुश है. यह स्वाभाविक भी था. मंगनी होना उस के लिए छोटी बात नहीं थी.

मंगनी की रस्म के लिए शहर के नामचीन होटल को चुना गया था. रात के 9 बज गए थे. सारे मेहमान भी आ चुके थे. फ्रैंड्स भी आ गई थीं. लेकिन मानस और उस के घर वाले अभी तक नहीं आए थे.

देर होते देख उस के पापा घबरा रहे थे. उन्होंने दिशा को मानस से पूछने के लिए कहा तो उस ने तुरंत उसे फोन लगाया. मानस ने बताया कि वे लोग ट्रैफिक में फंस गए हैं. 20-25 मिनट में पहुंच जाएंगे.

दिशा ने राहत की सांस ली. मानस के आने में देर होते देख न जाने क्यों उसे डर सा लगने लगा था. वह सोच रही थी कि कहीं उसे उस के बारे में कोई नई जानकारी तो नहीं मिल गई. लेकिन उस ने अपनी इस धारणा को यह सोच कर पीछे धकेल दिया कि वह आ तो रहा है. कोई बात होती तो टै्रफिक में फंसा होने की बात क्यों बताता.

अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. उस ने ‘हैलो’ कहा तो परिमल की आवाज आई, ‘‘2 दिन पहले ही जेल से रिहा हुआ हूं. तुम्हारा पता किया तो जानकारी मिली कि आज मानस से तुम्हारी मंगनी होने जा रही है. मैं एक बार तुम्हें देखना और तुम से बात करना चाहता हूं. होटल के बाहर खड़ा हूं. 5 मिनट के लिए आ जाओ, नहीं तो मैं अंदर आ जाऊंगा.’’

दिशा घबरा गई. जानती थी कि परिमल अंदर आ गया तो उस की फजीहत हो जाएगी. मानस को सच्चाई का पता चल गया तो वह उस से मंगनी नहीं करेगा.

उसे परिमल से मिल लेने में ही भलाई नजर आई. लोगों की नजर बचा कर वह होटल से बाहर चली गई.

गेट से थोड़ी दूर आगे परिमल खड़ा था. उस के पास जा कर दिशा गुस्से में बोली, ‘‘क्यों परेशान कर रहे हो? बता चुकी हूं कि मैं तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

‘‘तुम ने मेरी जिंदगी बरबाद की है, फिर भी मैं तुम्हें परेशान नहीं कर सकता. मैं तो तुम से सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि मेरी दुर्दशा करने के बाद तुम्हें कभी पछतावा हुआ या नहीं?’’

दिशा ने रूखे स्वर में जवाब दिया, ‘‘कैसा पछतावा? जो कुछ भी हुआ उस में सारा दोष तुम्हारा था. मैं ने तो पहले ही आगाह किया था कि मुझे बदनाम मत करो. आज के बाद अगर तुम ने मुझे फिर कभी बदनाम किया तो याद रखना पहली बार 3 साल के लिए जेल गए थे. अब उम्र भर के लिए जाओगे.’’

अपनी बात कह कर दिशा बिना परिमल का जवाब सुने होटल के अंदर आ गई. उस की फ्रैंडस उसे ढूंढ रही थीं. एक ने पूछ लिया, ‘‘कहां चली गई थी? तेरे पापा पूछ रहे थे.’’स्थिति संभालने के लिए दिशा ने बाथरूम जाने का बहाना कर दिया. पापा को भी बता दिया. फिर राहत की सांस ले कर सोफे पर बैठ गई.

उसे विश्वास था कि परिमल अब कभी परेशान नहीं करेगा और वह मानस के साथ आराम की जिंदगी गुजारेगी. परिमल से दिशा की पहली मुलाकात कालेज में उस समय हुई थी, जब वह बीटेक कर रही थी. परिमल भी उसी कालेज से बीटेक कर रहा था. वह उस की पर्सनैल्टी पर मुग्ध हुए बिना नहीं रह सकी थी. लंबी चौड़ी कद काठी, आकर्षक चेहरा, गोरा रंग, स्मार्ट और हैंडसम.

मन ही मन उस ने ठान लिया था कि एक न एक दिन उसे पा कर रहेगी, चाहे कालेज की कितनी भी लड़कियां उस के पीछे पड़ी हों. दरअसल, उसे पता चला था कि कई लड़कियां उस पर जान न्योछावर करती हैं. यह अलग बात थी कि उस ने किसी का भी प्रेम प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था.

प्यार मोहब्बत के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई खराब नहीं करना चाहता था. पढ़ाई में वह शुरू से ही मेधावी था. एक ही कालेज में पढ़ने के कारण दिशा उस से पढ़ाईलिखाई की ही बात करती थी. कई बार वह कैंटीन में उस के साथ चाय भी पी चुकी थी.

एक दिन कैंटीन में परिमल के साथ चाय पीते हुए उस ने कहा, ‘‘इन दिनों बहुत परेशान हूं. मेरी मदद करोगे तुम्हारा बड़ा अहसान होगा.’’

‘‘परेशानी क्या है?’’ परिमल ने पूछा. ‘‘कहते हुए शर्म आ रही है पर समाधान तुम्हें ही करना है. इसलिए परेशानी तो बतानी ही पडे़गी. बात यह है कि पिछले 4-5 दिनों से तुम रातों में मेरे सपनों में आते हो और सारी रात जगाए रहते हो.

‘‘दिन में भी मेरे दिलोंदिमाग में तुम ही रहते हो. शायद इसे ही प्यार कहते हैं. सच कहती हूं परिमल तुम मेरा प्यार स्वीकार नहीं करोगे तो मैं जिंदा लाश बन कर रह जाऊंगी.’’

परिमल ने तुरंत जवाब नहीं दिया. उस ने कुछ सोचा फिर कहा, ‘‘यह तो पता नहीं कि तुम मुझे कितना चाहती हो, पर यह सच है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.’’

दिशा के चेहरे की मुसकान का सकारात्मक अर्थ निकालते हुए उस ने आगे कहा, ‘‘मैं भी तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं. लेकिन मैं ने इस डर से कदम आगे नहीं बढ़ाए कि तुम अमीर घराने की हो. तुम्हारे पापा रिटायर जज हैं. भाई पुलिस में बड़े अधिकारी हैं. धनदौलत की कमी नहीं है.’’

दिशा उस की बातों को बडे़ मनोयोग से सुन रही थी. परिमल ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘मैं गरीब परिवार से हूं. पिता मामूली शिक्षक हैं. ऊपर से उन्हें 2 जवान बेटियों की शादी भी करनी है. यह  सच है कि तुम अप्सरा सी सुंदर हो. कोई भी अमीर युवक तुम से शादी कर के अपने आप को भाग्यशाली समझेगा. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा हाथ भला मेरे हाथ में क्यों देंगे?’’

दिशा तुरंत बोली, ‘‘इतनी सी बात के लिए डर रहे हो? मुझ पर भरोसा रखो. हमारा मिलन हो कर रहेगा. हमें एक होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. तुम केवल मेरा प्यार स्वीकार करो, बाकी सब कुछ मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

दिशा ने समझाया तो परिमल ने उस का प्यार स्वीकार कर लिया. उस के बाद दोनों को जब भी मौका मिलता कभी पार्क में, कभी मौल में तो कभी किसी रेस्तरां में जा कर घंटों प्यारमोहब्बत की बातें करते.

सारा खर्च दिशा की करती थी. परिमल खर्च करता भी तो कहां से? उसे सिर्फ 50 रुपए प्रतिदिन पौकेट मनी मिलती थी. उसी में घर से कालेज आनेजाने का किराया भी शामिल था.

2 महीने में ही दोनों का प्यार इतना अधिक गहरा हो गया कि एकदूसरे में समा जाने के लिए व्याकुल हो गए. अंतत: एक दिन दिशा परिमल को अपनी फ्रैंड के फ्लैट पर ले गई.

दिशा का प्यार पा कर परिमल उस का दीवाना हो गया. दिनरात लट्टू की तरह उस के आगेपीछे घूमने लगा. नतीजा यह हुआ कि पढ़ाई से मन हट गया और उसे दिशा के साथ उस की फ्रैंड के फ्लैट पर जाना अच्छा लगने लगा.

सहेली के मम्मीपापा दिन में औफिस में रहते थे. इसलिए उन्हें परेशानी नहीं होती थी. फ्रैंड तो राजदार थी ही.

इस तरह दोनों एक साल तक मौजमस्ती करते रहे. फिर अचानक दिशा को लगा कि परिमल के साथ ज्यादा दिनों तक रिश्ता बनाए रखने में खतरा है. वजह यह कि वह उस से शादी की उम्मीद में था.

दिशा ने परिमल से मिलनाजुलना बंद कर दिया. उस ने परिमल को छोड़ कर कालेज के ही एक छात्र वरुण से तनमन का रिश्ता जोड़ लिया. वरुण बहुत बड़े बिजनैसमैन का इकलौता बेटा था.

सच्चाई का पता चलते ही परिमल परेशान हो गया. वह हर हाल में दिशा से शादी करना चाहता था. लेकिन दिशा ने उसे बात करने का मौका ही नहीं दिया था. दिशा का व्यवहार देख कर परिमल ने कालेज में उसे बदनाम करना शुरू कर दिया. मजबूर हो कर दिशा को उस से मिलना पड़ा.

पार्क में परिमल से मिलते ही दिशा गुस्से में चीखी, ‘‘मुझे बदनाम क्यों कर रहे हो. मैं ने कभी कहा था कि तुम से शादी करूंगी?’’‘‘अपना वादा भूल गईं. तुम ने कहा था न कि हमारा मिलन हो कर रहेगा. तभी तो तुम्हारी तरफ कदम बढ़ाया था.’’ परिमल ने उस का वादा याद दिलाया.

‘‘मैं ने मिलन की बात की थी, शादी की नहीं. मेरी नजरों में तन का मिलन ही असल मिलन होता है. मैं ने अपना सर्वस्व तुम्हें सौंप कर अपना वादा पूरा किया था, फिर शादी के लिए क्यों पीछे पड़े हो? तुम छोटे परिवार के लड़के हो, इसलिए तुम से किसी भी हाल में शादी नहीं कर सकती.’’

परिमल शांत बैठा सुन रहा था. उस के चेहरे पर तनाव था और मन में गुस्सा. लेकिन उस सब की चिंता किए बगैर दिशा बोली, ‘‘तुम अच्छे लगे थे, इसीलिए संबंध बनाया था. अब हम दोनों को अपनेअपने रास्ते चले जाना चाहिए. वैसे भी मेरी जिंदगी में आने वाले तुम पहले लड़के नहीं हो. मेरी कई लड़कों से दोस्ती रही है. मैं सब से थोड़े ही शादी करूंगी? अगर आज के बाद मुझे कभी भी परेशान  करोगे तो तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा. बदनामी से बचने के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूं.’’

दिशा का लाइफस्टाइल जान कर परिमल को बहुत गुस्सा आया. इतना गुस्सा कि उस के वश में होता तो उस का गला दबा देता. जैसेतैसे गुस्से को काबू कर के उस ने खुद को समझाया. लेकिन सब की परवाह किए बिना दिशा उठ कर चली गई.

दिशा ने भले ही परिमल से बुरा व्यवहार किया, लेकिन उस ने उस की आंखों में गुस्से को देखा था, इसलिए उसे डर लग रहा था. उसे लगा कि परिमल अगर शांत नहीं बैठा तो उस की जिंदगी में तूफान आ सकता है.  वह बदनाम नहीं होना चाहती थी. इसलिए उस ने भाई की मदद ली. उस का भाई पुलिस में उच्च पद पर था, उसे चाहता भी था.

नमक मिर्च लगा कर उस ने परिमल को खलनायक बनाया और भाई से गुजारिश की कि परिमल को किसी भी मामले में फंसा कर  जेल भिजवा दे. फलस्वरूप परिमल को गिरफ्तार कर लिया गया. उस पर इल्जाम लगाया गया कि उस ने कालेज की एक लड़की की इज्जत लूटने की कोशिश की थी.

अदालत में सारे झूठे गवाह पेश कर दिए गए. पुलिस का मामला था, सो आरोपी लड़की भी तैयार कर ली गई. अदालत में उस का बयान हुआ तो 2-3 तारीख पर ही परिमल को 3 वर्ष की सजा हो गई.

परिमल हकीकत जानता था, लेकिन चाह कर भी वह कुछ नहीं कर सकता था. लंबी लड़ाई के लिए उस के पास पैसा भी नहीं था. उस ने चुपचाप सजा काटना मुनासिब समझा. इस से दिशा ने राहत की सांस ली. साथ ही उस ने अपना लाइफस्टाइल भी बदलने का फैसला कर लिया. क्योंकि वह यह सोच कर डर गई थी कि परिमल जैसा कोई और उस की जिंदगी में आ गया तो वह घर परिवार और समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगी.

उस के दुश्चरित्र होने की बात पापा तक पहुंच गई तो वह उन की नजर में गिर जाएगी. पापा उसे इतना चाहते थे कि हर तरह की छूट दे रखी थी. उस के कहीं आनेजाने पर भी कोई पाबंदी नहीं थी. यहां तक कि उन्होंने कह दिया था कि अगर उसे किसी लड़के से प्यार हो गया तो उसी से शादी कर देंगे, बशर्ते लड़का अमीर परिवार से हो.

मम्मी थीं नहीं, 7 साल पहले गुजर गई थीं. भाभी अपने आप में मस्त रहती थीं. दिशा जब 12वीं में पढ़ती थी तो एक लड़के के प्रेम में आ कर उस ने अपना सर्वस्व सौंप दिया था. वह नायाब सुख से परिचित हुई तो उसे ही सच्चा सुख मान लिया.

वह बेखौफ उसी रास्ते पर आगे बढ़ती गई. नएनए साथी बनते और छूटते गए. वह किसी एक की हो कर नहीं रहना चाहती थी.

पहली बार परिमल ने ही उस से शादी की बात की थी. जब वह नहीं मानी तो उस ने उसे खूब बदनाम भी किया था.

वह बदनामी की जिंदगी नहीं जीना चाहती थी. इसलिए परिमल के जेल में रहते परिणय सूत्र में बंध जाना चाहती थी. तब उस की जिंदगी में वरुण आ चुका था.

परिमल के जेल जाने के 6 महीने बाद दिशा ने जब बीटेक कर लिया तो उस ने वरुण से अपने दिल की बात कही, ‘‘चोरीचोरी प्यार मोहब्बत का खेल बहुत हो गया. अब शादी कर के तुम्हारे साथ रहना चाहती हूं.’’

वरुण दिशा की तरह इस मैदान का खिलाड़ी था. उस ने शादी से मना कर दिया, साथ ही उस से रिश्ता भी तोड़ दिया.

दिशा को अपने रूप यौवन पर घमंड था. उसे लगता था कि कोई भी युवक उसे शादी करने से मना नहीं करेगा. वरुण ने मना कर दिया तो आहत हो कर उस ने शादी से पहले अपने पैरों पर खड़ा होने का निश्चय किया.

पापा से नौकरी की इजाजत मिल गई तो उस ने जल्दी ही जौब ढूंढ लिया. जौब करते हुए 2 महीने ही बीते थे कि एक पार्टी में उस का परिचय रंजन से हुआ, जो पेशे से वकील था. उस के पास काफी संपत्ति थी. शादी के ख्याल से उस ने रंजन से दोस्ती की, फिर संबंध भी बनाया. लेकिन करीब एक साल बाद उस ने शादी से मना कर दिया.

रंजन से धोखा मिलने पर दिशा तिलमिलाई जरूर लेकिन उस ने निश्चय किया कि पुरानी बातों को भूल कर अब विवाह से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी.

दिशा ने घर वालों को शादी की रजामंदी दे दी तो उस के लिए वर की तलाश शुरू हो गई. 4 महीने बाद मानस मिला. वह बहुत बड़ी कंपनी में सीईओ था. पुश्तैनी संपत्ति भी थी. उस के पिता रेलवे से रिटायर्ड थे. मम्मी हाईस्कूल में पढ़ाती थीं.

मानस से शादी होना तय हो गया तो दिशा उस से मिलने लगी. उस ने फैसला किया था कि शादी से पहले किसी से भी संबंध नहीं बनाएगी. लेकिन अपने फैसले पर वह टिकी नहीं रह सकी. हवस की आग में जलने लगी तो मानस से संबंध बना लिया.

2 महीने बाद जब मानस मंगनी से कतराने लगा तो दिशा ने पूछा, ‘‘सच बताओ, मुझ से शादी करना चाहते हो या नहीं?’’

‘‘नहीं.’’ मानस ने कह दिया.

‘‘क्यों?’’ दिशा ने पूछा. वह गुस्से में थी.

कुछ सोचते हुए मानस ने कहा, ‘‘पता चला है कि मुझ से पहले भी तुम्हारे कई मर्दों से संबंध रहे हैं.’’

पहले तो दिशा सकते में आ गई, लेकिन फिर अपने आप को संभाल लिया और कहा, ‘‘लगता है, मेरे किसी दुश्मन ने तुम्हारे कान भरे हैं. मुझ पर विश्वास करो तुम्हारे अलावा मेरे किसी से संबंध नहीं रहे.’’

मानस ने सोचने के लिए दिशा से कुछ दिन का समय मांगा, लेकिन उस ने समय नहीं दिया. उस पर दबाव बनाने के लिए दिशा ने अपने घर वालों को बताया कि मानस ने बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए हैं और अब गलत इलजाम लगा कर शादी से मना कर रहा है.

उस के पिता और भाई गुस्से में मानस के घर गए. उस के मातापिता के सामने ही उसे खूब लताड़ा और दिशा की बेहयाई का सबूत मांगा.

मानस के पास कोई सबूत नहीं था. मजबूर हो कर वह दिशा से मंगनी करने के लिए राजी हो गया. 15 दिन बाद की तारीख रखी गई. आखिर वह दिन आ ही गया. मानस उस से मंगनी करने आ रहा था.

एक सहेली ने दिशा की तंद्रा भंग की तो वह वर्तमान में लौट आई. सहेली कह रही थी, ‘‘देखो, मानस आ गया है.’’

दिशा ने खुशी से दरवाजे की तरफ देखा. मानस अकेला था. उस के घर वाले नहीं आए थे. उस के साथ एक ऐसा शख्स था जिसे देखते ही दिशा के होश उड़ गए. वह शख्स था डा. अमरेंदु.

मानस को अकेला देख दिशा के भाई और पापा भी चौंके. उस का स्वागत करने के बाद भाई ने पूछा, ‘‘तुम्हारे घर वाले नहीं आए?’’

‘‘कोई नहीं आएगा.’’ मानस ने कहा.

‘‘क्यों नहीं आएगा?’’

‘‘क्योंकि मैं दिशा से शादी नहीं करना चाहता. मुझे उस से अकेले में बात करनी है? वह सब कुछ समझ जाएगी. खुद ही मुझ से शादी करने से मना कर देगी.’’

भाई और पिता के साथ दिशा भी सकते में आ गई. उस की भाभी उस के पास ही थी. उस की बोलती भी बंद हो गई थी.

दिशा के पिता ने उसे अकेले में बात करने की इजाजत नहीं दी. कहा, ‘‘जो कहना है, सब के सामने कहो.’’

मजबूर हो कर मानस ने लोगों के सामने ही कहा, ‘‘दिशा दुश्चरित्र लड़की है. अब तक कई लड़कों से संबंध बना चुकी है. 2 बार एबौर्शन भी करा चुकी है. इसीलिए मैं उस से शादी नहीं करना चाहता.’’

भाई को गुस्सा आ गया. उस ने मानस को जोरदार थप्पड़ मारा और कहा, ‘‘मेरी बहन पर इल्जाम लगाने की आज तक कभी किसी ने हिम्मत नहीं की. अगर तुम प्रमाण नहीं दोगे तो जेल की हवा खिला दूंगा.’’

‘‘भाईसाहब, आप गुस्सा मत कीजिए अभी सबूत देता हूं. जब मेरे शुभचिंतक ने बताया कि दिशा का चरित्र ठीक नहीं है, तभी से मैं सच्चाई का पता लगाने में जुट गया था. अंतत: उस का सच जान भी लिया.’’

मानस ने बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘मेरे साथ जो शख्स हैं, उन का नाम डा. अमरेंदु है. दिशा ने उन के क्लिनिक में 2 बार एबौर्शन कराया था. आप उन से पूछताछ कर सकते हैं.’’

डा. अमरेंदु ने मानस की बात की पुष्टि करते हुए कुछ कागजात दिशा के भाई और पिता को दिए. कागजात में दिशा ने एबौर्शन के समय दस्तखत किए थे.

दिशा की पोल खुल गई तो चेहरा निष्प्राण सा हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था  कि अब उसे क्या करना चाहिए. भाई और पापा का सिर शर्म से झुक गया था. फ्रैंड्स भी उसे हिकारत की नजरों से देखने लगी थीं.

दिशा अचानक मानस के पास जा कर बोली, ‘‘तुम ने मेरी जिंदगी तबाह कर दी. तुम्हें छोडूंगी नहीं. तुम्हारे जिंदगी भी बर्बाद कर के रख दूंगी. तुम नहीं जानते मैं क्या चीज हूं.’’

‘‘तुम्हारे साथ जो कुछ भी हो रहा है वह सब तुम्हारे लाइफस्टाइल की वजह से हो रहा है. इस में किसी का कोई दोष नहीं है. जब तक तुम अपने आप को नहीं सुधारोगी, ऐसे ही अपमानित होती रहोगी.’’

पलभर चुप रहने के बाद मानस ने फिर कहा, ‘‘आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो चुकी हो कि तुम से कोई भी शादी करने के लिए तैयार नहीं होगा.’’

वह एक पल रुक कर बोला, ‘‘हां, एक ऐसा शख्स है जो तुम्हें बहुत प्यार करता है. तुम कहोगी तो खुशीखुशी शादी कर लेगा.’’

‘‘कौन?’’ दिशा ने पूछा.

‘‘परिमल…’’ मानस ने कहा, ‘‘गेट पर उस से मिल कर आने के बाद तुम उसे भूल गई थीं, पर वह तुम्हें नहीं भूला है. होटल के गेट पर अब तक इस उम्मीद से खड़ा है कि शायद तुम मुझ से शादी करने का अपना फैसला बदल दो. कहो तो उसे बुला दूं.’’

‘‘तुम उसे कैसे जानते हो?’’ दिशा ने पूछा.

मानस ने बताया कि वह परिमल को कब और कहां मिला था.

कार पार्क कर मानस डा. अमरेंदु के साथ होटल में आ रहा था तो गेट पर परिमल मिल गया था. न जाने वह उसे कैसे जानता था. उस ने पहले अपना परिचय दिया फिर दिशा और अपनी प्रेम कहानी बताई.

उस के बाद कहा, ‘‘तुम्हें दिशा की सच्चाई भविष्य में उस से सावधान रहने के लिए बताई है. अगर उस से सावधान नहीं रहोगे तो विवाह के बाद भी वह तुम्हें धोखा दे सकती है.’’

मानस ने परिमल को अंदर चलने के लिए कहा तो उस ने जाने से मना कर दिया. कहा, ‘‘मैं यहीं पर तुम्हारे लौटने का इंतजार करूंगा. बताना कि तुम से मंगनी कर वह खुश है या नहीं?’’

कुछ सोच कर मानस ने उस से पूछा, ‘‘मान लो दिशा तुम से शादी करने के लिए राजी हो जाए तो करोगे?’’

‘‘जो हो नहीं सकता, उस पर बात करने से क्या फायदा? जानता हूं कि वह कभी भी मुझ से शादी नहीं करेगी.’’ परिमल ने मायूसी से कहा.

मानस ने परिमल की आंखों में देखा तो पाया कि दिशा के प्रति उस की आंखों में प्यार ही प्यार था. उस ने चाह कर भी कुछ नहीं कहा और डा. अमरेंदु के साथ होटल में चला आया.

मानस ने दिशा को सच्चाई से दोचार करा दिया तो उसे भविष्य अंधकारमय लगा. परिमल के सिवाय उसे कोई नजर नहीं आया तो वह उस से बात करने के लिए व्याकुल हो गई.

उस का फोन नंबर उस के पास था ही, झट से फोन लगा दिया. परिमल ने फोन उठाया तो उस ने कहा, ‘‘तुम से कुछ बात करना चाहती हूं. प्लीज होटल में आ जाओ.’’

कुछ देर बाद ही परिमल आ गया और दिशा ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो, परिमल. मैं तुम्हारा प्यार समझ नहीं पाई थी, लेकिन अब समझ गई हूं. मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. अभी मंगनी कर लो, बाद में जब कहोगे शादी कर लूंगी.’’

कुछ सोचने के बाद परिमल ने कहा, ‘‘यह सच है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. पर तुम आज भी मुझ से बेवफाई कर रही हो. सच नहीं बता रही हो. सच यह नहीं है कि मेरा प्यार तुम समझ गई हो, इसलिए मुझ से शादी करना चाहती हो. सच यह है कि आज की तारीख में तुम इतना बदनाम हो गई हो कि तुम से कोई भी शादी नहीं करना चाहता. मानस ने भी शादी से मना कर दिया है. इसीलिए अब तुम मुझ से शादी कर अपनी इज्जत बचाना चाहती हो.

‘‘तुम से शादी करूंगा तो प्यार की नहीं, समझौते की शादी होगी, जो अधिक दिनों तक नहीं टिकेगी. अत: मुझे माफ कर दो और किसी और को बलि का बकरा बना लो. मैं भी तुम्हें सदैव के लिए भूल कर किसी और से शादी कर लूंगा.’’

परिमल रुका नहीं. दिशा की पकड़ से हाथ छुड़ा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. वह देखती रह गई. किस अधिकार से रोकती?

कुछ देर बाद मानस और डा. अमरेंदु भी चले गए. दिशा के घर वाले भी चले गए. सहेलियां चली गईं. महफिल खाली हो गई, पर दिशा डबडबाई आंखों से बुत बनी रही.

Hindi Kahani : बाबा, बाजार और बेचारा करतार

Hindi Kahani : ज्यों ही मेरे सिर में अचानक सफेद बाल दिखा, धर्मभीरुओं ने दांव मिलते ही उपदेश देते कहा, ‘‘हे माया के मोह में पड़ अपने परलोक को भूले मेवालाल, खतरे की घंटी बजनी शुरू हो गई है. संभल जा. सिर के बालों में एकाएक सफेद बाल उग आने का मतलब होता है कि…सो, अब मोहमाया की गली के फेरे लगाने छोड़, ईश्वर से नाता जोड़. ऐसा न हो कि यहां का खाया भगवान ऐसे निकाले कि सात जन्म तक खाना ही भूल जाए. चल, अब शाकाहारी हो जा.’’

मैं ने उन्हें समझाते कहा, ‘‘हे भगवान से डरने वालो, अभी मेरे खाने के दिन हैं. देखो, सिर तो सिर, सिर से पांव तक हुए सफेद बाल वाले कितने बैठे हैं जो मोहमाया में अभी भी कैसे फिट हैं? मैं तो जिस कुरसी पर बैठा हूं उस पर सोएसोए भी कमाने के दिन हैं. जनता की जेब तो मैं तब तक काटना बंद नहीं करने वाला जब तक मेरे गले में माला पहना मुझे मेरे औफिस वाले घर नहीं धकिया देते.’’

अचानक, पता नहीं कैसे मेरा हृदय परिवर्तन हो गया और मैं साहब के चरणों को छोड़, भगवान के चरणों की खोज करने लगा. और, मैं सब को गुमराह करने वाला खुद ही गुमराह हो चला.

हमारे दंभी जीवन में एक दौर ऐसा भी आता है जब हम औरों को गुमराह करतेकरते अपने दंभ के परिणामस्वरूप खुद को ही गुमराह करने लग जाते हैं. और हमें पता ही नहीं चलता. दिमाग में पता नहीं कहां से सड़ा विचार बदबू मार गया और मुझे अनदेखे परलोक की चिंता होने लगी. मेरे मायाग्रस्त दिमाग में पता नहीं बिन खादपानी ईश्वर के प्रति आस्था का पौधा कैसे पनपने लगा. वैसे, परलोक की चिंता में धर्म के धंधेबाज रहते हैं और तब ही जानलेवा बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं.

जवानी में कोई मौत के बारे में सोचे तो उसे गधे से अधिक कुछ और मत मानिए. जवानी के दिन तो मौज मनाने के दिन होते हैं, मर्यादाओं को अंगूठा दिखाने के दिन होते हैं, भगवान को गच्चा दे अपने को ठगने और औरों को ठगाने के दिन होते हैं.

धर्म की मार्केटिंग इतनी जबरदस्त है कि उस में गच्चा खा कर मैं औफिस के खानपान को छोड़ औफिसटाइम के बीचबीच में भगवान को ढूंढ़ने निकल पड़ता, यह सोच कर कि अगर उस से जरा संवाद हो जाए तो बंदा भवसागर पार हो जाए. भगवान के चक्कर में प्रेमिका के चक्कर से भी अधिक राख छान मारी पर वे निकले ऐसे जैसे हाईकमान किसी रुष्ट नेता से नहीं मिलना चाहता तो नहीं मिलना चाहता. जब भगवान कहीं नहीं मिले तो मैं उदास हो उठा. तब महल्ले के एक नामीगिरामी, पहुंचे हुए विषय वासनाओं से पूर्ण भगवाई बिचौलिए ने बातोंबातों में समझाया, ‘‘हे प्रभु दीवाने, भगवान सीधे किसी से नहीं मिलते. मध्यस्थ की मध्यस्थता बहुत जरूरी है.’’

‘‘मीडिएटर बोले तो…’’

‘‘बाबाजी.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘भगवान को पाने का हर रास्ता आज भी वैसे ही बाबाओं की गली से हो कर जाता है जैसे आत्मा के स्वर्ग का रास्ता जीव के मरने के बाद पंडों के पिछवाड़े से हो कर जाता है.’’

‘‘तो?’’

‘‘तो क्या, जो भगवान से साक्षात्कार करना चाहते हो तो किसी पहुंचे हुए बाबा से तुरंत संपर्क करो. तुम चाहो, तो मेरी नजर में भगवान से साक्षात्कार करवाने वाला एक बाबा है.’’

‘‘उस का नंबर है आप के पास क्या?’’ मैं ने उन के चरण पकड़े तो वे अदब से बोले, ‘‘यह लो, नोट करो.’’ और मैं उन से बाबा का नंबर ले गदगद हुआ.

बड़ी कोशिश के बाद बाबाजी से संपर्क हुआ, तो वे डकारते बोले, ‘‘क्या बात है वत्स?’’

‘‘सर, आप के माध्यम से भगवान के दर्शन करना चाहता हूं.’’

‘‘भगवान बोले तो?’’

‘‘गौड, अल्लाह, ईश्वर के दर्शन करवा देंगे?’’

‘‘पहले यह लो भगवान का बैंक अकाउंट नंबर. और इस में 5 हजार एक सौ रुपए जमा करवा दो.’’

‘‘भगवान का अकाउंट नंबर? ब्लैक मनी के आने के चक्कर में भगवान ने भी अपना बैंक अकाउंट खुलवा लिया?’’ मैं ने अपनी सोच जाहिर की.

‘‘हां, धन की जरूरत किसे नहीं, भक्त? धन है तो भजन है. धन है तो मन है. धन समस्त सृष्टि का आधार है. धन के बिना जीव निराधार है. धन के बिना भगवान बिन चमत्कार है. धन के बिना हर घरगृहस्थी ही नहीं, सरकार से ले कर बाबा तक बीमार है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘धन हर सोच का मूल है. धन है तो आग भी कूल है. धन है तो शूल भी फूल है.’’

‘‘तो?’’

‘‘अभी किस का बना माल खाते हो?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘स्वदेशी या विदेशी?’’

‘‘विदेशी.’’

‘‘स्वदेशी क्यों नहीं? क्या भारतीय नहीं हो?’’

‘‘विशुद्ध भारतीय ही हूं. पर स्वदेशी का रिस्क लेने से डरता हूं.’’

‘‘पाप, घोर पाप, विदेशी खानेपहनने वाले को हमारे भगवान के घर में कोई जगह नहीं. जाओ, पहले धर्म बदल कर आओ, फिर हम से फोन पर जबान लड़ाओ.’’

‘‘फोन लगाया, बाबा, ऐसा न कहो? हूं तो भारतीय मूल का ही मैं, पर भीगी बिल्ली सा कुछ बना.’’

‘‘तो, जो भगवान पाना चाहते हो, तो पहले हमारी कंपनी के स्वदेशी प्रोडक्ट अपनाओ.’’

‘‘भगवान से मिलवाने के धंधे में कमाई कम हो गई क्या, जो अब आप माल भी बेचने लगे?’’

‘‘हम माल नहीं बेचते. भक्तों का कल्याण बेचते हैं. अपने माल से उन में शुद्ध विचार भरते हैं. ऐसा कर उन्हें करतार यानी भगवान के करीब करते हैं. असल में काफी बोझ के बाद हम ने महसूस किया कि भगवान को पाने का सरल रास्ता हमारे बने प्रोडक्टों से हो कर ही गुजरता है.’’

‘‘मतलब? जो आप के प्रोडक्ट खाएगा, करतार को केवल वही पाएगा?’’

‘‘हां, शतप्रतिशत. हमारे बनाए प्रसादरूपी और्गेनिक प्रोडक्टों के सेवन से दूसरे बाबाओं के खाए प्रोडक्टों की अपेक्षा जल्दी तुम अपने भगवान से साक्षात्कार कर सकते हो, हरि ओम, हरि ओम.’’

‘‘मतलब, आज तभी सब बाबा मठ छोड़, बाजार में डटे हैं?’’

‘‘डटना पड़ता है. यह माया महाठगिनी है. इस के मोहपाश से तो भगवान भी नहीं बच पाए और हम तो…और केवल एक प्रोडक्ट से आज किसी की दुकान चली है भला? हर कस्टमर की मांग के हिसाब से हरेक का भगवान लीगली या इल्लीगली रखना ही पड़ता है. इसलिए, पहले मेरे प्रोडक्ट इस्तेमाल करो, फिर करतार से मिलने की बात करो.’’

‘‘माफ करना, बाबा, पहले जो बाबा भगवान को कब्जाने के लिए जाने जाते थे, आज क्या वे बाजार को हथियाने की फिराक में नहीं दिखते? बाबा, बाजार और करतार का आपस में यह क्या संबंध है? जबकि बाजार बाजार है और करतार करतार.’’

‘‘बाजार और करतार का आपस में वही संबंध है जो जीव का परमात्मा से है.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘हमारे प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने से तन का मैल साफ हो जाता है, पापी. जिसजिस ने हमारे बने प्रोडक्टों का इस्तेमाल किया वह तन से भगवान के शर्तिया करीब हुआ.’’

‘‘मन से क्यों नहीं?’’

‘‘मन किसी के पास हो, तभी तो वह मन से करतार पाए. अब तन है तो तन से ही काम चलाना पड़ेगा न?’’

‘‘मतलब, आप के प्रोडक्टों के इस्तेमाल के बिना मैं तन से भगवान नहीं पा सकता?’’

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. साहस हो तो आजमा कर देख लो. परम सत्य है, असल में जब पैसे वाला जीव भौतिक सुखसाधनों से ऊब जाता है, तब ही वह भगवान के चरणों में जा कर गिड़गिड़ाता है. और रुपैयाछाप भक्त उसे त्यागी कह एक  बार फिर धोखा खा जाते हैं. और बाजार में हम जैसे कुछ और चादर बिछा डालते हैं.’’

‘‘हां, ताकि कम से कम गृहस्थियों का पैसा माया से युक्त बाबाओं के पास रहे और…वे समानांतर व्यवस्था चलाएं, सरकार तक को अपने इशारे पर नचाएं. इसीलिए आज हर बाबा बाजार में कुछ न कुछ पेश कर सुधबुध खोए तुम जैसे नास्तिकों के उद्धार के लिए साबुन से ले कर सीडी तक हाथ में लहराता खड़ा है.’’

‘‘हर किस्म के करतार को पाने का रास्ता बाजार से हो कर ही गुजरता है, पुत्र. इसलिए, पहले मेरी दुकान में आ और उस का द्वार पार कर अपना मनवांछित आराध्य पा. यह ले रिंकलफ्री क्रीम. दिमाग में लगा और दिमाग में मोह से पड़ी सारी झुर्रियां हटा. तभी तेरा आगे का रास्ता साफ होगा. ले मेरी पिंपलफ्री क्रीम. चेहरे पर लगा और करतार को अपना सनशाइन चेहरा दिखा, उस का फेवरिट हो जा.’’

वे यह सब कह ही रहे थे कि तभी मुझे लगा, कहीं और से मेरे जैसा उन का भक्त उन से फोन पर संपर्क करना चाह रहा था. सो, मेरा उन का संपर्क टूटा. करतार के नाम पर एक बंदा फिर ठगने से छूटा कि नहीं, यह तो करतार ही जाने.

Hindi Satire : मकान एक लड्डू है

Hindi Satire : रोटी, कपड़ा और मकान इनसान की बुनियादी जरूरतें हैं. मेरे पास कपड़े थे और रोटियां भी, लेकिन मकान किराए का था. मेरे पिताजी का कहना था कि इस बुनियादी जरूरत को जल्दी से जल्दी पूरा कर लेना चाहिए, क्योंकि दूसरे के मकान में थूकने का भी डर होता है और अपने मकान में मनमानी करने की पूरी छूट होती है, इसलिए इस मनमानी को पूरा करने के लिए मेरे मन में उतावलापन मचा हुआ था.

लेकिन मकान का इंतजाम करना बड़ी टेढ़ी खीर होती है. मैं ने नौकरी करते हुए रिश्वतखोरी को बढ़ावा दिया, ताकि जैसेतैसे मैं अपना एक गरीबखाना बना सकूं.

मेरे हर दोस्त ने अपना यह शौक पलक झपकते ही पूरा कर लिया था. कई तो ऐसे थे, जिन के पास हर आवास योजना में एक मकान था. वे हमेशा मकान जैसी अचल जायदाद बनाने में लगे रहे और मैं हमेशा चंचला लक्ष्मी के पीछे पड़ा रहा.

एक दिन मेरे साथ अनहोनी हो गई. मैं ने एक हाउसिंग सोसाइटी में मकान लेने का फार्म भरा हुआ था. इत्तिफाक कहिए कि मुझे प्लौट अलौट हो गया.

यह सुनते ही मेरा शरीर रोमांचित हो उठा. पत्नी समेत बच्चे बल्लियां उछल पड़े. मदहोशी का एक ऐसा आलम था कि उसे मैं यहां बयान नहीं कर सकता.

मुझे रातदिन मकान के रंगीन सपने आने लगे. खाली जमीन पर सपनों में कोठी बनने लगी. उस को बनाने को ले कर घरेलू बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया. नक्शे बनने लगे. सुझाव आने लगे.

पत्नी का कहना था कि अमुक कमरे में पंखा लगेगा, तो मेरा सुझाव था कि कूलर लगवाया जाएगा. बच्चे पढ़ने के बजाय चुपकेचुपके कोर्स की कौपियों में मकान के नक्शे बनाने लगे. बाहर लौनपेड़पौधे और ऊपर खुली बालकनी पर जोर दिया जाने लगा.

मैं इस सारी मुहिम में शामिल तो होता था, लेकिन हमेशा एक हताशा मुझे घेरे रहती थी कि मकान की नींव कैसे खुद पाएगी.

मेरे एक दोस्त हैं महेशजी. 2-3 महीने बाद एक दिन जब वे अचानक मिले, तो उन का हुलिया व चेहरे का भूगोल देख कर मेरे होश फाख्ता हो गए.

मैं ने पूछा, ‘‘क्यों, क्या मकान बनवा रहे हो?’’

वे खुश हो कर बोले, ‘‘आप को कैसे पता चला?’’

मैं ने कहा, ‘‘वह तो आप की शक्ल देख कर ही पता चल गया है. यह आप की बढ़ी हुई दाढ़ी, पिचके हुए गाल, धंसी हुई आंखें, बिना इस्तिरी किए कपड़े… कौन कह सकता है कि आप मकान नहीं बनवा रहे हैं?’’

वे बोले, ‘‘बस, पूछिए मत. भूल कर भी इस करमजले मकान का नाम मत लेना भाई. मुझे पता होता कि यह ऐसे गुल खिलाएगा, तो मैं नींव में सब से पहले खुद कूद जाता.’’

‘‘क्यों, ऐसा क्या हुआ?’’

‘‘हुआ यह कि जनाब, इस देश में जिन की पत्नियां कमाएं और जो बीड़ी पीता हो, उस का तो ऊपर वाला ही मालिक है. बस, मकान में जो कारीगर आते हैं, वे हर 15 मिनट के बाद बीड़ी पीते हैं. भला बताइए कि वे आप की जान नहीं लेंगे, तो और क्या करेंगे?’’

‘‘लेकिन, मैं क्या करूं?’’ मैं ने पूछा.

‘‘करना क्या है, इमली के पत्ते पर दंड पेलिए. मकान तो साक्षात काल है, जो मुंह खोले खड़ा है. जो जाता है, वही उस में समा जाता है,’’ महेशजी बोले.

मैं ने कहा, ‘‘जरा, सोचसमझ कर बोलिए. मकान के मामले में कुछ तो अच्छा बोलिए.’’

उन्होंने कहा, ‘‘तुम मेरे हालात देखने के बाद अगर रिस्क लेना चाहते हो, तो शौक से ले लो. मकान वही बना सकता है, जिस का दो नंबर का धंधा हो.’’

‘‘जब एक नंबर ही नहीं है, तो दो नंबर का सवाल ही कहां से आता है?’’

‘‘फिर तो हरि कीर्तन करो. मकान एक ऐसा लड्डू है, जिसे खाने वाला और नहीं खाने वाला दोनों पछताते हैं. मैं ने बनाया है, जान गले में आ गई. लोन के तमाम फौर्म भर कर पैसा उगाह लिया, लेकिन मकान अभी तक अधूरा है. मैं समझता हूं कि अगर मैं ने मकान पूरा बनाया, तो या तो मकान रहेगा या फिर मैं,’’ वे बोले.

यह सुन कर मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए. मैं बस इतना ही कह पाया, ‘‘अगर ऐसी बात है, तो मैं मकान न बनाने की शपथ खाता हूं. जिस मकान को बनाने से आदमी को जिंदा ही स्वर्ग नसीब होता है, तो फिर मैं किराए के मकान में ही रह लूंगा.’’

वे हंसते हुए चले गए. उस दिन के बाद से मैं रोज नक्शे बनाता हूं, मकान के स्टाइल पर विचार करता हूं, लेकिन जमीन की बाउंड्रीवाल ही नहीं बन पाती, तो मकान क्या बनेगा.

Best Hindi Satire : सीएम साहब से सामना

Best Hindi Satire : पत्रकार कनछेदी लाल मुख्यमंत्री से रूबरू है . कनछेदी लाल की आज वर्षों की साध पूरी हुई थी. राज्य का धुरंधर मुख्यमंत्री साक्षात्कार के लिए आमने-सामने है. कनछेदी लाल को सुखद अनुभव हो रहा है आत्मा को परम शांति या कहें परमगति मिल गई है.श्रीमान मुख्यमंत्री से उसे बातचीत करनी है, बड़े सौभाग्य से उसे यह मौका मिला है.

कनछेदी लाल बड़े धांसू अखबार नवीस है .पैदा होते ही उन्होंने जन्म दात्री मां से प्रश्न किया- “मां ! तुम्हें आज मुझे पैदा करके कैसी अनुभूति हो रही है ?”फिर पिताश्री की ओर सवाल उछाला, -“मेरे भविष्य के लिए क्या सोच रखा है.”

अब देखिए ! कनछेदी लाल और मुख्यमंत्री आमने सामने बैठे हैं जैसे दो शांत शावक ! एक दूसरे को घूर रहे हों या कहें जैसे दो विशालकाय सर्प या  बब्बर सिंह ! एक दूसरे को घात प्रतिघात के लिए आंखों से आंखें मिलाकर खड़े हो…

कनछेदी लाल के मुंह से बोल नहीं फूट रहे हैं. वह कनछेदीलाल जो लोगों के बात बात में कान काट खाता था इस विशिष्ट मौके पर मौन है . मुंह से बोल नहीं फूट रहे .

दूसरी तरफ श्रीमान मुख्यमंत्री आत्मविश्वास से लबरेज कनछेदी लाल के सामने बैठे हैं .जाने कितने पत्रकार, संपादकों को उन्होंने पानी पिलाया है, यह अब तो उन्हें भी स्मरण नहीं .मगर कनछेदी लाल के बारे में उन्होंने जो रिपोर्ट देखी है वह स्वयं चकित है ऐसा भी होता है अरे यह कनछेदी लाल तो जन्म लेते ही अपने मां बाप से भिड़ गया था. बड़ा खतरनाक खबरैलू है.

मुख्यमंत्री मोहक मुस्कान बिखेरते हुए बोले -“कहो कनछेदी लाल, क्या जानना चाहते हो ?
मानौ पत्रकारिता ध्वस्त होकर चरमरा कर गिर पड़ी हो. पत्रकारिता के माथे पर किसी ने मुद्गर चला दिया हो या पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई हो. अभी तक का इतिहास रहा है कनछेदी लाल कभी भी प्रश्न का ब्रह्मास्त्र छोड़ने में एक सेकंड भी देर नहीं करते, मगर आज तो श्रीमान मुख्यमंत्री ने बाजी मार ली. कुर्सी को नमन है सत्ता को प्रणाम है.

कनछेदी लाल को आत्मा ने मानौ धिक्कारा -“रे कनछेदी! तू इतना असहाय कब से हो गया. एक मुख्यमंत्री के सामने हथियार डाल दिए थू है तुझ पर .तू तो बड़ा पत्रकार बनता था कहां गया तेरा वह जज्बा जिसमें बड़े धुरंधर धूल में ओटते दिखा करते थे। अरे! यह मुख्यमंत्री, यह सत्ता तो आती जाती रहेगी मगर तुझे यही रहना है जवाब देना होगा.”

अब जब आत्मा जागृत हुई तो कनछेदी लाल ने पत्रकारिता का ब्रह्मास्त्र निकाला-” श्रीमान ! क्या मुख्यमंत्री का काम सिर्फ आईएएस, आईपीएस के तबादले करना ही है ? और कुछ भी नहीं… सप्ताह 15 दिवस में आप यही करते है.”

कनछेदी लाल के पहले प्रश्न से ही श्रीमान मुख्यमंत्री भीतर तक हिल गए.सोचने लगे यह कनछेदीलाल तो हृदय की सच्चाई बयां कर रहा है सच है, मैं और करता ही क्या हूं । इसने तो मेरी नब्ज पर हाथ रखा है मगर मैं भी कोई कम बड़ा खिलाड़ी नहीं, देखना, कैसा प्रतिउत्तर देता हूं .यह सोचते-सोचते श्रीमान मुख्यमंत्री के चेहरे पर मुस्कान तिर आई, बोले, “कनछेदी लाल ! हमारा पहला और आखरी काम प्रशासन के घोड़े पर लगाम रखना है यह कस कर रखने पर ही प्रदेश में अमन चैन कायम रहता है अन्यथा प्रदेश के हालात भयावह हो सकते हैं.”

यह कह कर श्रीमान मुख्यमंत्री सोचने लगे मैंने कैसा उल्लू बनाया इस कनछेदी लाल को. और जब प्रदेश की जनता यह जवाब सुनेगी तो ताली बजायेगी. निरी मूर्ख है यह जनता जनार्दन. हर एक मुख्यमंत्री तो यही करता है मगर क्या स्थिति-परिस्थिति बदलती है, नहीं न ! यह सोच असहाय श्रीमान मुख्यमंत्री ने कंधे झटके और कनछेदी लाल की और असहाय भाव से दृष्टिपात किया .

कनछेदी लाल मन ही मन भांप गए थे, श्रीमान मुख्यमंत्री की बत्ती गुल हो गई है. अपने कंधे पर शाबाशी की काल्पनिक धौल जमाते कनछेदी लाल ने दूसरा प्रश्न दागा- “श्रीमान! आपने शपथ लेते ही प्रदेश की जनता को वचन दिया था की कानून-व्यवस्था कायम रहेगी. मगर वह तो द्रोपदी के चीर की भांती रोज, नित्य प्रति हरण हो रही है.”

श्रीमान मुख्यमंत्री का मुंह सुख गया.ऐसे यक्ष प्रश्न की तो उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी. वह इधर-उधर ताकने लगे यह प्रश्न तो मेरे मन मंदिर में सदैव घंटी बजाता है. यह इस कनछेदी लाल को कैसे खबर हो गई, मगर चेहरे पर मुस्कान ला कर श्रीमान मुख्यमंत्री ने कहा, “हां… यह सच है. मैं आज भी अपने वचन पर कायम हूं मगर यह तो सभी प्रदेशों के हालात हैं. कहां, कानून व्यवस्था के साथ नग्न नाच नहीं हो रहा. दरअसर इसके लिए जनता को कानून का साथ देना होगा .” मुख्यमंत्री यह कह कर इधर-उधर तकने लगे, तो कनछेदी लाल समझ गए चीफ मिनिस्टर अब दूसरे प्रश्न की अपेक्षा कर रहे हैं.
कनछेदी लाल ने अपनी तरकश से तीसरा प्रश्न निकाला और कहा-” श्रीमान मुख्यमंत्री जी ! मैं किसानों की समस्या पर प्रश्न नहीं करता, मैं बेरोजगारों की समस्या और भ्रष्टाचार की बात नहीं करता, मैं आपसे आप की पार्टी के कार्यकर्ताओं के संबंध में यह जानना चाहता हूं कि पार्टी के सैकड़ों हजारों कार्यकर्ता, जिनके पास कोई काम धंधा नहीं है,वह हवा पी कर जिंदा हैं क्या, वह फलते-फूलते कैसे हैं, यह रहस्य है, क्या इसका जवाब आप देंगे.”

श्रीमान मुख्यमंत्री ने मानौ राहत की सांस ली, यह प्रश्न उन्हें बड़ी राहत दे रहा था. उन्होंने सोच लिया कनछेदी लाल को वीआईपी क्षेत्र में एक भूखंड गिफ्ट कर देंगे यह प्रश्न करके उन्होंने पत्रकारिता धर्म का गला दबाने का काम ईमानदारी से किया है. इतने इनाम के हकदार तो अब यह हो जाते हैं .

श्रीमान मुख्यमंत्री ने प्रसन्न भाव से प्रश्न का जवाब दिया फिर कहा चलो ! फिर कभी मिलते हैं… तुम्हारे लिए एक छोटी सी गिफ्ट है जो लेते जाना. उन्होंने पीए की ओर इशारा कर दिया.

कनछेदी लाल मन ही मन बहुत प्रसन्न हुए. आज पत्रकारिता धर्म का जैसा निर्वाहन किया वह ऐतिहासिक था. ऐसी सफलता तो उन्हें जीवन भर मेहनत करके भी नहीं मिलती जो चार प्रश्न दाग कर मिल गई . मानौ मुख्यमंत्री का साक्षात्कार नहीं था, यह गंगा स्नान था.कनछेदी लाल के कान लाल सुर्ख हो गए थे. वे खुशी-खुशी हाथों में कलम की जगह खंजर लेकर घर की ओर लौटने लगे.

Hindi Story : जन्मपत्री

Hindi Story : बूआ ने भरसक प्रयास किया कि रश्मि की शादी ऐसे लड़के से हो जिस की जन्मपत्री रश्मि की जन्मपत्री से मेल खाती हो और उन के 32 गुण मिलते हों. बूआ अपने प्रयास में जुटी रहीं पर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि बूआ के सारे मनसूबों पर पानी फिर गया. पढि़ए, डा. प्रणव भारती की कहानी.

‘‘ये  लो और क्या चाहिए…पूरे

32 गुण मिल गए हैं,’’

गंगा बूआ ने बड़े गर्व से डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हुए त्रिवेदी परिवार के सामने रश्मि की जन्मपत्री रख दी.

‘‘आप हांफ क्यों रही हैं? बैठिए तो सही…’’ चंद्रकांत त्रिवेदी ने खाली कुरसी की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘‘चंदर, तू तो बस बात ही मत कर. जाने कौन सा राजकुमार ढूंढ़ कर लाएगा बेटी के लिए. कितने रिश्ते ले कर आई हूं…एक भी पसंद नहीं आता. अरे, नाक पर मक्खी ही नहीं बैठने देते तुम लोग… बेटी को बुड्ढी करोगे क्या घर में बिठा कर…?’’ गोपू के हाथ से पानी का गिलास ले कर बूआ गटगट गटक गईं.

चंद्रकांत, रश्मि और उस का भाई विक्की यानी विकास मजे से कुरकुरे टोस्ट कुतरते रहे. मुसकराहट उन के चेहरों पर पसरी रही पर चंद्रकांत त्रिवेदी की पत्नी स्मिता की आंखें गीली हो आईं. आखिर 27 वर्ष की हो गई है उन की बेटी. पीएच.डी. कर चुकी है. डिगरी कालेज में लेक्चरर हो गई है. अब क्या…घर पर ही बैठी रहेगी?

चंद्रकांत ने तो जाने कितने लड़के बताए अपनी पत्नी को पर स्मिता जिद पर अड़ी ही रहीं कि जब तक लड़के के पूरे गुण नहीं मिलेंगे तब तक रश्मि के रिश्ते का सवाल ही नहीं उठता. जो कोई लड़का मिलता स्मिता को कोई न कोई कमी उस में दिखाई दे जाती. चंद्रकांत परेशान हो गए थे. वे शहर के जानेमाने उद्योगपति थे. स्टील की 4 फैक्टरियों के मालिक थे. उन की बेटी के लिए कितने ही रिश्ते लाइन में खड़े रहते पर पत्नी थीं कि हर रिश्ते में कोई न कोई अड़ंगा लगा देतीं और उन का साथ देतीं गंगा बूआ.

गंगा बूआ 80 साल से ऊपर की हो गई होंगी. चंद्रकांत ने तो अपने बचपन से उन्हें यहीं देखा था. उन के पिता शशिकांत त्रिवेदी की छोटी बहन हैं गंगा बूआ. बचपन में ही बूआ का ब्याह हो गया था. ब्याह हुआ और 15 वर्ष की उम्र में ही वह विधवा हो गई थीं. मातापिता तो पहले ही चल बसे थे, अत: अपने इकलौते भाई के पास ही वे अपना जीवन व्यतीत कर रही थीं.

घर में कोई कमी तो थी नहीं. अंगरेजों के जमाने से 2-3 गाडि़यां, महल सी कोठी, नौकरचाकर सबकुछ उन के पिता के पास था. फिर शशिकांत इतने प्रबुद्ध निकले कि जयपुर शहर के पहले आई.ए.एस. अफसर बने. उन के ही पुत्र चंद्रकांत हैं. चंद्रकांत की पत्नी स्मिता वैसे तो शिक्षित है, एम.ए. पास हैं पर न जाने उन के और गंगा बूआ के बीच क्या खिचड़ी पकती रहती है कि स्मिता की हंसी ही गायब हो गई है. उन्हें हर पल अपनी बेटी की ही चिंता सताती रहती है. चंद्रकांत ने अपनी बूआ के साथ अपनी पत्नी को हमेशा खुसरपुसर करते ही पाया है.

गंगा बूआ के मन में यह विश्वास पत्थर की लकीर सा बन गया है कि उन का वैधव्य उन की जन्मपत्री न मिलाने के कारण ही हुआ है. उन के पिता व भाई आर्यसमाजी विचारों के थे और कुंडली आदि मिलाने में उन का कोई विश्वास नहीं था. शशिकांत के बहुत करीबी दोस्त सेठ रतनलाल शर्मा ने अपने बेटे संयोग के लिए गंगा बूआ को मांग लिया था और फिर बिना किसी सामाजिक दिखावे के उन का विवाह संयोग से कर दिया गया था. शर्माजी का विचार था कि वे अपनी पुत्रवधू को बिटिया से भी अधिक स्नेह व ममता से सींचेंगे और उस को अच्छी से अच्छी शिक्षा देंगे, लेकिन विवाह के 8 दिन भी नहीं हुए थे कि कोठी के बड़े से बगीचे में नवविवाहित संयोग सांप के काटने से मर गया. जुड़वां भाई सुयोग चीखें मारमार कर अपने मरे भाई को झंझोड़ रहा था. पल भर में ही पूरा वातावरण भय और दुख का पर्याय बन गया था.

गंगोत्तरी ठीक से विवाह का मतलब भी कहां समझ पाई थी तबतक कि वैधव्य की कालिमा ने उसे निगल लिया. कुछ दिन तक वह ससुराल में रही. सेठ रतनलाल के परिवार के लोगों ने गंगोत्तरी का ध्यान रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी परंतु वहां वह बहुत भयभीत हो गई थी. मस्तिष्क पर इस दुर्घटना का इतना भयानक प्रभाव पड़ा था कि रात को सोतेसोते भी वह बहकीबहकी बातें करने लगी. थक कर इस शर्त पर उसे उस के मातापिता के पास भेज दिया गया कि वह उन की अमानत के रूप में वहां रहेगी.

गंगोत्तरी की पढ़ाई फिर शुरू करवा दी गई. कुछ सालों बाद शर्माजी ने संयोग के जुड़वां भाई सुयोग से उस का विवाह करने का प्रस्ताव रखा. कुछ समय तक सोचनेसमझने के बाद त्रिवेदी परिवार ने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया परंतु गंगोत्तरी ने जो ‘न’ की हठ पकड़ी तो छोड़ने का नाम ही नहीं लिया.

बहुत समझाया गया उसे पर तबतक वह काफी समझदार हो चुकी थी और उसे विवाह व वैधव्य का अर्थ समझ में आने लगा था. उस का कहना था कि एक बार उस के साथ जो हुआ वही उस की नियति है, बस…अब वह पढ़ेगी और शिक्षिका बन कर जीवनयापन करेगी. फिर किसी ने उस से अधिक जिद नहीं की. इस प्रकार मातापिता की मृत्यु के बाद भी गंगोत्तरी इसी घर में रह गई. चंद्रकांत से ले कर उन के बच्चे, घर के नौकरचाकर, यहां तक कि पड़ोसी भी उन्हें प्यार से गंगा बूआ कह कर पुकारने लगे थे.

यद्यपि गंगा बूआ अब काफी बूढ़ी होे गई हैं, फिर भी घर की हर समस्या के साथ वे जुड़ी रहती हैं. उन्होंने स्मिता को अपना उदाहरण दे कर बड़े विस्तार से समझा दिया था कि घर की इकलौती लाड़ली रश्मि का विवाह बिना जन्मपत्री मिलाए न करे. बस, स्मिता के दिलोदिमाग पर गंगा बूआ की बात इतनी गहरी समा गई कि जब भी उन के पति किसी रिश्ते की बात करते वे गंगा बूआ की ओट में हो जातीं. उन्होंने ही गंगा बूआ को हरी झंडी दिखा रखी थी कि वे स्वयं जा कर पीढि़यों से चले आ रहे पंडितों के उस परिवार के श्रेष्ठ पंडित से जन्मपत्रियों का मिलान करवाएं जिसे बूआ शहर का श्रेष्ठ पंडित समझती हैं. वैसे स्मिता का विवाह भी तो बिना जन्मपत्री मिलाए हुआ था और वह बहुत सुखी थीं पर रश्मि के मामले में गंगा बूआ ने न जाने उन्हें क्या घुट्टी पिला दी थी कि बस…

आज गंगा बूआ सुबह ही नहाधो कर ड्राइवर को साथ ले कर निकल गई थीं. बूआ बेशक विधवा थीं, पर सदा ठसक से रहती थीं. ड्राइवर के बिना घर से बाहर न निकलतीं. उन के पहनावे इतने लकदक होते जो उन के व्यक्तित्व में चार चांद लगा देते थे. कहीं भी बिना जन्मपत्री मिलाए विवाह की बात होती तो वे अपना मंतव्य प्रकट किए बिना न रहतीं.

घर के सदस्य बेशक गंगा बूआ की इस बात से थोड़ा नाराज रहते पर कोई भी उन का अपमान नहीं कर सकता था. सब मन ही मन हंसते, बुदबुदाते रहते, ‘आज फिर गंगा बूआ रश्मि की जन्मपत्री किसी से मिलवा कर लाई होंगी…’ सब ने मन ही मन सोचा.

गोपू ने बूआ के सामने नाश्ते की प्लेट रख दी थी और टोस्टर में से टोस्ट निकाल कर मक्खन लगा रहा था, तभी बूआ बोलीं, ‘‘अरे, गोपू, मैं किस के दांतों से खाऊंगी ये कड़क टोस्ट, ला, मुझे बिना सिंकी ब्रेड और बटरबाउल उठा दे और हां, मेरा दलिया कहां है?’’

गोपू ने बूआ के सामने उन का नाश्ता ला कर रख दिया. आज बूआ कुछ अलग ही मूड में थीं.

‘‘क्यों स्मिता, तुम क्यों चुप हो और तुम्हारा चेहरा इतना फीका क्यों पड़ गया है?’’ बूआ ने एक चम्मच दलिया मुंह में रखते हुए स्मिता की ओर रुख किया.

स्मिता कुछ बोली तो नहीं…एक नजर बूआ पर डाल कर मानो उन से आंखों ही आंखों में कुछ कह डाला.

‘‘देखो चंदर, मैं ने इस लड़के के परिवार को शाम की चाय पर बुला लिया है…’’ उन्होंने अपने बैग से लड़के का फोटो निकाल कर चंद्रकांत की ओर बढ़ाया.

‘‘पर बूआ आप पहले रश्मि से तो पूछ लीजिए कि वह शाम को घर पर रहेगी भी या नहीं,’’ चंद्रकांत ने धीरे से बूआजी के सामने यह बात रख दी, ‘‘और हां, यह भी बूआजी कि उसे यह लड़का पसंद भी है या नहीं,’’

‘‘देखो चंदर, आज 3 साल से लड़के की तलाश हो रही है पर इस के लिए कोई अच्छे गुणों वाला लड़का ही नहीं मिलता. और ये बात तो तय है कि बिना कुंडली मिलाए न तो मैं राजी होऊंगी और न ही स्मिता, क्यों स्मिता?’’ एक बार फिर बूआ ने स्मिता की ओर नजर घुमाई.

स्मिता चुप थीं.

नाश्ता कर के सब उठ गए और अपनेअपने कमरों में जाने लगे.

‘‘मैं जरा आराम कर लूं…थक गई हूं,’’ इतना बोल कर बूआ ने भी अपना बैग समेटा, ‘‘स्मिता, बाद में मेरे कमरे में आना.’’ बूआजी का यह आदेश स्मिता को था.

तभी चंद्रकांत ने पत्नी की ओर देख कर कहा, ‘‘स्मिता, तुम जरा कमरे में चलो. तुम से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

स्मिता आंखें नीची कर के बूआ की ओर देखती हुई पति के पीछे चल दीं. बूआ को लगा, कुछ तो गड़बड़ है. वातावरण की दबीदबी खामोशी और स्मिता की दबीदबी चुप्पी के पीछे मानो कोई गहरा राज झांक रहा था.

वे सुबह से उठ कर, नित्य कर्म से निवृत्त हो कर बाहर निकलने में ऐसी निढाल हो गई थीं कि कुछ अधिक सोचविचार किए बिना उन्होंने अपने कमरे में जा कर स्वयं को पलंग पर डाल दिया. आज वैसे भी रविवार था. सब घर पर ही रहने वाले थे. थोड़ा आराम कर के लंच पर बात करेंगी. शाम को आने का न्योता तो दे आई हैं पर ‘मीनूवीनू’ तो तय करना होगा न. बूआजी बड़ी चिंतित थीं.

गंगा बूआ पूरे जोशोखरोश में थीं. उत्साह उन के भीतर पंख फड़फड़ा रहा था पर थकान थी कि उम्र की हंसी उड़ाने लगी थी. पलंग पर पहुंचते ही न जाने कब उन की आंख लग गई. जब वे सो कर उठीं तो दोपहर के साढ़े 3 बजे थे.

‘कितना समय हो गया. मुझे किसी ने उठाया भी नहीं,’ बूआ बड़बड़ाती हुई कपड़े संभालती कमरे से बाहर निकलीं.

‘‘अरे, गोपू, कमली…कहां गए सब के सब…और आज खाने पर भी नहीं उठाया मुझे,’’ बूआ नौकरों को पुकारती हुई रसोईघर की ओर चल दीं. उन्हें गोपू दिखाई दिया, ‘‘गोपू, मुझे खाने के लिए भी नहीं उठाया. और सब लोग कहां हैं?’’

‘‘जी बूआ, आज किसी ने भी खाना नहीं खाया और सब बाहर गए हैं,’’ गोपू का उत्तर था.

‘बाहर गए हैं? मुझे बताया भी नहीं,’ बूआ अपने में ही बड़बड़ाने लगी थीं.

‘‘बूआजी, मैं महाराज को बोलता हूं आप का खाना लगाने के लिए. आप बैठें,’’ यह कहते हुए गोपू रसोईघर की ओर चला गया.

कुछ अनमने मन से बूआ वाशबेसिन पर गईं, मुंह व आंखों पर पानी के छींटे मारते हुए उन्होंने बेसिन पर लगे शीशे में अपना चेहरा देखा. थकावट अब भी उन के चेहरे पर विराजमान थी. नैपकिन से हाथ पोंछ कर वे मेज पर आ बैठीं. गोपू गरमागरम खाना ले आया था.

खाना खातेखाते उन्हें याद आया कि वे पंडितजी से कह आई थीं कि घर पर चर्चा कर के वे लड़के वालों को निमंत्रण देने के लिए चंदर से फोन करवा देंगी. आखिर लड़की का बाप है, फर्ज बनता है उस का कि वह फोन कर के लड़के वालों को घर आने का निमंत्रण दे. खाना खातेखाते बूआ सोचने लगीं कि न जाने कहां चले गए सब लोग…अभी तो उन्हें सब के साथ बैठ कर मेहमानों की आवभगत के लिए तैयारी करवानी थी.

‘खाना खा कर चंदर को फोन करूंगी,’ बूआ ने सोचा और जल्दीजल्दी खाना खा कर जैसे ही कुरसी से खड़ी हुईं कि उन की नजर ने ‘ड्राइंगरूम’ के मुख्यद्वार से परिवार के सारे सदस्यों  को घर में प्रवेश करते हुए देखा.

और…यह क्या, रश्मि ने दुलहन का लिबास पहन रखा है? उन्हें आश्चर्य हुआ और वे उन की ओर बढ़ गईं. स्मिता के अलावा परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे पर हंसी थी और आंखों में चमक.

‘‘लो, बूआजी भी आ गईं,’’ चंद्रकांत ने एक लंबे, गोरेचिट्टे, सुदर्शन व्यक्तित्व के लड़के को बूआजी के सामने खड़ा कर दिया.

‘‘रश्मिज ग्रैंड मदर,’’ चंद्रकांत ने कहा तो युवक ने आगे बढ़ कर बूआ के चरणस्पर्श कर लिए.

गंगा बूआ हकबका सी गई थीं.

‘‘बूआजी, यह सैमसन जौन है. आज होटल ‘हैवन’ में इस की रश्मि से शादी है. चलिए, सब को वहां पहुंचना है.’’

‘‘पर…ये…वो जन्मपत्री…’’ बूआजी हकबका कर बोलीं, फिर स्मिता पर नजर डाली. उस का चेहरा उतरा हुआ था.

‘‘अरे, बूआजी, जन्मपत्री तो इन की ऊपर वाले ने मिला कर भेजी है. चिंता मत करिए. चलिए, जल्दी तैयार हो जाइए. सैमसन के मातापिता भी होटल में ठहरे हैं. उन से भी मिलना है. फिर वे लोग अमेरिका वापस लौट जाएंगे.’’

चंद्रकांत बड़े उत्साहित थे. फिर बोले, ‘‘देखिएगा, किस धूमधाम से भारतीय रिवाज के अनुसार शादी होगी.’’

बूआजी किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी रह गई थीं. उन की नजर में रश्मि की जन्मपत्री के टुकड़े हवा में तैर रहे थे.

Freedom vs Control : टीनएजर की शिकायत, पेरेंट्स हर बात में अपनी क्यों चलाते हैं

Freedom vs Control : टीनएजर को अक्सर अपने पेरेंट्स से यह शिकायत होती है कि वे जबरदस्ती अपने डिसिजन उन पर थोप रहे हैं या उन की ख्वाहिशें पूरी नही हो रहीं. ऐसे में ये बात समझ लें कि जो अपना पैसा खर्च रहा है उस की बात तो आप को सुननी ही पड़ेगी. जब आप कमाने लगें तब अपनी धौंस दिखा सकते हैं.

 

अरे यार, सपना कल पापा ने मुझे बाइक दिलाने से मना कर दिया. उन का कहना है अभी बजट नहीं है. लेकिन अभी मम्मी को दिवाली पर गोल्ड का सेट ले कर दिया तब उन का बजट था. वह हमेशा ही मेरी हर बात के लिए मना कर देते हैं. इस पर सपना ने कहा वरुण तुम सही कह रहे हो मेरे मम्मीपापा भी यही करते हैं तुम्हें पता ही है पिछले महीने उन्होंने मुझे कालेज टूर पर भी नहीं जाने दिया. इस का रीजन सुन कर तुम्हें हंसी आएगी. उन का कहना था तुम्हारे मार्क्स इस बार अच्छे नहीं आए इसलिए तुम इस बार कालेज टूर पर नहीं जा सकती. यार ये अच्छी दादागिरी है हमारे पेरेंट्स की. हम चाहें न चाहें लेकिन वे हर बात में अपनी मनमर्जी करते हैं.

उन की बातें सुन रहा आकाश बोला,  तुम सही कह रहे हो हर बात में चलाते अपनी हैं और फिर भी हर वक्त यही रोना रोते हैं कि हम ने तुम्हारे लिए ये किया वो किया. इतने सैक्रिफाइस किए हैं. कभी अपने बारे में नहीं सोचा…. बला….. बला …. और भी न जाने क्याक्या सुनाते हैं वह हमें.

जबकि सच यह है कि सैक्रिफाइस तो हम भी करते हैं उन के लिए हम अपनी पसंद का करियर तक नहीं चुन सकते, कपड़े भी अकसर उन की ही पसंद के पहनों, सेक्स भी तभी करें जब वो कहें कि अब कर सकते हो, गर्लफ्रेंड या लड़की भी उन की ही पसंद की चुनों. इट्स हौरिबल.

 

टीनएजर को अक्सर अपने पेरेंट्स से यह शिकायत होती है कि वे हर बात में अपनी चलाते हैं. लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू यह भी है कि टीनएजर जो अपनी इच्छाओं को मार रहें हैं वह सैक्रिफाइस नहीं है. बल्कि वो अपने पेरेंट्स की बात मानना है क्योंकि वो हमारे लिए बहुत करते हैं. हमारे अच्छेबुरे के लिए सोचते हैं, हम पर अपना पैसा खर्च रहे हैं, तो फैसला लेने का हक भी उन्हें ही मिलना चाहिए कि वह हमारे लिए कब और कितना कर सकते हैं और कितना करने की ख्वाहिश रखते हैं. हम उन्हें इस के लिए मजबूर नहीं कर सकते.

 

पैसा देने वाले के पास मना करने का हक है

 

कई टीनएजर को यह लगता है कि इतना पैसा होते हुए भी पेरेंट्स ने हमें इतनी सी चीज के लिए मना कर दिया. अब उन्होंने क्यों मना किया, उन की क्या सिचुएशन है उसे वे ही बेहतर जानते होंगे. लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि जो पैसा दे रहा है उसे पूरा हक है कि वो दे या न दे ये उस की मर्जी है. इस बात के लिए उन से जबरदस्ती नहीं की जा सकती और न ही नाराजगी दिखाई जा सकती है. बल्कि ऐसे में अपने मन में यह सोच लेने की जरूरत होती है कि जल्द से जल्द मुझे कुछ बनना है ताकि किसी के आगे हाथ न फैलाने पड़ें एक दिन मैं ये चीज खुद अपने पैसों से खरीदूंगा.

 

बिल उन्हें पे करना है तो, पसंद भी उन्हीं की होगी

 

जो अपना पैसा खर्च रहा है उसे उस पैसे की कीमत पता है. उन्हें मालूम है कौन सी चीज लेना सही रहेगा और कौन सी नहीं. अगर वह कुछ कर रहें हैं तो उस में आपका भला ही होगा. अगर वह चीज आप की नजर में गलत भी है, तो भी आप उन्हें मजबूर नहीं कर सकते क्योंकि पैसा उन का है वह जहां चाहे जैसे खर्च करें.

 

पैसा खर्चने वाले को आप के लिए करियर चुनने का भी अधिकार है

 

अकसर टीनएजर कहते हैं कि हमें तो कुछ और करना था लेकिन पेरेंट्स ने अपने सपने पूरे करने के लिए हमारी बलि दे दी. जैसे कि मुदित पेंटर बनना चाहता था लेकिन पेरेंट्स ने उसे एमबीए में एडमिशन दिला दिया. उसे हमेशा इस बात का अफसोस होता है कि मुझे तो पेंटर बनना था. लेकिन वहीँ एक सच यह भी है कि पेरेंट्स को लगा कि पेंटर बन कर अच्छी जौब मिले न मिले. अभी तो पढ़ने के दिन हैं और हमारे पास अच्छे कालेज में एडमिशन करने के पैसे भी हैं, तो फिर क्यों न कराएं. एक डिग्री हो जाएगी.

 

उन का सोचना भी अपनी जगह सही था लेकिन अगर मुदित को इस से दिक्कत है तो एमबीए पूरा करने के बाद पार्ट टाइम में पेंटर का कोर्स कर सकता है. जौब के साथसाथ कोर्स करें और फिर पेंटर की अच्छी जौब मिल जाए तो एमबीए की जौब छोड़ कर पेंटर की लाइन में करियर बनाएं इस में क्या दिक्कत है.

 

इसी तरह रचना, एमबीबीएस करना चाहती थी लेकिन पेरेंट्स ने मना कर दिया कि हमारे पास इतने पैसे नहीं है और लोन ले कर करा भी दिया लेकिन बिना एमएस के अच्छी जौब नहीं मिलेगी फिर हम पढ़ाई का लोन उतारेंगे या बाकी बच्चों को सेट करेंगे. इस बात को ले कर रचना हमेशा अपने पेरेंट्स से नाराज रहती है. हालांकि उन्होंने उसे बायोकेमेस्ट्री का एक अच्छा कोर्स कराया जिस में वह लाखों की सैलेरी ले रही है लेकिन अगर फिर भी वह सेटिस्फाई नहीं है, तो जौब में कमाएं पैसों को जोड़ कर और लोन ले कर अपने बलबूते एमबीबीएस कर सकती है. इस में पेरेंट्स को गलत ठहराना सही नहीं है. उन से जितना बन पड़ा उन्होंने किया.

 

खुद कमाने लगो फिर अपने हिसाब से खर्च करना

 

जो अपना पैसा खर्च रहा है उस की बात तो आप को सुननी ही पड़ेगी फिर चाहे वह सही बोल रहा हो या फिर गलत ही क्यों न बोल रहे हों. जब आप कमाने लग जाएं तो बोलने का हक भी मिल जाएगा फिर अपने पैसे चाहे जहां और जैसे भी खर्च करें उस के जिम्मेवार आप खुद होंगे. लेकिन अभी जो खर्च कर रहा है उस की ही चलेगी.

 

जब पैसा कमाने लगो तो अपनी धौंस जमाओ

 

आप यह बात न भूलें कि जो पैसा वो आप पर खर्च रहे हैं उस में वो अपना यूरोप का ट्रिप भी कर सकते थे लेकिन आप की पढ़ाई और करियर के लिए वे अपना मन मार गए और न जाने कितनी बार मारते होंगे. इसलिए उन की तो सुननी ही पड़ेगी. जब आप कमाने लगें तब अपनी धौंस दिखाना. लेकिन किसी और के पैसों पर आप रौब नहीं दिखा सकते फिर भले ही वे आप के पेरेंट्स ही क्यों न हो.

अपनी योग्यता दिखानी पड़ेगी

 

अगर आप अपनी बात मनवाना चाहते हो अपनी पसंद का कुछ करना चाहते हो उसी तरह पढ़ाई करो और एग्जाम में अच्छे मार्क्स लाओ. जो टीनएजर 90 परसेंट से ऊपर मार्क्स लाता है उसे बोलने का हक है लेकिन जो 60 परसेंट वाला है उसे कुछ भी कहने का हक नहीं है. इसलिए खूब पढ़ें और अपनी योग्यता साबित कर के दिखाएं ताकि पेरेंट्स को भी लगे वाकई जो पैसा आप पर लगाया जा रहा है आप उस का दोगुना ही करेंगी और सफल हो कर दिखाएंगे.

 

इसलिए कम उम्र से ही मेहनतकश बनो

 

कम उम्र में भी मेहनत और लगन के जरिए कामयाबी की सीढ़ियों को चढ़ा जा सकता है. किसी भी क्षेत्र में कामयाब होने के लिए उम्र कभी बाधा नहीं होती. फेसबुक कंपनी के मालिक मार्क जुकरबर्ग को तो आप जानते ही होंगे. मार्क अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म मेटा के बल पर 23 साल की उम्र में अरबपति बन गए थे. टेक्नोलौजी के बादशाह माने जाने वाले बिल गेट्स अपनी कंपनी माइक्रोसौफ्ट की बदलौत महज 31 साल की उम्र में अरबपति बन गए थे. मशहूर सिंगर रिहाना भी अपनी गायिकी के बल पर सिर्फ 33 साल की उम्र में अरबपति बन गई थीं. गोल्फ की दुनिया के टाइगर माने जाने वाले टाइगर वुड्स सिर्फ 33 साल की उम्र में गोल्फ में मुकाम हासिल कर के गोल्फर बन गए थे. कम उम्र से ही खूब मेहनत करो और आगे बढ़ो.

Women’s Rights : कानूनों ने जो हक दिए उससे खुले में सांस ले रही हैं महिलाएं, स्थिति में आया बदलाव

Women’s Rights : आज हर जगह फिर चाहे वह घर परिवार हो या नौकरी लड़कियों को ज्यादा तवज्जों दी जा रही है. क्योंकि कानून ने महिलाओं को ये हक दिया है कि वे किसी से कम नहीं है. आज की नारी अबला नहीं है बल्कि वह आत्मविश्वास से भरी हुई वह नारी है जो कुछ भी कर सकती है. ये सब कुछ कानून की मदद से ही संभव हो पाया है. आइए जाने कैसे.

 

धरती के इस छोर से उस छोर तक

मुट्ठी भर सवाल लिए मैं

छोड़ती हांफती भागती

तलाश रही हूं सदियों से निरंतर

अपनी जमीन, अपना घर

अपने होने का अर्थ!

 

भारतीय समाज में नारी की स्थिति को बखूबी बयां करती निर्मला पुतुल की ये पंक्तियां पूरे समाज की व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती रही हैं.

लेकिन कांग्रेस के कार्यकाल में जो कानून पारित हुए उस ने महिलाओं की इस स्थिति को लगभग पूरी तरह बदलने का काम किया है. महिलाओं का उत्पीड़न रोकने और उन्हें हक दिलाने के लिए इन कानूनों ने बहुत कुछ ऐसा किया है जिस से महिलाएं भी आज पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं.

 

इसी का नतीजा है अब लगभग हर घर में फिर चाहे वह अमीर हो या गरीब लड़कियों को लड़कों के बराबर प्यार और सम्मान दिया जाने लगा. जैसे कि अभी हाल ही में दिल्ली के पीतमपुरा में घटित हुई वह घटना जिस में एक नौजवान ने अपने मातापिता की एनिवर्सरी वाले दिन अपने पेरेंट्स और अपनी बहन की हत्या कर दी क्योंकि उसे लगता था कि मातापिता बेटी को ज्यादा प्यार करते हैं और उन्होंने बेटी को संपत्ति में हिस्सेदार बनाया हुआ था.

 

हालांकि जो हुआ वह बहुत गलत हुआ और ये बहस छिड़ गई कि अब वाकई लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया बदल गया है. अब उन्हें भी घर परिवार में वो स्थान, वो प्यार, वो जगह मिल रही है जिस की हकदार वो हमेशा से थी. अब बेटियां मांबाप पर बोझ नहीं है बल्कि उन की लाडली हैं, वे भी अब बेटों की तरह मातापिता की देखभाल कर रही हैं.

 

लेकिन सवाल यह है कि लड़कियों की स्थिति में इतना बदलाव आखिर आया कैसे?

 

इस का जवाब एक ही है कि महिलाओं की सुरक्षा और उन के हक के लिए जो कानून बनाए गए उस से उन की स्थिति में काफी सुधार हुआ. आइए जानें कैसे-

 

  1. विवाह कानून 1956 और 2005

 

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में और 2005 में हुए संशोधन के बाद एक बेटी चाहे वह शादीशुदा हो या न हो, अपने पिता की संपत्ति को पाने का बराबरी का हक रखती है. अपने पिता और उस की पुश्तैनी संपत्ति में भी लड़कियों को अपने भाइयों और मां जितना हक मिलता है. अगर पिता ने कोई वसीयत नहीं की है तब भी उन्हें भाइयों के बराबर ही हक मिलेगा. यहां तक की अपनी शादी हो जाने के बाद भी यह अधिकार उन्हें मिलेगा.

 

इस कानून की वजह से किस तरह महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया

 

हालांकि 1956 के हिंदू विवाह कानून ने बहुत सारे अधिकार महिलाओं को दिए. जिस में शादी का अधिकार तो था ही बाद में उत्तराधिकार का अधिकार भी मिला. लड़की पिता की प्रौपर्टी में हिस्सेदार तो थी लेकिन उसे बहुत इम्पोर्टेन्ट नहीं दिया गया था. फिर बाद में 2005 में इम्प्लीमेंट हुआ और उस में मान लिया कि यह बराबर की हिस्सेदार हैं. जितना हिस्सा भाई का है उतना ही हिस्सा बहन का भी है.

 

इस का नतीजा यह हुआ कि मायके में शादी के बाद महिलाओं की स्थिति काफी मजबूत हो गई. जहां पहले ये कहा जाता था कि महिलाओं का कोई घर नहीं है. अगर पतिपत्नी में झगड़ा हुआ, वो मायके आ नहीं सकती थी क्योंकि वो कहावत थी कि मायके से डोली जाएगी, अर्थी ससुराल से जाएगी. उसे ये कहावत पूरी जिंदगी निभानी होती थी. लेकिन अब ये परंपरा पूरी तरह खतम हो गई है. अब उस को कानून ने अधिकार दे दिया है.

 

अब उसे पता है कि अगर उस की शादी के कोई दिक्कत है तो उस का अपना घर है जहां वह लौट कर जा सकती है क्योंकि पिता के घर पर उस का भी कानूनन अधिकार है.

 

इस वजह से भाई भी अब बहनों से बना कर रखते है क्योंकि उन्हें पता है कि अगर कोई गड़बड़ कि तो बहन अपना हिस्सा मांग लेगी. इस तरह मायके और ससुराल दोनों जगह उस की इज्जत बढ़ी. ससुरालवालों को भी पता है कि अगर ज्यादा तंग किया तो बहू छोड़ कर चली जाएगी. अब वो पहले वाली अबला नारी नहीं है जिसे ये सिखाया जाता था कि डोली में बैठ कर ससुराल जाना है और अर्थी पर ही लौटना है.

 

पहले लड़कियों को कहा जाता था कि तुम अपनी जबान बंद रखों जो हो गया उसे भूल जाओं. ये मारपीट तो होती रहती है कौन सा पति नहीं मारता. समझा दिया जाता था लड़कियों को. लड़की पूरी जिंदगी ऐसे ही बिता देती थी क्योंकि उसे पता था कि हमारी शादी के बाद हमारे पेरेंट्स के पास हमारे लिए कुछ है नहीं. आज इस उत्तराधिकार कानून की वजह से अधिकार मिल गया कि अगर शादी के बाद मेरे साथ कुछ गलत होता है तो मैं अपने पिता के घर पर भी अधिकार के साथ रह सकती हूं.

 

पहले बेटी के घर का मातापिता पानी भी नहीं पीते थे लेकिन अब बेटों को जब संपत्ति में अधिकार है तो लड़की अपने मातापिता की देखभाल भी कर रही हैं. जब लड़कालड़की समान है, जब आप के अधिकार समान है, तो कर्तव्य भी तो समान हो जाएंगे. आप अगर अपने पेरेंट्स की प्रौपर्टी में हिस्सा ले रहे हो तो आप का ये भी तो अधिकार है कि अगर बाप बीमार हो गया तो आप को उस की देखरेख करनी है. अब वह अपने सासससुर के साथ मातापिता की भी देखरेख कर रही है.

 

  1. विवाह कानून 1955

 

1955 में पारित हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 पहला कानून था जिस ने हिंदू जोड़ों को तलाक लेने की अनुमति दी थी. इस कानून से पहले, हिंदू विवाह में तलाक के लिए कोई नियम नहीं थे. हिंदू विवाह अधिनियम उन शर्तों की व्याख्या करता है जिन के तहत पतिपत्नी कुछ कारण साबित करने के बाद तलाक मांग सकते हैं. जब तक कोर्ट इजाजत न दे तलाक नहीं हो सकता. हिंदू विवाह अधिनियम में न्यायिक अलगाव और तलाक के लिए अलगअलग समाधान हैं.

 

इस कानून की वजह से किस तरह महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया

 

पहले हमारे यहां विवाह का कोई कानून नहीं था, तो आदमी 2 शादियां भी कर लेता था 3 भी कर लेता था. तलाक नहीं देना है, तो उसे कोई डर भी नहीं था. कईकई शादी कर के छोड़ दिया कोई पूछने वाला नहीं था. लेकिन जब ये कानून बन गया तब ये अधिकार मिला कि आप 1 से ज्यादा शादी नहीं कर सकते, पहली पत्नी है तो दूसरी शादी नहीं कर सकते. करते हैं, तो वह इललीगल है. अगर आप अपनी पत्नी को छोड़ते हैं, तो आप को गुजारा भत्ता और संपत्ति में अधिकार आदि सब देना पड़ेगा. ये सारे अधिकार हिंदू विवाह कानून 1955 ने महिलाओं को दिए हैं. इस वजह से महिलाओं की स्थिति में बहुत बदलाव आया. ससुराल में पति के साथ उन के रिश्ते में बदलाव आया. उन्हें भी एक इज्जत और मानसम्मान मिला जिस की वो हकदार थी.

 

 

  1. शिक्षा कानून

 

संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा 21(A) के अनुसार 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा अनिवार्य होगी. इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया गया जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ. साल 2009 में, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) में कहा गया कि न्यूनतम शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक बच्चे का अधिकार है. देश में बालिका शिक्षा आज परिवारों, समुदायों और समाज के लिए एक धुरी है. इस नियम के अनुसार लड़कियों को भी शिक्षा लेने का पूरा अधिकार है.

 

कानून की वजह कैसे महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया

 

लड़कियां पहले भी पढ़ा करती थीं लेकिन कुछ परिवारों में ही ये अधिकार मिला हुआ था. अगर पढ़ती भी थीं तो कुछ क्लास करती थी या फिर स्कूल के बाद उन्हें घर के कामकाज में लगा दिया जाता था. लेकिन शिक्षा का प्रसार हुआ तो लड़कियों के पढ़ने पर भी ज्यादा जोर दिया जाने लगा.

 

पहले ये कहा जाता था कि लड़की को ज्यादा पढ़ाने की जरुरत ही क्या है. पढ़ने के बाद भी घर का चूल्हाचौका ही तो करना है. इस मानसिकता से लोग बाहर आएं. जब बेटियों को भी नौकरी आदि में समान अवसर मिलने लगें तो सोच भी बदलने लगी. अब बेटेबेटी में कोई अंतर नहीं रह गया. मातापिता को लगा अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर ही उस की शादी करेंगे. ग्रेजुएट हो जाएं फिर शादी करेंगे ज्यादा पढ़ कर भी क्या करना है कौन सी नौकरी करनी है. ये सोच भी धीरेधीरे बदलने लगी.

अब सोच ये है जैसे प्रोफेशनल डिग्री लड़का ले रहा है वैसे लड़की भी लें. अब तो यहां तक सोचने लगे हैं कि लड़की पहले पढ़ लें, एक दो साल नौकरी कर लें, अपने पैरों पर खड़ी हो जाएं फिर शादी करेंगी. ये जो क्रमिक बदलाव हुआ ये इन कानूनों की वजह से ही हुआ है जिस ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर ला कर खड़ा कर दिया.

 

  1. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 

 

दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत, एक महिला को यह अधिकार प्राप्त है कि अगर उस का पैतृक परिवार या उस के ससुराल के लोगों के बीच किसी भी तरह के दहेज का लेनदेन होता है, तो वह इस की शिकायत कर सकती है. आईपीसी के सेक्शन 304B और 498A, के तहत दहेज का आदानप्रदान और इस से जुड़े उत्पीड़न को गैरकानूनी व आपराधिक करार दिया गया है.

कानून के मुतबिक अगर शादी के सात सालों के अंदर किसी महिला की मौत जलने, शारीरिक चोट लगने या संदिग्ध परिस्थितियों में होती है और बाद में ये मालूम चले कि महिला की मौत का जिम्मेदार उस का पति, पति के रिश्तेदारों की तरफ से उत्पीड़न तो उसे ‘दहेज हत्या’ माना जाएगा.

भारतीय न्याय संहिता में धारा 79 में दहेज हत्या को परिभाषित किया गया है और सजा में कोई भी बदलाव नहीं हुआ है. यानी जिस तरह की सजा की व्यवस्था आईपीसी में थी ठीक वही सजा का प्रावधान नई भारतीय न्याय संहिता में भी है.

 

पहले लड़कियों का उत्पीड़न होता था उन के साथ मारपीट होती थी. उन्हें दहेज के लिए सताया जाता था. पहले लड़कियां सहती थी. कईयों की जिंदगी यूं ही गुजर जाती थी, वे ऐसे ही मर खप जाती थी किसी को पता ही नहीं चलता था. दहेज के लिए जाने कितनी लड़कियों को जला दिया जाता था. हालांकि यह सब अभी भी होता है लेकिन काफी कम होता है क्योंकि अब कानून का डर है.

 

आज उन पर कोई अत्याचार करता है तो वह कानून की मदद से अपने ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती हैं. उन के लिए पुलिस है, कानून है. कानून में सजा का प्रावधान है जिस के चलते कोई बहुत जल्दी से अत्याचार नहीं कर पाता. हालांकि यह सब अभी भी होता है लेकिन काफी कम होता है क्योंकि अब कानून का डर है. दहेज का कानून ही है जिस की वजह से आज लड़कियां कालर खड़े कर के बात कर रही हैं उन्हें ये पता है कि न उन्हें कोई प्रोटेक्ट करेगा.

 

  1. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

 

घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के अंतर्गत एक महिला को यह अधिकार प्राप्त है कि अगर उस के साथ उस का पति या उस के ससुराल वाले शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, सैक्शुअल या आर्थिक रूप से अत्याचार या शोषण करते हैं तो वह उन के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकती है.

 

इस कानून की वजह से किस तरह महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया

 

पहले महिलाओं के साथ ससुराल में बहुत मारपीट होती थी. उन्हें अपनी हर नाजायज मांगें मनवाने के लिए मजबूर किया जाता था. लेकिन इस कानून की वजह से महिलाओं की स्थिति में बहुत बदलाव आया. आज वे अपने ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती हैं, तो उस का पूरा मायका भी उस के साथ खड़ा हो जाता है क्योंकि उन्हें पता है कानून उन का साथ देगा.

 

यहां तक की लिवइन रिलेशन में रहने वाली महिला को घरेलू हिंसा कानून के तहत प्रोटेक्शन का हक मिला हुआ है. अगर उसे किसी भी तरह से प्रताड़ित किया जाता है तो वह उस के खिलाफ शिकायत कर सकती है. लिवइन में रहते हुए उसे राइटटूशेल्टर भी मिलता है. यानी जब तक यह रिलेशनशिप कायम है, तब तक उसे जबरन घर से नहीं निकाला जा सकता. लेकिन संबंध खत्म होने के बाद यह अधिकार खत्म हो जाता है.

 

  1. अबौर्शन कानून, मेडिकल टर्मिनेशन औफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट, 1971

 

इस कानून ने महिलाओं को अधिकार दिया कि अगर किसी महिला की मर्जी के खिलाफ उस का अबौर्शन कराया जाता है, तो ऐसे में दोषी पाए जाने पर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है. यानि की अबौर्शन करना या न करना उन की मर्जी है. आप जबरदस्ती गर्भ में लड़की है और हमें नहीं चाहिए यह कह कर किसी महिला का बच्चा अबौर्ट नहीं करा सकते. अगर गर्भ के कारण महिला की जान खतरे में हो या फिर मानसिक और शारीरिक रूप से गंभीर परेशानी हो या गर्भ में पल रहा बच्चा विकलांगता का शिकार हो तो भी अबौर्शन कराया जा सकता है.

 

इस के अलावा, अगर महिला मानसिक या फिर शारीरिक तौर पर इस के लिए सक्षम न हो भी तो अबौर्शन कराया जा सकता है. अगर महिला के साथ बलात्कार हुआ हो और वह गर्भवती हो गई हो या फिर महिला के साथ ऐसे रिश्तेदार ने संबंध बनाए जो वर्जित संबंध में हों और महिला गर्भवती हो गई हो तो महिला का अबौर्शन कराया जा सकता है.

 

इस कानून की वजह से किस तरह महिलाओं की स्थिति में बदलाव आया

पहले अबौर्शन नहीं करा सकते थे, तो उस का प्रभाव तो लड़की पर ही पड़ता था. अब ये परमिशन है कि अगर बच्चा 6 वीक का है, तो भी आप अबोर्ट करा सकते हो. पहले परिवार में जब तक बेटे का जन्म न हो जाए तब तक महिला को बच्चा पैदा करते रहने के लिए मजबूर किया जाता था. आप बच्चे पैदा करते जा रहे हो, आप को बच्चे पैदा करने की मशीन बना दिया गया. गर्भ में लड़की हो तो उसे महिला की इच्छा के बिना ही मार दिया जाता था. लेकिन अब लड़की एतराज कर सकती है. इस से उस की स्थिति सही हुई है. यह शरीर उस का है और अपने शरीर के स्वास्थ्य का ख्याल रखना उस की जिम्मेवारी होती है. ऐसे में अब अगर उसे लगता है मैं बच्चा नहीं चाहती, तो कोई उसे ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकता.

 

ये सारे जो बदलाव आए हैं, लड़कियों की सामाजिक स्थिति, शिक्षा बढ़ रही है, उन के स्वास्थ्य में सुधार हुआ है. उन की आर्थिक स्थिति बदली है, वो शादी के बाद जिस डर के माहौल में रह रही थी वो खतम हुआ है. ये सब कानून की मदद से ही संभव हुआ है. लेकिन शायद हम में से बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि पहले महिलाओं की आजादी और उन्हें बराबरी हक देने के लिए सरकारों ने काफी प्रयास किया. उसी का नतीजा हैं संपत्ति में अधिकार जैसे कानून. इन कानूनों ने महिलाओं को समाज में एक अलग स्थान दिलाया. इन अधिकारों के वजह से लड़कियों पर तवज्जों दी जाती है.

 

लेकिन 2014 के बाद औरतों के हक में कोई कानून नहीं बना. तीन तलाक कानून तो आया लेकिन वो सिर्फ मुसलिम महिलाओं के लिए था. लेकिन हिंदू महिलाओं के लिए कोई कानून नहीं बना. आगे उम्मीद की जा सकती है कि महिलाओं के लिए और भी अच्छे कानून बनेंगे क्योंकि वह भी आखिर देश की आधी आबादी होने का दर्जा रखती हैं.

Online Hindi Story : मन्नो बड़ी हो गई है

Online Hindi Story : ‘‘भाभी, चाय पी लो,’’ नीचे से केतकी की चीखती आवाज से उस की आंख खुल गई. घड़ी देखी, सिर्फ 7 बजे थे और इतने गुस्सेभरी आवाज.

करण पास ही बेखबर सोया था. वह भी उठते हुए यही बोला, ‘‘अरे, 7 बज गए, उठोउठो. केतकी ने चाय बना ली है.’’

‘‘एक चाय ही तो बनाई है. बाकी घर के सारे काम मैं ही तो अकेले करती हूं.’’

‘‘सुबहसुबह तुम बहस क्यों करने लग जाती हो. तुम्हें उठा रहे हैं तो उठ जाओ,’’ करण उनींदी में बोला और फिर चादर तान कर सो गया.

अंदर तक सुलग गई मैं. जब रात में अपनी इच्छापूर्ति करनी होती है तब नहीं सोचते कि इसे सोने दूं, क्योंकि सुबह इसे उठना है. तब तो कहते हैं, अभी तो हमारी शादी को कुल 2 महीने ही हुए हैं. रात की बात सुबह जगाते समय कभी याद नहीं रहती. रोजाना की तरह नफरत दिल में लिए नाइटी संभाल कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई. बंदिशें इतनी कि बिना नहाएधोए, साफ सूट पहने बिना सास के पास नहीं जा सकती.

जल्दीजल्दी नहाधो कर नीचे पहुंची. सास के पांव छुए. वे ?बजाय आशीर्वाद देने के, घड़ी देखने लगीं. गुस्सा तो इतना आया कि घड़ी उखाड़ कर फेंक दूं या सास की गरदन मरोड़ दूं. शुरूशुरू में मायके में मेरी भाभी जब 8 बजे उठ कर नीचे आती थीं तो कभीकभार मम्मी कह देती थीं, ‘बेटा, थोड़ा जल्दी उठने की आदत डालो.’ इस पर भाभी का खिसियाया चेहरा देख कर, एक दिन मैं बोल पड़ी थी, ‘मम्मी, भाभी को गुस्सा आ रहा है. इन्हें कुछ मत कहो.’ भाभी हड़बड़ा गई थीं. तब मुझे भाभी पर व्यंग्य करने में मजा आया था और अपनी मम्मी की नरमी पर गुस्सा.

‘‘क्यों भाभी, मम्मी को इस तरह देख रही हो, मानो खा ही जाओगी,’’ मैं केतकी के व्यंग्य पर चौंकी. वह लगातार मेरा चेहरा ही देखे जा रही थी.

अचानक मेरी भाभी मुझ में आ गईं. मेरे शब्द गले में ही अटक गए. भाभी को भी ऐसी ही बेइज्जती महसूस होती रही होगी मेरे व्यंग्यों पर.

‘‘चाय पी लो, केतकी झाड़ू लगा चुकी है,’’ सास का स्वर शुष्क था. साथ ही, केतकी ने ठंडी चाय मेरे हाथ में पकड़ा दी. मैं चाय को तेजी से सुड़क कर उस के पीछे रसोई में लपकी. अगर मैं ऐसा नहीं करती तो सास बोलतीं, ‘देख, कैसे मजे लेले कर पी रही है, ताकि केतकी दोतीन काम और निबटा ले तथा इस महारानी को कोई काम न करना पड़े.’

केतकी परात में आटा छान रही थी. चाय का कप सिंक में रखते हुए मैं ने कहा, ‘‘दीदी, तुम तैयार हो जाओ. मैं नाश्ता बनाती हूं,’’ मेरे शब्द मुंह से निकलते ही केतकी परात छोड़ कर रसोई से निकल गई, मानो मुझ पर एहसान कर दिया हो. मैं ने चाय पी या नहीं, यह पूछना तो दूर की बात है.

‘शुरू से ही सारा काम थमा दो. आदत पड़ जाएगी,’ ऐसी नसीहतें अकसर रिश्तेदार व पड़ोसिनें दे जाया करतीं. मेरी मम्मी को भी मिली थीं. पर मेरी मम्मी ने कभी अमल नहीं किया था. अगर थोड़ाबहुत अमल किया था, तो मैं ने. पर यहां तो शब्ददरशब्द अमल किया जा रहा है.

जितनी तेजी से मेरा दिमाग अतीत में घूम रहा था उतनी ही तेजी से मेरे हाथ वर्तमान में चल रहे थे. आटा गूंधा, आलू उबाले, चाय बनाई तथा दूध गरम किया. इतने में केतकी नहाधो कर तैयार हो गई थी.

सास बिस्तर पर बैठेबैठे ही चिल्लाने लगी थीं, ‘‘नाश्ता न मिले तो यों ही चले जाओ. देर मत करना. इस के घर में तो सोते रहने का रिवाज होगा. बता दो इस को कि यहां मायके का रिवाज नहीं चलेगा.’’

जल्दीजल्दी दूध गिलासों में डाला. आलू में मसाला डाल कर उन के परांठे बनाने लगी. दूध व परांठे ले कर जैसे ही कमरे में पहुंची, केतकी मुझे देखते ही पर्स उठा कर जाने की तैयारी करने लगी.

‘‘दीदी, नाश्ता.’’

‘‘देर हो चुकी है.’’

एक तीखी निगाह मुझ पर डाल कर वह तेजी से निकल गई. मेरी निगाह अचानक घड़ी पर पड़ गई. आधा घंटा पहले ही?

‘‘घड़ी क्या देख रही है,’’ सास ने घूरती निगाहों से देखा. मेरा मन घबराने लगा कि अभी करण को पता चलते ही वह सब के सामने मुझ पर बरस पड़ेगा. मैं निकल गई. दूसरे कमरे में महेश खड़ा था. सास की बड़बड़ाहट जारी थी, ‘सुबह तक सोती रहती है. कितनी बार कहा है कि सवा 6 बजे तक नहाधो कर नीचे आ जाया कर. पड़ीपड़ी सोती रहती है महारानियों की तरह.’ सुबहसुबह सास के तीखे व्यंग्यबाणों को सुन कर दिमाग भन्ना गया.

‘‘भाभी, नाश्ता बना हो तो दे दो,’’ महेश के शांत स्वर से मुझे राहत मिली.

‘‘हांहां, लो न,’’ मैं ने केतकी वाली प्लेट उसे थमा दी.

‘‘केतकी ने नाश्ता नहीं…’’ मेरी उतरी शक्ल देख उस ने बात पलट दी, ‘‘छोड़ो, एक मिरची वाला परांठा बना दोगी, जल्दी से. पर, मां को मत बताना कि ज्यादा मिरची डाली है,’’ महेश हाथ में प्लेट लिए मुसकराता हुआ सास के पास चला गया.

‘‘अभी लाती हूं,’’ मैं खुश हो गई.

परांठा बना कर ले गई तो सास ने मेरी आहट सुनते ही बड़बड़ाना शुरू कर दिया, ‘देर नहीं हो रही है. जल्दी ठूंस और ठूंस के जा.’

‘‘नाश्ता तो आराम से करने दो, मम्मी. लाओ भाभी, धन्यवाद. बस, और मत बनाना.’’

मैं वापस जाने लगी तो सास के शब्द कानों में पड़े, ‘‘परांठे के लिए धन्यवाद बोल रहा है, पागल है क्या?’’ पर मुसकराते हुए महेश के नम्र शब्दों के आगे मेरे लिए सास के तीखे शब्दों के व्यंग्यबाण निरस्त हो गए थे. क्या घर के बाकी लोग भी ऐसे नहीं हो सकते थे?

मुझे याद है, जब एक दिन भाभी मम्मी को दवा दे कर हटीं तो मम्मी बोली थीं, ‘जाओ, जा कर सो जाओ. तुम थक गईर् होगी,’ मैं ने मम्मी से पूछा था, ‘दवा देने से वे थक कैसे जाती हैं? तुम इस तरह बोल कर भाभी को सिर चढ़ाती हो.’

मेरी नादानी पर मम्मी हंसी थीं. फिर बोलीं, ‘हम बूढ़े लोग तन से थकते हैं और तुम जवान लोग मन से थक जाते हो. प्यार के दो बोल मन नहीं थकने देते. जब तू बड़ी हो जाएगी, तेरी शादी हो जाएगी, तब अपनेआप समझ जाएगी.’ मम्मी की बातों पर मैं चिढ़ जाती थी कि वे मुझे बेवकूफ बना रही हैं.

पर नहीं, तब मम्मी ठीक ही कहती थीं. समझ शादी के बाद ही आती है. महेश के प्यारभरे दो शब्द सुन कर मेरे हाथ तेजी से चलने लगते हैं. वरना दिल करता है कि चकलाबेलन नाले में फेंक दूं. 10 मिनट खाना लेट हो जाए तो पेट क्या रोटी हजम करने से मना कर देता है? क्या सास को पता नहीं कि शादी के तुरंत बाद कितना कुछ बदल जाता है. उस में तालमेल बैठाने में वक्त तो चाहिए न. पर क्या बोलूं? बोली, तो कहेंगे कि अभी से जवाब देने लगी है. जातेजाते महेश शाम को ब्रैड रोल्स खाने की फरमाइश कर गया. मुसकरा कर उस का यह आग्रह करना अच्छा लगा था.

‘क्या करण ऐसा नहीं हो सकता?’ मन ही मन सोचते हुए मैं सास को नाश्ता देने गई. वहां पहुंची तो करण जमीन पर बैठे हुए पलंग पर बैठी सास के पांवों पर सिर रखे, अधलेटा बैठा था. देख कर मैं भीतर तक सुलग सी गई.

‘‘नाश्ता…’’ मैं नाश्ते की प्लेट सास के आगे रख कर चुपचाप वापस जाने लगी.

‘‘मैडमजी, एक तो केतकी को समय पर नाश्ता नहीं दिया, ऊपर से मुंह सुजा रखा है. देख कर मुसकराईं भी नहीं,’’ अपनी मां के साथ टेढ़ी नजर से देखते हुए करण ने कहा.

‘‘नहीं तो, ऐसा तो नहीं है. चाय पिएंगे आप?’’ जबरदस्ती मुसकराई थी मैं.

‘‘ले आओ,’’ करण वापस यों ही पड़ गया. मुसकराहट का आवरण ओढ़ना कितना भारी होता है, आज मैं ने महसूस किया. मैं वापस रसोई में आ गई. मुझे बरबस मां की नसीहत याद आने लगी.

मम्मी ने एक दिन भैया से कहा था कि सुबह की पहली चाय तुम दोनों अपने कमरे में ही मंगा कर पी लिया करो. मम्मी की बात सुन कर मैं झुंझलाई थी कि क्यों ऐसे पाठ उन्हें जबरदस्ती पढ़ाती हो. तब मां ने बताया था कि उठते ही मां के पास लेट जाने या बैठने से पत्नी को ऐसे लगता है कि मानो उस का पति रातभर अपनी पत्नी नहीं, मां के बारे में ही सोचता रहा हो. ऐसी सोच बिस्तर पर ही खत्म कर देनी चाहिए. तभी पत्नी पति की इज्जत कर सकती है. मां तो मां ही है. पत्नी लाख चाहे पर बेटे के दिल से मां की कीमत तो कम होगी नहीं. पर ऐसे में बहू के दिल में सास की इज्जत भी बढ़ती है.

करण को सास के पैरों पर लिपटा देख, मम्मी की बात सही लगने लगी. मुझे यही महसूस हुआ जैसे करण सास से कह रहा हो, ‘मां, बस, एक तुम्हीं मुझे इस से बचा सकती हो.’

करण के साथ जब मैं नाश्ता कर रही थी तो सास बोलीं, ‘‘अच्छी तरह खिला देना, वरना मायके में जा कर कहेगी कि खाने को नहीं पूछते.’’

करण अपनी मां की बातों को सुन कर हंसने लगा और मेरा चेहरा कठोर हो गया. खानापूर्ति कर के मैं पोंछा लगाने उठ गई. सारे कमरों में पोंछा लगा कर आई तो देखा करण सास के साथ ताश खेल रहा है. मैं हैरान रह गई. मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘काम पर नहीं जाना है?’’

‘‘मुझे नहीं पता है?’’ करण गुस्से से देख कर बोला. मैं समझ नहीं पाई कि आखिर मैं ने ऐसा क्या कह दिया था.

‘‘तुम्हें जलन हो रही है, हमें एकसाथ बैठे देख कर?’’

‘‘बेटा, तुम जाओ, यह तो हमें इकट्ठा बैठा नहीं देख सकती,’’ सास ताश फेंक कर बिस्तर पर पसर गईं.

करण ने सास को मनाने के प्रयास में मुझे बहुत डांटा. मैं खामोश ही बनी रही.

उस दिन भैया से भी भाभी ने पूछा था, ‘कहां चले गए थे. शादी में नहीं जाना क्या?’ तब मुझे गुस्सा आ गया था कि भैया मेरे काम से बाजार गए हैं, इसलिए भाभी इस तरह बोली हैं. भैया भी भाभी पर बिगड़े थे. मुझे अच्छा लगा था कि भैया ने मेरी तरफदारी की. कभी यह सोचा भी न था कि भाभी भी तो हम लोगों की तरह ही हैं. उन्हें भी तो बुरा लगता होगा. ऐसा उन्होंने क्या पूछ लिया, जिस का मैं ने बतंगड़ बना दिया था. आज महसूस हो रहा है कि तब मैं कितनी गलत थी.

करण दूसरे कमरे से झांकताझांकता मेरे पीछे स्नानघर में घुस गया.

‘‘तुम्हें बोलना जरूरी था. मम्मी को नाराज कर दिया. चुप नहीं रहा जाता,’’ करण जानबूझ कर चिल्लाने लगा ताकि उस की मां सुन लें. दिल चाहा कि करण का गिरेबान पकड़ कर पूछूं कि मां को खुश करने के लिए मुझे जलील करना जरूरी है क्या?

कुछ भी कह नहीं पाई. चुपचाप आंगन में झाड़ू लगाती रही. आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. करण ने देखा भी, पर एक बार भी नहीं पूछा कि रो क्यों रही हो. कमरे से किसी काम से निकली तो करण को सास के साथ हंसता देख कर मेरा दम घुटने लगा. मैं और परेशान हो गई. उठ कर रसोई में आ दोपहर का खाना बनाने लगी. बारबार मम्मी व भाभी की बातें याद आने लगीं. मम्मी कहती थीं कि जब घर में किसी का मूड ठीक न हो तो फालतू हंसा नहीं करते. नहीं तो उसे लगता है कि हम उस पर हंस रहे हैं. और भाभी, वे तो हमेशा मेरा मूड ठीक करने की कोशिश किया करतीं. तब कभी महसूस ही नहीं हुआ कि इन छोटीछोटी बातों का भी कोई अर्थ होता है.

ये लोग तो मूड बिगाड़ कर कहते हैं कि तुरंत चेहरा हंसता हुआ बना लो. मानो मेरे दिल ही न हो. इन से एक प्रश्न पूछो तो चुभ जाता है. मुझे जलील भी कर दें तो चाहते हैं कि मैं सोचूं भी नहीं. क्या मैं इंसान नहीं? मैं कोई इन का खरीदा हुआ सामान हूं?

दोपहर का खाना बनाया, खिलाया, फिर रसोई संभालतेसंभालते 3 बज गए. तभी ध्यान आया कि महेश को ब्रैड रोल्स देने हैं. सो, ब्रैड रोल्स बनाने की तैयारी शुरू कर दी. आलू उबालने को रख कर कपड़े धोने चली गई. कपड़े धो कर जब वापस आई तो करण व्यंग्य से बोला, ‘‘मैडमजी, कहां घूमने चली गई थीं. पता नहीं कुकर में क्या रख गईं कि गैस बंद करने के लिए मम्मीजी को उठना पड़ा.’’

हद हो गई. गैस बंद करना भी इन की मां के लिए भारी काम हो गया. और मेरी कोई परवा ही नहीं है. मैं रसोई में ही जमीन पर बैठ कर आलू छीलने लगी. तभी करण आ गया.

‘‘क्या कर रही हो? 2 मिनट मम्मी के पास बैठने का, उन का मन बहलाने का वक्त नहीं है तुम्हारे पास. जब देखो रसोई में ही पड़ी रहती हो.’’

खामोश रहना बेहतर समझ कर मैं खामोश ही रही.

‘‘जवाब नहीं दे सकतीं तुम?’’ करण झुंझलाया था.

‘‘काम खत्म होगा तो आ जाऊंगी,’’ मैं बिना देखे ही बोली.

‘काम का तो बहाना है. हमारी मम्मी ने तो जैसे कभी काम ही न किया हो,’ बड़बड़ाते हुए वह निकल गया.

कितना फर्क है मेरी मम्मी और सास में. मेरी मम्मी मुझ से कहती थीं कि भाभी का हाथ बंटा दे, खाना रख दे. बरतन उठा दे. फ्रिज में पानी की बोतल रख दे. सब को दूध पकड़ा दे. साफ बरतन संभाल दे. इन छोटेछोटे कामों से ही भाभी को इतना वक्त मिल जाता कि वे मम्मी के पास बैठ जातीं.

इन्हीं कामों के लिए भाभी कभी मेरी तारीफ करतीं तो मैं सोचती कि भाभी अपने को ऊंचा साबित करने की कोशिश कर रही हैं. पर नहीं, भाभी ठीक कहती थीं. यहां पर पानी का गिलास भी सब को बिस्तर पर लेटेलेटे पकड़ाओ. फिर नौकर की तरह खड़े रहो खाली गिलास ले जाने के लिए. अगर एक कप व एक बिस्कुट चाहिए तो नौकरों की तरह ट्रे में हाजिर करो. वरना बेशऊरी का खिताब मिलता है और मायके वालों को गालियां.

करण और सास को चाय व ब्रैड रोल्स दे कर हटी तो महेश आ गया. महेश को चाय दे कर हटी तो केतकी आ गई. वह आते ही सो गई. बिस्तर पर ही उसे चायपानी दिया. केतकी के तो औफिस में एक बौस होगा. यहां तो मेरे 4-4 बौस हैं. किसकिस की सेवा करूं. मैं रात का खाना बनाती, खिलाती रही. इन सब का ताश का दौर चलता रहा. रात साढ़े 10 बजे ठहाकों और खुशी से ताश का दौर रुका तो केतकी ने सास के लिए एक गिलास दूध देने का आदेश दिया और सास ने केतकी को देने का. मुझे किसी ने सुबह भी नहीं पूछा था कि दूध लिया या नहीं.

मेरी तो इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि सवा 10 बजे सब को खाना खिला कर मैं बिस्तर पर सो सकती. सुनने को मिल जाता, ‘देखो तो, जरा भी ढंग नहीं है. मांबाप ने सिखाया नहीं है. हम तो यहां बैठे हैं, यह सोने चली गई.’

बिस्तर पर पहुंचतेपहुंचते 11 बज गए. बिस्तर पर लेटी तो पूरा बदन चीसें मार रहा था. तभी करण बोला, ‘‘जरा पीठ दबा दो. बैठेबैठे मेरी पीठ दुख गई,’’ और करण नंगी पीठ मेरी तरफ कर के सो गया.

मन किया कि करण की पीठ पर एक मुक्का दे मारूं या बोल दूं कि जिस मां का मन बहलाने के लिए पीठ दुखाई है, उसी मां से दबवा भी लेते.

बस, यही एक काम बचा था न मेरे लिए? मन ही मन मोटी सी भद्दी गाली दे दी. दिल भी किया कि तीखा जवाब दे दूं. पर याद आया कि कल मायके जाना है. अगर इस का मुंह सूज गया तो यह अपनी मां के आंचल में छिप जाएगा और मैं अपनी मम्मी का चेहरा देखने को भी तरस जाऊंगी. 15 दिनों से भी ज्यादा हो गए मम्मी को देखे हुए.

‘‘कल मायके ले जाओगे न?’’ मैं ने पीठ दबाते हुए कहा.

बड़ी देर के बाद करण के मुंह से निकला, ‘‘ठीक है, दोपहर का खाना जल्दी बना लेना. फिर वापस भी आना है.’’

मैं जलभुन गई यह उत्तर सुन कर. सिर्फ 4 घंटे में आनाजाना और मिलना भी. मजबूरी थी, समझौता कर लिया.

घर पहुंची तो जैसे मम्मी इंतजार कर रही थीं.

‘‘क्या बात है? यह तो जैसे हमें भूल ही गई,’’ भाभी ने प्यार से कहा.

‘‘होना भी चाहिए. आखिर वही घर तो इस का अपना है,’’ करण ने अकड़ कर कहा.

मम्मीभाभी के सामने आते ही आंसू आने लगे थे, मगर मैं रोक लगा गई.

‘‘क्या हुआ???,’’ दोनों हैरान रह गईं मेरी सूरत देख कर.

‘‘कुछ भी नहीं,’’ मैं अपनेआप को रोक रही थी. यहां के लोग मेरे चेहरे से मेरे मन के भाव पढ़ लेते हैं, ससुराल वाले क्यों नहीं पढ़ पाते?

सब ने बहुत आवभगत की. करण को बहुत मान दे रहे थे. मुझे लगा कि करण इन के मान के काबिल नहीं है. लेकिन मजबूरी, मैं कह भी नहीं सकती थी. वापस लौटते वक्त भाभीजी ने बताया कि अच्छा हुआ तुम आज आ गईं. कल वे भी 2 दिनों के लिए मायके जा रही हैं. इस पर करण बोला, ‘‘भाभीजी, शादी से पहले आप इतने साल मायके में ही थीं, फिर मायके क्यों जाती हैं बारबार? अब आप इस घर को ही अपना घर समझा करें.’’ भाभी का चेहरा उतर गया. पता नहीं क्यों, भाभी का उतरा चेहरा मेरे दिल में तीर की तरह वार कर गया.

‘‘आप इतने बड़े नहीं हो कि मेरी बड़ी भाभी को सलाह दे सको. ससुराल को अपना घर समझने का यह मतलब तो नहीं कि भाभी की मम्मी, मम्मी नहीं हैं? उन का अपनी मम्मी के पास बैठने का दिल नहीं करता? दिल सिर्फ लड़कों का ही करता है? लड़कों को हम लोगों की तरह अपना सबकुछ एकदम छोड़ना पड़े तो दर्द महसूस हो.’’

इस अप्रत्याशित जवाब से करण का चेहरा फक हो गया. मेरे भीतर जाने कब का सुलगता लावा बाहर आ गया था. खामोशी छा गई. भाभी मेरा चेहरा देखती रह गईं. मम्मी के चेहरे पर पहले हैरानगी, फिर तसल्ली के भाव आ गए.

बाहर आ कर करण स्कूटर स्टार्ट कर चुका था. मैं मम्मी के गले मिली तो लगा, मैं जाने कब से बिछुड़ी हुई हूं. ममता का एहसास होते ही मेरी आंखों से पानी बाहर आ गया.

मम्मी प्यार से बोलीं, ‘‘मन्नो, बड़ी हो गई है न?’’

मुझे लगा, मैं ने वर्षों बाद अपना नाम सुना है.

भाभी ने भी आज पहली बार ममता भरे आलिंगन में मुझे भींच लिया और रो पड़ी थीं. उन के आंसू मेरे दिल को भिगो रहे थे. मेरे भैया और पापा की आंखों में भी प्रशंसा थी. मुझे उन की ममता और प्यार की ताकत मिल गई थी. स्कूटर पर बैठ कर भी अब मैं सिर्फ भाभी और मम्मी के आंसुओं के साथ थी. बच्चों के मुखसे हमारी 5 वर्षीय पोती अरबिया के सिर में जुएं थीं. उस के सिर से उस की मम्मा जुएं निकाल रही थी. पहली जूं निकालते ही उस ने पूछा, ‘‘यह क्या है मम्मा?’’ उस की मम्मा बोलीं, ‘‘जूं है.’’ दूसरी पर भी उस ने वही सवाल किया. उस की मम्मा ने वही जवाब दोहराया, ‘‘जूं है.’’ तीसरी पर जब उस ने पूछा, ‘‘यह क्या है?’’ तो उस की मम्मा बोलीं, ‘‘लीख है.’’

‘‘लीख क्या होती है?’’ भोलेपन से उस ने अपनी मम्मा से पूछा.

‘‘जूं की बेबी,’’ मम्मा के इस उत्तर पर अरबिया तपाक से पूछ बैठी, ‘‘मम्मा, जूं को बेबी हुई तो उस की मम्मा की डिलीवरी हुई होगी. डिलीवरी हुई तो डाक्टर भी होंगे. तो क्या मेरा सिर अस्पताल है?’’

उस की बात पर हम सब ठहाके मारमार कर हंसने से खुद को नहीं

रोक सके.   शब्बीर दाऊद (सर्वश्रेष्ठ)

मेरा 8 वर्षीय बेटा अर्चित काफी बातूनी है. वह जब भी बाथरूम में जाता तो वहां का दरवाजा बहुत अधिक टाइट होने के कारण उस से मुश्किल से ही बंद हो पाता था. ऐसे ही एक दिन एक बार फिर जब वह दरवाजा उस से ठीक से नहीं बंद हुआ तो कहने लगा, ‘‘मैं जब बड़ा हो कर अपना घर बनाऊंगा तो पूरे घर में स्क्रीन टच दरवाजे लगवाऊंगा ताकि वे बिना हाथ लगाए ही खुल जाएं.’’

उस की बात सुन कर हम सभी को बड़ी हंसी आई और उस की होशियारी अच्छी भी लगी. मेरी पत्नी नीता गैस्ट्रिक की वजह से कुछ अस्वस्थ व परेशान सी दिख रही थी. पूछने पर बोली, ‘‘गैस निकालने की कोशिश कर रही हूं जिस से पेट हलका हो कर सामान्य सा हो जाए.’’ यह सुन कर मेरा 3 वर्षीय बेटा हर्षित तपाक से बोला, ‘‘सिलैंडर कई दिनों से खाली पड़ा है, तो फिर आप उस में गैस भर दीजिए न.’’

दरअसल, उन दिनों गैस की काफी किल्लत हो रही थी. यह सुन कर हम लोग काफी देर तक हंसते रहे. फिर बाद में उसे समझाया.

Best Hindi Story : अफवाह के चक्कर में

Best Hindi Story : जैसे ही बड़े साहब के कमरे में छोटे साहब दाखिल हुए, बड़े साहब हत्थे से उखड़ पड़े, ‘‘इस दीवाली पर प्रदेश में 2 अरब की मिठाई बिक गई, आप लोगों ने व्यापार कर वसूलने की कोई व्यवस्था ही नहीं की. करोड़ों रुपए का राजस्व मारा गया और आप सोते ही रह गए. यह देखिए अखबार में क्या निकला?है? नुकसान हुआ सो हुआ ही, महकमे की बदनामी कितनी हुई? पता नहीं आप जैसे अफीमची अफसरों से इस मुल्क को कब छुटकारा मिलेगा?’’

बड़े साहब की दहाड़ सुन कर स्टेनो भी सहम गई. उस के हाथ टाइप करतेकरते एकाएक रुक गए. उस ने अपनी लटें संभालते हुए कनखियों से छोटे साहब के चेहरे की ओर देखा, वह पसीनेपसीने हुए जा रहे थे. बड़े साहब द्वारा फेंके गए अखबार को उठा कर बड़े सलीके से सहेजते हुए बोले, ‘‘वह…क्या है सर? हम लोग उस से बड़ी कमाई के चक्कर में पड़े हुए?थे…’’

उन की बात अभी आधी ही हुई थी कि बड़े साहब ने फिर जोरदार डांट पिलाई, ‘‘मुल्क चाहे अमेरिका की तरह पाताल में चला जाए. आप से कोई मतलब नहीं. आप को सिर्फ अपनी जेबें और अपने घर भरने से मतलब है. अरे, मैं पूछता हूं यह घूसखोरी आप को कहां तक ले जाएगी? जिस सरकार का नमक खाते हैं उस के प्रति आप का, कोई फर्ज बनता है कि नहीं?’’

यह कहतेकहते वह स्टेनो की तरफ मुखातिब हो गए, ‘‘अरे, मैडम, आप इधर क्या सुनने लगीं, आप रिपोर्ट टाइप कीजिए, आज वह शासन को जानी है.’’

वह सहमी हुई फिर टाइप शुरू करना ही चाहती थी कि बिजली गुल हो गई. छोटे साहब और स्टेनो दोनों ने ही अंधेरे का फायदा उठाते हुए राहत की कुछ सांसें ले डालीं. पर यह आराम बहुत छोटा सा ही निकला. बिजली वालों की गलती से इस बार बिजली तुरंत ही आ गई.

‘‘सर, बात ऐसी नहीं थी, जैसी आप सोच बैठे. बात यह थी…’’ छोटे साहब ने हकलाते हुए अपनी बात पूरी की.

‘‘फिर कैसी बात थी? बोलिए… बोलिए…’’ बड़े साहब ने गुस्से में आंखें मटकाईं. स्टेनो ने अपनी हंसी को रोकने के लिए दांतों से होंठ काट लिए, तब जा कर हंसी पर कंट्रोल कर पाई.

‘‘सर, हम लोग यह सोच रहे थे कि मिठाई की बिक्री तो 1-2 दिन की थी, जबकि फल और सब्जियों की बिक्री रोज होती है, पापी पेट भरने के लिए सब्जियां खरीदा जाना आम जनता की विवशता है. तो क्यों न उस पर…’’

इतना सुनना था कि बड़े साहब की आंखों में चमक आ गई, वह खुशी से उछल पडे़, ‘‘अरे, वाह, मेरे सोने के शेर. यह बात पहले क्यों नहीं बताई? अब आप बैठ जाइए, मेरी एक चाय पी कर ही यहां से जाएंगे,’’ कहतेकहते फिर स्टेनो की तरफ मुड़े, ‘‘मैडम, जो रिपोर्ट आप टाइप कर रही?थीं, उसे फाड़ दीजिए. अब नया डिक्टेशन देना पड़ेगा. ऐसा कीजिए, चाय का आर्डर दीजिए और आप भी हमारे साथ चाय पीएंगी.’’

अगले दिन से शहर में सब्जियों पर कर लगाने की सूचना घोषित कर दी गई और उस के अगले दिन से धड़ाधड़ छापे पड़ने लगे. अमुक के फ्रिज से 9 किलो टमाटर निकले, अमुक के यहां 5 किलो भिंडियां बरामद हुईं. एक महिला 7 किलो शिमलामिर्च के साथ पकड़ी गई?थी, पर 2 किलो के बदले में उसे छोड़ दिया. जब आईजी से इस बाबत बात की गई तो पता चला कि वह सब्जी बेचने वाली थी, उस ने लाइसेंस के लिए केंद्रीय कार्यालय में अरजी दी हुई है. शहर में सब्जी वालों के कोहराम के बावजूद अच्छा राजस्व आने लगा. बड़े साहब फूले नहीं समा रहे थे.

एक दिन बड़े साहब सपरिवार आउटिंग पर थे. आफिस में सूचना भेज दी थी कि कोई पूछे तो मीटिंग में जाने की बात कह दी जाए. छोटे साहब और स्टेनो, दोनों की तो जैसे लाटरी लग गई. उस दिन सिवा चायनाश्ते के कोई काम ही नहीं करना पड़ा. अभी हंसीमजाक शुरू ही हुआ था कि चपरासी ने उन्हें यह कह कर डिस्टर्ब कर दिया कि कोई मिलने आया है.

छोटे साहब ने कहा, ‘‘मैं देख कर आता हूं,’’ बाहर देखा तो एक नौजवान अच्छे सूट और टाई में सलाम मारता मिला. उसे कोई अधिकारी जान छोटे साहब ने अंदर आने का निमंत्रण दे डाला. उस ने हिचकिचाते हुए अपना परिचय दिया, ‘‘मैं छोटामोटा सब्जी का आढ़ती हूं. इधर से गुजर रहा था तो सोचा क्यों न सलाम करता चलूं,’’ यह कहते हुए वह स्टेनो की ओर मुखातिब हुआ, ‘‘मैडम, यह 1 किलो सोयामेथी आप के लिए?है और ये 6 गोभी के फूल और 2 गड्डी धनिया, छोटे साहब आप के लिए.’’

छोटे साहब ने इधरउधर देखा और पूछा, ‘‘बड़े साहब के लिए?’’

उस ने दबी जबान से बताया, ‘‘एक पेटी टमाटर उन के घर पहुंचा आया हूं.’’

बड़े साहब की रिपोर्ट शासन से होती हुई जब अमेरिका पहुंची तो वहां के नए राष्ट्रपति ने ऐलान किया कि अगर लोग हिंदुस्तान की सब्जी मार्किट में इनवेस्ट करना शुरू कर दें तो वहां के स्टाक मार्किट में आए भूचाल को समाप्त किया जा सकता है.

एक अखबार ने हिंदुस्तान की फुजूलखर्ची पर अफसोस जताते हुए खबर छापी, ‘‘अगर चंद्रयान के प्रक्षेपण पर खर्च किए धन को सब्जी मार्किट में लगा दिया जाता तो उस के फायदे से लेहमैन जैसी 100 कंपनियां खरीदी जा सकती थीं.’’

जैसे आयकर के छापे पड़ने से बड़े लोगों के सम्मान में चार चांद लगते हैं, बड़ेबड़े घोटालों के संदर्भ में छापे पड़ने से राजनीतिबाज गर्व का अनुभव करते हैं, आपराधिक मुकदमों की संख्या देख कर चुनावी टिकट मिलने की संभावना बढ़ती है वैसे ही सब्जी के संदर्भ में छापे पड़ने से सदियों से त्रस्त हम अल्पआय वालों को भी सम्मान मिल सकता है, यह सोच कर मैं ने भी अपने महल्ले में अफवाह उड़ा दी कि मेरे घर में 5 किलो कद्दू है.

छापे के इंतजार में कई दिन तक कहीं बाहर नहीं निकला. अपनी गली से निकलने वाले हर पुलिस वाले को देख कर ललचाता रहा कि शायद कोई आए. मेरा नाम भी अखबारों में छपे. 15 दिन की प्रतीक्षा के बाद जब मैं यह सोचने को विवश हो चुका था कि कहीं कद्दू को बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) में तो नहीं रख दिया गया? तभी एक पुलिस वाला आ धमका. मेरी आंखों में चमक आ गई. मैं ने बीवी को बुलाया, ‘‘सुनती हो, इन को कद्दू ला के दिखा दो.’’

बीवी मेरे द्वारा बताए गए दिशा- निर्देशों के अनुसार पूरे तौर पर सजसंवर कर…बड़े ही सलीके से 250 ग्राम कद्दू सामने रखती हुई बोली, ‘‘बाकी 15 दिन में खर्च हो गयाजी.’’

पुलिस वाले ने गौर से देखा कि न तो चायपानी की कोई व्यवस्था थी और न ही मेरी कोई मुट्ठी बंद थी. उस की मुद्रा बता रही थी कि वह मेरी बीवी के साजशृंगार और मेरे व्यवहार, दोनों ही से असंतुष्ट था. वह मेरी तरफ मुखातिब हो कर बोला, ‘‘आप को अफवाह फैलाने के अपराध में दरोगाजी ने थाने पर बुलवाया है.’’

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