विशाखा और सौरभ एकसाथ कालेज में पढ़ते थे. कालेज के अंतिम वर्ष तक आतेआते उन दोनों की मित्रता बहुत गहरी हो गई थी. विशाखा एक संपन्न परिवार की इकलौती बेटी थी. वह नाजों से पलीबढ़ी. उस के उच्चशिक्षण के लिए उस का दाखिला दूसरे शहर के एक अच्छे कालेज में करा दिया गया. विशाखा का विवाह पहले से ही उस के बाबूजी के मित्र के बेटे के साथ तय हो चुका था. सौरभ विशाखा की विवाह तय होने की बात से भलीभांति परिचित था. एक दिन सौरभ ने विशाखा से कहा कि वह उसे पसंद करता है और विवाह करना चाहता है. विशाखा सौरभ की बातों से बिलकुल सहमत नहीं थीं.

वह असहमति जता कर वहां से चली गई. परीक्षा का अंतिम दिन था. सौरभ ने अंतिम परचे के बाद विशाखा से साथ चलने को कहा. विशाखा अपने मित्र के साथ चलने को सहर्ष ही तैयार हो गई. सौरभ ने विशाखा के सामने एक बार फिर विवाह का प्रस्ताव रखा और कहा कि तुम किसी और से विवाह करो, ठीक नहीं होगा. विशाखा असहमति जताते हुए सौरभ से कुछ कह पाती, इतने में 2 बाइक सवार विशाखा के मुंह पर एसिड फेंक कर भाग गए. उस के बाद सौरभ भी चला गया. विशाखा वहां दर्द और जलन से तड़प रही थी. वहां कोई नहीं था उस की मदद के लिए.

थोड़ी ही देर में सौरभ आया और उसे अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. विशाखा हमेशा के लिए अपनी आंखें खो चुकी थी, चेहरा बुरी तरह से ?ालस गया था. विशाखा के पिता के दोस्त, जिन के बेटे से विशाखा की शादी तय हुई थी, सपरिवार आए विशाखा से मिलने. विशाखा को देख कर शादी से इनकार करते हुए बोले, ‘‘हमें कुरूप और अंधी बहू नहीं लेनी, क्षमा करें. उम्रभर हम एक अंधी लड़की की सेवा का भार नहीं उठा सकते.’’ रिश्ता तोड़ कर वे लोग चले गए.

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