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दहशत- भाग 4 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘यह क्या हुआ, चौकीदार?’’ उस ने घबराए स्वर में पूछा.

‘‘जो भी हुआ है फर्स्ट फ्लोर पर ही हुआ है साहब, ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सिर पर ही कुछ गिरा है,’’ चौकीदार ने सिर सहलाते हुए कहा.

‘‘तुम्हारे सिर पर तो डा. राघव का फ्लैट है,’’ किसी ने कहा, ‘‘चल कर देखिए डाक्टर साहब.’’

‘‘आप लोग भी चलिए न,’’ डा. राघव ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘राजू तो घर में होगा साहब.’’

‘‘शायद नहीं, उसे खाना लाने बाजार जाना था,’’ राघव ने सीढि़यां चढ़ते हुए कहा. तभी न जाने कहां से गौरव आ गया, ‘‘क्या हुआ यार, सुना है प्रीति चावला वाला अदृश्य मानुष अपने घर में घुस आया है.’’

राघव ने डरतेडरते  ताला खोला, कमरे में अंधेरा था, ‘‘चौकीदार, टौर्च मिलेगी?’’ ‘‘डर मत यार, मैं अंदर जा कर लाइट जलाता हूं,’’ गौरव ने आगे बढ़ कर लाइट जलाई. उस के पीछे और सब भी कमरे में आ गए. कमरे में ज्यादा सामान नहीं था. डाइनिंगटेबल के पास रखा साइडबोर्ड जमीन पर औंधा पड़ा था और उस में रखे चीनी व कांच के समान के टुकड़े दूरदूर तक फर्श पर बिखरे हुए थे. ‘‘इतना भारी साइडबोर्ड अपने से तो गिर नहीं सकता. जरूर कोई इस से अंधेरे में टकराया है, कमरों में देखो, जरूर कोई छिपा हुआ होगा.’’

‘‘कमरे तो सब बाहर से बंद हैं मित्तल साहब, परदों के पीछे या किचन में होगा,’’ राघव ने कहा.

‘‘वह भाग चुका है राघव, बालकनी का दरवाजा खुला हुआ है. उस से कूद कर भाग गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘लेकिन कूदता हुआ नजर तो आता, बहुत लोग टहल रहे हैं कंपाउंड में.’’

‘‘मेन रोड पर, यहां हैज के पीछे अंधेरे में कौन आता है या इधर देखता भी है,’’ गौरव बोला.

‘‘लेकिन गौरव, सुबह मैं सब के बाद गया था. और मैं ने जाने से पहले बालकनी का दरवाजा भी बंद किया था,’’ राघव ने कहा.

‘‘मैं थोड़ी देर पहले आया था राघव, कुछ क्रिस्टल ग्लास टम्बलर ले कर. उन्हें राजू से धुलवा कर साइडबोर्ड में सजाने और राजू को बाजार भेजने के बाद मैं बालकनी में आ कर खड़ा हो गया था. फिर कपड़े बदलने जाने की जल्दी में मैं बगैर बालकनी बंद किए मेनगेट बंद कर के अपने घर जा रहा था कि आधे रास्ते में ही शोर सुन कर वापस आ गया,’’ गौरव ने कहा.

‘‘आप के पास भी यहां की चाबी है?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘आटोमैटिक लौक को बंद करने के लिए चाबी की जरूरत नहीं होती…’’ इस से पहले कि गौरव अपनी बात पूरी कर पाता, घबराई और उस से भी ज्यादा हड़बड़ाई सी प्रीति आ गई.

‘‘यह मैं क्या सुन रही हूं?’’

‘‘जो सुना वह देख भी लीजिए,’’ गौरव ने हंसते हुए फर्श पर बिखरे कांच की ओर इशारा किया.

‘‘ओह नो, मेरे यहां तो खैर कुछ नुकसान नहीं हुआ था लेकिन…’’

‘‘इस में से कुछ तो बहुत महंगा और बिलकुल नया सामान था जो गौरव ने आज ही खरीदा था और कुछ देर पहले शोकेस में सजाया था,’’ राघव ने प्रीति की बात काटी. ‘‘क्या बात है डा. गौरव, नई क्रौकरी की खरीदारी, बाहर से खाना मंगवाना कोई खास दावतवावत है?’’ एक प्रश्न उछला.

‘‘इन फालतू सवालों के बजाय हम मुद्दे की यानी चोरी की बात क्यों नहीं करते मित्तल साहब?’’ किसी ने तल्ख स्वर में कहा. ‘‘उस की बात क्या करेंगे?’’ गौरव ने कंधे उचकाए, ‘‘बालकनी का दरवाजा खुला छोड़ कर जाने की लापरवाही मैं मान ही रहा हूं, चौकीदार ने मेनगेट तभी बंद करवा दिया था, अब चोर कहां भाग कर गया, यह तो सोसायटी के कर्ताधर्ता ही सोचेंगे. हमें तो यह सोचना है कि रात के खाने का क्या करें, किचन में जाने का रास्ता तो कांच से अटा पड़ा है.’’ ‘‘फिक्र मत कर यार, राजू कुछ खाना बना गया है और कुछ ले कर आता ही होगा. आ कर टूटा हुआ कांच हटा देगा,’’ राघव ने कहा फिर सब की ओर देख कर बोला, ‘‘माफ करिएगा, आप को बैठने को नहीं कह सकते क्योंकि इतनी कुरसियां ही नहीं हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं, हम चलते हैं,’’ कह कर सब चलने लगे और उन के साथ ही प्रीति भी, गौरव उसे रोकने के बजाय उस के साथ ही चल दिया.

‘‘आप कहां चल दिए डा. गौरव, बगैर खाना खाए?’’ मित्तल ने पूछा.

‘‘घर कपड़े बदलने, मैं अस्पताल के कपड़ों में खाना नहीं खाता.’’

‘‘खाना खाने का मूड रहा है अब?’’ प्रीति ने धीरे से पूछा.

‘‘एक डाक्टर होने के नाते मूड के लिए न तो खुद खाना छोड़ता हूं और न किसी को छोड़ने देता हूं,’’ गौरव मुसकराया, ‘‘आप भी चेंज कर लीजिए, फिर वापस आते हैं एफ-1 में.’’

कुछ देर के बाद गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘एक प्रौब्लम हो गई है प्रीतिजी, खाना तो सब तैयार है लेकिन उसे परोसेंगे किस में? आप बुरा न मानें तो खाना यहीं मंगवा लूं मगर मेरे पास भी बरतन नहीं हैं, आप के यहां ही आना पड़ेगा.’’

‘‘तो आइए न डा. राघव और दूसरे मेहमानों से भी मेरी ओर से आने का आग्रह कीजिए.’’ ‘‘दूसरे मेहमान हमारे सीनियर डाक्टर थे, सो उन्हें असलियत बता कर राघव ने माफी मांग ली है. जो डाक्टर राघव के साथ रहते हैं उन दोनों की आज नाइट शिफ्ट है. सो, बस राघव ही आएगा. माफ करिएगा, मेहमान के बजाय आप को मेजबान बना रहा हूं.’’

‘‘माई प्लैजर डाक्टर, डू कम प्लीज.’’ कुछ देर के बाद गौरव और राघव राजू के साथ खाने का सामान उठाए हुए आ गए.

‘‘राजू को रोक लें, खाना गरम कर के सर्व कर देगा?’’

‘‘हां, फिर खुद भी खा लेगा. चलो, राजू तुम्हें बता दूं कि कहां क्या रखा है.’’ राजू को सब समझा कर प्रीति भुने पिस्ते और काजू ले कर आई, ‘‘जब तक राजू सूप गरम कर के लाता है तब तक इस से टाइमपास करते हैं.’’ ‘‘गुड आइडिया,’’ राघव ने पिस्ते उठाते हुए कहा, ‘‘वैसे आप दोनों ने इस कालोनी के लोगों को कई रोज के लिए टाइमपास का जरिया दे दिया.’’ लेकिन हंसने के बजाय प्रीति ने गंभीरता से कहा, ‘‘टाइमपास से ज्यादा बात फिक्र करने की है. आज जो हुआ है उस से तो लग रहा है कि चोर कालोनी में ही रहता है.’’ ‘‘वह तो आप के साथ हुए हादसे से ही पता चल गया था,’’ गौरव ने गौर से उस की ओर देखा. वह सहमी हुई सी लग रही थी.

‘‘आज भी उस ने यह हरकत की और मौका लगते ही फिर कर सकता है,’’ राघव बोला.

‘‘यानी हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा. शुंभ से कहती हूं कोई फुलटाइम नौकरानी तलाश करे मेरे लिए जो रात में भी मेरे यहां रहे,’’ प्रीति ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा, इस से आप का अकेलापन भी दूर होगा,’’ गौरव ने प्रीति के मनोभाव पढ़ने की कोशिश की, ‘‘थकेहारे काम से खाली घर में लौटने पर थकान और बढ़ जाती है.’’

‘‘यू कैन से दैट अगेन,’’ प्रीति ने उसांस ले कर कहा.

‘‘अकेलेपन से परेशानी है तो अकेलापन दूर करने का स्थायी प्रबंध क्यों नहीं करते आप दोनों…’’

‘‘क्यों, आप को अकेलेपन से परेशानी नहीं है?’’ प्रीति ने राघव की बात काटी.

‘‘होनी शुरू हो गई थी तभी तो मधु से उस की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही शादी कर ली. वह लखनऊ में एमडी कर रही है, चंद महीनों में पूरी कर के यहां आएगी.’’

‘‘और तब राघव के घर में चलने वाला हमारा मैस बंद हो जाएगा,’’ गौरव ने कहा.

‘‘तो अपने घर में चला लीजिएगा, आप के 2 साथी और भी तो हैं.’’ इस से पहले कि गौरव प्रीति के सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता, राजू सूप ले कर आ गया और विषय बदल गया.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ राघव ने चलने से पहले कहा, ‘‘मधु की मुलाकात करवाऊंगा आप से.’’

‘‘जरूर, उन की वैलकम पार्टी यहीं रख लेंगे, क्यों गौरव?’’

‘‘दैट्स एन आइडिया,’’ गौरव फड़क कर बोला. प्रीति के मुंह से अपना नाम सुन कर वह अभिभूत हो गया था. किसी भी तरह इस अनौपचारिकता को आगे बढ़ाना होगा. उसे राघव पर भी गुस्सा आया. क्यों उस ने राजू से टेबल और किचन साफ करवा दिया वरना इसी बहाने प्रीति की मदद करने को वह कुछ देर और रुक जाता. अब तो खैर जाना ही पड़ेगा मगर जल्दी ही कोई और मौका ढूंढ़ना होगा. और मौका अगले रोज ही मिल गया. सोसायटी के क्लबहाउस में शाम को इमरजैंसी मीटिंग रखी गई थी जिस में प्रत्येक फ्लैट से एक सदस्य का आना अनिवार्य था. गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘जिन हादसों से घबरा कर मीटिंग रखी गई है उन के शिकार तो हम दोनों ही हैं तो हमारा जाना तो जरूरी है. आप चल रही हैं?’’

‘‘जी हां, और आप?’’

‘‘मैं भी चल रहा हूं. इकट्ठे ही चलते हैं.’’ गौरव ने सोचा तो था कि इकट्ठे ही बैठेंगे मगर लिफ्ट में वर्मा दंपती भी मिल गए, प्रीति श्रीमती वर्मा के साथ चलते हुए उन्हीं के साथ ही अन्य महिलाओं के पास बैठ गई. प्रीति से तो किसी ने कुछ नहीं पूछा लेकिन गौरव की स्वयं की लापरवाही मानने पर भूषणजी ने कहा कि ऐसी गलती किसी से भी हो सकती है, सो बेहतर होगा कि पहले माले की सभी बालकनियों में ऊपर तक ग्रिल लगवा दी जाए और हरेक बिल्डिंग के गेट पर सीसीटीवी कैमरा. अधिकांश लोगों ने तो प्रस्ताव का अनुमोदन किया और कुछ ने महंगाई के बहाने अतिरिक्त खर्च का विरोध किया मगर सुरक्षा का कोई दूसरा विकल्प न होने से प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया और मीटिंग खत्म. गौरव ने सुना, कुछ महिलाएं प्रीति से कह रही थीं, ‘‘चोर के बहाने उस रोज आप के यहां बढि़या पकौड़े खाने को मिल गए.’’

‘‘पकौड़ों की दावत तो आप को जब चाहे दे सकती हूं.’’ ‘‘मगर उस से पहले आप को हमारे यहां आना पड़ेगा,’’ किसी ने कहा. ‘‘बुध को मेरे यहां किटी पार्टी है न, उस में प्रीति को बुला लेते हैं,’’ श्रीमती वर्मा बोलीं, ‘‘हमारी खातिर एक रोज छुट्टी कर लेना प्रीति.’’

‘‘आप पार्टी का समय बता दीजिए, मैं आ जाऊंगी और पार्टी खत्म होने पर फिर औफिस चली जाऊंगी,’’ प्रीति हंसी.

‘‘ऐसी बात है तो आप हमारी किटी जौइन कर लीजिए न. महीने में 1 बार कुछ घंटों का बंक मारना तो चलता है.’’ ‘‘देखते हैं,’’ प्रीति ने वर्मा दंपती के साथ चलते हुए कहा. कुछ दूर जा कर वर्मा दंपती एक और बिल्ंिडग में चले गए और गौरव लपक कर प्रीति के साथ आ गया.

‘‘आप डा. राघव के साथ नहीं गए?’’

‘‘उस के साथ जा कर क्या करता? वह तो अभी मधु से चैट करेगा. खाना तो हम लोग 9 बजे के बाद खाते हैं.’’

‘‘अभी घर जा कर क्या करेंगे?’’

‘‘चैनल सर्फिंग, जब तक कुछ दिलचस्प न मिल जाए. आप क्या करेंगी?’’

‘‘वही जो आप करेंगे. उस से पहले आप को कौफी पिला देती हूं.’’

‘‘जरूर,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘चोर के बहाने आप की तो कालोनी में जानपहचान हो गई, किटी पार्टी में जाने से और भी हो जाएगी,’’ गौरव ने कौफी पीते हुए प्रीति की ओर देखा, ‘‘खाली समय आसानी से कट जाया करेगा.’’ प्रीति के अप्रतिभ चेहरे से लगा जैसे चोरी करती रगेंहाथों पकड़ी गई हो. ‘‘उन महिलाओं का जो खाली समय होगा तब मुझे फुरसत नहीं होगी और जब मैं खाली हूंगी तो वे अपने घरपरिवार में व्यस्त होंगी,’’ प्रीति ने एक गहरी सांस खींची, ‘‘वैसे जानपहचान तो आप से भी हो गई है.’’ ‘‘और मेरे पास तो शाम को खाली वक्त भी होता है. अस्पताल से 7 बजे छुट्टी मिल जाती है. कई बार घर आ कर 9 बजे तक टाइम गुजारना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कभी फोन कर सकता हूं?’’ गौरव ने मौका लपका.

‘‘औफिस से जल्दी निकलने पर अकसर मैं मैडिटेशन सैंटर चली जाती हूं. सो, हो सकता है तब आप को मेरा मोबाइल बंद मिले.’’

‘‘अपने घर में सन्नाटा कम है क्या जो शांति की तलाश में मैडिटेशन सैंटर जाती हैं?’’ गौरव हंसा.

‘‘अपने पास जो होता है उस की कद्र कौन करता है?’’ प्रीति भी हंसने लगी.

‘‘यह तो है, पहले बंधन और रिश्तों से बचने के लिए अपनों को नकारते हैं और फिर भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं.’’

‘‘सही कहा आप ने, अपनों की भीड़ तो चौराहों से अपनी राह चली जाती और आप तनहा खड़े रह जाते हैं खुद की बनाई बंद गली में.’’ ‘बंद ही नहीं, अंधेरी गली में जिस की घुटन से घबरा कर आप ने खुद सामान को गिरा कर एक काल्पनिक चोर का निर्माण किया था और दहशत का माहौल बना दिया था जिस की सचाई जानने को मैं ने अपनी और राघव की क्रौकरी तोड़ी, पहली मंजिल से कूदने का रिस्क लिया. भले ही इस सब से कालोनी वालों का आजकल के माहौल के किए उपयुक्त सुरक्षा मिल गई और आप को थोड़ी बहुत दोस्ती,’  गौरव ने कहना चाहा मगर यह सोच कर चुप रहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. कोशिश तो यही रहेगी कि ये सब बगैर बताए ही प्रीति के करीब आ कर उस की और अपनी जिंदगी से अकेलेपन की वीरानगी और दहशत हमेशा के लिए दूर कर दें.

 

दहशत- भाग 3 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘यानी वह काफी देर रहा आप के फ्लैट में?’’ ‘‘जी हां, सुबह मेरी नौकरानी जब नीचे प्रैस वाली को कपड़े देने जाती है तो दरवाजा खुला ही छोड़ जाती है, उसी समय कोई घुस आया होगा और परदे के पीछे छिप गया होगा. इत्तफाक से आज नौकरानी के वापस आने से पहले ही मैं तैयार हो गई थी. सो, ताला लगा कर नीचे चली गई और बेचारा चोर अंदर ही बंद हो गया.’’

‘‘फिर आराम से खातापीता रहा,’’ गौरव हंसा, ‘‘सुरक्षा बढ़ाने की बात हुई?’’

‘‘हां, प्रत्येक बिल्ंिडग में विजिटर्स को रजिस्टर में साइन करना होगा. सब का यही मानना है कि उस रोज कालोनी से ही कोई मेरे घर में आया था, रात को वह जो भी चाहता था उस का वह मंसूबा तो मैं ने अनजाने में चिल्ला कर सत्यानाश कर ही दिया और आप सब के आने पर वह परदे के पीछे से निकल कर भीड़ में शामिल हो गया. खैर, सिक्योरिटी को ले कर तो सभी चिंतित हैं और फिलहाल विजिटर्स बुक रखना सही कदम है. मगर सब से मजेदार थी छींटाकशी. नीलिमाजी का कहना था कि लोगों को अपने घरेलू नौकरों पर नजर रखनी चाहिए और उन की हरकतों की जिम्मेदारी भी उठानी चाहिए. उन के खयाल से किसी का घरेलू नौकर ही मेरे घर में घुसा था. शनिवार को बहुत से नौकरों की छुट्टी रहती है. इस पर ऊषाजी ने कहा कि घरेलू नौकर तो छुट्टी के रोज नींद पूरी करते हैं, लेकिन अमीर लोगों के जवान होते बच्चों को दूसरों के घरों में घुसने की बीमारी होती है, उन पर खास नजर रखनी चाहिए.

इस पर इतनी कांयकांय मची कि पूछिए मत.’’ प्रीति को खिलखिलाते देख कर गौरव को बहुत अच्छा लगा और वह भी हंस पड़ा, ‘‘आप के यहां आने से पहले एक बार गाडि़यों में से स्टीरियो और पैट्रोल चोरी होने लगा था. तब रात को कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार नहीं थे. चोर बड़ी सफाई से गाडि़यों के ताले खोलता था. एक रात कुत्ते की तबीयत खराब होने पर ऊषाजी और उन के पति कुत्ते को कारपार्किंग के पास टहला रहे थे कि अचानक अपनी गाड़ी के पास चोर को देख कर कुत्ता भौंकने लगा. ऊषाजी के पति ने लपक कर उसे पकड़ लिया. वह कालोनी में ही रहने वाले आहूजा का बेटा दिलीप था. उस के हाथ में पेचकस भी था. उस ने अपनी सफाई में कहा कि अपनी गाड़ी से निकलते समय उस के हाथ से छिटक कर पेचकस दूर जा गिरा था और अब टौर्च ले कर वह उसे ढूंढ़ने आया था. यह पूछने पर कि आधी रात को क्यों, उस ने जवाब में कहा कि जब वे आधी रात को अपना कुत्ता घुमा सकते हैं तो वह अपना स्क्रूड्राइवर क्यों नहीं ढूंढ़ सकता. खैर, ऊषाजी ने जो देखा था वह मीटिंग में बता दिया. तब श्रीमती आहूजा ने कारपार्किंग के पास कुत्तों के घुमाने पर रोक लगवानी चाही थी.’’

शुंभ कई तरह के गरम पकौड़े ले कर आया. गौरव को पकौड़े बहुत पसंद आए.

‘‘शुंभ ने बनाए हैं, ही इज एन एक्सेलैंट कुक.’’

‘‘आप ही के पास काम करता है?’’

‘‘मेरा ड्राइवर है और लोकल गार्जियन भी. कई साल से मम्मीपापा के पास खाना पकाता था. फिर मैं ने ड्राइविंग सिखवा कर अपनी कंपनी में लगवा दिया. जब भी जरूरत पड़ती है तो खाना भी बना देता है.’’ शुंभ जब खाली बरतन उठा रहा था तो फोन की घंटी बजने पर प्रीति बैडरूम में चली गई. गौरव से पकौड़ों की तारीफ सुनने पर शुंभ ने सकुचाए स्वर में कहा, ‘‘थैंक यू सर, डरतेडरते बनाए थे बहुत दिनों के बाद, किचन का काम करने की आदत छूट गई है.’’

‘‘क्यों, मैडम खाना नहीं बनवातीं?’’

‘‘जब कभी पार्टी हो तभी. और आज तो अरसे बाद पार्टी हुई है.’’

‘‘मैडम बहुत बिजी रहने लगी हैं?’’

‘‘वे तो हमेशा से ही हैं मगर अब सब सहेलियां दोस्त शादी कर के अपनीअपनी घरगृहस्थी में मगन हो गए हैं. किसी को दूसरों के घर आनेजाने की फुरसत ही नहीं है. पहले तो बगैर पार्टी के भी बहुत आनाजाना रहता था पर अब कोई बुलाने पर भी नहीं आता,’’ शुंभ के स्वर की व्यथा गौरव को बहुत गहरी लगी, ‘‘आजकल तो काम के बाद टीवी देख कर ही समय गुजारती हैं.’’ तभी प्रीति आ गई, ‘‘माफ करिएगा, आप को इंतजार करना पड़ा. लंदन से मम्मीपापा का फोन था. सो, बीच में रखना ठीक नहीं समझा.’’

‘‘आप के मम्मीपापा लंदन में हैं?’’

‘‘जी हां, मेरी डाक्टर बहन के पास. छुटकी अकेली है, सो ज्यादातर उसी के पास रहते हैं.’’

‘‘अकेली तो आप भी हैं,’’ गौरव के मुंह से बेसाख्ता निकल पड़ा. ‘‘यहां और वहां के अकेलेपन में बहुत फर्क है. वैसे यहां भी अब लोग स्वयं में ही व्यस्त रहने लगे हैं. एक कप गरम चाय और चलेगी?’’

‘‘जी नहीं, अब चलूंगा. पकौड़े बहुत खा लिए हैं, सो एफ-1 में बताना भी है कि मैं आज रात को खाना नहीं खाऊंगा. डा. राघव के यहां हम कुछ दोस्त एक नौकर से खाना बनवाते हैं.’’

‘‘खाने के बहाने दोस्तों से गपशप भी हो जाती होगी.’’

‘‘जी हां, और दोस्तों को भी बुलाते रहते हैं. एक रोज आप को भी बुलाऊंगा.’’ इस से पहले कि वह खुद को रोकता, शब्द उस के मुंह से निकल चुके थे लेकिन प्रीति ने बुरा मानने के बजाय सहज भाव से कहा, ‘‘जरूर, मुझे इंतजार रहेगा उस रोज का.’’

‘‘ठीक है, मिलते हैं फिर,’’ कह कर गौरव ने विदा ली. राघव के घर जाने से पहले गौरव ने कालोनी के 2-3 चक्कर लगाए, वह कुछ सोच रहा था और उसे अपनी सोच सही लग रही थी. अगले सप्ताहांत डा. गौरव ने प्रीति को डिनर पर बुलाया. वह इस शर्त पर आना मान गई कि वह 9 बजे के बाद आएगी. गौरव ने कहा कि वे लोग भी 8 बजे के बाद ही घर पहुंचते हैं. लेकिन साढ़े 8 बजे के करीब एफ-1 में हादसा हो गया. बहुत जोर से कुछ गिरने और कांच टूटने की सी आवाज आई. ठंड के बावजूद कई लोग डिनर के बाद टहलने निकले हुए थे. एफ-1 में रहने वाला डा. राघव तभी आया था और अपनी गाड़ी लौक कर रहा था. उस के हाथ से चाबी छूटतेछूटते बची.

दहशत- भाग 2 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

‘‘सोफे और कुरसीमेजों को क्यों उलटा?’’ एक युवती ने कहा, ‘‘प्रीतिजी इन के नीचे तो कीमती सामान या दस्तावेज रखने से रहीं.’’

‘‘एक बैडरूम पर ताला है न, और अकसर लोग चाबी आजूबाजू में छिपा देते हैं, सो चाबी की तलाश में यह सब गिराया है और खून तो लगता है जैसे किसी को गुमराह करने के लिए ड्रौपर से डाला गया है…’’

‘‘तुम तो एकदम जासूस की तरह बोल रहे हो चुन्नीलाल,’’ किसी ने बात काटी.

‘‘पुलिस का सेवानिवृत्त सिपाही हूं, साहब लोगों के साथ अकसर तहकीकात पर जाता था.’’

‘‘तभी जो कह रहा है, सही है,’’ प्रीति के फ्लैट के नीचे रहने वाली नेहा वर्मा बोलीं, ‘‘अपने यहां की छतें इतनी पतली हैं कि कोई तेज कदमों से भी चले तो पता चल जाता है. फिर इतने भारी सामान के उलटनेपलटने का पता हमें कैसे नहीं चला?’’

‘‘आप सारा दिन घर में ही थीं क्या?’’ डा. गौरव ने पूछा.

‘‘सुबह कुछ घंटे पढ़ाने गई थी, 2 बजे के बाद से तो घर में ही थी.’’ ‘‘और यह उलटपलट तो प्रीतिजी के घर लौटने के बाद ही हुई है. अगर पहले हुई होती तो क्या लौटने पर उन्हें नजर नहीं आती?’’ वर्माजी ने जोड़ा, ‘‘मैं ड्राइंगरूम में बैठ कर औफिस का काम कर रहा था. मैं ने प्रीतिजी के घर में आने की आवाज सुनी थी. उस के बाद जब तक मैं काम करता रहा तब तक तो ऊपर से कोई आवाज नहीं आई.’’

‘‘आप ने कब तक काम किया?’’

‘‘यही कोई 11 बजे तक. उस के बाद मैं सो गया और फिर ‘बचाओबचाओ’ की आवाज से ही आंख खुली.’’ ‘‘उलटपलट तो मेरे आने से पहले भी हो सकती है,’’ प्रीति कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘क्योंकि देर से आने पर यानी जब किचन से कुछ लेना न हो तो मैं बगैर ड्राइंगरूम की लाइट जलाए सीधे बैडरूम में चली जाती हूं. यहां कुछ न मिलने पर शायद इस इंतजार में रुका होगा कि मेरे आने के बाद स्टील कबर्ड खुलेगा तब कुछ हाथ लग जाए.’’ ‘‘खून का राज तो खुल गया मैडम,’’ चुन्नीलाल ने ड्राइंगरूम के दरवाजे के पीछे झांकते हुए कहा, ‘‘यह देखिए, यह चटनी की शीशी टेबल से गिर कर लुढ़कती हुई दरवाजे से टकरा कर टूटी है…’’

‘‘चिली सौस में सिरका होता है न इसलिए यह सूखी नहीं और ताजे खून सी लग रही है,’’ प्रीति बोली, ‘‘मगर टेबल क्यों गिराई, इस के नीचे क्या छिपा हो सकता था?’’

‘‘यह तो पुलिस ही चोर से पूछ कर बता सकती है,’’ किसी के यह कहने पर प्रीति सिहर उठी.

‘‘पुलिस को बुलाने की क्या जरूरत है? कोई सामान चोरी तो हुआ नहीं है.’’

‘‘और चोर तो हम में से कोई यानी इसी कालोनी का बाश्ंिदा है,’’ वर्माजी बोले, ‘‘पुलिस को बुलाने का मतलब है खुद को परेशान करना यानी पुलिस के उलटेसीधे सवालों के चक्कर में फंसना और बेकार में उन की खातिरदारी करना क्योंकि चोर तो उन के हाथ लगने से रहा.’’

‘‘वर्माजी का कहना ठीक है. हमें आपस में ही तय करना है कि सुरक्षा के लिए और क्या करें,’’ तनेजाजी ने कहा ‘‘घर तो अच्छी तरह से देख लिया है, कोई छिपा हुआ तो नहीं है.’’

‘‘यानी अब कोई खतरा नहीं है,’’ प्रीति ने जम्हाई रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘तो फिर क्यों न अभी सब घर जा कर आराम करें, कल छुट्टी है, फुरसत से इस बारे में बात करेंगे.’’ ‘‘हां, यही ठीक रहेगा. शायद इतमीनान से सोचने पर प्रीति को याद आ जाए कि वह नींद में चिल्लाई क्यों थी. लेकिन तुम्हें अकेले डर तो नहीं लगेगा प्रीति? कहो तो मैं यहां सो जाऊं या तुम हमारे यहां चलो,’’ नेहा वर्मा ने कहा.

‘‘धन्यवाद, मिसेज वर्मा, जब घर में कोई है ही नहीं तो डर कैसा?’’ प्रीति हंसी.

‘‘तो ठीक है, कल मीटिंग रखते हैं…’’

‘‘भूषण साहब, मीटिंग क्यों न मौका-ए-वारदात यानी मेरे घर पर रखी जाए?’’ प्रीति ने बात काटी, ‘‘इसी बहाने मुझे आप सब को इतनी ठंड में जगाने के एवज में चाय पिलाने का मौका भी मिल जाएगा.’’

‘‘प्रीतिजी ठीक कह रही हैं. भूषण साहब, मीटिंग तो मौका-ए-वारदात पर ही होनी चाहिए. इस हौल में 25-30 लोग आसानी से आ सकते हैं.’’

‘‘कमेटी के सदस्य इस से कम ही हैं. लेकिन डा. गौरव, आप और वर्मा दंपती पड़ोसी होने के नाते जरूर आइएगा,’’ भूषणजी ने कहा, ‘‘तो कल फिर यहीं मिलते हैं, 4 बजे कमेटी जो तय करेगी उसे फिर संडे को जनरल बौडी मीटिंग में सर्वसम्मति से पास करवा लेंगे.’’ प्रीति या दूसरों को लिहाफ में घुसते ही नींद आई या नहीं, लेकिन डा. गौरव सो नहीं सके. न तो भूतप्रेत का सवाल था, न ही किसी और के प्रीति के फ्लैट में घुसने का. तो फिर ये सब क्या है? गौरव को न तो पड़ोस में दखलंदाजी का शौक था और न ही फुरसत लेकिन उसे मामला दिलचस्प लग रहा था. इस बारे में अधिक जानकारी प्रीति से जानपहचान बढ़ा कर ही मिल सकती थी जो मीटिंग में जाने से नहीं, अकेले में मिलने से बढ़ सकती थी और तभी मामले की गहराई में जाया जा सकता था. उस ने सोचा कि बेहतर होगा कि 6 बजे के बाद जाए ताकि तब तक मीटिंग खत्म हो चुकी हो और अगर प्रीति आग्रह कर के रोकेगी तो ठीक, वरना सौरी कह कर वापस आ जाएगा. उस के घंटी बजाने पर गले में एप्रैन बांधे नौकर ने दरवाजा खोला.

‘‘प्रीतिजी हैं?’’

‘‘जी, सर, आइए,’’ वह सम्मानपूर्वक से बोला. प्रीति डाइनिंग टेबल के पास खड़ी थी. उसे देखते ही चहकी ‘‘ओह, डा. गौरव, आइएआइए.’’

‘‘सौरी, मुझे आने में देर हो गई. मीटिंग तो लगता है खत्म हो गई, मैं चलता हूं.’’

‘‘मीटिंग में क्या हुआ, नहीं सुनना चाहेंगे?’’

‘‘जी, बताइए?’’

‘‘इत्मीनान से बैठ कर चाय पीते हुए सुनने वाली बातें हैं.’’

‘‘बैठ जाता हूं मगर चायपानी के लिए परेशान मत होइए.’’

‘‘शुंभ, हम लोगों का चायनाश्ता यहीं दे जाओ,’’ प्रीति ने आराम से बैठते हुए कहा, ‘‘मेरी परेशानी खत्म. आज सुबह जब मैं ने फ्रिज खेला तो उस में से काफी फल, जैम और ब्रैड वगैरा गायब थे.’’

लड़का चाहिए-घर वालों के दबाव में आकर सुरेंद्र को शादी करनी पड़ी

एक अदद लड़के की चाह में बेचारा सुरेंद्र बन गया बलि का बकरा. खानदान को चश्मोचिराग देने की जिम्मेदारी उसी पर टिकी थी. करता, क्या न करता, चुपचाप सब की मानता रहा…

यह सुरेंद्र का दुर्भाग्य था या सौभाग्य, क्या कहें. वह उस संयुक्त परिवार के बच्चों में सब से आखिरी और 8वें नंबर पर आता था. अब वह 21 साल का ग्रैजुएट हो चुका था व छोटामोटा कामधंधा भी करने लगा था. देखनेदिखाने में औसत से कुछ ऊपर ही था. उस के विवाह के लिए नए प्रस्ताव भी आने लगे थे. यहां तक तो उस के भाग्य में कोई दोष नहीं था परंतु उस के सभी बड़े भाइयों के यहां कुल 17 लड़कियां हो चुकी थीं और अब किसी के यहां लड़का होने की उम्मीद नहीं थी. इसी कारण वंश को आगे बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सुरेंद्र पर टिकी हुई थी.

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अब तक घरपरिवार और चेहरेमोहरे को देखने वाले इस परिवार ने दूसरी बातों का सहारा लेना भी शुरू कर दिया, जैसे जन्मपत्रिका मिलाना, परिवार में हुए बच्चों का इतिहास जानना आदि. पत्रिका मिलान करते समय पंडितों को इस बात पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता कि पत्रिका में पुत्र उत्पन्न करने संबंधी योग, नक्षत्र भी हैं या नहीं.

एक पंडित से पत्रिका मिलवाने के बाद दूसरे पंडित की सैकंड ओपिनियन भी जरूर ली जाती. पंडित लोग भी मौका देख कर भारीभरकम फीस वसूल करते.

कई लड़कियां तो सुरेंद्र को अच्छी भी लगीं किंतु पंडितों की भविष्यवाणी के आधार पर रिजैक्ट कर दी गईं. एक जगह तो अच्छाखासा विवाद भी हो गया जब एक लड़की ज्योतिष के सभी परीक्षणों में सफल भी हुई, लेकिन स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर उस लड़की को यह सबकुछ बेहद असहज व स्त्रियों के प्रति अपमानजनक लगा.

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सुरेंद्र से एकांत में मुलाकात के समय उस ने सुरेंद्र से कहा कि जब आप के परिवार में 17 कन्याओं ने जन्म लिया है तो मुझे आप के घर के पुरुषों के प्रति संदेह है कि उन में लड़का पैदा करने की क्षमता भी है या नहीं. मेरे साथ शादी करने से पहले आप को इस बात का मैडिकल प्रमाणपत्र देना होगा कि आप पुत्र उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं.

जब यह बात रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को पता चली तो कई लोग बिन मांगे सुझाव और सलाहों के साथ हाजिर हो गए. किसी ने कहा कि ऐसी लड़की का चयन करना जिस की मां को पहली संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई हो. किसी की सलाह थी, कमर से जितने अधिक नीचे बाल होंगे, लड़का होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. एक सलाह यह भी थी कि पुत्र उत्पन्न करने में वे लड़कियां ज्यादा सफल होती हैं जो चलते समय अपना बायां पैर पहले बाहर रखती हैं.

यदि लड़की की नानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को जन्म दिया हो, संभावनाएं शतप्रतिशत हो जाती हैं.

इसी तरह की और भी न जाने क्याक्या सलाहें मिलती रहीं.

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सुरेंद्र का परिवार सभी सलाहों पर हर मुमकिन अमल करने का प्रयास भी इस तरह से कर रहा था मानो यदि अब एक लड़की और हो गई तो वह उस की परवरिश करने में असमर्थ रहेगा. अब तो टोनेटोटके के बावजूद पैदा हुई सब से छोटी लड़की के पुराने कपड़ों को भी घर से हटा दिया गया था क्योंकि इस तरह के पुराने कपड़ों को रखना पनौती माना जाता है.

सुझावों को ध्यान में रख कर सुरेंद्र के लिए लड़कियां देखी जाती रहीं, और किसी न किसी आधार पर अस्वीकृत भी की जाती रहीं. इसी तरह 2 बरस बीत गए और कुछ रिजैक्टेड लड़कियों ने अपनी शादी के बाद अपनी पहली संतान के रूप में लड़कों को जन्म भी दे दिया.

आखिरकार, परिवार की मेहनत रंग लाई और कड़ी खोजबीन के बाद इस तरह की लड़की को खोजने में सफल हो ही गया. खोजी गई लड़की के बाल कमर से लगभग डेढ़ फुट तक नीचे जाते थे. मतलब, एक विश्वसनीय सुरक्षित लंबाई थी बालों की.

लड़की की मां, नानी, यहां तक कि परनानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को ही जन्म दिया था. यानी यहां दोहरा सुरक्षाकवच मौजूद था. सोने पर सुहागा यह कि लड़की चलते समय बायां पैर ही पहले निकालती थी.

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अब तो तीनसौ प्रतिशत संभावनाएं थीं कि यह लड़की, लड़का पैदा करने में पूरी तरह सक्षम है. परंतु जो बात सब से महत्त्वपूर्ण थी वह यह कि सुरेंद्र को यह लड़की पसंद नहीं थी क्योंकि लड़की रंगरूप के मामले में औसत भारतीय लड़कियों से भी नीचे थी.

उस से भी बड़ी बात यह थी कि लड़की मुश्किल से 3 प्रयासों के बाद इंटर की परीक्षा पास कर पाई थी. सभी चीजें तो एक लड़की में नहीं मिल सकती न, ‘वंश तो लड़कों से चलता हैं न कि लड़की की पढ़ाईलिखाई या रंगरूप से’ ये बातें सुरेंद्र को समझा कर किसी ने उस की एक न सुनी.

इस तरह सभी भौतिक परीक्षाओं में पास होने के बाद लड़की की जन्मकुंडली पंडितजी को दिखाई गई. पंडितजी भी एक ही जजमान की कुंडली बारबार देख कर त्रस्त हो चुके थे. वे भी चाहते थे जैसे भी हो, इस बार कुंडली मिला ही दूंगा चाहे कोई पूजा ही क्यों न करवानी पड़े.

उन के अनुसार भी, कुंडली का मिलान भी श्रेष्ठ ही था. किंतु एक हिदायत उन्होंने भी दे दी कि लड़का होने की संभावनाएं तब ही बलवती होंगी जब संतान शादी के एक वर्ष के भीतर गोद में आ जाए.

आखिरकार सुरेंद्र की अनिच्छा के बावजूद शादी धूमधाम से हो गई. लड़की ने इंटर की परीक्षा जरूर 3 प्रयासों में पास की थी लेकिन वह इतना तो जानती ही थी कि इतनी जल्दी मातृत्व का बोझ उठाना ठीक नहीं होगा. उस ने टीवी और फिल्मों के जरिए यह जान लिया था कि शादी के शुरुआती वर्ष पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए बहुत अहम होते हैं. ऐसे में कुछ वर्ष बच्चा नहीं होना चाहिए.

सुरेंद्र की पत्नी को पहले ही दिन से वीआईपी ट्रीटमैंट दिया जा रहा था. उसे तरहतरह के प्रलोभन दिए जा रहे थे.

सुरेंद्र पर भी दबाव डाला जा रहा था और पंडितजी की हिदायतों की समयसमय पर याद करवाई जा रही थी.

2 माह बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सारे परिवार को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी गर्भवती हो चुकी थी. मतलब, हर नजरिए से इस परिवार को पुत्र के रूप में वारिस मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक हो गई थीं. किसी ने सलाह दी कि यदि इस में कुछ चिकित्सकीय सहायता भी ले ली जाए तो असफलता की संभावनाएं नहीं रहेंगी.

एलोपैथिक के डाक्टरों ने तो इस प्रकार की कोई भी औषधि देने से इनकार कर दिया. तब एक परिचित की सहायता से एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक वैद्यजी को दिखाया गया. वे इस शर्त पर दवा देने को तैयार हुए कि बच्चे के लिए सोनोग्राफी नहीं करवाई जाएगी.

परिवार वालों ने वैद्यजी की बातों को माना और वैद्यजी की बताई गई दवाई पूर्णिमा को खिला भी दी गई.

समयसमय एलोपैथी के डाक्टर को दिखा कर बच्चे की शारीरिक प्रगति पर ध्यान दिया जाता रहा. लेकिन वैद्यजी की सलाह के अनुसार सोनोग्राफी की अनुमति नहीं दी गई. डाक्टर अपने अनुभवों के आधार पर उपचारित करते रहे. परिवार वाले भी सुरेंद्र की पत्नी की हर इच्छा को आदेश मान कर पालन करते रहे.

सुरेंद्र की पत्नी अपनेआप को किसी वीआईवी से कम नहीं समझ रही थी. विवाह के 11 महीनों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सभी को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. घर पर पूजापाठहवन आदि का इंतजाम किया गया. पूरे घर में लड़का होेने की अग्रिम खुशी में उत्सव जैसा माहौल हो गया.

आखिर वह समय भी आ गया

जब परिणाम घोषित हुआ. परिणाम पिछले 17 परिणामों से अलग नहीं था.

सुरेंद्र की पत्नी ने एक स्वस्थ और सुंदर कन्या को जन्म दिया. इस घड़ी में सुरेंद्र का परिवार तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं था परंतु बाहर के लोग तो कह ही रहे थे, कुछ हंसी में और कुछ संवेदना में. कुछ लोग तो यह सलाह देने के लिए आ रहे थे कि दूसरी संतान पुत्र कैसे हो, इस के कुछ नुस्खे उन के पास मौजूद हैं.

किंतु, गुस्से से भरा सुरेंद्र पहले की सलाह देने वालों को ढूंढ़ रहा है. आप भी तो उन में से एक नहीं है न. यदि हैं, तो बच कर रहिए.

 हरीश जायसवाल

दहशत- भाग 1 : कालोनी में हो रही चोरी के पीछे आखिर कौन था

जनवरी की सर्द रात के सन्नाटे को ‘बचाओबचाओ’ की चीखों ने और भी भयावह बना दिया था. लिहाफकंबल की गरमाहट छोड़ कर ठंडी हवा के थपेड़ों की परवा किए बगैर लोग खिड़कियां खोल कर पूछ रहे थे, ‘चौकीदार, क्या हुआ? यह चीख किस की थी?’ अभिजात्य वर्ग की ‘स्वप्न कुंज’ कालोनी में 5 मंजिला, 10 इमारतें बनी थीं, उन की वास्तुशिल्प कुछ ऐसी थी कि हरेक बिल्ंिडग में जरा सी जोर की आवाज होने से पूरी कालोनी गूंज जाती थी. हरेक बिल्ंिडग में 20 फ्लैट थे. प्रत्येक बिल्ंिडग में 24 घंटे शिफ्ट में एक चौकीदार रहता था और रात को पूरी कालोनी में गश्त लगाने वाले चौकीदार अलग से थे. रात को मेनगेट भी बंद कर दिया जाता था. इतनी सुरक्षा के बावजूद एक औरत की चीख ने लोगों को दहला दिया था.

‘‘चीख की आवाज सी-6 से आई थी साहब,’’ एक चौकीदार ने कहा, ‘‘तब मैं सी बिल्ंिडग के नीचे से गुजर रहा था.’’

‘‘वह तीसरे माले पर रहने वाली प्रीति मैडम की आवाज थी साहब, मैं उन की आवाज पहचानता हूं,’’ दूसरे चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन सी-6 में तो अंधेरा है,’’ एक खिड़की से आवाज आई.

‘‘ओय ढक्कन, वह बत्ती जला कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाएगी,’’ किसी की फब्ती पर सब ठहाके लगाने लगे.

‘‘सब यहीं चोंचें लड़ाते रहेंगे या कोई प्रीति की खोजखबर भी लेगा?’’ एक महिला ने कड़े स्वर में कहा.

‘‘प्रीति मैडम अकेली रहती हैं, आप साथ चलें तो ठीक रहेगा मैडम,’’ चौकीदार ने कहा.

‘‘सी-5 की नेहा वर्मा को ले जाओ.’’

‘‘अपने ‘स्वप्न कुंज’ में रहने वाले सभी अपने से हैं, सो सब लोग तुरंत सपत्नीक सी-6 में पहुंचिए,’’ सोसायटी के प्रैसिडैंट भूषणजी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सभी तो नहीं, लेकिन बहुत से दंपती पहुंच गए. शायद इसलिए कि प्रीति को ले कर सभी के दिल में जिज्ञासा थी. किसी फैशन पत्रिका के पन्नों से निकली मौडल सी दिखने वाली प्रीति 25-30 वर्ष की आयु में ही किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर थी. कंपनी से गाड़ी और 3 बैडरूम का फ्लैट मिला हुआ था. पहले तो हर सप्ताहांत उस के फ्लैट पर पार्टी हुआ करती थी मगर इस वर्ष तो नववर्ष के आसपास भी कोई दावत नहीं हुई थी. कालोनी में चंद लोगों से ही उस की दुआसलाम थी. सी-6 के पास पहुंच कर सभी स्तब्ध रह गए, फ्लैट के दरवाजे में से पतली सी खून की धार बह रही थी. लगातार घंटी बजाने पर भी कोई दरवाजा नहीं खोल रहा था.

‘‘साथ में दरवाजा भी खटखटाओ,’’ सुनते ही चौकीदार और एकदो और लोगों ने दरवाजे को जोर से धक्का दिया लेकिन दरवाजा अंदर से बंद नहीं था इसलिए आसानी से खुल गया. अंदर अंधेरा और सन्नाटा था.

‘‘अंदर जाने से पहले फोन की घंटी बजाओ.’’

‘‘नंबर है किसी के पास?’’

‘‘सोसायटी के औफिस में होगा, पुलिस को बुलाने से पहले…’’ तभी अंदर से अलसाए स्वर में आवाज आई, ‘‘कौन है?’’

‘‘चौकीदार चुन्नीलाल. बाहर आइए मैडम.’’ लाइट जलते ही फिर चीख की आवाज आई, ‘‘ओह नो.’’ नाइट गाउन पहने बौखलाई सी प्रीति खड़ी थी. बगैर मेकअप और अस्तव्यस्त बालों के बावजूद वह आकर्षक लग रही थी.

‘‘आप सब यहां?’’  प्रीति ने उनींदे स्वर में पूछा, ‘‘और इस कमरे का सामान किस ने उलटापलटा है?’’

‘‘यह खून किस का है, तुम ठीक तो हो न प्रीति?’’ नेहा वर्मा ने पूछा. खून देख कर प्रीति फिर चीख उठी, ‘‘ओह नो. यह कहां से आया?’’

‘‘लेकिन इस से पहले आप क्यों चीखी थीं मैडम?’’ चुन्नीलाल ने अधीरता से पूछा.

‘‘घंटी और बोलने की आवाज सुन कर ड्राइंगरूम में आ कर बत्ती जलाई तो यह गड़बड़ देख कर…’’

‘‘उस से पहले मैडम, आप की ‘बचाओबचाओ’ की आवाज पर तो हम यहां आए हैं,’’ चुन्नीलाल ने बात काटी.

‘‘मैं ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाई थी?’’ प्रीति चौंक पड़ी, ‘‘आप बाहर क्यों खड़े हैं, अंदर आइए और बताइए कि बात क्या है?’’ सब अंदर आ गए और भूषणजी से सब सुन कर प्रीति बुरी तरह डर गई. ‘‘आज मैं बहुत देर से आई थी और इतना थक गई थी कि सीधे बैडरूम में जा कर सो गई और अब घंटी की आवाज पर उठी हूं.’’

‘‘फिर यहां यह ताजा खून कहां से आया और सोफे वगैरा किस ने उलटे?’’ चौकीदार चुन्नीलाल ने कहा, ‘‘लगता है चोर अभी भी कहीं दुबका हुआ है, चलिए, तलाश करते हैं.’’ सभी लोग तत्परता से परदों के पीछे और कमरों में ढूंढ़ने लगे. महिलाएं सुरुचिपूर्ण सजे घर को निहार रही थीं. प्रीति संयत होने की कोशिश करते हुए भी उत्तेजित और डरी हुई लग रही थी. कहीं कोई नहीं मिला. एक बैडरूम बाहर से बंद था. ‘‘हो सकता है जब हम लोग अंदर आए तो परदे के पीछे छिपा चोर भी भीड़ में शामिल हो कर बाहर भाग गया हो क्योंकि सभी अंदर आ गए थे. दरवाजे के बाहर और नीचे गेट पर तो कोई था ही नहीं,’’ एक चौकीदार ने कहा.

‘‘लेकिन भाग कर कहां जाएगा, मेनगेट तो बंद होगा न,’’ प्रीति बोली, ‘‘लेकिन अंदर कैसे आया? क्योंकि मेरा डिनर बाहर था सो नौकरानी को शाम को खाना बनाने आना नहीं था इसलिए वह चाबी ले कर नहीं गई. चाबी सामने दीवार पर टंगी है और मैं नौकरानी के जाने के बाद औफिस गई थी, इसलिए ताला मैं ने स्वयं लगाया था.’’ ‘‘तो फिर यह उलटपलट और खून? इस का क्या राज है?’’ प्रीति के फ्लैट के ऊपर रहने वाले डा. गौरव ने गहरी नजरों से प्रीति को देखा. प्रीति उन नजरों की ताब न सह सकी. उस ने असहाय भाव से सब की ओर देखा. सभी असमंजस की स्थिति में खड़े थे.

जहां से चले थे-संध्या के लिए अपने मम्मी-पाप को भूलाना बहुत मुश्किल हो रहा था

संध्या बचपन से ही दबंग और दंभी स्वभाव की लड़की थी, इसलिए शादी के लिए आए अच्छे घरों के रिश्तों में मीनमेख निकाल कर बड़ी बेरुखी से ठुकरा देती.

मां को अग्नि के सुपुर्द कर के मैं लौटी तो पहली बार मुझे ऐसा लगा जैसे मैं दुनिया में बिलकुल अकेली रह गई हूं. श्मशान पर लिखे शब्द अभी भी मेरे दिमाग पर अंकित थे, ‘यहां तक लाने का धन्यवाद, बाकी का सफर हम खुद तय कर लेंगे.’ मां तो परम शांति की ओर महाप्रस्थान कर गईं और मुझे छोड़ गईं इस अकेली जिंदगी से जूझने के लिए.

मां थीं तो मुझे अपने चारों ओर एक सुरक्षा कवच सा प्रतीत होता था. शाम को जब तक मैं आफिस से न लौटती, उन की सूनी आंखें मुझे खोजती रहतीं और मुझे देख कर अपना सारा प्यार उड़ेल देतीं. मैं भी मां को सारे दिन के कार्यक्रमों को बता कर अपना जी हलका कर लेती. आफिस में अपनी पदप्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए मुझे एक चेहरा ओढ़ना पड़ता था पर घर में तो मैं मां की बच्ची थी, हठ भी करती और प्यार भी. पर अब मैं बिलकुल अकेली पड़ गई थी.

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कुछ दिन बाद आफिस के केबिन में बैठ कर मैं सामने दीवार पर देखने लगी तो मन में खयाल आया कि पापा के फोटो के साथ मां की भी फोटो लगा दूं, इतने में दरवाजा खोल कर मेरे निजी सचिव ने आ कर बताया कि कुछ जरूरी कागज साइन करने हैं, जो टेबल पर ही रखे हैं.

‘‘मिश्राजी, मेरी मानसिक हालत अभी ठीक नहीं है. मैं अभी कोई भी निर्णय नहीं ले सकती. अभी तो मां को गुजरे 4 दिन भी नहीं हुए हैं और…’’ इतना कह कर मैं भावुक हो गई.

‘‘सौरी, मैडम, मुझे इस समय ऐसा नहीं कहना चाहिए था,’’ कह कर वह वापस जाने लगे.

‘‘मिश्राजी, एक मिनट,’’ कह कर मैं ने उन्हें रोका और पूछा, ‘‘अच्छा, ब्रांच मैनेजर का इंटरव्यू कब है?’’

‘‘मैडम, चेयरमैन साहब खुद इस इंटरव्यू में बैठना चाहते हैं. आप कोई भी डेट…मेरा मतलब है जब भी आप कहेंगी मैं उन्हें बता दूंगा,’’ कह कर मिश्राजी चले गए.

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हमारी मल्टीनेशनल कंपनी देश की 5 बड़ी ब्रांचों के लिए कुशल मैनेजर रखना चाहती थी. 6 महीने से चल रहे ये महत्त्वपूर्ण इंटरव्यू अब निर्णयात्मक दौर में थे. उन का वार्षिक पैकेज भी 10 लाख रुपए का था. यानी मुझ से आधा. चेयरमैन को तो इस इंटरव्यू में आना ही चाहिए.

मैं अनमने और भारी मन से एकएक पत्र देखने लगी. मन कहीं भी टिक नहीं रहा था. मां की भोली सूरत बारबार आंखों के सामने तैर जाती. मैं ने सारी फाइलें बंद कर दीं और अपने सचिव को बता कर घर चली आई.

रिश्तेदार, सगेसंबंधी सब एकएक कर के जा चुके थे. महरी अपना काम समेट कर टीवी देख रही थी. शायद उसे इस का एहसास नहीं था कि मैं घर जल्दी आ जाऊंगी. उसे टीवी के पास बैठी देख कर मैं एकदम झल्ला गई और अपना सारा गुस्सा उस पर ही उतार दिया, फिर निढाल हो कर पलंग पर पसर गई.

थोड़ी देर में महरी चाय बना कर ले आई. मुझे इस समय सचमुच चाय की ही जरूरत थी. वह चाय मेज पर रख कर बोली, ‘‘मेम साहब, आप ही बताइए, मैं सारा दिन यहां अकेली क्या करूं. मांजी और मैं इस समय टीवी ही देखा करते थे. आप को पसंद नहीं है तो अपना घर खुद ही संभालिए,’’ कह कर वह तेजी से चली गई.

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मेरे क्रोध और धैर्य की सीमा न रही. इस की इतनी हिम्मत कि मुझे कुछ कह सके, मेरी बात काट सके. वह इस बात पर मेरा काम छोड़ भी देती तो मैं उसे रोकती नहीं, चाहे बाद में मुझे कितनी ही परेशानी होती. झुक कर बात करना तो मैं ने कभी सीखा ही नहीं था. बचपन से आज तक मैं ने वही किया जो मेरे मन को भाया. जिस से सहमति नहीं बन पाती, उस से मैं किनारा कर लेती.

चाय पीने के बाद भी मुझे चैन नहीं आया. मैं बदहवास एक कमरे से दूसरे कमरे में बिना मकसद घूमती रही. मुझे लग रहा था कि मां की आकृति कहीं आसपास ही तैर रही है. मैं ने मां की तसवीर पापा की तसवीर के साथ लगा दी. उन की फोटो पर लगे गेंदे के फूल मुरझा कर पापा की तसवीर पर लगे नकली फूलों की शक्ल ले रहे थे.

मैं मां की तसवीर के पास जा कर उन्हें देखती रही और फिर बीते दिनों के ऐसे तहखाने में जा पहुंची जहां बहुत अंधेरा था. पर अंधेरा भी मैं ने ही किया हुआ था, वरना ये दोनों तो मेरे जीवन में उजाला करना चाहते थे.

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मुझे अपना खोया हुआ बचपन याद आने लगा और मैं अपने ही अतीत के पन्नों को एकएक कर पलटने लगी.

इकलौती संतान होने के कारण मां और पापा का सारा प्यार मेरे ही हिस्से में था. जब भी पापा को कोई मेरे लड़की होने का एहसास करवाता, पापा हंस कर कहते कि यही मेरा बेटा है और यही मेरी बेटी भी. उन्होंने मेरी परवरिश भी मुझे बहुत सी स्वतंत्रता दे कर अलग ढंग से की थी. मां जब भी मुझे किसी लड़के के साथ देखतीं या देर शाम को घर आते देखतीं तो अच्छाबुरा समझाने लगतीं और पापा एक सिरे से मां की बात को नकार देते.

स्कूल की पढ़ाई खत्म होते ही मैं ने प्रोफेशनल कोर्स ज्वाइन कर लिया, साथ ही दूसरे वह सभी काम सीख लिए जो पुरुषों के दायरे में आते थे. मैं किसी भी तरह खुद को लड़कों से कम नहीं समझती और न ही उन को अपने ऊपर हावी होने देती थी. मेरे इस दबंग और अक्खड़ स्वभाव के कारण कई लड़के तो मेरे पास आने से भी डरते थे.

एक बार मैं कालिज टीम के साथ टेबलटेनिस का मैच खेलने सहारनपुर गई थी. रात को खाने के समय बातोंबातों में मुझे एक लड़के ने प्रपोज किया तो उस लड़के के कंधे पर हाथ रख कर मैं बोली, ‘एक बात तुम्हें साफसाफ बता दूं कि मैं ऐसीवैसी लड़की नहीं हूं और न ही मुझे आम लड़कियों की तरह हलके में लेना. दोबारा मेरे साथ नाम जोड़ने की कोशिश भी मत करना.’

वह लड़का तो चुपचाप वहां से चला गया पर मेरी अंतरंग सहेली वंदना ने मुझ से कहा, ‘इतना गुस्सा भी ठीक नहीं है संध्या. उस ने कौन सी तेरे साथ बदसलूकी की है, प्रपोज ही तो किया है. तू विनम्रता से इनकार कर देती, बातबात पर ऐसा रौद्र रूप दिखाना ठीक नहीं है.’ यह बात हमारे कालिज में दावानल की तरह फैल गई. मेरा कद 2 इंच और बढ़ गया. उस के बाद फिर किसी लड़के ने मेरी ओर आंख उठाने की भी हिम्मत नहीं की.

एम.बी.ए. करने के बाद मुझे एक से एक अच्छे आफर आने लगे. मैं भी दिखा देना चाहती थी कि मैं किसी से कम नहीं हूं. पापा का वरदहस्त तो सिर पर था ही. जहां मेरे साथ पढ़े लड़कों को 20 हजार के आफर मिले, मुझे 45 हजार का आफर मिला था.

पापा को अब मेरी शादी की चिंता सताने लगी, पर मैं अभी ठीक से सेटल नहीं हुई थी. वैसे भी मुझे अपने लिए एक ऐसा घरवर ढूंढ़ना था जो मेरी बराबरी और विचारों के अनुकूल हो. मैं पापा के अनुरोध को टालना भी नहीं चाहती थी और शादी कर के अपना आने वाला सुनहरा कल गंवाना भी नहीं चाहती थी. इसलिए पापा जब भी कोई रिश्ता ले कर आते मैं कोई न कोई कमी निकाल कर इनकार कर देती.

एक दिन मांपापा ने मेरी पसंद और नापसंद के बीच झूलते हुए दुखी मन से कहा, ‘शादी तो तुम्हें करनी ही पड़ेगी. यही समाज का नियम है. तुम अपनी नहीं तो हमारी चिंता करो. लोग कैसीकैसी बातें करते हैं.’

पापा की जिद के सामने मुझे झुकना ही पड़ा और मैं विनम्रता से बोली कि जो आप को उचित लगे और मेरे विचारों के अनुकूल हो, आप उस से मेरा विवाह कर सकते हैं.

जल्दी ही एक जगह बात पक्की हो गई. लड़का भारतीय सेना में डाक्टर था. मुझे इस बात से संतोष था कि वह मेरे साथ नहीं रहेगा और मैं मनचाही नौकरी कर सकूंगी.

शादी के दिन मैं बड़े अनमने मन से तैयार हो रही थी. मुझे चूड़ा और कलीरें पहनना, महंगे लहंगे के साथ ढेर सारे जेवर और कोहनी तक मेहंदी रचाना आदि आडंबर लगे. मैं सोचती रही कि जल्दी से किसी तरह यह निबटे तो इस से मुक्ति मिले. हर शृंगार पर मैं पूछती कि इस के बाद तो कुछ नहीं बचा है.

‘क्यों, पति से मिलने की इतनी जल्दी है क्या?’ सहेलियों ने पूछा. कोई और अवसर होता तो मैं कभी का उन्हें भगा चुकी होती पर यह सामाजिक व्यवस्था थी उस पर मांपापा की इच्छा का भी खयाल था. जितनी देर होती रही मेरा धैर्य चुकता रहा.

उसी समय बरात आ गई. मेरी सहेलियां बरात देखने चली गईं और मैं अकेली कमरे में बैठी थी. तभी मेरे पास वाले कमरे से पापा की आवाज आई, ‘भाई साहब, हम से जो बन पड़ा है हम ने किया. कोई कमी रह गई हो तो हमें माफ कर दीजिए,’ मैं ने देखा, पापा हाथ जोड़ कर विनती कर रहे थे, ‘कार का इंतजाम इतनी जल्दी नहीं हो पाया वरना उसी में बिठा कर बेटी को विदा करता.’

‘कार की तो कोई बात नहीं, भाई साहब. बस, अपनी बेटी के महंगे गहने शादी के फौरन बाद ही उतरवा दीजिए.’

इतना सुनना था कि मेरे तेवर चढ़ गए. क्या मैं इतनी कमजोर और अनपढ़ हूं कि पापा को इतना कुछ देना पड़ रहा है. मैं ने वहीं पर तहलका मचा दिया कि इन दहेज के लालची लोगों के घर मैं नहीं जाऊंगी. चारों तरफ एक अफरातफरी का माहौल खड़ा हो गया. लड़के वालों को लोग अर्थपूर्ण नजरों से देखने लगे. पापा ने मुझे एक तरफ ले जा कर समझाने की कोशिश की, ‘बेटी, बात इतनी न बढ़ाओ कि संभालनी मुश्किल हो जाए,’ वे बोले, ‘लड़की की शादी में समाज और बिरादरी के भी कुछ नियम हैं. तुम क्या जानो कि क्या कुछ करना पड़ता है. बेटी पैदा होते ही अपना पिंजरा साथ ले कर आती है. इस में लड़के वालों की कोई गलती नहीं है.’

इतने में किसी ने पुलिस को खबर भेज दी. फिर क्या था, टीवी चैनल और प्रिंट मीडिया ने मुझे चारों तरफ से घेर लिया. मैं ने जो सुना, देखा था, थोड़ा बढ़ाचढ़ा कर कह दिया.

लड़के और उस के घर वाले तो सलाखों के पीछे पहुंच गए और मुझे रातोंरात लोग पहचानने लगे. मैं इंटरव्यू पर इंटरव्यू देती रही और वे इसे छापते रहे.

उस के बाद तो कई सामाजिक संगठन और समाजसेवी संस्थाएं आ कर मुझे मानसम्मान देने के लिए समय मांगती रहीं.

कुछ दिनों में यह बात ठंडी हो गई, पापा ने थाने में कई चक्कर लगा कर उन्हें दहेज के आरोप से मुक्त करवा दिया पर उन पर लांछन तो लग ही चुका था. पापा उस दिन के बाद अंतर्मुखी हो गए और मां भी जरूरत भर की बातें ही करतीं.

उस हादसे से पापा इतना टूट गए कि दुनिया से उन्होंने नाता ही तोड़ लिया. हां, मरने से पहले पापा बता गए थे कि लड़के वालों की तरफ से कोई दहेज की मांग नहीं थी. कार देने का वादा तो मैं ने ही किया था और गहने उतरवाने की बात पहले से ही तय थी. देर रात को मेरा इतना शृंगार कर के होटल में जाना अनचाहे तूफान से बचने का उपाय था, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

वक्त गुजरता गया और वक्त के साथसाथ मैं ऊंचाइयां छूती गई. पापा की मृत्यु के बाद तो मां ने भी चुप्पी साध ली थी. मैं उन के दुख को अच्छी तरह जानती थी. उन्हें एक ही चिंता थी कि उन के बाद मेरा कौन सहारा होगा. एक दिन मां ने समझाते हुए कहा, ‘संध्या, जवान और खूबसूरत लड़की समाज की नजरों में वैसे भी खटकती रहती है. औरत कितनी भी सबल क्यों न हो उसे मजबूत सहारे की जरूरत पड़ती ही है, जो उसे समाज की बुरी निगाहों से बचा कर रखता है…’

‘मां, छोड़ो भी यह सब बातें. मैं तुम्हें दिखा दूंगी कि मुझे किसी सहारे की तलाश नहीं है. बस, समाज को समझाने और टक्कर लेने की हिम्मत होनी चाहिए,’ यह कह कर मैं वहां से उठ गई थी.

मां के कहे शब्द दिमाग में कौंधे तो मैं चौंक कर उठ बैठी. मांपापा का जो रक्षा कवच मेरे चारों ओर था वह अब टूट चुका था, अपना झूठा दंभ कहां दिखाती. घर के सभी काम, जो सुनियोजित ढंग से चल रहे थे, अब मुझे ही संभालने थे. मुझे इन 4 दिनों में ही अपना अंधकारमय भविष्य नजर आने ले.

नाइट फ्लाइट-यश पहली बार किसी लड़की से बात करने से कतरा रहा था

मुंबई का अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा. अभी शाम के 5 भी  नहीं बजे थे. यश की फ्लाइट रात के 8 बजे की थी. वह लंबी यात्रा में किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहता था. सो, एयरपोर्ट जल्दी ही आ गया था. उस ने टैक्सी से अपना सामान उतार कर ट्रौली पर रखा. हवाईअड्डे पर काफी भीड़ थी. वह मन ही मन सोच रहा था, आजकल हवाई यात्रा करने वालों की कमी नहीं है. यश ने अपना पासपोर्ट और टिकट दिखा कर अंदर प्रवेश किया.

यश ने एयर इंडिया के काउंटर से चेकइन कर अपना बोर्डिंग पास लिया. उस ने अपने लिए किनारे वाली सीट पहले से बुक करा ली थी. उसे यात्रा के दौरान विंडो या बीच वाली सीट से निकल कर वौशरूम जाने में परेशानी होती है. उस के बाद वह सुरक्षा जांच के लिए गया. सुरक्षा जांच के बाद टर्मिनल 2 की ओर बढ़ा जहां से एयर इंडिया की उड़ान संख्या ए/314 से उसे हौंगकौंग जाना था. वहां पर वह एक किनारे कुरसी पर बैठ गया. अभी भी उस की फ्लाइट में डेढ घंटे बाकी थे. हौंगकौंग के लिए और भी उड़ानें थीं पर उस ने जानबूझ कर नाइट फ्लाइट ली ताकि रात जहाज में सो कर गुजर जाए और सारा दिन काम कर सके. उस की फ्लाइट हौंगकौंग के स्थानीय समय के अनुसार सुबह 6.45 बजे वहां लैंड करती.

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थोड़ी देर बाद एक बुजुर्ग आ कर यश की बगल में एक सीट छोड़ कर बैठ गए. बीच की सीट पर उन्होंने अपना बैग रख दिया. देखने में वे किसान लग रहे थे. उन्होंने अपना बोर्डिंग पास यश को दिखाते हुए पंजाबी मिश्रित हिंदी में पूछा, ‘‘पुत्तर, मेरा जहाज यहीं से उड़ेगा न?’’

यश ने हां कहा और अपनी किताब पढ़ने लगा. बीचबीच में वह सामने टीवी स्क्रीन पर न्यूज देख लेता. लगभग आधे घंटे के बाद एक युवती आई. यश की बगल वाली सीट पर बुजुर्ग का बैग रखा था. लड़की ने यश से कहा, ‘‘प्लीज, आप अपना बैग हटा लेते, तो मैं यहां बैठ जाती.’’

यश ने मुसकराते हुए बुजुर्ग की ओर इशारा कर कहा, ‘‘यह बैग उन का है.’’

उस बुजुर्ग को हिंदी ठीक से नहीं आती थी. लड़की के समझाने पर उन्होंने अपना बैग नीचे रखा. तब लड़की ने यश की ओर देख कर कहा, ‘‘मैं थोड़ी देर में वौशरूम से आती हूं.’’

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इस बार यश ने सिर उठा कर उसे देखा और मुसकराते हुए, ‘इट्स ओके’ कहा. फिर लड़की को जाते हुए देखा. लड़की खूबसूरत थी. उस की पतली कमर के ऊपर ब्लू स्कर्ट और स्कर्ट के बाहर झांकती पतली टांगें उसे अच्छी लगी थीं. ऊपर एक सफेद टौप था. उस ने हाईहील सैंडिल पहनी थी.

करीब 10 मिनट के बाद एक हाथ में स्नैक्स और दूसरे में कोक का कैन लिए वह लड़की आ रही थी. पहले स्नैक्स खाती, फिर कोक सिप करती. यश ने देखा कि उसे हाईहील पहन कर चलने में कुछ असुविधा हो रही थी. वह जैसे ही अपनी कुरसी पर बैठने जा रही थी कि थोड़ा लड़खड़ा पड़ी. उस ने अपने को तो संभाल लिया पर कोक का कैन हाथ से छूट कर यश की गोद में जा पड़ा. कुछ कोक छलक कर उस की जींस पर गिरी जिस से जींस कुछ गीली हो गई थी.

यश ने खड़े हो कर कैन उसे पकड़ाया. लड़की बुरी तरह शर्मिंदा थी, बोली, ‘‘आई एम ऐक्सट्रीमली सौरी.’’ और बैग में से कुछ टिश्यूपेपर निकाल कर उस की जींस पोंछने लगी.

यश को यह अच्छा नहीं लगा, वह बोला, ‘‘आप रहने दें, मैं खुद कर लेता हूं.’’ और उस के हाथ से टिश्यू ले कर खुद गीलापन कम करने की कोशिश करने लगा.

थोड़ी देर बाद बोर्डिंग की घोषणा हुई. यह भी इत्तफाक ही था कि वह लड़की और बुजुर्ग दोनों यश की बगल की सीटों पर थे. बुजुर्ग को विंडो सीट और लड़की को बीच वाली सीट मिली थी.

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विमान के कैप्टन ने यात्रियों का स्वागत करते हुए कहा कि मुंबई से हौंगकौंग तक की उड़ान करीब 8 घंटे 35 मिनट की होगी. पर लगभग 2 घंटे के बाद विमान एक घंटे के लिए दिल्ली में रुकेगा. जिन यात्रियों को हौंगकौंग जाना है, कृपया अपनी सीट पर बैठे रहें. विमान परिचारिका ने सुरक्षा नियम समझाए. बुजुर्ग यात्री पहली बार हवाई जहाज से यात्रा कर रहे थे. उन्हें बैल्ट बांधने में लड़की ने मदद की. उन्होंने बताया कि वे कनाडा जा रहे हैं. वे कुछ दिन हौंगकौंग में अपनी भतीजी की शादी के सिलसिले में रुकेंगे.

फिर उन्हें हौंगकौंग से वैंकुवर जाना है. उन के बेटे ने उन का ग्रीनकार्ड स्पौंसर किया है.

निश्चित समय पर विमान ने टेकऔफ किया. बातचीत का सिलसिला यश ने शुरू किया. वह लड़की से बोला, ‘‘मैं यश मेहता, सौफ्टवेयर इंजीनियर हूं. मेरी कंपनी बैंकिंग सौफ्टवेयर बनाती है. अभी मैं एक प्रोडक्ट के सिलसिले में हौंगकौंग के बार्कले इन्वैस्टमैंट बैंक और एचएसबीसी बैंक जा रहा हूं.’’

‘‘ग्लैड टू मीट यू, मैं ऋचा शर्मा. हौंगकौंग में हमारा बिजनैस है.’’

‘‘तब तो आप अकसर वहां जाती होंगी.’’

‘‘जी नहीं, पहली बार जा रही हूं.’’

तब तक जलपान दिया गया. यश और ऋ चा ने देखा कि वे बुजुर्ग बारबार उठ कर बाथरूम जा रहे हैं जिस के चलते ऋचा को ज्यादा परेशानी हो रही थी. यश किनारे वाली सीट पर था तो वह अपने पैर बाहर की तरफ मोड़ लेता.

बुजुर्ग ने बताया कि उन्हें शुगर और किडनी दोनों बीमारियां हैं. उन की एक आदत यश और ऋ चा दोनों को बुरी लगी कि विमान परिचारिका जो भी कुछ सामान अगलबगल की सीट पर देती, वे अपने लिए भी मांग बैठते.

कुछ देर बाद विमान दिल्ली हवाई अड्डे पर उतर रहा था. करीब एक घंटे के बाद विमान ने हौंगकौंग के लिए उड़ान भरी. आधे घंटे के बाद डिनर सर्व हुआ. डिनर के बाद यश सोने की तैयारी में था. तभी ऋ चा ने अपने रिमोट से परिचारिका को बुलाने के लिए कौलबैल का बटन दबाया. थोड़ी देर में वह आई. ऋचा ने उस के कान में धीरे से कुछ कहा. परिचारिका ‘श्योर मैम, मैं देखती हूं,’ बोल कर चली गई.

कुछ ही देर बाद वह लौट कर आई. उस ने एक टिश्यू में लिपटा हुआ कुछ सामान ऋचा को दिया. बुजुर्ग ने कहा, ‘‘पुत्तर, एक मुझे भी दे दो.’’

परिचारिका बोली, ‘‘सर, यह आप के काम की चीज नहीं है.’’

‘‘तुम मुझे दो तो सही. मैं देख लूंगा, मेरे लिए है या नहीं.’’

ऋचा शरमा रही थी और अपनी हंसी भी नहीं छिपा पा रही थी. बारबार समझाने पर भी वे नहीं मान रहे थे. तब परिचारिका ने झुंझला कर कहा, ‘‘आप को भी मासिकधर्म है क्या?’’

बुजुर्ग बोले, ‘‘छि, क्या बोलती है?’’

तब जा कर उन की समझ में बात आई. यश ने कहा, ‘‘मैं देख रहा हूं आप हर चीज अपने लिए मांग रहे हैं?’’

‘‘आते समय मेरे बेटे ने समझाया था कि शर्म नहीं करना, सब चीजें जहाज में फ्री मिलती हैं.’’

यश हंस पड़ा. इसी बीच ऋचा सैनिटरी नैपकिन ले कर वौशरूम चली गई. 10 मिनट बाद वह लौट कर अपनी सीट पर आ रही थी. बगल की सीट पर बैठा यात्री सो रहा था और उस का हैडफोन नीचे गिरा था. ऋचा का पैर हैडफोन की तार में फंस गया, ऊपर से हाईहील, पैंसिल नोक वाली सैंडिल. ऋचा गिर पड़ी और उस की स्कर्ट भी कुछ इस तरह उठ गई थी कि उस का अधोवस्त्र भी झलकने लगा. वह उठने की कोशिश कर रही थी, पर दोबारा फिसल पड़ी थी. यश ने उसे सहारा दे कर अपनी सीट पर बैठाया और खुद बीच वाली सीट पर बैठ गया.

‘‘थैंक्स अ लौट,’’ ऋ चा बोली.

‘‘इट्स ओके. पर एक बात पूछूं, बुरा न मानिए.’’

ऋचा के पूछिए बोलने पर वह बोला, ‘‘आप हाईहील में सहज नहीं लगती हैं, फिर फ्लाइट में क्यों इसे पहन कर आई हैं?’’

‘‘हाईहील के बगैर मेरी हाइट 5 फुट से भी कम हो जाती है. वैसे, मैं रैगुलर इसे यूज नहीं करती.’’

थोड़ी देर बाद ऋ चा को नींद आ गई. उस ने नींद में यश के कंधे पर अपना सिर रख दिया. यश को उस का सामीप्य अच्छा लग रहा था. कंधे पर एक खुशनुमा बोझ तो था, पर उस के बदन और बालों की खुशबू यश को रोमांचित कर रही थी. वह यथावत स्थिति में बैठा रहा. उसे डर था कि कहीं हिलनेडुलने से ऋचा की नींद न टूट जाए और वह इस आनंद से वंचित रह जाए. बीच में कभी ऋचा की नींद खुलती तो वह सीधा हो कर बैठती, पर 5 मिनट के अंदर फिर यश के कंधों पर लुढ़क जाती.

इस बीच, यश ने दोनों सीटों के बीच वाले हिस्से को उठा कर खड़ा कर दिया. कभी तो ऋ चा का सिर उस के सीने पर भी आ जाता, तब उस की नींद खुलती और सौरी बोल कर सीधी हो जाती और बोलती, ‘‘मुझ से नींद बरदाश्त नहीं होती. मैं कहीं भी जाती हूं किसी तरह अपने सोनेभर की जगह बना ही लेती हूं.’’

यश ने कहा, ‘‘आप कहें तो मैं आप के लिए कुछ और जगह बना दूं. मेरे पैर पर तकिया रख कर सो लें.’’

‘‘ओह, नोनो.’’

पर 10 मिनट के अंदर उस का सिर यश के पैर पर रखे तकिए पर आ गया. यश को भी नींद आ रही थी, पर वह अपनी नींद कुरबान करने को तैयार था, बल्कि एकाध बार तो उस का दाहिना हाथ ऋ चा के बालों पर फिसलने लगता.

देखतेदेखते लैंडिंग की भी घोषणा हुई. तब यश ने धीरे से ऋचा का सिर हिला कर कहा ‘‘उठिए, बैल्ट बांधिए. हम हौंगकौंग पहुंच रहे हैं.’’

‘‘इतनी जल्दी आ गए. मुझे तो पता ही नहीं चला.’’ और फिर सीधा बैठ कर बैल्ट बांधती हुई बोली, ‘‘क्या मैं रातभर इसी तरह सोती आई? सौरी, आप को तकलीफ दी.’’

‘‘कोई बात नहीं, इट्स अ प्लेजर फौर मी. अगर सफर लंबा होता तो मुझे और खुशी होती.’’

ऋ चा मुसकरा कर रह गई. ऋ चा और यश दोनों का इमिग्रेशन और कस्टम एक ही डैस्क पर हुआ. वहीं लाइन में खड़े यश ने कहा, ‘‘आप के साथ का सफर बड़ा प्यारा रहा. क्या हम आगे भी मिल सकते हैं?’’

‘‘हां, मिलने में कोई बुराई नहीं है.’’

‘‘तो शाम को विंधम स्ट्रीट के इंडियन रैस्टोरैंट में मिलते हैं. जब हौंगकौंग आता हूं, वहां मैं अकसर डिनर करता हूं. लाजवाब स्वाद है वहां के खाने में.’’

ऋ चा हंस कर बोली, ‘‘तब तो वहां मैं जरूर मिलूंगी.’’

दोनों एयरपोर्ट से बाहर निकले. दोनों के लिए तख्तियां ले कर कार के ड्राइवर्स खड़े थे. दोनों अपनेअपने गंतव्य स्थान पर गए.

यश 2-3 घंटे होटल में आराम कर अपने काम पर चला गया. दिनभर वह शाम को ऋचा से होने वाली मुलाकात को सोच कर रोमांचित होता रहा.

यश ने शाम को उस इंडियन रैस्टोरैंट में अपने लिए टेबल बुक कर लिया था. होटल पहुंच कर वह अपने टेबल पर बैठा बारबार घड़ी देख रहा था. सोच रहा था कि ऋचा बोल कर भी क्यों नहीं आई. वह सोच ही रहा था कि तभी ऋचा एप्रन पहने सामने आ खड़ी हुई. उसे मेनू बुक देते हुए बोली, ‘‘गुड इवनिंग सर, आप खाने में क्या पसंद करेंगे?’’

यश उसे वेट्रैस की ड्रैस में देख कर घबरा गया और बोला, ‘‘तुम यहां वेट्रैस हो? यही तुम्हारा बिजनैस है?’’

‘‘रिलैक्स सर. अच्छा, आज मेरी पसंद का डिनर लें. आप को शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

यश ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाना चाहा तो वह बोली, ‘‘मैं डिनर ले कर आती हूं. दोनों साथ बैठ कर खाएंगे.’’

यश हैरानपरेशान सा बैठा था. थोड़ी देर में वह भरपूर खाना ले कर आई और एप्रन खोल कर रख दिया. दोनों खाते रहे. यश ने 2-3 बार पूछना चाहा कि क्या वह वेट्रैस है, पर हर बार वह टाल जाती.

खाना खत्म होते ही एक युवक उन के पास आया और उस ने ऋ चा से पूछा, ‘‘कुछ और चाहिए. खाना पसंद आया तुम्हारे वीआईपी गैस्ट को?’’

यश उस युवक की ओर देखने लगा. ऋ चा बोली, ‘‘मीट माई हस्बैंड, नीलेश.’’

यश भौचक्का सा कभी ऋचा, तो कभी नीलेश को देखता रहा. थोड़ी देर बाद नीलेश बोला, ‘‘हमारी शादी 2 महीने पहले इंडिया में हुई थी. इसे मायके में कुछ दिन रुकने का मन था. मैं यहां पहले चला आया. इस होटल में मेजर शेयर हमारा है. आप ने यात्रा में ऋचा की काफी सहायता की है. वह आप की बहुत तारीफ कर रही थी. दरअसल, इस टेबल की वेट्रैस आज छुट्टी पर है. ऋ चा बोली कि उस का एक खास गैस्ट आ रहा है, वह खुद मेहमाननवाजी करेगी. और आज का डिनर हमारी तरफ से कौंप्लीमैंट्री रहा.’’

यश अभी तक इस आश्चर्यजनक वाकए से उबर नहीं सका था, वह बोला, ‘‘ऋचा, आप ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘मैं ने कहा था कि मेरा बिजनैस है. पर जब आप ने इंडियन रैस्टोरैंट का नाम लिया तो मैं ने सोचा, क्यों न सरप्राइज दिया जाए, और आप को कुछ देर और रोमांचित होने का मौका दिया मैं ने.’’

‘‘नौट फेयर ऋचा, मुझे आप ने अपने बारे में अंधेरे में रखा.’’

ऋचा ने यश की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘वी विल रिमेन गुड फ्रैंड्स. इस होटल में जब भी चाहो, आ जाना. बिल नहीं भी देंगे तो भी चलेगा. पर हर बार मैं सर्व नहीं कर सकूंगी. होप यू डौंट माइंड.’’

नीलेश और ऋचा दोनों होटल के बाहर तक यश को छोड़ने आए.

यश ने टैक्सी ली और वापस अपने होटल आ गया. रिलैक्स हो कर सोफे पर बैठ गया. उसे एहसास हो रहा था कि हम बिना दूसरे के बारे में जाने न जाने क्याक्या सोच बैठते हैं. ऋचा को देख उस ने न जाने क्याक्या सोच लिया था. गलती तो उसी की थी. मन तो बावरा होता है, लेकिन अपनी सोच पर तो हमारी खुद की पकड़ होती है. यश को अपनेआप पर हंसी आ गई. फिर लंबी सांस भर कर बोला, ‘‘नौट अगेन.’’

मेरी उम्र 15 साल है, मुझे पीरियड्स समय से नहीं होते, इस का क्या कारण है, क्या मुझे अपनी जांच करानी चाहिए, कृपया उचित सलाह दें?

सवाल
मेरी उम्र 15 साल है. मुझे पीरियड्स समय से नहीं होते. अकसर ये निर्धारित समय से 2-4 दिन गुजर जाने के बाद होते हैं. इस का क्या कारण है? क्या मुझे इस समस्या के लिए किसी डाक्टर के पास जा कर अपनी जांच करानी चाहिए? मेरी एक सहेली का कहना है कि यह ठीक नहीं, इस से आगे जा कर मुझे परेशानी उठानी पड़ सकती है. कृपया उचित सलाह दें?

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जवाब

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आप का यों परेशान होना ठीक नहीं. सच तो यह है कि जिस चीज को ले कर आप चिंतित हैं, वह बिल्कुल सामान्य घटना है. यह ठीक है कि ज्यादातर स्त्रियों में मासिकचक्र 28 दिन का होता है, पर यह सच भी उतना ही बड़ा है कि बहुत सी स्त्रियों में यह चक्र 26 दिन का, 27 दिन का या 29 या फिर 30 दिन का होता है.

प्रत्येक स्त्री के शरीर में बनने वाले यौन हारमोन का घटनाबढ़ना, उस के शरीर की अपनी लयताल से निर्धारित होता है जोकि उस की अपनी विशेष होती है. इतना ही नहीं, यह मासिकचक्र समयसमय पर बहुत से अंदरूनी और बाहरी तत्त्वों से प्रभावित भी हो सकता है. भौगोलिक स्थान परिवर्तन, जलवायु, व्यक्तिगत स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य और यहां तक कि घर में या होस्टल में अन्य स्त्रियों के मासिक चक्र का भी इस पर प्रभाव होते देखा गया है.

आप का मासिकचक्र 30-32 दिन का है तो इस में कोई खास बात नहीं. इसे ले कर न तो आप को किसी डाक्टर के पास जाने की जरूरत है, न ही किसी ऐसी सहेली की सलाह से चिंतित होने की जरूरत है, जिसे मासिकधर्म के नियमों की ठीक से जानकारी नहीं. जांच की जरूरत सिर्फ तभी है जब मासिकधर्म देर से होने के साथसाथ अनियमित हो या उस में मासिक स्राव थोड़ी मात्रा में हो.

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उन दिनों रखें डाइट का ध्यान

पीरियड्स महीने के सब से कठिन दिन होते हैं. इस दौरान शरीर से विषाक्त पदार्थ निकलने की वजह से शरीर में कुछ विटामिनों व मिनरल्स की कमी हो जाती है, जिस की वजह से महिलाओं में कमजोरी, चक्कर आना, पेट व कमर में दर्द, हाथपैरों में झनझनाहट, स्तनों में सूजन, ऐसिडिटी, चेहरे पर मुंहासे व थकान महसूस होने लगती है. कुछ महिलाओं में तनाव, चिड़चिड़ापन व गुस्सा भी आने लगता है. वे बहुत जल्दी भावुक हो जाती हैं. इसे प्रीमैंस्ट्रुअल टैंशन (पीएमटी) कहा जाता है.

टीनएजर्स के लिए पीरियड्स काफी पेनफुल होते हैं. वे दर्द से बचने के लिए कई तरह की दवाओं का सेवन करने लगती हैं, जो नुकसानदायक भी होती हैं. लेकिन खानपान पर ध्यान दे कर यानी डाइट को पीरियड्स फ्रैंडली बना कर उन दिनों को भी आसान बनाया जा सकता है.

न्यूट्रीकेयर प्रोग्राम की सीनियर डाइटिशियन प्रगति कपूर और डाइट ऐंड वैलनैस क्लीनिक की डाइटिशियन सोनिया नारंग बता रही हैं कि उन दिनों के लिए किस तरह की डाइट प्लान करें ताकि आप पीरियड्स में भी रहें हैप्पीहैप्पी.

इन से करें परहेज

– व्हाइट ब्रैड, पास्ता और चीनी खाने से बचें.

– बेक्ड चीजें जैसे- बिस्कुट, केक, फ्रैंच फ्राई खाने से बचें.

– पीरियड्स में कभी खाली पेट न रहें, क्योंकि खाली पेट रहने से और भी ज्यादा चिड़चिड़ाहट होती है.

– कई महिलाओं का मानना है कि सौफ्ट ड्रिंक्स पीने से पेट दर्द कम होता है. यह बिलकुल गलत है.

– ज्यादा नमक व चीनी का सेवन न करें. ये पीरियड्स से पहले और पीरियड्स के बाद दर्द को बढ़ाते हैं.

– कैफीन का सेवन भी न करें.

अगर पीरियड्स आने में कठिनाई हो रही है तो इन चीजों का सेवन करें-

– ज्यादा से ज्यादा चौकलेट खाएं. इस से पीरियड्स में आसानी रहती है और मूड भी सही रहता है.

– पपीता खाएं. इस से भी पीरियड्स में आसानी रहती है.

– अगर पीरियड्स में देरी हो रही है तो गुड़ खाएं.

– थोड़ी देर हौट वाटर बैग से पेट के निचले हिस्से की सिंकाई करें. ऐसा करने से पीरियड्स के दिनों में आराम रहता है.

– यदि सुबह खाली पेट सौंफ का सेवन किया जाए तो इस से भी पीरियड्स सही समय पर और आसानी से होते हैं. सौंफ को रात भर पानी में भिगो कर सुबह खाली पेट खा लीजिए.

यह भी रहे ध्यान

– 1 बार में ही ज्यादा खाने के बजाय थोड़ीथोड़ी मात्रा में 5-6 बार खाना खाएं. इस से आप को ऐनर्जी मिलेगी और आप फिट रहेंगी.

– ज्यादा से ज्यादा पानी पीएं. इस से शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और शरीर डीहाइड्रेट नहीं होता. अकसर महिलाएं पीरियड्स के दिनों में बारबार बाथरूम जाने के डर से कम पानी पीती हैं, जो गलत है.

– 7-8 घंटे की भरपूर नींद लें.

– अपनी पसंद की चीजों में मन लगाएं और खुश रहें.

अन्य सावधानियां

– पीरियड्स में खानपान के अलावा साफसफाई पर भी ध्यान देना बेहद जरूरी है ताकि किसी तरह का बैक्टीरियल इन्फैक्शन न हो. दिन में कम से कम 3 बार पैड जरूर चेंज करें.

– भारी सामान उठाने से बचें. इस दौरान ज्यादा भागदौड़ करने के बजाय आराम करें.

– पीरियड्स के दौरान लाइट कलर के कपड़े न पहनें, क्योंकि इस दौरान ऐसे कपड़े पहनने से दाग लगने का खतरा बना रहता है.

– पैड कैरी करें. कभीकभी स्ट्रैस और भागदौड़ की वजह से पीरियड्स समय से पहले भी हो जाते हैं. इसलिए हमेशा अपने साथ ऐक्स्ट्रा पैड जरूर कैरी करें.

– अगर दर्द ज्यादा हो तो उसे अनदेखा न करें. जल्द से जल्द डाक्टर से चैकअप कराएं.

डाइट में फाइबर फूड शामिल करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह शरीर में पानी की कमी को पूरा करता है. दलिया, खूबानी, साबूत अनाज, संतरा, खीरा, मकई, गाजर, बादाम, आलूबुखारा आदि खानपान में शामिल करें. ये शरीर में कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स व विटामिनों की पूर्ति करते हैं.

कैल्सियम युक्त आहार लें. कैल्सियम नर्व सिस्टम को सही रखता है, साथ ही शरीर में रक्तसंचार को भी सुचारु रखता है. एक महिला के शरीर में प्रतिदिन 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होनी चाहिए. महिलाओं को लगता है कि दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी हो जाती है. लेकिन सिर्फ दूध पीने से शरीर में कैल्सियम की मात्रा पूरी नहीं होती. एक दिन में 20 कप दूध पीने पर शरीर में 1,200 एमजी कैल्सियम की पूर्ति होती है, पर इतना दूध पीना संभव नहीं. इसलिए डाइट में पनीर, दूध, दही, ब्रोकली, बींस, बादाम, हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें. ये सभी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और शरीर को ऐनर्जी प्रदान करते हैं.

आयरन का सेवन करें, क्योंकि पीरियड्स के दौरान महिलाओं के शरीर से औसतन 1-2 कप खून निकलता है. खून में आयरन की कमी होने की वजह से सिरदर्द, उलटियां, जी मिचलाना, चक्कर आना जैसी परेशानियां होने लगती हैं. अत: आयरन की पूर्ति के लिए पालक, कद्दू के बीज, बींस, रैड मीट आदि खाने में शामिल करें. ये खून में आयरन की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनीमिया होने का खतरा कम होता है.

खाने में प्रोटीन लें. प्रोटीन पीरियड्स के दौरान शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. दाल, दूध, अंडा, बींस, बादाम, पनीर में भरपूर प्रोटीन होता है.

विटामिन लेना न भूलें. ऐसा भोजन करें, जिस में विटामिन सी की मात्रा हो. अत: इस के लिए नीबू, हरीमिर्च, स्प्राउट आदि का सेवन करें. पीएमएस को कम करने के लिए विटामिन ई का सेवन करें. विटामिन बी मूड को सही करता है. यह आलू, केला, दलिया में होता है. अधिकांश लोग आलू व केले को फैटी फूड समझ कर नहीं खाते पर ये इस के अच्छे स्रोत हैं, जो हड्डियों को मजबूत बनाता है. विटामिन सी और जिंक महिलाओं के रीप्रोडक्टिव सिस्टम को अच्छा बनाते हैं. कद्दू के बीजों में जिंक पर्याप्त मात्रा में होता है.

प्रतिदिन 1 छोटा टुकड़ा डार्क चौकलेट जरूर खाएं. चौकलेट शरीर में सिरोटोनिन हारमोन को बढ़ाती है, जिस से मूड सही रहता है.

अपने खाने में मैग्निशियम जरूर शामिल करें. यह आप के खाने में हर दिन 360 एमजी होना चाहिए और पीरियड्स शुरू होने से 3 दिन पहले से लेना शुरू कर दें.

पीरियड्स के दौरान गर्भाशय सिकुड़ जाता है, जिस की वजह से ऐंठन, दर्द होने के साथसाथ चक्कर भी आने लगते हैं. अत: इस दौरान मछली का सेवन करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मलाई तो राजनीति में ही है

पहले वह खोटा सिक्का था, कहीं भी चल नहीं पाया. लेकिन राजनीति में आने के बाद खरा सोना बन गया है. आजकल जनसभाओं के लिए भीड़ इकट्ठी करने की होड़ के कारण कई युवाओं को पार्टी का झंडा उठा कर सक्रिय सदस्य बनना फायदे का सौदा लग रहा है. यही वजह है, पार्टी का सदस्य बनने से समाज में लोगों के सामने उस की हनक बढ़ती है, साथ ही, पैसे के जुगाड़ का एक जरिया भी बन जाता है. पैसे से इकट्ठा हुई भीड़ को न तो नेता से कोई सरोकार होता है और न ही भीड़ को नेता से. शायद, यही वजह है कि अब नेता मंच से कार्यकर्ताओं को संबोधित करने की जगह विपक्षी दलों पर हमलावर हो कर भाषा की मर्यादा भूल जाया करते हैं.

गुंडेबदमाशों को नकारने वाला समाज आज उन्हें अपने सिरआंखों पर बिठा रहा है. पहले लोग अपराधी का हुक्कापानी बंद करने के साथ उसे समाज से बहिष्कृत कर अलग कर देते थे, रिश्तेदार रिश्ता खत्म कर लेते थे. परंतु, अब उस का उलट हो गया है. जघन्य अपराधियों को संरक्षण देने के लिए आज घरवालों के साथसाथ राजनीति बांहें फैलाए स्वागत करने को तैयार रहती है. सचाई यह है कि अपराधी आज राजनीति के संरक्षण में फलताफूलता है. छोटेमोटे जुर्म में कानून से बचने के लिए ऐसे लोगों को पहले नेताओं का संरक्षण प्राप्त होता है, फिर देखते ही देखते वे जनप्रतिनिधि बन जाते हैं. 35 वर्षीय नकुल दोस्ती निभाने के लिए एक दिन एक राजनीतिक पार्टी के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ. वहां पर लाठी चली और वह पुलिस के हत्थे पड़ गया. वहां के सभासद के बीचबचाव करने की वजह से वह छूट गया. लेकिन लोगों ने उसे माला पहना कर कंधे पर बिठाया और फिर जुलूस निकाला.

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बस, तब उसे नेता बनने का चस्का लग गया. गले में माला पहन कर जब घर पहुंचा तो सब से पहले अपने मांबाप और बीवीबच्चों को समझा दिया कि यदि भविष्य में मलाई खानी है और लालबत्ती का सुख उठाना है तो थोड़ी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. घरखर्चे की कभी फिक्र रही नहीं क्योंकि पिता का बड़ा शोरूम था और काफी प्रौपर्टी थी, जिस का किराया आया करता था. अब तो उसे अपनी नेतागीरी चमकानी थी. सब से पहले लड़कों के खेलने के लिए पार्क में वौलीबौल कोर्ट बनवा दिया. अब तो लड़के उस के आगेपीछे घूमते. महल्ले के किसी लड़के के साथ कोई बात हो जाए या किसी लड़की या महिला के साथ कोई ऊंची आवाज में बात कर ले या फिर किसी रेहड़ी वाले को कोई परेशान कर रहा हो, वह अपने लड़कों की फौज के साथ पहुंच जाता. पार्षद जसवंत सिंह को उस के कामों की खबर लग गई.

उन्होंने उसे सलाह दी कि यदि नेता बनना है तो सब से पहले अपनी नैटवर्किंग मजबूत करो. राम अंकल ने गाड़ी खरीदी, उन्हें लाइसैंस बनवाना था. नकुल बड़े कौन्फिडैंस से बोला, ‘आप किसी को भेज दीजिए, बड़े बाबू अपने आदमी हैं, आप का काम हो जाएगा. एक मिठाई का डब्बा भिजवा दीजिएगा. मिठाई के डब्बे और सही कागजात के कारण काम हो गया, लेकिन क्रैडिट नकुल को मिल गया. अब तो लोग उस के घर पर चक्कर काटने लगे थे. एक रात वह गहरी नींद में था. तभी 2 बजे किसी को एंबुलैंस की जरूरत थी. वह तुरंत चप्पल पहन कर चल दिया. बुखार में तपती हुई पत्नी को उस के हाल पर छोड़ वह एकदोतीन हो चुका था. घरवाले उस की इन हरकतों से परेशान हो गए थे. अब वह अपने को कुछ स्पैशल समझने लगा था. घर में घुसते ही वह वीआईपी ट्रीटमैंट चाहता था. अपने को महाराजा से कम नहीं समझता. किसी घरेलू काम से मतलब न रखता. लेकिन चीखनेचिल्लाने में जरा भी देर न लगाता. बातें लंबीलंबी करता. पत्नी के बोलते ही लड़ाईझगड़ा शुरू कर देता व कभीकभी तो हाथ भी उठाने को तैयार हो जाता. कान पर फोन चिपका रहता और जबान से लफंगों वाली गालियां निकलतीं. वह अपने को ऐसे शो करता मानो उसी के इशारे पर दुनिया चलती है. जबतब दोचार लड़कों को ले कर आता और सब को चायनाश्ता, तो कभी खाना खिलाने के लिए कहता.

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देररात में आता लेकिन कभी फोन कर सूचना देने की जरूरत न समझता. 26 वर्षीय नरेश स्वभाव से मस्तमौला था. स्कूल के समय से डिबेट में अच्छा बोलता था. सत्तारूढ़ पार्टी के पार्षद के साथ दोस्ती हो गई. पार्टी के लोगों से जानपहचान हो गई थी. उस के भाषण की कला के कारण पार्टी में उस की हैसियत हो गई थी. छोटेमोटे कामों के लिए पार्षद अश्विनी बाबू का नाम ही काफी होता था. बड़े कामों के लिए अश्विनी बाबू थे ही. बस, जल्दी ही वह उन का दाहिना हाथ बन गया था. उसे कामकाज करवाने के तौरतरीके की अच्छी तरह जानकारी हो गई. घर पर काम करवाने वालों की भीड़ इकट्ठी होने लगी थी. अब घर पर भी उस की हनक बढ़ गई थी. जिस नरेश की घर में कोई इज्जत न थी, अब वह कमाऊ सपूत बन गया. सभासद का चुनाव वह आसानी से जीत गया था. अब विधायकजी तक उस की पहुंच हो गई थी. अब सब तरफ से उस पर पैसा बरसने लगा था. कलफदार कुरतेपाजामे के आवरण में उस का हर कानूनी व गैरकानूनी धंधे में लालच बढ़ता जा रहा था. जो पापा उसे चार बातें सुनाया करते थे, अब वह उन्हें दस बातें सुना दिया करता. बातबात में डींगें हांकना, गालियां उस की जबान से बेसाख्ता निकलने लगी थीं. उंगलियों में रंगबिरंगी अंगूठियों की संख्या बढ़ती जा रही थी. अब वह बड़ेबड़े सपने देखने लगा था.

घर में अब उस की तूती बोलने लगी थी, आखिरकार, उसे अब विधायक जो बनना था. रेबा, नीला की बचपन की सहेली थी. इन दिनों वह बहुत दुखी और परेशान सी रहती थी. ‘‘क्या बात है रेबा, परेशान दिख रही हो?’’ ‘‘अब तुम से क्या छिपाऊं, जब से नेता बन गए हैं, घर के कामों के लिए तमाम छुटभइए हैं. वे तो कभी यहां मीटिंग, तो कभी वहां. कभी दिल्ली तो कभी लखनऊ. चुनाव के दिनों में तो न दिन का पता न रात का. पहले कभी शराब को छूते नहीं थे, अब रोज रात को बोतल खाली करे बिना सोते नहीं. बस, पैसापैसा. मेरे लिए न बच्चों के लिए उन के पास समय नहीं होता. कोई रागिनी मैडम हैं, उन के यहां हाजिरी लगाना जरूरी है. मुझे तो लगता है कि बातबात पर झूठ भी बोलने लगे हैं. सुबहसुबह ही लोगों की भीड़ जमा हो जाती है. घर में घुसे नहीं कि फोन की घंटी बजने लगती है. अपने को जाने क्या समझने लगे हैं. घमंड के मारे सीधेमुंह बात भी नहीं करते हैं.

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‘दोचार लोकल अखबार वालों को कुछ देदा कर यहांवहां फोटो खिंचवा अपने को बहुत बड़ा नेता समझने लगे हैं. आज यहां प्रदर्शन, कल वहां धरना. शुरू में तो कई बार लाठीडंडा खा कर आए हैं. लेकिन अब जब से जिला अध्यक्ष बन गए हैं, पार्टी में हैसियत तो बढ़ गई है लेकिन साथ भी तो लफंगों का रहता है, इसलिए गुंडों वाली बातें करते हैं. ‘‘बाहर तो दूसरों के सामने सरजी, सरजी करते रहते हैं, तभी तो छुटभइए जीहुजूरी करते रहते हैं. ऐसे डींगें हांकेंगे जैसे प्रधानमंत्री इन्हीं से पूछ कर हर काम करते हैं. मैं तो इन से परेशान हो गई हूं.’’ नीला को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रेबा की परेशानी को सुलझाए. मध्य प्रदेश के भिंड में रहने वाला 23 वर्षीय राजन बेरोजगार युवक था. पिता की छोटी सी दुकान में उस का मन न लगता. उसे यहांवहां बैठ कर गपगोष्ठी में आनंद आया करता.

अपने जैसे दोचार दोस्तों के साथ बैठ कर पान मसाला का पाउच मुंह में भर हवाई बातें करा करता. घर में भाई नाराज होता, तो दुकान पर पिता लंबाचौड़ा भाषण पिला देते. उस की दोस्ती संजू से हो गई. वह पार्टी का छुटभइया नेता था. बस, वह भी उस के साथ पार्टी का झंडा उठा कर कार्यकर्ता बन गया. चुनाव के दिन थे. यहांवहां पार्टी के लिए लोगों की भीड़ जुटाना, पोस्टरबैनर लगाना, झंडियां लगाना, नेताजी के आगमन पर सारी व्यवस्थाएं करने के लिए उस जैसे ढेरों लड़कों की जरूरत होती है. इस के एवज में खानापीना, रुपयापैसा और दारू मिलती. अब तो वह व्यस्त भी और मस्त भी हो गया था. धीरेधीरे उस की पहचान बढ़ती गई और वह शहर का जानामाना नेता बन गया. वह यहांवहां दौड़धूप कर लोगों का काम करवा देता. तेज दिमाग तो था ही, सारे गुर सीख लिए थे, कमीशन फिक्स हो जाता. धीरेधीरे वह ठेकेदार बन गया. पिता को उस की नेतागीरी बिलकुल पसंद नहीं आ रही थी.

मां परेशान रहती क्योंकि हर बात पर झूठ बोलता. कोई भी किसी काम के लिए आता, तो कभी ना न करता और ऐसे दिखाता कि जैसे वह उस के काम के लिए जीजान से लगा हुआ है. शहर के नामी पैसे वाले रामेश्वरजी के परिवार के यहां गणेश परिक्रमा करता. उन की पत्नी को बहन बना कर बच्चों के लिए कुछ छोटामोटा उपहार ले कर पहुंच जाता. रामेश्वरजी को सम्मानित करवा कर मानपत्र दिलवा दिया. अस्पताल में फल बांटते हुए फोटो पेपर में प्रकाशित करवा कर उन का खासमखास बन बैठा. अब तो चंदे के नाम पर उस को लोग अपनेआप ही हजारदोहजार रुपए दे देते. वह लच्छेदार बातों से लोगों को अपने विश्वास में ले लेता. साथ में, दादागीरी भी चालू हो गई थी उस की क्योंकि अब वह समझने लगा था कि वह जो चाहे सो कर सकता है, सरकार उस की पार्टी की जो है. लोगों की जमीन पर कब्जा करना, मकान पर कब्जा कर के कागज में हेराफेरी करवा लेना उस के बाएं हाथ का खेल जैसा था. एक दिन वह एक जमीन पर रातोंरात कब्जा कर के वहां बाउंड्री बनवाने लगा था.

गालीगलौज के बाद ईंटपत्थर चल गए. दंगा भड़क गया. पुलिस आ गई. अब वह हाथपैर जोड़ने लगा. लेकिन पुलिस ने एक भी न सुनी. किसी तरह से वह 2 दिनों बाद किसी बड़े नेता के बीचबचाव के चलते छूट पाया था, परंतु अब उस का नेतागीरी का नशा ठंडा पड़ चुका था. सरकार बदल गई थी. अब रोजरोज उस की पुरानी फाइलें खोली जा रही थीं. आजकल माननीयों ने देश में जिस तरह से जातिवाद, क्षेत्रवाद, धनबल, बाहुबल की राजनीति को बढ़ावा दिया है, उस की वजह से राजनीति अपराधियों की शरणस्थली बन गई है. चुनावों में राजनीतिक दल क्षेत्रवाद व जातिवाद के आधार पर प्रत्याशियों का चयन करते हैं. उसी आधार पर जनता उन्हें विजयी भी बना देती है. हमारे माननीयों को विचार करने की आवश्यकता है कि धनबल और बाहुबल से जीत और सत्ता तो मिल सकती है परंतु इतिहास में पहचान बनाने के लिए एक आदर्श स्थापित करना होगा.

आज से ‘स्टार भारत’ पर एक बेटी की संघर्ष यात्रा-‘ तेरी लाड़ली मैं ‘

पितृसत्तात्मक सोच वाले भारतीय समाज की मान्यता है कि पारिवारिक निरंतरता और वंशावली को आगे बढ़ाने के लिए बेटा चाहिए. परिणामत हर भारतीय परिवार में बेटियों की उपेक्षा की जाती है. बेटियां की भ्रूण हत्या होती रहती हैं .जबकि यथार्थ यह है कि किसी भी परिवार को आगे बढ़ाने के लिए नारी का होना अत्यावश्यक है .लोगों को समझना होगा कि बेटियां दुनिया में एक नई इकाई को जन्म देने का कारण हैं. मगर हर लड़की अपने अधिकार की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रही है. इसी संघर्ष की लौ जगाने वाली एक अवांछित मूक बच्ची बिट्टी की कहानी ‘स्टार भारत ‘सीरियल ‘मैं लाड़ली तेरी’ के माध्यम से दिखाने जा रहा है .

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पैनोरमा एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड निर्मित यह सीरियल आज, 5 जनवरी 2021 से “स्टार भारत ” पर ही रात 8 बजे हर सोमवार से शुक्रवार को प्रसारित होगा. इस सीरियल में बेटी अपने खिलाफ खड़ी हर बाधा से लड़कर अपने पिता की स्वीकृति पाने के लिए जूझती नजर आएगी. इसमें बिट्टी के किरदार में मराठी भाषा की अदाकारा मयूरी कापड़ाने, उनकी मां के किरदार में हेमांगी कवि और पिता के किरदार में पंकज सिंह है. इसके अलावा    नीना चीमा, मेहुल निसार, विवान सिंह राजपूत, अंशु वार्ष्णेय और संगीता पंवार जैसे कलाकार प्रमुख भूमिकाओं में दिखाई देंगे.

‘तेरी लाडली मैं’ एक भावनात्मक कहानी है, जो एक मूक लड़की बिट्टी की कठिन यात्रा को बयां करता है, जिसे उसके जन्म से पहले ही अवांछित करार दे दिया जाता है.बिट्टी सकारात्मकता और उम्मीद का प्रतीक होंगी, जो कभी भी पीछे नहीं हटती और खुद को उस प्यार और विश्वास को हासिल करने के लिए प्रयासरत रखती हैं जो उसके पिता उसके भाई के प्रति दिखाते हैं

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यहसीरियल  भारतीय  मानसिकता को बदलने को लेकर अपना मजबूत संदेश देने लिए प्रयासरत है जहां लोग अभी भी विश्वास करते हैं कि एक परिवार केवल एक बेटे के जन्म के साथ पूरा होता है.

 बहुमुखी अभिनेत्री मयूरी कपाडने कहती हैं-“एक अभिनेत्री के तौर पर, आप सभी शेड्स को निभाना चाहते हैं. यह वास्तव में रोमांचक है जब आप अपने दर्शकों को अपने किसी ख़ास किरदार सेचतकरते हैं.मुझे लगा कि एक अभिनेता के हर  पहलू को देखते हुए यह अच्छा अवसर है.इस भूमिका के जरिए मैं दुनिया के लिए अपनी विश्वसनीयता साबित करना चाहती हूं. मैं इस शो में बिट्टी का किरदार निभा रही हूं.यह एक अवांछित मूक लड़की की कहानी है जो अपने पिता की स्वीकृति के लिए तरसती है. नियमित अभिनेत्री की भूमिका निभाना सभी के लिए आसान है, लेकिन अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलकर किसी किरदार को निभाना एक चुनौती है. मेरे इश्क दा करो गाना सबसे बड़ी चुनौती है.” 

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वहीं अभिनेत्री हेमांगी कवि कहती हैं- “मैं शो में उर्मिला यानी बिट्टी की माँ का किरदार निभा रही हूं. हर माँ की तरह मेरा किरदार भी अपनी बेटी का समर्थन करता है भले ही लोग उसके खिलाफ हों. मुझे लगता है कि मैं बहुत लकी हूँ जिसे इस तरह की महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अवसर मिला है और मुझे उम्मीद है कि इस शो के जरिए हम इस सामाजिक संदेश को बढ़ावा देने में सफल होंगे कि हर बच्चा अपने आप में ख़ास है चाहे वह लड़की हो या लड़का.”

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अभिनेता पंकज सिंह कहते हैं- ” मैं सुरेंद्र यादव नामक पितृसत्तात्मक पिता की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा हूँ. वह इस बात का दृढ़ता से विश्वास रखने वाला व्यक्ति हैं कि परिवार में दूसरी लड़की नहीं होनी चाहिए.इस शो का विषय बहुत संवेदनशील और लोगों को जोड़ने वाला है. इस शो के माध्यम से मैं समाज को एक सकारात्मक संदेश देने को लेकर आशान्वित हूँ जो लड़कियों के साथ भेदभाव करते हैं.”

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