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सयोनी: हर स्तर पर प्रभावहीन

फिल्म समीक्षाः सयोनी

रेटिंग:एक स्टार

निर्माणः लकी नाडियाडवाला मोरानी प्रोडक्शंस और डी एंड टी प्रोडक्शंस प्रा.लिमिटेड
निर्देशक: नितिन कुमार गुप्ता और अभय सिंघल
कलाकार:तन्मय सिंह,मुसकान सेठी, योगराज,राहुल रॉय, उपासना सिंह व अन्य.
अवधि: एक घंटा 52 मिनट

काफी लंबे समय बाद यूके्रन में फिल्मायी गयी एक्शन,संगीत और रोमांस प्रधान फिल्म‘‘सयोनी’’लेकर आए हैं नितिन कुमार गुप्ता और अभय सिंघल.फिल्म में नए कलाकारों की भरमार है.मगर कथानक में कुछ भी नयापन नही है.

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कहानीः
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित शूटिंग चैंपियन राजदीप रंधावा(तन्मयिॆ सिंह) एक निर्दोष, हर्षित, खुशी भाग्यशाली पंजाबी लड़का है,जिसके पिता कुष्ती(योगराज सिंह ) लड़ना और षूटर बनने की ट्रेनिंग देते हैं.राजदीप की मां(उपासना सिंह ) हमेशा उसकी भलाई सोचती रहती है.जिस दिन राजदीप रंधावा अंतरराष्ट्रीय शूटर की चैपिंयनशिप जीतने के लिए जा रहा होता है,तो उसकी मुलाकात खुशमिजाज व जिंदादिल लड़की माही (मुस्कान सेठी से) से होती है,जो उसका गोल्ड मैडल चुरा लेती है और फिर वादा करती है कि राजदीप के पिता के हाथ में जाकर देगी.माही बोटानी/वनस्पति विज्ञान की पढ़ाई कर रही है.और उच्च शिक्षा के लिए रशिया के एक काॅलेज में प्रवेश चाहती है. राज के घर माही के पहुॅचने के बाद दोनों के बीच प्यार हो जाता है.

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फिर माही को अपने शोध के लिए रूस के एक विश्वविद्यालय से निमंत्रण मिलता है.जब माही रूस पहुंचती है,तो वह एक भयावह साजिश में फंस जाती है और खुद को फंसा हुआ पाती है.मदद के लिए बेताब माही,राज को फोन करती है.वीडियो कॉल में राज अपनी आँखों के सामने अपनी प्रेमिका व अपने जीवन माही को अपहृत देखता है.माही को वापस पाने के लिए दृढ़ संकल्पित राज रूस के लिए रवाना हो जाता है, जहाँ वह कुछ चैंकाने वाली सच्चाईयों का पता लगता है.

अपने जीवन के प्यार को खोजने के लिए जब राज खुद रुस पहुॅचता है तो उसका साबका भ्रष्ट इंडियन रशिया पुलिस इंस्पेक्टर रसान( राहुल राॅय)से पड़ता है.अब उसके सामने यह पता लगाने की चुनौती है कि एक बहुत बड़े आपराधिक सिंडिकेट /माफिया का वनस्पति विज्ञानी बनने के लिए पढ़ रही एक भारतीय लड़की के साथ क्या संबंध है? माही के अपहरण के पीछे कौन है?यह जाल काफी पेचीदा हैं?

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लेखन व निर्देशनः
कहानी बहुत ही पुरानी है.कुछ समय पहले इसी तरह की कहानी पर फिल्म‘खुदा हाफिज’ आयी थी,जिसे पसंद नही किया गया था.वीएफएक्स भी बहुत घटिया है.ऐसे में कोरोना महमारी के डर के चलते दर्षक क्या सोचकर इस फिल्म को देखने सिनेमाघर के अंदर जाएगा,यह कहना बड़ा मुष्किल है.पूरी फिल्म देखकर अहसास होता है कि अभिनेता तन्मय सिंह के लिए ‘षो रील’बनाने के लिए इस फिल्म को एक अति साधारण कहानी का तानाबाना बुनकर बनाया गया है.दो निर्देषक होने के बावजूद कोई प्रभाव नही डाल पाए.

अभिनयः
फिल्म में तन्मय सिंह और मुस्कान सेठी की नई जोड़ी है,जिन्हे खुद को कलाकार के तौर पर स्थापित करने के लिए अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है.

‘नागिन 5’: वीर देगा बानी को धोखा , चांदनी के साथ लेगा सात फेरे

नागिन 5 के शुरुआती दिनों में खूब पसंद किया जा रहा था. टीआरपी लिस्ट में भी खूब छाया हुआ था लेरिन कुछ महीनों बाद इसकी टीआरपी अपने आप धीरे-धीरे नीचे गिरने लगी. जिसे आगे करने के लिए शो के प्रॉड्यूसर आए दिन कुछ न कुछ नया करते हैं.

पिछले हफ्ते सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही थी जिसमें शरद मल्होत्रा और सुरभी चंदेल जमकर रोमांस करते नजर आ रहे थें. इस सीन को देने के बाद फैंस का खुशी का ठीकाना नहीं था.

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खैर फैंस की खुशी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई. कुछ दिनों बाद ही एक दूसरी तस्वीर वायरल हुई जिसमें शरद मल्होत्रा किसी और लड़की के साथ शादी के कॉस्ट्यूम में नजर आ रहे हैं.

जिसे देखऩे के बाद फैंस के होश उड़ गए. चांदनी कोई औऱ नहीं है बल्कि वीर की बचपन  की दोस्त है. चांदनी की एंट्री होते ही वीर औ बानी के बीच दूरियां बढ़ने लगी हैं. वहीं लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि सीरियल कौन से मोड़ पर जा रहा है.

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अब लग रहा है कि वीर बानी को देखऩे के बाद की वीर बानी को देखा देकर चांदनी के साथ चला जाएगा लेकिन क्या सच में ऐसा होगा या फिर कुछ वक्त के लिए ही ये सब हो रहा है.

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वैसे देखा जाए तो ये कोई नई बात नहीं है नागिन 5 में आए दिन कुछ न कुछ होता रहता है. देखऩा है कि बानी और वीर मिल पाएंगे कि नहीं.

ड्रग्स केस में करण जौहर को एनसीबी के डायरेक्टर ने भेजा समन, मांगा है जवाब

सुशांत सिंह राजपूत के मौत के बाद से लगातार बॉलीवुड़ इंडस्ट्री में ड्रग्स की जांच तेजी से हो रही है. इस मामले में अभी तक कई लोगों की गिफ्तारी हो चुकी है. और कई सेलिब्रिटी से पूछताछ जारी है. इस लिस्ट में इन दिनों करण जौहर का नाम सामने आ रहा है.

खबरों की माने तो एनसीबी के डायरेक्टर ने करण जौहर से उनके घर हुए विवादित पार्टी पर बयान मांगा है. जिस पार्टी का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. एक रिपोर्ट में दावा हुआ है कि करण जौहर के घर समन भेजा गया है.

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जिसमें फिजीकल अपीयर करने की जरुरत नहीं है लेकिन लगातर उन लोगों से संपर्क बनाए रखना होगा.

साल 2019 में करण जौहर के घर पर एक पार्टी हुई थी. जिसमें बॉलीवुड के सभी दिग्गज कलाकार आएं थें. मलाइका अरोड़ा, अर्जुन कपूर , शाहिद कपूर, मीरा राजपूत, विक्की कौशल के आलावा और भी कई कलाकार मौजूद थें.

 

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इस पार्टी का वीडियो करण जौहर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर किया था. जिस पर जमकर विवाद हुआ था. वीडियो में कई कलाकार नशे में लग रहे थें. जिसे देखकर लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि उन्होंने ड्रग्स लिया है.

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वहीं वीडियो में विक्की कौशल के पास सफेद रंग का पाउडर जैसा कुछ नजर आ रहा था. जिसकी तस्वीर इंटरनेट पर आज भी वायरल होती रहती है.

 

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फिल्म डायरेक्टर करण जौहर इस पर कई बार सफाई दे चुकें हैं लेकिन करण की बातों पर लोगों को यकिन करना मुश्किल है.

Satyakatha: ‘उधारी’ का उधार का प्यार

सौजन्या- सत्यकथा

नाजायज संबंध बनाए रखने के लिए चाहे कितनी भी सतर्कता बरती जाए, एक न एक दिन उन की पोल खुल ही जाती है. इस के बाद भी इन संबंधों को जारी रखने पर एक अपराध जन्म ले लेता है. काश! इस बात को ममता और संजीव जान लेते तो…

उस रोज बेचू अपने निर्धारित समय से पहले ही घर के लिए निकल पड़ा था. अभी वह अपनी गली के नुक्कड़ पर

ही पहुंचा था कि उस ने अपने घर की तरफ से संजीव यादव उर्फ उधारी को आते हुए देखा. संजीव को देख कर बेचू का माथा ठनका. उस के दिलोदिमाग पर शक काबिज हो चुका था. वह तेज कदमों से घर के अंदर दाखिल हुआ तो उस की पत्नी ममता उसे देखते हुए थोड़ी हड़बड़ाई फिर मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्या हुआ, आज कैसे जल्दी आ गए?’’

‘‘क्यों, जल्दी आने पर कोई पाबंदी है क्या?’’ बेचू ने पत्नी के अस्तव्यस्त कपड़ों को गौर से देखते हुए तंज किया.

‘‘लगता है आज तुम फिर लड़ाई के मूड में हो. मैं ने पूछ कर कोई गुनाह कर दिया क्या?’’ पत्नी बोली.

‘‘पहले यह बता कि संजीव यहां क्यों आया था?’’ बेचू ने पत्नी ममता से सीधे सवाल किया.

‘‘कौन संजीव?’’ ममता के चेहरे पर हैरानी उभरी.

‘‘वही संजीव, जो अभीअभी यहां से बाहर निकला है. ढोंग क्यों करती है, साफसाफ बता.’’ बेचू लगभग चीखने वाले अंदाज में बोला.

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शौहर के तेवर देख कर एक पल के लिए ममता सकपका गई, लेकिन जल्द ही संभल कर बोली, ‘‘तुम्हारे दिमाग में तो लगता है शक बैठ गया है. हर वक्त उल्टा ही सोचते रहते हो. मैं कह रही हूं न कि घर में कोई नहीं आया था.’’

बेचू को लगा कि उस की पत्नी सफेद झूठ बोल रही है. जबकि उस ने संजीव को खुद अपनी आंखों से अपने घर की तरफ से आते देखा था. उस ने आव देखा न ताव, एक झन्नाटेदार चांटा ममता के गाल पर जड़ दिया, ‘‘कमीनी, कुछ तो शरम कर, कम से कम अपने बच्चों की शरम कर. मेरी तो किस्मत ही फूट गई जो तुझ जैसी बेहया औरत से पाला पड़ गया.’’

आक्रोश और आवेग के मारे बेचू रोने लगा तो ममता अपना गाल सहलाती हुई धीमे बोली, ‘‘देखो जी, बिना पूरी बात जाने तुम गुस्से में मत आया करो. बेकार ही तुम मुझ पर लांछन लगा रहे हो. वह आया जरूर था, पर मैं ने उसे दरवाजे से ही भगा दिया. तुम बेकार में ही मुझ पर तोहमत लगा रहे हो. क्या मुझे तुम्हारी इज्जत का खयाल नहीं है?’’

बेचू ने ममता की आंखों में देखा तो वहां आंसू झिलमिला रहे थे. उस ने सोचा कि कहीं उस से गलती तो नहीं हो गई. शायद ममता सच बोल रही हो.

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बेचू उत्तर प्रदेश के जनपद बलिया के ब्रहमाइन गांव के रहने वाले सरल यादव का बेटा था. वह छोटा ही था जब उस के मांबाप की मृत्यु हो गई थी. उस की बड़ी बहन रागिनी ने ही उसे पाला था.

15 साल पहले बेचू का विवाह बलिया के थाना रेवती के गांव वशिष्ठ नगर निवासी ममता से हो गया. ममता काफी खूबसूरत थी. उस की खूबसूरती में बेचू खो सा गया. वह अपने आप को खुशकिस्मत समझता था कि ममता जैसी सुंदर पत्नी उसे मिली है. इसलिए वह उस पर जम कर प्यार लुटाता था. इस प्यार का परिणाम भी कुछ समय पर सामने आने लगा. ममता ने एक बेटी प्रियांशी (10 वर्ष) और 3 बेटों पीयूष (8 वर्ष), प्रिंस (6 वर्ष), विशाल (4 वर्ष) को जन्म दे दिया.

परिवार बढ़ गया तो परिवार के भरणपोषण में दिक्कतें आने लगीं. उसे मेहनतमजदूरी कर के इतना पैसा नहीं मिल पाता था कि वह आसानी से अपने परिवार कर खर्चा उठा ले. जबकि बेचू सुबह 8 बजे घर से निकलता तो रात को कभी 9 बजे तो कभी 11 बजे ही घर में घुस पाता था.

जो इंसान सुबह से देर रात तक मेहनत करेगा तो जाहिर है उस का बदन थक कर चूरचूर हो ही जाएगा. बेचू भी जब घर पहुंचता तो वह काफी थकाहारा होता था. ऐसे में वह किसी तरह खाना खा कर चारपाई पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता.

उधर 4 बच्चों की मां बनने के बाद भी ममता की जवानी उफान पर थी. जबकि बेचू की थकान उस की हसरतों का गला घोंट देती थी. बलिया के हलदी थाना क्षेत्र के हरिहरपुर गांव में भोला यादव रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी सीमा और 2 बेटे संजय और संजीव उर्फ उधारी थे. संजीव सब से छोटा था. वह अविवाहित था. संजीव बनारस के एक होटल में खाना बनाने का काम करता था. वह चाइनीज फूड काफी अच्छा बनाता था.

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मंदिर पर हुई मुलाकात

हरिहरपुर से ब्रहमाइन गांव के बीच की दूरी महज 7 किलोमीटर थी. ब्रहमाइन गांव में ब्रहमाणी देवी का मंदिर था. संजीव अकसर मंदिर में माता रानी के दर्शन के लिए आता था. मंदिर के पास में ही बेचू का घर था. बेचू तो सुबह ही काम पर निकल जाता था और देर रात लौटता था. उस की पत्नी ममता मंदिर पर ही अधिकतर बनी रहती थी. वहीं पर ममता की जानपहचान संजीव से हुई थी. दोनों में परिचय हुआ तो बातें हुईं. एकदूसरे से मिल कर उन्हें काफी खुशी हुई.

उस दिन के बाद उन की मुलाकातें अकसर मंदिर पर होने लगीं. ममता को अपने से कम उम्र का संजीव पहली ही नजर में भा गया था. ममता की खूबसूरती और उस के बारे में जान कर संजीव भी उस में रुचि लेने लगा. दोनों में जब काफी मेलमिलाप होने लगा तो ममता उसे अपने घर भी ले जाने लगी.

दोनों का साथ रंग दिखाने लगा था. वह एकदूसरे के आकर्षण में बंध गए थे. जब भी उन का आमनासामना होता तो दोनों के होंठ स्वत: ही मुसकरा उठते थे.

संजीव जल्द से जल्द ममता से नजदीकी संबंध बनाना चाहता था. ममता को देख कर संजीव की कामनाएं अंगडाइयां लेने लगती थीं. एक दिन जब वह ममता के घर आया तो सजीधजी ममता को देख कर उस का मन डोल गया. संजीव उसे अपनी कल्पनाओं की दुलहन बना कर न जाने क्याक्या सोचने लगा. तभी ममता चाय बना कर ले आई. दोनों की नजरें मिलीं तो एक मूकसंदेश का आदानप्रदान हो गया. संजीव ने ममता की आंखों में प्यास देख ली थी तो ममता ने भी उस की आंखों में कामना का पानी.

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उस रोज के बाद संजीव का बेचू के घर आनाजाना शुरू हो गया. बेचू ममता को भाभी कह कर बुलाता था, इस नाते ममता से हंसीमजाक भी कर लिया करता था.

एक दिन संजीव ममता के घर गया तो उस समय वह अकेली थी. अंदर आते ही उस ने पूछा, ‘‘भाभी, बच्चे घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि इस वक्त बच्चे घर पर नहीं होते.’’ ममता ने उस की आंखोें में आंखें डाल कर कहा तो वह एकदम ऐसे सकपका गया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. सच भी यही था. वह जानबूझ कर ऐसे समय आया था.

‘‘तुम तो बहुत पारखी हो भाभी.’’

‘‘औरत की नजरें मर्द के मन को अच्छी तरह पहचानती हैं संजीव.’’ ममता ने इठलाते हुए कहा, ‘‘बैठो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं.’’

संजीव पलंग पर बैठ गया, ‘‘तुम ने तो मेरी चोरी पकड़ ली, लेकिन यह नहीं बताया कि मेरा इस तरह आना तुम्हें बुरा तो नहीं लगता?’’

‘‘बुरा लगता तो इस तरह चाय के लिए क्यों पूछती?’’ ममता ने आंखें नचाईं.

‘‘एक बात कहूं, भाभी?’’ संजीव ने सूखे गले से थूक निगलते हुए कहा.

‘‘कहो.’’ ममता की आंखों में उम्मीद की एक नई चमक आ गई.

‘‘तुम बहुत अच्छी हो. जब से तुम्हें देखा है, मन बारबार तुम्हें देखने को मचलता रहता है.’’ संजीव ने कहा.

‘‘ये सब कहने की बातें हैं, संजीव. पहले ये भी ऐसा कहते थे. सब मर्द एक जैसे होते हैं. बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और.’’ ममता ने ताना मारा.

‘‘बेचू तो तुम्हारी कद्र करना ही नहीं जानता. इंसान की आंखें भी तो दिल का हाल बयां कर देती हैं. मैं ने तुम्हारी आंखों में तुम्हारे दिल का दर्द देखा है.’’ संजीव को जैसे बात कहने का मौका मिल गया.

संजीव की बातों में ममता को भी मजा आ रहा था. यही वजह थी कि वह चाय बनाना ही भूल गई. अचानक खयाल आया तो वह बोली, ‘‘मैं तो चाय बनाना ही भूल गई.’’

‘‘रहने दो भाभी, बस तुम्हें देख लिया, आत्मा तृप्त हो गई, अब मैं चलता हूं.’’ यह कह कर संजीव उर्फ उधारी चला तो गया लेकिन ममता की हसरतों को हवा दे गया था.

ममता भी होने लगी आकर्षित

ममता अब संजीव की फूटती जवानी का ख्वाब देखने लगी थी. अब संजीव और ममता के बीच होने वाला हंसीमजाक छेड़छाड़ तक पहुंच गया था. संजीव जबतब ममता के घर आता तो उस के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता.

एक दिन ममता ने उसे दबे स्वर में टोका, ‘‘तुम्हें बच्चों की खुशी का तो बहुत खयाल रहता है, लेकिन भाभी की खुशी का खयाल नहीं रहता.’’

अपनी बात कह कर वह मुसकराई तो संजीव उस का इशारा फौरन समझ गया. बात यहां तक पहुंची तो संजीव एक कदम आगे बढ़ा, ‘‘भाभी, तुम्हारी आंखों की चाहत मुझे यहां खींच लाती है.’’ कह कर उस ने ममता का हाथ पकड़ लिया.

तभी ममता बोली, ‘‘छोड़ो, मैं तुम्हें चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘इस तनहाई में मैं चाय पीने नहीं, तुम्हारी आंखों के जाम पीने आया हूं.’’ संजीव ममता के एकदम करीब खिसक आया, ‘‘बोलो पिलाओगी?’’

‘‘मैं ने कब मना किया, ममता भी उस के सीने से लग गई. पर पहले दरवाजा तो बंद कर लो.’’

ममता का खुला आमंत्रण पा कर संजीव की बांछें खिल गईं. उस के बाद जो हुआ वह किसी भी लिहाज से सही नहीं कहा जा सकता.

उस दिन के बाद तो यह सिलसिला चल निकला. जब भी उन्हें मौका मिलता, वह एकदूसरे की बांहों में समा जाते. लेकिन कहते हैं कि बुराई ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सकती.

पड़ोसियों को हुआ शक

आसपड़ोस के लोगों को संजीव का बारबार बेचू की गैरमौजूदगी में उस के घर आना अखरने लगा था. वे समझ गए थे कि संजीव और ममता के बीच जरूर कोई खिचड़ी पक रही है. अब उन दोनों के संबंधों की चर्चा होने लगी. उड़तेउड़ते यह बात बेचू के कानों तक भी पहुंची तो उसे पहले यकीन नहीं आया.

जब लोगों ने उस पर ताने कसने शुरू कर दिए तो एक दिन उस ने ममता को समझाया, ‘‘मैं ने सुना है कि मेरी गैरमौजूदगी में संजीव घर आता है.’’

‘‘हां, कभीकभी आ जाता है, बच्चों से मिलने के लिए.’’ ममता ने झूठ बोल दिया.

‘‘तुम्हें पता है कि मोहल्ले वाले तुम्हें ले कर तरहतरह की बातें करने लगे हैं?’’

‘‘पड़ोसियों का क्या है, वे किसी को खुश कहां देख सकते हैं, इसलिए मनगढ़ंत कहानी रच रहे हैं. क्या तुम्हें लगता है कि मैं ऐसा गलत काम करूंगी?’’ ममता ने यह सवाल किया तो बेचू उल्टा शर्मिंदा हो गया. उसे लगा कि उस ने पत्नी पर शक कर के ठीक नहीं किया. इस बीच उस ने शक होने पर एकदो बार ममता की पिटाई भी की लेकिन ममता हमेशा यह सिद्ध करने में सफल रही कि पति का शक झूठा है.

लेकिन बेचू के मन में शक का कीड़ा जन्म ले चुका था, जो कि कुलबुलाता रहता था. एक शाम बेचू जल्दी काम से वापस आ गया. उसे अपने बच्चे रास्ते में खेलते मिले तो उस ने सोचा कि ममता बाजार गई होगी. उस ने बच्चों से पूछा, ‘‘मम्मी कहीं गई है क्या?’’

‘‘नहीं, घर में हैं.’’ उस की बेटी ने जवाब दिया.

बेचू घर पहुंचा. उसे यह देख कर ताज्जुब हुआ कि ममता ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर रखा था. उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो कुछ देर बाद दरवाजा संजीव ने खोला. अपने सामने यूं अचानक बेचू को खड़ा पा कर उस के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. बेचू सीधा कमरे में पहुंचा. वहां का दृश्य देख कर वह हक्काबक्का रह गया.

ममता बिस्तर पर चादर लपेटे पड़ी थी. बेचू ने आगे बढ़ कर उस की चादर खींच दी. ममता के जिस्म पर एक भी कपड़ा नहीं था. यह देख कर बेचू का खून खौल उठा. वह उसे खा जाने वाली नजरों से घूरते हुए बोला, ‘‘बदजात औरत, मुझे धोखा दे कर यह गुल खिला रही है तू?’’

ममता और संजीव का चेहरा सफेद पड़ गया. दोनों रंगे हाथ जो पकड़े गए थे. ममता ने फटाफट कपड़े पहने और अपने किए पर पति से माफी मांगने लगी, जबकि संजीव मौका देख कर वहां से खिसक गया. बेचू ने ममता को माफ नहीं किया, बल्कि उस की जम कर पिटाई कर दी.

रंग चुकी थी प्रेमी के रंग में

इस के बाद ममता और संजीव कुछ दिन तो शांत रहे लेकिन जब दूरियां बरदाश्त नहीं हुईं तो फिर से पुरानी हरकतों पर उतर आए. इस से पतिपत्नी में आए दिन लड़ाईझगड़े होने लगे.

ममता तो पूरी तरह संजीव के रंग में रंग गई थी. उसी के साथ अपनी जिंदगी बिताने का सपना देखने लगी थी. वह तो अपने नाजायज रिश्ते में डूब कर इतनी अंधी हो गई कि उसे उस के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.

26 जनवरी, 2020 को सुबह 5 बजे के करीब गांव के शिवजी यादव बेचू के घर दूध लेने गया तो मेन गेट से घुस कर जैसे ही वह अंदर गया तो जमीन पर बेचू मृत अवस्था में पड़ा मिला. उस ने तुरंत शोर मचा कर गांव के लोगों को एकत्र कर बात बताई. गांव में ही बेचू के चाचा का परिवार भी रहता था. बेचू के मकान से उन के मकान की दूरी करीब 700 मीटर थी.

खबर सुन कर बेचू का चचेरा भाई रविशंकर यादव उस के घर पहुंचा. बेचू की लाश देखने के बाद उस ने सवा 6 बजे सुखपुरा थाने में फोन कर के सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर वीरेंद्र यादव अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का मुआयना किया तो बेचू की गरदन पर गहरे घाव थे. वह घाव किसी तेजधार हथियार के थे.

उस समय बेचू की पत्नी ममता बच्चों के साथ अपनी बहन के बेटे के मुंडन संस्कार में शामिल होने टिकुलिया दियर गई थी. उसे सूचना मिली तो वह भी घर वापस आ गई और पति की मौत पर रोने लगी.

इंसपेक्टर वीरेंद्र यादव ने ममता और ग्रामीणों से आवश्यक पूछताछ की. इस के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी. पुलिस ने मृतक के ताऊ के बेटे रविशंकर यादव की तरफ से अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

काल डिटेल्स से मिला सुराग

प्रारंभिक जांच में इंसपेक्टर यादव को ममता के प्रेमप्रसंग की जानकारी हुई. उस के प्रेमप्रसंग के बारे में पूरा गांव जानता था. उन्होंने ममता के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक नंबर पर उस की सब से अधिक बातें होने की जानकारी मिली. यहां तक कि घटना से पहले और बाद में भी ममता की उस नंबर से बात हुई थी. वह नंबर संजीव यादव का था जो कि ममता का प्रेमी था.

घर में बेचू और ममता के अलावा कोई रहता था तो वो थे उन के बच्चे. इंसपेक्टर यादव ने बच्चों से बात की तो उन्होंने बताया कि 24 जनवरी को संजीव अंकल घर आए थे, साथ में साड़ी और गिफ्ट भी लाए थे. तभी पापा आ गए तो संजीव अंकल चले गए. फिर मम्मीपापा में झगड़ा हुआ.

इंसपेक्टर यादव ने संजीव के घर दबिश दी तो वह घर से फरार मिला. इस के बाद उन्होंने 30 जनवरी, 2020 को सुबह 7 बजे हनुमानगंज बसंतपुर मार्ग पर आंवला नाला पर स्थित पुलिया से संजीव यादव को एक मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि बेचू की हत्या में ममता भी शामिल थी. इस के बाद ममता को भी घर से गिरफ्तार कर लिया गया.

दोनों से पूछताछ के बाद पता चला कि ममता और संजीव साथ जिंदगी जीने का फैसला कर चुके थे. इसलिए 24 मई, 2019 को ममता और संजीव ने शहर के भृगुजी के मंदिर में विवाह कर लिया. संजीव से विवाह के बाद भी ममता बेचू के साथ ही रहने लगी. संजीव से उस के संबंध पहले की तरह चलते रहे.

ममता का पति बेचू से विवाद होता रहता था. 24 जनवरी को संजीव ममता के लिए साड़ी और गिफ्ट ले कर घर आया. तब ममता खुशी से फूली नहीं समाई. लेकिन उस की खुशी ने तब दम तोड़ दिया, जब उस का ब्याहता बेचू भी उसी समय घर आ गया.

बेचू के आते ही संजीव उर्फ उधारी वहां से चला गया. इस के बाद संजीव को ले कर ममता और बेचू के बीच जम कर झगड़ा हुआ. इस झगड़े के बाद ममता ने साड़ी और गिफ्ट रख लिए और बच्चों के साथ अपनी बहन के यहां उस के बेटे के मुंडन संस्कार में शामिल होने चली गई.

वहां जा कर उस ने एकांत में संजीव से मोबाइल पर बात की और पति बेचू की हत्या कर देने को कहा. संजीव उस के लिए तैयार हो गया. मौका भी अच्छा था. बेचू उस समय घर में अकेला था.

26 जनवरी को तड़के 3 बजे संजीव उर्फ उधारी बेचू के घर में घुसा और बिस्तर पर सो रहे बेचू की गरदन पर साथ लाए दांव से ताबड़तोड़ कई प्रहार कर दिए. बेचू चीख तक न सका और मौत की नींद सो गया. बेचू को मारने के बाद संजीव वहां से फरार हो गया लेकिन घर न जा कर वह इधरउधर छिपता रहा. घटना को अंजाम देने के बाद उस ने जानकारी ममता को दे दी थी.

लेकिन दोनों का गुनाह पुलिस की नजरों से छिप न सका. मुकदमे में पुलिस ने भादंवि की धारा 120बी और बढ़ा दी. संजीव की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त दांव भी बरामद कर लिया. फिर आवश्यक लिखापढ़ी करने के बाद दोनों को सीजेएम कोर्ट में पेश किया गया, वहां से उन्हें न्यायिक अभिरक्षा में भेज दिया गया.

पंखिया सेम किसानों के आय का नया विकल्प

इन दिनों दुनियाँ भर में खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाये जाने के साथ ही किसानों की आय को दोगुना किये जाने पर जोर दिया जा रहा है. लेकिन यह तभी संभव है जब किसान उत्पादन बढ़ाने वाले तरीकों को अजमाने के लिए खुद आगे आयें. क्यों की सरकारों के भरोसे कभी भी किसानों का भला नहीं हो सकता है.

ऐसे दौर में किसानों को उत्पादन के साथ ही अपनी आय बढ़ाने के लिए उन्नत खाद, बीज और तकनीकी का सहारा लेनें की जरुरत है. किसान जब तक किसान के साथ ही एक बनिया के रूप में अपनी सोच नहीं विकसित कर लेगा तब तक उसे खेती में घाटा उठाना ही पड़ेगा. इस लिए किसानों को चाहिए की वह व्यवसायिक और नकदी फसलों पर ज्यादा जोर दें.

ऐसी ही एक नकदी फसल है पंखिया सेम जो सेम की आम प्रजातियों से अलग हट कर है. इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्व सेहत के लिहाज से भी अच्छे माने जा रहें है. इस लिए यह किसानों के लिए आय के एक नए विकल्प के रूप में उभर कर सामनें आ सकती है. वैसे सेम को दलहनी फसल में शामिल किया गया है. लेकिन इसकी फलियों को सब्जियों के रूप में ज्यादा प्रयोग किया जाता है.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में विषयवस्तु विशेषज्ञ राघवेन्द्र विक्रम सिंह के अनुसार अगर पंखिया सेम की बात की जाए तो देश में इस प्रजाति की खेती अभी बहुत कम की जाती है. जब की इस वैराइटी की खासियत इसकी बाजार के संभावनाओं को कई गुना बढ़ा देती है. देश में  पंखिया सेम की वैराइटी को लेकर अभी भी लगातार शोध चल रहें हैं जिसमें से भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी नें इसकी उन्नत प्रजाति को विकसित करनें में सफलता भी पाई है.

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पंखिया सेम दूसरी किस्मों से अलग हट कर है इसके फलियों की लम्बाई 15 से 20 सेंटीमीटर तक की होती है तथा इसकी फलियाँ किस्मों के आधार पर हरे, गुलाबी या वैगनी  रंग की होती हैं. पंखिया सेम की एक ऐसी उन्नत प्रजाति है. जिसका फल, फूल, पत्ता, तना और बीज के साथ जड़ भी खाया जाता है. पंखिया सेम कोलेस्ट्राल घटाने में कारगर होने के साथ प्रोटीन और खनिज का अच्छा स्रोत है. एंटी आक्सीडेंट के साथ इसमें प्रोटीन की भी भरपूर मात्रा उपलब्ध है है.

इसके अलावा इसमे कार्बोहाइड्रेट, वसा, आयरन, गंधक, ताँबा, खनिज पदार्थ, पोटेशियम, कैल्सियम, मैगनीशियम, कैलोरी व फाइबर की भरपूर मात्रा उपलब्ध है.

उन्नत किस्में- अभी तक देश में पंखिया सेम की ज्यादा किस्में विकसित नहीं हो पाई ह.ैं भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी इसकी नई किस्म पर काम कर रहा है. लेकिन जिस किस्म का प्रचलन देश में सबसे ज्यादा है उसका नाम आरएमबी डब्लूबी-1 है.

उपयुक्त मिट्टी व खेत की तैयारी

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में विषयवस्तु विशेषज्ञ राघवेन्द्र विक्रम सिंह के अनुसार पंखिया सेम की बुआई उसी तरह की मिट्टी में की जा सकती है जैसे सेम की दूसरी किस्मों की बुआई की जाती है. इसके लिए पानी के निकास वाली अच्छे जीवांश युक्त बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसकी फसल के लिए अधिक क्षारीय और अधिक अम्लीय भूमि ज्यादा बाधक होती है.

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इसकी बुआई के पहले खेत की जुताई कल्टीवेटर, हैरो से करके मिट्टी को भुरभुरी बना कर पाटा लगा देना चाहिए. यह ध्यान रखें की बुआई के समय खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी उपलब्ध हो.

बीज की मात्रा बुआई का उचित समय व बुआई विधि

सेम की फसल लेनें के लिए एक हेक्टेयर खेत में 20 से लेकर 30 किलोग्राम बीज की जरुरत पड़ती है. बीज को खेत में बोने के पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम या थिरम 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम लेकर शोधित कर लेना चाहिए.

पंखिया सेम की बुआई साल में दो बार की जा सकती है इसकी अगेती फसल फरवरी -मार्च में बोई जाती है जबकि वर्षाकालीन फसल – जून से लेकर अगस्त तक बोई जा सकती है.

पंखिया सेम की बुवाई के उठी हुई क्यारियों में होनी चाहिए. जिसकी लाइन से लाइन की दूरी 1 से लेकर 1.5 मीटर होनी उपयुक्त होती है तथा पौध की दूरी 1.5 से लेकर 2 फीट होनी चाहिए. अच्छे जमाव के लिए  बीज को 2-3 सेंटीमीटर की गहराई में बोना चाहिए

सहारा देना.

पंखिया किस्म की फलियाँ दूसरी किस्मों की अपेक्षा ज्यादा लम्बी और नरम होती हैं. ऐसे में खेत की मिट्टी का इसकी फलत पर असर पड़ता है. इस लिए अच्छे उत्पादन के लिए इसके पौधों को सहारा देना ज्यादा मुफीद होता है. इससे पौधों में अच्छी फलत आने के साथ ही पौधों का विकास भी अच्छा होता है. इस लिए पौधे की लताओं को बाँस की बल्लियों से सहारा देकर चढ़ाने से पौधों की अच्छी बढ़वार होती है. ऐसे में पौधों के पास बांस गाड़ कर उस पर रस्सी या तार बाँध देना चाहिए इससे सेम की लता इसके सहारे ऊपर चढ़ कर फलत देती हैं.

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खाद व उर्वरक-कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में विषयवस्तु विशेषज्ञ राघवेन्द्र विक्रम सिंह के अनुसार बढ़ रही बीमारियों को ध्यान में रख कर खाद्यान्न फसलों में कम से कम रासयनिक खादों का प्रयोग करना चाहिए. रसायनिक खादों की मात्रा में कमी लाने के लिए हमें जैविक खादों के इस्तेमाल पर ज्यादा जोर देनें की जरूरत है.

अगर आप जैविक खाद से फसल लेना चाहते हैं तो एक हेक्टेयर खेत में 10 से 15 टन गोबर की सड़ी खाद को खेत की तैयारी के समय ही खेत में मिला दें. इसके साथ ही 20 किलो नीम की खली व 50 किलो  अरंडी की खली की बुआई भी करें.

अगर आप के पास गोबर की खाद या जैविक खाद नहीं उपलब्ध है ऐसी अवस्था में आप बुआई के समय 50 किग्रा. डी.ए.पी., 50 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टेयर के हिसाब से जमीन में मिलाए. इसके बाद बुवाई के 20-25 दिन बाद 30 किग्रा व 50-55 दिन बाद फसल में डालें.

सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण

अगेती फसल में आवश्यकता अनुसार सिंचाई करते रहना चाहिए. जबकि बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है. जब फसल में फूल तथा फलियाँ आ रहीं हों तो खेत में नमी बनायें रखें इसके लिए जरुरत पड़े तो सिंचाई करते रहें.

फसल की अच्छी बढ़वार और पैदवार के लिए फसल से खर पतवार को निकाई गुड़ाई करके निकाल लेना चाहिए. खरपतवार नियंत्रण के लिए मल्चिंग करना ज्यादा फायदेमंद होता है. इससे न केवल खर पतवार नियंत्रित होता है बल्कि नमी भी देर तक बनी रहती है इससे सिंचाई पर आने वाले खर्च पर कमी आती है.

कीट नियंत्रण

कृषि विज्ञान केन्द्र बस्ती में वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डॉ प्रेम शंकर के अनुसार सब्जियों को कीटो एवं बीमारियों से बचाने हेतु जैवनाशियो का प्रयोग करना चाहिए. अंतिम समय रासायनिक कीटनाशकों एवं फफूंदी नाशकों का प्रयोग करना चाहिए.लेकिन इसके छिडकाव के एक हफ्ते बाद ही सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए.

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बीन का बीटल- डॉ प्रेम शंकर के अनुसार यह कीट सेम के पौधें के कोमल भागों को खाता है. इसके कारण सेम के पौधे विकास नही कर पाते सूख जाते हैं. इस कीट का रंग ताँबे जैसा होता है. शरीर के कठोर आवरण पर 16 निशान होते हैं.

इसके कीट का प्रभाव फसल पर न होने पाए इसके लिए नीमारिन का इस्तेमाल 1 लीटर पानी में 10 मिली लीटर की मात्रा के हिसाब से करना चाहिए. इसकी ढाई लीटर मात्रा का इस्तेमाल 1 हेक्टेयर में करना चाहिए.

अगर फसल में बीन बीटल का प्रकोप हो गया हो ऐसी अवस्था में फिवोनिल की 2 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. एक हेक्टेयर ले लिए इसकी एक से सवा लीटर मात्रा का प्रयोग किया जाता है.

माहू-यह कीड़े पौधें के पूरे भाग में फैल कर पौधों का रस चूसते हैं. जिससे नमी की कमी के चलते पौधा अंत में सूख जाता है.

इस कीट की रोकथाम के एजाडिरेकटिन 5 प्रतिशत की आधा मिली लीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर दो से ढाई लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सेम की खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

फली छेदक-यह कीट सेम की फली में छिद्र कर घुस जाता है और पौधें के कोमल भागों को खाता है जिससे फलियाँ खोखली हो जाती हैं.

इसके रोकथाम हेतु बैसिलस थियुरिनजिनेसिस यानी बी.टी प्रति हेक्टेयर 500 से 1000 ग्राम मात्रा को 600 से 800 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें. फसलों में यह सूड़ियों के नियंत्रण की सबसे अच्छी दवा हैै.

पत्ती में सुरंग बनाने वाला कीड़ा या लीफ माईनर- वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डॉ प्रेम शंकर के अनुसार यह कीट हरी पत्तियों को खाकर नष्ट कर देता है. इसके नियंत्रण के लिये नीम तेल का नीमारिन का इस्तेमाल 1 लीटर पानी में 10 मिली लीटर की मात्रा का प्रयोग करें. 1 हेक्टेयर में ढाई लीटर का इस्तेमाल करना चाहिए.

बिमारियों का नियंत्रण-

कालर रॉट- इस रोग के प्रभाव में आकर पौधों में जमीन की सतह से सड़न आ जाती है और पौधे नष्ट हो जाते हैं. इस रोग के जीवाणु मिट्टी में जीवित रहते है और उपयुक्त वातावरण मिलने पर पुनः सक्रिय हो जातें है.

वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डॉ प्रेम शंकर के अनुसार इस बिमारी से बचनें के लिए  बीज का उपचार ट्राईकोडर्मा से किया जा सकता है. ट्राईकोडर्मा एक  जैव फफूंदीनाशक दवा है. इसको भूमि शोधन में प्रति हेक्टेयर ढाई किलोग्राम को 50 से 60 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिला कर प्रयोग करना चाहिए.

फसल को रोग से बचानें के लिए बुआई के 20 दिन उपरान्त, ट्राईकोडर्मा के घोल से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी को जड़ों में छिड़काव करना चाहिए. यह ढाई किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग किया जाता है.

अगर फसल में रोग का प्रभाव दिखाई पड़ रहा है तो इसके नियंत्रण के लिए शाम के समय जड़ के समीप कॉपर आक्सीक्लोराईड 4 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए. एक हेक्टेयर में इसकी 2.5 किलोग्राम मात्रा की जरुरत पड़ती है.

रस्ट- यह फफूंद से होने वाला रोग है जो पौधों के सभी ऊपरी भाग पर छोटे, हल्के उभरे हुए धब्बे के रूप में दिखाई देता है. तने पर साधारणतः लम्बे उभरे हुए धब्बे बनते हैं.

इस रोग का प्रभाव दिखनें पर फ्लूसिलाजोल या हेक्साकोनाजोल या बीटरटेनॉल या ट्राईआडीमेफॉन 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से 1 हेक्टेयर में 5 से 7 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिये. इसे 125 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग किया जाता है.

विषाणु रोग (गोल्डेन मोजैक)- यह विषाणु से होने वाला रोग है जो  सफेद मक्खी  द्वारा फैलता है. इस रोग से संक्रमित पौधों की पत्तियां सिकुड़ जाती है और पौधों की वृद्धि रूक जाती है .

इस बिमारी के रोकथाम के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लू एस पाउडर 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज थायोमेथाजाम 70 डब्ल्यू एस का 2.5 से 3.0 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज शोधन करना चाहिए.

फसल को इस बिमारी से बचाने के लिए बोई गई फसल के खेत के चारों तरफ मक्का, ज्वार और बाजरा लगाना चाहिए जिससे सफेद मक्खी का प्रकोप फसल में न हो सके.

फिर भी फसल में रोग का प्रकोप दिखाई पड़ने पर इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल का 1 मिलीलीटर प्रति 1 लीटर पानी के घोल से पौधों की जड़ में छिड़क कर फसल को बचाया जा सकता है. इसके अलावा डाईमेथोएट 30 ईसी 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करना चाहिए. इसे 325 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग किया जाता है.

तना सड़न- इस रोग में संक्रमित पौधों के तनों में सडन  पैदा हो जाती हैं. अगर इस रोग का प्रकोप दिखाई पड़े तो प्रभावित पौधे हटा कर फसल में फूल आने की दशा में कार्बेन्डाजिम 12 प्रतिशत व मैंकोजेब 63 प्रतिशत 1 ग्राम प्रति लीटर छिड़काव किया जाना उचित होता है. एक हेक्टेयर में इसकी 1 किलोग्राम मात्रा की जरुरत पड़ती है.

बैक्टीरीयल ब्लाईट्स- यह पंखिया सेम की फसल में लगनें वाला एक जीवाणु जनित रोग है, जिसमें बड़े धब्बे के समान लक्षण पत्तियों पर दिखते हैं. बरसात में फलियों पर भी छोटे धब्बे बनते हैं.

इस बिमारी से फसल को बचानें के लिए बुआई के पूर्व ही बीज को स्ट्रेप्टोसाइक्लीन घोल में 30 मिनट के लिए डुबोने के उपरान्त बुआई करें.

फलियों की तुड़ाई व उत्पादन

पंखिया सेम के फलियों की तुड़ाई कोमल अवस्था में ही कर लेनी चाहिए. क्यों की तुड़ाई देर से करने पर फलियाँ कठोर हो जाती है व रेशे आ जाते हैं. जिसके कारण बाजार मूल्य उचित नही मिल पाता है. पंखिया सेम की फसल 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फली, 40 क्विंटल बीज व 80 क्विंटल तक जड़ की उपज प्राप्त होती है.

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने विकसित की है पंखिया सेम की नई प्रजाति

जहाँ पंखिया सेम पर देश भर में रिसर्च चल रहा है वहीँ वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों नें इसकी नई प्रजाति विकसित करने में सफलता पाई है. इस संस्थान द्वारा विकसित की गई यह प्रजाति सेम की एक मात्र ऐसी प्रजाति है जिसकी फली, पत्तियां, तना और जड़ के साथ बीज का इस्तेमाल भी खाने के लिए किया जा सकता है.

इस संस्थान द्वारा विकसित की गई पंखिया सेम की प्रजाति में में 2.5 प्रतिग्राम प्रोटीन की मात्रा प्रति 100 ग्राम में पाई जाती है. साथ ही इसके सूखे बीज में 30 से 40 फीसदी प्रोटीन की मात्रा उपलब्ध है. इसके सूखे बीज से 15 से 20 फीसदी तेल निकाला जा सकता है.

इस संस्थान द्वारा विकसित की गई पंखिया सेम की प्रजाति की एक फली से 15 से 20 बीज प्राप्त किया जा सकता है. इसके फलियों की लम्बाई 15- 20 सेंटीमीटर तक पाई गई है. इस सेम की फलियों में चारो किनारों पर पंख नुमा आकार होता है जिससे इसे पंखिया सेम के नाम से जाना जाता है. इस किस्म में रेशे की प्रचुरता कोलेस्ट्राल की मात्रा को स्वतः कम करनें में सक्षम है.

संस्थान ने सेम की इस किस्म को किसानों के अधिक आय को ध्यान में रख कर किया है. संस्थान के निदेशक डॉ जगदीश सिंह के अनुसार पंखिया सेम किसानों के आया का न केवल जरिया बनेगी बल्कि इससे कम लागत से प्रति हेक्टेयर दो से तीन लाख रूपये की आमदनी भी होगी.

इसी संस्थान में वेजिटेबल साइंस के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राकेश कुमार दुबे के अनुसार आईआईवीआर द्वारा विकसित इस सेम की इस किस्म के फूलों को सलाद पत्तियों व फली को सब्जी के रूप में व जड़ को उबाल कर या भून कर खाया जा सकता है. उनके अनुसार इसमें आलू, शकरकंद और ऐसी कंद वाली सब्जियों से ज्यादा प्रोटीन उपलब्ध है.

औनलाइन फास्टिंग – आज की जरूरत

संगीता सुबह से लैपटौप पर लगी हुई थी. एक के बाद एक मेल का जवाब देते हुए जैसे ही वह लैपटौप बंद करने वाली थी कि माइक्रोसौफ्ट टीम पर मीटिंग का बुलावा आ गया था. आधे घंटे की मीटिंग खिंचतेखिंचते 2 घंटे की हो गई थी.

दोपहर को एक बज गए थे और जैसे ही संगीता रसोई की तरफ जाने लगी कि व्हाट्सऐप पर फैमिली ग्रुप में वीडियो कौल शुरू हो गई थी. एक घंटा वीडियो कौल में चला गया. फिर जैसेतैसे वीडियो कौल खत्म कर के संगीता ने छुट्टी वाले दिन भी खिचड़ी बना कर खाने का काम निबटा दिया था.

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अब जैसे ही संगीता आंखे बंद कर के सोने की कोशिश कर रही थी कि औफिस के ग्रुप पर कल की डैडलाइन पोस्ट होने लगीं. संगीता फिर से उठ कर लैपटौप खोल कर बैठ गई थी. उस को अब छुट्टी के नाम से डर लगने लगा था. कोरोना के कारण वर्क फ्रौम होम अब उसे एक सज़ा लगने लगा था. हर समय वह एक हड़बड़ाहट में रहती थी और रात को भी ठीक से सो नहीं पाती थी.

ऐसा ही कुछ हाल अभिषेक का भी है. वह न जाने कब से गहरी नींद नहीं सोया है. हर समय उस के कानों में मेल या व्हाट्सऐप मैसेज की अलर्ट टोन घूमती रहती है. रात में उठउठ कर वह अपना मोबाइल चैक करता रहता है. .कोई भी ऑफिस का कार्य यदि वह मेल या व्हाट्सऐप पर देख लेता है, तो फिर उस की रात काली हो जाती है. न वह रात को अपने कोई काम कर सकता है और न ही सो पाता हैं. पत्नी से अलग उस का इन सब बातों के कारण झगड़ा रहता है. जब से औफिस में औनलाइन कल्चर की घुसपैठ हुई है तब से एक अनकहा तनाव हर समय उस के सिर पर मंडराता रहता है.

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साक्षी को शुरुआत में अपनी उन सहेलियों से बहुत ईर्ष्या होती थी जिन के औफिस में वर्क फ्रौम होम का कल्चर था. साक्षी एक स्कूल में पढ़ाती थी, तो जाहिर हैं वर्क फ्रौम होम का प्रश्न ही नहीं उठता था. लेकिन कोरोनाकाल में अब स्कूल में भी औनलाइन क्लासेज चल रही हैं. आधेअधूरे रूप से कुछ प्रदेशों में स्कूल अवश्य खुल गए हैं लेकिन औनलाइन क्लासेज अभी भी जारी हैं. साक्षी के शब्दों में, ‘औफिस या स्कूल जा कर काम करना ज्यादा आसान है. घर पर रहते हुए भी आप कभी भी फ्री नहीं हो बल्कि अब आप मानसिकरूप से ज्यादा व्यस्त हो गए हो. पहले स्कूल का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक होता था, अब किसी भी समय और कभी भी मीटिंग शुरू हो जाती है.’

इस वर्चुअल माहौल में लंबे समय तक रहने के कारण 27 वर्ष की उम्र में भी साक्षी ड्राई आय और हाई ब्लडप्रैशर की चपेट में आ गई है. पहले हम लोग जिस तरह से व्रत इत्यादि को स्वास्थ्य के लिए जरूरी मानते थे, तकरीबन उसी तरह आजकल के माहौल में औनलाइन फास्टिंग हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है.

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अभी अगर हम कुछ साल पहले की बात कर्ण तो औनलाइन कल्चर ने बहुत ही धीरेधीरे और चुपके से हमारी जिंदगी में प्रवेश किया था. तब मेल, औरकुट इत्यादि प्लेटफौर्म बिलकुल नए थे और उन का मुख्य उद्देश्य था, हमारी जिंदगी को आसान बनाना.

समय बीतता गया. फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डइन, व्हाट्सऐप और भी न जाने कितने ऐप हमारे जीवन का हिस्सा बन गए हैं. लेकिन अभी भी हम इस बात से अनभिज्ञ हैं कि क्यों स्ट्रैस, डिप्रैशन, हाइपरटेंशन के मामलों में भी तेजी से इज़ाफ़ा हुआ है.

जानेअनजाने इन सब औनलाइन ऐप्स के कारण हम तनाव में रहने लगे हैं. हर कोई इन सोशल प्लेटफौर्म पर अपनी खुशियों के इश्तिहार बेच रहा है. जब हम अपने रिश्तेदारों या दोस्तों के फेसबुक या इंस्टाग्राम अकाउंट पर तसवीरे देखते हैं तो जानेअनजाने उन से अपने जीवन की तुलना करने लगते हैं. एक अनकहा और अनव्यक्त तनाव हमारे इर्दगिर्द मंडराता रहता है.

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अगर बात करें दफ़्तरों की, तो उन का हाल और भी बुरा हो गया है. मेल भेजने का, व्हाट्सऐप ग्रुप पर मैसेज पोस्ट करने का या फिर औनलाइन मीटिंग करने का कोई समय नियत नहीं है. कर्मचारी का कोई निजी, पारिवारिक समय अब नहीं रहा है. अगर कंपनी का मालिक या बौस रात के 11 बजे खाली है तो तभी मीटिंग शुरू हो जाती है.

ये सारी बातें धीरेधीरे हमारे मानसिक स्वास्थ पर बहुत विपरीत प्रभाव डाल रही हैं. लेकिन अगर हम व्रत अपने स्वास्थ्य के लिए रख सकते हैं तो क्यों न हम लोग औनलाइन फास्टिंग कर के अपने मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें.

शाम 7 बजे के बाद नो औनलाइन कौल : यदि आप दफ़्तर में कार्यरत हैं या खुद एक बौस हैं तो इस बात का अवश्य पालन करें कि शाम 7 बजे के बाद किसी भी प्रकार की सूचनाओं का आदानप्रदान न हो. अगर कोई बहुत जरूरी मीटिंग भी हो तो उसे शाम 7 बजे तक निबटा ले. शाम 7 बजे के पश्चात सब लोगों की प्रोडक्टिविटी जीरो हो चुकी होती है. ऐसे में अगर आप मीटिंग करते भी हैं तो कोई सकारात्मक कार्य नहीं हो पाएगा.

रविवार और त्योहार को रखें औनलाइन फ़्री ज़ोन : कोई भी कार्य कभी भी इतना आवश्यक नहीं होता कि उस की सूचना देने के लिए आप सोमवार की प्रतीक्षा न कर सकें. अगर बौस हैं तो ऐसा मत करें और यदि आप कर्मचारी हैं तो विनम्र शब्दों में बता दीजिए कि रविवार को आप औनलाइन फास्टिंग करते हैं. हर मेल या मैसेज का उत्तर आप सोमवार को ही दे पाएंगे.

एक दिन स्वयं के साथ : हफ़्ते में एक दिन स्वयं के साथ होना अवश्य होता है. यह आप को हफ़्ते के आगामी दिनों के लिए तैयार करेगा. स्वयं के साथ एक दिन बिताने के लिए आप को अपने औनलाइन वर्ल्ड से बाहर आना अवश्य पड़ेगा. औनलाइन फास्टिंग आप की क्रिएटिविटी को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है. एक दिन बिना नैट के बिताएं तो सही, आप खुद को बेहद तरोताजा महसूस करेंगे.

एकाग्रता बढ़ाने के लिए है जरूरी : मनन ने जैसे ही अपने पापा से बात करने के लिए फ़ोन उठाया था, वैसे ही व्हाट्सऐप के मैसेजेस की बौछारों के कारण उस का ध्यान बंट गया और वह मैसेजेस पढ़ने लगा. उधर मनन के पापा रविवार के कारण मनन के फ़ोन की प्रतीक्षा करते रह गए थे. दरअसल, यह बहुत होता हैं कि इस औनलाइन दुनिया के कारण हमारा ध्यान बहुत इधरउधर भटकता है. हम एकाग्रचित्त हो कर कुछ नहीं कर पाते हैं. इसलिए यह अवश्य करें कि रात 8 बजे से सुबह 6 बजे तक आप औफलाइन मोड में रहें. अगर किसी को बेहद आवश्यक काम होगा तो वह आप को अवश्य फ़ोन करेगा.

चिड़चिड़ाहट को कम करने के लिए ज़रूरी : औनलाइन फास्टिंग आप के मूड को तरोताज़ा रखने के साथसाथ आप की चिड़चिड़ाहट को कम करने में भी बहुत सहायक होती है. 24 घंटे अगर आप औनलाइन मोड में रहेंगी तो जानेअनजाने बहुत सारी इन्फ़ौर्मेशन प्राप्त करेंगी. इन में से 70 प्रतिशत ज्ञान की आप को कोई आवश्यकता नहीं होगी. यह ज्ञान आप को रैस्टलैस और इरिटेट ही करेगी.

अपार्टमैंट्स में बन रहे नए परिवार

अपार्टमैंट में रहने वालों के बीच आपसी संबंध और समझदारी पहले के मुकाबले अब अधिक बढ़ती जा रही है. वहां जाति व धर्म की दूरियां भी कम हो रही है. एकदूसरे के साथ संवाद और संबंध दोनों पहले से अधिक मजबूत हो रहे हैं. ऐसे में अपार्टमैंट अब नए परिवार की तरह से लगने लगे हैं.

हर शहर में रहने के लिए अपार्टमैंट्स की संख्या बढ़ती जा रही है. भारतीय लोगो में कुछ साल पहले तक अपार्टमैंट में रहने को ले कर एक हिचकिचाहट फील होती थी. धीरेधीरे लोग अब अपार्टमैंट में रहने के लिए खुद को तैयार कर चुके हैं. जिस तरह वे अपनी गली व महल्लों में हिलमिल कर रहते थे उसी तरह अब वे अपार्टमैंट में भी हिलमिल कर रहने लगे हैं. अपार्टमैंट में रहने वालों में जाति और धर्म की ही नहीं बल्कि बोली और क्षेत्र की दूरियां भी खत्म होती महसूस की जा रही है. अपार्टमैंट्स में रहने वाले 2 तरह के लोग होते हैं. पहले, जिन के अपने फ्लैट हैं, दूसरे, जो लोग किराए पर रह रहे हैं. कुछ अपार्टमैंट्स सरकारी विभागों द्वारा बनाए गए हैं. ज्यादातर अपार्टमैंट्स निजी बिल्डर्स ने बनाए हैं.

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सरकारी विभागों द्वारा बनाए अपार्टमैंट्स के रखरखाव की जिम्मेदारी रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी देखती है. निजी बिल्डर्स द्वारा बनाए गए अपार्टमैंट्स में बिल्डर्स खुद ही इस व्यवस्था का प्रबंधन करते हैं. इस के एवज में वे वहां रहने वालों से एक तय रकम लेते है. रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी बनने के बाद वहां के रहने वालों में आपसी तालमेल बढ़ने लगा है. इस के साथ ही, महिलाओं की किट्टी पार्टियों, त्योहारों पर होने वाले दूसरे आयोजनों, जैसे दीवाली पार्टी, होली पार्टी, क्रिसमस पार्टी में भी एकदूसरे के मिलने व उन को जानने का अवसर मिलता है. कई बार रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी भी अपने सदस्यों के लिए ऐसे आयोजन करती है.

बन रहे नए परिवार:

अपार्टमैंट में रहने वाले ज्यादातर युवा पीढ़ी के लोग हैं. इन में से कुछ पतिपत्नी दोनों जौब में होते हैं. अगर इन के बच्चे हैं तो उन को देखने के लिए कोई नहीं होता. ऐसे में ये आसपास के रहने वाले लोगों के सहारे अपने बच्चे छोड़ देते हैं. कई अपार्टमैंट्स में बच्चों की देखभाल करने वाले क्रैच भी होते हैं. शालीमार अपार्टमैंट में रहने वाली नीलम सिंह बताती हैं, “यहां सुरक्षा का बहुत अच्छा प्रंबध होता है. बच्चा एक बार स्कूल से अपार्टमैंट के अंदर आ जाए, फिर कोई दिक्कत नहीं होती है. सभी हिस्सों को सीसीटीवी से कवर रखा जाता है. स्टाफ किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार रहता है. इस के साथ ही, हमारा पासपड़ोस में भी इतना अच्छा संबंध बना होता है कि बच्चा कभी दिक्कत का अनुभव नहीं करता. जरूरत इस बात की होती है कि हम बच्चों को भी पूरी तरह से अवेयर कर के रखें कि कब किस से और क्या सुरक्षा या मदद मांगनी चाहिए.”

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कई कैमरायुक्त ऐप ऐसी भी आ गई हैं जिन के ज़रिए अपार्टमैंट और फ्लैट से दूर रहते हुए भी वहां नजर रखी जा सकती है. रेखा राय कहती हैं, “अपार्टमैंट में ऐसी खूबियां तो होती हैं जो परिवारों में होती हैं. यहां परिवारों की तरह टोकाटाकी कम होती है. बच्चों को यहां बड़ेबूढ़े भी मिल जाते हैं. हमारे अपार्टमैंट में छुट्टी के दिन यह कोशिश की जाती है कि आपस में लोग मिलजुल कर बातचीत कर सकें, बच्चों और बड़े लोगों के बीच परिचय बन सके. इस के लिए कई ऐसे आयोजन भी किए जाते हैं जिन में दोनों हिस्सा ले सकें. बच्चों को अपने साथ खेलने के लिए बच्चे भी मिल जाते हैं, साथ ही, सुरक्षित माहौल भी मिलता है. अपार्टमैंट के परिवार हमारे करीबी और रिश्तेदार भले ही न हों पर उन से कम नहीं होते हैं.”

करीब लाईं जरूरतें:

अपार्टमैंट में रहने वाले लोगों को करीब लाने में उन सब की जरूरतों का सब से बडा हाथ है. सीमा अपने पति कुमार के साथ रहती है. एक दिन रात में सीमा की तबीयत खराब हुई. कुमार ने पड़ोस में रहने वाले राजेश के सहयोग से सीमा को अस्पताल पहुंचाया. पति को पड़ोसी ढांढ़स भी बंधाते रहे. जब तक सीमा ठीक हो कर वापस घर नहीं आ गई, पड़ोसियों ने हर तरह से सीमा के परिवार व घर का ध्यान रखा. जब लोगों ने फ्लैट में रहना शुरू किया था तब ऐसी शंकाएं लोग व्यक्त करते थे कि यहां लोग महल्लों और गलियों वाला ‘पड़ोसी धर्म’ नहीं निभा पाएंगे. अपार्टमेंट कल्चर ने अब इस मिथ को तोड़ दिया है. यहां रहने वाले लोग गलीमहल्लों से भी अधिक सोशल हो गए हैं. इस में महिलाएं आगे आई हैं. गलीमहल्लों में जिस तरह की दकियानूसी सोच हावी थी, उस का यहां कोई दबाव नहीं है.

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अपार्टमैंट कल्चर में अबी खुली सोच है. जाति व धर्म की बातें कम हैं. एकदूसरे के साथ संबंधों का ही नहीं, उन के साथ रिश्तों का भी ख़याल रखा जाता है. इस से यहां का माहौल ही नहीं सुखद हो रहा, बल्कि ये लोग समाज के लिए भी मिलजुल कर अच्छा काम कर रहे हैं. लौकडाउन के दौरान जब मजदूरों का पलायन शुरू हुआ तो उन के लिए तरहतरह के इंतजाम करने वालों में अपार्टमैंट के लोग सब से आगे आ रहे थे. लखनऊ के शहीद पथ के किनारे नदियों के नाम पर कई अपार्टमैंट्स बने हुए हैं. उन में रहने वालों ने शहीद पथ से जा रहे मजदूरों के लिए हर तरह की मदद की. केवल खाना और पानी ही नहीं, महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड्स और बच्चों के लिए कपडों तक का प्रबंध किया. ऐसे ही इंतजाम करने वालों में सुमन सिंह रावत भी हैं. उन्होंने अपने अपार्टमैंट की टीम बना कर लोगों की मदद की.

सब से आगे महिलाएं:

अपार्टमैंट रैजिडेंशियल वैलफेयर सोसाइटी में भले ही महिला और पुरूष दोनों ही पदाधिकारी हों पर आगे आ कर काम करने वालों में महिलाओं की संख्या अधिक होती है. कमेटी में महिलाओं को प्रमुखता के साथ रखा भी जाता है. पार्टी और आयोजनों की जिम्मेदारी महिला टीम की होती है. कानून, पुलिस और प्रशासन से संबंधित जिम्मेदारियों से निबटने में ही पुरूष आगे आते हैं. समयसमय पर कमेटी का चुनाव होता है. इस में नए और ऊर्जावान लोगों को आगे किया जाता है. सुमन सिंह रावत कहती हैं, “अपार्टमैंट में रहने वालों की एकजुटता ने सभी को एक बड़े सुयंक्त परिवार में बदल दिया है. हम सब साथ मिल कर सुखदुख बांट लेते हैं. एकदूसरे को समझने में काफी मदद मिलती है. इस का युवाओं पर अधिक प्रभाव पड़ रहा है. युवाओं और बच्चों को अलगअलग तरह के सामाजिक जीवन और संस्कृति को समझने का मौका मिलता है.”

प्रतिमा अहिरवार कहती हैं, “अपार्टमैंट में अलगअलग संस्कृतियों को मानने वाले लोग रहते है. ऐसे में हर तरह को त्योहार लोग मना लेते हैं. उस के धार्मिक कारण कुछ भी हों, पर माहौल के अनुसार सभी के साथ खुश रहने की सोच में लोग दूसरों के त्योहार भी अपने त्योहारों की तरह से ही मनाते हैं. असम और बंगाल में मनाए जाने वाले त्योहार उत्तर भारत के लोग मना लेते हैं तो उत्तर भारत में मनाए जाने वाले त्योहार वहां के लोग मना लेता हैं. बिहार का छठ अब हर कोई मना रहा है. धर्म की जगह लाइफस्टाइल का यह हिस्सा हो गया है. इस का बड़ा फायदा यह होता है कि हमें एकदूसरे को समझने का मौका मिलता है.”

शेयर होते हैं खास व्यंजन:

अपार्टमैंट में रहने वालों में केवल मौजमस्ती के लिए ही संबंध नहीं होते हैं. आपस में करीबी रिश्ते भी बन जाते हैं. किसी घर में कोई नया व्यंजन बनता है, तो उसे दूसरों को दिखाया व पहुंचाया जाता है. खासकर, देशी और टेडिशनल फूड लोग को बहुत पसंद आता है. अंतिमा सिंह कहती हैं, “छठ में ठेकुआ नाम से व्यंजन बनता है. मेरे कुछ पड़ोसियों को यह बहुत पंसद है. वे पहले से कह कर रखते हैं कि ठेकुआ बनाना तो हमें जरूर भेजना. इसी तरह से कई अलगअलग जगहों के व्यंजन अपार्टमैंट में खाने को मिल जाते हैं. लोग केवल खाते ही नहीं, रैसपी पूछ कर बनाते भी हैं और बना कर खिलाते व पूछते भी है कि कैसा बना. इस तरह से तमाम प्रयोग यहां हो रहे हैं.”

अपार्टमेंट में रहने वाले ज्यादातर लोग अलग शहरों और प्रदेशों के होते हैं. अपने घरों से दूर रहते हुए उन की मदद करने के लिए अपार्टमैंट के पड़ोसी ही सब से पहले सामने आते हैं. सभी को यह पता होता है कि पता नहीं कब किस को क्या जरूरत पड़ जाए. ऐसे में आपस में मिलजुल कर रहना सभी के लिए लाभकारी होता है. साधना सिंह कहती हैं, “सभी लोग अपने काम में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में हंसीमजाक और मनोरंजन करने के लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं होती. अपार्टमैंट में रहते हुए आसानी से क्वालिटी टाइम गुजारा जा सकता है. महिलाओं और बच्चों को इस में ज्यादा मजा आता है. अगर कोई परेशानी अपार्टमेंट में रहने वालों को ले कर आपसी संबंधों में आती है तो भी यहां पर लोग आपस में सुलझा लेते हैं. आपसी कम्यूनिकेशन के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप बने हैं. जिन में आपसी बातें शेयर होती हैं. इस से लोगों की परेशानियों का पता भी चलता है. उन को दूर करने का प्रयास भी हो जाता है.

इल्जाम –भाग 3:  कामिनी जी गहने चोरी का इल्जाम बच्चों पर क्यों लगा रही थी

“कोई बात नहीं पापा आप चिंता न करो. मैं समीक्षा से बात करता हूं. हो सका तो वह अपने स्कूल से एक महीने की छुट्टी ले कर मां के पास पहुंच जाएगी. ”

“बेटा देख ले हमें अभी किसी की जरूरत तो बहुत है पर बहू भी तो स्कूल टीचर है, वर्किंग है. उस के जॉब पर असर न पड़े तभी भेजना. वैसे भी बहू के साथ हम ने जो सलूक किया था उस के बाद हमारा कोई हक नहीं कि हम उसे बुलाएं.”

“डोंट वरी पापा मैं बात कर के बताता हूं.”अगले दिन ही मयंक ने फोन कर के बताया,” पापा समीक्षा ने मां की सेवा के लिए एक माह की छुट्टी ले ली है. जरूरत पड़ी तो छुट्टी आगे बढ़ा लेगी. मैं भी 1 सप्ताह के लिए आ रहा हूं.”

2 दिन बाद ही मयंक समीक्षा के साथ घर पहुंच गया. कामिनी जी बेड पर थीं. नौकर भी छुट्टी पर जा चुका था. समीक्षा ने सब से पहले नहाधो कर पूरे घर की साफसफाई की. फिर सास को अच्छी तरह नहला कर कपड़े बदले. उन के बेड का कवर, पिलो कवर आदि निकाल कर धो दिए. नए बेडशीट बिछाए. परदे आदि धोए. अगले दिन ही मयंक मां को ले कर अस्पताल पहुंचा. संभावित इलाजों के बारे में बात की. अभी मां को कीमो सेशन दिए जा रहे थे. मयंक ने डॉक्टर से हर मसले पर सलाहमशवरा कर बेहतर इलाज का इंतजाम कराया. एक सप्ताह रुक कर वह वापस चला गया और समीक्षा दिल लगा कर सास की सेवा करती रही.

कामिनी जी फिलहाल निजी काम करने में भी समर्थ नहीं थीं. कई बार कपड़े में उल्टी कर देतीं तो कभी कपड़े गंदे हो जाते. खुद पर कंट्रोल नहीं रख पातीं. पर समीक्षा हर तरह की परेशानियों में सास के साथ खड़ी रहती. उन की बैसाखी बन कर वह इस तकलीफ के समय में उन का सहारा बनी हुई थी. हमेशा उन्हें खुश रखने की कोशिश करती. शरीर की तकलीफ़ों के साथसाथ मन की तकलीफें भी घटाने के प्रयास में लगी रहती. कभी मालिश करती तो कभी चंपी.

समय इसी तरह गुजरता रहा. कामिनी जी समीक्षा को दिनरात आशीर्वाद देती रहतीं. उन को अपने किए पर बहुत शर्मिंदगी महसूस होती कि जिस बहू के परिवार पर चोरी का इल्जाम लगा दिया था आज केवल वही उन के काम आ रही थी. वह चाहती तो दूसरों की तरह आने से इनकार भी कर सकती थी पर उस ने ऐसा नहीं किया. वह घर को और सास को ऐसे संभाल रही थी जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो.

एक दिन कामिनी जी बैठीबैठी रोने लगीं. समीक्षा ने बहुत पूछा कि आखिर रोने की वजह क्या है मगर वह केवल रोती रहीं. उन्हें बहुत देर तक फफकफफक कर रोता देख समीक्षा बेचैन हो गई. वह ससुर को बुला कर लाई.

भवानी प्रसाद पत्नी को चुप कराने लगे फिर समीक्षा से बोले,” असल में इन की भाभी इन्हें देखने आना चाहती थीं पर इन्होने भाभी से मिलने से इंकार कर दिया. अब मुझे समझ नहीं आ रहा कि जो भाभी इन के दिल के इतनी करीब रही हैं उन से ही यह मिलना क्यों नहीं चाहती. रो भी रही है और मिलना भी नहीं है.”

“पिताजी आप मम्मी जी से आराम से बात कर लो, मैं बाहर चली जाती हूं. शायद वह आप से रोने का कारण शेयर कर लें,” कह कर समीक्षा कमरे से बाहर निकल गई.

भवानी प्रसाद ने जब अकेले में पत्नी से वजह पूछी तो कामिनी रोती हुई बोली,”आज मुझे बहुत पछतावा हो रहा है. मैं ने समीक्षा और उस के निर्दोष भाईबहन के साथ जो किया वह माफी योग्य भी नहीं.”

“यानि तुम ने जानबूझ कर….. “”हां मैं ने जानबूझ कर उन पर इल्जाम लगाया था. पर यह सब मेरे दिमाग की उपज नहीं थी. सच मानो मैं ने वह सब अपनी भाभी के कहने पर किया था. उन्होंने ही मुझे सलाह दी थी कि यदि तुम समीक्षा को घर से निकलवाना चाहती हो तो उस के घरवालों पर इल्जाम लगाओ. उन्हें बेइज्जत करो….” कहतेकहते वह फिर से रोने लगीं.

भवानी प्रसाद आश्चर्य से उस का चेहरा देखते रह गए.”हां भाभी ने ही मुझे कहा था कि बहू को मयंक और अपने पति के मन से उतारने के लिए उस के घरवालों पर चोरी का इल्जाम लगा दो. बहू खुद ही शर्मसार हो कर घर छोड़ देगी. मयंक भी पत्नी से झगड़ा करेगा और समीक्षा के घर वाले भी फिर दोबारा इधर का रुख नहीं करेंगे. ”

“तुम ऐसा कैसे कर सकती हो कामिनी. भाभी के कहने पर तुम ने 2 निर्दोष बच्चों के ऊपर इल्जाम लगा दिया. तुम्हारी योजना पूरी भी हो गई. दोनों बच्चे दोबारा कभी भी हमारे घर नहीं आए. तुम समीक्षा को मयंक और मेरे मन से उतारना चाहती थी, पर क्यों कामिनी? अपने बेटे की खुशियों की दुश्मन क्यों बनना चाहती थी? माना भाभी ने तुम्हें सलाह दी पर खुद भी तो सोचना चाहिए था न,” भवानी प्रसाद ने गुस्से में कहा.

कामिनी फूटफूट कर रोती हुई खुद को कोसने लगी तो उस की खराब हालत देखते हुए भवानी प्रसाद ने जल्द बात खत्म की और उसे सीने से लगा कर कहा,” जो हो गया उसे भूल जाओ कामिनी. अब तुम्हारे आगे जो है उसे देखो. तुम्हारी बहू तुम्हारी दिनरात सेवा कर रही है. बस उसे जी भर कर आशीर्वाद दे लो. तुम ने जो गलत किया उस का पछतावा खत्म हो जाएगा.”

“पछतावा तो तब खत्म होगा जब दोनों बच्चे फिर से इस घर में आएं. प्लीज आप समीक्षा को समझाओ न. वह अपने भाईबहन को फिर से हमारे घर में बुलाए. मैं एक बार उन से माफी मांग लूं.””पहले तो तुम्हें समीक्षा से माफी मांगनी चाहिए कामिनी. मैं समीक्षा को बुला कर लाता हूं.”

भवानी प्रसाद ने समीक्षा को बुलाया तो वह दौड़ी आई,” क्या हुआ पापा जी तबियत तो ठीक है न मम्मी की?” कामिनी समीक्षा के दोनों हाथ पकड़ कर सिर से लगा कर रोती हुई बोलीं,” माफ कर दे बेटा, मैं ने तेरे साथ बहुत गलत किया था. पर तू इस बुढ़िया के लिए अपनी नौकरी, अपना घर, अपने पति और बच्चों को छोड़ कर यहां बैठी हुई है, सेवा में लगी है. अरी पगली इतनी सेवा तो बेटियां भी नहीं करती और तू अपनी कुटिल, दुष्ट सास के लिए इतना कर रही है. ऐसी सास जिस ने कभी भी तुझे दिल से नहीं स्वीकारा. तेरे घर वालों पर चोरी का इल्जाम लगा दिया. उस बुढ़िया के लिए तू इतना क्यों कर रही है मेरी बच्ची? इस बुढ़िया को माफ कर दे,”

“मम्मीजी आप यह क्या कह रही हैं? आप मेरी मां जैसी हैं न. आप की तकलीफ में आप के काम आ सकूं यह तो मेरे लिए खुशी की बात है. पर आप इस तरह रोओ नहीं मम्मी जी प्लीज आप की तबियत खराब हो जाएगी. माफी की कोई बात नहीं. आप मुझे बहू के रूप में देखना नहीं चाहती थीं इसी वजह से आप का यह रिएक्शन हुआ. पर मुझे पता है आप दिल की बहुत अच्छी हैं और पछतावा करने की कोई बात नहीं. मैं मानती हूं मेरे भाईबहन के साथ आप ने बहुत गलत किया था. आप को इल्जाम लगाना था तो मुझ पर लगातीं मगर मेरे भाईबहन ने तो किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ा था, ” समीक्षा ने उन के हाथों को सहलाते हुए कहा.

“इसी बात का तो पछतावा है मुझे मेरी बच्ची. मैं ने तेरे साथ बहुत गलत किया. देख ले इसी बात की सजा मिल रही है मुझे. बिस्तर पर आ गिरी हूं. “”मम्मी जी ऐसा कुछ नहीं है. आप ठीक हो जाओगी.”

“बेटा अब मुझे इस पछतावे से मुक्ति तभी मिलेगी जब तेरे भाईबहन से हाथ जोड़ कर माफी मांग लूंगी.””मम्मी जी आप परेशान न हों. मैं उन से बात करती हूं. मेरी बहन तो अभी अहमदाबाद में है. वहीँ शादी हुई है उस की इसलिए शायद वह नहीं आ सकेगी. पर भाई को बुलाने की पूरी कोशिश करती हूं,” कह कर समीक्षा ने फ़ोन उठा लिया.

उस ने फोन पर भाई को घर बुलाया तो उस ने साफ इंकार कर दिया,” दीदी आप तो जानती हो उस इल्जाम को मैं कितनी मुश्किल से अपने जेहन से दूर कर पाया हूँ.  22 -23 साल की उम्र में चोरी का इल्जाम लग जाए और वह भी अपनी बहन के ससुराल में तो बस एक यही इच्छा होती है कि कहीं जा कर डूब मरो.”

“नहीं दिवेश ऐसा नहीं सोचते. माफ कर दे उन्हें. उन की तबियत सही नहीं बिट्टो, ” समीक्षा ने भाई को समझाने की कोशिश की.तब तक कामिनी जी ने समीक्षा के हाथ से फोन ले लिया और दिवेश के आगे खुद ही गिड़गिड़ाने लगीं,” बेटा प्लीज मान जा. इस बुढ़िया को माफ कर दे. मैं इस दुनिया से ही जाने वाली हूं बेटा, बस अंतिम इच्छा पूरी कर दे. मुझे माफ कर दे. एक बार मेरे पास आ, मैं तेरे पैर छू कर माफी मांगना चाहती हूं,” कहतेकहते कामिनी जी फुटफुट कर रो पड़ीं.

रूपेश का दिल पसीज गया,” अरे नहीं आंटी जी आप जैसा कहोगी वैसा ही करूंगा. प्लीज डोंट वरी मैं आ रहा हूं.”

दिवेश की बात सुन कर रोतेरोते भी कामिनी जी के चेहरे पर सुकून के भाव खिल उठे. उन्होंने आंसू पोंछे और समीक्षा से बोली,” समीक्षा बेटा, दिवेश आ रहा है. अंदर वाला कमरा साफ़ कर दे वहीँ ठहराऊंगी उसे और अपने हाथ से खाना बना कर खिलाऊंगी. उस ने मेरी बात मान ली.”

समीक्षा कामिनी जी की ओर देख कर मुस्कुरा उठी और सहारा दे कर उन्हें बेड पर लिटा दिया. आज कामिनी जी के मन का एक भारी बोझ उतर गया था

इल्जाम –भाग 2:  कामिनी जी गहने चोरी का इल्जाम बच्चों पर क्यों लगा रही थी

कामिनी अलग कमरे में बंद रही आती तो भवानी प्रसाद संकोच में बहू से ज्यादा बातें नहीं करते. मयंक पहले की तरह ऑफिस चला जाता और देवर यानी विक्रांत और ननद दीक्षा का अधिकांश समय कॉलेज में बीतता. समीक्षा समझ नहीं पाती कि वह घर के हालातों को नार्मल कैसे बनाए. उसे पता था कि सास उसे पसंद नहीं करती. फिर भी वह अपनी तरफ से सासससुर का पूरा ख़याल रखती और उन का दिल जीतने का पूरा प्रयास करती.

धीरेधीरे भवानी प्रसाद समीक्षा के बातव्यवहार से काफी प्रभावित रहने लगे. कामिनी जी की नाराजगी भी कम होने लगी थी. मगर उन का मुंह इस बात पर अब भी फूला हुआ था कि बेटे की शादी भी हो गई और घर में कोई रौनक भी नहीं हुई. सब कुछ सूनासूना सा रह गया.

इस का समाधान भी भवानी प्रसाद ने निकाल लिया, “कामिनी क्यों न हम अपने बेटे का रिसेप्शन धूमधाम से करें. उस में सारे रिश्तेदार भी आ जाएंगे और घर में रौनक भी हो जाएगी.”

कामिनी जी ने यह बात स्वीकार कर ली.सही मौका देख कर रिसेप्शन का आयोजन किया गया. कामिनी ने इस में अपनी सारी अधूरी तमन्नाऐं पूरी कीं. खानपान और सजावट का शानदार प्रबंध किया गया. नए कपड़े, गहने और रिश्तेदारों की जमघट के बीच वह पुराने दर्द भूल गईं. कई दिनों तक मेहमानों का आनाजाना लगा रहा. हंसीठहाकों की मजलिस के बीच घर में एक नए माहौल की शुरुआत हुई.

भवानी प्रसाद को लगने लगा कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा. उन की तरह कामिनी भी समीक्षा को दिल से स्वीकार कर लेगी. समीक्षा के घर वालों से मेलजोल बढ़ाने और कामिनी के फूले मुंह को छिपाने के लिए भवानी प्रसाद ने समीक्षा के भाईबहन को 7-8 दिनों के लिए घर में ही रोक लिया.

समीक्षा का भाई अनुज काफी मजाकिया स्वभाव का था तो वहीं बहन दिशा डांस गाने में बहुत होशियार थी. मयंक की बहन दीक्षा और भाई विक्रांत भी अनुज और दिशा के साथ खूब मस्तीधमाल करते. 3 -4 दिन इसी तरह धमालमस्ती में बीत गए. समीक्षा और मयंक भी नए माहौल का मजा ले रहे थे. कामिनी भी नार्मल रहने लगी थी. सब कुछ अच्छा चल रहा था कि इसी बीच गहनों की चोरी वाली घटना ने सब को सकते में डाल दिया. हंसीखुशी और मस्ती का माहौल कुछ ही देर में तनावपूर्ण हो गया था.

अनुज और दिशा उसी शाम अपने घर चले गए थे और समीक्षा बिल्कुल खामोश सी हो गई थी. कामिनी का बड़बड़ाना चालू रहा जब कि मयंक समीक्षा को नार्मल करने के प्रयास में लगा रहता. भवानी प्रसाद अपने कमरे में उदास से बैठे रहते. उन्होंने सोचा था घर में हंसीखुशी आएगी पर हो गया था उलटा. वक्त के साथ जख्म भरते गए. कामिनी और समीक्षा सामान्य व्यवहार करने लगी थीं मगर एकदूसरे के प्रति उदासीनता लंबे समय तक कायम रही.

करीब 6-7 माह का समय इसी तरह गुजर गया. एक दिन मयंक घर लौटा तो चेहरे पर एक अलग ही तरह के सुकून और खुशी के भाव थे.

आते ही उस ने समीक्षा से कहा, मैं ने बताया था न कि मुंबई में एक जगह खाली है और उस के लिए मैं ने महीनों पहले ट्रांसफर की अर्जी दी थी. वह आज अप्रूव हो गई. इस महीने की 25 तारीख को मुझे वहां की ब्रांच ऑफिस को ज्वाइन करना है.”

सुन कर समीक्षा का चेहरा भी खिल उठा. मयंक ने अपनी मां को यह बात बताई तो उन्होंने सवालिया नजरों से बेटे की तरफ देखा और फिर उदास हो कर पलकें झुका लीं. भवानी प्रसाद ने भी उदास हो कर अपने बेटे की तरफ देखा. दोनों समझ रहे थे कि मयंक के इस फैसले की वजह क्या है. पर वे कहते भी तो क्या.

मयंक और समीक्षा मुंबई शिफ्ट हो गए. इस के एकदो साल बाद ही मयंक के भाई विक्रांत को पुणे यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल गया. वह एमबीए पढ़ने वहां चला गया और जल्द ही वहीँ उसे जॉब भी मिल गई. 2 -4 साल में छोटी बहन की शादी हो गई. अब घर में केवल भवानी प्रसाद और कामिनी ही रह गए थे.

वक्त इसी तरह गुजरता गया. मयंक और समीक्षा को मुंबई आए करीब 10 साल बीत चुके थे. उन को एक प्यारा सा बेटा भी हुआ जो अब 6 साल का हो चुका था.

एक दिन मयंक के पास भवानी प्रसाद का फोन आया. वह काफी दुखी स्वर में बोल रहे थे,” बेटा तेरी मां की तबियत सही नहीं है. उसे कैंसर…,” कहतेकहते भवानी प्रसाद रो पड़े.

“यह क्या कह रहे हैं पापा, सही से बताइए क्या हुआ मां को? पापा प्लीज रोइए मत.””बेटा उसे आंतों का कैंसर हो गया है. कुछ दिनों से न ढंग से खापी रही है और न कोई काम कर पाती है. तुरंत उल्टी हो जाती है. खून भी निकलता है. इतनी कमजोर हो गई है कि क्या बताऊं. डॉक्टर ने सर्जरी और कीमोथेरपी के लिए कहा है पर बेटा मैं अकेला सब कुछ कैसे संभालूं?”

“चिंता मत करो पापा. मैं कुछ करता हूं. पहले आप यह बताओ कि विक्रांत ने क्या कहा? क्या वह आ सकता है ?””नहीं बेटा वह कह रहा है कि उस के ऑफिस में अभी 4 महीने की ट्रेनिंग है. मैं ने कहा कि बहू को भेज दे तो कह रहा है कि वह भी तो वर्किंग है. ऑफिस छोड़ कर कैसे आएगी. हम ने दीक्षा से भी कहा था पर उस के दोनों बच्चे अभी बहुत छोटे हैं. कह रही थी कि बच्चे मां को परेशान करेंगे.”

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