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मैं लोगों से जल्दी घुलमिल नहीं पाता, क्या करूं?

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवक हूं. मैं शुरू से ही काफी अंतर्मुखी स्वभाव का रहा हूं. बहुत ही कम लोगों से मेरी दोस्ती है. चूंकि परिवार में भी मातापिता के अलावा कोई नहीं है और वे दोनों भी नौकरीपेशा हैं, इसलिए घर पर भी ज्यादातर समय मैं अकेला ही रहता हूं. संभवतया इसी वजह से मैं लोगों से जल्दी नहीं घुलमिल पाता. मेरी छवि स्कूल और कालेज में एक पढ़ाकू या यों कहूं कि किताबीकीड़े की रही है. साथ के लड़के कालेज में मौजमस्ती करते थे, नइनई गर्लफ्रैंड्स रखते थे, जबकि मेरा इस ओर कोई रूझान ही नहीं रहा. घर वाले भी चाहते थे कि मैं अच्छे ग्रेड्स लाऊं. मैं उन की इच्छाओं को पूरा करने में लगा रहा हूं.

पिछले महीने पता नहीं एक लड़की का फ्रैंडशिप प्रोपोजल मैं ने कैसे स्वीकार लिया वह भी फेसबुक पर. कुछ दिनों की दोस्ती में ही हम काफी करीब आ गए. हम रोज मिलने लगे थे. एक दिन उस ने डिनर की फरमाइश की और उस दिन हम ने होटल में सहवास भी किया. मेरे लिए यह पहला अनुभव था. इसीलिए मैं इतना कामोत्तेजित हो गया था कि सावधानी के लिए कंडोम भी इस्तेमाल नहीं किया.

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हफ्ताभर पहले अपने एक दोस्त से पता चला कि मेरी यह दोस्त कई लोगों के साथ संबंध बना चुकी है. यह सच जानने के बाद से मैं ने उस से मिलना बंद कर दिया है. सारे संबंध समाप्त कर लिए हैं. मसलन चैटिंग फोन वगैरह. मगर इस बात को ले कर दहशत में हूं कि ऐसी लड़की से संबंध बनाने के कारण कहीं मुझे एड्स तो नहीं हो जाएगा?

जवाब

उस युवती से दोस्ती समाप्त कर के आप ने समझदारी का काम किया हैं.  अगर आपको एड्स् होने का डर है तो आप डाक्टर से सम्पर्क करें.

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अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

मुक्त : इंदु के चाचा का क्या दोष था- भाग 1

भारतीय लोक सेवा आयोग की परीक्षा का परिणाम आ गया था. चुने हुए कुल 790 उम्मीदवारों में इंदु का स्थान 140वां था. यह कहना सर्वथा अनुचित नहीं था कि उस की स्वयं की लगन, परिश्रम तथा संघर्ष ने उसे आज का दिन दिखाया था. घर में उत्सव जैसा माहौल था. बधाई देने के लिए मिलने आने वालों का सिलसिला लगा हुआ था. उस का 7 सालों का लंबा मानसिक कारावास आज समाप्त हुआ था. आखिर उस का गुनाह क्या था? कुछ भी नहीं. बिना किसी गलती के दंड भोगा था उस ने. उस की व्यथाकथा की शुरुआत उसी दिन हो गई थी जिस दिन वह विवाहबंधन में बंधी थी.

इंदु के पिता एक सरकारी संस्थान में कार्यरत थे और मां पढ़ीलिखी गृहिणी थीं. उस की एक छोटी बहन थी. दोनों बहनें पटना के एक कौन्वैंट स्कूल में पढ़ती थीं. इंदु शुरू से ही एक विशिष्ट विद्यार्थी थी और मांबाप उसे पढ़ने के लिए सदा प्रोत्साहित करते रहते थे. 10वीं व 12वीं दोनों बोर्ड परीक्षाओं में इंदु मैरिट लिस्ट में आई थी. इस के बाद उसे दिल्ली विश्वविद्यालय के एक प्रख्यात कालेज में दाखिला मिल गया था. इधर इंदु अपनी पढ़ाई में व्यस्त थी, उधर उस के घर में एक अनहोनी हो गई. उस के चाचाजी की 20 साल की बेटी घर छोड़ कर एक पेंटर के साथ भाग गई. उस ने अपना भविष्य तो खराब किया ही, इंदु के जीवन को भी वह स्याह कर गई. सभी रिश्तेदारों के दबाव में आ कर, उस के पिता इंदु के लिए रिश्ते तलाशने लगे. सब को समझाने की सारी कोशिशें व्यर्थ चली गई थीं इंदु की. गलती किसी और की, सजा किसी और को. कितना रोई थी छोटी के गले लग कर इंदु जिस दिन उस की शादी तय हुई थी.

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उस के चाचा एक पंडे को बुला लाए जिस ने अनापशनाप गणना कर शादी को आवश्यक बता डाला. चाचा ने अपना दोष छिपाने के लिए उस के घर में जबरन यज्ञहवन करा डाला. एक असाध्य वास्तु के अनुसार सोफे इधर से उधर कर पड़ा दानदक्षिणा बटोर कर चलता बना. आनंद आईआईटी से इंजीनियरिंग कर के एक प्रख्यात कंपनी में काफी ऊंचे पद पर था. उस का परिवार भी उस के समुदाय में काफी समृद्ध तथा प्रतिष्ठित माना जाता था. उस पर भी उन लोगों की तरफ से एक रुपए की भी मांग नहीं रखी गई थी. देखने में तो आनंद साधारण ही था, परंतु वैसे भी हमारे समाज में लड़के की सूरत से ज्यादा उस का बैंक बैलेंस तथा परिवार देखा जाता है. हां, बात अगर लड़की की हो तो, नाक का जरा सा मोटा होना ही शादी टूटने का कारण बन जाता है. आनंद को उस के आगे पढ़ने से कोई एतराज नहीं था. वैसे भी शादी के बाद उन दोनों को दिल्ली में रहना था. उन की सिर्फ एक ही शर्त थी, इंदु नौकरी कभी नहीं करेगी. आनंद और उस के परिवार को एक घरेलू लड़की चाहिए थी.

शादी तय होने से ले कर शादी होने तक इंदु के अश्रु नहीं थमे. अपनी विदाई में तो वह इतना रोई थी कि बरात में मौजूद अजनबी लोगों की भी आंखें भर आईं. सब को लग रहा था, मातापिता से जुदाई का दुख उसे दर्द दे रहा है परंतु सिर्फ इंदु ही जानती थी कि वह रो रही थी अपने सपनों, अपनी उम्मीदों और अपने लक्ष्य की मृत्यु पर. विवाह कर के इंदु भौतिक सुखसुविधाओं से भरे हुए ससुराल में आ गई थी. संसार की नजरों में उस के जैसा सुखी कोई नहीं था. उस ने दोबारा कालेज जाना भी शुरू कर दिया था. परंतु तब की इंदु और अब की इंदु में एक बहुत बड़ा अंतर आ गया था और वह अंतर था लक्ष्य का. लक्ष्यविहीन शिक्षा का कोई औचित्य नहीं होता, लक्ष्य कुछ भी हो सकता है, परंतु उस का होना आवश्यक है.

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उस का वैवाहिक जीवन बाह्यरूप में तो सुखद ही लगता था परंतु शयनकक्ष के अंदर अगर कुछ था तो वह था बलात्कार, अतृप्ति तथा अपमान. हर रात आनंद स्वयं से लड़ते हुए उस के साथ जो कुछ करने की कोशिश करता, उस में कभीकभी ही सफल हो पाता. परंतु हर रात की इस प्रताड़ना से इंदु को गुजरना पड़ता था. कभीकभी तो कुछ न कर पाने का क्षोभ वह इंदु पर हाथ उठा कर निकालता था. इंदु की इच्छाओं, उस के सुख, उस की मरजी से आनंद को कभी कोई मतलब नहीं रहा. साल में कईकई महीने आनंद घर से बाहर रहता. इंदु के पूछने पर उसे झिड़क देता था.

इस बारे में इंदु ने पहले अपनी सास तथा बाद में अपनी मां से भी बात की. परंतु दोनों ने ही आनंद का पक्ष लिया. उन का कहना था आनंद काम से ही तो बाहर जाता है, फिर इस में क्या परेशानी? दोनों की सलाह थी कि अब उन दोनों को अपना परिवार आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए. एक शिशु मातापिता की बीच की कड़ी को और मजबूत करता है. बच्चे के बाद आनंद का बाहर जाना भी कम हो जाएगा. कैसे बताती इंदु उन्हें कि एक बच्चे के जन्म के लिए पतिपत्नी के बीच सैक्स होना भी जरूरी होता है. परंतु आनंद और इंदु के बीच जो होता था, वह सैक्स तो कदापि नहीं था. पूरी रात उस के शयनकक्ष का एसी चलता, परंतु अपमान, क्षोभ तथा अतृप्ति की आग को तो वह ठंडा नहीं कर पाता था. मुख पर मर्यादा के ताले को लगा कर, जीवन के 3 साल निकाल दिए थे इंदु ने. कुछ नहीं बदला था सिवा इस के कि उस की पढ़ाई पूरी हो गई थी. और फिर वह दिन आया जब आनंद का एक सच उस के सामने आया था.

उन दोनों की शादी की चौथी वर्षगांठ थी. आनंद औफिस के काम से पुणे गया था. इंदु की एक कालेज मित्र ने उस के साथ शौपिंग का प्लान बनाया था. इंदु ने भी सोचा वह आनंद के लिए कुछ खरीद लेगी. सहेली के घर जाते समय इंदु की नजर एक बड़े अपार्टमैंट के बाहर फोन पर बात करते हुए एक आदमी पर पड़ी. वह चौंक गई, क्योंकि वह आदमी और कोई नहीं, आनंद था. आनंद वहां क्या कर रहा था? इंदु समझ नहीं पा रही थी. गाड़ी लालबत्ती पर रुकी हुई थी. इंदु ने ड्राइवर को गाड़ी आगे लगाने का निर्देश दिया और स्वयं आनंद के पीछे भागी. आनंद तब तक बिल्ंिडग के अंदर जा चुका था.

बायो डी कंपोजर: कचरे से बनाए जैविक खाद

लेखिका-रितु वर्मा

आजकल के डिजिटल युग में हम सब अपने डिजिटल बुलबुलों में ऐसे कैद हैं कि कब रिश्ते हमारे हाथों से फिसल जाते हैं, पता ही नहीं चलता. हम बस, अपनी बात बताना चाहते हैं, अपने विचार दूसरों के समक्ष रखना चाहते हैं चाहे माध्यम फेसबुक हो या ट्विटर. कोई भी डिजिटल माध्यम ऐसा नही है जहां पर सुनने का भी प्रावधान हो.

ऋतु जब भी दफ्तर से वापस घर आती थी, उस की बेटी दिया उस से पूरे दिन का लेखाजोखा सुनाने को आतुर रहती थी. ऋतु हर समय मोबाइल को हाथ में लिए दिया की बातों पर बस, कान देती थी, सुनती नहीं थी. धीरेधीरे दिया ने ऋतु से बातें शेयर करनी बंद कर दीं. दिया को लगने लगा था कि मम्मी के पास उस के लिए समय ही नहीं है क्योंकि ऋतु दिया की हर बात पर, बस, प्रतिक्रिया देती थी, बात को सम?ाती नहीं थी.

काम्या को ऋषभ का दफ्तर से आने का बेसब्री से इंतजार रहता था. काम्या पूरे दिन का ब्योरा ऋषभ को सुनाना चाहती थी पर ऋषभ मोबाइल या टीवी में खो जाता था. बहुत बार काम्या को लगता कि ऋषभ और वह एक होटल में कमरा शेयर कर रहे हैं. ऋषभ की इन्हीं आदतों से तंग आ कर काम्या ने अपने एक्स की तरफ कदम मोड़ लिए जो उस की बातों को तस्सली से सुनता है.

किसी भी इंसान का जीवन परफैक्ट नहीं होता. हरेक के जीवन मे उतारचढ़ाव आते रहते हैं. अगर हम किसी समस्या से रूबरू हो रहे हैं तो ऐसे में हमें कोई ऐसा दोस्त चाहिए होता है जो बिना लैक्चर दिए हमारी बात को सुन ले. आज की भागतीदौड़ती जिंदगी में धीरज का बेहद अभाव है. 5जी स्पीड के डेटा की तरह ही हम अपनी बात कहना चाहते हैं और उस के बाद कान बंद कर के अपनी डिजिटल दुनिया में विलीन हो जाते हैं.

एक अच्छा श्रोता होना भी एक कला है. यह ऐसी कला है जो हम अपने अंदर थोड़ा सा परिवर्तन कर के आत्मसात कर सकते हैं. अगर हम अपने अंदर इस कौशल का विकास करेंगे तो न केवल यह हमारे रिश्तों के लिए लाभदायक महसूस होगा, बल्कि यह हमारे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद साबित होगा.

ह्ल अच्छा श्रोता होना बेहद जरूरी : रिश्तों में अधिकतर गलतफहमी इसलिए पनपती है क्योंकि हम लोग बोलते तो हैं लेकिन सुनते नहीं. कोई भी बात अगर होती है तो हमें अपनी बात कहनी होती है और उस के बाद हमें कोई दूसरा क्या कह रहा है, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. अधिकतर लोग बोलने के लिए उतावले होते हैं. उन्हें लगता है, बोलने से ही उन का वर्चस्व बनेगा, इसलिए सुनने से अधिक बोलने को महत्त्व दिया जाता रहा है. परंतु रिश्तों में मिठास और मजबूती बनाए रखने के लिए एक अच्छा श्रोता होना बेहद जरूरी है.

ह्ल जिंदगी को देता है एक अलग नजरिया : जितना धीरज से आप किसी की बात सुन पाएंगे, उतना ही अधिक आप उन्हें सम?ाने में सक्षम होंगे. जितने ज्यादा आप लोगों को सुनेंगे, उतना ही अधिक आप का जिंदगी के प्रति नजरिया बदलता जाएगा. जिंदगी के बहुत सारे रंग और अनुभवों से आप सुन कर ही रूबरू हो सकते हैं. जो व्यक्ति जरूरत से ज्यादा बोलता है, वह अंदर से कमजोर होता है. बोलबोल कर ही वह हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहता है. अगर आप बोलते हैं लेकिन सुनते नहीं हैं तो आप का नजरिया जिंदगी की तरफ बेहद लिमिटेड ही रहेगा. जितना सुनेंगे, उतना ही जिंदगी के हर पहलू में आगे बढ़ेंगे.

ह्ल आप की प्रोफैशनल ग्रोथ के लिए भी है जरूरी : यह बात विभिन्न सर्वे में सामने आई है कि एक अच्छा श्रोता हमेशा अपने काम में बेहद सजग रहता है. उस का प्रोफैशनल ग्राफ दूसरे लोगों की अपेक्षाकृत अधिक ऊंचाई पर रहता है. मीटिंग हो या क्लाइंट डीलिंग या फिर कोई निर्णय लेना हो तो. वह सभी काम आसानी से कर सकता है. बहुत बार दफ्तरों में देखा जाता है कि कुछ कर्मचारी अपनी शेखी बघार कर हंसी के पात्र बन जाते हैं और कुछ लोग सुन कर व सम?ा कर अपने कार्यपथ पर आगे बढ़ते जाते हैं.

ह्ल जितना सुनेंगे उतना ही सीखेंगे : जीवन के जिस भी पड़ाव पर आप ने सुनना बंद कर दिया तो सम?ा लीजिए सीखना भी बंद कर दिया है. अगर बोलते ही रहेंगे तो दूसरों से सीखेंगे कैसे? हर व्यक्ति के अंदर कुछ ऐसा गुण अवश्य होता है जिस से आप कुछ न कुछ सीख सकते हैं. जरूरत है ध्यान से उन को सुनने की.

ह्ल खुद के लिए खुद की भी सुनें : अगर आप के अंदर सुनने की कला विकसित है तो आप धीरेधीरे अपने को भी सुनने और सम?ाने लगेंगे. जो इंसान खुद को सम?ाने लगता है, उसे किसी और की जरूरत महसूस नहीं होती. अपने अंदर के शोर को कम करने के लिए भी खुद को सुनना बेहद जरूरी है.

मुक्त

मुक्त : इंदु के चाचा का क्या दोष था- भाग 3

तलाक के बाद जीवन सरल होने की जगह और कठिन हो गया था. उसे हर दिन पुरुषों की लोलुप नजरों, महिलाओं की शक्की नजरों तथा रिश्तेदारों की तिरछी नजरों का सामना करना पड़ता था. अपनी मां की सलाह पर इंदु ने प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने का निर्णय लिया. उस ने अपनेआप को एक कमरे में सीमित कर लिया और लग गई परीक्षा की तैयारी में. लोगों की छींटाकशी उस तक पहुंच ही नहीं पाती थी. थोड़ीबहुत छींटाकशी उस तक पहुंचती भी थी तो इंदु उन्हें हंस कर टाल देती. बहुत अधिक कष्ट झेल लेने पर, इंसान को पीड़ा का एहसास भी कम हो जाता है, वही इंदु के साथ हो रहा था. 2 सालों के अथक परिश्रम के बाद, अपने दूसरे ही प्रयास में इंदु का चयन हो गया था. आज उस ने अपना आत्मसम्मान तथा अपनी आजादी दोनों पा लिए थे.

‘‘इंदु, बाहर आ जा बेटा.’’

‘‘दीदी, क्या कर रही हो?’’

मां और छोटी की आवाज से इंदु वर्तमान में लौट आई थी. बाहर रिश्तेदारों तथा जानने वालों की फौज बैठी हुई थी. भविष्य में कुछ पाने की आशा ले कर, कई गुमनाम रिश्तेदार ऐसे प्रकट हो रहे थे जैसे थोड़े से शहद को देख कर चीटियां न जाने कहां से प्रकट हो जाती हैं. ‘‘भाईसाहब, अब तो इंदु के लिए अच्छे रिश्तों की कमी न होगी,’’ कोई कह रहा था पापा से.

बात घूमफिर कर वहीं आ गई थी… शादी, जैसे स्त्रीजीवन का एकमात्र लक्ष्य तथा उस की पूर्णता शादी में ही है. ‘‘बेटा, पंडितजी आ गए हैं.’’ तभी चाचा टपके, ‘‘इन्हीं की कृपा से सबकुछ हुआ है.’’

‘‘जी नहीं चाचा. इन की कृपा से तो मेरे 7 साल खराब हुए हैं. मैं ने जो दुख झेले हैं उन्हें मैं ही जानती हूं.’’ उस की वकील भी आई. उन्हें गले लगा कर वह बोली,

‘‘सोने के पिंजरे से निकला पक्षी सामने उस के अनंत आकाश था पड़ा जंजीर का टुकड़ा अभी भी पैरों में था उस के पिंजरे का दरवाजा भी था खुला पलट कर न देखा उस ने दोबारा झटक कर उस टुकड़े को भी तोड़ दिया मुक्त होना क्या होता है अब उस ने था जान लिया.

मुक्त : इंदु के चाचा का क्या दोष था- भाग 2

अपनेआप को संयत कर के इंदु आगे बढ़ी. आनंद का नाम बताने पर वाचमैन ने उस के फ्लैट का नंबर इंदु को बता दिया. अभी इंदु कौरिडोर में पहुंची ही थी कि उस ने आनंद को किसी लड़के के साथ खड़ा पाया. इंदु ने सोचा आनंद का कोई मित्र होगा. परंतु अगले ही पल जो हुआ वह उस की कल्पना से परे था. आनंद और वह लड़का अचानक ही एकदूसरे को बेतहाशा वहीं पर चूमने लगे थे. शायद, उन्हें वहां उस समय किसी के होने की उम्मीद नहीं थी. इंदु के मानसपटल पर उस के अपने शयनकक्ष की तसवीर आ गई. आनंद की बेचैनी, उस की कमजोरी, उस का साल में कईकई महीने बाहर रहने का कारण उस की समझ में आ गया था. अपनेआप को संभाल नहीं पाई थी इंदु, लड़खड़ा कर गिर पड़ी. इंदु जब होश में आई, अपनेआप को एक अपरिचित कमरे में पाया. अभी वह अपनेआप को संभाल रही थी कि सामने से वह लड़का आता दिखाई दिया.

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‘अब कैसी तबीयत है आप की?’

‘ठ…ठ…ठीक हूं, बस, सिर थोड़ा सा भारी है. मेरे पति कहां हैं?’ अभी वह उस लड़के से बात करने के मूड में बिलकुल नहीं थी.

‘सिर तो भारी होगा ही, चोट जो लगी है. अच्छीखासी भीड़ इकट्ठी कर ली थी आप ने तो. वह तो मैं ने बात संभाल ली.’

‘अच्छा, क्या बताया आप ने लोगों को?’

‘यही कि आप मेरी कजिन हैं. अब यह तो बता नहीं सकता कि आप मेरी सौतन हैं. हा…हा…हा…’ उस की बेहयाई पर इंदु ठगी सी रह गई, परंतु अपने पर काबू रख कर उस ने जवाब दिया, ‘‘जी, बिलकुल, सच बता देना चाहिए था आप को…’’ ‘अच्छा, सच बता देना चाहिए था,’ उसी वक्त चीखते हुए आनंद कमरे में दाखिल हुआ. कितना बेशर्म तथा संगदिल था वह इंसान. अभी भी उस की नजरों में लेशमात्र भी पछतावा नहीं था.

‘आनंद शांत हो जाओ, इंदु आज के जमाने की लड़की है, मुझे यकीन है वह हमें समझेगी. समझोगी न इंदु?’ ‘मिस्टर सौतन, आप बिलकुल सही कह रहे हैं, मैं समझती हूं. परंतु आप को नहीं लगता कि इसे मैं ज्यादा अच्छे से समझ पाती अगर मुझ से खुल कर बात की जाती.’

‘मिस्टर सौतन…’

‘मेरा नाम राजीव है.’

‘हां तो राजीव, आप को पता है आप की गलती क्या है?’

‘यही कि हम गे…’

‘नहीं, आप क्या हैं उस में आप का बस नहीं है, इसलिए वह आप की गलती हो ही नहीं सकती,’ राजीव को बीच में ही रोक कर इंदु बोली.

‘तो फिर?’ इस बार आनंद बोला था. ‘मुझ से शादी क्यों की? मेरी जिंदगी बरबाद क्यों की? यह आप की गलती है आनंद. और राजीव आप की गलती यह है कि आप ने इन्हें नहीं रोका.’ ‘मैं ने समाज के लिए तुम से शादी की. मुझे घर संभालने के लिए एक बीवी तो चाहिए थी. और फिर तुम्हें क्या कमी थी? सोना, हीरा, लेटेस्ट गैजेट, महंगे कपड़े… और क्या चाहिए था तुम्हें?’

‘अच्छा, तो फिर आप को दिखावे के लिए एक पत्नी चाहिए थी, तो फिर हर रात मुझ पर वह जुल्म क्यों किया जो आप करना ही नहीं चाहते थे या कर नहीं सकते थे?’ ‘तुम्हें क्या लगता है, वह सब मैं अपनी मरजी से करता था? तुम से कहीं ज्यादा मुझे तकलीफ होती थी. पर मां खानदान का वारिस चाहती थीं. उन्होंने मुझ से वादा किया था कि उस के बाद मुझे अपनी जिंदगी अपनी मरजी से जीने की आजादी होगी.’

‘म…म…म…म…मम्मीजी को पता था?’ ‘जी हां, वरना तुम जैसे कंगालों से रिश्ता कौन करता. मम्मी को तुम गऊ जैसी सीधी लगी थी. तुम्हारे बाप की औकात भी है हमारे सामने खड़े होने की. चलो, अच्छा ही है तुम्हें पता चल गया. जाओ, अब घर जाओ.’ ‘सही पहचाना आप की मां ने, मैं गऊ हूं. परंतु वे मेरे सिर के ऊपर की सींगों को देखना भूल गईं,’ अपमान की आग मैं झुलसती हुई इंदु ने कहा.

‘अच्छा, क्या करेगी तू, जरा मैं भी तो सुनूं?’

‘मैं सब को तुम्हारी और तुम्हारे खानदान की असलियत बता दूंगी. तुम सब इंसान के भेष में छिपे भेडि़ए हो. मैं जा रही हूं. हमारी अगली मीटिंग कोर्ट में होगी.’ ‘अच्छा, यह बात है. राजीव, देख, मैं ने कहा था न, यह ऐसे नहीं मानेगी. चल आ जा, चढ़ जा इस के ऊपर.’ उन दोनों ने इस की तैयारी शायद तभी कर ली थी जब इंदु बेहोश पड़ी थी. इंदु मुसीबत में फंस चुकी थी, उसे थोड़ा होशियार रहना चाहिए था. परंतु आनंद इतना नीचे गिर जाएगा, इस की कल्पना उस ने नहीं की थी. राजीव ने इंदु को बिस्तर पर गिरा दिया था और उस के कपड़े उतारने की कोशिश कर रहा था. यह सबकुछ आनंद अपने वीडियो में रिकौर्ड कर रहा था.

‘अरे राजीव, उतर नहीं रहा तो फाड़ दे, फिर इस का वीडियो बनाएंगे. हमें धमकी दे रही थी. इस के बाद यह वही करेगी जो हम कहेंगे. वरना यह वीडियो…’ तभी दरवाजे की घंटी जोर से बजी, रुकरुक कर काफी बार बजी. राजीव और आनंद दोनों चौंक पड़े. इस बात का फायदा उठा कर, इंदु ने राजीव को वहां किक मारी जहां उसे सब से ज्यादा दर्द होता. फिर जोरजोर से शोर करते हुए दौड़ी. आनंद ने लपक कर उस का मुंह बंद किया और उस का सिर दीवार पर जोर से दे मारा. परंतु तब तक उस की आवाज बाहर जा चुकी थी. लोगों ने दरवाजा तोड़ दिया था. स्थानीय लोगों ने पुलिस को भी बुला लिया था. दरवाजा तोड़ने पर उस के अस्तव्यस्त कपड़ों को देख कर लोगों को सारा माजरा समझते देर न लगी थी. गनीमत यह हुई थी कि पुलिस की पैट्रोलिंग टीम पास में ही थी. इसलिए पुलिस को भी आने में ज्यादा समय नहीं लगा था.

अस्पताल में इंदु से मिलने उस के कालेज के कई मित्र आए थे. उन्होंने ही उस के मम्मीपापा को फोन किया था. मम्मीपापा शाम तक आ गए थे. पापा बारबार स्वयं को दोष दे रहे थे. इंदु की यंत्रणाओं का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ था. जब उस ने आनंद

को तलाक देने का निर्णय लिया, मम्मीपापा के अलावा सभी रिश्तेदारों ने उस का जम कर विरोध किया. उन का तर्क था कि इस के बाद खानदान की बाकी लड़कियों का क्या होगा, छोटी का क्या होगा. कौन करेगा उस से शादी? आनंद के परिवार वाले बड़े लोग हैं, वे तो साफ निकल जाएंगे. भुगतना तो इंदु को ही और उस के परिवार को पड़ेगा. परंतु इस बार इंदु के साथ उस की ढाल बन कर उस के पापा खड़े थे. आनंद की मां ने भी कई चक्कर काटे. उन का कहना था कि आनंद निर्दोष था. सारा दोष राजीव का था. परंतु जब इंदु इतने पर भी नहीं मानी, तब शुरू हुआ उस के चरित्र पर दाग लगाने का दौर. उस की ससुराल वालों ने कहना शुरू किया कि उस का और राजीव का अनैतिक संबंध था. जिस का पता आनंद को चल गया था. इंदु और उस के परिवार वालों का घर से निकलना मुश्किल हो गया था. परंतु इंदु नहीं हारी, लड़ती रही और आखिरकार कोर्ट ने उस के हक में फैसला सुना दिया था. उसे तलाक मिल गया.

पश्चिम बंगाल की राजनीति मुसलमानों को नाराज़ करके नहीं लड़ी जा सकती

इस बार साफ देखा जा सकता है कि 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में हिंदू-मुस्लिम राजनीति की भी बड़ी भूमिका होगी. वैसे तो कहा जाता है कि बंगाल में लेफ्ट के 34 साल के शासन के समय ही चुनावों में हिंदू-मुस्लिम राजनीति का कोई खास महत्व नहीं रह गया था. ममता के 10 वर्षों के शासनकाल में भी यह मुद्दा बिल्कुल गौण दिखा. अब कम से कम साढ़े चार दशक बाद बंगाल चुनाव में जातिगत समीकरणों के तहत हिंदू-मुस्लिम राजनीति को भी इतना महत्व दिया जा रहा है.

पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर
पश्चिम बंगाल में करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. कश्मीर और असम के बाद यहां मुसलमान सबसे ज्यादा हैं और विधानसभा की 294 सीटों में से करीब 110 सीटों पर मुस्लिम वोट बैंक निर्णायक है. 85 विधानसभा क्षेत्रों में 30 प्रतिशत से ज्यादा मुस्लिम आबादी है. मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर में तो 50 फीसदी तक मुसलमान हैं. जबकि दक्षिण और उत्तर 24-परगना जिलों में भी मुसलमानों का खासा असर है.

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सीटों के लिहाज़ से बात करें तो लगभग 70-100 सीटों पर उनका एकतरफ़ा वोट जीत और हार तय कर सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस, लेफ़्ट, बीजेपी और टीएमसी सब इन वोटरों को साधने की कोशिश में जुटे हैं. कांग्रेस और लेफ़्ट का गठबंधन पहले ही हो चुका था, लेकिन उनके साथ अब फ़ुरफ़ुरा शरीफ़ के पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी भी हैं. राजनीति में सीधे तौर पर उनकी पहली बार एंट्री हुई है. वहीं दूसरी तरफ़ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी भी चुनावी मैदान में उतरने का एलान कर चुके हैं.

बीजेपी का ममता बनर्जी को एंटी हिंदू कहना
बीजेपी अब हिंदू वोटरों को एकजुट करने में जुटी हुई है और कुछ हद तक वह अपने इस मिशन में सफल भी हो चुकी है. इसका जीता-जागता उदाहरण है 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट परसेंट, जो पहले से काफी ज्यादा बढ़ा था और वह 18 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का बयान अक्सर हिंदुओं के पक्ष में आता है. वह कभी ममता सरकार को दुर्गा पूजा विसर्जन के लिए अनुमति न देने पर घेरते हैं, तो कभी दीपावली और दशहरा के लिए. बीजेपी बंगाल के हिंदुओं मैं यह बात डालने में कामयाब होती दिख रही है कि वहां उनके हितों का हनन हो रहा है. ममता बनर्जी सरकार को कई बार दुर्गा पूजा विसर्जन जैसे मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट से भी फटकार खानी पड़ी है. यही नहीं ममता बनर्जी कई बार मीडिया और पब्लिक के सामने भी ‘जय श्री राम’ के नारे से चिढ़ती हुई दिखती हैं. जिसे बीजेपी ने हाथों-हाथ लिया था और बंगाल की जनता को ये समझाने की कोशिश की थी कि ममता बनर्जी को अब भगवान राम से भी दिक्कत होने लगी है. बीजेपी के बड़े नेता आज भी अपनी रैलियों में इस बात का जिक्र कर के ममता बनर्जी को घेरते रहते हैं.

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हालांकि इसके बाद ममता बनर्जी ने अपनी रणनीति थोड़ी बदल दी थी. ममता ने राज्य के लगभग 37 हज़ार दुर्गापूजा समितियों को 50-50 हज़ार रुपए का अनुदान देने का एलान किया है. यही नहीं, कोरोना और लॉकडाउन की वजह से आर्थिक तंगी का रोना रोने वाली मुख्यमंत्री ने पूजा समितियों को बिजली के बिल में 50 फ़ीसद छूट देने का भी एलान किया. राज्य के आठ हज़ार से ज़्यादा ग़रीब ब्राह्मण पुजारियों को एक हज़ार रुपए मासिक भत्ता और मुफ़्त आवास देने की घोषणा की थी.

बीजेपी को फ़ायदा

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी का नुक़सान बीजेपी को फ़ायदा पहुँचा सकता है?

लेफ़्ट कांग्रेस और अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी की संयुक्त रैली के बाद लेफ्ट के वोटर बहुत उत्साहित नज़र नहीं आ रहे. ऐसे में देखना होगा कि बंगाल में लेफ़्ट का प्रदर्शन कैसा रहेगा. लेफ़्ट और कांग्रेस के साथ आने से जो चुनाव त्रिकोणीय लगने लगा था, वो अब दोबारा से ममता – मोदी के बीच का मुक़ाबला बनता जा रहा है. एक दूसरी बात भी है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत है. ओवैसी और सिद्दीक़ी के आने से वोटों का ध्रुवीकरण ज़रूर होगा, हिंदू वोट और ज़्यादा संगठित होंगे और इसका फ़ायदा बीजेपी को हमेशा होता है. बीजेपी की रणनीति ऐसा करने की दिख भी रही है. कांग्रेस के अंदर ही अब्बास सिद्दीक़ी की पार्टी के साथ गठबंधन पर ख़ूब खींचतान चल रही है.

ओवैसी पर बीजेपी की ‘बी टीम’ के आरोप लगते रहं है

पिछले चुनाव में लेफ़्ट का हिंदू वोट बीजेपी के साथ चला गया और मुसलमान वोट टीएमसी के साथ. इसलिए इस बार अब्बास सिद्दीक़ी को अपने साथ लाकर लेफ़्ट गठबंधन, मुसलमान वोट अपने साथ करना चाहती है, ताकि टीएमसी को नुक़सान पहुँचाया जा सके.

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बंगाल में बीजेपी भी मुसलमान वोटरों की अहमियत समझती है और इसलिए स्थानीय जानकार मानते हैं कि ओवैसी उनकी चुनावी रणनीति का ही एक हिस्सा हैं. टीएमसी भी ओवैसी को बीजेपी की ही ‘बी टीम’ क़रार देती है. ओवैसी पर इस तरह के आरोप कई लोग लगाते हैं कि उनकी राजनीति बीजेपी को चुनावी फ़ायदा पहुँचाने के लिए होती है लेकिन मुसलमानों का एक बहुत बड़ा तबक़ा संसद में मुसलमानों के मुद्दे पर बेबाकी से अपनी बात रखने वाले नेता के तौर पर भी देखता है.

हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव में भी उन पर इस तरह के आरोप लगे लेकिन उनकी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा और उनकी पार्टी ने पाँच सीटें हासिल की. यानी लेफ्ट गठबंधन अब्बास सिद्दीक़ी के सहारे और बीजेपी ओवौसी के सहारे टीएमसी के मुसलमान वोटर में सेंधमारी की कोशिश में जुटी है.

बंगाल के अल्पसंख्यक मुख्य रूप से दो धार्मिक संस्थाओं का अनुसरण करते हैं. इनमें से देवबंदी आदर्शों पर चलने वाले जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अलावा फुरफुरा शरीफ़ शामिल है. अब्बास सिद्दीक़ी और ओवैसी दोनों के मैदान में उतने से बंगाल के मुसलमान वोट बंट जाएँगे. दोनों नेताओं के फॉलोअर अलग-अलग हैं. अब्बास सिद्दीक़ी जिस फुरफुरा शरीफ़ के पीरज़ादा हैं उसको मानने वाले मॉडरेट मुसलमान माने जाते हैं. जबकि ओवैसी जिस तरह का प्रचार करते हैं, उनके साथ कट्टर मुसलमान ज़्यादा जुड़ते हैं

ओवैसी बंगाल चुनाव में कितनी बड़ी भूमिका अदा कर सकते हैं?

बिहार चुनाव को देखते हुए कोई नहीं जानता था कि बिहार में वो इतनी सीटें जीतेंगें. इसलिए उनको पूरी तरह से दरकिनार नहीं किया जा सकता. वो जिस तरह से प्रचार करते हैं, मुसलमानों को हाशिए पर किए जाने की बात करते हैं, इसमें कोई दो राय नहीं कि इस चुनाव में कट्टर मुसलमानों का गुट उनके साथ जुड़ेगा भी. भले ही उनको मिलने वाले वोट, उन्हें बंगाल में सीट ना जीता पाएं लेकिन एक बड़े मुसलमान तबक़े को अपनी तरफ़ कर सकते हैं

दिग्गज अभिनेत्री शशिकला का निधन, फैंस ने जताया शोक

फिल्म जगत से एक और बुरी खबर सामने आ रही है. 70 की दशक की खूबूरत अदाकारा शशिकला ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है. जिसके बाद से एक बार फिर फिल्म जगत में उदासी छा गई है. शशिकला ने अपनी फिल्मी कैरियर में सौ से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया है.

फैंस उन्हें बेहद ज्यादा पसंद करते थे, एक वक्त ऐसा था, जब शशिकला को लोग वैप के किरदार में भी पसंद करना शुरू कर दिए थे, फिल्मों में शशिकला को लोग खतरनाक सास के रूप में पसंद करते थे.

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आज इस मशहूर अदाकारा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया है लेकिन अपने जाने के बाद भी अपनी खूबसूरत यादे हमेशा के लिए लोगों के लिए छोड़ के गई हैं. शशिकला अपनी समय में सबसे ज्यादा मशहूर एक्ट्रेस में शूमार रहती थी.

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88 साल की उम्र में अदाकारा ने अपनी अंतिम सांस ली है. वह लंबे वक्त से मुंबई में स्थित अपने घर में रह रही थी.  शशिकला के निधन के बाद से उनके साथ काम करने वाले साथी कलाकारों ने दुख जताया है. शशिकला ने अपने दमदार एक्टिंग और अपनी खूबसूरती के बल पर अपना नाम बनाया थी. शशिकला कि खूबसूरती के कई लोग दीवाने थें.

शशिकला के निधन पर एक्टर फरहान अख्तर ने दुख जताया है. उन्हें ट्विट करके बताया है कि शशिकला के जानें के बाद उन्हें काफी ज्यादा दुख हो रहा है. उनके संबंध शशिकला के साथ काफी अच्छे थें.

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इसके अलावा कई दिग्गज कलाकारों ने शशिकला के निधन पर दुख जताया है. कुछ लोग बॉलीवुड में ऐसे भी हैं जो शशिकला को अपना आइडियल मानते थें. उन्हें भी काफी ज्यादा दुख है शशिकला के निधन का.

राहुल वैद्य और दिशा परमार की ‘शादी फोटोज’ हुई वायरल तो फैंस ने दिया ये रिएक्शन

बिग बॉस 14 स्टार राहुल वैद्य टीवी इंडस्ट्री के सबसे चर्चित कपल में से एक हैं. राहुल वैद्य ने बिग बॉस के घर के अंदर ही अपनी गर्लफ्रेंड दिशा को प्रपोज किया था. जिसका जवाब अदाकारा ने हां में दिया था. तभी से इन दोनों कपल को लेकर बाजार में माहौल गर्म है.

खबर है कि ये कपल जल्द ही शादी करने वाले हैं.इसी बीच सोशल मीडिया पर राहलु वैद्य और दिशा परमार की एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें दोनों दुल्हा दुल्हन बने नजर आ रहे हैं.

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जिसके बाद से फैंस लगातार कयास लगा रहे हैं कि दोनों जल्द शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. कुछ लोग ये पूछ रहे है कि क्या सच में ये कपल शादी के बंधन में बंध चुके हैं.  जिसके बाद से यह फोटो लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है.

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दरअसल, वायरल हो रही तस्वीर में राहुल और दिशा दुल्हा -दुल्हन के गेटअप में नजर आ रहे हैं. सोशल मीडिया पर कमेंट करके फैंस सवाल पूछ रहे हैं कि क्या सच में आपने शादी रचा ली है. जिसका जवाब अभी तक दिशा और राहुल में से किसी ने नहीं दिया है.

जबकी यह फोटो  दिशा और राहुल के म्यूजिक वीडियो कि है जिसमें वह दोनों एक साथ नजर आने वाले हैं. दिशा और राहुल इस फोटो में किसी से कम नहीं लग रह हैं. दिशा और राहुल कि इस तस्वीर को फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

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हालांकि फैंस ये भी कयास लगा रहे हैं कि दोनों ने गुपचुप शादी रचा ली है. जबकी दोनों की म्यूजिक वीडियो की शूटिंग चल रही हैं. अदाकारा दिशा परमार गुलाबी रंग के लहंगे में नजर आ  रही हैं. जबकी अब यह साफ हो गया है कि एक्टर राहुल और दिशा वीडियो शूट के लिए यह गेटअप लिए हुए हैं.

अब देखना यह है कि कितनी जल्दी राहुल और दिशा शादी के बंधन में बंधने वाले हैं.

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