Download App

शेष चिह्न – भाग 4 : निधि की क्या मजबूरी थी

उन्हें होश आया तो वह बोले, ‘‘निधि, मुझे बहुत दुख है कि अभी अपने विवाह को केवल 10 माह ही हुए हैं और मैं इस प्रकार झूठे मामले में फंसा दिया गया. तुम यह मकान बेच कर मां को ले कर मायके चली जाना. मधु के मामा संपन्न हैं. वे उन्हें जरूर इलाहाबाद ले जाएंगे. यदि मां को ले जाना चाहें तो ले जाने देना. मैं ने कुछ रुपए कबाड़खाने के टूटे बाक्स में पुराने कागजों के नीचे दबा रखे हैं. वहां कोई न ढूंढ़ पाएगा. तुम अपने कब्जे में कर लेना. बचे रहे तो मुकदमा लड़ने के काम आएंगे.’’

निधि फूटफूट कर रो पड़ी फिर बोली, ‘‘पर वहां तो सील लग गई है. पुलिस का पहरा है,’’ निधि के मुंह से यह सुन कर उन की आंखों से ढेरों आंसू लुढ़क पड़े. फिर पता नहीं कब दवा के नशे में सोतेसोते ही उन्हें दूसरा दौरा पड़ा, 3 हिचकियां आईं और उन के प्राण निकल गए.

निधि की तो अब दुनिया ही उजड़ गई. जिस धन की इच्छा में उस ने अधेड़ विधुर को अपनाया था वह उसे मंझधार में ही छोड़ कर चला गया.

मातापिता सब आए. मधु के नाना, मामा आदि पूरा परिवार जुड़ आया. सब उस के अशुभ चरणों को कोस रहे थे. चारों ओर के व्यंग्य व लांछनों से वह घबरा गई. पुलिस ने उस के मायके तक को खंगाल डाला था.

मांजी तो जीवित लाश सी हो गई थीं. निधि की हालत देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और पूजागृह से अपनी संदूक खींच कर उसे यह कहते हुए सौंप दी, ‘‘बेटी, इस में जो कुछ है तेरा है. मैं तो अपनी बेटी के पास शेष जीवन काट लूंगी. यह लोग तुझे जीने नहीं देंगे. मकान बिकेगा तो तुझे भी हिस्सा मिलेगा. मेरे दामाद व बेटी तुझे अवश्य हिस्सा दिलवाएंगे. तू अपने नंगे गले में मेरा यह लाकेट डाल ले और ये चूडि़यां, शेष तो सब सरकारी हो गया. बेटी, 1 साल बाद जहां चाहे दूसरा विवाह कर लेना… अभी तेरी उम्र ही क्या है.’’

वह चुपचाप रोती रही. फिर उसे ध्यान आया और जहां पति ने बताया था वहां ढूंढ़ा तो 10 लाख की गड्डियां प्राप्त हुईं. तलाशी तो पहले ही हो चुकी थी इस से वह सब ले कर मांबाप के साथ मायके आ गई. बस, वह पेंशन की हकदार रह गई थी. वह भी तब तक जब तक कि वह पति की विधवा बन कर रहे.

निधि ने रुपए किसी बैंक में नहीं डाले बल्कि उन से कंप्यूटर खरीद कर बहनों के साथ अपनी कंप्यूटर क्लास खोल ली. उस ने बैंक से लोन भी लिया था, जिस से कभी पकड़ी न जाए. अच्छी पेंशन मिली वह भी केस निबटने के कई वर्ष बाद.

मैं निधि के घर तुरंत गई थी. उस का वैधव्य रूप, शिथिल काया, कांतिहीन चेहरा देख कर खूब रोई.

‘‘मीनू, देख, कैसा राजसुख भोग कर लौटी हूं. रही बात अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने की तो वह 2 राज्यों के चलते कभी न मिल पाएगी. मैं उत्तर प्रदेश में रह नहीं सकती और मध्य प्रदेश में नौकरी मिल नहीं सकती. हर माह पेंशन के लिए मुझे लखनऊ जाना पड़ेगा. गनीमत है कि मैं बाप पर भार नहीं हूं. पति सुख नहीं केवल धन सुख भोग पाऊंगी. इसी रूप की तू सराहना करती थी पर वहां तो सब मनहूस की पदवी दे गए.

‘‘वे क्या जानें कि मैं ने आधी रात को नशे में चूर डगमगाए पति की भारीभरकम देह को कैसे संभाला है. मद में चूर, कामातुर असफल पुरुष की मर्दानगी को गरम रेत पर पड़ी मछली सी तड़प कर लोटलोट कर काटी हैं ये पूरे 10 माह की रातें. मेरा कुआंरा अनजाना तनमन जैसे लाज भरी उत्तेजना से उद्भासित हो उठता.’’

‘‘निधि, संभाल अपनेआप को. तू जानती है न कि मैं अभी इस अनुभव से सर्वथा अनजान हूं.’’

‘‘ओह, सच में मीना. मैं अपनी रौ में सब भूल गई कि तू यह सब क्या जाने. मुझे क्षमा करेगी न?’’

‘‘कोई बात नहीं निधि, तेरी सखी हूं न, जो समझ पाई वह ठीक, नहीं समझी वह भी ठीक. तेरा मन हलका हुआ. शायद विवाह के बाद मैं तेरी ये बातें समझ पाऊंगी, तब तेरी यह व्यथा बांटूंगी.’’

‘‘तब तक ये ज्वाला भी शीतल पड़ जाएगी. मैं अपने पर अवश्य विजय पा लूंगी. अभी तो नया घाव है न जैसे आवां से तप कर बरतन निकलता है तो वह बहुत देर तक गरम रहता है.’’

‘‘अच्छा, अब चलूंगी. बहुत देर हो गई.

 

सफल रसोई, सुखी परिवार : सास-बहू का तालमेल है जरूरी

रसोई न केवल घर बल्कि पूरे परिवार का केंद्र होता है. यहीं से स्वास्थ्य, संतुष्टि, सौहार्द, स्नेह, समभाव व दूसरे अनेक भावों की सृष्टि होती है. अभिनेत्री करिश्मा कपूर हों या काजोल, श्रीदेवी हों या माधुरी दीक्षित नेने, जब वे कहती हैं कि वे अपने मातृत्व को रसोई से सार्थक मानती हैं लेकिन बच्चों व पति के लिए रसोई में कुछ बनाने में उन्हें बहुत सुखसंतोष मिलता है तो लगता है कि स्त्री का दिल रसोई में ही बसता है. यही वह जगह है जहां जिंदगी के हर रंग और स्वाद का मजा मिलता है. विवाह के सभी रस्मों को निभाते हुए एक नववधू जब नए परिवेश में नई रसोई में अपना पहला कदम रखती है तो उस के मन में अनेक सवाल, अनेक सपने जन्म ले रहे होते हैं. रसोई में पहले कदम से ले कर रसोई से जुड़े विभिन्न रंगों और स्वादों का सफर पेश है आप के सामने.

रसोई में पहला कदम

नेहा अपनी शादी की सभी रस्मोरिवाजों को निभाते हुए ससुराल पहुंची. वहां की रस्मोंरिवाजों को निभाते हुए जब रसोई में पहला कदम रखा तो उसे घबराहट होने लगी कि वह ऐसा क्या बनाए जिस से वह सब का दिल जीत ले. ऐसे में ससुराल का भय कि कहीं कुछ गलत हो गया तो मायके को ताने दिए जाएंगे. मायके में जैसा चाहे बना दो चल जाएगा पर ससुराल में तौबा. वैसे भी ‘फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन’ होता है. नेहा जैसी घबराहट हर नई दुलहन के मन में होती है. आइए, जानें नई दुलहन रसोई में कैसे जमाए अपने कदम.

ये भी पढ़ें- हेल्दी बॉडी और स्किन के लिए जरूरी है बैलेंस डाइट, ऐसे करें फॉलो

दुलहन की जिम्मेदारी

अगर नईनवेली दुलहन पहले से ही अपनी ससुराल की पसंद/नापसंद को समझ ले कि उन्हें वहां वालों को खाने में क्या अच्छा लगता है तो उसे नई रसोई में काम करने और परिवार वालों का दिल जीतने में आसानी होगी. पहले दिन रसोई में जाने से पहले अपनी सास से पूरा सहयोग लें, चाहे आप कितनी भी ऐक्सपर्ट क्यों न हों. इस से आप की इमेज अच्छी बहू की बनेगी. अपना अधिकार जमाना न शुरू कर दें क्योंकि जो सास सालों से रसोई संभाल रही है उसे बुरा लग सकता है. खुद को संयम में रखें. ज्यादा जल्दबाजी न करें. कोई चीज बनानी नहीं आती तो पूछने में कोई बुराई नहीं है. रसोई में अपनी ही न चलाएं कि हमारे मायके में तो ऐसे बनता है क्योंकि ससुराल और मायके की स्थिति व खानपान में अंतर हो सकता है. अपनी पसंद को ससुराल वालों पर न थोपें क्योंकि सब की अपनी पसंद होती है. आप सब की पसंद और रुचि के अनुसार काम करेंगी तभी आप परफैक्ट बहू बनेंगी.

सास का कर्तव्य

सास नईनवेली दुलहन के आते ही उस पर रसोई का पूरा भार न छोड़ें. उसे कुछ दिन ससुराल के नियमकायदों को समझने का समय दें. रसोई के पहले दिन दुलहन को पूरा सहयोग दें क्योंकि नए वातावरण में वह इतनी घबराई हुई होती है कि सही चीजें भी उस से गलत हो जाती हैं. सास अगर खाना बनाने में ऐक्सपर्ट हैं तो जरूरी नहीं कि आने वाली बहू भी ऐक्सपर्ट होगी. उस से ज्यादा अपेक्षाएं न रखें. अगर खाना बनाने में नई?दुलहन से कोई गलती हो जाए तो उसे प्यार से समझाएं. घर के लोगों की पसंदनापसंद के बारे में आप उसे सही ढंग से बता सकती हैं. धीरेधीरे उसे रसोई की जिम्मेदारी दें और उस की प्रशंसा भी करती रहें.

ये भी पढ़ें- अच्छी कुक बनने के लिए फॉलो करें ये 7 टिप्स, होगें कई फायदे

रसोई में पौलिटिक्स

व्यस्ततम जीवनशैली में स्त्री का कार्यक्षेत्र सिर्फ घर और रसोई ही नहीं रह गया है. उस ने घर से बाहर की दुनिया में कदम रख कर अपनी जिम्मेदारी बढ़ा ली है. वह घर पर काम करती है, बाहर भी करती है, इसलिए वह थकती भी है पर इस पर ज्यादा सोचा नहीं जाता बल्कि तरहतरह की किचन पौलिटिक्स की जाती है.आजकल हर क्षेत्र में होती पौलिटिक्स ने रसोई को भी अछूता नहीं रखा है. पहले यह पौलिटिक्स टीवी सीरियलों तक सीमित थी लेकिन अब तो तकरीबन हर रसोई में पौलिटिक्स की घुसपैठ हो चुकी है. रसोई ऐसी जगह है जहां तूतू-मैंमैं होना स्वाभाविक है. सब अपने काम को रफैक्ट मानते हैं, जिस की वजह से गुपचुप बातें शेयर करने का यह अड्डा कभीकभी युद्ध का मैदान भी बन जाता है.

सास को लगता है कि वे वर्षों से रसोई संभाल रही हैं, इसलिए उन का काम करने का तरीका सही है. रसोई में सब उन के अनुसार काम करें. उधर आज के जमाने की बहू को लगता है कि रसोई ‘टू मिनट कौंसैप्ट’ पर आधारित होनी चाहिए ताकि काम फटाफट निबट जाए.  कुछ बहुएं रसोई में सास की दखलंदाजी पसंद नहीं करती हैं और अगर इन के बीच नौकरानी का भी पार्टिसिपेशन हो जाए तो इन तीनों के बीच शीतयुद्ध हो जाता है. इस बारे में दिल्ली की 52 वर्षीय मोहिनी कहती हैं, ‘‘मेरी बहू रसोई में मुझ से ज्यादा स्पेस नौकरानी को देती है, जिस की वजह से नौकरानी मेरी कोई बात नहीं सुनती. अगर मैं उस से कुछ करने के लिए कहती हूं तो उलटा मुझे कहती है कि मेमसाहब ने ऐसा करने से मना किया है इसीलिए मैं नहीं कर सकती. यह सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आता है और मैं अपनी बहू व कामवाली दोनों को भलाबुरा सुनाने लगती हूं.’’

खटपट की वजह

रसोई में खटपट होने की कई वजहें हो सकती हैं. कुछ खास संभावित वजहें ये हैं: 

स्वाद को ले कर :

सासबहू के बीच नोकझोंक इसलिए होती है क्योंकि सास को बहू का एक्सपैरिमैंट पसंद नहीं आता है. वह चाहती है कि बहू उन्हीं की तरह पारंपरिक खाना बनाए, मार्केट की रेडीमेड चीजों का कम प्रयोग करें.

पैक्डफूड को ले कर :

नए जमाने की बहू खाने के लिए पैक्डफूड का ज्यादा इस्तेमाल करती है. उसे लगता है कि पैक्डफूड से जब खाना मिनटों में तैयार हो जाता है तो कौन इतनी मेहनत करे. जबकि सास को लगता है कि खुद से बनाए खाने में जो स्वाद है वह पैक्डफूड में कहां. और इस बात को ले कर सासूमां अपनी बहू को ताने मारती हैं.

रसोई अव्यवस्थित होने पर :

रसोई जरा सी भी गंदी हो या जिस तरह से सजाई गई है, उस में थोड़ी सी भी छेड़छाड़ होने पर दोनों के बीच नोकझोंक हो ही जाती है.

समय का ध्यान नहीं रखने पर :

अगर किसी दिन बहू खाना बनाने में थोड़ा लेट हो जाती है तो सासूमां उसे ताना मारने में जरा भी देर नहीं करतीं.

मां के हाथ का खाना

स्त्रियों में यह वाक्य ‘मां के हाथों का खाना’ गर्व का कारण नहीं बनता. दरअसल, मां जितने प्यार व अपनत्व से बच्चों के लिए पोषण का ध्यान रख कर खाना बनाती हैं लोग पत्नी से भी वही भाव चाहते हैं. पत्नी उस भाव को लाने के बजाय मां यानी सास के हाथ के खाने की तारीफ से हटाने के लिए सास को ही रसोई से हटाने की भरसक चेष्टा करती है. उसे लगता है कि जब तक सास खाना बनाती रहेंगी, उस के खाने की कोई पूछ नहीं रहेगी. 

एक मनोविज्ञानी का कहना है कि मां व बहन का खाना दिलोदिमाग में बसा रहता है क्योंकि किसी के भी जीवन में पत्नी या भाभी आदि का प्रवेश देर से होता है. इसलिए स्त्रियों को घर की महिलाओं का अनुकरण कर के सीखने में रुचि रखनी चाहिए न कि घुटघुट कर जीने या दूसरों के बनाए खाने में नुक्ताचीनी करने में.

एक कहावत है कि जब चार बरतन होंगे तो टकराएंगे जरूर लेकिन थोड़ी सी समझदारी और आपसी सूझबूझ से रिश्तों को मधुर बनाए रखा जा सकता है.

प्यार से सुलझाएं रिश्तों को

पारिवारिक रिश्ते नाजुक डोर से बंधे होते हैं. इस में हर छोटी बात दिल पर लग जाती है. अगर कभी रसोई की किसी बात को ले कर आप दोनों के बीच मनमुटाव हो भी जाता है तो रसोई की खटपट का असर अपने रिश्ते पर न पड़ने दें. रसोई से बाहर निकलते ही उस बात को भूल जाएं.

तूतू-मैंमैं करने के बजाय रिश्तों को मजबूत बनाने की कोशिश करें. बहू को चाहिए कि वह सास के साथ मिल कर ही रसोई को मैनेज करे. वहीं, सास को चाहिए कि वे हमेशा बहू के कामों में नुक्स निकालने के बजाय उस की मदद करें और खुद नईनई, आधुनिक चीजों को सीखने की कोशिश करें ताकि आप आधुनिक सास के साथ परफैक्ट कुक भी बन जाएं.

– रेखा व्यास के साथ एनी और आभा

एंटी कैंसर थेरैपी में देरी ठीक नहीं

स्वास्थ्य एंटी कैंसर थेरैपी में देरी ठीक नहीं द्य डा. सुमन एस कारंथ कोविड-19 के चलते कैंसर के इलाज में देरी से कैंसर मरीजों पर होते दुष्प्रभाव और भविष्य में कैसे उन के हितों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए, आइए जानें. कोरोना महामारी के दौरान संक्रमण के डर से अस्पतालों में इलाज के लिए जाने वाले मरीजों की संख्या काफी गिर गई थी. मरीजों के सीधे संपर्क में आने के बजाय दुनियाभर में डाक्टरों ने टैलीफोन या वीडियो कंसल्टेशन को प्राथमिकता दी और खासतौर से फौलोअप के मामलों में तो इसी विकल्प को ज्यादा अपनाया गया.

बेशक, कुछ उपचारों के मामले में मामूली देरी चलती है लेकिन केवल कुछ समय के लिए ही ऐसा करना उचित है. कैंसर जैसे रोगों के मामलों में तत्काल उपचार की जरूरत होती है. लेकिन देखने में आया कि टैलीमैडिसिन की सुविधा के बावजूद आबादी के एक बड़े हिस्से ने इस विकल्प को ठीक से नहीं अपनाया. मरीजों ने अपनेआप ही डाक्टर से परामर्श लेना बंद कर दिया. यूरोपियन सोसाइटी औफ मैडिकल ओंकोलौजी की एक अग्रणी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि मरीजों को अपनी एंटी कैंसर थेरैपी में किसी प्रकार की देरी नहीं करनी चाहिए.

ये भी पढ़ें- इऩ चीजों को भिगोंकर खाएं बीमारी से हमेशा रहेंगे दूर

इस में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कैंसरग्रस्त रोगियों के कोविड-19 संक्रमण का शिकार होने की आशंका भी काफी अधिक रहती है. इस की वजह से मरीज के इलाज पर बुरा असर पड़ता है और वह अपने इलाज में देरी कर सकता है जोकि सही नहीं है. मरीजों के उपचार के मामले में कुछ उपायों का पालन किया जा सकता है ताकि संक्रमण के जोखिम और इलाज में देरी से बचा जा सके. ओंकोलौजिस्टों के लिए भी यह जरूरी है कि वे मरीजों को अधिक जोखिमग्रस्त, मध्यम दर्जे के जोखिम या कम प्राथमिकता जैसे समूहों में बांटें जिस से अधिक गंभीर रोगियों की एंटी कैंसर थेरैपी शुरू की जा सके. जब भी लोकल ट्रीटमैंट के तौर पर सर्जरी या रेडिएशन की आवश्यकता हो, उपचार स्थगित करने के बजाय जोखिम अनुपात पर विचार करना चाहिए ताकि मरीज के जीवन पर इस के प्रभाव का आकलन हो सके.

इसी तरह हाई रिस्क मरीजों के मामले में सहायक थेरैपी दी जा सकती है ताकि उन्हें अधिकतम लाभ मिल सके. यदि ओरल कीमोथेरैपी का विकल्प हो तो अस्थायी तौर पर ही सही इसे अपनाना चाहिए जोकि जोखिम के आकलन के बाद हो सकता है. पैलिएटिव कीमोथेरैपी प्राप्त करने वाले मरीजों को कीमोथेरैपी के बीच के अंतराल में अतिरिक्त ड्रग फौलीडे गैप्सन दिए जा सकते हैं. इसी तरह कम अवधि के कीमोथेरैपी या रेडिएशन शैड्यूल भी चुने जा सकते हैं जोकि इस पर निर्भर होगा कि मरीज की बीमारी किस चरण में है. मरीजों को भी संक्रमण का खतरा कम करने के लिए कुछ उपायों का पालन करना चाहिए. डाक्टरों से रूटीन कंसल्टेनशन और चैकअप के लिए जितना संभव हो, टैलीमैडिसिन सुविधा का लाभ उठाएं. अस्पताल उसी स्थिति में जाएं जबकि शारीरिक जांच आवश्यक हो.

ये भी पढ़ें- नींबू पानी पीने से होते हैं कई तरह के फायदें

यदि अस्पताल जाना जरूरी हो तो अपने डाक्टर से पहले ही अपौइंटमैंट लें ताकि ओपीडी में इंतजार से बचा जा सके. बुखार से पीडि़त मरीजों को मेन ओपीडी एरिया में आने से बचना चाहिए ताकि दूसरे लोगों को संक्रमण का खतरा न हो. अतिरिक्त लक्षणों, जैसे सांस फूलना, कमजोरी आदि की भी उन की जांच की जानी चाहिए ताकि कीमोथेरैपी की वजह से पैदा होने वाले फिब्रिल न्यू ट्रोपिनिया और कोविड संक्रमण के बीच फर्क किया जा सके. अब कोविड वैक्सीनेशन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद अमेरिका सरीखे कई देशों ने हैल्थकेयर प्रोफैशनल्सी के बाद कैंसर मरीजों को प्राथमिकता सूची में रखा है.

ये भी पढ़ें- क्या आप जानते हैं तांबे के बर्तन में पानी पीने के ये 4 फायदे?

वैक्सीनेशन की प्रक्रिया सुरक्षित है और यह मरीजों को कैंसर उपचार के क्रोनिक चरण में सुरक्षा प्रदान करती है. अलबत्ता, ऐक्टिव एंटी कैंसर थेरैपी ले रहे मरीजों पर वैक्सीनेशन के प्रभावों का आकलन अभी किया जाना बाकी है ताकि यह पता चल सके कि इस के विपरीत असर होते हैं या यह कम प्रभावी है. कुल मिला कर, यह स्पष्ट है कि कैंसर एक प्रकार का विषम रोग है और आप के ओंकोलौजिस्ट के साथ सलाहमशवरा के आधार पर ही कोई फैसला इलाज के बारे में लेना चाहिए ताकि कोविड महामारी के दौर में सुरक्षित और कारगर एंटी कैंसर उपचार सुनिश्चित किया जा सके.  (लेखक फोर्टिस मैमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुरुग्राम के डिपार्टमैंट औफ मैडिकल ओंकोलौजी एंड हिमेटोलौजी में कंसल्टैंट पद पर सेवारत हैं.)

परिवर्तन की आंधी

लेखक- डा. रमेश यादव

“मुन्ना के पापा सुनो तो, आज मुन्ना नया घर तलाशने की बात कर रहा था. वह काफी परेशान लग रहा था. मुझ से बोला कि मैं आप से बात कर लूं.”

“मगर, मुझ से तो वह कुछ नहीं बोला. बात क्या है मुन्ने की अम्मां? खुल कर बोलो. कई वर्षों से बिल्डिंग को ले कर समिति, किराएदार, मालिक और हाउसिंग बोर्ड के बीच लगातार मीटिंग चल रही है. ये तो मैं जानता हूं, पर आखिर में फैसला क्या हुआ?”

“वह कह रहा था कि हमारी बिल्डिंग अब बहुत पुरानी और जर्जर हो चुकी है, इसलिए बरसात के पहले सभी किराएदारों को घर खाली करने होंगे. सरकार की नई योजना के अनुसार इसे फिर से बनाया जाएगा. पर तब तक सब को अपनीअपनी छत का इंतजाम खुद करना होगा. वह कुछ रुपयों की बात कर रहा था. जल्दी में था, इसलिए आप से मिले बिना ही चला गया.”

गंगाप्रसाद तिवारी अब गहरी सोच में डूब गए. इतने बड़े शहर में बड़ी मुश्किल से घरपरिवार का किसी तरह से गुजारा हो रहा था. बुढ़ापे के कारण उन की अपनी नौकरी भी अब नहीं रही. ऐसे में नए सिर से फिर से नया मकान ढूंढ़ना, उस का किराया देना, नाको चने चबाने जैसा है. गैलरी में कुरसी पर बैठेबैठे तिवारीजी शून्य में खो गए थे. उन की आंखों के सामने तीस साल पहले का वह मंजर किसी चलचित्र की तरह चलने लगा.

‘दो छोटेछोटे बच्चे और मुन्ने की मां को ले कर जब वे पहली बार इस शहर में आए थे, तब यह शहर अजनबी सा लग रहा था. पर समय के साथ वे यहीं के हो कर रह गए.

ये भी पढ़ें- Social Story in Hindi : एक कागज मैला सा – क्या था उस मैले कागज का

‘सेठ किलाचंदजी एंड कंपनी में मुनीमजी की नौकरी, छोटा सा औफिस, एक टेबल और कुरसी. मगर व्यापार करोड़ों का था, जिस का मैं एकछत्र सेनापति था. सेठजी की ही मेहरबानी थी कि उस कठिन दौर में बड़ी मुश्किल से लाखों की पगड़ी का जुगाड़ कर पाया और अपने परिवार के लिए एक छोटा सा आशियाना बना पाया, जो ऊबदार घर कब बन गया, पता ही नहीं चला. दिनभर की थकान मिटाने के लिए अपने हक की छोटी सी जमीन, जहां सुकून से रात गुजर जाती थी और सुबह होते ही फिर वही रोज की आपाधापी भरी तेज रफ्तार वाली शहर की जिंदगी.

‘पहली बार मुन्ने की मां जब गांव से निकल कर ट्रेन में बैठी, तो उसे सबकुछ अविश्वसनीय सा लग रहा था. दो रात का सफर करते हुए उसे लगा, जैसे वह विदेश जा रही हो. धीरे से वह कान में फुसफुसाई, “अजी, इस से तो अच्छा अपना गांव था. सभी अपने थे वहां. यहां तो ऐसा लगता है जैसे हम किसी पराए देश में आ गए हों? कैसे गुजारा होगा यहां?”

“चिंता मत करो मुन्ने की अम्मां, सब ठीक हो जाएगा. जब तक मन करेगा यहां रहेंगे और जब घुटन होने लगेगी तो गांव लौट जाएंगे. गांव का घर, खेत, खलिहान इत्यादि सब है. अपने बड़े भाई के जिम्मे सौंप कर आया हूं. बड़ा भाई पिता समान होता है.”

इन तीस सालों में इस अजनबी शहर में हम ऐसे रचबस गए, मानो यही अपनी तपस्वी कर्मभूमि है. आज मुन्ने की मां भी गांव में जा कर बसने का नाम नहीं लेती. उसे इस शहर से प्यार हो गया है. उसे ही क्यों, खुद मेरे और दोनों बच्चों के रोमरोम में यह शहर बस गया है. माना कि अब मैं थक चुका हूं, मगर अब बच्चों की पढ़ाई पूरी हो गई है. उन्हें ढंग की नौकरी मिल जाएगी तो उन के हाथ पीले कर दूंगा और जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर अपनी रफ्तार से दौड़ने लगेगी. अचानक किसी की आवाज ने तिवारीजी की तंद्रा भंग की. देखा तो सामने मुन्ने की मां थी.

“अजी किस सोच में डूबे हो? सुबह से दोपहर हो गई. चलो, अब भोजन कर लो. मुन्ना भी आ गया है. उस से पूरी बात कर लो और सब लोग मिल कर सोचो कि आगे क्या करना है ? आखिर कोई समाधान तो निकालना ही पड़ेगा.”

भोजन के बाद तिवारीजी का पूरा परिवार एकसाथ बैठ कर विमर्श करने लगा. मुन्ने ने बताया, “पापा, हमारी बिल्डिंग का हाउसिंग बोर्ड द्वारा रिडेवलपमेंट किया जा रहा है. सबकुछ अब फाइनल हो गया है. एग्रीमेंट के मुताबिक हमें मालिकाना अधिकार का 250 स्क्वेयर फीट का फ्लैट मुफ्त में मिलेगा. मगर वह काफी छोटा पड़ेगा. इसलिए यदि कोई अलग से या मौजूदा कमरे से जोड़ कर एक और कमरा लेना चाहता हो, तो उसे एक्स्ट्रा कमरा मिलेगा, पर उस के लिए बाजार भाव से दाम देना होगा.”

”ठीक कहते हो मुन्ना, मुझे तो लगता है कि यदि हम गांव की कुछ जमीन बेच दें तो हमारा मसला हल हो जाएगा और एक कमरा अलग से मिल जाएगा. अधिक रुपयों का इंतजाम हो जाए तो यह बिलकुल संभव है कि हम अपना एक और फ्लैट खरीद लेंगे.” तिवारीजी बोले.

बरसात से पहले तिवारीजी ने सरकारी डेवलपमेंट बोर्ड को अपना रूम सौंप दिया और पूरे परिवार के साथ अपने गांव आ गए.

गांव में प्रारंभ के दिनों में बड़े भाई और भाभी ने उन की काफी आवभगत की, पर जब उन्हें पूरी योजना के बारे में पता चला तो वे लोग पल्ला झाड़ने लगे. यह बात गंगाप्रसाद तिवारी की समझ में नहीं आ रही थी. उन्हें कुछ शक हुआ. धीरेधीरे उन्होंने अपनी जगह जमीन की खोजबीन शुरू की. हकीकत का पता चलते ही उन के पैरों तले की जमीन ही सरक गई, मानो उन पर आसमान टूट पड़ा हो.

ये भी पढ़ें- Family Story in Hindi : घर का भूला – आखिर क्या चाहता था महेंद्र – भाग 1

 

“अजी क्या बात हैं? खुल कर बताते क्यों नहीं, दिनभर घुटते रहते हो? यदि जेठजी को हमारा यहां रहना भारी लग रहा है, तो वे हमारे हिस्से का घर, खेत और खलिहान हमें सौंप दें, हम खुद अपना बनाखा लेंगे.”

“धीरे बोलो भाग्यवान, अब यहां हमारा गुजारा नहीं हो पाएगा. हमारे साथ धोखा हुआ है. हमारे हिस्से की सारी जमीनजायदाद उस कमीने भाई ने जालसाजी से अपने नाम कर ली है. झूठे कागजात बना कर उस ने दिखाया है कि मैं ने अपने हिस्से की सारी जमीनजायदाद उसे बेच दी है. हम बरबाद हो गए मुन्ने की अम्मां… अब तो एक पल के लिए भी यहां कोई ठौरठिकाना नहीं है. हम से सब से बड़ी भूल यह हुई कि साल दो साल में एकाध बार यहां आ कर अपनी जमीनजायदाद की कोई खोजखबर नहीं ली.”

“अरे दैय्या, ये तो घात हो गया. अब हम कहां रहेंगे? कौन देगा हमें सहारा? कहां जाएंगे हम अपने इन दोनों बच्चों को ले कर? बच्चों को इस बात की भनक लग जाएगी तो बड़ा अनर्थ हो जाएगा,” विलाप कर के मुन्ने की मां रोने लगी. पूरा परिवार शोक में डूब गया. न चाहते हुए भी तिवारीजी के मन में घुमड़ती पीड़ा की गठरी आखिर खुल ही गई थी.

इस के बाद तिवारी परिवार में कई दिनों तक वादविवाद, विमर्श होता रहा. सुकून की रोटी जैसे उन के नसीब की परीक्षा ले रही थी.

अपने ही गांवघर में अब गंगाप्रसादजी का परिवार बेगाना हो चुका था. उन्हें कोई सहारा नहीं दे रहा था. वे लोग जान चुके थे कि उन्हें लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी होगी. पर इस समय गुजरबसर के लिए छोटी सी झुग्गी भी उन के पास नहीं थी. गांव की जमीन के हिस्से की पावर औफ एटोर्नी बड़े भाई को दे कर उन्होंने बहुत बड़ी भूल की थी. उसी के चलते आज वे दरदर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर थे.

उसी गांव में मधुकर चौहान नामक संपन्न दलित परिवार था. गांव में उन की अपनी बड़ी सी किराने की दुकान थी. बड़ा बेटा रामकुमार पढ़ालिखा और आधुनिक खयालात का था. जब उसे छोटे तिवारीजी के परिवार पर हो रहे अन्याय के बारे में पता चला तो उस का खून खौल उठा, पर वह मजबूर था. गांव में जातिबिरादरी की राजनीति से वह पूरी तरह परिचित था. एक ब्राह्मण परिवार को मदद करने का मतलब, अपनी बिरादरी से रोष लेना था. पर दूसरी तरफ उसे शहर से आए उस परिवार के प्रति लगाव भी था.

उस दिन घर में उस के पिताजी ने तिवारीजी को ले कर बात छेड़ी, “जानते हो तुम लोग, हम वही दलित परिवार हैं, जिस के पुरखे किसी जमाने में उसी तिवारीजी के यहां पुश्तों से हरवाही किया करते थे. तिवारीजी के दादाजी बड़े भले इनसान थे. जब हमारा परिवार रोटी के लिए मुहताज था, तब इस तिवारीजी के दादाजी ने आगे बढ़ कर हमें गुलामी की दास्तां से मुक्ति दे कर अपने पैरों पर खड़े होने का हौसला दिया था. उस अन्नदाता परिवार के एक सदस्य पर आज विपदा की घड़ी आई है. ऐसे में मुझे लगता है कि हमें उन के लिए कुछ करना चाहिए. आज उसी परिवार की बदौलत गांव में हमारी दुकान है और हम सुखी हैं.”

”हां बाबूजी, हमें सच का साथ देना चाहिए. मैं ने सुना है कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद जब बैंक के दरवाजे सामान्य लोगों के लिए खुले, तब बड़े तिवारीजी ने हमें राह दिखाई थी. यह उसी परिवर्तन के दौर का नतीजा है कि कभी दूसरों के टुकड़ों पर पलने वाला गांव का यह दलित परिवार आज संपन्न परिवार में गिना जाता है और शान से रहता है,” रामकुमार ने अपनी जोरदार हुंकारी भरी.

रामकुमार ताल ठोंक कर अब छोटे तिवारीजी के साथ खड़ा हो गया था. काफी सोचसमझ कर चौहान परिवार ने छोटे तिवारीजी से गहन विचारविमर्श किया.

ये भी पढ़ें- Romantic Story in Hindi : एक सवाल

“हम आप को दुकान खुलवाने और सिर पर छत के लिए जगह, जमीन, पैसा इत्यादि की हर संभव मदद करने को तैयार हैं. आप अपने पैरों पर खड़े हो जाएंगे, तो यह लड़ाई आसान हो जाएगी. एक दिन आप को आप का हक जरूर मिलेगा.”

चौहान परिवार का भरोसा और साथ मिल जाने से तिवारी परिवार का हौसला बढ़ गया था. रामकुमार के सहारे अंकिता अपनी दुकानदारी को बखूबी संभालने लगी थी. इस से घर में पैसे आने लगे थे. धीरेधीरे उन के पंखों में बल आने लगा और वे अपने पैरों पर खड़े हो गए.

तिवारीजी की दुकानदारी का भार उन की बिटिया अंकिता के जिम्मे था, क्योंकि तिवारीजी और उन का बड़ा बेटा अकसर कोर्टकचहरी और शहर के फ्लैट के काम में व्यस्त रहते थे.

इस घटना से गांव के ब्राह्मण घरों में जातिबिरादरी की राजनीति जन्म लेने लगी. कुंठित दलित बिरादरी के लोग भी रामकुमार और अंकिता को ले कर साजिश रचने लगे. चारों ओर तरहतरह की अफवाहें रंग लेने लगीं, पर बापबेटे ने पूरे गांव को खरीखोटी सुनाते हुए अपने हक की लड़ाई जारी रखी. इस काम में रामकुमार तन, मन और धन से उन के साथ था. उस ने जिले के नामचीन वकील से तिवारीजी की मुलाकात कराई और उस की सलाह पर ही पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई.

छोटीमोटी इस उड़ान को भरतेभरते अंकिता और रामकुमार कब एकदूसरे को दिल दे बैठे, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. इस बात की भनक पूरे गांव को लग जाती है. लोग इस बेमेल प्यार को जाति का रंग दे कर तिवारी और चौहान परिवार को बदनाम करने की कोशिश करते हैं. इस काम में अंकिता के ताऊजी अग्रणी भर थे.

गंगाप्रसादजी के परिवार को जब इस बात की जानकारी होती है, तो वे राजीखुशी इस रिश्ते को स्वीकार कर लेते हैं. इतने वर्षों तक बड़े शहर में रहते हुए उन की सोच भी बड़ी हो चुकी होती है. जातिबिरादरी के बजाय सम्मान, इज्जत और इनसानियत को वे तवज्जुह देना जानते थे. जमाने के बदलते दस्तूर के साथ परिवर्तन की आंधी अब अपना रंग जमा चुकी थी.

अंकिता ने अपना निर्णय सुनाया, “बाबूजी, मैं रामकुमार से प्यार करती हूं और हम शादी के पवित्र बंधन में बंध कर अपनी नई राह बनाना चाहते हैं.”

“बेटी, हम तुम्हारे निर्णय का स्वागत करते हैं. हमें तुम पर पूरा भरोसा है. अपना भलाबुरा तुम अच्छी तरह जानती हो. चौहान परिवार के हम पर बड़े उपकार हैं.”

आखिर में चौहान और तिवारी परिवार आपसी रजामंदी से उसी गांव में विरोधियों की छाती पर मूंग दलते हुए अंकिता और रामकुमार की शादी बड़े धूमधाम से संपन्न करा दी.

एक दिन वह भी आया, जब गंगाप्रसादजी अपनी जमीनजायदाद की लड़ाई जीत गए और उन की खोई हुई संपत्ति उन्हें वापस मिल गई. जालसाजी के केस में उन के बड़े भाई को जेल जाने की नौबत आ गई.

नो प्रौब्लम – भाग 3 : क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

‘‘वह तो अभी सिर्फ 7 साल की ही है, रोहित,’’ नीरजा चौंक पड़ी.

‘‘तो क्या हुआ? उस से छोटे बच्चे भी होस्टल में जा कर रहते हैं, नीरजा. वहां उस

के व्यक्तित्व का संतुलित विकास होगा और इधर तुम और मैं भी फ्री हो कर हमारी शादी के साथ होने वाली जिंदगी की नई शुरुआत का भरपूर आनंद ले सकेंगे, आपसी संबंधों को मधुर और मजबूत बना सकेंगे,’’ रोहित ने कोमल लहजे में उसे समझाया.

काफी लंबी खामोशी के बाद नीरजा ने धीमे स्वर में उसे अपने मन की चिंता बताई, ‘‘बात तो तुम्हारी ठीक है पर मेरा दिल बहुत दुखेगा उसे होस्टल भेज कर.’’

‘‘मैं तुम्हें उस से मिलाने के लिए जल्दीजल्दी ले जाया करूंगा.’’

‘‘पक्का वादा करते हो?’’

‘‘बिलकुल पक्का.’’

कुछ लमहों की खामोशी के बाद नीरजा ने कहा, ‘‘मम्मी की तबीयत ठीक नहीं रहती, नहीं तो एक रास्ता यह भी था कि हमारी शादी होने के बाद कुछ दिनों के लिए महक को उन के पास छोड़ देते. तब उसे होस्टल भेजने की जरूरत भी नहीं रहती.’’

‘‘नहीं, ऐसा करने से यह समस्या हल नहीं होगी, नीरजा. वह आसपास होगी तो उस का रोनाचिल्लाना तुम से सहन नहीं होगा.

शादी के बाद जो एकांत हमें चाहिए, वह नहीं मिल पाएगा, क्योंकि तुम महक को अपने पास बुला लोगी,’’ रोहित को उस का प्रस्ताव जंचा नहीं.

‘‘मुझे लगता है कि मम्मीपापा भी महक को होस्टल भेजने को राजी नहीं होंगे, रोहित,’’ नीरजा और ज्यादा सुस्त हो गई.

‘‘तुम यह क्या कह रही हो,’’ रोहित कुछ नाराज हो उठा, ‘‘उन्हें तुम्हारी बात माननी पड़ेगी. जब मैं भी उन्हें ऐसा करने के फायदे समझाऊंगा तो वे जरूर राजी हो जाएंगे.’’

‘‘अगर वे फिर भी नहीं माने तो?’’

‘‘बेकार की बात मत करो, नीरजा. अरे, उन्हें तुम्हारी बात माननी ही पड़ेगी. वे तुम्हें नाराज नहीं कर सकते, क्योंकि अपनी देखभाल के लिए वे तुम पर निर्भर करते हैं न कि तुम उन के ऊपर.’’

‘‘उन की देखभाल से याद आया कि हमारी शादी हो जाने के बाद उन की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहेगा. उन्हें डाक्टर के पास दिखा लाने का काम मैं ही करती हूं. घर का सामान और दवाएं वगैरह मैं ही खरीदती हूं. इस समस्या का भी कोई हल ढूंढ़ना पड़ेगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम, माई डियर. उन दोनों की देखभाल करने वाली सिर्फ एक काबिल मेड हमें ढूंढ़नी पड़ेगी. उस मेड की पगार हम दिया करेंगे तो तुम्हारे पापा की पैंशन भी उन्हें पूरी मिलती रहेगी. कहो, कैसा लगा मेरा सुझाव?’’

‘‘हम दोनों के हिसाब से तो अच्छा है, पर…’’

‘‘परवर के चक्कर में ज्यादा मत घुसो. सिर्फ औरों की ही नहीं, तुम्हें अपनी खुशियों के बारे में भी सोचना चाहिए, नीरजा,’’ उसे टोकते हुए रोहित ने सलाह दी.

‘‘क्या अपनी खुशियों के बारे में सोचना स्वार्थीपन नहीं कहलाएगा?’’

‘‘बिलकुल भी नहीं, अरे, जब मैं खुश नहीं हूं तो किसी अपने की जिंदगी में मैं क्या खाक खुशियां भर सकूंगा?’’ रोहित ने तैश में आ कर यह सवाल पूछा.

‘‘खुशियों के मामले में क्या इतना ज्यादा कुशल हिसाबीकिताबी बनना ठीक रहता है, रोहित?’’

‘‘यार, तुम तो बेकार में बहस किए जा रही हो,’’ रोहित अचानक चिढ़ उठा.

‘‘लो, मैं चुप हो गई,’’ नीरजा ने अपने होंठों पर उंगली रखी और एकाएक ही तनावमुक्त हो कर मुसकराने लगी.

‘‘मेरी बात सुनोगी और मेरे सुझावों पर चलोगी तो हमेशा खुश ही रहोगी.’’

‘‘अब विदा लें?’’

‘‘मैं सब से मिल तो लूं.’’

‘‘आज रहने दो.’’

‘‘ओ.के. गुडनाइट, डियर.’’

‘‘गुडनाइट.’’

नीरजा से हाथ मिलाने के बाद रोहित अपनी कार की तरफ बढ़ गया.

वह उसे विदा कर घर के अंदर आई तो महक उस की छाती से लिपट कर जोरजोर से रो पड़ी. नीरजा को उसे चुप कराने में काफी देर लगी.

महक के सो जाने के बाद उस ने अपने मम्मीपापा को अपना निर्णय गंभीर स्वर में बता दिया, ‘‘मैं ने रोहित से शादी न करने का फैसला किया है.’’

‘‘क्यों?’’ उस के मम्मी व पापा दोनों ने एकसाथ पूछा.

‘‘क्योंकि पिछले दिनों जैसे उस ने अपने अच्छे व्यवहार से हम सब का मन जीता था, वह मुझे पाने के लिए किया गया अभिनय भर था. वह अपनी भावनाओं के स्विच को अपने फायदेनुकसान को ध्यान में रख कर खोलने व बंद करने में माहिर है.

‘‘मुझ से शादी हो जाने के बाद वह निश्चित रूप से बदल जाता. तब उसे महक व आप दोनों बोझ लगने लगते. मैं ने परख लिया है कि हर समस्या को ‘नो प्रौब्लम’

बनाने की कुशलता रोहित के दिमाग को हासिल है. जिस इनसान का दिल उस के दिमाग का पूरी तरह गुलाम हो, मुझे वैसा जीवनसाथी कभी नहीं चाहिए. अब आप दोनों भी उस के साथ मेरी शादी होने के सपने देखना बंद कर देना, प्लीज,’’ अपना यह फैसला सुनाते हुए नीरजा पूरी तरह से तनावमुक्त और शांत नजर आई.

उस ने अपने मम्मीपापा के गले से लग कर प्यार किया. फिर सोफे पर सो रही महक  का माथा कई बार प्यार से चूमने के बाद उस ने उसे गोद में उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ी.

 

नो प्रौब्लम – भाग 2 : क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

लेखिका- Manisha Sharma

‘‘20 नंबर,’’ नीरजा ने हंस कर सवाल का सीधा जवाब देना टाल दिया.

‘‘मुझे तुम्हारे मम्मीपापा के साथ निभाने में कभी कोई प्रौब्लम नहीं आएगी. वे दोनों बहुत सीधेसच्चे इनसान हैं, नीरजा.’’

‘‘मुझे यह बात सुन कर खुशी हुई, रोहित.’’

‘‘और मैं दावे के साथ कह रहा हूं कि महक के साथ मैं अपने संबंध कुछ ही दिनों में इतने अच्छे कर लूंगा कि वह मुझे तुम से ज्यादा पसंद करने लगेगी.’’

‘‘तुम्हारे इस दावे ने मेरी खुशियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है.’’

‘‘तो फिर मुहूर्त निकलवाने के लिए पंडित से मिल लूं?’’

‘‘जल्दी का काम शैतान का,’’ नीरजा के इस जवाब पर रोहित जोर से हंसा, लेकिन उस की आंखों में उभरे हलकी मायूसी के भाव नीरजा की नजरों से छिपे नहीं रहे.

सावित्री ने खाने में कई चीजें बड़ी मेहनत से बनाई थीं. रोहित ने भरपेट खाना खाया और दिल खोल कर भोजन की तारीफ भी की.

शाम को वह सब को अपनी कार में बाजार घुमाने ले गया. वहां महक की फरमाइश पूरी करते हुए उस ने सब को आइसक्रीम खिलाई. वहां एक शो केस में लगी सुंदर सी फ्राक खरीद कर वह महक को गिफ्ट करना चाहता था, पर नीरजा ने उसे ऐसा नहीं करने दिया.

‘‘किसी दिन तुम्हारी मम्मी को छोड़ कर यहां आएंगे और खूब सारी चीजें खरीदेंगे,’’ रोहित के इस प्रस्ताव का महक ने तालियां बजा कर स्वागत किया था.

शाम को विदा होने के समय सावित्री और उमाकांत ने रोहित को ढेर सारा प्यार और आशीर्वाद दिए.

‘‘रोहित अंकल, आप बहुत अच्छे हो. मेरे साथ खेलने के लिए आप जल्दी से फिर आना,’’ महक से ऐसा निमंत्रण पाने के बाद रोहित ने जब विजयी भाव से नीरजा

की तरफ देखा तो वह प्रसन्न अंदाज में मुसकरा उठी.

आगामी 3 रविवारों को लगातार रोहित इन सब से मिलने आया. उस ने बहुत कम समय में सभी के साथ मधुर संबंध बनाने में अच्छी सफलता प्राप्त की.

‘‘महक बेटे, अगर हम सब साथ रहने लगें तो कैसा रहेगा?’’ रोहित ने खेलखेल में महक से यह सवाल सब के सामने पूछा.

‘‘बहुत मजा आएगा, अंकल,’’ महक की आंखों की खुशी देख कर कोई भी यह कह सकता था कि उसे रोहित अंकल का साथ बहुत अच्छा लगने लगा है. उस दिन जब रोहित अपने घर जाने लगा तो नीरजा ने उस की तारीफ की,

‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम इतनी अच्छी तरह से इन तीनों के साथ घुलमिल जाओगे. महक तो तुम्हारी बहुत बड़ी प्रशंसक बन गई है.’’

‘‘अब तुम्हारे मन की सारी चिंताएं खत्म हो गईं न?’’ रोहित ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर पूछा.

‘‘काफी हद तक.’’

‘‘रहीसही कसर भी मैं जल्दी पूरी कर दूंगा, माई डियर. आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारे साथ ढेर सारी बातें करने का मन कर रहा है. चलो, कहीं घूमने चलें.’’

‘‘कहां?’’

‘‘महत्त्व तुम्हारे साथ का है, जगह का नहीं. जहां तुम कहोगी, वहीं चलेंगे.’’

‘‘मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ बड़े अपनेपन से रोहित का हाथ दबाने के बाद नीरजा अपने कमरे की तरफ चली गई.

अपनी मां को बाहर जाने के लिए तैयार होते देख महक साथ चलने के लिए मचल उठी. इस मामले में उस ने न अपने नानानानी की सुनी, न अपनी मां की.

‘‘महक, चलो मैं तुम्हें पहले बाहर घुमा लाता हूं. फिर तो मम्मी को मेरे साथ जाने

दोगी न?’’ रोहित ने उसे लालच दिया पर वह नहीं मानी और साथ चलने की अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘अच्छा, चल. तेरे अंकल ने तुझे जो इतना ज्यादा सिर चढ़ाया हुआ है, तेरा यह जिद्दीपन उसी का नतीजा है,’’ साथ चलने के लिए नीरजा की इजाजत पा कर महक तो खुश हुई पर रोहित का चेहरा यह कह रहा था कि उस का मूड खराब हो गया.

‘‘आई एम सौरी, रोहित. अगली बार मैं पक्का तुम्हारे साथ अकेली घूमने चलूंगी,’’ ऐसा वादा कर नीरजा ने उस का मूड ठीक करने की कोशिश की.

‘‘अगली बार भी महक ऐसे ही झंझट खड़ा करेगी, नीरजा. तुम्हें आज ही उस के साथ सख्ती दिखानी थी,’’ रोहित अभी तक नाखुश नजर आ रहा था.

‘‘सख्ती तो मैं अभी भी दिखा सकती हूं, पर वह रोरो कर सारा घर सिर पर उठा लेगी.’’

‘‘तो क्या हुआ? बच्चे के रोने के डर से उसे अनुशासनहीन नहीं बनने दिया जा सकता है.’’

‘‘ओ.के. मैं ऐसा ही करती हूं,’’  नीरजा का स्वर सख्त हो गया और उस ने महक को पास बुला कर घर बैठने का हुक्म सुना दिया.

नीरजा का अंदाजा ठीक ही निकला. महक ने खूब जोरजोर से रोना शुरू कर दिया.

‘‘तुम मन कड़ा कर के निकल चलो. हम जल्द ही लौट आएंगे, पर एक बार बाहर जाना महक की सही टे्रनिंग के लिए जरूरी है,’’ रोहित की इस सलाह पर चलते हुए नीरजा अपनी बेटी को रोता छोड़ कर घर से बाहर निकल आई.

इस वक्त शाम के 5 बज रहे थे. रोहित ने किसी रेस्तरां में चल कर कौफी पीने का प्रस्ताव रखा पर बुझीबुझी सी नजर आ रही नीरजा ने इनकार कर दिया.

‘‘अभी कुछ खानेपीने का दिल नहीं कर रहा है. चलो, किसी पार्क में कुछ देर बैठते हैं,’’ नीरजा की इच्छा का आदर करते हुए रोहित ने कार एक सुंदर से पार्क के सामने रोक दी.

कुछ देर बाद खामोश और सुस्त नजर आ रही नीरजा ने परेशान लहजे में महक का जिक्र छेड़ा, ‘‘महक मुझ से बहुत ज्यादा अटैच है, रोहित. देखा, आज कितना ज्यादा रोई है वह साथ आने के लिए. समझ में नहीं आता कि आने वाले समय में यह समस्या कैसे हल होगी?’’

‘‘माई डियर, हर समस्या का समाधान मौजूद है पर इस वक्त तुम महक के बारे में सोचना बंद करो और मुझ से गप्पें मारो,’’

रोहित ने मुसकरा कर अपनी इच्छा बताई तो नीरजा के होंठों पर भी छोटी सी मुसकान उभर आई.

कुछ ही देर में रोहित नीरजा का मूड ठीक करने में सफल हो गया. पार्क में कुछ देर घूमने के बाद वे बाजार आ गए. वहां रोहित ने उसे पसंदीदा सैंट का उपहार दिया. बाद में उन्होंने एक रेस्तरां में कौफी पी. फिर घूमतेटहलते वे बातें करते रहे. उस के साथ बातें करते हुए रोहित का दिल भर ही नहीं रहा था.

तब देर होने लगी तो वे वापस चल पड़े और 9 बजे के बाद घर पहुंचे.

‘‘अब देखना, महक तुम से कितना लड़ेगी,’’ घर में घुसने से पहले तनावग्रस्त नजर आ रही नीरजा ने रोहित को आगाह किया तो वह एकदम से गंभीर हो गया.

‘‘तुम ने शाम को मुझ से जो महक वाली समस्या का हल पूछा था, उस के बारे में मेरे पास एक सुझाव है,’’ रोहित ने गेट के पास नीरजा को रोक कर यह बात कही.

‘‘किस समस्या की बात कर रहे हो?’’ नीरजा ने अपना पूरा ध्यान उसी की तरफ लगा दिया.

‘‘महक जो तुम से बहुत ज्यादा अटैच है, मैं उसी के बारे में बात कर रहा हूं.’’

‘‘हां, हां, प्लीज बताओ न कि यह समस्या कैसे हल हो सकती है. आज उसे बुरी तरह रोता देख मैं तो बहुत दुखी हो गई थी.’’

‘‘समस्या का हल तो सीधासादा है पर वह शायद तुम्हें पसंद नहीं आएगा,’’ रोहित ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘अगर तुम महक को सचमुच स्वावलंबी बनाना चाहती हो तो उसे होस्टल भेज दो.’’

नो प्रौब्लम – भाग 1 : क्या बेटी के लिए विधवा नीरजा ने ठुकरा दिया रोहित का प्यार?

लेखिका- Manisha Sharma

लंच टाइम होते ही रोहित नीरजा के कक्ष में उस से मिलने आ पहुंचा. सामने पड़ी कुरसी पर बैठते ही उस ने अपना फैसला नीरजा को सुना दिया, ‘‘शादी की बात करने मैं कल इतवार की सुबह तुम्हारे मम्मीपापा से मिलने आ रहा हूं.’’

‘‘लेकिन…’’

‘‘कोशिश मत करो मेरा मन बदलने की, नीरजा. अगर मैं तुम्हारे भरोसे रहा तो दूल्हा बनने का इंतजार करतेकरते बूढ़ा हो जाऊंगा,’’ रोहित ने उसे अपने फैसले के विरोध में कुछ कहने नहीं दिया.

‘‘रोहित, जरा शांत हो कर मेरी बात सुनो. तुम से शादी करने का फैसला अभी मैं ने ही नहीं किया है. मेरे मम्मीपापा इस मामले में जब किसी तरह की रुकावट नहीं डाल रहे हैं तो फिर तुम उन दोनों से मिल कर क्या करोगे?’’

‘‘हम सब मिल कर तुम्हें समझाएंगे कि अकेले जिंदगी काटना न तुम्हारी बेटी महक के लिए अच्छा है, न तुम्हारे लिए. देखो, तुम मुझे एक बात साफसाफ बताओ, मैं जीवनसाथी के रूप में तुम्हें पसंद हूं या नहीं?’’

‘‘मैं तुम्हें पसंद करती हूं पर मेरे लिए दूसरी शादी करने का फैसला करना इतना आसान और सीधा मामला नहीं है.’’

‘‘तुम्हें ‘हां’ कहने में प्रौब्लम क्या है?’’

‘‘मैं कई बार तो तुम्हें समझा चुकी हूं. मेरे ऊपर एक तो अपने मम्मीपापा की देखभाल करने की जिम्मेदारी है, क्योंकि मैं उन की इकलौती संतान हूं. दूसरी बात यह कि महक की खुशियों के ऊपर… उस के समुचित मानसिक व भावनात्मक विकास पर मेरी शादी से कोई विपरीत प्रभाव पड़े, यह मुझे कभी स्वीकार नहीं होगा.’’

‘‘ये दोनों बातें तो कोई प्रौब्लम हैं ही नहीं, नीरजा. देखो, मैं तुम्हें दिल से चाहता हूं तो जो भी मेरे दिल के करीब है, उस को मैं कैसे कोई दुखतकलीफ उठाते देख सकता हूं. तीनों का दिल जीत लेना मेरे लिए आसान काम है, मैडम.’’

‘‘रियली?’’

‘‘यस,’’ रोहित ने आत्मविश्वास भरे लहजे में जवाब दिया.

‘‘मेरे मन की इन 2 चिंताओं को अगर तुम दूर कर दो तो…’’ नीरजा ने जानबूझ कर अपनी बात अधूरी छोड़ी और उस का हौसला बढ़ाने वाले अंदाज में मुसकराई.

‘‘नो प्रौब्लम, लेकिन जब ये तीनों मुझे तुम्हारे जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने को खुशी से तैयार हो जाएंगे, तब तो ‘हां’ कह दोगी न?’’

‘‘श्योर,’’ नीरजा का जवाब सुन कर रोहित खुश हो गया.

शाम को घर लौट कर नीरजा ने अपने मम्मीपापा को अगले दिन सुबह रोहित के घर आने की खबर दी तो उन दोनों की आंखों में आशा भरी चमक उभर आई.

‘‘यह लड़का सचमुच अच्छा है, नीरजा. उस के हावभाव से साफ जाहिर होता है कि वह तुम्हें और महक को खुश और सुखी रखेगा. अब की बार ‘हां’ कह कर हमारे मन की चिंता दूर कर दे, बेटी,’’ अपनी इच्छा जाहिर करते हुए उस की मां सावित्री की आंखें भर आईं.

‘‘मां, मुझे दोबारा शादी करने से कोई ऐतराज नहीं है, पर सिर्फ शादीशुदा कहलाने भर के लिए मैं किसी के साथ सात फेरे नहीं लूंगी. मैं अपने पैरों पर अच्छी तरह से खड़ी हूं और तुम दोनों व महक की बढि़या देखभाल करने में पूरी तरह से सक्षम हूं. अगर मेरा दिल ‘हां’ बोलेगा तो ही मेरी शादी होगी. किसी तरह के दबाव में आ कर मैं दुलहन नहीं बनूंगी,’’ नीरजा का यह जवाब सुन कर सावित्री आगे कोई दलील नहीं दे पाई थीं.

‘‘बेटी, तुम्हारे दिल में महक के दिवंगत पापा की जगह कोई नहीं ले सकता है, यह मैं समझता हूं. लेकिन यह भी ठीक नहीं है कि तुम बिना जीवनसाथी के बाकी की जिंदगी काटो. विवेक जैसे सीधेसच्चे इनसान बारबार नहीं मिलते. अगर तुम रोहित की तुलना विवेक से नहीं करोगी, तो अच्छा रहेगा. बाकी तुम खुद बहुत समझदार हो,’’ नीरजा के पापा उमाकांतजी गला भर आने के कारण आगे नहीं बोल सके थे.

‘‘पापा, आप टैंशन न लो. रोहित ने अगर यह साबित कर दिया कि वह हम सब की देखभाल की जिम्मेदारियां अच्छी तरह से उठा सकता है तो मैं इस शादी के लिए खुशी से ‘हां’ कह दूंगी,’’ नीरजा के इस जवाब से उस के मातापिता काफी हद तक संतुष्ट नजर आए.

अगले दिन रविवार को रोहित सुबह 10 बजे के करीब उन के यहां आ गया. सावित्री, उमाकांत और महक के ऊपर अच्छा प्रभाव जमाने के लिए वह काफी तैयारी के साथ आया था.

वह फल और मिठाई के अलावा महक के लिए उस की मनपसंद ढेर सारी चौकलेट भी ले कर आया था. नीरजा को उस ने फूलों का सुंदर गुलदस्ता भेंट किया. इस में कोई शक नहीं कि उस के आने से घर का माहौल खुशगवार हो उठा था.

‘‘इस प्यारी सी गुडि़या के लिए मैं एक प्यारी सी गुडि़या भी लाया हूं,’’ ऐसा कहते हुए रोहित ने जब महक को जापानी गुडि़या पकड़ाई तो वह खुशी के मारे उछलने लगी.

‘‘नीरजा को आप दोनों की व महक की बहुत फिक्र रहती है. इस मामले में मैं आप दोनों को विश्वास दिलाता हूं कि नीरजा की हर जिम्मेदारी को पूरा करने में मैं उस का पूरा साथ निभाऊंगा,’’ रोहित की ऐसी बातों को सुन कर सावित्री और उमाकांत के दिल खुशी व राहत से भर उठे.

महक के साथ रोहित ने काफी देर तक कैरमबोर्ड खेला. दोनों खेलते हुए बहुत शोर मचा रहे थे. रोहित ने महक के साथ अच्छी दोस्ती करने में ज्यादा वक्त बिलकुल नहीं लिया.

‘‘मेरे आज के प्रदर्शन के लिए मुझे 10 में से कितने नंबर दोगी?’’ बहुत खुश व संतुष्ट नजर आ रहे रोहित ने अकेले में नीरजा से यह सवाल पूछा था.

जी हां…बच्चे भी करते हैं मां-बाप पर अत्याचार

आपने मर्द को औरत पर अत्याचार करते सुना होगा और औरत को भी मर्द पर अत्याचार करते सुना होगा. आप ने मां-बाप को बच्चों पर अत्याचार करते सुना होगा. पर क्या आप ने कभी यह सुना है कि छोटे-छोटे बच्चे भी मां-बाप पर अत्याचार करते हैं. जिस प्रकार से उपरोक्त सारी बातें सच हैं, उसी तरह यह भी सच है कि छोटे-छोटे बच्चे भी मां-बाप पर अत्याचार करते हैं. बहुत छोटे बच्चों का छोटी-छोटी जिदों को मनवाने के लिए रूठना, कुछ खाने या कुछ न खाने की जिद में जोरजोर से रोना-चिल्लाना आदि उन की उम्र के मानसिक उत्पीड़न के उपकरण हैं.

यही बच्चे जब कुछ बडे़ हो कर स्कूल पहुंचते हैं तो जिस प्रकार ये मां-बाप को पीड़ा पहुंचाते हैं, वह न सुनते बनता है न कहते. शुरू में तो इनके टीचर ही इनके मसीहा बन जाते हैं. जो टीचर जिस बच्चे को भा गई, समझिए कि बच्चा आप का न रह कर उस का बन गया. वह टीचर चाहे जितनी भी गलत हो, बच्चा आप की सही बात को भी मानने को तैयार नहीं होगा और उस की गलत से गलत बात को भी सही मान कर उसी पर अमल करेगा, फिर चाहे आप जितने दुखी होते फिरें, बच्चे की बला से.

ये भी पढ़ेें- रिश्तों की उड़ान में समधियों के धागे

बच्चा जैसे ही कुछ और बड़ा हुआ और दोस्तों में रमने लगा, तब तो पूछिए मत. उस का दोस्त या सहेली ही उस के लिए सबकुछ हो जाएंगे, फिर चाहे मां-बाप दीवार से सिर फोड़ लें, बच्चा फिर भी उन्हें ही गलत मानेगा. इसके पीछे पहला कारण तो उम्र का फासला है और दूसरा, मां-बाप बच्चे को गलत काम करने से रोकते हैं, हर वक्त नसीहतें देते रहते हैं. और यही बच्चों को अच्छा नहीं लगता.

विदेशों में स्थिति

अपने देश में तो फिर भी डांट- फटकार से बात संभल जाती है पर संयुक्त राज्य अमेरिका की धरती पर, जहां वातावरण अलग है, विचारधारा अलग है, सोच अलग है और सब से बड़ी बात अप्रोच अलग है, बच्चे मां-बाप के लिए मुसीबत का कारण बन जाते हैं. कई बार तो वे ऐसी स्थितियां खड़ी कर देते हैं कि मांबाप के लिए मुसीबत का पहाड़ ही तोड़ देते हैं. मैंने कई घर वालों को अपने बच्चों के कारण खून के आंसू रोते देखा है.

भारतीय परिवेश से दूर अमेरिका, कनाडा सरीखे विकसित देशों में सबसे बड़ी तलवार जो मां-बाप के सिर पर लटक रही है, वह है फोन नंबर 911 की तलवार. है तो यह ठीक वैसी ही तलवार जो भारत के फोन नंबर 100 की है पर उस से कहीं अधिक दुधारू और जानलेवा है. परिवार के जिस सदस्य पर यह तलवार उठ जाती है केवल वह सदस्य नहीं बल्कि समूचे परिवार का अस्तित्व भरभरा कर ढह जाता है.

ये भी पढ़ें- जब दादा-दादी हैं साथ है तो फिर चिंता की क्या बात

फर्ज कीजिए, किसी बच्चे की शरारतों से खीज कर उसके पिता या मां ने एक थप्पड़ जड़ दिया. कुछ नहीं, बच्चा रो-धोकर चुप हो गया. दूसरे दिन बच्चा स्कूल गया और बातों-बातों में उसने थप्पड़ वाली बात दोस्तों या टीचर को बता दी. दोस्तों ने कहा कि तेरे पापा ने थप्पड़ मारा, तो तू ने पुलिस को क्यों नहीं बताया. वह आ कर पापा को डांट देते और फिर तेरे पापा या मम्मी कभी तेरे को कुछ नहीं कहते.

बच्चे को यह नुस्खा बड़ा कारगर लगा. डांटने का सारा सिलसिला खत्म और मौजमस्ती करने की पूरी छूट. अगर कोई डांटे तो 911 पर कॉल कर पुलिस को बुला लो. किसी बच्चे को माता-पिता अथवा टीचर द्वारा थप्पड़ मारने पर उन को जेल हो जाना यहां के लोगों के लिए आम बात है, लेकिन हमारे जैसे भारतीय परिवारों के लिए मुसीबत का वारंट.

भारत तथा एशिया के दूसरे देशों से आए बच्चों में लाखों में से कोई एक-आध के साथ ही ऐसी परिस्थिति आती होगी कि कोई बच्चा अपने माता-पिता, परिवार के किसी सदस्य अथवा टीचर के खिलाफ पुलिस बुला ले. अगर ऐसा हो भी जाए तो पुलिस आ कर बच्चे तथा उसको परेशान करने वाले को थोड़ा सा डरा-धमकाकर मामला साफ कर देती है, लेकिन अमेरिका की बात बिलकुल अलग है. यहां के स्कूली वातावरण में पलेबढे बच्चे इतने एग्रेसिव होते हैं कि वे खुद 911 नंबर डायल कर फोन उस बच्चे के हाथ में पकड़ा देंगे और उसे पुलिस को थप्पड़ वाली बात कहने के लिए उकसाएंगे. बच्चा अपनी मासूमियत में या फिर मित्रों के दबाव में आ कर थप्पड़ वाली बात पुलिस वालों को बता देगा और पुलिस पहुंच जाएगी उस के घर से उस के मां-पिताजी को अरेस्ट करने के लिए.

ये भी पढ़ें- जिंदगी जीना भी है एक कला, करते रहें कुछ नया

बात अगर बच्चों तक ही सीमित रह जाए तो भी गनीमत है, टीचर को भी अगर किसी बच्चे को घर पर पड़े थप्पड़ की बात पता चल गई, तो वह स्वयं ही 911 पर कॉल करके फोन बच्चे को पकड़ा देगी, पुलिस को थप्पड़ का हाल बयां करने के लिए. तो लीजिए, टीचर की अथवा बच्चों की तो ठिठोली या यों कहिए कर्तव्यपूर्ति हो गई, लेकिन सारा का सारा परिवार जेल पहुंच गया.

सोचिए कि उस परिवार में अगर केवल पिता ही कमाने वाला है और वही 6 महीने के लिए अरेस्ट हो गया और मां को अंग्रेजी नहीं आती या कोई और मजबूरी है, तो उस परिवार को तो आत्महत्या के अलावा कोई रास्ता ही नहीं सूझेगा. ऐसी ही अनेक बातें हैं जिन पर बाहर से आए परिवारों को सावधानी से खुद को समझना और अपने बच्चों को समझाना बहुत जरूरी है ताकि कहीं ये बिना सोचेसमझे कदम न उठा दें.

ऐसी ही एक दूसरी कुशिक्षा जो एशियन देशों से आए बच्चे यहां आ कर उम्र से पहले ही सीख जाते हैं, वह है सेक्स की समय से पूर्व जानकारी. उन के मित्रों से मिली अधकचरी जानकारी उन्हें समय से पहले सेक्स सागर में गोते लगाने को उकसाने के लिए पर्याप्त है. ऐसे में घर में मांबाप की जिम्मेदारी बहुत बढ़ जाती है. इस के अलावा यहां आसानी से उपलब्ध इंटरनेट सुविधा आग में घी डालने के लिए पर्याप्त है. यह तो नामुमकिन है कि इन सब स्थितियों से बच कर आप यहां रह पाएंगे पर इतना तो कर ही सकते हैं कि बच्चों में अपने देश की संस्कृति और सभ्यता के बीज इतनी गहराई से बोते चले जाएं कि पथभ्रष्ट होने से पहले बच्चा सौ बार सोचने के लिए विवश हो जाए.

अमेरिका आ कर सब को पैसा कमाने की ऐसी धुन सवार होती है कि बच्चों को लोग लगभग भूल ही जाते हैं और बच्चे हाथ से निकल जाते हैं. ऐसी गलतियों से स्वयं बचना और अपने बच्चों को भी बचाना नितांत आवश्यक है वरना लेने के देने पड़ सकते हैं और जिस जिंदगी को लोग खुशियों का चार्टर बनाने के अपने संजो कर यहां आते हैं वह टार्चर बन कर रह जाती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें