प्यार इक बंधन है जिस में इक सुर मेरा, इक तुम्हारा. शादी भी किसी सुरीले सरगम से कम नहीं. दो दिल एक बंधन में बंधते हैं. शादी में दो परिवार भी मिल कर एक होते हैं. इक दूजे के दुखसुख में साथ निभाने का संकल्प करते हैं. इस सरगम में यदि दोनों परिवारों की ओर से एक भी सुर ढीला हो जाए तो रिश्ता बेसुरा हो जाता है. शायद इसीलिए समधी और समधिन आपस में इस नए रिश्ते की शुरुआत मीठे बोलों से, गले मिल कर, मुंह मीठा करवाने की रस्म के साथ करते हैं.
समधी और समधिन का रिश्ता बेटीबेटे की शादी में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मुंह की मिठास कभी फीकी न पड़े, कड़वाहट में तबदील न हो, इस के लिए इकदूजे को फूलों के हार पहनाए जाते हैं. उपहार दिए जाते हैं. इतना ही नहीं परिवारों के खानदानी, संस्कारी होने के दावे भी पेश किए जाते हैं. सच में यह रिश्ता बहुत मीठा होता है. उस की मिठास बनी रहे, यह आप के अपने ही हाथों में है.
मौजूदा युग में रिश्ते इंटरनैट के जरिए बनने लगे हैं. वैबसाइट पर लड़कालड़की के बायोडाटा दिए जाते हैं. दोनों को ठीक लगा तो रिश्ता पक्का हो गया. मातापिता के बारे में, उन के रिश्तेनातेदारों, खानदान आदि के बारे में ज्यादा पूछताछ नहीं होती. पहले तो घर का कोई बड़ा बुजुर्ग, रिश्ता सुझाता था, फिर दोनों परिवार वालों के बारे में विस्तार से चुपकेचुपके जानकारी हासिल कर ली जाती थी.
आज के दौर में जोडि़यां मैट्रीमोनियल वैबसाइट्स पर बनती हैं. युवा कितने भी आधुनिक हो जाएं, उन्हें अपनी जैसी समझ रखने वाले जीवनसाथी मिल जाएं, मगर मातापिता की जरूरत को बदलते समाज में भी झुठलाया नहीं जा सकता. दोनों परिवारों का मकसद रहता है युगल जोड़ी एकदम खुश रहे, परिवार को जोड़ कर रखे. अच्छे समधी, समधिन कैसे बनें, जानने के लिए मिलते हैं कुछ ऐसे ही परिवारों से-
आप हैं शुभचिंत सोढ़ी-पंजाब के जानेमाने ज्वैलर ढेरासिंह के परिवार की 2 सुशील संस्कारी बेटियों की मां, सुलझी हुई. प्यारी सी समधिन. इन की बड़ी बेटी पटियाला शहर में ब्याही है. संभ्रांत परिवार है पिंकी चन्नी का. शुभचिंत सोढ़ी और पिंकी चन्नी दोनों पुरानी सहेलियां हैं. 13-14 वर्ष पहले एक महिला क्लब से दोस्ती शुरू हुई और यह कब रिश्तेदारी में बदल गई, पता ही नहीं चला. पिंकी चन्नी बताती हैं, ‘‘मेरा बेटा और शुभचिंत की बेटी साथ पढ़ते थे. दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. दोनों में प्यार हो गया. जब मुझे पता चला तो मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, अरे यह तो बहुत अच्छा है. मैं तो लड़की को जानती हूं और उस की मां को भी. खातेपीते लोग हैं. हमारी तो खूब जमेगी. बस फिर क्या था, सभी कुछ बेतकल्लुफी से हुआ.
‘‘दरअसल, रिश्ते तो सम्मान मांगते हैं, आदर मांगते हैं और आप जानते हैं जहां प्यार हो, सम्मान व आदर स्वयं ही हो जाता है. हमें गर्व है हमारी बहू ने आज तक मुझे शिकायत का कोई मौका नहीं दिया. फिर भला हम मांबाप रिश्ते को प्यार से क्यों न निभाएं. हमारे संबंध किसी औपचारिकता के मुहताज नहीं. हम कभी भी एकदूजे के यहां चले जाते हैं. यहां तक कि रात के 10-11 बजे भी बेधड़क शुभचिंत के घर यानी बेटी की ससुराल पहुंच जाते हैं और कौफी की चुसकियां लेते हैं. मैं तो सीधे किचन में घुस जाती हूं. हम दोनों मिल कर झटपट चाय की ट्रे तैयार कर लेती हैं. पता ही नहीं चलता समय कैसे पंख लगा कर उड़ जाता है. खुशी तब दोगुनी हो जाती है जब लोग बच्चों को देख कर कहते हैं, ‘वाह, क्या जोड़ी है’ और हम दोनों सहेलियों को देख कर लोग कह उठते हैं, ‘समधिन हो तो शुभी पिंकी जैसी.’ ’’
जब शादीब्याह की बात पक्की होती है तो एक नए रिश्ते का जन्म होता है. पंजाबी में इसे कुड़म-कुड़माचारी कहा जाता है. कुड़माचारी है बहुत गजब की चीज. इस में दायित्व का, रस्मोरिवाज का, लेनदेन का एक अनकहा बोझ होता है. यही बोझ रिश्ते को हंसतेहंसते निभाने की वजह बनता है. दोनों पक्ष यह मानते हैं कि क्या हुआ मेरे दामाद या बहू के भी मांबाप हैं. उस का परिवार है. यदि हम उन के आने पर आवभगत करते हैं, उन का सम्मान करते हैं, तो देखा जाए तो एक प्रकार से हम सब वही तो कर रही हैं जिस की हम अपेक्षा करते हैं. ऐसा ही मानना है बीएसएनएल में कार्यरत नरिंदर नागपाल का.
मिसेज नागपाल का मानना है कि समधीसमधिनों का रिश्ता बहत ही मधुर है, बहुत ही मीठा है. जो इस रिश्ते को दिलोजां से निभाता है तो सच मानो, वह अपनी औलाद को जीजान से प्यार करता है, उन की गृहस्थी सुखी बनाता है. यह प्यार ही ऐसी शक्ति है जो रिश्ते को खींचता है और रिश्ता पुष्पित व पल्लवित होता है. और फिर गृहस्थी खुशहाल रहती है.
रिश्ते की लाज रखें
वे अपना किस्सा सुनाती हुई आगे बताती हैं, ‘‘हमारे बच्चों का रिश्ता यानी मेरे बेटे का रिश्ता तो उसी न्यूज चैनल में काम करते समय चैनल प्रमुख की ओर से सुझाया गया था. मुझे गर्व महसूस हुआ कि मेरे बेटे का व्यक्तित्व, उस का व्यवहार न्यूज चैनल के मालिक को भा गया और उन्होंने अपनी ओर से मेरे बेटे के लिए पढ़ीलिखी लैक्चरर लड़की का रिश्ता, चैनल के सिक्योरिटी हैड की बेटी के लिए सुझाया.
मुझे लगा बतौर मांबाप, हमारी यह जिम्मेदारी बनती है कि हम इस रिश्ते की लाज रखें. अच्छे से निभाएं.’’ वे आगे कहती हैं, ‘‘रिश्तेदार अच्छे होते हैं, सुखदुख में एकदूजे के काम आते हैं, इस तथ्य को झुठलाएं नहीं. इस नए अजन्मे रिश्ते को एक अच्छा नाम दें. समधीसमधिन प्यार दो, प्यार लो. एकदूसरे को बेलौस मुहब्बत दें, कमियां निकालें. अनचाही बातों को नजरअंदाज कर दें. अपेक्षा न रखें. बहू के मां बाप का पूरा आदरसम्मान करें. बेरहम हो कर मीनमेख न निकालें. रिश्ते बनाने में उम्र लग जाती है लेकिन मुंह से निकले अनचाहे शब्दों से रिश्ते दरक जाते है, पलभर में टूट जाते हैं.
कुछ कहना चाहें तो इस तरीके से कहें कि बिगड़ी बात बन जाए. अब देखिए न, मेरे घर में सुखशांति यदि मेरे और मेरे पति के खुशनुमा व्यवहार से रह सकती है तो क्यों मैं कड़वाहट घोलूं. समधीसमधिन से कभीकभार मुलाकात होती है. गले मिलें तो ही अच्छा है गले न पड़ें.’’
किसी ने सच ही कहा है, रिश्ते इन 2 बातों पर निर्भर करते हैं, पहला, आप के दिल में क्या है, और दूसरा, आप की जेब में क्या है. फिर यह रिश्ता बापबेटे, मांबेटी, दोस्ती या फिर समधियाने का क्यों न हो. ऐसा मानना है समाजसेविका उर्मिल पुरी का.
वे कहती हैं, ‘‘जहां कथनी और करनी में फर्क आया, समझो वहीं रिश्ते में बनावट आई और रिश्ता खोटा हो गया. मैं ने तो जब रिश्ते की बात की, दामाद को देखा, वहीं तय कर लिया था कि अपने समधियाने को प्यार दूंगी और बदले में प्यार लूंगी भी. अच्छी सोच से इस रिश्ते को पालूंगी. घर में बहू को लाऊंगी, सारे अरमान पूरे करूंगी. प्यार के हिंडोले में, रिश्तों की डोरी से इसे इस तरह झुलाऊंगी कि मेरी बहू की मां को मुझ पर भी प्यार आए और वह यह महसूस करे. जैसे उस की बेटी अपने घर में थी वैसी ही ससुराल में है. बहू को मर्यादा का पाठ भी पढ़ाऊंगी. परिवार की हर छोटीछोटी बात को पीहर में न बताने की सलाह दूंगी और तर्क भी. साफगोई से रिश्ते को मजबूत करूंगी ताकि किसी किस्म का संदेह न हो, बातचीत बनी रहे.’’
सेवानिवृत्त डिप्टी जनरल मैनेजर श्याम गर्ग की पत्नी शशी गर्ग गर्व से बताती हैं, ‘‘मुझे अपनी बहू की उस की मां द्वारा की गई परवरिश पर बड़ी खुशी होती है,’’ बात का खुलासा करते हुए वे कहती हैं, ‘‘मेरे बेटे की नईनई शादी हुई. पतिपत्नी दोनों हनीमून पर जा रहे थे. बहू ने मुझ से कहा, ‘‘मैं अपने कीमती आभूषण, जो शादी में मिले हैं, यहीं छोड़ जाऊं आप के पास?’’ मैं ने कहा, ‘‘नहींनहीं, आप रखो अपने पास, पहनो इन्हें या फिर अपनी मम्मी के पास रख लो.’’
इसी बीच मेरी समधिन का फोन आ गया, उन्होंने मेरी बहू से कहा, ‘‘नहीं बेटा, गहने मेरे पास नहीं, अपनी सास के पास रखो. अब यह उन की मरजी है, वे इन्हें आप को दें या लौकर में रखें. अब तुम हमारी बाद में, पहले उन की बेटी हो. बहू बनो, बहू के फर्ज पहचानो. पिछले घर की बातें, भूल कर नए घर के माहौल में ढलने की कोशिश करो.’
अब आप ही बताइए जो अपनी बेटी को इतने अच्छे संस्कार दे रही हैं, दखलंदाजी नहीं कर रहीं, रिश्ते में एक स्पेस दे रही हैं, मेरा रिश्ता उन से कैसे न अच्छा होगा.
यही बातें तो रिश्ते को पनपने में मदद करती हैं.’’ रिश्तों की उड़ान में- इस तरह यही सच है और यही सफल है कि समधियाने का इक धागा मेरा, इक तुम्हारा.