स्वास्थ्य एंटी कैंसर थेरैपी में देरी ठीक नहीं द्य डा. सुमन एस कारंथ कोविड-19 के चलते कैंसर के इलाज में देरी से कैंसर मरीजों पर होते दुष्प्रभाव और भविष्य में कैसे उन के हितों को सुनिश्चित किया जाना चाहिए, आइए जानें. कोरोना महामारी के दौरान संक्रमण के डर से अस्पतालों में इलाज के लिए जाने वाले मरीजों की संख्या काफी गिर गई थी. मरीजों के सीधे संपर्क में आने के बजाय दुनियाभर में डाक्टरों ने टैलीफोन या वीडियो कंसल्टेशन को प्राथमिकता दी और खासतौर से फौलोअप के मामलों में तो इसी विकल्प को ज्यादा अपनाया गया.

बेशक, कुछ उपचारों के मामले में मामूली देरी चलती है लेकिन केवल कुछ समय के लिए ही ऐसा करना उचित है. कैंसर जैसे रोगों के मामलों में तत्काल उपचार की जरूरत होती है. लेकिन देखने में आया कि टैलीमैडिसिन की सुविधा के बावजूद आबादी के एक बड़े हिस्से ने इस विकल्प को ठीक से नहीं अपनाया. मरीजों ने अपनेआप ही डाक्टर से परामर्श लेना बंद कर दिया. यूरोपियन सोसाइटी औफ मैडिकल ओंकोलौजी की एक अग्रणी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि मरीजों को अपनी एंटी कैंसर थेरैपी में किसी प्रकार की देरी नहीं करनी चाहिए.

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इस में यह भी स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कैंसरग्रस्त रोगियों के कोविड-19 संक्रमण का शिकार होने की आशंका भी काफी अधिक रहती है. इस की वजह से मरीज के इलाज पर बुरा असर पड़ता है और वह अपने इलाज में देरी कर सकता है जोकि सही नहीं है. मरीजों के उपचार के मामले में कुछ उपायों का पालन किया जा सकता है ताकि संक्रमण के जोखिम और इलाज में देरी से बचा जा सके. ओंकोलौजिस्टों के लिए भी यह जरूरी है कि वे मरीजों को अधिक जोखिमग्रस्त, मध्यम दर्जे के जोखिम या कम प्राथमिकता जैसे समूहों में बांटें जिस से अधिक गंभीर रोगियों की एंटी कैंसर थेरैपी शुरू की जा सके. जब भी लोकल ट्रीटमैंट के तौर पर सर्जरी या रेडिएशन की आवश्यकता हो, उपचार स्थगित करने के बजाय जोखिम अनुपात पर विचार करना चाहिए ताकि मरीज के जीवन पर इस के प्रभाव का आकलन हो सके.

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