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बिहार की ग्रामीण महिलाएं

पशु सखी के रूप में आत्मनिर्भरता की बनी मिसाल हमारे देश में भूमिहीन, छोटे और म?ाले किसानों का खेतीबारी के अलावा जीवनयापन में बकरीपालन एक अहम व्यवसाय है. चूंकि बकरी पालने का काम कम खर्च के साथ ही कम जगह में आसानी से किया जा सकता है, इसलिए भूमिहीन, छोटे और म?ाले किसान आसानी से बकरीपालन का काम कर लेते हैं. बकरीपालन को नकदी का एक अच्छा जरीया माना जाता है, इसलिए इसे बेरोजगारी दूर करने में काफी कारगर माना जाता रहा है. बकरीपालन में होने वाले लाभ को देखते हुए हाल के सालों में देश में बकरीपालकों की तादाद में काफी इजाफा हुआ है.

हर 5 साल के बाद होने वाले पशुगणना के आंकड़ों पर अगर गौर करें, तो देश में कुल पशुपालन में बकरियों की हिस्सेदारी 27 फीसदी है. साल 2019 में कराई गई पशुगणना के आंकड़ों पर अगर गौर करें, तो 20वीं पशुगणना में बकरियों की तादाद की कुल तादाद साल 2019 में 148.88 मिलियन यानी 14 करोड़, 88 लाख, 80 हजार थी, जो पिछली पशुगणना की तुलना में 10.1 फीसदी अधिक है. बकरीपालकों की देश में बढ़ रही तादाद की एक वजह यह भी है कि इस से कम खर्च में अधिक मुनाफा लिया जा सकता है, क्योंकि छोटे लैवल पर बकरियों को घरों के खाली हिस्सों और बरामदों में भी आसानी से पाला जा सकता है. इस के अलावा बकरियों के लिए बकरीपालन गृह निर्माण पर भी अधिक खर्च नहीं आता है, जबकि बकरियां ?ाडि़यों और पेड़ों की पत्तियां खा कर हर तरह के वातावरण में जिंदा रह सकती हैं.

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अगर बकरीपालन करने वाली आबादी के नजरिए से देखा जाए, तो भारत में बिहार तीसरा स्थान रखता है. यहां की 70 फीसदी भूमिहीन आबादी, उस में खासकर महिलाएं बकरीपालन कर के अपनी आजीविका चलाती हैं. बिहार में भूमिहीन और छोटे किसानों द्वारा बकरी पालने का काम पारंपरिक रूप से सालों से चला आ रहा है. लेकिन बकरीपालकों को बकरियों के खानपान और बीमारियों के नियंत्रण की सही जानकारी न होने के चलते कई बार नुकसान भी उठाना पड़ता है. ऐसे में बकरीपालन से जुड़े इन परिवारों के माली हालत को मजबूत बनाने के लिए बिहार में भूमिहीन, छोटे और म?ाले किसानों की माली आमदनी बढ़ाने के लिए काम कर रही संस्था ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ ग्रामीण लैवल पर कुछ जागरूक महिलाओं को पशु सखी के रूप में फ्री ट्रेनिंग दे कर उन्हें महिला पशु स्वास्थ्य कार्यकर्ता के तौर पर तैयार कर रही है, जो ग्रामीण लैवल पर ही बकरीपालन से जुड़ी हर समस्या के समाधान के लिए तत्पर रहती है. एकेआरएसपीआई द्वारा इस कार्यक्रम का संचालन वैशाली जिले के हाजीपुर, बिदुपुर और राजापाकड़ प्रखंड सहित समस्तीपुर जिले के पूसा, ताजपुर और सराईरंजन प्रखंड में किया जा रहा है, जहां इस कार्यक्रम की बदौलत ग्रामीण गरीब महिलाओं की माली और सामाजिक स्थिति में काफी सुधार देखने को मिल रहा है. एकेआरएसपीआई द्वारा तैयार की गई इन पशु सखियों के सहयोग से बकरीपालकों के उत्पादन और उत्पादकता में काफी बढ़ोतरी हुई है.

पशु सखियों ने किया कमाल बिहार में ज्यादातर आबादी बकरीपालन से जुड़ी हुई है, लेकिन सही जानकारी की कमी में ये बकरीपालक बड़े लैवल पर बकरीपालन का काम नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि लोकल लैवल पर बकरियों की बीमारियों की रोकथाम की उचित व्यवस्था नहीं है. साथ ही, बकरीपालकों को उन के चारा प्रबंधन की भी सही जानकारी नहीं रहती थी. यही वजह है कि बकरियों की बीमारी और मौसम की मार के साथ ही उन की गर्भावस्था के दौरान कठिन स्थितियों से न निबट पाने के चलते कभीकभी नुकसान का सामना भी करना पड़ता है. बिहार के बकरीपालन से जुड़े लोगों की इन्हीं सभी समस्याओं को देखते हुए ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ द्वारा उत्तर बिहार के कई जिलों में हाइफर इंटरनैशनल, एक्सिस बैंक फाउंडेशन, एचडीएफसी बैंक के वित्तीय और तकनीकी सहयोग के साथ ग्रामीण आबादी में बकरीपालन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है. महिलाएं चलाती हैं पशु परामर्श केंद्र पशुपालकों की समस्याओं के निदान के लिए गांव की ही कुछ जागरूक महिलाओं को ट्रेनिंग दे कर उन्हें पशुओं के सामान्य इलाज के लिए तैयार किया गया है, जो छोटे पशुपालकों और बकरीपालकों को सही तकनीकी जानकारी देने के साथ ही बकरियों और पशुओं के इलाज में भी अहम भूमिका निभा रही है.

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इस से इन महिलाओं का सामाजिक सम्मान तो बढ़ा ही है, साथ ही वे माली तौर पर भी काफी मजबूत हो रही हैं. पूसा ब्लौक के मोहम्मदपुर कोआरी गांव की रहने वाली गीता देवी अप्रैल, 2019 में ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ से ट्रेनिंग ले कर अपने गांव में पशु परामर्श केंद्र के संचालन की जिम्मेदारी निभा रही हैं. वे आसपास के गांवों में बकरियों के टीकाकरण, डीवर्मिंग यानी पेट के कीड़ों के नियंत्रण, बधियाकरण, हर्बल दवाओं या साधारण घरेलू दवाओं द्वारा इलाज करने का काम करती हैं. इस के अलावा वे बकरियों के आश्रयस्थल, बकरी के वजन प्रबंधन और बकरी की मार्केटिंग को ले कर बकरीपालकों को जागरूक भी करती हैं. गीता देवी जैसी कई महिलाएं आज पशु सखी के तौर पर बिहार के तमाम गांवों में अपनी सेवाएं दे रही हैं. इस से यह बात साफतौर पर जाहिर हो चुकी है कि जिन कामों में पुरुषों का एकाधिकार था, अगर महिलाओं को मौका मिले तो वे सारे काम कर सकती हैं, जिसे अभी तक पुरुष करते आए हैं. गीता देवी जैसी महिलाएं इस का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. बिहार राज्य के समस्तीपुर जिले के पूसा ब्लौक के चकलेवैनी गांव की एक बड़ी आबादी अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक और अन्य पिछड़ी जातियों की है, जिन में बकरीपालन करने वाले परिवारों की भी बड़ी तादाद है.

इन गांवों के ज्यादातर परिवार अतिरिक्त आमदनी के लिए औसत रूप से 2-3 बकरियों का पालन करते हैं. गांव में बकरीपालन को आमदनी से जोड़ने और माहिलाओं की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए इस गांव की ज्यादातर महिलाओं को एकेआरएसपीआई द्वारा स्वयंसहायता समूहों से जोड़ा गया है. पशु सखी गीता का कहना है कि गांव में बकरीपालन सदियों पुरानी प्रथा है. लेकिन ज्यादातर लोग पारंपरिक तरीके से ही बकरियों का पालनपोषण कर रहे थे. जैसे पूरे दिन उन्हें चराना, खुले क्षेत्रों में रखना, डीवर्मिंग यानी पेट के कीड़ों के नियंत्रण और टीकाकरण की कमी. इसी वजह से बकरियों में कई जानलेवा बीमारियां भी हो जाती थीं, जिस के चलते बकरियों की मौत तक हो जाती थी. लेकिन पशु सखी के रूप में उन्होंने इन समस्याओं में कमी लाने में कामयाबी हासिल की है.

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चकलेवैनी गांव की ही पशु सखी सीता देवी ने बताया कि एकेआरएसपीआई द्वारा उन्हें पशु सखी के रूप में काम करने के लिए बकरीपालन से जुड़े बेहतर पशु प्रबंधन, महिलापुरुष बराबरी, महिला सशक्तीकरण आदि के बारे में ट्रेनिंग दी गई है. ट्रेनिंग लेने के बाद लोगों में बकरीपालन और प्रबंधन को ले कर सीता देवी जागरूक करने का काम कर रही हैं. उन्होंने 5 साल पहले एकेआरएसपीआई के आर्थिक और तकनीकी सहायता से मौडल बकरीघर का निर्माण भी कराया है. बकरियों की बीमारियों की रोकथाम में अहम भूमिका पशु सखी की ट्रेनिंग लेने के बाद जब पहली बार पड़ोस में एक बकरीपालक की बकरी को बुखार हुआ, तो सीता देवी ने ली गई ट्रेनिंग के हिसाब से बकरी का इलाज किया और वह ठीक हो गई. इस के बाद गांव में दूसरी बकरियों के बीमार पड़ने पर सीता देवी को बकरियों के इलाज और टीकाकरण के लिए बुलाया जाने लगा. इस का नतीजा यह रहा कि बीमारियों की वजह से बकरियों की होने वाली मौतों में काफी कमी आई. सीता देवी ने बताया, ‘

‘मेरे द्वारा बकरियों के इलाज के चलते बकरीपालकों को काफी फायदा होने लगा था. ऐसे में मेरे पास एक दिन में ही तकरीबन 40 बकरियों के टीकाकरण किए जाने के लिए बुलावा आ गया. ‘‘उस दिन मैं काफी उत्साहित थी. जब अगले दिन मैं सुबहसुबह टीकाकरण के लिए गांव जाने के लिए निकली, तो यह देख कर बड़ी राहत मिली कि मेरे द्वारा टीकाकृत और उपचारित सभी बकरियां दूसरी बकरियों की तुलना में काफी सेहतमंद थीं. ‘‘उस दिन मु?ो बकरियों के टीकाकरण और इलाज से 450 रुपए भी मिले, जबकि बकरियों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवा पहले से ही एकेआरएसपीआई द्वारा ट्रेनिंग में उपलब्ध कराई गई थी.’’ चारा बनाने में अहम भूमिका एकेआरएसपीआई के रीजनल मैनेजर सुनील पांडेय ने बताया कि पशु सखियों को खनिज ब्लौक बनाने के लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है,

जिस में मक्का की भूसी, नमक, चूना और मुल्तानी मिट्टी का मिश्रण होता है, जो बकरियों में खनिज की कमी को पूरा करने में बेहद जरूरी माना जाता है. ऐसे बकरीपालन को बढ़ावा हाजीपुर के सदुल्लापुर गांव की संगीता देवी प्रशिक्षण के बाद पशु सखी बन अपनी सेवाएं दे रही हैं. इसी तरह से बिदुपुर की अनीता और राजपाकड़ की रेखा भी पशु सखी के रूप में अपने व आसपास के गांव में बकरियों के सामान्य इलाज में बकरीपालकों को मदद करती हैं. ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’, बिहार के रीजनल मैनेजर सुनील पांडेय ने बताया कि यह कार्यक्रम गोदरेज एग्रोवेट और एचडीएफसी परिवर्तन के सहयोग से संभव हो सका है. उन्होंने बताया कि एकेआरएसपीआई ने सब से पहले ग्रामीण लैवल पर स्वयंसहायता समूहों का गठन किया, ताकि महिला किसान सशक्त हो सकें. इसी दौरान महिलाओं ने जानकारी दी कि बकरीपालन में फायदा न मिल पाने की मुख्य वजह ज्यादातर मेमनों का मर जाना होती है. इस के अलावा बकरी का वजन न बढ़ना भी एक अहम वजह है. इस के बाद संस्था ने बकरियों की देखभाल को ले कर जागरूक महिलाओं को प्रशिक्षण दिए जाने का प्रस्ताव रखा. सुनील पांडेय ने बताया कि ट्रेनिंग के लिए समूह की उन महिलाओं को चुना गया, जो वाकई बकरीपालकों की मदद करना चाहती थीं.

कृषि वैज्ञानिकों से मिलता है मार्गदर्शन गांव की महिलाओं को पशु सखी के रूप में बकरियों की देखभाल से जुड़ी जानकारी को ले कर निपुण बनाने में स्थानीय लैवल पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. समस्तीपुर के बिरौली स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के प्रमुख और पशु चिकित्सा के जानकार डाक्टर आरके तिवारी इन महिलाओं को घरेलू लैवल पर इलाज से जुड़ी जानकारी देने के लिए ट्रेनिंग के विषयों को तैयार करते रहे हैं, वहीं केवीके, हाजीपुर की प्रमुख सुनीता कुशवाहा ने महिलाओं के समाज में बराबरी से जुड़े ट्रेनिंग के डिजाइन में काफी योगदान दिया है. इसी आधार पर पशु सखी की भूमिका निभाने वाली ग्रामीण महिलाओं को बकरियों में होने वाली बीमारियों, उन के लक्षण और बचाव के बारे में निपुण किया जाता है. ट्रेनिंग के दौरान उन्हें छोटीछोटी बीमारियों से बकरियों को बचाने की जानकारी, दवा के उपयोग और खुराक के साथ इलाज के बारे में भी बताया जाता है.

ट्रेनिंग लेने के बाद ये पशु सखियां गांव में बकरियों की देखभाल से जुड़ी सेवाएं कम से कम खर्च पर आसानी से उपलब्ध करा रही हैं. ये महिलाएं गांव में कैल्शियम, बकरी आहार, दाना बनाने, बकरीघर जैसे नए प्रयोग शुरू कराने में भी अपनी भूमिका निभा रही हैं. रहनसहन में बदलाव के साथ हो रही है आमदनी पशु सखी के रूप में सेवा दे रही सीता देवी, संगीता देवी, अनीता और रेखा जैसी तमाम महिलाओं का कहना है कि ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ के चलते गांव में उन्हें काफी इज्जत मिलने लगी है. अब बकरीपालकों को पशु सखियों से काफी मदद मिलती है. बकरीपालक अब बकरियों के बीमार होने पर पशु सखियों को ही इलाज के लिए बुलाते हैं. साथ ही, उन्हें उचित आदरसत्कार भी देते हैं.

पशु सखियों द्वारा पशुओं को जरूरी दवाएं, पशु आहार व आवश्यक पोषक तत्त्व उपलब्ध कराने से उन की आमदनी में भी काफी इजाफा हुआ है. इस के चलते एक पशु सखी महीने में तकरीबन 2,000 से 3,000 रुपए तक आसानी से कमा लेती है. ‘आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत’ के सीओओ नवीन पाटीदार का कहना है कि बकरीपालन ज्यादातर गरीब परिवारों के लिए आजीविका का महत्त्वपूर्ण साधन बना हुआ है. उन का यह भी कहना है कि बकरीपालन से जुड़े छोटे और सीमांत महिलापालकों में अभी भी बकरीपालन से जुड़ी तकनीकी जानकारी की बेहद कमी है. इस समस्या को दूर करने के लिए पशु सखी और पशु परामर्श केंद्र जैसी गतिविधियों को ग्रामीण लैवल पर चलाया जा रहा है. इस से बकरीपालन से जुड़ी रोजमर्रा की चिंताओं से निबटने में यह मील का पत्थर साबित हुई है.

बिगड़ैल बच्चों पर लगाम लगाना जरूरी

अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने बच्चों के व्यवहार पर एक मजेदार रिसर्च की. रिसर्च में नीदरलैंड के 565 बच्चों और उन के पेरैंट्स पर अध्ययन किया गया. डेढ़ साल तक चले इस सर्वे में पाया गया कि जिन बच्चों के मातापिता उन्हें स्पैशल होने का एहसास कराते हैं कि तुम मेरे लिए स्पैशल हो या मेरा बच्चा बैस्ट है, ऐसे बच्चों में ज्यादा स्वार्थी व अहंकारी होने की आशंका रहती है. इस रिसर्च को करने का मकसद लोगों में होने वाली अत्यधिक स्वार्थ की वजहों को तलाशना था. ‘एक परिवार, एक बच्चा’ नीति चीन में 1979 से लागू हुई थी. चीन के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, एक बच्चे वाले परिवार में बच्चे बहुत ज्यादा लाड़प्यार मिलने से बिगड़ने लगे और एक तरह से देखा जाए तो वे बादशाही जीवन बिताने लगे. इस नीति का यहां की जनता पर मनोवैज्ञानिक रूप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. बता दें कि परिवार में अकेले पलेबढ़े होने के कारण ये बच्चे बेहद स्वार्थी होते हैं और किसी भी तरह का जोखिम उठाना नहीं चाहते. अमेरिकी पत्रिका ‘साइंस’ में प्रकाशित लेख में यह जानकारी दी गई है.

रिसर्च के मुताबिक, छोटे बच्चे जो बादशाही जीवन व्यतीत करने लगते हैं, वे दूसरे बच्चों के मुकाबले 16 फीसदी कम जोखिम उठाते हैं. ऐसे बच्चे न कोई प्रतियोगिता करना चाहते हैं, न उन्हें अपनी तुलना करना पसंद है. ऐसे बच्चों को बस जो मुंह से निकला वह हाथ पर होना चाहिए. ऐसे बच्चे पूरी तरह से अपने पेरैंट्स पर ही निर्भर व हावी हो जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा स्वार्थी होते चले जाते हैं.  बच्चे गीली मिट्टी के समान होते हैं, उसे आप जिस सांचे में ढालेंगे वैसा ही उसे रूप व आकार मिलेगा. बचपन में आप अगर बच्चे को स्पैशल फील कराएंगे तो वह जीवनभर बादशाही जीवन जीने की सोचेगा. छोटा बच्चा होने तक तो आप उस की हर डिमांड पूरी करने को तैयार हो उठेंगे लेकिन उस के बड़े होने पर आप को कभी न कभी अपनी आज की गलती का एहसास जरूर होगा. इसलिए बाद में पछताने से अच्छा है कि आप बचपन से ही बच्चे को ज्यादा छूट न दें. ऐसा भी नहीं कि उस के साथ आप सख्ती बरतनी शुरू कर दें.

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संयुक्त परिवारों के खत्म होने और 1 या 2 बच्चों के चलन से अभिभावकों व बच्चों दोनों की परेशानियां बढ़ी हैं क्योंकि जो स्वस्थ माहौल व आपसी प्यार बच्चों को उन के बड़ों के बीच रह कर मिलेगा वैसा माहौल एकल परिवारों में होना संभव नहीं है. उन के बीच रह कर बच्चा कब बड़ा हो जाता है, यह भी पता नहीं चलता. अब अगर बच्चों को रोकाटोकी करो तो भी डर का भाव आता है कि बच्चा कहीं कुंठाग्रस्त न हो जाए. एक केसस्टडी में एक बाल मनोवैज्ञानिक के पास 6 साल का बच्चा रोहन आया. उसे डाक्टर के केबिन में रंगबिरंगे खिलौने व गुब्बारे मिले. डाक्टर ने उस बच्चे से खेलने को कहा. अब पहले बच्चे ने अपने पेरैंट्स की तरफ देखा और फिर वह खेलने गया. डाक्टर ने पूछा कि यह खिलौना तुम्हें पसंद आया तो वह बच्चा मुसकराया. यह देख उस की मां ने कहा कि यह खुश है क्योंकि इसे मनचाहा करने दिया गया. जब भी यह ज्यादा शरारत करता है तो मैं इसे डांटती व मारती हूं, इसलिए यह चुप सा हो गया है. रोहन की मम्मी की तरह आप भी बच्चे को इतना डरपोक न बना दें कि किसी बात को बच्चा अपने मन में ही दबा ले और आहत हो जाए कि वह हर काम को करने में डरने लगे. उसे आप को कोई नया काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए और समयसमय पर उस का उत्साह भी बढ़ाना चाहिए.

क्यों होता है ऐसा

दादादादी नानानानी का प्यार : कभीकभी दादादादी या नानानानी का ज्यादा लाड़प्यार भी बच्चों को बिगाड़ने का काम करता है. सोनल अपने बेटे आयुष को दांत खराब होने के कारण चौकलेट नहीं दिया करती थी. उस ने आयुष को बड़े अच्छे उदाहरण के साथ चौकलेट न खाने के लिए मना भी लिया था लेकिन सोनल के औफिस जाते ही उस की दादी उसे चौकलेट दे दिया करती थीं. इस कारण आयुष के जब दूध के दांत टूट कर नए आए तो वे भी सारे खराब व कालेकाले निकले. सिर्फ यह उदाहरण ही मात्र नहीं है. कहने का मतलब यह है कि परिवार के हर सदस्य को बच्चे की परवरिश अच्छे ढंग व तरीके से करनी चाहिए. चोरीछिपे या पीठपीछे जिद पूरी करने की चाहत या आदत बच्चों को जिद्दी बना देती है. टीवी बना दोस्त : आजकल मैट्रो सिटीज की लाइफ और सोसाइटी या फ्लैट सिस्टम भी बच्चों को कहीं न कहीं बिगाड़ रहा है. इन जगहों पर रहने के कारण मांबाप बच्चों को घर से बाहर निकलने नहीं देते, दोस्तों के यहां जाने नहीं देते. ऐसे में बच्चे अपने एंटरटेनमैंट के लिए टीवी खोल कर बैठ जाते हैं. टीवी में भी बच्चों को कार्टून चैनल्स ही देखने होते हैं. कई पेरैंट्स तो बच्चों से रिमोट छिपा कर रखते हैं कि बच्चा चैनल चेंज न कर पाए या अगर गलती से रिमोट उस के हाथ लग गया तो आप फिर अपना मनपसंद सीरियल नहीं देख सकते. टीवी में आ रहे विज्ञापन देख कर बच्चे नई चीजों की डिमांड करने से भी नहीं थकते.

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स्टेटस की खातिर

अभिभावक बच्चों की हर गैरवाजिब मांग भी यह समझ कर पूरी कर देते हैं कि यह हमारे स्टेटस को मेंटेन करेगा. बच्चा किसी दोस्त के हाथों ऐक्स बौक्स सरीखी डिवाइस देखता है तो मातापिता से उसे खरीदने की जिद करता है. जबकि ऐसी गेमिंग डिवाइस से जुड़ी रिसर्च बताती हैं कि ज्यादा लाइव और बहुआयामी गेम्स बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति को जन्म देते हैं. गेम्स की दुनिया में खोए बच्चे असल जिंदगी में वैसा ही कंट्रोल चाहते हैं जैसा कंट्रोल वे चंद बटनों पर पा कर गेम ओवर में महारत हासिल करते हैं. इसी तरह, बच्चों को स्टेटस के नाम पर महंगे कपड़े, घड़ी, साइकिल, गैजेट्स या इलैक्ट्रौनिक कंप्यूटर, लैपटौप या आईपौड जैसी चीजें उन्हें बादशाही मिजाज से भर देती हैं. फिर वे बादशाह की तरह अपनी मनमरजी के मालिक बन किसी की भी सुनना पसंद नहीं करते. आज 5 से 15 साल के बच्चों के पास मोबाइल फोन्स व इंटरनैट का ऐक्सैस हासिल है. ब्रिटेन की एक सामाजिक संस्था की ताजा रिसर्च की मानें तो 8 से 15 साल के करीब 12 लाख बच्चे अपने मोबाइल फोन पर हिंसक व अश्लील सामग्री रखते व देखते हैं. जाहिर है यह मोबाइल का शाही शौक बच्चों से उन का बचपन छीन रहा है. दिलचस्प बात यह है कि यह रिसर्च बताती है कि ज्यादातर बच्चों ने बताया कि उन के अभिभावक उन्हें बिना किसी झिझक के मोबाइल देते हैं.

ऐसे में मातापिता को ही यह निर्णय लेना होगा बच्चों को स्टेटस या दूसरों की देखादेखी कौनकौन सी सुविधाएं दी जाएं और कौन सी सुविधाओं से उन्हें दूर रखा जाए. आंखें मूंद कर बच्चे की हर बात मानना कोई समाधान नहीं है. याद रहे, नाजुक उम्र में मासूम बच्चों को सहजता से मिलने वाली सहूलियतें व आजादी उन्हें बिगाड़ने में अहम रोल अदा करती है.

क्या करें और क्या न करें

बच्चों की बात जरूर सुनें : माना कि दिनभर काम कर थकहार कर आप जब घर पहुंचते हैं तो थोड़े आराम की जरूरत होती है. लेकिन चूंकि आप का बच्चा दिनभर से आप के आने का इंतजार कर रहा है तो उसे एकदम से झिड़किए मत, बल्कि उस समय उसे प्यार से समझा कर थोड़ी देर बाद उस की बात जरूर सुनें. उस के सवालों का बड़ी समझदारी व उदाहरणों के जरिए उत्तर दें. आराम करने के बाद आप उस से पूछें कि क्या बात है बेटा, बताओ. पूरी बात सुन कर थोड़ी देर उस के साथ खेलें और अच्छी बातें बताएं. आप के साथ व्यतीत किया आधा या एक घंटा उस को उस दिन के लिए तृप्त कर देगा.

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अच्छे काम के लिए हो देखादेखी

अगर आप का बच्चा दूसरों की देखादेखी किसी ऐसी चीज की डिमांड कर रहा है जो आप को उसे इस वक्त या सही उम्र का इंतजार करने पर ही दिलानी है तो उसे उदाहरण के जरिए समझाएं. कहते हैं बच्चों के साथ कभी तुलनात्मक बात या व्यवहार न करें. हां, अगर आप को अपनी बात मनवानी है तो आप को उसे प्यार से समझाना होगा. तभी आप की बात समझ कर वह बेतुकी चीजों की मांग करने से बच सकेगा. ऐसे ही, अगर आप जैसा व्यवहार घर में अपने बड़ों से करेंगे वैसा ही व्यवहार बच्चा आप के साथ करेगा.

इंतजार करना सिखाएं

देखा जाए तो कामकाजी अभिभावकों का बच्चा इंतजार करना बखूबी जानता है लेकिन फिर भी इंतजार करना सिखाने से उस के अंदर सहनशीलता आएगी जैसे आप ने टीवी पर प्रसारित हो रहे मच्छरों को दूर भगाने के एक विज्ञापन में देखा होगा कि बच्चा अपने जन्मदिन पर बैठा दोस्तों का इंतजार कर रहा होता है. वह एकदम से बतलाता है कि पापा, देखो न. उस के पापा उसे थोड़ी देर चिंतन करने के लिए कहते हैं. और उस के दोस्त आ जाते हैं. ठीक ऐसे ही किसी का इंतजार कर रहे बच्चे का ध्यान उस बात से हटा कर दूसरे कामों में लगा दीजिए.

बच्चा जब रोए तो क्या करें

बच्चा अगर किसी दर्द या अपनी परेशानी के कारण रो रहा है तो आप उस की फौरन मदद करें. उस से पूछें कि आखिर वह क्यों रो रहा/रही है. लेकिन बच्चा अगर अपनी जिद या बात मनवाने के लिए रो रहा है तो आप उस से थोड़ी देर के लिए दूर हो जाएं क्योंकि कुछ बच्चों को रोने की नहीं बल्कि रोने की आवाज निकालने की आदत होती है. ऐसे बच्चों के आंख से एक आंसू नहीं टपकता और वे बस अपनी बात मनवाने के लिए ऐसा करते हैं.

सीमा रेखा होना अनिवार्य

ध्यान रखें बच्चे पर इकलौते होने का टैग मत लगाएं. इकलौता समझ पेरैंट्स बच्चों की हर इच्छा, मुंह से निकली महंगी से महंगी डिमांड पूरी करते रहते हैं. कुछ पेरैंट्स तो रिजल्ट से खुश हो कर कहते हैं कि मांग बेटा/बेटी, तुझे क्या चाहिए. बच्चों की शुरू से ही उन की सीमाएं तय होनी चाहिए. अगर पहले से आप उस को बता देंगे तो वह समय रहते सही और गलत चीजों में अंतर करना सीख जाएगा.

अपनी बात पर रहें अडिग

बच्चे जब छोटे हों तभी उन की सीमाएं तय होनी चाहिए. ऐसा करने से बच्चा स्पष्ट रूप से समझ जाएगा कि उस की लिमिट कहां तक है. ऐसे बच्चों का व्यवहार काफी संतुलित हो जाता है. ऐसे बच्चे शरारत जरूर करते हैं पर उसे जिद या बदतमीजी नहीं कहेंगे. बच्चों की सीमाएं ऐसी हों, जैसे किसी को मारो मत, बड़ों का आदर करो, अपनी चीजों का ध्यान रखो, किसी अनजान से बात मत करो, उस का दिया खाओ मत, बड़ों के बीच में मत बोलो, अपनी चीजें जगह पर रखो, होमवर्क टाइम पर करो आदि. अगर बच्चा आप के सामने जिद को पूरा करने के लिए रोएचिल्लाए, जमीन पर लेट कर लोटपोट हो तो आप उस की तरफ ध्यान ही न दें. थोड़ी देर बाद उस की हरकतों में कमी आ जाएगी. शांत हो जाने पर उसे उस की गलती का एहसास कराएं व प्यार से बहलाएं.

मदद व शेयरिंग करना सिखाएं

घर में अगर पेरैंट्स का अपने बड़ों, रिश्तेदारों व आमजन से सहयोगात्मक रवैया है तो बच्चा भी आप को देख कर ऐसा ही करने लगेगा. जानेअनजाने ही सही, पर पेरैंट्स अपनी कुछ अच्छी चीजें बच्चों को अपनेआप ही समझा देते हैं. वहीं, बच्चों में शेयरिंग का भाव भी बेहद जरूरी है. आजकल अकेले रहने की वजह से ज्यादातर बच्चे अपनी चीजें किसी दूसरे बच्चे को देना पसंद नहीं करते. कुछ बच्चे तो दूसरों का सामान ले कर उसे वापस देने से भी मना कर देते हैं – मांगने पर वे नहीं देते और जिद पकड़ कर बैठ जाते हैं. ऐसे में आप घर में ही खाने से ले कर उस के पहननेओढ़ने तक व घूमने से ले कर उस के खिलौने तक सभी की शेयरिंग कैसे व कब करनी चाहिए, सिखाएं. ऐसा करने के लिए बच्चे को अन्य बच्चों से संपर्क साधने के लिए या तो उसे कभी पार्क में घुमाने ले जाएं या उसे अपने दोस्तों के साथ कुछ वक्त बिताने दें. एकदूसरे बच्चों की ऐक्टिविटी को जज करतेकरते उस में भी वही चीज आ जाएगी.

शालीन आवाज

कभीकभी आप दूसरे के बच्चे के बोलने के तरीके से कितना प्रभावित हो उठते हैं कि घर आ कर उस की तारीफ करना नहीं भूलते पर आप को ऐसा ही अपने बच्चे से प्रभावित होना है तो आप भी उसे शुरू से ही धीरे व शालीनता से बात कहना सिखाएं. कब, कहां व कितना बोलना है, इस बात का उन्हें अच्छे से ज्ञान होना चाहिए. इसलिए शुरुआत से ही उन के सामने न तेज बोलें न उन्हें बोलने दें. आप ने ऐसे बच्चे भी बहुतेरे देखे होंगे जो बड़ों के बीच में अपनी घर की बात छेड़ देते हैं. इस से उन के पेरैंट्स को कैसा महसूस होता होगा. बस, यही फील आप को उन्हें भी समयसमय पर उदाहरणों सहित सिखाना पड़ेगा.

बिग बॉस 15 में होगी रुबीना दिलैक, गौहर खान और श्वेता तिवारी की एंट्री, होगा ये कंसेप्ट

टीवी जगत का सबसे बड़ा कंट्रोवर्सियल शो बिग बॉस 15 जल्द ही धमाल मचाने के लिए आ रहा है. सलमान खान के इस शो को लेकर कई तरह की बातें हो रही हैं. मेकर्स ने इस शो के 15 वें सीजन का प्रोमो लॉच कर दिया है.

खबर है कि इस शो का प्रीमियम एपिसोड 2 अक्टूबर को लॉच किया जाएगा, खबर ये भी है कि पिछले सीजन की तरह इस सीजन में भी तूफानी सीनियर्स का कॉन्सेप्ट रहेगा, पिछले सीजन में बिग बॉस में गौहर खान, हिना खान और सिद्धार्थ शुक्ला ने सीनियर्स के तौर पर एंट्री मारी थी, जिसे शो के कंटेस्टेंट ने खूब पसंद किया था,

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इस शो को देखने वाले दर्शक भी इन तीनों की बॉन्डिंग को खूब पसंद किए थें, उनकी डिमांड थी कि इन्हें कुछ दिनों तक और शो में रहने दिया जाए, सीनियर्स ने कुछ दिन रूककर लोगों को एक से बढ़कर एक टॉस्क दिए थें, जिसे कंटेस्टेंट ने पूरा भी किया था.

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इस बार सामने आ रही जानकारी के मुताबिक शो में श्वेता तिवारी, गौहर खान और रुबीना दिलैक जल्द ही एंट्री मारने वाली हैं. इन तीन हसीनाओं को देखने के लिए फैंस अभी से बेकरार नजर आ रहे हैं. सीनियर के तौर पर इनकी एंट्री होगी. खबर है कि शो के पहले सप्ताह में ही इन लोगों की एंट्री होगी.

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बिग बॉस ने इससे पहले वूट पर शो को लॉच किया था, जो करीब 6 हफ्ते तक चला और लोगों ने इसे काफी ज्यादा पसंद भी किया था. और इस शो कि विजेता दिव्या अग्रवाल बनी थी.

KKK 11 : दिव्यांका त्रिपाठी के ट्रॉफी नहीं जीतने पर फैंस ने उठाया सवाल, कही ये बात

कलर्स चैनल का सुपरहिट रियलिटी शो खतरों की खिलाड़ी 11 के विनर अर्जुन बिजलानी बन चुके हैं, उन्होंने दिव्यांका त्रिपाठी और विशाल आदित्या सिंह को पीछे छोड़ दिया है,

जैसे ही फैंस को पता चला कि इस शो के विनर अर्जुन बिजलानी हैं तभी से ट्विटर पर दिव्यांका त्रिपाठी का नाम ट्रेंड करने लगा, दिव्यांका त्रिपाठी टीवी इंडस्ट्री की जानी मानी अदाकारा हैं, उन्हें लोग देखना काफी ज्यादा पसंद करते हैं. शायद यही वजह है कि दिव्यांका त्रिपाठी के लिए करोड़ों की संख्या में फैंस दुआ कर रहे थे कि दिव्यांका इस शो की विनर बने.

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लोग ट्विटर पर लगातार लिख रहे हैं कि दिव्यांका खतरों की खिलाड़ी के विनर की असली हकदार हैं, कुछ ने कहा कि उन्होंने शो में जैसे बैखोफ होकर अपनी पर्फर्मेंस दी है, इससे साफ हो रहा है कि ट्रॉफी उन्हें ही मिलनी चाहिए.

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वहीं शो के मेकर्स पर यह भी आरोप लगा है कि दिव्यांका त्रिपाठी के साथ बेईमानी हुई है. वहीं फैंस इस शो के विनर अर्जुन बिजलानी के ट्रॉफी मिलने से बिल्कुल भी खुश नजर नहीं आ रहे हैं, फैंस को लग रहा है कि इस शो की असली विजेता दिव्यांका त्रिपाठी ही हैं.

वहीं खतरों के खिलाड़ी के होस्ट रोहित शेट्टी ने भी दिव्यांका त्रिपाठी की जमकर तारीफ की है, उसे देखने के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि दिव्यांका शो के होस्ट रोहित का दिल जीतने में कामयाब रही हैं. इसके साथ ही शो में शामिल हुए प्रतियोगी भी दिव्यांका की जमकर तारीफ कर रहे हैं.

 

बेटे की चाह : भाग 1

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

गांव में बनी यह कोठी सब गांव वालों में हैरानी का मुद्दा बनी हुई थी, जिस की वजह थी सेना का एक रिटायर्ड फौजी जो इस का मालिक था. उस ने फौज की नौकरी छोड़ कर इस गांव में जमीन खरीद कर अपने रहने के लिए इसे बनवाया था.

फौजी का नाम शमशेर सिंह था. बड़ीबड़ी मूंछें और गोलगोल राज भरी आंखें. सीने पर लटकता हुआ एक सुनहरी मैडल, जिसे सरकार ने उस की सेवा से खुश हो कर उसे इनाम में दिया था. इसे वह बड़ी ही शान के साथ लोगों के बीच दिखाया करता था.

फौजी शमशेर सिंह की कोठी में कई नौकर काम करते थे, जो ज्यादातर कोठी के अंदर ही रहते थे. नौकरनौकरानियों का यह स्टाफ शमशेर सिंह अपने साथ शहर से ही ले कर आया था.

गांव के कुछ लोगों का मानना था कि फौजी शमशेर सिंह गांव की बहूबेटियों पर बुरी नजर रखता है, तभी तो मुंहअंधेरे ही खाकी रंग का कच्छा पहन कर, एक हाथ में कुत्ते की चेन पकड़ कर उसे टहलाने के बहाने से शौच गई और घाट पर नहाती हुई औरतों को अपनी गोल आंखों से घूरने निकल पड़ता है.

पर, कुछ लोग कहते थे कि फौजी का परिवार एक सड़क हादसे में मारा गया था. इसी दुख में उस ने नौकरी छोड़ दी और यहां शांति की तलाश में रहने आ गया है.मंगलू भी इसी गांव में अपनी पत्नी सरोज और 3 बेटियों के साथ रहता था. उस की बड़ी बेटी रमिया की उम्र 18 साल थी. दूसरी बेटी का नाम श्यामा था और वह अभी 14 साल की थी. तीसरी बेटी मुन्नी अभी 8 साल थी.

बेचारा मंगलू अपनी इन जवान होती बेटियों को देखता और अपनी किस्मत को दोष देता कि काश, उसे एक बेटा हो जाता, तो उस का वंश चल जाता. लड़कियां तो अपनी ससुराल में जाते ही पराई हो जाती हैं. एक लड़का ही तो होता है, जो मांबाप का सहारा होता है और जो चिता को आग लगाए तभी तो बैकुंठ मिल पाता है.

मंगलू की इस भावना को बढ़ाने में गांव के कुछ लोगों का बहुत योगदान था, जिस में सब से आगे थी मंगलू के एक दोस्त की बीवी रसीली.जैसा रसीली का नाम था, वैसा ही रस से भरा हुआ उस का गदराया बदन, बड़ीबड़ी आंखें और पतली कमर के नीचे तक लटकते हुए बाल.

इस गांव में वह अपने ससुर के साथ रहती थी. उस का ससुर भी दमे का मरीज था और ज्यादातर खटिया पर ही लेटा रहता था.रसीली का आदमी शहर कमाने गया हुआ था और 2-3 महीने में एक बार ही आ पाता था, इसीलिए रसीली किसी मस्त हिरनी की तरह उछलती फिरती थी.

गांव के जवान तो जवान, बूढ़े भी फिदा थे रसीली की इस जवानी पर, लेकिन रसीली तो फिदा थी 3 लड़कियों के बाप मंगलू पर.‘‘अरे, जिस छप्पन छुरी के पीछे पूरा जमाना पड़ा है, वह तो सिर्फ तुझे चाहती है और तू है कि मेरा प्यार ही नहीं समझता है रे,’’ रसीली ने खेत की तरफ जाते हुए मंगलू की गरदन में अपनी बांहों का घेरा डालते हुए कहा.

‘‘अरे… अरे… रसीली… यह क्या कर रही हो… कोई देख लेगा… तो क्या सोचेगा,’’ मंगलू घबराते हुए बोला. ‘‘अरे, देख लेने दो… मैं तो यही चाहती हूं कि मेरे और तेरे रिश्ते की बात सब लोगों तक पहुंच जाए,’’ रसीली ने प्यार से मंगलू को निहार कर कहा.

‘‘अरे… नहीं रसीली. यह सब ठीक नहीं. मुझे यह सब करना अच्छा नहीं लगता,’’ मंगलू बोला.‘‘मैं जानती हूं कि जिंदगी के 40वें साल में भी तू किसी गबरू जवान से कम नहीं है और मैं यह भी जानती हूं कि तेरे अंदर एक बेटे का बाप बनने की बहुत इच्छा है.‘‘पर बीज चाहे जितना अच्छा हो, अगर जमीन ही बंजर होगी तो उस में फल कहां से आएगा,’’ रसीली कहे जा रही थी.

‘‘अरे, क्या अनापशनाप बके जा रही है…’’‘‘तो फिर तू ही बता न कि तेरी घरवाली एक लड़का पैदा क्यों नहीं कर पाई, क्योंकि उस में एक बेटे को जनने की ताकत नहीं है. अगर तू लड़के का बाप बनना चाहता है, तो मुझे एक मौका दे, फिर देख मैं तुझे कैसे बनाती हूं एक बेटे का बाप,’’ रसीली ने मंगलू की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

मंगलू वैसे तो औरतखोर नहीं था, पर रसीली जैसी मस्त औरत का न्योता तो शायद ही कोई मर्द अस्वीकार कर सकता और फिर मंगलू के अंदर एक बेटे का बाप बनने की तीव्र इच्छा भी बलवती तो थी ही.‘‘तू मेरे बेटे की मां बनेगी…पर क्यों? तेरा भी मर्द है न?’’ मंगलू के चेहरे पर कई आशंकाएं एकसाथ घूम रही थीं.

‘‘तुम भी बहुत भोले हो मंगलू… मेरा आदमी तो 2-3 महीने में एक बार ही आता है, वह भी 2-4 दिन के लिए. अब इस जवान शरीर को तो रोज ही मर्द का साथ चाहिए न…’’ रसीली ने थोड़ा शरमाते हुए कहा.‘‘मतलब, तू चाहती है कि मैं तेरे साथ संबंध बनाऊं और जो बेटा पैदा होगा, उसे मैं ले लूं. पर ऐसा हमारे धर्म में नहीं होता और फिर गांव में पंचायत है, बड़ेबूढ़े हैं, वे सब क्या कहेंगे,’’ मंगलू ने सकुचाते हुए कहा.‘‘हूं…’’ रसीली ने बदले में सिर्फ सिर हिलाया.

‘‘पर, मेरे और तेरे मिलन से लड़की भी तो पैदा हो सकती है… फिर?’’‘‘नहीं, मुझे बेटी नहीं पैदा हो सकती है. शादी से पहले मैं ने एक ज्योतिषी को हाथ दिखाया था और बताया था कि मेरी कोख से सिर्फ लड़के ही पैदा होंगे, लड़कियां नहीं.’’

‘‘अच्छा… तब तो ठीक बात लगती है,’’ मंगलू सोच में डूब गया था.‘‘अरे, अब ज्यादा सोच मत. जो लड़का मुझे पैदा होगा, वह तेरा ही तो होगा. पर, उसे मैं अपने पास ही रखूंगी. वह तेरी आंखों के सामने ही होगा और फिर तेरे मन में यह भावना भी तो नहीं रहेगी कि तेरे अंदर एक लड़के को जनने की ताकत नहीं है.

 

नजरिया – भाग 5 : यशस्वी हर रिश्ते के लिए इंकार क्यों करती थी

“मेरी आंखें तो आज ही खुली हैं. आज से पहले तो मैं बेटी की ममता में अंधी हो रखी थी. मुझे उस के कुलक्षण दिखाई ही नहीं दिए. लोग कहते हैं कि मां तो बेटी की आंखों के इशारों से उस के लक्षण समझ जाती है. मेरी आंखें कैसी फूटी थीं, जो कुछ न देख पाईं.“

“अपने को दोष मत दो रमा. संभालो अपने को.““1-2 दिन में घर पर मेहमान आने शुरू हो जाएंगे. यह तो सोचो कि हम उन्हें क्या जवाब देंगे ?“ रवि बोला, तो राम लाल निरुत्तर हो गए. जिस शादी की तैयारी में वे जीजान से जुटे हुए थे, उस का पटाक्षेप इस तरीके से होगा, यह तो उन की कल्पना से परे था. इस के बारे में सोचते हुए उन का दिल जोरों से धड़क रहा था. रवि और विशाल को बाबूजी की चिंता थी. कहीं वे इतना बड़ा सदमा न झेल पाए तो क्या होगा? राम लाल निढाल हो कर कुरसी पर पसर गए. रवि ने पूछा, “बाबूजी, आप ठीक तो हैं?“

“हां, मैं ठीक हूं. अपने को संभालने की कोशिश कर रहा हूं.““ बाबूजी, हिम्मत रखिए. जो होना था हो चुका. उसे अब बदला नहीं जा सकता. एक बार वह मेरे हाथ लग जाए, तो मैं उसे घर से भागने का मतलब ठीक ढंग से समझा देता,“ रवि गुस्से से बोला.

“यह वक्त यह सब सोचने का नहीं है. कल का सवेरा हम कैसे झेलेंगे? अगलबगल के लोगों की नजरों का जवाब कैसे देंगे? हमारी सूरत देख कर सब समझ जाएंगे कि यहां कोई बड़ी घटना घटी है.““सुबह का सूरज तो देखना ही होगा बाबूजी. कैसे भी  हम दुनिया का सामना करेंगे और सब को बता देंगे कि यह कोई नई घटना नहीं हुई. ऐसा भी होता ही रहता है दुनिया में.“

“दुनिया के लिए न सही, लेकिन मेरे लिए तो यह बहुत बड़ा भूचाल है. मैं यशस्वी से कभी भी यह उम्मीद नहीं कर सकता था कि घर में सब के साथ रहते हुए वह हम सब को इतना बड़ा धोखा दे कर चली जाएगी,“ राम लाल बोले.“बाबूजी इस समय शांत रहें. कल की कल देखी जाएगी.“आज किसी की आंखों में  नींद न थी. सब को सुबह होने का इंतजार था. रात खुलते ही राम लाल ने सब से पहले अपने गांव में खबर पहुंचाई.

“भाई साहब, अचानक ही यशस्वी की तबीयत खराब हो गई है. इस वजह से हमें यह शादी पीछे करनी पड़ रही है. आप सब को बता देना.““पर, उसे हुआ क्या है?“

“यह मैं आप को बाद में बताऊंगा भाई साहब. अभी तो आप सब को यहां आने से रोक देना. मुझे अभी और जगह भी फोन करने हैं. बाद में आप से बात करता हूं,“ कह कर राम लाल ने फोन रख दिया. सब से बड़ी मुश्किल तो जतिन के घर पर बताने की थी. कांपते हाथों से राम लाल ने नंबर मिलाया.

“ नमस्ते समधीजी. कैसे हैं आप?““ ठीक हैं. शादी की सारी तैयारियां पूरी हो गईं.““तैयारियां तो पूरी हो गई थीं, लेकिन…““बेझिझक हो कर कहिए कि क्या बात है?““मुझे माफ कर दें. मेरा अपराध क्षमा करने योग्य तो नहीं है, लेकिन क्या करूं मैं एक लड़की का मजबूर बाप हूं.“

“आखिर बात क्या हो गई?““यशस्वी घर छोड़ कर कहीं चली गई है.”“ लेकिन, क्यों?““यह तो हमें भी नहीं पता.““अब क्या होगा?““इसी बात की तो क्षमा मांग रहा हूं. आप की भी बिरादरी में कितनी बेइज्जती होगी और मेरी भी.““ अब जो होना था सो हो गया. आप भी उतने ही मजबूर हैं जितने हम.“

“मैं फिर से आप से क्षमा मांगता हूं. मैं जल्दी ही रोके का सारा सामान लौटा दूंगा. बाकी नुकसान की मैं भरपाई नहीं कर सकूंगा.““आप सज्जन आदमी हैं. आप ने बेटी से शादी से पहले पूछा तो होगा.““हां. सबकुछ उस की रजामंदी से ही हो रहा था. उस ने हमें कुछ नहीं बताया और अचानक घर छोड़ कर चली गई.“

“आप उसे ढूंढ़ने की कोशिश कीजिए. कहीं उस के साथ कोई ऊंचनीच न हो गई हो.““अब ढूंढ़ कर क्या करना है? सरेआम बाप की पगड़ी उछालते उस को शर्म न आई. हमारे लिए तो वह मर ही गई है.““अपनेआप को संभालिए,“ इतना कह कर उन्होंने फोन रख दिया.

फोन कटते ही राम लाल की रुलाई फूट गई. आज से पहले कभी रमा ने उन्हें रोते हुए न देखा था. उन्हें रोता देख सारा घर आंसुओं में डूब गया. सभी एकदूसरे के आंसू पोंछ कर सांत्वना दे रहे थे, पर चैन किसी को भी न था.

थोड़ी देर बाद राम लाल  अपने आंसू पोंछ कर 10 बजे यशस्वी के औफिस पहुंच गया. औफिस में जा कर पता चला कि यशस्वी पिछले एक महीने से छुट्टी पर चल रही थी. अपने सहकर्मी सरदार सुखविंदर सिंह से उस का काफी मेलजोल था और दोनों की काफी अच्छी पटती थी. कुछ ही देर में सारा माजरा उस की समझ में आ गया था. घर आ कर उस ने यह बात सब को बता दी.

“इस का मतलब औफिस जाने के नाम पर वह रोज उस से मिलने जाती रही होगी.““असली बात तो वही बता सकती है, जिस ने यह सब किया.““यह लड़की इतनी मक्कार निकलेगी, यह तो हम कभी सपने में भी नहीं सोच सकते थे. उस के बाबूजी  ट्रेनों में धक्के खाखा कर कब से उस के लिए रिश्ता ढूंढ़ रहे थे. उसे उन पर भी जरा सा तरस नहीं आया.“

“उस के मन में दया होती, तो वह ऐसा काम करती?उसे अपने पसंद से शादी करनी थी तो बता देती और इस रिश्ते से भी मना कर देती जैसे वह हमेशा से करती आई थी.““कौन जाने उस के मन में क्या चल रहा था, जिसे उस ने किसी के साथ बांटना नहीं चाहा और  शादी से ठीक एक हफ्ते पहले घर छोड़ कर चली गई.““बाबूजी, आप को याद होगा कि एक दिन वह बीमारी के बहाने उस सरदार को घर ले कर आई थी. शायद वह उसे हम से मिलाना चाहती थी.“

“तू ठीक कह रहा है बेटा. उस की यही मंशा रही होगी.““मैं ने उसे शादी से पहले पूछ लिया था कि तुझे कोई पसंद है तो बता दे, तब  उस ने मुंह नहीं खोला.““वह जानती थी. बाबूजी उसे ऐसा कभी नहीं करने देंगे. वह वही करेंगे जैसा पंडितजी कहेंगे. तभी उस ने किसी की परवाह किए बिना इतना बड़ा कदम उठा लिया.“

उसी दिन पूरे महल्ले में यह खबर आग की तरह फैल गई. सब उस के नाम पर थूथू कर रहे थे. किसी को भी उस से कोई सहानुभूति नहीं थी. शाम को राम लाल मैडम के पास पहुंचा. उन्होंने पूछा, “अब  शादी के कम दिन रह गए हैं राम लाल. आज पैसे ले जाना. शादी की तैयारियां तो पूरी हो गई होंगी.“

“अब इस की जरूरत नहीं है मैडमजी.“”ऐसा क्या हो गया?“ मैडम ने पूछा, तो नम आंखों से राम लाल ने उन्हें पूरी कहानी सुना दी.“दिल छोटा न करो. जवानी के जोश में बच्चे ऐसी हरकतें कर देते हैं.““उस ने मुझे कहीं का न रखा. बिरादरी वालों को पता लगेगा, तो मुझे जाति से बाहर कर देंगे. जगहंसाई हो रही है सो अलग.“

“बुरे सपने की तरह भूल जाओ यह सब और यशस्वी को माफ कर दो. लड़का अच्छा है तो तुम्हें भी उसे अपना लेना चाहिए.““उसे अपनाने का मतलब है अपने को सब से अलग कर लेना. मैं अपने समाज को नहीं छोड़ सकता. भले ही मुझे लड़की को छोड़ना पड़े. जब उसे हमारी परवाह नहीं रही, तो हम उस की परवाह क्यों करें?““ऐसा नहीं सोचते राम लाल. वह तुम्हारी बेटी है.“

“उस ने बेटी होने का कौन सा फर्ज निभाया. मैं उस के रिश्ते के लिए कहांकहां नहीं भटका? उसे कुछ नहीं दिखाई दिया. अपने बूढ़े बाप की पगड़ी पर सरेआम ठोकर मार कर चली गई है. उसे यही सब करना था तो बता देती.““तुम ने पूछा था?““हां, उस की अम्मां ने पूछा था. उस ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है. वह खुद  इस रिश्ते के लिए राजी हो गई थी.“मैडम के पास भी आगे कहने के लिए कुछ नहीं था. उसे राम लाल की हालत पर तरस आ रहा था.

राम लाल मैडम से विदा ले कर अपने घर लौट आया.बेटी की करतूत के कारण बिरादरी में और समाज में राम लाल की बहुत बेइज्जती हुई. वह यह सब किसी तरह से झेलता रहा. बिरादरी की खातिर उस ने बेटी से किनारा कर लिया था. यही बात उस ने आ कर मैडमजी को भी बताई थी.

“राम लाल, परिवार सब से ऊपर होता है,“ मैडम ने समझाया.“आप ठीक कहती हैं मैडमजी. लेकिन बिरादरी के बगैर जीना भी तो मुश्किल हो जाएगा. हमारा गांव में हुक्कापानी बंद हो जाएगा. ऐसे में हम सब से कट कर कैसे रह सकते हैं.““यशस्वी की कोई खबर मिली?“

“सुना है कि दोनों उसी औफिस में काम कर रहे हैं.  उस के साथी बता रहे थे कि उस सरदार के साथ वह बहुत खुश है.““उस से कभी बात नहीं होती?““नहीं. मैं तो उस से बात नहीं करता. एक बार उस का अपनी अम्मां के लिए फोन आया था. उस ने भी ज्यादा बात नहीं की और फोन रख दिया. भला ऐसी लड़की से कौन बात करेगा.“मैडम राम लाल को जमाने के साथ चलने की सलाह देती रही, लेकिन वह अपनी बिरादरी को छोड़ने को राजी न हुआ.

इस घटना को एक साल हो गया था और धीरेधीरे सब के दिमाग से यह बात उतरने भी लगी थी.एक दिन शाम को राम लाल बाजार से घर लौट रहे थे. उस समय जोरों की बारिश लगी हुई थी. एक मोटरसाइकिल वाले ने राम लाल को जोर की टक्कर मार दी. वह उछल कर दूर गिर पड़ा. मौत को सामने देख कर अचानक उसे  ब्रेन स्ट्रोक पड़ गया और वह मूर्छित हो कर गिर पड़ा.  टक्कर से उसे कई चोटें आई थीं. इस के अलावा स्ट्रोक के कारण दाईं ओर पैरालिसिस हो गया था.  सड़क किनारे लोग बारिश में बेसुध पड़े राम लाल को देख रहे थे. संयोग से उसी समय सुखविंदर उधर से गुजर रहा था. सामने राम लाल को अचेत पड़ा देख उस के होश उड़ गए. उस ने तुरंत एंबुलेंस बुला कर उसे अस्पताल में भरती कराया.

शाम को राम लाल के घर न लौटने से सब बहुत परेशान थे. रमा को समझ नहीं आ रहा था कि वे कहां चले गए? किसी से कोई खबर  नहीं मिली और उस का फोन बंद था. देर रात सारे चेकअप कराने के बाद सुखविंदर ने डरते हुए घर फोन किया. फोन रमा ने उठाया, “कौन बोल रहा है?“

सुखविंदर ने अपना परिचय नहीं दिया और उन्हें खबर कर दी, “राम लाल का एक्सीडेंट हो गया है और वह अस्पताल में भरती हैं.“यह सुनते ही घर वालों के होश उड़ गए. वह तुरंत अस्पताल की ओर दौड़े. राम लाल अचेत पड़ा था. रवि ने डाक्टर से पूछा, “इन्हें क्या हुआ है?“

“किसी दुपहिए ने इन्हें बहुत जोर की टक्कर मारी है. इस वजह से इन्हें ब्रेन स्ट्रोक पड़ गया. अभी ये हमारी निगरानी में हैं. इन की स्थिति काफी चिंतनीय है. इन्हें यहां लाने में जरा भी देर हो जाती तो इन का बचना मुश्किल था,“ डाक्टर बोले.“हम उस से मिलना चाहते हैं, जो इन्हें यहां ले कर आया है.“

“मैं अभी उसे बुलाता हूं. बेचारा भला आदमी है. तब से ले कर अभी तक यहीं बैठा है. उसी ने सारी औपचारिकताएं पूरी कर के इन्हें यहां भरती कराया है और टेस्ट के लिए जरूरी रुपए जमा कर दिए हैं.““ऐसे इनसान को लंबी उम्र मिले,“ रमा बोली. डाक्टर ने सुखविंदर को वेटिंगरूम से बुला लिया. उसे देख कर रमा चौंक गई. सुखविंदर बोला, “यह समय नाराज होने का नहीं है. अभी हम सब के लिए बाबूजी की जिंदगी माने रखती है. मुझे बाबूजी रास्ते में बेहोश पड़े मिले थे,“ इतना कह कर उस ने पूरी कहानी बता दी. घर वालों की नाराजगी के बावजूद सुखविंदर ने उन की दिनरात सेवा की.

राम लाल को ठीक होने में एक महीना लग गया था. उस के मना करने पर भी सुखविंदर ने अपना फर्ज नहीं छोड़ा. राम लाल भी इनसान था. आखिर में वह पसीज गया.यशस्वी बाबूजी का हालचाल पूछने रोज ही अस्पताल आ जाती. दिलों का मैल धीरेधीरे घुल गया. राम लाल के अस्पताल से ठीक हो कर लौटने पर सबकुछ सामान्य हो गया था. सुखविंदर के व्यवहार ने राम लाल का नजरिया ही बदल दिया.

 

मोटापा, डायबिटीज और हार्ट डिसीज में बेहद फायदेमंद है सनई की सब्जी, ऐसे बनाएं

लेखिका- अरुणिमा सिंह

इस मौसम में सनई को लोग खेत में बोते हैं और थोड़ा सा बड़ा होने के बाद उसे जोत कर पलटवा कर खेत में 2-3 दिन तक पानी भर देते हैं, जिस से इस के पौधों से बहुत अच्छी हरी खाद बनती है और खेत उर्वरकता से भर जाता है. तो आइए, आज आप सबको सनई की तरकारी बनाना सिखाते हैं लेकिन उससे पहले इसके फायदे जान लेते हैं.

सनई के फायदे…

  1. सनई के फूल में कैल्शियम, फास्फोरस और फाइबर प्रमुख हैं.
  2. इस साग में मौजूद कैल्शियम हृदय की धड़कन को सामान्य बनाए रखने और मांसपेशियों की सामान्य क्रियाशीलता में भी सहायक होता है.
  3. वहीं फाइबर मोटापा, मधुमेह और हृदय रोगों की आशंकाओं को कम करता है.
  4. फाइबर कब्ज और कुछ प्रकार के कैंसर से बचाव और नियंत्रण में भी सहायक है.
  5. सनई के फूल में थोड़ी मात्रा में प्रोटीन भी पाया जाता है.

वैसे, सरसों, मिर्च, मेथी, जीरा और अजवाइन के संयोग से बनने वाला सनई का साग सिर्फ स्वाद में ही बेमिसाल नहीं है, बल्कि सेहत का भी खजाना है. तो चलिए हम सनई के फूलों से सब्जी बनाना सीखते हैं :

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सामग्री 

  • धुले हुए सनई के फूल
  • काली सरसों ,
  • साबुत धनिया ,
  • हलदी ,
  • लहसुन की एक कली और प्याज ,
  • साबुत जीरा ,
  • लाल मिर्च (3-4)
  • अमचूर स्वादानुसार ,
  • नमक स्वादानुसार ,
  • तेल

बनाने की विधि

  • सनई के फूलों को अच्छी तरह से धो लें, क्योंकि फूलों के अंदर छोटेछोटे कीड़े होते हैं.
  • इस के बाद साबुत सरसों, लाल मिर्च, धनिया, लहसुन, हलदी, जीरा सभी को सिलबट्टे पर पानी की छींटें मार कर बारीक पीस लीजिए.
  • फिर सनई के फूलों में पिसे मसाले, नमक स्वादानुसार, थोड़ा अमचूर, थोड़ा सा तेल डाल कर अच्छी तरह से मिक्स कर लीजिए.
  • 10 मिनट के लिए मैरिनेट होने के लिए रख दें.
  • उस के बाद एक मोटे तले की मिट्टी की मटकी ले कर उस में बाकी बचे तेल को डालें और फिर मसालों में लिपटे सनई के फूल को मटकी में भर कर उसे बंद कर दें.
  • इसे धीमी आंच पर अंगीठी पर रख कर पकने दें.
  • जब बन कर तैयार हो जाए, तो गरमागरम रोटियों के साथ परोसिए.

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न्याय अन्याय

लेखिका- आरती लोहनी 

कुंडी खड़कने की आवाज सुन कर निम्मी ने दरवाजा खोला, ‘‘जी कहिए…’’ निम्मी ने बाहर खड़े 2 लड़कों को नमस्ते करते हुए कहा. ‘‘जी, हम आप के महल्ले से ही हैं. आप को राशन की जरूरत तो नहीं…’’ उन में से एक ने निम्मी से कहा. ‘‘जी शुक्रिया, अभी घर में राशन है…’’ निम्मी ने जवाब दिया. ‘‘ठीक है… जब भी जरूरत होगी, तो इस मोबाइल नंबर पर फोन करना…’’ उन में से एक बड़ी मूंछों वाले लड़के ने निम्मी को एक कागज पर मोबाइल नंबर लिख कर देते हुए कहा. लौकडाउन का तीसरा दिन था. पूरा शहर एक उदासी और सन्नाटे की ओर बढ़ रहा था. किसी को नहीं पता था कि कब बाजार खुलेगा, कब घर से बाहर निकल सकेंगे और कब हालात सही होंगे.

निम्मी का पति अमर किसी काम से दूसरे शहर गया हुआ था कि अचानक से ये कर्फ्यू से हालात हो गए. निम्मी की शादी को अभी सालभर भी नहीं हुआ था. निम्मी बहुत खूबसूरत थी. न जाने कितने नौजवान निम्मी को किसी न किसी तरह पाना चाहते थे. यह तालाबंदी भी निम्मी की जिंदगी में घोर अंधेरा ले कर आई थी. उसे अमर से मिलने की उम्मीद दिखने लगी थी कि लौकडाउन को आगे बढ़ा दिया गया. एक ओर राशन खत्म हो रहा था, तो वहीं दूसरी ओर अमर के खेत में गेहूं की खड़ी फसल. अब कौन फसल को काटे और कौन मंडी ले जाए. निम्मी सोच ही रही थी कि अमर का फोन आया, ‘निम्मी, मु?ो तो अभी वहां आना मुमकिन नहीं जान पड़ता… खेत का क्या हाल है… तुम गई क्या किसी दिन?’ ‘‘बस एक दिन गई थी… फसल पक चुकी है, पर अमर अब यह कटेगी कैसे… मजदूर भी नहीं मिल रहे इस वक्त यहां,’’ निम्मी ने बताया. कुछ देर इधरउधर की बात कर के निम्मी ने फोन रख दिया. तभी उस के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी, ‘‘अमर… बाहर आना.’’ महल्ले के धनी सेठ की आवाज सुन कर निम्मी बाहर आई.

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‘‘अमर को बुलाओ तो बाहर. उस से कहो, अगर गेहूं की फसल जल्दी नहीं काटी तो सारी खराब हो जाएगी.’’ ‘‘जी, वे तो शहर से बाहर गए थे किसी काम से और तालाबंदी के चलते वहीं फंस गए,’’ निम्मी ने बताया. हालांकि धनी सेठ अच्छी तरह से जानता था कि अमर घर पर नहीं है, फिर भी अनजान बनने की अदाकारी बखूबी कर रहा था, ‘‘ओह, लेकिन अगर फसल नहीं कटेगी, तो भारी नुकसान उठाना पड़ेगा…’’ ‘‘जी जरूर… जरूरत हुई तो आप के पास आ कर कह दूंगी. वैसे, इतनी खेती तो है नहीं कि मंडी तक पहुंचाई जाए. हमारा ही गुजर होने लायक अनाज होता है,’’ निम्मी ने हाथ जोड़ कर कहा. धनी सेठ कई सवाल ले कर जा रहा था कि निम्मी मु?ो बुलाएगी या नहीं, क्या कभी निम्मी के साथ गुफ्तगू मुमकिन है. वह खुद से ही बोलते जा रहा था कि पुजारी से सामना हो गया. ‘‘प्रणाम पुजारीजी… कैसे हैं आप?’’ धनी सेठ पुजारी से बोला. ‘‘चिरंजीवी रहो धनी सेठ… तरक्की तुम्हारे कदम चूमे,’’ दोनों हाथों से आशीष देते हुए पुजारी ने कहा. ‘‘इस दोपहरी में कहां से आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं?’’ धनी सेठ ने पुजारी से पूछा. पुजारी ने सकपकाते हुए जवाब दिया, ‘‘बस, एक यजमान के घर से आ रहा हूं… तो सोचा, थोड़ा नदी किनारे टहल आऊं.’’ ‘‘अच्छा… नमस्ते,’’ कह कर धनी सेठ आगे बढ़ गया. इधर निम्मी ने अमर को फोन पर धनी सेठ के प्रस्ताव के बारे में बताया, तो अमर ने साफ इनकार करने को कहा, क्योंकि वह उसे अच्छी तरह जानता था और इस सहयोग के पीछे की मंशा पर भी उसे शक था.

निम्मी ने फोन रखा ही था कि किसी ने घर का दरवाजा खटखटाया. निम्मी ने दरवाजा खोल कर सामने खड़े पुजारी को प्रणाम किया. पुजारी ने भी धनी सेठ की तरह हमदर्दी और सहयोग का प्रस्ताव दिया. इसी तरह हैडमास्टर किशोर कश्यप ने भी सहयोग का प्रस्ताव निम्मी के सामने रखा. निम्मी असमंजस में थी. एक ओर उस की शुगर की दवा खत्म हो रही थी, वहीं दूसरी ओर राशन भी खत्म होने को था. अगले दिन मुंह पर चुन्नी लपेटे निम्मी महल्ले की दुकान तक गई. वहां से जरूरी सामान ले कर वह वापस आ रही थी कि सामने से उसी मूंछ वाले लड़के ने उसे पहचान लिया. उस का नाम अनूप शुक्ला था. उस ने निम्मी से कहा, ‘‘अरे निम्मीजी, आप को किसी चीज की जरूरत थी, तो मु?ा से कहती… आप क्यों इस धूप में बाहर निकलीं…’’ ‘‘जी, इस में परेशानी की कोई बात नहीं… बस टहल भी ली और सामान भी ले लिया,’’ इतना कह कर निम्मी तेजी से घर की ओर बढ़ गई. पर एक परेशानी उस के सामने खड़ी हो गई कि उस की शुगर की दवा खत्म हो गई और मैडिकल स्टोर बहुत दूर था.

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तभी निम्मी को अनूप के मोबाइल नंबर वाला कागज भी दिख गया, तो उस ने उसे फोन कर ही दिया. अनूप ने भी उसे दवा ला कर दे दी. इसी तरह कुछ दिन बीत गए, पर गेहूं की फसल का कुछ तो करना था, निम्मी यह सोच ही रही थी कि धनी सेठ और पुजारी कुछ मजदूरों के साथ उस के घर पर आ गए. ‘‘आप तो संकोच करेंगी निम्मीजी, पर हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नहीं?’’ ‘‘मैं कुछ सम?ा नहीं,’’ निम्मी बोली. ‘‘इस में न सम?ाने जैसा क्या है. बस तुम हां कह दो, तो खेत से गेहूं ले आएं.’’ निम्मी कुछ सम?ाती, इस से पहले ही उन दोनों ने मजदूरों को खेत में जाने का आदेश दे दिया. निम्मी ने उन को चाय पीने को कह दिया. दोनों चाय पी कर चले गए. उसी शाम धनी सेठ फिर निम्मी के घर आया. ‘‘तुम ठीक हो न निम्मी… मेरा मतलब, खुश तो हो न?’’ ‘‘जी, मैं ठीक हूं.’’ धीरेधीरे सेठ निम्मी की ओर बढ़ने लगा और पास आ कर बोला, ‘‘तुम इतनी खूबसूरत और कमसिन हो…’’ इतना कह कर उस ने निम्मी की कमर को अपने आगोश में ले लिया. निम्मी कुछ रोकती या कहती, उस ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया और उसे बेहिसाब चूमने लगा.

निम्मी रोती, कभी मिन्नत करती, पर जिस्म के भूखे सेठ को कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. उस ने उसे हर तरीके से भोगा और वहां से चला गया. निम्मी जोरजोर से रो रही थी, पर उस की चीख सुनने वाला कोई न था. अचानक उसे याद आया कि उस के महल्ले का देवेंद्र सिंह पुलिस में नौकरी करता है. किसी तरह निम्मी ने उस का पता लगाया और फोन किया. ‘हैलो, कौन बोल रहा है?’ देवेंद्र सिंह ने फोन रिसीव कर के पूछा. ‘‘जी, मैं आप के ही महल्ले से बोल रही हूं… मु?ो आप की मदद चाहिए,’’ निम्मी ने जवाब दिया. ‘आप को अगर कोई भी परेशानी है, तो आप थाने में आ कर रिपोर्ट लिखा सकती हैं,’ देवेंद्र सिंह ने यह कह कर फोन रख दिया. निम्मी ने फिर से फोन किया, ‘‘हैलो… प्लीज, फोन मत काटना… मैं निम्मी बोल रही हूं. आप के ही महल्ले में रहती हूं. मेरे पति अमर इस वक्त यहां नहीं हैं और मैं मुसीबत में हूं.’’ अमर का नाम सुनते ही वह निम्मी को पहचान गया, ‘अच्छाअच्छा, मैं सम?ा गया. आप चिंता न करें. मैं शाम को आप के पास आता हूं.’

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निम्मी अब निश्चिंत थी कि उसे मदद मिल जाएगी और वह धनी सेठ की रिपोर्ट लिखा सकेगी. शाम को देवेंद्र सिंह उस के पास आया. निम्मी ने सारी बात बताई और मदद मांगी. ‘‘तुम घबराओ मत, मैं तुम्हारी पूरी मदद करूंगा,’’ देवेंद्र सिंह ने कहा. चाय पी कर जब वह जाने लगा, तो अचानक तेज आंधी और बारिश होने लगी. अब तो देवेंद्र को वहीं रुकना पड़ा. छत पर सूख रहे कपड़े उतारने के लिए निम्मी भागी, तो उस की साड़ी ही उड़ने लगी. देवेंद्र सिंह ने उस से कहा, ‘‘मैं ले आता हूं कपड़े. आप बैठ जाइए.’’ बारिश रुकने का नाम नहीं ले रही थी, इधर देवेंद्र सिंह अपने पर काबू नहीं कर पाया और जो उस की शिकायत सुनने आया था, उसी निम्मी को दबोच बैठा और एक लाचार को अपनी जिस्म की भूख मिटाने को मसलता रहा. उस के जाने के बाद निम्मी मर जाना चाहती थी, पर जहर भी कहां से लाए इस तालाबंदी में.

थोड़ी देर में निम्मी को याद आया कि बीती सुबह एक ट्रेन यहां से गुजरी थी और उस ने सुना था कि श्रमिक ट्रेन इन दिनों चल रही है. उसे अब यही एक रास्ता दिखा. निम्मी ने किसी तरह वह रात काटी और तड़के उठ कर घर से चल दी, पास ही पटरियों की ओर. पौ फटने का समय था और निम्मी बदहवास जा रही थी. सामने से आते पुजारी ने उसे देख लिया. निम्मी पटरी पर लेट गई और ट्रेन की आवाज सुनाई दी. पुजारी ने भाग कर उसे पटरी से खींच लिया और सम?ाबु?ा कर घर ले आया. उस ने निम्मी की मजबूरी और अकेलेपन का फायदा उठाया और दबोच लिया. निम्मी कुछ समझ पाती. इस से पहले ही उसे लूट लिया गया था. तालाबंदी खत्म होने का आदेश भी जारी हो गया. अब अमर के आने की भी उम्मीद होने लगी. इधर निम्मी अमर की राह देख रही थी, उधर निम्मी के दीवाने दुखी हो रहे थे. निम्मी की मजबूरी का खूब फायदा उठा चुके ये लोग अभी संतुष्ट नहीं हुए थे.

अनूप तो सोचने लगा कि अमर घर आता ही नहीं तो अच्छा था, क्योंकि उसे निम्मी के शरीर की मादक खुशबू से अभी तक मन नहीं भरा था. उस के साथ बिताया हर पल उसे याद आ रहा था. एक शाम जब निम्मी चीनी लेने घर से बाहर निकली, तो वह जबरन उस के साथ अंदर आ गया. निम्मी ने उस से घर से बाहर जाने को कहा, तो उस ने मना कर दिया. निम्मी मदद के लिए चिल्लाने लगी, तो उस ने उस का मुंह बंद कर दरवाजे की अंदर से कुंडी लगा दी. निम्मी रोती रही, पर उस की मदद को भला कौन आता. पुलिस पर भरोसा भी कैसे करे. अनूप उसे अपनी हवस की आग में जला रहा था और वह रोए जा रही थी. तभी वहां से कश्यप मास्टर गुजर रहे थे, तो उन्होंने उस की चीख सुनी तो फौरन घर की ओर मुड़े. ‘क्या हुआ बेटी… क्यों चीख रही हो. दरवाजा खोलो बेटी,’ बेटी सुनते ही निम्मी को न जाने कैसी ताकत आ गई और उस ने अनूप के बालों को खींच कर उस के अंग पर वार कर दिया. अनूप दर्द से चीखने लगा और मौका पा कर निम्मी ने दरवाजा खोल दिया.

सामने कश्यप मास्टर खड़े थे. उन्होंने अपना अंगोछा निम्मी को ओढ़ा दिया. इस बीच अनूप भाग गया. ‘‘रो मत बेटी,’’ मास्टर साहब उसे दिलासा दे रहे थे. निम्मी रोतेरोते मास्टर साहब की गोद में ही सो गई. मास्टर साहब ने अपनी बेटी को बुला कर निम्मी की देखभाल करने को कहा और चले गए. अगले दिन अमर घर आ गया, तो वह बहुत खुश थी. अमर ने देखा कि गेहूं गोदाम में भरे हुए हैं, तो उस ने पूछा, ‘‘निम्मी, ये गेहूं किस ने काटे?’’ निम्मी ने उत्तर देते हुए कहा, ‘‘पुजारी और धनी सेठ ने.’’ अमर सम?ा रहा था कि निम्मी कुछ कहने की कोशिश कर रही है, पर कुछ कह नहीं पा रही. कुछ दिन बीते ही थे कि अमर की तबीयत खराब हो गई. उसे लोगों की मदद से अस्पताल ले जाया गया, जहां उस के टैस्ट चल रहे थे… इधर निम्मी भी एक रोज चक्कर खा कर गिर पड़ी. पड़ोस की सुधा उसे अस्पताल ले गई. डाक्टर ने तुरंत उसे दवा दे कर कहा कि घबराने की बात नहीं है…

कुछ कमजोरी है. उधर, अमर के टैस्ट की रिपोर्ट आ चुकी थी. उसे डाक्टर ने एचआईवी पौजिटिव की पुष्टि की, तो उस के पैरों के तले से जमीन ही निकल गई. उसे याद नहीं आ रहा था कि उस ने ऐसा क्या किया. वह सोचसोच कर परेशान था. वह जैसेतैसे घर आया, तो निम्मी की तबीयत और ज्यादा खराब हो रही थी. उस की शुगर भी बढ़ रही थी. अमर ने उसे तुरंत दवा दी, तो थोड़ा आराम हुआ. इस तरह दिन बीत रहे थे. अमर निम्मी को कैसे बताए, यह सोच रहा था. उधर निम्मी परेशान थी कि कैसे बताए कि कैसे उस के जिस्म के टुकड़ेटुकड़े हुए. अमर ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘निम्मी, तुम मु?ा पर भरोसा करती हो न?’’ ‘‘यह पूछने की जरूरत है अमर?’’ ‘‘तो सुनो… मेरी एचआईवी पौजिटिव की रिपोर्ट आई है,’’ अमर ने एक ही सांस में कह दिया, ‘‘पर, यकीन मानो कि मेरा किसी से कोई संबंध नहीं है. मु?ो याद आ रहा है, जब पिछली बार मैं शहर काम से गया था, तो एक सैलून में मैं ने अपनी दाढ़ी बनवाई थी,

क्योंकि मु?ो मीटिंग के लिए देर हो रही थी, इसलिए मैं ने ही नाई को जल्दी शेव करने को कहा था… शायद उस ने ब्लेड बदला नहीं था,’’ गहरी सांस लेते हुए अमर ने कहा. निम्मी चुप थी, बस आंखों से आंसू बहाए जा रही थी. कुछ देर बाद अचानक उस के चेहरे पर एक जीत की जैसी मुसकान दौड़ गई. अमर अपनी बीमारी के चलते ही अधमरा हुआ जा रहा था और निम्मी मुसकरा रही थी. निम्मी बोली, ‘‘अभी चलो, मु?ो भी यह टैस्ट करवाना है.’’ ‘‘कल बुलाया है तुम को डाक्टर ने,’’ अमर ने कहा. दोनों के लिए पूरी रात काटनी मुश्किल हो रही थी. निम्मी ने अमर को सब बता दिया था. दोनों बस रोए जा रहे थे. अगले दिन निम्मी का भी टैस्ट किया गया, तो वह भी एचआईवी पौजिटिव निकली. निम्मी दुखी होने के बजाय खुश थी. पर दोनों के लिए जीना आसान न था. दोनों अपनी मजबूरियों पर रो रहे थे. जैसेतैसे संभलते हुए दोनों घर आए और एकदूसरे को दिलासा दे ही रहे थे कि अनूप, धनी सेठ, पुजारी सब निम्मी के घर आए और अमर का हालचाल पूछने लगे. इन सब को निम्मी ने ही फोन कर के बुलाया था.

पहले तो अमर को बहुत गुस्सा आ रहा था, पर जैसेतैसे संभल कर उस ने सब को निम्मी का साथ देने के लिए धन्यवाद दिया और निम्मी से चाय बनाने को कहा. अमर और निम्मी को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, पर दोनों ने खुद को संभाल लिया. ‘‘आप लोगों का मैं जितना भी धन्यवाद करूं कम ही होगा,’’ अमर ने कहा, तो धनी सेठ ने कहा, ‘‘इस में धन्यवाद कैसा अमर साहब… हम अगर एकदूसरे के काम नहीं आएंगे तो और कौन आएगा.’’ ‘‘जी, कह तो आप सही रहे हैं… पर आप तो हमारे दुखसुख के सचमुच भागीदार हैं और इतना ही नहीं हमारी बीमारी के भी…’’ एक कुटिल हंसी के साथ अमर ने कहा. ‘‘हम कुछ सम?ो नहीं… बीमारी के भागीदार कैसे?’’ पुजारी ने चौंकते हुए पूछा. वह घबरा गया था. अमर ने राज खोला, तो सब के सब सकपका कर रह गए और एकदूसरे का मुंह ताकने लगे. उधर निम्मी और अमर चैन की सांस ले रहे थे, एकदूसरे को हिम्मत दे रहे थे और कुदरत के इस न्यायअन्याय को सम?ाने की कोशिश कर रहे थे.

 

फ्रीज द एग : जब चाहें बच्चा पाएं

कर्नाटक की रहने वाली 35 वर्षीया एक महिला, जो दोनों पैरों से पोलियो की शिकार थी, उस ने सरकारी सेवा में कार्यरत एक पुरुष से शादी की. वह मां बनना चाहती थी, लेकिन कोई उपाय सूझ नहीं रहा था. ऐसे में किसी ने उसे पद्मश्री डा. कामिनी राव के बारे में बताया, जो फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट हैं. वहां जाने पर उसे आईवीएफ प्रौसेस से बच्चा मिला. लेकिन डा. कामिनी ने उस के अंडे को ले कर उस के पति के स्पर्म के साथ उसे डैवलप किया. उस की जांच की और उसी की बच्चेदानी में उसे रोपित कर दिया. 9 महीने के बाद उसे स्वस्थ बच्चा मिला. उस महिला की खुशी का ठिकाना नहीं था.

बैंगलुरु के मिलन फर्टिलिटी की फाउंडर डाइरैक्टर, डा. कामिनी राव भारत की पहली ऐसी महिला डाक्टर हैं जिन्होंने ‘ऐसिस्टैड रिप्रौडक्शन ट्रीटमैंट’ के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए उन्हें साल 2014 में पद्मश्री की उपाधि से भी नवाजा गया है. उन्होंने ही दक्षिण भारत में पहले ‘सीमन बैंक’ की स्थापना की थी.

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27 साल से इस क्षेत्र में काम कर रहीं डा. कामिनी के अनुसार, कोई भी महिला बांझ नहीं होती. समाज में यह एक टैबू है, जिस से कई महिलाओं को गुजरना पड़ता है. कई महिलाओं को पति या परिवार वाले बांझ समझ कर घर से निकाल देते हैं. उस महिला को अगर सही इलाज मिले तो उसे बच्चा हो सकता है.

इस क्षेत्र में आने की वजह पूछे जाने पर वे बताती हैं कि विदेश में कई महिलाएं आ कर कहती थीं कि मुझे भारत लौट जाना चाहिए, क्योंकि वहां महिलाओं को बच्चा न होने पर प्रताड़ना सहनी पड़ती है. बस यही वह पल था जब मैं ने विदेश छोड़ कर भारत आने का फैसला कर लिया. भारत आ कर मैं ने ‘फ्रीज द एग’ नामक एक मुहिम चलाई है, जिस के अंतर्गत महिलाएं कम उम्र में भी एग्स फ्रीज कर अपनी आजादी का फायदा उठा सकती हैं और जब चाहे बच्चा पा सकती हैं. दरअसल, ऐसा कर मैं हर घर में बच्चे की किलकारियां सुनना चाहती हूं.

कई फायदे

डा. कामिनी कहती हैं, ‘‘आज की अधिकतर महिलाएं जो अपने कैरियर को ले कर जागरूक हैं, वे देरी से शादियां करती हैं और अब मां बनना चाहती हैं तो उन्हें आईवीएफ का सहारा लेना पड़ता है. जिस में उन्हें एग डोनर का सहारा लेना पड़ता है. इस पद्घति में अगर उन्होंने 20 से 30 की उम्र में एग्स को फ्रीज किया है, तो एग्स की क्वालिटी अच्छी होती है. ये एग्स काफी सालों तक जिंदा रखे जा सकते हैं. इस के बाद वे उन एग्स का प्रयोग कर स्वस्थ बच्चा पा सकती हैं.’’

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भ्रूण तैयार करने की पद्घति आसान नहीं होती. जब भी कोई महिला बच्चा चाहे तब फ्रीज किए गए अंडे को लैब में सामान्य तापमान में ला कर उस में स्पर्म को मिला कर 3 से 5 दिन में भ्रूण तैयार किया जाता है. फिर उसे ‘फीटस’ में डाल दिया जाता है.

2 या 3 हफ्ते के बाद उस की प्रैगनैंसी टैस्ट की जाती है. इस काम के लिए ऐक्सपर्ट हाथों की जरूरत होती है ताकि एक बार में ही प्रैगनैंसी हो जाए.

डा. कामिनी राव बताती हैं कि एग फ्रीजिंग का मूल्य पहले 6 महीने का क्व30 हजार है जबकि सालाना क्व1,000 देने पड़ते हैं. लेकिन अगर किसी महिला ने 40 साल की उम्र में भी मां बनने का निर्णय लिया है, तो वह 25 साल की उम्र में फ्रीज किए गए अंडे से मां बनेगी. महिला की उम्र भले ही 40 हो लेकिन उस के एग की उम्र 25 होगी.

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वरदान से कम नहीं

मुंबई के वर्ल्ड औफ वूमन की आईवीएफ ऐक्सपर्ट, डा. बंदिता सिन्हा कहती हैं कि ‘एग फ्रीजिंग’ की प्रौसेसकैरियर ओरिएंटेड और किसी बीमारी से पीडि़त महिलाओं के लिए किसी वरदान से कम नहीं. लेकिन महिलाएं इस तकनीक को और अपने पैसे को बरबाद न करें. जरूरत के अनुसार ही इसे अपनाएं, क्योंकि यह कृत्रिम तरीका है.

नैचुरल गर्भधारण की पद्घति हमेशा से ही अच्छी होती है. इस प्रक्रिया में अंडे को निकाल कर फ्रीज करने के लिए इन्वैंसिव पद्घति का प्रयोग कर कम तापमान में सालों तक प्रिसर्व किया जाता है, जो आसान नहीं होता. यह अधिकतर हाई प्रोफाइल वर्किंग महिलाएं और हीरोइनें ही अधिक करती हैं, क्योंकि कैरियर की वजह से उन की शादियां देरी से होती हैं और वे जल्दी मां नहीं बन सकतीं, इसलिए उन का यह फैसला उन के लिए सही रहता है. लेकिन एग फ्रीजिंग के लिए भी महिलाओं को यह निर्णय जल्द से जल्द लेनी चाहिए, क्योंकि ‘यंग एडल्ट’ के एग्स की क्वालिटी अधिक अच्छी रहती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ इस की क्वालिटी घटती जाती है.

यह प्रौसेस अधिकतर बड़े शहरों में ही उपलब्ध है, क्योंकि इस के लिए उत्तम क्वालिटी की लैब और ऐक्सपर्ट की जरूरत होती है. एग फ्रीजिंग से पहले निम्न जांच जरूरी हैं:

फर्टिलिटी लेवल, जनरल हैल्थ, इन्फैक्शन टैस्ट, जैनेटिक कोई डिसऔर्डर है या नहीं, कंपलीट फैमिली ब्लड टैस्ट आदि किसी फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट से की जानी चाहिए.

इस तरह की आधुनिक तकनीक की सुविधा से किसी भी महिला के लिए आज मां बनना किसी भी उम्र में आसान हो गया है. लेकिन इस का प्रयोग समय रहते करना आवश्यक है ताकि मां बनने के बाद बच्चे की सही परवरिश की जा सके.

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