Download App

भारत की तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी ने रचा इतिहास

भारत की तेज गेंदबाज 35 वर्षीय झूलन गोस्वामी ने अपने एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कैरियर में एक नया मुकाम हासिल कर लिया. एकदिवसीय मैचों में 200 विकेट पूरे करते ही महिला क्रिकेट के इतिहास में झूलन का नाम जुड़ गया. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहला विकेट लेते ही ऐसा रिकौर्ड अपने नाम कर लिया जो आज तक कोई भी महिला क्रिकेटर नहीं बना पाई है. झूलन ने 166वें मैच में 200 विकेट लेने का कारनामा दिखाया.

कोलकाता में जन्मी झूलन ने बड़ी मुश्किल से क्रिकेटर बनने तक का सफर तय किया. झूलन की गेंदबाजी की तारीफ हर कोई करता है. वे कई बार बल्ले से भी टीम के लिए अहम रन बना चुकी हैं.

एक आम बंगाली परिवार की झूलन शुरू से ही लड़कों की तरह रहती थी. बचपन में क्रिकेट मैच देखा तो ठान लिया कि क्रिकेटर ही बनना है, लेकिन क्रिकेटर बनना आसान काम नहीं होता खासकर लड़कियों के लिए तो और भी मुश्किल होता है. झूलन ट्रेनिंग के लिए क्लब जाती थीं जो उन के घर से 80 किलोमीटर दूर था. कभी ट्रेन छूट जाती तो कभी कोई और समस्या सामने खड़ी हो जाती यानी हर रोज 5-6 घंटे यात्रा कर मैदान में पसीना बहाना आसान काम नहीं था, पर मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती. आज झूलन ने जो मुकाम हासिल किया है, वह उस की मेहनत का ही नतीजा है.

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का गैरसंवैधानिक उपदेश

भारतीय जनता पार्टी के विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री और यहां तक कि प्रधानमंत्री भी सामाजिक व पारिवारिक मामलों में उपदेश देना अपना कर्तव्य ही नहीं, अपना अधिकार भी मानते हैं. यह उन की गलती नहीं, उन की आदत है जो हिंदू पाखंडभरी दुकानदारी की देन है जिस में पंडेपुजारी न केवल ईश्वर के एजेंट बन कर धर्म कर वसूलते हैं, बल्कि जीवन कैसे जिया जाए और क्या वर्जित है, के उपदेश भी वे देते रहते हैं.

प्रधानमंत्री का पकौड़े बेचने को सही, आदर्श व कमाऊ व्यवसाय घोषित करने की कड़ी में गोवा के मुख्यमंत्री ने बयान दे डाला कि लड़कियों का बीयर पीना चिंता की बात है. अगर मनोहर पर्रिकर बीयर और दूसरी शराबों को सभी के पीने पर आपत्ति कर रहे होते तो बात दूसरी थी पर उन का केवल लड़कियों के पीने पर आपत्ति करना भाजपाई मानसिकता है. इस मानसिकता के तहत हम मर्द चाहे जो गुनाह कर लें, औरतों को सीमा और संयम में ही रहना चाहिए.

इस पर उदार विचारों वाली औरतों का आपत्ति करना सही ही है. शराब किसी के लिए भी सही नहीं है. शराब की शिकार औरतें ही ज्यादा होती हैं. शराब पीने पर रोकटोक मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र में नहीं आता. उन की सरकार गोवा में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दे, न औरतें पिएं न आदमी. ऐसा करने से स्वास्थ्य के सुखद परिणाम आएंगे जबकि राजस्व की हानि होगी. सिर्फ औरतों के लिए उसे वर्जित माना जाए, यह किसी को स्वीकार्य नहीं होगा. ऐसा उपदेश देना परिवार का काम है. जो सरकार बीयर के टैक्स पर फलफूल रही है उसे, अंदर से भेडि़या हो कर, गाय की खाल पहन कर, पाबंदी लगाने का हक किस ने दिया?

वैसे यह चिंता की बात है कि सिगरेट की तरह शराब को भी आरतों को पिला कर जम कर व्यापार बढ़ाया जा रहा है. अगर देश के कर्णधार चिंतित हैं तो वे स्त्रीपुरुष का भेदभाव छोड़ कर शराब को खुलेआम बेचने को तो प्रतिबंधित कर ही दें और इस से होने वाली कमाई को भूल जाएं.

चोरी, डकैती, लूट कभी किसी जमाने में राजाओं के लिए टैक्स वसूलने का अच्छा साधन होते थे. वे अघोषित ठेके देते थे ताकि उन्हें टैक्स वसूलने वाले न नियुक्त करने पड़ें. अपने समय में अंगरेजों ने लगानरूपी आपराधिक टैक्स वसूलने के लिए जमींदारी प्रथा लागू की थी. आज वे दोनों स्रोत गैरकानूनी, गैरसंवैधानिक हैं. इसी तरह शराब पर टैक्स असंवैधानिक करने का हक आज के भगवा शासकों के पास है. हिम्मत है तो वे ऐसा करें लेकिन शराब के बहाने वे औरतों को निचला स्थान बारबार याद दिलाने की चेष्टा न करें.

हमलावर तेजस्वी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मेहरबानी से इस साल जो 3 पूर्व भ्रष्ट मुख्यमंत्री जेल में होली मनाएंगे, लालू प्रसाद यादव उन में से एक हैं जो अब बेफिक्र हो चले हैं क्योंकि उन का बेटा तेजस्वी चाचा नीतीश कुमार की नाक में यथासंभव दम कर रहा है. बिहार में 11 मार्च को 1 लोकसभा और 2 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं जिन पर जनता दल (युनाइटेड) चुनाव न लड़ने की घोषणा कर चुका है यानी इन सीटों पर जोरआजमाइश अब राजद और भाजपा के बीच होगी.

तेजस्वी ने यह कह कर नीतीश की दुखती रग पर हाथ क्या, पूरा पंजा ही रख दिया है कि वे पूरी तरह भाजपा के सामने नतमस्तक हो गए हैं और एक पल भी बिना सत्ता के नहीं रह सकते, मुमकिन है जदयू का विलय ही भाजपा में हो जाए.

ऐसा हो सकता है क्योंकि इन दिनों नीतीश हर मुद्दे पर मोदी की हां में हां कुछ इस तरह मिलाते हैं कि कई दफा तो अरुण जेटली और अमित शाह भी ठगे से रह जाते हैं. वन नैशन वन इलैक्शन की बात प्रधानमंत्री के मुंह से पूरी तरह निकली भी न थी कि नीतीश ने हां में हां मिला दी. बिहार के लोग नीतीश के इस हनुमानस्वरूप को हजम नहीं कर पा रहे हैं.

अब तो उपचुनाव के नतीजे ही तय करेंगे कि तेजस्वी की बात का कितना असर हुआ.

कांचा इलैया की तुलना

दलित लेखक और चिंतक कांचा इलैया को आएदिन कट्टरपंथियों की धमकियां मिलती रहती हैं जिन का सार यह रहता है कि सुधर जाओ, नहीं तो…धमकी कोरी गीदड़ भभकी न लगे, इसलिए उन पर छोटेमोटे हमले भी यदाकदा होते रहते हैं. पिछले साल अक्तूबर में उन्हें विजयवाड़ा में पुलिस ने ही नजरबंद कर लिया था. कांचा पर आरोप हैं कि वे दलितों की भावनाओं को भड़काते हैं और सवर्णों के खिलाफ जहर उगलते रहते हैं.

इस विवादित लेखक ने अब दलितों की तुलना भैंसों से कर के एक नया फसाद खड़ा कर दिया है. उन का कहना है कि भैंस ज्यादा दूध देती है फिर भी उपेक्षित है क्योंकि गुणगान गाय का होता है, ठीक यही हाल दलितों का है. वे मेहनत करते हैं और मलाई ऊंची जाति वाले खा जाते हैं. देखा जाए तो बात नई नहीं है लेकिन चूंकि कांचा इलैया ने कही है, इसलिए अहम हो गई है.

अब इस के पुरस्कारस्वरूप कोई पद्म खिताब तो उन्हें मिलने से रहा, लेकिन नई धमकी या नए हमले के लिए उन्हें फिर तैयार रहना चाहिए.

नाक का सवाल

धीमी हंसी को मुसकराहट और तेज हंसी को अट्टहास कहते हैं. रामानंद सागर के सीरियल ‘रामायण’ में राक्षस जब अट्टहास करते थे तो टीवी के स्पीकर तक सहम जाते थे. संसद में कांग्रेस नेत्री रेणुका चौधरी न मुसकराई थीं और न ही उन्होंने अट्टहास किया था, वे तो सिर्फ हंसी थीं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इतनी नागवार गुजरी कि उन्हें रावण की बहन शूर्पणखा याद हो आई. इस याद को उन्होंने संसदीय किया तो महाभारत छिड़ गया.

देश तो है ही, पर अब संसद भी पौराणिकमय हो चली है. कभीकभी तो भ्रम हो आता है कि कहीं यह सचमुच का राम दरबार तो नहीं जहां कोई महिला हंसने की भी गुस्ताखी करती है तो बेवजह उस की नाक अहिंसक तरीके से काट ली जाती है.

जोगीजी ढूंढ़ के ला दो

होली का असली रंग इस बार उत्तर प्रदेश के मथुरा में दिखेगा जहां योगी सरकार होली खेलेगी. द्वापर के कृष्ण की होली की आज भी मिसाल दी जाती है. अब योगी की होली की दी जाने लगेगी. इस वर्जनारहित त्योहार का राजनीतिकरण तो पंडित नेहरू के जमाने में ही हो चुका था पर अब बात और है. मथुरा की होली में  अब केसरिया रंग ज्यादा दिखेगा.

मथुरा, वृंदावन और बरसाने की होली की कल्पना बिना राधा के करने में कुछकुछ अधूरा सा लगता है. हरेक हुरियारे की अपनी एक राधा होती है और जिन की नहीं होती, वे सालों पहले प्रदर्शित राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘नदिया के पार’ का वह गाना सुन कर ही तसल्ली कर लेते हैं जो सचिन और साधना सिंह पर फिल्माया गया था. उक्त गाने के बोल थे, ‘‘जोगीजी धीरेधीरे…’’

लव इन सिक्सटीज : क्या करें क्या नहीं, इस के सलीके जान लें

आधी से ज्यादा उम्र बीत जाने के बाद जब जीवन में किसी नए साथी के रूप में स्त्री या पुरुष का प्रवेश होता है तो एक नए अध्याय की शुरुआत होती है. इस नए अध्याय को पढ़ने की जिम्मेदारी उठाना बड़ा मुश्किल काम है.

आइए ऐसे नए रिश्ते जो खासकर अधिक उम्र में पनपें उन की साजसंभाल, जोखिम, परख और सावधानियों पर चर्चा करें ताकि जब भी उम्र के कई पड़ाव पार कर आप ऐसे किसी नए रिश्ते को संग ले चलने का निर्णय लें, तो खतरों को भांप सकें, जिद और मानसिक असंतुलन की स्थिति में नहीं, बल्कि वास्तविकता की समझ विकसित कर के.

स्त्रीपुरुष की दोस्ती की कुछ मुख्य बातें:

– स्त्रीपुरुष की दोस्ती में बस दोस्त का रिश्ता बहुत कठिन है. इस के अंतत: रोमांस में तबदील होने की पूरी संभावना रहती है.

– स्त्रीपुरुष की दोस्ती अगर सिर्फ सामान्य दोस्ती रह पाए तो यह बहुत लंबी भी चल सकती है, लेकिन ऐसी दोस्ती में जब रोमांस आ जाता है तब दोस्ती की उम्र कम हो जाती है. बीच में साथ टूटने का अंदेशा रहता है.

उम्रदराज से क्रौस दोस्ती यानी विपरीत सैक्स से दोस्ती कब और किन हालात में हो सकती है और ऐसी दोस्ती के क्या कारक और जोखिम हैं इस पर काफी रिसर्च हुई है.

जब हो जाए कम उम्र के लड़के को अधिक उम्र की स्त्री से लगाव: कई बार कम उम्र के लड़कों की मानसिक स्थिति काफी परिपक्व रहती है और वे अपनी ही तरह किसी मानसिक रूप से परिपक्व स्त्री की दोस्ती चाहते हैं. ऐसे में जब उन्हें अपने से काफी अधिक उम्र की ऐसी स्त्री मिलती है, जो रुचि, व्यवहार, सोचसमझ और दृष्टिकोण में उन के साथ समानता रखे, तो उन की दोस्ती मजबूत हो जाती है. अगर बाद में ऐसे रिश्ते में रोमांस या शादी का रंग भर जाए तो आश्चर्य नहीं.

कम उम्र की स्त्री का अधिक उम्र के पुरुषों के प्रति लगाव और इस के कारण: इस स्थिति में कम उम्र की स्त्रियां अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति यहां तक कि पिता की उम्र के व्यक्ति से भी मानसिक, शारीरिक आधार पर जुड़ने की कामना रखती हैं. साइकोलौजिकल आधार पर देखा जाए तो ऐसा पुरुष उम्र की परिपक्वता के साथसाथ सैक्सअपील से भी भरपूर होता है. उसे खुद को प्रस्तुत करने का तरीका आता है और वह अपनी उम्र में नहीं, बल्कि व्यक्तित्व में जीता है.

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे पुरुषों का अपनी बढ़ती उम्र की मजबूरी या असुविधाओं से ज्यादा ध्यान अपने व्यक्तित्व के गुणों को निखारने और प्रस्तुत करने पर होता है. ऐसे में उन के साथ मिलनेजुलने वाली स्त्री खुद उन पर ध्यान देती है, उन के संरक्षण में जाने और उन से जुड़ने का ख्वाब देखती है.

ऐसे पुरुषों का जीनगत प्रभाव भी काफी अच्छा रहता है. ये अपने कर्म, विचार और सामर्थ्य में शक्तिशाली, अपने परिवार की पूरी देखभाल करने वाले या फिर अपने ऊंचे पद और कर्मजीवन को बखूबी निभाने वाले होते हैं. ऐसे में कम उम्र की स्त्रियां इन पर समर्पित हो कर तृप्त होना चाहती हैं.

कई मामलों में पति की अवहेलना भी स्त्रियों के इन कर्मठ और रोमांटिक पुरुषों के प्रति आकर्षण का कारण बनती है. इन के सान्निध्य में अतृप्त स्त्रियां आत्मविश्वास वापस पाती हैं. इन पुरुषों के द्वारा की गई प्रशंसा, मदद इन्हें जीने की राह भी दिखा सकती है.

60 या इस के बाद की उम्र वाले पुरुषों का कम उम्र की स्त्रियों के प्रति झुकाव: ऐसी स्थिति आज के समाज में आम है. काम और व्यवसाय के सिलसिले में अधिक उम्र वाले पुरुषों से कम उम्र की स्त्रियों का नजदीकी वास्ता जब लगातार पड़े, तो पुरुष का इन स्त्रियों के प्रति हमदर्दी, अपनापन और रोमांस स्वाभाविक है.

ऐसे रिश्तों में पुरुष के व्यक्तित्व का खासा प्रभाव पड़ता है कि कम उम्र की स्त्रियों के साथ उन का आपसी संबंध कैसा होगा. दूसरे, पुरुष का स्वभाव और जुड़ने वाली स्त्री से पुरुष की अपेक्षाएं दोनों तय होती हैं उस पुरुष की बैकग्राउंड से. कैसे, आइए जानें:

उम्रदराज कामुक पुरुष और उस की स्त्री से अपेक्षाएं: ऐसे पुरुष स्वभाव से स्त्रीशरीर कामी होते हैं. ये अपनी कामनापूर्ति के लिए नाखुश रहने को ढाल बना कर स्त्री के भोग का बहाना ढूंढ़ ही लेते हैं. इस से इन्हें समाज व्यवस्था या न्यायव्यवस्था को न मानने के दोष से उबरने का सहारा मिलता है. इस तरह अपराधभावना से बच कर सिर्फ अपने स्वार्थ को तवज्जो देते हैं.

भोगी पुरुषों की पहचान और स्त्री की इन से खुद की सुरक्षा: यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण मुद्दा है. नौकरी हो या व्यवसाय या फिर कैरियर का कोई भी पहलु 20 से 40 साल की महिला को ज्यादातर उम्रदराज पुरुषों के सान्निध्य में काम करना पड़ता है.

ऐसी स्त्रियां अपनी बातों, विचारों, व्यवहार और गुणों की वजह से अकसर सब के आकर्षण का केंद्र होती हैं. स्वाभाविक है कि उम्रदराज पुरुष ऐसी स्त्रियों का सान्निध्य ज्यादा चाहेंगे. मगर बात तब बिगड़ती है जब ये दोस्ती के नाम पर स्त्रियों को लुभा कर उन्हें अपने चंगुल में फंसाते हैं. जो स्त्रियां जानबूझ कर अपने रिस्क पर इन रिश्तों में आगे बढ़ती हैं उन के लिए यह चर्चा भले ही काम की न हो, लेकिन उन्हें आगाह करना जरूरी है जो ऐसे पुरुषों की दोस्ती को बिना समझे ही अपना लेती हैं और बाद में उन्हें न पीछे लौटने का रास्ता मिलता है, न आगे जाने का. इन्हीं शरीरकामी पुरुषों की मानसिकता की कुछ झलकियां हैं, जिन्हें जान लेने से ऐसे पुरुषों की पहचान आसान हो जाएगी:

– ऐसे पुरुष शुरुआती दौर में भावनात्मक पहल करते ही पाए जाते हैं.

– जुड़ने वाली स्त्री की हर जरूरत का खयाल रखना चाहते हैं.

– स्त्री के परिवार में पति या निकट के लोगों में खामियां ढूंढ़ कर वे खुद भला बन कर स्त्री पर छा जाना चाहते हैं.

– काम के क्षेत्र में अतिरिक्त सुविधा देते हैं.

– गाहेबगाहे स्त्री शरीर का स्पर्श करते हैं, लेकिन उसे केयर का रूप देते हैं.

– झूठ बोलने और अभिनय में माहिर होते हैं.

– शिकार को पूरा वक्त देते हैं, चाशनी में उतारने की जल्दी नहीं करते.

उम्रदराज पुरुषों का कम उम्र की स्त्री से भावनात्मक संबंध: अधिक उम्र वाले ऐसे पुरुष भी होते हैं जो कम उम्र की समझदार स्त्री से दोस्ती का भावनात्मक संपर्क बनाए रखना चाहते हैं. ऐसे पुरुष ऐसी स्त्री के साथ दोस्ती रखना चाहते हैं, जो विचारों, स्वभाव और अनुभूति में उन के समान हो.

अगर ऐसे संबंध सहज हों, विचारों के आदानप्रदान से ले कर स्वस्थ मानसिकता तक दर्शाते हों और दोनों के पारिवारिक संबंधों को नष्ट न करते हों, तो यह दोस्ती ठीक है.

भावनात्मक सहारे ढूंढ़ने वाले पुरुषों की पारिवारिक स्थिति: ऐसे पुरुष घर में अकसर पत्नी को जीवनसंगिनी का वह मोल नहीं दे पाते जिस की पत्नी को अपेक्षा रहती है. ऐसे व्यक्ति पारिवारिक जिम्मेदारियां तो निभाते हैं और पत्नी की जरूरतों को भी पूरा करते हैं, लेकिन पत्नी को खुद के बराबर नहीं समझते.

हो सकता है, पत्नी में भी उन का सहारा बनने की योग्यता न हो, घरपरिवार में कई तरह के क्लैश हों या पुरुष के कामकाजी जीवन की मुश्किलों को उस की पत्नी न समझती हो या फिर उस पुरुष की अपेक्षाएं इतनी हों कि उन पर खरा उतरना उस की पत्नी के लिए संभव न हो.

जो भी कारण रहे, अगर बाहरी स्त्रीपुरुष में संबंध बन ही गए हों, तो ‘लव इन सिक्सटीज’ के लिए कुछ मुख्य बातें जो स्त्रीपुरुष दोनों पर ही लागू होंगी:

– ऐसे साझा संबंध निभाते वक्त सब से पहले संबंध का प्रकार अवश्य तय कर लें. इस पर अमल दोनों ही करें. मसलन, यह संबंध सिर्फ दोस्ती का है और दोस्ती ही रहेगी या इस संबंध को आगे किसी भी मोड़ तक ले जाने को दोनों स्वच्छंद हैं.

– दोनों अपनी दोस्ती को समाजपरिवार से छिपा कर रखेंगे या जाहिर करेंगे, यह भी दोनों तय कर लें.

– दोनों ही एकदूसरे को कोई छोटामोटा गिफ्ट देने तक ही सीमित रहें. बड़ा गिफ्ट देने से बचें. इस से परिवार विद्रोह पर उतर सकता है और आप बेमतलब के झंझट में फंस सकते हैं.

– आपसी रिश्ते को पारदर्शी रखें और सच के साथ जुड़े रहें. इस से दोस्त को आप की सीमाओं का भान रहेगा और आप से उस की अपेक्षाएं कम रहेंगी.

मंदबुद्धि बच्चे : उपेक्षा नहीं तराशिए प्यार से

छत्तीसगढ़ का बाल जीवन ज्योति बालगृह समाज व परिवार से उपेक्षित बच्चों का जीवन संवारने का प्रशंसनीय काम कर रहा है.

मानसिक रूप से विकलांग मीना ऐसी बच्ची है जो अपने घर में आने वाले हर परिचित, अपरिचित व्यक्ति से लिपटचिपट जाती है. वह उस शख्स से तब तक लिपटी रहती है जब तक वह आगंतुक वहां रहता है. दरअसल, इस तरह से मीना अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए हर आने वाले से कहती है कि मुझे प्यार कीजिए, मुझे प्यार से सहलाइए.

मीना जैसे न जाने कितने बच्चे समाज व परिवार की उपेक्षा के शिकार होते हैं. यही वजह है कि ये प्यार के लिए बेहद तरसते हैं. वे प्यार की चाह में हर किसी को हसरतभरी निगाह से ताकते हैं, उन से लिपटते हैं, उन्हें छूते हैं. इस एहसास से कि शायद उन्हें भी बदले में भरपूर स्नेह और अपनापन मिले.

छत्तीसगढ़ के रायपुर की एक जगह बाल जीवन ज्योति बालगृह ऐसे बच्चों की शरणस्थली है. मीना यहीं रहती है. मीना जैसे करीब 23 बच्चों की मानसिक विकलांगता को यहां कम करने का प्रयास किया जा रहा है.

ऐसे बच्चों को पिछले 9 वर्षों से प्रशिक्षित कर रही सीता साहू कहती हैं कि ये बच्चे कठोर भाषा नहीं, सिर्फ और सिर्फ प्यार की भाषा समझते हैं. प्रेम से ही इन्हें काबू कर कुछ सिखाया व पढ़ाया जा सकता है.

कठिनाइयां कम नहीं

बाल जीवन ज्योति संस्था की सुप्रिटैंडैंट संगीता जग्गी कहती हैं, ‘‘ऐसे बच्चों, खासतौर से लड़कियों, की परवरिश में कई तरह की कठिनाइयां आती हैं. लड़कियों को पीरियड के समय कुछ समझ नहीं आता. उन के कपड़े खराब हो जाते हैं. इन की सारी चीजों को केयरटेकर को समझना पड़ता है और उन्हें संभालना पड़ता है. लड़कियों की सुरक्षा पर हमें खास ध्यान रखना पड़ता है.’’

ऐसे बच्चों को संभालना, उन्हें दैनिक क्रियाकलाप सिखाना आसान नहीं है. इस के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत होती है. ये बच्चे सुखदुख को महसूस करते हैं, लेकिन गुस्सा ज्यादा करते हैं. ये अपने कपड़े फाड़ डालते हैं, एकदूसरे से मारपीट करते हैं और रोकटोक करने पर गुर्राते हैं. कुल मिला कर इन्हें सहीगलत की पहचान नहीं होती.

छत्तीसगढ़ परिषद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी भवानी शंकर तिवारी कहते हैं, ‘‘ऐसे बच्चे रोज एक ही चेहरा देखते हैं. जब नए चेहरे उन के सामने आते हैं, तो उन्हें बेहद खुशी मिलती है.

‘‘लोग अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ऐसे बच्चों के साथ समय बिताएं, यह जरूरी है. ऐसे बच्चे अपने दैनिक क्रियाकलाप ठीक से कर लें, यही इन की शिक्षा है.’’

ऐसे बच्चे कठिनाइयों और तकलीफों में जीवन जीने वाले बच्चे होते हैं. गरीब परिवारों में ऐसे बच्चों की आजीविका चलाना कठिन होता है. छत्तीसगढ़ शासन ऐसे बच्चों के विकास के लिए प्रयास कर रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. इस के लिए समाज को भी आगे आना होगा

सुशील भी इन बच्चों में एक है. इस के साथ मुश्किल यह है कि यह 2 लोगों को हंस कर बातें करते नहीं देख सकता. जहां 2 लोगों को ऐसा करते देखता है, उसे गुस्सा आता है और वह उन्हें मारने को दौड़ पड़ता है.

अभिभावकों की स्थिति

रायपुर के श्यामलाल और शारदा ऐसे दंपती हैं जिन की पहली संतान रीना मानसिक विकलांगता की शिकार है. दोढाई वर्षों बाद जब ये इस सच्चाई से रूबरू हुए तो उन्हें काफी तकलीफ हुई.

शारदा ने हिम्मत नहीं हारी. वह उन संस्थानों में गई जहां ऐसे बच्चों का शिक्षण प्रशिक्षण होता है. रायपुर के आकांक्षा स्कूल से इन्हें बहुत संबल मिला. खुद भी इन्होंने घर में ही दैनिक क्रियाकलाप सिखाने का प्रयास जारी रखा. शारदा बताती है, ‘‘रीता को सही तरीके से आटा गूंधना सिखाने में उन्हें एक वर्ष का समय लगा.’’ शारदा के अनुसार, ‘‘ऐसे बच्चों को सिखाने के लिए, उन्हें किसी मुकाम तक पहुंचाने के लिए बहुत हिम्मत और धैर्य की जरूरत होती है.’’

महक और मोहन भाईबहन हैं. मानसिक विकलांगता के चलते इन के मांबाप को कई परेशानियों से गुजरना पड़ा. ये बच्चे एक जगह बैठ कर खाना नहीं खाते, किसी अन्य बच्चे के साथ खेलनाकूदना पसंद नहीं करते. कोई इन्हें पागल कहता है तो कोई बंदर. यह सब देखसुन कर मातापिता को बड़ी तकलीफ होती है. ऐसी स्थिति में मातापिता इन बच्चों को संस्था में रखना ठीक समझते हैं. यहां इन की बेहतर देखभाल होती है.

क्यों होता है ऐसा

ऐसे बच्चों पर रिसर्च कर चुकीं डा. सिम्मी श्रीवास्तव बताती हैं कि भारत में 2 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं. ऐेसे बच्चों के पैदा होने के पीछे कई वजहें होती हैं, जैसे गर्भ को क्षति पहुंचना, कुपोषण, शराब का सेवन, बिना डाक्टर की सलाह के दवा लेना, डिप्रैशन, कम उम्र में शादी होना आदि.

बाल रोग विशेषज्ञ मानते हैं, ‘‘ऐसे बच्चों की पैदाइश के पीछे कई कारण होते हैं. जैनेटिक दोष, जींस में खराबी, रेडिएशन की इंजुरी आदि के चलते भी बच्चे ऐसे पैदा होते हैं.

पहला बच्चा अगर मानसिक रूप से विकलांग है तो दूसरा बच्चा ऐसा न हो, इस के लिए सावधानी बरतनी चाहिए. डाक्टर के अनुसार, ‘‘दूसरे बच्चे के पैदा होने से पहले डाक्टर्स के संपर्क में रहना चाहिए. गर्भवती मां के पेट से पानी निकाल कर जांचा जाता है. जींस में खराबी पाए जाने पर उसे दवा द्वारा ठीक किया जा सकता है ताकि दूसरा बच्चा मंदबुद्धि पैदा न हो.’’

भावुक व शौकीन भी

मीना बेहद शौकीन बच्ची है. वह बोलती नहीं है, इशारे से बताती है. खाने की शौकीन मीना खाना बनाने वाली दीदियों से अपनी पसंद की सब्जी की खासतौर पर फरमाइश करती है.

अजय और रोहित बेहद भावुक हैं. इन की समझ इतनी विकसित नहीं है, फिर भी ये अपने मम्मीपापा को याद करते हैं. अजय तो इस वजह से अनमना सा रहता है, लेकिन रोहित कान पर फोन रखने का एहसास कर के मम्मीमम्मी कहता है.

हुनरमंद होते हैं ऐसे बच्चे

रौशन खेलकूद में अच्छा है. जब तेज दौड़ता है या क्रिकेट के खेल में विकेट लेता है, तो न सिर्फ उसे तालियां मिलती हैं, बल्कि प्रोत्साहन के रूप में उपहार भी मिलते हैं.

सकीना ‘मैय्या यशोदा…’ गाने पर जब थिरकती है तो उस की लचक देखते ही बनती है. इन बच्चों को देख कर लगता ही नहीं कि ये सामान्य बच्चों से कमतर हैं.

बाल जीवन ज्योति संस्था में रहने वाले इन बच्चों का हुनर देख कर आंखों पर विश्वास नहीं होता. खूबसूरत डिजाइनर दीये, राखी, लिफाफे और पेंटिंग्स बना कर न सिर्फ ये अपनी प्रतिभा को साबित करते हैं, बल्कि कद्रदानों से मिले पैसों से इन की जरूरतें भी पूरी होती हैं.

आत्मनिर्भरता की ओर कदम

असामान्य बच्चों की 3 श्रेणियां होती हैं- माइल्ड, माइनर और सीवियर. इस में माइल्ड कैटेगरी के बच्चों का आईक्यू सब से बेहतर होता है. ऐसे प्रतिभाशाली बच्चे कुछ हद तक आत्मनिर्भर होते हैं.

रीता समानी गर्ल्स शौप में कार्य करती है. जब यह कार्य के एवज में थोड़ाबहुत धनार्जन करती है तो इस के मम्मीपापा श्यामलाल और शारदा खुशी से फूल उठते हैं. रीता हालांकि संपन्न परिवार से है, फिर भी जितना कमाती है उसे जमा करती है और वक्त आने पर अपने छोटे भाईबहनों को उपहार दे कर खुशी से फूली नहीं समाती.

रीता समानी को देख कर मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के मातापिता को हौसला मिलता है. यदि वे भी हिम्मत और धैर्य के साथ अपने बच्चों को प्रशिक्षित करें तो वे भी न सिर्फ सामान्य जीवन जी सकते हैं, बल्कि किसी मुकाम तक पहुंच सकते हैं.

समाज व सरकार का दायित्व

ऐसे बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए छत्तीसगढ़ सरकार काफी सतर्क और जागरूक दिखाई पड़ती है. राज्य सरकार ने 1995 में निशक्त जन अधिनियम पारित किया, जिस का क्रियान्वयन 1996 में हुआ. जिला अधिकारी गांवगांव जा कर ऐसे बच्चे चिह्नित करते हैं, फिर उन्हें निशक्त जन का प्रमाणपत्र दिया जाता है. उस प्रमाणपत्र के आधार पर ये शासन द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं.

हर नागरिक की समाज के प्रति जवाबदेही होती है. अभाव और गरीबी में जीने वाले उपेक्षित बच्चों की आवश्यकतानुसार उन की जरूरतें पूरी करना हम सब का उत्तरदायित्व है. प्यार से महरूम बच्चों को गंदे, पागल या असभ्य कह कर झिड़किए मत, बल्कि उन्हें प्यार से सहला दीजिए.

जानें क्या है खास रेडमी नोट 5 और रेडमी नोट 5 प्रो में

अगर आप नया फोन लेने की सोच रहे हैं तो आपको बता दें कि Xiaomi, Redmi, Mi के स्मार्टफोन Redmi Note 5 और Note 5 Pro आपके लिए एक बेहतर विकल्प हो सकता है. इसकी कीमत भी आपके बजट में है. और अगर आपने पहले से इस फोन को खरीदने का सोच रखा है और पहली बार की सेल में आप इस फोन को और्डर करने में चुक गए हैं तो निराश मत होइये क्योंकि आज (28 फरवरी) भारत में दूसरी बार इस फोन को सेल किया जाएगा. इनकी आज औनलाइन सेल Flipkart.com और Mi.com पर रखी गई है. वहीं औफलाइन सेल Xiaomi के अपने स्टोर Mi home पर की जाएगी.

जानिए औफर्स के साथ ही जल्दी इस फोन को और्डर करने का तरीका-

आज 28 फरवरी को 12 बजे की सेल में Redmi Note 5 और Note 5 Pro को खरीदने के लिए www.flipkart.com या mi.com पर जाएं. वेबसाइट पर सेल शुरू होने से पहले ही अपना लौगिन कर लें. फ्लिपकार्ट पर अपना एड्रेस, पिन कोड जैसी जानकारी पहले ही भर लें. सेल शुरू होते ही फोन को तुरंत Buy Now कर लें. इसके बाद जरूरी डिटेल्स डालने के बाद फोन को और्डर किया जा सकता है. यदि आप कैश औन डिलिवरी का विकल्प चुनते हैं तो आपको फोन मिलने की ज्यादा उम्मीद रहती है क्योंकि कई बार पेमेंट करते हुए ही फोन आउट औफ स्टौक हो जाता है और कई बार ट्रांजेक्शन कैंसिल भी हो जाता है.

क्या है औफर

Redmi Note 5 और Note 5 Pro इन दोनों ही स्मार्टफोन्स के साथ 2,200 रुपए के कैशबैक का भी औफर दिया जा रहा है. यह औफर रिलायंस JIO की तरफ से दिया जा रहा है. इस औफर में जियो के 50-50 रुपए के 44 वाउचर दिए जा रहे हैं. इन्हें 198 या 299 रुपए या इससे ज्यादा के रिचार्ज पर इस्तेमाल किया जा सकता है. एक बार में एक ही वाउचर का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा एक्सिस बैंक के क्रेडिट कार्ड से खरीदने पर 5 फीसदी का डिस्काउंट दिया जा रहा है.

Redmi Note 5 फीचर्स

रेडमी नोट 5 में 5.99 इंच की फुल विजन डिस्प्ले दी गई है. इसके फ्रंट कैमरे के साथ भी LED फ्लैश लाइट दी गई है. कंपनी का दावा है कि कम रोशनी में भी इससे अच्छी फोटोग्राफी की जा सकती है. वहीं इसमें LED फ्लैश लाइट के साथ 12 मेगापिक्सल का रियर कैमरा दिया गया है. फोन को दमदार बनाने के लिए इसमें स्नैपड्रेगन 625 प्रोसेसर दिया गया है. पावर बैकअप के लिए इसमें 4,000mAH की बैटरी दी गई है. Redmi Note 5 के 3GB रैम वाले वेरिएंट में 32GB की इंटरनल मैमोरी दी गई है. इसकी कीमत 9,999 रुपए है. वहीं 4GB रैम और 64GB इंटरनल मैमोरी वाले वेरिएंट की कीमत 11,999 रुपए है.

Redmi Note 5 Pro फीचर्स

रेडमी नोट 5 प्रो में भी 5.99 इंच की डिस्प्ले दी गई है. इसका कैमरा बेहद ही खास है. Redmi Note 5 Pro में iPhone X की तरह डुअल रियर कैमरा दिया गया है. इसमें एक कैमरा 12 मेगापिक्लस का और दूसरा 5 मेगापिक्सल का है. रेडमी नोट 5 प्रो में 20 मेगापिक्सल का फ्रंट कैमरा दिया गया है. इससे बैकग्राउंट को ब्लर भी किया जा सकता है. रेडमी नोट 5 प्रो में 6GB की LPDDR4X रैम दी गई है. फोन में दमदार 636 स्नैपड्रेगन प्रोसेसर है. पावर बैकअप के लिए इसमें 4,000mAH की बैटरी दी गई है. इसके 6GB रैम और 64GB इंटरनल मैमोरी वाले वेरिएंट की कीमत 16,999 रुपए रखी गई है. वहीं इसके 4GB रैम और 64GB इंटरनल मैमोरी वाले वेरिएंट को 13,999 रुपए में खरीदा जा सकता है.

सेकेंड हैंड फोन खरीदते वक्त रखें इन बातों का ध्यान

पुराना फोन खरीदने का सबसे बड़ा कारण होता है कि कम पैसे में ज्यादा फीचर्स वाला मोबाइल मिल जाए, लेकिन सबसे पहले आप अपनी जरुरतें भी जान लें कि आपको मोबाइल का करना क्या है. आप वहीं मोबाइल खरीदें जो आपकी ज्यादातर जरुरतों को पूरा करता हो. कहीं ऐसा न हो कि आप दिखावे के चक्कर में महंगे फोन को सस्ते में खरीद लें और उसमें कोई दिक्कत हो तो बड़े फोन को सर्विस सेंटर ले जानें पर खर्चा भी बड़ा ही होता है.

इसलिए अपना बजट और जरुरतों को देखते हुए एक अच्छा फोन खरीदें. चलिए इसी में हम आपकी थोड़ी मदद करते हैं. इस्तेमाल करने लायक सस्ते स्मार्टफोन 5,000 से 10,000 रुपये के रेंज में आ जाते हैं. 10,000 से 15,000 रुपये के बीच कई अहम फीचर्स से लैस एक मौडर्न स्मार्टफोन आपका हो सकता है. 15,000 से 30,000 रुपये को मिड रेंज सेगमेंट माना जाता हैं. हालांकि, इस रेंज में प्रोडक्ट्स के फीचर्स में काफी अंतर देखने को मिलता है जो अलग-अलग ब्रांड पर निर्भर करता है.

technology

ब्रांड: स्मार्टफोन खरीदने से पहले ब्रांड चुनना एक अहम कदम है, क्योंकि इस पर कई बातें निर्भर करती हैं. नामी ब्रांड्स के साथ सौफ्टवेयर अपडेट और कस्टमर सपोर्ट सर्विसेज का भरोसा रहता है. शायद यही वजह है कि ज्यादातर यूज़र्स बड़े ब्रांड के साथ जाना पसंद करते हैं. सबसे पहले तो इन ब्रांड के प्रोडक्ट्स मार्केट में आसानी से उपलब्ध होते हैं. ई-कौमर्स वेबसाइट हो या फिर रिटेल मार्केट, आप दोनों ही जगहों से अपनी सुविधानुसार खरीददारी कर सकते हैं.

औपरेटिंग सिस्टम: गूगल का एंड्रौयड, ऐप्पल का आईओएस, माइक्रोसौफ्ट का विंडोज मोबाइल और ब्लैकबेरी ओएस 10, आपके के लिए विकल्प कई हैं. हर औपरेटिंग सिस्टम में कई खासियतें हैं तो कुछ कमियां भी हैं. भारत में एंड्रौयड प्लेटफौर्म सुपरहिट है और इसका मार्केट शेयर भी सबसे ज्यादा है और ओपन-सोर्स नेचर होने के कारण कई मोबाइल ब्रांड इसी औपरेटिंग सिस्टम पर फोन बना रहे हैं.

बैटरी: किसी भी स्मार्टफोन यूजर के लिए बैटरी लाइफ सबसे अहम प्रौपर्टी है. इन दिनों फोन रीमूवेबल और नौन-रीमूवेबल बैटरी के साथ आते हैं. जिन स्मार्टफोन में नौन-रीमूवेबल बैटरी का इस्तेमाल होता है वो ज्यादा स्लीक होते हैं. नौन-रीमूवेबल बैटरी के साथ कुछ और भी फायदे हैं, बैक कवर ज्यादा सिक्योर होते हैं और फोन में पानी के घुसने और डैमेज होने की संभावना भी कम हो जाती है.

technology

रैम और प्रोसेसर: किसी भी स्मार्टफोन की स्पीड और उसमें मल्टी-टास्किंग का लेवल प्रोसेसर और रैम पर निर्भर करता है. इस बात का भी ध्यान रखें कि हर औपरेटिंग सिस्टम की हार्डवेयर जरूरतें अलग होती हैं. जैसे कि विंडोज फोन के लेटेस्ट वर्जन में एंड्रौयड के लेटेस्ट वर्जन से कम प्रोसेसर स्पीड और रैम की जरुरत पड़ती है. एंड्रौयड वर्ल्ड में प्रोसेसर की परफौर्मेंस का अनुमान आमतौर पर कोर से लगाया जाता है. एंड्रौयड फोन के प्रोसेसर में जितने ज्यादा कोर होंगे परफौर्मेंस उतनी बेहतर होने की संभावना है.

स्क्रीन: किसी मोबाइल फोन की स्क्रीन साइज को डायगोनली नापा जाता है. आज की तारीख में ज्यादातर स्मार्टफोन 4 से 6.5 इंच की स्क्रीन साइज के होते हैं. 4-5 इंच स्क्रीन वाले स्मार्टफोन को बेहतर माना जाता है, इसे हाथों में रखना भी बेहद ही कंफर्टेबल होता है. हालांकि, यह आप पर निर्भर करेगा कि आप कैसा स्क्रीन चाहते हैं. अगर आप छोटे स्क्रीन के आदी हैं तो 4-5 इंच का डिस्प्ले आपके लिए ठीक है. कुछ लोगों को ज्यादा बड़े डिस्प्ले पसंद आते हैं, उनके लिए भी मार्केट में कई विकल्प मौजूद हैं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें