भारतीय जनता पार्टी के विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री और यहां तक कि प्रधानमंत्री भी सामाजिक व पारिवारिक मामलों में उपदेश देना अपना कर्तव्य ही नहीं, अपना अधिकार भी मानते हैं. यह उन की गलती नहीं, उन की आदत है जो हिंदू पाखंडभरी दुकानदारी की देन है जिस में पंडेपुजारी न केवल ईश्वर के एजेंट बन कर धर्म कर वसूलते हैं, बल्कि जीवन कैसे जिया जाए और क्या वर्जित है, के उपदेश भी वे देते रहते हैं.

प्रधानमंत्री का पकौड़े बेचने को सही, आदर्श व कमाऊ व्यवसाय घोषित करने की कड़ी में गोवा के मुख्यमंत्री ने बयान दे डाला कि लड़कियों का बीयर पीना चिंता की बात है. अगर मनोहर पर्रिकर बीयर और दूसरी शराबों को सभी के पीने पर आपत्ति कर रहे होते तो बात दूसरी थी पर उन का केवल लड़कियों के पीने पर आपत्ति करना भाजपाई मानसिकता है. इस मानसिकता के तहत हम मर्द चाहे जो गुनाह कर लें, औरतों को सीमा और संयम में ही रहना चाहिए.

इस पर उदार विचारों वाली औरतों का आपत्ति करना सही ही है. शराब किसी के लिए भी सही नहीं है. शराब की शिकार औरतें ही ज्यादा होती हैं. शराब पीने पर रोकटोक मुख्यमंत्री के कार्यक्षेत्र में नहीं आता. उन की सरकार गोवा में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दे, न औरतें पिएं न आदमी. ऐसा करने से स्वास्थ्य के सुखद परिणाम आएंगे जबकि राजस्व की हानि होगी. सिर्फ औरतों के लिए उसे वर्जित माना जाए, यह किसी को स्वीकार्य नहीं होगा. ऐसा उपदेश देना परिवार का काम है. जो सरकार बीयर के टैक्स पर फलफूल रही है उसे, अंदर से भेडि़या हो कर, गाय की खाल पहन कर, पाबंदी लगाने का हक किस ने दिया?

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