यूं तो खिलाड़ियों द्वारा बनाया गया हर रिकार्ड यादगार होता है. लेकिन कुछ रिकार्ड, कुछ पल बेहद खास होते हैं जो चाह कर भी भुलाए नहीं जा सकते. कुछ ऐसे ही रिकार्ड और यादें मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर की जिंदगी से भी जुड़े हैं.
सचिन के लिए उनका पहला इंटरव्यू उनकी जिंदगी के यादगार लम्हों में से एक है. यह इंटरव्यू टौम औल्टर ने 1989 में भारत-वेस्टइंडीज दौरे से पहले लिया था. 15 साल के सचिन तेंदुलकर का यह पहला वीडियो इंटरव्यू था.
सचिन उस समय टीम इंडिया का हिस्सा नहीं बने थे लेकिन उसी साल पाकिस्तान के दौरे पर सचिन को टेस्ट डेब्यू करने का मौका मिला था. औल्टर ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू के दौरान बताया था कि सचिन ने बड़ी बेबाकी से उनके सवालों से जवाब दिए थे. उन्होंने कहा, “मुझे वो इंटरव्यू अच्छे से याद है. वो उसका पहला वीडियो इंटरव्यू था. मैं ये नहीं कहूंगा कि वह बहुत शांत था लेकिन वह काफी मासूम और कम बोलने वाला था. वह कैमरे के सामने थोड़ा शर्मा रहा था. उसमें आत्मविश्वास था लेकिन कोई दिखावा नहीं था.”
इंटरव्यू के दौरान सचिन ने कहा कि वह वेस्टइंडीज दौरे पर जाने वाली टीम इंडिया में चुने जाने पर काफी खुश होंगे. जब औल्टर ने उनसे कहा कि उन्हें इस बात का डर नहीं कि वेस्टइंडीज के पास कई दिग्गज तेज गेंदबाज हैं और उन्हें कुछ साल इंतजार करना चाहिए. जवाब में सचिन ने बड़े शांत तरीके से कहा कि उन्हें तेज गेंदबाजों को खेलना ज्यादा अच्छा लगता है क्योंकि उनकी गेंद सीधा बल्ले पर आती है. एक 15 साल के लड़के में इस तरह का आत्मविश्वास देखकर औल्टर भी चौंक गए थे.
हमारे देश में मान्यता है कि यदि कोई नस खिंच जाए, तो उलटा पैदा हुए इंसान के पैर मारते ही वह ठीक हो जाता है. पंजाब में इसे उस इंसान की ‘सफा’ कहा जाता है जिसके लिए वह कोई धन नहीं लेता. इसी मान्यता के साथ 1921 के वक्त ब्रिटिश शासन वाले भारत, महात्मा गांधी का अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन व पंजाब के गांव में पनपी प्रेम कहानी, अंग्रेजों का अपना स्वार्थ और भारतीय राजाओं का लालच. इन सब का मिश्रण है टीवी जगत के मशहूर कौमेडियन कपिल शर्मा की फिल्म ‘‘फिरंगी’’ में. देसीपना से युक्त एक अति लंबी नीरस फिल्म में दर्शकों को ढाई घंटे से अधिक समय तक बांध कर रखने की क्षमता का अभाव है.
फिल्म की कहानी 1921 में ब्रिटिश शासन काल के दौरान के पंजाब के गांव की है. यह वह दौर था, जब महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा था. विदेशी कपड़े आदि जलाए जा रहे थे. बलरामपुर गांव निवासी मंगतराम उर्फ मंग्या (कपिल शर्मा) बड़ा हो गया है, पर बेरोजगार है. वह ब्रिटिश पुलिस में भरती होना चाहता है, मगर तीन बार दौड़ में असफल होने की वजह से नौकरी नही पाता. पर मंग्या की खूबी है कि वह उलटा पैदा हुआ था. इसी खूबी के चलते ब्रिटिश अफसर मार्क डेनियल (एडवर्ड सोन्नेब्लिक) को मंग्या की जरूरत पड़ती है और वह खुश होकर मंग्या को अपना अर्दली नियुक्त कर लेते हैं.
इस बीच अपने तांगे वाले मित्र हीरा (इनामुल हक) की शादी में मंग्या हीरा के गांव नकुशा जाने पर मंग्या की नजर सारगी (इशिता दत्ता) पर पड़ती है और वह उसे अपना दिल दे बैठता है. सारगी की रजामंदी मिलने पर मंग्या के परिवार के लोग मंग्या की शादी सारगी से हो, इसकी बात करने सारगी के घर पहुंचते हैं. सारगी के माता पिता (राजेश शर्मा) तो तैयार हैं, मगर सारगी के दादाजी उर्फ लाला जी (अंजन श्रीवास्तव) मना कर देते हैं. क्योंकि लाला जी तो महात्मा गांधी के अंग्रेजों के खिलाफ चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने हुए हैं. ऐसे में उन्हें अंग्रेजों की नौकरी करने वाला मंग्या पसंद नही आता.
इधर अंग्रेज अफसर मार्क डेनियल की राजा इंद्रवीर सिंह (कुमुद मिश्रा) से अच्छी दोस्ती है. जिसकी वजह यह है कि मार्क डेनियल, राजा इंद्रवीर सिंह के इलाके में शराब की फैक्टरी खोलना चाहते हैं. इस शराब फैक्टरी के लाभ में राजा का चालिस और डेनियल का साठ प्रतिशत हिस्सा होगा. इतना ही नहीं डेनियल की नजर राजा इंद्रवीर सिंह की बेटी व राजकुमारी श्यामली (मोनिका गिल) पर भी है, जोकि आक्सफोर्ड से पढ़कर वापस आयी है.
शराब फैक्टरी के लिए डेनियल को नदी के किनारे की जगह पसंद आती है. नदी के एक किनारे पर नकुशा गांव है, जिसे खाली करा देने का वादा राजा करते हैं. मंग्या, डेनियल की मदद से गांव को उजड़ने से बचाकर लाला जी का दिल जीतना चाहता है, पर राजा व डेनियल की मिलीभगत के चलते राजा इंद्रवीर सिंह गांव को हर परिवार के मुखिया को अपने जलसाघर में बुलाकर उन्हें शराब में धुतकर जमीन व घर बेचने के कागज पर सभी के अंगूठे लगवा लेता है. अब गांव के लोग मंग्या से नाराज होते हैं, पर मंग्या गांव वालों से कहता है कि उनके जमीन के कागज मिल जाएंगे. अब वह डेनियल के साथ ‘जैसा को तैसा’ वाला कारनामा करना चाहता है.
उधर राजकुमार श्यामली भी मंग्या का साथ देने को तैयार हैं, क्योंकि राजकुमारी श्यामली के पिता व राजा इंद्रवीर ने डेनियल से समझौता किया है कि शराब फैक्टरी के लाभ में साठ प्रतिशत राजा और चालिस प्रतिशत डेनियल का होगा, तो वह श्यामली की शादी डेनियल से कर देंगे. जबकि श्यामली, डेनियल से विवाह नहीं करना चाहती. खैर, श्यामली व मंग्या मिलकर एक योजना बनाकर राजा की तिजोरी से गांव वालों के जमीन के कागजात चुराकर गांव वालों, राजा और डेनियल के सामने फाड़ देता है. डेनियल, मंग्या पर गोली चलाना चाहता है, तभी महात्मा गांधी अपने पीछे भीड़ के साथ पहुंचते हैं. उसके बाद डेनियल को वापस इंग्लैंड बुला लिया जाता है. मंग्या व सारगी की शादी तय हो जाती है. श्यामली उच्चशिक्षा के लिए वापस लंदन चली जाती हैं.
हलकी फुलकी मनोरंजक और उत्कृष्ट कलाकारों वाली फिल्म ‘‘फिरंगी’’ की सबसे बड़ी समस्या इसकी लंबाई व धीमी गति से आगे बढ़ती कहानी है. दूसरी समस्या यह है कि फिल्म की कहानी का मूल बीज 16 साल पुरानी आमीर खान की फिल्म ‘लगान’ से उठायी हुई है और दर्शक को ‘फिरंगी’ देखते हुए बार ‘लगान’ याद आती है. फिल्म कहीं न कहीं जमीन से जुड़ी हुई ‘देसी’ भी है. इसमें फिल्म के कला निर्देशक और कैमरामैन का काफी योगदान है. मगर जब आप किसी कालखंड की फिल्म बनाते हैं, तो उस कालखंड की बारीकी परदे पर नजर आनी चाहिए, उसमें फिल्मकार असफल रहे हैं. फिल्म के कई किरदारों की पोषाकें, उनके बात करने का लहजा वगैरह ब्रिटिश शासन की याद नहीं दिलाता. फिल्म का क्लायमेक्स काफी लंबा और मजाकिया है.
यह लेखक व निर्देशक की कमजोरी ही है कि फिल्म में प्रदर्शित क्रोध, खुशी, डर, प्यार सहित एक भी भावना दर्शकों के दिलों तक नहीं पहुंच पाती. सब कुछ बहुत ही सतही लगता है.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो कपिल शर्मा ने पूरी फिल्म में यह साबित करने का प्रयास किया कि वह महज हास्य कलाकार नहीं हैं, बल्कि उनके अंदर अभिनय क्षमता है और वह हर तरह के किरदार निभा सकते हैं, पर इसमें वह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाए. पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर एक जैसा ही भाव बना रहता है. वैसे अब सवाल यह है कि कपिल शर्मा के प्रशंसक उन्हें इस नए अवतार में देखना चाहेंगे या नहीं. जिसका जवाब तो कुछ दिनों बाद ही मिलेगा. इशिता दत्ता बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ पाती हैं. इंटरवल से पहले इशिता दत्ता कुछ उम्मीदें जगाती हैं, पर इंटरवल के बाद वह भी सिर्फ बेबस लड़की बनकर रह जाती हैं. पूरे ढाई घंटे तक एक बेबस लड़की के भाव के साथ इशिता को देखते देखते दर्शक बोर हो जाता है. लालची राजा के किरदार में कुमुद मिश्रा व सारगी के पिता के किरदार में राजेश शर्मा ने काफी ठीक ठाक अभिनय किया है.
दो घंटे 41 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘फिरंगी’’ का निर्माण कपिल शर्मा ने किया है. फिल्म के निर्देशक व लेखक राजीव धींगरा, पटकथा लेखक राजीव धींगरा, संगीतकार जतिंदर शाह, कैमरामैन नवनीत मिस्सर व कलाकार हैं- कपिल शर्मा, इशिता दत्ता, मोनिका गिल, अंजन श्रीवास्तव, राजेश शर्मा, एडवर्ड सोन्नेब्लिक, कुमुद मिरा व अन्य.
भारतीय रेलवे स्वर्ण योजना के तहत राजधानी ट्रेनों में हाईटेक सुविधाएं देने और ट्रेनों में आधुनिक कोच लगाने पर काम कर रही है. आपको बता दें कि हाल ही में दिल्ली-सियालदह स्वर्ण राजधानी शुरू की गई है. इसमें हाईटेक डब्बे जोड़े गए हैं और उनमें आटो-लौकिंग की सुविधा दी गई है. जिससे स्टेशन पर होने वाली गंदगी के रोका जा सके. आटो-लौकिंग सिस्टम के जरिए जैसे ही ट्रेन स्टेशन पर रुकेगी टायलेट लौक हो जाएगा और ट्रेन के स्टेशन से निकलते ही टायलेट अपने आप अनलौक हो जाएगा.
इस ट्रेन के टायलेट में सिंथेटिक मार्बल और दुर्गंध न आने के लिए परफ्यूम स्प्रे का इस्तेमाल किया गया है. यही नहीं टायलेट में गीजर की सुविधा भी दी गई है और इस ट्रेन के गलियारे भी चमकदार बनाए गए हैं.
रेलवे के मुताबिक ट्रेन के कोच में बर्थ इंडिकेटर और विनायल रैपिंग होगी. हर कोच में सीसीटीवी कैमरे हर कोच में सीसीटीवी कैमरे लगाए जा रहे हैं. कोच में शीशों के ऊपर एलईडी लाइट और पर्दे लगाए गए हैं.
इस बारे में रेलवे बोर्ड के सदस्य अरुण सक्सेना ने बताया कि स्वर्ण योजना के तहत पुराने कोचों को अपग्रेड कर उनकी सूरत बदल दी गई है. कई छोटे बड़े बदलाव कर कोचों को आरामदायक बनाया गया है. एक कोच को अपग्रेड करने के लिए 50 लाख रुपए की लागत आ रही है. गौरतलब है कि 2018 तक 13 राजधानी और 11 शताब्दी का रंग भी बदल दिया जाएगा. दोनों ट्रेनों पर गोल्डन रंग होगा.
और्गेनाइजेशन औफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज (ओपेक) ने एक मीटिंग में तेल उत्पादन में कटौती को 2018 के अंत तक जारी रखने का फैसला लिया. इस कदम का उद्देश्य लगातार गिर रही क्रूड औइल की कीमतों को रोकना है. इसका सीधा मतलब यह है कि क्रूड औइल की कीमतें आने वाले समय में लगातार बढ़ सकती हैं. भारत में भी पेट्रोल और डीजल की कीमतों पर इसका असर निश्चित तौर पर देखने को मिल सकता है.
ओपेक के विएना स्थित हेडक्वार्टर में हुई मीटिंग में कई घंटों की चर्चा के बाद इस बात पर सहमति बनी. हालांकि इस बैठक में इस बात पर अभी तक सहमति नहीं बनी है कि लीबिया के औइल आउटपुट को कंट्रोल करने के लिए प्रोडक्शन कट की जरूरत है या नहीं.
आपको बता दें कि लीबिया अभी आंतरिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है. 14 सदस्यीय ओपेक नौन-ओपेक मेंबर देशों के साथ संयुक्त रूप से प्रोडक्शन कट को लेकर बैठक करने जा रहा है. नौन ओपेक देशों का नेतृत्व रूस करेगा. रूस ने इसी साल ओपेक देशों के साथ मिलकर प्रॉडक्शन कट किया था. वह खराब दौर से गुजर रहे अंतरराष्ट्रीय क्रूड औइल मार्केट को घाटे से उबारने के लिए लगातार प्रोडक्शन कट की वकालत कर रहा है.
अंतरराष्ट्रीय मार्केट में क्रूड औइल की कीमत प्रति बैरल 60 डौलर से ज्यादा पहुंच चुकी है. प्रोडक्शन कट करने की डील में अमेरिका शामिल नहीं है. रूस को यह डर सता रहा है कि कहीं प्रोडक्शन कट के कारण तेल की बढ़ी डिमांड को पूरा करने के लिए अमेरिका अपने यहां उत्पादन बढ़ा न दे.
इंटरनैशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों को नियंत्रित करने की यह कोशिश कितनी सफल होती है यह ओपेक मेंबर कंट्रीज और नौन ओपेक मेंबर कंट्रीज के रवैये पर पूरी तरह से निर्भर करेगा. अगर दोनों पार्टियां इस मामले में आम सहमति बनाने में कामयाब होती हैं तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ना तय है.
कई बार ऐसा होता है कि जब हम अपने फोन में कुछ इंस्टाल करने की कोशिश कर रहे होते हैं तो उस समय वह इंस्टाल नहीं हो पाता क्योंकि आपके फोन में उतना स्पेस नहीं होता. जब मोबाइल की इंटरनल मैमोरी फुल हो और हमें कुछ बहुत जरूरी इंस्टाल करना हो, तो उस वक्त समझ नहीं आता कि क्या करना चाहिए. आप अपने फोन की मैमोरी खाली करने की सोचते हैं, लेकिन मोबाइल में कुछ ऐसे ऐप होते हैं जिन्हें रखना आपके लिए बहुत जरूरी होता है और उसकी वजह से हम अपने फोन की इंटरनल मैमोरी खाली नहीं कर पाते. तो आइए जानते हैं कि इस स्थिति में कैसे आप अपने फोन में स्पेस बना सकते हैं.
कैशे को करें क्लियर
अपने स्मार्टफोन में आपको स्पेस बनाने के लिए कैशे क्लियर करना होगा. यह एक सुरक्षित और आसान तरीका है, जिसकी मदद से आप फोन में जगह बना सकते हैं. इसके लिए सेटिंग्स में जाकर ऐप पर क्लिक करें. इसके बाद ऐप मे दिये गये विकल्प क्लियर कैशे पर क्लिक करें. ऐसा करने से आपके फोन का काफी स्पेस खाली हो जाएगा.
आनलाइन म्यूजिक सुने
मोबाइल में सबसे ज्यादा कोई चीज स्पेस लेती है, तो वो है म्यूजिक और वीडियो. इस समस्या से निपटने के लिए फोन में म्यूजिक और वीडियो डाउनलोड करने के बजाय आप उन्हें आनलाइन या आफलाइन सुन या देख सकते हैं. आज कल सावन, गाना और हंगामा जैसे कई एप्लिकेशन मौजूद हैं जो आपकी सुविधा के लिए आफलाइन म्यूजिक को स्टोर करती हैं. इसका इक फायदा यह भी है कि यह आफलाइन म्यूजिक फोन की मैमोरी में स्टोर नहीं होते और इससे आपके फोन की इंटरनल मैमोरी खाली रहती है.
गूगल ड्राइव का करें इस्तेमाल
गूगल ड्राइव अनलिमिटेड फोटो सेव करने में आपकी मदद करता है. फोन में स्पेस बनाने के लिए आप अपने एंड्रायड फोन से लिए गए सभी फोटो को गूगल ड्राइव में सेव कर सकते है और अपने फोन से उन फोटो को डिलीट कर स्पेस बना सकते हैं.
एप्लिकेशन अनइंस्टाल करें
ऐसे कई एप्लिकेशन हैं जो आपके फोन में तो होते हैं पर आप उनका इस्तेमाल नहीं करते. ऐसे में आप उन एप्लिकेशन को अनइंस्टाल या डिसेबल कर अपने फोन में स्पेस बना सकते हैं.
माइक्रोएसडी कार्ड का इस्तेमाल करें
अगर इन उपायो के बाद भी आपको आपकी आवश्यकतानुसार स्पेस नहीं मिल पा रहा है तो सबसे अच्छा तरीका है कि आप अपने फोन में माइक्रोएसडी कार्ड का इस्तेमाल करें. आप चाहे तो बड़ी ही आसानी से ऐप्स को माइक्रोएसडी कार्ड मूव कर सकते हैं. ऐप्स को मूव करने के लिए आपको सेटिंग्स में जाना होगा, फिर ऐप सेक्शन में ऐप पर क्लिक करना होगा. इसके बाद आपको ऐप मूव का विकल्प मिलेगा जिस पर जाकर आप किसी भी ऐप को आसानी से माइक्रोएसडी कार्ड मे मूव कर सकेंगे.
दुनिया तेजी से बदल रही है. इंसान की जिंदगी में जितने बदलाव 100 वर्षों में नहीं हुए होंगे, उससे अधिक बदलाव पिछले 20 वर्षों में हो गए और जितने बदलाव पिछले 20 वर्षों में नहीं हुए उससे अधिक बदलाव आने वाले 7-8 वर्षों में हो जाएंगे. और इसका एक ही कारण है, दिन प्रतिदिन बढ़ता टेक्नोलाजी.
तो चलिए आज हम आपको कुछ नई तकनीकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हमारी जिंदगी को पूरी तरह से बदल सकती है.
3डीप्रिंटिंग
3डी प्रिंटिंग वर्तमान समय की सबसे शानदार नए तकनीक में से एक है. 3डी प्रिंटर, हमारे डिजिटल डिजाइन को ठोस वास्तविक प्रोडक्ट में प्रिंट कर देता है.
3डी प्रिंटर आने वाले समय में दुनिया में अकल्पनीय बदलाव लाएगा क्योंकि इसका उपयोग हमारे जीवन के लगभग हर क्षेत्र में होगा. अभी तक 3डी प्रिंटिंग का उपयोग साईकिल से लेकर हवाई जहाज के पार्ट्स, खिलौने, मेटल की वस्तुएं, खाद्य उत्पाद, मानव अंग, मकान और कई तरह की वस्तुएं बनाने में हुआ है.
यह तकनीक निरंतर रूप से विकसित हो रही है और भविष्य में इसका उपयोग लगभग हर तरह की ठोस वस्तुएं बनाने में किया जाएगा.
फ्लाइंग कार
दुनिया की 19 कंपनियां अलग-अलग प्रोजेक्ट पर काम कर रही हैं. गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट की चीफ एग्जिक्यूटिव लैरी पेज किटी हौक को सपोर्ट कर रहे हैं. किटी हौक एक स्टार्टअप है, जो कि फ्लाइंग कार के प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. इसके अलावा, जौबी एविएशन, उबर और एयरबस भी ऐसा व्हीकल बना रहे हैं, जो कि भारी ट्रैफिक वाली सड़कों के ऊपर उड़ सकें. ऐसी कई तरह की कारों पर काम चल रहा है.
क्वांटम कंप्यूटर
क्वांटम कंप्यूटर आज के कंप्यूटर्स के मुकाबले बहुत पावरफुल होगा. क्वांटम कंप्यूटर चुटकियों में इनक्रिप्शन को क्रैक कर देगा. इनक्रिप्शन दुनिया के सबसे प्राइवेट डेटा को प्रोटेक्ट करता है. हालांकि, ऐसी मशीन्स को बनाना काफी कठिन है, लेकिन बड़ी तेजी से इन पर काम चल रहा है. Google, IBM और इंटेल जैसी कंपनियां क्वांटम कंप्यूटर बनाने में भारी भरकम निवेश कर रही है. वहीं, रिगेटी कंप्यूटिंग जैसे स्टार्टअप भी इस पर काम कर रहे हैं. रिसर्चर्स का मानना है कि क्वांटम मशीन ड्रग डिस्कवरी, फाइनेंशियल मार्केट्स को दुरुस्त करना, ट्रैफिक प्राब्लम्स को सौल्व करने में तेजी ला सकती है.
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस हेल्थकेयर
पिछले पांच सालों में जटिल एल्गोरिदम डीप न्यूरल नेटवर्क्स की मदद से कंप्यूटर्स ने देखना सीख लिया है. अस्पष्ट तौर पर इंसानी दिमाग में न्यूरौन्स की वेब के आधार पर, एक न्यूरल नेटवर्क डेटा के पैटर्न की पहचान करके टौस्क को सीख सकता है. साइकिल की लाखों फोटो का विश्लेषण करके कोई न्यूरल नेटवर्क किसी साइकिल को पहचानना सीख सकता है. इसका मतलब है कि फेसबुक और गूगल फोटोज जैसी सर्विसेज इंटरनेट पर अपलोड की गई इमेज में चेहरों और चीजों की आसानी से पहचान कर सकते हैं. इसी तकनीक का यूज करते हुए मशीनें मेडिकल स्कैन में बीमारियों के संकेतों को पहचान सकती हैं.
कान्वर्सेशनल कंप्यूटिंग
न्यूरल नेटवर्क्स केवल इमेज रिकग्निशन तक सीमित नहीं है. इसका दायरा कहीं व्यापक है. यही तकनीक अमेजन इको जैसे काफी टेबल गैजेट्स में तेजी से सुधार ला रही है, जो कि कमरे में कहीं से बोली गई कमांड को पहचान लेती है. यही तकनीक स्काइप जैसी औनलाइन सर्विसेज को भी इम्प्रूव कर रही है, जो कि एक लैंग्वेज में आने वाली फोन कौल्स को तुरंत दूसरी भाषा में ट्रांसलेट कर देता है. गूगल, फेसबुक और माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनियां इसे मोर्चे पर तेजी से कदम बढ़ा रही हैं, जिससे आगे चलकर फोन, कारों और किसी भी मशीन के साथ हमारे इंटरैक्शन में अहम बदलाव आ सकता है.
जब से हिना खान बिग बौस 11 में आई हैं तब से ही उनकी बाते सुनकर लग रहा है कि वो खुद को इस शो का फाइनलिस्ट समझती हैं. इस शो में अब उनकी हरकतें भी इस बात का सबूत पेश कर रहे हैं कि हिना खुद को लेकर कुछ ज्यादा ही कान्फिडेंट हैं. बिग बौस में अक्सर ही उन्हें प्रियांक शर्मा और लव त्यागी के साथ यह बातें करते सुना गया है कि जब वे सब चले जाएंगे तो वह यहां पर बिल्कुल अकेली हो जाएंगी.
बिग बौस के एक एपिसोड में हिना खान लव त्यागी से कह रही थीं कि यहां पर मौजूद हर कोई शुरुआत से ही मुझे अकेला करने की कोशिश कर रहा है. आखिर घर में रहने वाले हर सदस्य मुझे ही क्यों निशाना बनाना चाहते हैं. क्या वे यही चाहते हैं कि हिना खान अकेली हो जाए. आखिर वे ऐसा क्यों चाहते हैं. हिना खान ने फिर लव से कहा कि यार मैं तो यह सोच कर एकदम से डर जाती हूं कि मेरा क्या होगा जब तुम सब चले जाओगे.
हिना की इस बात को लव त्यागी बड़े ही धैर्य के साथ सुन रहे थे और हमेशा की तरह अपना सिर हिलाते हुए उनकी हर बात में हां हां कर रहे थे.
इस घर में रहने वाला का कोई भी सदस्य इतने आत्मविश्वास के साथ बात नहीं करता जितने आत्मविश्वास से हिना खान करती हैं. हिना खान की इस तरह की बातों से तो ऐसी बू आती है कि वे खुद को फाइनलिस्ट मान बैठी हैं या फिर ऐसा भी हो सकता है कि बिग बौस में आने से पहले उन्होंने कोई ऐसा कान्ट्रेक्ट साइन किया हो जहां पर यह लिखा हो कि वे इस शो में फाइनल तक जाएंगी.
अगर वाकई में ऐसा कुछ है तो फिर तो संभवतः विजेता भी पहले से तय किया जा चुका होगा. वैसे भी बिग बौस के 11वें सीजन के शुरू होते ही ऐसी खबरें भी आने लगी थी कि हिना खान इस शो में फाइनल तक जाएंगी और वही इस शो की विजेता होंगी. वैसे आगे क्या होगा ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि बिग बौस में जो हो रहा है, वह रियल में हो रहा है या सबकुछ स्क्रिप्ट पर चल रहा है और हिना खान के साथ ही घर का हर सदस्य केवल एक्टिंग कर रहा है.
तेलगू फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री इशिता दत्ता को बचपन से इच्छा थी कि उन्हें अभिनय का मौका मिले और ये प्रेरणा उन्हें अपनी अभिनेत्री बहन तनुश्री दत्ता से मिली, जो उन्हें हमेशा अपनी इच्छा से जुड़ी काम करने की सलाह दिया करती थीं. इतना ही नहीं आज भी किसी काम को करने से पहले इशिता अपनी बहन की राय अवश्य लेती हैं. झारखण्ड के जमशेदपुर की रहने वाली इशिता अभी अपने माता-पिता के साथ मुंबई में रहती हैं. हंसमुख और विनम्र स्वभाव की इशिता इन दिनों कौमेडी और ड्रामा फिल्म ‘फिरंगी’ को लेकर व्यस्त हैं, उनसे मिलकर बात करना रोचक था पेश है अंश.
इस फिल्म को करने की वजह क्या है?
इससे पहले मैंने हिंदी फिल्म ‘दृश्यम’ किया था, जिसमें मैंने अजय देवगन की बेटी की भूमिका निभाई थी. उस फिल्म में कास्टिंग डायरेक्टर विकी सदाना ने मेरी कास्टिंग करवाई थी. इसमें भी उन्होंने मुझे मेरी भूमिका के बारे में बताया और औडिशन के लिए तैयार होने को कहा. कई औडिशन के बाद अंत में मैं चुनी गयी. ये फिल्म साल 1920 की कहानी है, जिसमें मैंने पंजाबी लड़की की भूमिका निभाई है. ये लुक मुझसे काफी अलग है और मैं ऐसे अलग चरित्र करने में चुनौती महसूस करती हूं. इसके अलावा जब मैं टीम से मिली, तो पहली मुलाकात में इसकी कहानी मुझे रोचक लगी. साथ ही इतने दिनों तक ब्रेक के बाद मुझे एक अच्छी फिल्म करने का औफर मिल रहा था, जो बड़ी बात थी.
इससे पहले आपने टीवी में भी काम किया है, टीवी से फिल्मों में आना कैसे हुआ? दोनों में क्या अंतर महसूस करती हैं?
दरअसल मैंने पहले फिल्म फिर टीवी में काम किया है. ‘दृश्यम’ फिल्म के बाद मुझे हर कोई वैसी ही छोटी लड़की की भूमिका की औफर दे रहा था और मुझे वैसा नहीं करना था, इसलिए मैं मना करती रही. उसी दौरान मुझे टीवी धारावाहिक ‘एक घर बनाऊंगा’ का औफर मिला, मुझे वह पसंद आई और मैंने कर लिया. मुझे काम करते रहना पसंद है, बैठकर समय का दुरुपयोग नहीं करना चाहती थी और ये सही था मुझे टीवी के जरिये लोगों के घर तक पहुंचने का मौका भी मिला. आजकल फिल्म से टीवी और टीवी से फिल्मों में जाना आम बात है. बड़े-बड़े कलाकार भी टीवी पर आ रहे हैं. इसके अलावा आजकल टीवी की शूटिंग फिल्मों के जैसे ही हो रही है.
दोनों के माध्यम में कोई अंतर नहीं है. टीवी में समय की कमी की वजह से ‘शिड्यूल हेक्टिक’ होता है, जबकि फिल्म में काम आराम से होता है.
क्या अभिनय एक इत्तफाक थी, या बचपन से इच्छा रही है?
मेरे लिए अभिनय जौब नहीं, बल्कि एक इच्छा थी, जिसे बहन ने बल दिया और मैं इस क्षेत्र में चली आई. मैंने मास मीडिया में पढ़ाई पूरी करने के बाद कई जगहों पर अपनी पोर्टफोलियो भेजी और मुझे पहले तेलगू फिल्म में काम करने का मौका मिला, यहीं से मेरे अंदर प्रेरणा जगी और अब मैं इसी क्षेत्र में अच्छा काम करना चाहती हूं. मेरे कैरियर की सपोर्ट सिस्टम मेरी दीदी ही है, जिसने मुझे इस इंडस्ट्री की बारीकियों को समझाया है. दीदी कहती है कि जब भी कोई काम करने की इच्छा हो, तो उसे कर लेना चाहिए, ताकि बाद में अफसोस न हो. अगर वह गलत निकला तो उसे छोड़ आगे बढ़ जाना चाहिए.
यहां तक पहुंचने में परिवार का सहयोग कितना रहा?
उन्होंने बहुत सहयोग दिया है, जमशेदपुर से वे मुंबई रहने चले आये, ताकि हमें सुविधा हो. मैंने हमेशा काम के साथ परिवार का बैलेंस रखा है. समय मिलते ही उनके साथ समय बिताना पसंद करती हूं. काम मेरे ऊपर इतना हावी नहीं होता है कि मैं परिवार और दोस्तों को भूल जाऊं. इसलिए मुझे कभी तनाव नहीं होता.
कितना संघर्ष यहां तक पहुंचने में रहा?
मैंने अधिक संघर्ष नहीं किया. ये सही है कि कोई बड़ा काम नहीं मिला, लेकिन समय-समय पर मुझे जो काम मिला, उसमें मैं धीरे-धीरे ग्रो कर रही हूं और अपने काम से संतुष्ट हूं.
फिल्मों में इंटिमेट सीन्स करने में आप कितनी सहज होती हैं?
अभी तक तो कोई फिल्म ऐसी नहीं की है, लेकिन स्क्रिप्ट की जरूरत अगर है तो करना पड़ेगा, पर मैं सहज नहीं हूं. ग्लैमर के लिए इंटिमेट सीन्स नहीं कर सकती.
आगे किस तरह की फिल्में करने की इच्छा रखती हैं?
मैंने अभी तो शुरुआत की है. एक एक्शन फिल्म करने की इच्छा है. निर्देशक इम्तियाज अली के निर्देशन में फिल्म करना चाहती हूं.
कितनी फूडी और फैशनेबल हैं?
मैं बंगाली हूं और हर तरह का खाना पसंद करती हूं. मिठाई खूब पसंद है. समय मिले तो खाना भी बना लेती हूं. चिकन बिरयानी और आइसक्रीम मैं बना लेती हूं.
कम्फर्ट लेबल को ध्यान में रखकर ड्रेस पहनती हूं. इंडियन और वेस्टर्न हर तरह के पोशाक पहनती हूं. मुझे ब्राइट कलर के परिधान पसंद हैं, जिसमें पीला रंग मेरा पसंदीदा है.
मेकअप कितना पसंद करती हैं?
पहले मुझे मेकअप का शौक था, अब नहीं है, क्योंकि हमेशा लगाना पड़ता है. मौइस्चराइजर हमेशा लगाती हूं. रात को सोने से पहले अच्छी तरह से मेकअप उतरना नहीं भूलती.
खाली समय में क्या करना पसंद करती हैं?
मुझे पेट्स से बहुत लगाव है. मेरे पास एक डौग है, जिसका नाम मैंने ‘हैप्पी’ रख दिया है. उसके साथ मैं खेलती हूं. जब भी मैं काम से घर लौटती हूं, तो वह मेरा सत्कार खुशी से करता है, जिससे मेरी पूरी थकान दूर हो जाती है. इसके अलावा खाली समय में दोस्त और परिवार के साथ समय बिताती हूं.
दक्षिण अफ्रीका के युवा बल्लेबाज मार्को मरैस ने क्रिकेट इतिहास का सबसे तेज तिहरा शतक जड़कर इतिहास रच दिया. 24 साल के मरैस ने दक्षिण अफ्रीका के तीन दिवसीय प्रांतीय प्रतियोगिता में पूर्वी लंदन में बौर्डर की तरफ से खेलते हुए ईस्टर्न प्रोविंस के खिलाफ 191 गेंदों पर नाबाद 300 रनों की पारी खेली.
अपनी रिकार्ड पारी के दौरान मरैस जब बल्लेबाजी के लिए पहुंचे तो उनकी टीम 82 रन पर चार विकेट गंवाकर मुश्किल में थी. मैच में उन्होंने 35 चौके और 13 छक्के जमाए. इस दौरान मरैस ने ब्रेडले विलियम्स (नाबाद 113 रन) के साथ नाबाद 428 रन की साझेदारी की. यह मैच बारिश से प्रभावित रहा और ड्रा पर समाप्त हुआ.
यह जोरदार पारी खेलने के बाद मरैस ने कहा कि, ‘इस वर्ष में क्लब क्रिकेट खेलने के लिए देश से बाहर नहीं गया. मैंने अपनी खास चीजों में सुधार के लिए कड़ी मेहनत की. मुझे लगता है कि इसका अच्छा नतीजा मेरी बल्लेबाजी में देखने को मिला.’
इससे पहले, सबसे तेज तिहरे शतक का रिकार्ड चार्ली मैकार्टनी के नाम पर था जो उन्होंने वर्ष 1921 में 221 गेंदों पर लगाया था. चार्ली ने नौटिंघमशायर के खिलाफ यह तिहरा शतक जमाया था. डेनिस कौम्पटन ने एमसीसी की ओर से खेलते हुए नार्थ ईस्टर्न ट्रांसवाल के खिलाफ 1948-49 में 181 मिनट में 300 रन बनाए थे लेकिन उनकी ओर से खेली गई गेंदों को उस समय गिना नहीं गया था. क्रिकेट में उस समय आठ गेंदों का ओवर होता था.
आपको बता दें हाल ही में (18 नवंबर) 20 साल के साउथ अफ्रीकी बल्लेबाज शेन डैड्सवेल ने कमाल कमाल किया था. डैड्सवेल ने 50 ओवर के एक क्लब क्रिकेट मैच में 490 रन ठोक डाले थे. मजे की बात तो यह है कि उन्होंने अपने जन्मदिन पर यह कारनामा किया था.
देशभर में बिल्डर लौबी बुरी तरह बदनाम है. आम आदमी बिल्डरों पर खलनायक, लुटेरा, सूदखोर, चोर, मुनाफाखोर और न जाने क्याक्या आरोप लगा कर उन्हें बदनाम करता है. गनीमत है कि इतनी बदनामी सहने के बावजूद इस उद्योग में आने वाले बिल्डरों की अभी तक कमी नहीं है और लोग हजारों की नहीं, लाखों की संख्या में देश के हर शहर, कसबे में बिल्डरों के बनाए मकानों में रह रहे हैं या व्यवसाय कर रहे हैं.
यह ऐसा व्यवसाय है जिस के बिना रहा भी न जाए और साथ निभाया भी न जाए. सरकार ने बिल्डरों के खिलाफ बने माहौल का बड़ा लाभ उठाया है और उन पर नए कानून थोपे हैं जो इस धंधे को शायद नष्ट ही कर डालेंगे. नए कानून के लागू होने से पहले ही सैकड़ों प्रोजैक्ट खटाई में पड़ चुके हैं और दिल्ली के कई नामी बिल्डर जेल में हैं या उन्हें भेजे जाने की तैयारी है.
अदालतें ग्राहकों की समस्या का उपाय केवल जुर्माना या जेल समझ रही हैं जबकि ग्राहकों को दोषियों को सजा से नहीं, मकानों के मिलने से संतुष्टि मिलेगी. जुर्माना भरने या जेल में जाने से मकान तो उग नहीं आएंगे पर आम प्रशासकों की तरह अदालतें भी समझती हैं कि सख्ती से हर जीव को नियंत्रित किया जा सकता है. अदालतें यह भूल जाती हैं कि जेल में बंद बिल्डर मकान के प्रोजैक्ट को आगे बढ़ा ही नहीं सकता.
इस उद्योग में मोटा पैसा बना या पैसा लेने के बाद देरी हुईर् तो आमतौर पर कारण सरकारी अड़ंगेबाजी है. सरकारों ने, जिन में बीसियों एजेंसियां होती हैं, बिल्डरों को सोने के अंडे देने वाली मुरगियां तो समझ रखा है पर उन को दानापानी देने का कोई इंतजाम नहीं कर रखा है. बिल्डर अनुमतियों के चक्कर में फंसे रहते हैं. हर अफसर ऐसे नए नियम बनाता रहता है जो कानून में होते ही नहीं हैं. अफसर की कलम का गलत लिखा सिर्फ अदालत हटा सकती है और अदालतें छोटेछोटे मामलों पर फैसला देने के लिए वर्षों का समय लेती हैं. अगर इन वर्षों के कारण ग्राहकों को मकान न मिल पाएं तो भी दोष न अफसर का होता है, न नियमों का, न कानून बनाने वालों का और न ही अदालतों का. दोष बिल्डरों का ही माना जाता है.
इस सब का पैसा ग्राहकों को देना पड़ता है. कानून की एक लाइन मकान की कीमत में 15 प्रतिशत तक वृद्धि कर सकती है. कुछ कानून तो 50 प्रतिशत तक दाम बढ़वा देते हैं. जब से अदालतों ने बिल्डरों को जेल भेजना शुरू किया है, मकान बनने बंद हो गए हैं. दिल्ली के आसपास कमसेकम 60 हजार मकान अधूरे बने पड़े हैं जिन में बिल्डरों, बैंकों और ग्राहकों का पैसा फंसा है. दोष सरकार और अदालतों का भी उतना ही है जितना बेईमान बिल्डरों का. पर पूरी जमात को गुनाहगार मान कर मकान नहीं बन सकते, यह पक्का है. सरकार खुद मकान बना कर देख चुकी है कि उस के बनाए मकानों में तो बेघर भी रहने से घबराते हैं कि वे न जाने कब ढह जाएं.