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इस तरीके को अपनाकर आप बंद कंप्यूटर से भी कर सकते हैं फोन चार्ज

कई बार ऐसा होता है कि हमें कंप्यूटर का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं होती, लेकिन उससे फोन चार्ज करने की वजह से हमें अपना कंप्यूटर भी औन रखना पड़ता है. क्या आप जानते हैं कि अगर आपका कंप्यूटर बंद है तब भी आप उससे अपना स्मार्टफोन चार्ज कर सकते हैं. जी हां, यह बिल्कुल सच है आप वाकई ऐसा कर सकते हैं. बस इसके लिए आपको अपने कंप्यूटर की सेटिंग्स में थोड़ा बदलाव करना होगा. तो आइये जानते हैं कंप्यूटर की कौन सी सेटिंग्स में बदलाव करके ऐसा संभव है.

– सबसे पहले अपने कंप्यूटर से माय कंप्यूटर (My Computer) पर क्लिक करें.

– अब इस नए पेज पर प्रापर्टीज (Properties) का विकल्प  आएगा जिसपर आपको क्लिक करना है. इसपर क्लिक करते ही आपको सामने कंट्रोल पैनल खुल जाएगा.

– आपको कंट्रोल पैनल होम के नीचे पहले नंबर पर ही डिवाइस मैनेजर (Device Manager) का विकल्प दिखाई देगा. जिसपर आपको क्लिक करना है.

– इस डिवाइस मैनेजर के विकल्प पर क्लिक करते ही एक नया पेज खुल जाएगा. इस पर सबसे नीचे यूनिवर्सल सीरियल बस कंट्रोलर (Universal Serial Bus Controllers) का विकल्प आएगा. इस विकल्प के ठीक सामने आपको एक तीर का निशान नजर आएगा, जिसपर आपको क्लिक करना है.

– इस पर क्लिक करते ही नीचे की तरफ इसमें और भी कई सारे विकल्प जुड़ जाएंगे. इनमें से यूएसबी रूट हब (USB Root Hub) पर आपको दो बार क्लिक करना है. इस पर क्लिक करने पर जनरल, ड्राइवर, डिटेल्स, इवेंट्स और पावर मैनेजमेंट का विकल्प दिखाई देगा. इनमें से पावर मैनेजमेंट (Power management) पर क्लिक करें.

– इस पर क्लिक करते ही आपके सामने ‘Allow The Computer To Turn Off This Device To Save The Power’ का विकल्प आएगा और इसके सामने एक बाक्स दिखाई देगा. इस बाक्स में राइट का निशान भी लगा होगा. आपको इस निशान पर क्लिक करके इसे हटा देना है और उसके बाद ओके पर क्लिक कर दें. अब आपके कंप्यूटर की सेटिंग्स बदल गई है.

आपको कंम्पूटर पर इस तरह से सेटिंग्स करने के बाद अब कंप्यूटर आफ होने के बाद भी आप अपना मोबाइल चार्ज कर पाएंगे.

प्रदूषण बनाम प्रदूषण : राजनेताओं के बस के परे है इस समस्या का हल

दिल्ली व उत्तर भारत के अनेक शहरों में बढ़ते प्रदूषण के कारण इन जगहों में जिंदगी गुजारना एक आफत सा हो गया है. अफसोस यह है कि इस का नोटबंदी की तरह का कोई सरल उपाय नहीं कि मंत्र पढ़ा और कालेधन की समस्या को चुटकियों में समाप्त कर दिया. यह समस्या फिलहाल वर्तमान राजनेताओं के बस के परे है क्योंकि एक तो यह विश्वव्यापी असर का परिणाम है और दूसरा यह कि मानव जिस आधुनिक जीवनशैली का आदी हो गया है उसे वह छोड़ने वाला नहीं है.

यह कहना कि प्रदूषण केवल पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश के खेतों में फसल काटे जाने के बाद बची जड़ों को जलाने या डीजल गाडि़यों व जेनरेटरों से होता है, काफीकुछ अधूरा है. इस प्रदूषण के बहुत से कारण हैं और उन के एकसाथ जुड़ जाने और वर्षा न होने व तेज हवाएं न चलने के कारण यह समस्या उग्र हो जाती है.

इन सैकड़ों कारणों का एकसाथ एक ही आदेश से निवारण करना असंभव है. इस के लिए जीवनशैली बदलनी होगी और यह देश खासतौर पर इस के लिए तैयार है ही नहीं. हमारे यहां दूसरों के दुखदर्द को देखने व महसूस करने की आदत ही नहीं है. हम तो जुगाड़ संस्कृति का ढोल पीटने वाले हैं जो 2 मिनट हाथ सेंकने के लिए एक पूरा पेड़ जला कर राख कर दें और राख का निबटान तक न करें.

हम तो वे लोग हैं जो एक तरफ गंगायमुना की सफाई के नाम पर अरबों रुपए लगाएं और फिर सफाई का बजट पास करने वाले मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री ही नदियों किनारे आरतियों, पूजा सामग्रियों, मूर्तियों को बहा कर व छठपूजा के बहाने से उसे खराब कर दें और अपनी पीठ थपथपाने भी लगें.

जैसे हमारी कुरीतियों ने हमारे समाज को टुकड़ों में बांट रखा है, जैसे हमारी सोच ने हमें देश व समाज के प्रति गैरजिम्मेदार बना रखा है वैसे ही हम ने अपनेआप को प्रकृति से खिलवाड़ करने का अधिकारी बना रखा है. हम ने प्रकृति की देखभाल करना तो मानो सीखा ही नहीं है. आधुनिक विज्ञान हमारी सहायता करने को तैयार है. ऐसे उपाय हैं जिन से कुछ हद तक प्रदूषण का मुकाबला किया जा सकता है पर हम हैं कि न सुनने को तैयार हैं न कुछ करने को.

जब दिल्ली का दम घुट रहा था तब नोटबंदी जैसी बेवकूफियों की सालगिरह ऐसे मनाई जा रही थी, मानो वह एवरेस्ट फतह हो. इस से कुछ नहीं हुआ जबकि करोड़ों नोट स्वाहा हो गए. यह प्रदूषण बढ़ाने वाला ही काम तो है.

दिल्ली का प्रदूषण अभी न कम होने वाला है न इस का हमारे पास हल है. जब बारिश होगी, हवाएं चलेंगी, यह अपनेआप कम हो जाएगा वरना प्लेग की तरह यह जानें लेता रहेगा. अरविंद केजरीवाल सरकार बातें तो करती है पर उस के हाथों में बहुतकुछ नहीं है. केजरीवाल थोड़ाबहुत कर लें उसी से खुश हो जाएं. नरेंद्र मोदी तो अभी गुजरात में लगे हैं, उन्हें कृपया डिस्टर्ब न करें.

ऐच्छिक सादगी से भरा जीवन जीने के पीछे ये है असल वजह

जब हम संसार में होश संभालते हैं, तभी से निरंतर प्रगतिशील होने की प्रेरणा दी जाती है. जिस के पास जितनी अधिक दौलत है वह उतना ही सफल माना जाता है. इसी विचारधारा के अंतर्गत टीवी, रेडियो, अखबार, पत्रिकाएं, वैबसाइट्स व सड़क पर खड़े बिलबोर्डों के विज्ञापन चीखचीख कर अपनी ओर आकर्षित कर हम से कहते हैं, ‘ज्यादा है तो बेहतर है’, ‘यूं जियो जैसे कल हो न हो’, ‘लिव लाइक किंग साइज’ आदि.

लिहाजा, हम अपने सपनों के संसार का विस्तार कर उस की पूर्ति के लिए अंधी दौड़ में भागे जाते हैं और भागते ही रहते हैं. बस, एक ही लक्ष्य होता है, हमारे पास सबकुछ हो, बहुत हो और लेटैस्ट हो. ज्यादा बेहतर है, को हमें इतना रटाया गया होता है कि हम इसे जीवन की सच्चाई मान बैठते हैं और इसी में उलझे रहते हैं.

विश्व के जानेमाने लेखक औस्कर वाइल्ड कहते हैं, ‘‘जीवन उलझा हुआ नहीं है, हम उलझे हुए हैं. सादगी से जीना ही असली जीवन है.’’

असल में ‘ज्यादा बेहतर है’ मंत्र के विपरीत आजकल एक नई सोच, ‘गोइंग मिनिमिलिस्टिक’ यानी जीवन की आवश्यकताएं कम की जाएं, उभर रही है.

इस विचार के पक्षधर माइक्रोसौफ्ट कंपनी की इकाई माइक्रोसौफ्ट एक्सिलरेटर कंपनी के सीईओ मुकुंद मोहन बेंगलुरु में रहते हैं. उन्होंने वर्ष 2001 से अपने जीवन में बदलाव लाना शुरू किया और अति सूक्ष्मवादी जीवनशैली अपना ली. उन के बच्चे व पत्नी भी इसी जीवनशैली से जीते हैं. इस से पूर्व वे अमेरिका में कई उच्चस्तरीय कंपनियों में कार्यरत रहे. वहां औडी व बीएमडब्लू गाड़ी चलाते थे. भारत में आ कर मारुति औल्टो खरीदी. पर आज वे बस द्वारा अपने दफ्तर जाते हैं. सूटबूट तथा उच्चस्तरीय वस्तुओं को छोड़ सादा व सरल जीवन जी रहे हैं.

इस विचार से प्रभावित लोग पुरानी रीति पर चलना चाह रहे हैं जब कम सामान के साथ जीवन व्यतीत किया जाता था. हाल ही में अमेरिकन टीवी कलाकार व जनसेविका ओपरा विनफ्रे ने अपना बहुत सारा सामान बेच दिया ताकि मनमस्तिष्क हलके हो जाएं. उन का मानना है कि हमारे साधन सीमित हैं, इसलिए इन का प्रयोग आवश्यकतानुसार सोचसमझ कर करना चाहिए.

ऐसी ही ऐच्छिक सादगीपूर्ण जीवन जीने के पक्षधर हैं अंकुर वारिकू. वे नियरबाय कंपनी के सीईओ हैं. वे कहते हैं, ‘‘मैं महंगा व फैंसी सामान नहीं खरीदता क्योंकि महंगी व बड़ी कार भी वही कार्य करती है जो एक छोटी कार करती है. दोनों गाडि़यों का कार्य एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना ही होता है. इसलिए छोटीबड़ी गाड़ी से क्या फर्क पड़ता है.’’

इसी सोच के धारक हैं विंसेंट कार्थेसर जोकि एक ऐक्टर हैं. वे कार के बजाय बस द्वारा जाना या पैदल जाना ज्यादा पसंद करते हैं.

ऐसे लोगों की अब संख्या बढ़ रही है. बौलीवुड स्टार सिद्धार्थ मल्होत्रा अपने काम पर साइकिल से जाते हैं. वहीं ऐक्टर नाना पाटेकर अपनी सादगीपूर्ण जिंदगी अपने फौर्म हाउस (पुणे) में ही रह कर जीना पसंद करते हैं. पिछले 10 वर्षों से उन्होंने एक ही गाड़ी रखी हुई है. वे ज्यादा सामान खरीदना/रखना पसंद नहीं करते. इसी तरह बौलीवुड डायरैक्टर मंसूर खान भी अपने औरगैनिक फौर्म पर रह कर सादा जीवन जीते हैं. उन का मानना है कि अगर खुशी चाहिए तो भौतिकवाद से दूर रहें, जरूरत के सामान पर ही निर्भर रहें. भौतिकवाद आप को अपने परिवार के लिए समय नहीं देता, फलस्वरूप, मन अशांत रहता है.

लेखक पीको अय्यर का कहना है कि भोजन सादा खाना चाहिए, फास्टफूड आदि से दूर रहें.

रौ फूड एक्सपर्ट डा. सूर्या कौर कहती हैं, ‘‘सादगी अपनी रसोई से ही शुरू करें. अपनी बौडी के हिसाब से उतना ही खाना खाएं जो पचा सकें.’’ अमेरिकन सोशलवर्कर क्रिस्टीकेन भी सादा भोजन की पक्षधर हैं. वे हलकी आंच से पका चावल खाना पसंद करती हैं.

40 वर्षीय मुंबई बेस्ड पीयूष शाह, जो कि आईटी प्रोफैशनल हैं, ने मुहिम चलाई है, ‘साइकिल टू वर्क.’ उन के अनुसार, साइकिल ईकोफ्रैंडली होने के साथसाथ चुस्तदुरुस्त भी रखती है. अपना बड़ा मकान बेच कर अब ये वनरूम अपार्टमैंट में रहते हैं. वे चाहते हैं कि जीवन सहज व सरल तरीके से व्यतीत हो.

दुनियाभर में मशहूर अमेरिकी व्यवसायी वारेन बफेट तो अपने पास सैलफोन तक नहीं रखते और वे डायरैक्टर क्रिस्टोफर नोलान की तरह ही सादा जीवन व्यतीत करते हैं.

ऐच्छिक सादगी से तात्पर्य कंजूसी से जीना नहीं है और न सबकुछ छोड़ कर ही जीना है बल्कि बेकार के खर्चों पर नियंत्रण करना है. सामान कम करना है और कम करते समय स्वयं से पूछना है कि क्या इस सामान की जरूरत है? तो ज्यादातर जवाब मिलेगा, नहीं. फिर आप बाकी बचे सामान के लिए भी सोचें कि क्या उस के बिना आप रह सकते हैं. तब आप और भी सामान कम कर पाएंगे यानी सीधा सा अर्थ है कि ऐच्छिक सादगी अनचाहे खर्चों को कम करना है.

एक और उदाहरण से आप रूबरू हों. डैनियल सुएलो नामक व्यक्ति ने एक दिन अपनी सारी पूंजी एक टैलीफोन बूथ पर छोड़ दी और वे जंगल व गुफाओं की ओर प्रस्थान कर गए. उन्होंने अपना जीवन जंगली फलफूल पर आश्रित हो व्यतीत किया. इन के ऊपर एक पुस्तक ‘द मैन हू क्विट मनी’ भी लिखी गई है जोकि बहुत पौपुलर हुई.

पर यह एक तरीके से सादा जीवन या अतिसूक्ष्मवाद की पराकाष्ठा है. फिर भी इस से एक शिक्षा तो मिलती है कि संसार के अरबपति, करोड़पति अपनी संपत्ति से कुछ कमी करें तो विश्व से गरीबी खत्म नहीं तो काफी कम तो की ही जा सकती है.

गौर करें तो इन सभी भावों का संबंध भौतिकता से है. अतिसूक्ष्मवाद या ऐच्छिक सादगी अपनाने का अर्थ जीवन को कम से कम वस्तुओं, आवश्यकताओं के साथ व्यवस्थित करने से है.

केवल पदार्थवादी व अनआत्मवाद संबंधी जीवन जी कर हम अपने जीवन में अनावश्यक क्लेश घोलते हैं.

ऐसे टिप्स जो जीवन को सहज व सरल बनाने में सहयोगी होंगे :

– अपने खर्चों पर ध्यान रखें. अच्छा हो कि अपने खर्चों को लिखें ताकि अनावश्यक खर्च पर रोक लग सके.

– क्रैडिट कार्ड का प्रयोग न के बराबर करें.

– रात में मोबाइल फोन तथा वाईफाई बंद रखें.

– फोन की हर बीप पर उसे औन न करें.

– सादगी को ध्यान में रख कर अपनी दिनचर्या में शामिल करें, यह एक सहज कदम होगा.

– जो ज्यादा है उसे जरूरतमंदों में बांट दें. इस से जो खुशी व संतुष्टि मिलेगी वह अप्रतिम होगी.

– जरूरत पड़ने पर ही शौपिंग करें. इसे अपनी हौबी या प्रैस्टिज इश्यू न बनने दें.

– अपनी बौर्डरोब हलकी रखें, क्योंकि पहनेंगे वही जो आप को बहुत पसंद है.

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