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अंग्रेजी ना जानने की वजह से कपिल देव को करना पड़ा इन दिक्कतों का समना

कप्तान के रूप में 1983 में भारत को पहला क्रिकेट विश्व कप का खिताब दिलाने वाले दिग्गज खिलाड़ी कपिल देव ने एक इंटरव्यू में कहा है कि अंग्रेजी न जानने पर लोगों ने उनके कप्तान होने पर सवाल उठाए थे. कपिल ने एक समारोह में अपनी पुरानी यादों को ताजा करते हुए इस बात का खुलासा किया.

इस दिग्गज खिलाड़ी ने कहा, “मैं कृषि पृष्ठभूमि से था और मेरे साथी खिलाड़ी सुसंस्कृत (कल्चर्ड) परिवारों से थे. मेरे लिए यह मेरे जीवन का हिस्सा बन गया था, जो मेरे व्यवहार में नजर आता था.”

कपिल ने कहा, “हमने जब खेलना शुरू किया, तो अधिकतर लोग अंग्रेजी में बात करते थे, हिंदी में नहीं. मुझे जब कप्तान बनाया गया तो लोगों ने कहा कि मुझे अंग्रेजी नहीं आती और मुझे कप्तान नहीं होना चाहिए.

इसकी प्रतिक्रिया में मैंने कहा कि आप किसी को अंग्रेजी में बात करने के लिए औक्सफोर्ड से ले आइए और मैं क्रिकेट खेलना जारी रखूंगा.” 1983 विश्व कप की यादों को ताजा करते हुए कपिल ने कहा कि शुरू में हममें आत्मविश्वास की कमी थी, लेकिन कुछ मैचों में मिली जीत ने हमारे आत्मविश्वास को मजबूत कर दिया.

कपिल ने कहा, “हमने 1983 में शानदार प्रदर्शन किया. यह सच है कि हम मानसिक तौर पर मजबूत नहीं थे, लेकिन कुछ मैच जीतने के बाद हमारा आत्मविश्वास बढ़ गया. 1983 में आखिरकार हमने खिताबी जीत हासिल की.”

उल्लेखनीय है कि फिल्म निर्देशक कबीर खान 1983 में कपिल की कप्तानी में भारतीय टीम को विश्व कप में मिली खिताबी जीत पर एक फिल्म बना रहे हैं, जिसमें अभिनेता रणवीर सिंह को कपिल देव के किरदार में देखा जाएगा.

अमीषा पटेल के इस बैग की कीमत आपके होश उड़ाने के लिए काफी है..!

साल 2000 में फिल्म ‘कहो ना प्यार है’ से अपना फिल्मी करियर शुरू करनेवाली अमीषा पटेल के पास इन दिनों कोई फिल्म नहीं है. गदर जैसी सुपरहिट फिल्म उनकी झोली में होने के बाद भी उनका करियर बेहाल ही रहा. पिछले कई सालों से उन्हें किसी फिल्म में नहीं देखा गया, लेकिन इसके बाद भी उनके स्टाइल का बोलबाला आज भी है.

Thank u @tajbengal for a lovely stay in Kolkata .. now enroute PATNA..

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हाल ही में उन्हें मुंबई एअरपोर्ट पर देखा गया, जहां सबका ध्यान बस उनके बैग पर ही था. उन्होंने सफेद ट्रैकसूट के साथ काला चश्मा लगा रखा था और हाथ में था ‘Versace Chaos’ काउचर का बैग, जिसकी कीमत सुनकर आपको झटका लग सकता है. उनका ये बैग करीब 775 डालर्स, यानी कि 50713 रुपए का था.

खबरों की मानें तो अमीषा को बैग्स का बेहद शौक है, यही वजह है कि उनके पास 200 से ज्यादा बैग्स हैं. भले ही अमीषा के पास काम न हों, पर वे खुद को किसी फेमस सेलिब्रिटी की तरह कैरी करती हैं. इन दिनों वे बड़ी-बड़ी पार्टियों में नजर आती हैं, यहां तक कि वे कई पार्टियों में बिन बुलाए ही पहुंच जाती हैं.

हाथों में हाथ डाले सड़क पर रोमांस करते नजर आए सनी देओल और डिम्पल कपाड़िया

बौलीवुड में कई ऐसी जोड़ियां हैं, जिनका प्यार परवान तो चढ़ा, लेकिन वे साथ-साथ एक दिल-एक जान होकर अपनी जिन्दगी नहीं बिता सके. इन जोड़ियों में एक नाम है डिंपल कपाड़िया और सनी देओल का, जिनके प्यार के किस्से एक समय में लोगों की जुबान पर थे. दोनों ने लम्बे समय तक एक-दूसरे को डेट भी किया, यहां तक कि खबर तो ये भी आई थी कि दोनों ने छुपकर शादी कर ली है. लेकिन इसके बाद भी दोनों एक नहीं हो पाए.

समय के साथ उनके प्यार के किस्से कहीं खो गए, लेकिन हाल ही में हुई एक घटना ने इस आग को फिर से हवा दे दी. इन दिनों इन्टरनेट पर बस एक ही तस्वीर शेयर की जा रही है, जिसमें सनी और डिंपल दोनों हाथों में हाथ डाले लंदन की सड़कों में रोमांस करते हुए दिखाई दे रहे हैं. इस तस्वीर में आप साफ देख सकते हैं कि दोनों किसी बस का इंतजार कर रहे हैं और दोनों बेहद करीब बैठे हैं.

कुछ समय पहले दोनों को एक ही दिन एयरपोर्ट पर देखा गया था, लेकिन दोनों अलग-अलग समय पर एअरपोर्ट से बाहर निकले थे. तब किसी ने भी ये सोचा नहीं था कि दोनों एक साथ हालिडे पर जा सकते हैं. बता दें कि दोनों ने एक साथ ‘मंजिल-मंजिल’, ‘अर्जुन’, ‘नरसिम्हा’, ‘गुनाह’ और कई फिल्मों में एक साथ काम किया है.

जियो फोन में बड़े बदलाव, खरीदने से पहले पढ़ें ये खबर

आपने जियो फोन तो ले लिया होगा, शायद सस्ता समझकर लिया होगा. लेकिन आपको बता दें कि ये फोन सस्ता तो बिलकुल नहीं है. जिस तरह से लान्च करते समय रिलांयस जियो ने बड़े-बड़े सपने दिखाये थे वो आपको भारी पड़ने वाले है. जियो फोन को लान्च करते समय जो सबसे बड़ी शर्त ग्राहकों के सामने रखी गयी थी वो ये कि जियो फोन को खरीदने के लिए आपको 1500 रुपये सिक्योरिटी के तौर पर कंपनी को देना होगा, जो कि 3 साल बाद ग्राहकों को वापस कर दिया जाएगा.

लेकिन यही शर्त अब ग्राहकों के लिए सर दर्द बन गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये रुपये आपको आसानी से मिलने वाले नहीं हैं. रिलायंस जियो ने आखिरकार 0 रु लागत वाले जियो फोन के लिए अपने नियम व शर्तों पर से परदा उठा लिया है. जब से इस फोन और इसकी कीमत का ऐलान हुआ था अटकलें लगाई जा रही थीं कि कंपनी इसपर किस तरह की शर्तें लगा सकती है. पहली बार कंपनी ने खुलकर वेबसाइट पर इसके बारे में बताया है.

जानिए वे 8 खास शर्तें जो इस सस्ते फीचर फोन के साथ जुड़ी हुई हैं.

हर साल करवाना होगा 1500 रु का रीचार्ज

रिलायंस जियो की वेबसाइट पर लिखे नियम व शर्तों के मुताबिक यूजर्स को हर साल कम से कम 1500 रु का रीचार्ज करवाना जरूरी होगा.

जियो फोन का सिम लौक्ड रहेगा

जियो फोन में जियो का सिम कार्ड पहले से लगा हुआ आएगा और यह लौक्ड होगा. यानी इस फोन में यूजर किसी और नेटवर्क का सिम कार्ड इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.

जियो फोन यूजर डिवाइस ना बेच सकेंगे ना किसी को दे सकेंगे

कंपनी की वेबसाइट पर साफ लिखा है कि फोन के ग्राहक ना तो इसे बेच सकते हैं, ना उधार दे सकते हैं और ना ही किसी को स्वेच्छा से फेक सकते हैं.

12 महीने से पहले जियो फोन लौटाने पर

जियो फोन यूजर अगर 12 महीने से पहले यह फोन लौटाना चाहते हैं तो उन्हें 1500 रुपये, जीएसटी और जो भी दूसरे टैक्स लागू हो रहे हैं, उनका भुगतान करना होगा.

12 महीने से 24 महीनों के भीतर फोन लौटाने पर

जो जियो फोन यूजर सालभर के इस्तेमाल के बाद और दूसरा साल पूरा होने से पहले फोन लौटाना चाहते हैं उन्हें जीएसटी और दूसरे टैक्स के साथ 1000 रुपये चुकाने होंगे.

24 महीने से 36 महीनों के भीतर फोन लौटाने पर

जो यूजर 24 महीनों (2 साल) के इस्तेमाल के बाद और 36 महीने (3 साल) पूरे होने से पहले फोन लौटाना चाहते हैं उन्हें जीएस और दूसरे टैक्सों के साथ 500 रु का भुगतान करना पड़ेगा.

जियो फोन वापस लेने का अधिकार

कंपनी को यह अधिकार होगा कि नियम व शर्तों का उल्लंघन करने पर वह किसी ग्राहक से हैंडसेट वापस ले ले.

इसके बाद फोन लौटाया तो कुछ नहीं मिलने वाला

फोन लौटाने की शर्तों में कंपनी ने लिखा है कि फोन को 3 साल पूरे होने के बाद ग्राहक को 3 महीने की मोहलत दी जाएगी. अगर इतने वक्त में वह फोन कंपनी को नहीं लौटाता और 39 महीने पूरे होने की मियाद के बाद फोन वापस करता है, तो उसे कुछ नहीं मिलेगा. फोन खरीदने की तारीख के 36वें से 39वें महीने के भीतर फोन लौटाने वाले ग्राहकों को ही 1500 रु की राशि वापस मिल पाएगी.

क्या अब अमिताभ बच्चन के रोल में दिखेंगी शिल्पा शेट्टी..?

जी हां, आपने बिलकुल सहीं सुना है, अब शिल्पा शेट्टी महिला किरदारों को छोड़कर अमिताभ बच्चन के रोल में नजर आएंगी. वे न सिर्फ अमिताभ बच्चन की तरह दिखाई देंगी, बल्कि उनकी तरह बात भी करेंगी.

इस खबर को पढ़कर आप जरूर सोच में पड़ गए होंगे कि आखिर ये कैसे मुमकिन है. चलिए हम आपको पूरी बात बताते हैं, जिसे पढ़कर आपको भी इस बात पर यकीन हो जाएगा.

दरअसल शिल्पा शेट्टी जल्द ही फराह खान के एक शो में नज़र आएंगी, जिसमें वे अमिताभ बच्चन का किरदार निभाएंगी. उन्होंने खुद अमिताभ के गेटअप में अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की है. शिल्पा की माने तो ‘उन्हें खुद नहीं पता कि उन्होंने अमिताभ बच्चन जैसे दिग्गज कलाकार की नकल करने की हिम्मत कैसे जुटाई. उन्हें ये काम करने के लिए फराह खान ने कहा था.’

शिल्पा ने कहा कि वे पूरी तरह से उनके किरदार में ढल गई थीं. अमित जी के लिए ये उनका प्यार है, जो उनके जीवन का सबसे मुश्किल काम था. फराह खान का ये शो जल्द ही टीवी पर धूम मचाने आ रहा है. इस शो में न सिर्फ बौलीवुड हस्तियां, बल्कि खेल जगत के खिलाड़ी भी हिस्सा लेंगे.

अपने होंठों को कुछ इस तरह से दें मैट प्रूफ लुक

खूबसूरत, गुलाबी होंठों की चाह हर महिला की होती है और इस के लिए वह तमाम चीजों का सहारा लेती है, ले भी क्यों न, क्योंकि सुंदर होंठ सभी का ध्यान आकर्षित जो करते हैं.

होंठों के मेकअप को ले कर सौंदर्य विशेषज्ञ इशिका तनेजा कहती हैं कि लिप मेकअप का मतलब सिर्फ ट्रैंड के अनुसार होंठों पर कोई भी लिपस्टिक लगा लेना नहीं है, बल्कि उन का सौंदर्य बढ़ाने के लिए कुछ बातों का ज्ञान होना आवश्यक है.

बारिश के बाद उमस भरे दिनों में हौट लिपस्टिक ट्रैंड को अगर देखें तो मैट प्रूफ लुक के लिए मैट लिपस्टिक ही इन दिनों सब से ज्यादा पसंद की जाती है, जिस तरह से कपड़ों का फैशन बदलता है, उसी तरह से ब्यूटी प्रोडक्ट्स में भी नए कलर, नए स्टाइल आते हैं, इसलिए अगर खुद को फैशन के साथ अपडेट रखना चाहती हैं, तो न्यू लिपस्टिक ट्रैंड को ही फौलो करें.

अब फैशन ग्लौसी लिपस्टिक का नहीं, बल्कि मैट लिपस्टिक का है. मैटी फिनिश वाली लिपस्टिक बारिश के बाद उमस भरे दिनों के लिए सब से अच्छी होती है, क्योंकि इस की खासीयत यह होती है कि यह ह्यूमिडिटी और चिपचिपाहट वाले दिनों में होंठों पर फैलती नहीं है, उलट डिसैंट लुक देती है. मैट लिपस्टिक में डीप रैड, चैरी रैड, वाइन, प्लम, बरगंडी, कोरल रैड, डार्क ब्राउन, मैरून, ब्लैकिश मैरून, ब्लैक कलर ट्रैंड में हैं.

मैट का है बोलबाला

इस सीजन में मैट का ही बोलबाला है. आजकल कई कंपनियां लिक्विड फौर्म में भी मैट लिपस्टिक बाजार में उतार चुकी हैं, जिन से आप को मैट लुक ही नहीं मिलेगा, बल्कि ऐसी लिपस्टिक्स होंठों को हाइड्रेट भी करती हैं. आप को न्यूड से ले कर डार्क टोन्स तक के मैट लिप कलर मार्केट में मिल जाएंगे.

मैकाडामिया औयल, विटामिन ई और ऐवोकाडो बटर से बनी हाई क्वालिटी की कई मैट लिपस्टिक्स आप के होंठों की खूबसूरती को चार चांद लगाती हैं. इन की एक और खासीयत है कि ये लंबे समय तक खराब नहीं होती हैं.

मैट लिपस्टिक नैचुरल दिखने में मदद करती है. यह होंठों पर इस तरह लगती है मानो होंठों का रंग ही वैसा है. लिपस्टिक चार्ट या ऊपर से लिपस्टिक का रंग देख कर लिपस्टिक खरीदना समझदारी नहीं है. जो भी लिपस्टिक खरीदें वह लगाने पर आप की स्किन से मैच करे.

ध्यान रखें कि निचले होंठ के रंग से 2 शेड गहरी लिपस्टिक ही लें. रंग परखने के लिए लिपस्टिक को निचले होंठ पर लगाएं और ऊपर के होंठ को देख कर रंग की गहराई को चैक करें.

रैड मैट लिपस्टिक तुरंत ग्लैमरस लुक देती है. लेकिन लिपस्टिक के रंग का सही प्रभाव देखने के लिए बिना मेकअप किए इसे एक बार लगा कर जरूर चैक कर लें.

मान लें अगर आप कई शेड्स खरीद रही हों तो उन्हें चैक करते समय ध्यान रहे कि एक शेड को पोंछने के बाद ही दूसरा शेड होंठों पर लगाएं.

मैट लिपस्टिक का प्रयोग

मैट लिपस्टिक का अच्छा लुक आए इस के लिए कंसीलर का प्रयोग जरूरी है. पहले होंठों पर कंसीलर लगा लें ताकि लिपस्टिक का रंग उभर कर आए. इस का 1 नहीं 2 कोट लगाएं और कोट लगाने के पहले या बाद में होंठों को आपस में रब करने से बचें. हां, लिपस्टिक के पहले लिपलाइनर लगा कर होंठों को शेप देना न भूलें. इस का कारण यह है कि लिपलाइनर की इस शेप पर ही टिक कर मैट लिपस्टिक काम करेगी. ग्लौसी लिपस्टिक की तरह मैट लिपस्टिक होंठों पर अपनेआप नहीं फैलती है, इसलिए होंठों पर लिपलाइनर की आउटलाइन ले कर इसे लगाना जरूरी होता है.

जिन के होंठ बहुत मोटे होते हैं, वे मैट लिपस्टिक का इस्तेमाल कर के अपनी लिपशेप को पतला दिखा सकती हैं. सांवली त्वचा वाली महिलाओं पर लिपस्टिक के मैट शेड्स ज्यादा अच्छे लगते हैं.

अगर दिन में कहीं जाना है या औफिस, कालेज जाते समय लिपस्टिक लगानी है, तो हलके व मैट शेड्स का प्रयोग करें, क्योंकि दिन में बहुत गाढ़े व चमक वाले रंग सूट नहीं करते.

मैट लिपस्टिक के प्रयोग में सावधानी जरूरी है. अगर होंठ फटे हों तो यह लिपस्टिक न लगाएं. ऐसी हालत में मैट लिपस्टिक लगाने से पहले होंठों को स्क्रब कर के ऐक्सफौलिएट कर लें. वैसे भी इन लिपस्टिक्स के इस्तेमाल से पहले नौर्मल होंठों पर बेबी औयल से हलकी मालिश कर लेनी चाहिए, क्योंकि कौमन मैट लिपस्टिक्स होंठों को रूखा कर देती हैं. बेबी औयल लगाने से एक तो दरारे नजर नहीं आतीं दूसरे होंठ भी नम हो जाते हैं.

– इशिका तनेजा, ऐग्जीक्यूटिव डायरैक्टर. एल्प्स ब्यूटी क्लीनिक

फैशन का है व्यक्ति से सीधा संबंध, इसलिए इसे दें सही स्टाइल

फैशन और स्टाइल का व्यक्ति से सीधा संबंध है. अगर उस की स्टाइल सैंस सही नहीं है तो फैशन कितना भी करे जंचता नहीं. महंगे कपड़े और भारीभरकम गहने आदि पहन लेने से कोई सुंदर नहीं लग सकता. इस के लिए शरीर की संरचना के साथसाथ अवसर, मौसम का भी खयाल रखना पड़ता है. अगर आप को इस की समझ नहीं है तो फैशन स्टाइलिस्ट के पास जा कर सही ड्रैस सैंस का विकास कर सकती हैं.

व्यक्ति अलग स्टाइल अलग

इस संबंध में मुंबई की इमेज कंसल्टैंट और फैशन स्टाइलिस्ट नेहा गुप्ता बताती हैं, ‘‘मैं 15 सालों से इस क्षेत्र में काम कर रही हूं. फैशन हर साल बदलता है, लेकिन स्टाइल हर व्यक्ति का अलगअलग होता है और यह बदलता नहीं. स्टाइलिंग के लिए व्यक्ति के रंग, उस की शारीरिक संरचना पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. चाहे प्लस साइज हो या थिन, सही स्टाइलिंग से व्यक्ति ग्लैमरस और आकर्षक दिखता है. यह जरूरी नहीं कि सुंदर दिखने के लिए महंगे कपड़े पहनें. अगर साधारण सी ड्रैस भी अपने स्टाइल के हिसाब से चुनी है, तो आप अच्छी लग सकती हैं. कोई भी ड्रैस कलर, फैब्रिक और उद्देश्य के आधार पर पहनी जानी चाहिए.’’

यह समझना भी आवश्यक है कि स्टाइल को कैसे बनाए रखें. इस बारे में नेहा का मानना है कि कुछ में मैनर्स नैचुरली होते हैं, लेकिन कुछ की बौडी लैंग्वेज सही नहीं होती. ऐसे में उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता. उन्हें बातचीत का सलीका सीखने की जरूरत होती है, ताकि अपने क्षेत्र में सफल हों.

प्रेजैंटेबल बनें

हाउसवाइफ भी इस की शिकार होती हैं. अगर उन्होंने सही तरह से बातचीत करना सीख लिया, तो उन का आत्मविश्वास बढ़ता है. वे खुद को कमतर नहीं समझतीं. वे परिवार में अच्छा वातावरण कायम कर सकती हैं. यह एक तरह का विज्ञान है, जिसे समझना जरूरी है. करीब 90% महिलाएं और पुरुष अपने बारे में नहीं जानते.

नेहा कहती हैं, ‘‘अधिकतर महिलाएं मुझ से पूछती हैं कि उन में क्या कमी है? ऐसे में उन्हें समझाना पड़ता है कि कमी कुछ भी नहीं है, केवल उन्होंने खुद को सही तरह से प्रेजैंट नहीं किया है. वे इसे सीख लेती हैं, तो उन की समझ में आ जाता है और वे आगे बढ़ती जाती हैं. इस के अलावा कई बार महिलाएं या पुरुष सोचते हैं कि उन का लुक खराब है, जबकि ऐसा नहीं होता. इंडस्ट्री के कई ऐसी ऐक्ट्रैसेज और ऐक्टर्स हैं, जो खास लुक्स न होने पर भी सफल रहे हैं. फेस की शेप और बौडी के अनुसार कौंबिनेशन में कपड़े पहनना सही रहता है. सही स्टाइल से मूड बदलता है, अपने काम पर अधिक फोकस कर सकते हैं, स्मार्ट दिख सकते हैं, अच्छा सोच सकते हैं, आत्मविश्वास बढ़ता है और फिर काम करने का तरीका भी बदल जाता है.’’

पहले इमेज को ले कर भारत में इतनी जागरूकता नहीं थी, पर अब सब इस पर ध्यान देते हैं. जब काम के बाद तारीफ मिलती है, तो व्यक्ति को प्रेरणा मिलती है. इसलिए आजकल कई कंपनियां भी इमेज कंसलटैंट हायर करती हैं.

लोगों के सामने प्रेजैंटेबल दिखने की कला ही आप की पहचान बनाती है इसलिए सचेत रहें और स्मार्ट दिखें.

फैशन मिस्टेक्स

नेहा के हिसाब से कुछ गलतियां जो अकसर लोग करते हैं, वे निम्न हैं:

सही फैब्रिक न पहनना.

कपड़े का रंग सही न होना.

पार्टी के अनुसार तैयार न होना.

दूसरों को अपने से अच्छा समझना.

इस में सुधार के निम्न उपाय हैं:

कहीं जाने से 2 दिन पहले कपड़े का चयन करें और उसे ट्राई कर देख लें कि वह ठीक है या नहीं.

गरमी के मौसम में हलके रंग अधिक पहनें तो सर्दी के मौसम में डार्क कलर. मेकअप भी उन के अनुसार ही करें. अगर पोशाक हैवी हो तो गहने कम पहनें. इसी तरह लाइट पोशाक पर हैवी गहने सही लगते हैं.

दिन में हलका रंग और फैब्रिक तो रात में गहरा रंग और हैवी फैब्रिक पहना जा सकता है.

विचित्र संयोग : आखिर किसने की थी रोहिणी की हत्या

रविवार की सुबह 7 बजे के लगभग नोएडा का धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही

यहां मछलियों का बाजार लग जाता था. इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता था.

सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर

2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.

गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल का एक फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे. रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. रोहिणी शाम साढ़े 6 बजे तक घर लौट आती थी.

पति पत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्टी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था. पहली अप्रैल की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो  चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, ‘‘साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हैं?’’

धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी.

फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, ‘‘उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.’’

उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रख कर वह बैडरूम में घुसा तो उस की चीख निकल गई, ‘‘रोहिणी?’’

धनंजय की सुंदर पत्नी रोहिणी रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. उस के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी. कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ विश्वास?’’

सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, ‘‘रो…हि…णी.’’

सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर गए. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.

दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा पहुंच गए. तब तक आशीष शर्मा भी 2 सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए थे. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए पुलिस सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंची. पुलिस के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.

प्रकाश राय ने सीधे ऊपर न जा कर इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढि़यां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था. इमारत के चारों ओर घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने सिक्योरिटी इंचार्ज खन्ना से पूछा, ‘‘ये कमरे किस के हैं?’’

‘‘सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .’’

‘‘कितने वाचमैन हैं?’’

‘‘2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में होती है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.’’

‘‘दोनों के नाम क्या हैं और ये रहते कहां है?’’

‘‘कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो गार्ड अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.’’

‘‘अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?’’

‘‘एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.’’

खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर पहुंचे. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए. प्रकाश राय चौकीदार नारायण, जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. उस से पूछताछ करने लगे, पर उस से प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट लेने जाते और लौटते देखा था बस.

प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रख कर सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिला तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर रहूंगा.’’

प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. कमरे का निरीक्षण करते. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग क र जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना. प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.

बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए धनंजय से कहा, ‘‘मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?’’

धनंजय ने प्रकाश राय को दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?’’

फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में पूछा, ‘‘तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?’’

‘‘रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.’’

‘‘इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?’’

‘‘नहीं साहब, कल शनिवार  था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.’’

‘‘कारण?’’

‘‘अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने जाने वाले थे.’’ कहते हुए धनंजय ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. वह सही कह रहा था. आशीष शर्मा को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आशीष, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.’’

प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?’’

‘‘साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.’’

‘‘तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?’’

‘‘जी सर.’’

थोड़ी देर में आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे.

अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते इसी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.

पोस्टमार्टम के बाद लाश धनंजय और उस के घर वालों को सौंप दी गई थी. अंतिम संस्कार में प्रकाश राय तो फोर्स के साथ गए ही थे, अपने कुछ लोगों को भी ले गए थे, जो अंतिम संस्कार में आए लोगों की बातें सुन रहे थे.

विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए. एक आदमी कह रहा था, ‘‘कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?’’

‘‘सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.’’

‘‘आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.’’

‘‘शनिवार को बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?’’

आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी ने भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था—

‘‘विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.’’

‘‘आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.’’

‘‘वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ था.’’

ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं.

यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?

प्रकाश राय स्वयं आशीष शर्मा को ले कर चल पड़े. रास्ते में उन्होंने उसे आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग नहीं मिल रहा है.’’

‘‘हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.’’

‘‘तुम्हें किस ने फोन किया था?’’

‘‘सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम अलकनंदा गए थे. मैं दाहसंस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.’’

‘‘आप जरा बुलाएंगे उन्हें?’’

कुछ क्षणों बाद ही 5-6 कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हैडकैशियर सोलंकी से पूछा, ‘‘शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?’’

‘‘हां, 40 हजार…’’

‘‘खाता किस के नाम था?’’

‘‘मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.’’

‘‘आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी, वह किस रूप में थी?’’

‘‘5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दी थी. उन नोटों के नंबर भी मेरे पास हैं.’’

प्रकाश राय ने आशीष शर्मा से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.

कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, ‘‘बिष्ट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?’’

‘‘नहीं,’’ वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, ‘‘वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.’’

‘‘अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?’’

‘‘निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था?’’

‘‘यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है? अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है? अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.’’

मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.

‘‘पता कहां का है?’’ मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.

‘‘साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?’’

‘‘औपरेटर ने बताया कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.’’

इतने में ही आशीष शर्मा और मिश्रा वहां आ पहुंचे. आशीष अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बडे़ ही सहज ढंग से पूछा, ‘‘मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?’’

‘‘हां, है. आप को कुछ…?’’

‘‘नहीं…नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.’’

प्रकाश राय और आशीष शर्मा बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं. मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, ‘‘मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.’’

आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.

‘‘मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?’’

‘‘हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.’’

‘‘आइए, अंदर आइए.’’

प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.’’

बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौपिंग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसीलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे. आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, ‘‘अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?’’

‘‘मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?’’

प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.

‘‘हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?’’

‘‘आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

‘‘हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.’’

‘‘लेकिन जानपहचान कैसे हुई?’’

‘‘हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.’’

‘‘सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?’’

‘‘अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को गाजियाबाद उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिए थे.’’

‘‘तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘इस का कारण?’’ प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.

‘‘कारण…?’’ आनंद गड़बड़ा गया, ‘‘एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.’’

‘‘रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?’’ प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.

‘‘पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.’’

‘‘अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?’’

‘‘शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.’’

अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. लेकिन ॐन के एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था. इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, ‘‘आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हैं?’’

 

गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, ‘‘लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.’’

‘‘नहीं..,’’ आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.’’

‘‘लेकिन सर, किसी ने हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?’’ आनंद ने पूछा.

‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?’’

‘‘मैं क्या कह सकता हूं?’’

‘‘मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं है, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?’’

‘‘नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.’’

प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा,  ‘‘आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?’’

‘‘नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं फिर मिलूंगा.’’

मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद नहीं किया ज सकता. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे यह…तो.’’ घंटी बजा कर इन्होंने आशीष शर्मा को बुलाया.

‘‘आशीष शर्मा, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.’’ कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं. आशीष शर्मा और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले,  ‘‘जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा दूसरे केस देखता हूं.’’

उत्साहित हो कर आशीष शर्मा निकल पड़े. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार आशीष शर्मा पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.

करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और आशीष शर्मा अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘मि. विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का हाथ जरूर है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’

‘‘ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.’’ कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस  में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.

15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी. गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?’’

धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप…?’’

‘‘मैं बैंक मैनेजर हूं.’’

‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’

‘‘हां, यह धनंजय विश्वास हैं.’’

‘‘आप के बैंक में इन का खाता है?’’

‘‘खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.’’

‘‘आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?’’

बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, ‘‘मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.’’

धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, ‘‘यह क्या है मिस्टर विश्वास?’’

धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.

‘‘मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?’’ प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.

एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.’’

दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही प्रिंट्स मिले थे.  इसीलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी की मौत आधी रात के बाद 2 बजे से सुबह 4 बजे के बीच हुई थी.

जबकि धनंजय सवा 6 बजे से 7 बजे के बीच हत्या होने की बात कह रहा था? पूरा माजरा प्रकाश राय की समझ में धीरेधीरे आता जा रहा था. धनंजय को अपने ही घर में चोरी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब भी प्रकाश राय की समझ में आ गया था. उन्होंने आशीष शर्मा को समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, धनंजय बहुत ही चालाक है. तुम एक काम करो,पिछले 2 दिनों से धनंजय बाहर नहीं गया है. आज भी वह घर पर ही होगा. कुछ दिनों बाद वह चोरी का सामान किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जरूर रखेगा. उस का सारा घर हम लोगों ने छान मारा है. हो सकता है, उस ने बिल्डिंग में ही कहीं सामान छिपा कर रखा हो या फिर…

‘‘धनंजय जिस वक्त गोश्त लाने निकला था, उस समय उस ने सामान कहीं बाहर रख दिया होगा. पर उस ने कहां रखा होगा? आशीष कहीं ऐसा तो नहीं कि वह थैली ले कर नीचे उतरा हो और स्कूटर की डिक्की में रख दी हो? हो सकता है.’’ प्रकाश राय चुटकी बजाते हुए बोले, ‘‘वह थैली अभी उसी डिक्की में ही हो? तुम फौरन अपने स्टाफ सहित निकल पड़ो और धनंजय पर नजर रखो.’’

इस के बाद आशीष शर्मा ने अलकनंदा के आसपास अपने सिपाहियों को धनंजय पर निगरानी रखने के लिए तैनात कर दिया था. धनंजय अपने स्कूटर पर ही निकलेगा, यह आशीष शर्मा जानते थे. इसलिए उन्होंने स्कूटर वाले और टैक्सी वाले अपने 2 मित्रों को सहायता के लिए तैयार किया. सारी तैयारियां कर के वह अलकनंदा के पास ही एक इमारत में रह रहे अपने एक गढ़वाली मित्र के घर में जम गए.

5 मई का दिन बेकार चला गया. 6 मई को दोपहर के समय धनंजय के नीचे उतरते ही आशीष शर्मा सावधान हो गए. वह अपनी स्कूटर स्टार्ट कर के जैसे ही बाहर निकला, वैसे ही ही अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी में बैठ कर वह उस के पीछे हो लिए. गोल चक्कर होते हुए धनंजय निरुला होटल के पास स्थित बैंक के सामने आ कर रुक गया. आशीष ने थोड़ी दूरी पर ही टैक्सी रुकवा दी. स्कूटर खड़ी कर के धनंजय ने डिक्की खोली और कपड़े की एक थैली निकाली. धनंजय के हाथ में थैली देख कर ही उन्होंने मन ही मन प्रकाश राय के अनुमान की प्रशंसा की.

थैली ले कर धनंजय के बैंक में घुसते ही आशीष ने अपने मित्र को बैंक में भेजा, क्योंकि यह जानना जरूरी था कि धनंजय का बैंक में खाता है या किसी परिचित से मिलने गया था. उन के मित्र ने लौट कर उन्हें बताया कि धनंजय मैनेजर के साथ लौकर वाले कमरे में गया है. इस से पहले सीधे मैनेजर की केबिन में जा कर उस ने एक फार्म भरा था.

धनंजय को खाली हाथ बाहर आते देख कर अपने 2 सिपाहियों को उस का पीछा करने के लिए कह कर आशीष शर्मा वहीं ओट में खड़े हो गए. धनंजय के वहां से जाते ही वह सीधे बैंक मैनेजर की केबिन में पहुंचे. अपना परिचय दे कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी 5 मिनट पहले जिस व्यक्ति ने आप के यहां लौकर लिया है, वह वांटेड है. हमारे आदमी उस का पीछा कर रहे हैं. आप हमें सिर्फ यह बताइए कि आप से उस की क्या बातचीत हुई. ’’

‘‘धनंजय को एक महीने के लिए लौकर चाहिए  था. यहां उपलब्ध लौकर्स में से उस ने 106 नंबर लौकर पसंद किया. नियमानुसार फार्म भर कर एडवांस जमा किया और लौकर में एक थैली रख कर चला गया.’’

आशीष शर्मा ने बैंक से ही प्रकाश राय को फोन किया. इस के बाद बैंक मैनेजर से कहा, ‘‘यह व्यक्ति शायद कल फिर आए, तब इसे लौकर खोलने की इजाजत मत दीजिएगा. मैं कुछ सिपाही कल सवेरे बैंक खुलने से पहले ही यहां भेज दूंगा. वह यहां आया तो इसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अगर यह खुद नहीं आया तो हम इसे ले कर आएंगे.’’

धनंजय को बैंक ले जाने के लिए जब प्रकाश राय अलकनंदा पहुंचे थे तो वहां शो केस की वस्तुओं को देखने के बहाने उन्होंने चाबी के गुच्छे में लौकर नंबर 106 की चाबी देख ली थी. टेलीफोन के पास रखी धनंजय की टेलीफोन डायरी को उन्होंने केवल आनंदी का नंबर जानने के लिए यों ही उल्टापलटा था. ‘ए’ पर आनंदी का नंबर न पा कर उन्होंने ‘जी’ पर नजर दौड़ाने के लिए पन्ने पलटे, क्योंकि आनंदी का पूरा नाम आनंदी गौड़ था. मगर ‘एफ’ और ‘एच’ के बीच का ‘जी’ पेज गायब था. वह पेज फाड़े जाने के निशान मौजूद थे.

पकड़े जाने के थोड़ी देर बाद ही धनंजय ने अपने आप पर काबू पा लिया था. गहरी सांस ले कर उस ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं ने ही अपनी बीवी की हत्या की है. उस के चरित्र पर मुझे लगातार शक रहता था. आगे चल कर मेरा शक विश्वास में बदल गया. लेकिन कुछ बातें अपनी आंखों से देखने पर मैं बेचैन हो उठा. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, पर मुझे धोखा दे कर उस ने सब कुछ नष्ट कर दिया था. उस की चरित्रहीनता का कोई सबूत मैं नहीं दे सकता. मेरे पास एक ही रास्ता था, उसे हमेशा के लिए मिटा देने का. वही मैं ने किया भी.’’

प्रकाश राय धनंजय को कोतवाली ले आए. धनंजय ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से रोहिणी का खून किया था. रविवार पहली तारीख को उस ने जानबूझ कर आशीष तनेजा और देवेश तिवारी को अपने घर बुलाया. रात 3 से 4 बजे के बीच रोहिणी की हत्या करने के बाद सवेरे उठ कर वह बड़े ही सहज ढंग से मटनमछली लाने गया, सिर्फ इसलिए कि कोई उस पर शक न करे. इतना ही नहीं, पुलिस को चकमा देने के लिए उस ने खुद चोरी भी की थी. चोरी का सारा सामान उस ने मटन लेने जाते समय स्कूटर की डिक्की में रख दिया था.

इस के बाद वह कुछ बताने को तैयार नहीं था. जब प्रकाश राय ने टेलीफोन डायरी का ‘जी’ पेज कैसे फटा, इस बारे में पूछा तो जवाब में उस ने सिर्फ 2 शब्द कहे, ‘‘मालूम नहीं.’’

धनंजय को अगले दिन कोर्ट में पेश करना था. उस रात प्रकाश राय देर तक औफिस में ठहरे थे. एक सिपाही से उन्होंने धनंजय को अपने पास बुलवाया और उसे कुर्सी पर बैठा कर बोले,‘‘धनंजय, मेरा काम पूरा हो गया है. कल तुम्हें जेल भेजने के बाद हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी. मुझे मालूम है कि तुम कुछ न कुछ छिपा रहे हो. मैं सत्य जानने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम मुझे कुछ भी बतोओगे, उस का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे सारे कागजात तैयार हो गए हैं. उस में परिवर्तन नहीं हो सकता है. तुम जो कुछ भी बताओगे, वह मेरे तक ही सीमित रहेगा. अब मुझे बताओ कि तुम ने आनंद और आनंदी को रोहिणी की हत्या की खबर क्यों नहीं दी और आनंदी के फोन नंबर का ‘जी’ पेज तुम ने क्यों फाड़ डाला?’’

धनंजय गंभीर हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. कुछ क्षणों बाद खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘जो सच है, मैं सिर्फ आप को बता रहा हूं. एक सुखी परिवार को नष्ट करना या बचाना, आप के हाथ में है. पर मुझे विश्वास है कि आप यह बात किसी और को नहीं बताएंगे.

‘‘आगरा में रोहिणी की मौसेरी बहन का विवाह था. उसी विवाह में हम आगरा गए थे. विवाह के बाद शताब्दी एक्सप्रेस से हम लौट रहे थे तो हमारी मुलाकात आनंद और आनंदी से हो गई. वे सामने की सीट पर बैठे थे. मैं 2 पैग पिए हुए था, फिर भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. उस समय मेरी नींद उड़ गई थी.’’

‘‘ऐसा क्यों?’’

‘‘मेरे सामने बैठी आनंदी और कोई नहीं, मेरी प्रेमिका थी. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते थे.’’

‘‘क्या?’’ प्रकाश राय की आंखें हैरानी से फैल गईं, ‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ?’’

‘‘मेरी क्या हालत हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं. पास में पत्नी बैठी थी और सामने प्रेमिका, वह भी अपने पति के साथ. मुझे देखते ही आनंदी भी परेशान हो गई थी. मैं असहज मानसिक अवस्था और बेचैनी के दौर से गुजर रहा था, वह भी उसी दौर से गुजर रही थी. सचसच कहूं तो हम दोनों ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रहे थे.

‘‘इस मुलाकात के असर से उबरने में मुझे 4 दिन लगे. तब मुझे नहीं मालूम था कि एक चक्रव्यूह से निकल कर मैं दूसरे चक्रव्यूह में फंस गया हूं. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि इस दूसरे चक्रव्यूह से निकलने के लिए मुझे रोहिणी की हत्या करनी पड़ेगी. खैर…

‘‘ट्रेन में आनंदी और रोहिणी की गप्पें जो शुरू हुईं तो थोड़ी देर बाद वे एकदूसरे की पक्की सहेली बन गईं. आनंदी 2-3 बार मेरे घर भी आई थी. खुदा का लाख शुक्र था कि हर बार मैं घर पर नहीं रहा. मैं आनंदी से मिलना भी नहीं चाहता था. मैं उस से संबंध बढ़ा कर रोहिणी को धोखा देना नहीं चाहता था. इसलिए रोहिणी और आनंदी की बढ़ती दोस्ती से मैं चिंतित था.’’

धनंजय सांस लेने के लिए रुका. प्रकाश राय को लगा, कुछ कहने के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहा है. उन का अंदाजा गलत नहीं था. धनंजय भारी स्वर में बोला, ‘‘एक दिन ऐसी घटना घटी कि मैं पागल सा हो गया. मुझे लगा, मेरे दिमाग की नसें फट जाएंगी. अपने सिर को दोनों हाथों से थाम कर मैं जहां का तहां बैठ गया. अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो गया. मैं कंपनी के काम से सेक्टर-18 गया था. वहां एक होटल में मैं ने रोहिणी को एक युवक के साथ सटी हुई बैठी देखा, हकीकत जाहिर करने के लिए यह काफी था. मैं यह जानता था कि उस होटल में रूम किराए पर मिलते थे. मैं उस होटल से थोड़ी दूरी पर ही बैठ कर कल्पना से सब देखता रहा. खून कैसे खौलता है, मैं ने उसी वक्त महसूस किया. 12 बजे उस होटल में गई रोहिणी 4 बजे बाहर निकली थी.

‘‘इस के बाद कुछ दिनों की छुट्टी ले कर मैं ने रोहिणी का पीछा किया. अनेक बार रोहिणी मुझे उसी युवक के साथ दिखाई दी. वह युवक और कोई नहीं, आनंद था…आनंदी का पति.’’

धनंजय ने आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछा. प्रकाश राय स्तब्ध बैठे थे, पत्थर की मूर्ति बने. थोड़ी देर बाद शांत होने पर धनंजय बोला, ‘‘कैसा अजीब इत्तफाक था. विवाह से पहले मेरी प्रेमिका के साथ मेरे शारीरिक संबंध थे और विवाह के बाद मेरी प्रेमिका के पति के साथ मेरी पत्नी के शारीरिक संबंध. आनंदी को तो मैं पहले से जानता था, लेकिन रोहिणी और आनंद की पहचान तो शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. यात्रा के दौरान जिस चक्रव्यूह में मैं फंसा था, उस से निकलने के लिए मैं ने रोहिणी को हमेशा के लिए मिटा दिया और आनंदी मेरी नजरों के सामने न आए, इसीलिए मैं ने टेलीफोन डायरी से ‘जी’ पेज फाड़ दिया था. मुझे जो भी सजा होगी, इस का मुझे जरा भी रंज नहीं होगा. मैं खुशीखुशी सजा भोग लूंगा. बस यही है मेरी दास्तान.’’

इस केस की बदौलत आनंद और आनंदी से प्रकाश राय की जानपहचान हो गई थी. कुछ दिनों बाद आनंद से उन्हें एक ऐसी बात पता चली कि उन का सिर चकरा कर रह गया था. जबजब आनंद और आनंदी उन के सामने आते थे, वह बेचैन हो जाते थे और सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि काश, धनंजय और आनंदी एवं रोहिणी और आनंद का विवाह हो गया होता.

एक दिन बातचीत में आनंद ने कहा, ‘‘मुझे धनंजय की सजा का दुख नहीं है. उसे सजा होनी भी चाहिए. मुझे दुख है तो रोहिणी का. मैं ने आप से कहा था कि रोहिणी की और मेरी मुलाकात शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. रोहिणी को देख कर मैं अभेद्य चक्रव्यूह में फंस गया था. आगरा से दिल्ली तक की यात्रा के घंटे मैं ने कैसे बिताए, मैं ही जानता हूं, क्योंकि मेरे सामने बैठी रोहिणी कोई और नहीं, मेरी पूर्व प्रेमिका थी.’’

यह सुनते ही प्रकाश राय के होश फाख्ता होतेहोते बचे. विचित्र था संयोग और भयानक थी भाग्य की विडंबना. क्या सचमुच नियति के खेल में मनुष्य मात्र खिलौना होता है?

(कथा सत्य घटना पर आधारित है, किसी का जीवन बरबाद न हो, कथा में स्थानों एवं सभी पात्रों के नाम बदले हुए हैं)

2 लड़कियों की ऐसी आशिकी आपने शायद ही पहले कभी देख होगी

18 मार्च, 2017 को पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना मिली कि गांव अनोड़ा में कुछ लोगों ने 2 लड़कियों को घेर रखा है, उन की जान को खतरा है. कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना राया पुलिस को दे दी, क्योंकि गांव अनोड़ा उसी के अंतर्गत आता था. सूचना मिलते ही थाना राया के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अनिल कुमार पुलिस बल के साथ गांव अनोड़ा पहुंच गए. गांव पहुंच कर उन्हें पता चला कि वह फोन रामखिलाड़ी के घर से किया गया था.

पूछताछ में अनिल कुमार के सामने जो घटना आई, वह हैरान करने वाली थी. फोन जिन 2 लड़कियों ने किया था, वे आपस में शादी करना चाहती थीं, जो लोगों को स्वीकार नहीं था. लोग दोनों को अलग करना चाहते थे, जबकि लड़कियां एकदूसरे से अलग नहीं होना चाहती थीं. जब लोग जबरदस्ती करने लगे तो उन्होंने कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर दिया था.

मामला कोई बहुत गंभीर नहीं था, फिर भी कुछ लोगों को उत्तेजित देख कर अनिल कुमार दोनों लड़कियों को साथ ले कर थाने आ गए. उन के पीछेपीछे दोनों लड़कियों के घर वाले ही नहीं, कुछ रिश्तेदार और गांव के भी तमाम लोग आ गए थे.

पुलिस जिन दोनों लड़कियों को थाने ले आई थी, उन में से एक का नाम सोनिया था. उस की उम्र 23 साल थी. वह मथुरा जिले के थाना राया के गांव अनोड़ा के रहने वाले रामखिलाड़ी की बेटी थी. उस के साथ आई लड़की का नाम रीना था, जो 21 साल की थी. वह गांव रूमगेला के रहने वाले लक्ष्मण की बेटी थी.relationship in hindi

थाने में की गई पूछताछ में सोनिया और रीना के प्रेम से ले कर बात विवाह तक पहुंचने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना राया का एक गांव है अनोड़ा. रामखिलाड़ी इसी गांव के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी भारती के अलावा 4 बेटियां और एक बेटा था.

रामखिलाड़ी कपड़ों पर प्रैस कर के गुजरबसर करते थे. सोनिया उन की सब से छोटी बेटी थी. उन्होंने 3 बेटियों की शादी कर दी थी. अब वह सोनिया की शादी के बारे में सोचने लगे थे.

लेकिन सोनिया कुछ अलग तरह की लड़की थी, जिसे ले कर रामखिलाड़ी ही नहीं, उन की पत्नी भारती भी चिंतित रहती थी. इस की वजह यह थी कि सोनिया बचपन से ही लड़कियों की तरह नहीं, लड़कों की तरह रहती आई थी. वह कपड़े तो लड़कों जैसे पहनती ही थी, उस की सोच, बातचीत का लहजा भी लड़कों जैसा था. वह रहती भी लड़कों के साथ ही थी.

सोनिया की चालढाल, रहनसहन और उस की बातें सुन कर रामखिलाड़ी और भारती चिंतित रहते थे. जब तक वह बच्ची थी, बात बचपने में टाल दी जाती रही, लेकिन जब वह सयानी हुई तो मांबाप उसे समझाने ही नहीं लगे, बल्कि हिदायतें भी देने लगे. लेकिन सोनिया पर उन के समझाने या हिदायतों का कोई असर नहीं पड़ा.

सोनिया ने 12वीं तक पढ़ाई की और अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए सिलाई सीख कर लोगों के कपड़े तो सीने ही लगी, साथ ही सिलाई सिखाने का इंस्टीट्यूट भी खोल लिया. उस के यहां सिलाई सीखने गांव की ही नहीं, अगलबगल के गांवों की भी लड़कियां आती थीं.relationship in hindi

सोनिया जहां अपने में मस्त रहती थी, वहीं मांबाप को उस के ब्याह की चिंता थी. क्योंकि उन्हें शायद पता नहीं था कि वह जिस बेटी के ब्याह के लिए परेशान हैं, उस में लड़कियों वाले गुण हैं ही नहीं. उन्होंने सोनिया के मन में क्या है, इस बात की परवाह किए बगैर अलीगढ़ की तहसील अतरौली के गांव जमनपुर के रहने वाले रमेश से उस की शादी तय कर दी.

जब इस बात की जानकारी सोनिया को हुई तो वह विरोध पर उतर आई. लेकिन उस के विरोध के बावजूद रामखिलाड़ी ने उस की शादी धूमधाम से रमेश के साथ कर दी. यह सन 2009 की बात है. मांबाप के इस फैसले से नाराज सोनिया ससुराल चली तो गई, पर बागी बन गई. ससुराल वालों ने उसे हाथोंहाथ लिया, पर उस के मन में जो था, उस में जरा भी बदलाव नहीं आया.

सोनिया ने पति को छूने देने की कौन कहे, चारपाई के भी नजदीक नहीं आने दिया. सवेरा होते ही उस ने साड़ी उतार कर फेंक दी और जींसटौप पहन लिया. बहू की इस हरकत से ससुराल वाले हैरान रह गए. उन्हें यह जरा भी पसंद नहीं आया. उन्होंने उसे नादान समझ कर समझाना चाहा, पर वह कुछ भी समझने को तैयार नहीं थी. उन्होंने फोन कर के सारी बात रामखिलाड़ी को बताई तो वह परेशान हो उठे.

बड़ी मुश्किल से तो उस ने बेटी की शादी की थी. ससुराल जा कर वह इस तरह का नाटक कर रही थी. 5 दिनों बाद वह मायके आई तो उस ने साफ कह दिया कि अब वह ससुराल नहीं जाएगी. इस के बाद लाख प्रयास के बावजूद भी वह ससुराल नहीं गई. मजबूर हो कर मांबाप ने बेटी के तलाक का मुकदमा अदालत में दायर कर दिया, जो अभी भी विचाराधीन है.

सोनिया तनमन से अपने सिलाई सैंटर में लग गई. उसे लड़कियों को सिलाई सिखाना पसंद था. न जाने क्यों उसे लड़कियों को छूना अच्छा लगता था. इसलिए वह उन्हीं के बीच लगी रहती थी. एक दिन पड़ोस के रूमगेला गांव की रहने वाली रीना उस के सिलाई सैंटर पर सिलाई सीखने आई तो उस ने उस में न जाने क्या देखा कि उसे लगा, इसी लड़की की उसे तलाश थी. रीना अभी पढ़ रही थी. वह सिलाई सीख कर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद निकालना चाहती थी. उस के पिता लक्ष्मण खेती करते थे. उन के परिवार में पत्नी शांति के अलावा 4 बेटियां थीं. 3 बेटियों की वह शादी कर चुके थे. सब से छोटी रीना अभी पढ़ रही थी.

रूमगेला गांव अनोड़ा से 6 किलोमीटर दूर था. इस के बावजूद रीना रोज साइकिल से सोनिया के यहां सिलाई सीखने आती थी. रीना में ऐसा न जाने कौन सा आकर्षण था कि सोनिया उस की ओर खिंचती जा रही थी. जब तक वह सिलाई सैंटर में रहती, सोनिया को अजीब सा सुख महसूस होता. वह उसी के इर्दगिर्द मंडराती रहती थी. उसे छू कर उस के मन को असीम शांति ही नहीं मिलती थी, बल्ति अद्भुत सुख का भी अहसास होता था.

सोनिया की नजरें हमेशा रीना पर ही जमी रहती थीं, क्योंकि वह उसे अन्य लड़कियों से अलग नजर आती थी. रीना को भी जब उस के मन की बात का अहसास हुआ तो वह भी उस के करीब आने लगी. जल्दी ही वह उस की खास छात्रा बन गई.relationship in hindi

एक दिन सोनिया ने बहाने से उसे अपने घर क्या रोका, उस दिन के बाद से वह उसी की हो कर रह गई. इस के बाद सोनिया ने रीना के पिता लक्ष्मण को फोन कर के कहा कि रीना रोजरोज 6 किलोमीटर आनेजाने में थक जाती है. अच्छा होगा कि उसे उस के पास ही रहनें दें. इस से रीना सिलाई भी जल्दी सीख जाएगी और रोजरोज की थकान से भी बच जाएगी.

लक्ष्मण को क्या पता था कि सोनिया के मन में क्या है. उन्होंने सहज भाव से इजाजत दे दी. अब रीना सोनिया के साथ ही रहने लगी. सप्ताह में एकाध दिन वह घर भी चली जाती थी. एक साथ रहने से सोनिया और रीना एकदूसरे के इतने करीब आ गईं कि वे अलग होने के नाम से घबराने लगीं. इसी डर से एक दिन सोनिया ने कहा, ‘‘रीना, तुम्हारे घर वाले तुम्हारी शादी कर के ससुराल भेज देंगे तो मेरा क्या होगा?’’

‘‘मैं तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरे से शादी कर ही नहीं सकती. मैं ने तो तुम्हें ही अपना पति मान लिया है. अब यह जीवन तुम्हारे साथ बिताऊंगी.’’ रीना ने कहा.

रीना की इस बात से सोनिया ने राहत की सांस जरूर ली, लेकिन जल्दी ही अनोड़ा वालों को सोनिया और रीना के संबंधों की जानकारी हो गई. फिर तो कानाफूसी होने लगी. धीरेधीरे यह कानाफूसी गांव रूमगेला तक पहुंच गई.

गांव वालों ने जब लक्ष्मण को यह बात बताई तो वह तुरंत अनोड़ा जा पहुंचा. उस के साथ घर वाले भी थे. जब सब ने रीना से घर चलने को कहा तो उस ने कहा, ‘‘अभी मैं ने सिलाई ठीक से नहीं सीखी है. जब सीख जाऊंगी तो घर आ जाऊंगी.’’

‘‘पहले तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो, उस के बाद कोई दूसरा काम कर लेना. हमें सिलाई नहीं सिखानी.’’ लक्ष्मण ने कहा.

रीना अपने घर जाने को तैयार नहीं थी, लेकिन लक्ष्मण जबरदस्ती उसे घर ले आया. रीना के जाने से सोनिया परेशान हो उठी. उस के बिना वह बेचैन रहने लगी. उस के बिना सोनिया का मन ही नहीं लग रहा था. अब सिर्फ मोबाइल फोन ही उस का सहारा था. फोन पर बातें कर के दोनों अपनेअपने मन को संतोष दे रही थीं.

सोनिया ने फोन पर जब रीना से कहा कि वह उस के बिना नहीं रह सकती और उस से शादी करना चाहती है तो रीना ने कहा, ‘‘हम शादी नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे यहां समलिंगी शादियों को गैरकानूनी माना जाता है.’’

‘‘हम भले ही शादी नहीं कर सकते, लेकिन साथ रह तो सकते हैं. साथ रहने से तो कानून मना नहीं कर सकता. इसलिए मैं तुम्हें जल्दी ही लेने आ रही हूं.’’ सोनिया ने कहा.

एक ओर जहां सोनिया और रीना साथ रहने की तरकीब भिड़ा रही थीं, वहीं लक्ष्मण रीना की शादी को ले कर परेशान था. गांव वाले उसे कोस रहे थे. उन का कहना था कि रीना जो कर रही है, उस का गांव की अन्य लड़कियों पर असर पड़ सकता है.

लक्ष्मण रीना के लिए घरवर की तलाश में तेजी से लगा था. लेकिन रीना ने मां से कहा था कि वह किसी भी हालत में शादी नहीं करेगी. तब मां ने कहा, ‘‘हर लड़की शादी कर के दुलहन बनती है, गृहस्थी बसाती है, मां बनती है.’’

‘‘मम्मी, मैं ने सोनिया को पति मान लिया है, इसलिए अब उसी से शादी करूंगी.’’ रीना ने कहा.

‘‘क्या कहा, तू सोनिया से शादी करेगी? तू उस से कैसे शादी कर सकती है? इस शादी का क्या मतलब होगा?’’ शांति ने कहा. उसे लगा कि बेटी पागल हो गई है.

शाम को जब यह बात उस ने लक्ष्मण को बताई तो उस ने गुस्से में रीना की पिटाई कर दी. यही नहीं, उस का कालेज जाना भी बंद करा दिया. रीना ने फोन कर के सारी बात सोनिया को बताई तो उस ने कहा, ‘‘तू चिंता मत कर, मैं जल्दी ही तुझे लेने आ रही हूं. तुम तैयार रहना.’’

रीना पर घर वाले नजर रखने लगे थे. लक्ष्मण और शांति काफी परेशान थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि भला 2 लड़कियां शादी कर के एक साथ कैसे रह सकती है? दूसरी ओर मांबाप की परेशानी की चिंता किए बगैर रीना को सोनिया का इंतजार था.relationship in hindi

आखिर वह दिन आ ही गया, जब सोनिया अपनी मोटरसाइकिल से रूमगेला जा पहुंची. गांव के बाहर से उस ने रीना को फोन किया कि वह गांव के बाहर खड़ी उस का इंतजार कर रही है. फिर क्या था, रीना चुपचाप पिछले दरवाजे से सोनिया के पास पहुंच गई तो वह उसे मोटरसाइकिल से ले कर अपने गांव आ गई.

कुछ देर बाद जब रीना के घर वालों को उस के घर से गायब होने का पता चला तो घर में तूफान सा आ गया. लक्ष्मण गांव के कुछ लोगों और रिश्तेदारों के साथ अनोड़ा स्थित सोनिया के घर जा पहुंचा.

सोनिया को पता था कि रीना के घर वाले उसे लेने आ सकते हैं. वे आ भी गए थे. रीना के घर वाले उसे जबरदस्ती साथ ले जाने की कोशिश करने लगे तो सोनिया को अपनी खुशियों की दुनिया लुटती नजर आई. उसे पता था कि अगर इस बार रीना चली गई तो वह उसे फिर कभी नहीं वापस ला सकेगी. उसे अपना प्यार हाथ से निकलता दिखाई दिया तो उस ने 100 नंबर पर फोन कर के कहा कि कुछ लोग उसे जान से मारने के लिए घेरे हुए हैं.

पुलिस कंट्रोल रूम ने तुरंत इस बात की सूचना थाना राया पुलिस को दे दी तो इंसपेक्टर अनिल कुमार पुलिस बल के साथ अनोड़ा पहुंच गए. वहां सचमुच लोग सोनिया और रीना को घेरे हुए थे. दोनों को निकाल कर वह थाने ले आए, जहां से उन्होंने ही नहीं, दोनों लड़कियों के घर वालों ने भी उन्हें खूब समझाया.

लेकिन सोनिया और रीना, दोनों ही एकदूसरे के प्यार में इस कदर पागल थीं कि उन्होंने किसी की बात नहीं मानी. रामखिलाड़ी को तो कोई ऐतराज नहीं था, लेकिन रीना के घर वाले ऐतराज होने के बावजूद कुछ नहीं कर पाए. क्योंकि रीना बालिग थी, वह अपनी मरजी से कहीं भी किसी के भी साथ रह सकती थी.

पुलिस ने जैसे ही कहा कि दोनों लड़कियां बालिग हैं, इसलिए वे अपनी मरजी से कहीं भी रह सकती हैं, सोनिया ने रीना का हाथ थामा और थाने से बाहर आ गई. उस का कहना है कि वह रीना से शादी कर के सारी जिंदगी उस के साथ रहेगी. वे किसी बच्चे को गोद ले लेंगी, जिस से उन का बच्चा भी हो जाएगा. रीना अपनी बीएससी की पढ़ाई पूरी करेगी. उस के बाद उसे जो करना होगा, वह करेगी. वे दोनों खुश हैं, बाकी न उन्हें समाज से कोई मतलब है, न घरपरिवार से.

सनकियों की साजिश : हत्या की एक ऐसी कहानी जिसने सबके होश उड़ा दिए

ब्रिटेन के पूर्वी क्षेत्र लिंकनशायर स्थित उपनगरीय इलाके स्पालडिंग में एक पौश कालोनी है डा. वसन एवेन्यू. इसी कालोनी में स्थित एक 2 मंजिले मकान से 15 अप्रैल, 2016 की दोपहर को मांबेटी की खून से लथपथ लाशें मिलने से कालोनी में सनसनी फैल गई थी. लोगों को इस बात पर हैरानी हो रही थी कि किस ने मांबेटी की हत्या कर दी?

उन्हें तब और हैरानी हुई, जब पुलिस ने मकान से एक किशोर प्रेमी जोड़े को हिरासत में लिया. पुलिस को पड़ोसियों से पूछताछ में पता चला कि मरने वाली महिला 49 वर्षीया एलिजाबेथ एडवर्ट उर्फ लिज और उन की 13 साल की बेटी केटी थी, जो एक स्कूल में खाना परोसती थी. मांबेटी इस मकान में लंबे समय से रह रही थीं.

लिज के पति पीटर एडवर्ट उस से अलग रहते थे. उन की विवाहिता बड़ी बेटी मैरी काट्टिंघम भी दूसरे इलाके में अपने परिवार के साथ रहती थी. 15 अप्रैल, 2016 को जब पुलिस उस 2 मंजिला मकान का दरवाजा तोड़ कर अंदर दाखिल हुई तो निचले तल पर एक किशोर जोड़ा गद्दे पर आराम फरमाते मिला. पुलिस ने उस से पूछा, ‘‘एलिजाबेथ कहां है?’’

लड़के के साथ मौजूद लड़की ने बगैर किसी हड़बड़ाहट और डर के हाथ से सीढि़यों की तरफ इशारा करते हुए धीमे से कहा, ‘‘ऊपर.’’

पुलिस ने लड़के से पूछा, ‘‘उन के साथ क्या हुआ है?’’

लड़के ने भी लड़की की तरह शांत भाव से कहा, ‘‘ऊपर जा कर देख क्यों नहीं लेते?’’

पुलिस को उन का व्यवहार कुछ अटपटा सा लगा. कुछ पुलिसकर्मी सीढि़यों के जरिए ऊपरी मंजिल पर पहुंचे तो वहां एलिजाबेथ उर्फ लिज और उन की बेटी केटी की लाश उन के कमरों में पड़ी मिलीं. लिज के शरीर पर तेजधार हथियार के गहरे निशान थे, जो गले के अतिरिक्त शरीर के दूसरे ऊपरी हिस्से पर भी थे.

इसी तरह के जख्म केटी के भी शरीर पर थे. ऐसा लग रहा था, जैसे उन पर हत्यारे ने चाकू से ताबड़तोड़ वार किए हों.

पुलिस ने मकान में मौजूद लड़की और लड़के को हिरासत में ले लिया था. दोनों से पूछताछ की गई तो उन्होंने मां बेटी की हत्या का अपराध आसानी से स्वीकार कर लिया था. वह पुलिस से इतने इत्मीनान से बात कर रहे थे, जैसे इन्होंने कोई अपराध किया ही न हो. उन्होंने अपने बारे में बताया कि उन का इरादा नींद की ज्यादा गोलियां खा कर आत्महत्या करने का था.

पुलिस ने उन के पास से एक डायरी बरामद की थी, जिस में उन्होंने एक स्यूसाइड नोट भी लिखा था. उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि खुदकुशी के बाद उन की लाशों को जला कर उस की राख उन के पसंदीदा जगहों पर बिखेर दी जाए.

लिखे गए कुछ अन्य वाक्यों से लग रहा था कि उन्हें न तो जीवन से प्यार था और न ही भविष्य की कोई योजना थी. न जीने की तमन्ना थी और न ही कोई महत्त्वाकांक्षा. दोनों लाशों को पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया था कि उन की हत्या धारदार चाकू से गला रेत कर की गई थी.

पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले कर अदालत में उन के बयान कराए तो लड़के ने तो अपना अपराध स्वीकार कर लिया, लेकिन लड़की हत्या में शामिल होने से इनकार कर रही थी. वारदात के समय उन की उम्र महज 14 साल थी. पुलिस के सामने लड़की की भूमिका काफी अस्पष्ट होने से तहकीकात करना एक चुनौती बन गई थी.

पुलिस को उन पर जघन्य हत्या का दोष लगाने के साथसाथ उन के नाबालिग होने का भी खयाल रखना था. उन के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उन की पहचान भी पुलिस छिपा रही थी. जांच करने वाली टीम ने पाया था कि दोनों एक किस्म के मनोरोगी और जीवन से हताश प्रेमीयुगल थे. उन की हरकतें जितनी बचकानी थीं, उतने ही वे इस उम्र में ही सब कुछ हासिल करने की तमन्ना रखते थे.crime news in hindi

इस मनोविज्ञान की गुत्थी के साथ दोहरे हत्याकांड को सुलझाने में जासूसी और फोरैंसिक जांचकर्ताओं की खास टीम के अतिरिक्त मनोचिकित्सक तक की मदद ली गई. पुलिस ने छानबीन में पाया कि लिज और आरोपी लड़की के बीव किसी बात को ले कर कोई पुराना विवाद चल रहा था.

उसी विवाद ने उस लड़की को इस कदर सनकी बना दिया था कि उस ने मांबेटी की हत्या की साजिश रच डाली. उस ने अपने साथ पढ़ने वाले प्रेमी को हत्या के लिए राजी कर लिया. इस संबंध में कुल 12 विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों में 7 पुरुष और 5 महिलाओं द्वारा जुटाए गए तथ्यों और तर्कों की मदद से मामले की तह तक पहुंचना संभव हो सका था.

पुलिस की प्राथमिक रिपोर्ट और अदालत में दिए गए उन के बयानों के आधार पर लड़के को 8 दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में ले कर ट्रायल पर भेज दिया गया था. बाद में पूरी तहकीकात की जिम्मेदारी मुख्य जांचकर्ता इंसपेक्टर मार्टिन हैल्वे को सौंप दी गई थी. जांच जब आगे बढ़ी तो नाबालिग लडकी को भी आरोपी बना दिया गया. इस के बाद लड़की के बयान के आधार पर हत्याओं की गुत्थी परतदरपरत उधड़ने लगी.

यह जान कर सभी को हैरानी हुई कि हत्याएं बहुत ही साधारण अपमान का बदला लेने के लिए की गई थीं. इस से पहले हम उन परिस्थितियों पर गौर करना चाहेंगे, जिन की वजह से हत्यारा लडका और उस की प्रेमिका कू्रर बनी.

बात सितंबर, 2013 की है. हायर सैकेंडरी स्कूल की एक 12 वर्षीया छात्रा एक दिन अपनी कक्षा में काफी आक्रामक थी. उस ने स्कूल के अनुशासन को नजरअंदाज करते हुए आक्रोश में एक कुरसी इस कदर धकेली कि उस से एक सहपाठी छात्र को जोर की टक्कर लग गई. इस से लड़का तमतमाया हुआ उस पर उबल पड़ा.crime news in hindi

लड़की साथियों के बीच तमाशा बन गई. स्थिति को भांप कर उस ने झट से सौरी बोल दिया. लड़का भी दूसरे सहपाठियों के समझानेबुझाने पर शांत हो गया. बात आईगई हो गई, लेकिन इस घटना ने दोनों के बीच आकर्षण के बीज अंकुरित कर दिए. बाद में उन के बीच दोस्ती हो गई, जो जल्द ही एकदूसरे पर अथाह विश्वास करने वाली गहराई तक पहुंच गई.

इसी बीच वे एकदूसरे से प्रेम करने लगे, जिस का अहसास उन्हें जल्द हो गया. वे साथसाथ घूमनेफिरने लगे. हालांकि लड़का जितना गंभीर और शांत स्वभाव का था, लड़की उतनी ही चुलबुली और अपनी मनमर्जी की मालकिन थी. अपनी बातें मनवाना और इच्छा पूरी करना वह भलीभांति जानती थी. आगे बढ़े कदम को पीछे हटाना तो जैसे उस ने सीखा ही नहीं था. यही कारण था कि जल्द ही उस ने लड़के को अपने रंग में रंग लिया.

उन के बीच प्रेम पनपा तो वे पढ़ाई के प्रति असहज और लापरवाह हो गए. स्कूल परिसर में उन की अनुशासनहीनता की कई शिकायतें आईं. जिस ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की, वे उस से उलझ पडे़. लड़का भी अपनी प्रेमिका के प्रभाव में आ कर आक्रामक तेवर वाला बन गया.

यही वजह थी कि एक दिन लड़का अनियंत्रित हिंसक प्रवृत्ति दिखाने और अनुशासनहीनता के आरोप में स्कूल से निकाल दिया गया. यह बात लड़की के दिल में चुभ गई, क्योंकि उसे लड़के से मिलनेजुलने में परेशानी होने लगी थी.

लड़की 6 साल की उम्र से ही अपने परिवार के लिए सिरदर्द बनी रहती थी. तब उस के असामान्य व्यवहार को देखते हुए उस का मनोचिकित्सक से इलाज भी कराया गया था. डाक्टर ने उस की अच्छी देखभाल की सलाह दी थी.

हत्याकांड की घटना से ठीक एक साल पहले भी उसे मानसिक उपचार के लिए स्थानीय मानसिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र में भरती कराया गया था. कुछ महीने तक उस का उपचार चला. उस में सुधार होने के बावजूद मनोचिकित्सक ने उस की मनोस्थिति के स्तर को 10 में से 2 अंक दे कर चिंता का विषय बताया था. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उस की अच्छी देखभाल और विशेषज्ञ की मदद लेने की सलाह दी गई. उस के पिता वेल्डर थे. वह ड्रग लेता था और इस कारण वह पत्नी और 2 साल की बेटी को छोड़ कर कहीं चला गया था. बड़ी होने पर वही लड़की अकेलेपन की भावना से भर गई थी, जिस से उस में आक्रामक तेवर आ गए थे.

लड़के की परवरिश भी असामान्य तरीके से हुई थी और उस का बचपन काफी अशांत किस्म का था. उस की मां की आकस्मिक मौत हो गई थी. तब वह मात्र 5 साल का था और उस ने अपने पिता को घर में रहते हुए शायद ही कभी भरी नजरों से देखा हो. उस के पिता हमेशा काम के सिलसिले में यात्राओं पर रहते थे, जिस से उस का बचपन भी एकाकीपन में गुजरा था. अदालत में केस चला तो वकीलों ने भी इस हत्याकांड की पृष्ठभूमि के 2 मुख्य कारणों की ओर संकेत किए.

पहले कारण में सामाजिक और पारिवारिक संस्कार के साथ मानवीयता को पोषित करने वाले मनोवैज्ञानिक विकास की समस्या को रेखांकित किया. जबकि दूसरा कारण नाबालिग लड़की के मन में गहराई तक बैठ चुकी डिनर लेडी लिज के साथ पुराने विवाद से संबंधित था.

पूछताछ में आरोपी लड़की ने बताया था कि एक बार उस की लिज के साथ जबरदस्त बहस हो गई थी. लड़की का व्यवहार और स्कूल में अनुशासनहीनता लिज को पसंद नहीं थी. उस ने उसे कड़ी फटकार लगाई थी. तभी लड़की ने खुद को बेहद अपमानित महसूस किया था और उस ने लिज से हर कीमत पर बदला लेने की ठान ली थी.

जांच और हत्यारे द्वारा अदालत में दिए गए बयान के मुताबिक प्रेमी युगल ने हत्या की योजना मैकडोनाल्ड के एक आउटलेट में बैठ कर 11 अप्रैल, 2016 को बनाई थी. उसी दिन उन्होंने हत्या के बाद खुदकुशी करने की शपथ भी ली थी. योजना को अंजाम देने के लिए दोनों 13 अप्रैल की रात को लिज के घर के एक अलग हिस्से में चोर की भांति जा घुसे थे.

लड़के ने पीठ पर टांगने वाले बैग में एक टीशर्ट में लपेट कर तेज धार के 4 चाकू रख लिए थे. उन में 8 इंच के 2 चाकुओं में काला हत्था लगा था, जबकि 2 मध्यम आकार के चाकू थे. लड़की ने बताया था कि उस का प्रेमी जब लिज की हत्या को अंजाम दे रहा था, तब अपने बचाव के लिए वह काफी संघर्ष कर रही थी. वह शोर मचा रही थी.

लड़के ने उस की आवाज को रोकने के लिए चाकू से गले की नली काट दी ताकि दूसरे कमरे में सो रही उस की बेटी तक उस की आवाज न पहुंचे. लिज की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की बेटी केटी को भी मौत की नींद सुला दिया था. विशेषज्ञों ने इसे उस की अपरिपक्व मानसिकता और मन में दबे आक्रोश को दर्शाने वाला मनोविज्ञान बताया था.

उस के बारे में जांच करने वालों ने पाया था कि उसे बचपन से ही किसी भी तरह की रोकटोक पसंद नहीं थी. वह हमेशा अपनी मनमरजी की मालकिन बनी रहना चाहती थी. वह लिज से बदला लेना चाहती थी. इस के लिए उस ने अपने सहपाठी को उकसाया. जांच के बाद लड़की भी हत्या की आरोपी करार दे दी गई थी. जबकि पक्ष के वकीलों द्वारा उसे विक्षिप्त और सनकी साबित करने की भी कोशिश की गई थी.

इस के बावजूद फोरैंसिक मनोचिकित्सक के एक सलाहकार डा. फिलिप जोसेफ ने अदालत में तर्क दिया था कि उस के दावे के मुताबिक वे मानसिक विकार से पीडि़त नहीं थे. अगर वे अपने मन में जहरीले रिश्ते, भावना और विचार नहीं रखते तो बहुत संभव था कि ये हत्याएं नहीं होतीं. पर कुटिल मन वाले 2 व्यक्ति एक साथ होते हैं, तब ऐसी घटनाओं को बढ़ावा मिलता है.

अदालत ने विभिन्न बयानों के आधार पर पाया था कि लड़की और लड़का सितंबर, 2013 से गाहेबगाहे मिलतेजुलते रहे, लेकिन मई 2015 तक उन के संबंधों में मधुरता नहीं बन पाई थी. इस दौरान वे बातबात पर उलझते भी रहते थे, जो एक तरह से नाबालिगों में होता है. उन के व्यवहार में हमेशा आक्रोश बना रहता था. लड़की ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा था कि उसी ने लड़के को हत्या के लिए प्रेरित किया था.

उस ने यह भी माना था कि लड़के के साथ उस ने केवल एक बार यौनसंबंध बनाया था, वह भी हत्या के बाद. उस का कहना था कि हत्या की रात वह उस से बहुत प्रभावित हुई थी, क्योंकि उस ने उस की इच्छा पूरी कर दी थी. न्यायाधीशों की बेंच ने पाया था कि दोनों के संबंधों में एकदूसरे के प्रति विश्वास की भावना नवंबर, 2015 से मार्च 2016 के बीच पनपी थी.

यह भी स्पष्ट हुआ था कि हत्या में उस की भूमिका पूरी तरह से बदले की भावना से ग्रसित थी. तमाम गवाहों के बयान, तहकीकात के सभी जांच बिंदुओं, तर्कों, तथ्यों और आरोपियों के बयानों के आधार पर 18 अक्तूबर, 2016 को नाटिंघम क्राउन कोर्ट में ढाई घंटे तक लंबी बहस चली. कोर्ट में न्यायाधीशों की बेंच द्वारा इसे बहुत ही असाधारण मामला बताया गया.

न्यायाधीश जस्टिस हड्डन ने प्रेमी युगल को हत्या का दोषी ठहराते हुए उन्हें आजीवन कैद की सजा सुनाई थी. वे 9 नवंबर, 2016 को 20 साल के लिए जेल भेज दिए गए. फैसला सुनाते हुए न्यायाधीश ने यह भी कहा कि इस मामले में कई पहलू एकदूसरे से अलग थे और यह असाधारण ढंग से एक सुनियोजित साजिश के तहत की गई हत्या थी. दोनों हत्यारे सजा के वक्त भले ही नाबालिग थे, लेकिन जब वे जेल से छूटेंगे, तब उन की उम्र 35 साल हो जाएगी.?

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