रविवार की सुबह 7 बजे के लगभग नोएडा का धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही
यहां मछलियों का बाजार लग जाता था. इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता था.
सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर
2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.
गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल का एक फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे. रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. रोहिणी शाम साढ़े 6 बजे तक घर लौट आती थी.
पति पत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्टी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था. पहली अप्रैल की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, ‘‘साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हैं?’’
धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी.
फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, ‘‘उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.’’
उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रख कर वह बैडरूम में घुसा तो उस की चीख निकल गई, ‘‘रोहिणी?’’
धनंजय की सुंदर पत्नी रोहिणी रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. उस के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी. कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ विश्वास?’’
सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, ‘‘रो…हि…णी.’’
सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर गए. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.
दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा पहुंच गए. तब तक आशीष शर्मा भी 2 सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए थे. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए पुलिस सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंची. पुलिस के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.
प्रकाश राय ने सीधे ऊपर न जा कर इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढि़यां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था. इमारत के चारों ओर घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने सिक्योरिटी इंचार्ज खन्ना से पूछा, ‘‘ये कमरे किस के हैं?’’
‘‘सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .’’
‘‘कितने वाचमैन हैं?’’
‘‘2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में होती है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.’’
‘‘दोनों के नाम क्या हैं और ये रहते कहां है?’’
‘‘कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो गार्ड अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.’’
‘‘अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?’’
‘‘एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.’’
खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर पहुंचे. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए. प्रकाश राय चौकीदार नारायण, जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. उस से पूछताछ करने लगे, पर उस से प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट लेने जाते और लौटते देखा था बस.
प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रख कर सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिला तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर रहूंगा.’’
प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. कमरे का निरीक्षण करते. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग क र जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना. प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.
बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए धनंजय से कहा, ‘‘मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?’’
धनंजय ने प्रकाश राय को दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?’’
फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में पूछा, ‘‘तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?’’
‘‘रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.’’
‘‘इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?’’
‘‘नहीं साहब, कल शनिवार था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.’’
‘‘कारण?’’
‘‘अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने जाने वाले थे.’’ कहते हुए धनंजय ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. वह सही कह रहा था. आशीष शर्मा को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आशीष, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.’’
प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?’’
‘‘साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.’’
‘‘तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?’’
‘‘जी सर.’’
थोड़ी देर में आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे.
अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते इसी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.
पोस्टमार्टम के बाद लाश धनंजय और उस के घर वालों को सौंप दी गई थी. अंतिम संस्कार में प्रकाश राय तो फोर्स के साथ गए ही थे, अपने कुछ लोगों को भी ले गए थे, जो अंतिम संस्कार में आए लोगों की बातें सुन रहे थे.
विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए. एक आदमी कह रहा था, ‘‘कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?’’
‘‘सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.’’
‘‘आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.’’
‘‘शनिवार को बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?’’
आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी ने भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था—
‘‘विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.’’
‘‘आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.’’
‘‘वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ था.’’
ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं.
यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?
प्रकाश राय स्वयं आशीष शर्मा को ले कर चल पड़े. रास्ते में उन्होंने उसे आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग नहीं मिल रहा है.’’
‘‘हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.’’
‘‘तुम्हें किस ने फोन किया था?’’
‘‘सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम अलकनंदा गए थे. मैं दाहसंस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.’’
‘‘आप जरा बुलाएंगे उन्हें?’’
कुछ क्षणों बाद ही 5-6 कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हैडकैशियर सोलंकी से पूछा, ‘‘शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?’’
‘‘हां, 40 हजार…’’
‘‘खाता किस के नाम था?’’
‘‘मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.’’
‘‘आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी, वह किस रूप में थी?’’
‘‘5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दी थी. उन नोटों के नंबर भी मेरे पास हैं.’’
प्रकाश राय ने आशीष शर्मा से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.
कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, ‘‘बिष्ट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?’’
‘‘नहीं,’’ वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, ‘‘वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.’’
‘‘अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?’’
‘‘निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था?’’
‘‘यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है? अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है? अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.’’
मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.
‘‘पता कहां का है?’’ मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.
‘‘साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?’’
‘‘औपरेटर ने बताया कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.’’
इतने में ही आशीष शर्मा और मिश्रा वहां आ पहुंचे. आशीष अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बडे़ ही सहज ढंग से पूछा, ‘‘मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?’’
‘‘हां, है. आप को कुछ…?’’
‘‘नहीं…नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.’’
प्रकाश राय और आशीष शर्मा बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं. मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, ‘‘मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.’’
आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.
‘‘मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?’’
‘‘हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.’’
‘‘आइए, अंदर आइए.’’
प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.’’
बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौपिंग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसीलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे. आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, ‘‘अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?’’
‘‘मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?’’
प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.
‘‘हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?’’
‘‘आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’
‘‘हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.’’
‘‘लेकिन जानपहचान कैसे हुई?’’
‘‘हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.’’
‘‘सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?’’
‘‘अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को गाजियाबाद उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिए थे.’’
‘‘तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘इस का कारण?’’ प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.
‘‘कारण…?’’ आनंद गड़बड़ा गया, ‘‘एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.’’
‘‘रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?’’ प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.
‘‘पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.’’
‘‘अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?’’
‘‘शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.’’
अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. लेकिन ॐन के एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था. इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, ‘‘आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हैं?’’
गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, ‘‘लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.’’
‘‘नहीं..,’’ आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.’’
‘‘लेकिन सर, किसी ने हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?’’ आनंद ने पूछा.
‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?’’
‘‘मैं क्या कह सकता हूं?’’
‘‘मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं है, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?’’
‘‘नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.’’
प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा, ‘‘आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?’’
‘‘नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं फिर मिलूंगा.’’
मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद नहीं किया ज सकता. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे यह…तो.’’ घंटी बजा कर इन्होंने आशीष शर्मा को बुलाया.
‘‘आशीष शर्मा, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.’’ कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं. आशीष शर्मा और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले, ‘‘जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा दूसरे केस देखता हूं.’’
उत्साहित हो कर आशीष शर्मा निकल पड़े. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार आशीष शर्मा पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.
करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और आशीष शर्मा अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘मि. विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का हाथ जरूर है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’
‘‘ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.’’ कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.
15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी. गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?’’
धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप…?’’
‘‘मैं बैंक मैनेजर हूं.’’
‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’
‘‘हां, यह धनंजय विश्वास हैं.’’
‘‘आप के बैंक में इन का खाता है?’’
‘‘खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.’’
‘‘आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?’’
बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, ‘‘मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.’’
धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, ‘‘यह क्या है मिस्टर विश्वास?’’
धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.
‘‘मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?’’ प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.
एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.’’
दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही प्रिंट्स मिले थे. इसीलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी की मौत आधी रात के बाद 2 बजे से सुबह 4 बजे के बीच हुई थी.
जबकि धनंजय सवा 6 बजे से 7 बजे के बीच हत्या होने की बात कह रहा था? पूरा माजरा प्रकाश राय की समझ में धीरेधीरे आता जा रहा था. धनंजय को अपने ही घर में चोरी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब भी प्रकाश राय की समझ में आ गया था. उन्होंने आशीष शर्मा को समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, धनंजय बहुत ही चालाक है. तुम एक काम करो,पिछले 2 दिनों से धनंजय बाहर नहीं गया है. आज भी वह घर पर ही होगा. कुछ दिनों बाद वह चोरी का सामान किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जरूर रखेगा. उस का सारा घर हम लोगों ने छान मारा है. हो सकता है, उस ने बिल्डिंग में ही कहीं सामान छिपा कर रखा हो या फिर…
‘‘धनंजय जिस वक्त गोश्त लाने निकला था, उस समय उस ने सामान कहीं बाहर रख दिया होगा. पर उस ने कहां रखा होगा? आशीष कहीं ऐसा तो नहीं कि वह थैली ले कर नीचे उतरा हो और स्कूटर की डिक्की में रख दी हो? हो सकता है.’’ प्रकाश राय चुटकी बजाते हुए बोले, ‘‘वह थैली अभी उसी डिक्की में ही हो? तुम फौरन अपने स्टाफ सहित निकल पड़ो और धनंजय पर नजर रखो.’’
इस के बाद आशीष शर्मा ने अलकनंदा के आसपास अपने सिपाहियों को धनंजय पर निगरानी रखने के लिए तैनात कर दिया था. धनंजय अपने स्कूटर पर ही निकलेगा, यह आशीष शर्मा जानते थे. इसलिए उन्होंने स्कूटर वाले और टैक्सी वाले अपने 2 मित्रों को सहायता के लिए तैयार किया. सारी तैयारियां कर के वह अलकनंदा के पास ही एक इमारत में रह रहे अपने एक गढ़वाली मित्र के घर में जम गए.
5 मई का दिन बेकार चला गया. 6 मई को दोपहर के समय धनंजय के नीचे उतरते ही आशीष शर्मा सावधान हो गए. वह अपनी स्कूटर स्टार्ट कर के जैसे ही बाहर निकला, वैसे ही ही अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी में बैठ कर वह उस के पीछे हो लिए. गोल चक्कर होते हुए धनंजय निरुला होटल के पास स्थित बैंक के सामने आ कर रुक गया. आशीष ने थोड़ी दूरी पर ही टैक्सी रुकवा दी. स्कूटर खड़ी कर के धनंजय ने डिक्की खोली और कपड़े की एक थैली निकाली. धनंजय के हाथ में थैली देख कर ही उन्होंने मन ही मन प्रकाश राय के अनुमान की प्रशंसा की.
थैली ले कर धनंजय के बैंक में घुसते ही आशीष ने अपने मित्र को बैंक में भेजा, क्योंकि यह जानना जरूरी था कि धनंजय का बैंक में खाता है या किसी परिचित से मिलने गया था. उन के मित्र ने लौट कर उन्हें बताया कि धनंजय मैनेजर के साथ लौकर वाले कमरे में गया है. इस से पहले सीधे मैनेजर की केबिन में जा कर उस ने एक फार्म भरा था.
धनंजय को खाली हाथ बाहर आते देख कर अपने 2 सिपाहियों को उस का पीछा करने के लिए कह कर आशीष शर्मा वहीं ओट में खड़े हो गए. धनंजय के वहां से जाते ही वह सीधे बैंक मैनेजर की केबिन में पहुंचे. अपना परिचय दे कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी 5 मिनट पहले जिस व्यक्ति ने आप के यहां लौकर लिया है, वह वांटेड है. हमारे आदमी उस का पीछा कर रहे हैं. आप हमें सिर्फ यह बताइए कि आप से उस की क्या बातचीत हुई. ’’
‘‘धनंजय को एक महीने के लिए लौकर चाहिए था. यहां उपलब्ध लौकर्स में से उस ने 106 नंबर लौकर पसंद किया. नियमानुसार फार्म भर कर एडवांस जमा किया और लौकर में एक थैली रख कर चला गया.’’
आशीष शर्मा ने बैंक से ही प्रकाश राय को फोन किया. इस के बाद बैंक मैनेजर से कहा, ‘‘यह व्यक्ति शायद कल फिर आए, तब इसे लौकर खोलने की इजाजत मत दीजिएगा. मैं कुछ सिपाही कल सवेरे बैंक खुलने से पहले ही यहां भेज दूंगा. वह यहां आया तो इसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अगर यह खुद नहीं आया तो हम इसे ले कर आएंगे.’’
धनंजय को बैंक ले जाने के लिए जब प्रकाश राय अलकनंदा पहुंचे थे तो वहां शो केस की वस्तुओं को देखने के बहाने उन्होंने चाबी के गुच्छे में लौकर नंबर 106 की चाबी देख ली थी. टेलीफोन के पास रखी धनंजय की टेलीफोन डायरी को उन्होंने केवल आनंदी का नंबर जानने के लिए यों ही उल्टापलटा था. ‘ए’ पर आनंदी का नंबर न पा कर उन्होंने ‘जी’ पर नजर दौड़ाने के लिए पन्ने पलटे, क्योंकि आनंदी का पूरा नाम आनंदी गौड़ था. मगर ‘एफ’ और ‘एच’ के बीच का ‘जी’ पेज गायब था. वह पेज फाड़े जाने के निशान मौजूद थे.
पकड़े जाने के थोड़ी देर बाद ही धनंजय ने अपने आप पर काबू पा लिया था. गहरी सांस ले कर उस ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं ने ही अपनी बीवी की हत्या की है. उस के चरित्र पर मुझे लगातार शक रहता था. आगे चल कर मेरा शक विश्वास में बदल गया. लेकिन कुछ बातें अपनी आंखों से देखने पर मैं बेचैन हो उठा. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, पर मुझे धोखा दे कर उस ने सब कुछ नष्ट कर दिया था. उस की चरित्रहीनता का कोई सबूत मैं नहीं दे सकता. मेरे पास एक ही रास्ता था, उसे हमेशा के लिए मिटा देने का. वही मैं ने किया भी.’’
प्रकाश राय धनंजय को कोतवाली ले आए. धनंजय ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से रोहिणी का खून किया था. रविवार पहली तारीख को उस ने जानबूझ कर आशीष तनेजा और देवेश तिवारी को अपने घर बुलाया. रात 3 से 4 बजे के बीच रोहिणी की हत्या करने के बाद सवेरे उठ कर वह बड़े ही सहज ढंग से मटनमछली लाने गया, सिर्फ इसलिए कि कोई उस पर शक न करे. इतना ही नहीं, पुलिस को चकमा देने के लिए उस ने खुद चोरी भी की थी. चोरी का सारा सामान उस ने मटन लेने जाते समय स्कूटर की डिक्की में रख दिया था.
इस के बाद वह कुछ बताने को तैयार नहीं था. जब प्रकाश राय ने टेलीफोन डायरी का ‘जी’ पेज कैसे फटा, इस बारे में पूछा तो जवाब में उस ने सिर्फ 2 शब्द कहे, ‘‘मालूम नहीं.’’
धनंजय को अगले दिन कोर्ट में पेश करना था. उस रात प्रकाश राय देर तक औफिस में ठहरे थे. एक सिपाही से उन्होंने धनंजय को अपने पास बुलवाया और उसे कुर्सी पर बैठा कर बोले,‘‘धनंजय, मेरा काम पूरा हो गया है. कल तुम्हें जेल भेजने के बाद हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी. मुझे मालूम है कि तुम कुछ न कुछ छिपा रहे हो. मैं सत्य जानने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम मुझे कुछ भी बतोओगे, उस का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे सारे कागजात तैयार हो गए हैं. उस में परिवर्तन नहीं हो सकता है. तुम जो कुछ भी बताओगे, वह मेरे तक ही सीमित रहेगा. अब मुझे बताओ कि तुम ने आनंद और आनंदी को रोहिणी की हत्या की खबर क्यों नहीं दी और आनंदी के फोन नंबर का ‘जी’ पेज तुम ने क्यों फाड़ डाला?’’
धनंजय गंभीर हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. कुछ क्षणों बाद खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘जो सच है, मैं सिर्फ आप को बता रहा हूं. एक सुखी परिवार को नष्ट करना या बचाना, आप के हाथ में है. पर मुझे विश्वास है कि आप यह बात किसी और को नहीं बताएंगे.
‘‘आगरा में रोहिणी की मौसेरी बहन का विवाह था. उसी विवाह में हम आगरा गए थे. विवाह के बाद शताब्दी एक्सप्रेस से हम लौट रहे थे तो हमारी मुलाकात आनंद और आनंदी से हो गई. वे सामने की सीट पर बैठे थे. मैं 2 पैग पिए हुए था, फिर भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. उस समय मेरी नींद उड़ गई थी.’’
‘‘ऐसा क्यों?’’
‘‘मेरे सामने बैठी आनंदी और कोई नहीं, मेरी प्रेमिका थी. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते थे.’’
‘‘क्या?’’ प्रकाश राय की आंखें हैरानी से फैल गईं, ‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ?’’
‘‘मेरी क्या हालत हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं. पास में पत्नी बैठी थी और सामने प्रेमिका, वह भी अपने पति के साथ. मुझे देखते ही आनंदी भी परेशान हो गई थी. मैं असहज मानसिक अवस्था और बेचैनी के दौर से गुजर रहा था, वह भी उसी दौर से गुजर रही थी. सचसच कहूं तो हम दोनों ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रहे थे.
‘‘इस मुलाकात के असर से उबरने में मुझे 4 दिन लगे. तब मुझे नहीं मालूम था कि एक चक्रव्यूह से निकल कर मैं दूसरे चक्रव्यूह में फंस गया हूं. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि इस दूसरे चक्रव्यूह से निकलने के लिए मुझे रोहिणी की हत्या करनी पड़ेगी. खैर…
‘‘ट्रेन में आनंदी और रोहिणी की गप्पें जो शुरू हुईं तो थोड़ी देर बाद वे एकदूसरे की पक्की सहेली बन गईं. आनंदी 2-3 बार मेरे घर भी आई थी. खुदा का लाख शुक्र था कि हर बार मैं घर पर नहीं रहा. मैं आनंदी से मिलना भी नहीं चाहता था. मैं उस से संबंध बढ़ा कर रोहिणी को धोखा देना नहीं चाहता था. इसलिए रोहिणी और आनंदी की बढ़ती दोस्ती से मैं चिंतित था.’’
धनंजय सांस लेने के लिए रुका. प्रकाश राय को लगा, कुछ कहने के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहा है. उन का अंदाजा गलत नहीं था. धनंजय भारी स्वर में बोला, ‘‘एक दिन ऐसी घटना घटी कि मैं पागल सा हो गया. मुझे लगा, मेरे दिमाग की नसें फट जाएंगी. अपने सिर को दोनों हाथों से थाम कर मैं जहां का तहां बैठ गया. अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो गया. मैं कंपनी के काम से सेक्टर-18 गया था. वहां एक होटल में मैं ने रोहिणी को एक युवक के साथ सटी हुई बैठी देखा, हकीकत जाहिर करने के लिए यह काफी था. मैं यह जानता था कि उस होटल में रूम किराए पर मिलते थे. मैं उस होटल से थोड़ी दूरी पर ही बैठ कर कल्पना से सब देखता रहा. खून कैसे खौलता है, मैं ने उसी वक्त महसूस किया. 12 बजे उस होटल में गई रोहिणी 4 बजे बाहर निकली थी.
‘‘इस के बाद कुछ दिनों की छुट्टी ले कर मैं ने रोहिणी का पीछा किया. अनेक बार रोहिणी मुझे उसी युवक के साथ दिखाई दी. वह युवक और कोई नहीं, आनंद था…आनंदी का पति.’’
धनंजय ने आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछा. प्रकाश राय स्तब्ध बैठे थे, पत्थर की मूर्ति बने. थोड़ी देर बाद शांत होने पर धनंजय बोला, ‘‘कैसा अजीब इत्तफाक था. विवाह से पहले मेरी प्रेमिका के साथ मेरे शारीरिक संबंध थे और विवाह के बाद मेरी प्रेमिका के पति के साथ मेरी पत्नी के शारीरिक संबंध. आनंदी को तो मैं पहले से जानता था, लेकिन रोहिणी और आनंद की पहचान तो शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. यात्रा के दौरान जिस चक्रव्यूह में मैं फंसा था, उस से निकलने के लिए मैं ने रोहिणी को हमेशा के लिए मिटा दिया और आनंदी मेरी नजरों के सामने न आए, इसीलिए मैं ने टेलीफोन डायरी से ‘जी’ पेज फाड़ दिया था. मुझे जो भी सजा होगी, इस का मुझे जरा भी रंज नहीं होगा. मैं खुशीखुशी सजा भोग लूंगा. बस यही है मेरी दास्तान.’’
इस केस की बदौलत आनंद और आनंदी से प्रकाश राय की जानपहचान हो गई थी. कुछ दिनों बाद आनंद से उन्हें एक ऐसी बात पता चली कि उन का सिर चकरा कर रह गया था. जबजब आनंद और आनंदी उन के सामने आते थे, वह बेचैन हो जाते थे और सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि काश, धनंजय और आनंदी एवं रोहिणी और आनंद का विवाह हो गया होता.
एक दिन बातचीत में आनंद ने कहा, ‘‘मुझे धनंजय की सजा का दुख नहीं है. उसे सजा होनी भी चाहिए. मुझे दुख है तो रोहिणी का. मैं ने आप से कहा था कि रोहिणी की और मेरी मुलाकात शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. रोहिणी को देख कर मैं अभेद्य चक्रव्यूह में फंस गया था. आगरा से दिल्ली तक की यात्रा के घंटे मैं ने कैसे बिताए, मैं ही जानता हूं, क्योंकि मेरे सामने बैठी रोहिणी कोई और नहीं, मेरी पूर्व प्रेमिका थी.’’
यह सुनते ही प्रकाश राय के होश फाख्ता होतेहोते बचे. विचित्र था संयोग और भयानक थी भाग्य की विडंबना. क्या सचमुच नियति के खेल में मनुष्य मात्र खिलौना होता है?
(कथा सत्य घटना पर आधारित है, किसी का जीवन बरबाद न हो, कथा में स्थानों एवं सभी पात्रों के नाम बदले हुए हैं)