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हमारी बेडि़यां

हमारे एक परिचित की क्रौकरी और प्लास्टिक के सामान की दुकान है. दीवाली की शाम उन्होंने अपनी दुकान पर पूजन किया. हमारे यहां ऐसी मान्यता है कि पूजा का दीया पूरी रात जलना चाहिए, इसलिए वे दीया जलता हुआ छोड़ कर घर चले गए. तभी चूहे ने दीया गिरा दिया. दीपक का तेल चारों तरफ फैल गया और उस ने आग पकड़ ली. वहां रखा प्लास्टिक का सामान धूंधूं कर के जलने लगा. दुकान का सारा सामान जल कर खाक हो चुका था. पुरानी मान्यताओं के चलते उन्हें लाखों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा.

श्वेता सेठ, सीतापुर (उ.प्र.)

मेरे ससुराल में एक रीति है कि जब बेटी की शादी होती है तो दूल्हे की साली घर की दहलीज पार करने से पहले सलवार के दोनों पोंचे पकड़ कर दूल्हे के गले में डाल देती है. शगुन के पैसे मिलने पर धीरे से सलवार गले से निकाल ली जाती है. मेरी ननद की शादी थी. जब जंवाई बाबू घर के अंदर प्रवेश करने लगे तो मेरी छोटी ननद ने जीजाजी के गले में सलवार डाल दी. चारों ओर हंसी गूंज उठी. थोड़ी देर में ही अचानक दूल्हे की दर्द से कराहती हुई चीख सुन कर सन्नाटा छा गया. हुआ यह कि सलवार गले से निकालते समय सिर पर सजे हुए मुकुट में फंस गई जिस से दूल्हे के माथे से खून की धारा बहने लगी. ‘मैं यहां नहीं शादी करूंगा’, कहता हुआ दूल्हा वहां से भाग गया. काफी मानमनुहार के बाद दूल्हा वहां आया और शादी संपन्न हो सकी.

कैलाश भदौरिया, गाजियाबाद (उ.प्र.)

मेरे एक मित्र बिहार के जमुई जिले में कार्यरत थे. उन की मां की मृत्यु हो चुकी थी, पिता बेगुसराय जिले के एक गांव में अपने घर पर रहते थे. अचानक एक दिन शाम को उन्हें घर से सूचना मिली कि उन के पिताजी की तबीयत काफी खराब है, वे घर जल्द नहीं पहुंचे तो पिताजी का मुख भी नहीं देख पाएंगे. वे एक किराए की गाड़ी ले कर रात में ही बेगुसराय के लिए चल पड़े. जमुई व मुंगेर जिले के बीच लंबा घना जंगल पड़ता है जहां अकसर लूटपाट की घटनाएं होती रहती हैं. यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित भी है.

गाड़ी जब 10 बजे रात्रि में जंगल से गुजर रही थी तो एक बिल्ली ने रास्ता काट दिया. चालक ने गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी. उस ने कहा कि गाड़ी तभी आगे बढ़ेगी जब विपरीत दिशा से कोई गाड़ी आ जाएगी. इसी बीच, अपराधियों के एक गिरोह ने मेरे मित्र को मारपीट कर नकद रुपए, पत्नी के गहने व अन्य सामान लूट लिया. अगले दिन शाम तक जब वे अपने घर पहुंचे तब तक उन के पिताजी का देहांत हो चुका था. समाज में फैले इस अंधविश्वास के कारण वे लूटपाट की घटना का शिकार बन गए.     

के चंद्र, पटना (बिहार)

शिक्षकों का आतंक

साल 2014 में चीन की एक घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया जिस में एक शिक्षिका ने प्रश्न हल न कर पाने पर 8 वर्षीय बच्चे को पहले सजा के तौर पर खड़ा रखा, फिर एक हजार शब्दों में उसे अपनी ही बुराई लिखने को कहा. बच्चे ने थोड़ी देर बाद कहा, वह नहीं लिख सकता. फिर दोबारा लिखा, ‘‘टीचर, प्लीज, मैं ऐसा नहीं कर सकता…’’ टीचर फिर भी न मानी तो बच्चे ने तीसरी मंजिल से नीचे कूद कर मौत को गले लगा लिया. रोंगटे खड़े कर देने वाली इस घटना की दुनियाभर के मनोवैज्ञानिकों ने भरपूर निंदा की तथा कहा कि उस बच्चे पर टीचर ने इतना दबाव बना दिया कि वह यह कदम उठा बैठा. वह पूरी तरह समझदार व सजग बच्चा था जिस ने अपना मन व असफलता का भाव टीचर के सामने उड़ेल कर रख दिया था.

आजकल लगभग प्रतिदिन शिक्षकों द्वारा उत्पीड़न की ऐसी घटनाएं समाचारपत्रों, चैनलों में देखीसुनी जाती हैं. कभी किसी टीचर ने बच्चियों और किशोरियों के शरीर से खिलवाड़ किया तो कभी बेवजह मारापीटा, धमकाया. कभी घायल कर दिया तो कभी जोर का थप्पड़ मारने से बच्चा बहरा हो गया आदि.

इतिहास भी कहता है

एकलव्य योग्यता की तूती बोलने वाले गुरु द्रोणाचार्य के पास धनुर्विद्या सीखने गया परंतु वे कौरवों के वेतनभोगी शिक्षक थे. इसलिए वे उसे सिखाने की असमर्थता व्यक्त कर सकते थे परंतु उन्होंने ऐसा न करने के बजाय उस का अंगूठा ही कटवा लिया. गुरुदक्षिणा के नाम पर इस से बड़ी क्रूरता नहीं मिलती कि कुछ सिखाया भी नहीं और उस की योग्यता का आधार भी छीन लिया तिस पर भी वह अपनी योग्यता से अपनेआप योग्यतम धनुर्धर बन कर उन्हें दिखा देता है. परशुराम ब्राह्मणों को शस्त्रविद्या सिखाते थे. कर्ण भी उन के पास सीखने गए. एक दिन भयंकर जहरीले जीव ने कर्ण की जांघ पर काट लिया. कर्ण रोए, घबराए नहीं बल्कि सहते रहे. तब गुरु ने घावों की इस सहनशीलता से अनुमान लगाया कि यह ब्राह्मण नहीं क्षत्रिय है जिसे वंश और संस्कार में युद्ध व धर्मों की सहनशीलता मिली है. परशुराम ने कर्ण को श्राप (उस समय का भयंकर दंड) दिया कि कर्ण समय पर अपनी विद्या का उपयोग नहीं कर सकेगा.

इस तरह के कई उदाहरण मिलते हैं जो यह बताने को पर्याप्त हैं कि गुरु शिष्य को समझ नहीं पाए तथा उन के गुणों को महत्त्व नहीं दिया.

खर्चीले स्कूल स्तरीय नहीं

मांबाप खर्चीले निजी, पब्लिक या रैजिडैंशियल स्कूलों में बच्चों को भरती करवा कर सोचते हैं कि बच्चों का जीवन बन गया. उन के बच्चे अब मुकाम या जीवन में कुछ करने का मौका पा ही लेंगे. पर हमेशा ऐसा नहीं होता. बढ़ती भौतिकता के चलते स्कूल अधिकाधिक बच्चे भरने की जुगत में रहते हैं. इसलिए सिर्फ कोर्स तक सीमित रहते हैं. बच्चों के आंतरिक तथा भावनात्मक विकास की ओर ध्यान नहीं दे पाते. ऐसे में बच्चे से शैक्षिक संबंधी फीडबैक भी लेते रहना चाहिए. यह फीडबैक परस्पर अच्छे संबंध पर निर्भर करता है. बच्चा कभी कुछ बताए तो ध्यान से सुनें.

पक्षपात रहता है हावी

निन्नी 8वीं कक्षा में पढ़ती है. पिछले 6-7 महीनों से वह स्कूल जाने का चाव खो चुकी है. वह मांबाप से भी ज्यादा कुछ नहीं बताती. उस की सहेलियों से उस के घर वाले जान सके कि उसे क्लासटीचर की आदत अच्छी नहीं लगती. वह बड़े घर के बच्चों का ही ध्यान रखती है.’’

बड़प्पन व गरिमा का अभाव

पुनीता 7वीं कक्षा में पढ़ती है. वह कहती है, ‘‘पहली बार मुझे कक्षा में पीरियड हो गया. मेरी स्कर्ट पर दाग पड़ गया. टीचर ने कक्षा में ही तमाशा बना दिया.’’ 14 वर्षीय अमिषा कहती है, ‘‘हमारे जूलौजी के टीचर रोमियो की तरह क्लास लेते हैं. हम ने वाइस पिं्रसिपल से कहा तो वे कहते हैं, ‘दिस इज हिज स्टाइल.’ पीटीएम में हमारे पेरैंट्स ने मुद्दा जोर से उठाया तो थोड़ा फर्क पड़ा. 2 साल बाद यह टीचर ट्यूशन के दौरान छेड़छाड़ करने के कारण गिरफ्तार किए गए. यदि पहले इन बच्चों की बात पर अमल हो जाता तो टीचर समय रहते ठीक किए जा सकते थे.’’

सिर्फ खानापूर्ति

दिल्ली में वसंत विहार इलाके के एक नामी पब्लिक स्कूल की छात्रा शालू (बदला हुआ नाम) कहती है, ‘‘मुझे स्कूल जाना क्या जीवन जीना तक बेकार लगता है. मम्मी समझती नहीं, मुझे ही समझाती हैं. मुझे स्कूल वाले काउंसलर के पास भेजते हैं. वहीं स्कूल में 6 बार जाने पर भी वे मुझे डूजडोंट्स यानी क्या करो, क्या न करो बता कर रवाना कर देती हैं. मुझ से घर के बारे में पूछती रहती हैं. मैं ने उन्हें बताया कि क्लास की लड़कियों ने अपने बौयफ्रैंड्स से मुझ से बोलने को मना कर दिया है जबकि वे मेरे अच्छे दोस्त थे. अब वे लड़कियां जोश और गर्व से भरी रहती हैं. मैं लंच में अकेली खाना खाती हूं. क्लासटीचर से कहा तो उन्होंने कहा, हमारा काम आप को पढ़ाना है. दूसरी टीचर से कहा तो वह ‘इट्स योर पर्सनल प्रौब्लम’ कह कर टाल गईं. मौनिटर के कहने पर टीचर ने मुझे बिना बताए काउंसलर के पास भेज दिया. अब वह मुझे बाहर बड़े साइकैट्रिस्ट के पास रैफर कर रही हैं. घरबाहर कहीं मेरी सुनवाई नहीं है.’’

शालू की मां तान्या कहती हैं, ‘‘कुछ है तभी ऐसा हो रहा है वरना हर एक को क्यों नहीं भेजा गया.’’

शालू ने विद्रोही रुख अख्तियार कर के पिता से बात की. पिता ने, उसे समझा और वे काउंसलर के पास गए. तो अगली पीटीएम में पिं्रसिपल ने बच्चे को स्कूल छोड़ने की बात की. शालू के पिता परेशान हैं. शालू बहुत अच्छी पेंटिंग्स करती है, सारे पड़ोसी, रिश्तेदार उस के सरल व सौम्य व्यवहार के कायल हैं. वह झुग्गीझोपड़ी के बच्चों को फ्री पढ़ाती है. कई बच्चे उस की होशियारी के मुरीद हैं. शालू के पिता कहते हैं कि बड़े स्कूल पैसा उगाहते हैं. आप के बच्चे हैं तो आप संभालो, सिखाओ, जो करो.

स्कूल का काम

स्कूल में पढ़ाना मुख्य कार्य है परंतु उस पढ़ाई के माध्यम से संस्कारी युवा व श्रेष्ठ नागरिक तैयार करना भी स्कूलों का मुख्य दायित्व है. एनसीआरटी की प्रोफैसर पूनम अग्रवाल कहती हैं, ‘‘बच्चों को प्यार से पढ़ाना चाहिए. उन्हें डांटफटकार की जगह प्रोत्साहन व प्रेरणा चाहिए. प्रशंसा, प्यार और तवज्जुह उन्हें भीतर से सीखने की क्षमता देते हैं. उन में ललक, रोचकता, मैनर्स आदि जगाना टीचर को आना चाहिए.’’

घटता अनुशासन

दीपिका एक नामीगिरामी स्कूल की शिक्षिका हैं. वे कहती हैं, ‘‘बच्चों को आजकल कुछ कहसुन नहीं सकते, इसलिए टीचर डरते हैं. बड़े घर के बच्चे जो कह दें वही सही. मैं छोटे बच्चे पढ़ाती हूं, उन का प्यार पा कर दंग हूं. एक दिन एक बच्चे ने मुझ से कहा, मिस, आप पढ़ाते हुए अंजोला और रानू की तरफ ज्यादा क्यों देखती हैं? तब मुझे खयाल आया कि मेरा यह नन्हा एंजिल भी अटैंशन चाहता है. मैं ने तुरंत गलती ठीक की. अनुशासन बच्चों के लिए ही नहीं, बड़ों के लिए भी है. अब मैं बहुत ध्यान देती हूं, छोटे बच्चे भी बहुत जीनियस और अच्छे औब्जर्वर ही नहीं, सच्चे कम्युनिकेटर भी होते हैं.’’

छात्र मयूर कुमार का कहना है, ‘‘हमें स्कूल में सिंपल रहने को कहा जाता है. मैं ने क्लासटीचर से कहा, ‘सर, आप चारों उंगलियों में अंगूठियां क्यों पहनते हो?’ तो उन्होंने सीधा थप्पड़ जड़ दिया, ‘पलट कर सवाल करते हो,’ बात आगे बढ़ी तो मैं भी झुका कुछ टीचर भी. फिर भी उन का व्यवहार स्टूडैंटफ्रैंडली नहीं है. जब मेरे पापा अपने टीचर और उन के घर वालों के प्यारव्यवहार की बातें करते हैं तो मुझे लगता है कोई स्वप्नलोक की बात बता रहे हैं.

होते हैं औब्जर्वर टीचर

डा. पूर्णिमा शर्मा डाक्टर होते हुए भी लंदन में छोटेछोटे बच्चों को पढ़ाती हैं. वे कहती हैं, ‘‘लंदन में एक ही क्लास में 40 बच्चे, पर टीचर एक के बजाय 2 होते हैं. एक टीचर सिर्फ पढ़ते बच्चों को औब्जर्व करती हैं, उन के मनोभाव, प्रश्न आदि पर गौर करती हैं. यह अच्छा स्टाइल है. वहां न मांबाप, न टीचर, कोई भी बच्चों को मार नहीं सकता. भारत में शिक्षकों का आक्रामक व्यवहार आम बात है. ऐसे शिक्षकों के छात्र आसानी से आक्रामक तथा हिंसक हो सकते हैं.’’

प्रथम गुरु मां

मां को बच्चे का पहला गुरु माना जाता है. वह बच्चे को प्यार से समझासिखा सकती है. बच्चा स्कूल तो बाद में जाता है, वह मां ही होती है जो बच्चे को जीवन का पहला पाठ पढ़ाती है. प्रख्यात वैज्ञानिक एडिसन को जब स्कूल से प्रश्न पूछते रहने के कारण मूर्ख बच्चा कह कर निकाला जाने लगा तो उन की मां ने प्रतिरोध किया और इस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज बुलंद की. ‘‘एडिसन जिज्ञासु और ब्रिलियंट बच्चा है. यदि आप उसे आम बच्चे की तरह समझ कर चुप करते रहे तो यह उस के साथ न्याय नहीं है, आप ने एक बहुत अच्छा स्टूडैंट खो दिया है.’’

यह कह कर वे बच्चे को घर ले जा कर पढ़ाने लगीं. इस का परिणाम हम आज भी देख रहे हैं. इसी तरह न्यूटन और डार्विन जैसे जीनियस भी टीचर द्वारा कमतर आंके और समझे गए. हेलेन किलर अंधी, बहरी, गूंगी थी. हर स्कूल ने उसे पढ़ाने से मना कर दिया. उस की मां ने स्पर्शबोध से प्यारपूर्वक हेलेन किलर को पढ़ानासमझाना शुरू किया तो इतनी अक्षमता के बावजूद वह कुछ ही समय में सब सीख गई. ज्यादा सिखाने के लिए उस की मां ने इश्तिहार दिया तो ऐनी नामक शिक्षिका ने हेलन किलर को पढ़ाया. ऐनी ने सब्र, त्याग और प्यार से उसे ऐसे पढ़ाया कि दोनों ही विश्वव्यक्तित्व बन गईं. ऐनी ने अपनी डायरी में लिखा कि हेलेन किलर की अक्षमता और जिज्ञासाएं किस तरह उन के लिए चुनौती व प्रकाश स्तंभ दोनों बनीं.

शिक्षक विनम्रता, धैर्य, ज्ञानार्जन, नएनए प्रयोग, प्रेरणा के जरिए छात्रों में गुणों को पैदा करते हैं. नबरों के साथसाथ जीवन में भी आगे बढ़ाते हैं. तभी तो ऐसे गुरु व शिष्य ताउम्र याद  करते हैं एकदूसरे को.

ऐसी मौत पर सब्र नहीं होता

क्या आप रणवीर सिंह को जानते हैं? माफ कीजिए, अगर आप फिल्म ‘गुंडे’ के बलशाली हीरो रणवीर सिंह की तसवीर को अपने मन में ला रहे हैं तो यह जहमत मत उठाइए. क्योंकि हम तो एमबीए के उस होनहार छात्र रणवीर सिंह की बात कर रहे हैं जिस को ‘गुंडा’ बताते हुए उत्तराखंड की पुलिस ने बड़ी बेरहमी से मार डाला था.

उस समय पुलिस ने अपने तथाकथित एनकाउंटर में ढेर किए गए रणवीर सिंह की मौत पर खूब वाहवाही बटोरी थी और तब की उत्तराखंड सरकार ने रणवीर सिंह के पिता रवींद्र सिंह की इस फरियाद को भी नकार दिया था कि पुलिस ने फर्जी एनकाउंटर कर के उन के बेटे को महज अपना गुस्सा निकालने के लिए मौत के घाट उतार दिया था. इतना ही नहीं, सरकार ने एनकाउंटर करने वाले पुलिस वालों को तब सम्मानित भी किया था. लेकिन रणवीर सिंह के पिता और परिवार वालों ने हिम्मत नहीं हारी. नतीजतन, इस कांड के तकरीबन 5 साल बाद 9 जून को अदालत ने रणवीर सिंह एनकाउंटर को फर्जी बताते हुए 18 पुलिस वालों को इस का कुसूरवार ठहराया, जिन में से 17 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

मामला कुछ यों था. 3 जुलाई, 2009 को तब की भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल के काफिले को उत्तराखंड में जौलीग्रांट से मसूरी जाना था. लिहाजा, वहां पर पुलिस की जबरदस्त चैकिंग चल रही थी. रणवीर सिंह अपने एक दोस्त रामकुमार के साथ मोटरसाइकिल से मोहिनी रोड पर एक और दोस्त अशोक कुमार से मिलने गया था. जिस जगह वे दोनों अशोक का इंतजार कर रहे थे वहां पर आराघर चौकी इंचार्ज जी डी भट्ट गाडि़यों की चैकिंग कर रहे थे.

वहां से हटने का निर्देश देने के बावजूद जब रणवीर सिंह नहीं हटा, तो जी डी भट्ट ने पहले तो उसे गालियां दीं, फिर उस की मोटरसाइकिल पर डंडा मारा. तब तक अशोक भी वहां पहुंच गया था. उन्होंने जी डी भट्ट की पिटाई कर दी. मारपिटाई की सूचना मिलने पर तब के डालनवाला थाना इंचार्ज संतोष कुमार जायसवाल मौके पर पहुंचे. रणवीर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि अशोक और रामकुमार वहां से भाग गए.

पुलिस ने रणवीर सिंह को ‘गुंडा’ बताते हुए देहरादून में डालनवाला थाना क्षेत्र के लाडपुर के जंगल में फर्जी एनकाउंटर कर के मार दिया. उस की लाश के पास से एक रिवौल्वर और देशी तमंचा भी बरामद हुआ था. रणवीर सिंह की लाश पर 29 गोलियों के निशान पाए गए थे, जिन में से 17 बेहद करीब से मारी गई थीं.

इस के बाद रणवीर सिंह के फौजी पिता रवींद्र सिंह की कोशिशों से अदालत में मामला चला और साबित हुआ कि पुलिस ने अपना गुस्सा निकालने के लिए यह एनकाउंटर किया था. आम लोगों को यह खबर पढ़ कर रणवीर सिंह की मौत का अफसोस होगा और पुलिस वालों को मिली सजा से उन्हें तसल्ली भी होगी कि चलो, इंसाफ तो मिला. लेकिन क्या हम उन मांबाप का दर्द भी कभी समझ सकेंगे जो अपनी औलाद को इस तरह खो देते हैं?

रणवीर सिंह की मां सुरेश देवी पुलिस वालों को मिली उम्रकैद की सजा से ज्यादा खुश नहीं हैं. उन का तो कहना है कि जब तक उन के बेटे के हत्यारों को फांसी की सजा नहीं मिलेगी, तब तक उन्हें सुकून नहीं मिलेगा. सोचिए, एक मां पर पिछले 5 सालों में क्या बीती होगी, जो अपने बेटे की हत्या करने वालों को फांसी पर चढ़ते देखना चाहती है, ताकि उस के दिल को ठंडक पहुंच सके.

रणवीर सिंह के भाई संदीप सिंह ने भरे मन से बताया कि उस के भाई ने कभी किसी को दुख नहीं पहुंचाया था. वह तो हमेशा दूसरों की मदद करता था. सच भी है कि जब किसी की मौत की वजह ऐसी हो, जिस में दूसरे पर उंगली उठाई जा सके, तो मरने वाले के परिवार वालों को ऐसी मौत जिंदगीभर सालती रहती है.

ब्यास का जानलेवा हादसा

मनाली में सैरसपाटा करने गए आंध्र प्रदेश के छात्रों का ही मामला ले लें. 8 जून को हिमाचल प्रदेश के मंडी से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर थालोट नामक जगह पर वीएनआर विज्ञान ज्योति इंस्टिट्यूट औफ इंजीनियरिंग ऐंड टैक्नोलौजी हैदराबाद के कई छात्र फोटो खिंचवाने व नहाने के लिए ब्यास नदी में उतरे थे कि लारजी हाइड्रो प्रोजैक्ट के बांध से अचानक पानी छोड़ने से तकरीबन 25 लोग बह गए. पानी का बहाव इतना तेज था कि उन्हें संभलने का मौका भी नहीं मिला.

इस हादसे के कुछ दिनों बाद जब एक वीडियो सामने आया तब पता चला कि छात्र किस तरह पानी के तेज बहाव में बहते गए, जबकि वहीं किनारे खड़े उन के साथियों के पास हाथ मलने के अलावा चारा नहीं था. उधर, जब बह गए छात्रों के मांबाप को इस बात की खबर लगी तो उन की तो मानो दुनिया ही उजड़ गई.

साल 2009 में फर्जी एनकाउंटर में मारा गया रणवीर सिंह महज 22 साल का था. एमबीए करने के बाद बढि़या नौकरी करने की चाहत उस के मन में रही होगी. मांबाप की भी उम्मीदें जागी होंगी कि अब बेटा कमाने लगेगा, बाद में उस की शादी होगी और वह सुखी जिंदगी बिताएगा. लेकिन उस की दर्दनाक मौत ने परिवार को तोड़ दिया, क्योंकि जिस खाकी वरदी पर लोगों की जान की हिफाजत करने की जिम्मेदारी होती है उसी ने उन के लाड़ले को ऐसी न भूलने वाली मौत दे दी.

ताउम्र सालती कमी

ऐसा ही कुछ ब्यास नदी में बहे छात्रों के परिवार वालों पर भी बीता होगा. सैरसपाटे को निकले बच्चों के अभिभावकों को किसी की लापरवाही की ऐसी सजा भुगतनी पड़ी कि वे उन की लाश पाने तक को तरस गए. इन मौतों का दर्द परिवार वालों का इसलिए भी जिंदगीभर पीछा नहीं छोड़ेगा क्योंकि मारे गए ज्यादातर नौजवान थे. वे किसी लाइलाज बीमारी के शिकार नहीं थे और पढ़ाईलिखाई के मामले में होनहार भी थे. मांबाप तो ऐसे बच्चों को अपने बुढ़ापे की लाठी समझते हैं. लिहाजा, जब तक वे जिंदा रहेंगे, अपने बच्चों की मौत को कभी भूल नहीं पाएंगे.

भारत में 5 साल में 5 गुना बढ़ेंगे इंटरनैट यूजर

सूचना तकनीक के क्षेत्र में भारत विश्व में शीर्ष स्थान पर है. इस की बड़ी वजह उत्पादन की गुणवत्ता के साथ ही इस क्षेत्र के लिए यहां के लोगों की दीवानगी भी हो सकती है. मोबाइल टैलीफोन का भारत दुनिया में सब से बड़ा बाजार है, इसलिए दुनियाभर के मोबाइल फोन उपकरण निर्माता कंपनियां भारत की तरफ आकर्षित हो रही हैं. घरेलू स्तर पर भी कई कंपनियां मोबाइल उपकरण बना कर अच्छा कारोबार कर रही हैं. सेवा प्रदाता कंपनियों की भी भारत में काफी गहरी रुचि रही है और उन्होंने अपनी सेवाएं दे कर इस बाजार को प्रतिस्पर्धी बनाया है.

अब बारी इंटरनैट की है. चीन और अमेरिका के बाद इंटरनैट का इस्तेमाल करने वालों में भारत तीसरे स्थान पर है. इस क्षेत्र में तेजी से तरक्की हो रही है और इस क्षेत्र में विकास की भविष्यवाणी करने वाली वैश्विक कंपनी विजुअल नैटवर्किंग इंडैक्स यानी वीएनआई की मानें तो अगले 5 वर्ष में भारत में इंटरनैट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 5 गुना बढ़ कर 53 करोड़ के करीब पहुंच जाएगी.

वीएनआई का कहना है कि 2018 तक भारत में इंटरनैट यूजर हर साल 41 फीसदी की रफ्तार से बढ़ सकते हैं और 5 वर्ष में यह संख्या 5 गुना हो जाएगी. वैश्विक कंपनी ने भारत का 2005 का आंकड़ा दिया और बताया कि 10 साल पहले की तुलना में 5 साल बाद ही भारत में इंटरनैट उपभोक्ताओं की संख्या 159 गुना बढ़ जाएगी. इस के मोबाइल इंटरनैट यूजर अथवा गैरपीसी यूजर की संख्या करीब 60 फीसदी होगी. मतलब की बाजी मोबाइल फोन के हाथ में ही रहेगी. मोबाइल फोन के उपभोक्ताओं की संख्या तब तक सारे रिकौर्ड तोड़ कर नई ऊंचाई पर होगी जिसे छूना किसी अन्य देश के लिए भी शायद आसान नहीं होगा.

सार्वजनिक उपक्रमों को प्रतिस्पर्धी बनाने की तैयारी

भाजपा सरकार सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को रंगने की तैयारी में है. सरकार की योजना रंग लाई तो अर्द्धसरकारी क्षेत्र की कंपनियां ज्यादा समय तक सफेद हाथी बन कर नहीं रहेंगी. केंद्र की नई सरकार ने तय कर लिया है कि सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को लाभ में चलने वाली कंपनी बनाना है. यह विचार सही है. स्वाभाविक रूप से यह गंभीर मामला है कि निजी क्षेत्र की कंपनियां जिस कारोबार में मालामाल हो रही हैं, सरकारी क्षेत्र की कंपनियां उसी क्षेत्र में डांवांडोल स्थिति में हैं. गंभीर मंथन के बाद सरकार ने तय कर लिया है कि वह एमटीएनएल, बीएसएनएल, एनएचपीसीएल, टीएचडीसी, कोल इंडिया लिमिटेड जैसी ऊर्जा क्षेत्र की कंपनियों में निजी क्षेत्र के प्रोफैशनल को शीर्ष पदों पर नियुक्त कर के उन की कार्यकुशलता का फायदा इन सरकारी क्षेत्र की कंपनियों को देगी.

ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने इस की प्रक्रिया शुरू कर दी है और कार्मिक विभाग की मुहर लगने के बाद इस के लिए विज्ञापन भी जारी कर दिए जाएंगे. सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है. अब तक इन कंपनियों के शीर्ष पदों पर आईएएस अधिकारियों को रख दिया जाता था. वह विषयविशेषज्ञ नहीं होता और कई बार वह कंपनी की बुनियादी स्थितियों से ही अनभिज्ञ होता था. फिर भी शीर्ष पद पर बिठा दिया जाता जिस का फायदा कंपनी में काम कर रहे अनुभवी लोग और दूसरी कंपनियों के जानकार अपने हित में उठाते और सरकारी क्षेत्र की मलाईदार कंपनी को कंगाल बना देते. यदि क्षेत्र के प्रोफैशनलों को निजी क्षेत्र से ला कर ऊंचे पदों पर बिठाया जाता है तो कंपनी को लाभ ही होगा. यदि निचले स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठे निकम्मे लोगों को हटा कर भी निजी क्षेत्र के विशेषज्ञों को रखा जाता है तो सरकारी क्षेत्र की कंपनी को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकता है.

औनलाइन खुदरा कारोबार में नौकरियां

सुन कर जरूर अटपटा लगता है कि औनलाइन खुदरा कारोबार तरक्की पर है और इस में 15 हजार लोगों को इसी वित्त वर्ष में नौकरी मिलने की संभावना है. लेकिन यह सच है. देश में औनलाइन खुदरा कारोबार करने वाली सब से बड़ी कंपनी फ्लिपकार्ट का कारोबार विगत मार्च तक करीब 6 हजार करोड़ रुपए तक पहुंच गया और इस में निरंतर तेजी से बढ़ोतरी हो रही है.

कंपनी के शीर्ष अधिकारी कहते हैं कि उन का कारोबार तेजी से फैल रहा है और चालू वित्त वर्ष में लोगों की मांग को पूरा करने के लिए उसे कम से कम 12 हजार और कर्मचारी चाहिए. कंपनी का कहना है कि फिलहाल उस के पास 13 हजार लोगों की मजबूत टीम है लेकिन बढ़ते कारोबार को देखते हुए इसी वित्त वर्ष में टीम को बढ़ा कर 25 हजार करने का लक्ष्य तय किया गया है, ताकि हर ग्राहक को समय पर उस का सामान मिल सके. स्नैपडील भी देश का बड़ा औनलाइन खुदरा कारोबारी है और वह भी बाजार में अपनी अच्छी पकड़ बनाने के लिए 1,300 कर्मचारियों की अपनी टीम को 2,600 करने के लिए काम कर रहा है. वह तीसरी तिमाही तक ही अपनी संख्या को दोगुनी करना चाहता है.

इस कारोबार में और कंपनियां भी हाथ आजमा रही हैं. मिंत्रा जैसी कुछ औनलाइन कंपनियां फैशन की दुनिया की विशेषज्ञ बन कर सामने आ रही हैं. इन कंपनियों को शीर्ष स्तर के इंजीनियर और प्रबंधन संस्थान के लोग चाहिए. मिंत्रा भी करीब डेढ़ हजार लोगों की भरती करने वाली है. अन्य असंख्य कंपनियों के साथ वैश्विक स्तर पर काम करने वाली कंपनी अमेजन भी भारतीय बाजार में उतर रही है जिस से घरेलू औनलाइन कारोबारियों में हड़कंप मचा हुआ है और वे अपनी स्थिति मजबूत करने पर लगी हैं. इन कंपनियों के समक्ष अपने बड़े प्रोफैशनल्स को बचाए रखने की चुनौती है.

झटकों के बावजूद सूचकांक सातवें आसमान पर

जून के मध्य में इराक का संकट शेयर बाजार के लिए भूचाल लाने वाला साबित हुआ. मुसलिम विद्रोहियों के एक के बाद दूसरे शहर पर कब्जा करने से चिंतित अमेरिकी कार्यवाही की संभावना के बीच दुनिया के बाजारों में तेल की आपूर्ति की संभावना बनी और विश्व बाजार में कच्चा तेल 115 डौलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया.

बौंबे स्टौक एक्सचेंज में भी नई सरकार के आर्थिक सुधारों को गति देने, अप्रैल में औद्योगिक विकास का आंकड़ा बढ़ने और महंगाई के घटने के बावजूद बाजार 13 जून को 4 दिन की तेजी खो कर 405 अंक फिसल गया. रुपया भी हिला और अपनी मजबूती की रफ्तार खो कर 51 पैसे टूट गया. यह स्वाभाविक था.

सऊदी अरब के बाद इराक ही भारत को सर्वाधिक तेल का निर्यात करता है. भारत विदेश से अपनी जरूरत का 75 फीसदी तेल खरीदता है और हर साल 20 अरब डौलर का तेल आयात करता है. इस से पहले बाजार लगातार 4 दिन तक जबरदस्त उफान पर रहा और 10 जून को सूचकांक सर्वाधिक 25,711 अंक पर और निफ्टी रिकौर्ड 7,655 अंक तक उछल गया. इस से पहले सप्ताह में बाजार करीब 12 फीसदी उछला और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद के 3 सप्ताह में सूचकांक 10 फीसदी से अधिक उठा व हर दिन रिकौर्ड बनाता रहा है. बाजार की गिरावट बाद में भी जारी रही लेकिन इस से पहले ही सूचकांक नए आसमान पर पहुंच चुका है, इसलिए इस गिरावट का बहुत असर निवेशकों पर देखने को नहीं मिला.

सोशल साइट्स : जीने का नया अंदाज

मुंबई हो या दिल्ली, चंडीगढ़ हो या पटना, रांची हो या रायपुर, सभी जगहों के किशोरों और युवकों का  नशा सोशल साइट्स के प्रति बढ़ता ही जा रहा है. वाट्सऐप, फेसबुक, माई स्पेस, माई लाइफ, माई ओपेरा, औरकुट, स्पेसेज, बैचमेट्स, यारी, मिंगलबौक्स, निंग, मीटअप, बीबो, बिगअड्डा, रीकीन्यूयूनिवर्स, क्लासमेट्स डौट कौम, फ्रेंडस्टर, माउथशट डौट कौम जैसी सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर 100 मिलियन युवा सदस्य उपस्थित हैं और इन साइट्स पर 327 करोड़ रुपयों का विज्ञापन आता है. पूरे देश में औरकुट के 6 मिलियन सदस्य हैं. माई स्पेस के सदस्यों की संख्या 2 हजार लाख है जबकि फेसबुक के 280 लाख सदस्य हैं.

वर्ष 1995 में प्रथम सोशल नैटवर्किंग साइट क्लासमेट्स डौट कौम की शुरुआत की गई थी. माई स्पेस की शुरुआत अगस्त 2003 तथा औरकुट की जनवरी 2004 में की गई थी. पटना में औरकुट की लोकप्रियता का आलम यह था कि केवल पटना के विभिन्न स्कूलों में पढ़ने वाले 15 हजार से ज्यादा छात्र इस के सदस्य थे. इस लिस्ट में सेंट जेवियर्स, सेंट जोसेफ, डीएवी और मगध महिला कालेज जैसे नामीगिरामी स्कूलकालेज शामिल थे. लेकिन अब ‘फेसबुक’ का क्रेज बढ़ जाने से औरकुट यूजर्स की संख्या बहुत कम रह गई है.

फेसबुक की शुरुआत फरवरी 2004 तथा निंग की शुरुआत अक्तूबर 2005 में की गई थी. मीटअप 2002 में बना तो बेबो जुलाई 2005 में. आखिर क्या है इन साइट्स में? क्यों ये लगातार लोकप्रिय होती जा रही हैं? इस बाबत आयुष मुकुल का कहना है कि सोशल नैटवर्किंग साइट्स पर फन है, फ्रैंडशिप है और है जीवन जीने का नया अंदाज.

प्यार, दोस्ती और काम

आज का यूथ हाथ में स्मार्ट फोन लिए सोशल साइट्स के जरिए न सिर्फ दोस्ती के नए आयाम तलाश रहा है बल्कि प्यारमुहब्बत का खेल भी खेल रहा है. फेसबुक, वाट्सऐप पर चैटिंग करते 2 दोस्त या जानकार इन साइट्स के जरिए जीवन में मस्ती का रंग घोलते हैं, प्रोफैशनल काम भी कर डालते हैं. अपने क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के अधिकारियों व कर्मियों से सोशल साइट्स पर की गई दोस्ती कई बार प्रोफैशनल कैरियर में मददगार साबित होती है. इस तरह सोशल साइट्स पर यूथ दोस्ती, प्यार और काम एकसाथ संभाल रहा है. सोशल नैटवर्किंग साइट्स के सहारे आप बिजनैस, नैटवर्किंग भी कर सकते हैं. Biznik.com linkedin.com rize.com people get click.com pairup.com socialpicks.com and xing.com पर बिजनैस नैटवर्किंग की जा सकती है.

अब सोशल नैटवर्किंग साइट्स आप के मोबाइल फोन पर भी उपलब्ध हैं. www.bigadda.com उन में एक है. भारत की पहली मोबाइल नैटवर्किंग साइट है www.in.wada.com. इस के अतिरिक्त www.FRENZO.in भी एक अच्छी मोबाइल नैटवर्किंग साइट है. इस का सदस्य बनने के लिए आप अपने मोबाइल से FRENZO टाइप कर के एसएमएस द्वारा 5676767 पर भेजें. लेकिन ध्यान रहे, यह साइट मुफ्त नहीं है. यदि आप अपने ही सपनों का अर्थ जानना चाहते हैं तो matchadream.com पर जाइए. छोटे व्यापार के लिए ऋण लेने हेतु लौग औन कीजिए www.kiva.org/india पर. कीवा एक माइक्रोफाइनैंस वित्तीय संस्था है जो सभी छोटे व्यापारियों की मदद करना चाहती है.

पुस्तकों के प्रेमियों को www.shelfari.com, www.anobii.com और www.goodreads.com पर जाना चाहिए तो मोटरगाडि़यों, स्कूटर, मोटरसाइकिलों तथा नावों के शौकीन www.motortopia.com पर लौग औन कर सकते हैं और यात्रा के शौकीन www.oktatabyebye.com पर. आई पौड, आई फोन, मोबाइल के साथ आज का लेटैस्ट क्रेज है सोशल नैटवर्किंग. कई सोशल नैटवर्किंग साइट्स अपने सदस्यों को मुफ्त में एसएमएस करने सुविधा भी देती हैं जैसे way2sms.com और mocalie.com. औनलाइन गेम के शौकीन avatarsunited.com या gaionline.com और guildcafe.com पर जा सकते हैं. कालेज मित्रों से मिलने के लिए classmates.com और collegetonight पर जाना अच्छा रहेगा. लेकिन मोबाइल में ‘वाट्सऐप’ जैसी सुविधा आ जाने से अन्य साइट्स का अस्तित्व खतरे में है. युवा वाट्सऐप के दीवाने हो चुके हैं.

ब्लौग होस्टिंग वैबसाइट्स

वर्ड प्रैस एक ब्लौग प्रकाशन प्रणाली तथा ब्लौग होस्टिंग वैबसाइट है. आप इस साइट की सहायता से अपने खुद के नाम पर ब्लौग बना सकते हैं और वह भी बिना कुछ खर्च किए. अपने ब्लौग का नाम रखिए, फिर यूजर नेम तथा पासवर्ड डाल कर अपना ब्लौग लिखने हेतु तैयार हो जाइए.

ब्लौगर

गुगल ईमेल आईडी द्वारा आप यहां पर अपना ब्लौग बना सकते हैं. इस साइट पर आप हिंदी ब्लौग भी बना सकते हैं.

लाइव जर्नल

सोशल नैटवर्किंग की जोरदार सिफारिश करने वाली यह ब्लौग होस्टिंग वैबसाइट मोबाइल फोन द्वारा भी ब्लौग लेने को संभव करती है.

सैकंड लाइफ की दुनिया में

आप यह जान कर हैरान होंगे कि सैकंड लाइफ की दुनिया भी संभव है. जीवन का नया अंदाज है सैकंड लाइफ और आप भी इस दुनिया में जा सकते हैं कुछ घंटों के लिए, फिर आइए अपने घर. सैकंड लाइफ की दुनिया में मौज है, मस्ती है और है जीने का नया अंदाज. इस में आप सुखदुख की बातें कर सकते हैं, डेटिंग कर सकते हैं और यदि दिल लग जाए तो विवाह भी. इस सैकंड लाइफ की दुनिया में व्यापार भी संभव है.

सैकंड लाइफ 20 से ज्यादा एकड़ क्षेत्र में फैल चुका है और इस में आप अपनी जमीन भी खरीद सकते हैं. सैकंड लाइफ की दुनिया में आप इन पंक्तियों के लेखक से भी मिल सकते हैं. लेखक का नाम सैकंड लाइफ की दुनिया में अरविंद मिल्स (Arvind Mills) है. जिस तरह मैक्कान एरिक्सन के क्रिएटिव डायरैक्टर अनिरबन सेन का नाम सैकंड लाइफ पर डिंक (Dink) है. सेन ने 10 महीने पूर्व सैकंड लाइफ की दुनिया में प्रवेश किया. प्रसिद्ध मीडिया हस्ती प्रसून जोशी (एक्जीक्यूटिव चेयरमैन, मैक्कान एरिक्सन) सैकंड लाइफ की दुनिया में दादर टर्क (Dadar Turk) के नाम से जाने जाते हैं और इन्होंने सैकंड लाइफ पर 15 हजार वर्गमीटर जमीन भी खरीद ली है. जोशी हर हफ्ते कम से कम 4 से 5 घंटे का समय सैकंड लाइफ के लिए निकाल ही लेते हैं. सैकंड लाइफ पर आप जोशी की तरह प्यानो भी बजा सकते हैं.

जीयस जेटकीन ने तो सैकंड लाइफ की दुनिया में अपना व्यापार भी शुरू कर रखा है. 65 हजार वर्ग मीटर में उन का दफ्तर है सैकंड लाइफ पर. सैकंड लाइफ की दुनिया सीए सिद्धार्थ बनर्जी को इतनी पसंद आ गई है कि उन्होंने अपना पूरा समय ही सैकंड लाइफ को दे रखा है. सैकंड लाइफ की दुनिया का अपना सिक्का है जिसे लिंडेन डौलर कहते हैं. एक अमेरिकी डौलर 250 लिंडेन डौलर के बराबर होता है. आप भी आइए इस नई दुनिया में. बस, कंप्यूटर पर secondlife.com बनाइए और लीजिए मजा.

बिजनैस नैटवर्किंग

शेयर बाजार में यदि आप की रुचि है तो socialpicks.com और cakefinancial.com पर आप को मजा आएगा. सोशल पिक्स साइट पर निवेश की रणनीति भी बताई जाती है और दुनिया के सब से बड़े निवेशक वारेन बफेट की तकनीक भी. एक अच्छा निवेशक बनने के लिए socialpicks अच्छी साइट है. biznik.com, linked.in.com, ryee.com, peoplethatclick.com, painup.com और xing.com बिजनैस नैटवर्किंग साइट्स हैं.

युवा सोशल मीडिया और चुनाव

सोशल मीडिया में युवाओं की बढ़ती संख्या के लिहाज से सियासी दलों ने भी इन्हें अपने वोटबैंक में तबदील करने के लिए हथियार बना लिया है. इन दलों ने 2014 के आम चुनावों में सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया. फिलहाल देश की हर बड़ी राजनीतिक पार्टी ने टैक्नोलौजी से लैस एक ऐसी टीम बनाई है जिस का काम है इंटरनैट की दुनिया में उस की ब्रांडिंग करना. भाजपा का जहां अपना आईटी सेल है यानी सूचना प्रौद्योगिकी इकाई जो पार्टी का डिजिटल काम देखती है, फेसबुक अकाउंट भी है. इस अकाउंट पर लाखों लोगों को जोड़ कर पार्टी में वोट जुटाने की कैंपेनिंग की गई. इस के अलावा सुषमा स्वराज, नरेंद्र मोदी जैसे नेता न केवल फेसबुक पर पार्टी से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर लोगों की राय आमंत्रित करते हैं बल्कि पार्टी से जुड़ी जानकारी भी देते हैं. पार्टी का सदस्य बनने के लिए लोगों को प्रेरित भी करते हैं.

जीवन की मुसकान

मेरी सहेली ने मेरे लिए जो किया वह मैं सोच भी नहीं सकती. हम कालेज में थे. एक बार कालेज में डांस कंपीटिशन हुआ. हम दोनों ने उस में भाग लिया. मैं उस के साथ कंपीटिशन नहीं करना चाहती थी लेकिन इत्तेफाक से हम दोनों ही फाइनल में पहुंच गईं. हमें एकदूसरे का सामना करना था. मैं जीतना चाहती थी पर जानती थी कि वह मुझ से ज्यादा अच्छा नृत्य करती है. जब कंपीटिशन शुरू हुआ तो उस ने अच्छा नृत्य नहीं किया और अचानक गिर गई. सब देख कर यकीन नहीं कर पा रहे थे कि वह ऐसा डांस कर रही है. मैं आखिरकार जीत गई. मेरी जीत पर खुश होते हुए उस ने कहा, ‘‘मैं हारी नहीं हूं, तू जीत गई है.’’ दरअसल, वह सब उस ने जानबूझ कर किया था. उस की सच्ची दोस्ती मेरे दिल को छू गई.  

दिव्या सिंह, सिरसागंज (उ.प्र.)

बात उस समय की है जब मैं 11वीं कक्षा में पढ़ती थी. मुझे घड़ी पहनने का बहुत शौक था. मेरे दादाजी ने मेरे जन्मदिन पर मुझे घड़ी दी. परंतु वह जाने कहां गुम हो गई. अगर घर का कोई सदस्य मुझ से पूछता, ‘घड़ी कहां है’ तो मैं कहती, ‘मेरी दोस्त इंदू के पास है.’ हमारे दूसरे सत्र के इम्तिहान शुरू होने वाले थे और मेरे पास घड़ी नहीं थी. मैं परेशान थी. फ्रैंडशिप डे पर जब मैं ने अपनी दोस्त इंदू को बैंड बांधा तो उस ने मुझ से आंखें बंद करने को कहा और मेरी कलाई पर घड़ी बांध दी. उसे देख कर मेरी आंखें छलछला पड़ीं. मैं ने उस से कहा, ‘धीरेधीरे रुपए दे दूंगी.’ मेरी बात सुन कर वह बोली, ‘क्या मैं अपनी दोस्त के लिए इतना भी नहीं कर सकती. तेरी दोस्ती तो मेरे लिए रुपए से भी बढ़ कर कीमती है.’ उस की यह बात मेरे मन को छू गई.

आशा रोउतेला, नांगलोई (दिल्ली)

बात उन दिनों की है जब हम तीनों बहनें स्कूल जाया करती थीं. हमारा स्कूल घर से डेढ़ किलोमीटर दूर था. हम घर से निकले ही थे कि हम ने एक आदमी को साइकिल पर जाते हुए देखा. उस की जेब से 100-500 रुपए के नएनए नोट बिखरते जा रहे थे. वह आदमी जल्दी में था. मैं ने दीदी से कहा, ‘‘दीदी, देखो न कितने सारे पैसे हैं.’’ हमारे साथ गांव की और भी लड़कियां थीं जो हम से थोड़ा पीछे थीं. उन्होंने तुरंत मेरी बड़ी बहन से कहा कि सारे पैसे सड़क से उठा ले और फिर उन्हें बांट लेंगे. मेरे मन में भी लालच आ गया. मगर दीदी ने सारी स्थिति देख कर तुरंत उस आदमी को आवाज लगाई. दीदी ने उस के गिरे हुए पैसों के बारे में उसे बताया और उस के पैसे भी सड़क से उठा कर उसे दे दिए. मैं दीदी को देख रही थी. उन के चेहरे पर सचाई थी.         

एक पाठिका

भारत भूमि युगे युगे

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह इन दिनों काफी परेशान हैं. राज्य में कुछ भी ठीकठाक नहीं है. रोज व्यापमं घोटाले को ले कर बवंडर मचा रहता है. अब कोई उन की कल्याणकारी योजनाओं पर तवज्जुह नहीं देता. नई दिक्कत व्यापमं घोटाले में उन का नाम भी आ जाना है और ‘शानदार’ तरीके से आना है जिसे ले कर वे सफाई भी दे रहे हैं और धौंस भी कि कांग्रेसियों पर मानहानि का दावा करूंगा. आम लोग अब उन की बातों पर पहले सा भरोसा नहीं कर रहे, यह और भी ज्यादा दुख की बात है. दावों से दाग नहीं धुलते बल्कि और फैलते हैं, यह भी शिवराज जानते हैं. वे असहाय से हो चले हैं जो शुभ या सुखद कतई नहीं.

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