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हौलीडे

यह कहा जाता है कि ‘अ सोल्जर इज नैवर औफ ड्यूटी’. ‘हौलीडे’ नामक इस फिल्म में अक्षय कुमार एक सोल्जर की भूमिका में है और चौबीसों घंटे वह अपने मिशन को पूरा करने में लगा रहता है यानी नैवर औफ ड्यूटी.

टाइटल से तो यह फिल्म छुट्टियां मनाने और मौजमस्ती करने वाली लगती है लेकिन ऐसा नहीं है. फिल्म आतंकवाद पर है. आतंकवाद खुलेआम वाला नहीं, गुपचुप वाला यानी स्लीपर्स सैल. स्लीपर्स सैल हमारेआप के बीच रहने वाले ऐसे लोग होते हैं जो आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होते हैं, उन्हें यह पता नहीं होता कि उन का इस्तेमाल कौन किसलिए कर रहा है. स्लीपर्स सैल के लोग कोई भी हो सकते हैं, आप का दूध वाला, ड्राइवर, नौकर, दुकानदार, दफ्तर का बौस…कोई भी हो सकता है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि भारतीय रक्षा मंत्रालय का जौइंट सैके्रटरी स्लीपर्स सैल का मुखिया है.

‘हौलीडे’ तमिल फिल्म ‘तुप्पाकी’ की रीमेक है. इस फिल्म के निर्देशक ए आर मुरगादास ने 6 साल पहले आमिर खान की फिल्म ‘गजनी’ का निर्देशन किया था. ‘गजनी’ और ‘हौलीडे’ में काफी फर्क है. ऐक्शन थ्रिलर दोनों फिल्में हैं लेकिन निर्देशक ने ‘हौलीडे’ में ऐक्शन के साथसाथ हास्य और रोमांस को भी डाला है. जरूरी है कि हास्य और रोमांस होगा तो गाने होंगे ही. अब आप ही बताइए, आतंकवाद वाली फिल्म में भला गानों का क्या काम. गाने कहानी के प्रवाह में बाधा ही पैदा करते हैं.

फिल्म की कहानी बहुत बढि़या नहीं है लेकिन फ्लैट भी नहीं है. कैप्टन विराट बक्शी (अक्षय कुमार) फौज में है. वह जम्मू में तैनात है. 40 दिनों के हौलीडे पर वह मुंबई आता है. उस के घर वाले उसे एक लड़की साहिबा (सोनाक्षी सिन्हा) दिखाने ले जाते हैं लेकिन विराट उसे रिजैक्ट कर देता है. साहिबा उसे बहुत सीधीसादी लगती है. अगले दिन शहर में हो रहे एक बौक्ंिसग मुकाबले में वह साहिबा को बौक्ंिसग करते देखता है तो अपना इरादा बदल लेता है.

उन्हीं दिनों मुंबई में आतंकवादियों द्वारा एक साजिश रची जा रही थी. एक जबरदस्त बम धमाके में स्कूली बच्चों की बस के परखचे उड़ जाते हैं. अपने दोस्त पुलिस इंस्पैक्टर (सुमित राघवन) के साथ विराट एक आतंकवादी को पकड़ता है. उसी से विराट को जानकारी मिलती है कि मुंबई में 12 जगहों पर बम धमाके होने हैं. विराट का सामना लेटैस्ट तकनीक में माहिर आतंकवादियों के सरगना (फ्रेडी दारूवाला) से होता है, जो पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं को खुश करने में लगा है. विराट पहले तो एकएक कर इन स्लीपर्स सैल के तमाम लोगों को मार गिराता है. अंत में इस सैल के सरगना को भी खत्म करता है. छुट्टियों में वह साहिबा से सगाई कर ड्यूटी पर लौट जाता है.

फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी इस की लंबाई है. लगभग 3 घंटे की इस फिल्म को जबरदस्ती खींचा गया है. अक्षय कुमार ने ऐक्शन दृश्य इस तरह किए हैं जैसे वह निर्देशक पर एहसान कर रहा हो.  गोविंदा ने कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है.

सोनाक्षी के हिस्से में कुछ सीन ही आए हैं. उस ने खानापूरी ही की है. फ्रैडी दारूवाला का काम काफी अच्छा है. सुमित राघवन प्रभावित नहीं कर सका. फिल्म का निर्देशन परंपरागत है. निर्देशक ने गति ढीली नहीं होने दी है. गीतसंगीत पक्ष साधारण है. छायांकन अच्छा है.

महिलाओं को मिले सम्मान : सीमा बिस्वास

‘बैंडिट क्वीन’, ‘खामोशी’, ‘हजार चौरासी की मां’, ‘समर’, ‘दीवानगी’, ‘कंपनी’ आदि फिल्मों के जरिए अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकीं सीमा बिस्वास को चुनौतीपूर्ण काम करना पसंद है. अपने कैरियर के बारे में उन्होंने खुल कर बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश :

आप ने हमेशा लीक से हट कर फिल्मों में काम किया, इस की वजह?

मैं अर्थपूर्ण फिल्मों में काम करना पसंद करती हूं, जिस से समाज को कुछ सीख मिले. मेरी पिछले दिनों रिलीज फिल्म ‘मंजूनाथ’ में भी ऐसी ही बात थी. सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म को हमारे देश में दिखाया जाना जरूरी था इसलिए मैं ने यह फिल्म की.

आप का यहां तक पहुंचना कितना मुश्किल रहा?

मैं असम के एक छोटे से शहर तलबाड़ी की रहने वाली हूं. मेरा पूरा परिवार हमेशा कला के क्षेत्र से जुड़ा रहा है. मेरी मां मीरा बिस्वास एक नामचीन महिला रंगकर्मी हैं. जब मैं छोटी थी तो थिएटर ग्रुप ने असम में मुझे अभिनय के लिए बुलाया. मैं ने काम किया, सब को मेरा अभिनय पसंद आया. तब से मुझे इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा मिली. पर मेरी मां हमेशा शिक्षा को अहमियत देती थीं. गे्रजुएशन के बाद उन्होंने मुझे दिल्ली के एनएसडी में 3 साल का कोर्स करने की अनुमति दी. वहां मैं ने पढ़ाई के दौरान कई बड़ेबड़े कलाकारों के साथ नाटकों में काम किया. काफी साल बाद एक दिन फिल्म निर्मातानिर्देशक शेखर कपूर एक शो के दौरान मुझ से मिले और ‘बैंडिट क्वीन’ का औफर दिया.

‘बैंडिट क्वीन’ में काम करने के बाद आप काफी चर्चा में रहीं, क्या आप को इस इमेज से बाहर निकलने में समय लगा?

हां, समय अवश्य लगा क्योंकि आप जैसी फिल्म से काम शुरू करते हैं वैसी आप की इमेज बन जाती है. जब शेखर कपूर मेरे पास आए और स्क्रिप्ट सुनाई तो कलाकार की दृष्टि से मुझे वह बहुत अलग और आकर्षक लगी. क्योंकि तब तक मैं बहुत सारे नाटकों में काम कर चुकी थी. पर बोल्ड सीन की जब बात आई तो मैं ने करने से मना कर दिया. शेखर कपूर ने समझाया कि यह लड़की नहीं बल्कि एक मांस का लोथड़ा है जिस के साथ नाइंसाफी हुई है पर मैं ने सहज न होने की वजह से बौडीडबल का सहारा लिया. इस के बाद मुझे काफी समय लगा उस इमेज से निकलने में. लेकिन मैं ने आज तक कई अच्छी और अलग तरह की फिल्में कीं. मैं ने अपनी इमेज को कभी कैश नहीं किया.

आप किस तरह की फिल्मों को अधिकतर चुनती हैं?

फिल्म कैसी भी हो, अगर स्क्रिप्ट रुचिकर है, दिल को छूती है तो हां कर देती हूं. कई फिल्मों में मेरी भूमिका छोटी थी मगर प्रभावशाली थी. निर्देशक और कलाकार के समन्वय को भी देखती हूं. ‘बैंडिट क्वीन’ के बाद उस तरह की कई फिल्में मेरे पास आईं, लोगों ने कहा ‘बैंडिट क्वीन’ पूरी कहानी नहीं है, हम पूरी फिल्म बनाना चाहते हैं. पर मैं ने मना कर दिया कि मैं 4-5 साल तक वैसी फिल्म नहीं करूंगी. ‘बैंडिट क्वीन’ को करने में काफी मेहनत लगी थी. बारबार वैसी ही भूमिका नहीं करना चाहती थी.

फिल्मों में बोल्ड सीन करना किसी कलाकार के लिए कितना मुश्किल होता है?

उस वक्त तो ‘बैंडिट क्वीन’ में मैं ने वह सीन नहीं किया था. लेकिन 150 से 200 कू्र मैंबरों के बीच में ऐसे भावुक दृश्य को भाव के साथ फिल्माना आसान नहीं होता.

असम के छोटे शहर से मुंबई जैसे बड़े शहर में आ कर रहना कितना मुश्किल था?

मैं बहुत ही शर्मीली हूं. मेरे घर में हमेशा बड़ेबड़े कलाकार आतेजाते रहते थे. उस समय मैं रसोई में चली जाती थी. मैं इंट्रोवर्ट हूं. अभी भी मैं किसी पार्टी में नहीं जाती. घरेलू हूं. जो भी काम मुझे मिलता है उस पर अधिक केंद्रित रहती हूं. क्या पहना है या कहां जा रही हूं, उस पर कभी नजर नहीं रखती. इतना अवश्य देखा कि असम में जो महिलाओं को सम्मान मिलता है वह यहां नहीं मिलता था. खासकर दिल्ली में अनुभव बहुत खराब था. बहुत बुरा लगता था पर मैं अपने काम के अलावा किसी दूसरी बात पर ध्यान नहीं देती.

ग्लैमर वर्ल्ड में रहने के लिए क्या जरूरी है?

यहां सिर्फ ‘लुक’ से काम नहीं चलता, अभिनय आना चाहिए, साथ ही मेहनत और ईमानदारी बहुत आवश्यक है.

अभिनय के अलावा क्या प्रोड्यूसर या निर्देशक बनना चाहती हैं?

प्रोड्यूसर बनने के लिए मेरे पास इतना पैसा नहीं है. पर निर्देशक शायद बनूं, क्योंकि हर दृश्य को करते वक्त मैं कुछ अलग महसूस करती हूं. निर्देशक बनने के लिए पूरी फिल्म को करने की हिम्मत रखनी पड़ती है. तभी एक फिल्म का बनना संभव होता है.

आगे और क्याक्या कर रही हैं?

अभी एक आस्ट्रेलियन फिल्म पूरी की है. ‘चार फुटिया छोकरे’ नाम की एक फिल्म कर रही हूं. इस के अलावा थिएटर में तो काम करती ही रहती हूं.

महिलाओं की स्थिति में कितना सुधार आया है?

महिलाएं आज किसी अत्याचार को चुपचाप नहीं सहतीं. पुलिस और कानून का सहारा लेती हैं. उन्हें अपने अधिकार पता हैं. पर समाज की सोच को अभी और बदलने की आवश्यकता है. इस के अलावा अपराधी को जल्दी और कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि वे अपराध करने से डरें. किसी भी घटना के पीछे समाज, परिवार और व्यक्ति की जिम्मेदारी होती है. किसी एक को दोषी ठहराना ठीक नहीं.

हौकी इंडिया की धमकी, पैसा नहीं तो खेल नहीं

एक तरफ खेल को बढ़ावा देने के लिए सरकार बड़ीबड़ी बातें करती है वहीं दूसरी तरफ हौकी इंडिया ने सरकार को धमकी दी है कि अगर पर्याप्त धनराशि मुहैया न कराई तो राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में पुरुष और महिला टीम को नहीं भेजा जाएगा.

हौकी इंडिया के महासचिव नरेंद्र बत्रा का कहना है कि भारतीय खेल प्राधिकरण यानी साई ने उन्हें सूचित किया है कि 31 मार्च तक के लिए उन के पास 31 लाख रुपए बचे हैं. इस धनराशि से टीम हौकी को एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए नहीं भेजा जा सकता है.

बत्रा का कहना है कि हमें एशियाई खेल, राष्ट्रमंडल खेल और भारत में चैंपियन ट्रौफी में हिस्सा लेना है और इस के लिए हम ने साई को वर्ष 2014-15 के लिए 38 करोड़ रुपए का बजट दिया था. लेकिन उन्होंने महज 10 करोड़ रुपए ही दिए जिन में से अप्रैल से ले कर जून तक 9.69 करोड़ रुपए खर्च भी हो चुके हैं. अब इतनी कम धनराशि में भला हौकी टीम को खेलों के लिए कैसे भेजा जा सकता है, जबकि पिछले वर्ष 24 करोड़ रुपए दिए गए थे.

एक ओर जहां क्रिकेट की दुनिया में  एक खिलाड़ी पर लाखोंकरोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय खेल हौकी के पास इतना पैसा नहीं है कि वह राष्ट्रमंडल व एशियाई खेलों में शिरकत कर सके. इस से शर्मनाक बात हौकी के लिए और क्या होगी.

सुआरेज ने किया फीफा को फीका

दुनियाभर में इन दिनों फीफा वर्ल्ड कप की खुमारी छाई हुई है. जिन मुल्कों की टीमों ने फीफा में शिरकत की है वे तो लुत्फ उठा ही रहे हैं, भारत जैसे कई मुल्क बिना अपने देश की टीमों की परवा किए फुटबाल के इस कार्निवाल में पूरी तरह से रमे हुए हैं.

इस दिलचस्प मुकाबले में बड़े उलटफेर के साथसाथ कुछ हरकतें भी ऐसी हुईं कि जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. उरुग्वे और इटली के बीच दिलचस्प मुकाबला चल रहा था, प्रशंसक यह तय नहीं कर पा रहे थे कि जीत किस की होगी. इसी बीच उरुग्वे के लुईस सुआरेज ने इटली के डिफैंडर जार्जियो चेलिनी के कंधे पर दांत गड़ा दिए. मैच के दौरान रैफरी से तो सुआरेज बच गए लेकिन कैमरे से नहीं बच पाए. फीफा ने इसे गंभीरता से लेते हुए सुआरेज पर 9 मैच और 4 महीने के लिए फुटबाल की गतिविधियों में हिस्सा लेने पर रोक लगा दी. मजेदार बात तो यह है कि भले ही ज्यादातर प्रशंसकों को मालूम नहीं होगा लेकिन यह बात सट्टेबाजों को मालूम जरूर थी क्योंकि सट्टेबाज पहले ही सट्टा लगा चुके थे कि इस बार सुआरेज का शिकार कौन होगा.

हालांकि फीफा वर्ल्ड कप में इस तरह की घटनाएं पहले भी होती रही हैं. वर्ष 2010 में औटमन बक्कल उस के बाद ब्रैनिस्लाव इवानोविच के साथ भी ऐसा ही हुआ था. दांत गड़ाने के अलावा वर्ष 2006 में फ्रांस के कप्तान जिनेदिन जिदान ने इटली के मार्को मातेरात्जी की छाती पर अपना सिर दे मारा था.  इसी तरह वर्ष 1990 में वर्ल्ड कप के दौरान नीदरलैंड के फ्रैंक रिकौर्ड ने पश्चिमी जरमनी के रूडी वौलर पर थूक दिया था. वर्ष 2010 में फाइनल मुकाबले में नीदरलैंड के खिलाड़ी नाइजेल डी जोंग को स्पेन के साबी एलोंसो पर छाती के बराबर किक करने के लिए पीला कार्ड दिखा कर बाहर कर दिया गया था. ऐसी एक नहीं कई घटनाएं घट चुकी हैं.

बहरहाल, भले ही उरुग्वे ने वह मैच जीत लिया लेकिन सुआरेज की हरकत ने फीफा को कहीं न कहीं फीका तो जरूर कर ही दिया क्योंकि उस जीत की चर्चा कम और सुआरेज की हरकत की चर्चा कुछ ज्यादा ही रही

पाठकों की समस्याएं

मैं 26 वर्षीय विवाहिता हूं. विवाह को 7 वर्ष हो चुके हैं. मेरी और मेरे पति की उम्र में 7 वर्ष का अंतर है. उन की सैक्स के प्रति रुचि कम रहती है और वे चाहते हैं कि सैक्स में मैं ही पहल करूं, जो मैं करती भी हूं. मैं जानना चाहती हूं कि क्या हमारी उम्र में रोज सैक्स कर सकते हैं. इस के अलावा मेरी एक समस्या यह भी है कि मेरे पति मुझ से अपना मोबाइल फोन शेयर नहीं करते. मुझे डर है कि कहीं उन का कोई अफेयर तो नहीं चल रहा? मैं असमंजस में हूं.

पहली बात आप की और पति की उम्र में 7 वर्ष का अंतर कोई माने नहीं रखता. यह सामान्य बात है. कई सफल विवाहित जोड़ों में तो इस से भी अधिक आयु का अंतर रहता है. यह आप का मात्र वहम है कि उम्र का अंतर उन की सैक्स के प्रति अरुचि का कारण है और अगर वे चाहते हैं कि सैक्स में आप पहल करें तो इस में भी कोई बुराई नहीं है. यह अच्छी बात है कि आप पहल करती हैं. सैक्स कितनी बार करें, इस बात का भी उम्र से कोई लेनादेना नहीं है. जहां तक पति द्वारा आप से मोबाइल शेयर न करने की बात है, आप बेवजह बातों को बढ़ा रही हैं. पतिपत्नी के बीच नजदीकी के साथ स्पेस यानी दूरी भी जरूरी है. आप क्या उन के फोन से उन की जासूसी करना चाहती हैं? अपने मन से बेवजह का शक निकाल दीजिए और पति पर विश्वास कीजिए.

मैं 21 वर्षीय युवती हूं. घर की आर्थिक परिस्थितियों के कारण मैं ने नौकरी करनी प्रारंभ कर दी. वहां एक लड़के से मेरी अच्छी दोस्ती हो गई. उसी दौरान किसी बात पर मेरे परिवार में झगड़ा हुआ और मैं ने नीद की गोलियां खा लीं. जब मेरे दोस्त को इस बात का पता चला तो उस ने मेरी मां से हमारी शादी के बारे में बात कर ली. और पिछले 3 सालों से हम पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं पर पिछले कुछ दिनों से वह बदल गया है. मुझ पर शक करने लगा है, लड़ाईझगड़ा करता है. मुझे समझ नहीं आ रहा, मैं क्या करूं? सब घर वालों की मरजी से हुआ.

आप के दोस्त ने आप की मां से आप दोनों के विवाह की बात की तो फिर विवाह क्यों नहीं किया? बिना विवाह किए आप दोनों का एकसाथ पतिपत्नी की तरह रहना आप की सब से बड़ी गलती है. समाज में अमान्य ऐसे रिश्तों का यही अंत होता है. क्या आप ने यह कभी जानने की कोशिश नहीं की कि आप के दोस्त का आप के प्रति व्यवहार के बदलने के पीछे क्या कारण है? हो सकता है उस ने आप की परिस्थितियों का फायदा उठाया हो और अब वह आप से छुटकारा पाना चाहता हो. यह आप की गलतफहमी है कि सब घर वालों की मरजी से हुआ. आप की इस दशा के लिए आप के घर वाले जिम्मेदार नहीं हैं. बिना विवाह के रहने का निर्णय आप दोनों का था. अब आप व्यर्थ ही घर वालों को दोषी ठहरा रही हैं. वर्तमान स्थिति में आप अपने दोस्त से खुल कर बात करें कि वह चाहता क्या है तभी साथ रहने या अलग होने का निर्णय लें.

मैं 20 वर्षीय अविवाहित हूं और अपनी ही कंपनी में नौकरी करने वाली एक युवती से प्यार करता हूं. वह भी मुझ से प्यार करती है. हम दोनों विवाह भी करना चाहते हैं लेकिन समस्या यह है कि वह विवाहित है और उस की 1 बेटी भी है. हमें क्या करना चाहिए?

उस युवती के प्रति आप का प्यार, प्यार नहीं आकर्षण है. आप की उम्र अभी केवल 20 वर्ष है और वह युवती विवाहित और 1 बेटी की मां है. ऐसे में आप दोनों का विवाह कैसे हो सकता है? क्या वह युवती अपने पति से खुश नहीं है जो आप से विवाह करना चाहती है? इस उम्र में आप एक विवाहित युवती के प्यार में पड़ने की गलती कर रहे हैं जो आप को और उस के वैवाहिक जीवन को बरबादी की तरफ ले जा सकता है.

मैं रेलवे से रिटायर्ड हूं. अपनी 33 वर्षीय बेटी को ले कर बहुत परेशान हूं. जब वह 16 साल की थी तभी से शादी की जिद करती थी. काफी भागदौड़ के बाद 2005 में मैं ने उस की शादी कर दी. लेकिन ससुराल में वह स्वयं को स्थापित नहीं कर पाई और 3-4 बार ससुराल छोड़ कर चली आई जिस से उस की शादी 2009 में टूट गई. उस के इस व्यवहार पर जब उसे डाक्टर को दिखाया तो पता चला वह सिजोफ्रेनिया नामक बीमारी से ग्रस्त है. पिछले ढाई साल से उस का इलाज चल रहा है लेकिन कोई लाभ नहीं हो रहा. उस की एक 7 साल की बेटी भी है. इस बीच उस की जिद पर मैं ने जनवरी में उस की दूसरी शादी भी कर दी. लेकिन वहां भी वह 2 महीने से ज्यादा नहीं निभा पाई. आजकल वह मेरे साथ मेरे घर पर है. लेकिन अब वह मेरे साथ भी नहीं रहना चाहती. कहती है, मुझे कहीं भी किसी नारी निकेतन, आश्रम या सड़क पर छोड़ दो. क्या ऐसी कोई संस्था होगी जो उसे रख सके? मैं संस्था को 5 हजार रुपए प्रतिमाह तक भुगतान कर सकता हूं. मैं बहुत परेशान हूं. सलाह दीजिए.

सिजोफ्रेनिया एक मानसिक डिसऔर्डर है जिस में रोगी असामान्य व्यवहार करता है, हमेशा दूसरों के प्रति शंका का भाव रखता है और भ्रम में रहता है. आप ने अपनी बेटी की अभी तक की जो भी स्थिति बताई उस के आधार पर कोई भी आश्रम या संस्था उसे नहीं रखना चाहेगी क्योंकि उस का व्यवहार वहां रह रहे अन्य लोगों के लिए भी समस्या खड़ी कर सकता है. ऐसे में आप के पास सिर्फ एक ही उपाय बचता है कि आप  अपनी बेटी को अपने साथ ही रखें और उस की देखरेख स्वयं ही करें.

बच्चों के मुख से

मैं ने बीएससी प्रथम वर्ष के लिए ऐडमिशन फार्म मंगवाए थे. हम सभी बैठ कर उस कालेज की पत्रिका पढ़ रहे थे. तभी मेरा छोटा भाई कुछ सोच कर अचानक बोला, ‘‘दीदी, आप कितनी भी कोशिश कर लें, आप का ऐडमिशन इस कालेज में नहीं हो सकता.’’
हम सब ने हैरानी से पूछा, ‘‘क्यों?’’
उस ने तपाक से जवाब दिया, ‘‘यह तो महिला कालेज है और आप महिला नहीं, लड़की हो.’’ उस की बात का मतलब समझते ही हम खूब हंसे.

आरती जांगड़ा, भिवानी (हरियाणा)

मेरी पोती अनाया 5 वर्ष की है, ज्यादातर फोन वही उठाती है. एक दिन फोन पर उस से किसी ने कहा, ‘‘बेटा, अपने पापा से बात करा दो.’’ ‘‘वे नहीं हैं.’’ उधर से कहा, ‘‘अच्छा, अपनी मम्मी से बात करा दो.’’
अनाया ने कहा, ‘‘कौन सी मम्मी से बात कराऊं?’’
फिर उधर से पूछा, ‘‘तुम्हारी कितनी मम्मी हैं?’’ अनाया झट से बोली, ‘‘3 हैं.’’
शाम को अनाया के पापा अमित का दोस्त आया और बोला, ‘‘अरे यार, तेरी 3-3 बीवी हैं?’’ पहले तो अमित सकपकाया, फिर बोला, ‘‘अरे, यह बड़ी ताई को विशी मम्मी कहती है और मझली ताई को मणी मम्मी कहती है.’’
सभी घर में बैठे थे. यह बात सुन कर खूब हंसे.

राजरानी गोयल, जनपथ (न.दि.)

मेरी भांजी नन्नू नर्सरी कक्षा में पढ़ती है. एक दिन उस की मम्मी ने पूछा, ‘‘बेटा, डोमैस्टिक ऐनिमल्स के नाम बताओ.’’ नन्नू सोचने लगी तो उस की मम्मी ने हिंट देते हुए कहा, ‘‘वे जो घर में रहते हैं.’’
‘‘अच्छा मम्मी, पापा, दिद्दा…’’ तुरंत जवाब देते हुए, मुड़ कर अपने पापा से पूछा, ‘‘पापा, आप भी डोमैस्टिक हो ना?’’

वंदना, सहारनपुर (उ.प्र.)

बेटे के घर आई मीना कुछ दिनों बाद जब वापस जाने को तैयार हुई तो पोता गट्टू अपनी जिद पर अड़ गया और बोला, ‘‘दादी, आप न जाइए. आप यहीं रहिए.’’
बेटे की जिद को देख कर बहुत बोलने वाली बहू बोली, ‘‘दादी का घर तो लखनऊ में है, इसलिए वे यहां कैसे रह सकती हैं. उन्हें जाने दो.’’
इतना सुनते ही गट्टू तपाक से बोला, ‘‘आप का घर भी तो नानी का घर है. जब आप अपने बेटे के साथ रहती हैं तो दादी भी तो अपने बेटे के पास रह सकती हैं.’’

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

धंधा

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने लवलीन मुनरों को बांहों में भरा और एक जोरदार चुंबन उस के गाल पर जड़ा, फिर अपने होंठ उस के होंठों की तरफ बढ़ाए, तभी एक फ्लैशलाइट चमकी. दोनों ने सकपका कर सामने देखा, तभी दूसरी फ्लैशलाइट चमकी. फिर एक मोटरसाइकिल के स्टार्ट होने और तेजी से जाने की आवाज.

‘‘क्या हुआ है यह?’’ अपनेआप को सरदार साहब की बांहों से छुड़ाती लवलीन ने पूछा.

‘‘कोई शरारती फोटोग्राफर हमारी फोटो खींच कर भाग गया.’’

‘‘वह क्यों?’’ लवलीन मुनरों, जो स्थानीय विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर कक्षा में पढ़ाती थी और जिस की उम्र मात्र 22 साल थी, ने पूछा.

‘‘ब्लैकमेल करने के लिए. हमारे पास नमूने के तौर पर इन तसवीरों का एक सैट आएगा. फिर हमारे पास फोन आएगा, हम से पैसा मांगा जाएगा. पैसा नहीं देने पर इन तसवीरों को अखबारों में छपवाने व इंटरनैट पर जारी करने की धमकी दी जाएगी,’’ सरदार साहब ने विस्तार से समझाया.

‘‘इस से तो मैं बदनाम हो जाऊंगी,’’ चिंतातुर स्वर में लवलीन ने कहा.

‘‘हौसला रखो, ऐसे शरारती फोटोग्राफर, जिन को पपाराजी कहा जाता है, हर बड़े नगर में होते हैं. मुझे इन से निबटना आता है.’’

दोनों की शाम का मजा खराब हो गया था. दोनों समुद्र तट से सड़क के किनारे खड़ी गाड़ी में बैठे. कार न्यूयार्क की तरफ चल पड़ी.

सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी 60 बरस का था लेकिन तंदुरुस्ती के लिहाज से 40 साल का लगता था. वह न्यूयार्क में एक रैस्टोरेंट की शृंखला का मालिक था. वह कभी न्यूयार्क में टैक्सी चलाता था. फिर एक छोटा सा रैस्तरां खोला और धीरेधीरे तरक्की करता अब अनेक रैस्तराओं का मालिक था.

कारोबार अब दोनों बेटे देखने लगे थे. सरदार साहब के पास पैसा और समय काफी था. उस की पत्नी भी उसी की तरह 60 बरस की थी लेकिन वह एक बुढि़या नजर आती थी. वह अपना समय पोतेपोतियों को खिलाने में और घर की अन्य गतिविधियों में शिरकत कर बिताती थी. सरदारनी में यौन इच्छा नहीं रही थी लेकिन सरदार अब भी घोड़े के समान था. अपनी इच्छापूर्ति के लिए  वह कभी किसी कौलगर्ल, कभी किसी अन्य को बुलाता था. एक एजेंट के मारफत उस का संपर्क विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली अनेक श्वेतअश्वेत अमेरिकी छात्राओं से बन गया था. ऐसी बालाएं तफरीह और मौजमस्ती के लिए ऐसे जवां और ठरकी बूढ़ों के मनबहलाव के लिए आ जाती थीं. सरदार साहब शाम को ऐसी किसी लड़की को अपनी कार में ले कर किसी सुनसान समुद्र तट पर पहुंच जाता. समुद्र तट पर छितरे पाम के पेड़ों के पीछे, चट्टानों के पीछे, इधरउधर उन्हीं के समान चूमाचाटी, मौजमस्ती में लीन पड़े जोड़े होते थे.

अधिकांश जोड़े बेमेल होते थे. मर्द 60 साल का होता था जबकि लड़की  20-22 साल की. औरत 60 साल की होती थी, दिल बहलाने वाला छैला 25-30 का. अधिक उम्र वाला धनी होता था. कम उम्र वाला गरीब या मामूली हैसियत का. लवलीन मुनरों को उस के होस्टल के बाहर उतार कर ओंकार सिंह अपने घर, जो एक महल के समान बड़ी कोठी थी, में पहुंचा. वह चिंतातुर था. निकट भविष्य में स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहा था. कई साल स्थानीय निकाय का सदस्य चुना जाता रहा था. अब वह राज्य स्तर पर उभरना  चाहता था. बाद में सीनेटर बन अमेरिका की लोकसभा में जाना चाहता था.

कोई भी स्कैंडल अमेरिका में राजनीति के क्षेत्र में किसी का भविष्य एकदम बिगाड़ देता था. पपाराजी या शरारती फोटोग्राफर द्वारा खींची तसवीरें सार्वजनिक हो जाने पर सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी का राजनीतिक कैरियर एकदम तबाह कर सकती थीं.

डेनियल एक शरारती फोटोग्राफर या पपाराजी था. वह एक श्वेत अमेरिकी और नीग्रो मां की दोगली संतान था. उस का रंगरूप एक भारतीय जैसा था. पहले वह एक फोटोग्राफर के यहां असिस्टैंट था. बाद में उस ने अपना फोटोग्राफी का स्वतंत्र व्यवसाय आरंभ किया था. एक दफा एक कंपनी ने उस को विरोधी कंपनी की जासूसी के लिए कुछ तसवीरें खींचने को नियुक्त किया. तसवीरें कंपनी के डायरैक्टर की उस की प्रेमिका के साथ मौजमेले की थीं.

इस काम के बदले उस को मोटी धनराशि मिली थी. इस के बाद वह अपने साफसुथरे फोटोग्राफी के धंधे की आड़ में एक पपाराजी बन गया था. सुब्बा लक्ष्मी दक्षिण भारत से अमेरिका एक हाउस मेड के तौर पर आई थी. एक ही इलाके में रहते हुए उस की जानपहचान डेनियल से हो गई थी. दोनों में आंखें चार हो गई थीं. वह भी फोटोग्राफी सीख अब डेनियल के साथ फोटोग्राफी करती थी.

दोनों हर शाम कभी मोटरसाइकिल से, कभी कार द्वारा समुद्र तट पर व अन्य प्रेमालाप के लिए उपयुक्त दूसरे एकांत स्थलों पर पहुंच जाते थे. इन स्थलों पर अनेक बेमेल जोड़े प्रेमालाप में लीन होते थे. वे पहले उन की निगाहबानी करते थे. फिर अपना शिकार छांट कर उस जोड़े की अंतरंग तसवीरें इन्फ्रारैड कैमरे, जिन में फ्लैशलाइट की जरूरत नहीं पड़ती थी, से खींचते थे. फिर पार्टी को चौंकाने के लिए फ्लैशलाइट की चमक इधरउधर मारते और भाग जाते थे.

बाद में तसवीरें साधारण डाक से भेज कर फोन करते और ब्लैकमेल के तौर पर छोटीबड़ी रकम मांगते. पार्टी, जो आमतौर पर बूढ़ा धनपति या अमीर बुढि़या होती थी, बदनामी से बचने के लिए उन को चुपचाप पैसा दे देती थी.

‘‘यह सरदार सुना है काफी अमीर है,’’ आज डिजिटल कैमरे से खींची तसवीरों के पिं्रट देखते हैं,’’ सुब्बा लक्ष्मी ने कहा.

‘‘हां, यह एक रैस्तरां की एक बड़ी शृंखला का मालिक है.’’

‘‘लड़की कौन है?’’

‘‘पता नहीं, मेरा अंदाजा है, कोई स्टूडैंट है. पैसा और मौजमस्ती के लिए लड़कियों का ऐसे बूढ़े या अधेड़ों के साथ मस्ती करना आम बात है.’’

‘‘तसवीरें तो सरदार को ही भेजनी हैं.’’

सरदार ओंकार सिंह ने गहरी नजरों से तसवीरों के सैट को देखा. वह कभी फोटोग्राफी का शौकीन था. टैक्सी चालक रहा था. कई साल अविवाहित रहते इच्छापूर्ति के लिए कौलगर्ल्स या अन्य औरतों से समागम करता रहा था.

लेकिन अब एक सम्मानित शहरी बन जाने पर, खासकर नगरपालिका का मेयर होते हुए और स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के लिए ऐसी तसवीरों का सार्वजनिक होना शर्मनाक था.

‘‘सरदार साहब, तसवीरें मिलीं आप को?’’ लैंडलाइन फोन पर डेनियल ने फोन कर के पूछा.

‘‘हां, क्या चाहते हो?’’

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है. ज्यादा से ज्यादा 500 डौलर.’’

‘‘सरदार साहब, आप की जो हैसियत है उस के लिहाज से 10 लाख डौलर ज्यादा नहीं हैं, ऊपर से आप स्टेट काउंसिल का चुनाव लड़ रहे हैं,’’ डेनियल के शब्दों में कुटिलता थी.

सरदार तिलमिलाया. यह पपाराजी सामने होता तो वह उस को कच्चा चबा डालता. उस ने फोन के कौलर आइडैंटिटी पर नजर डाली. फोन सार्वजनिक टैलीफोन बूथ से किया जा रहा था. ब्लैकमेलर चालाक था.

‘‘देखो, तुम ज्यादा हवा मत लो. अमेरिका में पपाराजी अपराध है. पुलिस में रिपोर्ट करते ही तुम अंदर हो जाओगे.’’

‘‘यह सब होतेहोते होगा. लेकिन आप की तसवीरें सार्वजनिक होते ही आप का राजनीतिक कैरियर खत्म हो जाएगा. साथ ही, बदनामी भी होगी.’’

‘‘तेरी ऐसी की तैसी, फोटोग्राफर,’’ सरदार फुफकारा.

‘‘ज्यादा गुस्सा सेहत के लिए खतरनाक होता है, खासकर 60 साल की उम्र में.’’ सरदार खामोश रहा.

‘‘सरदार साहब, कल शाम तक आप 1 लाख डौलर दे देना. नहीं तो तसवीरें पहले अखबार वालों को, फिर इंटरनैट पर जारी हो जाएंगी.’’

‘‘इस बात की क्या गारंटी है, तुम भविष्य में तसवीरें सार्वजनिक नहीं करोगे और दोबारा ब्लैकमेल नहीं करोगे?’’

‘‘सरदार साहब, ऐसी सूरत में आप पुलिस को रिपोर्ट कर सकते हैं.’’

‘‘पैसा कहां देना है?’’

‘‘आप फटाफट मुझे अपना मोबाइल फोन नंबर बताओ.’’

सरदार साहब ने नंबर बताया.

‘‘ओके. कल शाम आप जैसे रोज सैरसपाटे के लिए निकलते हैं, निकलेंगे. तब मैं रास्ते में आप को फोन कर के कहीं भी पेमैंट ले लूंगा.’’

अगली शाम सरदार अपनी कार पर समुद्र तट को निकला. डेनियल हैल्मेट पहनेपहने बाइक पर सवार हो पीछेपीछे चला. एक सुनसान स्थान पर फोन आते ही सरदार ने कार रोकी. डेनियल हैल्मेट पहने सामने आया. सरदार ने खिड़की खोल एक लिफाफा उस को थमा दिया.

पहली बार एक लाख डौलर मिले थे. अब से पहले ज्यादा से ज्यादा 5 या 10 हजार डौलर ही मिले थे. डेनियल का हौसला और लालच बढ़ गया.

अभी तक वह समुद्र तट पर चट्टानों के पीछे, यहांवहां पाम के नीचे प्रेमालाप में लीन प्रेमी जोड़ों की तसवीरें खींचता था. अब उस की निगाह समुद्र के बीच खड़े छोटेछोटे समुद्री जहाज, जिन्हें आम भाषा में याट कहा जाता था, पर पड़ी.

ये याट अमीर लोगों के थे जो इन पर समुद्र विहार करते थे. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी थे.

‘‘क्यों न आज किसी याट पर चलें?’’ मोटरसाइकिल को एक तरफ खड़ी करते डेनियल ने कहा.

‘‘पागल हुए हो, पकड़े गए तो?’’

‘‘देखेंगे, अमीर लोग छिपछिप कर इन में कैसी रंगरेलियां मनाते हैं.’’

समुद्र तट पर अनेक जगह कटाफटा स्थान था. रेतीले सपाट समुद्र तट के बजाय ऐसा कटाफटा तट किश्तियों को बांधने के लिए उपयुक्त था. इस तट पर कई अमीर लोगों ने निजी पायर यानी सीमेंट के चबूतरे बना कर अपनीअपनी मोटरबोटें या चप्पुओं से चलने वाली नौकाएं बांध रखी थीं.

शाम का अंधेरा गहरा रहा था. एक किश्ती की रस्सी खोल, दोनों उस पर सवार हो, बीच समुद्र में बढ़ चले. कई याटों पर सुरक्षाकर्मी डैक पर टहल रहे थे. एक बड़े लग्जरी याट के डैक पर कोई नहीं था.

एक प्लेटफौर्म समुद्र के पानी से थोड़ा ऊपर था. यह एक खुली लिफ्ट थी. इस पर 4 व्यक्ति एकसाथ ऊपर आजा सकते थे. रस्सियों वाली एक सीढ़ी साथ ही लटक रही थी. दोनों किश्ती को एक हुक से बांध सीढि़यां चढ़ते हुए ऊपर पहुंच गए. डैक सुनसान था. चालक कक्ष भी सुनसान था. डैक से सीढि़यां नीचे जा रही थीं. सारा याट सुनसान जान पड़ता था.

डैक से नीचे के तल पर एक बड़ा हाल था. उस में एक तरफ बार बना था. खुली दराजों में तरहतरह की शराब की बोतलें सजी थीं. कई छोटेछोटे केबिन एक कतार में बने थे. एक केबिन में रोशनी थी.

दरवाजे के ऊपर वाले हिस्से में एक गोलाकार शीशा फिट था. दबेपांव चलते दोनों ने दरवाजे के करीब पहुंच कर शीशे से अंदर झांका. दोनों के मतलब का दृश्य था.

अधेड़ अवस्था का एक पुरुष एक नवयौवना सुंदरी के साथ सर्वथा… अवस्था में मैथुनरत था. डेनियल ने सुब्बा लक्ष्मी की तरफ देखा, वह निर्लिप्त भाव से मुसकराई.

डेनियल ने अपना कैमरा निकाला और दक्षता से तसवीरें खींचने लगा. अभिसारग्रस्त जोड़ा उन्माद उतर जाने के बाद अलगअलग हो, गहरी सांसें भरने लगा.

थोड़ी देर बाद दोनों ने कपड़े पहने और बाहर को लपके. डेनियल और सुब्बा लक्ष्मी तुरंत बार काउंटर के पीछे जा छिपे. प्रेमी जोड़ा सीढि़यां चढ़ता ऊपर को गया. डेनियल ने शराब की 2 बोतलें उठा कर अपनी जैकेट की जेब में डाल लीं. दोनों दबे पांव चलते सीढि़यां चढ़ते डैक पर पहुंचे.

प्रेमी जोड़ा लिफ्ट पर सवार हो रहा था. डेनियल ने उन की इस मौके की तसवीर भी ले ली. प्रेमी जोड़ा मोटरबोट पर सवार हो तट की तरफ चला. दोनों भी उतर कर किश्ती पर सवार हुए.

‘‘एक चक्कर इस याट के इर्दगिर्द लगाते हैं?’’

‘‘क्यों?’’ सुब्बा लक्ष्मी ने पूछा.

‘‘याट किस का है? यह पता लगाना जरूरी है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘हर किश्ती या छोटेबड़े जहाज पर उस का नाम व रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. बिना पंजीकृत हुए कोई मोटरबोट, छोटाबड़ा समुद्री जहाज, स्टीमर कहीं भी समुद्र या नदी में नहीं चल सकता. पंजीकरण दफ्तर से इस याट के मालिक का नाम पता चल जाएगा,’’ डेनियल ने समझाया.

पंजीकरण रिकौर्ड में याट जैक स्मिथ नाम के बड़े व्यापारी के नाम दर्ज था. वह कई फैक्टरियों का मालिक था.

उस की निगहबानी करने से उस को उस की प्रेमिका का नाम भी पता चल गया. वह एक अन्य व्यापारी एंड्र्यू डैक की पत्नी मारलीन डैक थी.

‘‘तसवीरों का सैट किस को भेजना है?’’

‘‘इस मामले में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही अमीर हैं. मेरे विचार में एकएक सैट दोनों को भेज देते हैं,’’ डेनियल ने कहा.

‘‘लेकिन पैसा एक ही पार्टी से मिलेगा. 2 किश्तियों की सवारी से नुकसान होता है.’’

‘‘इस में दोनों पक्ष ही पैसे वाले हैं.’’

‘‘ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता. आप इन से कितना पैसा मांगेंगे?’’

‘‘देखते हैं.’’

एंड्र्यू डैक अपनी फैक्टरी के दफ्तर जाने के लिए कार पर सवार हो रहा था कि उस को डाकिया एक लिफाफा थमा गया. लिफाफा उस की पत्नी के नाम था. लिफाफा एक पत्र के बजाय किसी और मैटर से भरा था.

उत्सुकतावश उस ने लिफाफा खोल डाला. मैटर देखते ही वह गंभीर हो उठा और चुपचाप कार में बैठ गया. उस के इशारे पर शोफर ने कार आगे बढ़ा दी.

एंड्र्यू डैक अपनी पत्नी की चरित्रहीनता से वाकिफ था. वह उस को तलाक देना चाहता था लेकिन उस को एकतरफा तलाक देने की कार्यवाही करने पर हरजाने के तौर पर काफी मोटी रकम देनी पड़ती.

बिना हरजाना दिए तलाक लेने के लिए या तो उस की पत्नी भी स्वेच्छा से तलाक लेती या फिर उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए उस के खिलाफ कोई सुबूत होता.

उस ने कई महीनों तक एक प्राइवेट जासूसी फर्म से अपनी पत्नी की जासूसी करवाई थी लेकिन मारलीन डैक काफी चालाक थी. वह किसी पकड़ में नहीं आई.

अब संयोग से चरित्रहीनता को साबित करते फोटो उस के पास आ गए थे. एंड्र्यू डैक समझ गया कि यह किसी शरारती फोटोग्राफर यानी पपाराजी का काम था.

अभिसार करने वाले मर्द जैक स्मिथ को पहचानता था. जैक स्मिथ के खिलाफ एक बात यह थी कि वह अपने बूते पर अमीर नहीं बना था. वह घरजमाई था. उस की पत्नी धनी बाप की इकलौती संतान थी. उस ने जैक स्मिथ से प्रेमविवाह किया था.

ऐसी तसवीरें जैक स्मिथ की पत्नी और उस के ससुर के सामने आने पर उस का फौरन तलाक होना निश्चित था. इस तरह एंड्र्यू डैक के हाथ पत्नी और उस के प्रेमी दोनों को अर्श से फर्श पर लाने का सुबूत लग गया था.

वह अनुभवी था. उस को पता था कि बिना फोटो के नैगेटिव और उन को खींचने वाले फोटोग्राफर की गवाही के इन को अदालत में पक्का सुबूत साबित नहीं किया जा सकता था. अदालत में विरोधी पक्ष उन को ट्रिक फोटोग्राफी कह कर खारिज करवा सकता था.

‘‘कौन था यह पपाराजी?’’

जैक स्मिथ अपनी स्टेनो द्वारा लाई डाक देख रहा था. साधारण डाक अब कम आती थी.

‘‘सर, यह लिफाफा साधारण डाक से आया है.’’

किसी व्यावसायिक फोटोग्राफर द्वारा इस्तेमाल करने वाला लिफाफा था. तसवीरें देखते ही वह उछल पड़ा. उस के निजी याट पर इतनी सफाई से तसवीरें खींची गई थीं. उस को और मारलीन डैक को आभास तक न हुआ था.

तसवीरों के सार्वजनिक हो जाने के परिणाम के विचार से चिंतित हो उठा. उस की पत्नी और ससुर उस को बाहर निकाल एकदम सड़क पर खड़ा कर देंगे.

घबरा कर उस ने तुरंत मारलीन डैक को फोन किया.

‘‘क्या कह रहे हो? मैं ने तो हमेशा सावधानी बरती है. किसी जासूस को भी भनक तक नहीं हुई.’’

‘‘यह किसी जासूस का काम नहीं है. यह किसी प्रोफैशनल फोटोग्राफर का काम है, जिस का मकसद ऐसी तसवीरें खींच कर ब्लैकमेल करना होता है. मेरा अंदाजा है कि ऐसा लिफाफा तुम्हारे पास भी आया होगा,’’ जैक स्मिथ ने कहा.

‘‘मुझे तो नहीं मिला या पता नहीं, मेरे हसबैंड को डाकिया थमा गया हो,’’ मारलीन डैक ने चिंतित स्वर में कहा. पति को ऐसी तसवीरों का मिलना, मतलब बिना हरजाना दिए एकदम से तलाक.

‘‘यह शरारती फोटोग्राफर कौन है?’’ उस ने पूछा.

‘‘हौसला रखो, जल्द ही पैसे की मांग के लिए उस का फोन आएगा,’’ जैक स्मिथ ने धैर्य बंधाते हुए कहा जबकि वह खुद घबराया हुआ था.

उधर, सरदार ओंकार सिंह लायलपुरी ने जल्दबाजी में ब्लैकमेलर को एक लाख डौलर दे तो दिए थे मगर बाद में उस को खुद पर गुस्सा आ रहा था. वह पाईपाई जोड़ कर अमीर बना था. पैसे की कीमत जानता था.

उस को उम्मीद थी कि पैसा लेने के लिए ब्लैकमेलर सामने आएगा. सारे न्यूयार्क के चप्पेचप्पे से वाकिफ होने के कारण वह हर व्यवसाय के प्रमुख व्यक्तियों को जानता था. शहर में फोटोग्राफर थे कितने? एक दफा ब्लैकमेलर का चेहरा सामने आ जाता, फिर वह पंजीकरण विभाग से उस की फोटो निकलवा उस को काबू कर लेता.

लेकिन डेनियल भी पूरा घाघ था. वह उस के सामने हैल्मेट पहने आया था और पैसे का पैकेट थामते ही ये जा, वो जा.

ओंकार सिंह अपने घनिष्ठ मित्र सरदार वरनाम सिंह, जो कभी उसी के समान टैक्सी चालक था और अब टैक्सियों का भारी बेड़ा रखता था और खुद टैक्सी न चला किराए पर देता था, के पास पहुंचा.

‘‘ओए, खोते दे पुत्तर, इस उम्र में लड़की जवानी दा चक्कर. कुछ तो शर्म कर,’’ सारा मामला जानने के बाद वरनाम सिंह ने उस को झिड़कते हुए कहा.

‘‘यार, तेरी भाभी सहयोग नहीं करती.’’

‘‘इस उम्र में परजाई क्या कर सकती है? तुझे चुम्माचाटी ही करनी थी तो बंद कमरे में करता, खुले समुद्र तट पर क्यों गया था? अब बता क्या चाहता है?’’

‘‘इस फोटोग्राफर को काबू करना है.’’

‘‘वह काबू आ भी जाए तब क्या करेगा. 1 लाख डौलर थमा दिए, अब चुपचाप गम खा ले. मामला सार्वजनिक हो गया तो तेरी बदनामी ही होगी.’’

लेकिन ओंकार सिंह पर इस नेक सलाह का कोई असर नहीं हुआ, वह यह नहीं भूल पा रहा था कि एक शरारती फोटोग्राफर ने इस तरह बदनामी करने की धमकी दे कर उस से 1 लाख डौलर झटक लिए हैं.

वह पुराना खिलाड़ी होते हुए भी मात खा गया था. अब वह हर हालत में उस को काबू करना चाहता था.

इधर, अब जैक स्मिथ के लैंडलाइन पर फोन आया.

‘‘क्या चाहते हो?’’‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘दिमाग खराब हुआ है.’’

‘‘जनाब, आप की माली हैसियत और सामाजिक हैसियत काफी ऊंची है, उस को देखते यह मामूली रकम है.’’

‘‘यों बदमाशी करते किसी की तसवीरें खींचना जुर्म है, पुलिस में रिपोर्ट कर दूं तो सीधे 10 साल के लिए नप जाओगे.’’

‘‘जनाब, ऐसी बातों में कुछ नहीं रखा. आप बताइए, रकम दे रहे हो या नहीं?’’

‘‘इतनी बड़ी रकम, ज्यादा से ज्यादा 10 हजार डौलर.’’

‘‘नहीं जनाब, पूरे 10 लाख डौलर. मैं कल फिर फोन करूंगा,’’ फोन कट गया.

जैक स्मिथ ने कौलर आइडैंटिटी की स्क्रीन पर नजर डाली. फोन किसी सार्वजनिक बूथ से किया गया था. उस ने टैलीफोन डायरैक्ट्री से नंबर खोजा. फोन जिस एरिया से आया था, उस को नोट कर लिया.

जैक स्मिथ के बाद डेनियल ने एंड्र्यू डैक को फोन किया. एंड्र्यू डैक जैसे उस के फोन का इंतजार कर रहा था. मरदाना आवाज सुनते डेनियल चौंका. उसे तो मारलीन डैक से बात करनी थी.

‘‘मुझे मैडम मारलीन डैक से बात करनी है.’’

‘‘मैं उस का पति बोल रहा हूं. तसवीरों का लिफाफा तुम ने ही भेजा था?’’

अब डेनियल उलझन में था. लिफाफा पत्नी के बजाय पति को मिल गया था. अब ब्लैकमेल कैसे करे. तसवीरें पति के सामने आ चुकी थीं. पत्नी अब पैसा किस बात का देगी?

‘‘हैलो, तुम ने ब्लैकमेल करने के इरादे से तसवीरें खींचीं. तुम कितना पैसा चाहते हो?’’ एंड्र्यू डेक के इस सीधे सवाल पर डेनियल सकपका गया. ऐसा सवाल मारलीन डैक करती तो समझ भी आता.

वह खामोश रहा.

‘‘देखो, अगर तुम इन तसवीरों के नैगेटिव और अदालत में गवाही देने को तैयार हो जाओ तो जो पैसा तुम मेरी पत्नी से चाहते हो वह मैं दूंगा.’’

‘‘गवाही, किस बात की गवाही?’’ उलझनभरे स्वर में डेनियल ने पूछा.

‘‘मुझे अपनी पत्नी को तलाक देना है. उस को चरित्रहीन साबित करने के लिए ऐसे फोटोग्राफ खींचने वाली गवाही चाहिए.’’

अब डेनियल को मामला समझ आ गया था. एंड्र्यू डैक काफी अधीर था. साधारण तरीके से तलाक का मुकदमा डालने पर उस को मोटा हरजाना देना पड़ता. लेकिन पत्नी के चरित्रहीन साबित हो जाने पर उस को बिना हरजाना दिए उस से तलाक मिल जाना था.

‘‘10 लाख डौलर.’’

‘‘पागल हुए हो. शरारती फोटोग्राफर को 500 डौलर, ज्यादा से ज्यादा 1 हजार मिल जाते हैं. यह एक अपराध है. मैं तुम्हें ज्यादा से ज्यादा 1 लाख डौलर दे सकता हूं.’’

‘‘ओके. मैं सोच कर तुम्हें दोबारा फोन करूंगा.’’

‘‘अब आप क्या करेंगे?’’ मारलीन डैक ने अपने प्रेमी जैक स्मिथ से पूछा.

‘‘इस पपाराजी का पता लगाऊंगा.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अपने तरीके से. एक बार वह काबू में आ जाए.’’

अभी तक डेनियल ने जिन जोड़ों के अश्लील फोटो खींचे थे, वे किसी विशेष स्थिति में थे और खानदानी अमीर नहीं थे.

-क्रमश

कोरे ख्वाब

हम ने उन्हें मूरत क्या कह दिया

वो रातभर चेहरे को छिपाते रहे

अल्फाज ये दुहराने के लिए

वो घंटों मुझे सताते रहे

कभी हथेली से चेहरे को छिपा कर

कभी घूंघट से सिर को सजा कर

बैठ कर आईने के सामने कभी

वो यों ही सारी रात मुसकराते रहे

ये उन के प्यार के हैं इशारे कैसे

हमें उन के ख्वाब कोरे ही आते रहे

होगी इस रात की सुबह भी कभी

रातभर सपने कोरे देखते रहे.

छोटी बातें

ये छोटीछोटी बातें

जुगनू से नन्हें तारोंभरी रातें

गीले गेसू से टपकती हैं

चेहरे पर ठंडी बूंदें

गरम चुंबन और प्याला चाय का,

ऐसे होती हैं दिन की शुरुआतें

रसोई से आती सोंधी सुगंध

हुजूर, आज नाश्ते का क्या है प्रबंध

‘ब्रीफकेस’ ले कर खड़ा हूं

कि बांहों में आ जाओ

बांधो मेरी ‘टाई’

और कर दो विदा

‘औफिस’ दूर है ‘ट्रेन’ में

साथियों से हंसता हुआ संबंध

खट्टेमीठे अनुभव पर

योजना, संकल्प और अभियान

खूबसूरत ‘स्टाफ’ का अभिवादन

‘बौस’ का शिक्षण और भाषण

‘औफिस’ बंद और अब

रंगीन शाम का ‘प्लान’

घर आ कर बच्चों से संवाद और ‘ट्यूशन’

उन की परेशानियों का निदान

हर क्षण है एक आभूषण

हम सब को है अब ‘पार्टी’ का ध्यान

रात में बीवी की बांहों में प्यार

शृंगार और मनुहार के कई प्रकार

हर दिन, हर घड़ी है सोने की खदान

सपनों में जाने की अब हमें क्या दरकार.

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