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ये पति

मेरे पति का स्कूटर काफी पुराना हो चुका है. मैं ने कई बार उन से कहा कि इसे बेच दो पर वे उस को बेचना नहीं चाहते. हां, कार नई ले ली है.

एक बार बाजार में स्कूटर खड़ा कर ये एक दुकान में सामान खरीदने लगे. जब  बाहर आए तो देखा कि 2 आदमी इन का स्कूटर ले कर जा रहे हैं. यह आराम से देखते रहे और मुसकराते रहे.

वे थोड़ी दूर गए कि स्कूटर रुक गया. खीज में स्कूटर को गिरा कर वे भाग गए. घर आ कर पतिदेव ने हंसते हुए कहा, ‘‘मैं ने सोचा कि अच्छा है वे ले जाएं और तुम्हारी बात पूरी हो जाए पर क्या किया जाए, स्कूटर भी जाना नहीं चाहता क्योंकि स्कूटर को भी प्रेम है हम से.

सिम्मी सिंह कनेर, वसंत कुंज (न.दि.)

मेरी दोस्त के पति कभी भी उस की बनाई किसी भी चीज की तारीफ नहीं करते थे. जब भी वह पूछती कि कैसा बना है खाना? उन का एक ही जवाब होता, ‘‘अच्छा तो है.’’ उसे बहुत दुख होता था. एक दिन उस ने जानबूझ कर उन के टिफिन में जो दाल रखी उस में नमक कम डाला. औफिस से लौटते ही पतिदेव बोले, ‘‘सुनो, आज तुम ने दाल में नमक कम डाला था.’’ कविता चुप रही.

फिर एक दिन उस ने उन की सब्जी में मिर्चें ज्यादा डाल दीं. उस दिन भी औफिस से आते ही उन्होंने कविता से शिकायत की. कविता फौरन पलट कर बोली, ‘‘जब मैं अच्छा खाना बना कर रखती हूं तो तुम कभी तारीफ नहीं करते, इसलिए अब खाने में कमी यदि रह भी गई है तो उस की बुराई करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है.’’ पतिदेव एक पल को तो हैरान रह गए लेकिन फौरन उन को अपनी गलती समझ में आ गई. उस के बाद से वे हमेशा उस की बनाई हुई हर अच्छी चीज की तारीफ जरूर करने लगे.

अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

पारंपरिक परिवेश में जन्मी मैं हर वर्ष करवाचौथ का व्रत रखती थी. शादी के 12 वर्ष बाद लगातार एसिडिटी की वजह से मैं भूखी नहीं रह पाती थी. तभी करवाचौथ आया. मैं असमंजस में थी कि क्या करूं. तभी पतिदेव बोले, ‘‘मुझे पता है, तुम मेरा दिल से सम्मान करती हो और हर तरह से मेरा व मेरी सेहत का खयाल रखती हो, फिर तुम भूखी रह कर, तबीयत बिगाड़ कर यह सब कैसे कर पाओगी. मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम ने व्रत रखा है कि नहीं. हां, शाम को तैयार जरूर होना, मुझे अच्छा लगता है.’’ आज करीब 30 साल बाद भी हर वर्ष करवाचौथ पर शाम को तैयार होते समय सम्मान से मैं उन्हें नमन जरूर करती हूं.

किरण दत्ता, कोलकाता (प.बं.)

समझ आने लगा है

अब मैं चालीस की हो गई हूं

मुझे कुछकुछ समझ आने लगा है

आए दिन देख पति व बेटे की तकरार

जेनरेशन गैप समझ आने लगा है

कमरदर्द और नजर का धुंधलका

सास की नसीहतें भाने लगी हैं

अब नहीं होती तनातनी किसी से

एकता का महत्त्व समझ आने लगा है

जवां बेटा सुनता नहीं अब मेरी

दुनियादारी समझाने लगा है

कभी चिड़चिड़ाती, कभी खुद से बतियाती

स्ंिवग मूड अपना असर दिखाने लगा है

अब मैं चालीस की हो गई हूं

मुझे कुछकुछ समझ आने लगा है.

जरूरी है समझदारी

75 वर्षीय देवेंद्र कुमार आज दानेदाने को मुहताज हैं. जिन बेटों पर उन्होंने अपना सर्वस्व लुटा दिया वे आज उन्हें दो वक्त की रोटी देने में भी आनाकानी करते हैं. अब वे उस दिन को कोसकोस कर रोते हैं जिस दिन उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति बेटों के नाम कर दी थी. उन्होंने समझदारी से काम लिया होता तो आज उन की यह दशा न होती. आप के साथ भी कहीं ऐसा न हो, इसलिए जरूरी है जरा सी समझदारी: जीतेजी कभी भी अपनी संपत्ति का नियंत्रण दूसरों को न सौंपें. बहूबेटों या भाइयों को भी नहीं. पावर औफ अटौर्नी देने से पहले चार बार सोच लें. संबंधों को बदलते समय नहीं लगता. बेहतर होगा कि अपने चहेते के नाम वसीयत लिख दें, जिस से आप की मृत्यु के बाद ही स्वामित्व में परिवर्तन हो. इसे बदलने का मौका भी आप को जीवनपर्यंत मिलेगा.

भारतीय घरों में अकसर रुपएपैसे या जमीनजायदाद व दूसरी धनसंपत्ति के मामले पुरुष ही संभालते हैं और उन्हीं को पूरी जानकारी भी रहती है. घर की महिलाएं इन मामलों से अनजान रहती हैं. समझदारी इस में है कि पति अपनी पत्नी को भी पूरी जानकारी दे कर रखे और ‘डील’ करने की न सही, रिकौर्ड रखने की आदत जरूर डाले.

सही जगह पर करें निवेश

गोपाल ने अपनी जीवनभर की पूंजी एक कोऔपरेटिव बैंक में जमा करवा दी. जिस का दिवाला निकलते ही गोपाल हार्ट अटैक का शिकार हो गया. ‘बैंक’ शब्द आप के धन की सुरक्षा की गारंटी नहीं देता. कोऔपरेटिव बैंक तो अकसर फेल होते ही रहते हैं, सभी प्राइवेट बैंकों की साख भी एक सी नहीं होती. बेहतर होगा पब्लिक सैक्टर बैंकों पर भरोसा करें. अपने क्रैडिट कार्ड स्टेटमैंट और बैंक अकाउंट्स पर पूरी नजर रखें.

सोने के आभूषण खरीदें तो हौलमार्क अवश्य देखें. वरना सोने में मिले खोट की वजह से काफी नुकसान हो जाता है.

कई कंपनियां या वित्तीय संस्थाएं काफी ऊंची ब्याजदर पर फिक्स डिपौजिट के लिए रकम स्वीकार करती हैं. इन से सावधान रहें. इन की साख कमजोर होने की वजह से लोग इन्हें रकम देने से कतराते हैं, इसीलिए इन की ब्याज दर ज्यादा होती है. पोस्टऔफिस जमा या सरकारी बौंड ज्यादा सुरक्षित होते हैं.

आईपीओ में शेयर के लिए आवेदन हमेशा फायदे का सौदा नहीं होता. आजकल ज्यादातर शेयर अलौट की गई कीमत से कम पर ही बाजार में उपलब्ध हो जाते हैं.

टैक्स की छूट खर्च की किन मदों में मिलती है, इस की पूरी जानकारी रखें, जैसे सीनियर सिटीजंस, अपाहिजों को, बीमारी के इलाज, चैरिटी ट्रस्ट में डोनेशन आदि में टैक्स डिडक्शन मिलता है. जिन डैबिट कार्ड्स के प्रयोग के लिए पिन नंबर की जरूरत नहीं पड़ती उन्हें शौपिंग के लिए इस्तेमाल करना सुरक्षित नहीं.

ध्यान रखें ‘जीरो इंटरेस्ट’ नाम की कोई चीज वास्तविक नहीं होती. जरा सोचें, कोई व्यक्ति बिना ब्याज या फायदे के आप को क्यों फाइनैंस करेगा. शून्य ब्याज पर खरीदे उपभोक्ता सामान या अन्य चीजें एमआरपी पर यानी बिना डिस्काउंट के लेनी पड़ती हैं, इस के अलावा इन में प्रोसैसिंग फीस, सर्विस टैक्स व अन्य चार्ज भी लग जाते हैं. आप को छिपे रूप में 20-24 प्रतिशत तक ब्याज देना पड़ सकता है.

इस तरह, समझदारी के साथ जीवन जीने की योजना बनाएंगे तो आप को उम्र के आखिरी पड़ाव में भी आर्थिक दिक्कतें नहीं आएंगी और परिवार के सदस्य आप की सेवा में लगे रहेेंगे

मस्तीभरी जिंदगी जिएं

वृद्धों की पार्टी और वह भी मस्ती पार्टी, यह भला कैसे संभव है? पार्टी तो सिर्फ बच्चों व युवाओं की होती है जिस में मौजमस्ती, धूमधड़ाका, लाउड म्यूजिक, नाचगाना, गेम्स आदि होते हैं. जिस तरह युवा व बच्चे मौजमस्ती करते हैं ठीक उसी तरह बुजुर्ग भी पार्टी कर एंजौय कर सकते हैं.

पार्टी का नाम आते ही क्यों बुजुर्ग मौजमस्ती करने और जिंदगी को फुलऔन जीने को अपना हक नहीं मानते? बुजुर्ग खुद पार्टी के नाम से दूर भागते हैं. उन का कहना होता है कि अब उन का शरीर साथ नहीं देता, अब उन की उम्र कहां है इन सब पार्टीवार्टी के लिए.

‘पार्टी करना तो युवाओं व बच्चों को शोभा देता है,’ उन की इस सोच के चलते कई परिवारों में युवा अपने बुजुर्गों को अपनी पार्टी में शामिल नहीं करते. लेकिन यह सोच बदलनी चाहिए. युवाओं व बच्चों की तरह बुजुर्ग भी खुशहाल व मस्तीभरी जिंदगी जिएं. पार्टी का उम्र से कुछ लेनादेना नहीं. बुजुर्गों को भी दैनिक जीवन की बोरियत से बचने के लिए बदलाव चाहिए, हंसीखुशी मस्ती के पल चाहिए जो उन के जीवन जीने की इच्छा को और बलवती कर सकें.

समय की मांग है कि युवा व बुजुर्ग मिल कर पार्टी करें. दादापोता बडी कल्चर का हिस्सा बन कर मस्ती करें. बुजुर्ग जब अपने से कम उम्र के युवाओं व बच्चों के साथ रहते हैं, उन के साथ अपना समय बिताते हैं तो वे खुद को यंग फील करते हैं, अपने बचपन व युवावस्था की बातों को याद करते हैं. उन में जोश का संचार पैदा होता है जो उन की सेहत के लिए अच्छा होता है.

माइंड होता है रिफ्रैश

60 वर्षीय नीरा कुमार, जो स्वतंत्र लेखिका होने के साथ कुकरी ऐक्सपर्ट भी हैं, कहती हैं, ‘‘पिछली क्रिसमस को मैं ने अपने जानकार युवा लेखकों के लिए अपने घर पर एक पार्टी अरेंज की थी जिस में सब की पसंद का खाना बनवाया, गेम्स खेले. सब को बहुत मजा आया. जब युवा मेरे बने खाने की तारीफ करते हैं तो मुझे अच्छा लगता है. मैं उन्हें कुकरी टिप्स देती हूं और वे मुझे आज की लेटैस्ट तकनीकों की जानकारी देते हैं. इन पार्टीज का उद्देश्य रुटीन लाइफ में रोमांच भरना होता है. इसी बहाने 2 पीढि़यां एकदूसरे को समझ पाती हैं व विचारों का आदानप्रदान होता है.’’

फिल्मी पार्टी

‘क्लब 60’ संजय त्रिपाठी निर्देशित फिल्म है जिस में 5 लोगों का गैंग है. गैंग के सदस्यों की जिंदगी 60 की उम्र में ही शुरू होती दिखाई गई है. फिल्म में रघुवीर यादव युवाओं की तरह बालों को कलर किए, कलरफुल टीशर्ट में, फ्रैंचकट बीयर्ड, गुच्ची के ग्लेयर्स और आईपौड के साथ दिखाई देते हैं यानी वे फैशन के मामले में युवाओं को भी पीछे छोड़ देते हैं. ठीक इसी तरह ‘बागबान’ फिल्म में अमिताभ बच्चन वैलेंटाइन डे पर ‘चली चली फिर चली चली’ गीत पर युवा दोस्तों के साथ थिरकते दिखाई देते हैं.

जीवन में उत्साह व उमंग

दक्षिणी दिल्ली में मुनीरका स्थित वरिष्ठ नागरिकों की एक मंडली है. इस संस्था के अध्यक्ष जे आर गुप्ता ने बताया कि उन की इस सीनियर सिटीजन काउंसिल में 500 से अधिक सदस्य हैं जिन में 60 वर्ष से ले कर 98 वर्ष तक के बुजुर्ग शामिल हैं. ये संस्था हर त्योहार के मौके पर पार्टी का आयोजन करती है, फिर चाहे न्यू ईयर हो या होली, दीवाली. पार्टी में खूब मौजमस्ती, चुटकुले, कविताएं, शेरोशायरी व खेलों का आयोजन किया जाता है.

19 साल पहले स्थापित यह संस्था किटी पार्टी, पिकनिक के अलावा समयसमय पर शहर से बाहर घूमनेफिरने का आयोजन भी करती है. जे आर गुप्ता कहते हैं कि ऐसी पार्टियां जीवन के एकाकीपन को दूर कर के जीवन में उत्साह व उमंग के नए रंग भरती हैं.

पार्टी में जमाए रंग

अगर आप भी ऐसी किसी पार्टी की शान बनना चाहते हैं तो खुद को हमेशा ऐक्टिव रखें. प्रोफैशनल जिंदगी से भले ही रिटायर हो जाएं पर व्यक्तिगत जिंदगी में नईनई चीजें जानने व सीखने से कभी अवकाश न लें. कला, साहित्य, संगीत, कुकिंग, पेंटिंग जिस भी विषय में आप की रुचि हो उस में नया सीखते रहें और नई पीढ़ी को सिखाते रहें. अमेरिका में 60 वर्ष के बुजुर्ग युवाओं की तरह फुटबाल खेलते हैं, पब में जाते हैं. शारीरिक रूप से सक्रिय होने के साथसाथ वे खुद को मानसिक रूप से भी ऐक्टिव रखते हैं. वे अपनी जिंदगी को पूरी तरह एंजौय करते हैं. पार्टी में रंग जमाने के लिए आप बोर्ड गेम्स खेलें, युवाओं के साथ दिमागी खेल शतरंज खेलें. उन स्थलों पर जाएं जहां आप अपने व्यस्त प्रोफैशनल शैड्यूल में नहीं जा पाए, युवाओं को अपने साथ ले जाएं, इस से आप को मदद तो मिलेगी ही आप के भीतर नए विचारों का आगमन भी होगा. युवाओं के साथ रह कर आधुनिक गैजेट्स की नईनई तकनीकी जानकारी लीजिए. ऐसा करने से आप स्वस्थ रहने के साथसाथ तकनीकी रूप से भी अपडेट रहेंगे.

मस्तीभरी पार्टी के फायदे

ओल्डऐज में अकसर लोग बढ़ती उम्र की दुहाई दे कर खुद को सीमित दायरे में बांध जीवन की सक्रियता से नाता तोड़ लेते हैं. लेकिन ये मस्तीभरी पार्टियां मन में जोश व उमंग भरती रहती हैं. वहीं, हर दिन को एक खास इवैंट बनाने से जिंदगी में खुशियों की बहार आती है. ऐसे में ओल्डऐज की अवस्था को जीवन का अंतिम व स्ट्रैसभरा पड़ाव समझ कर मायूस क्यों रहा जाए, क्यों न इस में मस्ती के रंग भरे जाएं.

इन पार्टियों के बहाने आप को सजनेसंवरने का मौका मिलता है, आप को घर के वार्डरोब में रखे मनपसंद परिधानों को पहनने का मौका मिलता है. ये पार्टियां बोरिंग जिंदगी में दुखदर्द को भुला कर अपनों के साथ ठहाके लगाने का पुरानी यादों को याद करने का, अवसर देती हैं.

तो फिर तैयार हैं न आप पार्टी के लिए. अपनी पार्टी में आप युवाओं को भी शामिल कीजिए. उन की पसंद का भोजन चाहें तो और्डर करें. अपने लिए शुगरफ्री, औयलफ्री भोजन बनवाएं. मजेदार गेम्स खेलें, संगीत सुनें. हंसीमजाक करें. कुछ दूसरों की सुनें कुछ अपनी कहें और बना दीजिए अपनी पार्टी को बुजुर्गों की रौकिंग पार्टी.

बुजुर्ग मातापिता के तलाकशुदा बच्चे

62 साल के विनोद कुमार और उन की 58 साल की पत्नी रजनी दिल्ली के पौश इलाके में एक आलीशान फ्लैट में रहते हैं. यह फ्लैट कुछ साल पहले उन की एकलौती इंजीनियर बेटी सीमा ने अपने मातापिता के लिए खरीदा था. सीमा शादी के बाद आस्ट्रेलिया चली गई. वहां नौकरी करने लगी. 2 साल में एक बार वह अपने मातापिता से मिलने दिल्ली आती. पिछले साल सीमा की बातों से लगा कि वह अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं है.

उस ने बातोंबातों में अपनी मां रजनी से कहा कि उस का पति रितेश बहुत शराब पीने लगा है, किसी एक नौकरी में टिक कर काम नहीं करता. यही नहीं, पिछले कुछ दिनों से वह गालीगलौज करने लगा है. रितेश और उस का रोज झगड़ा होता है.

रजनी ने अपनी बेटी को समझाया कि किस पतिपत्नी के बीच झगड़ा नहीं होता. कुछ दिनों में सब ठीक हो जाएगा. लेकिन 6 महीने पहले जब सीमा ने अपनी मां से फोन पर कहा कि वह रितेश से तलाक लेने जा रही है तो उन का माथा ठनका. तलाक लेने के बाद सीमा आस्ट्रेलिया में ही रह कर अपनी बेटी को बड़ा करना चाहती थी.

रजनी बताती हैं कि उन के परिवार में आज तक किसी ने तलाक नहीं लिया है. जब सीमा ने उन से कहा कि वह तलाक लेना चाहती है तो उन्हें जबरदस्त झटका लगा. उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की कि हमारे समाज में तलाक लेना अच्छा नहीं माना जाता. उस की बेटी की सही परवरिश बिना पिता के मुश्किल हो जाएगी.

सीमा ने अपनी मां को समझाया कि आस्ट्रेलिया में तलाक बहुत बड़ी बात नहीं है और हर 10 शादीशुदा दंपती में से 5 या तो तलाकशुदा मातापिता के बच्चे होते हैं या खुद तलाक की प्रक्रिया से गुजरते हैं.

सीमा का तर्क था कि उस ने रितेश के साथ निभाने की बहुत कोशिश की लेकिन उस के साथ रह कर वह एक सामान्य जिंदगी नहीं जी सकती. इस से अच्छा है, वह अलग रहे. ठीक है उस की बेटी को पापा की कमी खलेगी, पर कुछ दिनों तक. उस के बाद वह इस तथ्य को हजारों दूसरे आस्ट्रेलियाई बच्चों की तरह स्वीकार लेगी कि उस के पापा नहीं हैं.

समाज का डर

रजनी ने अब तक अपने परिवार वालों को यह बात नहीं बताई. उन का मानना है कि उन के देवर की बेटी की शादी होने तक उन्हें सीमा के तलाक की बात छिपानी होगी. हो सकता है कि यह जानने के बाद शादी रुक जाए. उन्होंने सीमा से भी कहा कि वह अपनी बहन की शादी में दिल्ली न आए, कोई बहाना बना दे. रजनी बताती हैं कि वे जिस तरह के परिवार से हैं वहां शादी बहुत पवित्र रिश्ता माना जाता है. उन की दूर के रिश्ते की बहन को भी अपनी शादीशुदा जिंदगी में काफी दिक्कतें थीं, पर किसी ने उसे तलाक लेने नहीं दिया. हम औरतों को हमेशा यही सिखाया जाता है कि वे ससुराल में समझौता कर के रहें, पर आजकल की लड़कियों की बात अलग है. वे पढ़ीलिखी हैं और कमाती हैं. वे एक हद से ज्यादा ऐडजस्ट नहीं करना चाहतीं.

यह पूछने पर कि उन की दूर की रिश्ते की बहन ने किस तरह समझौता किया, तो रजनी दबे शब्दों में बताती हैं कि 2-3 साल बाद बहन ने आत्महत्या कर ली थी और उन के पति ने तुरंत दूसरी शादी कर ली, ताकि उन के बच्चे पल जाएं.

रजनी मानती हैं कि उन की बहन के साथ गलत हुआ, अगर वे समय पर अपनी ससुराल से निकल आतीं तो उन्हें आत्महत्या नहीं करनी पड़ती. इस के बावजूद रजनी यही कहती हैं कि तलाक शब्द हमारे परिवार में वर्जित है और हमें अफसोस है कि हमारी बेटी ने तलाक लिया. अब जब वह दिल्ली हम से मिलने आएगी तो हम समाज को क्या मुंह दिखाएंगे?

रजनी और विनोद कुमार की तरह देश में आज 12 प्रतिशत ऐसे बुजुर्ग हैं जिन्हें जीतेजी अपने बच्चों का तलाक देखना पड़ रहा है. इस पीढ़ी ने बड़े उत्साह से अपने बच्चों की शादियां कीं. कभी बच्चों की पसंद पर मोहर लगाई तो कभी उन के लिए अपनी पसंद का जीवनसाथी ढूंढ़ा.

यह सच है कि आज की तारीख में तलाक के नाम पर मध्यवर्गीय परिवार के अधिकांश बड़ेबूढ़े कानों पर उंगली नहीं रखते. 2 दशक पहले तक भी अगर किसी परिवार में किसी  को तलाक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता तो उन्हें समाज और परिवार के दूसरे सदस्यों की तीखी नजरों और प्रहारों से भी गुजरना पड़ता था.

मातापिता की रजामंदी

अब कम से कम शिक्षित परिवारों में अगर लड़का या लड़की किसी कारण से शादी निभा नहीं पाते तो कई बार मातापिता खुद आगे आ कर कहते हैं कि रिश्ता निभ नहीं रहा तो तलाक ले लो, हालांकि आज भी अधिकांश परिवारों में तलाक सब से अंतिम विकल्प होता है. परिवार के सदस्य आखिरी हद तक कोशिश करते हैं कि तलाक होने के बजाय पतिपत्नी के बीच सामंजस्य बिठाया जाए, उन की समस्या दूर की जाए या उन्हें साथ रहने का एक मौका और दिया जाए.

तलाक के कारण कुछ भी हो सकते हैं. आजकल ऐडजस्टमैंट के चलते कई पतिपत्नी एकदूसरे का साथ निभा नहीं पा रहे. रोज के झगड़े और मनमुटाव के चलते वे सामान्य जिंदगी जी नहीं पाते. पति या पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं भी रिश्तों को सामान्य बनाने में आड़े आती हैं.

कामकाजी पतिपत्नी को लगता है कि वे इतना क्यों झुकें? बात अलगाव तक, फिर तलाक तक पहुंच जाती है. युवा दंपती अलग हो जाते हैं, बिना यह सोचे कि उन के मातापिता या भाईबहनों पर उन के तलाक का क्या असर होगा? यह सच है कि तलाक के बाद कई दिनों तक पतिपत्नी सदमे में रहते हैं. शादी का रिश्ता तोड़ना उन्हें अंदर से भी तोड़ जाता है. उन्हें संभालने वाले कई होते हैं, पर जो लोग (मातापिता) सब से ज्यादा टूटते हैं, उन के दिल को तसल्ली देने वाला कोई नहीं रहता.

बच्चों के तलाक का मातापिता पर गहरा असर पड़ता है. जैसे रजनी और विनोद कुमार इतने समय के बाद आज भी सामान्य नहीं हुए हैं और बेटी सीमा के जिक्र से उन दोनों बुजुर्गों की आंखों से पानी बह निकलता है. रजनी का मन तो यह मानने को तैयार ही नहीं कि तलाक के बाद सीमा पहले से कहीं ज्यादा सुकून के साथ जी सकती है. वे अब भी अपना पुरातनपंथी राग अलापती रहती हैं कि पति के बिना कैसे सुखी रह सकती है पत्नी?

क्या वे अपनी बेटी की दूसरी शादी की सोच रही हैं? इस बात पर वे चुप्पी लगा जाती हैं. सीमा के पिता विनोद कुमार जरूर कहते हैं, ‘‘सीमा की मरजी है. हम तो इतनी दूर रहते हैं, क्या सोचें  उस के लिए? तलाक उस ने लिया, अब जो करना है, वही करेगी.’’

मुंबई की रहने वाली सुलेखा अपने बेटे के तलाक से इतना हिल गईं कि अपने पति के साथ एक वृद्धाश्रम में रहने चली गईं. सुलेखा अपने परिवार वालों के बीच अपने बेटे की शादी के टूटने की वजह से शर्मिंदगी सी महसूस करती थीं. सुलेखा ने अपनी सहेली निशा की बेटी की शादी में जाने से इनकार कर दिया. सुलेखा ने निशा को चिट्ठी लिख कर अपने दिल का दर्द बताया कि वे अपने ससुराल वालों और मायके वालों से आंख मिलाते डर रही हैं. सब के सवालों का जवाब देने में वे असमर्थ हैं, इसलिए किसी भी शादी या त्योहार में लोगों से मिलने से कतराती हैं.

शोक किस बात का

सुलेखा की मानसिक स्थिति का जायजा लेती हुई अनुभवी  मनोचिकित्सक डा. आराधना बघेल कहती हैं कि सुलेखा जैसी बुजुर्ग महिला का सामाजिक ऐक्सपोजर बहुत कम रहा है. वे शुरू से अपने परिवार और अपने लोगों के बीच ही रहीं. अगर आप आसपास की दुनिया पर नजर डालें तो फिर बच्चों के तलाक पर आप इतना दुरूह कदम नहीं उठाएंगे. मातापिता को भी आज की तारीख में यह समझना चाहिए कि उन के बच्चों की खुशी ही उन की खुशी है. जिस तरह बच्चों की जबरदस्ती शादी करना गलत है उसी तरह उन के तलाक पर शोक मनाना भी सही नहीं है.

देहरादून की वर्षा इस मामले में पूरी तरह अपनी बेटी के साथ हैं. उन की बेटी की 7 साल पहले अरेंज्ड मैरिज हुई. शादी के शुरू के 2 साल ठीक रहे. फिर दिक्कतें शुरू हो गईं. सास और ननद की जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी, पति के दूसरी औरतों के साथ संबंध कुछ ऐसे मुद्दे थे जिन्होंने उन की बेटी को तलाक लेने पर मजबूर किया. दिक्कत आई उन के 4 साल के बच्चे की कस्टडी को ले कर. पति की कोशिश थी कि बेटे की कस्टडी उसे मिले.

वर्षा कहती हैं कि उन की बेटी जब अपने बेटे के साथ घर लौट कर आई, उन्होंने उस का पूरा साथ दिया. उन्होंने पुराना घर बेच कर दूसरी जगह नया फ्लैट ले लिया ताकि पासपड़ोस वालों की खोजी नजरों से बचा जा सके. हालांकि उन्हें यह कहते हुए शर्म या हिचक नहीं कि उन की बेटी अलग हो गई है. वह अगर इन परिस्थितियों में वहां बनी रहती तो उन्हें दुख होता. उन की बेटी नौकरी करती है, वे अपने नाती को संभालती हैं. पिछले साल कोर्ट ने नाती की कस्टडी उन की बेटी को दे दी है. हालांकि उस का पिता हफ्ते में एक दिन उस से मिल सकता है, पर उस ने दूसरी शादी कर ली है और अब उसे अपने बेटे से मिलने की फुरसत ही नहीं है. वे तीनों खुश रहते हैं. अगर उन की बेटी दूसरी शादी करना चाहेगी तो वे इस के लिए भी उसे प्रोत्साहित करेंगी. आखिर वे उस की मां हैं और हर तरह से उस की खुशी चाहती हैं.

दरअसल, विवाह पर आज भी कोई प्रश्न नहीं उठाता, बस प्रश्न उठाते हैं इस से जुड़े विचारों पर. विवाह के बदलते रूप की तरह यह भी जरूरी है कि पुरानी सोच को नया चोला पहनाया जाए तो शायद बुजुर्गों को अपने बच्चों पर शर्मिंदगी नहीं उठानी पड़े.

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