जून के मध्य में इराक का संकट शेयर बाजार के लिए भूचाल लाने वाला साबित हुआ. मुसलिम विद्रोहियों के एक के बाद दूसरे शहर पर कब्जा करने से चिंतित अमेरिकी कार्यवाही की संभावना के बीच दुनिया के बाजारों में तेल की आपूर्ति की संभावना बनी और विश्व बाजार में कच्चा तेल 115 डौलर प्रति बैरल के पार पहुंच गया.

बौंबे स्टौक एक्सचेंज में भी नई सरकार के आर्थिक सुधारों को गति देने, अप्रैल में औद्योगिक विकास का आंकड़ा बढ़ने और महंगाई के घटने के बावजूद बाजार 13 जून को 4 दिन की तेजी खो कर 405 अंक फिसल गया. रुपया भी हिला और अपनी मजबूती की रफ्तार खो कर 51 पैसे टूट गया. यह स्वाभाविक था.

सऊदी अरब के बाद इराक ही भारत को सर्वाधिक तेल का निर्यात करता है. भारत विदेश से अपनी जरूरत का 75 फीसदी तेल खरीदता है और हर साल 20 अरब डौलर का तेल आयात करता है. इस से पहले बाजार लगातार 4 दिन तक जबरदस्त उफान पर रहा और 10 जून को सूचकांक सर्वाधिक 25,711 अंक पर और निफ्टी रिकौर्ड 7,655 अंक तक उछल गया. इस से पहले सप्ताह में बाजार करीब 12 फीसदी उछला और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद के 3 सप्ताह में सूचकांक 10 फीसदी से अधिक उठा व हर दिन रिकौर्ड बनाता रहा है. बाजार की गिरावट बाद में भी जारी रही लेकिन इस से पहले ही सूचकांक नए आसमान पर पहुंच चुका है, इसलिए इस गिरावट का बहुत असर निवेशकों पर देखने को नहीं मिला.

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