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वासुदेव जबलपुर के एक होटल में एक उपन्यास पढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन वह उपन्यास के कथानक पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहा था, क्योंकि मन बहुत खुश था. दूसरी बेटी मार्च महीने में पैदा हुई थी. वह बैंकर था, इसलिए मार्च महीने की मशरूफियत की वजह से वह बेटी के जन्म के समय पटना नहीं जा सका था. मनमसोस कर रह गया था वह.

नौकरी में इंसान नौकर बन कर रह जाता है. मन की कुछ भी नहीं कर पाता है. बड़ी बेटी के जन्म के समय में भी वह पत्नी के साथ नहीं था. इसी वजह से जब भी मौका मिलता है, पत्नी उलाहना देने से नहीं चुकती है. हालांकि, उसे भी इस का बहुत ज्यादा अफसोस था, लेकिन उस की भावनाओं व मजबूरियों को समझने के लिए पत्नी कभी भी तैयार नहीं होती थी.

भोपाल से पटना के लिए हर दिन ट्रेन नहीं थी. पटनाइंदौर ऐक्सप्रेस सप्ताह में सिर्फ 2 दिन चलती थी. इटारसी से किसी भी ट्रेन में आरक्षण नहीं मिल पा रहा था और वासुदेव को जनरल बोगी में सफर करने की हिम्मत नहीं थी. हालांकि, बेरोजगारी के दिनों में वह जनरल बोगी में बड़े आराम से सफर किया करता था. एक बार तो वह हावड़ा से चैन्नई जनरल बोगी के दरवाजे के पास बैठ कर चला गया था और एक बार भीड़ की वजह से ट्रेन के बाथरूम को बंद कर कमोड में बैठ कर बोकारो से गया तक का सफर तय किया था.

लोकमान्य तिलक टर्मिनल से पटना जाने वाली ट्रेन में जबलपुर से आरक्षित सीटें उपलब्ध थीं. इसलिए, उस ने जबलपुर से टिकट काट लिया और भोपाल से जबलपुर बस से आ गया. ट्रेन शाम को थी, इसलिए लंच करने के बाद वह उपन्यास पढ़ने के लिए कमरे की बालकनी में बैठ गया.

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