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वासुदेव के बागी तेवर को देख कर परिहार सर उस के पीछे पड़ गए। वह हर जगह वासुदेव की शिकायत करने लगे। क्षेत्रीय कार्यालय में भी वे आरएम सहित सभी डेस्क अधिकारियों के कान भरने लगे. आरएम कान के कच्चे थे, इसलिए परिहार सर उन्हें भरोसा दिलाने में कामयाब रहे कि वासुदेव लोन के एवज में रिश्वत लेता है, जिस से बैंक की साख खराब हो रही है। वह बढ़चढ़ कर के लोन इसलिए बांट रहा है, ताकि उसे अधिक से अधिक रिश्वत मिले.

क्षेत्रीय कार्यालय में उस के कुछ मित्रों ने उसे परिहार सर की कारस्तानी के बारे में बताया, लेकिन वासुदेव यह मानने के लिए कतई तैयार नहीं हुआ कि परिहार सर इस हद तक नीचे गिर सकते हैं. उसे इस बात का भी विश्वास नहीं था कि परिहार सर की शिकायत पर आरएम सर कोई काररवाई करेंगे, क्योंकि आरएम सर उस के काम से बहुत खुश थे। उस के उम्दा प्रदर्शन के लिए वे कई बार उसे पुरस्कृत भी कर चुके थे और मामले में सब से महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि उस ने कभी भी कोई गलत काम नहीं किया था.

जांच की काररवाई शुरू होने पर वासुदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन तब तक तीर कमान से निकल चुका था. परिहार सर जरूर एक नाकारा और नाकाबिल अधिकारी थे, लेकिन साथ में भोपाल मंडल के अधिकारी यूनियन के जनरल सेक्रेटरी भी थे. इसलिए उन की भोपाल मंडल में खूब चलती थी. नए अधिकारी भले ही उन्हें नहीं जानते थे, लेकिन पुराने लोग उन्हें जानते भी थे और उन से खौफ भी खाते थे.

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