रेलवे स्टेशन पर एसी कोच में बैठी ट्रेन चलने का इंतजार कर रही शालिनी का बेटा रमेश अभी सारा सामान ठीक से लगा कर बाहर निकला ही था कि ट्रेन चलने की सीटी बज गई.मां को चलने से पहले खिड़की से झांकते हुए विदाई के अंदाज में मुसकराते हुए अपने मन को समझाने का प्रयास कर ही रहा था कि रमेश ने पास से निकले 70 वर्षीय राधेश्याम को देखा, जो ट्रेन के उसी डिब्बे के दरवाजे पर चढ़ने की जल्दी में थे.उन का एक बैग जल्दी के चलते रमेश के कुछ ही आगे गिर गया.

राधेश्याम की उम्र शरीर की शिथिलता के सामने हार मान गई थी.तभी उस की मदद करने के लिए रमेश दौड़ा.इधर शालिनी अचानक अपने बेटे को दौड़ते देखा तो चिंतित सी दरवाजे की तरफ लपकी.जब तक शालिनी पंहुचती तब तक रमेश तक राधेश्याम को ट्रेन के डिब्बे में सामान सहित सुरक्षित पहुंचा चुका था.रमेश का तो मन था कि वह अंदर सीट तक छोड़ कर आए मगर समय की कमी थी.ट्रेन कभी भी चल सकती थी.ट्रेन के दरवाजे पर खड़े राधेश्याम कृतज्ञता से रमेश के हाथ को पकड़े धन्यवाद कर रहे थे और रमेश इसे अपना फर्ज बता रहा था कि तभी ट्रेन ने दूसरी सिटी भी बजा दी और शालिनी ने मुसकराते हुए दरवाजे से ही रमेश को विदा किया.

चेहरे की भावभंगिमा से ही राधेश्याम समझ तो रहे थे कि शालिनी और उस लड़के के बीच कोई आत्मीय संबंध है.फिर भी जिज्ञासा के चलते मदद से खुश राधेश्याम ने वहीं खड़ेखड़े शालिनी से पूछ लिया,"मैडम, यह आप का बेटा है?"

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