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वासुदेव की शाखा में सिरोंज और लटेरी दोनों तहसीलों के ग्राहक थे. कई बैंक वहां थे। इसलिए, प्रतिस्पर्धा भी बहुत ज्यादा थी। बिजनैस बढ़ाना आसान नहीं था। उस की शाखा सिरोंज से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर सिरोंज और लटेरी तहसील के बीच थी। वह बस या बाइक से शाखा जाता था। शाखा में भी बैंक की एक बाइक थी। इसलिए, जिस दिन वह बस से शाखा जाता था, उस दिन बैंक की बाइक का इस्तेमाल वह गैर निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) वसूली के लिए करता था।

सुबह 6 बजे ही वासुदेव वसूली हेतु घर से निकल जाता था। गांव जा कर वह सीधे मुखिया और सरपंच को चूककर्ता की सूची दे कर कहता था, “पंचायत भवन में उन्हें बुला कर पैसे जमा करने के लिए दबाव बनाएं, अगर वे मदद करेंगे तो बैंक गांव के जरूरतमंदों को कर्ज देने से कभी पीछे नहीं हटेगा। गांव के विकास हेतु भी वह जरूरी कर्ज मुहैया कराएगा।"

वासुदेव, कहेअनुसार काम भी करता था। वह कई गावों में युवकों को स्वरोजगार शुरू करने और डाक्टरों को क्लीनिक शुरू करने के लिए लोन पास कर चुका था. इस कारण सरकारी योजनाओं वाले लोन के बजटीय लक्ष्य को भी वासुदेव हर साल आसानी से हासिल कर लेता था. जिला कलेक्टर के अलावा राज्य के मुख्यमंत्री भी उसे इस के लिए सम्मानित कर चुके थे.

वासुदेव की यह रणनीति बहुत ही कारगर थी. इस से एनपीए की वसूली तो होती ही थी साथ ही साथ उसे डिपोजिट भी गांव में मिल जाती थी और ऋण के अच्छे प्रपोजल भी. वह बीमा के प्रोडक्ट भी सुबहसुबह गांव में बेच देता था. गांव वालों को घर में ही सारी बैंकिंग सुविधाएं दे देता था. इसलिए, उसशकी शाखा का बिजनैस बहुत तेजी से बढ़ रहा था.

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