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‘‘आइए, सरन बाबू, जरा देखें क्या है?’’ मैं ने ठिठक कर कहा.

‘‘अरे, होगा क्या, कुछ चुनाव का प्रोपेगैंडा है. आजकल तो सभी पर यही चुनाव का भूत सवार है,’’ उन्होंने लापरवाही से कहा. वे अधिक उत्सुक नहीं थे.

‘‘नहीं, तब भी देखें न,’’ मैं ने कहा, और गली में मुड़ गया. चादर लपेटे, जनेऊ कान पर चढ़ाए एक आदमी सामने के नल पर मिट्टी लगालगा कर हाथ धो रहा था. उसी से पूछा, ‘‘क्यों भई, क्या मामला है?’’

‘‘कुछ नहीं, जी, आज सुबह ही सुबह भंगिन जब झाड़ू लगा रही थी तो मंदिर की दहलीज पर टाट में लिपटी हुई कोई चीज दिखाई दी. उस ने समझा कूड़ाकरकट होगा. झाड़ू मारी तो टाट खुल गया, देखा एक बच्चा था.’’

‘‘बच्चा?’’ चिहुंक कर मेरे मुंह से निकल गया.

‘‘हां, बच्चा. हाल का होगा या 1-2 दिन का होगा,’’ उस ने कुछ दुख प्रकट कर के कहा, ‘‘जाड़े के मारे बेहोश सा था. वह तो लोगों ने रूई से दूध पिलाया, कपड़े उढ़ाए, तब उस के गले से आवाज निकली.’’

‘‘अच्छा, तब तो जरूर देखना चाहिए,’’ वहां से बढ़ कर हम और सरन बाबू भीड़ में आ गए. हृदय में बड़ी उत्सुकता थी, आखिर बच्चे को यहां कौन छोड़ कर चला गया? कैसा है?

भीड़ से झांक कर देखा, गोल घेरा सा छोड़ कर जमीन पर ही वह बच्चा लेटा था. नीचे टाट था, फिर एक सफेद फटी धोती कई तह कर के बिछी हुई थी. उसी पर वह लेटा था. ऊपर से फटे कंबल का टुकड़ा किसी ने उढ़ा दिया था. बच्चे का केवल मुंह ही खुला था, छोटा सा गोलगोल लाल मुंह. सिर में बालों की जगह हलके रोएं, छोटीछोटी आंखें और नाक. देखते ही एक अनजान प्यार उस के लिए दिल में उमड़ने लगा. अधखुली आंखों से संसार को देख रहा था वह मासूम, अबोध, अनजान शिशु. भंगिन न देखती तो नन्ही सी जान चुपचाप मर जाता. लेकिन है कितना प्यारा, अभी संसार की कू्ररता और विषमताओं की छाया उस पर नहीं पड़ी. संसार...एक गहरी सांस हृदय से उठने को हुई. तभी पास वाले सज्जन की चुभती वाणी से चौंक गया.

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