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और क्या पता बीच में ही मर जाए, उन के घर से क्या जाता है? पुलिस वालों का भी क्या ठीक है, वे  भी किसी अनाथालय में ही जा कर डाल आएंगे.’’

इस से पहले कि सरन बाबू कुछ उत्तर दें, एक सज्जन ने दार्शनिक स्वर में कहा, ‘‘क्या रवैया है, साहब, दुनिया का भी, पाप किसी ने किया और भोगे कोई. अब यह बेचारा फिरेगा मारामारा.’’

सभी लोग आशा से उत्सुक हो कर एकदम सरन बाबू की ओर ही देखने लगे. इस अप्रत्याशित प्रहार से सरन बाबू अचकचा उठे. झुंझला कर कहा, ‘‘अच्छा मजाक है, कोई बालबच्चा नहीं है तो सड़क से उठा कर डाल लूं? तुम भी, लालाजी क्या बातें करते हो, अब इस की जात का पता नहीं, पात का पता नहीं. मेरी बीवी तो घुसने भी नहीं देगी, किस का बच्चा उठा लाए?’’

‘‘हां, यह बात तो है,’’ गंभीरता से सोचते हुए बहुतों ने सिर झुका लिए, ‘‘पता नहीं किस जात का है?’’

एक गांव के से धर्मप्राण आदमी ने पास वाली बुढि़या को समझाया, ‘‘हां, ठीक कह रहे हैं बाबूजी. जरा सा बच्चा, क्या पता लगे किस जात का है? बोल सके नहीं, बता सके नहीं. माथे पर उस के लिखा नहीं कि फलां जात का है. भंगी, चमार, ठाकुर, बामन पता नहीं किस जात का है. और कौन जाने मुसलमान ही हो. कोई कैसे ले ले?’’ फिर बड़े निराश हो कर वे महाशय घर की ओर चल दिए.

‘‘हां, हां, ठीक है,’’ बुढि़या ने स्वागत कथन करते हुए राय दी, ‘‘रांड थी कैसी? यहां बीच सड़क पर डाल गई है. अरे, सब अंधे हो जावें जवानी में. आगे देखें न पीछे. अब तो किसी को लिहाजशरम रही ही नहीं,’’ अथाह दुख उस के प्रत्येक शब्द में कराह रहा था.

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