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‘‘बिलकुल, बिलकुल,’’ उन्होंने दृढ़ता से कहा, ‘‘ईश्वर और प्रकृति ने सभी जगह विभाजन किया है. शेर शेर एक नहीं होते, मछलियों में भी सैकड़ों भेद हैं, आप कहीं भी ले लीजिए. फिर यही क्यों असंभव है कि आदमी आदमी में कुछ भेद हो? क्षत्रिय क्षत्रिय है, ब्राह्मण ब्राह्मण है. आप कितनी भी कोशिश कर लीजिए, बनिया नहीं छिप सकता. सभी मनुष्य समान हैं, यह सिद्धांत बड़ा ही अवैज्ञानिक है.’’

‘‘लेकिन ये प्रगतिशील विचारों वाले लोग तो गले के सारे व्यास को फैला कर बस यही चीखते हैं कि सब मनुष्य बराबर हैं, उन में कोई भेद नहीं है,’’ मैं ने तर्क रखा.

‘‘यही तो इन की अवैज्ञानिकता है,’’ उन्होंने बड़े आत्मविश्वास से बताना शुरू किया, ‘‘किसी भी चीज का वैज्ञानिक विश्लेषण आप तभी कर सकते हैं जब अपने को उस से बिलकुल तटस्थ और निर्लिप्त बना लें. जब तक आप का उस वस्तु से किसी भी तरह का संबंध है आप निर्लिप्त नहीं रह सकते यानी वैज्ञानिक दृष्टि से जांच नहीं कर सकते. जो आदमी आदमी के बराबर होने की बात चिल्लाते हैं, असल में वे अपनेआप को तटस्थ नहीं कर पाते. इसीलिए उन का निर्णय सर्वमान्य नहीं है. एक कुत्ता ही अगर कुत्तों में विभाजन करने बैठेगा तो वह कैसे वैज्ञानिक रह सकेगा, यह मेरी समझ में नहीं आता. क्योंकि पता नहीं वह खुद किस वर्ग में आए. इन में विभाजन तो आप ही कर सकेंगे, जो इन सब से बिलकुल अलग हैं. आप ही तो बता सकते हैं, यह ग्रेहाउंड है, यह बुलडौग, पायनियर, ताजी, देशी, शिकारी वगैरह हैं.’’ और अपने तर्क की अकाट्यता पर वे स्वयं संतुष्ट से चलने लगे.

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