स्कूल से आते ही बेटा अवि मेरे गले से लटक गया और बोला, ‘‘माय मौम‘‘ और मुझे किस कर के कमरे में चला गया.
बेटा अवि 15 साल का हो गया था, लेकिन बिलकुल बच्चों की तरह लाड़ करता था. मेरे हाथ से खाना खाता था और खाते ही मेरी गोद में सो जाता था.
मैं उस पर खूब प्यार लुटाती और प्यार से धीरे से सिरहाने पर लिटा देती थी. ऐसा रोज होता था.
मैं उसे रोजाना समझाती, ‘‘बड़े हो गए हो अब तुम. खुद खाना खाया करो.’’
‘‘कभी नहीं. आई लव माय फैमिली. मम्मा, मैं आप को देखे बिना नहीं रह सकता. हमेशा आप के हाथ से ही खाना खाऊंगा.‘‘
ऐसा कह कर वह जोरजोर से हंसने लगा.
एक दिन स्कूल से आ कर अवि बोला, ‘‘मम्मा, परसों मेरी बर्थडे पर मुझे आईपैड दिला दो. मेरे सब फ्रेंड्स के पास है.‘‘
‘‘बेटा दिला तो दूं, लेकिन तुम्हारी पढ़ाई? पापा नहीं मानेंगे.‘‘
‘‘पढ़ाई की चिंता मत करो मम्मा. वो मैं सब करूंगा और आप हां कर दो बस, पापा को तो मैं मना लूंगा.‘‘
बर्थडे वाले दिन सुबह सिरहाने के पास आईपैड का बौक्स देख कर अवि खुशी से फूला न समाया और मुझे अपनी बांहों में उठा लिया.
‘‘पापामम्मा, यू बोथ आर अमेजिंग. आई लव यू. अपने सारे फ्रेंड्स को बताऊंगा कि मेरे पास भी अब अपना आईपैड है,‘‘ खुशी से उछलता हुआ अवि स्कूल चला गया.
मैं और मेरे पति रवि हम दोनों उसे खुश देख कर बहुत खुश थे.
स्कूल से आते ही अवि अपना आईपैड ले कर अपने कमरे में चला गया. खाना भी कमरे में ही मंगा लिया. अब ये सिलसिला रोज का ही हो गया था.