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“ज्यादा बको मत. बहुत इंग्लिश जान गई हो? एक तो गैरजाति की, ऊपर से तलाकशुदा. क्या अपने एकलौते बेटे के लिए ऐसी ही बहू का सपना देखा था मैं ने?” बोल कर उन्होंने फोन पटक दिया. समझ गई मैं, आ गयी मेरी शामत, नहीं छोड़ेंगी दीदी अब मुझे. इसलिए मैं ने जीजा जी को फोन लगाया कि वे दीदी को समझाएं. लड़की बहुत अच्छी और गुणी है. पूरी दुनिया में उन्हें ढूंढने से भी ऐसी लड़की नहीं मिलेगी. उस पर जीजा जी ने कहा कि मेरी बात सही है, पर उस की दीदी को कौन समझाए? ‘वैसे, क्या उसे हिंदी में बात करना आता है?’ जीजा जी ने पूछा. “हांहां जीजा जी, उसे हिंदी आती.” यह बोल कर मैं सकपका गई और सुधार कर बोली कि उसे हिंदी में बात करना आता है. हंसते हुए जीजा जी बोले कि उसे भले ही हिंदी में बात करना आता हो, पर लगता है तुम्हारी हिंदी बिगड़ रही है. अगले हफ्ते ही जीजा जी के साथ दीदी भी आ धमकीं. मैं दीदी को देख उन से लिपट पड़ी. रोना आ गया मुझे इतने दिनों बाद दीदी को देख कर. आज इतने सालों बाद छोटी बहन को देख दीदी की भी आंखें भर आईं. लेकिन अगले ही पल वे मुंह फुला कर कहने लगीं कि अब वेदांत यहां नहीं रहेगा. वह अपना तबादला पटना में ही करवा लेगा या कहीं और मगर यहां नहीं रहेगा अब.

“लेकिन दीदी..., मैं बोल ही रही थी कि जीजा जी ने इशारों से मुझे चुप रहने को कहा. दोनों सफर से थकेमांदे आए थे, सो खाना खा कर सोने चले गए. लेकिन मेरे मन में एक धुकधुकी सी लगी हुई थी कि जाने अब क्या होगा. क्योंकि वेदांत का फैसला तो मैं सुन ही चुकी थी कि अगर दीदी ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की तो वह अपनी जान दे देगा. जो भी हो पर मैं वेदांत के साथ थी.

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