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मेरा घर हेमा जी के घर के सामने ही था. उन के किचन की खिड़की, मेरे किचन की खिड़की के सामने ही खुलती थी. मैं रोज देखती, हेमा जी की बेटी वैजंती किचन में काम कर रही होती. फिर तैयार हो कर वह औफिस के लिए निकल जाती थी. कभीकभी उन के घर से गाने की बड़ी सुरीली आवाज भी सुनाई पड़ती थी मुझे. एक दिन जब मैं उन के साथ मार्केट गई, तो वे मुझे पूरे रास्ते दुकान, मौल, पार्लर, धोबी के बारे में बताती रहीं कि किस की दुकान कहां है और कहां क्या मिलता है.

गाड़ी चलाना आता था मुझे, इसलिए अब मैं खुद ही घर के सारे छोटेमोटे काम करने लगी. यहां तक कि शेखर को भी मैं ही बताती कि कौन सी दुकान कहां है और कौन सी चीज कहां मिलती है. उस पर हंसते हुए शेखर बोले भी थे, ‘गुरु गुड़ बन गया और चेला चीनी.’ यहां चेला मैं थी. मुझे तो लगता है पति पर आश्रित रहने के बजाय, औरतों को खुद में ही सक्षम बन जाना चाहिए. इसलिए मैं घर के छोटेमोटे काम, जैसे बाजार से सब्जी, राशन लाना, गैस सिलैंडर लगाना, फ्यूज ठीक करना वगैरह सीख लिया था. हां, लेकिन अगर कहीं नई जगह रहने जाओ तो थोड़ी तो परेशानी होती ही है. लेकिन शेखर तो शुरू से ही ‘मस्तराम मस्ती में, आग लगे बस्ती में’ जैसे इंसान रहे हैं. कोई मतलब नहीं उन्हें घर के कामों से. सो, मैं ही कमर कस लेती हूं. जानबूझ कर हम ने अपने दोनों बच्चों को होस्टल में डाल दिया था ताकि इस ट्रांसफर के चक्कर में उन की पढ़ाई न बिगड़े. बड़ा बेटा अतुल इंजीनियरिंग के सैकंड ईयर में है और छोटा बेटा नकुल इस साल बोर्ड की परीक्षा देगा.

उस रोज मैं ने हेमा जी को गौर से देखा. भले ही वे अपनी उम्र से 10 साल बड़ी लग रही थीं और शरीर भी वजनदार था लेकिन वे मुझ से पांचछह साल से ज्यादा बड़ी नहीं होंगी क्योंकि इंसान के चेहरे से उस की उम्र का पता तो लग ही जाता है. वैसे भी, महिलाएं पचास की हों या साठ की, किसी के मुंह से अपने लिए आंटी सुनना अच्छा नहीं लगता है उन्हें. याद है एक सीरियल आता था, ‘हम पांच’. उस में एक महिला को कोई आंटी कह देता, तो वह चिढ़ उठती थी और कहती, ‘मुझे आंटी मत कहो न.’ और हम सब खूब हंसते थे. लेकिन महिलाएं ही क्यों…

अब तो पुरुषों को भी अंकल सुनना नहीं पसंद. कैसे घूर कर देखते हैं जब कोई उन्हें अंकल बोल दे तो. लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि मैं उन्हें बुलाऊं क्या? नाम पुकार कर बोलना अच्छा थोड़े ही लगेगा. सो, मैं उन्हें ‘दीदी’ बुलाने लगी. बड़ी खुश हुईं सुन कर और बोलीं कि उन की भाषा में दीदी को ‘अक्का’ बुलाते हैं. अपने पतिश्री राम निवास से परिचय कराते हुए हेमा जी बोलीं, “ये वैजंती के अप्पा. मतलब पप्पा.” तो मैं ने उन्हें हाथ जोड़ कर नमस्ते कहा. बदले में वे भी हंस कर नमस्ते बोले और पूछने लगे कि मैं कहां की रहने वाली हूं. मेरे पति क्या काम करते हैं और बच्चे कितने हैं वगैरह. उन्होंने बताया कि वे एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करते हैं.

अभी तक मेरी उन से बाहर से ही बातें होती रहीं. सोचा,किसी दिन समय निकाल कर उन के घर जाऊंगी. लेकिन घर के कामों से समय ही नहीं मिल पाता था जो जाती. शेखर औफिस के काम से 2 दिनों के लिए शहर से बाहर गए हुए थे. काम ज्यादा नहीं था, इसलिए सोचा, हेमा जी के घर घूम आती हूं. मुझे देखते ही वे खुशी से चहक उठीं.

लेकिन मैं तो उन का घर ही देखती रह गई. घर इतना सजासंवरासमेटा हुआ था कि क्या कहें. दीवारों पर टंगी खूबसूरत पेंटिंग्स, सोफ़े से मैच करता हुआ परदा, कोने में रखा फूलों का गुलदस्ता. मतलब, घर का हर सामान अपनी जगह पर सही से रखा हुआ था. लग रहा था जैसे घर में अभीअभी झाड़ूपोंछा हुआ हो. और एक मेरा घर… कोई भी सामान सही जगह पर नहीं मिलता. ढूंढना पड़ता है. अपने घर को इस तरह निहारते देख हेमा जी कहने लगीं कि यह सब वैजंती का काम है. उसे साफसुथरा और सजा हुआ घर अच्छा लगता है. ये सारी पेंटिंग्स भी वैजंती ने ही बनाई हैं. और वह गाना भी बहुत अच्छा गाती है. “अच्छा, तो वह गाने की आवाज वैजंती की है, म्यूजिक क्लास का कोर्स किया होगा?” मैं बोली तो कहने लगीं कि नहीं, उस ने कोई कोर्स वगैरह नहीं किया है. “बाप रे, फिर इतना अच्छा कैसे गा लेती है. विश्वास नहीं होता कि एक इंसान में इतने सारे गुण भी हो सकते हैं. मेरा भांजा भी बहुत अच्छीअच्छी कविताएं लिखता है. वह वैजंती की उम्र का ही है,” मैं बोली तो वे मुसकरा पड़ीं.

“एक बात कहूं दीदी, आप का समय अच्छा है जो आप को इतनी अच्छी बेटी मिली. काश, मेरी भी एक बेटी होती,” मैं ने कहा, किंतु उत्तर में उन के चेहरे पर पीड़ामिश्रित मुसकान देख मुझे थोड़ा अजीब लगा. मैं आगे और कुछ बोलती, तब तक वैजंती, ‘ओह, आज तो बहुत थक गई मैं’ बोल कर वह सोफ़े पर बैठ गई और कहने लगी कि बस में बहुत भीड़ थी. पैर रखने तक की जगह नहीं थी. कैसे आई हूं मैं वही जानती हूं. लेकिन जैसे ही उस की नजर मुझ पर पड़ी, मुसकराती हुई मुझ से नमस्ते कहा. लेकिन मैं तो उसे देखती ही रह गई. दूर से पता नहीं चला. लेकिन करीब से उस की सुंदरता देख दंग रह गई मैं. गज़ब की खूबसूरत थी. रंग भले ही उस का सांवला था पर उस के नैननक्श…ओह, क्या कहें, लग रहा था जैसे प्रकृति की सारी खूबसूरती वैजंती में आ कर समा गई हो. उस की बड़ीबड़ी काली आंखें, काले घुंघुराले बाल और मासूम मुसकान पर मैं तो फिदा ही हो गई. मुझे हेमा जी से ईर्ष्या भी हो आई कि कितनी अच्छी बेटी पाई है उन्होंने. कुछ देर में वैजंती 2 कप चाय और कुकीज़ के साथ उपस्थित हो गई. “चाय बहुत अच्छी बनी है,” मैं ने कहा तो ‘थैंक्स’बोल कर वह हंस पड़ी. वैजंती सुंदर तो थी ही, हंसने से जब उस के बाएं गाल पर गड्डे पड़े, तो वह और भी खूबसूरत लगने लगी. मैं अब भी उसे ही निहार रही थी. मगर उस का चेहरा हेमा जी की तरह था. पूछ रही थी कि रात के खाने में क्या बनेगा?

“दीदी, आप की बेटी जिस घर जाएगी, खूब राज करेगी. पति तो पलकों पर बिठा कर रखेगा इसे देखना आप,” हंसते हुए मैं ने कहा, तो बड़े उदास मन से वे बोलीं कि वैजंती उन की बेटी नहीं, बहू है. यह सुन कर मैं अवाक रह गई. “तो क्या वैजंती आप की बेटी नहीं हैं?” मेरी बात पर हेमा जी ने ‘न’ में सिर हिलाया और फिर नजरें झुका लीं. गौर से देखा मैं ने, न तो वैजंती के मांग में सिंदूर था और न ही गले में मंगलसूत्र. यानी कि हेमा जी का बेटा…ओह…इतनी कम उम्र में बेचारी विधवा हो गई. अपने मन में सोच मैं उदास हो गई और बोली, “सुन कर बहुत दुख हुआ कि आप का बेटा अब इस दुनिया में…

“इल्लईइल्लई…” वे ज़ोर से चीख पड़ीं, “नहीं, मेरा बेटा जिंदा. कुछ नहीं हुआ उसे.”

“जिंदा है, तो फिर आप की बहू ऐसे कैसे? और आप का बेटा…” मैं पूछ ही रही थी कि वैजंती आ कर सोफ़े पर बैठ गई और बातों का सिलसिला वहीं पर टूट गया. मैं समझ गई कि वे वैजंती के सामने कुछ बात नहीं करना चाहती हैं. मुझे भी रात के खाने की तैयारी करनी थी, सो मैं अपने घर आ गई. लेकिन मेरे अंदर सवालों का तूफान उठने लगा कि जब उन का बेटा जिंदा है तो फिर बहू ने मांग क्यों नहीं भरा था? गले में उस के मंगलसूत्र भी नहीं था. और उन का बेटा…कभी दिखा नहीं आज तक. यहां तक कि हेमा जी ने भी कभी अपने बेटे का जिक्र नहीं किया मुझ से. माजरा क्या है आखिर?

जब मैं ने शेखर से ये बातें कहीं, तो वे हंसते हुए बोले, “तुम भी न श्रुति, लोगों के घरों में ताकझांक करना बंद करो. होगी उन की अपनी कोई समस्या, जाने दो न.” यह बोल कर वे तो सो गए लेकिन मेरे दिमाग में वही सब बातें चलती रहीं. दूसरे दिन और तीसरे दिन भी. जब तक नहीं जान लूं तब तक चलती रहेंगी कि जब वैजंती उन की बहू है तो बेटा कहां है? और क्यों वह इन के साथ नहीं रहता? एक दिन हेमा जी बताने लगीं कि वे और वैजंती की मां आपस में सहेलियां थीं. दोनों बच्चों को साथ खेलते देख एक दिन हेमा जी ने कह दिया था कि वे वैजंती को अपनी बहू बनाएंगी. कुछ सालों बाद राम निवास का दूसरे शहर में ट्रांसफर हो गया. इस बीच बच्चे भी बड़े हो चुके थे. फिर वे लोग यहां दिल्ली आ गए. एक दिन पता चला कि कार ऐक्सिडैंट में वैजंती के मातापिता दोनों चल बसे. वैजंती की ज़िम्मेदारी उस के मामामामी पर आ गई. लेकिन यह जानकर हेमा जी को बहुत दुख हुआ कि उस के मामामामी अपनी ज़िम्मेदारी से मुक्ति पाने के लिए वैजंती की शादी एक शराबी व बेरोजगार लड़के से करवाने जा रहे हैं. हेमा जी को अपना वादा याद था, इसलिए उन्होंने अपने बेटे अर्जुन की शादी वैजंती से करवा दी. शादी के बाद वैजंती अपने सासससुर की लाड़ली बहू बन गई. लेकिन पति अर्जुन के दिल में वह अब तक जगह नहीं बना पाई थी. जानबूझ कर अर्जुन बहाने बना कर वैजंती से दूर रहने की कोशिश करता. वैजंती की किसी भी बात का वह सिर्फ ‘हां हूं’ में जवाब देता. लेकिन वैजंती को यही लगता कि धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. मगर एक रोज हेमा जी के कमरे से आती तेज आवाज से जब वैजंती वहां पहुंची तो देखा, बापबेटे में जंग छिड़ी हुई है. राम निवास अपने बेटे पर गरज रहे हैं और हेमा जी दोनों को चुप कराने की कोशिश कर रही हैं.

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