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“आंटी, आप के घर में कोई ‘बाई’ आती हो, तो मुझे भी...” मैं बोल ही रही थी कि वह महिला बोल पड़ी, “डोंट कौल मी आंटी, माई नेम इज हेमा. सो, यू कैन कौल मी हेमा.” यह बोल कर एकदम से उस ने अपना मुंह फेर लिया और मैं ठिसुआई सी देखती रह गई. बड़ा बुरा लगा मुझे. अरे, कौन सा मैं उसे गाली दे रही थी जो इतना भड़क गई. यही तो पूछ रही थी कि उस के घर ‘बाई’ आती हो तो मुझे भी काम करवाना है, पर ये तो... लेकिन, उस से ज्यादा गुस्सा मुझे खुद पर आया.

कितना समझाया था शेखर ने मुझे ‘श्रुति, थोड़ीबहुत इंग्लिश बोलनी भी आनी चाहिए. जगहजगह हमारा ट्रांसफर होता रहता है. जाने कौन सा पड़ोसी कैसा मिल जाए. इसलिए कह रहा हूं, इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स का क्लास कर लो तुम.’ उस पर मैं ने कहा था, ‘नहीं सीखनी मुझे कोई इंग्लिश-विंग्लिश. मैं तो हिंदी में ही बात करूंगी. हिंदी हमारी अपनी भाषा है. और जब हम ही हिंदी का अपमान करेंगे, तो बाहर वाले क्या ख़ाक इस की इज्जत करेंगे. इसलिए मैं तो भई, अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बात करूंगी. जिसे बात करनी हो करे, वरना जाए अपने रास्ते.’

मैं ने तन कर यह कहा था. लेकिन आज लगता है, काश, शेखर की बात मान ली होती. वैसे भी, कोई भाषा सीखने में बुराई ही क्या है? इंग्लिश न जानने के कारण कितनी बार मैं अपने पति, बच्चों के सामने बेवकूफ बनी हूं. कुछ उलटापुलटा खा लेने की वजह से जब एक रोज नकुल के पेट में तेज दर्द शुरू हो गया तब मैं उसे दवाई देने लगी तो लगा एक बार देख लूं दवाई बिगड़ तो नहीं गई. बेवजह लेने के देने न पड़ जाएं. इसलिए मैं ने अपने बड़े बेटे अतुल से कहा, ‘जरा देख तो बेटा, दवाई इंस्पायर तो नहीं हो गयी. मेरी बात पर नकुल हंस पड़ा और अपना पेट पकड़ते हुए बोला, ‘इंस्पायर नहीं मम्मी, एक्सपायर बोलते हैं.’

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